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अस्पताल में भर्ती हुई कॉमेडियन Bharti Singh, लगी गंभीर चोट

Comedian Bharti Singh Health : एक्ट्रेस और कॉमेडियन ”भारती सिंह” ने अपनी बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग और एक्टिंग से अपनी पहचान बनाई हैं. उनकी शानदार पंचलाइन्स के कारण भारती को आज घर-घर में पहचान मिली है. कई शो में काम करने के साथ-साथ वह अपना यूट्यूब पचैनल भी चलाती हैं, जिसमें वह अपनी जिंदगी से जुड़ी हर छोटी-बड़ी अपडेट अपने फैंस के साथ साझा करती हैं. वहीं अब भारती ने अपने लेटेस्ट वीडियो में बताया है कि उन्हें गंभीर चोट आई है, जिसकी वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

भारती की कमर में लगी चोट

आपको बता दें कि ‘भारती सिंह’ (Bharti Singh Health Video) ने अपने लेटेस्ट वीडियो में बताया है कि, ‘वो अपने ही घर में अपने ही बेड से नीचे गिर पड़ीं, जिस कारण उनकी कमर में गंभीर चोट आई है.’ इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया कि ये हादसा तब हुआ जब वह अपने सिर की मसाज करवा रही थीं. मसाज करवाते समय उनके हाथ में फोन था, जिसकी वजह से उनका ध्यान भटक गया और वो बेड से नीचे गिर गई.

बेड से गिरने के बाद जब उन्हें दर्द हो रहा था तो तब उनके पति ‘हर्ष लिंबाचिया’ उन्हें अस्पताल लेकर गए. जहां उनका एक्सरे किया गया. हालांकि एक्सरे में सब ठीक आया है और अब उनकी हाल भी ठीक है. लेकिन डॉक्टर ने उन्हें पूरी तरह से बेड रेस्ट करने को कहा है.

मदरहुड जर्नी को एंजॉय कर रही हैं भारती

आपको बताते चलें कि इस समय भारती (Bharti Singh) मदरहुड जर्नी को पूरी तरह से एंजॉय कर रही हैं. उन्होंने बीते साल 3 अप्रैल को एक बेटे को जन्म दिया था, जिसका नाम ‘लक्ष्य’ है लेकिन प्यार से सब उसे ”गोला” कहकर  पुकारते हैं.

Alia से लेकर Shraddha तक ये 5 हसीनाएं बनी गैंगस्टर, देखें सिनेमा की लेडी माफिया की लिस्ट

Lady Mafia in Hindi Cinema : हिन्दी सिनेमा में हमेशा से ही माफिया, गैंगस्टर, डॉन और निगेटिव रोल पर मेल एक्टर्स का ही दबदबा रहा है, लेकिन समय के साथ इस चीज में भी बड़ा परिवर्तन आया है. कुछ सालों से डॉन, माफिया, गैंगस्टर और निगेटिव रोल का किरदान निभाने के लिए फीमेल एक्ट्रेस की भी दिलचस्पी बड़ी है और बड़ भी रही है.

पिछले कई वर्षों में बॉलीवुड एक्ट्रेस (Lady Mafia in Hindi Cinema) आलिया भट्ट से लेकर श्रद्धा कपूर तक ने बड़े पर्दे पर गैंगस्टर का किरदार निभाकर लोगों का दिल जीता है. इसके अलावा अभिनेत्री कृतिका कामरा ने भी वेबसीरीज ‘बंबई मेरी जान’ में डॉन की जबरदस्त भूमिका निभाई है. गौरतलब है कि यह किरदार, न केवल स्टार्स के लिए चुनौतीपूर्ण होते हैं बल्कि दर्शकों के लिए भी नया अनुभव होता है.

तो आइए जानते हैं उन कुछ उम्दा बॉलीवुड एक्ट्रेस के बारे में जिन्होंने निडर होकर बड़े पर्दे पर गैंगस्टरों की भूमिका निभाई है.

आलिया भट्ट

बॉलीवुड अभिनेत्री ‘आलिया भट्ट’ (alia bhatt) ने फिल्म “गंगूबाई काठियावाड़ी” में अपनी शानदार एक्टिंग से सबको हैरान कर दिया था. उन्होंने इस फिल्म में प्रसिद्ध माफिया क्वीन गंगूबाई का किरदार निभाया था. उन्होंने ये रोल इतने अच्छे से निभाया था कि हर कोई उनकी एक्टिंग का फैन हो गया था. यहां तक की उऩको गंगूबाई के लिए नेशनल अवॉर्ड से भी नवाजा गया था.

ऋचा चड्ढा

हिन्दी सिनेमा (Lady Mafia in Hindi Cinema) में ताबड़तोड़ कमाई करने वाली ‘फुकरे’ फैंचाइजी की तीनों फिल्मों में एक्ट्रेस ‘ऋचा चड्ढा’ ने भोली पंजाबन का किरदार निभाया है. जो कि निडर, चतुर और उग्र रवैये वाली गैंगस्टर महिला होती है. गौर करने वाली बात ये है कि फिल्म में भोली पंजाबन की भूमिका निभाना, ऋचा (richa chadha) के निडर अंदाज व उनकी खुद की निर्भीकता को दर्शाता है.

नेहा धूपिया

फिल्म “फंस गए रे ओबामा” में एक खूंखार गैंगस्टर मुन्नी मैडम का किरदार निभाकर बॉलीवुड एक्ट्रेस ‘नेहा धूपिया’ ने अपने फैंस को हैरान कर दिया था. उन्होंने (neha dhupia) फिल्म में इतना जबरदस्य अभिनय किया था कि उनकी तुलना भारतीय सिनेमा के कुख्यात गैंगस्टर गब्बर सिंह से की जाने लगी थी.

ईशा तलवार

एक्ट्रेस ‘ईशा तलवार’ (isha talwar) ने सीरीज “सास बहू और फ्लेमिंगो” में अपनी एक्टिंग से लोगों के दिलों में जगह बनाई हैं. इसमें उन्होंने बहू बिजली का किरदार निभाया था. जो कि उनके लिए काफी चुनौती भरा था. लेकिन उन्होंने ये किरदार बखूबी निभाया.

श्रद्धा कपूर

बॉलीवुड में अपनी दमदार एक्टिंग (Lady Mafia in Hindi Cinema) से लोगों का दिल जीतने वाली एक्ट्रेस ‘श्रद्धा कपूर’ ने फिल्म “हसीना: द क्वीन ऑफ मुंबई” में हसीना पारकर का किरदार निभाकर सभी को आश्चर्यजनक कर दिया था. फिल्म में उनके (shraddha kapoor) गैंगस्टर लुक और एक्टिंग ने खूब वाहवाही लूटी थी.

वाहन बेचने पर न करें यह गलती, पड़ सकता है महंगा

छोटे शहरों, महानगरों और गांवों तक में निजी वाहन अब लोगों की जरूरत बन गए हैं. भले मेट्रो, बस व ट्रेन से लोग रोजमर्रा का सफ़र करते हों पर बाइक से ले कर कार लगभग हर दूसरे घरपरिवार में मौजूद है.

वाहन व्यक्ति की संपत्ति का हिस्सा है.वाहन ने हमारी जिंदगी तेज की है. इस ने सुविधा और सहूलियत दी है तो हर व्यक्ति चाहता है कि उस के पास अपना खुद का वाहन हो चाहे वह सैकंडहैंड ही क्यों न हो.

कई मौकों पर वाहन खरीदनाबेचना पड़ जाता है. ऐसे में वाहन बेचते व खरीदते हुए लेखाजोखा से जुड़े काम होते हैं. यह काम सरकार के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के माध्यम से होते हैं. किसी भी वाहन को बेचने पर उसके मालिक द्वारा खरीदने वाले व्यक्ति के नाम पर वहां को ट्रांसफर करवाया जाता है. ऐसे ट्रांसफर पर सरकार को ड्यूटी भी प्राप्त होती है जो राज्य सरकार का राजस्व होता है.

कई लोग इसे झंझट वाला काम समझते हैं और आपसी विश्वास में इस ट्रांसफर वाली प्रक्रिया से बचने की कोशिश करते हैं. जैसे वे स्टाम्प के माध्यम से अपने परिचित या जानपहचान वाले को अपना वाहन बेच देते हैं. कई बार तो बिना स्टाम्प के ही ऐसे ही बेच देते हैं. इस में सरकार को राजस्व का नुकसान तो होता ही है, उस व्यक्ति को भी नुकसान होता है जिस के नाम पर वाहन रजिस्टर्ड होता है.

कानून कहता है जिस डेट को वाहन को बेचा गया है उस के 14 दिनों के भीतर खरीदने वाले व्यक्ति को उस वाहन को अपने नाम पर रजिस्टर्ड करवाना होता है. यह प्रावधान मोटर व्हीकल एक्ट 1988 की धारा 50 के अंतर्गत है. हां, यदि खरीदने व बेचने वाले का राज्य अलगअलग है तो यह अवधि 45 दिनों की होती है. पर इन दिनों के भीतर वाहन रजिस्टर्ड करवा लेना जरूरी होता है. इसे ही वाहन के स्वामित्व का ट्रांसफर कहा जाता है.

क्या होता है ट्रांसफर

पुराने वाहनों को खरीदने व बेचने को ले कर यह एक तरह का नियम है, जिस के तहत इस प्रक्रिया को पूरा करके की वाहन को खरीदाबेचा माना जाता है. इसे ही आरसी ट्रांसफर कहा जाता है.

क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय द्वारा वाहनों को ट्रांसफर किया जाता है. औफलाइन माध्यम से सीधे कार्यालय में जा कर यह काम किया जा सकता है वरना कुछ राज्यों में औनलाइन सुविधा है तो इसे औनलाइन भी किया जा सकता है. इस प्रक्रिया के दौरान कुछ जरूरी संबंधित कागजात व दस्तावेज जमा कराने होते हैं. दस्तावेज जमा करने के कुछ दिनों बाद आरसी ट्रांसफर कर दी जाती है.

मूल मालिक को नुकसान

अगर वाहन ट्रांसफार नहीं करवाया जाता है तोखरीदने वाले की गलतियों में भागीदारी अपनेआप बनने लगती है और वाहन के मूल मालिक को भारी नुकसान उठाने पड़ सकते हैं. जैसे-

जुर्म में संलिप्तता : यदि बेचा गया वाहन खरीदने वाले के नाम पर ट्रांसफर नहीं करवाया जाता है तब वह वाहन उसके पहले मालिक के नाम पर ही दर्ज होता है. किसी भी वाहन से अनेक तरह के अपराध संभव हैं. ऐसी सूरत में अपराधों में वाहन का मूल मालिक भी आरोपी बनाया जा सकता है, मालिक केवल स्टांम्प पर लिखापढ़ी के आधार पर यह नहीं कह सकता है कि वाहन उसके द्वारा बेचा जा चुका है.

ऐसे वाहन से कोई तीसरा व्यक्ति शराब इत्यादि प्रतिबंधित अपराधों के आरोप में पकड़ा जाता है तब वाहन का मूल मालिक भी पुलिस द्वारा आरोपी बना दिया जाता है क्योंकि वाहन का कब्जा उसे अपने पास रखने की जिम्मेदारी थी.

क्रिमिनल व सिविल जिम्मेदारी :खरीदने वाले के वाहन पर कब्जा न लिए जाने की स्थिति में सड़क हादसे में कई बार वाहन के मूल मालिक को भी मकदमों में घसीटदिया जाता है. आजकल सड़क हादसे आम हैं. हर दिन कईयों सड़क हादसों के मामले थानों में जमा होते हैं.

फिक्की ईवाई की इस साल आई रिपोर्ट कहती है कि भारत में हर साल लगभग 15 लाख सड़क हादसे होते हैं. जो दुनियाभर के रोड ऐक्सिडैंट के 11 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ पहले स्थान पर हैं.

ऐसे में बेचे गए और ट्रांसफर न करवाए गए वाहन से यदि कोई हादसा होता है तो हादसे की गंभीरता तय करते हैं कि मूल मालिक पर किस तरह की धारा लग सकती हैं. ऐसी धाराएं 279, 337, 338 और 304 (ए) हैं जो मामूली चोट से ले कर मृत्यु होने तक की धाराओं में लगाई जा सकती हैं.

ऐसे हादसों के बाद 2 तरह के प्रकरण बनते हैं. एक प्रकरण तो आपराधिक प्रकरण होता है जो ड्राइवर पर चलाया जाता है. कभीकभी ऐसे प्रकरण परिस्थितियों को देखकर मालिक पर भी बना दिए जाते हैं. इन अपराधों में सजा का प्रावधान है जो जुर्माने से लेकर 2 साल तक के कारावास तक की है. इसमें दूसरा प्रकरण सिविल प्रकरण बनता है जो मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 166 के अंतर्गत मुआवजे हेतु पीड़ित या पीड़ित के वारिसों द्वारा लगाया जाता है.

ऐसा मुआवजा क्षति के आधार पर लगाया जाता है जो पीड़ित व्यक्ति की आय को देखते हुए उसको होने वाले नुकसान के आधार पर तय होता है. इस हेतु वाहन का थर्ड पार्टी बीमा होता है, ऐसे नुकसान की क्षतिपूर्ति बीमा कंपनी द्वारा की जाती है लेकिन यदि वाहन का बीमा नहीं है तब क्षतिपूर्ति की ज़िम्मेदारी मालिक पर भी डाली जा सकती है और पीड़ित व्यक्ति को होने वाला नुकसान मालिक से दिलवाया जाता है.

भारी आर्थिक क्षति का नुकसान

आजकल सड़क हादसों में मरने वाले लोगों के आश्रित परिजनों को, आय के अनुसार, अधिक से अधिक मुआवजा राशि दिलवाई जा रही है. जिस व्यक्ति की आय अधिक है उसकी सड़क हादसे में मृत्यु होने पर परिजनों को अधिक से अधिक मुआवजा मिलता है. बीमा नहीं होने की सूरत में मुआवजा वाहन के मूल मालिक को देना होता है क्योंकि वाहन का बीमा करवाना मालिक की जिम्मेदारी है.

एहतियात जरूरी

अब समस्या आती है कि मूल मालिक ने तो वाहन बेच दिया, लेकिन खरीदने वाला ट्रांसफर नहीं करवा रहा. अब ऊपर बताए जोखिम के हिसाब से तो मालिक इस केस में फंस सकता है. ऐसे में सब से पहले मूल मालिक की जिम्मेदारी बनती है कि वहखरीदने वाले को ट्रांसफर कराने हेतु एक सूचनापत्र लिखे. यह पत्र डाक द्वारा भेजे.

पत्र में वाहन खरीदने वाले को तत्काल वाहन अपने नाम पर ट्रांसफर करने की चेतावनी हो. यदि इस के बावजूद खरीदार ट्रांसफर न करवाए तो एक आवेदन डाकपत्र की कौपी के साथ क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के समक्ष पेश करना चाहिए. ऐसे मामलों में वाहन मालिक खरीदार के खिलाफ आपराधिक व सिविल मुकदमा भी दायर कर सकता है.

यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

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काले केशों की मार : महिलाएं कैसे उठाती है फायदे ?

जवान होते लड़केलड़कियों को जैसे 16वें साल का इंतजार होता है वैसे ही प्रेमा को अपने 60वें साल का इंतजार था. 16वें साल के सपने अगर रंगीन होते हैं तो प्रेमा के भी 60 साल के सपने कुछ कम रोमांचक नहीं थे. उसे इस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतजार था जब वह 60 साल की हो जाएगी.

इंतजार का हर एक दिन उस पर भारी पड़ रहा था. और इतने अधिक महत्त्वपूर्ण दिन का इंतजार क्यों न हो, 60वां साल होते ही उसे एक महत्त्वपूर्ण उपाधि जो मिलने वाली थी. वह उपाधि भी कोई ऐसीवैसी नहीं थी. वह उपाधि तो उसे भारत सरकार देने वाली थी. सुंदरसलोना 60वां साल होते ही उसे ‘वरिष्ठ नागरिक’ होने की उपाधि मिलनी थी. तब वह बड़ी शान से रेलवे वालों को बोल सकती थी कि वह तो  ‘सीनियर सिटीजन’ है और उसे रेलवे टिकट पर 30 प्रतिशत की कटौती मिलनी ही चाहिए.

प्रेमा की तकदीर कुछ अधिक ही जोर मार रही थी. इधर वह 60 की हुई और उधर रेलमंत्री ने ऐलान कर दिया कि रेल में सफर करने वाली ‘वरिष्ठ महिलाओं’ को टिकट पर 50 प्रतिशत कटौती मिलेगी. अखबार में यह समाचार पढ़ते ही उस का दिल तो बल्लियों उछलने लगा था.

प्रेमा ने तुरंत इस का फायदा उठाने की योजना बना डाली. अब उसे कहीं न कहीं घूमने तो जाना ही था. उस की तकदीर कुछ अधिक ही साथ देने लगी थी क्योंकि तभी उसे एक विवाह का निमंत्रणपत्र मिल गया. उस के भतीजे की शादी बेंगलुरु में होने वाली थी. शादी मेें 15 दिन बाकी थे यानी तैयारी के लिए भी अधिक समय मिल गया था. सब से पहले तो उस का बेंगलुरु जाने का टिकट आया. आज तक उस ने कभी खुश हो कर अपनी जन्मतिथि किसी को भी नहीं बताई थी पर आज उस ने बड़े गर्व से अपनी जन्मतिथि रेलवे फार्म में भरी थी ताकि उसे ‘वरिष्ठ नागरिक’ होने की कटौती मिल सके.

1 हजार रुपए के टिकट के लिए उसे केवल 500 रुपए ही देने पड़े थे. उसे इतनी बचत से बहुत खुशी भी हुई और अपने 60वें वर्ष पर गर्व भी हुआ.

प्रेमा ने शादी में जाने की तैयारी शुरू कर दी थी. 500 रुपए के टिकट में जो बचत हुई थी, उसे वह अपने ऊपर खर्च करना चाहती थी. उसे लगा कि शादी में सब से अच्छा उसे ही दिखना चाहिए. अपनी बहनों और भाभियों में उसे ही सब से अच्छा लगना चाहिए.

प्रेमा सीधी ब्यूटीपार्लर पहुंची. अपने अधपके बालों को काला करवाया, गोल्ड फेशियल करवाया ताकि उम्र छिप जाए. 60वें वर्ष की गहरी लकीरों को छिपाना चाहा. पार्लर से बाहर निकलते समय उस ने खुद को आईने में निहारा और हलके से मुसकरा दी.

प्रेमा को लगा अब वह 10 साल तो जरूर ही पीछे चली गई है. 2 घंटे कुरसी पर बैठने के बाद जब घुटने की हड्डियों ने चटखने की सरगम बजाई तो उसे याद हो आया कि वह तो अब वरिष्ठ नागरिक है और अपनी स्थिति पर उसे खुद ही गर्वभरी हंसी आ गई.

निश्चित तिथि पर प्रेमा ने बेंगलुरु की यात्रा के लिए प्रस्थान किया. याद से अपना पैनकार्ड पर्स में रखा. वही तो उस के 60वें साल का एकमात्र सुबूत था. अपनी सुरक्षित सीट पर बैठ कर उस ने सहयात्रियों पर नजर दौड़ाई. उस के साथ के सभी यात्री उसे वरिष्ठ नागरिक ही लगे. उस ने सोचा रेलवे की 30 प्रतिशत की छूट का फायदा उठाने ही सब निकल पड़े हैं. एक दादीमां के साथ उन की 2-3 साल की पोती भी थी. रात में जब सोने की तैयारी हुई तो उसे नीचे वाली सीट ही मिली थी. और इधर, दादीमां अपनी पोती के साथ नीचे वाली सीट ही चाहती थीं. दादी मां बोलीं, ‘‘बहनजी, आप तो जवान हैं, आप ऊपर वाली सीट ले लो. मु?ा से तो चढ़ा नहीं जाएगा.’’

दादीमां के मुंह से अपनी जवानी की बात सुन कर तो प्रेमा एक बार के लिए भूल गई कि वह भी तो वरिष्ठ नागरिक है. तभी उसे खयाल आया कि यह तो ब्यूटीपार्लर का ही कमाल था कि वह जवान नजर आ रही थी. उस ने गर्व से अपने काले बालों पर हाथ फेरा और किसी तरह बीच वाली सीट पर चढ़ गई.

सुबह होते ही टिकटचेकर ने आ कर सब को जगा दिया था. इतमीनान से बैठ कर वह एकएक यात्री का टिकट चैक करने लगा. प्रेमा का टिकट देख कर उस ने एक बार घूर कर उसे देखा और बोला, ‘‘बहनजी, आप अपना सर्टिफिकेट दिखाएं. मुझे तो शक हो रहा है कि आप ने धोखे से आधा टिकट लिया है.’’

सब के सामने धोखे की बात सुन कर प्रेमा के तनबदन में आग लग गई. उस ने तमक कर अपना पर्स खोला और अपना पैनकार्ड सामने कर दिया. कुछ लज्जित हुआ टिकटचेकर बोला, ‘‘माताजी, बाल काले करवा कर गाड़ी में चढ़ोगे तो हमें धोखा तो होगा ही. अब आप इन माताजी की तरफ देखो, सारे बाल सफेद हैं इसलिए उन से तो मैं ने प्रमाण नहीं मांगा.’’

दूसरे यात्री टिकटचेकर की बात सुन कर हंस पड़े थे और प्रेमा खिसिया कर रह गई थी.

कहते हैं कि छोटे बच्चों को भी धोखा देना मुश्किल होता है. कुछ बातों का ज्ञान उन्हें जन्मजात होता है. इस का प्रमाण भी आज प्रेमा को मिल गया था. दादी की पोती जब सो कर उठी तो उस ने प्रेमा को दादी कह कर ही बुलाया. उस ने कहा भी, मैं तो तुम्हारी आंटी हूं, मुझे आंटी कह कर बुलाओ. पर नहीं, बच्ची उसे दादी ही बुलाती रही. उस ने तो उस के काले बालों की भी लाज नहीं रखी, उस का 60वां साल उसे नए अनुभव करवाने के लिए ही आया था.

बेंगलुरु स्टेशन पर पहुंच कर प्रेमा ने देखा कि उसे लेने स्टेशन पर कोई नहीं पहुंचा था. कुछ देर इंतजार करने के बाद वह अपनी अटैची घसीटती हुई चल दी. एक टिकटकलेक्टर ने उसे रोका और टिकट मांगा. उस ने टिकट दिखाया तो उस ने भी उसे घूरा और कहा, ‘‘आप एक तरफ आ जाइए और अपना बर्थ सर्टिफिकेट दिखाइए.’’

प्रेमा ने ?ाट से अपने पर्स में से पैन- कार्ड निकालना चाहा पर उसे कार्ड कहीं भी दिखाई नहीं दिया. उस ने पूरे पर्स को तलाश मारा पर पैनकार्ड नहीं मिला. अब तो उस के होश उड़ गए. अब करे तो क्या करे? कैसे इस टिकटकलेक्टर को यकीन दिलाए कि वह पूरे 60 वर्ष की है. उस की घबराहट को देख कर टिकटकलेक्टर जरा अकड़ गया और बोला, ‘‘ऐसा धोखा करने से पहले उस की सजा के बारे में भी सोचना था. अब आप जानती ही होंगी कि आप को हजार रुपए जुर्माना भी हो सकता है और 15 दिन की जेल भी.’’

सुन कर प्रेमा के हाथपांव फूल गए. उस ने रोती हुई आवाज में कहा, ‘‘मैं सच में कह रही हूं कि मैं 60 साल की हूं.’’

‘‘पर मैं यकीन नहीं कर सकता. आप का तो एक भी बाल सफेद नहीं है.’’

‘‘वह तोे मैं ने काले रंगवाए हैं.’’

‘‘मैं कोई बहानेबाजी सुनने वाला नहीं हूं. या तो आप पैनकार्ड दिखलाइए या जुर्माना भरने को तैयार हो जाइए.’’

प्रेमा ने आसपास ?ांका. पर उस की मदद करने वाला कोई नहीं था. वह बोली, ‘‘आप यकीन मानिए, मैं 60 साल 20 दिन की हूं.’’

‘‘आप चाहे 60 साल एक दिन की हों मुझे एतराज नहीं है. पर आप सबूत दीजिए.’’

पास की एक बैंच पर बैठ कर उस ने अपने दिमाग पर पूरा जोर दिया. सुबह तो उस ने पैनकार्ड डब्बे में टी.टी.ई. को दिखाया था, इस वक्त न जाने कहां गायब हो गया. अब उस ने पर्स में जितनी रकम थी, गिननी श्ुरू की. पूरे 1200 रुपए थे. टी.टी.ई. ने उसे 1 हजार रुपए जुर्माना भरने की बात कही थी. टी.टी.ई. भी उसे गिद्ध नजरों से देख रहा था. अब उस ने गिड़गिड़ाती हुई आवाज में कहा, ‘‘मेरी तो किस्मत ही खराब है इसलिए मेरा पैनकार्ड गुम हो गया है. ट्रेन में मैं ने टिकटचेकर को दिखाया था.’’

‘‘आप कुछ भी कह लीजिए पर मुझे तो लग रहा है कि आप ?ाठ बोल रही हैं.’’

‘‘आप जुर्माना ले लीजिए पर मुझे झूठी तो मत कहिए. मेरा इतना अपमान तो मत कीजिए.’’

टी.टी.ई. ने बड़ी शान से 1 हजार रुपए जुर्माने की रसीद काटी और उसे पकड़ा दी.

प्रेमा ने रसीद ली और बैंच पर बैठ गई. मन ही मन अपने काले बालों को कोसा जिन्होंने काली नागिन बन कर उसे ही डसा था. एक तो हजार रुपए गए और दूसरे झूठी का लेबल भी लग गया. फिर उस ने रेलमंत्री को कोसा जिस ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए ऐसी स्कीम निकाली. न वह स्कीम होती न उस ने 50 प्रतिशत छूट पर टिकट खरीदा होता.

सब को कोसने के बाद प्रेमा ने एक बार फिर से अपना पर्स टटोला. अब की बार उस ने पूरे पर्स को उलट दिया. सारा सामान बाहर निकाल दिया. तब उस की नजर पर्स के उधड़े हुए हिस्से पर पड़ी, जहां से उस का पैनकार्ड ?झांक रहा था. उस ने जल्दी से उसे बाहर खींचा और उधर को दौड़ी जिधर टिकटकलेक्टर गायब हुआ था. उस ने बहुत तलाशा पर वह जालिम चेहरा उसे नजर नहीं आया.

अब अपने को कोसते हुए प्रेमा स्टेशन से बाहर निकली. घर पहुंच कर उस ने सारी कहानी कह सुनाई. अब उसे खुद पर ही हंसी आ रही थी. उस ने तो बाल रंगे थे कि वह जवान नजर आए और जब वह जवान नजर आई तो उस ने सब को कहा कि वह 60 साल की बूढ़ी है. दोनों स्थितियों का लाभ वह एकसाथ नहीं उठा सकती थी या तो 50 प्रतिशत की कटौती ले ले या घने काले बालों वाली तरुणी बन जाए. या तो एक वृद्धा का सम्मान ले ले या फिर बच्चों से दादी के बदले आंटी कहलवा ले. खुद ही सोचनेविचारने के बाद नतीजा निकाला कि उम्र के साथ चलने में ही भलाई है, दौड़ आगे की ओर ही लगानी चाहिए पीछे की ओर नहीं. क्योंकि आप स्वयं को कभी भी धोखा नहीं दे सकते तो फिर दूसरों को ही धोखा देने की कोशिश क्यों की जाए?

इक्के पे दुक्का : अनुभा को क्यों अपनी ननद पसंद नहीं थी ?

‘‘तुम से कोई भी काम ढंग से नहीं होता, चटनी ने पूरी दीवार खराब कर दी

है. डैडी होते तो तुम्हें कब का घर से निकाल चुके होते. उन्हें सफाई बहुत

पसंद थी,’’ रोज की तरह अंजना फिर अपने भाई की पत्नी को डांट रही थी.

अनुभा रोंआसा चेहरा लिए सब सुन रही थी. बात तो कुछ नहीं थी, अनुभा के हाथ से चटनी दीवार पर लग गई थी, जोकि उस ने साफ भी कर दी थी. उसे अचानक ही विवाह से पूर्व का एक किस्सा याद आ गया…

‘मां, आज मैं और भाभी चाट खाने जा रहे हैं. हमारे लिए खाना मत बनाना,’ अनुभा ने भाभी के साथ प्लान बनाया था.

‘अच्छा बेटा, दोनों खूब मजे करना, जाओ घूम आओ,’ बाजार में नए सूट पर चटनी गिरने से अनुभा की भाभी मधुरा थोड़ा सहम गई. अनुभा ने उसे दिलासा दिया और कहा कि ज्यादा न सोचे. घर आने पर अनुभा की मां ने मधुरा का कुरता देखते ही कहा, ‘अरे बेटा, जल्दी से चेंज कर के कुरता मुझे दे दे, मैं अभी साफ कर दूंगी. बाद में दाग रह जाएगा.’ मधुरा ने चैन की सांस लेते हुए कुरता मां को दे दिया था और यहां तो चटनी कांड ही बन गया था. अनुभा आंसू पोंछने लगी.

अनुभा का विवाह हुए कुछ ही महीने हुए थे. उस ने काफी लड़कों से मिलने के बाद राम से विवाह के लिए हां कही थी. राम बैंक में एक उच्च पद पर नियुक्त था. अनुभा एक साइंस ग्रेजुएट थी. उस के घर में एक बड़ा भाई था जिस की शादी उस की शादी से एक साल पहले ही हुई थी. भाभी के आने से घर खुशियों से भर गया था. उस की भाभी मधुरा बहुत ही अच्छे दिल की लड़की थी जिस ने घर में आते ही सब को इतने प्यार से अपनाया था कि अनुभा के मातापिता को लगता ही नहीं था कि वह पराई थी. हर चीज के लिए वे मधुरा पर निर्भर हो गए थे.

अनुभा को एक सहेली मिल गई थी. वह भाभी से खूब लाड़ करती. उन को सिनेमा दिखाने ले जाती. ननदभाभी शौपिंग और गपशप करतेकरते बहुत करीब आ गए थे.

?अनुभा के लिए जब राम का रिश्ता आया तो वह खुद पर फख्र कर उठी. राम बहुत ही सुदर्शन युवक था. देखने में जितना अच्छा उतना ही दिल का साफ. अनुभा सुंदर भविष्य के सपने संजोए पिया घर आ गई.

राम के घर में उस की मां और अविवाहित बड़ी बहन अंजना थी. अंजना में यों तो कोई दोष न था पर मांगलिक होने की वजह से उस की अब तक शादी नहीं हुई थी. रूपरंग में वह साधारण थी. राम और अंजना भाईबहन से भी नहीं लगते थे. अंजना के लिए जितने भी रिश्ते आए, सब ने उसे मांगलिक होने की वजह से ठुकरा दिया था. इस बात से उस का दिल काफी आहत हुआ था. वह सोचने लगी कि 21वीं सदी में भी लोग अंधविश्वास को छोड़ नहीं पाए हैं. लोग चांदसितारे तक पहुंच चुके मगर समाज में कुछ लोगों की सोच अभी भी दकियानूसी ही है.

हालांकि वह भी ग्रेजुएट थी व कई वर्षों एक ट्रैवल एजेंसी में जौब भी कर चुकी थी. एक दिन उस ने औफिस में क्लाइंट की गलत बुकिंग कर दी तो उस के बौस ने गुस्से में आ कर उसे निकाल दिया था. उस की यह नौकरी उस के पिता ने बड़ी सिफारिश से लगवाई थी. नौकरी छूटने के बाद से वह घर पर खाली बैठी थी.

अंजना की जबान बहुत ही तेज थी. घर में सभी उस के उग्र स्वभाव और बोली से डरते थे. उस की सब सहेलियों की शादी हो गई थी और सब खुशहाल जीवन जी रही थीं. अकेली अंजना की ही शादी नहीं हुई थी. कारण कोई इतना बड़ा नहीं था पर उन की बिरादरी में मांगलिक होना एक बहुत बड़ा ऐब था. नातेरिश्तेदार आतेजाते राम की मां को ताने मारते और अंजना की शादी की बात छेड़ते, ‘अरे, कब इस की शादी करोगी उलका रानी? अब तो राम की बहू ले आओ. अंजना से कहना भाभी का ध्यान रखे. अब तो उसे यहीं तुम सब के साथ रहना है.’ उलका सुन कर भी चुप हो जाती.

उलका के पति आकाश बहुत बड़े व्यापारी थे पर कुछ साल पहले ही उन का देहांत हो चुका था. राम अपनी मां और बहन को बहुत प्यार करता था. वह उन्हें समझता कि दुनिया की बातें न सुनें. इधर जब राम के लिए रिश्ते आने लगे तो उलका ने सोचा कि राम की शादी तो समय से हो जाए. बस, अनुभा भी उन के परिवार का हिस्सा बन गई.

अनुभा सुखी परिवार से आई थी. उस का घर रिश्तों को बहुत अहमियत देता था. उसे लगा कि ससुराल में भी उसे यही वातावरण मिलेगा पर बेचारी वह अंजना के स्वभाव से परिचित नहीं थी. अंजना को अनुभा में सहेली नहीं, प्रतिद्वंद्वी नजर आई. उसे लगता कि अनुभा उस का घर, भाई, मां सब को हथिया लेगी, इसलिए भाभी को, जो उस से कई साल छोटी थी, उस ने बातबेबात तंग करना शुरू कर दिया.

हर बात में अनुभा को गलत साबित करना, काम में मीनमेख निकालना, उस के परिवार की बुराई करना और मां व राम से लगाईबुझाई करना उस का नया शगल था, ‘तुम बहुत ही मनहूस हो. पता नहीं राम ने तुम में क्या देखा’, ‘तुम्हारे घर वालों को जरा भी शऊर नहीं है,’ तुम को मां इसलिए लाईं क्योंकि तुम छोटे घर से हो… जैसे ताने उसे रोज सुनाती. हां, यह सब वह अपनी मां और भाई के पीठपीछे कहती.

अनुभा तो जैसे आसमान से गिरी. उस के लिए अंजना एक पहेली सी थी. अनुभा ने जब अपनी सास और पति से इस का कारण पूछना चाहा तो उन्होंने अंजना की तरफदारी करते हुए कहा कि उस की जिंदगी में कुछ भी नहीं है, सिवा खालीपन के. इसलिए अनुभा भी उस की बातों को नजरअंदाज कर दे. 1 या 2 दिन की बात होती तो अनुभा शायद शिकायत न करती पर अंजना के दिल में जो जहर था, उस की कड़वाहट वह अनुभा पर निकालने लगी थी.

हर समय गुनगुनाने और खिलखिलाने वाली अनुभा एकदम चुप हो चली थी. अंजना को वह अपनी बड़ी बहन मान कर उस का दुख दूर करने की कोशिश करना चाहती थी पर अंजना को उस के मीठे व्यवहार से भी जलन थी.

दिन इसी तरह निकल रहे थे. एक दिन अनुभा को पता चला कि वह मां बनने वाली है. इस बात से घर में खुशी की लहर दौड़ गई. अंजना का व्यवहार भी अनुभा के लिए थोड़ाथोड़ा बदलने लगा. उस ने पहली बार अनुभा का खयाल रखना शुरू किया पर फिर भी दिन में जब तक वह 2-4 कड़वी बातें न बोलती, उस का खाना हजम न होता. अनुभा ने उस के व्यवहार को नकार कर अपनी सेहत का ध्यान रखना शुरू किया. उस के लिए यह बहुत जरूरी था कि उस का बच्चा सेहतमंद हो. सही समय आने पर उस ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया.

बड़े लाड़ से सब ने उस का नाम परी रखा. परी ने अनुभा और राम का संसार महका दिया. अंजना ने खुशीखुशी परी की देखभाल करना शुरू किया पर उस की जलन ने एक नया रूप ले लिया था. वह पूरा दिन परी को अपने पास रखती. उस को नहलातीधुलाती, उस की मालिश करती, सिर्फ फीड करने के लिए वह परी को अनुभा के पास छोड़ती. अंजना को यह सब कर के बहुत अच्छा लगता था पर वह यहां भी यह भूल गई थी कि वह एक मां से उस का अधिकार छीन रही थी.

अनुभा को अपनी बेटी सिर्फ रात को मिलती. वह भी तब, जब राम घर आ जाता. अनुभा को भी अच्छा लगता था कि अंजना शायद परी के कारण बदल रही थी पर यह सब एक धोखा था. अंजना परी पर हक जता कर अपना खालीपन भर रही थी. जब भी अनुभा परी को तैयार करती या खिलाती, अंजना उस में दस नुक्स निकाल देती, ‘अरे, इसे क्या कपड़े पहनाए हैं. इसे भी अपनी तरह गंवार बनाओगी क्या’, ‘तुम्हारे पास तो यह रोती रहती है. लाओ, मुझे दो, मेरे पास आते ही परी सो जाती है.’ वह अनुभा से परी को जबरदस्ती ले जाती और खुद उस का पूरा ध्यान रखती. (1)

उलका यह सब देख कर बहुत खुश थी. उसे लगता था कि उस की बेटी बदल गई है पर उस का स्वार्थीपन वह नहीं देख पा रही थी. परी को अंजना हाथोंहाथ रखती पर अनुभा के पास वह तभी जाती जब उस को फीड करना होता.

अनुभा मातृत्व का सुख अनुभव ही नहीं कर पा रही थी. धीरेधीरे उस का वजन कम होने लगा और रूपरंग मुर?ा गया. वह जितना खुश परी की मां बन कर थी, उतना ही अंजना के स्वार्थी व्यवहार से दुखी. जब उस ने राम से बात करनी चाही तो राम ने कहा कि उसे इस सब में न घसीटे. अब अगर कोई उलका से या अंजना से पूछता कि अंजना दिनभर क्या करती है तो वह बड़े गर्व से बताती कि वह परी की देखभाल करती है. लोग यह सुन कर हैरान रह जाते और पीठपीछे हंसते.

एक रिश्तेदार ने तो कह भी दिया, ‘क्या यह तुम ने अपना कैरियर बना लिया है?’ यह सुन कर मांबेटी बहुत नाराज हुईं. फिर भी कुछ नहीं बदला.

दिन इसी तरह बीत रहे थे और अंजना के व्यवहार में कोई फर्क नहीं आ रहा था. परी अब 6 महीने की हो चली थी. आंखें मटकामटका कर वह सब को देखती, खूब हाथपैर चलाती और अपने मुंह से आवाजें निकालने की कोशिश करती. अनुभा के पास वह फिर भी रात को ही आती थी. अनुभा को इस का कोई उपाय सम?ा नहीं आ रहा था.

एक दिन राम की बूआ नन्हीं परी को देखने और कुछ दिन उन के साथ रहने बनारस से आईं. एक दिन में ही उन्हें अंजना का व्यवहार खटक गया. अनुभा के मुरझाए चेहरे को देख वे सब सम?ा गईं. वे पहली बार अनुभा और राम की शादी के बाद उन के घर आई थीं. अनुभा दौड़दौड़ कर उन की खातिर कर रही थी. उस का शरीर अभी भी कमजोर था, फिर भी वह बूआजी की सेवा में दिलोजान से जुट गई थी. बूआजी को भी अनुभा बड़ी प्यारी लगती थी. 4 दिन उन्होंने उलका और अंजना का यह व्यवहार देखा. उन्हें लगा कि इस चीज को यहीं रोकना होगा वरना अनुभा कभी परी का बचपन नहीं जी पाएगी.

एक दिन बूआजी ने अनुभा से कहा कि उन्हें कुछ खरीदारी करनी है तो वह उन्हें बाजार ले चले. अनुभा ने परी की ओर देखा तो बूआजी ने कहा, ‘‘अरे अंजना संभाल लेगी, चलो न.’’ अंजना ने भी खुशीखुशी हां कर दी.

बूआजी अनुभा को एक बढि़या से रैस्टोरैंट में ले गईं. वहां पर दोनों के लिए कोल्ड कौफी और्डर कर के बूआजी ने अनुभा से सारा माजरा समझ. होशियार तो वे थीं ही. अब उन्होंने अनुभा को एक ऐसा तरीका बताया जिसे सुन कर वह बहुत खुश हो गई. बूआजी के गले लग कर वह बेचारी रो पड़ी. बूआजी ने उस का कंधा थपथपाते हुए कहा, ‘‘न रो बहू, अब सब ठीक हो जाएगा.’’ थोड़ी देर में दोनों वापस घर आ गए.

अगले दिन, जैसा कि बूआजी ने प्लान बनाया था, उन्होंने अनुभा को डांटना शुरू किया, ‘‘अरे बहूरानी, कब तक ननद की अच्छाई का फायदा उठाओगी? वह बेचारी तुम्हारी बच्ची को पूरा दिन रखती है, न तुम उसे खाना खिलाती हो, न नहलाती हो, न उस की मालिश करती हो और न दिन में उसे अपने पास सुलाती हो. मेरी अंजना तुम्हारी जगह यह सारा काम करती है. इतनी अच्छी ससुराल मिली है और तुम उस का नाजायज फायदा उठा रही हो.’’ बूआजी की बातें सुन कर अनुभा मन ही मन मुस्कराई पर ऊपर से उस ने मुंह लटका लिया.

‘‘अरे, मैं कुछ बोल रही हूं, सुन रही हो कि नहीं अंजना, बहू को परी को संभालने दे, बहुत लाड़ कर लिया तुम दादी और बूआ ने परी का. उस के हाथ में बच्ची को दे कर देखो, आटेदाल का भाव पता चल जाएगा. मेरी भाभी और भतीजी इतनी सीधी हैं, इस का यह मतलब नहीं है कि कोई भी अपनी मनमानी करे.’’ (2)

अंजना और उलका ने कहा भी, ‘‘नहींनहीं, यह तो घर का बच्चा है और हमें इसे संभालने में कोई भी परेशानी नहीं है.’’

पर बूआजी ने सब सोच रखा था. वे बोलीं, ‘‘मैं जब से आई हूं तब से देख रही हूं कि कभी खाना बनाने के बहाने तो कभी सुस्ताने के बहाने बहू इधरउधर हो जाती है और अंजना तुम परी का पूरा खयाल रखती हो. तुम सब के बारे में इतना सोचती हो तो बहू को भी तो तुम्हारे बारे में सोचना चाहिए. क्यों अनुभा?’’ जैसा कि उन दोनों ने तय किया था अनुभा ने सिर्फ अपना सिर हिला दिया. बूआजी ने अंजना से तुरंत परी को ले कर अनुभा को दे दिया. उन्होंने कहा, ‘‘जाओ बहू, परी को तैयार करो और फिर खिचड़ी खिला दो. उस के बाद तुम भी इस के साथ थोड़ी देर सो जाना.’’

अंजना ने प्रतिवाद किया, ‘‘बूआजी, वह मेरे बिना नहीं सोएगी. अनुभा के पास तो वह रोती है.’’

बूआजी ने प्यार से अंजना के सिर पर एक चपत लगाई, ‘‘अरे पगली, उसे भी तो पता चले कि बच्चे को रखना कितना मुश्किल काम होता है. तू ने तो उस की आदत ही बिगाड़ दी है. सारा दिन आराम करती है बहू. हमारे घर में ऐसा नहीं होता है. तुम्हारा बच्चा है, तुम पालो.’’ (3)

अंजना मन मसोस कर रह गई.

बूआजी पूरे 2 महीने रहीं और वे अंजना को परी से सिर्फ एक घंटा खेलने देती थीं.

उन्होंने कमला को अपने साथ लगा कर रसोईघर में अलगअलग व्यंजन बनाना

सिखाया. जब अंजना खाली होती तो वे उसे सिलाई, बुनाई, कढ़ाई सबकुछ सिखातीं, क्योंकि वे तो इन सब में पारंगत थीं. इधर अनुभा परी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय गुजारती. खूब खेलती और खुश रहती. धीरेधीरे उस का पुराना रंगरूप वापस आने लगा. लेकिन साथ ही अब उसे डर लगने लगा कि बूआजी के जाते ही अंजना अपना असली रंग दिखाएगी. बूआजी ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं. एक दिन उन्होंने कहा, ‘‘राम बेटा, बनारस के 2 टिकट करवा दे. एक मेरा और एक अंजना का.’’ अंजना तो हक्कीबक्की बूआजी का मुंह देखती रही.

‘‘अरे, ऐसे क्या देख रही है, चलेगी न मेरे साथ? मेरी भी कुछ सेवा कर. बनारस का पकवान खा और अपनी भाभी को थोड़ी सी आजादी दे.’’ यह कह कर बूआजी हंसने लगीं. उलका को तो इस बात को सुन कर अच्छा ही लगा. उन्हें लगा कि अंजना का भी मन बदलेगा और वह खुश रहेगी.

बूआजी का प्लान फुलप्रूफ था. एक दिन वे फिर अनुभा को शौपिंग करने के बहाने बाहर ले गईं. उन्होंने कहा कि वे अंजना को 2 महीने अपने पास रखेंगी. इस बीच वे उसे जौब करने के लिए मना लेंगी. जब वह वापस आएगी तब तक राम उस के लायक काम ढूंढ़ कर रखे. उन्होंने अनुभा से कहा, ‘‘बहू, तुम्हें थोड़ा सा मजबूत बनना पड़ेगा. जब अंजना वापस आएगी तो वह परी पर अपना हक जमाएगी, मगर तुम्हें उसे प्यार से मना करना पड़ेगा. उसे अपने भविष्य के बारे में भी सोचना चाहिए.’’ (4)

अनुभा खुशीखुशी इस के लिए मान गई और बोली, ‘‘बूआजी, जिस घर में आप जैसे बुजुर्ग होते हैं वहां पर बच्चों को कभी कोई दुख नहीं सता सकता. मैं बहुत खुशहाल हूं कि मुझे आप जैसी बूआ सास मिलीं.’’

बूआजी ने प्यार से अपनी बहू को गले लगा लिया.

आंगन की किलकारी : राजेश ने अपनी ही बेटी को क्यों दफनाया जिंदा ?

जनवरी, 2014 को मुरादाबाद जिले के गुरेठा गांव में 2 व्यक्ति पहुंचे. उन में से एक की गोद में एक बच्चा था. वह बोला, ‘‘तीर्थांकर महावीर मैडिकल कालेज में मेरी पत्नी ने एक बेटी को जन्म दिया था. बच्ची मर गई है. अब इसे दफनाना है. दफनाने के लिए हमें फावड़ा चाहिए. हमें श्मशान बता दो, इस बच्ची को हम वहां दफना देंगे.’’

ऐसे दुख में लोग हर तरह से सहयोग करने की कोशिश करते हैं. इसलिए फावड़ा आदि ले कर गांव के कई लोग उन दोनों के साथ गांव के पास ही बहने वाली गांगन नदी की ओर चल दिए. गांव का एक आदमी दुकान से बच्ची के लिए कफन भी खरीद लाया.

गांगन नदी के आसपास के गांवों के लोग अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार नदी के किनारे स्थित श्मशान में करते थे. इसलिए वे भी बच्ची को कफन में लपेट कर नदी की तरफ चल दिए.

नदी किनारे पहुंच कर गांव के एक आदमी ने बच्ची की लाश को दफनाने के लिए एक गड्ढा भी खोद दिया. वह उसे दफनाने ही वाले थे कि उसी समय बच्ची रोने लगी.

बच्ची के रोने की आवाज सुन कर गांव वाले चौंक गए क्योंकि उस बच्ची को तो उन दोनों लोगों ने मरा हुआ बताया था. बच्ची के जीवित होने पर उस के पिता और साथ आए युवक को खुश होना चाहिए था लेकिन वे घबरा रहे थे. उन के चेहरे देख कर गांव वालों को शक हो गया. वे समझ गए कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है.

लिहाजा उन्होंने उन दोनों को घेर लिया और हकीकत जानने की कोशिश करने लगे. लेकिन वे यही कहते रहे कि डाक्टर ने बच्ची को मृत बताया था. इस के बाद ही तो वे उसे दफनाने के लिए आए थे. यह बात गांव वालों के गले नहीं उतर रही थी.

शोरशराबा सुन कर आसपास खेतों में काम करने वाले लोग भी वहां पहुंच गए. भीड़ बढ़ती देख वे दोनों वहां से भागने का मौका ढूंढ़ने लगे. लोगों ने उन्हें दबोच लिया और उसी समय पाकबड़ा थाने में फोन कर दिया.

सूचना पा कर थानाप्रभारी तेजेंद्र यादव सबइंसपेक्टर सहदेव सिंह के साथ श्मशान घाट पहुंच गए. उन्होंने दोनों लोगों से पूछताछ की तो एक ने अपना नाम राजेश और दूसरे ने दिनेश बताया. उन्होंने जब बच्ची को देखा तो वह जीवित थी. वह 5-6 दिनों की लग रही थी.

पता चला कि वह राजेश की बेटी है और दूसरा युवक उस का साला है. पास में ही तीर्थंकर महावीर मैडिकल कालेज था. पुलिस ने उस बच्ची को अविलंब मैडिकल कालेज में भरती करा दिया जिस से उस की जान बच सके.

डाक्टरों ने जब उस बच्ची को देखा तो वे चौंक गए क्योंकि वह बच्ची वहीं पैदा हुई थी और उस की मां उस समय वहीं भरती थी. डाक्टरों ने पुलिस को बताया कि बच्ची को उस का पिता राजेश जीवित अवस्था में ही ले गया था, उस के मरने का तो सवाल ही नहीं है.

मामला गंभीर लग रहा था इसलिए थानाप्रभारी ने यह सूचना नगर पुलिस अधीक्षक महेंद्र यादव को दे दी. उधर डाक्टरों ने भी बच्ची को आईसीयू में भरती कर के इलाज शुरू कर दिया.

नगर पुलिस अधीक्षक महेंद्र भी थाना पाकबड़ा पहुंच गए. थानाप्रभारी ने उन के सामने राजेश से जब पूछताछ की तो बच्ची को जिंदा दफन करने की एक चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

राजेश मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बरेली शहर के हाफिजगंज का रहने वाला था. वह मोटर मैकेनिक का काम करता था. पिता रामभरोसे को जब लगा कि राजेश अपना घर चलाने लायक हो गया है तो उन्होंने बरेली के ही नवाबगंज में रहने वाले मुक्ता प्रसाद की बेटी सुनीता से उस की शादी कर दी.

शादी हो जाने के बाद राजेश के खर्चे बढ़ गए थे इसलिए राजेश कहीं दूसरी जगह अपने लिए नौकरी ढूंढ़ने लगा. इसी दौरान उत्तरांचल के रुद्रपुर शहर स्थित एक फैक्ट्री में उस की नौकरी लग गई. उस फैक्ट्री में बाइकों की चेन बनती थीं.

कुछ दिनों बाद राजेश पत्नी सुनीता को भी रुद्रपुर ले गया. वहां हंसीखुशी के साथ उन का जीवन चल रहा था. इसी दौरान सुनीता गर्भवती हो गई. इस से पतिपत्नी दोनों ही खुश थे. पहली बार मां बनने पर महिला को कितनी खुशी होती है, इस बात को सुनीता महसूस कर रही थी. राजेश भी सुनीता की ठीक से देखभाल कर रहा था. सुनीता को 7 महीने चढ़ गए. अब सुनीता को कुछ परेशानी होने लगी थी. क्योंकि डाक्टर ने भी सुनीता को कुछ ऐहतियात बरतने की हिदायत दे रखी थी. सावधानी बरतने के बाद भी अचानक एक दिन सुनीता को प्रसव पीड़ा हुई.

जिस डाक्टर से सुनीता का इलाज चल रहा था, राजेश पत्नी को तुरंत उसी डाक्टर के पास ले गया. सुनीता का चैकअप करने के बाद डाक्टर ने स्थिति गंभीर बताई क्योंकि सुनीता के पेट में 7 महीने का बच्चा था. यदि वह आठ साढ़े आठ महीने से ऊपर का होता तो डिलीवरी कराई जा सकती थी, समय से 2 महीने पहले डिलीवरी कराना उस डाक्टर की नजरों में मुनासिब नहीं था.

ऐसी हालत में सुनीता को किसी अच्छे अस्पताल या नर्सिंगहोम में ले जाना जरूरी था. रुद्रपुर में कई नर्सिंगहोम ऐसे थे जहां सुनीता को ले जाया जा सकता था लेकिन वे महंगे होने की वजह से राजेश के बजट से बाहर थे. लिहाजा वह पत्नी को ले कर मुरादाबाद आ गया और उसे तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के मैडिकल कालेज में भरती करा दिया.

वहां 4 जनवरी, 2014 को सुनीता ने एक बेटी को जन्म दिया. बच्ची 7 महीने में पैदा हुई थी इसलिए वह बेहद कमजोर थी. उसे इनक्यूबेटर में रखा जाना बहुत जरूरी था लेकिन मैडिकल कालेज में जो इनक्यूबेटर थे, उन में पहले से ही दूसरे बच्चे रखे हुए थे.

ऐसी स्थिति में मैडिकल कालेज के जौइंट डाइरैक्टर डा. विपिन कुमार जैन ने राजेश को सलाह दी कि वह अपनी बच्ची को किसी अन्य नर्सिंगहोम या अस्पताल या फिर दिल्ली ले जाए. क्योंकि बच्ची की हालत ठीक नहीं है.

उधर इतनी कमजोर बच्ची को देख कर वार्ड में भरती मरीजों के तीमारदारों ने राजेश के मुंह पर ही कह दिया कि ये बच्ची बचेगी नहीं और यदि बच भी गई तो पूरी जिंदगी अपंग रहेगी. लेकिन राजेश ने उन की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

बेटी की जान बचाने के लिए राजेश उसे ले कर मुरादाबाद के साईं अस्पताल पहुंचा. राजेश के साथ उस का साला दिनेश भी था. साईं अस्पताल में बच्ची को भरती करने से पहले 10 हजार रुपए जमा कराने को कहा गया. उस के पास उस समय इतने रुपए नहीं थे. राजेश ने अस्पतालकर्मियों से कहा भी कि वह पैसे बाद में जमा करा देगा, पहले बेटी का इलाज तो शुरू करो. लेकिन उस के अनुरोध को उन्होंने अनसुना कर दिया.

राजेश बेटी को हर हाल में बचाना चाहता था. इसलिए उस ने अपने कई सगेसंबंधियों और रिश्तेदारों को फोन कर के अपनी स्थिति बताई और उन से पैसे मांगे लेकिन किसी ने भी उस की सहायता करने के बजाए कोई न कोई बहाना बना दिया. राजेश बहुत परेशान हो गया था. ऐसी हालत में उस की समझ मेें नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

चारों ओर से हताश हो चुके राजेश के कानों में तीमारदारों के शब्द गूंज रहे थे कि बच्ची जिंदा नहीं बचेगी और अगर बच भी गई तो विकलांग रहेगी. निराशा और हताशा के दौर से गुजर रहे राजेश ने सोचा कि जब बच्ची पूरी जिंदगी विकलांग रहेगी तो इस की जान बचाने से क्या फायदा? इस से अच्छा तो यही है कि ये मर जाए.

इस के अलावा उस के मन में एक बात यह भी घूम रही थी कि यदि बच्ची नहीं मरी तो वह उस की वजह से पूरी जिंदगी परेशान रहेगा. लिहाजा उस ने बेटी को खत्म करने की सोची. इस बारे में उस ने अपने साले दिनेश से बात की तो उस ने भी जीजा की हां में हां मिलाते हुए 6 दिन की बच्ची को खत्म करने को कहा.

दोनों ने बच्ची को मारने का फैसला तो कर लिया लेकिन अपने हाथों से दोनों में से किसी की भी उस का गला दबाने की हिम्मत नहीं हो रही थी. फिर उन्होंने तय किया कि बच्ची को जिंदा ही गड्ढे में दफना देंगे और जब सुनीता पूछेगी तो कह देंगे कि बच्ची की मौत हो गई थी और उसे दफना आए हैं.

गड्ढा खोदने के लिए उन के पास कोई चीज नहीं थी इसलिए वह फावड़ा मांगने के लिए गुरेठा गांव पहुंचे.

ऐसी हालत में गांव वालों ने उन की सहायता करना मुनासिब समझा और उन के साथ गांगन नदी के किनारे उस जगह पर पहुंच गए जहां लोगों का अंतिम संस्कार किया जाता था.

उस की नन्हीं सी जान की आंखें ठीक से खुली भी नहीं थीं. दुनियादारी से तो उसे कोई मतलब भी नहीं था. मां की गोद से पिता के मजबूत हाथों में वह इसलिए आई थी कि वह उस का इलाज कराएंगे. लेकिन उसे क्या पता था कि कन्यादान करने वाले हाथ ही उसे जिंदा दफनाने के लिए आगे बढ़ेंगे.

लेकिन जैसे ही उसे गड्ढे में ठंडी रेत पर लिटाया गया वह हाथपैर चलाते हुए जोरजोर से रोने लगी. जैसे वह रोतेरोते अपने जन्मदाता से पूछ रही हो कि मेरा कुसूर क्या है. मुझे मत मारो. एक दिन मैं ही तुम्हारा सहारा बनूंगी और घर में उजियारा फैलाऊंगी. लेकिन उस समय पिता की संवेदनशीलता नदारद हो चुकी थी.

अचानक बच्ची की आवाज सुन कर राजेश और दिनेश घबरा गए. वे सोचने लगे कि काश ये 2 मिनट और न रोती तो…

बहरहाल, उस की आवाज सुन कर गांव वाले चौंक गए और उन्होंने पुलिस बुला ली. दोनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. पुलिस ने उस बच्ची को तीर्थांकर महावीर यूनिवर्सिटी के मैडिकल कालेज में भरती करवा दिया था. वहां उसे इनक्यूबेटर में रख दिया गया था. उस की हालत में भी सुधार होने लगा था.

उधर सुनीता को इस बात का पता नहीं था कि उस ने जिस बच्चे को जन्म दिया, उस की हत्या की कोशिश करने वाला उस का पति जेल में है.

इलाके के लोगों को जब एक पिता के यमराज बनने की जानकारी हुई तो लोग बच्ची की लंबी उम्र के लिए दुआएं करने लगे. बच्ची के इलाज के लिए कई लोगों ने अस्पताल में पैसे भी जमा कराए लेकिन एक सप्ताह बाद ही उस बच्ची ने अस्पताल में दम तोड़ दिया.

वैसे यहां एक बात बताना जरूरी है कि राजेश की नीयत बेटी की हत्या करने की नहीं थी बल्कि वह तो उस की सुरक्षा के लिए ही मैडिकल कालेज लाया था और मैडिकल कालेज के डाक्टर के कहने पर वह बेटी को ले कर कई अस्पतालों में घूमा भी. उस की मजबूरी यह थी कि इलाज के लिए उस के पास पैसे नहीं थे और जिन संबंधियों और रिश्तेदारों से उस ने मदद की गुहार लगाई, उन्होंने भी मुंह मोड़ लिया था, जिस से वह निराश और हताश हो चुका था.

अस्पताल के वार्ड में मरीजों के तीमारदारों ने बच्ची के बारे में गलत धारणाएं राजेश के मन में भर दी थीं. इन्हीं धारणाओं ने उसे यमराज बनने के लिए मजबूर किया. इन्हीं बातों ने उस की संवेदनशीलता को हर लिया था. कहते हैं कि मां का दूसरा रूप मामा होता है लेकिन उस समय दिनेश का दिल भी नहीं पसीजा था. वह भी कंस मामा बन गया था.

पिता से यमराज बनने के हालात राजेश के सामने चाहे जो भी रहे हों लेकिन इस में अकेला वही दोषी नहीं है. इस में दोष उन लोगों का भी है जिन्होंने उसे इस रास्ते पर जाने के लिए मजबूर किया. वह इतना संवेदनहीन हो गया था कि जीवित बेटी को कब्र में रखते समय उस के हाथ तक नहीं कांपे.

बेटियों पर खतरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. बेटे की चाहत में तमाम लोग उन्हें कोख में ही खत्म करा देते हैं.

हम भले ही 21वीं सदी में पहुंचने की बात कर रहे हों लेकिन सोच अभी भी वही पुरानी है तभी तो भ्रूण हत्याओं में कमी नहीं आ रही. इस का उदाहरण यह है कि जहां सन 1990 में प्रति 1000 पुरुषों के अनुपात में 906 महिलाएं थीं, सन 2005 में इतने ही पुरुषों के अनुपात में केवल 836 महिलाएं रह गई थीं. बात 2014 की करें तो अब यह आंकड़ा 1000 पुरुषों पर 940 स्त्रियों का है. कह सकते हैं कि लोगों में काफी हद तक जागृति आई है और भ्रूण हत्याओं का ग्राफ गिरा है. यह खुशी की बात है. लेकिन इस मामले को देख कर लगता है कि हमें अभी भी पुरुष की सोच को बदलने की जरूरत है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जानेअनजाने कहीं आप भी तो नहीं कर रहे अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़

भोजन में सम्मिलित पोषक तत्त्व और स्वाद हमारी जीवनशैली को रोजाना के स्तर पर थोड़ाथोड़ा कर के काफी हद तक बदल देते हैं. अच्छा पोषण हमारे स्वास्थ्य को दुरुस्त रखता है व पूरा दिन काम करने के लिए एनर्जी देता है और हमें कई बीमारियों से बचाता भी है.

स्वास्थ्य के लिए गंभीर रहना कोई गलत बात नहीं है. उस के लिए सही ट्रिक्स और टिप्स की जानकारी रखना अति आवश्यक है. कई बार हम ज्यादा समय तक भूखे रह जाते हैं, तो कभी ज्यादा खा लेते हैं. इस से हमारा मैटाबोलिज्म गड़बड़ा जाता है और हमें भरपूर मात्रा में न्यूट्रिशन भी नहीं मिल पाते. रोजाना हम भोजन तो करते हैं, लेकिन पूरी तरह से पोषण लेने में हम से गलतियां हो जाती हैं, तो अगर ये गलतियां आप भी कर रहे हैं, तो आज ही बदल दें ये आदतें :

सुबह का नाश्ता रखे आप को तरोताजा : पूरे दिन की एनर्जी हमें सुबह के नाश्ते से ही मिलती है. हैल्दी नाश्ते से पूरा दिन शरीर तरोताजा तो रहेगा ही, साथसाथ अनेक बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है. तो यदि आप डाइटिंग पर हैं, तो सुबह का नाश्ता कभी मिस न करें. इसलिए जरूरी है कि कार्ब्स के साथसाथ प्रोटीन, आयरन, फाइबर, कैल्शियम और विटामिन अवश्य लें. भूल कर भी अधिक कार्ब्स नाश्ते में न लें, क्योंकि ऐसा करने से शरीर सुस्त तो होगा ही, साथ ही मोटापा बढ़ेगा और पाचन क्रिया खराब हो सकती है, जिस से हम बीमार पड़ सकते हैं.

मानसिक स्वास्थ्य पर न पड़ने दें असर : पोषण की कमी से शारीरिक स्वास्थ्य के साथसाथ आप का मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है, जिस के कारण आप के मूड में बदलाव, निराशा या चिड़चिड़ापन होना आम बात है. हमारा मस्तिष्क शरीर के विभिन्न अंगों के कार्यों को नियंत्रित करता है, जिस से स्वस्थ रखने के लिए हमें पौष्टिक व संतुलित आहार लेना बेहद जरूरी है. कभी भी वसा और कार्बोहाइड्रेट को लेना बिलकुल बंद न करें. शरीर के लिए फैट यानी वसा की भी बहुत जरूरत होती है. वहीं कुछ लोग कार्बोहाइड्रेट को पूरी तरह खाने से बाहर कर देते हैं, लेकिन फाइबर से भरपूर कार्बोहाइड्रेट जैसे कि फलसब्जियां, साबुत दालें, साबुत अनाज अपने खाने में जरूर शामिल करें.

क्या न करें

-फलों को दूसरे आहार के साथ लेने से पाचन क्रिया में समय ज्यादा लगता है, जिस से कि खाने का आंतों में फर्मेंट होने लगता है. इस से एसिडिटी, सीने में जलन और अपच जैसी पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. फलों को सलाद में मिला कर खाएं, लेकिन नमक और दही का इस्तेमाल इन के साथ न करें.

-जिस भोजन से आप का ब्लड शुगर बढ़े, ऐसे खाद्य पदार्थों से दूरी बनाएं, क्योंकि इस से बौडी की एनर्जी खत्म हो जाती है.

-हाई कैलोरी भोजन से बचें. एक बार में ज्यादा न खाएं.

-खाने को बारबार गरम न करें, क्योंकि ऐसा करने से उस के पोषक तत्त्व खत्म हो जाते हैं.

-मौसम कोई भी हो, ताजा भोजन ही करें और बाहर के खाने के बजाय घर का बना भोजन ही करें.

उपभोक्ता होने के नाते जानें अपने अधिकार

जुलाई महीने में समय पर कोरियर न पहुंचाने के एक मामले में फतेहाबाद के उपभोक्ता फोरम ने कोरियर कंपनी के स्थानीय डीलर व कंपनी दोनों पर 22 हजार रुपए का जुर्माना ठोंक दिया. इस मामले में राजीव जैन निवासी पालिका बाजार ने उपभोक्ता फोरम में दावा दायर किया था.

राजीव जैन ने बताया था कि उस ने फर्स्ट फ्लाइट कोरियर के माध्यम से 50 हजार रुपए का चैक दिल्ली की एक फाइनैंस फर्म को भेजा था. यह चैक उस ने शेयर खरीदने के लिए भेजा था. कोरियर भेजने के एवज में उस से कंपनी के स्थानीय डीलर ने 50 रुपए लिए थे और यह कोरियर 6 जुलाई, 2018 को दिल्ली बताए गए पते पर पहुंच जाना था, लेकिन कोरियर 19 जुलाई को पहुंचा, जिस कारण वह समय पर शेयर नहीं खरीद पाया.

उस ने बताया कि कंपनी द्वारा समय पर कोरियर न पहुंचाने के कारण उसे भारी नुकसान हुआ. इस मामले की सुनवाई करते हुए उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष राजबीर सिंह ने कंपनी के डीलर सुनील व कंपनी पर 22 हजार रुपए का जुर्माना लगाया.

ऐसा ही एक मामला रोहतक के जिला उपभोक्ता फोरम में देखने को मिला. वहां एक रिटायर्ड सूबेदार ने बैंक के खिलाफ उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया. उन के खाते से बैंक ने 735 रुपए अधिक काट लिए थे. कारण पूछने पर बैंक इन में से 36 रुपए का हिसाब नहीं दे पाया. रिटायर्ड सूबेदार को न केवल 36 रुपए रिफंड दिलाए गए, बल्कि फोरम के निर्णय के आधार पर बैंक को 5 हजार रुपए का मुआवजा भी बुजुर्ग को देना पड़ा.

बचपन में सभी ने सुना होगा कि उपभोक्ता यदि एक माचिस की डबिया से ले कर गाड़ी तक कुछ भी खरीदता है तो उस का एक हिस्सा टैक्स के रूप में कटता है जो कि सरकार के पास जाता है और इसे ही सेल टैक्स कहा जाता है. यानी किसी माल की बिक्री व खरीद पर लगाए जाने वाले कर को सेल टैक्स कहा जाता है.

लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि सरकार के इस टैक्स लेने के साथ, हमारा संविधान, न्याय हर उपभोक्ता को यह गारंटी भी देता है कि जो सामान उस ने खरीदा है या जो सेवा उस ने ली है, उस के साथ किसी भी तरह की धोखाधड़ी न की गई हो और सरकार द्वारा तय मानकों के आधार पर वह सेवा व सामान उपभोक्ता तक पहुंचे हों. जैसा कि ऊपर दिए मामलों में हुआ.

उपभोक्ता के इन्हीं मामलों को निबटाने व सुल?ाने के लिए स्पैशल अदालत बनाई गई हैं. इन अदालतों को एक सिविल कोर्ट को दी गई शक्तियों के बराबर शक्तियां दी गई हैं कि वे किसी मामले का निबटान अपने स्तर पर कर सकें, जिसे उपभोक्ता अदालत या उपभोक्ता फोरम कहा जाता है.

उपभोक्ता अदालतें उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के बाद वजूद में आईं. इस अधिनियम के साथ उपभोक्ता फोरम की शुरुआत हुई. उपभोक्ता का मतलब ग्राहक होता है. पहले इंडिया में उपभोक्ता के लिए कोई परफैक्ट या सीधे कानून नहीं थे जो सिर्फ ग्राहकों से जुड़े हुए मामले ही निबटाएं, लेकिन इस अधिनियम के बाद ग्राहकों को अधिकार मिले.

पहले, किसी भी ग्राहक के ठगे जाने पर उसे सिविल कोर्ट में मुकदमा लगाना होता था. मसलन, भारत में सिविल कोर्ट पर काफी कार्यभार है, ऐसे में ग्राहकों को परेशानी का सामना करना पड़ता था, फिर सिविल कोर्ट में मुकदमा लगाने के लिए कोर्ट फीस भी अदा करनी होती थी. इस तरह ग्राहकों पर दुगनी मार पड़ती थी. एक तरफ वे ठगे जाते थे, दूसरी तरफ उन्हें अपने रुपए खर्च कर के अदालत में न्याय मांगने के लिए मुकदमा लगाना पड़ता था.

इन सभी बातों को ध्यान में रख कर भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 बनाया गया जिसे कंज्यूमर प्रोटैक्शन एक्ट 1986 कहा जाता है. अभी हाल ही में इस एक्ट में 2019 में काफी सारे संशोधन किए गए, जिस से यह कानून ग्राहकों के हित में और ज्यादा आसन हो गया है.

उपभोक्ता को मिलने वाले अधिकार

कानून के तहत एक ग्राहक को यह अधिकार है कि वह किसी सामान को खरीदने पर उस की गुणवत्ता, शुद्धता, क्षमता, कीमत और मानकों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता है.

ग्राहक को सुरक्षा का अधिकार होता है. यानी माल और सेवाओं को उपयोग करते हुए सुरक्षा का अधिकार. यह अधिनियम स्वास्थ्य सेवा, फार्मास्यूटिकल्स और फूड इंडस्ट्री जैसे क्षेत्रों में लागू है.

ग्राहक को अपनी पसंद का कोई प्रोडक्ट चुनने का अधिकार शामिल है. चुनने का अधिकार का मतलब है कोई भी विक्रेता ग्राहक की पसंद को गलत तरीके से प्रभावित नहीं कर सकता और यदि कोई भी विक्रेता ऐसा करता है तो उसे चुनने के अधिकार के साथ हस्तक्षेप माना जाएगा.

इस के अलावा सुने जाने का अधिकार है. यानी उपभोक्ता के हितों की उचित मंचों पर सुनवाई होगी. इस के साथ निवारण का अधिकार मिलता है. अनुचित व्यापार या उपभोक्ताओं के साथ बेईमानी, शोषण के विरुद्ध के खिलाफ यह अधिकार है.

केस की प्रक्रिया

एक ग्राहक खुद के ठगे जाने या धोखाधड़ी के मामले में उपभोक्ता अदालत का रुख कर सकता है. ऐसे में ग्राहक इस केस को एक ग्राहक, दुकानदार या फिर सेवा देने वाले व्यक्ति, कंपनी पर लगा सकता है. जैसे ग्राहक एक वाशिंग मशीन खरीदता है और वह खराब निकलती है या वह तय मानकों पर काम नहीं करती है, तब दुकानदार के खिलाफ मुकदमा लगा सकते हैं और उस कंपनी को पार्टी बना सकते हैं जिस ने उस प्रोडक्ट को बनाया है.

ऐसा मुकदमा ग्राहक उस शहर में लगा सकता है जहां पर वह रहता है और जहां से उस ने वह प्रोडक्ट खरीदा है. इस के लिए ग्राहक को कंपनी के शहर में जाने की जरूरत नहीं है. 2019 के कानून के तहत उपभोक्ताओं की मदद के लिए 3 स्तरीय प्रणाली है, यानी वह जिला आयोग, राज्य आयोग व राष्ट्रीय आयोग में अपनी बात रख सकता है.

सेवा में भी अधिकार

बहुत बार उपभोक्ता सम?ा नहीं पाता कि उसे किसकिस की धोखाधड़ी के खिलाफ अधिकार प्राप्त हैं. उपभोक्ता उन के खिलाफ भी मुकदमा दायर कर सकता है जो उस से सेवा के बदले फीस लेते हैं, जैसे डाक्टर, वकील, चार्टर्ड अकाउंटैंट. हालांकि पहले वकीलों को ले कर संशय था क्योंकि इसे सामाजिक काम से जोड़ा जा रहा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वकील अगर सेवा में कमी करता है तो उस के खिलाफ मुकदमा किया जा सकता है.

इस के अलावा सर्विस क्षेत्र में कार्य करने वाली किसी भी कंपनी के विरुद्ध उपभोक्ता कानून में मुकदमा लगाया जा सकता है, जैसे किसी टैलीकौम कंपनी या फिर कोई इंश्योरैंस कंपनी. मोटर व्हीकल में ऐक्सिडैंट होने पर मुकदमा कंज्यूमर फोरम में नहीं सुना जाता बल्कि उस के लिए अलग से ट्रिब्यूनल है. हालांकि वाहन चोरी होने पर कंपनी द्वारा क्लेम नहीं दिए जाने पर मुकदमा कंज्यूमर फोरम में ही लगाया जाता है.

हैल्थ इंश्योरैंस करने वाली कंपनियों के विरुद्ध भी मुकदमा कंज्यूमर फोरम में लगाया जाता है. ऐसा मुकदमा तब लगाया जाता है जब हैल्थ इंश्योरैंस कंपनी अपने ग्राहक को क्लेम देने से इनकार कर देती है. यदि इनकार करने के कारण उचित नहीं हैं तो मुकदमा फोरम के समक्ष लगाया जा सकता है. बैंकों के विरुद्ध भी सेवा में कमी के आधार पर मुकदमा लगाया जा सकता है. एक ग्राहक सेवा ले या फिर कोई उत्पाद खरीदे- दोनों ही स्थितियों में उस के द्वारा मुकदमा कंज्यूमर फोरम के समक्ष लगाया जा सकता है.

बेहतर पक्ष

अच्छी बात यह है कि मुकदमा दायर करते हुए इन अदालतों में नाममात्र की फीस होती है. अब इस तर्क को सम?ाने की जरूरत है कि एक तो फरियादी पहले ही खुद के साथ धोखाधड़ी किए जाने से परेशान है, उस के बाद अगर फीस का बो?ा उस पर पड़े तो यह दोगुनी मार होगी, ऐसे में यहां फीस कम होती है.

एक करोड़ रुपए तक के मामले डिस्ट्रिक्ट आयोग तक ही लगाए जाते हैं. इस के ऊपर के मामले राज्य आयोग के समक्ष जाते हैं. 5 लाख रुपए तक के दावे के लिए कोर्ट फीस नहीं होती. इस के ऊपर के दावे के लिए भी नाममात्र की कोर्ट फीस होती है. 5 लाख रुपए के बाद 5 लाख से 10 लाख रुपए तक मात्र 200 रुपए की कोर्ट फीस है, 10 लाख से 20 लाख रुपए तक 400 रुपए की कोर्ट फीस है, 20 लाख से 50 लाख रुपए तक 1,000 रुपए कोर्ट फीस है, 50 लाख से एक करोड़ रुपए तक 2,000 रुपए की कोर्ट फीस है.

राज्य आयोग में एक करोड़ रुपए से अधिक और 2 करोड़ रुपए तक 2,500 रुपए, 2 करोड़ रुपए से अधिक और 4 करोड़ रुपए तक 3,000 रुपए, 4 करोड़ रुपए से अधिक और 6 करोड़ रुपए तक 4,000 रुपए, 6 करोड़ से 8 करोड़ रुपए तक 5,000 रुपए और 8 करोड़ से 10 करोड़ रुपए तक 6,000 रुपए कोर्ट फीस है. इस के बाद 10 करोड़ रुपए से अधिक वाले मामले राष्ट्रीय आयोग में जाते हैं जिस की फीस 7,500 रुपए होती है.

लेकिन यह भी सच है कि ऐसी अदालतों में निचले तबके के पीडि़त बेहद कम ही पहुंचते हैं. इस में बहुत हद तक, जानकारी की कमी, समय और कोर्ट के पचड़ों में न पड़ना कारण होते हैं. अकसर ऐसे मामले मध्यवर्गीय लोगों द्वारा पेश किए जाते हैं. द्य

शिकायत दर्ज कैसे करें

  • आप को अपने केस के अनुसार, जिला फोरम, राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग के समक्ष अपनी शिकायत के साथ एक निर्धारित शुल्क का भुगतान करना होगा.
  • अपनी शिकायत का ड्राफ्ट तैयार करना होगा जिस में यह बताना जरूरी होगा कि आप केस क्यों दाखिल करना चाहते हो.
  • शिकायत में यह बताना भी शामिल है कि मामला इस मंच या फोरम के क्षेत्राधिकार में कैसे आता है.
  • शिकायतपत्र के अंत में आप को अपने हस्ताक्षर करने जरूरी हैं. यदि आप किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से शिकायत दर्ज कराना चाहते हैं तो शिकायतपत्र के साथ एक प्राधिकरण पत्र यानी औथोराइजेशन लैटर लगाना होगा.
  • शिकायतकर्ता का नाम, पता, शिकायत का विषय, विपक्षी पक्ष या पार्टियों के नाम, उत्पाद का विवरण, पता, क्षतिपूर्ति राशि का दावा इत्यादि का उल्लेख जरूरी है.
  • अपने आरोपों का समर्थन करने वाले सभी दस्तावेजों की प्रतियां, जैसे खरीदे गए सामानों के बिल, वारंटी और गारंटी दस्तावेजों की फोटोकौपी, कंपनी या व्यापारी को की गई लिखित शिकायत की एक प्रति और उत्पाद को सुधारने का अनुरोध करने के लिए व्यापारी को भेजे गए नोटिस की कौपी भी लगा सकते हैं.
  • आप अपनी शिकायत में क्षतिपूर्ति के अलावा, धनवापसी, मुकदमेबाजी में आई लागत और ब्याज, उत्पाद की टूटफूट व मरम्मत में आने वाली लागत का पूरा खर्चा मांग सकते हैं. आप इन सभी खर्चों को अलगअलग मदों के रूप में लिखना न भूलें और कुल मुआवजा शिकायत फोरम की कैटेगरी के हिसाब से ही मांगें.
  • अधिनियम में शिकायत करने की अवधि घटना घटने के बाद से 2 साल तक है.  अगर शिकायत दाखिल करने में देरी हो तो देरी की व्याख्या करें जो कि ट्रिब्यूनल द्वारा स्वीकार की जा सकती है.
  • आप को शिकायत के साथ एक हलफनामा पेश करने की भी आवश्यकता है कि शिकायत में बताए गए तथ्य सही हैं.
  • शिकायतकर्ता किसी भी वकील के बिना किसी व्यक्ति या उस के अपने अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा शिकायत पेश कर सकता है. शिकायत पंजीकृत डाक द्वारा भेजी जा सकती है. शिकायत की कम से कम 5 प्रतियों को फोरम में दाखिल करना है. इस के अलावा, विपरीत पक्ष के लिए अतिरिक्त प्रतियां भी जमा करनी होंगी.

मैं नौकरी और घरगृहस्थी के पचड़ों में फंसी रहती हूं, बताएं मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं टीचर हूं. 2 बेटों की मां हूं और मेरी उम्र 52 साल है. बच्चे जब छोटे थे तो सोचती थी कि बड़े हो जाएंगे तो फ्री हो जाऊंगी लेकिन अभी तक मैं जिम्मेदारियों में घिरी हूं. मन करता है कि जैसे और लेडीज किट्टी पार्टी, सैरसपाटा, शौपिंग के लिए वक्त निकाल कर लाइफ एंजौय करती हैं, मैं भी करूं. लेकिन कभी स्कूल का काम सामने आ जाता है तो कभी बच्चों की फरमाइशें पूरी करनी पड़ जाती हैं. ऊपर से बीमार सास जो बैड पर हैं उन को भी देखना पड़ता है, जबकि उन के लिए फुलटाइम मेड रखी है लेकिन वह मेड भी मेरे लिए एक सिरदर्द है. उस के खानेपीने का ध्यान रखना, यह एक अलग सिरदर्दी है मेरे लिए.

सहेलियां मजाक उड़ाती हैं कि मेड रख कर तो लोग फ्री हो जाते हैं लेकिन तू उलटा उस की सेवा करती है. सुबह 4 बजे की उठी मैं रात 11 बजे जा कर फ्री होती हूं क्योंकि पति की शौप है, वे लंच करने भी 3-4 बजे घर आते हैं. 6 बजे शाम को फिर शौप जाते हैं. शौप कभी 9.30 बजे तो कभी 10 बजे बंद कर के आते हैं. उन्हें डिनर कराने में 11 बज जाते हैं. सोचती हूं, क्या यही लाइफ है. आप ही बताइए, मैं क्या करूं?

जवाब

आप जो कह रही हैं, ऐसी लाइफ 50 प्रतिशत औरतों की होती है. घर, नौकरी, बच्चे, पति, सासससुर, सारी जिम्मेदारी अकसर औरत के सिर पर डाल दी जाती है जैसे कि वह कोई मशीन है. आप के केस में ऐसा लग रहा है कि आप घरगृहस्थी के कामों में खुद को उल?ाए रखती हैं. उन से बाहर निकलने की कोशिश नहीं करतीं. टाइम मैनेजमैंट की कमी है आप में क्योंकि अब आप के बच्चे बड़े हो गए होंगे. आप सुबह स्कूल जाती हैं तो दोपहर के लंच की तैयारी थोड़ीबहुत कर के जाएं. बच्चे अब कालेज या जौब पर जाते हैं, उन्हें साथ में लंच देना है तो इस की तैयारी भी रात को कर के रखनी चाहिए.

वीक डे में लंचडिनर साधारण ही रखें. स्पैशल बनाने के चक्कर में आप फिर अपने को किचन के कामों में उल?ा लेंगी. छुट्टी वाले दिन स्पैशल बना कर खिला सकती हैं. रही बात आप की सास की तो उन की देखभाल के लिए फुलटाइम मेड को काम अच्छी तरह सम?ा दीजिए कि उसे टाइम से सारे काम करने हैं. उस से सख्ती बरतनी पड़ेगी. मेड से कहें कि अपनी चाय, रोटी वह खुद बनाए. सास बैड पर हैं तो यकीनन वे ज्यादातर सोई रहती होंगी. उस वक्त मेड अपने खानेपीने का काम खुद करे. मेड को रसोई में घुसने दें. इस से आप उस के खानेपीने का इंतजाम करने की ड्यूटी से फ्री हो जाएंगी.

स्कूल में अपनी साथी टीचरों से बात करें कि उन का रूटीन वर्क कैसा होता है. वे कैसे मैनेज करती हैं अपना कामकाज. अपने लिए थोड़ा वक्त निकालना जरूरी है और वह वक्त आप टाइम मैनेजमैंट कर के निकाल सकती हैं.

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