बात उस समय की है जब 1987 में मेरा विवाह हुआ. मेरी उम्र सिर्फ 20 वर्ष थी. मैं मराठी परिवार से हूं और मेरी शादी भी हमारे समकक्ष परिवार में ही हुई है. हमारे यहां विवाह के बाद बहू का नाम बदलने की प्रथा है, खासकर यदि वह घर की बड़ी बहू हो. लेकिन मेरे पति ने विवाह के बाद मेरा नाम बदला नहीं. मैं बहुत खुश हो गई.

एक दिन मैं ने अपने पति से इस की वजह पूछी. पति ने कहा, तुम्हारे मातापिता ने भी बड़ी भावनाओं के साथ तुम्हारा नाम रखा होगा तो मैं उसे क्यों बदलूं. मैं ऐसी प्रथाओं को नहीं मानता. आज भी यह बात सोच कर मेरा मन अपने पति के प्रति प्यार से भर जाता है.

नीता विंगले, नासिक (महा.)

 

मेरी सहेली के पति बेहद भुलक्कड़ हैं. एक बार वे स्कूटर से कहीं गए. रास्ते में एक जगह पैट्रोल भरवाते समय उन की पत्नी उतर कर शौचालय गईं. पति महोदय ने पैट्रोल भरवाया और चलते बने. पत्नी जब शौचालय से वापस आईं तो पतिदेव को न देख परेशान हो गईं, लेकिन अपने पति की आदत को जानते हुए आटोरिकशा से घर वापस आ गईं.

पति महोदय घर पहुंच कर आराम फरमा रहे थे. जब पत्नी ने पूछा कि मुझे क्यों छोड़ आए तो मासूमियत से बोले, ‘‘भई, जब तुम मेरे साथ गई ही नहीं थीं तो छोड़ने का सवाल कहां से आ गया.’’ मेरी सहेली अपने पति का मुंह देखती रह गई.

मंजू गोयल, पीतमपुरा (दिल्ली)

 

मुझे अपने पति की एक बात बहुत चुभती थी. जब भी घर में कोई रिश्तेदार या मित्रमंडली इकट्ठा होती सब मेरे बारे में ही बातें करते. उन की बातों में मीठापन कम कटाक्ष ज्यादा होता. शायद उन्हें इसी में मजा आता था.

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