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टौक्सिक रिलेशनशिप : जी का जंजाल

महाराष्ट्र की श्रद्धा वालकर की दिल्ली में उस के लिवइन पार्टनर ने हत्या कर दी और उस के टुकड़ेटुकड़े कर जंगल में जा कर फेंक दिया. उस का लिवइन पार्टनर, आफताब पूनावाला, पहले भी कई बार उस पर हिंसक प्रहार कर चुका था और इस बात का जिक्र श्रद्धा ने अपने दोस्तों से किया था कि वह उसे मारतापीटता है और अब वह उस के साथ नहीं रहना चाहती.

एक बार उस ने अपने मैनेजर को व्हाट्सऐप पर लिखा था कि आफताब ने उसे बहुत मारा है जिस से वह उठ भी नहीं पा रही है, इसलिए वह काम पर नहीं आ सकती. श्रद्धा ने आफताब के हिंसक बरताव के बारे में अपने परिवार को भी बताया था लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया.

श्रद्धा ने आफताब के हिंसक बरताव के बारे में 2 साल पहले 23 नवंबर, 2020 को मुंबई की पालघर पुलिस को एक शिकायत पत्र लिखा था कि उस का लिवइन पार्टनर आफताब उसे मारतापीटता है और अगर वक्त पर ऐक्शन नहीं लिया गया तो वह उस के टुकड़ेटुकड़े कर डालेगा. श्रद्धा ने यह भी बताया था कि 6 महीने से आफताब उसे पीट रहा है. इस पत्र से पता चलता है कि भले ही दोनों लिवइन में थे, मगर उन के रिश्ते खराब हो चुके थे.

श्रद्धा ने आफताब के दो फोन नंबर भी पत्र में दिए थे. श्रद्धा के पत्र के मुताबिक, वह पुलिस के पास आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, क्योंकि आफताब ने उसे हत्या की धमकी दी थी. पत्र में उस ने यह भी लिखा था कि अगर मु?ो किसी भी तरह चोट लगती है तो उस के लिए आफताब ही जिम्मेदार होगा.

लेकिन जब श्रद्धा इस रिश्ते में खुश नहीं थी और वह उसे मारतापीटता था, तब वह उस के साथ रह ही क्यों रही थी? छोड़ क्यों नहीं दिया उसे? बताया जा रहा है कि श्रद्धा का उस के बौयफ्रैंड के साथ कई बार ब्रेकअप हो चुका था. लेकिन फिर बाद में दोनों सुलह कर साथ रहने लगते थे. फिर वही सवाल कि जब वह उस के साथ खुश नहीं थी, फिर साथ कैसे रह रही थी? क्यों उस ने कोई कदम नहीं उठाया जब उसे पता था कि आफताब उसे मार देगा.

सच तो यह है कि हम शायद ही कभी किसी रिश्ते के अंधेरे पहलुओं के बारे में सोचते हैं, जहां संदेह, असुरक्षा, चोट और दर्द की दीवारें होती हैं. आदमी जब प्रेम में होता है तो वह एकदूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार होता है. कहा भी गया है- ‘प्यार अंधा होता है’. हम अपने प्यार को हीररां?ा और लैलामजनूं से तुलना करने लगते हैं. हमें लगता है हमारा प्यार भी उतना ही ईमानदार और पाक है लेकिन ऐसा होता नहीं है.

लेकिन इस सब में श्रद्धा की क्या गलती थी? उस की यही गलती थी कि उस ने आफताब जैसे इंसान पर हद से ज्यादा विश्वास किया, उस से प्यार किया और उस की गलतियों को माफ करती आई. वक्त रहते अगर वह उस की जिंदगी से निकल गई होती तो आज वह जिंदा होती.

कुछ रिश्ते लड़कियों का दैहिक, आर्थिक और भावनात्मक दोहन करते हैं लेकिन चाह कर भी वे उस रिश्ते से बाहर नहीं आ पाती हैं. श्रद्धा ने अपनी उलझनों के बीच कई आवाजें दीं होंगी लेकिन किसी ने भी उस की आवाज नहीं सुनी या यह कहें की यह समाज और परिवार उस की आवाज को सुन पाने में असमर्थ थे.

एक श्रद्धा ही अकेली ऐसी लड़की नहीं है जिसे प्यार के बदले मौत मिली. हमारे आसपास ऐसे कई लोग होंगे जो टौक्सिक रिश्ते में जीने को मजबूर हैं लेकिन उस से बाहर नहीं निकल पा रहे होंगे.

क्या है टौक्सिक रिश्ता ?

औक्सफोर्ड डिक्शनरी टौक्सिक रिलेशनशिप को दर्दनाक और हानिकारक रिश्ते के रूप में परिभाषित करती है. जहां एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कंट्रोल करना चाहता है और उस रिश्ते में दूसरे व्यक्ति को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की कोशिश करता है. सामने वाले व्यक्ति को कंट्रोल करने के लिए हिंसक व्यवहार पर भी उतर आता है.

राजेश और अनुपमा की शादी 1999 में हुई थी. कुछ सालों बाद दोनों के बीच प्यार की जगह लड़ाई?ागड़ों ने लिया और रिश्ते जहरीले होते चले गए. बातबात पर झगड़ा, मारपीट, एकदूसरे पर लांछन लगाना, दोष मढ़ना, गालीगलौज होते रहने से घर का माहौल खराब होने लगा.

एक दिन ?ागड़ा इतना बढ़ गया कि गुस्से में राजेश ने अपनी पत्नी अनुपमा की हत्या कर दी और अपने जुर्म को छिपाने के लिए एक डीप फ्रीजर में पत्नी का शव रख दिया. जब शव जम गया तब स्टोनकटर मशीन से उस के टुकड़े कर मसूरी के जंगलों में फेंकने लगा.

कैसे पहचानें टौक्सिक रिलेशनशिप को ?

एक अच्छा और प्यारा रिश्ता जहां आप के तन और मन दोनों को प्रसन्नता व पौजिटिविटी से भर देता है वहीं जहरीला रिश्ता आप को तनाव, अवसाद में धकेल देता है. वहीं जब रिश्ते में प्यार की जगह दिखावापन, कड़वाहट, झूठ, धोखा, फरेब, लड़ाईझगड़े, गालीगलौज और मारपीट होने लगे, तब समझ लें कि आप एक टौक्सिक रिलेशनशिप में हैं.

इंगलैंड की विमेन्स कोऔपरेशन कमिटी की सहप्रमुख एडिना क्लेयर ने इन संकेतों को पहचानने का तरीका बताया है.

वे कहती हैं कि किसी को भावनात्मक रूप से प्रताडि़त करना भी घरेलू हिंसा है. इसलिए जरूरी है कि लक्षणों को तुरंत पहचान लिया जाए और उस व्यक्ति से दूरी बना ली जाए. यह समझाना जरूरी है कि उस व्यक्ति के कंट्रोल में रहना जरूरी नहीं है.

कंट्रोलिंग पार्टनर के कुछ लक्षण

  • अपने पार्टनर को बहुत अधिक प्यार करने का दिखावा कर उस से अपने मनमुताबिक काम करवाना. हालांकि  ये रिश्तों के शुरुआती लक्षण हैं.
  • पार्टनर की कामयाबी से ईर्ष्या करना.
  • गलत बरताव करना.
  • गुस्से में समान की तोड़फोड़ करना.
  • किसी भी बात के लिए पार्टनर को जिम्मेदार ठहराना.
  • आप को मानसिक रूप से कमजोर दिखाना.

एडिना का यह भी कहना है कि किसी भी रिलेशनशिप में सब से जरूरी बात है अपने खुद के आत्मसम्मान को गिरने न देना. अगर रिश्ते में आप दबाव या कंट्रोलिंग जैसा फील कर रहे हैं तो यह सही नहीं है.

अगर आप का पार्टनर बातबात पर आप पर ड़ाटता है, आप की बातों का उलटा जवाब देता है, आप पर चिल्लाता है या आप पर हाथ उठाता है तो सम?ा लीजिए कि यह एक टौक्सिक रिलेशनशिप की अलार्मिंग सिचुएशन है. अगर आप अपने रिश्ते में इन सब बातों को देखते हैं तो आप को इस रिश्ते के बारे में सोचने की जरूरत है.

एक रिश्ते में प्यार से ज्यादा जरूरी होता है एकदूसरे को सम?ाना, इज्जत देना. ये सब चीजें आप के रिलेशनशिप को खुशनुमा ही नहीं बनातीं, बल्कि रिश्ते हैल्दी भी बनते हैं. लेकिन इस के उलट, जब रिश्ते में एक पार्टनर दूसरे को कंट्रोल करने की कोशिश करने लगे, आप को आप के परिवार से दूर करने की कोशिश करने लगे तो इस का यह मतलब है कि आप टौक्सिक रिलेशनशिप में जी रहे हैं.

इस के अलावा, अगर पार्टनर के कारण आप थका हुआ, टूटा हुआ, दुखी, असहाय जैसा महसूस करते हैं तो इस का साफ मतलब है कि आप टौक्सिक रिलेशनशिप में जी रहे हैं.

गलतफहमियां होना, रिश्ते में नोंकझोक या तनाव का आ जाना स्वाभाविक है. लेकिन जब आप को लगे कि आप उक्त रिश्ते में घुटन और जिल्लत महसूस कर रहे हैं, तब सोचने की जरूरत है.

अकसर देखा जाता है कि इंसान ऐसी स्थिति में खुद को ही बहलाने लगता है. पार्टनर की गलतियों पर परदा डालते हुए खुद को ही समझाने लगता है कि ‘अरे, तो क्या हो गया अगर उस ने गुस्से में दो बातें बोल ही दीं तो या मैं तो इसी लायक हूं,’ जैसी बातें उसे हिंसक व्यवहार करने को बढ़ावा देती हैं.

साथी अगर जरूरत से ज्यादा कंट्रोलिंग हो तो अपनी गलती मनाने के बजाय वह खुद को ही सम?ाता है कि यह तो उस का नेचर है और वह गलत नहीं है. हालांकि सच इस से उलट होता है. इसलिए समय रहते ऐसे रिश्ते से बाहर निकल जाने में ही भलाई है. हालांकि टौक्सिक रिश्ते से बाहर निकलना आसान नहीं है.

टौक्सिक रिलेशनशिप से बाहर निकलना मुश्किल क्यों ?

काउंसलर डा. तेजस्विली कुलकर्णी के मुताबिक, टौक्सिक रिलेशनशिप हमेशा टौक्सिक नहीं होता है. एक टौक्सिक रिलेशनशिप में पूरा समय बुरा व्यवहार या यातना भर नहीं होता है, बीच में अच्छे पल, प्यारभरे पल, भावनात्मक पल, प्रशंसा के पल भी होते हैं. कभीकभी उन अच्छे अनुभवों और भावनात्मक पल के कारण हमारे दिमाग को रिलेशनशिप की आदत हो जाती है.

लड़ाई के बाद जब पार्टनर दो मीठे बोल कह दे तो एक उम्मीद पैदा होती है कि वह बदल गया है और अब सब ठीक है. लेकिन यह मात्र एक भ्रम है, असल में वह बदला नहीं होता है.

अकेलेपन का डर भी एक कारण है कि ऐसे टौक्सिक रिलेशनशिप में रहने को मजबूर होते हैं आप. आप टूटने और अकेले रहने के बदले बुरे रिश्ते में रहना चुन लेते हैं. अगर आप को पता हो कि आप का परिवार और दोस्त आप के साथ हैं तो टौक्सिक रिलेशनशिप से बाहर निकलना आसान हो जाता है.

टौक्सिक रिश्ते से बाहर कैसे निकलें ?

पहले तो आप को यह स्वीकार करना होगा कि आप का पार्टनर बदला नहीं है, बल्कि बदलने और अच्छे बनने का नाटक कर रहा है. इसलिए कभी भी उस की गलतियों को कवर-अप करने की गलती न करें. माना कि हम सामने वाले को नहीं बदल सकते लेकिन अपना रास्ता तो बदल सकते हैं न? इसलिए भावना में बह कर उस की गलतियों पर परदा मत डालिए, बल्कि खुद के रास्ते अलग कर लीजिए क्योंकि इसी में आप की भलाई है.

वैसे, जहां तक हो सके रिश्ते को सुधार लेना सही है. लेकिन अगर आप का पार्टनर ही सुधरना नहीं चाहता और सोचता है वह अपनी जगह सही है तो फिर अपना अलग रास्ता चुन लें.

अपना आत्मसम्मान अपने हाथ

आप अपने पार्टनर से बहुत प्यार करती हैं तो इस का यह मतलब थोड़े ही है कि वह जैसे चाहे आप को जलील करे? आप को पहले खुद से प्यार करना सीखना होगा. आप किसी को भी यह अधिकार न दें कि वह जैसे चाहे आप के साथ बरताव करे और बदले में आप चुप रहें. आप के आत्मसम्मान को हर्ट करने का किसी को भी हक नहीं बनता.

अगर आप को किसी भी चीज से ठेस पहुंचती है या नकारात्मक असर हो तो उस से खुल कर कहें. खुद के लिए स्टैंड लें. जब आप अपनी सैल्फ रिस्पैक्ट और सैल्फ लव पर ध्यान देंगी तो खुदबखुद टौक्सिक रिश्ते से बाहर आने की हिम्मत आ जाएगी.

जब हम प्यार में होते हैं तो भौतिक चीजों या आर्थिक पक्षों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं. जबकि रिश्तों में दरार की बहुत बड़ी वजह आर्थिक मसले भी होते हैं. श्रद्धा और आफताब के बीच ?ागड़े की वजह आर्थिक मसले भी थे. उन के बीच आएदिन इस बात को ले कर भी ?ागड़े होते थे कि घर का समान कौन खरीदेगा.

जिंदगी न मिलेगी दोबारा

हर इंसान को जिंदगी एक बार ही मिलती है. इसीलिए उसे भरपूर हंसते हुए जी लेना चाहिए. इस डर से घुटघुट कर न मरते रहें कि अगर रिश्ता टूट गया तो आप कैसे जिएंगी? बल्कि यह सोचें कि एक टौक्सिक रिश्ते में रहने से अच्छा आप अकेली खुशीखुशी जी सकेंगी और वहां कोई आप को टौर्चर करने वाला नहीं होगा.

एक्सपर्ट की सलाह लें

टौक्सिक रिलेशनशिप में रहना न सिर्फ आप के निजी जीवन को बल्कि आप के प्रोफैशनल लाइफ पर भी बुरा असर डालता है. इसलिए यह जरूरी है कि ऐसे टौक्सिक रिश्ते से छुटकारा के बारे में सोचने से पहले किसी विशेषज्ञ की सलाह ले लें. बहुत सारे रिलेशनशिप काउंसलर होते हैं जो दोनों पक्षों की बात सुन कर कमजोर पहलुओं की ओर ध्यान देते हैं.

कैसे रखें अपना खयाल ?

रिश्ता चाहे कैसा भी हो, टूटने का दर्द तो होता ही है. लेकिन यहां आप को अपनी भावनाओं पर काबू रखना होगा. रिलेशनशिप एक्सपर्ट की मानें तो ऐसे रिश्ते से अगर निकलना ही एकमात्र तरीका बचे तो सब से पहले अपनी भावनाओं पर काबू पाना बेहद जरूरी हो जाता है. किसी भी रिश्ते में खुश रहने के लिए सब से पहले खुद को समय देना, खुद से प्यार करना जरूरी होता है. कई बार पार्टनर पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता हमें कमजोर बना देती है. इसलिए पार्टनर पर निर्भरता को कंट्रोल करें.

सोशल मीडिया डिटौक्स हों

एक्सपर्ट कहते हैं कि ऐसे समय में सोशल मीडिया से ब्रेक लेना सही फैसला है क्योंकि यह आप को उन दुखों और बुरी यादों की ओर धकेल सकता है. यह केवल आप की भावनाओं को आहत करने वाला है. ऐसे में इस से ब्रेक लेना सब से अच्छा काम है.

अपना खयाल रखें

आप को पता है कि आप से बेहतर आप का खयाल कोई नहीं रख सकता. अपना खयाल रखना हीलिंग का काम करेगा, खासकर उस समय जब आप स्ट्रैस में हैं. अच्छे स्वास्थ्य के लिए सही पोषक तत्त्व और अच्छी नींद लेना बहुत जरूरी है.

अपने परिवार व दोस्तों से मिलें

अपनों के आसपास होने से न केवल आप को अच्छा महसूस होगा, बल्कि यह आप के दुखों को भी कम करने में मदद करेगा. आप चाहें तो उन के साथ कहीं पिकनिक पर भी जा सकती हैं. यह आप के मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहतर होगा.

अपनी पसंद का काम करें

रिलेशनशिप एक्सपर्ट कहते हैं कि हम सभी में कोई न कोई हौबी होती है जिसे हम करना पसंद करते हैं. अपनी पसंद का काम हमें जीवन में स्फूर्ति देता है. ऐसा करने से आप के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होगा और आप पुरानी बातों को भूल पाएंगी.

डायरी लिखें

डायरी लिख कर आप अपने विचारों और भावनाओं को बाहर निकाल सकती हैं. आप के दिमाग में जो कुछ भी चल रहा और जिसे आप किसी के साथ शेयर नहीं कर सकतीं, उसे डायरी में लिखें. डायरी लिखना आप के तनावमुक्त करने में मदद कर सकता है.

इस बात को समझाना बहुत जरूरी है कि किसी भी रिश्ते को तोड़ना इतना आसान नहीं होता. लेकिन जब रिश्ते डसने लगें तो उस से अलग हो जाना ही बेहतर है और कहते हैं न, जो बीत गई सो बात गई. टौक्सिक रिश्तों को भुला कर अब आगे बढ़े और खुश रहें.

सुप्रीम कोर्ट के बदलते तेवर

15 अगस्त, 2023 को लालकिले की प्राचीर पर झंडारोहण करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की जनता को संबोधित कर रहे थे. 77वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आयोजित समारोह को मनाने के लिए सामने की दीर्घा में देश की जानीमानी राजनीतिक हस्तियों और सम्मानित अतिथियों के बीच देश के उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ भी उपस्थित थे.

भाषण के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने उन की ओर देखते हुए क्षेत्रीय भाषाओं में अदालती फैसले उपलब्ध कराने को ले कर सुप्रीम कोर्ट की सराहना की और धन्यवाद दिया तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने भी हाथ जोड़ कर मुसकराते हुए उन का अभिवादन किया.

उस दिन चंद सैकंड का यह दृश्य तमाम टीवी चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज था. वहीं कार्यक्रम की समाप्ति पर देश के गृहमंत्री अमित शाह से आमनासामना होने पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने हाथ जोड़ कर उन का भी अभिवादन किया तो बड़ अनमने ढंग से गृहमंत्री ने भी हाथ जोड़े और चलते बने.

इस दृश्य को भी तमाम कैमरों ने कैद किया. दरअसल जस्टिस चंद्रचूड़ जब से प्रधान न्यायाधीश की कुरसी पर विराजमान हुए हैं, उन्होंने अपने कई फैसलों और फटकारों से सरकार की नाक में दम कर रखा है. यही वजह है कि कुछ समय पहले जहां सरकार कलीजियम को ले कर सुप्रीम कोर्ट को आंखें दिखाने की कोशिश में थी, वहीं मणिपुर और नूंह की घटनाओं के बाद अब उस से आंखें मिलाने में उसे शर्म आ रही है.

ज्यादा वक्त नहीं बीता है जब कलीजियम को ले कर सरकार और सुप्रीम कोर्ट में जारी रस्साकशी को पूरा देश देख रहा था. उस वक्त भाजपा के कानून मंत्री रहे किरण रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया को ‘संविधान से परे’ और एलियन करार दे दिया था. जज चुने जाने की प्रक्रिया पर भाईभतीजावाद और ‘अंकल संस्कृति’ का आरोप मढ़ कर उन्होंने सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बाकायदा एक मुहिम शुरू कर दी थी.

फिर अचानक उन्हें कानून मंत्री की कुरसी से उतार कर गृह राज्यमंत्री बना दिया गया. अंदरखाने बात यह थी कि मोदी सरकार समझ गई थी कि रिजिजू की हरकतें सरकार पर भारी पड़ सकती हैं.

एक वक्त था जब देश के सब से बड़े न्याय के दरवाजे के आगे हर छोटेबड़े का सिर सम्मान से झुकता था. मगर मोदी सरकार सत्ता में आई तो उस ने सब को अपने अंगूठे के नीचे दबाने की नीति पर चलना शुरू किया. क्या पुलिस, क्या सीबीआई, क्या ईडी, क्या मीडिया सब को ऐसा काबू किया कि संविधान की शपथ खा कर बड़ेबड़े संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भूल गए कि उन्हें देश के कानून और संविधान के अनुसार काम करना है, न कि किसी राजनीतिक पार्टी की सत्ता में बने रहने की लालसा को पूरा करने के लिए.

सरकार के रवैए को देखते हुए इधर कुछ अंधभक्तों और ट्रोल आर्मी ने भी सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट को ट्रोल करने की कोशिश की. हालांकि, उदार हृदय कोर्ट ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और कानून के दायरे में अपने फैसले करती रही. उन में से ज्यादातर सरकार के कान उमेठने वाले थे और लगातार सरकार को परेशान कर रहे थे. मुख्य मुद्दे जिन पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की ये हैं:

  • समाजसेवी तीस्ता सीतलवाड़ की रिहाई का मामला.
  • गुजरात दंगे की पीडि़ता बिल्किस बानो के अपराधियों को जेल से रिहा किए जाने का मामला.
  • प्रवर्तन निदेशालय के प्रमुख संजय कुमार मिश्रा को सेवाविस्तार देने का मामला.
  • उत्तर प्रदेश में पुलिस कस्टडी में पूर्व सांसद अतीक अहमद और उस के भाई अशरफ की हत्या का मामला.
  • भाजपा नेता ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच का आदेश देने का मामला.
  • उत्तर प्रदेश में 2017 के बाद हुए एनकाउंटर्स की रिपोर्ट तलब करना.

इन में से कई मामलों में सरकार की तरफ से जवाब दाखिल हो रहे थे, मगर जब मणिपुर की बर्बर घटना एक वीडियो के माध्यम से देश के सामने आई तो सुप्रीम कोर्ट के सब्र का प्याला छलक उठा.

सुप्रीम कोर्ट हैरान थी कि 4 महीने तक मणिपुर में एक समुदाय के खिलाफ आगजनी, हत्या, हिंसा, लूट और उन की औरतों को निर्वस्त्र कर उन की परेड निकालने का वीभत्स कांड जारी रहा, मगर मणिपुर के भाजपाई मुख्यमंत्री से ले कर उन का पूरा सरकारी तंत्र आंखों पर पट्टी व कानों में तेल डाले बैठा रहा.

चीफ जस्टिस औफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ हैरान थे कि कैसे मणिपुर की पुलिस ने खुद दंगाइयों को आगजनी और ईसाई महिलाओं के साथ हिंसा, बलात्कार, नग्न परेड निकालने और फिर उन्हें मार डालने की खुली छूट दी. महिलाओं के साथ हुई बर्बरता के वीडियो जब सोशल मीडिया पर जारी होने लगे और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने उन वीडियो को देखा तब चीफ जस्टिस औफ इंडिया को बड़े सख्त लहजे में कहना पड़ा, ‘अगर सरकार कोई ऐक्शन नहीं लेती है तो हमें लेना होगा.’

मोदी सरकार तो अब तक मामले को दबाए बैठी थी. भारत के गृहमंत्री उस दौरान कई बार मणिपुर का दौरा कर चुके थे. मगर मामले पर चुप्पी साधे बैठे थे. सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद उन्होंने जांच शुरू करवाने की बात मुंह से निकाली. मणिपुर की स्थिति से नाराज उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी थी, ‘2 महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने वाला वीडियो बहुत परेशान करने वाला है. पुलिस की जांच बहुत ही सुस्त है. प्राथमिकियां बहुत देर से दर्ज की गई हैं. गिरफ्तारियां नहीं की गईं और बयान तक दर्ज नहीं हुए हैं. राज्य में कानून व्यवस्था और संवैधानिक मशीनरी पूरी तरह ध्वस्त हो गई है.’

मणिपुर पीडि़ताओं को राहत पहुंचाने के उद्देश्य से गठित सुप्रीम कोर्ट की अपनी कमेटी में जम्मूकश्मीर उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश रहीं गीता मित्तल हैं जो कमेटी की हैड हैं और उन के साथ 2 अन्य सदस्य रिटायर्ड जस्टिस शालिनी पी जोशी और जस्टिस आशा मेनन हैं. यह कमेटी मणिपुर में पीडि़तों की एफआईआर पर हो रही जांच की निगरानी के साथसाथ पीडि़तों के लिए हो रहे राहत कार्यों, उपचार, मुआवजे, पुनर्वास आदि कामों की जांच कर रही है.

अब कमेटी जैसेजैसे अपना काम आगे बढ़ा रही है, मणिपुर सरकार के ही नहीं, केंद्र सरकार के भी हाथपैर फूल रहे हैं.

दरअसल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों के तहत भाजपा पूरे देश में ध्रुवीकरण का खेल खेलना चाहती है. उस का पहला शिकार मणिपुर बना है, जहां ईसाई और मुसलिम धर्म को मानने वाले कुकी समुदाय पर मैतेई समुदाय के हिंदू दंगाइयों ने कहर बरपाया और सरकार व उस की पुलिस ने उन्हें ऐसा करने की खुली छूट दी.

उस के बाद हरियाणा के नूंह में दंगा हुआ जो मेवात सहित कई जिलों में फैल गया. मगर सुप्रीम कोर्ट के सख्त रवैए के चलते इन पर जल्दी ही काबू पा लिया गया.

मोदी सरकार में कई राज्यों में गवर्नर रह चुके और भाजपा की राजनीति को लंबे समय से बहुत करीब से देखने वाले सत्यपाल मलिक के एक इंटरव्यू को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है, जिस में उन्होंने कहा है कि ‘मोदीशाह सत्ता के लिए कुछ भी कर सकते हैं. 2019 के चुनावों के पहले पुलवामा हो गया था, जिस के बिना भाजपा नोटबंदी के कारण पैदा हुई अलोकप्रियता के कारण हारने की कगार पर थी. लेकिन पुलवामा के कारण मोदी को जीत मिली. अब 2024 के चुनावों में भी मोदीशाह को हार की आशंका सता रही है. ऐसे में फिर से कोई घटना हो जाए या जगहजगह दंगे भड़क जाएं तो कोई ताज्जुब की बात न होगी.’

सुप्रीम कोर्ट भी 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर केंद्र की मोदी सरकार और जो राज्य भाजपा शासित हैं, सब पर अपनी कड़ी नजर बनाए हुए है. इस के चलते सांप्रदायिक और अंधराष्ट्रवाद की लहर चला कर सत्ता में पहुंचने की भाजपा की कोशिश थोड़ी कमजोर पड़ गई है. वरना नूंह में मोनू मानेसर, बंटी जैसे बजरंग दल और विहिप के लोगों द्वारा योजनाबद्ध तरीके से जिस तरह दंगे भड़काए गए, अगर सुप्रीम कोर्ट ऐक्शन में न आता तो पूरे देश में इन की पुनरावृत्ति होती.

नूंह में जब काफी दम लगाने के बाद भी दंगाई उन्माद नहीं भड़का पाए तो बौखलाहट में आ कर खट्टर सरकार ने नूंह की आम मुसलमान आबादी के घरों पर बुलडोजर चलवा दिया.

नूंह में हुए दंगों पर सरकार के खिलाफ सख्ती बरतने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया कि जहां भी हेट स्पीच होगी, उस से कानून के अनुसार निबटा जाएगा. हम इस बात पर ध्यान नहीं देंगे कि किस पक्ष ने क्या किया. हम नफरत फैलाने वाले भाषणों और उन लोगों से कानून के मुताबिक निबटेंगे.

इस बीच, सुप्रीम कोर्ट लगातार महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों पर भी नजर बनाए हुए है. हाल ही में यौनहिंसा के संबंध में उस ने वक्तव्य दिया कि भीड़ दूसरे समुदाय को अधीनता का संदेश देने के लिए यौनहिंसा करती है और राज्य इसे रोकने के लिए बाध्य हैं.

10 अगस्त को अपने 36 पेजी एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को यौन अपराधों और हिंसा का शिकार बनाना पूरी तरह से अस्वीकार्य है और यह गरिमा, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वायत्तता के संवैधानिक मूल्यों का गंभीर उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि कि हेट क्राइम और हेट स्पीच पूरी तरह अस्वीकार्य है, आप देखें कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों.

महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट के प्रयास बेहद सराहनीय हैं. जो काम सरकार और उस की मशीनरी को करना चाहिए, उस का जिम्मा देश की सब से बड़ी अदालत ने अपने सिर लिया है. हाल ही में अपने एक फैसले में कोर्ट ने कहा है कि अब कोर्ट के भीतर महिलाओं के लिए वेश्या, रखैल, फूहड़, प्रोस्टिट्यूट, मिस्ट्रैस जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं होगा.

कोर्ट ने लैंगिक रूढि़वादिता से निबटने के लिए बाकायदा एक हैंडबुक जारी की है, जिस में वैकल्पिक शब्दों के इस्तेमाल का सुझाव दिया गया है. यह हैंडबुक वकीलों के साथसाथ जजों के लिए भी है. इस हैंडबुक में स्पष्ट किया गया है कि ऐसे शब्द गलत क्यों हैं और वे मुकदमों को कैसे बिगाड़ते हैं.

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने इस हैंडबुक को जारी करते हुए कहा, ‘‘महिला की गरिमा बनाए रखने के लिए यह जरूरी था.’’ उन्होंने यह भी कहा कि किसी महिला की पोशाक न तो उसे छूने का आमंत्रण है और न ही यौन संबंधों में संलग्न होने का इशारा है. किसी के चरित्र के बारे में उस के कपड़ों की पसंद या यौन संबंधों के इतिहास के आधार पर धारणाएं बनाना रूढि़वादी सोच है, इसे बदलना होगा.

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर अभद्र और अपमानजनक पोस्ट को ले कर भी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए ट्रोल आर्मी को कड़ा संदेश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि सोशल मीडिया पर अपमानजनक पोस्ट करने वालों को सजा मिलनी जरूरी है.

जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस प्रशांत कुमार की बैंच ने इस मामले में सख्ती दिखाते हुए कहा कि ऐसे लोग अब माफी मांग कर आपराधिक कार्यवाही से बच नहीं सकते हैं. उन्हें अपने किए का नतीजा भुगतना पड़ेगा.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के ये तमाम फैसले भाजपा और संघ के लिए मुसीबत बन रहे हैं क्योंकि हेट स्पीच, ट्रोल आर्मी, सांप्रदायिक भाषण और दंगे भड़का कर महिलाओं को अपना शिकार बनाए बिना मिशन 2024 कैसे पूरा हो सकता है. ज्वलंत भाषणों पर अब सुप्रीम कोर्ट की पैनी नजर है. सरकार जहांजहां भी कुछ करतूत करने की कोशिश में है, सुप्रीम कोर्ट वहांवहां उस पर चोट कर रही है. इस से मोदी सरकार बौखलाई हुई है.

इधर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी कोर्ट काफी सख्ती बरत रही है. मोदी के गहन मित्र अडानी को ले कर जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में कमेटी बना दी. अडानी-हिंडनबर्ग केस में जांच के लिए 6 सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी में रिटायर जस्टिस ए एम सप्रे के अलावा ओ पी भट्ट, जस्टिस के पी देवदत्त, के वी कामत, एन नीलकेणी, सोमेशेखर सुंदरेशन शामिल हैं. इन का काम जारी है.

कोर्ट की इस सख्ती से विपक्ष को ताकत और हौसला मिला है. हाल ही में मोदी सरनेम केस में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को बड़ी राहत देते हुए न सिर्फ गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया, बल्कि राहुल की 2 साल की सजा पर भी रोक लगा दी है. इस के तुरंत बाद जहां राहुल गांधी की सांसदी बहाल हो गई, वहीं उन्होंने इस बार अमेठी से चुनाव लड़ने का भी मन बना लिया है. इस से भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी के पांवतले जमीन हिल रही है क्योंकि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद राहुल का ग्राफ काफी ऊंचा चल रहा है.

उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस संजय कुमार की बैंच ने गुजरात हाईकोर्ट से पूछा कि हम जानना चाहते हैं कि ट्रायल कोर्ट ने मामले में अधिकतम सजा क्यों दी? जज को फैसले में यह बात बतानी चाहिए थी. अगर जज ने एक साल ग्यारह महीने की सजा दी होती तो राहुल गांधी को सांसद होने से डिस्क्वालिफाई न किया जाता. अधिकतम सजा के चलते एक लोकसभा सीट बिना सांसद के रह गई. यह सिर्फ एक व्यक्ति के अधिकार का ही मामला नहीं है, यह उस सीट के वोटर्स के अधिकार से भी जुड़ा मसला है.

सुप्रीम कोर्ट के ऐसे रवैए और ऐसे फैसलों से केंद्र सरकार की हालत अब खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे वाली हो गई है.

दिल्ली सरकार के अधिकारियों की नियुक्ति और उन के कामकाज के मामले में भी शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की मंशा पर उंगली उठाई है. उस ने दिल्ली सरकार के अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्ंिटग में केंद्र सरकार की दखलंदाजी पर कड़ी आपत्ति जताई है. इस मामले में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने सौलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सीधा सवाल किया कि अगर दिल्ली में प्रशासन केंद्र सरकार के इशारे पर ही चलाया जाना है तो एक निर्वाचित सरकार होने का क्या मतलब है?

भाजपा नेता और ब्रजभूषण शरण सिंह को देश की ख्यात रेसलर्स के यौनशोषण मामले में बचाने के लिए पूरी पार्टी और पुलिस जिस तरह से लगी हुई थी, वह पूरे देश ने देखा. अगर जस्टिस चंद्रचूड़ इस मामले में ब्रजभूषण के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए न कहते तो लोगों को पता भी न लगता कि यह बाहुबली खेलों की आड़ में कर क्या रहा है.

सरकार की किरकिरी

केंद्र सरकार के चहेते अधिकारी संजय कुमार मिश्रा, जो वर्तमान में प्रवर्तन निदेशालय के प्रमुख हैं और सरकार के मिशन को आगे बढ़ाने में अपना भरपूर सहयोग देते रहे हैं, का सेवाविस्तार बारबार बढ़ाए जाने को ले कर भी सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा सख्त रुख इख्तियार किया है.

सरकार ने मिश्रा का कार्यकाल एक बार फिर अक्तूबर 2023 तक बढ़ाने की कोशिश की थी, मगर शीर्ष कोर्ट ने अपने फैसले में इसे छांट कर 15 सितंबर मध्यरात्रि तक कर दिया है. वह भी इस वजह से कि सरकार की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया था कि- फाइनैंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स की समीक्षा प्रक्रिया के दौरान उन का पद पर बने रहना आवश्यक है और भारत के पड़ोसी देश लगातार प्रयास कर रहे हैं कि देश ग्रे सूची में चला जाए.

गौरतलब है कि इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ कर रही है. पीठ ने कहा, ‘सामान्य परिस्थितियों में ऐसे आवेदन पर विचार नहीं किया जाता. विशेष रूप से तब जब 17 नवंबर, 2021 और 17 नवंबर, 2022 को जारी आदेशों के माध्यम से संजय मिश्रा को दिए कार्यकाल विस्तार को गैरकानूनी करार दिया जा चुका है.’

संजय मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाने के केंद्र सरकार के अनुरोध पर कोर्ट ने बहुत तल्ख टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा, ‘क्या हम यह छवि पेश नहीं कर रहे हैं कि मिश्रा के अलावा और कोई नहीं है तथा पूरा विभाग अयोग्य लोगों से भरा पड़ा है? क्या यह विभाग का मनोबल तोड़ने जैसा नहीं है कि अगर एक व्यक्ति नहीं है तो विभाग काम नहीं कर सकता?’ न्यायमूर्ति गवई ने तो यहां तक कह दिया, ‘मैं भारत का प्रधान न्यायाधीश बनने वाला हूं, अगर मेरे साथ कुछ अप्रिय घटना हो जाए तो क्या सुप्रीम कोर्ट काम करना बंद कर देगा?’

पुलिस कस्टडी में अतीक-अशरफ की हत्या पर कोर्ट सख्त

सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल को प्रयागराज में लोकसभा के पूर्व सदस्य अतीक अहमद और उस के भाई अशरफ की पुलिस हिरासत में हुई हत्या पर उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार को भी फटकार लगाई है और साफ कहा है कि इस हत्याकांड में किसी की मिलीभगत है. शीर्ष अदालत के न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट्ट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा- ‘अतीक की सुरक्षा में 5 से 10 हथियारबंद पुलिसकर्मी थे, कोई कैसे आ कर गोली मार सकता है? ऐसा कैसे हो सकता है?’

अदालत ने कहा, ‘अहमद ब्रदर्स की हत्या में पुलिस की भूमिका हो सकती है, वरना हत्या करने वालों को कैसे पता कि अतीक और अशरफ को कहां ले जाया जा रहा है. किसी की मिलीभगत है.’ इस के साथ ही पीठ ने गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद की बहन आयशा नूरी की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को एक नोटिस जारी करते हुए 2017 के बाद हुई 183 पुलिस मुठभेड़ों पर स्थिति रिपोर्ट मांग ली है. पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को 6 सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिस में इन मुठभेड़ों का विवरण, जांच की स्थिति, दायर आरोपपत्र, गिरफ्तारियां और मुकदमे की स्थिति का विवरण होगा. इस से योगी सरकार की परेशानी भी बढ़ गई है.

बिलकिस बानो मामले में गुजरात कोर्ट को घेरा

2002 में गुजरात दंगों के दौरान मुसलिम महिला बिलकिस बानो का गैंगरेप किया गया था, जबकि वह 5 माह की गर्भवती थी. इस के साथ ही उस की आंखों के सामने उस के घर के 7 सदस्यों को दंगाइयों ने कत्ल कर डाला था. इस मामले में तब सीबीआई कोर्ट ने 11 लोगों को दोषी ठहराया था और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी. मगर गुजरात सरकार ने एक राहत कमेटी गठित कर उस की सिफारिश पर 2022 में 11 दोषियों की रिहाई करवा दी.

सरकार के फैसले को जब बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी तो कोर्ट ने गुजरात सरकार को आड़ेहाथों लिया. कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि जब बिलकिस बानो के दोषियों को सजा ए मौत से कम यानी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी तो 14 साल की सजा काट कर वे कैसे रिहा हो गए? इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सवालों की झड़ी लगा दी-

  • सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी वी नागरत्ना ने पूछा, इस मामले में दोषियों के बीच भेदभाव क्यों किया गया? यानी पौलिसी का लाभ अलगअलग क्यों दिया गया?
  • 14 साल की सजा के बाद रिहाई की राहत सिर्फ बिलकिस बानो के दोषियों को ही क्यों दी गई? बाकी कैदियों को क्यों नहीं इस का फायदा दिया गया? कोर्ट ने गुजरात सरकार से दोषियों को ‘चुनिंदा’ छूट नीति का लाभ देने पर सवाल उठाया और कहा कि तब तो सुधार और समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर हर कैदी को दिया जाना चाहिए. जब तमाम जेलें कैदियों से भरी पड़ी हैं, तो सुधार का मौका सिर्फ इन कैदियों को ही क्यों मिला?
  • सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से यह भी पूछा कि बिलकिस के दोषियों के लिए जेल एडवाइजरी कमेटी किस आधार पर बनी? और जब गोधरा की अदालत ने ट्रायल ही नहीं किया तो उस से राय क्यों मांगी गई?

दरअसल, बिलकिस के दोषियों को जेल से निकलवा कर सरकार अपनी दंगा आर्मी को संदेश देना चाहती थी कि हम बैठे हैं न बचाने के लिए. मगर सुप्रीम कोर्ट ने इस घिनौनी मंशा को ताड़ लिया. इस मामले में सुनवाई अभी जारी है.

पिछले कुछ महीनों से चीफ जस्टिस औफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ ने जिस दिलेरी से कानून के दायरे में सरकार की गलत नीतियों और आशाओं की धज्जियां उड़ाई हैं और उस को नसीहतें बांची हैं, उस से अन्य जजों की हिम्मत भी खुली है. जस्टिस चंद्रचूड़ के कार्यकाल में जो फैसले आए हैं वे लंबे समय तक याद रखे जाएंगे. इन फैसलों ने मोदी सरकार के सिस्टम को हिला दिया है. चुनाव में साम, दाम, दंड और भेद के नियम पर चल कर येकेनप्रकारेण सत्ता हथियाने के भगवा पार्टी के सपने को बड़ी ठेस पहुंची है.

चुनाव आयुक्त की नियुक्ति

शीर्ष पद पर अपनी नियुक्ति के कुछ ही महीनों बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने चुनाव आयोग को ले कर मोदी सरकार को साफ संदेश दे दिया था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों के अपौइंटमैंट का तरीका बिलकुल ठीक नहीं है. मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा चयनप्रक्रिया को खारिज कर कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का भी वही तरीका होना चाहिए जो सीबीआई चीफ की नियुक्ति का है. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बैंच ने अपने फैसले में कहा कि अब ये नियुक्तियां प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस की कमेटी की सिफारिश पर राष्ट्रपति करेंगे. अब तक मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति केंद्र सरकार करती थी.

सुप्रीम कोर्ट ने यह अवश्य कहा कि मौजूदा व्यवस्था तब तक जारी रहेगी जब तक संसद इस पर कानून न बना ले.

इसलिए मोदी सरकार 10 अगस्त को राज्यसभा में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक 2023 ले कर आ गई. मौजूदा विधेयक में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की एक प्रमुख बात को शामिल नहीं किया गया. मोदी सरकार की इस समिति में आयुक्तों के चयन के लिए प्रधानमंत्री हैं, लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं मगर चीफ जस्टिस औफ इंडिया का पत्ता साफ कर प्रधानमंत्री मोदी ने उन की जगह तीसरे सदस्य के तौर पर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री को शामिल कर लिया है. इस कैबिनेट मंत्री को भी प्रधानमंत्री ही मनोनीत करेंगे.

यह सुप्रीम कोर्ट को सरकार का उत्तर है. देखना है जब इस कानून की संवैधानिकता की परीक्षा कोर्ट द्वारा होगी तो सुप्रीम कोर्ट कौन से तर्क लाता है.

मुझे माफ कर दो सुलेखा : भाग 2

मेरी बात सुन कर प्रतीक ने बेचारा सा मुंह बना लिया तो मु   झे हंसी आ गई. सम   झ गए वे कि मैं भी उन्हें छेड़ ही रही हूं, इसलिए वे भी हंस पड़े और बोले, ‘‘वैसे, कोई कह नहीं सकता कि तुम एक युवा बेटे की मां हो. आज भी तुम पर कई लड़के लट्टू हो जाएंगे.’’

‘‘हूं. लेकिन तुम ही नहीं सम   झते मु   झे. घर की मुरगी दाल बराबर,’’ बोल कर जब मैं ने ठंडी आह भरी तो प्रतीक जोर से हंस पड़े और बोले, ‘‘नहीं भई, ऐसी कोई बात नहीं है, बल्कि मैं तो सुलेखा के अलावा किसी को देखता तक नहीं.’’

‘‘अच्छा, ज्यादा    झूठ मत बोलो,’’ मैं ने कुहनी मारते हुए कहा, ‘‘खूब जानती हूं तुम मर्दों को. सुंदर महिला दिखी नहीं कि बीवी को भूल जाते हो.’’ पतिपत्नी में नोक   झोंक तो चलती रहती है, क्योंकि अगर यह न हो तो जिंदगी का मजा ही नहीं है. लेकिन, पटना जाने को ले कर मैं बहुत ही ज्यादा ऐक्साइटेड थी.

शादी के इन 21 सालों में शायद ही कभी ठीक से मायके में रही होऊंगी. जब भी गई 4-6 दिनों से ज्यादा नहीं रही. मां कहती भी हैं, जब भी जाती हूं, बस, मुंह दिखा कर आ जाती हूं. लेकिन क्या करूं, यहां प्रतीक को भी तो अकेला नहीं छोड़ सकती न. वैसे, प्रतीक भी कहां मेरे बगैर रह पाते हैं, तभी तो मु   झे वहां नहीं छोड़ते और साथ लेते आते हैं. भाभीबहन छेड़ते भी हैं कि प्रतीक मु   झे बहुत प्यार करते हैं, इसलिए मु   झे कहीं छोड़ना नहीं चाहते. उन की बातों पर मैं शरमा जाती हूं. लेकिन, सच बात तो यह है कि मेरा भी उन के बिना मन नहीं लगता और यह बात मेरे मायके वाले अच्छे से जानते हैं.

‘‘क्या सोचने लग गईं?’’ प्रतीक ने मु   झे हिलाया तो मैं एकदम से हड़बड़ा गई. मैं ने उन्हें पटना ले जाने के लिए ‘थैंक यू’ कहा, तो बोले, ‘‘ऐसे थोड़े ही. इस के लिए तुम्हें मु   झे घूस देनी पड़ेगी.’’

‘‘घूस… तो अब आप घूस लेंगे? वह भी अपनी बीवी से? लेकिन, मैं ने तो सुना है कि बैंक वाले बड़े ईमानदार होते हैं,’’ बोल कर मैं हंस पड़ी तो प्रतीक भी हंसने लगे. जानती हूं इन की घूस, मतलब एक कप गरमागरम अदरक वाली चाय. सो, मैं बना कर ले आई और चाय पीतेपीते ही हम गप्पें मारने लगे.

अगले दिन शाम के 4 बजे हमारी फ्लाइट थी, इसलिए मैं घर का सारा काम समेट कर बाई को बुला कर उसे सारी सब्जियां और फ्रिज में रखे दूधदही वगैरह देते हुए बोली कि वह घर का खयाल रखे और पड़ोस से चाबी ले कर एकदो रोज में    झाड़ूपोंछा लगा जाए.

रास्तेभर मैं यह सोचसोच कर खुश हुए जा रही थी कि सब से मिलूंगी, मां के गले लगूंगी, पापा को देखूंगी और इस बार तो दादी के घर भी जाऊंगी. दादीदादा नहीं रहे पर वहां चाचाचाची तो हैं. ओह, कितना मजा आएगा न अपनों से मिल कर. वह गलीमहल्ला, जहां मेरा बचपन बीता. हमारा बगीचा, जिस में दूर तक फैले आम, बेर और बांस के पेड़, जहां मैं अपनी सखियों के साथ लुकाछिपी खेला करती थी, झूला झूलती थी.

मैं भूली नहीं हूं, कैसे पेड़ों पर कोयल, बुलबुल, तोते, गोरैया और कितने सारे पक्षियों का डेरा हुआ करता था. उन का कोलाहल मेरे मन को रोमांच से भर देता था. कैसे मैं उन पक्षियों की नकल उतारा करती थी.

वह सब याद कर मैं फिर से अपने बचपन में चली गई थी. मु   झे किसी बच्चे की तरह उतावले और चुलबुलाते देख प्रतीक मन ही मन मुसकराए जा रहे थे पर कुछ बोल नहीं रहे थे.

मैं ने दूर से ही देखा, एयरपोर्ट पर हमें लेने मम्मीपापा, भैयाभाभी सब आए थे. मां तो मु   झे देखते ही रोने लगी कि मैं कितनी दुबली हो गई हूं. हर मां को दूर रह रहा बच्चा दुबला ही लगता है. मां प्यार से मेरा चेहरा सहलाने लगी. पापा ने मु   झे अपने कलेजे से लगा लिया. भैया जा कर मेरी पसंद की मिठाई ले आए. उन्हें पता है कि मु   झे क्रीम चौप, जो कि बिहार की मिठाइयों में से एक है, बहुत पसंद है.

भाभी ने भी हमारे सत्कार में कोई कमी नहीं छोड़ी. बैंक की तरफ से औडिटर को रहनेखाने की सब सुविधा होती है पर हम मां के घर ही रुके थे. माला भी आई थी. देररात तक हम बातें करते रहे. सोचा था, मां के घर जा कर खूब सोऊंगी पर अपनों से मिलने की खुशी मु   झे सोने ही नहीं दे रही थी.

प्रतीक के मम्मीपापा अब इस दुनिया में नहीं रहे. मां तो पहले ही मर चुकी थी,

4 साल पहले उन के पापा भी चल बसे. बड़े भाई और उन के परिवार है, जो भागलपुर में ही रहते है. लेकिन उन्हें अब हम से कुछ लेनादेना नहीं रहा. पूछते भी नहीं कि हम कैसे हैं? प्रतीक ही फोन करते हैं तो बातें होती हैं, वरना वह भी नहीं.

खैर, जो भी हो, हैं तो वे हमारे अपने ही और लड़ाई   झगड़ा किस परिवार में नहीं होता? इस से रिश्ते थोड़े ही टूट जाते हैं? जब मैं ने प्रतीक को सम   झाया तो वे भागलपुर जाने के लिए राजी हो गए. हम तो ट्रेन से जाने की सोच रहे थे, मगर पापा और भैया कहने लगे कि ट्रेन का कोई ठिक?ाना नहीं रहता कि कितनी लेट आएगी और कब पहुंचाएगी. इस से अच्छा है कि हम बाई रोड चले जाएं.

सच कहें तो मेरा भी यही मन था. अपनी गाड़ी से सफर करने का मजा ही कुछ और होता है. सो, हम पापा की गाड़ी से भागलपुर के लिए निकल गए. ड्राइवर था तो कोई दिक्कत नहीं थी. तीनों ब्रांच का औडिट हो चुका था. लेकिन लास्ट ब्रांच में कुछ काम बाकी रह गया था, जिसे पूरा कर हम उधर से ही भागलपुर के लिए निकलने वाले थे. रास्ते में प्रतीक कहने लगे कि मैनेजर साहब अच्छे आदमी हैं, सपोर्ट कर रहे हैं, वरना, इतनी जल्दी औडिट नहीं हो पाता.

‘‘प्रतीक, आप का जो भी काम है कर आइए, तब तक मैं गाड़ी में ही बैठती हूं,’’ मैं ने कहा, लेकिन प्रतीक कहने लगे कि हो सकता है समय ज्यादा लग जाए, इसलिए मैं उन के साथ चलूं. मैं गाड़ी से उतर कर प्रतीक के पीछेपीछे यह सोच कर चल पड़ी कि गाड़ी में बैठ कर बोर होने से अच्छा है कि वहीं जा कर बैठूं. लेकिन जब मैं ने मैनेजर की कुरसी पर नवीन को बैठे देखा तो सन्न रह गई. मु   झे तो जैसे काठ मार गया.

फटीफटी निगाहों से मैं उसे देखने लगी और वह भी, जो कुरसी पर बैठा था, मु   झे यों अचानक अपने सामने देख हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ. ‘नवीन… और यहां तो क्या यही इस ब्रांच का मैनेजर है और प्रतीक इसी की बात कर रहे थे?’

‘‘प्रतीक, मैं गाड़ी में ही बैठती हूं…’’ कह कर मैं    झटके से मुड़ी ही थी कि प्रतीक ने मेरा हाथ पकड़ लिया. ‘‘बस जरा सा ही काम है, साथ चलते हैं न,’’ आंखों के इशारे से प्रतीक ने कहा तो मैं ठिठक कर वहीं खड़ी रह गई. लेकिन बता नहीं सकती कि उस पल में मैं एक सदी का दर्द    झेल रही थी. जो इंसान मु   झे अपने सपने में भी गवारा नहीं था, उसे प्रत्यक्ष अपने सामने देख मेरा कलेजा जल रहा था. गुस्सा तो मु   झे प्रतीक पर आ रहा था कि वे मु   झे यहां लाए ही क्यों.

हमारा परिचय कराते हुए प्रतीक बोले, ‘‘इन से मिलो, ये हैं इस ब्रांच के मैनेजर साहब, नवीन मिश्रा और ये हैं मेरी पत्नी, जीवनसंगिनी सुलेखा. वैसे, नवीन साहब, शायद आप नहीं जानते होंगे पर मेरी पत्नी एक लेखिका हैं. भई, बड़ा नाम है इन का,’’ मु   झे अपने कंधे से सटा कर प्रतीक बोले तो नवीन उन का मुंह ताकने लगा.

‘‘अरे, मैनेजर साहब, मेरी पत्नी की लिखी रचनाएं पूरी दुनिया में छपती हैं.’’

प्रतीक की बात सुन नवीन मु   झे भौचक्का सा देखने लगा. उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि प्रतीक जो बोल रहे हैं, सही है और जिसे वह एक मामूली लड़की सम   झ कर नकार चुका था, आज वह अपने नाम से जानी जाती है.

प्रतीक फाइलों पर साइन करते रहे और नवीन चोर नजरों से मु   झे देखता रहा. मैसेंजर टेबल पर चाय और बिस्कुट रख गया. मु   झे कुछ खानेपीने का मन नहीं हो रहा था. लग रहा था कि जल्दी यहां से निकलूं क्योंकि यहां मेरा दम घुट रहा था और नवीन जिस तरह से मु   झे देख रहा था, वह भी मु   झे अच्छा नहीं लग रहा था.

मैं जाने के लिए उठी ही थी कि प्रतीक कहने लगे, ‘‘बस और थोड़ी देर.’’

लेकिन अब मु   झे यहां एक पल भी नहीं रुकना था, सो मैं बाथरूम जाने का बहाना बना कर बाहर निकल आई और प्रतीक के आने का इंतजार करने लगी.

कुछ देर बाद प्रतीक के साथ नवीन भी बाहर आया तो मैं जा कर गाड़ी में बैठ गई और गाड़ी का शीशा ऊपर चढ़ा कर यों ही मोबाइल चलाने लगी. मैं अंदर से ही देख रही थी, बात तो वह प्रतीक से कर रहा था पर उस की नजरें मेरी तरफ ही थीं. मु   झे गुस्सा प्रतीक पर आ रहा था कि कर क्या रहे हैं इतनी देर तक. शायद प्रतीक ने मेरे मन की बात को भांप लिया.

नवीन से हाथ मिला कर वे गाड़ी में आ कर बैठ गए. अगर ड्राइवर न होता तो जरूर पूछती कि मु   झे वहां ले कर क्यों गए? लेकिन फिर लगा, उन्हें क्या पता मेरे अतीत के बारे में.

‘‘अरे, क्या हुआ, चली क्यों आईं?’’ मेरे बगल में बैठते हुए प्रतीक बोले, ‘‘पता है तुम्हें, मैनेजर साहब तो अपनी ही बिरादरी के निकले.’’

कौन हारा : भाग 2

‘मैं ने तो सोच लिया है. तुम्हें सोचसमझ कर फैसला करना है. मुझे जल्दी नहीं है,’ सुधीर धीरे से मुसकराए थे.

‘पर मुझे है क्योंकि मेरी मां घर आए रिश्तों में से किसी को जल्दी ही ‘हां’ कहने वाली हैं,’ वैशाली शोख निगाहों से देखती मुसकराई थी.

‘ओह, तब तो फिर मुझे ही जल्दी कुछ करना होगा,’ उस के अंदाज पर वैशाली को हंसी आ गई थी.

दोनों जल्दी ही परिणयसूत्र में बंध गए थे. सारे शहर में इस विवाह की चर्चा रही और शायद उन के बीच बनने वाली दूरियों की नींव यहीं से पड़ गई थी. सुर्ख लहंगे, गहनों की चमक और मन की खुशी ने वैशाली की खूबसूरती में चार चांद लगा दिए थे लेकिन उस के सामने सुधीर का व्यक्तित्व फीका पड़ रहा था. कुछ दोस्त ईर्ष्या छिपा नहीं पा रहे थे. ‘यार, किस्मत खुल गई तेरी तो, ऐसी खूबसूरत पत्नी? काश, हमारा नसीब भी ऐसा होता.’

तो कुछ दबी जबान से उस का मजाक भी उड़ा रहे थे, ‘हूर के पहलू में लंगूर’, और ‘कौए की चोंच में मोती’ जैसे शब्द भी उस के कान में पिघले शीशे की तरह उतर कर शादी के उत्साह को फीका कर गए थे.

शादी के बाद भी वैशाली आफिस जाती थी. सुधीर को भी उस की सहायता की जरूरत रहती थी. शहर के बड़े लोगों की पार्टियों में भी उन की उपस्थिति जरूरी समझी जाती थी. हालांकि वैशाली का संबंध मध्यम वर्ग से था लेकिन उस ने बहुत जल्दी ही ऊंचे वर्ग के लोगों में उठनाबैठना सीख लिया था. एक तो वह पहले से ही खूबसूरत थी उस पर दौलत व शोहरत ने उस पर दोगुना निखार ला दिया था. अच्छे कपड़ों, गहनों की चमक के साथ सुख और संतोष ने उस के चेहरे पर अजीब सी कशिश पैदा कर दी थी. मेकअप का सलीका, बातचीत का ढंग, चलनेबैठने में नजाकत, सबकुछ तो था उस में. लोग उस की तारीफ करते, उस के आसपास मंडराते और लोगों की निगाहों में अपने लिए तारीफ देख वह चहकती, खिलखिलाती घूमती. उसे इन सब बातों का नशा सा होने लगा था. कई दिनों तक कोई पार्टी नहीं होती तो वह अजीब सी बेचैनी महसूस करती.

‘कई दिनों से कोई पार्टी ही नहीं हुई. क्यों न हम ही अपने यहां पार्टी रख लें,’ वह सुधीर से कहती तो सुधीर संयत स्वर में उसे मना कर देता था.

वैशाली समझ नहीं पा रही थी कि पार्टियों में लोग उस की तारीफ करते हैं और उस के चारों तरफ मंडराते हैं वहीं दूसरी ओर सुधीर खुद को उपेक्षित महसूस कर हीनभावना में डूब जाता है और फिर उस का दिल पार्टी में नहीं लगता था. पिछले दिनों ऐसी ही किसी पार्टी में दोनों निमंत्रित थे. गहरी नीली शिफान की खूबसूरत सी साड़ी और सितारों से बनी चमकदार चोली और मैचिंग ज्वेलरी से सजी सब के आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी.

‘वाह, क्या बात है. लगता ही नहीं कि आप 1 बच्चे की मां हैं और आप की शादी को 6 साल हो गए हैं. क्या राज है आप की खूबसूरती का?’ मिसेज चंदेल वैशाली से पूछ रही थीं.

‘इन का क्या है, ये तो एवरग्रीन हैं. इस का क्या राज है जरा हमें भी तो बताएं,’ मिसेज शर्मा मन में ईर्ष्या के साथ पूछ रही थीं.

‘अरे, राज की क्या बात है. नो टेंशन, सुकून की जिंदगी और भरपूर नींद, बस,’ वैशाली मन ही मन खुश होती बोली.

‘केवल इतना? यानी नो एक्सरसाइज, नो डायटिंग, न पार्लर के चक्कर?’ मिसेज चंदेल हैरान थीं.

‘अरे, और क्या?’ वैशाली साफ झूठ बोल गई. हालांकि अपनी खूबसूरती में चारचांद लगाए रखने के लिए वह नियम से महंगे ब्यूटीपार्लर में जाती थी. कम कैलोरी वाला संतुलित खाना और एक्सरसाइज सबकुछ उस के दैनिक जीवन में शामिल था.

‘किस्मत वाले हैं सुधीरजी, जो ऐसी खूबसूरत बीवी मिली.’

‘पता नहीं क्या देख कर शादी कर ली वैशाली ने सुधीर से?’

‘अरे, मर्दों का पैसा और साख देखी जाती है. बाकी बातों से क्या फर्क पड़ता है?’ ऐसी ही कुछ बातें चल रही थीं महिला मंडली में, जहां उस का ध्यान भी नहीं गया कि कब करीब से गुजर रहे सुधीर के कानों में ये बातें पड़ गईं और वह तरसता रह गया कि कब वैशाली उन को ऐसी बातों के लिए झिड़क दे या उस की तारीफ में कुछ कहे. और ऐसी ही बातों पर कई दिनों तक सुधीर का मूड उखड़ा ही रहता था.

जब वैशाली की दूसरी संतान के रूप में एक बेटी ने जन्म लिया तो उस ने चैन की सांस ली थी वरना उस का दिल धड़कता रहता था कि कहीं बच्चे पिता जैसी शक्लसूरत के हो गए तो…

बेटी के जन्म के कुछ समय बाद जब वैशाली आफिस जाने के लिए तैयार हुई तो सुधीर ने उसे मना कर दिया कि अब तुम घर रह कर ही बच्चों की देखभाल करो.

‘अरे, आया है न इस काम के लिए,’ वैशाली घर रुकने को तैयार नहीं थी.

‘पर मां से अच्छी देखभाल कोई नहीं कर सकता. दुनिया की तमाम स्त्रियां अपने बच्चों की देखभाल खुद करती हैं,’ सुधीर ने समझाया.

‘पर वे निचली, मिडिल क्लास की औरतें होती हैं,’ वैशाली जिद पर अड़ी थी.

‘तुम भी तो कभी उसी क्लास से आई थीं,’ सुधीर झुंझला कर कह गया.

बिन घुंघरू की पायल : भाग 2

भाभी ने लाख सेवा की. भैया ने डाक्टरों को दिखाने में कोई कमी न की पर उन्हें जाना था, सो चली गईं. रुन?ान कुछ दिन बहुत उदास रही, फिर धीरेधीरे सब ठीक हो गया. भाभी के फिर बच्चा होने वाला था. नए भाईबहन के आने के एहसास से पायल बहुत खुश थी. फिर वह दिन भी आ गया जिस का सब को इंतजार था पर कितना दुखद दिन था वह. भाभी अस्पताल से वापस न आ पाईं. केस बिगड़ गया था. डाक्टर न बच्चे को बचा पाए, न भाभी को. 5 साल की उस अबोध बच्ची को मैं अपने पास ले आई थी. उस के पैरों में बंधी पायल, जो भाभी मरने से कुछ दिनों पहले ही लाई थीं, की रुन?ान में मैं कभी मां को और कभी निशा भाभी को ढूंढ़ने की कोशिश करने लगती. भाभी की पायल और मां की रुन?ान को मैं ने स्नेह और प्यार की डोर में इस कदर बांध लिया था कि वह एक हद तक उन्हें भूल गई थी. भैया को देख कर दिल में टीस सी उठती. भरी दोपहरी में अकेले जो रह गए थे.

2 साल में 2 सदमे सहे थे, इसलिए टूट से गए थे. काफी समय से मेरे पति का विदेश जाने का प्रस्ताव विचाराधीन था. अब सरकार की ओर से उन्हें 5 साल के लिए कनाडा भेजा जा रहा था. मैं ने भैया से पायल को भी अपने साथ ले जाने की स्वीकृति चाही. तब वे इतना ही कह पाए थे, ‘‘पायल निशा की आखिरी निशानी है. इतनी दूर चली जाएगी तो इसे देखे बिना मैं कैसे जी पाऊंगा?’’ उन के दिल का दर्द इन चंद शब्दों में सिमट कर आ गया था. फिर मैं पायल को ले जाने की जिद नहीं कर पाई थी. 5 साल हम कनाडा में रहे. इस बीच भैया के पत्र आते रहे. भैया ने दूसरा विवाह कर लिया था.

पायल के 2 छोटेछोटे भाई हो गए थे. 5 साल बाद जब स्वदेश लौटने का समय आया तो मन में सब से बड़ी इच्छा पायल को देखने की थी. वह गोलमटोल गुडि़या अब कैसी लगती होगी? उसे मेरी याद भी होगी या नहीं? ऐसे ही न जाने कितनी बातें रास्तेभर सोचती रही थी. मुंबई पहुंचने के बाद सब से पहले भैया के पास दिल्ली जाने का फैसला किया. भैया को आश्चर्य में डालने के लिए बिना सूचना के ही दिल्ली पहुंच गए. जुलाई की उमसभरी दोपहरी में दिल्ली तप रही थी. भैया के घर पहुंच कर द्वार पर दस्तक दी. जो शायद कूलर की आवाज में ही दब कर रह गई. दरवाजा अंदर से बंद नहीं था. हाथ से ठेलते ही खुल गया. रसोईघर से पानी गिरने की आवाज आ रही थी. सोचा, भाभी वहीं होंगी, सो सीधी वहीं चली गई. एक दुबलीपतली 11-12 साल की लड़की मैली सी फ्रौक पहने नल के पास बैठी बरतन धो रही थी. मु?ो अचानक देख कर जल्दी से हाथ धो कर खड़ी हो गई.

 

पिया बावरा : भाग 2

बच्चे क्या जानें कि वीणा सुहानी को ले कर कितनी हिंसक हो उठी थी. एक दिन गुस्से में  उस ने कहा भी था, ‘आप अगर सोचते हैं कि मैं आप से तलाक ले लूंगी और आप मजे से उस से शादी कर लेंगे तो मैं आप को याद दिला दूं कि मैं उस बाप की बेटी हूं जो अपनी जिद के लिए कुछ भी कर सकती है. मेरे एक इशारे पर आप की वह प्रेमिका कहां गायब हो जाएगी पता भी नहीं चलेगा.’

वीणा की धमकियां जैसेजैसे बढ़ रही थीं वैसेवैसे सुभाष की घबराहट भी बढ़ रही थी…वे अच्छी तरह जानते थे कि इस आयु में बड़ेबड़े बच्चों के सामने पत्नी को तलाक देना या दूसरा विवाह करना उन के लिए सरल न होगा. पर सुहानी को वीणा सताए यह भी उन्हें स्वीकार नहीं था. इसलिए ही उन्होंने सुहानी से कहा था कि वह जितनी जल्दी हो सके यहां से लंबे समय के लिए कहीं दूर चली जाए.

अगले दिन सुहानी को नर्सिंग होम में न देख कर वीणा बोली थी, ‘उसे भगा दिया न. क्या मैं उसे खोज नहीं सकती. पाताल से भी खोज कर उसे अपनी राह से हटाऊंगी. तुम समझते क्या हो अपनेआप को.’

‘इतनी नफरत किस काम की,’ गुस्से से डा. सुभाष ने कहा था, ‘क्या इस उम्र में मैं दूसरी शादी कर सकता हूं.’

‘प्यार तो कर रहे हो इस उम्र में.’

‘नहीं, किसी ने गलत खबर दी है.’

‘किसी ने गलत खबर नहीं दी,’ वीणा फुफकारती हुई बोली, ‘मैं ने स्वयं आप का पीछा कर के अपनी आंखों से आप दोनों को एकदूसरे की बांहों में सिमटते देखा है.’

डा. सुभाष स्तब्ध थे, कितनी तेज है यह औरत. घबरा कर कहा, ‘अपने बच्चों को भी तो हम किसी अच्छी बात पर प्यार कर लेते हैं.’

‘शर्म नहीं आती तुम को इतना झूठ बोलते हुए,’ वीणा के अंदर का झंझावात बुरी तरह उफन रहा था.

उस दिन पत्थर तोड़ते हुए हीरा ने कहा, ‘‘डाक्टर आप चाहते तो बच सकते थे. आप ने बीवी की कार का पीछा क्यों किया. अच्छेभले नर्सिंग होम में बैठे रहते तो बच जाते.’’

‘‘मैं बहुत डरा हुआ था, क्योंकि वीणा के पिता के आदमी उस की सुरक्षा में लगे हुए थे. शायद हत्या की सुपारी लेने वाला अपना काम न कर पाता,’’ हीरालाल की सहानुभूति पा कर

डा. सुभाष ने भी बोल दिया.

‘‘उस के आदमी चारों तरफ सुरक्षा में फैले रहते हैं. तभी तो आप आसानी से अंदर हैं.’’

मां का घर : भाग 2

लगभग 2 घंटे बाद अजय भैया का फोन आया. फोन पर भैया ने जो कहा, सुन कर सुप्रिया के चेहरे का रंग बदलने लगा. पूजा उस के और पास चली आई. सुप्रिया ने पूरी बात सुन कर जैसे ही फोन रखा, पूजा ने उसे झकझोरा, ‘‘बता न सुप्रिया, अजय भैया ने क्या कहा?’’

सुप्रिया सोफे पर ढह गई. उस ने आंखें बंद कर लीं. पूजा ने चीखते हुए पूछा, ‘‘सुप्रिया, मां को कुछ हुआ तो नहीं?’’

सुप्रिया ने किसी तरह अपने को संभालते हुए कहना शुरू किया, ‘‘पूजा, तुम्हें यह खबर सुनने के लिए अपने को कंट्रोल करना होगा. सुनो…भैया बैंक गए थे. वहां पता चला कि अनुराधाजी ने पिछले महीने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया. तुम्हारी शादी और पढ़ाई के लिए उन्होंने बैंक से लोन लिया था, अपना फ्लैट बेच कर उन्होंने कर्ज चुका दिया और शायद उन्हीं बचे पैसों से तुम्हें 5 लाख रुपए भेजे.’’

पूजा की आंखें बरसने लगीं, ‘‘मां ने ऐसा क्यों किया? वे हैं कहां, सुप्रिया?’’

सुप्रिया ने धीरे से कहा, ‘‘वे अपनी मरजी से कहीं चली गई हैं, पूजा…’’

‘‘कहां?’’

दोनों सहेलियों के पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि मां कहां गईं. सुप्रिया ने पूजा के बालों में हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘मैं जहां तक तुम्हारी मां को जानती हूं वे संतुलित और आत्मविश्वासी महिला हैं. तुम्हारे पिताजी की मृत्यु के बाद जिस तरह से उन्होंने खुद को और तुम्हें संभाला वह तारीफ के काबिल है. तुम्हीं ने बताया था कि तुम्हारे ताऊजी और दादी ने मां से कहा था कि वे तुम्हारे चाचा से शादी कर लें…पर मां ने यह कह कर मना कर दिया था कि वे अपनी बेटी को खुद पाल सकती हैं. उन्होंने किसी से 1 रुपए की मदद नहीं ली.’’

पूजा ने हां में सिर हिलाया और बोली, ‘‘इस के बाद दादी और ताऊजी हम से मिलने कभी नहीं आए. मेरी शादी में भी नहीं.’’

सुप्रिया ने अचानक पूछा, ‘‘पूजा, तुम्हें याद है, हम जब 10वीं में थे तो एक दिन तुम मेरे घर रोती हुई आई थीं मुझे यह बताने कि तुम्हारी मां कहीं और शादी कर रही हैं और तुम ऐसा नहीं चाहतीं.’’

पूजा का चेहरा पीला पड़ गया. उस घटना ने तो पूजा को तोड़ ही दिया था. पूजा को हलकी सी याद है समीर अंकल की. मां के साथ बैंक में काम करते थे. हंसमुख और मिलनसार. जिस समय पापा गुजरे, मां की उम्र 35 साल से ज्यादा नहीं थी. मां बिलकुल अकेली थीं. न ससुराल से कोई उन से मिलने आता न मायके से. मायके में एक बड़ी और बीमार दीदी के अलावा दूसरा कोई था भी नहीं.

समीर अंकल कभीकभी घर आते. मां और उसे पिक्चर दिखाने या रेस्तरां में ले जाते. वह मुंबई में अकेले रहते थे. मां ने ही कभी बताया था पूजा को कि बचपन में वे पोलियो का शिकार हो गए थे. एक पांव से लंगड़ा कर चलते थे. कभी शादी नहीं की यह सोच कर कि एक अपंग के साथ कोई कैसे निर्वाह करेगा. मां की तरह उन्हें भी शास्त्रीय गायन का बहुत शौक था. जब भी वे घर आते, मां के साथ मिल कर खूब गाते, कभी ध्रुपद तो कभी कोई गजल.

उसी दौरान एक दिन जब मां ने एक रात 15 साल की पूजा के सिर पर हाथ फेरते हुए प्यार से कहा था, ‘पूजा, मेरी गुडि़या, हर बच्चे को जिंदगी में मांपिताजी दोनों की जरूरत होती है. मैं भी तेरी उम्र की थी, जब मेरे पापा गुजर गए थे. मैं चाहती हूं कि तुझे कम से कम इस बात की कमी न खटके. पूजा, मेरी बच्ची, समीर तेरे पापा बनने को तैयार हैं…अगर तू चाहे…’

पूजा बिफर कर उठ बैठी थी और जोर से चिल्ला पड़ी थी, ‘मां, तुम बहुत बुरी हो. मुझे नहीं चाहिए कोई पापावापा. तुम बस मेरी हो और मेरी रहोगी. मैं समीर अंकल से नफरत करती हूं. उन को कभी यहां आने नहीं दूंगी.’

सुप्रिया ने तब पूजा को समझाया था कि जब समीर अंकल मां को अच्छे लगते हैं, उस का भी खयाल रखते हैं तो वह मां की शादी का विरोध क्यों कर रही है?

‘मैं मां को किसी के साथ बांट नहीं सकती, सुप्रिया. समीर अंकल के आते ही मां मुझे भूल जाएंगी. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी.’

इस के बाद सब शांत हो गया. मां ने कभी समीर अंकल की बात उठाई ही नहीं. जिंदगी पुराने ढर्रे पर आ गई. बस, समीर अंकल का उन के घर आना बंद हो गया. बाद में उस ने मां को किसी से फोन पर कहते सुना था कि समीरजी की तबीयत बहुत खराब हो गई है और वे कहीं और चले गए हैं.

पूजा ने सिर उठाया, ‘‘सुप्रिया, लेकिन मां के गायब होने का इस बात से क्या संबंध है?’’

सुप्रिया ने सिर हिलाया, ‘‘पता नहीं पूजा, लेकिन भाई कह रहे थे कि अनुराधाजी ने कई दिन से अपना घर बेचने और नौकरी छोड़ने की योजना बना रखी थी. अचानक एक दिन में कोई ऐसा नहीं करता. तुम बताओ कि तुम्हारी शादी के बाद वे यहां क्यों नहीं आईं?’’

‘‘मां हमेशा कहती थीं कि मैं तुम्हारी शादीशुदा जिंदगी में दखल नहीं दूंगी. तुम्हारी अपनी जिंदगी है, अपनी तरह से चलाओ.’’

‘‘हुंह, यह भी तो हो सकता है न पूजा कि वे तुम्हें अकेले रहने का मौका दे रही हों? तुम आज तक उन से अलग नहीं रहीं, यह पहला मौका है. वे हर बार तुम से पूछती थीं कि तुम खुश तो हो?’’

पूजा सोच में डूब गई. जिस दिन शादी के बाद वह दिल्ली के लिए निकल रही थी, मां अपने कमरे से बाहर ही नहीं आईं. टे्रन का समय हो गया था और उसे मां से बिना मिले ही निकलना पड़ा. रास्ते भर वह सोचती रही कि मां ने ऐसा क्यों किया? उस के टे्रन में बैठते ही मां का फोन आ गया कि उन्हें चक्कर सा आ गया था. शादी के कामों में वे बुरी तरह थक गई थीं. पूजा का मन हुआ कि मां के पास वापस लौट जाए, लेकिन जब बगल में बैठे पति सुवीर ने प्यार से उस का हाथ दबाया, तो सबकुछ भूल कर वह नई जिंदगी के सपनों की झंकार से ही रोमांचित हो गई.

पुनर्जन्म : भाग 2

‘‘यही सब सोच कर तो मैं शादी नहीं करना चाहती, लेकिन तेरा यह कहना भी ठीक है कि पैसे से तो उन लोगों की मदद हमेशा की जा सकती है.’’

‘‘मैं आप को इंटरनेट पर उपलब्ध…’’

‘‘थोड़ा सब्र कर, ऋचा,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘उस से पहले मुझे स्वयं को किसी नितांत अजनबी के साथ जीने के लिए मानसिक रूप से तैयार करना होगा और मुझे यह भी मालूम नहीं है कि मेरी उस से क्या अपेक्षाएं होंगी या व्यक्तिगत जीवन में मेरी अपनी मान्यताएं क्या हैं? इन सब के लिए चिंतन की आवश्यकता है.’’

‘‘और उस के लिए एकांत की, जो आप को दफ्तर और घर की जिम्मेदारियों के चलते तो मिलने से रहा. आप लंबी छुट्टी ले कर या तो सुदूर पहाडि़यों में या समुद्रतट पर एकांतवास कीजिए.’’

‘‘सुझाव तो अच्छा है, सोचूंगी.’’

‘‘मगर आज ही रात को,’’ ऋचा ने जिद की.

शिखा ने सोचा जरूर लेकिन अपनी पिछली जिंदगी के बारे में. पापा बैंक अधिकारी थे लेकिन चाहते थे कि उन के बच्चे उन से बढ़ कर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बनें. शिखा का तो प्रथम प्रयास में ही चयन हो गया. ऋचा ने हाईस्कूल में ही बता दिया था कि उस की रुचि जीव विज्ञान में है और वह डाक्टर बनेगी. पापा ने सहर्ष अनुमति दे दी थी. मां के लाड़ले यश का दिल पढ़ाई में नहीं लगता था फिर भी पापा के डर से पढ़ रहा था लेकिन पापा के जाते ही उस ने पढ़ाई छोड़ कर अनुकंपा में मिली बैंक की नौकरी कर ली.

मां ने भी उस का यह कह कर साथ दिया कि वह तेरा हाथ बटाना चाह रहा है शिखा, बैंक की प्रतियोगी परीक्षाएं दे कर तरक्की भी करता रहेगा, लेकिन हाथ बटाने के बजाय यश ने अपना भार भी उस पर डाल दिया था. जहां उस की नियुक्ति होती थी, वहीं यश भी अपना तबादला करवा लेता था आईएएस अफसर बहन का रोब डाल कर. तरक्की पाने की न तो लालसा थी और न ही जरूरत, क्योंकि शिखा को मिलने वाली सब सुविधाओं का उपभोग तो वही करता था.

यश और उस के परिवार की जरूरतों के लिए मां शिखा को उसी स्वर में याद दिलाया करती थीं जिस में वह कभी पापा से घर के बच्चों की जरूरतें पूरी करने को कहती थीं यानी मां के खयाल में यश का परिवार शिखा का उत्तरदायित्व था. शिखा को इस से कुछ एतराज भी नहीं था. उस की अपनी इच्छाएं तो सूरज से बिछुड़ने के साथ ही खत्म हो गई थीं. उसे यश या उस के परिवार से कोई शिकायत भी नहीं थी, बस, बीचबीच में पापा के अंतिम शब्द, ‘जब ये दोनों अपने घरपरिवार में व्यवस्थित हो जाएंगे तो तू अकेली क्या करेगी, बेटी? जिन सपनों की तू ने आज आहुति दी है उन्हें पुनर्जीवित कर के फिर जीएगी तो मेरी भटकती आत्मा को शांति मिल जाएगी. जिस तरह तू मेरी जिम्मेदारियां निभाने को कटिबद्ध है, उसी तरह मेरी अंतिम इच्छा पूरी करने को भी रहना,’ याद आ कर कचोट जाते थे.

ऐसा ही कुछ सूरज ने भी कहा था, ‘जिस तरह अपने परिवार के प्रति तुम्हारा फर्ज तुम्हें शादी करने से रोक रहा है उसी तरह अपने मातापिता की इच्छा के विरुद्ध कुछ साल तक तुम्हारी जिम्मेदारियां पूरी होने के इंतजार में शादी न करने के फैसले पर मैं चाह कर भी अडिग नहीं रह पा रहा. कैसे जी पाऊंगा किसी और के साथ, नहीं जानता, लेकिन फिलहाल दफ्तर और घर के दायित्व निभाने में मेरा और तुम्हारा समय कट ही जाया करेगा लेकिन जब तुम दायित्व मुक्त हो जाओगी तब क्या करोगी, शिखा? मैं यह सोचसोच कर विह्वल हो जाया करूंगा कि तुम अकेली क्या कर रही होगी.’

‘फुरसत से तुम्हारी यादों के सहारे जी रही हूंगी और क्या?’

‘जीने के लिए यादों के सहारे के अलावा किसी अपने के सहारे की भी जरूरत होती है. मैं तो खैर सहारे के लिए नहीं मांबाप की जिद से मजबूर हो कर शादी कर रहा हूं लेकिन तुम जीवन की सांध्यवेला में अकेली मत रहना. मेरे सुकून के लिए शादी कर लेना.’

यश के परिवार के रहते अकेली होने का तो सवाल ही नहीं था लेकिन घर में अपनेपन की ऊष्मा ऋचा के जाते ही खत्म हो गई थी और रह गया था फरमाइशों और शिकायतों का अंतहीन सिलसिला. शिकायत करते हुए यश और मां को अपनी फरमाइश की तारीख तो याद रहती थी लेकिन यह पूछना नहीं कि शिखा किस वजह से वह काम नहीं कर सकी.

वैसे भी लगातार काम करतेकरते वह काफी थक चुकी थी और छुट्टियां भी जमा थीं सो उस ने सोचा कि कुछ दिन को कहीं घूम ही आएं. उस की सचिव माधवी मेनन जबतब केरल की तारीफ करती रहती थी, ‘तनमन को शांति और स्फूर्ति से भरना हो तो कभी भी केरल जाने पर ऐसा लगेगा कि आप का पुनर्जन्म हो गया है.’

अगले रोज उस ने माधवी से पूछा कि वह काम की थकान उतारने को कुछ दिन शोरशराबे से दूर प्रकृति के किसी सुरम्य स्थान पर रहना चाहती है, सो कहां जाए?

‘‘वैसे तो केरल में ऐसी जगहों की भरमार है,’’ माधवी ने उत्साह से बताया, ‘‘लेकिन आप को त्रिचूर का अथरियापल्ली वाटरफाल बहुत पसंद आएगा. वहां वन विभाग का सभी सुखसुविधाओं से युक्त गेस्ट हाउस भी है. तिरुअनंतपुरम के अपने आफिस वाले त्रिचूर के जिलाध्यक्ष से कह कर आप के रहने का प्रबंध करवा देंगे.’’

‘‘लेकिन वहां तक जाना कैसे होगा?’’

‘‘तिरुअनंतपुरम तक प्लेन से, उस के बाद आप को एअरपोर्ट से अथरियापल्ली तक पहुंचाने की जिम्मेदारी अपने आफिस वालों की होगी. आप अपने जाने की तारीख तय करिए, बाकी सब व्यवस्था मुझ पर छोड़ दीजिए.’’

लंच ब्रेक में ऋचा का फोन आया.

‘‘हां भई, छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया है केरल जाने को,’’ शिखा ने उसे सब बताया.

‘‘लेकिन घर वालों के लिए आप छुट्टी पर नहीं टूर पर जा रही हैं दीदी, वरना सभी आप के साथ केरल घूमने चल पड़ेंगे,’’ ऋचा ने आगाह किया.

ऋचा का कहना ठीक था. सब तैयारी हो जाने से एक रोज पहले उस ने सब को बताया कि वह केरल जा रही है.

‘‘केरल घूमने तो हम सब भी चलेंगे,’’ शशि ने कहा.

‘‘मैं केरल प्लेन से जा रही हूं सरकारी गाड़ी से नहीं, जिस में बैठ कर तुम सब मेरे साथ टूर पर चल पड़ते हो.’’

‘‘हम क्या प्लेन में नहीं बैठ सकते?’’ यश ने पूछा.

‘‘जरूर बैठ सकते हो मगर टिकट ले कर और फिलहाल मेरा तो कल सुबह 9 बजे का टिकट कट चुका है,’’ कह कर शिखा अपने कमरे में चली गई.

अगली सुबह सब के सामने ड्राइवर को कुछ फाइलें पकड़ाते हुए उस ने कहा, ‘‘मुझे एअरपोर्ट छोड़ कर, मेहरा साहब के घर चले जाना, ये 2 फाइलें उन्हें दे देना और ये 2 आफिस में माधवी मेनन को.’’

प्लेन में अपनी बराबर की सीट पर बैठी युवती से यह सुन कर कि वह एक प्रकाशन संस्थान में काम करती है और एक लेखक के पास एक किताब की प्रस्तावना पर विचारविमर्श करने जा रही है, शिखा ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अपने यहां लेखकों को कब से इतना सम्मान मिलने लगा?’’

न उम्र की सीमा हो : भाग 2

विकास के दिल की भी यही हालत थी. वह भी चाहता था रातदिन नलिनी के साथ रहे. वह नलिनी के प्रेम में पूरी तरह डूब चुका था और नलिनी उस के.

फिर एक दिन विकास ने नलिनी के सामने विवाह का प्रस्ताव भी रख दिया और उसे समझाया कि तुम्हारी मम्मी बाद में भी हमारे साथ रह सकती हैं. अब तुम उन से बात कर लो.

जब नलिनी ने अपनी मां से इस विवाह की बात की तो उन्होंने तूफान खड़ा कर दिया. ऐसीऐसी बातें कीं, जिन्हें सुन कर नलिनी को शर्म आ गई. उन्होंने उसे अधेड़ कुंआरी मान लिया था. दोनों बेटे विदेश में थे, कुसुम की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी, वे अपने भविष्य की सुखसुविधाओं के लिए नलिनी के विवाह के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी.

नलिनी मां को समझासमझा कर थक गई कि विवाह के बाद भी उन का ध्यान रखेगी, लेकिन वे टस से मस नहीं हुईं और रोरो कर इतना तमाशा किया कि नलिनी ने ही हार मान ली.

विकास ने यह सब सुना तो बहुत दुखी हुआ. वह उन के मन बदलने का इंतजार करने के लिए तैयार था. औफिस में पूरा दिन दोनों उदास रहे. कुछ समझ नहीं आ रहा था.

शाम को विकास ने नलिनी को उदास व गंभीर देख कर कहा, ‘‘चलो, वीकैंड पर काशिद बीच घूम आते हैं. कुछ मन बहल जाएगा. सोचते हैं, क्या कर सकते हैं.’’

थोड़े संकोच के बाद नलिनी तैयार हो गई. वह कब तक अपनी इच्छाओं को दबाए? क्या वह अपने लिए कभी नहीं जी पाएगी? वह विकास के साथ खुशीखुशी घूम कर आएगी.

शनिवार को निकलना था, शुक्रवार की रात उसे नींद नहीं आई. उसे अजीबअजीब एहसास होता रहा. वह सोचती रही, क्या विवाह से पहले वाली शाम को दुलहनें ऐसा ही महसूस करती होंगी. पहली बार उस ने कुछ अपनी खुशी के लिए सोचा है, क्या मां कभी नहीं सोचेंगी कि उसे भी किसी की जरूरत है, किसी का प्यार चाहिए, ये सब सोचतेसोचते उस की आंख लग गई.

नलिनी आवेगी नहीं थी, पूरा समय लगा कर हर काम करती. विकास के साथ जाने के लिए उस ने अच्छी तरह सोचसमझ लिया और जब हर कोण और नजरिए से सोच लिया था तभी फैसला लिया. उस की मां को उस का जाना अच्छा नहीं लगेगा वह जानती थी. इन दिनों वह जो भी करती या कहती, उस की मां को उस पर संदेह होता. उसे बैग पैक करते देख उस की मां की आंखों में संदेह उभर आया. वह जानती थी मां क्या सोच रही हैं, वह अकेली जा रही है या उस के साथ कोई है.

उस ने मां को इतना ही बताया, ‘‘औफिस से फैमिली पिकनिक जा रही है, मैं भी जा रही हूं.’’

‘‘आज से पहले तो कभी पिकनिक पर नहीं गई?’’ वे बोलीं.

‘‘आज जा रही हूं, पहली बार.’’

विकास की कार से ही दोनों 3 घंटे में काशिद बीच पहुंच गए. होटल में

रूम लिया, फिर खाना खाया. थोड़ा घूम कर आए. रूम में पहुंच कर विकास ने नलिनी को अपनी बांहों में ले लिया. बोला, ‘‘तुम्हारी आंखों की हसरत, दिल के रंग मुझे दिखते हैं नलिनी.’’

नलिनी कसमसा उठी. देह का अपना संगीत, अपना राग होता है. उसे पहले कभी कुछ इतना अच्छा नहीं लगा था. एक कसक भरे तनाव ने उसे जकड़ लिया, वह विकास की बांहों में बंधी झरने के पानी की तरह बहती चली गई. जीवन में पहली बार उस ने अनुभव किया कि पुरुष का शरीर तपता हुआ लोहा है और वह हर औरत की तरह मोम सी पिगलती जा रही है. उस दिन वे पहली बार एक हुए. चांद जब होटल की खिड़की से आधी रात को झांकता तो देखता, दोनों परम तृप्त, बेसुध, एकदूसरे पर समर्पित नींद में होते.

संडे दोपहर तक दोनों एकदूसरे में खोए रहे, अब वापस मुंबई के लिए निकलना था. घर आते समय नलिनी कई बातों को ले कर मन में व्यथित थी. विकास ने कई बार पूछा, लेकिन वह टाल गई. घर आ कर चुपचाप सो गई. मां ने भी थकान समझ कर कुछ नहीं कहा.

लेकिन अगले दिन औफिस के लिए तैयार होते हुए वह शीशे के सामने बैठ गई. 2 दिन से जो बात मन में बैठ गई थी, वह साफ दिखाई देने लगी. वह अपनी आंखों के नीचे उम्र के दायरे देख थोड़ा सहमी. बारीक लकीरें उम्र की चुगली कर रही थीं. उस ने सोचा वे कैसे लगते हैं एक युवक और एक अधेड़ महिला, समय के साथ स्थिति और बिगड़ेगी ही. उसे आजकल वे सारी निगाहें चुभने लगी थीं जो अकसर होटलों,

पार्कों में उन्हें घूरती थीं. वे बेमेल थे और विकास जो चाहे कह ले इस सच को बदला नहीं जा सकता था.

अभी काशिद बीच पर लोगों की नजरें उसे याद आ रही थीं. उसे लगा वह हर समय यही सोच कर डरती रहेगी कि वह उस से पहले बूढ़ी हो जाएगी और विकास कहीं उस से मुंह न फेर ले. फिर वह विकास के बिना कैसे जी पाएगी. वह शीशे के सामने बैठी बहुत देर तक अपनी सोच में गुम रही. फिर दिल पर पत्थर रख कर एक फैसला उस ने ले ही लिया जो उस के लिए इतना आसान नहीं था.

नलिनी ने औफिस से पहली बार 1 हफ्ते की छुट्टी ले ली. विकास ने उस के मोबाइल पर कई बार फोन किया, लेकिन उस ने नहीं उठाया. वह पता नहीं किन सोचों में घिरी रहती. उस की मां चुपचाप उसे देखती रहतीं, बोलतीं कुछ नहीं.

जब विकास रातदिन कई बार फोन करता रहा तो उस ने अपनेआप को मजबूत बनाते हुए विकास से कह ही दिया, ‘‘इतने दिन से मैं खुद को समझाने की कोशिश कर रही हूं कि इस से फर्क नहीं पड़ता कि हम अपने प्यार से उम्र के फासले को पाट लेंगे पर मुझे नहीं लगता मैं ऐसा कर पाऊंगी. जब भी लोग हमें देखते हैं, मुझे उन की नजरों में प्रश्न दिखता है. यह इस औरत के साथ क्या कर रहा है, मुझे बहुत दुख होता है. मैं बड़ी हूं और मैं इस खयाल के साथ नहीं जी सकती कि एक दिन तुम इस रिश्ते पर पछताओ या मुझ से दूर हो जाओ और मैं खाली हाथ रह जाऊं. काशिद पर घूमते हुए लोगों की नजरें तुम्हें याद हैं न?’’

विकास नलिनी को समझाता रह गया, अपने प्यार का वास्ता देता रहा पर नलिनी के मन में उम्र के फासले को ले कर जो बात बैठ गई थी उसे वह चाह कर भी निकाल नहीं पाई. विकास कभी नलिनी के घर नहीं आया था. औफिस में ही उस के आने का इंतजार करता रहा और जब नलिनी एक दिन अकेलेपन से घबरा कर औफिस चली आई तो विकास उसे देख कर अपनी जगह जमा खड़ा रह गया. नलिनी बहुत उदास और कमजोर लग रही थी. लंचटाइम में विकास उसे जबरदस्ती कैंटीन ले गया. हर तरह से उसे समझाता रहा, लेकिन नलिनी बुत बनी बैठी रही. उम्र के फर्क को नजरअंदाज करने के लिए तैयार नहीं हुई. उस ने जैसे खुद को पत्थर बना लिया था.

फिर विकास ने एक दिन उस से कहा, ‘‘मैं यहां रह कर तुम्हारी बेरुखी सहन नहीं कर सकता. मैं ने दिल्ली शाखा में अपना ट्रांसफर करवा लिया है. तुम से बहुत प्यार करता हूं और तुम्हारा इंतजार करूंगा. जब भी इस बात पर यकीन आ जाए, एक फोन कर देना, मैं चला आऊंगा.’’

नलिनी का चेहरा आंसुओं से भीग गया पर वह कुछ कह न पाई. थोड़े दिन बाद विकास दिल्ली चला गया. जातेजाते भी उस ने नलिनी से अपने सारे वहम निकालने के लिए कहा. लेकिन नलिनी को उस की कोई बात समझ नहीं आई. उस के जाते ही नलिनी फिर खालीपन और अकेलेपन से घिर गई. उसे लगता जैसे उस का शरीर निष्प्राण हो गया है. बाहर से सबकुछ कितना शांत पर भीतर ही भीतर बहुत कुछ टूट कर बिखर गया. सोचती रहती उसे छोड़ कर क्या उस ने गलती की या वैसा करना ही सही था?

विकास ने जब उस के जन्मदिन पर उसे सुबहसुबह फोन किया तो उस की इच्छा हुई कि दौड़ कर विकास के पास पहुंच जाए, लेकिन उस ने फिर खुद पर नियंत्रण रख कर औपचारिक बात की. अब उस के जीवन का एक ढर्रा बन गया था और वह किसी भी तरह इसे तोड़ना नहीं चाहती थी. वह सोचती, उन के बीच जो फासला पसरा हुआ था उसे अभी भी नहीं पाटा जा सकता था शायद यह और लंबा हो गया था.

विकास को गए 4 महीने हो चुके थे. नलिनी की मां की अचानक हृदयघात से मृत्यु हो गई. वह अब बिलकुल अकेली हो गई. कुसुम अपने पति मोहन और दोनों बच्चों के साथ अकसर आ जाती. अभी तक नलिनी मां के साथ अपने वन बैडरूम फ्लैट में आराम से रह रही थी, कुसुम सपरिवार आती तो घर में जैसे तूफान आ जाता. जिस शांति की नलिनी को आदत थी, वह भंग हो जाती और मोहन की भेदती नजरें उस से सहन न होतीं. जितनी तनख्वाह नलिनी की थी उस में उस का और मां का गुजारा आराम से चलता आया था. सोसायटी की मैंटेनैंस, बिजली का बिल, फोन का बिल, जरूरी खर्चों के बाद भी नलिनी आराम से अपने और मां के खर्चों की पूरी जिम्मेदारी निभाती रही थी.

अब कुसुम के परिवार के अकसर रहने पर उस का हिसाब गड़बड़ा जाता. ऊपर से वह कहती रहती, ‘‘आप के अकेलेपन का सोच कर हम यहां भागे चले आते हैं और आप न तो बच्चों की शरारत पर हंसती न मोहन से ठीक से बात करती हैं.’’

एक दिन वह औफिस से अपने लिए कुछ क्रीम वगैरह खरीद कर लौटी तो कुसुम ताने देने लगी, ‘‘भई वाह, मैं तो आप की उम्र में शालीनता से अधेड़ होना पसंद करूंगी. औरत के चेहरे पर छाए संतोष की आभा की कोई बराबरी नहीं है.’’

इन बातों से नलिनी के दिल में टीस सी उठती. ऐसा नहीं था कि उसे बहन के जीवन में भरी खुशियों से कोई जलन होती थी, उसे अब परेशानी थी तो यह कि उस का अपना जीवन अपनी उसी सोई, नीरस, बिनब्याही, ठहरी हुई स्थिति में पड़ा था, न खुशी न गम, बस रोजरोज औफिस आनेजाने का एक रूटीन. उसे विकास की बहुत याद आती. काशिद बीच पर बीता समय याद कर के कई बार रो पड़ती. काश, वह इतनी दब्बू और कायर न होती.

एक दिन वह घर का सामान खरीद रही थी कि बीते समय की एक आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘नलिनी.’’

उस ने मुड़ कर देखा. सामने वह रिश्ता खड़ा था जो बचपन छूटने के साथ खत्म हो गया था. उस के बचपन की सब से प्रिय सहेली मधु पूछ रही थी, ‘‘मुझे भूल गई क्या? पहचाना नहीं?’’

नलिनी खुश हो गई, ‘‘यह तुम ही हो,

मधु? सच?’’

नलिनी को महसूस हुआ जैसे मधु की नजरों ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा. उसे क्या दिखा होगा? पिछले रूप का एक धुंधला साया, मनप्राणहीन शांत प्राणी, रंगहीन तुच्छ सी औरत जिस के करने के लिए कुछ नहीं था सिवा दुकानों में अनावश्यक सामान खरीदने का बहाना करती अकारण भटकने के.

मधु ने उसे टोका, ‘‘चलो कहीं बैठते हैं.’’

नलिनी ने देखा संतुष्टि की आभा से मधु दमक रही थी. उस की आंखों में चमक थी, बालों में कहींकहीं सफेदी झलक आई थी. हर ओर परिपक्वता थी, बढि़या साड़ी, खूबसूरत ज्वैलरी. कौफी पीते हुए मधु बोली, ‘‘अपने पिता की मृत्यु के बाद तुम ने जिस तरह घर संभाला था, मुझे याद है उस की सब तारीफ करते थे… और बताओ, क्या किया तुम ने अब तक?’’

टाइमपास : भाग 2

‘‘तो ठीक है. जो बाकी है, वह भी कर के अपनी इच्छा पूरी कर लो. मेरे यहां रहने से परेशानी है तो मैं फिर से चली जाती हूं. त्रिशा को इस समय मेरी बहुत जरूरत है. मैं तो तुम्हारे लिए भागी आई हूं. परंतु तुम तो दूसरी दुनिया बसा चुके हो. मैं बेकार में अपना माथा खाली कर रही हूं. व्यर्थ का तमाशा मत बनाओ. मेरे सामने से हट जाओ.’’ घर में सन्नाटा छाया हुआ था. पार्वती की सिसकियों की आवाज और सामान समेटने की आवाज बीचबीच में आ जाती थी. घर उजड़ रहा था, रीना दुखी थी. उसे पार्वती से ज्यादा रोमेश दोषी लग रहे थे. वह मन ही मन सोच रही थी कि जब अपना सिक्का ही खोटा हो तो दूसरे को क्यों दोष दे. कुछ भी हो, पार्वती को यहां से हटाना आवश्यक था. वह उस घड़ी को कोस रही थी जब उस ने पार्वती को अपने घर पर काम करने के लिए रखा था. लगभग 20 वर्ष पहले सुमित्राजी ने पार्वती को उस के पास काम के लिए भेजा था. उस की कामवाली भागवती हमेशा के लिए गांव चली गई थी. 2 बेटियां, पति और बूढ़ी अम्माजी के सारे काम करतेकरते उस की हालत खराब थी. उसे नई कामवाली की सख्त जरूरत थी. सुमित्राजी ने कह दिया था, ‘पार्वती नई है, इसलिए निगाह रखना.’ वह अतीत में खो गई थी. पार्वती का जीवन तो उस के लिए खुली किताब है.

21-22 वर्ष की पार्वती का रंग दूध की तरह सफेद था, गोल चेहरा, उस की बड़ीबड़ी आंखों में निरीहता थी. अपने में सिकुड़ीसिमटी हुई एक बच्चे की उंगली पकड़े हुए तो दूसरे को गोद में उठाए हुए कातर निगाहों से काम की याचना कर रही थी. उसे काम की सख्त जरूरत थी. उस के माथे के जख्म को देख रीना पूछ बैठी थी, ‘ये चोट कैसे लगी तुम्हारे?’ पार्वती धीरे से बोली थी, ‘मेरे आदमी ने हंसिया फेंक कर मारा था, वह माथे को छूता हुआ निकल गया था. उसी से घाव हो गया है.’

‘ऐसे आदमी के साथ क्यों रहती हो?’

‘अब मैं उसे छोड़ कर शहर आ गई हूं. यहां नई हूं, इसलिए ज्यादा किसी को जानती नहीं.’ रीना को पार्वती पर दया आ गई थी, ‘तुम्हारे बच्चे कहां रहेंगे?’ वह पूछ बैठी.

‘जी, जब तक कोठरी नहीं मिलती, वे दोनों बरामदे में बैठे रहेंगे.’ अम्माजी अंदर से बोली थीं, ‘इस को रखना बिलकुल बेकार है. 2-2 बच्चे हैं, सारे घर में घूमते फिरेंगे.’ रीना को रसोई के अंदर पड़े हुए ढेर सारे जूठे बरतन याद आ रहे थे. उस ने पार्वती से बरतन साफ करने को कहा. उस ने फुरती से अच्छी तरह बरतन साफ किए. स्टैंड में लगाए. स्लैब और गैस साफ कर के रसोई में पोंछा भी लगा दिया था. उस के काम से वह निहाल हो उठी थी. धीरेधीरे वह उस की मुरीद होती गई. बच्चे सीधे थे, बरामदे में बैठे रहते थे. मेरे बच्चों के पुराने कपड़े पहन कर खुश होते. टूटेफूटे खिलौनों से खेलते और बचाखुचा खाना खाते. पार्वती मेरे घर के सारे कामों को मन लगा कर करती थी. मेहमानों के आने पर वह घर के कामों के लिए ज्यादा समय देती. वह भी उस का पूरा ध्यान रखती. तीजत्योहार पर वह बच्चों के लिए नए कपड़े बनवा देती थी. पार्वती भी रीना के एहसान तले दबी रहती थी. रीना को अपना आत्मीय समझ वह अपने दिल की बातें कह देती थी.

2 छोटेछोटे बच्चों को पालना आसान नहीं था. पार्वती ने धीरेधीरे आसपास के कई घरों में काम पकड़ लिया था. कहीं झाड़ू तो कहीं बरतन तो कहीं खाना बनाना. वह देखती थी, जैसे चिडि़या अपनी चोंच में दाने भर कर सीधा अपने घोंसले में रुकती है, वैसे ही वह कहीं से कुछ मिलता तो सब इकट्ठा कर के बच्चों के लिए ले आती थी. कपड़े मिलते तो उन्हें काटपीट कर बच्चों की नाप के बना कर पहनाती. उस की कर्मठता से रीना बहुत प्रभावित थी. उस ने अपनी पुरानी सिलाई मशीन उसे दे दी थी जिसे पा कर वह बहुत खुश थी. पार्वती एक दिन महेश को ले कर आई थी, ‘भाभी, मैं इस के साथ शादी करना चाहती हूं.’ रीना उसे हिम्मत बंधाते हुए बोली थी कि आदमी को अच्छी तरह जांचपरख लेना. कहीं पहले वाले की तरह दूसरा भी हाथ न उठाने लगे.

पार्वती ने खुशीखुशी बताया था कि वह मेरे बच्चों को अपनाएगा और वह पहले की तरह ही काम करती रहेगी. वह 8-10 दिन की छुट्टी ले कर चली गई थी. रोमेश को पता चला तो बोले, ‘गई भैंस पानी में. वह तुम्हें गच्चा दे गई. अब दूसरी ढूंढ़ो. इस के भी पर निकल आए हैं.’ पार्वती अपने वादे की पक्की निकली. वह 10 दिन बाद आ गई थी. परंतु यह क्या? उस का तो रूप ही बदल गया था. अब वह नईनवेली के रूप में थी. लाल बड़ी सी बिंदिया उस के माथे पर सजी हुई थी. होंठों पर गहरी लाल लिपस्टिक, गोरेगोरे पैर पायल, बिछिया और महावर से सजे हुए थे. हाथों में भरभर हाथ चूडि़यां और चटक लाल चमकीली साड़ी पहने हुए थी वह. चेहरे पर शरम की लाली थी. रीना ने मजाकिया लहजे में उस से पूछा था, ‘क्यों री, क्या मंडप से सीधे उठ कर चली आई है?’ रोमेश तो एकटक उस को निहारते रह गए थे. धीरे से बोले, ‘ये तो छम्मकछल्लो दिख रही है.’

वह तो बहुत खुश थी कि चलो इस के जीवन में खुशियों ने दस्तक तो दी. जबकि आसपड़ोस की महिलाओं को गौसिप का एक नया विषय मिल गया था. काश, उस दिन मिसेज गुलाटी की बात रीना मान लेती, उन्होंने उसे सावधान करते हुए कहा था, ‘इस से सावधान रहिएगा. यह बदचलन औरत है. इस के संबंध कई आदमियों से हैं.’ शोभाजी ने नहले पर दहला मारा था, ‘यह बहुत बदमाश औरत है. हम लोगों से साड़ीसूट मांग कर ले जाती है और अपनी झुग्गी पर जाते ही बेच देती है.’ रीना तल्खी से बोली थी, ‘इन बातों से उसे क्या मतलब है. उस का काम वह ठीक से करती है. बस, इतना काफी है.’ पार्वती ने अपने बच्चों के लिए ख्वाब पाल रखे थे. दोनों बच्चों का स्कूल में नाम लिखा दिया था. महेश से शादी के बाद बच्चों से उस का ध्यान बंटने लगा था. वह बच्चों को स्कूल और ट्यूशन भेज कर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ बैठी थी. दोनों स्कूल जाने का बहाना कर के इधरउधर घूमा करते थे.

बेटा दीप पानमसाला खाता, पैसा चुरा कर जुआ खेलता. बेटी पूजा चाल के लड़कों से नजरें लड़ाती. दोनों बच्चों की वजह से उस के और महेश के बीच अकसर लड़ाई हो जाती. महेश भी नकली चेहरा उतार कर खूब शराब पीने लगा था. एक दिन वह पूजा को ले कर आई थी. बोली, ‘यह दिनभर आप के पास रहेगी तो चार अच्छी बातें सीख लेगी.’ पूजा को देखे हुए उसे काफी दिन हो गए थे. वह जींसकुरती पहन कर आई थी. उस के कानों में बड़ेबड़े कुंडल थे. वह स्वयं उस खूबसूरत परी को एकटक देखती रह गई थी. वह हाथ में मोबाइल पकड़े हुई थी. उस का मोबाइल थोड़ेथोड़े अंतराल में बजता रहा. वह कमरे से बाहर जा कर देरदेर तक बातें करती रही. वह समझ गई थी कि पूजा का किसी के साथ चक्कर जरूर है. उस ने पार्वती को आने वाले खतरे के लिए आगाह कर दिया. शायद वह भी उन बातों से वाकिफ थी. उस ने महेश की सहायता से आननफानन उस की सगाई करवा दी थी. पार्वती खुश हो कर लड़के वालों के द्वारा दिया हुआ सोने का हार, उसे दिखाने भी लाई थी. उस ने इशारों में उस से 10 हजार रुपए की फरियाद भी कर दी थी. रोमेश ने उसे रुपए देने के लिए हां कर दी थी.

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