‘‘तुम से कोई भी काम ढंग से नहीं होता, चटनी ने पूरी दीवार खराब कर दी

है. डैडी होते तो तुम्हें कब का घर से निकाल चुके होते. उन्हें सफाई बहुत

पसंद थी,’’ रोज की तरह अंजना फिर अपने भाई की पत्नी को डांट रही थी.

अनुभा रोंआसा चेहरा लिए सब सुन रही थी. बात तो कुछ नहीं थी, अनुभा के हाथ से चटनी दीवार पर लग गई थी, जोकि उस ने साफ भी कर दी थी. उसे अचानक ही विवाह से पूर्व का एक किस्सा याद आ गया...

‘मां, आज मैं और भाभी चाट खाने जा रहे हैं. हमारे लिए खाना मत बनाना,’ अनुभा ने भाभी के साथ प्लान बनाया था.

‘अच्छा बेटा, दोनों खूब मजे करना, जाओ घूम आओ,’ बाजार में नए सूट पर चटनी गिरने से अनुभा की भाभी मधुरा थोड़ा सहम गई. अनुभा ने उसे दिलासा दिया और कहा कि ज्यादा न सोचे. घर आने पर अनुभा की मां ने मधुरा का कुरता देखते ही कहा, ‘अरे बेटा, जल्दी से चेंज कर के कुरता मुझे दे दे, मैं अभी साफ कर दूंगी. बाद में दाग रह जाएगा.’ मधुरा ने चैन की सांस लेते हुए कुरता मां को दे दिया था और यहां तो चटनी कांड ही बन गया था. अनुभा आंसू पोंछने लगी.

अनुभा का विवाह हुए कुछ ही महीने हुए थे. उस ने काफी लड़कों से मिलने के बाद राम से विवाह के लिए हां कही थी. राम बैंक में एक उच्च पद पर नियुक्त था. अनुभा एक साइंस ग्रेजुएट थी. उस के घर में एक बड़ा भाई था जिस की शादी उस की शादी से एक साल पहले ही हुई थी. भाभी के आने से घर खुशियों से भर गया था. उस की भाभी मधुरा बहुत ही अच्छे दिल की लड़की थी जिस ने घर में आते ही सब को इतने प्यार से अपनाया था कि अनुभा के मातापिता को लगता ही नहीं था कि वह पराई थी. हर चीज के लिए वे मधुरा पर निर्भर हो गए थे.

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