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Love Story : अघूरे प्यार की टीस

Love Story : आज सुबह राकेशजी की मुसकराहट में डा. खन्ना को नए जोश, ताजगी और खुशी के भाव नजर आए तो उन्होंने हंसते हुए पूछा, ‘‘लगता है, अमेरिका से आप का बेटा और वाइफ आ गए हैं, मिस्टर राकेश?’’

‘‘वाइफ तो नहीं आ पाई पर बेटा रवि जरूर पहुंच गया है. अभी थोड़ी देर में यहां आता ही होगा,’’ राकेशजी की आवाज में प्रसन्नता के भाव   झलक रहे थे.

‘‘आप की वाइफ को भी आना चाहिए था. बीमारी में जैसी देखभाल लाइफपार्टनर करता है वैसी कोई दूसरा नहीं कर सकता.’’

‘‘यू आर राइट, डाक्टर, पर सीमा ने हमारे पोते की देखभाल करने के लिए अमेरिका में रुकना ज्यादा जरूरी सम  झा होगा.’’

‘‘कितना बड़ा हो गया है आप का पोता?’’

‘‘अभी 10 महीने का है.’’

‘‘आप की वाइफ कब से अमेरिका में हैं?’’

‘‘बहू की डिलीवरी के 2 महीने पहले वह चली गई थी.’’

‘‘यानी कि वे साल भर से आप के साथ नहीं हैं. हार्ट पेशेंट अगर अपने जीवनसाथी से यों दूर और अकेला रहेगा तो उस की तबीयत कैसे सुधरेगी? मैं आप के बेटे से इस बारे में बात करूंगा. आप की पत्नी को इस वक्त आप के पास होना चाहिए,’’ अपनी राय संजीदा लहजे में जाहिर करने के बाद डा. खन्ना ने राकेशजी का चैकअप करना शुरू कर दिया.

डाक्टर के जाने से पहले ही नीरज राकेशजी के लिए खाना ले कर आ गया.

‘‘तुम हमेशा सही समय से यहां पहुंच जाते हो, यंग मैन. आज क्या बना कर भेजा है अंजुजी ने?’’ डा. खन्ना ने प्यार से रवि की कमर थपथपा कर पूछा.

‘‘घीया की सब्जी, चपाती और सलाद भेजा है मम्मी ने,’’ नीरज ने आदरपूर्ण लहजे में जवाब दिया.

‘‘गुड, इन्हें तलाभुना खाना नहीं देना है.’’

‘‘जी, डाक्टर साहब.’’

‘‘आज तुम्हारे अंकल काफी खुश दिख रहे हैं पर इन्हें ज्यादा बोलने मत देना.’’

‘‘ठीक है, डाक्टर साहब.’’

‘‘मैं चलता हूं, मिस्टर राकेश. आप की तबीयत में अच्छा सुधार हो रहा है.’’

‘‘थैंक यू, डा. खन्ना. गुड डे.’’

डाक्टर के जाने के बाद हाथ में पकड़ा टिफिनबौक्स साइड टेबल पर रखने के बाद नीरज ने राकेशजी के पैर छू कर उन का आशीर्वाद पाया. फिर वह उन की तबीयत के बारे में सवाल पूछने लगा. नीरज के हावभाव से साफ जाहिर हो रहा था कि वह राकेशजी को बहुत मानसम्मान देता था.

करीब 10 मिनट बाद राकेशजी का बेटा रवि भी वहां आ पहुंचा. नीरज को अपने पापा के पास बैठा देख कर उस की आंखों में खिं चाव के भाव पैदा हो गए.

‘‘हाय, डैड,’’ नीरज की उपेक्षा करते हुए रवि ने अपने पिता के पैर छुए और फिर उन के पास बैठ गया.

‘‘कैसे हालचाल हैं, रवि?’’ राकेशजी ने बेटे के सिर पर प्यार से हाथ रख कर उसे आशीर्वाद दिया.

‘‘फाइन, डैड. आप की तबीयत के बारे में डाक्टर क्या कहते हैं?’’

‘‘बाईपास सर्जरी की सलाह दे रहे हैं.’’

‘‘उन की सलाह तो आप को माननी होगी, डैड. अपोलो अस्पताल में बाईपास करवा लेते हैं.’’

‘‘पर, मु  झे आपरेशन के नाम से डर लगता है.’’

‘‘इस में डरने वाली क्या बात है, पापा? जो काम होना जरूरी है, उस का सामना करने में डर कैसा?’’

‘‘तुम कितने दिन रुकने का कार्यक्रम बना कर आए हो?’’ राकेशजी ने विषय परिवर्तन करते हुए पूछा.

‘‘वन वीक, डैड. इतनी छुट्टियां भी बड़ी मुश्किल से मिली हैं.’’

‘‘अगर मैं ने आपरेशन कराया तब तुम तो उस वक्त यहां नहीं रह पाओगे.’’

‘‘डैड, अंजु आंटी और नीरज के होते हुए आप को अपनी देखभाल के बारे में चिंता करने की क्या जरूरत है? मम्मी और मेरी कमी को ये दोनों पूरा कर देंगे, डैड,’’ रवि के स्वर में मौजूद कटाक्ष के भाव राकेशजी ने साफ पकड़ लिए थे.

‘‘पिछले 5 दिन से इन दोनों ने ही मेरी सेवा में रातदिन एक किया हुआ है, रवि. इन का यह एहसान मैं कभी नहीं उतार सकूंगा,’’ बेटे की आवाज के तीखेपन को नजरअंदाज कर राकेशजी एकदम से भावुक हो उठे.

‘‘आप के एहसान भी तो ये दोनों कभी नहीं उतार पाएंगे, डैड. आप ने कब इन की सहायता के लिए पैसा खर्च करने से हाथ खींचा है. क्या मैं गलत कह रहा हूं, नीरज?’’

‘‘नहीं, रवि भैया. आज मैं इंजीनियर बना हूं तो इन के आशीर्वाद और इन से मिली आर्थिक सहायता से. मां के पास कहां पैसे थे मु  झे पढ़ाने के लिए? सचमुच अंकल के एहसानों का कर्ज हम मांबेटे कभी नहीं उतार पाएंगे,’’ नीरज ने यह जवाब राकेशजी की आंखों में श्रद्धा से   झांकते हुए दिया और यह तथ्य रवि की नजरों से छिपा नहीं रहा था.

‘‘पापा, अब तो आप शांत मन से आपरेशन के लिए ‘हां’ कह दीजिए. मैं डाक्टर से मिल कर आता हूं,’’ व्यंग्य भरी मुसकान अपने होंठों पर सजाए रवि कमरे से बाहर चला गया था.

‘‘अब तुम भी जाओ, नीरज, नहीं तो तुम्हें आफिस पहुंचने में देर हो जाएगी.’’

राकेशजी की इजाजत पा कर नीरज भी जाने को उठ खड़ा हुआ था.

‘‘आप मन में किसी तरह की टेंशन न लाना, अंकल. मैं ने रवि भैया की बातों का कभी बुरा नहीं माना है,’’ राकेशजी का हाथ भावुक अंदाज में दबा कर नीरज भी बाहर चला गया.

नीरज के चले जाने के बाद राकेशजी ने थके से अंदाज में आंखें मूंद लीं. कुछ ही देर बाद अतीत की यादें उन के स्मृति पटल पर उभरने लगी थीं, लेकिन आज इतना फर्क जरूर था कि ये यादें उन को परेशान, उदास या दुखी नहीं कर रही थीं.

अपनी पत्नी सीमा के साथ राकेशजी की कभी ढंग से नहीं निभी थी. पहले महीने से ही उन दोनों के बीच   झगड़े होने लगे थे.   झगड़ने का नया कारण तलाशने में सीमा को कोई परेशानी नहीं होती थी.

शादी के 2 महीने बाद ही वह ससुराल से अलग होना चाहती थी. पहले साल उन के बीच   झगड़े का मुख्य कारण यही रहा. रातदिन के क्लेश से तंग आ कर राकेश ने किराए का मकान ले लिया था.

अलग होने के बाद भी सीमा ने लड़ाई  झगड़े बंद नहीं किए थे. फिर उस ने मकान व दुकान के हिस्से कराने की रट लगा ली थी. राकेश अपने दोनों छोटे भाइयों के सामने सीमा की यह मांग रखने का साहस कभी अपने अंदर पैदा नहीं कर सके. इस कारण पतिपत्नी के बीच आएदिन खूब क्लेश होता था.

3 बार तो सीमा ने पुलिस भी बुला ली थी. जब उस का दिल करता वह लड़  झगड़ कर मायके चली जाती थी. गुस्से से पागल हो कर वह मारपीट भी करने लगती थी. उन के बीच होने वाले लड़ाई  झगड़े का मजा पूरी कालोनी लेती थी. राकेश को शर्म के मारे सिर   झुका कर कालोनी में चलना पड़ता था.

फिर एक ऐसी घटना घटी जिस ने सीमा को रातदिन कलह करने का मजबूत बहाना उपलब्ध करा दिया.

उन की शादी के करीब 5 साल बाद राकेश का सब से पक्का दोस्त संजय सड़क दुर्घटना का शिकार बन इस दुनिया से असमय चला गया था. अपनी पत्नी अंजु, 3 साल के बेटे नीरज की देखभाल की जिम्मेदारी दम तोड़ने से पहले संजय ने राकेश के कंधों पर डाल दी थी.

राकेशजी ने अपने दोस्त के साथ किए वादे को उम्र भर निभाने का संकल्प मन ही मन कर लिया था. लेकिन सीमा को यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता था कि वे अपने दोस्त की विधवा व उस के बेटे की देखभाल के लिए समय या पैसा खर्च करें. जब राकेश ने इस मामले में उस की नहीं सुनी तो सीमा ने अंजु व अपने पति के रिश्ते को बदनाम करना शुरू कर दिया था.

इस कारण राकेश के दिल में अपनी पत्नी के लिए बहुत ज्यादा नफरत बैठ गई थी. उन्होंने इस गलती के लिए सीमा को कभी माफ नहीं किया.

सीमा अपने बेटे व बेटी की नजरों में भी उन के पिता की छवि खराब करवाने में सफल रही थी. राकेश ने इन के लिए सबकुछ किया पर अपने परिवारजनों की नजरों में उन्हें कभी अपने लिए मानसम्मान व प्यार नहीं दिखा था.

अपनी जिंदगी के अहम फैसले उन के दोनों बच्चों ने कभी उन के साथ सलाह कर के नहीं लिए थे. जवान होने के बाद वे अपने पिता को अपनी मां की खुशियां छीनने वाला खलनायक मानने लगे थे. उन की ऐसी सोच बनाने में सीमा का उन्हें राकेश के खिलाफ लगातार भड़काना महत्त्वपूर्ण कारण रहा था.

उन की बेटी रिया ने अपना जीवनसाथी भी खुद ढूंढ़ा था. हीरो की तरह हमेशा सजासंवरा रहने वाला उस की पसंद का लड़का कपिल, राकेश को कभी नहीं जंचा.

कपिल के बारे में उन का अंदाजा सही निकला था. वह एक क्रूर स्वभाव वाला अहंकारी इनसान था. रिया अपनी विवाहित जिंदगी में खुश और सुखी नहीं थी. सीमा अपनी बेटी के ससुराल वालों को लगातार बहुतकुछ देने के बावजूद अपनी बेटी की खुशियां सुनिश्चित नहीं कर सकी थी.

शादी करने के लिए रवि ने भी अपनी पसंद की लड़की चुनी थी. उस ने विदेश में बस जाने का फैसला अपनी ससुराल वालों के कहने में आ कर किया था.

राकेश को इस बात से बहुत पीड़ा होती थी कि उन के बेटाबेटी ने कभी उन की भावनाओं को सम  झने की कोशिश नहीं की. वे अपनी मां के बहकावे में आ कर धीरेधीरे उन से दूर होते चले गए थे.

इन परिस्थितियों में अंजु और उस के बेटे के प्रति उन का   झुकाव लगातार बढ़ता गया. उन के घर उन्हें मानसम्मान मिलता था. वहां उन्हें हमेशा यह महसूस होता कि उन दोनों को उन के सुखदुख की चिंता रहती है.

इस में कोई शक नहीं कि उन्होंने नीरज की इंजीनियरिंग की पढ़ाई का लगभग पूरा खर्च उठाया था. सीमा ने इस बात के पीछे कई बार कलहक्लेश किया पर उन्होंने उस के दबाव में आ कर इस जिम्मेदारी से हाथ नहीं खींचा था. वह अंजु से उन के मिलने पर रोक नहीं लगा सकी थी क्योंकि उसे कभी कोई गलत तरह का ठोस सुबूत इन के खिलाफ नहीं मिला था.

राकेशजी को पहला दिल का दौरा 3 साल पहले और दूसरा 5 दिन पहले पड़ा था. डाक्टरों ने पहले दौरे के बाद ही बाईपास सर्जरी करा लेने की सलाह दी थी. अब दूसरे दौरे के बाद आपरेशन न कराना उन की जान के लिए खतरनाक साबित होगा, ऐसी चेतावनी उन्होंने साफ शब्दों में राकेशजी को दे दी थी.

पिछले 5 दिनों में उन के अंदर जीने का उत्साह मर सा गया था. वे खुद को बहुत अकेला महसूस कर रहे थे. उन्हें बारबार लगता कि उन का सारा जीवन बेकार चला गया है.

मोबाइल फोन की घंटी बजी तो राकेशजी यादों की दुनिया से बाहर निकल आए थे. उन की पत्नी सीमा ने अमेरिका से फोन किया था.

‘‘क्या रवि ठीकठाक पहुंच गया है?’’ सीमा ने उन का हालचाल पूछने के बजाय अपने बेटे का हालचाल पूछा तो राकेशजी के होंठों पर उदास सी मुसकान उभर आई.

‘‘हां, वह बिलकुल ठीक है,’’ उन्होंने अपनी आवाज को सहज रखते हुए जवाब दिया.

‘‘डाक्टर तुम्हें कब छुट्टी देने की बात कह रहे हैं?’’

‘‘अभी पता नहीं कि छुट्टी कब तक मिलेगी. डाक्टर बाईपास सर्जरी कराने के लिए जोर डाल रहे हैं.’’

‘‘मैं तो अभी इंडिया नहीं आ सकती हूं. नन्हे रितेश की तबीयत ठीक नहीं चल रही है. तुम अपनी देखभाल के लिए एक नर्स का इंतजाम जरूर कर लेना.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘अपने अकाउंट में भी उस का नाम जुड़वा दो.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘मैं तो कहती हूं कि आपरेशन कराने के बाद तुम भी यहीं रहने आ जाओ. वहां अकेले कब तक अपनी बेकद्री कराते रहोगे?’’

‘‘तुम मेरी फिक्र न करो और अपना ध्यान रखो.’’

‘‘मेरी तुम ने आज तक किसी मामले में सुनी है, जो अब सुनोगे. वकील को जल्दी बुला लेना. रवि के यहां वापस लौटने से पहले दोनों काम हो जाने…’’

राकेशजी को अचानक अपनी पत्नी की आवाज को सुनना बहुत बड़ा बो  झ लगने लगा तो उन्होंने   झटके से संबंध काट कर फोन का स्विच औफ कर दिया. कल रात को अपनेआप से किया यह वादा उन्हें याद नहीं रहा कि वे अब अतीत को याद कर के अपने मन को परेशान व दुखी करना बंद कर देंगे.

‘इस औरत के कारण मेरी जिंदगी तबाह हो गई.’ यह एक वाक्य लगातार उन के दिमाग में गूंज कर उन की मानसिक शांति भंग किए जा रहा था.

कुछ देर बाद जब रवि ने उन के कमरे में कदम रखा तब राकेशजी के चेहरे पर तनाव के भाव साफ नजर आ रहे थे.

‘‘इतनी टेंशन में किसलिए नजर आ रहे हो, पापा?’’ रवि ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछा.

‘‘तुम्हारी मम्मी का फोन आया था,’’ राकेशजी का स्वर नाराजगी से भरा था.

‘‘ऐसा क्या कह दिया उन्होंने जो आप इतने नाखुश दिख रहे हो?’’

‘‘मकान तुम्हारे नाम करने और मेरे अकाउंट में तुम्हारा नाम लिखवाने की बात कह रही थी.’’

‘‘क्या आप को उन के ये दोनों सु  झाव पसंद नहीं आए हैं?’’

‘‘तुम्हारी मां का बात करने का ढंग कभी ठीक नहीं रहा, रवि.’’

‘‘पापा, मां ने मेरे साथ इन दोनों बातों की चर्चा चलने से पहले की थी. इस मामले में मैं आप को अपनी राय बताऊं?’’

‘‘बताओ.’’

‘‘पापा, अगर आप अपना मकान अंजु आंटी और नीरज को देना चाहते हैं तो मेरी तरफ से ऐसा कर सकते हैं. मैं अच्छाखासा कमा रहा हूं और मौम की भी यहां वापस लौटने में बिलकुल दिलचस्पी नहीं है.’’

‘‘क्या तुम को लगता है कि अंजु की इस मकान को लेने में कोई दिलचस्पी होगी?’’ कुछ देर खामोश रहने के बाद राकेशजी ने गंभीर लहजे में बेटे से सवाल किया.

‘‘क्यों नहीं होगी, डैड? इस वक्त हमारे मकान की कीमत 70-80 लाख तो होगी. इतनी बड़ी रकम मुफ्त में किसी को मिल रही हो तो कोई क्यों छोड़ेगा?’’

‘‘मु  झे यह और सम  झा दो कि मैं इतनी बड़ी रकम मुफ्त में अंजु को क्यों दूं?’’

‘‘पापा, आप मु  झे अब बच्चा मत सम  झो. अपनी मिस्टे्रस को कोई इनसान क्यों गिफ्ट और कैश आदि देता है.’’

‘‘क्यों देता है?’’

‘‘रिलेशनशिप को बनाए रखने के लिए, डैड. अगर वह ऐसा न करे तो क्या उस की मिस्टे्रस उसे छोड़ क र किसी दूसरे की नहीं हो जाएगी.’’

‘‘अंजु मेरी मिस्टे्रस कभी नहीं रही है, रवि,’’ राकेशजी ने गहरी सांस छोड़ कर जवाब दिया, ‘‘पर इस तथ्य को तुम मांबेटा कभी सच नहीं मानोगे. मकान उस के नाम करने की बात उठा कर मैं उसे अपमानित करने की नासम  झी कभी नहीं दिखाऊंगा. नीरज की पढ़ाई पर मैं ने जो खर्च किया, अब नौकरी लगने के बाद वह उस कर्जे को चुकाने की बात दसियों बार मु  झ से कह…’’

‘‘पापा, मक्कार लोगों के ऐसे   झूठे आश्वासनों को मु  झे मत सुनाओ, प्लीज,’’ रवि ने उन्हें चिढ़े लहजे में टोक दिया, ‘‘अंजु आंटी बहुत चालाक और चरित्रहीन औरत हैं. उन्होंने आप को अपने रूपजाल में फंसा कर मम्मी, रिया और मु  झ से दूर कर…’’

‘‘तुम आज मेरे मन में सालों से दबी कुछ बातें ध्यान से सुन लो, रवि,’’ इस बार राकेशजी ने उसे सख्त लहजे में टोक दिया, ‘‘मैं ने अपने परिवार के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियां बड़ी ईमानदारी से पूरी की हैं पर ऐसा करने के बदले में तुम्हारी मां से मु  झे हमेशा अपमान की पीड़ा और अवहेलना के जख्म ही मिले.

‘‘रिया और तुम भी अपनी मां के बहकावे में आ कर हमेशा मेरे खिलाफ रहे. तुम दोनों को भी उस ने अपनी तरह स्वार्थी और रूखा बना दिया. तुम कल्पना भी नहीं कर सकते कि तुम सब के गलत और अन्यायपूर्ण व्यवहार के चलते मैं ने रातरात भर जाग कर कितने आंसू बहाए हैं.’’

‘‘पापा, अंजु आंटी के साथ अपने अवैध प्रेम संबंध को सही ठहराने के लिए हमें गलत साबित करने की आप की कोशिश बिलकुल बेमानी है,’’ रवि का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा था.

‘‘मेरा हर एक शब्द सच है, रवि,’’ राकेशजी जज्बाती हो कर ऊंची आवाज में बोलने लगे, ‘‘तुम तीनों मतलबी इनसानों ने मु  झे कभी अपना नहीं सम  झा. दूसरी तरफ अंजु और नीरज ने मेरे एहसानों का बदला मु  झे हमेशा भरपूर मानसम्मान दे कर चुकाया है. इन दोनों ने मेरे दिल को बुरी तरह टूटने से…मु  झे अवसाद का मरीज बनने से बचाए रखा.

‘‘जब तुम दोनों छोटे थे तब हजारों बार मैं ने तुम्हारी मां को तलाक देने की बात सोची होगी पर तुम दोनों बच्चों के हित को ध्यान में रख कर मैं अपनेआप को रातदिन की मानसिक यंत्रणा से सदा के लिए मुक्ति दिलाने वाला यह निर्णय कभी नहीं ले पाया.

‘‘आज मैं अपने अतीत पर नजर डालता हूं तो तुम्हारी क्रूर मां से तलाक न लेने का फैसला करने की पीड़ा बड़े जोर से मेरे मन को दुखाती है. तुम दोनों बच्चों के मोह में मु  झे नहीं फंसना था…भविष्य में   झांक कर मु  झे तुम सब के स्वार्थीपन की   झलक देख लेनी चाहिए थी…मु  झे तलाक ले कर रातदिन के कलह, लड़ाई  झगड़ों और तनाव से मुक्त हो जाना चाहिए था.

‘‘उस स्थिति में अंजु और नीरज की देखभाल करना मेरी सिर्फ जिम्मेदारी न रह कर मेरे जीवन में भरपूर खुशियां भरने का अहम कारण बन जाता. आज नीरज की आंखों में मु  झे अपने लिए मानसम्मान के साथसाथ प्यार भी नजर आता. अंजु को वैधव्य की नीरसता और अकेलेपन से छुटकारा मिलता और वह मेरे जीवन में प्रेम की न जाने कितनी मिठास भर…’’

राकेशजी आगे नहीं बोल सके क्योंकि अचानक छाती में तेज दर्द उठने के कारण उन की सांसें उखड़ गई थीं.

रवि को यह अंदाजा लगाने में देर नहीं लगी कि उस के पिता को फिर से दिल का दौरा पड़ा था. वह डाक्टर को बुलाने के लिए कमरे से बाहर की तरफ भागता हुआ चला गया.

राकेशजी ने अपने दिल में दबी जो भी बातें अपने बेटे रवि से कही थीं, उन्हें बाहर गलियारे में दरवाजे के पास खड़ी अंजु ने भी सुना था. रवि को घबराए अंदाज में डाक्टर के कक्ष की तरफ जाते देख वह डरी सी राकेशजी के कमरे में प्रवेश कर गई.

राकेशजी के चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव देख कर वह रो पड़ी. उन्हें सांस लेने में कम कष्ट हो, इसलिए आगे बढ़ कर उन की छाती मसलने लगी थी.

‘‘सब ठीक हो जाएगा… आप हिम्मत रखो… अभी डाक्टर आ कर सब संभाल लेंगे…’’ अंजु रोंआसी आवाज में बारबार उन का हौसला बढ़ाने लगी.

राकेशजी ने अंजु का हाथ पकड़ कर अपने हाथों में ले लिया और अटकती आवाज में कठिनाई से बोले, ‘‘तुम्हारी और अपनी जिंदगी को खुशहाल बनाने से मैं जो चूक गया, उस का मु  झे बहुत अफसोस है…नीरज का और अपना ध्यान रखना… अलविदा, माई ल… ल…’’

जिम्मेदारियों व उत्तरदायित्वों के समक्ष अपने दिल की खुशियों व मन की इच्छाओं की सदा बलि चढ़ाने वाले राकेशजी, अंजु के लिए अपने दिल का प्रेम दर्शाने वाला ‘लव’ शब्द इस पल भी अधूरा छोड़ कर इस दुनिया से सदा के लिए विदा हो गए थे.

Romantic Story : अधूरे फसाने की मुकम्मल नज्म

Romantic Story : कितना जादू है उस की कहानियों और कविताओं में. वह जब भी  उस की कोई रचना पढ़ती है, तो न जाने क्यों उस के अल्हड़ मन में, उस की अंतरात्मा में एक सिहरन सी दौड़ जाती है.

उस ने उस मशहूर लेखक की ढेरों कहानियां, नज्में और कुछ उपन्यास भी पढ़े हैं. उसे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि उस की मां भी उस के उपन्यास पढ़ती हैं. एक दिन मां के एक पुराने संदूक में उस लेखक के बरसों पहले लिखे कुछ उपन्यास उसे मिले.

वह उपन्यास के पृष्ठों पर अंकित स्याही में उलझ गई. न जाने क्यों उसे लगा कि उपन्यास में वर्णित नायिका और कोई नहीं बल्कि उस की मां है. हां, उस ने कभी किसी प्रकाशक के मुंह से भी सुना था कि उस की मां नीलम का कभी उस लेखक से अफेयर रहा था.

उस समय के नवोदित लेखक रिशी और कालेज गर्ल नीलम के अफेयर के चर्चे काफी मशहूर रहे थे. उस ने उपन्यास का बैक पेज पलटा जिस पर लेखक का उस समय का फोटो छपा था. फोटो बेहद सुंदर और आकर्षक था. उस में वह 20-22 साल से अधिक उम्र का नहीं लग रहा था.

अचानक वर्तिका आईने के सामने आ कर खड़ी हुई. वह कभी खुद को तो कभी उस लेखक के पुराने चित्र को देखती रही.

वह अचानक चौंकी, ‘क्या… हां, मिलते तो हैं नयननक्श उस लेखक से. तो क्या…

‘हां, हो सकता है? अफेयर में अंतरंग संबंध बनना कोई बड़ी बात तो नहीं, लेकिन क्या वह उस की मां के अफेयर की निशानी है? क्या मशहूर लेखक रिशी ही उस का पिता…

‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’ वह अपनी जिज्ञासा का खुद ही समाधान भी करती. अगर ऐसा होता तो उस का दिल रिशी की कहानियां पढ़ कर धड़कता नहीं.

‘‘यह कौन सी किताब है तुम्हारे हाथ में वर्तिका? कहां से मिली तुम्हें?’’ मां की आवाज ने उस के विचारों की शृंखला तोड़ी.

वर्तिका चौंक कर हाथ में पकड़े उपन्यास को देख कर बोली, ‘‘मौम, रिशी का यह उपन्यास मुझे आप के पुराने बौक्स से मिला है. क्या आप भी उस की फैन हैं?’’

अपनी बेटी वर्तिका के सवाल पर नीलम थोड़ा झेंपी लेकिन फिर बात बना कर बोलीं, ‘‘हां, मैं ने उस के एकदो उपन्यास  कालेज टाइम में अवश्य पढ़े थे वह ठीकठाक लिखता है. लेकिन हाल में तो मैं ने उस का कोई उपन्यास नहीं पढ़ा. क्या इन दिनों उस का कोई नया उपन्यास रिलीज हुआ है?’’

‘‘हां, हुए तो हैं,’’ वर्तिका अपनी मां की बात से उत्साहित हुई.

‘‘ठीक है मुझे देना, फुरसत मिली तो पढ़ूंगी,’’ कह कर नीलम चली गई और वर्तिका सोचने लगी कि सच इतने अच्छे लेखक को बौयफ्रैंड के रूप में उस की खूबसरत मां जरूर डिजर्व करती होंगी.

2-3 दिन बाद वर्तिका को अवसर मिला. वह अपनी सहेली सोनम के साथ रिशी का कहानीपाठ सुनने पहुंच गई. उस ने पढ़ा था कि लिटरेचर फैस्टिवल में वह आ रहा है.

पूरा हौल खचाखच भरा था. सोनम को इतनी भीड़ का पहले से ही अंदेशा था. तभी तो वह वर्तिका को ले कर समय से काफी पहले वहां आ गई थी. सोनम भी वर्तिका की तरह रिशी के लेखन की प्रशंसक है. दोनों सहेलियां आगे की कुरसियों पर बिलकुल मंच के सामने जा कर बैठ गईं.

रिशी आया और आ कर बैठ गया उस सोफे पर जिस के सामने माइक लगा था. उतना खूबसूरत, उतना ही स्मार्ट जितना  वह 20-21 की उम्र में था, जबकि अब तो लगभग 40 का होगा. बाल कालेसफेद लेकिन फिर भी उस में अलग सा अट्रैक्शन था.

उद्घोषक रिशी का परिचय कराते हुए बोला, ‘‘ये हैं मशहूर लेखक रिशी, जो पिछले 20 साल से युवा दिलों की धड़कन हैं,’’ फिर वह तनिक रुक कर मुसकराते हुए बोला, ‘‘खासकर युवा लड़कियों के.’’

उद्घोषक की बात सुन कर वर्तिका का दिल धड़क उठा. अपने दिल के यों धड़कने की वजह वर्तिका नहीं जानती. रिशी की कहानी में डूबी वर्तिका बारबार खुद को रिशी की नायिका समझती और हर बार अपनी इस सोच पर लजाती.

‘‘तुम में एक जानीपहचानी सी खुशबू है,’’ वर्तिका को औटोग्राफ देते हुए रिशी बोला.

रिशी की बात सुन कर वर्तिका लज्जा गई, क्या रिशी ने उसे पहचान लिया है? क्या वह जान गया है कि वर्तिका उस की प्रेमिका रही नीलम की बेटी है?

रिशी अन्य लोगों को औटोग्राफ देने में व्यस्त हो गया और वर्तिका के दिमाग में उधेड़बुन चलती रही. वह भी मन ही मन रिशी से प्यार करने लगी, यह जानते हुए भी कि कभी उस की मां रिशी की प्रेमिका रही है.

‘तो रिशी उस का पिता हुआ,’  यह सोच कर वर्तिका अपने दिल में उठे इस खयाल भर से ही लज्जा गई. मां ने उसे पिता के बारे में बस यही बताया था कि वे उस के जन्म के बाद से ही घर कभी नहीं आए. मां ने उसे अपने बलबूते ही पाला है.

‘नहींनहीं, ऐसा नहीं हो सकता’ इस खयाल मात्र से ही उस के दिल की धड़कनें बढ़ जातीं. रिशी उस का पिता नहीं हो सकता, लेकिन रिशी से उस के नयननक्श मिलते हैं. फिर आज रिशी ने उसे देखते ही कहा भी ‘वर्तिका तुम्हारी खुशबू जानीपहचानी सी लगती है.’

वर्तिका आज बारबार करवटें बदलती रही, लेकिन नींद तो उस की आंखों से कोसों दूर थी. करवटें बदलबदल कर जब वह थक गई तो ठंडी हवा में सांस लेने के लिए छत पर चली गई.

मम्मी के कमरे के सामने से गुजरते हुए उस ने देखा कि मम्मी के कमरे की लाइट जल रही है, ‘इतनी रात को मम्मी के कमरे में लाइट?’  हैरानी से वर्तिका यह सोच कर खिड़की के पास गई और खिड़की से झांक कर उस ने देखा कि मम्मी तकिए के सहारे लेटी हुई हैं. उन के हाथ में किताब है, जिसे वे पढ़ रही हैं. वर्तिका ने देखा कि यह तो वही किताब है, जो उस ने रिशी के कहानीपाठ वाले हौल से खरीदी थी और उस पर उस ने रिशी का औटोग्राफ भी लिया था.

वर्तिका वापस कमरे में आ गई और अपनी मम्मी और रिशी के बारे में सोचने लगी.

आज वर्तिका को रिशी का पत्र आया था. शायद उस के पहले पत्र का ही रिशी ने जवाब दिया था. उस ने वर्तिका से पूछा कि क्या वह वही लड़की है जो उसे कहानीपाठ वाले दिन मिली थी. साथ ही रिशी ने अपने इस पत्र में यह भी लिखा कि इस से वही खुशबू आ रही है जो मैं ने उस दिन महसूस की थी.

वर्तिका अपनी देह की खुशबू महसूस करने की कोशिश करने लगी, लेकिन उसे  महसूस हुई अपनी देह से उठती रिशी की खुशबू.

उस ने पत्र लिख कर रिशी से मिलने की इच्छा जताई, जिसे रिशी ने कबूल कर लिया.

सामने बैठा रिशी उस का बौयफ्रैंड सा लगता. वर्तिका सोचती, ‘जैसे आज वह रिशी के सामने बैठी है वैसे ही उस की मम्मी भी रिशी के सामने बैठती होंगी.’

‘‘आजकल आप क्या लिख रहे हैं?’’ वर्तिका ने पूछा.

‘‘उपन्यास.’’

‘‘टाइटल क्या है, आप के उपन्यास का?’’

‘‘अधूरे फसाने की मुकम्मल नज्म,’’ कह कर रिशी वर्तिका की आंखों में झांकने लगा और वर्तिका रिशी और मम्मी के बारे में सोचने लगी.

रिशी उस की मम्मी का अधूरा फसाना है. वर्तिका यह तो जानती है पर क्या वह खुद उस अधूरे फसाने की मुकम्मल नज्म है? वर्तिका जानना चाहती है उस मुकम्मल नज्म के बारे में.

वह यह जानने के लिए बारबार रिशी से मिलती है. कहीं वही तो उस का पिता नहीं है. उसे न जाने क्यों मां से अनजानी सी ईर्ष्या होने लगी थी. मां ने एक बार भी रिशी से मिलने की इच्छा नहीं जताई.

उस शाम रिशी ने उस से कहा, ‘‘वर्तिका, मैं लाख कोशिश के बाद भी तुम्हारे जिस्म से उठती खुशबू को नहीं पहचान पाया.’’

‘‘नीलम को जानते हैं आप?’’ वर्तिका अब जिंदगी की हर गुत्थी को सुलझाना चाहती थी.

‘‘हां, पर तुम उन्हें कैसे जानती हो?’’ रिशी चौंक कर वर्तिका की आंखों में नीलम को तलाशने लगा.

‘‘उन्हीं की खुशबू है मेरे बदन में,’’ वर्तिका ने यह कह कर अपनी नजरें झुका लीं.

रिशी वर्तिका को देख कर खामोश रह गया.

रिशी को खामोश देख कर, कुछ देर बाद वर्तिका बोली, ‘‘कहीं इस में आप की खुशबू तो शामिल नहीं है?’’

‘‘यह मैं नहीं जानता,’’ कह कर रिशी उठ गया.

उसे जाता देख कर वर्तिका ने पूछा, ‘‘आप का नया उपन्यास मार्केट में कब आ रहा है? मम्मी पूछ रही थीं.’’

‘‘शायद कभी नहीं,’’ रिशी ने रुक कर बिना पलटे ही जवाब दिया.

‘‘क्यों?’’ वर्तिका उस के सामने आ खड़ी हुई.

‘‘क्योंकि अधूरे फसाने की नज्म भी अधूरी ही रहती है,’’ रिशी वर्तिका की बगल से निकल गया और वर्तिका फिर सोचने लगी, अपने, रिशी और मम्मी के बारे में.

वर्तिका की आंखें लाल हो गईं. रात भर उसे नींद नहीं आई. उस की जिंदगी की गुत्थी सुलझने की जगह और उलझ गई. रिशी को खुद मालूम नहीं था कि वह उस का अंश है या नहीं. अब उसे सिर्फ उस की मम्मी बता सकती हैं कि उस की देह की खुशबू में क्या रिशी की खुशबू शामिल है.

नीलम किचन में नाश्ता तैयार कर रही थी. अचानक वर्तिका की नजर आज के न्यूजपेपर पर पड़ी. वर्तिका न्यूजपेपर में अपना और रिशी का फोटो देख कर चौंक पड़ी. दोनों आमनेसामने बैठे थे. वे एकदूसरे की आंखों में झांक रहे थे.

‘एनादर औफर औफ औथर रिशी’ के शीर्षक के साथ.

अरे, यह खबर तो उसे कहीं का नहीं छोड़ेगी, इस से पहले उसे आज अपने जीवन की गुत्थी सुलझानी ही होगी. वर्तिका भाग कर अपनी मम्मी के पास गई.

‘‘क्या मम्मी, रिशी मेरे पिता हैं?’’ वर्तिका ने अपनी मम्मी से सीधा सवाल किया.

कुछ देर वर्तिका को देख कर कुछ सोचते हुए नीलम बोली, ‘‘अगर रिशी तेरे पिता हुए तो?’’

‘‘तो मुझे खुशी होगी,’’ वर्तिका न्यूजपेपर बगल में दबा कर दीवार के सहारे खड़ी थी.

‘‘और अगर नहीं हुए तो?’’ नीलम ने अपनी बेटी के कंधे पकड़ कर उसे सहारा दिया.

‘‘तो मुझे ज्यादा खुशी होगी,’’ वर्तिका अपनी मम्मी को हाथ से संभालते हुए बोली.

‘‘रिशी तुम्हारे पिता नहीं… हां, हमारी दोस्ती बहुत थी वे तुम्हारे पिता के साथ ही पढ़ाई कर रहे थे…’’ अभी नीलम की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि वर्तिका पलट कर घर से बाहर की ओर भागी.

‘‘अरे, कहां भागी जा रही है इतनी जल्दी में?’’ नीलम ने बेटी को पुकारा.

‘अधूरे फसाने की मुकम्मल नज्म बनने,’ वर्तिका ने उसी तरह भागते हुए बिना पलटे हुए कहा.

Love Story : धोखा – प्रेमी के धोखे की शिकार युवती की कहानी

Love Story : घर में चहलपहल थी. बच्चे खुशी से चहक रहे थे. घर की साजसज्जा और मेहमानों के स्वागतसत्कार का प्रबंध करने में घर के बड़ेबुजुर्ग व्यस्त थे. किंतु शशि का मन उदास था. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. दरअसल, आज उस की सगाई थी. घर की महिलाएं बारबार उसे साजश्रृंगार के लिए कह रही थीं लेकिन वह चुपचाप खिड़की से बाहर देख रही थी. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे?

2 महीने पहले जब उस की शादी तय हुई थी तो वह खूब रोई थी. वह किसी और को चाहती थी. लेकिन उस के मातापिता ने उस से पूछे बगैर एक व्यवसायी से उस की शादी पक्की कर दी थी. वह अभी शहर में होस्टल में रह कर बीएड कर रही थी. वहीं अपने साथ पढ़ने वाले राकेश को वह दिल दे बैठी थी. लेकिन उस ने यह बात अपने मातापिता को नहीं बताई थी क्योंकि वह खुद या राकेश अभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाए थे. पढ़ाई पूरी होने में भी 2 साल बाकी थे. इसलिए वह चाहती थी कि शादी 2 साल के लिए किसी तरह से रुकवा ले. उस ने सोचा कि जब परिस्थितियां ठीक हो जाएंगी तो मन की बात अपने मातापिता को बता कर राकेश के लिए उन्हें राजी कर लेगी.

इसीलिए, पिछली छुट्टी में वह घर आई तो अपनी शादी की बात पक्की होने की सूचना पा कर खूब रोई थी. शादी के लिए मना कर दिया था, लेकिन किसी ने उस की एक न सुनी. पिताजी तो एकदम भड़क गए और चिल्लाते हुए बोले थे, ‘शादी वहीं होगी जहां मैं चाहूंगा.’ राकेश को उस ने फोन पर ये बातें बताई थीं. वह घबरा गया था. उस ने कहा था, ‘शशि, तुम शादी के लिए मना कर दो.’

‘नहीं, यह इतना आसान नहीं है. पिताजी मानने को तैयार नहीं हैं.’ ‘लेकिन मैं कैसे रहूंगा? अकेला हो जाऊंगा तुम्हारे बिना.’

‘मैं भी तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी, राकेश,’ शशि का गला भर आया था. ‘एक काम करो. तुम पहले होस्टल आ जाओ. कोई उपाय निकालते हैं,’ राकेश ने कहा था, ‘मैं रेलवे स्टेशन पर तुम्हारा इंतजार करूंगा. 2 नंबर गेट पर मिलना. वहीं से दोनों होस्टल चलेंगे.’

उदास स्वर में शशि बोली थी, ‘ठीक है. मैं 2 नंबर गेट पर तुम्हारा इंतजार करूंगी.’ तय योजना के अनुसार, शशि रेल से उतर कर 2 नंबर गेट पर खड़ी हो गई. तभी एक कार आ कर शशि के पास रुकी. उस में से राकेश बाहर निकला और शशि के गले लग कर बोला, ‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’

शशि रोआंसी हो गई. राकेश ने कहा, ‘आओ, गाड़ी में बैठ कर बातें करते हैं.’ ‘राकेश कितना सच्चा है,’ शशि ने सोचा, ‘तभी होस्टल जाने के लिए गाड़ी ले आया. नहीं तो औटो से 20 रुपए में पहुंचती. 2 किलोमीटर दूर है होस्टल.’

गाड़ी में बैठते ही राकेश ने शशि का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘शशि, मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम नहीं मिलीं, तो अपनी जान दे दूंगा.’ कार सड़क पर दौड़ने लगी.

शशि बोली, ‘नहीं राकेश, ऐसा नहीं करना. मैं तुम्हारी हूं और हमेशा तुम्हारी ही रहूंगी.’ ‘इस के लिए मैं ने एक उपाय सोचा है,’ राकेश ने कहा.‘क्या,’ शशि बोली. ‘हम लोग शादी कर लेते हैं और अपनी नई जिंदगी शुरू करते हैं.’

शशि आश्चर्यचकित हो कर बोली, ‘यह क्या कह रहे हो, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है न.’ ‘तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है,’ तभी उस ने ड्राइवर से कार रोकने को कहा.

कार एक पुल पर पहुंच गई थी. नीचे नदी बह रही थी. राकेश कार से बाहर आ कर बोला, ‘तुम शादी के लिए हां नहीं कहोगी तो मैं इसी पुल से नदी में कूद कर जान दे दूंगा,’ यह कह कर राकेश पुल की तरफ बढ़ने लगा. ‘यह क्या कर रहे हो, राकेश?’ शशि घबरा गई.

‘तो मैं जी कर क्या करूंगा.’ ‘चलो, मैं तुम्हारी बात मानती हूं. लेकिन जान न दो,’ यह कह कर उस ने राकेश को खींच कर वापस कार में बिठा दिया और खुद भी बगल में बैठ कर बोली, ‘लेकिन यह सब होगा कैसे?’

शशि के हाथों को अपने सीने से लगा कर राकेश बोला, ‘अगर तुम तैयार हो तो सब हो जाएगा. हम दोनों आज ही शादी करेंगे.’ शशि चकित रह गई. इस निर्णय पर वह कांप रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? न कहे तो प्यार टूट जाता और राकेश जान दे देता. हां कहे तो मातापिता, रिश्तेदार और समाज के गुस्से का शिकार बनना पड़ेगा.

‘क्या सोच रही हो?’ राकेश ने पूछा. शशि बोली, ‘यह सब अचानक और इतनी जल्दी ठीक नहीं है, मुझे कुछ सोचनेसमझने का समय तो दो.’

‘इस का मतलब तुम्हें मुझ से प्यार नहीं है. ठीक है, मत करो शादी. मैं भी जिंदा नहीं रहूंगा.’ ‘अरे, यह क्या कर रहे हो? मैं तैयार हूं, लेकिन शादी कोई खेल नहीं है. कैसे शादी होगी. हम कहां रहेंगे? घर के लोग नाराज होंगे तो क्या करेंगे? हमारी पढ़ाई का क्या होगा?’ शशि ने कहा.

‘तुम इस की चिंता मत करो. मैं सब संभाल लूंगा. एक बार शादी हो जाने दो. कुछ दिनों बाद सब मान जाएंगे. वैसे अब हम बालिग हैं. अपने जीवन का फैसला स्वयं ले सकते हैं,’ राकेश ने समझाया. ‘लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा है.’

‘मैं हूं न. डरने की क्या बात है?’ ‘चलो, फिर ठीक है. मैं तैयार हूं,’ डरतेडरते शशि ने शादी के लिए हामी भर दी. वह किसी भी कीमत पर अपना प्यार खोना नहीं चाहती थी.

राकेश खुश हो कर बोला, ‘तुम कितनी अच्छी हो.’ थोड़ी देर बाद कार एक होटल के गेट पर रुकी. राकेश बोला, ‘डरो नहीं, सब ठीक हो जाएगा. हम लोग आज ही शादी कर लेंगे, लेकिन किसी को बताना नहीं. शादी के बाद कुछ दिन हम लोग होस्टल में ही रहेंगे. 15 दिनों बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा. मेरी मां अपनी बहू को देखना चाहती हैं. वे बहुत खुश होंगी.’

‘तो क्या तुम ने अपनी मम्मीपापा को सबकुछ बता दिया?’ ‘नहीं, सिर्फ मम्मी को, क्योंकि मम्मी को गठिया है. ज्यादा चलफिर नहीं पातीं. इसीलिए वे जल्दी बहू को घर लाना चाहती हैं. किंतु पापा नहीं चाहते कि मेरी शादी हो. वे चाहते हैं कि मैं पहले पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं, लेकिन वे भी मान जाएंगे फिर हम दोनों की सारी मुश्किलें खत्म हो जाएंगी,’ राकेश बोला.

‘सच, तुम बहुत अच्छे हो.’ ‘तो मेरी प्यारी महबूबा, तुम होटल में आराम करो और हां, इस बैग में तुम्हारी जरूरत की सारी चीजें हैं. तुम रात 8 बजे तक तैयार हो जाना. फिर हम दोनों पास के मंदिर में चलेंगे. वहां शादी कर लेंगे. फिर हम होटल में आ जाएंगे. आज हमारी जिंदगी का सब से खुशी का दिन होगा.’

कुछ प्रबंध करने राकेश बाहर चला गया. शशि उधेड़बुन में थी. उस के कुछ समझ में नहीं आ रहा था. अपने मातापिता को धोखा देने की बात सोच कर उसे बुरा लग रहा था, लेकिन राकेश जिद पर अड़ा था और वह राकेश को खोना नहीं चाहती थी. कब रात के 8 बज गए, पता ही नहीं चला. तभी राकेश आ कर बोला, ‘अरे, अभी तक तैयार नहीं हुई? समय कम है. तैयार हो जाओ. मैं भी तैयार हो रहा हूं.’

‘लेकिन राकेश यह सब ठीक नहीं हो रहा है,’ शशि ने कहा. ‘यदि ऐसा है तो चलो, तुम्हें होस्टल पहुंचा देता हूं. किंतु मुझे हमेशा के लिए भूल जाना. मैं इस दुनिया से दूर चला जाऊंगा. जहां प्यार नहीं, वहां जी कर क्या करना?’ राकेश उदास हो कर बोला.

‘तुम बहुत जिद्दी हो, राकेश. डरती हूं कहीं कुछ बुरा न हो जाए.’ ‘लेकिन मैं किसी कीमत पर अपना प्यार पाना चाहता हूं, नहीं तो…’

‘बस राकेश, और कुछ मत कहो.’ 1 घंटे में तैयार हो कर दोनों पास के एक मंदिर में पहुंच गए. वहां राकेश के कुछ दोस्त पहले से मौजूद थे.

राकेश मंदिर के पुजारी से बोला, ‘पंडितजी, हमारी शादी जल्दी करा दीजिए.’ जल्दी ही शादी की प्रक्रिया पूरी हो गई. शशि और राकेश एकदूसरे के हो गए. शशि को अपनी बाहों में ले कर राकेश बोला, ‘चलो, अब हम होटल चलते हैं. आज की रात वहीं बितानी है.’

दोनों होटल में आ गए. लेकिन यह दूसरा होटल था. शशि को घबराहट हो रही थी. राकेश बोला, ‘चिंता न करो. अब सब ठीक हो जाएगा. आज की रात हम दोनों की खास रात है न.’ शशि मन ही मन डर रही थी, किंतु राकेश को रोक न सकी. फिर उसे भी अच्छा लगने लगा था. दोनों एकदूसरे में समा गए. कब 2 घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला.

‘थक गई न. चलो, पानी पी लो और सो जाओ,’ पानी का गिलास शशि की तरफ बढ़ाते हुए राकेश बोला. शशि ने पानी पी लिया. जल्द ही उसे नींद आने लगी. वह सो गई. सुबह जब शशि की नींद खुली तो वह हक्काबक्का रह गई. उस के शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं था. उस के मुंह से चीख निकल गई. जब उस ने देखा कि कमरे में राकेश के अलावा 3 और लड़के थे. सब मुसकरा रहे थे.

तभी राकेश बोला, ‘चुप रहो जानेमन, यहां तुम्हारी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है. ज्यादा इधरउधर की तो तेरी आवाज को हमेशा के लिए खामोश कर देंगे.’ ‘यह तुम ने अच्छा नहीं किया, राकेश,’ अपने शरीर को ढकने का प्रयास करती हुई शशि रोने लगी, ‘तुम ने मुझे बरबाद कर दिया. मैं सब को बता दूंगी. पुलिस में शिकायत करूंगी.’

‘नहीं, तुम ऐसा नहीं करोगी अन्यथा हम तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे. वैसे ऐसा करोगी तो तुम खुद ही बदनाम होगी,’ कह कर राकेश हंसने लगा. उस के दोस्त भी हंसने लगे. शशि का बदन टूट रहा था. उस के शरीर पर जगहजगह नोचनेखसोटने के निशान थे. वह समझ गई कि रात में पानी में नशीला पदार्थ मिला कर पिलाया था राकेश ने. उस के बेहाश हो जाने पर सब ने उस के साथ…

शशि का रोरो कर बुरा हाल हो गया. राकेश बोला, ‘अब चुप हो जा. जो हो गया उसे भूल जा. इसी में तेरी भलाई है और जल्दी से तैयार हो जा. तुझे होस्टल पहुंचा देता हूं. और हां, किसी से कुछ कहना नहीं वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’

शशि को अपनी व अपने परिवार की खातिर चुप रहना पड़ा था. ‘‘अरे, खिड़की के बाहर क्या देख रही हो? जल्दी तैयार हो जा. मेहमान आने वाले होंगे,’’ तभी मां ने उसे झकझोरा तो वह पिछली यादों से वर्तमान में लौटी.

‘‘वह प्यार नहीं धोखा था. उस ने अपने मजे के लिए मेरी सचाई और भावना का इस्तेमाल किया,’’ शशि ने मन ही मन सोचा. अपने आंसू पोंछते हुए शशि बाथरूम में घुस गई. उसे अपनी नासमझी पर गुस्सा आ रहा था. अपनी जिंदगी का फैसला उस ने दूसरे को करने का हक दे दिया था जो उस की भलाई के लिए जिम्मेदार नहीं था. इसीलिए ऐसा हुआ, लेकिन अब कभी वह ऐसी भूल नहीं करेगी. मुंह पर पानी के छींटे मार कर वह राकेश के दिए घाव के दर्द को हलका करने की कोशिश करने लगी.

मेहमान आ रहे हैं. अब उसे नई जिंदगी शुरू करनी है. हां, नई जिंदगी…वह जल्दीजल्दी सजनेसंवरने लगी.

Emotional Story : नाजुक सा रिश्ता – ननद भाभी के बीच पनपने स्नेह की भावुक कहानी

Emotional Story : प्रीत की आंख खुली, तो सरला की टूटीफूटी अंगरेजी में बात करने की अस्पष्ट सी आवाज कानों में पड़ी. संभवतः वह वार्डन से छुट्टी देने की विनती कर रही थी.

प्रीत की डिलीवरी हुए आज 10 दिन हो गए थे. आस्ट्रेलिया के सिडनी शहर का यह अस्पताल घर से तकरीबन एक घंटे की ड्राइव पर था. सबकुछ ठीकठाक हो गया था व नवजात शिशु और प्रीत दोनों की तबीयत भी बिलकुल ठीक थी. पता नहीं, अस्पताल वाले 2 दिन और क्यों रखना चाह रहे थे?

प्रीत की भाभी सरला के लिए घर अस्पताल दोनों मैनेज करना बहुत मुश्किल हो रहा था. वह पहली बार विदेश आई थी. यहां का रहनसहन, भाषा, तौरतरीके सब से बिलकुल अनजान.

सुबह का नाश्ता, अतुल का खाना और प्रीत के लिए सूप और दलिया बना कर 8 बजे वह तैयार हो जाती थी. ड्राइव करना उसे आता नहीं था, इसलिए कभी अतुल खुद छोड़ जाते या कभी उस के लिए कैब कर देते.

सरला के रूम में घुसते ही प्रीत ने पूछा, “क्या हुआ भाभी? मिल रही है क्या छुट्टी?”

“पता नहीं, वार्डन बात करेगी,” भाभी सरला ने प्रीत को बताया.

“चलो छोड़ो, लो बेबी की फीड का टाइम हो गया है,” उस ने नन्हे गोलमटोल से अंक को प्रीत की गोद में दे दिया और खुद उस के पास बैठ उस का सिर सहलाने लगी.

आज खुद मां बनने के बाद प्रीत ने पहली बार महसूस किया कि भाभी के प्यार में भी मां का दुलार ही झलक रहा था. बीता हुआ वक्त अचानक उस के सामने आ खड़ा हुआ.

कितना गलत सोचती थी प्रीत सरला के बारे में. हर वक्त उस ने उसे नीचा दिखाने, हंसी उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, पर सीधीसादी सरला ने कभी पलट कर जवाब नहीं दिया था. उस की निश्चल हंसी देख कर प्रीत कुढ़ कर रह जाती थी.

प्रीत और उसके बड़े भाई में 10 साल का अंतर था. भैया शुरू से ही शांत, गंभीर और पढ़ाकू टाइप के थे. कालेज के होनहार छात्रों में लोकप्रिय लेक्चरर. प्रीत बिल्कुल उलटी, चंचल, फैशनेबल, चुलबुली और अपनी हर बात मनवाने वाली. मांपापा और भैया की सब से लाड़ली थी प्रीत. मजाल है कि भैया उस की कोई बात टाल दे.

पर, उस दिन प्रीत का दिल शीशे की तरह चटक गया, जब मानव ने बताया कि वह गांव की अनाथ सरला से विवाह करेगा. उस ने तो पता नहीं अपने भैया की शादी के लिए क्याक्या सपने संजोए थे. भैया के लिए ऊंचे घराने की कई सुंदर लड़कियों के रिश्ते आ रहे थे. प्रीत की पसंद मम्मीपापा भी अपनी मुहर लगा देते. पर भैया…? उन पर तो जैसे किसी का रंग ही नहीं चढ़ता था.

3 साल से यही सिलसिला चल रहा था. कानपुर से कुछ दूर गांव में सरकार ने नया कालेज खोला था और भैया को 6 महीने के डैपुटेशन पर भेज दिया था. गांव के प्राइमरी स्कूल में भैया ने सरला को पहली बार देखा था हिंदी पढ़ाते हुए.

सांवले चेहरे पर मासूम सी बड़ीबड़ी आंखें, कमर तक लटकती ढीली सी चोटी, माथे पर छोटी सी बिंदी. सादी सी सूती साड़ी में एक ही बार में वह मानव को भा गई थी.

छोटे से गांव में 2-3 बार दोनों की मुलाकात हो गई थी. मानव उस के संस्कार और विचारों की स्पष्टता से बहुत प्रभावित था. सरला ने भी झुकी पलकों से आदर्शवादी मानव को अपना दिल दे दिया.

घर आ कर जब भैया ने इस संबंध की घोषणा की, तो मम्मीपापा और प्रीत तीनों जैसे सकते में आ गए थे.

प्रीत को तो ढाई सौ वाट का करंट लग गया था, पर मानव अपने निर्णय पर अटल था. धीरेधीरे पापा तो मान गए. मां को भी निराशा हुई थी, पर वे कुछ नहीं बोलीं.

लेकिन प्रीत, वह तो बिलकुल उखड़ गई थी. उस ने सब से बात करना बंद कर दिया था. विवाह आर्य समाज रीति से बिलकुल सादा समारोह में हुआ था. प्रीत बुझे मन से शादी में शामिल हुई थी. सरला का स्वागत भी ठंडाठंडा सा ही हुआ था ससुराल में.

प्रीत के रूप में एक छोटी बहन, सहेली मिल जाएगी, बहुत खुश थी. सरला पर प्रीत का व्यवहार देख कर उस का कोमल मन आहत हो गया था, पर उस ने अपने जज्बात दिल में ही दबा लिए थे.

सरला घर की जिम्मेदारियों में ऐसी रम गई थी, जैसे दूध में शक्कर. सब उस के शालीन व्यवहार के कायल हो गए थे. समय बीत रहा था, पर प्रीत के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया.

शादी के 6 महीने बाद एक दिन पता चला कि मां को ब्रैस्ट कैंसर है और फिर शुरू हो गया कीमो, रेडियोथैरेपी और इलाज का लंबा सिलसिला. एक साल इसी में ही निकल गया. मां की जिद थी कि उन के सामने प्रीत की भी शादी हो जाए.

सरला ने मां की सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ रखी थी. अपनी नई शादी के सुनहरे सपनों को सेमल के कोमल रेशों की तरफ फूंक मार कर हवा में उड़ाते हुए हर जिम्मेदारी अपने नाजुक कंधों पर उठा ली थी.

मां भी तो सरला… सरला आवाज देते थकती न थी. सरला का जैसेजैसे घर में प्रभाव बढ़ रहा था, प्रीत को लगता था मानो उस के अधिकारों पर किसी ने अतिक्रमण कर लिया है. पापा की आंखें बहू के आगे नम हो जाती थीं और मानव ऐसी सेवाभावी जीवनसाथी पा कर अपने को धन्य समझ रहा था. लेकिन, छोटी बहन प्रीत की नाराजगी अभी भी चट्टान जैसी कठोर थी, जिसे वह नहीं हिला सका था.

प्रीत के एमए फाइनल ईयर की परीक्षाएं नजदीक थीं. वह जानबूझ कर घर से बेखबर हो अधिक से अधिक समय कालेज में और अपनी पढ़ाई में बिता रही थी.

एक दिन शाम को सरला, मां को व्हीलचेयर पर लान में घुमा रही थी, पापा और मानव वहीं बैठ कर चाय पी रहे थे और तभी पापा के बचपन के दोस्त शर्मा अंकल गेट से दाखिल हुए.

“और भई, अकेलेअकेले चाय पी जा रही है. यार, कभीकभी दोस्तों को भी याद कर लिया करो. और भई मानव, कैसा चल रहा है तुम्हारा कालेज?”

“बढ़िया अंकल,” मानव ने शर्मा अंकल के पैर छूते हुए कहा, तभी मां और सरला भी पास आ गए.

“कैसी हैं अब हमारी भाभी?” शर्मा अंकल ने थोड़ा बैठते हुए मां से पूछा, तो मां फीकी सी हंसी हंस दी.

“भैया, इस बीमारी का तो नाम ही बुरा है, अब आप को तो सब पता है, पता नहीं, कब बुलावा आ जाए, प्रीत की शादी मेरी आंखों के सामने हो जाती तो मैं शांति से चली जाती.”

“ओहो भाभी, अभी ऊपर वाले के यहां हाउसफुल चल रहा है. आप का नंबर इतनी जल्दी नहीं आने वाला,” यह सुन कर सब हंस पड़े.

“मैं अंकल के लिए चाय ले आती हूं,” कहते हुए सरला अंदर चली गई.

“लो भाभी, आप की चिंता दूर किए देता हूं. प्रीत के लिए एक बहुत बढ़िया रिश्ता लाया हूं.”

“अरे, वह हमारी लखनऊ वाली जिज्जी हैं न, उन की ननद का लड़का है. खूब जमेगी जोड़ी… ऐसा सुंदर, सुशील आईटी इंजीनियर ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगा.”

“यह देखो… और शर्मा अंकल ने अतुल का फोटो आगे कर दिया. बस एक ही समस्या है, लड़का अभी एक प्रोजैक्ट पर आस्ट्रेलिया गया है. हो सकता है कि हमारी प्रीत को कुछ साल वहीं रहना पड़े.

अतुल के आकर्षक व्यक्तित्व को देख सब जैसे मोहित हो गए थे. पापा ने फोटो मां को देते हुए कहा, “लो, दिखा देना अपनी लाड़ली को.”

“प्रीत की मरजी जानना भी जरूरी है. लड़का आ रहा है अगले हफ्ते. वे लोग जल्दी शादी करने में इंटरेस्टेड हैं,” कहते हुए शर्मा अंकल जाने के लिए खड़े हो गए.

प्रीत घर में घुसी ही थी, सरला मां को सूप पिला रही थी.

“दीदी, आप फ्रैश हो जाओ. मैं आप के लिए कौफी बना देती हूं,” पर प्रीत ने कोई जवाब नहीं दिया और अपने कमरे में चली गई.

मां भी समझ गई थी. यह कोई नई बात नहीं है.

प्रीत कई बार अपने दोस्तों के सामने भी सरला के ड्रैसिंग सैंस, सीधेपन की हंसी उड़ा चुकी थी. रात को खाने के बाद मां ने प्रीत को अपने कमरे में बुलाया.

“देख प्रीत, मेरी सेहत दिनोंदिन गिरती जा रही है. तू ने अभी तक तो हमेशा अपनी बात मनवाई है, पर आज तुझे मेरी बात पर गौर करना ही पड़ेगा,” मां ने अतुल का फोटो प्रीत के आगे कर दिया.

“मुझे नहीं करनी अभी कोई शादीवादी. आप मुझे ब्लैकमेल नहीं कर सकते,” और वह फोटो वहीं पटक कर अपने कमरे में चली गई.

“क्या करूं इस लड़की का…?” मां लड़खड़ाते हुए पलंग पर गिर गईं.

सरला ने सहारा दे कर मां को लेटा दिया और बोली, “मां, थोड़ा सा वक्त दीजिए दीदी को. वे बहुत प्यार करती हैं आप से. आप की बात कभी नहीं टालेगी.”

“मैं यह फोटो दीदी की टेबल पर रख आती हूं,” सरला ने मां को समझाते हुए कहा.

अगले हफ्ते अतुल अपने मम्मीपापा व शर्मा अंकल के साथ घर आए थे.

प्रीत बेमन से अतुल से मिलने को राजी हो गई थी. प्रीत की सुंदरता और स्मार्टनैस ने सभी को बहुत प्रभावित किया.

नजरें चुराते हुए प्रीत भी अतुल के चुंबकीय व्यक्तित्व की ओर सहज ही आकर्षित हो गई थी.

दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद अगले महीने प्रीत के फाइनल एग्जाम के तुरंत बाद विवाह का मुहूर्त निकाल दिया गया.

शादी बहुत धूमधाम से हुई. भैया की शादी के सारे अधूरे ख्वाब प्रीत ने अपनी शादी में पूरे कर लिए थे. शादी में भैया ने पहली बार खुशी से डांस किया था.

घर मेहमानों से भर गया था. सरला ने सब की खातिरदारी में कोई कमी नहीं रखी थी और ऊपर से बीमार मां का ध्यान भी. उसे अपने सजनेसंवरने का भी होश नहीं था. बहुत खुशी से उस ने शादी के सारे काम निबटाए थे.

विदाई के समय प्रीत मां के गले लग रोए जा रही थी. उसे डर था कि पता नहीं, अब मां को कब देख पाएगी?

सरला, भैया, पापा सब रो रहे थे. लेकिन, प्रीत भाभी के गले नहीं लगी थी.

अतुल की छुट्टियां समाप्त होने को थीं. 2 दिन बाद ही उस की आस्ट्रेलिया की फ्लाइट थी. आस्ट्रेलिया में अभी उन का मधुमास ही चल रहा था कि एक दिन खबर आई कि मां चल बसी है. सात समंदर पार से इतनी जल्दी आना संभव नहीं था.

वह मां की फोटो गोद में ले कर बहुत दिनों तक रोती रही थी, पर अतुल के प्यार ने उसे संभाल लिया था.

समय सब से बड़ा डाक्टर होता है. जीवन अपनेअपने रास्ते पर चल पड़ा था.

जब भी घर बात होती, पापा पूरे समय लक्ष्मी जैसी बहू सरला की ही माला जपते रहते और प्रीत चिढ़ कर फोन रख देती.

और जब उस की प्रेगनेंसी की रिपोर्ट पौजिटिव आई, तो वह अतुल के गले लग कर लगभग रो ही पड़ी थी. अतुल ने उसे बहुत ही प्यार से समझाया, “अरे, इतनी बड़ी खुशखबरी… और तुम दुखी हो रही हो.”

“नहीं अतुल, तुम ने सुना नहीं कि डाक्टर ने क्या कहा, मेरा यूट्रस छोटा होने से कौम्प्लिकेशन बढ़ सकते हैं. ऐसे में 9 महीने बैड रैस्ट कैसे करूंगी? कौन संभालेगा सबकुछ?

“इस अनजान देश में न कोई नातेरिश्तेदार, न कोई आसपड़ोस, न कोई नौकरचाकर और न मेरी कोई सखीसहेली. ऐसे समय कितनी याद आती है अपनों की? यह दूर बैठा व्यक्ति ही समझ सकता है.”

एक महीना तो अतुल ने घर पर रह कर ही काम किया. वह औफिस और घर दोनों संभालते रहे. कई बार बाहर से खाना मंगवा लेते. जैसेतैसे करते 4 महीने निकल गए.

अब डाक्टर ने प्रीत को बिलकुल बिस्तर से उतरने के लिए मना कर दिया था. वह अपनी सासू मां को भी नहीं बुला सकती थी. उन का एक महीने पहले ही घुटने का आपरेशन हुआ था.

पापा और भैया को भी परेशान नहीं करना चाहती थी. और सरला भाभी, उन से किस मुंह से कहती उन को तो वह अपना दुश्मन समझती थी.

पर, अतुल के दिल में सरला के लिए बहुत आदर था.

एक हफ्ते बाद ही अचानक रात को भैया का फोन आया कि सरला की फ्लाइट सिडनी के लिए रवाना हो गई है.

प्रीत एक बार तो सुन कर सन्न रह गई. जो औरत लखनऊ से बाहर कभी अकेले नहीं गई, वह पहली बार अकेली अपने देश से इतनी दूर आ रही है, वह भी मेरी खातिर. उस का मन थोड़ा सा तरल हो गया.

अगले दिन जैसे ही सरला अतुल के साथ एयरपोर्ट से घर पहुंची, प्रीत ने सरला का स्वागत मुसकान के साथ किया, लेकिन अभी भी उस में गरमाहट नहीं थी.

लेकिन सरला के मासूम चेहरे पर प्यार के ही भाव थे. उस ने प्रीत का हाथ पकड़ते हुए कहा, “अरे, तुम ने मुझे इतना पराया समझ लिया. तुम और अतुल अकेले परेशान होते रहे, मुझे बताया तक नहीं.”

“चलो, अब मैं सब संभाल लूंगी,” और वाकई सरला के आते सबकुछ बदल गया.

8वां महीना खत्म होते ही प्रीत को अचानक लेबर पेन शुरू हो गया था. अतुल और सरला आननफानन ही प्रीत को ले कर अस्पताल भागे.

डाक्टर ने प्रीत को देखते ही कहा कि कंडीशन थोड़ी क्रिटिकल है. आपरेशन करना पड़ेगा. लेकिन हो सकता है कि हमें खून की जरूरत पड़े. और हमारे ब्लड बैंक में प्रीत के ब्लड ग्रुप का ब्लड आज ही खत्म हुआ है. इतनी रात को तो ब्लड मिलना भी मुश्किल रहेगा. आप किसी तरह इंतजाम कीजिए.

अतुल का चेहरा सफेद पड़ गया. उस ने कहा कि आप मेरा टैस्ट कर लीजिए, लेकिन अतुल का ब्लड ग्रुप अलग था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उस ने अपने औफिस के 2-3 लोगों से फोन पर बात की, लेकिन किसी का भी पौजिटिव रिस्पांस नहीं मिला. तभी सरला ने स्थिति समझते हुए कहा कि आप चिंता ना करें. एक बार डाक्टर को मेरा ब्लड भी टैस्ट कर लेने दीजिए.

किस्मत अच्छी थी. सरला का ब्लड प्रीत के ब्लड ग्रुप से मिल गया था. तुरंत ही सर्जरी कर डिलीवरी करा दी गई.

सरला के 2 यूनिट खून ने प्रीत को खतरे से बचा लिया था. जब प्रीत को होश आया और अतुल ने उसे सारी बात बताई, तो प्रीत फफकफफक कर सरला से लिपट कर रो पड़ी.

बरसों से दुख, ग्लानि, पश्चाताप का बांध टूट कर बह गया था. वह बोली, “भाभी, मुझे माफ कर दो. आज आप ने मेरे लिए जो कुछ किया है, शायद मां, पापा, भैया कोई भी नहीं कर पाता. मैं ने आप के साथ बहुत गलत व्यवहार किया. मैं अपने को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी.”

सरला ने उसे चूमते हुए कहा, “हट पगली, इतनी खुशी का मौका है. और तू रो रही है. मैं ने तो हमेशा तुझे अपनी छोटी बहन ही माना है,” दोनों की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे.

डाक्टर के कमरे में आने की आहट से प्रीत अचानक वर्तमान में लौट आई.

“हां तो यंग लेडी, हम आप को डिस्चार्ज कर रहे हैं. आप की भाभी ने हमें आखिर कनवींस कर ही लिया.”

किस्मत अच्छी थी. लेडी डाक्टर भी भारतीय थी और सरला भाभी ने अपने व्यवहार से उन से अच्छी दोस्ती कर ली थी.

घर पहुंची तो देखा, घर पर भी भाभी ने सोंठ और गोंद के लड्डू, मालिश का तेल, सबकुछ प्रीत के लिए तैयार कर रखे थे.

पता नहीं, सरला जैसी शख्सियत को किस मिट्टी से बनाया था. सेवा करतेकरते कभी थकती ही न थी, वह भी बिना किसी शिकन के.

अगले हफ्ते ही सरला का भारत लौटने का टिकट था और प्रीत का दिल बैठा जा रहा था. आज सुबह से उस के आंसू नहीं रुक रहे थे. उसे लगा कि सरला, जो कल भाभी बन कर आई थी, उस की मां बन कर जा रही थी. और एक बार फिर मां से बिछड़ना प्रीत के लिए असहनीय हो रहा था.

Hindi Kahani : शक – क्या सुगना का सच कभी कोई जान सका ?

Hindi Kahani : रोज  इसी समय वह काम से लौटती थी. उस के चारों बच्चे वहीं खेलते हुए मिलते थे. उसे ध्यान आया कि हो सकता है कि उस का पति मंगल आज बच्चों को उस की मां के घर छोड़ कर काम पर चला गया हो. वह कराहते हुए उठी और अपनेआप को घसीटते हुए मां के  घर की ओर चल पड़ी, जो उस के घर से मात्र एक फर्लांग की दूरी पर था. वहां पहुंच कर उस ने पाया कि मां अभी तक काम से नहीं लौटी थीं. उन के घर में भी ताला लगा हुआ था. निराश हो कर वह वापस लौटी और घर के सामने जमीन पर बैठ कर पति और बच्चों का इंतजार करने लगी.

वह रोज सवेरे 4 बजे सो कर उठती. घर का कामकाज निबटा कर पति व बच्चों के लिए दालभात पका कर काम पर निकल जाती थी. पति व बच्चे देर से सो कर उठते थे. मंगल बच्चों को खिलापिला कर उन्हें खेलता छोड़ कर काम पर निकल जाता. जब वह दोपहर में लौट कर आती तो उस के बच्चे घर के सामने गली के बच्चों के साथ खेलते मिलते. आज पहला मौका था कि सुगना को घर बंद मिला और बच्चे नहीं मिले. आसपास पूछताछ करने पर पता चला कि किसी ने भी मंगल व बच्चों को नहीं देखा था. ऐसा लगता था कि मंगल बच्चों को ले कर भोर होते ही कहीं चला गया था. सुगना को बाहर बैठेबैठे 2 घंटे हो गए थे. वह धीरेधीरे सुबकने लगी. आसपास औरतों व बच्चों की भीड़ जमा हो गई.

उस की पड़ोसिन केतकी, ईर्ष्यावश उस से बात नहीं करती थी पर सुगना की दयनीय स्थिति देख कर केतकी  को भी उस पर दया आ गई. उस ने उसे अपने घर के अंदर आ कर कुछ खा लेने व आराम करने को कहा पर सुगना नहीं मानी. उस ने रोतेरोते कहा कि जब तक वह मंगल व बच्चों को नहीं देख लेगी तब तक न तो वहां से कहीं जाएगी और न ही कुछ खाएगी.

केतकी का पति, बसंत अकसर सुगना को निहारा करता था, जिस के कारण वह मन ही मन उस से जलती थी और उस से बात नहीं करती थी. बसंत ही नहीं, बस्ती के सभी पुरुषों की नजरों का केंद्रबिंदु थी सुगना. वह 6 धनी परिवारों में मालिश का काम करती थी. उन घरों की मालकिनों को कुछ काम नहीं था. खाली बैठेबैठे उन के बदन में दर्द होता रहता. सुगना उन के हाथपैरों में मालिश करती. साथ ही, इधरउधर की बातें नमकमिर्च लगा कर सुना कर उन का मनोरंजन करती.

ये रईस स्त्रियां प्रसन्न हो कर सुगना को अपनी उतरी हुई पुराने फैशन की साडि़यां दे देतीं. सुगना जब जार्जेट, रेशम, शिफान, टसर व नायलोन की साडि़यां पहन कर निकलती तो बस्ती की स्त्रियों के सीनों पर सांप लोट जाते और पुरुष आहें भरने लगते. सभी उसे पाना चाहते, उस से बातें करने को लालायित रहते.

शाम घिरने लगी थी. धीरेधीरे बस्ती के पुरुष काम से लौैटने लगे थे. आते ही सभी मंगल और बच्चों की खोज में लग गए. वास्तव में उन्हें खोजने से ज्यादा उन की दिलचस्पी सुगना की कृपादृष्टि पाने में थी.

जब मंगल व बच्चों का कहीं पता नहीं चला तो सब ने सोचा कि शायद वह पास वाले गांव में अपने मातापिता के पास चला गया होगा. इस विचार के आते ही बस्ती के दारूभट्टी के नौजवान मालिक केवल सिंह ने सुगना की सहायता के लिए अपनेआप को पेश कर दिया. बस्ती के सभी पुरुषों के पास वाहन के नाम पर पुरानी घिसीपिटी साइकिलें ही थीं. केवल सिंह ही ऐसा रईस था जिस के पास एक पुरानी खटारा फटफटी थी.

केवल सिंह ने अपनी फटफटी पर एक और नौजवान को बैठाया और मंगल का पता लगाने पास वाले गांव में चला गया. केवल सिंह का सुगना के घर खूब आनाजाना था. मंगल जब दारू पी कर उस की दुकान में लुढ़क जाता तो वह उसे अपनी गाड़ी में लाद कर घर छोड़ने आता. हर रात ऐसा ही होता.

उसे मंगल से कोई लगाव नहीं था, बल्कि सुगना को आंख भर देखने तथा नशे में बेहोश मंगल की सेवा करने के बहाने सुगना के पास बैठने और उस से देर रात तक बतियाने का मौका पाने के लिए वह ऐसा करता था. मंगल का जब नशा टूटता तो वह आधी रात को सुगना को जगा कर खाना मांगता. जरा भी नानुकुर या देर होने पर वह सुगना को बुरी तरह पीटता. रात के सन्नाटे में सुगना की दर्दभरी चीखें महल्ले वाले सुनते पर क्या करते, पतिपत्नी का मामला था.

धुंधलका गहरा होने लगा था. केवल सिंह लौट आया था. मंगल सिंह अपने बच्चों के साथ अपने गांव भी नहीं गया था. इतना बड़ा ताला लगा कर आखिर गया कहां वह?  सब इस गुत्थी को सुलझाने में लगे हुए थे कि तभी किसी को घर के अंदर से बच्चों की दबीदबी सिसकियां सुनाई दीं. सब के कान खड़े हो गए. तुरंत 2 हट्टकट्टे नौजवानों ने दरवाजा तोड़ डाला.

अंदर का मंजर दिल दहलाने वाला था. मंगल का शरीर छत की मोटी बल्ली से लटका हुआ था. गले में बंधी थी सुगना की नाइलोन की साड़ी. वह मर चुका था. चारों बच्चे डरे हुए, सुबक रहे थे. देखते ही सुगना पछाड़ खा कर जमीन पर गिर कर बेहोश हो गई. स्त्रियों ने उस के ऊपर पानी डाला. होश में आते ही वह बच्चों से लिपट कर दहाड़ मार कर रोने लगी.

भीड़ में से ही किसी ने पुलिस को शिकायत कर दी. पुलिस ने आते ही जांचपड़ताल शुरू कर दी. ऐसा लगता था कि शराब के नशे में मंगल ने आत्महत्या कर ली थी. कमरे की एकमात्र खिड़की अंदर से बंद थी. बस्ती वाले मंगल की बुरी आदतों से परेशान तो थे ही. सभी ने उस के विरोध में बयान दिया. किसी पर भी शक की सुई नहीं घूम रही थी. पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि मंगल ने बाहर से ताला लगाया तथा खिड़की से कूद कर अंदर आ गया. अंदर से दरवाजा बंद कर के उस ने आत्महत्या कर ली. उस ने बच्चों को भी मारने की कोशिश की थी. पतीली में बचेखुचे दालभात की जांच से पता चला कि उस में अफीम मिलाई गई थी. मात्रा कम होने के कारण बच्चे बच गए थे.

आत्महत्या का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था. एक नशेड़ी इतने ठंडे दिमाग से योजनाबद्ध काम करेगा यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. बच्चे कुछ भी बताने में असमर्थ थे. कई दिन तक गहन पूछताछ और जांचपड़ताल के बाद भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. सभी के बयान समान थे और केवल मंगल की ओर इशारा करते थे. पुलिस ने भी इस गरीब बस्ती के एक नशेड़ी की मौत के मामले में ज्यादा  सिर खपाने की जरूरत नहीं समझी और आत्महत्या का मामला दर्ज कर तुरंत फाइल बंद कर दी.

मिसेज दिवाकर के यहां सुगना काम करती थी. उन्हें घर के अन्य नौकरों से मंगल की मौत के बारे में पता चला तो उन्हें शराब की भट्ठी के मालिक केवल सिंह पर शक हुआ, क्योंकि वही ऐसा व्यक्ति था जिस का सुगना के यहां अधिक आनाजाना था. वह उस में जरूरत से ज्यादा रुचि भी लेता था. पर उन्होंने इस मामले में अपनी टांग अड़ाना उचित नहीं समझा.

मंगल की मौत को 1 माह ही बीता था कि केवल सिंह ने सुगना को चूडि़यां पहना कर अपनी पत्नी बना लिया. एक दिन की अनुपस्थिति के बाद सुगना सजीसंवरी, नई चूडि़यां खनकाती काम पर आई तथा मिसेज दिवाकर को अपने विवाह की सूचना दी. सुनते ही मिसेज दिवाकर भड़क गईं और बोलीं, ‘‘हाय मरी, तुझे तो रोज रात की मारपीट से मुक्ति मिल गई थी. फिर से क्यों जा पड़ी नरक में उसी मुए के साथ, जिस ने तेरे मंगल को मारा?’’

अनजाने में उन के मुख से उन के अंदर का दबा हुआ शक उजागर हो गया, पर अविचलित सुगना बोली, ‘‘अपने आदमी की मार भी कोई मार होती है. इस से बस्ती में इज्जत बढ़ती है. रही शादी की बात, तो महल्ले के सब बदमाशों से बचने के लिए किसी एक का हाथ थामना अच्छा है. आप क्या जानो, एक औरत का अकेले रहना कितना मुश्किल होता है. बिना आदमी के बस्ती के मनचले दारू पी कर मेरा दरवाजा पीटते थे. रात को सोने नहीं देते थे.’’

मिसेज दिवाकर को कुछ अटपटा सा लगा कि केवल सिंह पर उन के द्वारा लगाए हत्या के इल्जाम को सुन कर भी कोई प्रतिक्रिया उस ने व्यक्त नहीं की थी.

एक वर्ष बीत गया था. सुगना के पांव भारी थे. जच्चगी के लिए अस्पताल जाने से पहले उस ने अपनी छोटी बहन फागुन को घर व बच्चों की देखभाल के लिए बुलवा लिया. जब वह अस्पताल से नवजात बेटे के साथ घर लौटी तो उसे यह देख कर जबरदस्त धक्का पहुंचा कि उस के पति केवल सिंह ने उस की अनुपस्थिति में उस की बहन को चूडि़यां पहना कर अपनी पत्नी बना लिया है.

क्रोधित हो सुगना ने फागुन को बालों से पकड़ कर घसीटा और खदेड़ कर बाहर निकाल दिया. केवल सिंह के ऊपर फागुन का जबरदस्त नशा चढ़ा हुआ था. उसे अपनी नईनवेली पत्नी का अपमान सहन नहीं हुआ. उस ने कोने में  पड़ी हुई  कुल्हाड़ी उठा कर सुगना की टांग पर दे मारी. कुल्हाड़ी मांस फाड़ कर हड्डी के अंदर तक धंस गई. सुगना बेहोश हो कर गिर पड़ी. टांग से बहते खून की धार तथा रोते हुए नवजात शिशु को देख केवल सिंह के मन में पश्चाताप होने लगा. शोरगुल सुन सब पड़ोसी इकट्ठे हो गए. जिस अस्पताल से सुगना थोड़ी देर पहले वापस आई थी फिर वहीं दोबारा भरती हो गई.

केवल सिंह बड़ी लगन से तब तक उस की सेवा करता रहा जब तक वह पूरी तरह स्वस्थ व समर्थ नहीं हो गई. सुगना उस की सेवा से खुश कम थी और दुखी ज्यादा थी क्योंकि केवल सिंह ने फागुन को घर से नहीं निकाला था.

बेचारी दुखी सुगना क्या करती. उस ने अपनी पूरी आशाएं अपने नवजात बेटे पर टिका दी थीं. उस ने निश्चय किया कि वह बेटे को सेना में भरती कराएगी. जब वह लड़ाई में मारा जाएगा तो उसे सरकार लाखों रुपया देगी और उन रुपयों से वह अपनी मालकिनों की तरह ऐशोआराम से रहेगी. इसलिए उस ने अपने बेटे का नाम कारगिल रख दिया.

सुगना की विचित्र निष्ठुर कामना सुन कर मिसेज दिवाकर के रोंगटे खड़े हो गए. बड़ा ही क्रूर लगा उन्हें नवजात शिशु को बड़ा कर उस की मौत की कल्पना करना और अपने ऐशोआराम के लिए उसे भुनाना.

थोड़े ही दिन बीते थे कि एक दिन केवल सिंह अपनी नई  पत्नी फागुन के साथ हमेशा के लिए कहीं चला गया. साथ में ले गया अपना नन्हा पुत्र कारगिल. सुगना का धनपति बनने का सपना धरा रह गया. 2 बार ब्याही सुगना फिर से अकेली रह गई थी.

वर्षा के दिन थे. सुगना की टांग का घाव भर गया था, पर दर्द की टीस अब भी उठती थी. पति और उस की सगी बहन ने मिल कर जो छल उस के साथ किया था उस ने उसे अंदर से भी घायल कर दिया था. एक दिन वर्षा में भीगती सुगना जब मिसेज दिवाकर के यहां पहुंची तो उसे तेज बुखार था. अपनी साइकिल बाहर खड़े उन के ड्राइवर को थमा बड़ी मुश्किल से वह बरामदे तक पहुंची ही थी कि गिर कर बेहोश हो गई. जब वह होश में आई तो मिसेज दिवाकर ने अपने ड्राइवर से उस को कार में ले जा कर डाक्टर गर्ग से दवा दिलवा कर घर छोड़ आने को कहा.

आगे की सीट पर बैठी सुगना का सिर निढाल हो कर ड्राइवर गोपी के कंधे पर लुढ़क गया तो उस ने उसे हटाया नहीं. उसे बड़ा भला सा लग रहा था.

डाक्टर से दवा दिलवा कर गोपी उस को घर पहुंचाने गया. वहां उस को सहारा दे कर अंदर तक ले गया. इस के बाद भी उस का मन नहीं माना. वह उसे देखने उस के घर बराबर जाता तथा यथासंभव उस की सहायता करता. 3 दिन के बुखार में गोपी और सुगना बहुत करीब आ गए थे. चौथे ही दिन गोपी ने सुगना के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा. सुगना सहर्ष तैयार हो गई. गोपी ने उसे चूडि़यां पहना कर अपनी पत्नी बना लिया.

मिसेज दिवाकर को सुगना का पुनर्विवाह तनिक भी नहीं भाया. वह गुस्से से चीखीं, ‘‘कुदरत तुझे बारबार खराब  पुरुषों से मुक्ति दिलाती है, फिर चैन से अकेले क्यों नहीं रहती? अपनी मां के साथ रहने में तुझे क्या तकलीफ है?’’

सुगना बड़ी सहजता से बोली, ‘‘अकेली औरत जात को कोई तो रखवाला चाहिए.’’

मिसेज दिवाकर ने सुगना की समस्या से अपने को अलग रखने की ठान ली.

एक दिन मिसेज दिवाकर ने सुगना से धुले कपड़ों का गट्ठर इस्तरी वाले के ठेले तक अपनी साइकिल पर रख कर पहुंचाने को कहा. गट्ठर बड़ा होने के कारण साइकिल के कैरियर पर ठीक से नहीं बैठ रहा था. यह देख कर मिसेज दिवाकर बोलीं, ‘‘सुगना, तुझे ठीक से गांठ बांधनी भी नहीं आती. कपड़े बाहर निकल रहे हैं.’’

‘‘मांजी, चिंता मत कीजिए. गांठ लगानी मुझे खूब आती है. मंगल के लिए कैसी मजबूत गांठ लगाई थी मैं ने,’’ अकस्मात सुगना के मुंह से निकला.

ऐसा कहते हुए उस ने आंखें ऊपर उठाईं. उस की आंखों में शैतानी चमक देख कर मिसेज दिवाकर सहम उठीं. अंदर दबा हुआ शक उभर कर ऊपर आ गया था. उन्होंने सोचा, ‘तो मेरा शक सही था. मंगल ने आत्महत्या नहीं की थी. सुगना ने ही उसे मारा था.’

स्तब्ध मिसेज दिवाकर अपना सिर दोनों हाथों में थाम कर सोफे पर धम्म से बैठ गईं.

‘सुगना, हत्यारिन मेरे घर में, और मुझे पता ही नहीं चला.’ सोचसोच कर वह हैरान व परेशान थीं.

उन के शरीर में भय से सिहरन दौड़ गई. अब इतने अरसे बाद किस से कहें और किस से शिकायत करें. अपराधी को अपने दुष्कर्म की सजा मिलनी ही चाहिए. पर उन के पास कोई सुबूत भी नहीं था. था केवल शक. कौन सुनेगा उन के शक को? अगर सुगना को सजा दिलवा भी दी तो उस के बच्चों का क्या होगा? सोचते सोचते उन के सिर में दर्द होने लगा.

और सुगना, अनजाने में अपना अपराध प्रकट कर बैठी थी. अपने अपराध के प्रकटीकरण से बेखबर मिसेज दिवाकर के हृदय की हलचल से अनभिज्ञ बढ़ी चली जा रही थी अपने गंतव्य की ओर.

Hindi Story : मजबूत औरत – आत्मसम्मान के साथ जीती एक मां की कहानी

Hindi Story : ऊषा ने जैसे ही बस में चढ़ कर अपनी सीट पर बैग रखा, मुश्किल से एकदो मिनट लगे और बस रवाना हो गई. चालक के ठीक पीछे वाली सीट पर ऊषा बैठी थी. यह मजेदार खिड़की वाली सीट, अकेली ऊषा और पीहर जाने वाली बस. यों तो इतना ही बहुत था कि उस का मन आनंदित होता रहता पर अचानक उस की गोद मे एक फूल आ कर गिरा. खिड़की से फूल यहां कैसे आया, वह इतना सोचती या न सोचती, उस ने गौर से फूल देखा तो बुदबुदाई, ‘ओह, चंपा का फूल’.

उस के पीहर का आंगन और उस में चंपा के पौधे. यह मौसम चंपा का ही है, उसे खयाल आया. तभी, यों ही पीछे मुड़ी तो देखती है कि चंपा की डाली कंधे पर ले कर एक सवारी खड़ी है. ‘ओह, यह फूल यहीं से आ कर गिरा होगा.’ ऊषा ने उस फूल को अपनी हथेली पर ऐसे हिलाया मानो वह चंपा का फूल कोई शिशु है और उस की हथेली के पालने में नवजात झूला झूल रहा है.

ऊषा का एक साल बडा भाई और पड़ोस के बच्चे मिल कर चंपा के फूल जमा करते और मटकी में भर देते. अब मटकी का पानी ऐसा खुशबूदार हो जाता कि अगले दिन उस पानी को आपस मे बांट कर वे सब खुशबूदार पानी से नहा लेते थे. मां उस की शरारत देख कर उसे न कभी मारती, न कभी फटकारती. जबकि ऊषा की क्लास में कितनी ही लड़कियां बातबेबात पर अपनीअपनी मां की मार खाती थीं. एक ममता थी, वह हमेशा यही कहती कि उस की मां तो उसे लानतें भेजती रहती है. कभी कहती है, ‘ममता, तू इतनी सांवली है कि तेरी तो किसी हलवाई से भी शादी न होगी.’ कभी कहती, ‘ममता, तुझे पढ़ाने में पैसा बरबाद होता है.’ ममता की बातें सुन कर ऊषा को अपनी मां और भी प्यारी लगती थी.

‘ओह, मेरी मां कैसी होगी?’ उस का मन फूल से हो कर अब सीधा मां के पास चला गया था. ऊषा को पीहर जाने के नाम पर मां का चेहरा ही देखना था. उस के पिता को गुजरे 3 बरस हो गए थे और तब से वह अब मां से मिलने जा रही थी. दरअसल, ऊषा को दोनों बच्चों के 10वां और 12वां की परीक्षाओं के कारण पीहर आने का समय न मिला था. बस, 2 घंटे का ही सफर था.

पीहर पहुंच कर ‘ओ मां’ कह कर उस ने मां को गले लगा लिया था. “कल आप का 72वां जन्मदिन है.”

“हमें पता है,” कह कर मां ने लंबी सांस ली.

“तो, इसीलिए तो आई आप के पास. यह लो आप के लिए साडी और अंगूठी है.”

“ओह, अच्छा,” कह कर मां ने रख लिया. लेकिन ऊषा ने गौर किया कि वह खुश बिलकुल भी नहीं हुई. अगले ही पल वह बोली, “ऊषा, अगर पैसे देती तो मेरे काम आते, बेटी.”

“ओह मां, यह क्या कह रही हो?”

“सही कह रही हूं, बेटी.” मां ने ऊषा के सामने दिल खोल दिया, “बेटी, जब तक पिता जीवित थे, वे रोज ही साझेदारी वाले दवाखाने में जाते थे और रोज ही सौदोसौ रुपए ला कर मुझे देते थे. बेटी, 3 साल से मेरी दशा खराब हो रही है, पता है. अब मैं पाईपाई को तरस गई हूं.”

“ओह,” कह कर ऊषा ने उन का हाथ थाम लिया, “तो आप कभी फोन पर तो मुझे बता देतीं?” “बेटी, दीवार के भी कान होते हैं. और तुम कोई खाली बैठी हो जो हर पल अपना ही दुखड़ा बताती रहूं. अगर तुम आज मेरे पास न आतीं तो आज भी न बताती, चुपचाप सह लेती, बेटी. हर रोज सुबह पार्क जाती हूं, ऊषा. मेरा मन होता है कि रास्ते पर मिलने वाले कुत्तों को बिस्कुट खरीद कर खिलाऊं पर मेरा बटुआ खाली,” मां ने फिर गहरी सांस भरी.

“तो भैयाभाभी कुछ नहीं देते?” ऊषा का मन भारी हो रहा था.

वह बोली, “हां, देते हैं, बेटी. पर उतना ही जितने में मेरा काम चल जाए, बस.”

“अच्छा,” ऊषा हैरान थी.

“बेटी, मुझ से मिलने पड़ोसी बेटियां आती हैं. सारे घर के लिए मिठाई लाती हैं. मेरा मन होता है, कुछ नकद उन के हाथ में रखूं. पर मेरा तो हाथ…”

“ओह मां,” ऊषा ने अफ़सोस जाहिर किया.

“मैं अपनी कोई साड़ी या स्वेटर दे देती हूं, खुशीखुशी वे ले जाती हैं. अब मेरी एक सहेली बीमार थी. मैं उसे देखने अस्पताल गई. मगर इतने पैसे नहीं थे कि कोई फल ले जाती. बस, दुआ दे कर आ गई,” कह कर मां खामोश हो गई.

“अच्छा, पर भैयाभाभी इतने कठोर हो गए.”

“हां बेटी, वे कहते हैं कि आप ने तो एक मकान तक नहीं बनाया. आप ने कुछ किया ही नहीं, तो आप का क्या एहसान है, भला.”

“बेटी, तुम जानती हो, वह किराए का घर, वह आंगन, वे पड़ोसी. मैं तो कभी किसी की चोट, तो किसी की बीमारी या किसी की बेटी की शादी…बस ऐसी सहायता में ही रह गई. मैं तो आज की जैसी अपनी खराब दशा की कभी सोच तक नहीं सकती थी,” मां बोलतेबोलते रुक गई.

“ओह, ये लो मां, ये 10 हजार रुपए रख लो.”

“नहीं ऊषा.”

“अरे मां, ये मेरे फालतू के हैं. मतलब यह कि 2 दिनों पहले ही मेहंदी लगाने का नेग मिला है. मां, रख लो न आप ये, रखो.” ऊषा ने जिद की.

“अरे, अच्छा,” कह कर मां ने अपने बक्स से सोने के गहने निकाल कर ऊषा को दिए. “ऊषा, ये ले लो.”

“हैं, ये, ये गहने, नहीं मां,” ऊषा डर गई कि कहीं भाईभाभी इस कमरे मे आ गए तो…

“कोई है ही नहीं घर पर. कोई नहीं आने वाला.”

“अरे, कहां गए?” ऊषा ने पूछ लिया.

मां बोली, “दोनों मेरे जन्मदिन की खरीदारी करने गए हैं. कल 20 परिवारों को खाने पर बुला रखे हैं. समाज का दिखावा तो खूब करना आता है.”

“अच्छा, चलो कोई नहीं. आप भी खुश हो लेना, मां. पर ये गहने रहने दो न, मां,” वह मना करने लगी.

मा बोली, “सुनो ऊषा बेटी, डरो मत. इन का किसी को पता नहीं. और ये बस मेरे हैं. अभी जो खजाना तुम ने दिया, तुम जानती नहीं ऊषा. उन के बदले ये कुछ नहीं हैं, बेटी.”

“ओह, मां ऐसा न कहो,” ऊषा के नयन नम हो गए थे. पर मां ने तो जिद कर के सोने के कंगन और झुमके ऊषा के बैग में रख ही दिए.

अगले दिन मां के जन्मदिन का जश्न देख कर, भाईभाभी का दिखावा, आडंबर आदि देख कर ऊषा को हैरत थी.

“अच्छा मां,” विदा ले कर गले दिन ऊषा वापस लौटी तो घर आ कर अमन को सब सच बता दिया.

“अरे, ये कंगन और झुमके तो 2 लाख रुपए से अधिक की कीमत के हैं, ऊषा. तुम यह कीमत हौलेहौले अदा कर दो.” ऐसा कह कर अमन ने एक अच्छा सुझाव दिया और यह सुन कर ऊषा को अमन पर बहुत गर्व हुआ.

3 महीने बाद ऊषा फिर पीहर आई. भैयाभाभी हैरत में पर उस ने आते ही कहा, “आप दोनों के लिए ये उपहार और आप को शुभ विवाह वर्षगांठ.”

यह सुन कर भैयाभाभी खुश. और उस के बाद वह मां से जा कर खुल कर मिली. खूब बातें हुईं. इस बार मां खुश थी, बताती रही कि पड़ोस में इसे बीमारी में यह दे आई, उस को मकान के गृह प्रवेश में यह भेंट किया वगैरहवगैरह.

मां का चहकना ऊषा को आनंद से भर गया. सारी बात सुनी. जब मां चुप हुई तो ऊषा ने उन को फिर से सौंप दिए 10 हजार रुपए.

“ये क्या, ये, बस, दानपुण्य के लिए आप को दिए हैं, मां,” कह कर ऊषा ने उन का बटुआ भर दिया.

अगले महीने ऊषा फिर आई. भाभी को जन्मदिन की बधाई देने के बहाने मां का बटुआ भर गई. भाईभाभी बहुत खुश, वे तो ऐसा ही दिखावा पसंद करते थे. और उधर, मां को भी हैरत, ये ऊषा को हो क्या रहा. ऊषा कहती, ‘अमन ने कहा है’ और मां को चुप कर देती.

अब यह सिलसिला चल पड़ा था. ऊषा हर तीसरे महीने जरूर आती और माता का बटुआ भर जाती. इसी तरह समय बीता और एक साल बाद मां का जन्मदिन फिर से आया.

ऊषा ने इस बार भैयाभाभी को भ्रम में रखने के लिए एक साड़ी भेंट की मगर रुपयों से मां का बटुआ फिर से भर दिया था. मगर, अब मां उसे आशीष ही देती. अब कुछ साड़ी, रूमाल और शौल के सिवा मां के बक्स में कुछ भी न बचा था.

मगर ऊषा तो मां को नहीं, उन के दानपुण्य के स्वभाव के लिए यह रुपया देती थी. ऊषा जानती थी, इसी से मां निरोगी है, खुश है, ताकत से भरी है.

अब ऊषा हर तीसरे महीने जब पीहर की बस में बैठा करती तबतब यही सोचा करती कि, यही मां, एक समय में कितनी मजबूत हुआ करती थी. जब कालेज के समय खुद ऊषा का एक गहरा ही प्रेम प्रसंग चल रहा था और नादानी कर के ऊषा के गर्भ तक ठहर गया था. तब रोती हुई ऊषा को मां ने चुप कराया, उसे सहज होने को कहा और चिकित्सक ने जांच कर के बताया कि केवल 4 सप्ताह का गर्भ है, इसलिए आराम से सब साफ हो जाएगा. रोती हुई ऊषा को, तब भी, मां ही चुपचाप ले गई थी अस्पताल और उस को इस अनचाहे भार से आजाद किया था.

मां ने एक बार फिर से उसे जीवनदान दिया था. ऊषा का मन दुख से ऐसा भरा था कि उस समय तो वह मर ही जाना चाहती थी. मगर मां ने उसे न मारा, न फटकारा.

मां ने, बस, इतना पूछा कि आगे, तुम दोनों विवाह करोगे, साथ रहोगे. ऊषा ने फूटफूट कर रोते हुए बताया कि गर्भ ठहरने की बात पता लगने के समय से ही उस ने कन्नी काट ली है, वह क्या विवाह करेगा.

‘ओह,’ बस इतना ही कहा था मां ने. उस समय वह मां का लौह महिला का रूप देखती रह गई थी. उस घटना के 2 वर्षों बाद जब ऊषा सामान्य हो गई तब मौका पा कर फिर मां ने ही ऊषा को अमन के बारे में बताया था और अमन से उस की दूसरी पत्नी बनने का सुझाव दिया.

अमन के 2 बच्चे थे. ऊषा को उस समय मां से बहुत खीझ हुई पर जब मां ने कहा, ‘जोरजबरदसती नहीं है, एक बार मिल कर गपशप कर लो. फिर जो चाहो.’

तब वह शांत हुई और उसी शाम अमन घर पर आए थे. ऊषा ने पहली मुलाकात में ही अमन की दूसरी पत्नी बनना सहर्ष स्वीकार कर लिया. अमन की पहली पत्नी फेफड़े की बीमारी से चल बसी थी. अमन एक सुलझे हुए इंसान थे और औरत को बहुत सम्मान देते थे.

विवाह के दिन से ले कर आज तक ऊषा अमन के साथ बहुत खुश थी. अमन के दोनों बच्चे उसे मां ही मानते थे. इस समय भी, बस में, ऊषा को मजबूत मां बहुत याद आ रही थी. और भी बहुत यादे थीं. मां ने विवाह के पहले साल उस को बहुत मानसिक संबल दिया था.

ऊषा को तो काम करने की जिम्मेदारी उठाने की कोई आदत नहीं थी. यों तो, अमन के घर पर एक सहायिका थी मगर 2 बच्चों की मां और अमन की पत्नी बन कर सहज होने में ऊषा को समय लगा. तब मां ने ही उसे ताकत दी थी. यों अमन के प्रेम मे कभी कमी नहीं आई और आज तक नहीं.

फिर, 3 साल बाद भैया का विवाह हुआ. मां ने भाभी को भी आजाद और मस्त रहने दिया. मां को तो सब को हंसता देखना पसंद था. भैयाभाभी का वैवाहिक जीवन बहुत खुशहाल था. ऊषा यही सोचती रहती कि अब मां के राज करने के दिन आ गए हैं. मगर, फिर, एक दिन अचानक ही पिता चल बसे. एकदम से सब बदलता गया.

और आज की तारीख में सब सही दिखाई दे रहा था लेकिन मां केवल बटुआ खाली होने से भीतर ही भीतर कितनी कमजोर पड़ गई थी.

यही सबकुछ सोचती हुई ऊषा पीहर पहुंची. मां दिखाई दे गई, वह अपनी छड़ी के सहारे कहीं से लौट रही थी. ऊषा ने मौका देख कर उन के बटुए में रुपए रखे. तभी भाभी 2 कप चाय ले कर आ गई. ऊषा और मां गपशप तथा चाय में व्यस्त हो गईं.

भाभी जैसे ही उन के पास से गई, मां ने हंसते हुए ऊषा को नकदी लौटा दी.

“अरेअरे, यह क्या मां, ये आप के हैं,” वह चौंक गई.

मां बोली, “अरेअरे, यह देख.” मां ने बटुआ खोला और नोट दिखाए.

“ओह, आप ने ये पहले वाले खर्च नहीं किए. तो अब दानपुणय का काम बंद,” ऊषा मां को गौर से देख रही थी.

“ऐसा तो हो ही नहीं सकता, यह मेरी एक महीने की कमाई,” वह चहक कर बोली.

ऊषा के माथे पर बल पड़ गए, “हैं, कमाई, नौकरी, यह कब हुआ. 3 महीने पहले तो तुम नौकरी नहीं करती थीं.”

“अरे रे, सुन तो सही. हुआ क्या, अपना सुमित है न, मेरी दिवंगत सहेली का छोटा बेटा.”

“हांहां, मां. मुझे याद है,” ऊषा ने किसी चेहरे की कलपना करते हुए जवाब दिया.

“तो, उस के जुडवां बेटे हुए. कुछ परेशानी के कारण अस्पताल में 16 दिन रहना था. पुरुष को इजाजत नहीं थी. और सुमित को रात को रुकने वाला कोई न मिला. मैं ने कहा, ‘मैं रुक जाती हू.’ बस, रात को सोना ही तो था. मैं करीब 16 रात सोने चली गई. अब वह कल आया. मिठाई, फल लाया और 8 हजार रुपए दे गया. मैं ने मना किया तो बोला कि आप ने वैसे ही 20 हजार रुपए की बचत करा दी है. अगर ये न रखे तो आप की बहू मुझ से बात न करेगी.” पूरी बात बता कर मां ने सांस ली.

ऊषा बोली, “ओह, अच्छा. पर ये तो जल्द खत्म हो जाएंगे. तुम अगले महीने के लिए रख लो.” ऊषा ने जिद की तो वापस लौटाते हुए मां बोली, “अरे, आगे तो सुन, पड़ोस में एक टिफिन सैंटर है. रोज के 200 टिफिन जाते हैं नर्सिंग होम में. तो मुझे वहां नौकरी मिल गई है.”

“तो मां, इस उम्र में खाना पकाओगी?” अब ऊषा को कुछ गुस्सा आ गया था.

“अरे, पकाना नहीं है. बस, रोज सुबह और शाम जा कर चखना है, कमी बतानी है और इस के 10 हजार रुपए हर महीने मिल रहे हैं,” कह कर मां हंसने लगी.

“अच्छा, मेरी मजबूत मां.” इस बार जब ऊषा लौटी तो उसे अपनी मजबूत मां का पुनर्जन्म देख कर आनंद आया.

Best Hindi Story : विदेश – विदेश में रह रही पत्नी की उलझन की कहानी

Best Hindi Story : बेटी के बड़ी होते ही मातापिता की चिंता उस की पढ़ाई के साथसाथ उस की शादी के लिए भी होने लगती है. मन ही मन तलाश शुरू हो जाती है उपयुक्त वर की. दूसरी ओर बेटी की सोच भी पंख फैलाने लगती है और लड़की स्वयं तय करना शुरू कर देती है कि उस के जीवनसाथी में क्याक्या गुण होने चाहिए.

प्रवेश के परिवार की बड़ी बेटी मीता इस वर्ष एमए फाइनल और छोटी बेटी सारिका कालेज के द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी. मातापिता ने पूरे विश्वास के साथ मीता को अपना जीवनसाथी चुनने की छूट दे दी थी. वे जानते थे कि सुशील लड़की है और धैर्य से जो भी करेगी, ठीक ही होगा.

रिश्तेदारों की निगाहें भी मीता पर थीं क्योंकि आज के समय में पढ़ीलिखी होने के साथ और भी कई गुण देखे थे उन्होंने उस में. मां के काम में हाथ बंटाना, पिता के साथ जा कर घर का आवश्यक सामान लाना, घर आए मेहमान की खातिरदारी आदि वह सहर्ष करती थी.

उसी शहर में ब्याही छोटी बूआ का तो अकसर घर पर आनाजाना रहता था और हर बार वह भाई को बताना नहीं भूलती कि मीता के लिए वर खोजने में वह भी साथ है. मीता की फाइनल परीक्षा खत्म हुई तो जैसे सब को चैन मिला. मीता स्वयं भी बहुत थक गई थी पढ़ाई की भागदौड़ से.

अरे, दिन न त्योहार आज सुबहसुबह भाई के काम पर जाने से पहले ही बहन आ गई. कमरे में भाई से भाभी धीमी आवाज में कुछ चर्चा कर रही थी. सारिका जल्दी से चाय बना जब कमरे में देने गई तो बातचीत पर थोड़ी देर के लिए विराम लग गया.

पापा समय से औफिस के लिए निकल गए तो चर्चा दोबारा शुरू हुई. वास्तव में बूआ अपने पड़ोस के जानपहचान के एक परिवार के लड़के के लिए मीता के रिश्ते की सोचसलाह करने आई थी. लड़का लंदन में पढ़ने के लिए गया था और वहां अच्छी नौकरी पर था. वह अपने मातापिता से मिलने एक महीने के लिए भारत आया तो उन्होंने उसे शादी करने पर जोर दिया. बूआ को जैसे ही इस बात की खबर लगी, वहां जा लड़के के बारे में सब जानकारी ले तुरंत भाई से मिलने आ पहुंची थी.

अब वह हर बात को बढ़ाचढ़ा कर मीता को बताने बैठी. बूआ यह भी जानती थी कि मीता विदेश में बसने के पक्ष में नहीं है. शाम को भाईभाभी से यह कह कि पहले मीता एक नजर लड़के को देख ले, वह उसे साथ ले गई. समझदार बूआ ने होशियारी से सिर्फ अपनी सहेली और लड़के को अपने घर बुला चायपानी का इंतजाम कर डाला. बातचीत का विषय सिर्फ लंदन और वहां की चर्चा ही रहा.

बूआ की खुशी का ठिकाना न रहा जब अगले दिन सुबह ही सहेली स्वयं आ बूआ से मीता व परिवार की जानकारी लेने बैठीं. और आखिर में बताया कि उन के बेटे निशांत को मीता भा गई है. मीता यह सुन सन्न रह गई.

मीता ने विदेश में बसे लड़कों के बारे में कई चर्चाएं सुनी थीं कि वे वहां गर्लफ्रैंड या पत्नी के होते भारत आ दूसरा विवाह कर ले जाते हैं आदि. बूआ के घर बातचीत के दौरान उसे निशांत सभ्य व शांत लड़का लगा था. उस ने कोई शान मारने जैसी फालतू बात नहीं की थी.

मीता के मातापिता को जैसे मनमांगी मुराद मिल गई. आननफानन दोनों तरफ से रस्मोरिवाज सहित साधारण मगर शानदार विवाह संपन्न हुआ. सब खुश थे. मातापिता को कुछ दहेज देने की आवश्यकता नहीं हुई सिवा बेटीदामाद व गिनेचुने रिश्तेदारों के लिए कुछ तोहफे देने के.

नवदंपती के पास केवल 15 दिन का समय था जिस में विदेश जाने के लिए मीता के लिए औपचारिक पासपोर्ट, वीजा, टिकट आदि का प्रबंध करना था. इसी बीच, 4 दिन के लिए मीता और निशांत शिमला घूम आए.

अब उन की विदाई का समय हुआ तो दोनों परिवार उदास थे. सारिका तो जैसे बहन बगैर अकेली ही पड़ गई थी. सब के गले लगते मीता के आंसू तो जैसे खुशी व भय के गोतों में डूब रहे थे. सबकुछ इतनी जल्दी व अचानक हुआ कि उसे कुछ सोचने का अवसर ही नहीं मिला. मां से तो कुछ कहते नहीं बन पड़ रहा था, पता नहीं फिर कब दोबारा बेटी को देखना हो पाएगा. पिता बेटी के सिर पर आशीर्वाद का हाथ रखे दामाद से केवल यह कह पाए कि इस का ध्यान रखना.

लंदन तक की लंबी हवाईयात्रा के दौरान मीता कुछ समय सो ली थी पर जागते ही फिर उसे उदासी ने आ घेरा. निशांत धीरेधीरे अपने काम की व अन्य जानकारी पर बात करता रहा. लंदन पहुंच कर टैक्सी से घर तक जाने में मीता कुछ संयत हो गई थी.

छोटा सा एक बैडरूम का 8वीं मंजिल पर फ्लैट सुंदर लगा. बाहर रात में जगमगाती बत्तियां पूरे वातावरण को और भी सुंदर बना रही थीं. निशांत ने चाय बनाई और पीते हुए बताया कि उसे कल से ही औफिस जाना होगा पर अगले हफ्ते वह छुट्टी लेने की कोशिश करेगा.

सुबह का नाश्ता दोनों साथ खाते थे और निशांत रात के खाने के लिए दफ्तर से आते हुए कुछ ले आता था.

मीता का अगले दिन का लंच उसी में हो जाता था. अगले हफ्ते की छुट्टी का इंतजाम हो गया और निशांत ने उसे लंदन घुमाना शुरू किया. अपना दफ्तर, शौपिंग मौल, बसटैक्सी से आनाजाना आदि की बातें समझाता रहा. काफी पैसे दे दिए और कहा कि वह बाहर आनाजाना शुरू करे. जो चाहे खरीदे और जैसे कपड़े यहां पहने जाते हैं वैसे कुछ कपड़े अपने लिए खरीद ले. मना करने पर भी एक सुंदर सी काले प्रिंट की घुटने तक की लंबी ड्रैस मीता को ले दी. एक फोन भी दिलवा दिया ताकि वह उस से और इंडिया में जिस से चाहे बात कर सके. रसोई के लिए जरूरत की चीजें खरीद लीं. मीता ने घर पर खाना बनाना शुरू किया. दिन बीतने लगे. निशांत ने समझाया कि यहां रहने के औपचारिक पेपर बनने तक इंतजार करे. उस के बाद यदि वह चाहे तो नौकरी की तलाश शुरू कर सकती है.

एक दिन मीता ने सुबह ही मन में सोचा कि आज अकेली बाहर जाएगी और निशांत को शाम को बता कर सरप्राइज देगी. दोपहर को तैयार हो, टैक्सी कर, वह मौल में पहुंची. दुकानों में इधरउधर घूमती चीजें देखती रही. एक लंबी ड्रैस पसंद आ गई. महंगी थी पर खरीद ली. चलतेचलते एक रेस्टोरैंट के सामने से गुजरते उसे भूख का एहसास हुआ पर वह तो अपने लिए पर्स में सैंडविच ले कर आई थी. अभी वह यहां नई है और अब बिना निशांत के अकेले खाने का तुक नहीं बनता, उस ने बस, उस ओर झांका ही था, वह निशांत…एक लड़की के साथ रेस्टोरैंट में, शायद नहीं, पर लड़की को और निशांत का दूर से हंसता चेहरा देख वह सन्न रह गई. दिमाग में एकदम बिजली सी कौंधी, तो सही थी मेरी सोच. गर्लफ्रैंड के साथ मौजमस्ती और घर में बीवी. हताश, वह टैक्सी ले घर लौटी. शाम को निशांत घर आया तो न तो उस ने खरीदी हुई ड्रैस दिखाई और न ही रेस्टोरैंट की चर्चा छेड़ी.

तीसरे दिन औफिस से लौटते वह उस लड़की को घर ले आया और मीता से परिचय कराया, ‘‘ये रमा है. मेरे दूर के रिश्ते में चाचा की बेटी. ये तो अकेली आना नहीं चाह रही थी क्योंकि इस के पति अभी भारत गए हैं और अगले हफ्ते लौट आएंगे. रेस्टोरैंट में जब मैं खाना पैक करवाने गया था तो इसी ने मुझे पहचाना वहां. मैं ने तो इसे जब लखनऊ में देखा था तब ये हाईस्कूल में थी. मीता का दिल धड़का, ‘तो अब घर तक.’ बेमन से मीता ने उसे चायनाश्ता कराया.

दिन में एक बार मीता स्वयं या निशांत दफ्तर से फोन कर लेता था पर आज न मीता ने फोन किया और न निशांत को फुरसत हुई काम से. कितनी अकेली हो गई है वह यहां आ कर, चारदीवारी में कैद. दिल भर आया उस का. तभी उसे कुछ ध्यान आया. स्वयं को संयत कर उस ने मां को फोन लगाया. ‘‘मीता कैसी हो? निशांत कैसा है? कैसा लगा तुम्हें लंदन में जा कर?’’ उस के कुछ बोलने से पहले मां ने पूछना शुरू कर दिया.

‘‘सब ठीक है, मां.’’ कह फौरन पूछा, ‘‘मां, बड़ी बूआ का बेटा सोम यहां लंदन में रहता है. क्या आप के पास उस का फोन या पता है.’’

‘‘नहीं. पर सोम पिछले हफ्ते से कानपुर में है. तेरे बड़े फूफाजी काफी बीमार थे, उन्हें ही देखने आया है. मैं और तेरे पापा भी उन्हें देखने परसों जा रहे हैं. सोम को निशांत का फोन नंबर दे देंगे. वापस लंदन पहुंचने पर वही तुम्हें फोन कर लेगा.’’

‘‘नहीं मां, आप मेरा फोन नंबर देना, जरा लिख लीजिए.’’

मीता, सोम से 2 वर्ष पहले उस की बहन की शादी में कानपुर में मिली थी और उस के लगभग 1 वर्ष बाद बूआ ने मां को फोन पर बताया था कि सोम ने लंदन में ही एक भारतीय लड़की से शादी कर ली है और अभी वह उसे भारत नहीं ला सकता क्योंकि उस के लिए अभी कुछ पेपर आदि बनने बाकी हैं. इस बात को बीते अभी हफ्ताभर ही हुआ था कि शाम को दफ्तर से लौटने पर निशांत ने मीता को बताया कि रमा का पति भारत से लौट आया है और उस ने उन्हें इस इतवार को खाने पर बुलाया है.

मीता ने केवल सिर हिला दिया और क्या कहती. खाना बनाना तो मीता को खूब आता था. निशांत उस के हाथ के बने खाने की हमेशा तारीफ भी करता था. इतवार के लंच की तैयारी दोनों ने मिल कर कर ली पर मीता के मन की फांस निकाले नहीं निकल रही थी. मीता सोच रही थी कि क्या सचाई है, क्या संबंध है रमा और निशांत के बीच, क्या रमा के पति को इस का पता है, क्योंकि निशांत ने मुझ से शादी…?

ध्यान टूटा जब दरवाजे की घंटी 2 बार बज चुकी. आगे बढ़ कर निशांत ने दरवाजा खोला और गर्मजोशी से स्वागत कर रमा के पति से हाथ मिलाया. वह दूर खड़ी सब देख रही थी. तभी उस के पैरों ने उसे आगे धकेला क्योंकि उस ने जो चेहरा देखा वह दंग रह गई. क्या 2 लोग एक शक्ल के हो सकते हैं? उस ने जो आवाज सुनी, ‘आई एम सोम’, वो दो कदम और आगे बढ़ी और चेहरा पहचाना, और फिर भाग कर उस ने उस का हाथ थामा, ‘‘सोम भैया, आप यहां.’’

‘‘क्या मीता, तुम यहां लंदन में, तुम्हारी शादी’’ और इस से आगे सोम बिना बोले निशांत को देख रहा था. उसे समझते देर न लगी, कुछ महीने पहले मां ने उसे फोन पर बताया था कि मीता की शादी पर गए थे जो बहुत जल्दी में तय की गई थी. मीता अब सोम के गले मिल रही थी और रमा अपने कजिन निशांत के, भाईबहन का सुखद मिलाप.

सब मैल धुल गया मीता के मन का, मुसकरा कर निशांत को देखा और लग गई मेहमानों की खातिर में. उसे लगा अब लंदन उस का सुखद घर है जहां उस का भाई और भाभी रहते हैं और उस के पति की बहन भी यानी उस की ननद व ननदोई. ससुराल और मायका दोनों लंदन में. मांपापा सुनेंगे तो हैरान होंगे और खुश भी और बड़ी बूआ तो बहुत खुश होंगी यह जानकर कि सोम की पत्नी से जिस से अभी तक वे मिली नहीं हैं उस से अकस्मात मेरा मिलना हो गया यहां लंदन में. मीता की खुशी का आज कोई ओरछोर नहीं था. सब कितना सुखद प्रतीत हो रहा था.

Romantic Story : आज का इनसान – हर कोई अभिनेता क्यों बनना चाहता है

Romantic Story : ‘‘किसी के भी चरित्र के बारे में सहीसही अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल काम है. चेहरे पर एक और चेहरा लगाए आजकल हर इनसान बहुरूपिया नजर आता है. अंदर कुछ बाहर कुछ. इनसान को पहचान पाना आसान नहीं है.’’

विजय के इन शब्दों पर मैं हैरान रह गया था. विजय को इनसान की पहचान नहीं हो पा रही यही वाक्य मैं समझ नहीं पाया था. विजय तो कहता था कि चाल देख कर मैं इनसान का चरित्र पहचान सकता हूं. सिर्फ 10 मिनट किसी से बात करूं तो सामने वाले का आरपार सब समझ लूं. नजर देख कर किसी की नियत भांप जाने वाला इनसान यह कैसे कहने लगा कि उस से इनसान की पहचान नहीं हो पा रही.

मुझे तो यह सुन कर अच्छा नहीं लगा था कि हमारा पारखी हार मान कर बैठने वाला है वरना कहीं नई जगह जाते. नया रिश्ता बनता या नए संबंध बनाने होते तो हम विजय को साथ ले जाते थे. इनसान की बड़ी परख जो है विजय को और वास्तव में इनसान वैसा ही निकलता भी था जैसा विजय बताता था.

‘‘आज का इनसान बहुत बड़ा अभिनेता होता जा रहा है, हर पल अभिनय करना ही जिस का चरित्र हो उस का वास्तविक रूप नजर आएगा भी कैसे. अपने सहज रूप में कोई है कहां. एक ही व्यक्ति तुम से मिलेगा तो राम लगेगा, मुझ से मिलेगा तो श्याम बन कर मिलेगा. मतलब होगा तो तुम्हारे पैरों के नीचे बिछ जाएगा, मतलब निकल जाएगा तो तुम्हारे पास से यों निकल जाएगा जैसे जानता ही नहीं. एक ही इनसान के चरित्र के इतने ज्यादा पहलू तो कैसे पहचाने कोई, और कैसे अपने दायित्व का निर्वाह करे कोई?’’

‘‘क्या हुआ? किसी ने कुछ चालाकी की है क्या तुम्हारे साथ?’’

‘‘मुझ से चालाकी कर के कोई मेरा क्या बिगाड़ लेगा. भविष्य के लिए उस ने अपना ही रास्ता बंद कर लिया है. सवाल चालाकी का नहीं बल्कि यह है कि दूसरी बार जरूरत पड़ेगी तो मेरे पास किस मुंह से आएगा जबकि मेरे जैसा इनसान अपनी जेब से पैसे खर्च कर के भी सामने वाले की मदद करने को तैयार रहता है. बदले में मैं किसी से क्या चाहता हूं…कोई प्यार से बात कर ले या नजर आने पर हाथ भर हिला दे बस. क्या मुसकरा भर देना भी बहुत महंगा होता है जो किसी का हाथ ही तंग पड़ जाए?’’

‘‘किस की बात कर रहे हो तुम?’’

‘‘सुनयना की. मेरे साथ आफिस में है. 4-5 महीने पहले ही दिल्ली से ट्रांसफर हो कर आई थी. उस का घर भी मेरे घर के पास ही है. नयानया घर बसा है यही सोच कर हम पतिपत्नी देखभाल करते रहे. उस का पति भी जब मिलता बड़े प्यार से मिलता. एक सुबह आया और कहने लगा कि उस की मां बीमार है इसलिए उसे कुछ दिन छुट्टी ले कर घर जाना पड़ेगा, पीछे से सुनयना अकेली होगी, हम जरा खयाल रखें. हम ने कहा कोई बात नहीं. अकेली जान है हम ही खिलापिला दिया करेंगे.

‘‘मेरी श्रीमती ने तो उसे बच्ची ही मान लिया. 10-15 दिन बीते तो पता चला सुनयना का पांव भारी है. श्रीमती लेडी डाक्टर के पास भी ले गईं. हमारी जिम्मेदारी बढ़ गई. नाश्ते का सामान भी हमारे ही घर से जाने लगा. अकेली लड़की कहीं भूखी ही न सो जाए… रात को रोटी भी हम ही खिलाते. महीना भर बीत गया, उस का पति वापस नहीं आया.

‘‘ ‘अब इस के पति को आ जाना चाहिए. उधर मां बीमार है इधर पत्नी भी अस्वस्थ रहने लगी है. इन्हें चाहिए पूरा परिवार एकसाथ रहे. ऐसी कौन सी कंपनी है जो 2-2 महीने की छुट्टी देती है…क्या इस के पति को नौकरी नहीं करनी है जो अपनी मां के पास ही जा कर बैठ गया है.’

‘‘मेरी पत्नी ने जरा सा संशय जताया. पत्नी के मां बनने की खबर पर भी जो इनसान उसे देखने तक नहीं आया वह कैसा इनसान है? इस परदेस में उस ने इसे हमारे सहारे अकेले छोड़ रखा है यही सोच कर मैं भी कभीकभी पूछ लिया करता, ‘सुनयना, गिरीश का फोन तो आता रहता है न. भई, एक बार आ कर तुम से मिल तो जाता. उसे जरा भी तुम्हारी चिंता नहीं है… और उस की नौकरी का क्या हुआ?’

‘‘2 महीने बीततेबीतते लेडी डाक्टर ने अल्ट्रासाउंड कर बच्चे की जांच करने को कहा. श्रीमती 3-4 घंटे उस के साथ बंधी रहीं. पता चला बच्चा ठीक से बढ़ नहीं रहा. 10 दिन बाद दोबारा देखेंगे तब तक उस का बोरियाबिस्तर सब हमारे घर आ गया. सुनयना का रोनाधोना चालू हुआ जिस पर उस के पति पर हमें और भी क्रोध आता. क्या उसे अपनी पत्नी की चिंता ही नहीं. मैं सुनयना से उस के पति का फोन नंबर मांगता तो वह कहती, उस की घरेलू समस्या है, हमें बीच में नहीं पड़ना चाहिए. वास्तव में सुनयना के सासससुर यहां आ कर उन के साथ रहना ही नहीं चाहते जिस वजह से बेटा पत्नी को छोड़ उन की सेवा में व्यस्त है.

‘‘खाली जेब मांबाप की सेवा कैसे करेगा? क्या उन्हें समझ में नहीं आता. 3 महीने होने को आए क्या नौकरी अभी तक बच रही होगी जो वह…

‘‘सुनयना का रोनाधोना चलता रहा और इसी बीच उस का अविकसित गर्भ चलता बना. पूरा दिन मेरी पत्नी उस के साथ अस्पताल में रही. इतना सब हो गया पर उस का पति नहीं आया. किंकर्तव्य- विमूढ़ होते जा रहे थे हम.

‘‘ ‘क्या तुम दोनों में सब ठीक चल रहा है? कैसा इनसान है वह जिसे न अपने बच्चे की परवाह है न पत्नी की.’ एक दिन मैं ने पूछ लिया.

‘‘हैरानपरेशान थे हम. 2-3 दिन सुनयना हमारे ही घर पर रही. उस के बाद अपने घर चली गई. यह कहानी क्या कहानी है हम समझ पाते इस से पहले एक दिन सुनयना ने हमें बताया कि वह हम से इतने दिन तक झूठ बोलती रही. दरअसल, उस का पति किसी और लड़की के साथ भाग गया है और उस के मातापिता भी इस कुकर्म में उस के साथ हैं.

‘‘हम पतिपत्नी तो जैसे आसमान से नीचे गिरे. सुनयना के अनुसार उस के मायके वाले अब पुलिस केस बनाने की सोच रहे हैं. जिस लड़की के साथ गिरीश भागा है वे भी पूरा जोर लगा रहे हैं कि गिरीश पकड़ा जाए और उसे सजा हो. हक्केबक्के रह गए हम. हैरानी हुई इस लड़की पर. बाहरबाहर क्या होता रहा इस के साथ और भीतर यह हमें क्या कहानी सुनाती रही.

‘‘सुनयना का कहना है कि वह शर्म के मारे हमें सच नहीं बता पाई.

‘‘  ‘अब तुम क्या करोगी…ऐसा आदमी जो तुम्हें बीच रास्ते में छोड़ कर चला गया, क्या उसे साथ रखना चाहोगी?’

‘‘ ‘महिला सेल में भी मेरे भाई ने रिपोर्ट दर्ज करवा रखी है. बस, मेरा ही इंतजार है. जैसे ही केस रजिस्टर हो जाएगा वह और उस के मातापिता 7 साल के लिए अंदर हो जाएंगे. वकील भी कर लिया है हम ने.’

‘‘ ‘परेशान हो गए थे हम.

‘‘ ‘तुम नौकरी करोगी या अदालतों और वकीलों के पास धक्के खाओगी. रुपयापैसा है क्या तुम्हारे पास?’

‘‘ ‘रुपयापैसा तो पहले ही गिरीश निकाल ले गए. लौकर भी खाली कर चुके हैं. मेरे नाम तो बस 1 लाख रुपए हैं.’

‘‘मैं सोचने लगा कि अच्छा हुआ जो बच्चा चल बसा. ऐसे पिता की संतान का क्या भविष्य हो सकता था. यह अकेली लड़की बच्चे को पालती या नौकरी करती.

‘‘ ‘गिरीश को सजा हो जाएगी तो उस के बाद क्या क रोगी. क्या तलाक ले कर दूसरी शादी करोगी? भविष्य के बारे में क्या सोचा है?’

‘‘ ‘मेरी बूआ कनाडा में रहती हैं, उन्होंने बुला भेजा है. मैं ने पासपोर्ट के लिए प्रार्थनापत्र भी दे दिया है.’

‘‘मेरी पत्नी अवाक् थीं. यह लड़की पिछले 3-4 महीने से क्याक्या कर रही है हमें तो कुछ भी खबर नहीं. सेवा, देखभाल करने को हम दोनों और वह सब छिपाती रही मुझ से और मेरी पत्नी से भी. इतना बड़ा दिल और गुर्दा इस लड़की का जो अपने टूटे घर का सारा संताप पी गई.

‘‘मुझे कुछ ठीक नहीं लगा था. इस लड़की के बारे में. ऐसा लग रहा है कि सच हम आज भी नहीं जानते हैं. यह लड़की हमें आज भी सब सच ही बता रही होगी विश्वास नहीं हो रहा मुझे. वास्तव में सच क्या होगा कौन जाने.

‘‘बड़बड़ा रही थीं मेरी पत्नी कि कोई बखेड़ा तो हमारे गले नहीं पड़ जाएगा? कहीं यह लड़की हमें इस्तेमाल ही तो नहीं करती रही इतने दिन. इस से सतर्क हो जाना चाहते थे हम. एक दिन पूछने लगी, ‘आप ही बताइए न, मैं क्या करूं. गिरीश अब पछता रहे हैं. वापस आना चाहते हैं. उन्हें सजा दिलाऊं या माफ कर दूं.’

‘‘ ‘इस तरह की लड़ाई में जीत तो बेटा किसी की नहीं होती. लड़ने के लिए ताकत और रुपयापैसा तुम्हारे पास है नहीं. मांबाप भी जिंदा नहीं हैं जो बिठा कर खिलाएंगे. भाईभाभी कब तक साथ देंगे? और अगर इस लड़ाई में तुम जीत भी गईं तो भी हाथ कुछ नहीं आने वाला.’

‘‘ ‘गिरीश को स्वीकार भी तो नहीं किया जा सकता.’

‘‘ ‘मत करो स्वीकार. कौन कह रहा है कि तुम उसे स्वीकार करो पर लड़ने से भी मुंह मोड़ लो. उस के हाल पर छोड़ दो उसे. दूसरी शादी कर के घर बसाना आसान नहीं है. डाल से टूट चुकी हो तुम…अब कैसे संभलना है यह तुम्हें सोचना है. अदालतों में तो अच्छाखासा तमाशा होगा, अगर सुलहसफाई से अलग हो जाओ तो…’

‘‘ ‘मगर वह तो तलाक देने को नहीं मान रहा न. वह साथ रहना चाहता है और अब मैं साथ रहना नहीं चाहती. धमकी दे रहा है मुझे. घर की एक चाबी तो उस के पास भी है न, अगर मेरे पीछे से आ कर सारा सामान भी ले गया तो मैं क्या कर लूंगी.’

‘‘ ‘इस महल्ले के सभी लोग जानते हैं कि वह तुम्हारा पति है. कोई क्यों रोकेगा उसे, ऐसा है तो तुम घर के ताले ही बदल डालो फिर कैसे आएगा.’

‘‘ताले बदलवा लिए सुनयना ने. 2 छुट्टियां आईं और सुनयना अपने भाई के घर चली गई. रात 8 बजे के करीब अपने दरवाजे पर गिरीश को देख हम हैरान रह गए. एक चरित्रहीन…अपनी पत्नी को बीच रास्ते छोड़ देने वाला इनसान मेरे दरवाजे पर खड़ा था.

‘‘ ‘नमस्ते सर,’ दोनों हाथ जोड़ कर उस ने मेरा अभिवादन किया. चेहरे पर कोई भी भाव ऐसा नहीं जिस से शर्म का एहसास महसूस हो. मैं कभी अपनी पत्नी का मुंह देख रहा था और कभी उस का. गृहस्थी की दहलीज पार कर के जा चुका इनसान क्या इस लायक है कि उसे मैं अपने घर के अंदर आने दूं और पानी का घूंट भी पिलाऊं.

‘‘ ‘सुनयना यहां है क्या? घर पर है नहीं न…घर की चाबियां हों तो दे दीजिए… मैं ने फोन कर के उसे बता दिया था…मां को साथ लाया हूं…वह बाहर गाड़ी में हैं. कहां गई है वह? क्या मार्केट तक गई है?’

‘‘इतने ढेर सारे सवाल एकसाथ… उस के हावभाव तो इस तरह के थे मानो पिछले 3-4 महीने में कहीं कुछ हुआ ही नहीं है. पल भर को मेरा माथा ठनका. गिरीश के चेहरे का आत्मविश्वास और अधिकार से परिपूर्ण आवाज कहीं से भी यह नहीं दर्शा रही, जिस का उल्लेख सुनयना रोरो कर करती रही थी. उठ कर मैं बाहर चला आया. सचमुच गाड़ी में उस की बीमार मां थी.

‘‘ ‘वह तो अपने भाई के घर गई है और घर की चाबियां उस ने हमें दीं नहीं… आइए, अंदर आ जाइए.’

‘‘ ‘नहीं सर, मुझे तो मां को सीधे अस्पताल ले जाना है. कितनी लापरवाह है यह लड़की, जिम्मेदारी का जरा सा भी एहसास नहीं,’ भन्नाता हुआ गिरीश चला गया.

‘जिम्मेदारी का एहसास क्या सिर्फ सुनयना के लिए? तब यह एहसास कहां था जब वह अपने बच्चे का दर्द सह रही थी.’ मैं ने सोचा फिर सहसा लगा, नहीं, कहीं मैं ही तो बेवकूफ नहीं बन गया इस लड़की के हाथों. हम तो उसी नजर से गिरीश को देख रहे हैं न जिस नजर से सुनयना हमें देखना सिखा रही है. सच क्या है शायद हम पतिपत्नी आज भी नहीं जानते.

‘‘ ‘दिमाग हिल गया है मेरा,’ मेरी पत्नी ने अपना फैसला सुना दिया, ‘मुझे तो लग रहा है कि जो कहानी सुनयना हमें सुनाती रही है वह कोरी बकवास है. 4 महीने में उस ने हमें कोई भनक ही नहीं लगने दी और क्याक्या करती रही. क्या गारंटी है सच ही बोल रही है. आज के बाद इस लड़की से मेलजोल समाप्त. हम इस दलदल में न ही पड़ें तो अच्छा है.’

‘‘जिम्मेदारी का एहसास गिरीश को न होता तो क्या बीमार मां को ढो कर उस शहर से इस शहर में लाता. सुनयना के घर से कुछ लूटपाट कर ही ले जाना होता तो क्या उस के घर का ताला न तोड़ देता. आखिर वह मालिक था.

‘‘दूसरी सुबह मैं अस्पताल उस पते पर गया जहां गिरीश गया था. बीमार मां की बगल में चुपचाप बैठा था वह. हिम्मत कर के मैं ने इतना ही पूछा, ‘4 महीने हो गए गिरीश, तुम एक बार भी नहीं आए. सुनयना बीमार थी…तुम ने एक बार हम से भी बात नहीं की.’

‘‘ ‘आप भी तो यहां नहीं थे न. आप का भाई बीमार था, आप 4 महीने से अपने घर बरेली चले गए थे. मैं किस से बात करता और सुनयना बीमार है मुझे तो नहीं पता. मैं तो तब से बस, मां के साथ हूं, नौकरी भी नहीं बची मेरी. सुनयना मां को यहां लाने को मान जाती तो इतनी समस्या ही न होती. अब क्या मांबाप को मैं सड़क पर फेंक दूं या जिंदा ही जला आऊं श्मशान में. क्या करूं मैं…आप ही बताइए?

‘‘ ‘इस लड़की से शादी कर के मैं तो कहीं का नहीं रहा. 4 साल से भोग रहा हूं इसे. किसी तरह वह जीने दे मगर नहीं. न जीती है न जीने देती है.’

‘‘ ‘घर आ कर पत्नी को बताया तो वह भी अवाक्.’’

‘‘ ‘हमारा कौन सा भाई बीमार था बरेली में…हम 4 महीने से कहीं भी नहीं गए…यह कैसी बात सुना रहे हैं आप.’

‘‘जमीन निकल गई मेरे पैरों के नीचे से. लगता है हम अच्छी तरह ठग लिए गए हैं. हमारे दुलार का अच्छा दुरुपयोग किया इस लड़की ने. अपने ही चरित्र की कालिख शायद सजासंवार कर अपने पति के मुंह पर पोतती रही. हो सकता है गर्भपात की दवा खा कर बच्चे को खुद ही मार डाला हो और हर रोज नई कहानी गढ़ कर एक आवरण भी डालती रही और हमारी हमदर्दी भी लेती रही. सुरक्षा कवच तो थे ही हम उस के लिए.

‘‘अपना हाथ खींच लिया हम दोनों ने और उस पर देखो, उस ने हम से बात भी करना जरूरी नहीं समझा. आफिस में भी बात कर के इतना नहीं पूछती कि हम दोनों उस से बात क्यों नहीं करते. गिरीश आया था और हम उस से मिले थे उस के बारे में जब पता चल गया तब से वह तो पूरी तरह अनजान हो गई हम से.’’

विजय सारी कथा सुना कर मौन हो गया और मैं सोचने लगा, वास्तव में इनसान जब बड़ा चालाक बन कर यह सोचता है कि उस ने सामने वाले को बेवकूफ बना लिया है तो वह कितने बड़े भुलावे में होता है. अपने ही घर का, अपनी ही गृहस्थी का तमाशा बना कर गिरीश और सुनयना ने भला विजय का क्या बिगाड़ लिया. अपना ही घर किस ने जलाया मैं भी समझ नहीं पाया.

गिरीश सच्चा है या सुनयना कौन जाने मगर यह एक अटूट सत्य है कि हमेशाहमेशा के लिए विजय का विश्वास उन दोनों पर से उठ गया. कभी सुनयना पर भरोसा नहीं किया जा सकता और कोई क्यों किसी पर भरोसा करे. हम समाज में हिलमिल कर इसीलिए रहते हैं न कि कोई हमारा बने और हम किसी के बनें. हम सामाजिक प्राणी हैं और हमें हर पल किसी दूसरे इनसान की जरूरत पड़ती है.

कभी किसी का सुखदुख हमारे चेतन को छू जाता है तो हम उस की पीड़ा कम करने का प्रयास करते हैं और करना ही चाहिए, क्योंकि यही एक इनसान होने का प्रमाण भी है. किसी की निस्वार्थ सेवा कर देना हमारे गले का फंदा तो नहीं बन जाना चाहिए न कि हमारी ही सांस घुट जाए. तकलीफ तो होगी ही न जब कोई हमारे सरल स्वभाव का इस्तेमाल अपनी जरूरत के अनुसार तोड़मोड़ कर करेगा.

खट्टी सी, खोखली मुसकान चली आई मेरे भी होंठों पर. विजय की पारखी आंखों में एक हारी हुई सी भावना नजर आ रही थी मुझे.

पुन: पूछा उस ने, ‘‘है न कितना मुश्किल किसी को पहचान पाना आजकल? आज का इनसान वास्तव में क्या अभिनेता नहीं बनता जा रहा?’’

Love Story : प्यार का पौधा तीसरे देश की धरती पर

Love Story : प्यार ही वह खूबसूरत बंधन है जो धर्म, देश, रीतिरिवाज की दीवार को तोड़ कर दो दिलों को एक कर देता है. जहीर खान और अजय कुमार का मिलना और दिनोंदिन बढ़ता संबंध उन्हें अटूट जज्बातों में बांधता गया.

भारत के बिहार के रहने वाले अजय और पाकिस्तान के लाहौर के रहने वाले जहीर ने अपनी 30 साल से चली आ रही दोस्ती को रिश्ते में बदलने के उपलक्ष्य में अमेरिका के न्यू जर्सी के एक बड़े होटल में दावत का आयोजन किया था.

एक ओर भव्य मुगल लिबास में सजे अजय उन की पत्नी जया व फूलों का सेहरा पहन दूल्हा बने उन के बेटे अमित पाकिस्तान की तहजीब से रुबरू हो रहे थे तो दूसरी तरफ सिल्क का कुरता, अबरक लगी पीली धोती पहने जहीर, सीधे पल्ला किए पीली बनारसी साड़ी में उन की बेगम जीनत गजब ढा रही थीं. आंखों को चौंधियाते सोने के तारों व मोतियों वाला सुर्ख लाल लहंगा, चुन्नी व नयनाभिराम आभूषणों में दिपदिपाती हुई उन की लाड़ली आसमा चांदसितारों को शरमा रही थी.

मोगरा के फूलों में लिपटे हुए उस के बाल, जड़ाऊं मांगटीका से चमकता माथा व उस की मांग में पीला सिंदूर दिपदिपा रहा था. कान के ऊपर लटकता मोतियों की लडि़योंवाले झिलमिलाते झूमर से चांदनी बिखर रही थी. दोनों परिवार एकदूसरे की इच्छाओं का मानसम्मान रखते हुए अपनेअपने देश की गंगायमुनी संस्कृति का मिलन कर के अपनी दोस्ती की मिसाल पेश कर रहे थे.

उन की प्यारभरी दोस्ती की शुरुआत बड़े अजीबोगरीब ढंग से हुई थी. अजय को भारत से आए अभी हफ्ता भी नहीं हुआ था कि रोड दुर्घटना में वे अपना हाथपैर तुड़वा बैठे थे और 2 वर्षों पहले ही लाहौर, पाकिस्तान से आए हुए जहीर, जो अजय के अपार्टमैंट में ही रहते थे, ने पलक झपकते ही उन की सारी जिम्मेदारियों को उठा कर आपसी भाईचारे का अनोखा संदेश दिया था.

भयानक घटना कुछ ऐसे घटी थी. अजय ने गाड़ी चलाना नईनई ही सीखी थी. उसी महीने तो 2 बार कोशिश करने के बाद उन्होंने जैसेतैसे ड्राइविंग टैस्ट पास किया था. ज्यादातर लोग पैरेलल पार्किंग कर नहीं पाते और टैस्ट में असफल हो जाते हैं.

अमेरिका में ड्राइविंग लाइसैंस देने की प्रक्रिया जटिल होने के साथ ईमानदारी पर आधारित रहती है. जब तक भरपूर कुशलता नहीं आती, लाइसैंस मिलने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता है. लाइसैंस मिलने के बाद उन्होंने लोन पर सैकंडहैंड गाड़ी खरीदी. हफ्ताभर भी तो नहीं हुआ था उन्हें गाड़ी चलाते हुए कि औफिस जाते समय ऐक्सिडैंट कर बैठे. वो तो आननफानन घटनास्थल पर पुलिस पहुंच गई थी और लहूलुहान व बेहोश अजय को न्यू जर्सी के रौबर्ट वुड हौस्पिटल में पहुंचाते हुए उन के औफिस और घर पर सूचित करने के लिए स्वयं पहुंच गई. पुलिस ने ही उन की पत्नी को हौस्पिटल भी पहुंचाया.

अमेरिकी पुलिस की यह बहुत बड़ी विशेषता है कि वहां पर रहते हर व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के मदद करने के लिए वह तत्पर रहती है. वहां जिस का कोई अपना नहीं होता, पुलिस उस की देखरेख किसी अपने से बढ़ कर करती है.

हौस्पिटल में अजय की पत्नी जया अकेली, असहाय सी खड़ी आंसू बहा रही थी. नया देश, नए लोग किस से अपना दुख बांटे. वह असमंजस में थी. इंडिया में मायके व ससुराल दोनों की आर्थिक अवस्था इतनी भी मजबूत नहीं कि वहां से कोई यहां आ कर उस की असहायता के इस गहन अंधेरे को साझा कर ले. चारों ओर दुख का उफनता सागर था, जिस का कहीं दूर तक किनारा जया को नजर नहीं आ रहा था.

बहते हुए आंसुओं पर काबू पाते हुए वह अपना आत्मबल संजोने की चेष्टा कर तो रही थी पर सफल नहीं हो पा रही थी. दुर्घटना की खबर पाते ही वे सब परेशान हो जाएंगे. किसी न किसी तरह इस आपत्ति को वह खुद ही झेलने का साहस प्राप्त करेगी. दृढ़ निश्चय की आभा से वह भर उठी. इंश्योरैंस वाले हौस्टिपल का खर्च उठा ही रहे हैं. आगे कोई न कोई राह निकल ही आएगी, ऐसा सोच कर जया के मन को शक्ति मिली.

औपरेशन थिएटर से अजय को केबिन में शिफ्ट कर दिया गया था. लेकिन अभी भी उन पर एनेस्थीसिया का असर था. थकान और परेशानी के कारण जया को झपकी आ गई थी. दरवाजा खुलने की आहट से अचानक उस की पलकें खुल गईं और उस के बाद उस ने जो कुछ भी देखा, अविश्वसनीय था.

जहीर दंपती घबराए हुए अंदर आए और जया से मुखातिब हुए कि उस ने उन्हें इस दुर्घटना की जानकारी क्यों नहीं दी. जवाब में जया सिर झुकाए रही. वे जया की जरूरत के सारे सामान लेते आए थे. उस दिन से दोनों पतिपत्नी अजय के घर लौटने तक जया की हर जरूरत की पूर्ति, चेहरे पर रत्तीभर शिकन लाए बिना करते रहे. इस तरह अजय के उस नाजुक वक्त में जहीर ने शारीरिक व आर्थिक रूप से, अपने किसी भी देशवासी से बढ़ कर, उन्हें सहारा दिया था.

आने वाले दिनों में दोनों की दोस्ती गाढ़ी होती गई. अमित के जन्म के समय एक बार फिर वे सारे रिश्तों के पर्याय बन गए थे. गर्भावस्था के नाजुक पलों को जीनत बेगम ने किसी अपने से बढ़ कर महीनों सांझा किया. घर से ले कर हौस्पिटल तक का भार अपने कंधे पर उठा कर अजय को बेहिसाब तसल्ली दी. अमित का बचपन दोनों परिवारों के लिए खिलौना बना रहा.

2 वर्षों बाद ही आसमा पैदा हुई. अजय और जया ने भी उन नाजुक पलों की जिम्मेदारियों को सहर्ष निभाया. अपनी ओर से कोई कमी नहीं छोड़ी. अमित और आसमा दोनों साथ खेलते हुए बड़े हुए. एक ही स्कूल में उन दोनों ने पढ़ाई की. उन दोनों की नोकझोंक पर दोनों परिवार न्योछावर होते रहे. कहीं कोई दुराव नहीं था. घर अलग थे पर अपनी बेशुमार मोहब्बत से दीवार को उन्होंने पारदर्शी बना लिया था. दोनों परिवारों की दोस्ती सभी के लिए मिसाल बन गई थी.

कहते हैं जब प्यार का सवेरा शाम के सुरमई अंधेरे को गले लगा लेता है तो समय का पंख भी गतिशील हो जाता है. ग्रीनकार्ड मिलते ही दोनों परिवार सभी तरह से सुव्यवस्थित हो गए थे. कुछ वर्षों बाद ही उन्हें वोट देने का अधिकार मिल गया और वे अब वहां के नागरिक थे.

खुशियों की चांदनी में वे भीग रहे थे कि दुनिया का सब से बड़ा प्रभुत्वशाली देश अमेरिका का कुछ हिस्सा आतंकवाद के काले धुएं में समा गया. 2001 के

11 सितंबर, मंगलवार को न्यूयौर्क के वर्ल्ड ट्रेड सैंटर और पैंटागन पर हुए आतंकी हमले ने पूरे विश्व को सहमा कर रख दिया. कितने लोगों की जानें गईं. धनसंपत्ति का बड़ा भारी नुकसान हुआ. वर्ल्ड टे्रड सैंटर की इमारत का ध्वस्त होना पूरी दुनिया की आर्थिक स्थिति को चरमरा गया. इस हमले के पीछे मुसलिम हैं, इस की जानकारी पाते ही अमेरिका में रह रहे मुसलिमों पर आफत आ गई. अमेरिकियों के निशाने पर सारे दाढ़ी रखने वाले आ गए थे.

दाढ़ी वालों पर होते जुल्मोंसितम से जहीर व उन के परिवार को अजय ने अपनी जान पर खेल कर बचाया.

समय के साथ दुख के बादल छंट तो गए पर जहीर की नौकरी जाती रही. दोनों हिस्सों की ठंड को बांटते हुए अजय ने अपने हिस्से की धूप भी उन पर बिखरा दी, जिस की ताप को जहीर ने कभी कम नहीं होने दिया. सबकुछ सामान्य होते ही जहीर की बहाली भी हो गई और एक बार फिर से खुशियां उन के दरवाजे पर दस्तक देने लगीं.

स्कूल की पढ़ाई पूरी कर के अमित और आसमा दोनों आगे की पढ़ाई करने के लिए घर से दूर चले गए. अमित ने कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की तो आसमा ने मैडिकल पढ़ाई की लंबी दूरियां तय कर लीं. जीवन में सुख ही सुख की लाली थी जो पलक झपकते ही दुखों की कालिमा को निगल लिया करती थी. परम संतुष्टि के भाव में विभोर थे दोनों परिवार. अमित और आसमा ने एक लंबा समय साथ बिताया था.

बचपन की चुहलबाजियों ने धीरेधीरे प्यार के नशीले रूप को धारण कर लिया था. इस का अंदाजा उन्हें उस समय हुआ जब वे आगे की पढ़ाई करने के लिए घर से दूर जा रहे थे. धर्म और जाति की दीवारों में उन का प्यार कभी दफन नहीं होगा, इस का उन्हें भरपूर अंदाजा था और वे सभी तरह से आश्वस्त हो कर अपनी मंजिल हासिल करने की होड़ में शामिल हो गए.

उन के प्यार से अनजान उन के मातापिता कुछ ऐसे ही खूबसूरत बंधन के लिए आतुर थे. उन्हें इस का जरा सा भी अंदाजा नहीं था. दोनों के पेरैंट्स को जब उन के प्यार के बारे में पता चला तो उन्हें ऐसा महसूस हुआ मानो अटलांटिक महासागर में ही अनहोनी को होनी करते हुए प्यार के हजारों कमल खिल गए हों.

इस तरह हर ओर से जीवन की हर धूपछांव को बांटते हुए उन्होंने अपनी औलादों को आज सब से खूबसूरत रेशमी रिश्तों में बांध दिया था. वर्षों से चली आ रही अपनी दोस्ती पर खूबसूरत रिश्ते की मुहर लगा दी थी. बधाइयां देने वालों का तांता लगा था. यह दिलकश नजारा था गोली, बारूद की ढेर पर बैठे, निर्दोषोें की लाशों से अपनी सीमाओं को पाट कर रख देने वाले 2 देश हिंदुस्तान व पाकिस्तान की सरहदों के नुकीले तारों से क्षतविक्षत हुए दिल के तारों के किसी तीसरे देश की धरती पर मिलन का.

Romantic Story : पन्ने पैनड्राइव के – प्रेम की परिभाषा को समझाती अनूठी कहानी

Romantic Story : प्रेम किसी को जबरदस्ती पाने का नाम नहीं है बल्कि दूसरे के प्यार में अपने प्रेम को ढूंढ़ लेना सच्चा प्यार है. रीवा आंटी की यह समझाइश सुबाहु के लिए ऐसी आदर्श बनी कि उस ने प्रेम की परिभाषा को मूर्त रूप दे दिया.

एक बार देखने पर रीवा को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. सो उस ने दोबारा दर्पण में देखा और पूरा ध्यान अपनी आंख के उस कोने पर केंद्रित किया जहां पर उसे संदेह था, क्या त्वचा की यह सिकुड़न उस की बढ़ती आयु को दिखा रही है, कहीं यह झुर्री तो नहीं है? हां, यह झुर्री ही तो है.

‘खुश रहा करो, तनाव लेने से ऐसी झुर्रियां आती हैं चेहरे पर,’ यह सुना था रीवा ने लेकिन तनाव तो वह लेती नहीं.
‘बहुत से तनाव लिए नहीं जाते पर वे हमारे अंतर्मन में इस तरह बैठे होते हैं कि चेहरे पर अनजाने में ही अपनी छाप छोड़ जाते हैं,’ कहा था एक बार रीवा की सहेली सिमरन ने.
‘कोई बात नहीं, अब हम और भी अनुभवी कहलाएंगे इस हलकी सी झुर्री के साथ,’ 48-वर्षीया रीवा ने मुसकराते हुए अपनेआप से कहा.

रीवा की आयु भले ही बढ़ गई हो पर उस के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का भंडार था. गिलास आधा खाली या भरा में से उस ने सदैव ही भरे गिलास को चुना था. जीवन की हार को भी अच्छे शब्दों में परिभाषित कर के उसे एक अच्छा आयाम दे देना रीवा के व्यक्तित्व का मुख्य हिस्सा था. अभी रीवा आईने के सामने से हट नहीं पाई थी कि उस का मोबाइल बज उठा. मोबाइल पर एक निश्चित रिंगटोन के बजने से ही रीवा को पता चल गया था कि यह फोन सुबाहु का था.

रीवा जब तक मोबाइल उठाती तब तक मोबाइल कट गया पर रीवा के डायल करने से पहले ही दोबारा कौल आ गई, उधर से सुबाहु का व्यग्र स्वर था, ‘‘क्या आंटी, आप ने आने में इतनी देर कर दी, हम सब कब से आप का वेट कर रहे हैं और कितनी देर लगाओगी आप?’’

सुबाहु और भी लंबी शिकायत करता पर रीवा ने बीच में ही टोक कर कहा कि अभी उसे 15 मिनट और लगेंगे. सुबाहु का हताशाभरा स्वर ‘ओह नो’ रीवा के कानों में सुनाई दिया, जिसे सुन कर बिना मुसकराए नहीं रह सकी वह, मोबाइल रख कर वह झटपट तैयार होने लगी.

रीवा को लखनऊ शहर के बाहरी इलाके में बने रिजौर्ट गोमती राइड में पहुंचना था जहां पर सुबाहु का 25वां जन्मदिन सैलिब्रेट होना था. सुबाहु अपनी मम्मी रेवती और पापा अभिराज के साथ पहुंच चुका था.

रीवा के वहां पहुंचते ही सुबाहु का चेहरा खिल गया और उस ने लपक कर रीवा का स्वागत किया. रेवती और अभिराज से मिलवाने के बाद सुबाहु ने अपने दोस्तों से भी रीवा को मिलवाया और केक काटने के बाद जब गिफ्ट देने की बारी आई तो रीवा सुबाहु को गोमती राइड के लौन में ले गई जहां पर एक शानदार कवर से ढकी थी एक चमचमाती स्पोर्ट्स बाइक. सुबाहु बाइक देख कर खुशी से चीख पड़ा. अभी वह ठीक से खुश भी नहीं हो पाया था कि अभिराज ने रीवा से इतना महंगा गिफ्ट देने के लिए नाराजगी जताई.

‘‘कुछ भी महंगी नहीं, सुबाहु के शौक के आगे इस बाइक की कीमत कोई माने नहीं रखती,’’ रीवा ने कहा तो अभिराज प्यारभरी कसमसाहट में पड़े दिखाई दिए पर कुछ कह नहीं सके. पत्नी रेवती और रीवा एकसाथ खड़े मुसकरा रहे थे. सुबाहु बाइक स्टार्ट कर चुका था. सारे दोस्त सुबाहु से मन ही मन रश्क कर रहे थे.

सुबाहु ने जब से होश संभाला है तब से रीवा आंटी को मेहता परिवार की फैमिली फ्रैंड के रूप में ही जाना, जो उस परिवार के हर सुख और दुख में शामिल होती थी.

सीबीडी बैंक में मैनेजर के पद पर काम करने वाली रीवा, मेहता परिवार की नई गाड़ी की प्लानिंग में शामिल होती तो पिकनिक में भी साथ होती. खूबसूरत और अपने जीवन में एक सफल महिला होने के बावजूद रीवा ने शादी क्यों नहीं की, यह बात बहुत से लोगों को समझ नहीं आती थी. सुबाहु भी उन में से एक था और उस ने कई बार अपनी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश भी की पर हर बार रीवा ने उस के प्रश्न को टाल दिया.

सुबाहु भी अपने जीवन के हर छोटेबड़े काम में रीवा की सहायता लेता था फिर चाहे वह कालेज के ऐनुअल डे की स्पीच हो या फिर किसी प्रोजैक्ट का प्लान. रीवा भी व्यस्त होने के बावजूद बड़े मनोयोग से सहायता करती थी सुबाहु की.

उस दिन सुबाहु देरशाम रात 8 बजे रीवा के फ्लैट पर पहुंचा. वह काफी परेशान लग रहा था. जब उस की परेशानी रीवा ने जाननी चाही तो उस ने बताया कि उसे उस के क्लास में साथ पढ़ने वाली एक बहुत सुंदर लड़की से प्यार हो गया है.

‘‘बधाई हो भई, तुम्हें प्यार हुआ. इस में हैरान और परेशान होने वाली बात क्या है?’’ रीवा ने चुटकी लेते हुए कहा तो सुबाहु ने अपनी प्रौब्लम बताते हुए कहा, ‘‘वह लड़की बहुत सुंदर है और उसे इस बात का गुमान भी है. कालेज का हर लड़का उस पर डोरे डाल रहा है. वह मेरी अच्छी फ्रैंड है. मैं उस से अपनी प्रौब्लम्स शेयर करता हूं पर उस की बातों से लगता है कि वह मेरी 25 और अपनी 23 वर्ष की आयु को विवाह के लिए ठीक नहीं मानती और पहले अपना कैरियर बनाना चाहती है.’’

रीवा ने बड़े ध्यान से सुबाहु की सारी बातें सुनीं. उस ने सुबाहु से कुछेक सवाल किए, मसलन वह उस लड़की को कब से जानता है, वह उसे क्यों पसंद है इत्यादि. जो उत्तर सुबाहु ने उसे दिए उस के आधार पर रीवा ने जो फैसला सुनाया वह सुबाहु को बड़ा नागवार गुजरा था.

रीवा ने कहा कि कुछ दिनों की जानपहचान और शारीरिक सुंदरता को देख कर होने वाला प्यार अकसर ही आभासी प्यार होता है. उस में व्यग्रता तो होती है पर स्थायित्व नहीं होता. जोश और जनून तो होता है पर गहराई नहीं होती.
रीवा की बातें सुबाहु को समझ नहीं आ रही थीं. उस ने मुंह बना कर कहा कि प्रेम तो प्रेम होता है, असली और नकली क्या?

‘‘अकसर ही नकली चीजें असली चीजों से भी ज्यादा असली लगती हैं,’’ रीवा ने मुसकराते हुए कहा तो सुबाहु खीझा उठा, बोला, ‘‘आप ने अब तक शादी नहीं की पर प्यार तो किया होगा न तो क्या वह नकली प्यार था या कोई ऐसा था जो आप को धोखा दे कर चला गया, तो क्या आप पहचान पाईं असली और नकली प्यार को?’’

सुबाहु के इन तीखे सवालों पर रीवा का जी चाहा कि वह इन सब बातों का उत्तर दे दे पर नाजुक विषय और सुबाहु के इमोशन देख कर फिलहाल चुप रह जाना पड़ा था उस को. सुबाहु अभी भी प्यार के जनून में तो था पर उसे भी लगा कि वह थोड़ा अधिक बोल गया है.
कुछ देर की खामोशी के बाद रीवा सहज होते हुए बोली कि अभी वह घर चला जाए, सुबह इस मैटर पर बात होगी.
सुबाहु वापस लौट आया था पर उस ने रीवा के दबे जख्मों को कुरेद दिया था जिस से अब दर्द की टीस उठनी शुरू हो गई थी और वह टीस चीखचीख कर अपना दर्द किसी दूसरे को बताना चाहती थी.

रीवा ने किसी तरह रात काटी और सुबह होते ही सुबाहु से मिलने के लिए उस के घर जा पहुंची. रेवती और अभिराज उसे देख कर थोड़ा चौंके. रीवा सीधा सुबाहु के कमरे में गई और उसे एक पैनड्राइव देते हुए कहा, ‘‘असल में इस पैनड्राइव के अंदर मेरी डायरी के कुछ ऐसे राज हैं जिन्हें मैं अपनी डायरी में लिखती थी. सोचती थी समय मिलने पर इन्हें किताब का रूप दूंगी पर दे नहीं सकी. इस पैनड्राइव में स्टोर डायरी के पन्ने तुम्हें प्रेम की सही परिभाषा सम?ाने में मदद करेंगे.’’

रीवा का यह रूप देख कर अभिराज और रेवती दोनों की आंखों में कई सवाल उभर आए थे और सारे सवाल मिल कर यही कह रहे थे कि नहीं, रीवा, ये सब उसे बताना ठीक नहीं पर रीवा भला कहां सुनने वाली थी, वह हवा के झोंके की तरह बाहर निकल गई. अभिराज शांत खड़े थे, उन्होंने इशारे से रेवती को भी शांत रह कर अपना काम करने को कहा.

सुबाहु उस पैनड्राइव में स्टोर बातों को पढ़ने के लिए बहुत व्यग्र हो रहा था. उस ने अपने लैपटौप में पैनड्राइव लगा दी और बिस्तर पर लेट कर लैपटौप बगल में रख लिया और जो कुछ लैपटौप की स्क्रीन पर आया उसे बड़े ध्यान से वह पढ़ने लगा. जैसेजैसे वह पंक्तिदरपंक्ति पढ़ता गया वैसेवैसे ही उस के चेहरे पर कई रंग बदलते गए और वह उत्सुकता की चरम सीमा पर पहुंचने लगा. सुबाहु से लेटा न जा सका. उस की रीढ़ की हड्डी में चेतना और व्यग्रता का संचार तेजी से हो रहा था, वह उठ कर बैठ गया.

‘पर इतना सब कैसे हो सकता है? और मुझे इस बात का बिलकुल भी अंदाजा नहीं लग सका?’ अगली सुबह नाश्ते की टेबल पर मां से यही सवाल था सुबाहु का.

‘‘मां, रीवा आंटी की पैनड्राइव से मुझे पता चल चुका है कि आप तीनों ने मुझ से बहुतकुछ छिपाया. आप तीनों में एक अद्भुत रिश्ता है. रीवा आंटी और पापा एकदूसरे से कालेज के समय से प्यार करते थे और शादी भी करना चाहते थे पर रीवा आंटी की दूसरी जाति यानी बढ़ई जाति के होने से पापा के घरवालों को एतराज था जिस के कारण वे दोनों शादी नहीं कर पाए पर पापा और रीवा आंटी की दोस्ती अब तक कायम है,’’ सुबाहु किसी कथाकार की तरह सबकुछ वर्णित कर रहा था और रेवती शांति से उसे सुने जा रही थी.

‘‘रीवा आंटी का हमारे घर में इतना इन्वौल्वमैंट? आई मीन, आप ने पापा की पत्नी होते हुए भी किसी दूसरी औरत को घर में और हमारे जीवन में दखल सहन कैसे कर लिया?’’ सुबाहु चुप हो गया था पर एक प्रश्नचिह्न उस के चेहरे पर तैर रहा था.

रेवती ने अब बोलना ठीक समझ और सुबाहु को बताया कि जब उस की शादी अभिराज से हुई तो किसी भी अन्य लड़की की तरह उस के अरमान भी आसमान छू रहे थे पर ये अरमान तब धड़ाम हो गए जब एक रात को अभिराज ने खुद ही अपने और रीवा के रिश्ते के बारे में उसे बता दिया. वह सदमे में आ गई थी कि उस का पति पहले से किसी लड़की के प्रेम में रंगा हुआ है, ऐसे में उस का प्रेम फीका ही रह जाएगा और वह अपने हिस्से के प्रेम और अधिकार की मांग करते हुए अभिराज से विवाद कर बैठी. अभिराज से उस ने कई हफ्तों तक बात ही नहीं की. विवाह के तुरंत बाद पत्नी से मनमुटाव हो जाए तो उस का असर पूरे घर पर होता ही है, अभिराज भी तनाव में रहने लगे थे. उन्होंने उसे मनाना चाहा पर वह न मानी.

रेवती पुरानी यादें बता रही थी पर इस समय उस के चेहरे पर बीती बातों का कसैलापन नहीं दिख रहा था बल्कि एक असीम शांति छाई हुई थी. रेवती ने आगे बोलना शुरू किया, ‘‘मैं अभिराज के साथ रिश्ता तोड़ देती अगर उस दिन रीवा ने घर आ कर मुझे न समझाया होता कि प्रेम के सही माने क्या होते हैं.

‘‘रीवा के शब्दों में- ‘जब 2 लोग आपस में प्रेम करते हैं तो उन का प्रेम एकदूसरे के हृदय को स्पर्श तो करता है पर इस का मतलब यह नहीं होता कि उन्होंने एकदूसरे के शरीरों को भी स्पर्श किया है.’

‘‘रीवा की इस बात से मैं थोड़ा नरम हुई थी. इस के बाद रीवा अकसर मुझे से मिलने के लिए घर आने लगी. वह अकसर ही हरिवंशराय बच्चनजी की कविता की पंक्तियां दोहराती कि ‘जो बीत गई सो बात गई’ और बड़े जोशीले अंदाज में कहती, ‘लेट्स मूव औन, यार.’

‘‘उस की बातों में कभीकभी बनावटीपन भी लगता था पर एक बार जब मुझे मेरे ममेरे भाई की शादी में मायके जाना था पर उस समय अभिराज अपना नाम और कैरियर बनाने में व्यस्त थे और चाहते थे कि मैं उन के साथ रहूं और काम की व्यस्तता में उन का ध्यान रखूं तो रीवा ने मुझे सपोर्ट करते हुए अभिराज से कहा कि शादी के शुरुआती कुछ दिनों में लड़की को अपने मायके आनेजाने से नहीं रोकना चाहिए क्योंकि इन दिनों में लड़कियों के मन में मायके का प्रेम हिलोरें मारता रहता है.

‘‘रीवा की इस बात से मेरे मन में उस के लिए थोड़ी जगह बनी तो बाकी जगह उस ने गुजरते वक्त के साथ बना ली, जैसे मेरी तबीयत खराब होने पर मेरे सिरहाने बैठी रहती और एक नर्स की तरह मेरा ध्यान रखती. जब तुम गर्भ में आए तब भी वह परछाईं की तरह मेरे साथ और पास रही. कभीकभी अभिराज से मेरी वकालत करते करते वह लड़ जाती और वुमेनहुड को सपोर्ट करती.

‘‘उस का मेरी तरफ यह झुकाव भी मुझे असहज बना रहा था. मुझे लगा कि उस का मेरे घर यों आनाजाना और मुझे एक दोस्त की तरह ट्रीट करना कहीं उस का कोई निजी स्वार्थ या प्रयोजन तो नहीं,’ रेवती की बातों को बड़े ध्यान से सुन और समझ रहा था सुबाहु.

‘‘एक दिन मैं बोली, ‘क्यों करती हो ऐसा? क्या महान बनना चाहती हो अभिराज की नजरों में?’ मैं लगभग चीख कर बोली थी रीवा से लेकिन इस बात का उस ने बड़ी शांति से उत्तर दिया, ‘मुझे गलत मत समझ, रेवती. तुम अगर कहो तो अभिराज की तरफ देखूंगी भी नहीं और मैं यहां आना बंद कर दूंगी पर फिर भी बताना चाहूंगी कि मैं यहां क्यों आती हूं?’ और फिर उस ने मुझे अपनी लिखी पंक्तियां सुनाईं जो उस ने कभी अभिराज के लिए लिखी थीं-

‘हां यह सच है कि मैं तुम से प्रेम करती हूं
पर प्रेम की परिणीति विवाह हो,
यह आवश्यक तो नहीं
जरूरी तो प्रेम है
जो बेशर्त है, निस्वार्थ और निश्च्छल,
तुम्हें बताऊं
तुम्हारे सिवा अब मुझ को कोई और नहीं भाएगा
मेरे जीवन में अब कोई और न आएगा
और हां,
मैं तुम्हारी हर चीज से प्रेम करती रहूंगी
यहां तक कि तुम्हारी बाकी सब प्रेमिकाओं से भी.’

‘‘रीवा की इन पंक्तियों ने मेरा मन साफ कर दिया था. मेरी रीवा के प्रति सारी ईर्ष्या तिरोहित होती जा रही थी. भले ही अभिराज से मेरा विवाह हुआ है पर उस से सच्चा प्रेम तो रीवा ने ही किया है. मैं रीवा के सामने अपनेआप को काफी छोटा महसूस कर रही थी और इसी कारण मैं उसे एक सौतन नहीं बल्कि एक अच्छी दोस्त के रूप में स्वीकार कर पाई और आज रीवा हम सब की अच्छी फैमिली फ्रैंड है.’’

रेवती खामोश हो गई, अभिराज चाय के घूंट लेने लगे थे. सुबाहु के मन के अंदर रीवा की एक नई इमेज बन गई थी जो पहले से बहुत अलग थी. वह काफीकुछ सम?ा गया था और उस के कई सवालों के उत्तर भी मिल गए थे.

कुछ दिनों तक उस ने रीवा आंटी से कोई संपर्क नहीं किया. एक दिन उस ने रीवा आंटी को फोन किया और अपनी बाइक ले कर रीवा को पिक करने उस के बैंक पहुंच गया और उसे ले कर सीधा अपने घर पर आ गया जहां पर रेवती और अभिराज पहले से ही रीवा और सुबाहु का वेट कर रहे थे.

रीवा की आंखों में कई प्रश्न तैर रहे थे, जल्द ही उसे इन सब के उत्तर मिल गए. सुबाहु ने रीवा को सुनहरी जिल्द में लिपटी हुई एक पुस्तक भेंट की. रीवा ने किताब को देखा, किताब का शीर्षक था- ‘परिभाषा प्रेम की’. रीवा समझ गई थी कि पैनड्राइव के डिजिटल और व्यक्तिगत पन्नों को किताब के रूप में लाने का साहस रीवा तो नहीं कर पाई थी पर वह काम सुबाहु ने कर दिखाया.

‘‘आंटी, आप से ही मैं ने जाना है कि प्रेम किसी को जबरदस्ती पाने का नाम नहीं है बल्कि दूसरे के प्यार में अपने प्रेम को ढूंढ़ लेना ही सच्चा प्यार है. आप से पापा का मिलन नहीं हो सका पर आप ने उन के परिवार से दोस्ताना निभा कर इस रिश्ते को नई पहचान दी है. और तो और, मेरी दोस्त बन कर भी आप ने मुझे कई गलत रास्तों में पड़ने से बचाया.’’

सुबाहु इमोशनल होता, इस से पहले
ही रीवा बोल पड़ी, ‘‘मैं यह अनोखा रिश्ता निभा सकी, इस का असली श्रेय जाता है रेवती को, क्योंकि कोई भी पत्नी अपने पति के शादी से पहले के रिश्ते से द्वेष ही रखती है पर रेवती ने न केवल मुझे अपने दिल में जगह दी बल्कि अपने परिवार के मैंबर की तरह रखा. हमारे इस आपसी प्रेम का शीशमहल इसीलिए खड़ा हो सका क्योंकि इस के सभी स्तंभों ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है.’’

अभिराज बड़ी देर से खामोश खड़े थे, बोल पड़े, ‘‘अरे भाई, इस पूरी पिक्चर में इस असली हीरो को भी तो याद कर लो तुम लोग.’’

अभिराज के इस नाटकीयता भरे कथन पर सब लोग हंस पड़े थे. रीवा ने सब को एकसाथ इकट्ठा कर लिया. वह सब की सैल्फी लेना चाहती थी. सभी ने मोबाइल की तरफ मुसकराता चेहरा कर दिया. रीवा ने देखा कि उस की आंख के कोने पर आई हुई झुर्री अब धुंधला चुकी थी.

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