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सादिया की ट्रेन 7 घंटे लेट पहुंची थी. मुबीन फिर भी स्टेशन पर उपस्थित था. सादिया ने पहली बार अकेले यात्रा की थी. फिर मुन्ने ने भी काफी परेशान किया था. मुबीन को देख कर उस की आधी थकान जाती रही. घर पहुंची तो द्वार पर ताला देख कर उसे अचरज हुआ. मुबीन ने बताया कि सब लोग एक विवाह में गए हैं, शाम तक आ जाएंगे. सादिया ने गरम पानी से स्नान किया, मुन्ने को नहला कर कपड़े बदले और रसोई में पहुंच गई. फ्रिज खोल कर देखा, न भाजी थी न हौटकेस में रोटियां. उसे अजीब सा लगा. सब को पता था कि वह 17 घंटों की यात्रा कर के आ रही है. फिर ट्रेन 7 घंटे देरी से आई. तब भी किसी ने उस के लिए खाना बना कर नहीं रखा. उसे बहुत जोर से भूख लग रही थी. उस ने आलू की सब्जी व परांठे बनाए और मुबीन को आवाज दी.

मुबीन ने गरम परांठे देख कर कहा, ‘‘मैं ने तो आपा से कहा था कि खाना बना कर रख देना.’’

सादिया ने सहजता से कहा, ‘‘विवाह में जाने की हड़बड़ी में समय नहीं मिला होगा.’’

मुबीन कटुता से बोला, ‘‘कौन सा समंदर पार जाना था कि तैयारी में समय लग गया...आपा भी बस...’’

‘‘छोडि़ए, खाना खाइए,’’ सादिया ऐसे विवादों से दूर ही रहती थी जिन के कारण परिवार में क्लेश उत्पन्न हो. मतीन और मुबीन 2 भाई थे. बहन उन दोनों से बड़ी थी. नाम था, शबनम. पर नाम के सर्वथा विपरीत थी. हर समय उस की जीभ चलती रहती और दूसरों को आहत करती रहती. विवाह के 8 महीने बाद ही मायके आ कर बैठ गई थी. ससुराल के नाम से चिढ़ती थी. मां ने हथेली का फफोला बना रखा था, इस बूते पर वह दोनों भावजों पर हुक्म चलाती रहती थी. मतीन की पत्नी नईमा से शबनम जरा दबती थी, क्योंकि वह भी बहुत तेज मिजाज थी. शबनम एक कहती तो वह दो सुनाती. सादिया कभी उलट कर उन्हें जवाब न देती तो वह उसे और दबाती. सादिया ने खाने के बरतन वैसे ही पड़े रहने दिए और अपने कमरे में आ गई. मुबीन मुन्ने के साथ खेल रहा था. एक महीने बाद बेटे से मिला था. सादिया को देखते ही बोला, ‘‘तुम आराम करो, बहुत थकी हुई लग रही हो. मैं मुन्ने को संभालता हूं,’’ वह मुन्ने को उठाए हुए बैठक में चला गया.

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