Download App

कथा : क्या थी नीरज की परेशानी ?

19 जुलाई, 2014 को शाम करीब पौने 7 बजे नीरज के मोबाइल फोन पर उस के जीजा नितिन का फोन आया, जिस में उस ने बताया कि मेरा और पारुल के बीच झगड़ा हो गया है. अब हमारा सब कुछ खत्म हो गया है. इस के बाद फोन कट गया. इतना सुनते ही नीरज परेशान हो गया कि जीजा यह किस तरह की बातें कर रहे हैं. उस ने महसूस किया कि फोन करते समय जीजा की आवाज में घबराहट थी.

नीरज जानना चाहता था कि ऐसा क्या हो गया, जो उन्होंने इस तरह की बात कही. जानने के लिए उस ने नितिन को फोन लगाया, लेकिन किसी वजह से उन से उस की उस से बात नहीं हो सकी.

नितिन पत्नी पारुल और 4 साल की बेटी आयुषि के साथ नोएडा सेक्टर-120 स्थित प्रतीक लोरियल अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर ई-402 में रहता था.

बात गंभीर थी, इसलिए नीरज ने यह बात अपने पिता सुरेंद्र कुमार को फोन कर के बता दी. सुरेंद्र कुमार धीपरवाड़ा, रेवाड़ी, हरियाणा में रहते थे. रेवाड़ी से नितिन का फ्लैट बहुत दूर था. जल्द फ्लैट पर पहुंचना उन के लिए असंभव था, इसलिए उन्होंने भी दामाद से बात करने के लिए कई बार फोन मिलाया. लेकिन किसी वजह से उन की बात नहीं हो सकी और न ही बेटी पारुल से कोई संपर्क हो सका.

सुरेंद्र कुमार भी इस बात की चिंता कर रहे थे कि बेटी और दामाद में से किसी का भी फोन क्यों नहीं लग रहा. नितिन ने नीरज से फोन पर जो शब्द कहे थे, उस से उन्हें अंदेशा हो रहा था कि कहीं उन लोगों के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई. इस तरह की तमाम आशंकाएं उन के मन में आ रही थीं.

नोएडा में सुरेंद्र कुमार के एक रिश्तेदार रहते थे. उन्होंने अपने उस रिश्तेदार को फोन कर के दामाद के फ्लैट पर जा कर पता लगाने को कहा.

उसी समय वह रिश्तेदार लोरियल अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर ई-402 पर पहुंचा तो उसे वह फ्लैट बंद मिला. फ्लैटों में रहने वाले अधिकांश लोग अपने पड़ोसी तक से वास्ता नहीं रखते. वे केवल अपने काम से मतलब रखते हैं. तभी तो उस रिश्तेदार ने जब नितिन का फ्लैट बंद देखा तो उस ने आसपास वालों से नितिन के बारे में पूछा. लेकिन उसे कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

उस रिश्तेदार ने यही बात फोन पर सुरेंद्र कुमार को बता दी. फ्लैट बंद था, बेटी और दामाद का फोन नहीं मिल रहा था. सभी लोग कहां चले गए, यही सोच कर घर के सदस्य चिंतित थे.  अब तक रात भी गहरा चुकी थी. ऐसे में उन के सामने रात भर इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था. उन्होंने सुबह होते ही नोएडा जा कर बेटीदामाद का पता लगाने का निश्चय किया. चिंता में उन्हें रात भर नींद नहीं आई.

अगले दिन 20 जुलाई, 2014 को सुरेंद्र कुमार अपनी पत्नी और बेटे के साथ नोएडा स्थित अपने दामाद के फ्लैट पर पहुंचे. उन्हें भी फ्लैट बंद मिला तो उन्होंने सोसायटी के पदाधिकारियों को इस की सूचना दी. फ्लैट बंद और उस में रहने वालों का कोई अतापता नहीं चलने पर मामला संदिग्ध लग रहा था. सोसायटी के एक पदाधिकारी ने इस की सूचना थाना सेक्टर-58 को दे दी.

थाने में खबर मिलने के थोड़ी देर बाद ही थानाप्रभारी चरण सिंह शर्मा सेक्टर-120 स्थित प्रतीक लोरियल अपार्टमेंट पहुंच गए. तब सोसायटी वाले पुलिस को उस फ्लैट तक ले गए, जिस में नितिन परिवार के साथ रहता था. फ्लैट का दरवाजा बंद होने से पुलिस भी चौंकी. फ्लैट खोलना जरूरी था, उस के बाद ही नितिन और उस की बीवीबच्ची का पता लग सकता था.

वहां मौजूद लोगों की मौजूदगी में थानाप्रभारी ने नितिन के फ्लैट का ताला तोड़ कर अंदर घुसे तो उन्हें तेज बदबू का अहसास हुआ. फ्लैट का नजारा चौंकाने वाला था. जमीन पर बिछे गद्दे पर नितिन की 4 साल की बेटी आयुषि मृत पड़ी थी. नातिन की लाश देख कर सुरेंद्र कुमार और उन की पत्नी जोरजोर से रोने लगी.

बच्ची की लाश मिलने के बाद पुलिस नितिन और पारुल को ढूंढते हुए फ्लैट की लौबी में पहुंची तो कुरसी पर 28 वर्षीया पारुल की लाश मिली. लेकिन नितिन फ्लैट में नहीं मिला.

दोनों लाशों से तेज बदबू आने से लग रहा था कि उन की हत्या कई दिनों पहले की गई थी. मौके पर चाकू तथा फर्श पर खून के धब्बे थे. पारुल के हाथ पर भी कटने का निशान था. घटनास्थल की स्थिति से लग रहा था कि पारुल की हत्या चाकू से की गई थी और उस की बेटी आयुषि का गला घोंटा गया था.

नितिन के गायब होने से सभी का अनुमान था कि यह सब उसी ने किया होगा. पारुल के मातापिता यह नहीं समझ पा रहे थे कि नितिन की घरगृहस्थी जब ठीक से चल रही थी तो ऐसी क्या बात हो गई कि उस ने उन की बेटी और नातिन को मार डाला.

अपार्टमेंट में रहने वाले जिस किसी ने भी सुना कि फ्लैट नंबर ई-402 में 2 हत्याएं हुई हैं, वह उसी ओर चल दिया. उधर दोहरे मर्डर की सूचना थानाप्रभारी ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डा. प्रीतिंदर सिंह को दी तो वह भी थोड़ी देर में मौकाएवारदात पर पहुंच गए. पुलिस ने बारीकी से फ्लैट का मुआयना किया तो वहां सभी सामान अपनीअपनी जगह रखे मिले. यानी ऐसा नहीं लग रहा था कि किसी ने लूट के इरादे से दोनों हत्याएं की हों.

ऐसा लग रहा था कि हत्यारे ने पारुल की मरजी से फ्लैट में एंट्री की थी और दोनों की हत्या कर के आसानी से ताला बंद कर के चला गया था. हत्यारा पारुल का कोई परिचित ही रहा होगा. चूंकि पारुल का पति नितिन गायब था, इसलिए पारुल के घर वालों को इस बात का शक था कि उसी ने दोनों की हत्या की होगी.

पुलिस ने मौके से जरूरी सुबूत इकट्ठे कर के दोनों लाशों का पंचनामा करने के बाद उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. संदेह के आधार पर पारुल के पति नितिन रोहिला के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर के पुलिस ने आवश्यक काररवाई शुरू कर दी.

हरियाणा के रोहतक के रहने वाले नितिन रोहिला की शादी सन 2008 में धीपरवाड़ा, रेवाड़ी के रहने वाले सुरेंद्र कुमार की बेटी पारुल से हुई थी. नितिन ग्रेटर नोएडा के सूरजपुर स्थित यामाहा कंपनी में इंजीनियर था. पारुल आर्किटेक्ट की डिग्री लिए हुए थी.

उच्चशिक्षित पारुल और नितिन की गृहस्थी हंसीखुशी से बीत रही थी. शादी के कुछ दिनों बाद पारुल एक बेटी की मां बनी, जिस का नाम आयुषि रखा. बेटी के जन्म के बाद दोनों बेहद खुश थे.

नितिन ने नोएडा के सैक्टर-120 स्थित प्रतीक लोरियल अपार्टमेंट में एक फ्लैट किराए पर ले रखा था. वहीं पर वह पत्नी और बेटी के साथ रहता था. पारुल हाउसवाइफ थी. पति के ड्यूटी पर जाने के बाद वह बेटी के साथ घर पर मस्त रहती थी.

पुलिस नितिन रोहिला की तलाश में जुट गई. वह यामाहा कंपनी में नौकरी करता था. वहां जा कर पुलिस ने पता किया तो जानकारी मिली कि 17 जुलाई को नितिन ने तबीयत खराब होने की बात कह कर औफिस आने से मना कर दिया था. यानी वह 16 जुलाई तक औफिस आया था, उस के बाद नहीं आया था.

पारुल और आयुषि के शव देख कर लग रहा था कि उन की हत्याएं 3-4 दिन पहले की गई थीं. कई दिनों से नितिन के औफिस न पहुंचने पर पुलिस का शक नितिन की तरफ और बढ़ गया. पुलिस मान कर चल रही थी कि हत्या करने के बाद वह फरार हो गया है. पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, शायद उस से उस के बारे में कोई सुराग मिल सके.

पुलिस नितिन की सरगर्मी से तलाश कर रही थी कि रात 8 बजे पुलिस को खबर मिली कि नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रैसवे के जीरो पौइंट पर एक कार में आग लगी है. सूचना मिलते ही स्थानीय पुलिस और फायर ब्रिगेड की गाड़ी मौके पर पहुंच गईं. आधा घंटे की मशक्कत के बाद कार में लगी आग बुझाई गई. पुलिस ने जांच की तो उस सैंट्रो कार में एक आदमी जला हुआ मिला.

उस सैंट्रो कार की जांच की गई तो पता चला कि वह कार नोएडा के सेक्टर-120 स्थित प्रतीक लोरियल अपार्टमेंट में रहने वाले नितिन रोहिला की है. स्थानीय पुलिस ने यह जानकारी सेक्टर-58 थाना पुलिस को दी तो थानाप्रभारी रात में ही एक्सप्रैसवे के जीरो पौइंट पर पहुंच गए. लाश झुलस चुकी थी, इसलिए वह पहचानने में नहीं आ रही थी.

जब कार नितिन की है तो इस में जली लाश किस की है? यह बात कोई समझ नहीं पा रहा था. कहीं ऐसा तो नहीं कि पत्नी और बेटी की हत्या करने के बाद नितिन ने अपनी जीवनलीला खत्म कर ली हो. यह बात यकीन के साथ तब तक नहीं कही जा सकती थी, जब तक कार में जली लाश की शिनाख्त न हो जाए.

थानाप्रभारी चरण सिंह शर्मा ने नितिन रोहिला के घर वालों को बुलाया तो नितिन के भाई ने उस की शिनाख्त अपने भाई के रूप में की. इस के बाद पुलिस ने वह लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और एक सैंपल डीएनए जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया, जिस से पता चल सके कि लाश किस की थी?

पुलिस यह भी मान कर चल रही थी कि कहीं यह नितिन की कोई गहरी साजिश तो नहीं है, जिस में उस ने पत्नी व बेटी की हत्या करने के बाद खुद को बचाने के लिए किसी और को बलि का बकरा बना दिया हो. नितिन को ले कर पुलिस असमंजस की स्थिति में आ गई.

पारुल और उस की बेटी आयुषि की जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई, उस में बताया गया था कि पारुल की हत्या गला दबा कर की गई थी और आयुषि की मौत भी सांस रुकने की वजह से हुई थी. नाक और मुंह बंद कर के आयुषि की सांस रोकी गई थी और दोनों की हत्या 16-17 जुलाई, 2014 की रात को की गई थी.

नोएडा के जिस अपार्टमेंट में नितिन रहता था, पुलिस ने वहीं से जांच की शुरुआत की. पुलिस के पास नितिन के फोन की काल डिटेल्स भी आ चुकी थी. काल डिटेल्स के अध्ययन से पता चला कि जिस रात पारुल और आयुषि की हत्या की गई थी, नितिन के फोन की लोकेशन प्रतीक लोरियल अपार्टमेंट की ही थी.

अपार्टमेंट की लिफ्ट में लगे सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि 16 जुलाई के बाद पारुल और आयुषि फ्लैट से नहीं निकले थे. शाम के समय नितिन को फ्लैट में जरूर जाते देखा गया था. इस का मतलब 16 जुलाई की शाम को नितिन फ्लैट में आया था. उस समय वह सूरजपुर स्थित अपने औफिस से आया था. उस के औफिस से पता चला कि 16 जुलाई को ड्यूटी करने के बाद वह वहां से 5 बजे निकला था. औफिस से वह शाम 6 बजे के करीब अपने फ्लैट पर पहुंचा था.

17 जुलाई को नितिन ड्यूटी पर नहीं गया था. उस ने फोन कर के बता दिया था कि उस की तबीयत खराब है. 16 जुलाई की शाम को अपने फ्लैट में घुसा नितिन 19 जुलाई को सुबह साढ़े 7 बजे के करीब बाहर निकला था. यानी 16-17 जुलाई की रात को पत्नी व बेटी की हत्या करने के बाद. वह 19 जुलाई तक दोनों लाशों के साथ फ्लैट में ही रहा.

19 जुलाई को सुबह साढ़े 7 बजे फ्लैट से निकलने के बाद वह दोपहर ढाई बजे तक सोसायटी के आसपास घूमता रहा. उसी दिन शाम साढ़े 6 बजे वह सीढि़यों के रास्ते फ्लैट में पहुंचा. पौने 7 बजे के करीब उस ने अपने साले नीरज को फोन कर के कहा कि मेरा और पारुल का झगड़ा हो गया है. अब हमारा सब कुछ खत्म हो गया है.

साले को फोन करने के 17 मिनट बाद नितिन लिफ्ट के जरिए बिल्डिंग से बाहर निकला और शाम साढ़े 7 बजे ग्रेटर नोएडा के नालेज पार्क पहुंच गया. यह सारी जानकारी उस के फोन की लोकेशन की जांच के बाद मिली. इस के आधे घंटे बाद 8 बजे नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रैसवे के जीरो पौइंट पर उस की सैंट्रो कार के जलने की खबर मिली.

पुलिस यह नहीं समझ पा रही थी कि 16 से 19 जुलाई तक नितिन फ्लैट में रह कर क्या करता रहा? जबकि वहीं पर उस की पत्नी और बेटी की लाशें पड़ी थीं. 19 जुलाई को फ्लैट से उस का बाहर जाना और 7 घंटे बाद फ्लैट में वापस आने का यह संकेत मिल रहा है कि उस ने लाशों को अपार्टमेंट से बाहर ले जाने का प्लान बनाया होगा. लेकिन चौकस सुरक्षा व्यवस्था को देख कर उस का प्लान चौपट हो गया होगा. इसलिए वह 7 बजे के करीब वहां से अकेला ही चला गया.

नितिन के भाई ने भले ही जली हुई कार में मिली लाश की शिनाख्त नितिन के रूप में कर दी है, लेकिन पुलिस को अभी भी संदेह है. तभी तो उस ने डीएनए जांच के लिए सैंपल भिजवाए हैं. अगर डीएनए जांच में इस बात की पुष्टि हो जाती है कि कार में मिली लाश नितिन रोहिला की थी तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि पत्नी और बेटी की हत्या करने के बाद नितिन ने भी सुसाइड कर लिया है.

और अगर डीएनए जांच रिपोर्ट नितिन के अलावा और किसी आदमी की निकली तो पुलिस के लिए एक नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी. फिर उसे नितिन को तलाशना होगा. इस के बाद ही पता लग सकेगा कि उस ने खुद को बचाने के लिए किस शख्स को अपनी कार में जलाया था. बहरहाल पुलिस के लिए यह मामला अब बहुत पेचीदा हो गया है.

कोचिंग संस्थानों का सच

प्रतियोगिता के इस दौर में कोचिंग एक आवश्यक शर्त बन गई है. पिछले लगभग 25 सालों में तो इस क्षेत्र में बहुत उबाल आया है. कोचिंग की बढ़ती मांग को देखते हुए लोगों ने अपनी मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ कर कोचिंग सैंटर शुरू कर दिए हैं. अनगिनत मातापिता के ख्वाब पलते हैं इन कोचिंग सैंटर के तले, क्योंकि ख्वाब दरअसल बच्चों के नहीं मातापिता के होते हैं, जिन्हें अंजाम तक पहुंचाने का माध्यम बच्चे होते हैं. मगर उन का क्या, जिन्होंने अपने पैसे लगाए और बच्चा भी खो दिया.

मौत का गलियारा बने कोटा शहर को ही ले लीजिए. यहां कोचिंग सैंटरों की भरमार है. पूरा शहर तैयारी करने वाले छात्रों से अटा पड़ा है. छात्र अपने घर से दूर चाहेअनचाहे माहौल में रहने को मजबूर हो जाते हैं. अधिकांश 15-16 साल की उम्र यानी 10वीं के बाद ही वहां के स्कूलों में प्राइवेट एडमिशन ले लेते हैं, मगर समय कोचिंग संस्थान में बिताते हैं. बननेबिगड़ने की इस उम्र में छात्र भावनात्मक रूप से संवेदनशील होते हैं. महीनेमहीने में होने वाले टैस्ट में बेहतर करने का प्रैशर तो होता ही है, फोन पर मातापिता की हिदायतें भी, “हम इतने पैसे खर्च कर रहे हैं, तुम्हें अच्छी रैंक ले कर आनी है.” जैसी ही कई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष बातें उन्हें समझनी होती हैं. यहां से शुरू होता है दबाव में आने का सिलसिला. हर तरह के छात्र यहां पर होते हैं, जिन का आर्थिक स्तर भी भिन्नभिन्न होता है. दूसरे से तुलना करने पर खुद को कमजोर पाना भी इस उम्र में कहीं न कहीं सालता है.

कुछ व्यवहार से इतने भावुक होते हैं कि वे मातापिता को शतप्रतिशत न दे पाने के बाद से तनावग्रस्त हो जाते हैं और कई बार मौत को गले लगा लेते हैं. मलाल के सिवा कुछ नहीं बचता पेरेंट्स के पास. कई मातापिता अपनी पूंजी, चलअचल संपत्ति को बंधक रख कर भी बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं.

बच्चे की मरजी हमें समझनी होगी. यदि बच्चे की रुचि मैडिकल, इंजीनियरिंग फील्ड में नहीं है तो क्यों बनेगा जबरन डाक्टर या इंजीनियर? वह संगीत या प्रशासनिक सेवा के क्षेत्र में बेहतर कर सकता है. आजकल कक्षा 7-8 से बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की कोचिंग, कोडिंग कराना एक शौक बन गया है. इस की इतनी जरूरत नहीं है, जितनी हम समझते हैं.

विदेशों का उदाहरण लें, तो वहां बच्चों को इन मामलों में स्वतंत्र छोड़ा जाता है. उस की अभिरुचि को परखने के बाद ही उसे किसी क्षेत्र विशेष में भेजा जाता है.

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून तो शुरू से ही ऐजूकेशन हब रही है. यहां अनेक कोचिंग सैंटर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाते हैं. इन कोचिंग सैंटर में नोट्स तैयार करवाना, परीक्षा की तैयारी वाले वीडियो लैक्चर, फैकेल्टी के साथ लाइव क्लासेज चैट सुविधा भी उपलब्ध होती है. दैनिक टैस्ट सीरीज भी यहां पर करवाए जाते हैं. सिविल सेवा के अंतर्गत आईएएस, पीसीएस सेवाओं में इन संस्थानों के मार्गदर्शन में छात्रों का चयन भी हुआ है. लेकिन शिक्षा का व्यवसायीकरण पिछले कुछ सालों में बेहिसाब हुआ है. बैंकिंग, एसएससी, रेलवे, एनडीए, सीडीएस जैसी कई परीक्षाएं हैं, जहां कोचिंग का सहारा लिया जाता है. कई कोचिंग संस्थान ऐसे हैं, जहां पर शिक्षक काबिल नहीं होते. छात्रों को कुछ समझ में नहीं आता. केवल समय बरबाद होता है. कुछ खास छात्रों पर खास ध्यान देना भी कमजोर छात्रों के साथ नाइंसाफी है. ज्यादातर संस्थाओं का उद्देश्य पैसा कमाना है.

उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की ओर से आयोजित पटवारी भरती परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक होने के बाद जांच से बचने के लिए कई कोचिंग सैंटर संचालक भूमिगत हो गए थे. इन आरोपियों के संबंध कोचिंग सैंटर संचालकों से होने की बात सामने आई.

हरिद्वार और आसपास के क्षेत्रों में मोटी फीस ले कर चलने वाले कोचिंग सैंटर के संचालक घेरे में आए. ये संचालक बड़ीबड़ी संपत्तियों के मालिक हैं. 8 जनवरी को पटवारी परीक्षा हुई थी, पर पेपर पहले ही लीक हो गया था.

सैल्फ स्टडी का महत्व आज भी बरकरार है. पर, एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ ने कोचिंग के व्यापार को फलनेफूलने में मदद की है. इस से छात्रों का स्ट्रैस लैवल बढ़ता है. दिनचर्या बहुत कष्टकारी हो जाती है. बड़े शहरों के कई प्राइवेट स्कूल जो कोचिंग कराते हैं, उन का भी यही हाल है. स्कूल से छुट्टी के एक घंटे बाद फिर से कोचिंग की ओर कदम. दिमाग कितना ग्रहण कर पाएगा आखिरकार? हर घर में एक या 2 बच्चे हैं. मातापिता का एकमात्र उद्देश्य कमाना और बच्चे को बेहतर ऐजूकेशन देना है. ऐसे बचपन को जब स्नेह, दुलार और संबल नहीं मिलता तो वह संवेदनशील हो जाता है. समय बीतने के साथ उन के लिए घर से बाहर भी एडजैस्ट करना मुश्किल हो जाता है. बीते 12 फरवरी को गुजरात के रहने वाले इंजीनियरिंग प्रथम वर्ष के छात्र ने आईआईटी, मुंबई में आत्महत्या कर ली थी, जहां पर प्रवेश पाना ही बहुत बड़ी बात है.

ऐसे क्या कारण रहे होंगे, क्या तनाव रहा होगा इस बच्चे को. हमारी मौजूदा परीक्षा प्रणाली तनाव को बढ़ावा देने वाली है. आईएएस परीक्षा सब से कठिन परीक्षा मानी जाती है, उस के बाद आईआईटी विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा. निर्धारित कटऔफ भी तनाव का कारण बनती है. 90 फीसदी से अधिक अंक न आ पाने पर भविष्य अंधकारमय लगता है.

समाज का नजरिया ही कुछ ऐसा है. छात्र अलगअलग कारणों से आत्महत्या कर रहे हैं. भारत में हर एक घंटे में एक छात्र आत्महत्या कर रहा है. 130 करोड़ से अधिक आबादी वाले देश में महज 5,000 ही मनोचिकित्सक हैं. हमारा दुर्भाग्य है, मानसिक बीमारी को हमारे देश में बीमारी ही नहीं समझा जाता है. वर्ष 2014 से 2016 तक 26,000 से ज्यादा छात्रों ने आत्महत्या की थी.

हैरानी तो यह कि सब से समृद्ध राज्य महाराष्ट्र इन में पहले स्थान पर था. मनचाहे कालेज में प्रवेश न मिलना भी एक बहुत बड़ा कारक है. मातापिता समझदारी से काम लें. अपनी उम्मीदों का बोझ अपने बच्चों पर न लादें.

भारत में कोचिंग व्यवसाय के बारे में पुणे स्थित कंसलटैंसी फर्म इन्फिनियम रिसर्च की सूचना के अनुसार, भारत का मौजूदा कोचिंग बाजार राजस्व 58,000 करोड़ रुपए से अधिक है, जो आने वाले 5-6 वर्षों में बढ़ कर 1 लाख, 34 हजार करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है.

अगर आज से 25-30 वर्ष पीछे जाएं, तो देश में कोचिंग सैंटरों की संख्या काफी कम थी. धीरेधीरे गलाकाट प्रतिस्पर्धा होने लगी, कालेज में सीट कम और अभ्यर्थियों की संख्या बढ़ने लगी. एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति में इन कोचिंग सैंटरों ने कमान संभाली. बस फिर समय के साथ यह हर छात्र की आवश्यकता बन गई. इस की आड़ में छोटे कसबाई इलाकों में कुकुरमुत्ते की तरह कोचिंग सैंटर खोल दिए गए, जहां पर गुणवत्ता नगण्य थी. लेकिन छात्र उन्हें भी मिल रहे हैं, क्योंकि अभिभावक आंख बंद किए हुए हैं या गुणवत्ता की उन्हें पहचान नहीं.

कई कोचिंग सैंटर तो छात्रों से भी सौदा कर देते हैं. इश्तिहार में सफल छात्रों की तसवीर अपने पासआउट छात्रों के तौर पर लगा देते हैं, ताकि दूसरे छात्र भी संस्थान से प्रभावित हो कर वहां प्रवेश ले लें. तरहतरह के हथकंडे कुछ संस्थानों द्वारा अपनाए जाते हैं.
मगर कोचिंग सैंटरों की इतनी आवश्यकता क्यों पड़ी? अगर इस बारे में गौर करें तो देखते हैं कि किसी भी परीक्षा में बैठने के लिए न्यूनतम अहर्ता तो छात्र प्राप्त कर ही लेता है. उस के बावजूद भी उसे कोचिंग लेनी होती है. इस का एक स्पष्ट और साधारण कारण यही है कि स्कूली और विश्वविद्यालय शिक्षा में संपूर्ण और अपेक्षित ज्ञान अर्जित नहीं कर पाता है. हिंदी बैल्ट के छात्र अंगरेजी में पढ़ाई नहीं समझ पाते तो मन में हीन भावना घर कर जाती है. शिक्षा के निजीकरण ने भी इस समस्या को काफी हद तक बढ़ाया है.

वैधअवैध हर तरह के सैंटर हैं, जहां सुरक्षा मानकों की अनदेखी की जाती है और दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. बिजली उपकरणों को सुरक्षित और मानकों के अनुसार लगाने की आवश्यकता है. पर कई जगह ये सैंटर बिना एनओसी पर चलते हैं, जब तक धरपकड़ न हो जाए. दुकानों, छोटे कमरों, बेसमैंट में तक में कोचिंग का व्यवसाय फलफूल रहा है. कोटा में लगभग 150 कोचिंग सैंटर हैं, जो जेईई और नीट के लिए प्रशिक्षण दे रहे हैं. हर साल लगभग 2 लाख छात्र यहां पर आते हैं. एकेडमी और फिजिक्स वाला, औनलाइन कोर्स देने वाले 2 संस्थान भी अब औफलाइन मोड में आ कर कोटा पहुंचे हैं. बंसल, एलन, फिटजी, एकलव्य, श्री चैतन्य जैसे सैंटर वर्षों पहले आए, कुछ सफल रहे और कुछ बोरियाबिस्तर बांध कर वापस चले गए.

श्री चैतन्य, नारायण दक्षिण भारत के इंस्टिट्यूट थे, जो 5-6 वर्षों में ही निबट गए. एलन, रिजोनेंस, मोशन, आकाश, बायजू, कैरियर प्वाइंट, वाईब्रैंट जैसे संस्थान आज भी अच्छे चल रहे हैं. कारण इन की गुणवत्ता है.

कोटा शहर में तो यह आलम है कि देश के अलगअलग हिस्सों से मांएं अपने बच्चों के साथ कमरा ले कर यहां रह रही हैं. पर यह शिक्षा प्रणाली का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं. वर्ष 2022 में 20 छात्रों की मौत हुई, जिन में से 18 ने आत्महत्या की थी. छात्र में तनाव का होना एक गंभीर मुद्दा है. यह बात अलग है कि काउंसलिंग की नाममात्र की सुविधा हमारे छात्रों को प्राप्त है. वर्ष 2019 से 2022 तक 53 आत्महत्या के मामले आए हैं.

छात्रों की काउंसलिंग बहुत आवश्यक है. कोचिंग के मंथली टैस्ट में पिछड़ जाना, आत्मविश्वास की कमी, पढ़ाई संबंधित तनाव, आर्थिक तंगी या किसी तरह का भावनात्मक टूटन जैसे कई कारण हो सकते हैं, जो बच्चे को आत्मघाती कदम उठा लेने की ओर धकेलते हैं.

शारीरिक गतिविधियां, खेलकूद, योग, मनोरंजन इन होस्टलर्स के लिए जरूरी है. होम सिकनैस भी एक बहुत बड़ा कारण है. इस उम्र में बच्चा अपनी परेशानी मांबाप से कह नहीं पाता. कई बार संस्थान में ब्रेक के दौरान भी वे घर नहीं जाते, क्योंकि उन्हें पढ़ाई में पिछड़ने का डर रहता है, लेकिन घर की याद मन ही मन उस का पीछा करती है. बच्चा घर से बाहर रह रहा हो तो उस के रैगुलर संपर्क में रहें. समझने की कोशिश करें कि उसे कोई समस्या तो नहीं है. उसे बताएं कि जीवन और स्वास्थ्य पहली जरूरत है. हर कोई पढ़ाई पर विशेष मुकाम हासिल नहीं कर सकता. सब की अपनीअपनी क्षमता है और समाज में हर तरह के लोगों की जरूरत है. समयसमय पर अपने बच्चे से जा कर जरूर मिलें. उस की क्षमताओं को पहचानें. उसे किसी भी तरह के दबाव में आ कर काम न करने को कहें. मातापिता का सकारात्मक व्यवहार एनर्जी बूस्टर का काम करता है.

मैं खुद एक आईआईटियन की मां हूं. समय रहते समझ में आ गया था कि बच्चे को प्रैशराइज नहीं करना है. यह सुखद संयोग रहा कि उस ने इंटरमीडिएट में भी कोई कोचिंग नहीं ली. अपने पिता और सैल्फ स्टडी के बल पर जेई एडवांस की परीक्षा पास की, लेकिन हर बच्चे का मानसिक लैवल बराबर नहीं होता और न ही मेहनत करने का रुझान और दक्षता. हां, प्रोत्साहित कर के उचित माहौल बना कर काफी मदद जरूर की जा सकती है.

आज कोटा मौत की नगरी बनता जा रहा है. कई छात्र आत्महत्या कर रहे हैं. इतनी मेहनत के बाद उच्च तकनीकी संस्थानों में प्रवेश पाने के बावजूद भी छात्र आत्महत्या कर रहे हैं. इस प्रवृत्ति को देखते हुए कई कालेजों के होस्टल में तो पंखे तक हटा दिए गए हैं, ताकि इन का दुरुपयोग न हो. इस बीच नई तकनीकी से बने पंखों के बारे में भी पढ़ रही थी, जिस पर ज़रा भी जोर देने पर वह पहले ही नीचे आ जाएगा.
बच्चा जितना भी कर रहा है, उसे प्रोत्साहित करें. अगर वह काबिल नहीं है तो उसे हतोत्साहित न करें. कोई न कोई काम उस के लिए अवश्य नियत है. रटाने और पटाने दोनों की प्रवृत्ति घातक है.

अन्य व्यवसायों की तरह कोचिंग भी एक व्यवसाय बन गया है और संस्थान के अधिकारी अधिक से अधिक मुनाफा कमाना अपना उद्देश्य समझते हैं, जिस से बेवजह मातापिता की जेब कटती है. लेकिन इस प्रवृत्ति पर रोक लगा पाना तभी संभव होगा, जब स्कूली और विश्वविद्यालयी शिक्षा ठोस हो और 12वीं के बाद प्रवेश पाने की प्रक्रिया थोड़ी सरल बना दी जाए और छात्रों को बेवजह कोचिंग की सहायता की आवश्यकता न हो.

सीने में दर्द के हो सकते हैं कई अलग-अलग कारण

लोग यह नहीं जानते कि सीने में दर्द दिल के रोग के अलावा और भी महत्त्वपूर्ण कारण होते हैं. इन पर वे ध्यान नहीं देते और समस्या गंभीर होती चली जाती है.भारतीयों में हार्टअटैक का इस कदर खौफ समाया हुआ है कि जरा सा छाती में खिंचाव, दर्द या जलन की शिकायत हुई नहीं कि दौड़ पड़े निकट के डाक्टर के पास. तुरंत ईसीजी और ढेरों खून के टैस्ट आननफानन करवा डाले. पर नतीजा कुछ नहीं निकला. फिर भी संतोष नहीं हुआ, तो पास के किसी नर्सिंग होम या छोटे अस्पताल में जा कर भरती हो गए और वहां के आईसीयू में 4-5 दिन गुजारने के बाद तसल्ली मिली.

इलाज करने वाला डाक्टर तो पहले से ही तसल्ली में था, पर आप को चैन नहीं था. जब रोज सुबहशाम ईसीजी हुआ और ढेर सारे खून के अनापशनाप टैस्ट हुए और थोड़ी जेब ढीली हुई, तब जा कर आप के ऊपर आया हुआ तथाकथित हार्टअटैक का खतरा टला. पर इस के बाद दवाइयों का सिलसिला जो शुरू हुआ, उस ने थमने का नाम ही नहीं लिया.

इस तरह की घटनाएं देश के हर गलीनुक्कड़ पर रोजरोज दोहराई जा रही हैं. नतीजा यह हो रहा है कि हर सीने में दर्द की शिकायत करने वाला व्यक्ति अपनेआप को जानेअनजाने में दिल का मरीज समझने लगा है और इस का असर यह हो रहा है कि उस की दिनचर्र्या व रोजमर्रा के व्यवहार में ऐसा बदलाव आ रहा है मानो चंद दिनों में ही मौत का अचानक बुलावा आने वाला हो. यहां तक कि वसीयत तुरंत लिखवाने के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया हो.

हार्टअटैक का ऐसा खौफ क्यों

इस के लिए काफी हद तक मीडिया विशेषकर टैलीविजन चैनल जिम्मेदार हैं. आएदिन हार्टअटैक के बारे में दहशत फैलाई जा रही है. अगर फलांफलां तेल खाने में इस्तेमाल नहीं किया तो हार्टअटैक निश्चित है. अपना बीमा करा लो, कहीं हार्टअटैक  न आ जाए और आप के परिवार वाले अनाथ न हो जाएं.

एक और भी कारण है कि अपने देश के हर गलीनुक्कड़ में जैसे हार्ट स्पैशलिस्ट की बाढ़ आ गई हो. हर फिजीशियन अपनेआप को हार्ट स्पैशलिस्ट लिखने लगा है. कहीं भी आप गलीमहल्ले या कसबे में निकल जाइए, फिजीशियन एवं हार्ट स्पैशलिस्ट के बोर्ड बड़ी संख्या में नजर आ जाएंगे. जब हर कोई हार्ट स्पैशलिस्ट बना जा रहा है तो दिल के मरीज भी उसी संख्या में पैदा होंगे ही.

हार्टअटैक का अंदेशा कब करें

अगर आप की उम्र 40 वर्ष या उस से ऊपर है और आप डायबिटीज के शिकार हैं व धूम्रपान या तंबाकू (जर्दा, खैनी, जाफरानी पत्ती, गुल) के आदि हैं और तेज चलते वक्त या सीढ़ी चढ़ने पर छाती की बाईं तरफ दर्द या हलका भारीपन उभरता हो या थोड़ा शारीरिक व्यायाम करने पर सांस फूलने लगे, तो दिल की बीमारी होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

खास बात यह होती है कि आराम करने से या चलते वक्त रुक जाने पर छाती का हलका दर्द व भारीपन गायब हो जाता है. दिल का दर्द चलते वक्त बाएं हाथ, बाईं गरदन व बाएं जबड़े में भी उभरता है.

सीने में दर्द की चिंता से मुक्ति पाने का एक ही रास्ता होता है. पहले अपनी टीएमटी जांच करवा लें. अगर परिणाम संदेहास्पद है तो स्ट्रैस इको (डोब्यूटामीन इन्ड्यूस्ड स्ट्रैस इको यानी डीआईएसई) करवा कर हार्ट की बीमारी होने के संदेह का निराकरण करें. पूर्णतया निश्चिंत होने के लिए सब से उत्तम जांच मल्टी स्लाइस सीटी कोरोनरी एंजियोग्राफी करवाएं. इस विशेष एंजियोग्राफी के लिए अस्पताल में भरती होने की जरूरत नहीं होती और न ही जांघ के जरिए तार डालने की आवश्यकता होती है.

हार्टअटैक की संभावना

अगर आप की उम्र 40 से कम है व वजन सीमा के अंदर है और आप डायबिटीज व ब्लडप्रैशर के शिकार नहीं हैं, साथ ही, धूम्रपान, मदिरापान व तंबाकू सेवन के शौकीन भी नहीं हैं, तो आप के छातीदर्द का दिल के रोग से संबंध होने की संभावना कम होती है. अगर छाती का दर्द विशेषकर दाईं तरफ है और नौर्मल सांस लेने में या छींक या खांसी होने पर छातीदर्द उभरता है तो दिल के रोग की संभावना सौ में 5 फीसदी होती है. अगर गरिष्ठ, मिर्चयुक्त मसालेदार खाने के बाद ही छाती में दर्द उभरता है, तो दिल के रोग की संभावना कम होती है. तब हमें दिल के अलावा अन्य रोगों से संबंधित जांच करवाने के बारे में सोचना चाहिए.

दिल के अलावा अन्य कारण

सीने में दर्द का सब से बड़ा कारण छाती की अंदरूनी दीवारों में सूजन का होना है. होता यह है, जब फेफड़ों की ऊपरी सतह पर स्थित झिल्ली में सूजन आ जाती है तो छाती की अंदरूनी दीवार में स्थित सूजी हुई सतह सांस लेते वक्त रगड़ खाती है, तो असहनीय दर्द होता है. इस अवस्था को मैडिकल भाषा में प्ल्यूराइटिस कहते हैं. यह प्ल्यूराइटिस छाती में पानी इकट्ठा होने का शुरुआती संकेत है.

प्ल्यूराइटिस का ज्यादातर कारण टीबी का इन्फैक्शन होता है. लोग छातीदर्द के लिए दर्दनिवारक गोलियों का सेवन करते रहते हैं और सही जांच व इलाज के अभाव में समस्या को और गंभीर बना देते हैं. अगर प्ल्यूराइटिस की समस्या को सही समय पर नियंत्रित न किया गया तो सीने में फेफड़े के चारों ओर पानी इकट्ठा हो जाता है. टीबी के अलावा न्यूमोनिया का इन्फैक्शन भी इस अवस्था को पैदा कर देता है. इस तरह की समस्या पर किसी थोरैसिक सर्जन यानी चेस्ट सर्जन से परामर्श लें.

मवाद भी सीने में दर्द का कारण

हमारे देश में सीने में दर्द मवाद यानी पस जमा हो जाने की घटना बहुत आम है. होता यह है कि न्यूमोनिया या अन्य फेफड़े का इन्फैक्शन जब पूरी तरह से नियंत्रित नहीं हो पाता है, तो फेफड़े के चारों ओर विशेषतया निचले हिस्से में इन्फैक्शन वाला पानी या मवाद इकट्ठा हो जाता है.

इस एकत्र हुए पस की मात्रा कम तो होती है, पर महीनों दिए जाने वाले तरहतरह के एंटीबायोटिक का असर नहीं होता. छाती में पस का जमाव  सीने में दर्द बड़ा ही महत्त्वपूर्ण कारण होता है. इस में किसी थोरैसिक सर्जन से औपरेशन के जरिए सफाई कराने के बाद ही समस्या से नजात मिल पाती है.

सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस

देश में शारीरिक व्यायाम का नितांत अभाव है. लोग हाथपैर चलाना तो दूर, पैदल चलना भी भूलते जा रहे हैं. और तो और, टैलीविजन व कंप्यूटर के सामने एक ही शारीरिक मुद्रा में बैठे रहते हैं. ऐसी आरामतलब दिनचर्र्या का गरदन व छाती के ऊपरी हिस्से की रीढ़ की हड्डियों पर कुप्रभाव पड़ता है. व्यायाम के अभाव में रीढ़ की हड्डियों के जोड़ काफी सख्त हो जाते हैं और उन में लचीलापन खत्म हो जाता है.

परिणामस्वरूप, रीढ़ की हड्डी से हाथ, कंधे और छाती के हिस्से में जाने वाली नसों पर दबाव पड़ने लगताहै. इस के फलस्वरूप छाती और हाथ में दर्द उभरने लगता है और लोग इसे दिल का रोग व संभावित हार्टअटैक गलती से मान बैठते हैं व अनजाने में अप्रत्याशित हार्टअटैक की संभावना के मद्देनजर अपनी दिनचर्या में अनावश्यक आमूलचूल परिवर्तन करते हैं. इस से उन में आत्मविश्वास व उन की कार्यक्षमता दोनों में ही भारी कमी आती है. आप को चाहिए कि किसी थोरैसिक यानी चेस्ट सर्जन से सलाह लें.

पसलियों की कमजोरी

आजकल अकसर नवयुवक व नवयुवतियां छातीदर्द की शिकायत करते हैं. यह दर्द सामने की ओर ज्यादा होता है. यह दर्द पसलियों का होता है जो छींक या खांसी आने पर और बढ़ जाता है. अगर पसलियों के ऊपर झटका लगा तो ऐसा लगता है कि जान निकल गई. इस रोग को मैडिकल भाषा में पसलियों की कोस्टो कौन्ड्रायटिस कहते हैं. अकसर वे लोग जो दूध का नियमित या नहीं के बराबर सेवन करते हैं, इस बीमारी के शिकार होते हैं.

आजकल देखा गया है कि खून में विटामिन डी की मात्रा कम होने से भी पसलियों की बीमारी व छातीदर्द होता है. अगर आप प्रोटीनयुक्त संतुलित भोजन व विटामिन से भरपूर सलाद (न्यूनतम 300 ग्राम प्रतिदिन) व फल (300 ग्राम रोजाना) और आधा लिटर बिना मलाई वाले दूध का सेवन प्रतिदिन करते हैं, तो पसलियों की इस बीमारी व छातीदर्द से कोसों दूर रहेंगे.

कुछ लोगों को ठंडे खाद्य पदार्थों, जैसे कढ़ी, रायता, आइसक्रीम, व दहीबड़े के सेवन करने से छाती में दर्द उभर आता है. इस का कारण छाती की मांसपेशियों की ठंडी चीजों के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता है. ऐसे लोगों को चाहिए कि लगातार कई दिनों तक अत्यधिक ठंडे भोजन के सेवन से बचें. ऐसे लोग गरम चीजें खाएं और एक या दो दिनों के लिए दर्दनिवारक दवा ले लें.

खाने की नली में सूजन

अपने देश में चाटपकौड़े, तेल में भुने हुए खाद्य पदार्थों जैसे समोसे, दालमोठ आदि जैसी अनेक तेल से युक्त खाने की चीजों की भरमार है. लोग इन सब खाद्य पदार्थों को खुल कर खाते हैं और साथ में अचार, मिर्च व मसालों का भरपूर सेवन करते हैं. इस तरह से तो आंतों में सूजन व अल्सर की शिकायत होनी लाजिमी है.

छाती के अंदर स्थित खाने की नली (ईसाफैगस) में सूजन आने पर यह दिल के रोग होने या हार्टअटैक होने की संभावना होने की याद दिलाता है. मरीज को कुछ खाने के बाद छाती के बीचोंबीच भारीपन, दबाव व दर्द महसूस होता है. शराब का भयंकर सेवन भी आंतों की सूजन के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है. इस तरह की चीजों को सामान्य भाषा में गैस की संज्ञा देते हैं. कभीकभी छाती के अंदर स्थित खाने की नली का कैंसर भी छातीदर्द का कारण होता है.

समझदारी की बात

इन सब बातों को समझ लेने के बाद हर छातीदर्द को हार्टअटैक समझने की गलती न करें. अगर संदेह न दूर हो तो सुझाई गई जांचें जरूर करवा लें, अन्यथा अनजाने में संभावित हार्टअटैक के डर की वजह से आप की कार्यक्षमता व आत्मविश्वास पर बुरा असर पड़ेगा. इसलिए संदेह होने पर हार्टअटैक से संबंधित जांचें करवा कर निश्चिंत हो जाइए. और फिर किसी थोरैसिक सर्जन से परामर्श कर छातीदर्द के अन्य कारणों का निदान ढूंढ़ने की कोशिश करें, तभी आप मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रहेंगे.

दूसरी शादी करने के बाद मुझे काफी अफसोस हो रहा है, बताएं अब मैं क्या करूं ?

 सवाल

मैं 36 वर्षीय विवाहिता हूं. हमदोनों पतिपत्नी की यह दूसरी शादी है. पहले पति से मेरी 1 बेटी मेरे साथ है. पति के 2 बच्चे हैं- 1 बेटी और 1 बेटा. दोनों बच्चे मेरी बेटी से बड़े हैं. पति ने विवाह पूर्व वादा किया  था कि मेरी बेटी को वे अपने बच्चों जैसा ही प्यार देंगे. वे अपने वादे पर अडिग भी हैं. मेरी बेटी को अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे हैं, अपने बच्चों सा दुलार भी देते हैं, पर उन के बच्चे न तो मुझे मां का मान (दिल से) देते हैं और न ही मेरी बेटी से प्यार करते हैं. मेरी बेटी सहमीसहमी सी रहती है.

जवाब

आप के पति की सोच सही है. अभी आप लोगों को साथ रहते कम वक्त ही हुआ है. इस के अलावा लगता है शादी करने से पहले आप के पति ने अपने बच्चों को मानसिक स्तर पर तैयार नहीं किया. यदि विवाहपूर्व वे उन्हें विश्वास में लेते और बताते कि बच्चों की सही परवरिश  के लिए मातापिता दोनों का सहयोग जरूरी होता है. वे कई अवसरों पर अकेले इस जिम्मेदारी को नहीं निभा पाएंगे. इसीलिए उन के लिए नई मां ला रहे हैं जो उन्हें प्यारदुलार देगी, घरपरिवार में सहयोग देगी तो ज्यादा अच्छा रहता पर संभवतया उन्होंने ऐसा नहीं किया. इसीलिए कठिनाई आ रही है.

अब भी स्थिति सामान्य हो सकती है बशर्ते आप धैर्य बनाए रखें. अपनी बच्ची के प्रति बच्चों की उपेक्षा को ज्यादा तूल न दें. देरसवेर वे सामान्य व्यवहार करने लगेंगे.

अपने दिमाग से यह विचार निकाल दें कि आप ने शादी कर के कोई गलती की है. बच्चे बड़े हो कर अपनीअपनी जिंदगी में मसरूफ हो जाएंगे तब आप को अकेलापन बांटने और दुखसुख में साथ देने के लिए किसी की अपेक्षा होगी. इसलिए आप ने जो कदम उठाया वह सही है.

प्रायश्चित्त : पति के धोखे से व्यथित पत्नी की व्यथा

आज सुधीर की तेरहवीं है. मेरा चित्त अशांत है. बारबार नजर सुधीर की तसवीर की तरफ चली जाती. पति कितना भी दुराचारी क्यों न हो पत्नी के लिए उस की अहमियत कम नहीं होती. तमाम उपेक्षा, तिरस्कार के बावजूद ताउम्र मुझे सुधीर का इंतजार रहा. हो न हो उन्हें अपनी गलतियों का एहसास हो और मेरे पास चले आएं. पर यह मेरे लिए एक दिवास्वप्न ही रहा. आज जबकि वह सचमुच में नहीं रहे तो मन मानने को तैयार ही नहीं. बेटाबहू इंतजाम में लगे हैं और मैं अतीत के जख्मों को कुरेदने में लग गई.

सुधीर एक स्कूल में अध्यापक थे. साथ ही वह एक अच्छे कथाकार भी थे. कल्पनाशील, बौद्धिक. वह अकसर मुझे बड़ेबड़े साहित्यकारों के सारगर्भित तत्त्वों से अवगत कराते तो लगता अपना ज्ञान शून्य है. मुझ में कोई साहित्यिक सरोकार न था फिर भी उन की बातें ध्यानपूर्वक सुनती. उसी का असर था कि मैं भी कभीकभी उन से तर्कवितर्क कर बैठती. वह बुरा न मानते बल्कि प्रोत्साहित ही करते.

उस दिन सुधीर कोई कथा लिख रहे थे. कथा में दूसरी स्त्री का जिक्र था. मैं ने कहा, ‘यह सरासर अन्याय है उस पुरुष का जो पत्नी के होते हुए दूसरी औरत से संबंध बनाए,’ सुधीर हंस पड़े तो मैं बोली, ‘व्यवहार में ऐसा होता नहीं.’

सुधीर बोले, ‘खूबसूरत स्त्री हमेशा पुरुष की कमजोरी रही. मुझे नहीं लगता अगर सहज में किसी को ऐसी औरत मिले तो अछूता रहे. पुरुष को फिसलते देर नहीं लगती.’

‘मैं ऐसी स्त्री का मुंह नोंच लूंगी,’ कृत्रिम क्रोधित होते हुए मैं बोली.

‘पुरुष का नहीं?’ सुधीर ने टोका तो मैं ने कोई जवाब नहीं दिया.

कई साल गुजर गए उस वार्त्तालाप को. पर आज सोचती हूं कि मैं ने बड़ी गलती की. मुझे सुधीर के सवाल का जवाब देना चाहिए था. औरत का मौन खुद के लिए आत्मघाती होता है. पुरुष इसे स्त्री की कमजोरी मान लेता है और कमजोर को सताना हमारे समाज का दस्तूर है. इसी दस्तूर ने ही तो मुझे 30 साल सुधीर से दूर रखा.

सुधीर पर मैं ने आंख मूंद कर भरोसा किया. 2 बच्चों के पिता सुधीर ने जब इंटर की छात्रा नम्रता को घर पर ट्यूशन देना शुरू किया तो मुझे कल्पना में भी भान नहीं था कि दोनों के बीच प्रेमांकुर पनप रहे हैं. मैं भी कितनी मूर्ख थी कि बगल के कमरे में अपने छोटेछोटे बच्चों के साथ लेटी रहती पर एक बार भी नहीं देखती कि अंदर क्या हो रहा है. कभी गलत विचार मन में पनपे ही नहीं. पता तब चला जब नम्रता गर्भवती हो गई और एक दिन सुधीर अपनी नौकरी छोड़ कर रांची चले गए.

मेरे सिर पर तब दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. 2 बच्चों को ले कर मेरा भविष्य अंधकारमय हो गया. कहां जाऊं, कैसे कटेगी जिंदगी? बच्चों की परवरिश कैसे होगी? लोग तरहतरह के सवाल करेंगे तो उन का जवाब क्या दूंगी? कहेंगे कि इस का पति लड़की ले कर भाग गया.

पुरुष पर जल्दी कोई दोष नहीं मढ़ता. उन्हें मुझ में ही खोट नजर आएंगे. कहेंगे, कैसी औरत है जो अपने पति को संभाल न सकी. अब मैं उन्हें कैसे समझाऊं कि मैं ने स्त्री धर्म का पालन किया. मैं ने उन वचनों को निभाया जो अग्नि को साक्षी मान कर लिए थे.

तीज का व्रत याद आने लगा. कितनी तड़प और बेचैनी होती है जब सारा दिन बिना अन्न, जल के अपने पति का साथ सात जन्मों तक पाने की लालसा में गुजार देती थी. गला सूख कर कांटा हो जाता. शाम होतेहोते लगता दम निकल जाएगा. सुधीर कहते, यह सब करने की क्या जरूरत है. मैं तो हमेशा तुम्हारे साथ हूं. पर वह क्या जाने इस तड़प में भी कितना सुख होता है. उस का यह सिला दिया सुधीर ने.

बनारस रहना मेरे लिए असह्य हो गया. लोगों की सशंकित नजरों ने जीना मुहाल कर दिया. असुरक्षा की भावना के चलते रात में नींद नहीं आती. दोनों बच्चे पापा को पूछते. इस बीच भइया आ गए. उन्हें मैं ने ही सूचित किया था. आते ही हमदोनों को खरीखोटी सुनाने लगे. मुझे जहां लापरवाह कहा वहीं सुधीर को लंपट. मैं लाख कहूं कि मैं ने उन पर भरोसा किया, अब कोई विश्वासघात पर उतारू हो जाए तो क्या किया जा सकता है. क्या मैं उठउठ कर उन के कमरे में झांकती कि वह क्या कर रहे हैं? क्या यह उचित होता? उन्होंने मेरे पीठ में छुरा भोंका. यह उन का चरित्र था पर मेरा नहीं जो उन पर निगरानी करूं.

‘तो भुगतो,’ भैया गुस्साए.

भैया ने भी मुझे नहीं समझा. उन्हें लगा मैं ने गैरजिम्मेदारी का परिचय दिया. पति को ऐसे छोड़ देना मूर्ख स्त्री का काम है. मैं रोने लगी. भइया का दिल पसीज गया. जब उन का गुस्सा शांत हुआ तो उन्होंने रांची चलने के लिए कहा.

‘देखता हूं कहां जाता है,’ भैया बोले.

हम रांची आए. यहां शहर में मेरे एक चचेरे भाई रहते थे. मैं वहीं रहने लगी. उन्हें मुझ से सहानुभूति थी. भरसक उन्होंने मेरी मदद की. अंतत: एक दिन सुधीर का पता चल गया. उन्होंने नम्रता से विवाह कर लिया था. सहसा मुझे विश्वास नहीं हुआ. सुधीर इतने नीचे तक गिर सकते हैं. सारी बौद्धिकता, कल्पनाशीलता, बड़ीबड़ी इल्म की बातें सब खोखली साबित हुईं. स्त्री का सौंदर्य मतिभ्रष्टा होता है यह मैं ने सुधीर से जाना.

उस रोज भैया भी मेरे साथ जाना चाहते थे. पर मैं ने मना कर दिया. बिला वजह बहसाबहसी, हाथापाई का रूप ले सकता था. घर पर नम्रता मिली. देख कर मेरा खून खौल गया. मैं बिना इजाजत घर में घुस गई. उस में आंख मिलाने की भी हिम्मत न थी. वह नजरें चुराने लगी. मैं बरस पड़ी, ‘मेरा घर उजाड़ते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई?’

उस की निगाहें झुकी हुई थीं.

‘चुप क्यों हो? तुम ने तो सारी हदें तोड़ दीं. रिश्तों का भी खयाल नहीं रहा.’

‘यह आप मुझ से क्यों पूछ रही हैं? उन्होंने मुझे बरगलाया. आज मैं न इधर की रही न उधर की,’ उस की आंखें भर आईं. एकाएक मेरा हृदय परिवर्तित हो गया.

मैं विचार करने लगी. इस में नम्रता का क्या दोष? जब 2 बच्चों का पिता अपनी मर्यादा भूल गया तो वह बेचारी तो अभी नादान है. गुरु मार्ग दर्शक होता है. अच्छे बुरे का ज्ञान कराता है. पर यहां गुरु ही शिष्या का शोषण करने पर तुला है. सुधीर से मुझे घिन आने लगी. खुद पर शर्म भी. कितना फर्क था दोनों की उम्र में. सुधीर को इस का भी खयाल नहीं आया. इस कदर कामोन्मत्त हो गया था कि लाज, शर्म, मानसम्मान सब को लात मार कर भाग गया. कायर, बुजदिल…मैं ने मन ही मन उसे लताड़ा.

‘तुम्हारी उम्र ही क्या है,’ कुछ सोच कर मैं बोली, ‘बेहतर होगा तुम अपने घर चली जाओ और नए सिरे से जिंदगी शुरू करो.’

‘अब संभव नहीं.’

‘क्यों?’ मुझे आश्चर्य हुआ.

‘मैं उन के बच्चे की मां बनने वाली हूं.’

‘तो क्या हुआ. गर्भ गिराया भी तो जा सकता है. सोचो, तुम्हें सुधीर से मिलेगा क्या? उम्र का इतना बड़ा फासला. उस पर रखैल की संज्ञा.’

‘मुझे सब मंजूर है क्योंकि मैं उन से प्यार करती हूं.’

यह सुन कर मैं तिलमिला कर रह गई पर संयत रही.

‘अभीअभी तुम ने कहा कि सुधीर ने तुम्हें बरगलाया है. फिर यह प्यारमोहब्बत की बात कहां से आ गई. जिसे तुम प्यार कहती हो वह महज शारीरिक आकर्षण है. एक दिन सुधीर का मन तुम से भी भर जाएगा तो किसी और को ले आएगा. अरे, जिसे 2 अबोध बच्चों का खयाल नहीं आया वह भला तुम्हारा क्या होगा,’ मैं ने नम्रता को भरसक समझाने का प्रयास किया. तभी सुधीर आ गया. मुझे देख कर सकपकाया. बोला, ‘तुम, यहां?’

‘हां मैं यहां. तुम जहन्नुम में भी होते तो खोज लेती. इतनी आसानी से नहीं छोड़ूंगी.’

‘मैं ने तुम्हें अपने से अलग ही कब किया था,’ सुधीर ने ढिठाई की.

‘बेशर्मी कोई तुम से सीखे,’ मैं बोली.

‘इन सब के लिए तुम जिम्मेदार हो.’

‘मैं…’ मैं चीखी, ‘मैं ने कहा था इसे लाने के लिए,’ नम्रता की तरफ इशारा करते हुए बोली.

‘मेरे प्रति तुम्हारी बेरुखी का नतीजा है.’

‘चौबीस घंटे क्या सारी औरतें अपने मर्दों की आरती उतारती रहती हैं? साफसाफ क्यों नहीं कहते कि तुम्हारा मन मुझ से भर गया.’

‘जो समझो पर मेरे लिए तुम अब भी वैसी ही हो.’

‘पत्नी.’

‘हां.’

‘तो यह कौन है?’

‘पत्नी.’

‘पत्नी नहीं, रखैल.’

‘जबान को लगाम दो,’ सुधीर तनिक ऊंचे स्वर में बोले. यह सब उन का नम्रता के लिए नाटक था.

‘मुझे नहीं मालूम था कि तुम इतने बड़े पाखंडी हो. तुम्हारी सोच, बौद्धिकता सिर्फ दिखावा है. असल में तुम नाली के कीड़े हो,’ मैं उठने लगी, ‘याद रखना, तुम ने मेरे विश्वास को तोड़ा है. एक पतिव्रता स्त्री की आस्था खंडित की है. मेरी बददुआ हमेशा तुम्हारे साथ रहेगी. तुम इस के साथ कभी सुखी नहीं रहोगे,’ भर्राए गले से कहते हुए मैं ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा. भरे कदमों से घर आई.

इस बीच मैं ने परिस्थितियों से मुकाबला करने का मन बना लिया था. सुधीर मेरे चित्त से उतर चुका था. रोनेगिड़गिड़ाने या फिर किसी पर आश्रित रहने से अच्छा है मैं खुद अपने पैरों पर खड़ी हूं. बेशक भैया ने मेरी मदद की. मगर मैं ने भी अपने बच्चों के भविष्य के लिए भरपूर मेहनत की. इस का मुझे नतीजा भी मिला. बेटा प्रशांत सरकारी नौकरी में आ गया और मेरी बेटी सुमेधा का ब्याह हो गया.

बेटी के ब्याह में शुरुआती दिक्कतें आईं. लोग मेरे पति के बारे में ऊलजलूल सवाल करते. पर मैं ने हिम्मत नहीं हारी. एक जगह बात बन गई. उन्हें हमारे परिवार से रिश्ता करने में कोई खोट नहीं नजर आई. अब मैं पूरी तरह बेटेबहू में रम गई. जिंदगी से जो भी शिकवाशिकायत थी सब दूर हो गई. उलटे मुझे लगा कि अगर ऐसा बुरा दिन न आता तो शायद मुझ में इतना आत्मबल न आता. जिंदगी से संघर्ष कर के ही जाना कि जिंदगी किसी के भरोसे नहीं चलती. सुधीर नहीं रहे तो क्या सारे रास्ते बंद हो गए. एक बंद होगा तो सौ खुलेंगे. इस तरह कब 60 की हो गई पता ही न चला. इस दौरान अकसर सुधीर का खयाल जेहन में आता रहा. कहां होंगे…कैसे होंगे?

एक रोज भैया ने खबर दी कि सुधीर आया है. वह मुझ से मिलना चाहता है. मुझे आश्चर्य हुआ. भला सुधीर को मुझ से क्या काम. मैं ने ज्यादा सोचविचार करना मुनासिब नहीं समझा. वर्षों बाद सुधीर का आगमन मुझे भावविभोर कर गया. अब मेरे दिल में सुधीर के लिए कोई रंज न था. मैं जल्दीजल्दी तैयार हुई. बाल संवार कर जैसे ही मांग भरने के लिए हाथ ऊपर किया कि प्रशांत ने रोक लिया.

‘मम्मी, पापा हमारे लिए मर चुके हैं.’

‘नहीं,’ मैं चिल्लाई, ‘वह आज भी मेरे लिए जिंदा हैं. वह जब तक जीवित रहेंगे मैं सिं?दूर लगाना नहीं छोड़ूंगी. तू कौन होता है मुझे यह सब समझाने वाला.’

‘मम्मी, उन्होंने क्या दिया है हमें, आप को. एक जिल्लत भरी जिंदगी. दरदर की ठोकरें खाई हैं हम ने तब कहीं जा कर यह मुकाम पाया है. उन्होंने तो कभी झांकना भी मुनासिब नहीं समझा. तुम्हारा न सही हमारा तो खयाल किया होता. कोई अपने बच्चों को ऐसे दुत्कारता है,’ प्रशांत भावुक हो उठा.

‘वह तेरे पिता हैं.’

‘सिर्फ नाम के.’

‘हमारे संस्कारों की जड़ें अभी इतनी कमजोर नहीं हैं बेटा कि मांबाप को मांबाप का दर्जा लेखाजोखा कर के दिया जाए. उन्होंने तुझे अपनी बांहों में खिलाया है. तुझे कहानी सुना कर वही सुलाते थे, इसे तू भूल गया होगा पर मैं नहीं. कितनी ही रात तेरी बीमारी के चलते वह सोए नहीं. आज तू कहता है कि वह सिर्फ नाम के पिता हैं,’ मैं कहती रही, ‘अगर तुझे उन्हें पिता नहीं मानना है तो मत मान पर मैं उन्हें अपना पति आज भी मानती हूं,’ प्रशांत निरुत्तर था.

मैं भरे मन से सुधीर से मिलने चल पड़ी.

सुधीर का हुलिया काफी बदल चुका था. वह काफी कमजोर लग रहे थे. मानो लंबी बीमारी से उठे हों. मुझे देखते ही उन की आंखें नम हो गईं.

‘मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम सब को बहुत दुख दिए.’

जी में आया कि उन के बगैर गुजारे एकएक पल का उन से हिसाब लूं पर खामोश रही. उम्र के इस पड़ाव पर हिसाबकिताब निरर्थक लगे.

सुधीर मेरे सामने हाथ जोड़े खड़े थे. इतनी सजा काफी थी. गुजरा वक्त लौट कर आता नहीं पर सुधीर अब भी मेरे पति थे. मैं अपने पति को और जलील नहीं देख सकती. बातोंबातों में भइया ने बताया कि सुधीर के दोनों गुर्दे खराब हो गए हैं. सुन कर मेरे कानों को विश्वास नहीं हुआ.

मैं विस्फारित नेत्रों से भैया को देखने लगी. वर्षों बाद सुधीर आए भी तो इस स्थिति में. कोई औरत विधवा होना नहीं चाहती. पर मेरा वैधव्य आसन्न था. मुझ से रहा न गया. उठ कर कमरे में चली आई. पीछे से भैया भी चले आए. शायद उन्हें आभास हो गया था. मेरे सिर पर हाथ रख कर बोले, ‘इन आंसुओं को रोको.’

‘मेरे वश में नहीं…’

‘नम्रता दवा के पैसे नहीं देती. वह और उस के बच्चे उसे मारतेपीटते हैं.’

‘बाप पर हाथ छोड़ते हैं?’

‘क्या करोगी. ऐसे रिश्तों की यही परिणति होती है.’

भइया के कथन पर मैं सुबकने लगी.

‘भइया, सुधीर से कहो, वह मेरे साथ ही रहें. मैं उन की पत्नी हूं…भले ही हमारा शरीर अलग हुआ हो पर आत्मा तो एक है. मैं उन की सेवा करूंगी. मेरे सामने दम निकलेगा तो मुझे तसल्ली होगी.’

भैया कुछ सोचविचार कर बोले, ‘प्रशांत तैयार होगा?’

‘वह कौन होता है हम पतिपत्नी के बीच में एतराज जताने वाला.’

‘ठीक है, मैं बात करता हूं…’

सुधीर ने साफ मना कर दिया, ‘मैं अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त करना चाहता हूं. मुझे जितना तिरस्कार मिलेगा मुझे उतना ही सुकून मिलेगा. मैं इसी का हकदार हूं,’ इतना बोल कर सुधीर चले गए. मैं बेबस कुछ भी न कर सकी.

आज भी वह मेरे न हो सके. शांत जल में कंकड़ मार कर सुधीर ने टीस, दर्द ही दिया. पर आज और कल में एक फर्क था. वर्षों इस आस से मांग भरती रही कि अगर मेरे सतीत्व में बल होगा तो सुधीर जरूर आएंगे. वह लौटे. देर से ही सही. उन्होंने मुझे अपनी अर्धांगिनी होने का एहसास कराया तो. पति पत्नी का संबल होता है. आज वह एहसास भी चला गया.

मजाक : एक भगोना केक

स्नेहा तिरेक में लेख के महानायक, मुख्य महापुरुष मित्र सोनुवाजी ने एक भगोना केक बनाने की ग्रीष्म प्रतिज्ञा की. पूरा विश्व यह प्रतिज्ञा सुन कर प्रलयानुमान लगाने लगा. उन की यह प्रतिज्ञा इतिहास में ‘सोनुवा की प्रतिज्ञा’ नाम से लिखी जाएगी. आखिर क्यों? योंतो पिछले जन्म के पापों के आधिक्य से जीवन में अनेक चोंगा मित्रों की रिसीविंग करनी पड़ी, किंतु दैत्यऋण (दैवयोग के विपरीत) से हमारी भेंट मित्रों के मित्र अर्थात मित्राधिराज के रूप में प्रत्यक्ष टैलीफोन महाराज से हुई, जिन की बुद्धि का ताररूपी यश चतुर्दिक प्रसारित हो रहा था. दशोंदिशा के दिक्पाल उस टैलीफोन महर्षि के नैटवर्क को न्यूनकोण अवस्था में झुक झुक कर प्रणाम कर रहे थे. हमारे जीवन के संचित पुण्यों का टौकटाइम वहीं धराशायी हो गया क्योंकि हम ने उन से मित्रता का लाइफटाइम रिचार्ज करवा लिया था.

कला क्षेत्र में आयु की दृष्टि से भीष्म भी घनिष्ठ बडी बन जाते हैं लेकिन हमारे महापुरुष मित्र, भीष्म नहीं ग्रीष्म, प्रतिज्ञा किया करते हैं. हकीकत में वे महान भारतवर्ष की आधुनिक शिक्षा पद्धति के सुमेरू संस्थान एवं गुरुकल (प्रतिष्ठा कारणों से नाम का उल्लेख नहीं किया गया है) द्वारा उत्पादित एवं उद्दंडता से दीक्षित थे पर दीक्षित नहीं, किंतु ज्ञान के अत्यधिक धनी हैं, इतने धनी कि उन के आधे ज्ञान को जन्म के साथ ही स्विस बैंक के लौकरों में बंद करवाया गया. अन्यथा वे दुनिया कब्जा लेते और डोनाल्ड ट्रंप व जो बाइडेन को लोकतांत्रिक कब्ज हो जाता. हम उन की चर्चा करेंगे तो यह लेख महाकाव्य हो जाएगा. सो, मैं लेख को उन की एक जीवनलीला पर ही केंद्रित रखूंगा. उन की मित्रता में इतना सामर्थ्य था कि जब वे निषादराज के समान भक्तिभाव प्रकट करते थे तो सामने वाला मित्र एक युग आगे का दरिद्र सुदामा बन जाता था. कालांतर में यह हुआ कि हमारे एक अन्य पारस्परिक मित्र की जयंती की कौल आई तो रात्रि के 12 बजे देव, नाग, यक्ष, किन्नर, गंधर्व और दैत्यों ने बिना मोदीजी के आदेश के थालियां बजाईं और दीप जलाया. कहीं दीप जले कहीं दिल.

यह विराट दृश्य देख कर हमारा दिल सुलग उठा. उसी दिवस, स्नेहातिरेक में, लेख के महानायक व मुख्य महापुरुष मित्र ने केक बनाने की ग्रीष्म प्रतिज्ञा की. पूरा विश्व यह प्रतिज्ञा सुन कर प्रलयानुमान लगाने लगा. उन की यह प्रतिज्ञा इतिहास में ‘सोनुवा की प्रतिज्ञा’ नाम से लिखी जाएगी. उन के संदर्भ में यह जनश्रुति भी प्रचारित है कि वे मिनिमम इनपुट से मैक्सिमम आउटपुट देने वाले ऋषि हैं. सो, वे अपनी बालकनी में ‘एक टब जमीन’ में ही ‘वांछित उत्प्रेरक वनस्पतियों’ की जैविक खेती भी करते थे. ‘एक टब जमीन’ की अपार सफलता के बाद देवाधिपति सोनुवा महाराज ने ‘एक भगोना केक’ के निर्माण की घोषणा की. इस महान कार्य के वे स्वयंभू, नलनील एवं विश्वकर्मा अर्थात ‘थ्री इन वन’ थे. वे तत्काल इस कार्य में मनोयोग से लगे, मानो इसी के लिए उन का जन्म हुआ हो. सर्वप्रथम उन्होंने अनावश्यक सामग्रियों के एकत्रीकरण में दूतों को भेज कर उन की अव्यवस्था की.

इस के बाद अपने ज्ञानचक्षुओं को खोल कर बैठ गए. वैसे तो वे स्वभाववश मनमोहन सिंह थे किंतु ग्रीष्म प्रतिज्ञाओं के बाद वे किम जोंग हो जाते थे. तब उन का विकट रूप देख कर मैं ने अनेक भूतों को मदिरा मांगते देखा क्योंकि वे पानी नहीं पीते. किसी अभागी भैंस के 2 लिटर दूध को एक भगोने में डाल कर उसे सासबहू सीरियल की कथा सुना कर पकाते रहे. तत्पश्चात उन्होंने मैनमेड ‘मिल्कमेड’ डाल कर उसे शेख चिल्ली की बुद्धि जैसा मोटा बना दिया. अब उसे अनवरत कई युगों तक फेंटते रहे. जब उन का कांग्रेस का चुनावचिह्न शक्तिहीन हुआ तब उन्होंने वह पेस्ट दूसरे बड़े भगोने के अंदर नीचे कंकड़पत्थर की भीष्म शैया बना कर रख दिया और उन भगोनों को भाग्य के भरोसे अग्निदेव को समर्पित कर के 2 घंटे की तीर्थयात्रा पर निकल गए. मैं उन की रक्षा में लक्षमण सा फील करता हुआ धनुषबाण ले कर बैठ गया. लगभग एक युग के अंतराल के बाद मैं ने उन से दूरभाष पर संपर्क स्थापित किया तो उन्होंने अग्नि को और प्रबल कर के कुछ क्षणों में आने को कह दिया. मैं उन के आशीष वचन सुन कर निश्ंिचत रहा. सोनुवा महाराज ने आते ही अपनी यज्ञ सामग्री का निरीक्षण किया तो अपने परिपक्व ज्ञानलोचनों से उसे अधपका पाया.

एक और देव पुरुष ने उसे ‘बीरबल का केक’ कहा. तब भी सोनुवाजी के आत्मविश्वास में रंच मात्र भी कमी न आई. वे चीन का विरोध करते हुए आधा किलो चीनी की समिधा ‘केकाकुंड’ में झोंक कर चल दिए और इधर सब स्वाहा होता रहा. 2 घंटे के एक और युग बीत जाने पर प्रलय के बाद जब सृष्टि जगी तो पाया गया कि उस यज्ञ की बेदी में समय के थपेड़ों के गहरे काले स्याह निशान पड़ गए, जिन्हें सोनुवा महाराज ने अपने विज्ञान की कार्बन डेटिंग से बताया कि अभागी काली भैंस के दूध के रंग के कारण से यह पदार्थ भी वही रंग ले कर कोयले में परिवर्तित हो गया है जो कि दूसरे देशों को निर्यात कर के हम लोग कई भगोने केक चीन से आयात करेंगे. हम उन की इस सफलता पर भूतपूर्व अदनान सामी की तरह फूल कर कुप्पा और भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरह चुप्पा दोनों हो गए थे.

पर वास्तविक समस्या अब थी. कोयले की खान बने भगोनेरूपी पात्र अब एक बूंद पानी रखने के भी पात्र नहीं बचे. हम ने उन्हें इतना रगड़ा कि हाथ रगड़ गए. शायद आदि मानव के चकमक पत्थर रगड़ने के बाद विश्व इतिहास में यह रगड़ने की ऐसी दूसरी घटना थी. हालांकि, इस में बौस द्वारा कर्मचारी को रगड़ना नहीं सम्मिलित किया गया है. उस दिवस, विम बार और उस के समकक्ष सभी उत्पादों के विज्ञापन में आने वाली सुंदर महिलाएं सूर्पणखा के बराबर लगने लगीं. यद्यपि हम ने वह केक 70 कोनों का मुंह बना कर खाया भी और जन्मदिन वाले मित्र से कहा भी कि तुम ने जन्म ले कर अच्छा नहीं किया, अगर जन्म न लेते तो यह केक अस्तित्व में न आता. इस घटना से सोनुवा महाराज को पाककला से विरक्ति हो गई.

उन्होंने तत्काल स्वयं को किचन के किचकिचीय जीवन से मुक्त रखने का निर्णय ले कर सृष्टि पर उपकार किया. उन का माफीनामा जल्द ही संग्रहालय में रखवाया जाएगा जो मानवजाति को भोजन पर किसी भी ऐसे प्रयोग से हतोत्साहित करने का प्रमाणपत्र सिद्ध होगा. क्या उन का क्षमापत्र पढ़ कर काला हुआ पात्र उन्हें क्षमा करेगा? हम उन्हें भगोना बरबाद होने से लगे सदमे से बचाने में प्रयत्नशील हैं. इस के लिए 7 मित्रों की संसद में यह निर्णय हुआ है कि अब वह भगोना भी एक टब जमीन के साथ रखा जाएगा और उस में भी उसी वांछित उत्प्रेरक वनस्पति की खेती होगी जिसे वायु में उड़ा कर वातावरण को संतुष्टि मिलती है और हमारे मन को वह शक्ति जिस से हम इस केक को न याद कर पाएं और गाएं ‘एक भगोना केक, जल्दीजल्दी फेंक.’

इश्क का भूत : शेफाली के पापा क्या समझ सके जीत की असलियत ?

जब इश्क का भूत सिर चढ़ कर बोलता है तब दुनिया में कुछ नजर ही नहीं आता. न मानप्रतिष्ठा की परवा न कैरियर की चिंता. शेफाली भी ऐसी ही सिरफिरी लड़की थी, उसे जब जीत नजर आया, तो वह उस पर जीजान से फिदा हो गई. बेशक जीत को भी उस का साथ अच्छा लगा, लेकिन जीत को पहले अपनी बहन सुमन के विवाह की चिंता थी.

शेफाली रईस बाप की औलाद थी, जिस ने न गरीबी देखी थी और न ही भूख. वह अपने मन की करना जानती थी. वह गर्ल्स होस्टल में रहती व मौजमस्ती करती. उस के पिता की पेपरमिल थी. वे एक जानेमाने उद्योगपति थे, सो शेफाली के पास एक से बढ़ कर एक ड्रैसेस का अंबार लगा रहता. हमेशा सजीसंवरी, ज्वैलरी से लकदक, हाथ में पर्स लिए बाहर घूमने के अवसर तलाशती शेफाली की पढ़ने में कोई रुचि नहीं थी. कालेज में ऐडमिशन तो उस ने समय बिताने के लिए ले रखा था. उसे तलाश थी ऐसे युवक की जो दिखने में हैंडसम हो और उस के आगेपीछे घूमे.

जीत से उस की नजरें कालेज के फंक्शन में मिलीं और उसे उस में सारी बातें नजर आईं जिन की उसे तलाश थी. वह हौलेहौले बोलता और किसी फिल्मी नायक सा उस के ईदगिर्द डोलता. अंधा क्या चाहे, दो आंखें. शेफाली खर्च करने के लिए तैयार रहती, दोनों खूब घूमते. महानगरों में वैसे भी कौन किसे जानता है या कौन किस की परवा करता है. पौश इलाके के होस्टल में रह रही शेफाली के पास जीत बाइक ले कर आता. वह अदा से इतरातीलहराती उस के संग चली जाती.

जब लौटती तो सहेलियों को अपने रोमांस के किस्से बता कर इंप्रैस करती. चूंकि उस की सहेलियां स्टडी में व्यस्त थीं, उन्हें तो अपने रिजल्ट की अधिक फिक्र रहती. वे उस की कहानी सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं लेती थीं.

इधर जीत भी पढ़ाई में पिछड़ता चला गया. उस का सारा वक्त शेफाली के बारे में ही सोचसोच कर निकल जाता. शेफाली के दिए गिफ्ट उसे भारी तोहफे नजर आते. वह उसे कभी टीशर्ट देती, कभी ब्रेसलेट तो कभी गौगल्स. वह खुद को हीरो से कम नहीं समझता. वह यही समझता कि शेफाली उस से विवाह करेगी और वह एक उद्योगपति का दामाद बन कर मालामाल हो जाएगा.

इधर शेफाली जीत संग आउटिंग पर थी, उधर उस के पापा अशोक ने प्राइवेट डिटैक्टिव से सारी जानकारी इकट्ठी करवा ली थी कि वह कहां जाती है, क्या करती है.

शेफाली के पापा अशोकजी ने जमाना देखा था. वे पल भर में सारा माजरा समझ गए थे. उन्हें समझ आ गया कि उन की लाडली महज दिलबहलाव कर रही है. पढ़ाई में उस का मन नहीं लग रहा.

जीत जिस तरह से बेझिझक शेफाली से तोहफे ले रहा था, इस से अशोकजी को यह भी समझ में आ गया कि इस लड़के में कोई स्वाभिमान नहीं है वरना वह इस तरह शेफाली की दी वस्तुएं न स्वीकारता. जीत का फंडा समझने में अशोकजी को ज्यादा समय नहीं लगा, क्योंकि वे तो खुद व्यवसायी थे और जीत के प्रोफैशनल प्रेम को पहचान गए थे.

शेफाली के लिए उन्होंने विदेश से पढ़ाई कर के लौटा एमबीए लड़का विजय तलाश लिया था. शेफाली ने जब विजय को देखा तो देखती ही रह गई. वह स्टाइलिश और अमेरिकन अंगरेजी बोल रहा था. उसे जीत को भुला देने में एक मिनट भी नहीं लगा.

जीत देखता रह गया और शेफाली विजय के साथ शादी कर हनीमून मनाने स्विट्जरलैंड चली गई.

इश्क का भूत तो धन की चमक के आगे एक पल भी नहीं ठहर पाया. वे आज के युवा ही क्या जो इश्क के लिए जिंदगी बरबाद करें. अलबत्ता जीत को संभलने में एक साल लगा, पर जबकि वह दिल से नहीं मतलब की खातिर शेफाली से जुड़ा था. अब उस के सामने अपनी युवा बहन की जिम्मेदारी थी. वह नहीं चाहता था कि कोई उस के चालचलन का हवाला दे कर उस की बहन के रिश्ते को मना करे. जीत की मां को यही तसल्ली थी कि उस का बेटा एक बेवफा के प्यार में ज्यादा नहीं भटका.

कुत्तों के बहाने जी-20 की भड़ास

कुत्ता घोषित तौर पर निकृष्ट प्राणी है, क्योंकि वह काटने का अपना खानदानी स्वभाव या फितरत नहीं छोड़ पाता, ऐसे कुत्तों को कटखना कुत्ता कहा जाता है. कुत्ते 2 तरीकों से काटते हैं. पहला, घात लगा कर, दूसरे खुलेआम, जो अपेक्षाकृत कम नुकसानदेह होते हैं.

पहली किस्म के कुत्ते ज्यादा खतरनाक होते हैं, जो न जाने से कहां से रामसे ब्रदर्स की फिल्मों की चुड़ैल जैसे प्रकट होते हैं और ख्वाबोंखयालों में डूबे राहगीर को संभलने का मौका भी नहीं देते.

वैसे तो कुत्ते शरीर में कहीं भी अपने पैनेनुकीले दांत गड़ा सकते हैं, लेकिन इन के काटने का पसंदीदा हिस्सा पिंडली होता है, क्योंकि वहां तक ये आसानी से पहुंच जाते हैं और ज्यादा मांस होने के चलते उन्हें भी सुखद या क्रूर कुछ भी कह लें, अनुभूति होती है.

11 सितंबर, 2023 को देश की राजधानी दिल्ली का माहौल ठीक वैसा ही सूनासूना सा था, जैसा बरात विदा होने के बाद लड़की वालों के घर का होता है. सब थकेमांदे सो रहे थे. इस दिन जी-20 का तमाशा खत्म हो चुका था. कोई 4,500 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी सियासी और सरकारी हलकों में विश्वगुरु बनने का सपना सच होने का भ्रमनुमा जोश था, अफसोस इस बात का रहा होगा कि इस से ज्यादा फूंक कर अपनी और रईसी क्यों नहीं दिखा पाए.

कुत्तों का हालांकि इस अंतर्राष्ट्रीय जलसे से कोई सीधा ताल्लुक नहीं था, जिन्हें इस आयोजन की भव्यता के लिए गरीब दरिद्रों की तरह सड़कों से खदेड़ दिया गया था. हफ्तेभर इन कुत्तों और दरिद्रों ने कैसे गुजर की होगी, यह तो सरकार जाने, लेकिन इस दिन सब से बड़ी अदालत में कोई अर्जेंट हियरिंग नहीं हो रही थी. सो, जज साहबान और वकील साहबान हलकेफुलके मूड में थे.

इस दिन सुप्रीम कोर्ट में कुत्ते के काटने की देशव्यापी समस्या पर ख्वाहमख्वाह में सैमिनार हो गया, जिस में जजों, वकीलों, बाबुओं, पेशकारों और चकाचक वरदीधारी वाले दरबानों तक ने भी बतौर श्रोता और दर्शक ही सही उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया. साबित हो गया कि हर किसी के पास कुत्ता काटने को ले कर कोई न कोई मौलिक, अप्रकाशित और अप्रसारित संस्मरण है, जिसे मीडिया ने प्रसारित भी किया और प्रकाशित भी किया. यह और बात है कि सर्वोत्तम संस्मरण पर कोई नकद या उधार पुरस्कार नहीं दिया गया.

अदालत की कार्रवाई शुरू की जाए का उद्घोष होने से पहले ही सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की नजर सामने खड़े एक वकील कुणाल कुलकर्णी पर पड़ी, जिन के हाथों पर पट्टियां बंधी हुई थीं. कैसे लगी यह सहज जिज्ञासा उन्होंने जाहिर है यूं ही व्यक्त की, तो कुणाल का दुख फूट पड़ा. वे बोले कि बीती रात घर के पास 5 कुत्तों ने घेर कर काट लिया. सीजेआई ने उन्हें रजिस्ट्रार के जरीए इलाज की पेशकश की, तो वे बोले कि इलाज करा लिया है.

यहीं से कुत्ता संगोष्टी का अनौपचारिक उद्घाटन हुआ. अब तक बिना दलीलों के यह साबित हो चुका था कि कुछ कुत्तों ने उक्त वकील साहब को घेरने की साजिशाना प्लानिंग पहले से ही कर रखी थी और कुत्ते अकसर रात में घूमने वालों या मौर्निंग वाक करने वालों को ज्यादा काटते हैं.

हालांकि साबित तो यह भी हो चुका था कि उक्त वकील साहब ने यह जानते हुए भी कि उन के घर के आसपास भी आवारा कुत्ते घूमते हैं और कभी भी किसी को भी काट सकते हैं अपनी तरफ से कोई एहतियात नहीं बरती थी, जो घोर लापरवाही थी.

कुत्तों का कोई वकील होता तो यही कहता कि हमें काटने के लिए जानबूझ कर उकसाया गया था, नहीं तो समझदार लोग छड़ी ले कर चलते हैं. वे हमें हड़काते हैं, तो हम शराफत से उन का रास्ता छोड़ देते हैं.

खैर, बात आईगई हो ही रही थी कि चीफ जस्टिस के साथ बैठे जस्टिस पीएस नरसिम्हा भी बोल उठे कि आवारा कुत्तों को ले कर इस तरह की समस्या एक गंभीर समस्या है. अदालतों का एक अलिखित कानून है कि जज साहबान जिस मसले पर जरा सी भी दिलचस्पी दिखाते हैं, तो मौजूद वकील सबकुछ भूलभाल कर उस मसले पर बोलना अपना फर्ज समझने लगते हैं. इस के पीछे उन का मकसद अदालत की खुशामद ही होता है और उस के सिवाय कुछ नहीं होता. इस तरह सत्य वचन महाराज की तर्ज पर समस्या को गंभीर साबित करने में सभी अपनेअपने तरीके से योगदान देते पूरा जोर भी लगा देते हैं.

बात अगर मौसम पर अदालत करती तो वकील लोग कहते कि जी सर, आज दिल्ली में उमस है, लेकिन थोड़ी बूंदाबांदी भी हुई. अब अदालत अगर अड़ जाती कि नहीं, उमस बहुत ज्यादा है, तो वकील कहते, ‘जी मी लौर्ड, इतनी सी बूंदाबांदी से कुछ नहीं होता, मारे उमस के बुरा हाल है. मुझे तो चक्कर से आने लगे हैं.’

अदालत संतुष्ट हो जाती और फिर गंभीर हो कर कहती, ‘हां तो कार्रवाई आगे बढ़ाई जाए.’

अदालत में मौजूद सौलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत का मूड देख बात को और विस्तार से यह कहते दिया कि आएदिन कुत्तों के काटने के गंभीर मामले सामने आ रहे हैं. यहां तक कि छोटे और अबोध बच्चों की मौत की खबरें काफी विचलित करती हैं. पिछले दिनों गाजियाबाद में एक 14 साल के बच्चे की रेबीज के संक्रमण से तड़प कर अपने पिता की गोद में ही दम तोड़ देने के मामले का हवाला उन्होंने दिया तो हर कोई भावुक हो उठा. बात थी भी भावुक होने वाली, क्योंकि यह मामला वाकई हृदय विदारक और संवेदनशील था.

माहौल को ज्यादा बोझिल होने से रोकने के लिए सीजेआई ने भी अपने ला क्लर्क पर कुत्तों द्वारा हमले का किस्सा सुनाया, तो मौजूद एक और वकील विजय हंसरिया ने उपयुक्त अवसर जानते सीजेआई से स्वतः संज्ञान लेने का अनुरोध कर डाला.

कुत्तों के काटने के मामले का टैक्निकल फाल्ट उजागर करते इन वकील साहब ने बताया कि ऐसे मामलों पर अलगअलग हाईकोर्ट के अलगअलग फैसलों से भ्रम की स्थिति बनी हुई है.

एक वकील के हाथ में पट्टी बंधी देख हमदर्दी क्या दिखाई, ये वकील तो घेरने ही लगे यह सोचते अदालत ने बात खत्म करने के अंदाज में कहा, ‘देखेंगे.’

हर कोई जानता है कि सब से बड़ी अदालत चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएगी, क्योंकि बात यहां भी नफरत और मुहब्बत की है.

कुत्तों को चाहने वालों की देश क्या दुनिया में कहीं कमी नहीं है. लोग बच्चों की तरह कुत्तों को पालते हैं, अपने बिस्तर में उन्हें सुलाते हैं. उन के मुंह में मुंह डाल कर चूमाचाटी करते हैं, डाइनिंग टेबल पर साथ बैठा कर खाना खिलाते हैं, उन के स्मारक बनवाते हैं, उन के नाम पर करोड़ों की दौलत की वसीयत कर जाते हैं. और तो और छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले सहित उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सहित कई जगह मंदिर भी बने हुए हैं, जिन में कुत्तों की पूजा होती है.

दुर्ग के धमधा में कुत्ते के मंदिर में कुत्ते की मूर्ति की पूरे विधिविधान से पूजा होती है. इस मंदिर के बारे में अंधविश्वासियों ने अफवाह फैला रखी है कि कुत्ता काट ले तो यहां आ कर पूजा करने से पीड़ित ठीक हो जाता है.

साबित होता है कि किसी एंटीरेबीज इंजैक्शन या दवाओं की जरूरत को नकारते इस देश में कुत्ते का मंदिर बना कर भी कमाई की जा सकती है. ऐसे में कोई क्या कर लेगा.

डौग बाइट्स के दिनोंदिन बढ़ते मामलों पर ऐसी मानसिकता और माहौल देख निराशा ही हाथ लगती है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक, कोई 1 करोड़, 70 लाख हर साल डौग बाईट का शिकार होते हैं, जिन में से तकरीबन 20,000 दम तोड़ देते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के सैमिनार के बाद मीडिया ने कार्रवाई के कच्चे चावलों को उबाला तो शाम तक सोशल मीडिया ने उस में दाल मिला कर खिचड़ी ही बना डाली. रात होतेहोते सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई के सम्मान में घरघर कुत्तों की चर्चा हुई. उस में भी समाधान कम संस्मरण ज्यादा थे.

किसी के अलीगढ़ वाले फूफाजी को कुत्ते ने काटा था, तो किसी की पूना वाली ननद पर सोसाइटी के कुत्ते का दिल आ गया था. हर जगह पड़ोस के मामले का भी उदाहरण जरूर दिया गया कि एक बार हमारे पड़ोस वाले टहलने जा रहे थे कि उन्हें कुत्ते ने काट खाया.

कुत्ता काटने के दर्जनों मामले सुप्रीम कोर्ट में और सैकड़ों हाईकोर्ट में चल चुके हैं, लेकिन हर बार मोहब्बतियों और नफरतियों के बीच तलवारें ऐसे खिचीं हैं कि अदालतें भी चकरा जाती हैं कि क्या फैसला या व्यवस्था दें, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. अदालतों में कुत्तों की नसबंदी, पुनर्वास और विस्थापन पर बड़ी ठोस दलीलें कुत्ता प्रेमियों ने दी हैं.

ताजा मामला जी-20 के आयोजन के दौरान का ही है. हुआ यों कि देशी कुत्तों को विदेशी मेहमानों की नजर से बचाने के लिए एमसीडी ने कुत्तों को पकड़ कर पशु नसबंदी केंद्रों में नजरबंद किया, तो पशु प्रेमी बिफर कर अदालत तक जा पहुंचे.

पीएफए की ट्रस्टी अंबिका शुक्ला ने कुत्तों को पकड़ने की कार्रवाई को क्रूर और अनावश्यक बताया, तो एनसीआर के एक कुत्ता प्रेमी संजय महापात्रा यह कहते बिफर पड़े थे कि कुत्तों को जबरन घसीट कर बेरहमी से ले जाना समाज के लिए ठीक नहीं है. कुत्तों को भी इज्जत से रहने का हक है. अगर जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद कुत्तों को इज्जत से वापस उन की जगह नहीं छोड़ा गया, तो लंबी लड़ाई लड़ी जाएगी.

यहां दिलचस्प तर्क तथ्य सहित दिल्ली के डौग लवर्स ने यह कहते दिया था कि पशु क्रूरता निरोधक अधिनियम, 1960 और साल 2002 में हुए संशोधन के मुताबिक, कुत्तों को देश का मूल निवासी माना गया है. वे जहां चाहे रह सकते हैं. उन को हटाने और भगाने का अधिकार किसी के पास नहीं है. अगर कोई ऐसा करता पाया जाता है, तो उसे 5 साल तक की सजा हो सकती है.

लेकिन, असल बात कुछ और थी. घरघर चर्चा जी-20 की भी थी. लोग यह नहीं समझ पा रहे थे कि इस अश्वमेध यज्ञ से हमें क्या मिला. देशविदेश से गोरे, काले और सांवले राजामहाराजा आए और आहुतियां डाल कर चले गए. करोड़ों के पकवान भी उन्होंने डकारे और शाही तरीके से रहे.

हमारे पास इतना पैसा आया कहां से? नरेंद्र मोदी सरकार ने 10 साल से भी कम अरसे में 100 लाख करोड़ रुपए का जो कर्ज लिया, वह कहां गया. इस से भली तो मनमोहन सरकार थी, जिस ने 10 साल में महज 38 लाख करोड़ रुपए का कर्ज लिया था. मोदी सरकार का कर्ज मार्च, 2024 तक 155 से और बढ़ कर 172 लाख करोड़ रुपए हो जाएगा, जो आखिरकार चुकाना तो हम ही को है, फिर इतनी फिजूलखर्ची क्यों?

चूंकि आस्था, निष्ठा और भक्ति जो डर के ही पर्याय हैं के चलते वे इस का विरोध नहीं कर सकते थे, इसलिए कुत्तों की चर्चा के बहाने अपनी भड़ास निकाली, जिस का मौका इत्तिफाक से सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दे दिया था. रही बात कुत्तों की, तो वे और उन का काटना शाश्वत है, था और रहेगा. कोई अदालत इस में कुछ नहीं कर सकती.

TMKOC : जेठलाल की खुली पोल, फैंस ने बताया कैसा है दिलीप जोशी का असली बर्ताव!

Dilip Joshi : छोटे पर्दे के सबसे पसंदीदा शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ के हर एक किरदार लोगों के दिलों में राज करते हैं. जेठालाल, दया, मेहता से लेकर टपू तक को लोगों का खूब प्यार मिलता है, लेकिन जैसा शो में इन लोगों का बर्ताव होता है. वैसा ही क्या इनका असल में भी बिहेविय होता है. इस बात को लेकर हमेशा फैंस के दिलों में सवाल रहते हैं.

‘जेठालाल’ का किरदार निभाने वाले ”दिलीप जोशी” को इस शो (taarak mehta ka ooltah chashmah) के माध्यम से घर-घर में पहचान मिली है. उनका किरदार बच्चों से लेकर बड़ो तक को अच्छा लगता है. लेकिन अब उनके ही एक फैन ने उनके बिहेविय पर सवाल खड़े कर दिए है.

असल जिंदगी में बहुत नकचढ़े हैं ‘जेठालाल’!

दरअसल, सोशल मीडिया पर ‘जेठालाल’ यानी ”दिलीप जोशी” (Dilip Joshi) के एक फैन ने दावा किया है कि असल जिंदगी में उनका बिहेविय बहुत ज्यादा असभ्य और रूड हैं. जेठालाल का ये फैन उनसे हाल ही में मिला था, जिसके बाद उसने बताया कि दिलीप जोशी का बर्ताव उनके साथ कैसा था.

फैन ने किया बड़ा दावा

आपको बता दें कि ‘जेठालाल’ के इस फैन ने इस बात का खुलासा रेडिट के एक थ्रेड पर किया है. जब उस फैस से सवाल किया गया कि कौन सा टीवी एक्टर सबसे ज्यादा रूड है और किस-किसने ऐसा एक्सपीरियंस किया है? तो इस सवाल का जवाब कई लोगों ने दिया. लेकिन सभी का ध्यान Sans174 नामक एक यूजर के जवाब पर गया.

दरअसल, Sans174 नामक एक यूजर ने ‘दिलीप जोशी’ (Dilip Joshi) के साथ अपने एक्सपीरियंस को शेयर किया. उन्होंने ‘जेठालाल’ को रूड बताया. हालांकि वहीं दूसरी तरफ उसने उनकी एक्टिंग की भी तारीफ की.

सोनम कपूर के भाई Harsh Varrdhan ने जूतों पर दिया ज्ञान, भड़के यूजर्स

Harsh Varrdhan Kapoor Troll : हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के जाने माने अभिनेता ‘अनिल कपूर’ के बेटे ”हर्षवर्धन कपूर” को भी बॉलीवुड का हैंडसम हंक माना जाता हैं. उन्होंने अपनी एक्टिंग से कुछ ही समय में लाखों लोगों का दिल जीत लिया है. उन्होंने ‘मिर्जिया’, ‘थार’ और ‘रे’ जैसी कई उम्दा फिल्मों में काम किया है. इसके अलावा वह सोशल मीडिया पर भी काफा एक्टिव रहते हैं और अपनी जिंदगी से जुड़ी हर छोटी बड़ी अपडेट अपने फैंस के साथ साझा करते हैं. हालांकि इस बार उन्हें लोगों का प्यार मिलने की जगह उनकी कड़वी बातों को सुनना पड़ रहा है.

दरअसल, एक्टर हर्षवर्धन (Harsh Varrdhan Kapoor troll) कपूर ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक नोट लिखकर नकली स्नीकर्स पहनने वाले लोगों को फटकार लगाई है, जिसके बाद यूजर्स उन पर ही भड़क उठे.

हर्षवर्धन- नकली स्नीकर्स पहनने से बचें

बीते दिनों, हर्षवर्धन कपूर (Harsh Varrdhan Kapoor troll) ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर लिखा, ‘पता नहीं कि इसे किसे सुनने की जरूरत है, पर कृपया नकली स्नीकर्स पहनना बंद करें. अगर आपका कम बजट है तो भी आपके पास बहुत सारे बेहतरीन ऑप्शन हैं. हालांकि अगर कोई आपको गिफ्ट देता है, तो वो अलग बात है. फिर तो उसे पहनने में खुशी होगी लेकिन अगर आप अपना खुद का सामान खरीद रहे हैं तो कृपया करके ऐसा न करें. केवल और केवल ट्रस्टेड ब्रांड्स से ही खरीदें.’

एक्टर ने लड़कों को भी दी सलाह

इसके अलावा हर्षवर्धन (Harsh Varrdhan Kapoor troll) ने एक और नोट लिखा, जिसमें उन्होंने लड़कों से अपने लुक पर ध्यान देने की बात कही. एक्टर ने कहा, ‘किसी को भी महंगी चीजें पहनने की जरूरत नहीं है. हालांकि अच्छे कपड़ों के साथ-साथ अच्छे जूतों की जोड़ी को स्टाइल करना भी जरूरी है, लेकिन लुक बहुत मायने रखते है. इसलिए हर किसी को इस पर पूरा ध्यान देना चाहिए.’ इसी के साथ एक्टर ने ये भी कहा कि, ‘फैशन किसी की भी पर्सनैलिटी के बारे में बहुत कुछ बताता है. इसलिए लोगों को स्टाइल के बारे में सीखना चाहिए.’

लोगों ने लगाई हर्षवर्धन की क्लास

आपको बता दें कि जैसे ही हर्षवर्धन (Harsh Varrdhan Kapoor troll) की ये पोस्ट वायरल हुई. वैसे ही यूजर्स ने एक्टर की क्लास लगा दी. जहां एक यूजर ने लिखा, ‘जीजा की दुकान है न, तभी ये सब बोल रहा है.’ वहीं एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘इसलिए इतनी बकवास कर रहा है क्योंकि उसके जीजू का जूते का बिजनेस है.’ हालांकि एक्टर ने अभी तक अपने ट्रोलर्स को कोई जवाब नहीं दिया है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें