हाल ही में रिटायर हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल ने बीबीसी को दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा कि जब बहुमत वाली सरकार होती है तो कोर्ट पर हमेशा पुशबैक (दबाव) थोड़ा ज्यादा होता है. 1950 के बाद से ऐसा कई बार हुआ है. 1975 से 1977 के दौरान भी न्यायपालिका पर ऐसे सवाल उठाए गए.

उन्होंने कहा- ‘जब कोई पार्टी ज्यादा बहुमत से आए तो उसे लगता है कि उसे पब्लिक मैंडेट (जनता का समर्थन) है. तो, उस पार्टी वाले सोचते हैं कि न्यायपालिका हमारे काम में दखल क्यों दे रही है? इस से न्यायपालिका की तरफ थोड़ा पुशबैक ज़्यादा हो जाता है. यह खींचतान हमेशा रही है और रहेगी.

उल्लेखनीय है कि सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ के बाद जस्टिस किशन कौल सुप्रीम कोर्ट के सब से सीनियर जजों में से एक रहे. वे 25 दिसंबर, 2023 को रिटायर हुए हैं. जस्टिस किशन कौल ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में 6 साल 10 महीने से अधिक समय तक सेवा दी. इस दौरान उन्होंने कई अहम फैसले भी दिए और कई अहम फैसले देने वाली संवैधानिक पीठ का भी हिस्सा रहे. जस्टिस कौल ने इंटरव्यू के दौरान अपने कार्यकाल में हुए कुछ अहम फैसलों, जैसे- जजों की नियुक्ति, समलैंगिक विवाह और अनुच्छेद 370 पर आए फैसलों का बचाव भी किया और कोर्ट पर सरकार के दबाव को स्वीकारा भी.

बड़े मामलों में फैसला देते समय न्यायपालिका दबाव में रहती है, यह बात चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की भी उस बात से स्पष्ट है जिस में उन्होंने कहा कि राममंदिर निर्माण के पक्ष में निर्णय सुनाने वाले 5 न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से तय किया था कि इस में फैसला लिखने वाले किसी न्यायाधीश के नाम का उल्लेख नहीं किया जाएगा.
9 नवंबर, 2019 को, एक सदी से भी अधिक समय से चले आ रहे इस विवादास्पद मुद्दे का निबीटारा करते हुए तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली 5 न्यायाधीशों की पीठ ने मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया था और अयोध्या में मसजिद के लिए 5 एकड़ वैकल्पिक भूमि देने का भी निर्णय सुनाया था.

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