Social Story : अकेली थी विमला. 80 साल की इस उम्र में दुखदर्द बांटने वाला पास में कोई अपना न था. बुढ़ापे का यह अकेलापन, बेबसी अच्छी तरह समझती थी इसलिए तो अपना दर्द भुला कर दूसरों की मदद के लिए चल पड़ती थी विमला.
रोज की तरह सुबह 7 बजे सोसाइटी के चौराहे पर आने वाली स्कूलबस का हौर्न बजा तो 80 साल की विमला की आंख खुली. उन्होंने पहले थोड़ी देर यों ही बैठ कर अपने घुटने को सहलाया, फिर उठ कर फ्रैश होने के लिए वाशरूम गईं. यह मुंबई के ठाणे की रोज वैली सोसाइटी की बिल्डिंग नंबर 3 के 5वें फ्लोर का टू बैडरूम फ्लैट है. विमला अकेली रहती हैं. पति सालों पहले साथ छोड़ गए.
उन के दोनों बेटे विदेश जा बसे हैं. अब उन का दिन अकेले, उदास ऐसे बीतता है जैसे महानगरों में रहने वाले अकेले इंसानों का बीतता है. ब्रश कर के उन्होंने थोड़ा लंगड़ाते हुए किचन में जा कर पानी पिया. आर्थराइटिस के कारण सुबहसुबह पैर ज्यादा ही अकड़ा रहता है. अपने लिए चाय चढ़ा दी. एक नजर फ्रिज खोल कर देखा कि क्याक्या रखा है, क्या मंगवाना है.
अपनी चाय छान कर रोज की तरह 2 बिस्कुट लिए और बैडरूम की खिड़की के पास ऐसी जगह अपनी चेयर रख कर बैठ गईं जहां से बाहर की आवाजाही देखती रहें. वे बाहर देखती रहीं. लोग आजा रहे थे. उन में से कई लोगों से आमनासामना होने पर हायहैलो भी हो गई है. बस, इतना ही तो फैशन है इस शहर का. कोई खास हो गया तो कभी घर आ गया वरना सड़क पर आतेजाते सब रिश्ते निभा लिए जाते हैं. बाहर देखने पर लगता है कि एक दौड़ सी है, सब भागे ही जा रहे हैं. खैर, कोई आएजाए, जिएमरे, उन्हें क्या. उन्हें जितने दिन जीना है, अकेले ही जीना है, यह सच वे स्वीकार कर चुकी हैं तो अब उन्हें किसी बात का फर्क ही नहीं पड़ता.
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