सीमा ने कामवाली के जाने के बाद जैसे ही घर का दरवाजा बंद करने की कोशिश की, दरवाजा ठीक से बंद नहीं हुआ. शायद कहीं अटक रहा था. सीमा के चेहरे पर मुसकान आ गई. उस ने ड्राइंगरूम में रखी एक डायरी उठाई, अपने मोबाइल से फोन मिलाया, उधर से "हैलो..." सुनते ही सीमा ने कहा,''रमेश...''

''हां, मैडम...''

''फौरन आओ.''

''क्या हुआ मैडम?''

''घर का दरवाजा ठीक से बंद नहीं हो रहा है. बिलकुल सेफ नहीं है. फौरन आ कर देखो क्या हुआ है.''

''10 मिनट में पहुंच जाऊंगा, मैडम.''

''ठीक है, आओ.''

11 बज रहे थे. सीमा ड्राइंगरूम में ही बैठ कर गृहशोभा पढ़ रही थी. इतने में रमेश आ गया. सीमा उसे देखते ही बोली,''देखो भाई, क्या हुआ है. सालभर भी नहीं हुआ. अभी से अटकने लगा.''

''देखता हूं, मैडम.‘’

फिर थोड़ी देर बाद बोला,''कुछ खास नहीं हुआ. बस, एक हाथ घिसूंगा नीचे से बराबर हो जाएगा.''

''पर हुआ क्यों?''

''मैडम, बरसात का मौसम है, लकड़ी हो जाती है कभीकभी...''

''फिर भी, लकङी इतनी जल्दी तो खराब नहीं होनी चाहिए थी.''

''हां, मैडम सही बोलीं आप."

''अच्छा, चाय पीओगे?''

''नहीं, मैडम कहीं पास में ही काम कर रहा हूं, आप का फोन आते ही छोड़ कर भागा आया हूं, जल्दी जाना है. मेरे हटते ही कारीगर सुस्ताने लगते हैं. आप को तो पता ही है, सालभर काम किया है आप के यहां."

''अरे, चाय पी कर जाना.''

''ठीक है, मैडम.''

दरवाजा तो सचमुच जल्दी ही ठीक हो गया पर अब सीमा रमेश के साथ बैठ कर चाय पी रही थी, बोली,''और परिवार में सब ठीक हैं?''

''हां, मैडम.‘’

''कोरोनाकाल में तो काम का बड़ा नुकसान हुआ होगा?‘’

''हां, मैडम सब जमापूंजी खत्म हो गई.‘’

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