वर्तमान में जैसेजैसे राजनीति का स्वरूप बदल रहा है वैसेवैसे राजनीति में युवाओं की मौजूदगी भी बदल रही है. एक वक्त था जब राजनीति केवल उम्र का एक अच्छाखासा समय बिता चुके लोगों की हुआ करती थी. देश और राज्यों की कमान संभालने वाले 50-55 की उम्र पार कर करने वाले ही होते थे लेकिन वक्त के साथसाथ राजनीति में युवा चेहरों की संख्या भी बढ़ रही है.
हालांकि स्थिति संतोषजनक नहीं है फिर भी उम्मीद बढ़ रही है. वर्तमान स्थिति पर नजर डालें तो भारत में 35 वर्ष से कम उम्र के केवल 6% राजनेता ही युवा हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 20 वर्षों से, लोकसभा सांसदों की औसत आयु हमेशा 50 से ऊपर रही है. 17वीं लोकसभा के लिए भी यही बात सच है. 550 एमपी में से केवल 64 एमपी 40 से कम उम्र के हैं. ये आंकड़े मन में एक सवाल पैदा करते हैं. सवाल यह कि देश के युवा राजनीति से पीछे भाग रहे हैं या उन्हें पीछे धकेला जा रहा है ये एक चिंता का विषय है. जिसपर बहस की जानी चाहिए.
क्यों है राजनीति में युवाओं की जरूरत
भारत की राजनीति एक बूढ़ी राजनीति है जबकि देश में 65 प्रतिशत से भी अधिक जनसंख्या युवा है जो 35 से कम की है. लेकिन हालात ये है कि देश में केवल 22 फीसदी लोकसभा के सदस्य 45 वर्ष से कम आयु के हैं.
हमारे पास उर्जावान उत्साही युवाओं की कमी नहीं है. 65 प्रतिशत की आबादी देश का स्वरूप बदल सकती है. लेकिन मार्गदर्शन की कमी के चलते युवा जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा है. बेरोजगारी की मार झेल रहा है. जिस का हम सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं.
अगर इस युवा जनसंख्या के कुछ हिस्से को राजनीति में आने के लिए प्रोत्साहित किया जाए तो तसवीर बदल सकती है. कारण है कि एक युवा युवाओं के लिए बेहतर अवसरों की तलाश पर ध्यान केंद्रित करेगा. बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ जैसे मुद्दों पर राजनीति करेगा न कि मंदिरों और मूर्तियों पर न ही व आर्थिक स्थिति को अनदेखा कर नएनए भवन और ईमारतों का निर्माण कराएगा. गलीमोहल्लें में कानून व्यवस्था पर उस का ध्यान होगा न कि रोड़ शो और बड़ेबड़े मैदानों में महंगीमहंगी रैलियों पर. जिनपर ट्रैक्सपेयर्स का करोड़ों रूपया पानी की तरह बहा दिया जाता है.
उदाहरण के तौर पर हिमाचल प्रदेश के थरजून की जबना चौहान को ही ले लीजिए. वह 2016 में 22 साल की उम्र में भारत की सब से कम उम्र की सरपंच चुनी गईं और उन्होंने गांव में महत्वपूर्ण बदलाव किए जैसे शराब और तंबाकू के उपयोग पर रोक लगाना, बुनियादी ढांचे की मरम्मत करना साथसाथ और भी कई कामों ने उन्हें न केवल ‘सर्वश्रेष्ठ सरपंच’ का खिताब दिलाया बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया.
ऐसे उदाहरण देश को युवाओं को राजनीति में लाने के लिए प्रेरणास्रोत का काम करते हैं लेकिन देश में अधिकतर युवा अवसरों की तलाश में भटक रहा है. वह बेरोजगारी से परेशान हैं. सही दिशा न मिल पाने के कारण असामाजिक गतिविधियों का शिकार हो रहा है. हिंसक दंगों, प्रदर्शनों में राजनीतिक पार्टियों द्वारा इस का भरपूर फायदा तो उठाया जा रहा है लेकिन उसे सक्रिय राजनीति में अपनी जगह बनाने नहीं दी जा रही.
संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव रहे बान की मून का कहना था “यदि हम एक सुरक्षित, अधिक न्यायपूर्ण दुनिया का निर्माण करना चाहते हैं, तो हमें युवाओं की भागीदारी को स्वीकार करना चाहिए और उस की सराहना करनी चाहिए. हमें नीतियों, कार्यक्रमों और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में युवाओं को शामिल करने के प्रयासों को मजबूत करना चाहिए ताकि युवाओं और अन्य वर्गों को लाभ हो.”
देखा जाए तो एक युवा अपनी और देश की आवश्यकताओं को समझता है और पढ़ालिखा युवा उन आवश्कताओं की पूर्ति के उपाय सुझाने का सामर्थ भी रखता है. इस में कोई शक नहीं है कि नई सोच और बुद्धिमत्ता की सहायता से किसी भी देश की दशा परिवर्तित की जा सकती है. उसे एक नई दिशा दी जा सकती है जो एक सुनहरे भविष्य का निर्माण कर सकती है.
जेपी आंदोलन जिस का अच्छा उदाहरण माना जा सकता है. बेरोजगारी और सत्ता की अनदेखी से दुखी युवा जब जय प्रकाश नारायण के पास पहुंचे तब उन्होंने उन के साथ मिल कर 1974 में आंदोलन शुरू किया जिसे जेपी आंदोलन के नाम से जाना जाता है. इस आंदोलन ने उस वक्त की इंदिरा गांधी की सरकार को हिला कर रख दिया था.
हालांकि बाद में इस की दिशा बदल गई थी. इस आंदोलन ने लालू, नीतीश, सुशील मोदी, रविशंकर प्रसाद, शरद यादव, अरुण जेटली, विजय गोयल जैसे छात्र नेताओं की एक पूरी पीढ़ी तैयार हो गई थी. जो आज तक सक्रिय राजनीति का हिस्सा हैं जो सीधे तौर पर इस से जुड़े तो नहीं थे, प्रभावित रहे, ऐसा कहा जा सकता है.
युवा भी हैं उदासीन
70 से 90 के दशक तक युवा राजनीति में उत्साह दिखाते रहे थे. कौलेजों में होने वाली राजनीति चर्चाएं छात्रसंघ चुनावों में विद्यार्थियों की भागीदारी इस बात को सही साबित करती है. लेकिन अब धीरेधीरे छात्रसंघ चुनावों के कम या बंद किए जाने पर काम किया जा रहा है.
तर्क दिया जा रहा है कि ये चुनाव छात्रों की शिक्षा में बाधा बन रहे हैं. हाल ही में राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव को कैंसल कर दिया गया. राज्य सरकार का तर्क था कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लागू होने की स्थिति जानने सहित कई मुद्दों पर चर्चा के लिए 12 अगस्त को एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई गई थी. जिस में सभी विश्विद्यालयों के कुलपतियों ने हिस्सा लिया और छात्रसंघ चुनाव न कराएं जाने पर आम सहमती बनी.
चुनावों में बड़ी मात्रा में हो रहा धनबल और बाहुबल का उपयोग इस की वजह माना गया. छात्र गुटों में एकदूसरे पर हमले भी आम बात हो गई है. हजारों ख्वाहिशें ऐसी, युवा, हासिल और रांझना जैसी विश्वविद्यालय राजनीति पर आधारित फिल्में इसे बाखूबी फिल्मी पर्दे पर दिखाती है.
वर्तमान में युवा राजनीति की तरफ बढ़ना नहीं चाहता. वो राजनीति को एक कैरियर के रूप में नहीं देखता. भारत में धड़ल्ले से मैनेजमेंट के कोर्स कराएं जाते हैं और यंगस्टर्स भी इन कोर्सों में बढ़चढ़ कर एडमिशन ले रहे हैं. युवा जहां छोटीबड़ी कंपनियों के प्रबंधन का तो इच्छुक है पर देश के प्रबंधन में आगे नहीं आना चाहता क्योंकि पावर, लालच और हिंसा के नाम पर फेमस हो चुकी राजनीति अब आकर्षण से ज्यादा भय उत्पन्न करती है.
राजनीति, सरकार, नायक, सत्याग्रह जैसी भारतीय फिल्मों ने इसे एक गंदी नाली, राजनीति दलदल है जैसी संज्ञा दे दी है. जिस में जाने के बाद आप कभी सफल सुकून भरा जीवन नहीं जी सकते. ये राजनीति की एक नकारात्मक छवि प्रस्तुत करती है. यही कारण है कि देश का पढ़ालिखा युवा राजनीति में आना नहीं चाहता. या आने से घबराता है.
दुनिया में है युवा राजनीति के भागीदार
इस के विपरीत दुनिया के सभी देशों में युवा राजनीति के बड़े हिस्सेदार बन रहे हैं. और देश के सत्तत विकास के भागीदार भी. ये प्रचलन विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों में तेजी से बढ़ रहा है.
न्यूजीलैंड की मुख्यमंत्री रहीं 42 साल की जैसिंडा अर्डर्न. चिली की 36 वर्षीय गेब्रियल बोरिक और 37 वर्षीय फिनलैंड की सना मारिन, दुनिया के सब से युवा नेताओं में से हैं. अब 44 साल के हो चुके लियो वराडकर ने 38 साल की उम्र में आयरलैंड के प्रधानमंत्री का पद संभाला था.
नायब बुकेले, जो अब 41 वर्ष के हैं, 38 वर्ष की आयु में अल साल्वाडोर के राष्ट्रपति बने. तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति सर्दार बर्दीमुहामेदो 41 साल के हैं. जौर्जिया के प्रधानमंत्री इराकली गैरीबाश्विली 40 साल के हैं. सना मारिन, जो अब 37 वर्ष की हैं, 34 वर्ष की उम्र में फिनलैंड की सब से कम उम्र की प्रधानमंत्री बन गईं. ऐसे न जाने कितने युवा दुनिया के देशों की बागडोर सुचारू रूप से संभाल रहे हैं.
44 साल के वोलोडिमिर जैलेंस्की यूक्रेन के राष्ट्रपति, एक राजनेता, पटकथा लेखक, अभिनेता, हास्य अभिनेता और निर्देशक रहे. 2019 के यूक्रेनी राष्ट्रपति चुनाव के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति चुने गए हैं. रूसयूक्रेन युद्ध में जैलेंस्की एक वार हीरों की तरह उभरे, जिन्होंने रूस के सामने घुटने टेकने से मना कर दिया और दुनिया में अपनी हिम्मत के लिए विख्यात हो गए.
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि हमारे पास युवा संसाधन के रूप में अपार संपदा है और यदि समाज के इस तत्व को सशक्त बनाया जाए तो हम जल्द ही महाशक्ति बनने का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं.
कलाम की ये बात एक युवा भारत की कल्पना पर आधारित है. जो आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक हर क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ रखता है. लेकिन शायद वर्तमान राजनीति के बड़ेबड़े दिग्गज कलाम की इस बात से सहमत नहीं हैं.
अनुभव के आधार पर पार्टियां कर देती हैं दरकिनार
बड़ीबड़ी पर्टियों में दिग्गज नेताओं के बीच युवा नेता बोने दिखाई पड़ते हैं. उन की बात सुनने का उसपर ध्यान देने का खयाल भी इन दिग्गज नेताओं को नहीं आता. उन का इस्तेमाल केवल राजनीतिक दलों की सड़क की लड़ाई लड़ने के लिए किया जाता है. उन की भूमिका केवल पार्टी प्रचारकों और प्रवक्ताओं के तौर पर सीमित कर दी गई है.
विश्व की सब से बड़ी युवा आबादी वाले भारत में चुनाव में सभी दलों की नजरें केवल युवा वोटबैंक पर होती है. उन को केवल एक वोट के बराबर आंका जाता है लेकिन उन्हें हिस्सेदारी देने की बात हो तो कोई दल उनपर भरोसा नहीं दिखाता. जब तक कि वो किसी बड़े नेता के सुपुत्र नहीं हैं उन की गिनती पार्टी प्रचारकों के अलावा किसी में नहीं होती.
जिन्हें मौके भी दिए भी जाते हैं तो वो केवल मजबूरीवश. वे विश्वविद्यालयों में चल रहे नैशनल स्टूडैंट्स यूनियन औफ इंडिया (एनएसयूआई), अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी), जैसे छात्र संगठनों को देश का भविष्य तो मानते हैं और उन्हें स्पोंसर भी करते हैं लेकिन विश्वविद्यालयों से निकलते ही छात्र राजनीति से कही गुम हो जाते हैं. राजनीतिक पार्टियों की मदद से कितने युवा संसद तक पहुंचते हैं ये आप खुद देख सकते हैं.
अनुभवहीन फैसले लेने में कमजोर समझ पार्टियों में उन्हें कुछ खास जगह देना पद को जाया करने जैसा महसूस करते हैं. तो ये तबका राजनीतिक, सामाजिक गतिविधियों के लिए फेसबुक, ट्विटर एव अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म तक सीमित हो गया है.
फिर भी है कुछ उम्मीदें
इन सब के बावजूद निराशा के बीच एक किरण हमेशा मौजूद है. कुछ प्रतिशत आबादी देश को विकास और गतिशीलता की ओर ले जा रही है और ये गतिशीलता युवाओं के रूप में राजनीति में भी दिखाई दे रही है. बदलते वक्त के साथ अब देश की बड़ी आबादी का मानना है कि भारत को अब चौतरफा विकास के लिए युवा नेताओं के सहयोग की आवश्यकता है.
हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश युवा और अनुभवी नेताओं के संयोग से बेहतर तरीके से चलाया जा सकता है. युवा भारत की युवा समस्याओं पर ध्यान देता है और अनुभवी उस के उचित समाधान पर. इस तरह दोनों के सहयोग से देश के विकास की गति को दुगुना होना निश्चित है.
पिछले कुछ वर्षों में युवा नेता उभर कर सामने आए हैं. युवाओं के राजनीति में भागीदारी को बढ़ाने और उन्हें मजबूत बनाने के उद्देश्य से ‘नैशनल यंग लीडर प्रोग्राम दिसंबर 2014’ में इंट्रड्यूस किया गया जिस का मुख्य उद्देश युवाओं में नेतृत्व के गुणों को विकसित करना था.
दिलचस्प है कि जब भी युवा नेता की बात की जाती है तब 53 साल के हो चुके राहुल गांधी की बात सब से पहले आती है. जो ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलेट जैसी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं. लेकिन हाल ही के कुछ वर्षों में राजनीति में एक नई पीढ़ी भी जन्म ले चुकी है जो भावी राजनीति के लिए तैयार हो रही है, जिन में कुछ नामों की चर्चा हम कर सकते हैं.
जैसे गोड्डेती माधवी, 26 साल की उम्र में, वे आंध्र प्रदेश की सब से कम उम्र की सांसद बनीं. 2012 में आम आदमी पार्टी से अपनी शुरूआत करने वाले राघव चड्डा पंजाब के राज्यसभा संसद के सदस्य हैं और एक युवा नेता भी. आजकल राघव फिल्म अभिनेत्री परिनीति चोपड़ा के साथ शादी को ले कर चर्चा में हैं.
बालासाहेब ठाकरे के पोते और उद्धव ठाकरे के बेटे हैं आदित्य ठाकरे. वर्तमान में महाराष्ट्र सरकार में पर्यटन और पर्यावरण मंत्री के रूप में कार्यरत हैं. 25 साल की चंद्राणी मुर्मू बीजू जनता दल की सदस्या और ओड़िसा के क्योंझर से लोकसभा सांसद हैं.
बोलने में कुशल और विद्रोही प्रवर्ति के रहे कन्हैया कुमार को 2022 में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का प्रभारी (एनएसयूआई) नियुक्त किया है. जामयांग सेरिंग नामग्याल, जामयांग सेरिंग नामग्याल 33 साल की उम्र में लद्दाख से सब से कम उम्र के सांसद हैं. 30 साल के इंद्र हैंग सुब्बा, सिक्किम के नए सांसद हैं. ऐसे कुछ नाम और भी हैं.
ऐसे ही केरल की महापौर यानी मेयर आर्य राजेंद्र जो हालफिलहाल में अपने 1 माह छोटे बच्चे के साथ औफिस का काम संभाले जाने के कारण खबरों में रहीं देश की सबसे युवा मेयर हैं जबकि उन के पति देव वर्तमान केरल विधानसभा में सब से कम उम्र के विधायक हैं.
भारत के युवा भविष्य की कुछ उम्मीदें तो जगाते हैं लेकिन हजरत निजामुद्दीन औलिया की एक कहावत है ‘दिल्ली अभी दूर है’ जो यहां सार्थक होती है. युवाओं का राजनीति में प्रवेश आरंभ हो गया है, जरूरत है तो उन्हें नए मौके दिए जाने की. भविष्य की समस्याऐं युवाओं से बेहतर कोई नहीं समझ सकता. उन के राजनीति में प्रवेश की रफ्तार को बढ़ाया जाना चाहिए ताकि देश के विकास की गति पर उस का असर दिखाई दे.
चुनाव से अलग भी है कैरियर
राजनीति केवल चुनाव लड़ना नहीं है, राजनीति में अब चुनाव से इतर भी कई तरह के अवसर हैं जैसे कैम्पेन मैनेजर, राजनीतिक सलाहकार, कंटेंट राइटर, शोधकर्ता आदि. जिस के बारे में अधिकतर युवा नहीं जानते, इसलिए कैरियर के मौके नहीं तलाशते.
ये जरूरी नहीं कि चुनाव ही लड़ा जाए. नए युवा राजनीति में अपनी अप्रत्यक्ष भागीदारी के बल पर आगे बढ़ सकते हैं और राजनीतिक भविष्य की शुरूआत कर सकते हैं.