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न्यायपालिका का राजनीतिक दबाव से मुक्त होना जरूरी क्यों ?

हाल ही में रिटायर हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल ने बीबीसी को दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा कि जब बहुमत वाली सरकार होती है तो कोर्ट पर हमेशा पुशबैक (दबाव) थोड़ा ज्यादा होता है. 1950 के बाद से ऐसा कई बार हुआ है. 1975 से 1977 के दौरान भी न्यायपालिका पर ऐसे सवाल उठाए गए.

उन्होंने कहा- ‘जब कोई पार्टी ज्यादा बहुमत से आए तो उसे लगता है कि उसे पब्लिक मैंडेट (जनता का समर्थन) है. तो, उस पार्टी वाले सोचते हैं कि न्यायपालिका हमारे काम में दखल क्यों दे रही है? इस से न्यायपालिका की तरफ थोड़ा पुशबैक ज़्यादा हो जाता है. यह खींचतान हमेशा रही है और रहेगी.

उल्लेखनीय है कि सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ के बाद जस्टिस किशन कौल सुप्रीम कोर्ट के सब से सीनियर जजों में से एक रहे. वे 25 दिसंबर, 2023 को रिटायर हुए हैं. जस्टिस किशन कौल ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में 6 साल 10 महीने से अधिक समय तक सेवा दी. इस दौरान उन्होंने कई अहम फैसले भी दिए और कई अहम फैसले देने वाली संवैधानिक पीठ का भी हिस्सा रहे. जस्टिस कौल ने इंटरव्यू के दौरान अपने कार्यकाल में हुए कुछ अहम फैसलों, जैसे- जजों की नियुक्ति, समलैंगिक विवाह और अनुच्छेद 370 पर आए फैसलों का बचाव भी किया और कोर्ट पर सरकार के दबाव को स्वीकारा भी.

बड़े मामलों में फैसला देते समय न्यायपालिका दबाव में रहती है, यह बात चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की भी उस बात से स्पष्ट है जिस में उन्होंने कहा कि राममंदिर निर्माण के पक्ष में निर्णय सुनाने वाले 5 न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से तय किया था कि इस में फैसला लिखने वाले किसी न्यायाधीश के नाम का उल्लेख नहीं किया जाएगा.
9 नवंबर, 2019 को, एक सदी से भी अधिक समय से चले आ रहे इस विवादास्पद मुद्दे का निबीटारा करते हुए तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली 5 न्यायाधीशों की पीठ ने मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया था और अयोध्या में मसजिद के लिए 5 एकड़ वैकल्पिक भूमि देने का भी निर्णय सुनाया था.

इस संबंध में फैसला सुनाने वाली पीठ का हिस्सा रहे न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने किसी न्यायाधीश के नाम का उल्लेख न करने के बारे में कहा कि जब न्यायाधीश एकसाथ बैठे, जैसा कि वे किसी भी घोषणा या फैसले से पहले करते हैं, तो सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि यह ‘अदालत का फैसला’ होगा. और, इसलिए, फैसला लिखने वाले किसी भी न्यायाधीश के नाम का उल्लेख नहीं किया गया.

आखिर यह डर क्यों? और क्या ऐसा डर किसी न्याय करने वाली संस्था को होना चाहिए?

1990 के बाद से 2 दशकों के दौरान भारत के सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति और कद में काफी वृद्धि हुई और उसे ‘दुनिया की सब से शक्तिशाली अदालत’ की उपाधि मिली. इस अवधि के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ‘कलीजियम’ की आविष्कृत प्रणाली के माध्यम से न्यायिक नियुक्तियों में खुद को प्रधानता प्रदान दी और कई मुद्दों में हस्तक्षेप करने के लिए अपनी न्यायिक समीक्षा शक्तियों का काफी विस्तार किया, जो पारंपरिक रूप से कार्यपालिका के लिए आरक्षित थे.

न्यायालय द्वारा ‘निरंतर परमादेश’ के हथियार को तेज किया गया, जिस का उपयोग कर के उस ने सामाजिक कल्याण, पर्यावरण संरक्षण, चुनाव सुधार आदि मुद्दों पर आदेश पारित किए और दिशानिर्देश तैयार किए.

लेकिन 2014 के चुनाव ने परिदृश्य बदल दिया. मतदाताओं ने पूर्ण बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी को केंद्र की सत्ता में पहुंचाया. एक सुधारवादी की भूमिका निभाने के बाद पहली बार न्यायपालिका का सामना एक ऐसी सरकार से हुआ जो संख्या के मामले में अपने पैरों पर मजबूत थी और सत्ता में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी.

इंदिरा गांधी युग के कड़वे अनुभवों, जहां कार्यपालिका की मरजी से न्यायाधीशों की नियुक्ति होती थी, उन का स्थानांतरण हो जाता था या उन्हें हटा दिया जाता था, ने न्यायपालिका को चौंकन्ना किया. ऐसे अनुभवों से दोबारा न गुजरना पड़े, इस के लिए न्यायपालिका को अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए एक समाधान के बारे में सोचना पड़ा और इस का जवाब उसे कलीजियम प्रणाली के रूप में मिला. मगर कलीजियम प्रणाली के खिलाफ भाजपा सरकार के कानून मंत्री रहे किरण रिजिजू ने क्याक्या कलाबाजियां कीं, यह किसी से छिपा नहीं है. केंद्र और कलीजियम के बीच चीजें बहुत सहज नहीं हैं. इस प्रणाली को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को खासी मशक्कत करनी पड़ी और अभी भी करनी पड़ रही है.

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए न्यायपालिका का स्वतंत्र रह कर कार्य करना अत्यंत ही आवश्यक है, लेकिन सरकार यह चाहती है कि न्यायपालिका उस के मनमुताबिक फैसले सुनाए. ये बातें समयसमय पर जजों की जबानी बाहर आती रहती हैं. न्यायपालिका व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करती है, विवादों को कानून के अनुसार हल करती है और यह सुनिश्चित करती है कि लोकतंत्र की जगह किसी एक व्यक्ति या समूह की तानाशाही न चलने लगे. और इस के लिए बहुत जरूरी है कि न्यायपालिका किसी भी राजनीतिक दबाव से मुक्त हो.

कार्यपालिका और न्यायपालिका के मध्य किसी भी प्रकार का संबंध नहीं होना चाहिए. न्यायपालिका सेवाप्रदाता है जिस का कार्य उस के सम्मुख प्रस्तुत किए गए वाद का निबटान है और कुछ नहीं. न्याय की देवी के आंखों पर इसीलिए पट्टी बांध दी गई है ताकि वह कुछ भी न देखे और सुबूतों के आलोक में ही निर्णय दे. उसे तो खुद संज्ञान लेने का भी अधिकार नहीं है. लेकिन सरकार के दबाव में कभीकभी यह पट्टी खिसक जाती है, यह आत्मग्लानि कई जजों को है.

हिट एंड रन कानून हड़ताल खत्म हुई है, समस्या नहीं

सभ्य समाज में ड्राइवरों की हैसियत वही है जो वर्णव्यवस्था के तहत अछूत शूद्रों की हुआ करती है. इसे समझने का एक ताजा उदाहरण काफी है. हिट एंड रन कानून के विरोध में हुई हड़ताल के दौरान प्रशासन जगहजगह ड्राइवरों को समझाने की कोशिश कर रहा था कि हड़ताल वापस ले लो और ड्राइवर थे कि अपनी मांगों पर अड़े थे.

मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले में कलैक्टर किशोर कन्याल साल के दूसरे दिन वाहनचालकों को सरकारी भाषा में समझाइश दे रहे थे कि बातोंबातों में गरमी पैदा हो गई. किसी बात पर कलैक्टर साहब भड़क कर एक ड्राइवर से बोल ही उठे कि समझ क्या रखा है, क्या करोगे तुम, आखिर तुम्हारी औकात क्या है.

बात सिर्फ इतनी सी थी कि एक ड्राइवर, जो शायद नए साल की बधाइयों की खुमारी में था, ने  कलैक्टर साहब से यह गुजारिश कर दी थी कि वे उन से अच्छे से बोलें, तो कलैक्टर साहब `अच्छे` से ही बोल उठे. यानी, जबां पर दिल की बात आने से खुद को रोक नहीं पाए.

ड्राइवर का दर्द भी इन शब्दों में फूट ही पड़ा कि यही तो लड़ाई है कि हमारी कोई औकात नहीं. मीटिंगरूम में पिनड्रौप साइलैंस छा गया. कलैक्टर के अंगरक्षक ड्राइवर की तरफ झपटे और सभी एकदूसरे का मुंह ताकने लगे क्योंकि ब्रह्मा का मुंह टांग पर बिफर गया था. बात आईगई तब हुई जब पैरों ने मुंह से माफी मांग ली. जबकि, माफी मुंह को पैरों से मांगनी चाहिए थी.

बहरहाल, एक बार फिर साबित हो गया कि ड्राइवरी कोई सम्मानजनक पेशा नहीं है. मुमकिन है इसलिए भी कि कोई 85 फीसदी ड्राइवर दलितपिछड़े तबके के हुआ करते हैं. हां, जब से ओला-उबर टाइप की टैक्सियां चलनी शुरू हुई हैं तब से कुछ ऊंची जाति वाले भी इस पेशे में आ गए हैं, ठीक वैसे ही जैसे कुछ सवर्ण अब चपरासी और सफाईकर्मी वगैरह भी बनने लगे हैं.

नजरिया तो पौराणिक ही है

तुम्हारी औकात क्या है, 4 लफ्जों की यह चाबुक एक कलैक्टर ने ही नहीं मारी बल्कि यह ड्राइवरों के प्रति सामाजिक नजरिए की अभिव्यक्ति भी है जो हिट एंड रन कानून में ठीक वैसे ही चस्पां थी जैसे कृषि कानूनों के वक्त किसानों के प्रति थी. सरकार और उस के नुमाइंदे किसानों को पानी पीपी कर कोस रहे थे कि ये लोग नक्सली, खालिस्तानी, पाकिस्तानी एजेंट और देशद्रोही वगैरहवगैरह हैं.

बात बहुत सीधी और साफ है कि किसानों ने बहुत बड़े पैमाने पर संगठित हो कर सरकार की चूल से चूल हिला दी थी. बेइंतिहा दमन के बाद भी किसान नहीं झुके तो मजबूरी में सरकार ही झुक गई क्योंकि वह टूटना नहीं चाहती थी.

ड्राइवरों की हड़ताल की बात थोड़ी जुदा थी. वे तादाद में किसानों जितने नहीं हैं. वे भी हालांकि रोज कुआं खोद कर ही प्यास बुझाते हैं लेकिन उन के पास रब, खरीफ और जायद जैसे मौसम नहीं होते कि कुछ महीने जमापूंजी के सहारे गुजरबसर कर लें.

दरअसल, वे अपने मालिकों के रहमोकरम पर जी रहे होते हैं क्योंकि वे दिहाड़ी या फिर वेतनभोगी होते हैं. इस के बाद भी उन का स्वाभिमान जागा या जागरूकता उन में आई तो सरकार की भौंहें तिरछी होना कुदरती बात थी.

महज 36 घंटे ही उन की हड़ताल चली. वह भी लड़खड़ाते हुए लेकिन इन चंद घंटों में ही साबित हो गया कि ड्राइवर अपनी जगह सही हों या गलत, सरकार उन की अनदेखी करने की या वैसी गलती करने का जोखिम नहीं ले सकती जो किसानों की हड़ताल के वक्त उस ने ली थी. लिहाजा, सरकार ने ड्राइवरों की औकात समझी, फिर बातचीत हुई और अस्थाई तौर पर हड़ताल खत्म हो गई लेकिन अभी समस्या हल नहीं हुई है, टली भर है.

इन चंद घंटों में ही आम लोगों की जिंदगी पर कम रेक्टर वाले भूकंप का सा असर हुआ. खानेपीने के आइटमों की सप्लाई पर संकट आया, जरूरी सामान, थोड़े ही सही, महंगे हुए, स्कूल बंद हो गए, डीजलपैट्रोल की किल्लत होने लगी, सड़कों पर जाम लगने लगे, छिटपुट हिंसा होने लगी और इन से भी बड़ी बात, तरहतरह की अफवाहें और आशंकाएं सिर उठाने लगीं तो सरकार को लगा कि बात सुन लेने और कर लेने में ही भलाई है क्योंकि 22 जनवरी के अयोध्या मेगा इवैंट में महज कुछ दिन ही बचे हैं, ऐसे में कोई छोटाबड़ा लोचा अफोर्ड नहीं किया जा सकता. इस शुभकार्य में कोई विध्न तो दूर की बात है, उस की परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिए.

हिट एंड रन के बदले रंग

मौजूदा सरकार ने सिर्फ शहरों, इमारतों और रेलवे स्टेशनों के ही नाम नहीं बदले हैं बल्कि कानूनों के भी नाम कुछ मसौदे के साथ बदले हैं. इन में से आईपीसी का नाम अब बीएनएस यानी भारतीय न्याय संहिता 2023 कर दिया है. हिट एंड रन कोई नई समस्या या जुर्म नहीं है जिस में आमतौर पर भारी वाहन, मसलन बस और ट्रक ड्राइवर किसी को भी कुचल कर भाग जाते हैं.

पीड़ित को इलाज की सहूलियत भी नहीं मिलती. बीएनएस में सरकार ने सख्ती बरतते बदलाव ये किए हैं कि यदि गलत ड्राइविंग या फिर लापरवाही के चलते किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो फिर वाहनचालक को अधिकतम 10 साल की सजा और 7 लाख रुपए तक के जुर्माने से दंडित किया जाएगा. सैक्शन 104 ए और बी में इस के जिक्र में साफ लिखा है कि यदि कोई हादसा होता है और गाड़ी से टक्कर के बाद ड्राइवर खुद मौके से या वाहन सहित भाग निकलता है तो उसे 10 साल की सजा होगी.

आसान शब्दों में कहें तो हादसे के बाद ड्राइवर घटना की जानकारी पुलिस अधिकारी या फिर मजिस्ट्रेट को नहीं देता है तो उसे 10 साल तक की सजा हो सकती है और जुर्माना भी देना होगा. अभी तक यह सजा आईपीसी की धाराओं के तहत दी जाती थी. इस की धारा 279 लापरवाही से वाहन चलाने की है, इस में 2 साल की सजा का प्रावधान है.

धारा 304 ए ड्राइवर की पहचान के बाद लागू होती है और मामला धारा 338 (जान जोखिम में डालना) के तहत दर्ज होता है. 304 ए गैरइरादतन हत्या वाली धारा है जिस में सजा ए मौत का भी प्रावधान है लेकिन हिट एंड रन के मामलों में जुर्म आमतौर पर साबित नहीं हो पाता.

हिट एंड रन के मामलों में सब से बड़ी दिक्कत यह है कि अपराधी के खिलाफ किसी भी प्रत्यक्ष सुबूत का अभाव होता है. ऐसे में पुलिस हवा में हाथपैर मारती रह जाती है और अधिकतर मामलों में दोषी पकड़ा ही नहीं जाता और जिन में पकड़ में आ जाता है उन में 2 साल की सजा भुगत कर बाहर आ जाता है.

चिंता की बात हिट एंड रन के बढ़ते मामले हैं. साल 2022 में हिट एंड रन की 67,387 वारदातें हुईं जिन में 30,486 लोगों की मौतें हुईं. इन में से कितने दोषी पकड़े गए और कितनों को सजा हुई, यह आंकड़ा अभी किसी एजेंसी ने जारी नहीं किया है. 2021 में हिट एंड रन की 57,415 वारदातें हुईं थीं जिन में 25,938 लोगों की जानें गई थीं. 2020 में ऐसे 52,448 मामले दर्ज हुए थे जिन में 23,159 मौतें हुई थीं.

ड्राइवरों की दलील

नए कानून और उस के प्रावधानों पर ड्राइवरों का डर यह है कि यदि वे हादसे में घायल व्यक्ति की मदद करते हैं तो उन्हें भीड़ के गुस्से का शिकार होना पड़ेगा जिस में उन की भी जान जा सकती है. अलावा इस के, सजा और जुर्माना राशि दोनों ज्यादा हैं. भारत में किसी ड्राइवर के पास 7 या 10 लाख रुपए जमा नहीं हो सकते क्योंकि वे 8 से 25 हजार रुपए की पगार पर नौकरी करते हैं, इसी में से उन्हें घर चलाना और पालना होता है.

अब यहां एक तर्क यह बनता है कि मरने वाले का भी तो घर था, उसे कौन चलाएगा और पालेगा. इस सवाल का जबाब खोजती दुलाल गुहा निर्देशित फिल्म ‘दुश्मन’ साल 1971 में बनी थी जिस में राजेश खन्ना और मीना कुमारी प्रमुख भूमिकाओं में थे. ट्रक ड्राइवर बने राजेश खन्ना के ट्रक से टकरा कर मीना कुमारी के पति की मौत हो जाती है तो यही सवाल जज बने रहमान के सामने आ खड़ा होता है.

एक नया प्रयोग करते अदालत राजेश खन्ना को बतौर सजा मीना कुमारी के खेतों में खेती कर उस के परिवार का भरणपोषण करने की सुनाती है. शुरू में मृतक के घर वाले हीरो को दुश्मन कहते और समझते उसे दुत्कारते हैं लेकिन फिर धीरेधीरे वह गांव वालों का दिल जीत लेता है और गांव की ही एक लड़की से शादी कर वहीं बस जाता है और मृतक के घर का हिस्सा बन जाता है. नायिका की भूमिका मुमताज ने निभाई थी. यह हिट फिल्म प्रयोगवादी थी जिसे 70 के दशक के दर्शकों ने हाथोंहाथ लिया था.

ऐसा होना हकीकत में भी नामुमकिन नहीं है लेकिन सरकार का इरादा किसी प्रयोग का न हो कर सीधे सजा देने का है जिस से ड्राइवरों के दिल दहले हुए हैं. नए कानून में खोट कहांकहां है, यह गिनाते आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के अध्यक्ष अमृतलाल मदान कहते हैं कि संशोधनों के पहले जिम्मेदार लोगों से सुझाव नहीं लिए गए. इस के अलावा देश में ऐक्सिडैंट इन्वैस्टिगेशन प्रोटोकौल का अभाव है. पुलिस वैज्ञानिक जांच किए बिना ही दोष बड़े वाहन पर मढ़ देती है.

उलट इस के, गृहमंत्री अमित शाह की संसद में दी गई यह दलील सुनने में दमदार लेकिन एकतरफा थी कि उन लोगों के लिए सख्त सजा का प्रावधान है जो सड़क दुर्घटना के बाद मौके से भाग जाते हैं और पीड़ितों को मरने के लिए छोड़ देते हैं. गृहमंत्री का तब यह कहा कानून में कहीं नहीं दिख रहा कि उन लोगों के लिए कुछ उदारता दिखाई जाएगी जो खुद से पुलिस को सूचित करेंगे और घायलों को अस्पताल ले जाएंगे.

पर इन का क्या होगा

चूंकि उदारता नए प्रावधानों में कहीं नहीं है और है भी तो नाम मात्र की. जमानत का प्रावधान भी इस में नहीं है. इसलिए भी ड्राइवर अड़ गए. उन का डर अपनी जगह वाजिब और जायज है कि भीड़ उन्हें छोड़ेगी नहीं और पुलिस वालों का बरताव भी पुलिसिया ही होगा तो हम क्यों हवन करते हाथ जलाएं. रही बात हिट एंड रन की, तो कोई भी जानबूझ कर एक्सिडैंट नहीं करता. यानी, कोई गलती महसूसते उसे सुधारने की गरज से पीड़ित को अस्पताल ले जाने की बात सोचे भी तो भीड़ और पुलिस का डर उसे ऐसा करने से रोकने वाला साबित होता है.

समस्याएं कई हैं. मसलन, सड़कों पर बेजा कब्जे जो कच्चीपक्की दुकानों और गुमठियों की शक्ल में हर शहर के बाहर कई किलोमीटर तक दिखते हैं, ये भी हादसों की बड़ी वजह बनते हैं लेकिन इन का जिक्र कहीं किसी कानून या संहिता में नहीं है. समस्या वे दुपहिया चालक भी हैं जो तेज रफ़्तार से फिल्मी हीरो की तरह वाहन दौड़ाते हैं और अकसर खुद बड़े या भारी वाहन की चपेट में आ जाते हैं.

इन से भी बड़ी समस्या शराब की उपलब्धता है. हाईवे पर शराब के ठेके इफरात से मिल जाते हैं. वहां के ढाबों और बड़े रैस्टोरैंट्स और होटलों में जायजनाजायज शराब पानी की तरह बिकती है. इन पर रोक तय है हादसों में कमी लाने वाली साबित होगी लेकिन जब हादसों का जिम्मेदार खासतौर से बड़े वाहन ड्राइवरों को मान ही लिया गया है तो इन छोटीमोटी मगर अहम बातों पर गौर और फ़िक्र करने की फुरसत किसे है. भोपाल से विदिशा की दूरी महज 45 किलोमीटर है, इस बीच सड़क से ही 8 दुकानें शराब की दिखती हैं जो हादसों को नयोता ही देती हैं.

हाईवे और एक्सप्रैसवे तो ठीक हैं लेकिन बाकी सड़कों की दुर्दशा, मसलन गढ्ढे वगैरह भी बड़े हादसों की वजह बनते हैं. इन पर सरकार और कानून खामोश ही रहते हैं क्योंकि दोष देने को वाहनचालक जो हैं. सड़क दुर्घटना कि किसी इन्वैस्टिगेशन में शायद ही कभी सड़क की बदहाली को जिम्मेदार मानते संबंधित विभाग के अधिकारियों को तलब किया गया होगा.

समझौते की छाछ

ड्राइवरों की हड़ताल का आम लोगों ने विरोध नहीं किया क्योंकि नए प्रावधान निजी वाहनों पर भी लागू होते हैं जिस से आम लोग भी सहमे हुए हैं. हड़ताल वापस लेने का समझौता बड़े ही ड्रामाई तरीके से अमृतलाल मदान और केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला के बीच हुआ जिस का खुलासा करते अमृतलाल मदान ने विजयी मुद्रा में कहा कि सरकार और ट्रांसपोर्टर्स के बीच सहमति बन गई है. अभी नए कानून के प्रावधान लागू नहीं हुए हैं. गृहमंत्री अमित शाह ने 10 साल की सजा और जुर्माने को रोक दिया है. ट्रांसपोर्ट कांग्रेस की अगली बैठक होने से पहले यह कानून लागू नहीं होगा.

अव्वल तो कोई उस वक्त तक इस बात पर भरोसा नहीं कर सकता जब तक ये बातें संसद में न कही जाएं क्योंकि कृषि कानूनों के विरोध के दौर में भी ऐसी बातें सामने आई थीं कि सरकार मान रही है या विचार कर रही है या फिर झुक रही है.

हालफिलहाल तो हड़ताली 90 लाख ड्राइवर मान गए हैं, आगे क्या होता है, यह देखना दिलचस्प होगा क्योंकि यह सरकार बहुत अड़ियल और जिद्दी है जिस के अफसर ड्राइवरों को उन की औकात याद दिलाते हैं.

Winter Foods for Diabetics : सर्दियों में कंट्रोल करना है ब्लड शुगर, तो खाएं ये फूड्स

Winter Foods for Diabetics : डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है, जिसके मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. जो किसी को भी किसी भी उम्र में हो सकती है. इस रोग में व्यक्ति का ब्लड शुगर बढ़ने लगता है, जिससे कई गंभीर बीमारियों के होने का खतरा भी बढ़ जाता है. ऐसे में हर एक मौसम में मरीज को अपनी सेहत का विशेष ख्याल रखना होता है.

हालांकि एक्सरसाइज और डाइट का ख्याल रखके डायबिटीज को कंट्रोल किया जा सकता है. लेकिन सर्दियों के मौसम में कुछ चीजों का सेवन करने से ब्लड शुगर बढ़ जाता है. इसी वजह से डायबिटीज के मरीजों को सर्दियों के मौसम में अपना विशेष ख्याल रखने की सलाह दी जाती है.

सर्दियों के मौसम में ब्लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए डायबिटीज मरीजों को अपनी डाइट में कुछ विंटर सुपरफूड्स शामिल करना काफी फायदेमंद होता है. तो आइए जानते हैं उन सुपरफूड्स (Winter Foods for Diabetics) के बारे में जिनके सेवन से विंटर में भी आपकी शुगर कंट्रोल में रह सकती है.

इन सुपरफूड्स से कंट्रोल करें ब्लड शुगर

  • गाजर

सर्दियों के मौसम में मार्केट में ज्यादातर गाजर पाई जाती है क्योंकि ठंड में इसका स्वाद और ज्यादा बढ़ जाता है. इसके अलावा इसमें फाइबर की भी भरपूर मात्रा होती है. जो बॉडी में शुगर को धीमे-धीमे रिलीज करता है. ऐसे में डायबिटीज मरीज (Winter Foods for Diabetics) इसे अपनी डाइट का हिस्सा बना सकते हैं.

  • आंवला

टाइप 2 डायबिटीज मरीजों के लिए आंवला किसी वरदान से कम नहीं है. आंवला में क्रोमियम की उच्च मात्रा पाई जाती है, जो शरीर में ब्लड शुगर के लेवल को स्थिर करता है. साथ ही इससे इंसुलिन सेंसिटिविटी में भी सुधार आता है. इसलिए डायबिटीज मरीजों (Winter Foods for Diabetics) को अपने खाने में आंवला को जरूर शामिल करना चाहिए.

  • दालचीनी

खाने में स्वाद बढ़ाने के लिए ज्यादातर लोग दालचीनी का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन आपको बता दें कि दालचीनी का इस्तेमाल केवल स्वाद बढ़ाने के लिए ही नहीं किया जाता है बल्कि इससे बल्ड शुगर भी कंट्रोल में रहता है. इसलिए डायबीटिज मरीज (Winter Foods for Diabetics) अपने खाने में दालचीनी का इस्तेमाल जरूर करें. इसके अलावा ये एंटीऑक्सीडेंट से भी भरपूर होती है, जिससे तनाव कम होने के साथ-साथ हृदय संबंधी बीमारियों के होने का खतरा भी कम हो जाता है.

 

Disclaimer: लेख में लेख में दी गई सलाह केवल सामान्य जानकारी के लिए है. अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.

Weight Loss Tips : सर्दियों में कम करना चाहते हैं वजन, तो रोजाना पिएं ये डिटौक्स ड्रिंक्स

Winter Weight Loss Detox Drinks : सर्दियों के मौसम में ज्यादातर लोग आलसी बन जाते हैं. साथ ही उन्हें भूख भी ज्यादा लगने लगती है. दरअसल, कड़ाके की ठंड में कुछ काम करने का मन ही नहीं करता है, जिससे कई लोगों का वजन भी बढ़ने लगता है. अगर सर्दियों में आपकी भी पेट की चर्बी निकल गई है. तो आज हम आपको इस आर्टिकल में ऐसे लाभाकारी डिटॉक्स ड्रिंक्स के बारे में बताएंगे, जिनके नियमित सेवन से कुछ ही समय में आपके पेट की चर्बी गायब हो जाएगी.

दरअसल, अगर दिन की शुरुआत डिटॉक्स वॉटर के साथ होती है तो इससे पिछले दिन का पूरा फैट बर्न हो जाता है. इससे पेट तो साफ होता ही है. साथ ही मेटाबॉलिज्म भी तेज होता है. इसके अलावा जल्द से जल्द वजन भी कम होने लगता है. तो आइए जानते हैं उन डिटॉक्स ड्रिंक्स (Winter Weight Loss Detox Drinks) के बारे में, जिन्हें पीने से सर्दियों में आपका वजन आसानी से कम हो सकता है.

दिन की शुरुआत करें इन डिटॉक्स ड्रिंक्स के साथ 

  • हल्दी का दूध

सर्दियों के मौसम में एक कप गर्म दूध में एक चम्मच हल्दी पाउडर और एक चुटकी काली मिर्च डालकर पीने से शरीर को काफी लाभ मिलते हैं. हल्दी में करक्यूमिन होता है, जो धीरे-धीरे शरीर से फैट (Winter Weight Loss Detox Drinks) बर्न करता है, जिससे आसानी से वजन कम होने लगता है.

  • अदरक और पुदीने का पानी

अदरक, शरीर के लिए काफी लाभदायक होता है. खासतौर पर सर्दियों में इसके सेवन से तो कई बीमारियां छूमंतर हो जाती है. इस मौसम में अदरक और पुदीने के पानी (Winter Weight Loss Detox Drinks) पीने से बहुत ही कम समय में आसानी से वजन भी कम किया जा सकता है. इसके लिए रात के समय एक गिलास पानी में अदरक के छोटे-छोटे पीस डाललें. फिर उसमें कुछ पुदीने की पत्तियां डालकर छोड़ दें और सुबह उठकर उस पानी को पी लें. नियमित रूप से इस पानी को पीने से कुछ ही समय में आपका वजन कम होने लगेगा.

  • ग्रीन टी

सर्दी हो या गर्मी हर मौसम में ग्रीन टी पीना शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है. लेकिन जब आप इसमें नींबू मिला लेते है. तो ये और ज्यादा लाभकारी हो जाता है. दरअसल, नींबू शरीर से एक्स्ट्रा फैट को कम करने में काफी लाभदायक होता है. इसलिए ग्रीन टी में नींबू का रस मिलाकर पीने (Winter Weight Loss Detox Drinks) से पेट की चर्बी आसानी से कम हो जाती है.

 

Disclaimer: लेख में लेख में दी गई सलाह केवल सामान्य जानकारी के लिए है. अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.

मजबूरियां -भाग 2: ज्योति और प्रकाश के रिश्ते से निशा को क्या दिक्कत थी

‘‘आई लव यू टू, ज्योति,’’ प्रकाश ने उस की आंखों को चूम कर कहा.

‘‘आई लव यू, प्रकाश,’’ ज्योति उस के कान में फुसफुसा उठी.

‘‘तुम मु झ से कभी दूर न होना, प्लीज,’’ प्रकाश बोला.

‘‘यह कभी नहीं होगा,’’ यह कह कर ज्योति प्रकाश की आगोश में समा गई थी.

निशा ने शयनकक्ष में घुसते ही प्रकाश से  झगड़ने के अंदाज में पूछा, ‘‘लंच के बाद औफिस से कहां गए थे आप?’’

‘‘क्यों जानना चाहती हो?’’ प्रकाश ने भावहीन लहजे में उलटा सवाल किया.

‘‘तुम्हारी पत्नी होने के नाते मु झे यह सवाल पूछने का अधिकार है.’’

‘पत्नी के अधिकार तुम कभी नहीं भूलीं और अपने कर्तव्यों के बारे में कभी प्रेम से सोचा ही नहीं तुम ने,’ प्रकाश बहुत धीमे स्वर में बुदबुदाया.

‘‘मुंह ही मुंह में क्या बड़बड़ा रहे हो, अगर गालियां देनी हैं तो सामने जोर से दो,’’ निशा चिढ़ उठी.

‘‘मैं गाली नहीं दे रहा हूं तुम्हें,’’ प्रकाश ने गहरी सांस छोड़ कर कहा.

‘‘कहां गए थे आप लंच के बाद?’’ निशा ने अपना सवाल दोहराया.

‘‘तुम्हें अच्छी तरह पता है मैं कहां गया था,’’ प्रकाश बोला.

‘‘उसी चुड़ैल ज्योति के पास?’’ निशा ने विषैले अंदाज में पूछा.

प्रकाश ने जब काफी देर तक उसे कोई जवाब नहीं दिया तो निशा क्रोधित हो कर बोली, ‘‘ऐसे चुप्पी मारने से काम नहीं चलेगा, यह आप सम झ लीजिए कि जवान होता बेटा कालेज जाने की तैयारी कर रहा है. लड़की जवान हो गई है तुम्हारी और तुम्हें खुद को इश्क करने से फुरसत नहीं है. क्यों अपने और हम सब के चेहरों पर कालिख पुतवाने का इंतजाम कर रहे हैं आप?’’

‘‘तुम बेकार की बातें कर के अपना और मेरा दिमाग खराब मत करो, निशा. ज्योति के कारण बच्चों की या तुम्हारी जिंदगी पर कुछ भी असर नहीं पड़ने वाला है. तुम लोगों से छीन कर मैं उसे कुछ भी नहीं दे रहा हूं, फिर तुम उस से शिकायत क्यों रखती हो?’’

‘‘क्योंकि जिस समाज में हम जी रहे हैं वह समाज ऐसे नाजायज संबंधों पर उंगलियां उठाता है. लोग हम पर हंसें, मेरा मजाक उड़ाएं, तुम्हारे इश्क के कारण हम महल्ले में सिर  झुका कर चलने को मजबूर हो जाएं, ऐसी हालत मैं कभी सहन नहीं कर सकती.’’

‘‘महल्ले वाले ज्योति के वजूद से परिचित ही नहीं हैं. उन्हें बीच में ला कर बेकार शोरशराबा मत करो. ज्योति के पास कुछ वक्त गुजार कर मु झे सुकून मिलता है. मेरे सुख की, मेरी खुशियों की चिंता तुम्हें कभी नहीं रही. फिर ज्योति और मेरे प्रेम संबंध को ले कर शिकायत क्यों करती हो तुम?’’ प्रकाश का स्वर ऊंचा हो उठा.

‘‘प्रेम संबंध… रखैल के साथ बने संबंध को प्रेम का नाम नहीं दिया जाता. रखैलें पुरुषों की जरूरतें पूरी करती हैं. तुम ने उसे रहने को फ्लैट ले कर दिया है. उस पर अनापशनाप पैसा खर्च करते हो. बदले में वह चुडै़ल तुम्हारे सामने कपड़े उतार डालती है. अपनी वासना को प्रेम मत कहो और मैं इस संबंध का बिलकुल सही विरोध करती हूं, क्योंकि मैं समाज में इज्जत से सिर उठा कर रहना चाहती हूं,’’ निशा की आवाज गुस्से से कांप रही थी.

‘‘और मु झे इस मामले में समाज की कोई चिंता नहीं रही है. ज्योति से मिलनाजुलना मैं किसी कीमत पर बंद नहीं करूंगा,’’ प्रकाश ने कहा.

‘‘आप की तो मति भ्रष्ट हो गई है. मेरी सम झ में कभी नहीं आया कि तुम क्यों उस के पीछे पागल हुए जा रहे हो. उस के साधारण नैननक्श हैं. वह बैंक में साधारण सी नौकरी करती है. व्यक्तित्व में उस के कोई जान नहीं है. कौन से सुरखाब के पर लगे दिखाई देते हैं तुम्हें उस में, जरा मु झे भी तो बताओ?’’ निशा ने चुभते लहजे में कहा.

‘‘उस का दिल सोने जैसा है,’’ प्रकाश भावावेश से भर उठा, ‘‘मु झ पर जान छिड़कती है वह. प्रेम बांटने की कला आती है उसे. पूरी तरह से समर्पित है वह मेरी सुखशांति के लिए. मु झे उस से वह सब मिला है जो कभी मैं ने अपनी पत्नी से पाने की कामना की थी और जो कभी मु झे तुम से नहीं मिला.’’

‘‘मु झ में  झूठेसच्चे दोष निकाल कर तुम अपनी चरित्रहीनता को सही ठहराने की कोशिश मत करो. तुम ने कभी मु झे दिल से प्रेम किया ही नहीं. फिर कैसे उम्मीद करते हो कि मैं तुम्हारे पैर धोधो कर पीती रहती? आदमी संसार में जैसा बोता है वैसा ही काटता है,’’  निशा ने कड़वे स्वर में जवाब दिया.

‘‘तब तो तुम ने भी कुछ जरूर गलत बोया होगा जो आज मैं तुम से दूर हो गया हूं. तुम गोरी हो, सुंदर हो, स्कूल की पिं्रसिपल हो, शानदार व्यक्तित्व है तुम्हारा लेकिन तुम्हारा दिल मेरे प्रेम में नहीं धड़कता. इस घर में सुखसुविधा की हर चीज है. यहां रसोई में बढि़या खाना बनता है. लोग हमारी खुशहाली देख कर शायद हम से कुढ़ते होंगे, लेकिन मु झे इस घर में कभी सुखशांति नहीं मिली. ज्योति, सिर्फ सादी चाय भी मु झे अगर पिलाती है, तो मेरा मन तृप्त हो जाता है. वह कभी मु झ से ऊंचे स्वर में नहीं बोली. मु झ से ज्यादा महत्त्वपूर्ण उस के जीवन में न पैसा है, न कैरियर और न ही सामाजिक प्रतिष्ठा. उस के असीम प्रेम ने, उस के समर्पण ने और उस के कभी मु झ से कुछ न मांगने के गुण ने लगाए हैं उस में सुरखाब के पर,’’  प्रकाश ने अपनी बात समाप्त कर के निशा की तरफ से मुंह फेर लिया.

सफर अनाथों का : भाग 3

प्रीति

जिंदगी लाइवमें ऋचा के माध्यम से एक और मामला सामने आया है. एक 72 साल के पिता ने अपनी बेट?ी प्रीति   का हाथ दक्षिण अफ्रीका के एक एनआरआई को सौंपा और शादी के 3 महीने बाद उस की मौत की खबर सुनी. लाश मांगने पर दामाद ने पैसों की मांग की. प्रीति के जीजा परमानंद बताते हैं, ‘‘शादी को 4 महीने हुए थे. 9 मई को प्रीति दक्षिण अफ्रीका गई थी और 26 मई को फोन आया कि आप की बेटी ने खुदकुशी कर ली है. 15 दिन में कोई लड़की ऐसा नहीं कर सकती. पैसे के लिए लड़का तंग करता था, उस के सारे गहने, सामान, लैपटाप आदि उस के सासससुर ने रख लिया. उस की लाश भेजने के लिए भी 15 लाख रुपए मांग रहे हैं. उस का पति विकास सिंघानिया तो बात ही नहीं करता. 2 महीने से लाश वहीं पड़ी है. मैं सरकार से मदद चाहता हूं कि प्रीति का शव वापस मंगवाए ताकि हम हिंदू रिवाज से उस का अंतिम संस्कार कर सकें.’’

ऋचा कहती हैं कि हम जिंदगी लाइवके माध्यम से यह आवाज उठाना चाहते हैं कि चाहे गीतांजलि हो या स्मलिन, दिव्या, सोनिया, कोई भी लड़की हो, जो एनआरआई परिवार की धोखाधड़ी का शिकार हुई हो, उसे इंसाफ मिले और लड़की वालों को शादी से पहले क्याक्या ध्यान रखना चाहिए, हमारे कानून में क्या कमियां हैं, इन सब के बारे में जानने के लिए हमारे साथ कुछ मेहमान जुड़ रहे हैं.

ओवरसीज मंत्रालय, भारतीय मामले से संध्या शुक्ला, राष्ट्रीय महिला आयोग से यासमिन अबरार और पंजाब से हमारे साथ हैं एडवोकेट दलजीत कौर.

दलजीत कौर का कहना है, ‘‘पंजाब से 95 प्रतिशत लोग बाहर बसे हुए हैं. यहां के अधिकतर लोग अपनी लड़कियों को इसलिए विदेश भेजना चाहते हैं ताकि उस के सहारे वे खुद भी वहां जा सकें.’’

ऋचा का सवाल, ‘‘संध्याजी, जब लोग विदेशों में बेटी की शादी करते हैं तो प्रवासी मंत्रालय या सरकार उन के बारे में कुछ नहीं सोचती या करती?’’

नादानियां : भाग 3

‘‘यह है ज्ञान का खजाना यानी बुक्स. आज से हम दोनों साथसाथ पढ़ेंगे,’’ प्रथमा ने नाटकीय अंदाज में कहा. वह जानती थी कि नौवेल्स पढ़ना राकेश की कमजोरी है. राकेश ने एक छोटी सी लाइब्रेरी भी घर में बना रखी थी और सब को सख्त हिदायत थी कि जब वह लाइब्रेरी में हो तो कोई भी उसे डिस्टर्ब न करे. मगर अब प्रथमा का भी दखल उस में होने लगा था. शाम का वह समय जो वे दोनों कार चलाना सीखने को जाया करते थे, अब बंद लाइब्रेरी में किताबों को देने लगे.

राकेश ने जब प्रथमा के लाए नौवेल्स को पढ़ना शुरू किया तो उसे महसूस हुआ कि इन में लगभग सभी नौवेल्स में एक बात कौमन थी. वह यह कि सभी में घुमाफिरा कर विवाहेतर संबंधों की वकालत की गई थी. विभिन्न परिस्थितियों में नजदीकी रिश्तों में बनने वाले इन ऐक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशन को अपराध या आत्मग्लानि की श्रेणी से बाहर रखा गया था. एक दिन तो राकेश से कुछ भी कहते नहीं बना जब प्रथमा ने ऐसे ही एक किराएदार का उदाहरण दे कर उस से पूछा जिस के अजीबोगरीब हालात में अपनी बहू से अंतरंग संबंध बन गए थे, ‘‘मुझे लगता है इस का फैसला गलत नहीं था. आप इस की जगह होते तो क्या करते?’’

राकेश का माथा ठनका. अब उस ने प्रथमा की बचकानी हरकतों पर गौर करना शुरू किया. उसे दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आने लगी. उसे याद आया कि बातबात पर ‘पापा’ कहने वाली प्रथमा आजकल उस से बिना किसी संबोधन के ही बात करती है. उस की उम्र का अनुभव उसे चेता रहा था कि प्रथमा उस से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश कर रही है मगर उस के घर का संस्कारी माहौल इस की बगावत कर रहा था, वह ऐसी किसी भी संभावना के खिलाफ था. इस कशमकश से बाहर निकलने के लिए राकेश ने एक रिस्क लेने की ठानी. वह अपने तजरबे को परखना चाहता था. प्रथमा की मानसिकता को परखना चाहता था. जल्द ही उसे ऐसा एक मौका भी मिल गया.

साल अपनी समाप्ति पर था. हर जगह न्यू ईयर सैलिब्रेशन की तैयारियां चल रही थीं. रितेश को उस के एक इवैंट मैनेजर दोस्त ने न्यू ईयर कार्निवाल का एक कपल पास दिया. ऐन मौके पर रितेश का जाना कैंसिल हो गया तो प्रथमा ने राकेश से जिद की, ‘‘चलिए न. हम दोनों चलते हैं.’’ राकेश को अटपटा तो लगा मगर वह इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहता था, इसलिए उस के साथ जाने के लिए तैयार हो गया.

पार्टी में प्रथमा के जिद करने पर वह डांसफ्लोर पर भी चला गया. जैसा कि उस का अनुभव कह रहा था, प्रथमा उस से एकदम चिपक कर डीजे की तेज धुन पर थिरक रही थी. कभी अचानक उस की बांहों में झूल जाती तो कभी अपना चेहरा बिलकुल उस के पास ले आती. अब राकेश का शक यकीन में बदल गया. वह समझ गया कि यह उस का वहम नहीं है बल्कि प्रथमा अपने पूरे होशोहवास में यह सब कर रही है. मगर क्यों? क्या यह अपने पति यानी रितेश के साथ खुश नहीं है? क्या इन के बीच सबकुछ ठीक नहीं है?

प्रथमा जनून में अपनी हदें पार कर के कोई सीन क्रिएट करे, इस से पहले ही वह उसे अपनी तबीयत खराब होने का बहाना बना कर वहां से वापस ले आया. राकेश को रातभर नींद नहीं आई. पिछले दिनों की घटनाएं उस की आंखों में चलचित्र की तरह गुजरने लगीं.

रितेश का अपनी मां से अत्यधिक  लगाव ही प्रथमा के इस व्यवहार  की मूल जड़ था. नवविवाहिता पत्नी को छोड़ कर उस का अपनी मां के पल्लू से चिपके रहना एक तरह से प्रथमा के वजूद को चुनौती थी. उसे लग रहा था कि उस का रूप और यौवन पति को बांधने में नाकामयाब हो रहा है. ऐसे में इस नादान बच्ची ने यह रास्ता चुना. शायद उस का अवचेतन मन रितेश को जताना चाहता था कि उस के लावण्य में कोई कमी नहीं है. वह किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम है.

बेचारी बच्ची, इतने दिनों तक कितनी मानसिक असुरक्षा से जूझती रही. रितेश को तो शायद इस बात का अंदाजा भी नहीं होगा कि उस का मम्मीप्रेम क्या गुल खिला रहा है. और वह भी तो इस द्वंद्व को कहां समझ सका…या फिर शायद प्रथमा मुझ पर डोरे डाल कर अपनी सास को कमतरी का एहसास कराना चाहती है.

‘कारण जो भी हो, मुझे प्रथमा को इस रास्ते से वापस मोड़ना ही होगा,’ राकेश का मन उस के लिए द्रवित हो उठा. उस ने मन ही मन आगे की कार्ययोजना तय कर ली और ऐसा होते ही उस की आंखें अपनेआप मुंदने लगीं और वह नींद की आगोश में चला गया.

अगले दिन राकेश ने औफिस से आते ही पत्नी के पास बैठना शुरू कर दिया और चाय उस के साथ ही पीने लगा. वह  रितेश को किसी न किसी बहाने से उस की चाय ले कर प्रथमा के पास भेज देता ताकि वे दोनों कुछ देर आपस में बात कर सकें. चाय पी कर राकेश पत्नी को ले कर पास के पार्क में चला जाता. जाने से पहले रितेश को हिदायत दे कर जाता कि वह दोस्तों के पास जाने से पहले प्रथमा के साथ कम से कम 1 घंटे बैठे.

शुरूशुरू में तो प्रथमा और रितेश को इस फरमान से घुटन सी हुई क्योंकि दोनों को ही एकदूसरे की आदत अभी नहीं पड़ी थी मगर कुछ ही दिनों में उन्हें एकदूसरे का साथ भाने लगा.

कई बार राकेश दोनों को अकेले सिनेमा या फिर होटल भी भेज देता था. हां, पत्नी को अपने साथ घर पर ही रोके रखता. एकदो बार रितेश ने साथ चलने की जिद भी की मगर राकेश ने हर बार यह कह कर टाल दिया कि अब इस उम्र में बाहर का खाना उन्हें सूट नहीं करता. राकेश ने महसूस किया कि अब रितेश भी प्रथमा के साथ अकेले बाहर जाने के मौके तलाशने लगा है यानी उस की योजना सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

हनीमून के बाद रितेश कभी प्रथमा को मायके के अलावा शहर से बाहर घुमाने नहीं ले गया. इस बार उन की शादी की सालगिरह पर राकेश ने जब उन्हें 15 दिनों के साउथ इंडिया ट्रिप का सरप्राइज दिया तो रितेश ने जाने से मना का दिया, कहा, ‘‘हम दोनों के बिना आप इतने दिन अकेले कैसे रहेंगे? आप के खाने की व्यवस्था कैसे होगी? नहीं, हम कहीं नहीं जाएंगे और अगर जाना ही है तो सब साथ जाएंगे.’’

‘‘अरे भई, मैं तो तुम दोनों को इसलिए भेज रहा हूं ताकि कुछ दिन हमें एकांत मिल सके. मगर तुम हो कि मेरे इशारे को समझ ही नहीं रहे.’’ राकेश ने अपने पुराने  नाटकीय अंदाज में कहा तो रितेश की हंसी छूट गई. उस ने हंसते हुए प्रथमा से चलने के लिए पैकिंग करने को कहा और खुद भी उस की मदद करने लगा.

15 दिनों बाद जब बेटाबहू लौट कर आए तो दोनों के ही चेहरों पर असीम संतुष्टि के भाव देख कर राकेश ने राहत की सांस ली. दोनों उस के चरणस्पर्श करने को झुके तो उन्होंने बच्चों को बांहों में समेट लिया. प्रथमा ने आज न जाने कितने दिनों बाद उसे फिर से ‘पापा’ कह कर संबोधित किया था.

राकेश खुश था कि उस ने राह भटकती एक नादान को सही रास्ता दिखा दिया और खुद भी आत्मग्लानि से बच गया.

अपनों का सुख: बूढ़े पिता के आगे शुभेंदु को अपना कद बौना क्यों लग रहा था- भाग 3

“सब से पहले तो कोर्ट या दत्तावाडी थाना से एफआईआर की कौपी निकालिए. उस के बाद शुभेंदु की जमानत के लिए दोदो जमानतदार लाइए. कोर्ट में जा कर पता लगाना होगा कि पुलिस ने डायरी और चार्जशीट दाखिल किया है या नहीं. इतना होने के बाद कोर्ट में आगे की कार्रवाई शुरू होगी,” अधिवक्ता बी के दास ने कहा.

“सर, केस को रफादफा करने में क्या खर्च लगेगा?”

“बिना एफआईआर की कौपी देखे, खर्च बताना मुश्किल है?”

“फिर भी, सर?”

“तकरीबन डेढ़दो लाख रुपए खर्च होना चाहिए. फिलहाल आप 5 हज़ार रुपए दीजिए, ताकि एफआईआर की कौपी निकाल सकूं. इतनी राशि में सगुण, पेपर, दस्तखती, कोर्ट पिटिशन, टाइपिंग आदि के छोटेछोटे काम हो जाएंगे.”

“ठीक है सर, अभी देता हूं.”

शिवजी साह ने मनीबैग खोला और एकएक हजार के 5 नोट निकाले और अधिवक्ता बी के दास के हाथों में दे दिया.

“धन्यवाद, कल एफआईआर की कौपी मिल जाएगी. उस के बाद शुभेंदु की जमानत याचिका कोर्टफीस के साथ दाखिल की जाएगी. जब अधिवक्ताओं की बहस के बाद सीजेएम कोर्ट से जमानत की अर्जी मंजूर हो जाएगी, तब जमानतदार आदि की जरूरत पड़ेगी. आप शेष पैसे और जमानतदार के जुगाड़ में लग जाइए,” बी के दास ने समझाया.

“सर, जमानतदारों को पहचान के तौर पर क्याक्या लाना होगा?”

“आधारकार्ड, ओनर बुक, ड्राइवरी लाइसैंस, प्रौपर्टी पेपर आदि सामग्री चाहिए. इसी तरह आरोपित शुभेंदु के भी पेपर चाहिए.”

“ठीक है सर, कल मिलेंगे.”

“सुनिए, कोर्ट दलालों का अखाड़ा है. दलालों के चक्कर में न पड़िएगा, नहीं तो बेटा की जमानत के नाम पर जमापूंजी गायब हो जाएगी.”

“नहीं सर, ऐसी ग़लती नहीं होगी. आप पर मुझे पूरा भरोसा है,” यह कह कर शिवजी बाहर निकल गए.

दोपहर के बाद शिवजी बहू के साथ शुभेंदु से मिलने सैंट्रल जेल पुणे गए, वहां शुभेंदु की दशा देख कर उन की आंखें भर आईं. उस का हौसला बढ़ाते हुए कहा,

“घबराना नहीं बेटा, अभी तेरे माथे पर बाप का हाथ है. तेरी हर मुसीबत को मैं हर लूंगा. जब तक मेरी रगों में खून है, तुम्हारे सुखशांति पर आंच नहीं आने दूंगा.”

शुभेंदु अपने सामने पिताजी को देख कर एक-ब-एक भावुक हो उठा, दोनों हाथ फैला कर उन के सीने से लग जाना चाहा, लेकिन बीच में जेल की खिड़की बाधा थी. शिवजी ने बेटे के कंधे पर हाथ रखते हुए फिर कहा,

“चिंता न करो बेटा, वकील साहब कल जमानत की अर्जी दाखिल करेंगे. अगर सबकुछ ठीक रहा तो कल ही बेल हो सकती है.”

“जी पिताजी, मां कैसी हैं?”

“तेरे जेल से बाहर निकलने की प्रतीक्षा में है.”

“मुलाकात का समय समाप्त हो गया. शुभेंदु अपने वार्ड में जाओ,” जेल के सिपाही ने घड़ी देख कर शुभेंदु को आवाज दी.

खिड़की के पास खड़ा शुभेंदु कातर नेत्रों से पत्नी सुधा और अपने पिता को देख रहा था. वह दुखीमन से अपने वार्ड की ओर मुड़ा और आहिस्ताआहिस्ता अपने वार्ड में चला गया.

जेल से लौटने के बाद शिवजी पुणे हवाई अड्डा रोड में रहने वाले अपने गांव के मनोज, मदनलाल, लखन साह, दिलीप चौधरी से मिले और अपनी परेशानी बताई. सब ने शिवजी का भरपूर स्वागत किया और उन के बेटे की जमानत में हर तरह से सहयोग करने का आश्वासन दिया.

मनोज ने शिवजी से कहा, “मेरे साढू भाई सैशन जज हैं. इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है. सभी कार्य अपने निर्धारित समय पर सही होंगे.”

बुधवार को शिवजी अपने वकील बी के दास से उन के सीरिस्ता में मिले. वकील साहब ने उन्हें 10 मिनट बैठने को कहा. उस समय बी के दास किसी दूसरे क्लाइंट से उस के केस के संबंध में समझा रहे थे. उस क्लाइंट के बाद अधिवक्ता ने दोतीन और लोगों के मामलों पर चर्चा की. उस के बाद शिवजी साह से मुखातिब हुए.

“साह जी, मैं ने एफआईआर पढ़ लिया है. पब मालिक सुबोध वर्मा ने आप के पुत्र शुभेंदु पर उस के स्टाफ के साथ मरपीट, पब में तोड़फोड़ और काउंटर से 50 हजार रुपए लूटने का मामला दर्ज किया है, जो संगीन है. अगर निचली अदालत में जमानत नहीं मिली तो जिला कोर्ट में जमानत याचिका दायर करनी होगी. आप के पुत्र की जमानत की प्रक्रिया शुरू हो गई है. अब आप कोर्टफीस और जमानत से संबंधित कागजात तैयार करने के लिए फिलहाल 10 हजार रुपए जमा कीजिए.”

“सर, रुपए तुरंत जमा करता हूं,” इतना कह कर शिवजी ने बैग से रुपए निकाले और जमा कर दिया.

“और कोई आदेश सर?”

“बेलर ले कर आए हैं कि नहीं?”

“जी सर, लाए हैं, 4 लोग हैं, बुलाएं क्या?”

“नहीं, आप सीरिस्ता में ही बैठें. आवश्यकता पड़ने पर बुलाया जाएगा.”

“जी सर.”

अधिवक्ता बी के दास ने शुभेंदु के नाम की बेल पिटिशन भर कर सीजेएम कोर्ट में दाखिल कर दिया. उस के बाद कोर्ट के पेशकार और सरकारी वकील से कुछ गुफ्तगू की. पेशकार ने अधिवक्ता बी के दास को सैकंड औवर्स में कोर्ट आने की सलाह दी.

सीरिस्ता में बैठेबैठे शिवजी साह जब ऊबने लगे तो उन्होंने व्यग्र हो कर अपने अधिवक्ता से पूछा, “सर, शुभेंदु की जमानत को ले कर कितने बजे बहस होगी?”

“दोपहर 2 बजे के आसपास. तब तक जमानती लोगों को खाना खिला दीजिए. उस के बाद आप सब लोग सीजेएम कोर्ट में आ जाइएगा,” अधिवक्ता बी के दास ने समझाया.

अपराह्न 1.45 बजे शिवजी साह अपने सहयोगियों के साथ सीजेएम आलोक मेहता की अदालत में पहुंचे जहां इजलास मुदई, मुदालह, गवाहों और अधिवक्ताओं से खचाखच भरा हुआ था. अदालत के दरवाजे पर एक द्वारपाल खड़ा था, जो पेशकार के आदेश पर केस से जुड़े लोगों को कठघरे में खड़ा होने के लिए उच्च आवाज में बुलाता. क्रमवार यह सिलसिला चलता रहा.

अंत में शुभेंदु की जमानत याचिका पर सुनवाई शुरू हुई. अपने स्थान से अधिवक्ता बी के दास खड़े हुए. सब से पहले जज को सिर झुका कर अभिवादन किया. उस के बाद कहा, “माई लौर्ड, केस संख्या 55 के एक्यूज शुभेंदु को बेल दी जाए, उस पर एक पब में तोड़फोड़, मारपीट और रुपए लूटने का झूठा मामला पब मालिक ने दर्ज कराया है. जबकि मेरा एक्यूज निर्दोष है, इस मामले से उसे कुछ लेनादेना नहीं है.”

“आब्जेक्शन माई लौर्ड, स्थानीय पुलिस ने शुभेंदु को मौका ए वारदात से गिरफ्तार कर जेल भेजा है. पब मालिक के लगाए गए आरोपों पर दत्तावाडी पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है. फिर मेरे साथी बी के दास जी उसे निर्दोष बता रहे हैं. शुभेंदु पर लगे आरोप सही हैं, इसलिए उस की बेल पिटिशन रिजैक्ट की जाए,” सरकारी वकील रामू केडिया ने अपनी दलील पेश की.

“माई लौर्ड, मेरा एक्यूज कोई बड़ा अपराधी नहीं है, न ही इस के पूर्व उस पर कोई केस है. इसलिए पहले उसे बेल दी जाए,” बी के दास ने अपनी सफाई पेश की. तभी सरकारी वकील ने प्रतिवाद किया, “माई लौर्ड, इस मामले में पुलिस अभी अनुसंधान कर रही है. आरोपित के केस फाइल में न चार्जशीट है न डायरी. एफआईआर में आरोपित पर नन बेलेबुल सैक्शन की धारा है. बेल केवल जिला या हाईकोर्ट के आदेश पर मिल सकती है, इसलिए बेल रिजैक्ट की जाए. दैट्स औल सर.”

“आब्जेक्शन माई लौर्ड, मेरे इनोसेंट एक्यूज को नन बेलेबुल सैक्शन लगा कर फंसाया गया है.”

“और्डर और्डर,” सीजेएम आलोक मेहता ने मेज़ पर हथौड़ा ठकठकाते हुए कहा.

“नन बेलेबुल सैक्शन का मामला है, इसलिए बेल पिटिशन रिजैक्ट की जाती है.” इस आदेश के बाद सीजेएम साहब अपनी कुरसी से उठ गए.

बेल पिटिशन रिजैक्ट होने पर शिवजी साह और उन के सहयोगी बहुत दुखी हुए. धीरेधीरे सभी लोग अपनेअपने घर चले गए.

शुभेंदु के डेरा पर पहुंच कर शिवजी साह ने अपनी पत्नी को फोन किया,

“सुनंदा, कैसी हो?”

“ठीक हूं, आप वकील साहब से मिल कर जमानत की अर्जी दिए कि नहीं? शुभेंदु जेल से बाहर कब तक आ जाएगा?” उत्सुकता के साथ सुनंदा ने एकसाथ कई प्रश्न पूछ डाले.

“पैसा के अभाव में काम रुका हुआ है. मैं ने ठेकेदार से 2 लाख रुपए मांगा है, लेकिन वह नानुकुर कर रहा है. तुम उस की बीवी से मिल कर किसी तरह डेढ़ लाख रुपए का इंतजाम करो.”

“ठीक है, आप चिंता मत कीजिए. अगर ठेकेदार ने पैसे नहीं दिया तो मेरे सोनेचांदी के गहने किस काम के? अपने आभूषणों को गिरवी रख कर रुपए इंतजाम करूंगी,” अपने पति का हौसला बढ़ाते हुए सुनंदा ने अपनी सलाह दी.

“ठीक है, ठीक है, तुम जल्द ठेकेदार के घर जाओ, मैं फोन काटता हूं.”

डायरी और चार्जशीट के लिए शिवजी साह कई बार दत्तावाडी थाने के चक्कर लगा चुके थे. कभी केस के एसएचओ  नदारद मिलते तो कभी वहां के इंस्पैक्टर गायब रहते.

शिवजी को खुद बहुत सी धाराओं का ज्ञान था, इसलिए थाने में एक उत्तर भारतीय कांस्टेबल सुभाष  की सहायता से उन्होंने मराठी न जानते हुए भी सारी बातें एसएचओ को समझा दीं कि वे खेलेखाले खिलाड़ी हैं. कांस्टेबल सुभाष ने बताया,

‘थाना का मुंशी सराफत लाल सलामी के तौर पर एकदो हज़ार रुपए लिए बिना किसी से बात तक नहीं करता. बिना पैसे का एक कागज भी एक टेबल से दूसरे टेबल तक नहीं सरकाता.”

शिवजी साह ने थाने की नब्ज पकड़ ली और मुंशी को सामने से 2 की जगह 3 हजार रुपयों का नज़राना भेंट किया.

नोटों को अपने बाएं हाथ में लेते हुए सराफत लाल ने दाएं हाथ से पहले अपने आंखों का चश्मा नाक से थोड़ा नीचे सरकाया और शिवजी को देख कर बोला,

“कुरसी पर बैठ जाइए और बताइए कि मैं आप की क्या मदद कर सकता हूं.”

मुंशी के सामने वाली कुरसी पर शिवजी साह बैठे और अपने पुत्र शुभेंदु के मामले में पुलिसिया कार्रवाई पर चर्चा की.

“अब आप को भटकने की जरूरत नहीं है. आज थाना प्रभारी राजेश कुमार को आप के पुत्र शुभेंदु के बारे में सही जानकारी दे दूंगा. कल सुबह आप उन के आवास पर मिल सकते हैं. आप की सारी परेशानी दूर हो जाएगी. आप की मदद के लिए मैं वहां खुद मौजूद रहूंगा.”

“धन्यवाद सर, लेकिन साहब को क्याक्या पसंद है?”

इस के जवाब में मुंशी ने उन्हें और नजदीक बुलाया. साथ ही, शिवजी के कान के पास कुछ बुदबुदाया.

दूसरे दिन वे दत्तावाडी थाना प्रभारी राजेश कुमार से मिलने उन के आवास पर पहुंचे और औपचारिक परिचय के बाद अपने साथ ले गए गिफ्ट का पौकेट मुंशी के हाथों अंदर भिजवा दिया. साथ ही, अपने पुत्र शुभेंदु की चार्जशीट व डायरी अपने पक्ष में जल्द दाखिल करने का अनुरोध किया, ताकि इस बार शुभेंदु की बेल हो सके.

थानेदार राजेश कुमार ने उन्हें आश्वस्त किया,

” अच्छा हुआ कि आप समय से आ गए. वरना आप के पुत्र शुभेंदु के खिलाफ ही रिपोर्ट चली जाती. अब सहर्ष घर जाइए, समझिए आप का काम हो गया.”

“धन्यवाद सर.”

शिवजी थाना के गेट से जैसे ही बाहर निकले, उन के मोबाइल पर पत्नी सुनंदा की कौल आई. उन्होंने फोन रिसीव करने के बाद पूछा,

“हैलो, कैसी हो सुनंदा? सबकुछ ठीकठाक है न?”

” हांहां, सब ठीक है. आप के पेटीएम में 2 लाख रुपए का ट्रांजैक्शन करा दिया है. उम्मीद है शुभेंदु कि बेल जल्द हो जाएगी.”

“हांहां, तुम्हारा अनुमान ठीक है. रुपए मिल गए हैं.”

“अच्छा, अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दीजिएगा. जनवितरण प्रणाली की दुकान से अपना राशन उठाने जा रही हूं.”

“ठीक है, जाओ. मैं मनोज के साढू भाई सैशन जज दीपक सिंह से मुलाकात करने  उन के बंगले पर जा रहा हूं.  जज साहब को बता दूंगा कि शुभेंदु का केस जिला न्यायालय में मजिस्ट्रेट महेश सिंह की अदालत में चल रहा है.  उम्मीद है उन की सिफारिश से शुभेंदु कि बेल एक्सेप्ट हो जाएगी.”

“जाइए, हौसला बुलंद कर जाइए. जहां बेटा के सिर पर बाप का हाथ और  ममता की छांव हो, वह काम ज़रूर होगा.”

जिला न्यायालय में मजिस्ट्रेट महेश सिंह की अदालत में शूभेंदु के केस पर वादी-प्रतिवादी वकीलों के बीच जोरदार बहस चल रही थी. अदालत के एक कोने में शिवजी खड़े थे जो मन ही मन अपने इष्ट देव को याद कर रहे थे.

“माई लौर्ड, पब में तोडफोड, मारपीट और काउंटर से 50 हजार लूट मामले में मेरा अभियुक्त शुभेंदु बिलकुल निर्दोष है. उसे तुरंत बेल दे कर जेल से रिहा किया जाए. दत्तावाडी पुलिस ने पब मालिक सुबोध वर्मा के बयान पर झूठा केस दायर किया था.” अधिवक्ता बी के दास ने शुभेंदु की बेल पिटिशन पर बहस करते हुए जिला जज महेश सिंह से बेल देने का आग्रह किया.

“आब्जेक्शन माई लौर्ड, पब में मौका ए वारदात से स्थानीय पुलिस ने अभियुक्त शुभेंदु को गिरफ्तार कर जेल भेजा था. जिस पर पब मालिक के बयान पर तोडफोड, मारपीट और काउंटर से 50 हजार लूट का मामला दर्ज किया, जो ननबेलेबल सैक्शन है. हाईकोर्ट के आदेश के बिना इस मामले में बेल नहीं हो सकती,” सरकारी वकील रामू केडिया ने अपनी दलील पेश की.

माई मौर्ड, सचाई यह है कि जब सुबोध वर्मा के पब में जाट ग्रुप के युवकों और शुभेंदु के साथियों के बीच मारपीट शुरू हुई थी तब मेरा एक्यूज वहां नहीं, पब से बाहर था. मारपीट की खबर मिलने पर  उस ने अपने मोबाइल नंबर-9431568595 से दत्तावाडी थाना को फ़ोन किया, जिस के बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंची. पुलिस को देख कर मारपीट करने वाले भाग गए, जबकि पुलिस को सूचना देने वाला शुभेंदु वहीं खड़ा रहा. लेकिन पुलिस उसे ही पब से अपने साथ उठा ले गई. वह बार बारअपने को निर्दोष बता रहा था. लेकिन पुलिस ने कुछ भी नहीं सुनी.”

“आब्जेक्शन माई लौर्ड, मेरे काबिल दोस्त झूठी कहानी सुना कर कोर्ट का कीमती समय बरबाद करने पर तुले हैं.”

“माई लौर्ड, सुबोध वर्मा पब में लगे सीसी टीवी फुटेज को देखा जाए और पुलिस की डायरी में सूचना देने वाले शुभेंदु का मोबाइल नंबर नोट किया जाए. दोनों घटनाओं को देखने से दूध का दूध और पानी का पानी साफ हो जाएगा. माई लौर्ड, यह है मेरा सुबूत.” इस के बाद अधिवक्ता बी के दास ने सुबूत वाली फाइल जज साहब के पास पहुंचा दी.

जिला जज ने सुबोध वर्मा के पब में लगे सीसी टीवी फुटेज और सूचना देने वाले का नंबर मिलाने के बाद शुभेंदु की बेल पिटिशन एक्सेप्ट कर ली. साथ ही, एक-एक लाख रुपए मुचलके के दो बेल बौंड भरने का आदेश दिया. इस आदेश के बाद अधिवक्ता बी के दास ने जज साहब को धन्यवाद दिया.

उस के बाद शुभेंदु की जमानत के लिए मनोज  और मदनलाल का बेल बौंड भर कर कोर्ट में दाखिल किया. तत्पश्चात शुभेंदु को जेल से रिहा करने के लिए कोर्ट से बेल-रीकौल निर्गत किया गया.

आननफानन बेल-रीकौल को जेल भेजा गया, ताकि शाम होने से पूर्व शुभेंदु को बरी किया जा सके. लेकिन जब तक बेल-रीकौल जेल पहुंचा, देर हो चुकी थी. जेल में उस दिन का आमद-खर्च का हिसाब हो चुका था. मजबूरन शुभेंदु को जेल में ही रात गुजारनी पड़ी.

दूसरे दिन शुभेंदु के पिता शिवजी साह, उस की पत्नी सुधा और दाई मीणा जेल के मुख्य द्वार पर पहुंचे. दिन के 11 बजे थे. सभी शुभेंदु के जेल से बाहर आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. सब के चेहरे अह्लादित और प्रसन्नचित्त थे. ठीक 11.30 बजे जेल का मुख्य द्वार खुला और शुभेंदु बाहर निकला.

शुभेंदु को देखते ही हर्षोल्लास सुधा और मीणा उस के पास पहुंचीं. उसे ले कर सीधे उस के पिता शिवजी साह के पास गईं.

थोड़ी दूर से ही शुभेंदु की निगाहें अपने पिता के प्रफुल्लित चेहरे पर जा कर ठहर गईं. उस ने अपनी आंखें बंद कर फिर अपने पिता को देखा. इस बुढ़ापे में भी उन के कद के आगे उस का अपना कद बौना लगा. उसे अपनी खोखली हैसियत, बेसिरपैर की बेढंगी सोसायटी और हवाहवाई काबिलीयत पर रोना आ गया. वह पास पहुंचते ही पिता के चरणों पर गिर पड़ा और फूटफूट कर रोने लगा, जैसे अपने किए का पश्चात्ताप कर रहा हो.

शुभेंदु को फूटफूट कर रोते देख कर उस की पत्नी सुधा और दाई मीणा की आंखें डबडबा आईं. पितापुत्र के मधुर मिलन पर दोनों के आंसू ढलक कर गालों पर आ गए.

पुत्रमोह में विह्वल शिवजी साह ने अपने पुत्र शुभेंदु को उठा कर सीने से लगा लिया और प्यार से उस के माथे पर हाथ फेरने लगे, जैसे मुद्दतों से बिछड़े बाप को उस का बेटा मिल गया हो.

अपनी अपनी तैयारी : भाग 3

‘हम ने तो सुना है कि बहू इकलौती है, कोई भाई नहीं है इस के तो बबलू (प्रेरित का घर का नाम) तुम्हें देखे कि आपन सासससुर को…’’ ताईजी कुछ कम नहीं थीं, सो, मम्मीजी की दुखती रग पर हाथ रख दिया था.

‘जिज्जी देखो, हमार तो दुई बिटवा हैं. बुढ़ापा तो बहुत आराम से कटे. चिंता तो वे करें जिन के बिटवा नहीं है. हमें किसी और के सहारे की का जरूरत. अब इस ब्याह में तो अरमान पूरे न हुए, बिट्टू के ब्याह में देखना अपने सारे अरमान पूरे करूंगी,’’ मम्मीजी ने लगभग मुझे सुनाते हुए कहा था.

विवाह के बाद हम दोनों हनीमून के लिए साउथ घूमने गए. मुन्नार, कन्याकुमारी, मदुरई जैसी प्राकृतिक छटाओं से भरपूर केरल को घूम कर हम दोनों ने दोनों माताओं के लिए कांजीवरम साडि़यां खरीदीं. जब मम्मीजी को साड़ी दी तो वे बड़ी खुश हुईं पर साथ ही यह बोलीं, ‘अपनी मम्मी के लिए नहीं लाईं? वैसे हमारे कानपुर में तो बेटियों से कुछ लिया नहीं जाता.’

‘जी, मम्मीजी, लाई हूं न, बिलकुल आप के जैसी, आप की ही तरह. वे भी मेरी प्यारी मां हैं न.’

मन के अंदर उठते तूफानी गुबार को किसी तरह शांत करते हुए मैं ने कहा था. इस के बाद हम दोनों ने अपने बैंक को जौइन कर लिया और जिंदगी बुलेट ट्रेन की स्पीड से दौड़ने लगी थी. दो वर्षों बाद मैं ने हमारे प्यार की निशानी आरुषी को जन्म दिया. एक बार फिर हमारी जिंदगी खुशियों से गुलजार हो उठी थी. पापामम्मी ढेर सारे साजोसामान के साथ अपनी नातिन से मिलने आए थे. इस के 4 वर्षों बाद घर का घटनाक्रम बहुत तेजी से बदला. हमारा प्रमोशन हुआ तो कानपुर से दिल्ली ट्रांसफर हो गया. प्रेरित के भाई प्रेरक का मैडिकल पूरा हो गया और उन की पोस्ंिटग लखनऊ के के जी मैडिकल कालेज में हो गई. मम्मीपापाजी अपने डाक्टर बेटे के लिए लड़की खोजने में लग गए. मेरी शादी में अधूरे रह गए अपने सभी अरमानों को मानो अब वे पूरा कर लेना चाहते थे. इस बीच जितने भी रिश्ते आए उन में जो मम्मीजी, पापाजी की कसौटियों पर खरे उतरे उन्हें शौर्ट लिस्ट कर के रख लिया गया था ताकि भैया जब छुट्टी में आएं तो उन का रिश्ता पक्का किया जा सके. जब भैया इस बार दीवाली पर आए तो पापाजी ने खुश होते हुए कुछ लड़कियों के फोटो उन के सामने रखते हुए कहा, ‘बेटा, अब तेरा ब्याह करना बचा है. बहुत सारे रिश्ते आए थे. उन में से जो हमें अच्छे लगे उन की फोटो रख कर शेष वापस कर दी हैं. अब इन में से तुम जिसे बताओ उसे ही फाइनल कर देते हैं.’

‘ये सब क्या है, पापा, मुझ से पूछे बिना आप लोगों ने किसी से बात क्यों कर ली? किसी भी बात को आगे बढ़ाने से पहले आप लोगों को एक बार मुझ से पूछना तो था न?’ प्रेरक भैया ने एकदम आवेश में कहा तो मम्मीजी बोलीं, ‘अरे, तो हम ने कौन सी फाइनल कर दी है. तू देख ले, जो तुझे अच्छी लगे, बता दे. सब का अच्छाखासा खातापीता परिवार है, जानेमाने पैसे वाले लोग हैं और पढ़ीलिखी लड़की है. अच्छा दानदहेज देने को भी तैयार हैं ये सब. शर्माजी की लड़की तो 2 भाइयों के बीच अकेली बहन है, सो, प्रेरित की तरह ससुराल की भी कोई जिम्मेदारी नहीं है.’

‘मैं कोई फोटोवोटो नहीं देखने वाला क्योंकि मैं अपने साथ की ही एक लड़की सुगंधा से प्यार करता हूं जो मेरी ही तरह एक डाक्टर है. मैं उसी से शादी भी करूंगा. इसलिए आप ने जिन से भी बात की है उन्हें मना कर दें और ये फोटो भी वापस कर दें. हां, यह भी बता दूं कि सुगंधा जाति से ठाकुर है.’

इतना सुनते ही पापाजी आगबबूला हो उठे थे, ‘दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा? तुम्हारे बड़े भाई ने अपनी पसंद से शादी की तो तुम कैसे पीछे रहोगे. अरे एक बार यह तो सोचा होता कि हमारे भी कुछ अरमान होंगे. आजकल के बच्चों को जरा पढ़नेलिखने बाहर क्या भेज दो, उन के दिमाग सातवें आसमान पर पहुंच जाते हैं. मेरे जीतेजी तो यह ब्याह नहीं हो सकता.’

इस के बाद घर में तूफान सा आ गया था. प्रेरक भैया अवकाश समाप्त होने के बाद चले गए थे. इस के बाद जब अपने घुटने के दर्द के इलाज के लिए मम्मीजी और पापाजी हमारे पास दिल्ली आए तो प्रेरित से अपने भाई को समझने के लिए कहा.

प्रेरित बोले, ‘आप लोग समझते क्यों नहीं, अब जमाना बदल गया है. आप लोगों को भी अपनी सोच बदलनी पड़ेगी. यदि बिट्टू को कोई परेशानी नहीं है तो हम सब को भी कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. आखिर अपनी जिंदगी तो उसे ही जीनी है, न कि हमें. मेरी मानिए और अगले मुहूर्त में दोनों की शादी करवा दीजिए.’

‘हांहां, तुम तो उस का पक्ष लोगे ही. चिनगारी तो तुम्हीं ने लगाई थी न. तुम ने कम से कम अपनी जातिबिरादरी का तो ध्यान रखा था, यह तो और दस कदम आगे निकला,’ मम्मीजी ने हम दोनों पर ही कटाक्ष करते हुए कहा था.

इस के बाद कुछ दिनों तक घर में उन के ब्याह की चर्चाएं समाप्त सी हो गई थीं. एक वर्ष तक मानमनौवल होती रही. पर कहते हैं न, कि इश्क पर जोर नहीं. सो, आखिरकार बड़े बेमन से मम्मीपापाजी उन की शादी को राजी हुए.

पर रिटायरमैंट की सारी प्लानिंग को धराशायी होते देख अब दोनों ही घोर निराशा से घिर गए थे. बीमार तो पहले ही रहते थे, अब तनाव भी होने लगा था. सो गठिया, सर्वाइकल स्पौंडिलाइसिस जैसी अनेक बीमारियों ने भी आ घेरा था. सब से बड़ी समस्या यह थी कि मम्मीजी कहीं भी एडजस्ट नहीं कर पाती थीं. उन्हें कानपुर के सिवा कहीं अच्छा नहीं लगता था.

हम जब तक दिल्ली में थे, बमुश्किल 15 दिनों तक हमारे पास रह कर वापस चले जाते थे. अब यहां मुंबई के तो नाम से ही घबराने लगते हैं वे दोनों. यह सब सोचतेसोचते कब मेरी आंख लग गई, पता ही नहीं चला. अगले दिन शनिवार था, सो, थोड़े आराम से ही उठी. सुबह के काम निबटा कर बैठी ही थी कि इंदौर से मां का फोन आ गया, ‘‘कितनी बिजी हो गई है हमारी बिटिया कि मांपापा से बात करने की भी फुरसत नहीं.’’

‘‘अरे हां मां, रात को थक गई थी तो सो गई थी. आप बताइए तैयारी शुरू कर दी घूमने की. मां, वहां पहाड़ी एरिया है, स्पोर्ट्स शूज जरूर ले जाइएगा. और हां, अपना और पापा का एकएक स्वेटर भी रख लेना, ठंडक रहेगी वहां.’’

‘‘अरे हां, रचना, सब रख लूंगी. तुम लोग अपना ध्यान रखो और हां, हम दोनों आज अपने ग्रुप के साथ मांडू घूमने जा रहे हैं. नाइट स्टे भी वहीं करेंगे. हो सकता है वहां नैटवर्क न मिल पाए, सो तुम परेशान न होना. परसों लौट कर बात करते हैं,’’ कह कर मां ने फोन रख दिया.

जब से पापा रिटायर हुए हैं, उन का अपने यारदोस्तों का एक ग्रुप है और सभी एकसाथ घूमतेफिरते और लाइफ को एंजौय करते हैं. मैं सुबह से नोटिस कर रही थी कि जब से मम्मीजी का फोन आया है, प्रेरित बहुत उदास और चुप हैं मानो उन के मन में कुछ आत्ममंथन चल रहा हो. अभी भी मेरी बगल में टीवी खोल कर बैठे हैं पर मन कहीं और है. सो, मैं ने उन्हें छेड़ते हुए कहा, ‘‘क्या हुआ, आज छुट्टी वाले दिन भी शक्ल पर बारह क्यों बजा रखे हैं?’’

‘‘कुछ नहीं. बस, ऐसे ही. कल से दिमाग कुछ काम नहीं कर रहा. कल से मांबाबूजी के शब्द ही कानों में गूंज रहे हैं. मैं उन की दकियानूसी सोच से परिचित हूं. यह भी जानता हूं कि वे आज भी अपने मनमुताबिक जीना पसंद करते हैं पर यह भी कटु सत्य है कि वे मेरे मातापिता हैं और मुझे यहां तक पहुंचाने में उन्होंने एड़ीचोटी का जोर लगाया है पर आज जब वे तकलीफ में हैं तो मैं बेबस हूं. मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं और कैसे करूं. उन के लिए कुछ न कर पाने का गिल्ट मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रहा है,’’ कहतेकहते प्रेरित की आंखें भर आईं.

‘‘ओह, इतनी सी बात है. सच कहूं तो मैं खुद तुम से इस बारे में बात करना चाह रही थी. प्रेरित, मातापिता चाहे तुम्हारे हों या मेरे, आखिर वे हमारे मातापिता हैं और आज हम जो कुछ भी हैं अपने मातापिता की बदौलत ही हैं. इसलिए आज उन्हें जब हमारी जरूरत है तो उन्हें अकेले छोड़ना सही नहीं है. यों भी इतने बड़े फ्लैट में हम 2 ही तो रहते हैं. आरुषी के जाने के बाद पूरे घर में हमेशा सन्नाटा पसरा रहता है और औफिस से आने के बाद घर मानो काटने को दौड़ता है. वे रहेंगे तो घर भराभरा रहेगा, तुम और मैं टैंशनफ्री रहेंगे और घर उन की आपस की नोंकझंक से गुलजार रहेगा.’’

‘‘पर क्या वे यहां एडजस्ट हो पाएंगे?’’ प्रेरित ने कुछ सशंकित होते हुए कहा.

‘‘प्रेरित, इस उम्र में उन्हें नहीं, हम दोनों को एडजस्ट करना होगा और जब हम दोनों उन के साथ कंफर्टेबल और एडजस्ट हो जाएंगे तो वे तो खुदबखुद ही एडजस्ट हो जाएंगे. तुम कानपुर जा कर उन्हें ले आओ. यह सही है कि वे आने में आनाकानी करेंगे पर उन की सही देखभाल भी यहीं हो पाएगी, यह भी कटु सत्य है.

‘‘शुरुआत में हम दोनों मिल कर कुछ छुट्टियां ले लेंगे और फिर पूरे दिन के लिए एक मेड लगा देंगे जिस से उन के लिए रहना थोड़ा आसान हो जाएगा. सुबहशाम उन्हें नीचे ले चला करेंगे, वीकैंड पर उन्हें अपने साथ घुमाने ले चला करेंगे. फिर देखना, धीरेधीरे उन्हें अच्छा लगने लगेगा. यहां अच्छे डाक्टर्स भी हैं जिन से उन का इलाज करवा देंगे. तुम आज ही फ्लाइट से बुकिंग कर लो और उन्हें ले आओ. उन के यहां आ जाने से हम दोनों भी अपने काम पर फोकस कर पाएंगे.’’ मैं ने जब प्रेरित के सामने यह प्रस्ताव रखा तो प्रेरित खुश हो कर बोले, ‘‘रचना, ले तो मैं आऊंगा, बस, यहां तुम संभाल लेना.’’

‘‘तुम चिंता मत करो. बस, उन्हें लाने के बारे में सोचो,’’ मैं ने यह कहा तो प्रेरित तुरंत अपना लैपटौप खोल कर बैठ गए और बोले, ‘‘मैं अभी बुकिंग करता हूं. मुझे तुम पर हमेशा इसीलिए गर्व होता है क्योंकि तुम बड़ी से बड़ी समस्या को चुटकियों में हल कर देती हो. देखो न, तुम ने तो दो मिनट में मेरी इतनी बड़ी समस्या हल कर दी. मैं अब खुद को इतना हलका महसूस कर रहा हूं कि बता नहीं सकता.’’

‘‘प्रेरित, मातापिता चाहे मेरे हों या तुम्हारे, बुढ़ापे में उन की जरूरतों को समझना और उन के अनुसार खुद को बदलना हमारी जिम्मेदारी है न कि उन की. हां, एक बात तो माननी पड़ेगी कि यहां पर मेरे मम्मीपापा का रिटायरमैंट प्लान सक्सैस हो गया,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘इस में तो कोई शक नहीं. और हां, हमें भी अभी से उन का प्लान ही फौलो करना चाहिए,’’ प्रेरित ने यह कहते हुए मुझे अपने आलिंगन में भर लिया और इस के बाद हम दोनों ही अपनीअपनी तैयारियों में जुट गए. प्रेरित मम्मीजी, पापाजी को कानपुर से मुंबई लाने की और मैं खुद में और घर में कुछ बदलावों की.

आरोही : विज्ञान पर भरोसा करती एक डॉक्टर की कहानी – भाग 3

“आरोही, तुम किचन में जा कर देख नहीं सकतीं कि क्या खाना बना है. आज कामवाली ने इतना घी, मसाला, मिर्च डाल दिया है कि खाना मुश्किल हो गया. दही मांगा तो घर में दही भी नहीं था. खाना एकदम ठंडा रख देती है. रोटी कभी कच्ची तो कभी जली, तो कभी ऐसी कि चबाना भी मुश्किल हो जाता है… एक टाइम तो घर में खाता हूं, वह भी कभी ढंग का नहीं मिलता,” कहते हुए वह खड़ा हो गया था.

दिन पर दिन अविरल का गुस्सा बढ़ता जा रहा था और व्यवहार में रुखापन आता जा रहा था. उस ने भी निश्चय कर लिया था कि जितना उसे बेड़ियों में जकड़ने की कोशिश करेगा, उतना ही वह ईंट का जवाब पत्थर से देगी. साथ में रहना है तो ठीक से रहो नहीं तो अलग हो जाओ. लेकिन वह अपनी तरफ से रिश्ता बनाए रखने का भरपूर प्रयास कर रही थी.

कुछ दिनों तक तो उसने गृहिणी की तरह उसे और मांजी को गरम रोटियां खिलाईं लेकिन कुछ दिनों बाद उसे लगने लगा कि शादी कर के वह लोहे की जंजीर के बंधन में जकड़ कर रह गई है. वह अपने मम्मीपापा से शिकायत कर नहीं सकती थी. उन्होंने पहले ही कहा था कि अविरल का स्वभाव गुस्सैल है. तुम्हें उस के साथ निभाना मुश्किल होगा. अविरल का क्रोध शांत करने के लिए उस का मौन आग पर जल के छींटे के समान होता और वह शांत हो कर उस की शिकायतों को दूर करने की कोशिश भी करती.

वह अपनी खुशी अब अपने प्रोफैशन में ढूंढ़ती और घरेलू उलझनों को अपने घर पर ही छोड़ जाती थी. इस बीच वह एक नन्हीं परी की मां बन गई थी. अब परी को ले कर हर समय अविरल उस पर हावी होने की कोशिश करने लगा. यदि वह जवाब दे देती तो अनबोला साध लेता. फिर उस की पहल पर ही बोलचाल शुरू होती. वह इतनी हंसनेखिलखिलाने वाली स्वभाव की थी, मगर अविरल के साथ रह कर तो वह हंसना ही भूल गई थी. दोनों के बीच में अकसर कई दिनों तक बोलचाल बंद रहती. वह कई बार शादी तोड़ देने के बारे में सोचती पर बेटी परी के बारे में सोच कर और अपने अकेलेपन की याद कर के वह चुप रह जाती.

एक दिन अविरल के दोस्त अन्वय के बच्चे की बर्थडे पार्टी थी. वहां पर जब ड्रिंक के लिए उस ने मना कर दिया तो अविरल सब के सामने उस पर चिल्ला पड़े. अन्वय बारबार 1 पैग लेने की जिद करते जा रहे थे… वह सब पहले ही कई पैग लगा चुके थे. वह नाराज हो कर वहां से घर लौट कर आ गई.

अविरल घर आ कर उस पर चिल्लाने लगे,” यदि एक छोटा सा पैग ले लेतीं तो क्या हो जाता?”

वह कुछ नहीं बोली. गुस्सा तो बहुत आ रहा था कि जब मालूम है कि वह ड्रिंक नहीं करती तो क्यों जबरदस्ती कर रहे थे. वह मौन रह कर अपना काम करती और नन्हीं परी के साथ अपनी खुशियां ढूंढ़ती. वह कई बार सोचती कि आखिर अविरल ऐसा व्यवहार क्यों करता है?

धीरेधीरे उसे समझ में आया कि अविरल के मन में उस की बढ़ती लोकप्रियता के कारण हीनभावना आती जा रही है. चूंकि कोविड के कारण उस की कंपनी घाटे में चल रही थी और कंपनी में छंटनी चल रही थी इसलिए उस के सिर पर हर समय नौकरी जाने की तलवार लटकती रहती थी.

वह उस की परेशानी को समझती और पत्नी का फर्ज निभाने की कोशिश करती रहती पर ताली एक हाथ से नहीं बजती. अविरल का पुरुषोचित अहंकार बढ़ता जा रहा था.

उन दोनों के बीच की दूरियां बढ़ती जा रही थीं. उसे देर रात तक पढ़ने का शौक था और उस के प्रोफैशन के लिए भी पढ़ना जरूरी था. अविरल के लिए उस की अंकशायिनी बनने का मन ही नहीं होता. इसलिए भी उस का फ्रस्ट्रैशन बढ़ता जा रहा था.

समय बीतने के साथवह मांजी और अविरल के स्वभाव और खानपान को अच्छी तरह से समझ चुकी थी. वह मांजी की दवा वगैरह का पूरा खयाल रखती और उस ने एक फुलटाइम मेड रख दी थी. सुबहशाम मांजी के पास थोड़ी देर बैठ कर उन का हालचाल पूछती. अब मांजी उस से बहुत खुश रहतीं. वह कोशिश करती कि अविरल के पसंद का खाना बनवाए. संभव होता तो वह डाइनिंग टेबिल पर उसे खाना भी सर्व कर देती. लेकिन वह महसूस करती थी कि अविरल की अपेक्षाएं बढ़ती ही जा रही हैं और शादी उस के कैरियर में बाधा बनती जा रही है.

उस का पुरुषोचित अहम बढ़ता ही जा रहा था. वह उस पर अधिकार जमा कर उस पर शासन करने की कोशिश करने लगा था. बातबेबात क्रोधित हो कर चीखनाचिल्लाना शुरू कर दिया था.

शुरू के दिनों में तो वह उस की बातों पर ध्यान देती और उस की पसंद को ध्यान में रख कर काम करने की कोशिश करती पर जब उस के हर काम में टोकाटाकी और ज्यादा दखलंदाजी होने लगी, तो उस ने चुप रह प्रतिकार करना शरू कर दिया था. अपने मन के कपड़े पहनती, अपने मन का खाती. मांबेटा दोनों को उस ने नौकरों के जिम्मे कर दिया था.

यदि अविरल कोई शिकायत करते तो साफ शब्दों में कह देती,”मेरे पास इन कामों के लिए फुरसत नहीं है.”

यदि श्यामा सही से काम नहीं करती तो अविरल कहते कि औनलाइन दूसरी बुला लो. लेकिन उस के पास इन झंझटों में पड़ने का टाइम भी नहीं है और ताकत भी नहीं… वह कहती कि कोई भी व्यक्ति पूरा परफैक्ट नहीं होता, जब मैं इतनी कोशिश कर के तुम लोगों की आशाओं पर खरी नहीं उतरी तो बेचारी श्यामा तो…” कहती हुई बैग उठा कर घर निकल गई थी.”

वह मन ही मन सोचती कि पति बनते ही सारे पुरुष एकजैसे ही बन जाते हैं. स्त्री के प्रति उन का नजरिया नहीं बदलता है. वह स्त्री पर अपना अधिकार समझ कर उस पर एकछत्र शासन करना चाहता है. पत्नी के लिए लकीर खींचने का हक पति को क्यों दिया जाए? आखिर पत्नी के लिए सीमाएं तय करने वाले ये पति कौन होते हैं? दोनों समान रूप से शिक्षित और परिपक्व होते हैं इसलिए पत्नी के लिए कोई भी फैसला लेने का अधिकार पति का कैसे हो सकता है?
इन्हीं खयालों में डूबी हुई वह अपनी दुनिया में आगे बढ़ती जा रही थी. उस की व्यस्तता बढ़ती जा रही थी. परी भी बड़ी होती जा रही थी. वह स्कूल जाने लगी थी. वह कोशिश कर के अपनी शाम खाली रखती. उस समय बेटी के साथ हंसतीखिलखिलाती, उसे प्यार से पढ़ाती. वह अपनी दुनिया में मस्त रहने लगी थी.
चूंकि वह सर्जन थी, उस का डायग्नोसिस और सर्जरी में हाथ बहुत सधा हुआ था. वह औनलाइन भी मरीजों को सलाह देती. अब वह मुंबई की अच्छी डाक्टरों में गिनी जाने लगी थी.

उसे अकसर कौन्फ्रैंस में लैक्चर के लिए बुलाया जाता. उसे कई बार कौन्फ्रैंस के लिए विदेश भी जाना पड़ता और अन्य शहरों में भी अकसर जानाआना लगा रहता था. डा. निर्झर कालेज में उन से जूनियर थे. वे सर्जरी में कई बार उस के साथ रहते थे. इसी सिलसिले में उस के पास आया करते थे. मस्त स्वभाव के थे. अकसर उन लोगों के साथ खाना खाने भी बैठ जाया करते थे. वे देर रात तक काम के सिलसिले में बैठे रहते और उस के साथ ज्यादातर दौरों पर भी जाया करते. डाक्टर निर्झर उसी की तरह हंसोड़ और मस्त स्वभाव के थे. वह उन के संग रहती तो लगता कि उस के सपनों को पंख लग गए हैं. निर्झर के साथ बात कर के उस का मूड फ्रैश हो जाता और उस के मन को खुशी और मानसिक संतुष्टि मिलती.

डा. निर्झर की बातों की कशिश के आकर्षण में वह बहती जा रही थी. वे भी उस के हंसमुख व सरल स्वभाव और सादगी के कारण आकर्षण महसूस कर रहे थे. दोनों के बीच में दोस्ती के साथ आत्मिक रिश्ता पनप उठा था. दोनों काम की बात करतेकरते अपने जीवन के पन्ने भी एकदूसरे के साथ खोलने लगे थे.
निर्झर से नजदीकियां बढ़ती हुई अंतरंग रिश्तों में बदल गई थी. यही कारण था कि अविरल और उस के रिश्ते के बीच दूरियां बढ़ती जा रही थीं.

निर्झर का साथ पा कर उसे ऐसा महसूस होने लगा जैसे उस के जीवन से पतझड़ बीत गया हो और वसंत के आगमन से दोबारा खुशीरूपी कलियों ने प्रस्फुटित हो कर उस के जीवन को फिर गुलजार कर दिया हो. वह दिनभर निर्झर के खयालों में खोई रहती. वह उस से मिलने के मौके तलाशती हुई उस के केबिन में पहुंच जाती.

निर्झर उस से उम्र में छोटा था. अब वह फिर से पार्लर जा कर कभी हेयरसैट करवाती तो कभी कलर करवाती. उस की वार्डरोब में नई ड्रेसैज जगह बनाने लगी थीं. यहां तक कि उस की बेटी भी उस की ओर अजीब निगाहों से देखती कि मम्मी को क्या हो गया है. अविरल शांत भाव से उस के सारे क्रियाकलापों को देखते रहते पर मुंह से कुछ नहीं कहते. वह अपनी दुनिया में ही खोई रहती. घर नौकरों के जिम्मे हो गया था. उस के पास बस एक ही बहाना रहता कि काम बहुत है. बेटी परी के लिए भी अब उस के पास फुरसत नहीं रहती थी.

समयचक्र तो गतिमान रहता ही है. लड़तेझगड़ते 10 साल बीत गए थे. वह अपनी दुनिया में खोई हुई थी.
उस ने ध्यान ही नहीं दिया था कि अविरल कब से उस की पसंद का नाश्ता खाने लगे थे. अपना पसंदीदा औमलेट खाना छोड़ दिया था.

सुबहसवेरे उठते ही उस का मनपसंद म्यूजिक बजा देते और कोशिश करते कि उसे किसी तरह से टैंशन न हो. कई बार उस के लिए खुद ही कौफी बना कर बैडरूम में ले आते क्योंकि वह हमेशा से रात में कौफी पीना पसंद करती थी. अविरल की आंखों में उस के लिए प्यार और प्रशंसा का भाव दिखाई पड़ता.

एक कौन्फ्रैंस के सिलसिले में उसे 4 दिनों के लिए चैन्नई जाना था. वह बहुत उत्साहित थी. वहां के लिए उस ने खूब शौपिंग भी की थी. वह बैग लगाने के बाद यों ही मेल चेक करने लगी. निर्झर की मेल थी. उस ने यूएस की जौब के लिए अप्लाई किया था. उस ने बताया कि वह अपने वीजा इंटरव्यू के लिए दिल्ली जा रहा है. आरोही को बाद में पता लगा कि निर्झर यहां पहले ही रिजाइन कर चुका था.

‘उफ, कितना छुपा रुस्तम निकला, जब तक चाहा उस को यूज करता रहा और टाइमपास करता रहा और चुपचाप नौ दो ग्यारह हो गया. वह निराशा में डूब गई थी. उदास मन से बैड पर लेट गई थी. उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह बीमारी का बहाना कर के उन लोगों से अपने न आ पाने के लिए माफी मांग लेगी लेकिन पशोपेश भी था कि वह भी नहीं जाएगी और निर्झर तो पहले ही नहीं गया होगा. इस से वहां परेशानी हो जाएगी. वह बुझे मन से गुमसुम मायूस हो कर बैड पर लेट गई थी. उसे झपकी लग गई थी. जब आंख खुली तो कमरे में घुप्प अंधेरा छाया हुआ था.

अविरल औफिस से आए तो उसे लेटा देख परेशान हो उठे, “डार्लिंग, ऐवरीथिंग इज ओके न?” वह जवाब भी नहीं दे पाई थी कि उस ने देखा कि अविरल उस के सामने कौफी का प्याला ले कर खड़ा था…”

वह तेजी से उठी और बोली, “अरे, तुम मेरे लिए कौफी…”

“तो क्या हुआ डार्लिंग, इट्स ओके…”
वह अपने मन को कौन्फ्रैंस के लिए तैयार कर ही रही थी कि तभी कमरे में परी आ गई थी. बैग देख कर बोली,”मौम, कहीं जा रही हो क्या?”
वह गुमसुमसी थी कुछ समझ नहीं पा रही थी कि क्या कहे.

“पापा बता रहे थे कि आप चैन्नई, एक कौन्फ्रैंस में जा रही हैं.”

वह चौंक पड़ी थी, अविरल से तो उस की कोई बात नहीं हुई. उन्हें उस के प्रोग्राम के बारे में कैसे पता है?

“मौम, मेरी छुट्टियां हैं. पापा भी फ्री हैं. चलिए न, फैमिली ट्रिप पर चलते हैं.आप को पूरे समय कौन्फ्रैंस में थोड़े ही रहना होता है…

“मौम प्लीज, हां कर दीजिए, हमलोग कब से साथ में किसी फैमिली ट्रिप पर नहीं गए हैं,” वह उस से लिपट गई थी.

अविरल भी आशा भरी निगाहों से उस की ओर देख कर उस की हां का इंतजार कर रहा था. परी झटपट उस के बैग के सामान को उलटपुलट कर देखने लगी, वह मना करती, उस के पहले ही उस ने मां की सैक्सी सी पिंक नाइटी निकाल ली थी. वह शर्म से डूब गई थी कि अब क्या कहे…

“पापा, मौम ने तो पहले से आप के साथ ही जाने का प्रोग्राम बना रखा है.”

उस की अपनी बेटी ने आज उसे इस अजीब सी स्थिति से उबार लिया था.
कहीं दूर पर गाना बज रहा था, ‘मेरे दिल में आज क्या है, तू कहे तो मैं बता दूं…’

एक अरसे के बाद उस ने आगे बढ़ कर अविरल और परी दोनों को अपने आगोश में भर लिया था. दोनों की आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे.

“आरोही, हमलोग इस बार महाबलीपुरम भी चलेंगे,” अविरल खुश हो कर बोले.

“यसयस…” कहते हुए प्यार से उस ने पत्नी को अपने आगोश में ले लिया था.

आज अविरल के प्यारभरे चुंबन ने उस के दिल को तरंगित कर दिया था.
परी तेजी से उन से अलग हो कर भागती हुई अपनी फ्रैंड्स को अपनी चैन्नई ट्रिप के बारे में बताने में मशगूल हो गई थी.

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