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एक दिन रूपी मोहल्ले के ही रामू के साथ भाग गई. इस के बाद तो जितने लोग, उतनी तरह की बातें होने लगीं. अधिकतर लोग रूपी  के मातापिता को ही इस का दोष दे रहे थे. मामला लड़की के भागने का था, इसलिए रूपी के पिता ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी थी.

करीब एक महीना बीत गया. काफी दौड़धूप और खोजबीन के बाद भी उन दोनों का कुछ पता नहीं चला. सब हैरान थे. आश्चर्य की बात तो यह थी कि रामू शादीशुदा था, इस के बावजूद भी उस ने ऐसा काम किया था.

रामू और रूपी शहर से दूर चले गए थे. वे कहां चले गए, यह बात मोहल्ले का कोई भी व्यक्ति नहीं जानता था. बेटी की हरकत से रूपी के मातापिता अपने संबंधियों, मोहल्ले वालों और समाज की दृष्टि में गिर चुके थे. वे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं थे.

लोग उन के सामने ही उन्हें ताने देते थे. इस से उन का घर से निकलना दूभर हो गया था. ऐसे में वे बेचारे कर भी क्या सकते थे? लोगों की तरहतरह की बातें सुनने को वे लाचार थे.

अचानक एक दिन सुनने में आया कि रामू और रूपी जयपुर में पकड़े गए हैं. मोहल्ले के एक प्रोफेसर माथुर ने जयपुर में अपने रिश्तेदार भरत माथुर के घर रामू और रूपी को देख लिया था. फिर क्या था, उन्होंने इस बात की सूचना पुलिस को दी तो पुलिस ने रामू और रूपी को पकड़ लिया था.

पुलिस ने रूपी को तो उस के मातापिता के घर पहुंचा दिया, जबकि रामू को हिरासत में ले लिया. रामू को उम्मीद थी कि रूपी कभी भी उस के खिलाफ बयान नहीं देगी, क्योंकि वह उस के साथ करीब 6 महीने पत्नी की तरह रही थी. पर बात एकदम इस के विपरीत निकली. रूपी ने अपने मातापिता की भावनाओं और दबाव में आ कर कोर्ट में अपने प्रेमी रामू के खिलाफ ही बयान दिया था. रूपी नाबालिग थी, इसलिए कोर्ट ने रामू को एक नाबालिग लड़की को भगाने के जुर्म में 3 साल की सजा सुनाई.

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