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गरीब की आड़ में दलालों की कमाई

हाल ही में 2 खबरें आई हैं जो बेहद चौंकाने वाली हैं. पहली खबर यह कि विश्व बैंक भारत के 7 गरीब राज्यों को गरीबों का स्तर सुधारने के लिए 20 अरब डौलर देगा. भारत में विश्व बैंक के कंट्री डायरैक्टर ओनो रुल का कहना है कि इन सभी सातों राज्यों में गरीबों का स्तर तेजी से गिर रहा है, इसलिए यह फैसला लिया गया कि इस राशि का

60 प्रतिशत इन राज्यों में राज्य सरकार की विकास योजनाओं पर खर्च किया जाएगा और 30 प्रतिशत राशि इन में जो राज्य ज्यादा गति करेगा उसे दी जाएगी. रुल का कहना है कि इन राज्यों में 2010 में गरीबी का स्तर 29.8 प्रतिशत था जिसे 2030 में 5.5 प्रतिशत के स्तर पर लाए जाने का लक्ष्य रखा गया है. उन का कहना है कि जिन राज्यों के लिए यह पैसा स्वीकृत किया गया है उन में बिहार, छत्तीसगढ़, ?ारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान शामिल हैं.

दूसरी खबर यह है कि वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अंधाधुंध कर्जमाफी के लिए बैंकों को फटकार लगाई है और कर्जमाफी के संबंध में रिपोर्ट देने को कहा है. असल में सरकार को संदेह है कि कर्जमाफी की आड़ में करोड़ों रुपए के घोटाले हो रहे हैं. निश्चित रूप से बैंक जो भी कर्ज माफ करेंगे वे सरकार के दिशानिर्देश के बिना संभव नहीं हैं और सरकारी नीति के अनुसार, कर्ज गरीबों व किसानों का ही माफ किया जाना है लेकिन बैंक कई मामलों में उद्योगों व अन्य क्षेत्र के कर्ज को भी माफ कर रहे हैं. यानी गरीब के लिए दी गई मलाई को मिलीभगत से मोटी खाल के लोग चाट रहे हैं.

गौर करने की बात यह है कि गरीब के लिए भेजा गया पैसा कौनकौन खा रहा है. कर्जमाफी का लाभ उसे मिल रहा है या उस के नाम पर कोई अन्य मजे ले रहा है. विश्व बैंक का यह पैसा कितने स्तर तक गरीबी को समाप्त करेगा, यह सुनिश्चित करने के लिए भ्रष्टाचार पर रोक जरूरी है.

 

शेयर बाजार में धूम

शेयर बाजार में इस बार धूम मची रही. निवेशकों के भारी उत्साह के बल पर बौंबे स्टौक ऐक्सचेंज यानी बीएसई का सूचकांक नए स्तर की तरफ उछाल मारता रहा.

15 अप्रैल से शुरू हुए सप्ताह के दौरान सूचकांक करीब 1100 अंक चढ़ गया. मंगलवार को सूचकांक 387 अंक उठा जो 7 माह में 1 दिन की सर्वाधिक तेजी रही. अगले ही दिन बाजार में 285 अंक की तेजी आई और सूचकांक 19 हजार अंक के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर गया. इस से पहले सप्ताह के दौरान बाजार में मायूसी का माहौल था और शुक्रवार को तो बाजार 300 अंक लुढ़क गया था जो फरवरी के बाद 1 दिन की सर्वाधिक गिरावट रही.

अचानक बाजार में आई तेजी की वजह कंपनियों के तिमाही परिणामों के सकारात्मक रहने के अलावा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार की नीतियों और इस दिशा में उठाए जा रहे कदमों को बताया जा रहा है लेकिन असली वजह महंगाई के आंकड़े में गिरावट रहने और बैंक ब्याज दरों में कटौती किए जाने की उम्मीद रही है.

विश्लेषक कहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में आई गिरावट ने भी बाजार को सहारा दिया है. सोने की कीमत में लगातार गिरावट का रुख बना हुआ है और निवेशक सोने के बजाय शेयर बाजार की तरफ बढ़ रहे हैं, इसलिए बाजार में तेजी है. कारोबारियों को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में बाजार में स्थिरता या तेजी का रुख जारी रहेगा. बाजार का रुख बहुतकुछ बजट सत्र में संसद के चलने पर भी निर्भर करेगा.

 

पाठकों की समस्याएं

मैं संयुक्त परिवार में रहने वाली 2 बेटों की 32 वर्षीय मां हूं. छोटी उम्र में मेरी शादी हो गई थी. मैं आजाद खयालों की हूं, पुरुष दोस्तों का साथ मुझे बेहद पसंद आता है. पति व परिवार वाले पुराने विचारों के हैं, इसलिए मुझ पर गलत इलजाम लगाते हैं, मुझे चरित्रहीन कहते हैं, जिस से मेरे बच्चे भी मुझे गलत समझते हैं. पति से कहती हूं कि या तो अलग घर लें या तलाक दें पर वे सुनते ही नहीं. मेरा इस घर में दम घुटता है. सलाह दीजिए, क्या करूं?

आप का आजाद खयाल होना आप की जिंदगी में जहर घोल रहा है. आप समझ लीजिए कि औरत की एक मर्यादा होती है, पति, बच्चों व ससुराल वालों से निभा कर चलना होता है. आप के स्वभाव का खिलंदड़ापन परिवार में अशांति घोल रहा है. बच्चे भी आप से विमुख हो रहे हैं. आप के पति बहुत ही बैलेंस्ड हैं जो आप की इस गलत हरकत को झेल रहे हैं, उस पर भी आप या तो अलग रहना चाहती हैं या तलाक चाहती हैं जो आप के पति नहीं चाहते. आजादी को हवा देने के लिए ही आप अलग रहना चाहती हैं. संयुक्त परिवार के बंधन आप को रास नहीं आ रहे.

क्या आप ने बच्चों के बारे में सोचा है कि वे आप से क्या सबक लेंगे? स्वभाव आप को ही बदलना होगा. पारिवारिक मर्यादा व जिम्मेदारियों को समझते हुए पति व बच्चों की ओर ज्यादा ध्यान देना होगा. कमोबेश हर परिवार में महिला घर को संवारती है न कि घर से निकल कर दोस्तों के साथ समय बिताती है. पति से तलाक लेने की सोच रही हैं, जरा सोचिए कि तलाक के बाद स्त्री की दशा क्या होती है. उस समय तथाकथित दोस्त भी आप का साथ न देंगे. घर वालों से निभा कर चलेंगी और परिवार का अंग बन कर रहेंगी तभी ठीक रहेगा.

मैं 30 वर्षीय अविवाहित युवक हूं. मेरी शादी की बात चल रही है. मेरा सैक्स करने का बहुत मन करता है. मैं हफ्ते में 2-3 बार हस्तमैथुन कर लेता हूं. इस में आनंद तो है पर क्या इस से मुझे कमजोरी आ जाएगी? क्या मेरे लिए शादी के बाद पार्टनर से सैक्स करना ठीक रहेगा?

अधूरे ज्ञान के कारण आप के मन में सवाल उठ रहे हैं. हस्तमैथुन करने की आदत के कारण आप को शादी के बाद कोई समस्या नहीं आएगी, कोई कमजोरी नहीं होगी. यह स्वाभाविक प्रक्रिया है. इसलिए यह भ्रम मन से निकाल दें. विवाह होने तक संयम रखें.

 मैं 25 वर्षीय अविवाहित हूं. वर्षों से एक लड़की से प्यार करता हूं. वह भी मुझ से बहुत प्यार करती है. मेरे घर वाले लड़की को पसंद तो करते हैं पर हमारी जाति और गोत्र एक ही होने से वे विवाह के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं. हालांकि हमारे गांव अलगअलग हैं, आप ही कोई रास्ता सुझाइए.

कुछ स्थानों पर विवाह के नियम ऐसे ही होते हैं. आप दोनों बालिग हैं. अगर आप चाहें तो कोर्ट मैरिज भी कर सकते हैं परंतु इस का परिणाम क्या होगा, यह आप से बेहतर कौन जान सकता है. क्या इस सब को सहने का दमखम रखते हैं आप. अच्छा तो यही होगा कि आप किसी प्रकार घर वालों को राजी कर लें. घर में अगर कोई ऐसा हो जो आप का साथ दे सकता हो तो उस के द्वारा घर वालों को समझाने का प्रयास करें. हो सकता है कुछ बात बन जाए. हर पहलू पर सोचें और फिर कोई फैसला करें.

मैं 23 वर्षीय अविवाहित युवती हूं. कभीकभी सैक्स करने का इतना मन करता है कि मैं शब्दों में नहीं बता सकती. उस दौरान ऐसा लगता है कि चाहे जो मर्द मिल जाए उसे पकड़ कर खींच लूं. पर मैं अपनी मर्यादा को बखूबी समझती हूं. कैसे समझाऊं अपनेआप को? कुछ उपाय बताएं?

यह अच्छी बात है कि आप अपनी मर्यादा को समझती हैं. इस उम्र में इस तरह की फीलिंग स्वाभाविक है. जब भी इस तरह का मन में खयाल आए तो अपनेआप को कंट्रोल कीजिए. अच्छीअच्छी किताबें पढि़ए. आमतौर पर खाली समय में ऐसे खयाल आते हैं. किसी न किसी रूप में अपनेआप को व्यस्त रखें. कोशिश करें इस तरह के खयाल मन में न आएं. इस के बावजूद अगर आते हैं तो अपनी किसी सहेली से इन बातों को शेयर करें. उस से बातें करें ताकि आप का मन हलका हो सके और धीरेधीरे इस तरह के खयाल मन से दूर हो जाएं. जहां तक किसी मर्द को खींच लेने की बात है तो ऐसी गलती भूल कर भी न करिएगा वरना जिंदगी बरबाद होते देर न लगेगी.

मैं 28 वर्षीय अविवाहित युवक हूं. बहुत अच्छी कंपनी में अच्छे पद पर कार्यरत हूं. बचपन से ही समलिंगी होना मुझे बहुत अच्छा लगता है, और तो और, टीनएजर्स भी मुझे बहुत आकर्षित करते हैं.  हाल ही में मैं कंपनी के काम से गोआ गया तो वहां भी मुझे ऐसे लोग मिल गए और हम ने जिंदगी का भरपूर मजा भी लिया. मैं जानना यह चाहता हूं कि मेरी शादी होने वाली है. क्या मेरे इस समलिंगी होने से विवाहित जीवन पर असर पड़ेगा? अपना ध्यान हटाने की कोशिश बहुत करता हूं पर सफल नहीं हो पाता, क्या करूं?

दरअसल अब तो समलैंगिकता कुछ ज्यादा ही सुनाई देती है, आप स्वयं इसे कोई अजूबा न समझें पर यह भी तय है कि इस से बाहर निकलने का प्रयास अवश्य करें. अपनी इच्छाशक्ति से कुछ भी किया जा सकता है. इस का विवाहित जीवन पर भावनात्मक रूप से असर जरूर पड़ेगा, पत्नी की ओर से सोचिए कि क्या वह आप को किसी और के साथ पसंद करेगी? वैसे शादी होने के बाद हो सकता है स्वयं ही यह आदत छूट जाए. फिर भी प्रयास कीजिए इस से नजात पाने की, तभी विवाहित जीवन सुखी रहेगा.           

-कंचन

ये पति

बात उस समय की है जब 1987 में मेरा विवाह हुआ. मेरी उम्र सिर्फ 20 वर्ष थी. मैं मराठी परिवार से हूं और मेरी शादी भी हमारे समकक्ष परिवार में ही हुई है. हमारे यहां विवाह के बाद बहू का नाम बदलने की प्रथा है, खासकर यदि वह घर की बड़ी बहू हो. लेकिन मेरे पति ने विवाह के बाद मेरा नाम बदला नहीं. मैं बहुत खुश हो गई.

एक दिन मैं ने अपने पति से इस की वजह पूछी. पति ने कहा, तुम्हारे मातापिता ने भी बड़ी भावनाओं के साथ तुम्हारा नाम रखा होगा तो मैं उसे क्यों बदलूं. मैं ऐसी प्रथाओं को नहीं मानता. आज भी यह बात सोच कर मेरा मन अपने पति के प्रति प्यार से भर जाता है.

नीता विंगले, नासिक (महा.)

 

मेरी सहेली के पति बेहद भुलक्कड़ हैं. एक बार वे स्कूटर से कहीं गए. रास्ते में एक जगह पैट्रोल भरवाते समय उन की पत्नी उतर कर शौचालय गईं. पति महोदय ने पैट्रोल भरवाया और चलते बने. पत्नी जब शौचालय से वापस आईं तो पतिदेव को न देख परेशान हो गईं, लेकिन अपने पति की आदत को जानते हुए आटोरिकशा से घर वापस आ गईं.

पति महोदय घर पहुंच कर आराम फरमा रहे थे. जब पत्नी ने पूछा कि मुझे क्यों छोड़ आए तो मासूमियत से बोले, ‘‘भई, जब तुम मेरे साथ गई ही नहीं थीं तो छोड़ने का सवाल कहां से आ गया.’’ मेरी सहेली अपने पति का मुंह देखती रह गई.

मंजू गोयल, पीतमपुरा (दिल्ली)

 

मुझे अपने पति की एक बात बहुत चुभती थी. जब भी घर में कोई रिश्तेदार या मित्रमंडली इकट्ठा होती सब मेरे बारे में ही बातें करते. उन की बातों में मीठापन कम कटाक्ष ज्यादा होता. शायद उन्हें इसी में मजा आता था.

एक बार उन्होंने कई लोगों के सामने कहा, ‘‘मैं दिनभर 2 रोटी बनाने के सिवा करती क्या हूं?’’ मैं दुखी हो गई. मेरी दिनभर की मेहनत का यही मूल्यांकन. रात को जब पति खाने की मेज पर आए तब उन्हें तश्तरी में सजी मात्र 2 रोटियां मिलीं. उन्होंने पूछा, ‘‘ये क्या है?’’ मैं ने कहा, ‘‘ये मेरे दिनभर का काम है और इसे मैं ही खाऊंगी क्योंकि बच्चे को दूध पिलाने के लिए मुझे इस की जरूरत ज्यादा है.’’

उस दिन के बाद इन्होंने कहना छोड़ दिया कि मेरे दिनभर का काम क्या है? हंसी में कही बात किसी को दुख पहुंचा सकती है, यह बात उन्हें उस दिन समझ में आ गई.

रेणुका श्रीवास्तव, लखनऊ (उ.प्र.)

भारत भूमि युगे युगे

प्रकट हुए सिद्धरमैया

कर्नाटक में कांग्रेस ने मुख्यमंत्री चुनने के लिए गुप्त मतदान का रास्ता क्यों चुना, यह पहेली शायद ही कोई सुलझा पाए. अब तक मुख्यमंत्री ऊपर से थोपे जाते रहे हैं और ऐसों को पैराशूट सीएम कहा जाता है. अरसे बाद शुद्ध लोकतांत्रिक तरीके से जमीनी मुख्यमंत्री चुना गया.

हैरत की दूसरी बात यह है कि कांग्रेस विधायक दल ने एक ऐसे दलित नेता को चुना जिस के संस्कार कांग्रेसी नहीं हैं.

7 साल पहले तक के सिद्धरमैया जनता दल (एस) के सदस्य थे. सिद्धरमैया के सामने चुनौतियों का अंबार है. उन से हारने वाले कद्दावर नेता और केंद्रीय श्रम व रोजगार मंत्री एम मल्लिकार्जुन चुप नहीं बैठे और शपथग्रहण के दिन खासा हल्ला मचवा कर ही माने, जो शायद सच्चे कांग्रेसी की पहचान है. सिद्धरमैया के सामने सब से बड़ी चुनौती बेंगलुरु  को दोबारा आईटी कैपिटल बनाने की है.

अंधविश्वास के फेर में सोनिया

पूजापाठ में सोनिया गांधी किसी भाजपाई नेता से उन्नीस नहीं हैं और इस बात का साल में दोचार बार वे नवीनीकरण करा ही लेती हैं. अजमेर की दरगाह के ख्वाजा की खिदमत में उन्होंने दिल्ली से चादर भेजी, धार्मिक भाषा में इसे पेश करना कहते हैं.

अजमेर वाले बाबा का बड़ा भभका देशभर में है. नेता, अभिनेता और उद्योगपति वगैरह उन की दरगाह में लाइन लगाए खड़े रहते हैं. उर्स के दिनों में यहां एक हाथ में कटोरा और दूसरे में मोरपंख की झाडू लिए भिखारी भी इफरात से नजर आते हैं. क्या पता किस भेष में बाबा हों यह सोच कर श्रद्धालु इन चलतेफिरते निकम्मे बाबाओं को खूब चढ़ावा देते हैं. सोनिया गांधी ने चादर पेश कर इस अंधविश्वासी मानसिकता को बढ़ावा दिया है.

कपिल सिब्बल के दावे

टैलीकौम तो था ही अब कानून मंत्रालय भी कपिल सिब्बल के पास है जिन्होंने इस का भार या प्रभार, जो भी कह लें, संभालते ही दावे से कहा कि जल्द ही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को ले कर बड़ा खुलासा होगा, जिस से मोदी और भाजपा का दोहरा मानदंड सब के सामने आ जाएगा.

क्या अश्विनी कुमार और पवन बंसल वाले खुलासे बड़े नहीं थे. धन्य हैं कांग्रेसी जो अरबोंखरबों के भ्रष्टाचार को मामूली बताते हैं और सब से ज्यादा धन्य वे धैर्यवान और उदार भारतीय हैं जो ऐसे खुलासों के बाद भी खामोश रहते हैं, मानो कुछ हुआ ही न हो या ऐसा तो रोज होता रहता है, यह सोच कर कुछ नहीं बोलते. बहरहाल, कपिल सिब्बल के खुलासे का लोग बेचैनी से इंतजार कर रहे हैं, खासतौर से न्यूज चैनल्स के खबरची. मुमकिन है, खुलासे पर पहला झपट्टा मारने के लिए एक स्थायी कैमरामैन सभी ने कानून मंत्री के घर के आगे तैनात कर दिया हो.

सोने के सिक्के पर सचिन

देश के एक नामी ज्वैलर ने अक्षय तृतीया पर कमाल कर डाला, क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर की तसवीर और आटोग्राफ वाले 34 हजार रुपए मूल्य के 10 ग्राम सोने वाले एक लाख सिक्के बाजार में उतार डाले. यह कहीं से भी गैरकानूनी नहीं है लेकिन एक बहुमूल्य धातु की दुर्दशा व दुरुपयोग का बड़ा उदाहरण जरूर है. देवीदेवताओं वाले सोने के सिक्के इफरात से बिकते हैं पर सचिन ब्रैंड सिक्कों को वैसा रेस्पौंस नहीं मिला जैसा बनानेबेचने वाले सोच रहे थे.

इस की वजह कुछ भी हो पर शर्मिंदा महात्मा गांधी हो रहे होंगे जो कभी पीतल, लोहे और एल्युमीनियम के सिक्कों से आगे राष्ट्रपिता होने के बाद भी नहीं बढ़ पाए और सचिन बगैर भारतरत्न लिए सोने पर चल गए. आइडिया चल निकला तो जल्द ही सोने के सिक्कों पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी, लालकृष्ण आडवाणी, जयललिता, मुलायम सिंह, मायावती वगैरह दिखाई देने लगेंगे और फिर ये सिक्के चुनाव में तो चलेंगे ही चलेंगे.

राजनीति की भेंट चढ़ती सौर ऊर्जा नीति

सौर ऊर्जा भविष्य में ऊर्जा संकट को हल करने में सब से कारगर तरीका हो सकता है. यही वजह है कि तमाम देश सौर ऊर्जा को अपनी विभिन्न आर्थिक नीतियों व महत्त्वपूर्ण योजनाओं में प्रमुखता दे रहे हैं जबकि भारत में सौर ऊर्जा मिशन सियासत और कमजोर विदेश नीतियों के चलते सफेद हाथी बन कर रह गया है. कैसे, बता रहे हैं कपिल अग्रवाल.

प्रकृति ने हमें सबकुछ प्रचुर मात्रा में दिया है. जरूरत है उस का सही दोहन करने की. लेकिन हमारे यहां हर क्षेत्र में राजनीति इस कदर हावी है कि हम कुछ कर ही नहीं पाते. हालत ऐसी है कि एक रुपए के काम के लिए लाख रुपए खर्च करने के बावजूद नतीजा शून्य ही रहता है.

सौर ऊर्जा ऐसा ही एक क्षेत्र है जो काफी कम लागत पर देश की 60 फीसदी ऊर्जा की जरूरतें पूरी कर सकता है. पर जैसी कि हमारे नेताओं की आदत है, हर बात के लिए विदेशों का मुंह ताकना और रियायती मदद प्राप्त कर मददगारों की मनमरजी के मुताबिक चलना, इस के चलते अन्य क्षेत्रों की तरह इस क्षेत्र का भी बेड़ा गर्क हो कर रह गया है. अरबों रुपए स्वाहा होने के बावजूद स्थिति बेहद शोचनीय है.

जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सौर अभियान 2012-13 का पहला चरण समाप्त हो चुका है. दूसरे चरण की घोषणा हो गई है. करीब 2 हजार मेगावाट वाली ग्रिड आधारित सौर ऊर्जा विकसित करने के लक्ष्य के विपरीत केवल 300 मेगावाट का लक्ष्य ही हासिल हो पाया है. कारण, वही पुराना. अमेरिकी बैंक से सस्ता ऋण और बेहद महंगी व अनुपयुक्त तकनीक के उपयोग की बाध्यता व समस्त खरीद अमेरिका की दिवालिया होती कंपनियों से ही करने की अनिवार्यता. हालत यह हो गई है कि हमारी प्रति यूनिट लागत जहां लगभग 11 रुपए आ रही है वहीं वैश्विक स्तर पर यह घट कर 3-4 रुपए प्रति यूनिट (प्रति किलोवाट प्रतिघंटा) तक आ गई है. अपने देश में जहां बिजली की किल्लत के चलते हायतोबा मची है और बगैर पर्याप्त बिजली हासिल किए भारीभरकम बिलों से जनता परेशान है वहीं विश्व के अधिकांश देशों में यह कोई समस्या ही नहीं है.

गत वर्ष की तीसरी तिमाही में कनाडा के एक नागरिक ने चीन से मात्र 2,264 अमेरिकी डौलर की एक मिनी सौर यूनिट खरीद कर अपने यहां लगाई और अपने उपयोग के बाद बची बिजली आसपास के 4 घरों को देना शुरू कर दिया. अब उस की घर बैठे अच्छीखासी आमदनी हो रही है. अधिकांश क्षेत्रों की तरह चीन भी इस क्षेत्र में अग्रणी है. वहां सामान्य नागरिक अपनी जरूरतों के लिए जहां सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं वहीं बड़ेबड़े उद्यमों के लिए उच्च क्षमता वाले विद्युत प्लांट लगे हैं.

दरअसल, हमारे यहां इस क्षेत्र की शुरुआत ही बहुत गलत तरीके से की गई. हम ने प्रारंभ से ही अमेरिका का दामन थाम लिया, जिस से उसे दोहरा लाभ हुआ और हम बरबाद होते चले गए. शुरुआत में अमेरिका की तमाम बड़ी कंपनियों ने उस समय उपलब्ध फोटोवोल्टाइक सेल की बाबत महंगी जटिल आयातित थिन फिल्म तकनीक को अपनाया पर अत्यधिक लागत के चलते वे दिवालिया हो गईं. अब उन्हीं कंपनियों को जीवनदान के लिए भारत के सामने एक्जिम बैंक के माध्यम से

6 फीसदी पर रियायती ऋण देने का प्रस्ताव रखा गया. साथ ही, शर्त यह थी कि समस्त संबंधित खरीद इन्हीं दिवालिया अमेरिकी कंपनियों से ही की जाएगी. अमेरिका को इस से जहां दोहरा लाभ हुआ वहीं भारत को तिहरा घाटा. जलवायु परिवर्तन समझौते के तहत अमीर देश विकासशील मुल्कों को तीव्र व तत्काल वित्तीय मदद मुहैया कराने के लिए तैयार हुए थे. इसीलिए अमेरिका ने सारी व्यवस्था कर के सभी रियायती मदद, जलवायु परिवर्तन के लिए दी जाने वाली राशि संबंधी खाते से संबद्ध कर दी. यानी एक तरफ वह जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में शामिल हो गया, दूसरी तरफ उस का दिवालिया हो रहा घरेलू उद्योग फिर से पनप उठा.

भारत को इस से पहला नुकसान यह हुआ कि इस की संपूर्ण योजना बुरी तरह असफल हो गई और कीमती समय व धन मिट्टी में मिल गया. दूसरा घाटा यह हुआ कि घरेलू उद्योग व सौर प्रोजैक्टों को दी गई भारीभरकम सब्सिडी बिलकुल व्यर्थ सिद्ध हुई. तीसरा देसी उद्योग बरबाद हो गया व आम जनता का इस तकनीक से विश्वास उठ गया. हम ने ग्रिड पर आधारित सौर ऊर्जा को अपनाया, जिस का वास्तविक लाभ केवल रसूखदारों को मिला और आम जनता इस से वंचित रह गई.

आज हालत यह है कि चीन के सस्ते आयातित उपकरण दुनियाभर में छा गए हैं और हमारी घरेलू 90 फीसदी सौर ऊर्जा इकाइयां या तो बंद हैं या कर्ज पुनर्गठन की राह तक रही हैं. बहरहाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल व गुजरात में कुछ एनजीओ ने चीन के सस्ते आयातित उपकरण व संयंत्र ग्रामीण इलाकों और नई विकसित कालोनियों में लगाने शुरू किए हैं, जिस से जनता को भारी राहत मिली है. आर्थिक स्थिति में सुधार के अलावा बेहद छोटीछोटी खुदरा दुकानों को इस से भारी लाभ हुआ है.

तमिलनाडु के कुंडूवला क्षेत्र में 3 गांवों की सौर ऊर्जा ने रातोंरात काया पलट दी. एक एनजीओ ने चीन से मात्र साढ़े 6 लाख रुपए में आयात किए गए सौर पैनल संयंत्र लगाए हैं जिन से उन की रोजमर्रा की घरेलू जरूरतें पूरी हो गईं व छोटेमोटे कामधंधे चल निकले. सब से बड़ी बात यह है कि 24 घंटे, सातों दिन भरीपूरी बिजली खपाने के बावजूद किसी को एक पैसे का भी बिल नहीं अदा करना पड़ता. केवल सौर पैनलों की मैंटिनैंस का मामूली खर्चा तीनों गांवों के लोग मिल कर उठाते हैं. इसी प्रकार केरल, तमिलनाडु व आंध्र प्रदेश के 100 से भी ज्यादा पिछड़े इलाकों में सौर लालटेन, सौर चूल्हा, सौर प्रैस, सौर गीजर आदि तमाम घरेलू व वाणिज्यिक उपयोग के उपकरण एनजीओ द्वारा वितरित किए गए हैं. इस से यहां के लोगों की परेशानियां कम हुई हैं व जीवन स्तर सुधरा है.

यानी अमेरिका से कर्जे ले कर व अरबों रुपए स्वाहा कर जो काम सरकार का राष्ट्रीय सौर अभियान नहीं कर पाया वह बगैर ज्यादा लागत के तमाम एनजीओ बड़ी कुशलता से सफलतापूर्वक कर रहे हैं. सरकार को इस से सबक लेना चाहिए.

इस के उलट सरकार ने बगैर अपनी नीति में परिवर्तन किए सौर ऊर्जा अभियान का दूसरा दौर शुरू कर दिया है. 2017 तक चलने वाले इस अभियान के बाबत सरकार के पास कोई धनराशि उपलब्ध नहीं है. एक बार फिर इस के लिए विदेशी मदद लिए जाने की योजना है. स्वच्छ व ज्यादा शक्ति वाली सौर ऊर्जा को पर्यावरण प्रदूषण उत्पन्न कर बनने वाली कोयले जनित बिजली से मिला कर ग्रिड में समाहित कर दिया जाएगा. इस प्रकार इस का 65 फीसदी भाग बगैर उपयोग ही बरबाद हो जाता है. विश्व में कई देश बेहद स्वच्छ व उन्नत सौर ऊर्जा विकसित कर उस का सीधा उपयोग कर रहे हैं जो बहुत ही किफायती है.

भारत सरकार यदि अमेरिकी शिकंजे से मुक्त हो कर अपने बाजार व घरेलू उद्योग को पूरी तरह स्वतंत्र कर दे तो देश में व्याप्त कई समस्याएं स्वयमेव समाप्त हो जाएंगी. उदाहरण के तौर पर सौर चूल्हे के उपयोग को बढ़ावा देने से न केवल कुकिंग गैस की समस्या हल होगी बल्कि सरकार का सब्सिडी संबंधी बिल भी कम होगा. इसी प्रकार मात्र एक ट्यूबलाइट की रोशनी से ऊर्जा ग्रहण करने वाले घरेलू सौर पैनलों का निर्माण चीन में शुरू हो चुका है, जिस से एक टैलीविजन, कंप्यूटर या एक पंखा आराम से चल सकता है. सौर ऊर्जा से चलने वाले एअरकंडीशनर भी आने लगे हैं जो न केवल अधिक ठंडक देते हैं बल्कि ऊर्जा की खपत भी कम करते हैं. यदि हम आम जनता की घरेलू ऊर्जा की जरूरत को ग्रिड की निर्भरता से मुक्त कर दें और आम जनता को छोटेछोटे सौर उपकरणों के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करें तभी हमारी सौर नीति का दूसरा चरण सही माने में सफल माना जाएगा.

हमारे देश में केवल गुजरात ने कुछ इसी तरह का मौडल अपनाया है और उस का 1,932 करोड़ रुपए के घाटे वाला ऊर्जा निगम मार्च 2012 तक 642 करोड़ रुपए का मुनाफा दर्ज कर चुका है. भारत विश्व के उन चुनिंदा देशों में है जहां लगभग पूरे साल भरपूर सौर ऊर्जा उपलब्ध रहती है. आम जनता की छोटीमोटी जरूरतों के लिए हम इस का भरपूर उपयोग कर सकते हैं. अगर सौर नीति सही ढंग से क्रियान्वित की जाए तो देश की विद्युत संबंधी समस्या हमेशाहमेशा के लिए समाप्त हो सकती है.

भगवान की सुरक्षा इंसानों के हाथ

धर्मशास्त्रों, धर्मगुरुओं व पंडेपुजारियों के प्रवचनों में यही बखान किया जाता है कि भगवान अपने भक्तों की हमेशा रक्षा करते हैं. पर उन के दावे तब खोखले साबित होते हैं जब मंदिरों में सुरक्षा की चौकसी बढ़ानी पड़ती है. जो भगवान खुद की रक्षा नहीं कर सकता वह भला अपने भक्तों की रक्षा कैसे करेगा? पढि़ए जगदीश पंवार का लेख.

देशभर में इन दिनों औरतों की सुरक्षा को ले कर बवाल मचा हुआ है. लोग सरकार, पुलिस, नौकरशाही को कोस रहे हैं. सब परेशान हैं लेकिन जब इस भारतभूमि के सर्वशक्तिमान भगवान खुद ही असुरक्षित हों तो औरत, आम जनता, सरकार और पुलिस की क्या बिसात. भगवान द्वारा भक्तों की रक्षा किए जाने के दावे धर्म की किताबों से ले कर धर्मगुरुओं व पंडों के प्रवचनों में बढ़चढ़ कर किए जाते हैं पर वे सब के सब खोखले साबित हो रहे हैं. यहां, भक्तों को अभयदान देने वाले भगवानों की बेचारगी जगजाहिर हो रही है.

गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर की मंगला आरती में शामिल होने हेतु टिकट के लिए लोगों को पहचान बताने की बात कही गई. इस के  लिए आधार कार्ड, मतदाता पहचानपत्र, ड्राइविंग लाइसैंस जैसे आईडी प्रूफ मान्य होंगे. जब भी इस तरह की बात होती है तो यही तर्क दिया जाता है कि यह कदम धर्मस्थलों पर बढ़ते खतरों को देखते हुए उठाया जा रहा है.

काशी विश्वनाथ मंदिर में पहचानपत्र दिखाने की व्यवस्था शायद इसलिए की जा रही होगी ताकि कोई भगवान को, मंदिर को और उन के भक्तों को नुकसान न पहुंचा सके.

यह बात कुछ हजम नहीं हो पा रही. भगवान के मंदिरों में कोई घुस कर उन्हें और उन के भक्तों को कैसे नुकसान पहुंचा सकता है? पढ़ते, सुनते तो यही आए हैं कि भगवान और उन के दूत यानी पंडेपुरोहित, साधुसंत अंतर्यामी, त्रिकालदर्शी होते हैं. वे दिव्यदृष्टा होते हैं. उन्हें धरती, आकाश, पाताल तीनों लोकों में क्या हो रहा है, सबकुछ अपनी दिव्यदृष्टि से पता चल जाता है.

इस मंदिर में लोग लंबी आयु, आकस्मिक मृत्यु से बचने, सुखसमृद्धि के लिए हर साल लाखों की तादाद में आते हैं और भगवान के अलावा वे पंडों, साधुसंतों, गुरुओं से आशीर्वाद भी मांगते हैं.

फिर काशी के विश्वनाथ भगवान तो स्वयं काल, महाकाल हैं. उन के पास तो तीसरा नेत्र भी है. क्या उत्तर प्रदेश सरकार को भगवान शिव की ताकत का एहसास नहीं है जो उन के घर की सुरक्षा के लिए पहचानपत्र जैसी तुच्छ चीज पेश करने का आदेश दे रही है?

सरकार द्वारा मंदिर में मंगला आरती में आने वाले भक्तों से पहचानपत्र मांगना निरर्थक है. यह सुरक्षा तो मंत्रों, टोनेटोटकों द्वारा हो सकती है. सरकार पंडों, साधुसंतों, ज्योतिषियों, तांत्रिकों की सेवाएं क्यों नहीं लेती?

भक्तों की हर तरह की सुरक्षा, मनोकामना के लिए महामंत्र, हवनयज्ञ, पूजापाठ, स्नानदान जैसे अचूक औजार हैं. साधुसंतों, गुरुओं का आशीर्वाद भी है. इन सब के होते हुए भला किस बात का भय?

मंत्रों में महामृत्युंजय मंत्र सर्व- शक्तिशाली है और यह वाराणसी वाले भगवान को ही समर्पित है-

ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्, उवीरूकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्.

अर्थात, समस्त संसार के पालनहार 3 नेत्रों वाले शिव की हम आराधना करते हैं. विश्व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलाएं. यह मंत्र मोक्ष दिलाने के लिए है या मृत्यु से बचाने के लिए? मोक्ष दिलाने के लिए है तो फिर काशी विश्वनाथ मंदिर में सुरक्षा की जरूरत ही क्या है. मोक्ष मिल ही जाएगा.

किस की मजाल जो इस मंत्र जाप के बाद किसी का बाल भी बांका कर सके. मंदिर की सुरक्षा के लिए पंडों को महामृत्युंजय जाप के लिए लगा देना चाहिए. सुरक्षा के लिए हनुमान चालीसा का पाठ है. मंदिर के मुख्य दरवाजे पर एक नीबू, 7 हरीमिर्च बांधने से भी आने वाली विपदाएं दूर हो जाती हैं. इस के अलावा इस देश में ऐसेऐसे तांत्रिक हैं जो अभिमंत्रित लोहे की कीलें, राई के दानों से भी सुरक्षा करने का दावा करते हैं. अभिमंत्रित राई को काशी विश्वनाथ मंदिर के चारों ओर डाल देना चाहिए. मंदिर के अंदर किसी पहुंचे हुए तांत्रिक को बुला कर कीलें गाड़ देनी चाहिए. धर्म के ठेकेदारों के पास इतने सारे उपाय हैं, फिर सुरक्षा के लिए परेशानी क्यों?

इन सब के बावजूद सरकारें मंदिरों की सुरक्षा के लिए तरहतरह के उपाय करने में जुटी नजर आती हैं. पिछले साल यहां सुरक्षा के लिए 150 सुरक्षा कर्मचारी तैनात किए गए थे.

मंदिर आज से नहीं, सदियों से असुरक्षित रहे हैं. छोटेमोटे चोरउचक्के ही नहीं, विदेशी हमलावर भी भारत के उन भगवानों के मंदिरों को लूटतेखसोटते, नष्टभ्रष्ट करते रहे हैं जिन पर इस देश के धर्मांध भक्त भरोसा रखते हैं. फिर भी इन भगवानों के भक्तों का धैर्य देखिए कि वे वहां दर्शन, पूजापाठ, तीर्थयात्रा, हवनयज्ञ जैसे कर्मकांडों का लोभ छोड़ नहीं पा रहे हैं.

आएदिन मंदिरों से भगवान की मूर्तियां, उन के सोनेचांदी, हीरे के आभूषण और नकदी चुराए जाने की खबरें आती रहती हैं.

ऐसा क्यों होता है? क्या भगवान खुद अपनी और अपने कीमती सामान की रक्षा नहीं कर सकते?

यहां तो सदियों से भगवान भयभीत रहे हैं. उन के घरों को तोड़ाफोड़ा जाता रहा. महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर को कई बार लूटा. मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि पुलिस छावनी दिखती है.

शिरडी में साईं बाबा मंदिर पर हमले के डर से शासनप्रशासन कांपता रहता है. गुजरात में अक्षरधाम मंदिर में आतंकी घुस कर खूनी खेल खेल जाते हैं. भगवान कुछ नहीं कर पाते.

अयोध्या वाले भगवान खुद अपना मंदिर बनने की दशकों से प्रतीक्षा कर रहे हैं. उन की सुरक्षा के लिए सैकड़ों सुरक्षाकर्मी तैनात हैं.

उज्जैन के महाकालेश्वर में खतरा मंडराता रहा है. पुरी के जगन्नाथ मंदिर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम रहते हैं. सवाल बाबरी मसजिद का भी है. वह टूटी क्यों? खुदा कहां था?

मोक्ष और मनोकामना पूर्ति के लिए वाराणसी आने वाले भक्तों को शायद इस मंदिर के इतिहास का पता नहीं है. औरों को अभयदान देने वाले भगवान विश्वनाथ युद्धकाल में शिवलिंग के रूप में कुएं में कूद गए थे. तब से अभी तक छिप कर वहीं रह रहे हैं, यह बात विकिपीडिया भी बता रहा है.

इतिहास बताता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर ईसवी सन 419 में बना था. 11वीं सदी में राजा हरिश्चंद्र ने यहां एक मंदिर का निर्माण कराया. 1194 में मुहम्मद गोरी ने वाराणसी के कई मंदिरों के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर को भी तोड़ डाला था. तत्पश्चात तोड़े गए मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया गया. बाद में पहुंचा कुतुबुद्दीन ऐबक. उस ने भी इस मंदिर को नष्ट किया. ऐबक की मृत्यु के बाद कई हिंदू राजाओं ने मंदिर का फिर से निर्माण कराया.

1351 में मंदिर के भगवान न जाने कहां थे जब फिरोजशाह तुगलक आया और उस ने इसे नष्ट किया, फिर 1585 में अकबर के दरबार में राजस्व मंत्री टोडरमल ने पुनर्निर्माण कराया. 1669 में औरंगजेब ने इसे नष्टभ्रष्ट करने का हुक्म दिया और यहां ज्ञानवापी मसजिद बनवा दी जो मंदिर परिसर में ही मौजूद है.

इस तरह यह मंदिर देसी हिंदू राजाओं और विदेशी आक्रांताओं के बीच खिलौना बना रहा. तोड़नेबनाने के खेल चलते रहे.

यह किस्सा तो बड़ा दिलचस्प है कि युद्ध के समय विदेशी आक्रमणकारियों से बचने के लिए शिवलिंग कुएं के अंदर कूद गया था. वाह, ब्रह्मांड के शासक इस धरती के मुहम्मद गोरी, कुतुबुद्दीन ऐबक, फिरोजशाह तुगलक जैसे इंसानी हमलावरों के भय से ऐसे जा छिपे जैसे वे सर्व- शक्तिमान भगवान नहीं, कोई डरपोक चूहे से भी गएबीते हों. माना जाता है कि असली शिवलिंग आज भी इस कुएं में ही है. इस मंदिर को बनाने, पुनर्निर्माण कराने और संचालन में कई हिंदू राजाओं और उन के परिवारों ने योगदान दिया. मौजूदा मंदिर मालवा की रानी अहल्या बाई होल्कर ने 1780 में बनवाया था.

1983 से उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से मंदिर का प्रबंधन किया जा रहा है. लिहाजा सुरक्षा का जिम्मा राज्य सरकार का है. सैकड़ों पुलिस वाले लगे रहते हैं.

आस्था का आलम यह है कि सचाई के बावजूद हर साल वहां लाखों अंधभक्तों का जमावड़ा लगता है, खुल कर दानदक्षिणा लुटाई जाती है पर यह सवाल किसी के मन में नहीं उठता कि जो भगवान खुद को नहीं बचा पाता, वह भक्तों की रक्षा कैसे कर सकता है.    

असल में यह सारा खेल पैसों का है. झूठे चमत्कारों, मनोकामनापूर्ति, मोक्ष के दावे कर के सदियों से लोगों को बहकाया जाता रहा है. चालाकीभरी तरकीबों से ख्वाब दिखाए जाते हैं और लोग हैं कि बिना बुद्धि लगाए, तर्कवितर्क किए भेड़ों की तरह उमड़ पड़ते हैं. वे चतुर, स्वार्थी लोगों द्वारा जिधर चाहे उधर हांके जा रहे हैं. एक भेड़ कुएं में गिर रही है तो बाकी भी उस के पीछे एक के बाद एक गिरती जा रही हैं, कुछ ऐसा ही माजरा है.  यह अंधी आस्था, पागलपन है. पता नहीं लोगों की बुद्धि पर पड़ा ताला कब खुलेगा.

एंजेलिना की हिम्मत

बीमारी से पहले सर्जरी करा लेना कि कहीं बीमारी न हो जाए, आमतौर पर सुना नहीं जाता पर हौलीवुड की अभिनेत्री एंजेलिना जोली ने अपने स्तन ही कटवा दिए और अब खुल्लमखुल्ला इस बात को जगजाहिर कर दिया. उन की मां को ओवरी कैंसर हो गया था जिस के कारण 56 वर्ष की आयु में ही उन की मृत्यु हो गई थी और एंजेलिना जोली को बै्रस्ट कैंसर होने के 87 प्रतिशत चांस?थे और ओवरी में कैंसर होने के 50 प्रतिशत, क्योंकि उन के स्तनों में बीआरसीए जीन मौजूद था.

यह फैसला हिम्मत का था क्योंकि एक फिल्म अभिनेत्री की सब से बड़ी पूंजी उस का शरीर होता है और अभिनेत्रियों को फिल्म में अकसर अपने?स्तन तक दिखाने होते हैं. प्लास्टिक रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के कारण एक छोटे से स्कार के अलावा उन को कोई नुकसान नहीं हुआ है.

बड़ी बात यह है कि एंजेलिना जोली जैसी सौंदर्य की प्रतिमूर्ति ने अपने शरीर में इस तरह का जोखिम लेने की हिम्मत की. आमतौर पर ब्रैस्ट कैंसर की पीडि़त औरतें महीनों नहीं वर्षों तक इस फैसले को टालती हैं कि स्तन कटने के बाद वे अधूरी रह जाएंगी और उन्हें न पति का प्यार मिलेगा, न समाज उन्हें इज्जत देगा. एंजेलिना जोली ने इस सोच को तोड़ कर साहस का उदाहरण पेश किया है.

3 अपने बच्चों और 3 गोद लिए बच्चों की मां के लिए इस तरह का फैसला लेना, खासतौर पर तब जब हर रोज अखबारों की सुर्खियां बनती हों, एक उदाहरण है. स्तन औरत की शान हैं पर कैंसर से तिलतिल कर मरने से अच्छा है कि उस अंग को कटवा दिया जाए जिस में कैंसर होने का खतरा हो.

यह खतरा पारिवारिक इतिहास पर निर्भर करता है. यदि मां, नानी, दादी, बहन आदि को इस तरह का कैंसर हो तो एंजेलिना जोली का संदेश है कि जांच करवाओ, अगर कैंसर का थोड़ा सा भी अंदेशा हो और डाक्टर कहे कि स्तन कटवाएं तो उस की बात मान लें. स्तन औरत का सौंदर्य है पर जीवन नहीं.

हो सकता है कि भविष्य बताए कि एंजेलिना जोली ने नाहक यह कदम उठाया, पर फिर भी इस तरह का डर दूर करने का हर यत्न करना फर्ज है. केवल सुंदर दिखते रहने के लिए डरना ठीक नहीं और अब तो पता भी नहीं चलता कि एंजेलिना जोली ने स्तन नकली बनवाए हैं.

कानून और नौकरशाही

देश की सरकार चाहे कितना कहे कि कानूनों का आदर हो और अदालतें कितना ही कानून के सम्मान की बात करें, असल में देश में कानून केवल अफसरों, नेताओं, अमीरों और पहुंच वालों का गुलाम है. कानून तोड़ कर अपराधी बनना तो एक बात है, यहां कानून तोड़ कर कानून बदलवाना और किसी को अपराधी बताने के लिए कानून का बदलना बाएं हाथ का खेल है. नागरिक कानूनों की अवहेलना कर अपना काम निकालने की जुगत भिड़ाते हैं, जबकि अफसर और नेता कानूनों के नाम पर आम नागरिकों को परेशान कर लूटते हैं.

दिल्ली में शहरी मकानों के बारे में बहुत से कानून अरसे से बने हैं जब दिल्ली एक बड़ा गांव  सी थी. ये कानून दिल्ली को साफसुथरा रखने के लिए जरूरी थे. हर व्यक्ति को भरोसा था कि कानून ऐसा है जिस से हरेक को लाभ होता है. पर धीरेधीरे लोगों की जरूरतें बढ़ने लगीं. ज्यादा लोग उसी जगह में छिपने की कोशिश करने लगे. बजाय कानूनों को सभी के लिए सामयिक व सहायक बनाने के, अफसरों और नेताओं ने पुराने कानूनों को सोने की खान समझ कर उन्हीं को मनचाहे ढंग से थोपना शुरू कर दिया.

कानून का जोर से उल्लंघन हुआ. नेताओं और अफसरों ने अनुमतियां देने या अवैध निर्माण की ओर से नजर हटाने के एवज में अरबों नहीं शायद खरबों कमाए. जब बहुत हल्ला हुआ तो अदालतों ने कानूनों का पालन करने पर जोर दिया पर न जाने क्यों, कानूनों को सरल बनाने की सिफारिश नहीं की. जब तोड़फोड़ की जाने लगी तो सभी अपराधों और अपराधियों को माफी देने वाला कानून बना डाला. पहले वाले कानून का कचरा हो गया.

वर्षों से बनी शहरभर की उन बस्तियों को अब अवैध से वैध किया जा रहा है जो उन जमीनों पर बनी हैं जिन्हें सरकार द्वारा कानूनों के अंतर्गत मामूली मुआवजे पर किसानों से छीना गया था पर चूंकि वर्षों खाली पड़ी रहीं, लोगों ने कब्जा कर मकान बना डाले. कुछ किसानों के अपने खेत थे जो उन्होंने फार्म हाउस बनाने के लिए बेचे, धीरेधीरे वहां बस्ती बन गई.

अवैध काम को कानूनी करना वैसा ही है जैसे संजय दत्त को 20 साल पहले के गुनाह के लिए माफ करना है. पर जैसे संजय दत्त के मामले में सरकार की गलती है कि उस ने सजा 20 साल पहले क्यों नहीं दिलाई, वैसी ही इस मामले में सरकार की है कि 20-25 साल पहले क्यों नहीं रोका गया, ये काम ऐसे नहीं कि रातोंरात हो रहे हैं.

असल में कानूनों की अवहेलना किए जाने में सरकारी अफसरों को बहुत पैसा मिलता है. वे कानून बनाते ही इसलिए हैं कि उन्हें तोड़ा जाए. ये वे कानून हैं जिन के टूटने से समाज को सीधा नुकसान नहीं होता. इसीलिए तो जब सड़क के किनारे पटरी पर पहली दुकान लगती है, लोग उस से खरीदारी कर उसे मान्यता देते हैं. बाद में वह हक बन जाती है. कानून का आदर सिर्फ चंद?रुपयों तक रह जाता है.

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