धर्मशास्त्रों, धर्मगुरुओं व पंडेपुजारियों के प्रवचनों में यही बखान किया जाता है कि भगवान अपने भक्तों की हमेशा रक्षा करते हैं. पर उन के दावे तब खोखले साबित होते हैं जब मंदिरों में सुरक्षा की चौकसी बढ़ानी पड़ती है. जो भगवान खुद की रक्षा नहीं कर सकता वह भला अपने भक्तों की रक्षा कैसे करेगा? पढि़ए जगदीश पंवार का लेख.

देशभर में इन दिनों औरतों की सुरक्षा को ले कर बवाल मचा हुआ है. लोग सरकार, पुलिस, नौकरशाही को कोस रहे हैं. सब परेशान हैं लेकिन जब इस भारतभूमि के सर्वशक्तिमान भगवान खुद ही असुरक्षित हों तो औरत, आम जनता, सरकार और पुलिस की क्या बिसात. भगवान द्वारा भक्तों की रक्षा किए जाने के दावे धर्म की किताबों से ले कर धर्मगुरुओं व पंडों के प्रवचनों में बढ़चढ़ कर किए जाते हैं पर वे सब के सब खोखले साबित हो रहे हैं. यहां, भक्तों को अभयदान देने वाले भगवानों की बेचारगी जगजाहिर हो रही है.

गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर की मंगला आरती में शामिल होने हेतु टिकट के लिए लोगों को पहचान बताने की बात कही गई. इस के  लिए आधार कार्ड, मतदाता पहचानपत्र, ड्राइविंग लाइसैंस जैसे आईडी प्रूफ मान्य होंगे. जब भी इस तरह की बात होती है तो यही तर्क दिया जाता है कि यह कदम धर्मस्थलों पर बढ़ते खतरों को देखते हुए उठाया जा रहा है.

काशी विश्वनाथ मंदिर में पहचानपत्र दिखाने की व्यवस्था शायद इसलिए की जा रही होगी ताकि कोई भगवान को, मंदिर को और उन के भक्तों को नुकसान न पहुंचा सके.

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