“आरोही, तुम किचन में जा कर देख नहीं सकतीं कि क्या खाना बना है. आज कामवाली ने इतना घी, मसाला, मिर्च डाल दिया है कि खाना मुश्किल हो गया. दही मांगा तो घर में दही भी नहीं था. खाना एकदम ठंडा रख देती है. रोटी कभी कच्ची तो कभी जली, तो कभी ऐसी कि चबाना भी मुश्किल हो जाता है… एक टाइम तो घर में खाता हूं, वह भी कभी ढंग का नहीं मिलता,” कहते हुए वह खड़ा हो गया था.
दिन पर दिन अविरल का गुस्सा बढ़ता जा रहा था और व्यवहार में रुखापन आता जा रहा था. उस ने भी निश्चय कर लिया था कि जितना उसे बेड़ियों में जकड़ने की कोशिश करेगा, उतना ही वह ईंट का जवाब पत्थर से देगी. साथ में रहना है तो ठीक से रहो नहीं तो अलग हो जाओ. लेकिन वह अपनी तरफ से रिश्ता बनाए रखने का भरपूर प्रयास कर रही थी.
कुछ दिनों तक तो उसने गृहिणी की तरह उसे और मांजी को गरम रोटियां खिलाईं लेकिन कुछ दिनों बाद उसे लगने लगा कि शादी कर के वह लोहे की जंजीर के बंधन में जकड़ कर रह गई है. वह अपने मम्मीपापा से शिकायत कर नहीं सकती थी. उन्होंने पहले ही कहा था कि अविरल का स्वभाव गुस्सैल है. तुम्हें उस के साथ निभाना मुश्किल होगा. अविरल का क्रोध शांत करने के लिए उस का मौन आग पर जल के छींटे के समान होता और वह शांत हो कर उस की शिकायतों को दूर करने की कोशिश भी करती.
वह अपनी खुशी अब अपने प्रोफैशन में ढूंढ़ती और घरेलू उलझनों को अपने घर पर ही छोड़ जाती थी. इस बीच वह एक नन्हीं परी की मां बन गई थी. अब परी को ले कर हर समय अविरल उस पर हावी होने की कोशिश करने लगा. यदि वह जवाब दे देती तो अनबोला साध लेता. फिर उस की पहल पर ही बोलचाल शुरू होती. वह इतनी हंसनेखिलखिलाने वाली स्वभाव की थी, मगर अविरल के साथ रह कर तो वह हंसना ही भूल गई थी. दोनों के बीच में अकसर कई दिनों तक बोलचाल बंद रहती. वह कई बार शादी तोड़ देने के बारे में सोचती पर बेटी परी के बारे में सोच कर और अपने अकेलेपन की याद कर के वह चुप रह जाती.
एक दिन अविरल के दोस्त अन्वय के बच्चे की बर्थडे पार्टी थी. वहां पर जब ड्रिंक के लिए उस ने मना कर दिया तो अविरल सब के सामने उस पर चिल्ला पड़े. अन्वय बारबार 1 पैग लेने की जिद करते जा रहे थे… वह सब पहले ही कई पैग लगा चुके थे. वह नाराज हो कर वहां से घर लौट कर आ गई.
अविरल घर आ कर उस पर चिल्लाने लगे,” यदि एक छोटा सा पैग ले लेतीं तो क्या हो जाता?”
वह कुछ नहीं बोली. गुस्सा तो बहुत आ रहा था कि जब मालूम है कि वह ड्रिंक नहीं करती तो क्यों जबरदस्ती कर रहे थे. वह मौन रह कर अपना काम करती और नन्हीं परी के साथ अपनी खुशियां ढूंढ़ती. वह कई बार सोचती कि आखिर अविरल ऐसा व्यवहार क्यों करता है?
धीरेधीरे उसे समझ में आया कि अविरल के मन में उस की बढ़ती लोकप्रियता के कारण हीनभावना आती जा रही है. चूंकि कोविड के कारण उस की कंपनी घाटे में चल रही थी और कंपनी में छंटनी चल रही थी इसलिए उस के सिर पर हर समय नौकरी जाने की तलवार लटकती रहती थी.
वह उस की परेशानी को समझती और पत्नी का फर्ज निभाने की कोशिश करती रहती पर ताली एक हाथ से नहीं बजती. अविरल का पुरुषोचित अहंकार बढ़ता जा रहा था.
उन दोनों के बीच की दूरियां बढ़ती जा रही थीं. उसे देर रात तक पढ़ने का शौक था और उस के प्रोफैशन के लिए भी पढ़ना जरूरी था. अविरल के लिए उस की अंकशायिनी बनने का मन ही नहीं होता. इसलिए भी उस का फ्रस्ट्रैशन बढ़ता जा रहा था.
समय बीतने के साथवह मांजी और अविरल के स्वभाव और खानपान को अच्छी तरह से समझ चुकी थी. वह मांजी की दवा वगैरह का पूरा खयाल रखती और उस ने एक फुलटाइम मेड रख दी थी. सुबहशाम मांजी के पास थोड़ी देर बैठ कर उन का हालचाल पूछती. अब मांजी उस से बहुत खुश रहतीं. वह कोशिश करती कि अविरल के पसंद का खाना बनवाए. संभव होता तो वह डाइनिंग टेबिल पर उसे खाना भी सर्व कर देती. लेकिन वह महसूस करती थी कि अविरल की अपेक्षाएं बढ़ती ही जा रही हैं और शादी उस के कैरियर में बाधा बनती जा रही है.
उस का पुरुषोचित अहम बढ़ता ही जा रहा था. वह उस पर अधिकार जमा कर उस पर शासन करने की कोशिश करने लगा था. बातबेबात क्रोधित हो कर चीखनाचिल्लाना शुरू कर दिया था.
शुरू के दिनों में तो वह उस की बातों पर ध्यान देती और उस की पसंद को ध्यान में रख कर काम करने की कोशिश करती पर जब उस के हर काम में टोकाटाकी और ज्यादा दखलंदाजी होने लगी, तो उस ने चुप रह प्रतिकार करना शरू कर दिया था. अपने मन के कपड़े पहनती, अपने मन का खाती. मांबेटा दोनों को उस ने नौकरों के जिम्मे कर दिया था.
यदि अविरल कोई शिकायत करते तो साफ शब्दों में कह देती,”मेरे पास इन कामों के लिए फुरसत नहीं है.”
यदि श्यामा सही से काम नहीं करती तो अविरल कहते कि औनलाइन दूसरी बुला लो. लेकिन उस के पास इन झंझटों में पड़ने का टाइम भी नहीं है और ताकत भी नहीं… वह कहती कि कोई भी व्यक्ति पूरा परफैक्ट नहीं होता, जब मैं इतनी कोशिश कर के तुम लोगों की आशाओं पर खरी नहीं उतरी तो बेचारी श्यामा तो…” कहती हुई बैग उठा कर घर निकल गई थी.”
वह मन ही मन सोचती कि पति बनते ही सारे पुरुष एकजैसे ही बन जाते हैं. स्त्री के प्रति उन का नजरिया नहीं बदलता है. वह स्त्री पर अपना अधिकार समझ कर उस पर एकछत्र शासन करना चाहता है. पत्नी के लिए लकीर खींचने का हक पति को क्यों दिया जाए? आखिर पत्नी के लिए सीमाएं तय करने वाले ये पति कौन होते हैं? दोनों समान रूप से शिक्षित और परिपक्व होते हैं इसलिए पत्नी के लिए कोई भी फैसला लेने का अधिकार पति का कैसे हो सकता है?
इन्हीं खयालों में डूबी हुई वह अपनी दुनिया में आगे बढ़ती जा रही थी. उस की व्यस्तता बढ़ती जा रही थी. परी भी बड़ी होती जा रही थी. वह स्कूल जाने लगी थी. वह कोशिश कर के अपनी शाम खाली रखती. उस समय बेटी के साथ हंसतीखिलखिलाती, उसे प्यार से पढ़ाती. वह अपनी दुनिया में मस्त रहने लगी थी.
चूंकि वह सर्जन थी, उस का डायग्नोसिस और सर्जरी में हाथ बहुत सधा हुआ था. वह औनलाइन भी मरीजों को सलाह देती. अब वह मुंबई की अच्छी डाक्टरों में गिनी जाने लगी थी.
उसे अकसर कौन्फ्रैंस में लैक्चर के लिए बुलाया जाता. उसे कई बार कौन्फ्रैंस के लिए विदेश भी जाना पड़ता और अन्य शहरों में भी अकसर जानाआना लगा रहता था. डा. निर्झर कालेज में उन से जूनियर थे. वे सर्जरी में कई बार उस के साथ रहते थे. इसी सिलसिले में उस के पास आया करते थे. मस्त स्वभाव के थे. अकसर उन लोगों के साथ खाना खाने भी बैठ जाया करते थे. वे देर रात तक काम के सिलसिले में बैठे रहते और उस के साथ ज्यादातर दौरों पर भी जाया करते. डाक्टर निर्झर उसी की तरह हंसोड़ और मस्त स्वभाव के थे. वह उन के संग रहती तो लगता कि उस के सपनों को पंख लग गए हैं. निर्झर के साथ बात कर के उस का मूड फ्रैश हो जाता और उस के मन को खुशी और मानसिक संतुष्टि मिलती.
डा. निर्झर की बातों की कशिश के आकर्षण में वह बहती जा रही थी. वे भी उस के हंसमुख व सरल स्वभाव और सादगी के कारण आकर्षण महसूस कर रहे थे. दोनों के बीच में दोस्ती के साथ आत्मिक रिश्ता पनप उठा था. दोनों काम की बात करतेकरते अपने जीवन के पन्ने भी एकदूसरे के साथ खोलने लगे थे.
निर्झर से नजदीकियां बढ़ती हुई अंतरंग रिश्तों में बदल गई थी. यही कारण था कि अविरल और उस के रिश्ते के बीच दूरियां बढ़ती जा रही थीं.
निर्झर का साथ पा कर उसे ऐसा महसूस होने लगा जैसे उस के जीवन से पतझड़ बीत गया हो और वसंत के आगमन से दोबारा खुशीरूपी कलियों ने प्रस्फुटित हो कर उस के जीवन को फिर गुलजार कर दिया हो. वह दिनभर निर्झर के खयालों में खोई रहती. वह उस से मिलने के मौके तलाशती हुई उस के केबिन में पहुंच जाती.
निर्झर उस से उम्र में छोटा था. अब वह फिर से पार्लर जा कर कभी हेयरसैट करवाती तो कभी कलर करवाती. उस की वार्डरोब में नई ड्रेसैज जगह बनाने लगी थीं. यहां तक कि उस की बेटी भी उस की ओर अजीब निगाहों से देखती कि मम्मी को क्या हो गया है. अविरल शांत भाव से उस के सारे क्रियाकलापों को देखते रहते पर मुंह से कुछ नहीं कहते. वह अपनी दुनिया में ही खोई रहती. घर नौकरों के जिम्मे हो गया था. उस के पास बस एक ही बहाना रहता कि काम बहुत है. बेटी परी के लिए भी अब उस के पास फुरसत नहीं रहती थी.
समयचक्र तो गतिमान रहता ही है. लड़तेझगड़ते 10 साल बीत गए थे. वह अपनी दुनिया में खोई हुई थी.
उस ने ध्यान ही नहीं दिया था कि अविरल कब से उस की पसंद का नाश्ता खाने लगे थे. अपना पसंदीदा औमलेट खाना छोड़ दिया था.
सुबहसवेरे उठते ही उस का मनपसंद म्यूजिक बजा देते और कोशिश करते कि उसे किसी तरह से टैंशन न हो. कई बार उस के लिए खुद ही कौफी बना कर बैडरूम में ले आते क्योंकि वह हमेशा से रात में कौफी पीना पसंद करती थी. अविरल की आंखों में उस के लिए प्यार और प्रशंसा का भाव दिखाई पड़ता.
एक कौन्फ्रैंस के सिलसिले में उसे 4 दिनों के लिए चैन्नई जाना था. वह बहुत उत्साहित थी. वहां के लिए उस ने खूब शौपिंग भी की थी. वह बैग लगाने के बाद यों ही मेल चेक करने लगी. निर्झर की मेल थी. उस ने यूएस की जौब के लिए अप्लाई किया था. उस ने बताया कि वह अपने वीजा इंटरव्यू के लिए दिल्ली जा रहा है. आरोही को बाद में पता लगा कि निर्झर यहां पहले ही रिजाइन कर चुका था.
‘उफ, कितना छुपा रुस्तम निकला, जब तक चाहा उस को यूज करता रहा और टाइमपास करता रहा और चुपचाप नौ दो ग्यारह हो गया. वह निराशा में डूब गई थी. उदास मन से बैड पर लेट गई थी. उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह बीमारी का बहाना कर के उन लोगों से अपने न आ पाने के लिए माफी मांग लेगी लेकिन पशोपेश भी था कि वह भी नहीं जाएगी और निर्झर तो पहले ही नहीं गया होगा. इस से वहां परेशानी हो जाएगी. वह बुझे मन से गुमसुम मायूस हो कर बैड पर लेट गई थी. उसे झपकी लग गई थी. जब आंख खुली तो कमरे में घुप्प अंधेरा छाया हुआ था.
अविरल औफिस से आए तो उसे लेटा देख परेशान हो उठे, “डार्लिंग, ऐवरीथिंग इज ओके न?” वह जवाब भी नहीं दे पाई थी कि उस ने देखा कि अविरल उस के सामने कौफी का प्याला ले कर खड़ा था…”
वह तेजी से उठी और बोली, “अरे, तुम मेरे लिए कौफी…”
“तो क्या हुआ डार्लिंग, इट्स ओके…”
वह अपने मन को कौन्फ्रैंस के लिए तैयार कर ही रही थी कि तभी कमरे में परी आ गई थी. बैग देख कर बोली,”मौम, कहीं जा रही हो क्या?”
वह गुमसुमसी थी कुछ समझ नहीं पा रही थी कि क्या कहे.
“पापा बता रहे थे कि आप चैन्नई, एक कौन्फ्रैंस में जा रही हैं.”
वह चौंक पड़ी थी, अविरल से तो उस की कोई बात नहीं हुई. उन्हें उस के प्रोग्राम के बारे में कैसे पता है?
“मौम, मेरी छुट्टियां हैं. पापा भी फ्री हैं. चलिए न, फैमिली ट्रिप पर चलते हैं.आप को पूरे समय कौन्फ्रैंस में थोड़े ही रहना होता है…
“मौम प्लीज, हां कर दीजिए, हमलोग कब से साथ में किसी फैमिली ट्रिप पर नहीं गए हैं,” वह उस से लिपट गई थी.
अविरल भी आशा भरी निगाहों से उस की ओर देख कर उस की हां का इंतजार कर रहा था. परी झटपट उस के बैग के सामान को उलटपुलट कर देखने लगी, वह मना करती, उस के पहले ही उस ने मां की सैक्सी सी पिंक नाइटी निकाल ली थी. वह शर्म से डूब गई थी कि अब क्या कहे…
“पापा, मौम ने तो पहले से आप के साथ ही जाने का प्रोग्राम बना रखा है.”
उस की अपनी बेटी ने आज उसे इस अजीब सी स्थिति से उबार लिया था.
कहीं दूर पर गाना बज रहा था, ‘मेरे दिल में आज क्या है, तू कहे तो मैं बता दूं…’
एक अरसे के बाद उस ने आगे बढ़ कर अविरल और परी दोनों को अपने आगोश में भर लिया था. दोनों की आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे.
“आरोही, हमलोग इस बार महाबलीपुरम भी चलेंगे,” अविरल खुश हो कर बोले.
“यसयस…” कहते हुए प्यार से उस ने पत्नी को अपने आगोश में ले लिया था.
आज अविरल के प्यारभरे चुंबन ने उस के दिल को तरंगित कर दिया था.
परी तेजी से उन से अलग हो कर भागती हुई अपनी फ्रैंड्स को अपनी चैन्नई ट्रिप के बारे में बताने में मशगूल हो गई थी.