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यह भी खूब रही

मेरी बिल्ंिडग में एक दक्षिण भारतीय परिवार रहता है. उस परिवार की एक सदस्या मेरी सहेली है. उस की सास को जरा भी हिंदी नहीं आती है. लेकिन उन से मेरी थोड़ीबहुत इशारों में बात हो जाती है.
एक बार मेरी सहेली काफी बीमार हो गई. मैं ने सोचा, फोन कर के उस का हालचाल पूछूं. जब मैं ने फोन किया तो उस की सास ने उठाया. हैलोहैलो होती रही, लेकिन न उन्हें मेरी भाषा समझ आई न मुझे उन की.
अचानक मुझे ‘बागोनारा’ शब्द याद आया, जो मेरी सहेली ने बताया था, जिस का अर्थ होता है, ‘सब ठीक है.’ मैं ने जैसे ही उन्हें बागोनारा बोला, वे समझ गईं कि मैं उन की बहू की सहेली बोल रही हूं और उन्होंने झट उस से मेरी बात करा दी. हम दोनों फोन पर खूब हंसीं.
सरोज गर्ग, मुंबई (महाराष्ट्र)

एक सेवानिवृत्त शिक्षक हर माह पैंशन लेने बैंक जाया करते थे. एक दिन जब वे पैंशन लेने बैंक गए तो वहां प्रत्येक काउंटर पर लंबीलंबी कतारें लगी थीं. जिस कतार में वे लगे वह कतार आगे सरक नहीं रही थी क्योंकि उस काउंटर का बाबू थोड़ी देर काम कर के कुछ समय के लिए गायब हो जाता था. उस की इस हरकत से परेशान वे महाशय उस काउंटर क्लर्क के पास पहुंचे और कहने लगे, ‘‘क्यों जी, आप इस के पहले किसी टीवी चैनल पर ऐंकरिंग करते थे क्या?’’
बाबू एकदम चौंक गया. बोला, ‘‘आप ने कैसे पहचाना?’’
‘‘यही कि आप थोड़ी देर के लिए काउंटर पर आते हो और हम लोगों से छोटे से ब्रेक की अनुमति ले, ‘कहीं जाइएगा नहीं’ कह कर पता नहीं कहां गायब हो जाते हो.’’ उन की इस बात से उस बाबू के काम में गति आ गई.
प्रकाश दर्प, इंदौर (म.प्र.)

मेरी बेटी पहली बार ससुराल से घर आई थी और उसी दिन उस की दूसरी विदाई थी. मैं विदाई की तैयारी में लगी थी. दामादजी को देने के लिए एक सोने की अंगूठी बनवाई थी. जाने से कुछ देर पहले ही मैं ने उन्हें वह अंगूठी देते हुए आग्रह किया कि वे अंगूठी पहन कर देख लें, सही है या नहीं.
उन्होंने डब्बी हाथ में ले कर खोली. देख कर बोले, ‘‘यह मेरे लिए नहीं है, अपनी बेटी को दे दीजिए.’’
मुझे बुरा लगा कि मेरे दिए हुए उपहार को वे इस तरह ठुकरा रहे हैं. मैं ने फिर भी उन से जिद की तो उन्होंने डब्बी को बंद कर के मुझे वापस कर दिया.
मैं ने उदास मन से डब्बी खोल कर देखी, तो हैरान रह गई. उस में मेरी बेटी के कान के बुंदे थे.
सुषमा सिन्हा, वाराणसी (उ.प्र.)

सैफरीना की प्रेम कहानी

रानी को राजा से प्यार हो गया. पहली नजर में दिल बेकरार हो गया. यह प्रेम कहानी है करीना कपूर और सैफ अली खान की. दिलोजान से सैफ पर फिदा करीना की जबानी प्रेम कहानी पेश कर रही हैं असावरी जोशी.

करीना कपूर और सैफ अली खान की प्रेम कहानी को थोड़ी सी बोल्ड, थोड़ी सी अलग कह सकते हैं. करीना कहती हैं, ‘‘2007 मेरे जीवन का सब से महत्त्वपूर्ण साल था. सबकुछ हाथ से निकल गया था, टूट गया था. मन की भड़ास बाहर किसी के साथ शेयर भी नहीं कर सकती थी. इसी बीच फिल्म ‘टशन’ की शूटिंग के लिए मैं और सैफ लद्दाख में थे. वैसे मैं ने और सैफ ने फिल्म ‘एल ओ सी कारगिल’ में एकसाथ काम किया था लेकिन तब हमारी इतनी ज्यादा बातचीत नहीं हुई थी. सैफ तो हमेशा से ही सभी के साथ अदब से पेश आते थे.

‘‘फिल्म ‘टशन’ के सैट पर भी हमारी ज्यादा बातचीत नहीं हो पाती थी. एक दिन होटल के लाउंज में मैं अपनी सहेली के साथ थी और मैं ने उन्हें देखा. होटल के पूल पर वे लाउंजचेयर पर लेटे थे. वे सिर्फ जीन्स में ही थे और उसी में वे हौट और सैक्सी दिख रहे थे. मुझे वे एकदम से अच्छे लगे. उस के बाद भी हमारे बीच उतनी ज्यादा बातचीत नहीं हो रही थी.

‘‘आहिस्ताआहिस्ता हमारे बीच फ्रैंडशिप होने लगी. पहले शौट के बाद हमारे बीच पहली बार ज्यादा बातें हुईं और उन्होंने इस बीच मुझे इतना हंसाया कि पूछो मत.’’ वर्ष 2007 की यादें फोन पर शेयर करते वक्त करीना बहुत ही प्रसन्न मुद्रा में लगी थीं, ‘‘उस के बाद हमारे बीच एक सुंदर सा रिश्ता साकार होने लगा. हम बाहर जाने लगे, मिलने लगे. जिसे हम डेटिंग कहते हैं और हम ने कभी किसी से कुछ भी छिपाया नहीं. इन मुलाकातों के बाद मैं ने दिल से सैफ को अपना जीवनसाथी मान लिया.’’

एक दिन सैफ सीधे करीना की मम्मी के पास गए और कहा कि करीना मेरे लिए बनी है, अब मुझे अपना जीवन इसी के साथ गुजारना है. इस बाबत करीना कहती हैं, ‘‘मेरी मम्मी को हमारे बारे में पहले से ही सबकुछ मालूम था, इसलिए उन के इनकार करने का सवाल ही नहीं था. फिर हम ने लिव इन रिलेशन में रहने की शुरुआत की. यह समय मेरी लाइफ का सब से अच्छा समय था. इसी दौरान हमारा रिश्ता और भी मजबूत होता गया. इस सुंदर रिश्ते ने हमें इतनी सारी खुशियां दीं कि हम दोनों को शादी के बंधन की कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई. लेकिन अम्मीजी यानी सैफ की मां की यही इच्छा थी कि हम विवाह बंधन में बंधें, हम ने इस का पालन किया.

‘‘अब तो हमारी शादी हो गई है. शादी के पहले भी मैं सैफ के घर जाती थी, उन के परिवार के साथ वक्त बिताती थी. हम पूरे 4 साल लिव इन रिलेशन में रहे. ‘‘सैफ ने मुझे जीना सिखाया. सैफ बहुत ही खुले विचारों के हैं. उन्होंने मुझे फिल्मों से आगे देखने के लिए प्रेरित किया. उन का स्वभाव मुझे बहुत अच्छा लगता है.’’

सैफ के व्यक्तित्व पर करीना दिल से मोहित हैं. उन के अनुसार, ‘‘सैफ का राजसी, कुलीन व्यक्तित्व तो किसी को भी मोहित करता है लेकिन उस से भी ज्यादा उन की काबिलीयत मुझे ज्यादा लुभाती है. हमारा प्रेम का रिश्ता दिनोंदिन मजबूत होता जा रहा है. इस में सैफ का शादीशुदा होना, उन के बड़े बच्चे होना, अमृता के साथ अलगाव होने के बाद भी उन का और एक अफेयर होना, मैं हिंदू तो उन का मुसलिम होना, ये सभी चीजें बहुत ही मामूली हैं. इन के बारे में मैं ने कभी कुछ सोचा ही नहीं. इसलिए दुनिया वाले मुझे नासमझ समझते हैं तो वह मैं नहीं हूं. यह फैसला मैं ने पूरी संजीदगी से लिया है.

‘‘शादी से पहले हमारा एकसाथ रहना यानी जीवन का पूरा लुत्फ उठाने जैसा है. हम ने हर छुट्टियां एकसाथ बिताई हैं. स्कीइंग, फिश्ंिग, कैरम, स्विमिंग इन सभी चीजों का हम ने एकसाथ मजा लिया है. सैफ ने मुझे क्या नहीं सिखाया है, उन्होंने बहुत सारी किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित किया. सैफ के कारण मैं ने फ्रैंच भाषा सीखी. आल्प्स पर्वतों की कड़ाके की ठंड का मजा हम दोनों ने एकसाथ लिया है.’’

करीना आगे कहती हैं, ‘‘हमारा सहजीवन तो 5-6 साल पहले ही शुरू हुआ, हम दोनों ने मिल कर एक पेंट हाउस लिया और उसे सजाया. इतनी खुशी मुझे पहले कभी नहीं मिली थी. जीवन इतना सुंदर होता है, यह सैफ के कारण ही मैं समझ पाई. शादी से पहले भी मैं उन के परिवार का एक हिस्सा थी और अब तो हूं ही. सैफ के बच्चों से मुझे बहुत ही लगाव है. वे भी मुझ से अदब से पेश आते हैं. शादी से पहले एकसाथ रह कर हमारे प्रेम में कोई कमी नहीं आई बल्कि अब तो शादी के बाद उस का स्वाद और भी बढ़ गया है.’’

सैफ और करीना की यह प्रेम कहानी वास्तव में आज के प्रेमीप्रेमिकाओं के लिए एक अच्छा उदाहरण है. वे दोनों करीब आए, इश्क पनपा और फिर अपने इश्क को सब की खुशी में बदलते हुए उसे कामयाबी के साथ परवान चढ़ाया.

पाठकों की समस्याएं

मेरे मातापिता के बीच प्यार में अकसर नोकझोंक होती रहती है लेकिन आजकल घुटने की तकलीफ के चलते मेरी मां खीझ उठती हैं. इसी परेशानी में उन्होंने एक दिन पिताजी से कह दिया कि अमुक काम नहीं हुआ तो वे घर छोड़ कर चली जाएंगी. मैं अपनी मां के इस व्यवहार से बहुत परेशान हूं.
आप के मातापिता में प्यारभरी नोकझोंक होना तो अच्छी बात है. प्यारभरी नोकझोंक किसी भी रिश्ते की उम्र बढ़ाती है. आप की मां के खीझभरे और चिड़चिड़े व्यवहार का कारण उन की घुटनों की तकलीफ है जिस का आप जल्द से जल्द इलाज कराएं. मां को किसी अच्छे आर्थोपैडिक सर्जन को दिखाएं. जब उन की शारीरिक परेशानी दूर हो जाएगी तो उन का रूखा व चिड़चिड़ा व्यवहार भी बदल जाएगा.

मैं 25 साल की विवाहिता हूं. मेरे 2 बच्चे हैं. पिछले दिनों मुझे पता चला कि शादी से पूर्व मेरे पति के अपनी भाभियों के साथ नाजायज संबंध थे. मुझे शक है कि वे संबंध आज भी बरकरार हैं. मैं जब भी पति को अपनी भाभियों के साथ बात करते देखती हूं, मुझे बहुत गुस्सा आता है और सारा गुस्सा बच्चों पर निकलता है.
आप की परेशानी का कारण आप का बेमतलब की जलन करना है. भाभियों से चुहलबाजी को अन्यथा न लें. उन के पतियों को भी आपत्ति होगी. बच्चों को मारनापीटना कोई समझदारी नहीं है. जब तक आप को प्रेम मिल रहा है खुद भी खुश रहिए और पति और बच्चों को भी खुश रखिए.

मैं 55 वर्षीय विकलांग, अकेली, तलाकशुदा महिला हूं. मेरी समस्या यह है कि मैं अपनी 30 वर्षीय बेटी की शादी कैसे करूं? कृपया सही समाधान बता कर मेरी मदद कीजिए.
आप की बेटी अगर शिक्षित और आत्मनिर्भर है तो समाज में उस के योग्य अनेक वैवाहिक रिश्ते मौजूद होंगे. योग्य वर के लिए मैट्रीमोनियल सर्विसेज की भी मदद ले सकती हैं. आप समाजसेवी संस्थाओं की भी मदद ले सकती हैं जो सामूहिक विवाह का आयोजन कराती हैं. तलाकशुदा होने और विकलांगता को अपनी राह का रोड़ा न समझें और साहस व आत्मविश्वास के साथ अपनी बेटी के लिए योग्य वर का चुनाव कर के उस का विवाह कराएं.

मैं 38 वर्षीय विवाहिता हूं. पिछले दिनों मैं ने अपने 12 वर्षीय बेटे को इंटरनैट पर पौर्न साइट देखते हुए पकड़ लिया. मुझे देखते ही वह झेंप गया. उस समय मैं ने भी उस से कुछ नहीं कहा. उस दिन के बाद से वह चुपचाप रहने लगा है. मुझे समझ नहीं आ रहा है मैं इस विषय पर अपने बेटे से बात करूं या नहीं, और करूं तो कैसे करूं?
उम्र के इस बदलाव भरे दौर में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों और गुप्तांगों में होने वाली उत्तेजना किशोरों को पौर्न साइट व अश्लील पत्रपत्रिकाएं देखने को उकसाती हैं. अगर आप इस विषय पर अपने बेटे से बात नहीं करेंगी तो वह चोरीछिपे अन्य गलत तरीकों से अपनी जिज्ञासा शांत करने का प्रयास करेगा. इसलिए आप अपनी झिझक से बाहर निकल कर इस विषय पर खुल कर अपने बेटे से बात करें और उसे सहीगलत की जानकारी दें. पौर्न साइटों पर ज्यादा नाकभौं न चढ़ाएं.

मैं 47 वर्षीय विवाहित पुरुष हूं. पत्नी की उम्र 45 वर्ष है. मेरी समस्या यह है कि पत्नी सैक्स में बिलकुल रुचि नहीं लेती. और तो और, इस विषय पर बात करने से भी कतराती है.
दरअसल, आप की पत्नी इस समय मेनोपोज के काल से गुजर रही हैं. इस समय सैक्स के प्रति अरुचि होना सामान्य है. मेनोपोज के समय एस्ट्रोजन हार्मोन की कमी से उत्तेजना कम होती है. आप चाहें तो सैक्सोलौजिस्ट या सामान्य डाक्टर से संपर्क कर सकते हैं जो सही काउंसलिंग व दवाओं द्वारा मेनोपोज के प्रभाव को कम करने के उपाय बता सकता है.

मैं 25 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. शादी को 5 साल हो गए हैं. मेरी समस्या यह है कि मेरी ननद अपने 5 बच्चों के साथ हमेशा मेरी ससुराल यानी अपने मायके में लगभग रोज आती रहती है जिस से मेरा जीना हराम हो गया है. अपना घर होते हुए भी मुझे यह घर अपना नहीं लगता. पूरा समय ननद के बच्चों के काम में निकल जाता है. रसोई के कामों से फुरसत नहीं मिलती है. मैं और मेरे पति एकदूसरे के साथ समय नहीं बिता पाते. कोई रास्ता बताइए जिस से मेरी समस्या हल हो जाए.
आप की ननद का ऐसा करना सर्वथा अनुचित है. आप इस बारे में अपने पति व अन्य?घर वालों से बात कीजिए. उन्हें समझाइए कि अगर आप भी आप की ननद की तरह हमेशा अपने मायके में रहेंगी तो न तो आप के ससुराल वालों को अच्छा लगेगा, न ही आप की भाभी को. रिश्ते में मेलजोल अच्छी बात है लेकिन इतना?भी न हो कि इस से दूसरों को परेशानी हो. आप चाहें तो ननद के पति से इस बारे में बात कर सकती हैं. अपनी समस्या से उन्हें अवगत कराएं. अगर वे समझदार होंगे तो अपनी पत्नी को अवश्य समझाएंगे. आप ननद को उन के बच्चों की पढ़ाईलिखाई की तरफ ध्यान दिला कर भी उन का घर में आनाजाना कम करा सकती हैं.

 

मैं 16 वर्षीय 11वीं कक्षा का छात्र हूं. मेरी समस्या यह है कि पिछले कुछ दिनों से मेरे स्कूल के कुछ छात्र मेरे साथ गंदी हरकतें कर रहे हैं. जब मैं उन्हें ऐसा करने से मना करता हूं तो वे मुझे धमकाते हैं. मैं बहुत डर गया हूं. पढ़ाई से भी मेरा ध्यान भटक रहा है. क्या करूं?
आप बिना डरे अपने मातापिता व स्कूल टीचर को इस बारे में खुल कर बताएं. जैसे आप को बदनामी का डर है वैसे उन छात्रों को भी अवश्य होगा.

इन्हें भी आजमाइए

  1. एक नीबू के रस में 3 चम्मच शक्कर, 2 चम्मच पानी मिला कर घोल कर बालों की जड़ों में लगाएं व 1 घंटे बाद धो दें, बालों की रूसी दूर हो जाएगी और बाल गिरना भी बंद हो जाएंगे.
  2. यदि आप को पेटदर्द होता है तो भुनी हुई सौंफ चबाइए, तुरंत आराम मिलेगा. सौंफ की ठंडाई बना कर पीजिए, इस से गरमी शांत होगी और जी मिचलाना बंद हो जाएगा.
  3. शरीर के किसी भी भाग या हाथपैर में जलन होने पर तरबूज के छिलके के सफेद भाग में कपूर और चंदन मिला कर लेप करने से जलन शांत होती है.
  4. घर को नेचुरल लुक देने के लिए फूलों का प्रयोग करें. फूल ताजा व असली हों तो ठीक अन्यथा आर्टिफिशियल फूलों का इस्तेमाल कर सकते हैं.
  5. हींग में रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है. दाद, खाज, खुजली व अन्य चर्म रोगों में इस को पानी में घिस कर उन स्थानों पर लगाने से लाभ होता है.
  6. दही में अजवाइन मिला कर पीने से कब्ज की शिकायत दूर होती है.
  7. तुलसी के 5 पत्ते प्रतिदिन चबाएं, सांस की बदबू दूर होगी.

जीवन की मुसकान

बात 15 साल पहले की है. हम लोग सहारनपुर में थे. मेरे पति वहां सर्विस करते थे.
1995 में मेरे ससुर का निधन हो गया. बड़ा सा घर खाली रहता, सो, मेरे पति मुझे व मेरे दोनों बच्चों को जयपुर छोड़ गए. उस समय मेरा छोटा बेटा 10वीं में था. कुछ समय बाद मैं बहुत बीमार हो गई.
मेरे पति लंबे समय के लिए 2 बार मुझे सहारनपुर ले गए. इस बीच बच्चे अकेले ही जयपुर में रहे. जब मैं जयपुर आती तो मेरी पड़ोसिन कहती, ‘‘देखा, आप के न रहने से आप का छोटा बेटा दिनभर पतंग उड़ाता रहता है.’’
मैं बहुत दुखी होती व अपने को अपराधी समझती कि मेरे कारण मेरा बेटा पढ़ाई में मन नहीं लगा पा रहा है. वह पढ़ाई में पीछे हो जाएगा जबकि 10वीं की बोर्ड की परीक्षा है. आखिर परीक्षा का समय आ गया. मेरा दिल बहुत घबरा रहा था, पता नहीं क्या होगा. मैं तो यह ही सोच रही थी कि ज्यादा से ज्यादा पास भर होगा. इसलिए उस का रिजल्ट देखने का बिल्कुल भी उत्साह नहीं था.
गरमियों की छुट्टियों में हम लोग सो रहे थे कि एक दिन सुबहसुबह एक फोन आया जो मैं ने रिसीव किया. फोन मेरे बेटे के पिं्रसिपल का था. वे बोले, ‘‘बधाई हो, आप के बेटे की 10वीं की परीक्षा में पूरे राजस्थान में 35वीं रैंक आई है.’’
मुझे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ.
मैं ने कहा, ‘‘सर, यह किसी और का रिजल्ट होगा.’’
जब उन्होंने कहा कि नहीं मैडम, आप के बेटे गरुड़ का ही है, तब मुझे विश्वास हुआ. मारे खुशी के बहुत देर तक मुझ से कुछ बोला ही नहीं गया.
थोड़ी देर बाद सामान्य हो कर मैं ने बेटे को जगा कर खूब प्यार किया. उस ने बिना किसी गाइडैंस के इतनी बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर के मेरा सीना गर्व से चौड़ा कर दिया था.
आशा गुप्ता, जयपुर (राज.)

*

हमारे एक रिश्तेदार हैं जिन की बाजार में दुकान है. उन का 16 वर्षीय बेटा अपने दोस्तों के साथ मिल कर पौकेटमनी इकट्ठा कर गिनती कर रहा था. उस के पापा ने पैसा देख कर डांट लगाते हुए कहा, ‘‘यह समय पढ़ाई का है या पार्टी मनाने का.’’
इस पर बेटे ने सहज ढंग से उत्तर दिया, ‘‘पापा, यह पैसा पार्टी के लिए नहीं, केदारनाथ धाम के पीडि़तों के लिए हम अपनी पौकेटमनी इकट्ठा कर भेज रहे हैं.’’
यह सुन कर वे चकित हुए और गर्व महसूस करने लगे.
शालिनी बाजपेयी, चंडीगढ़

सूक्तियां

भय
तब तक ही भय से डरना चाहिए जब तक वह पास नहीं आता परंतु भय को अपने निकट आता हुआ देख कर प्रहार कर के उसे नष्ट करना ही उचित है.

मानवता
मनुष्य हो कर भी जो दूसरों का उपकार करना नहीं जानता उस के जीवन को धिक्कार है. उस से धन्य तो पशु ही हैं जिन का चमड़ा तक  (मरने पर) दूसरों के काम आता है.

डांवांडोल
जीवन में विशेषकर राजनीति में कोई चीज इतनी हानिकारक और खतरनाक नहीं है जितनी कि डांवांडोल स्थिति में रहना.

ज्ञान
ज्ञान धन से उत्तम है क्योंकि धन की तुम को रक्षा करनी पड़ती है और ज्ञान तुम्हारी रक्षा करता है.

दुर्बल
दुर्बल और अज्ञानी लोग ही हमेशा सब से अधिक नुक्ताचीनी किया करते हैं.

नास्तिक
ढोंगी बनने की अपेक्षा स्पष्ट रूप से नास्तिक बनना अच्छा है.

सर्वश्रेष्ठ
भोजन, शांति और विनोद ही संसार के सर्वश्रेष्ठ डाक्टर हैं.

जिंदगी के रंग

कभी जो खिलखिलाते थे
जिंदगी में रंग लाते थे
किताबों के सफों में
दबे खामोश बैठे हैं
मगर लगते मुसकराते से
आंखें अब नहीं करतीं
नमी का जिक्र भी उन से
खुशियों के अवसर
लगते झरते से पासपास
मोती के पहने लिबास
झरती हैं बूंदें बारबार
जी चाहे अंजुरी में भर लूं
आंखों से पी लूं
या आंचल में इन्हें छिपा लूं

दर्द के बोझिल पलों के कारवां
जिंदगी के साथ चलते रहे
डरे, सहमे पलकों के पीछे छिपते
विश्राम के लिए
कभी मुसकराने के जतन भी किए
अंधेरों के सिरहाने मिले
तो बहने भी लगे.

निर्मला जौहरी

बच्चों के मुख से

मेरी बेटी रिया 3 साल की है. मैं जो भी काम करती हूं उसे वह बड़े ध्यान से देखती है. मैं उस के लिए संतरे का रस महीन कपड़े से निचोड़ कर निकालती हूं.
एक बार मुझे कपड़े धोते और निचोड़ते देख रिया कुछ सोच कर बोली, ‘‘मम्मी, आप कपड़ों का जूस निकाल रही हैं?’’ यह सुन कर मुझे बहुत जोर की हंसी आ गई और मैं ने उसे गले से लगा लिया.
कुसुम भटनागर, गाजियाबाद (उ.प्र.)

हमारे पड़ोसी का 6 वर्षीय बेटा बड़ा नटखट और हाजिरजवाब है. एक दिन उस की मम्मी ने उस से कहा, ‘‘प्रत्यक्ष, तुम सोहम के साथ खेलना बंद करो. वह अच्छा लड़का नहीं है, तुम्हें भी बिगाड़ देगा.’’ प्रत्यक्ष तपाक से बोला, ‘‘मेरे साथ खेल कर सोहम सुधर भी तो सकता है.’’
यह बात सुनते ही हम लोगों की हंसी निकल गई, लेकिन उस की बात हमें अच्छी लगी.
निर्मल कांता गुप्ता, कुरुक्षेत्र (हरियाणा)

मेरा बेटा बहुत हाजिरजवाब है. पिछली बार परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त होने पर उस के पापा ने शाबाशी देते हुए कहा, ‘‘बेटा, तुम खूब पढ़ो और इतने महान बनो कि दुनिया के चारों कोनों में तुम्हारा नाम हो.’’
उस ने झट से उत्तर दिया, ‘‘महान तो मैं बन जाऊंगा पर एक समस्या है, पापा. दुनिया गोल है तो मेरा नाम चारों कोनों में कैसे फैलेगा?’’
उस का उत्तर सुन कर हम सब स्तब्ध रह गए.
शिवानी श्रीवास्तव, ग्रेटर नोएडा (उ.प्र.)

मेरे दोनों बच्चे अमेरिका में रहते हैं. मैं व मेरे पति अकसर उन से मिलने वहां जाते रहते हैं. इस बार हम जब बेटी के यहां से आ रहे थे तो बेटी बहुत रो रही थी. मेरा दिल भी बच्चों से बिछड़ते हुए दुखी था.
मेरी नातिन, जो 7 साल की है, मां को दुखी देख कर परेशान हो रही थी. फिर वह हमारे पास आ कर बोली, ‘‘आप क्यों रो रही हो, पापा तो नहीं रो रहे हैं.’’
जब हम दोनों रोतेरोते हंसने लगे तो वह बोली, ‘‘बताओ न मम्मी, नानूनानी जा रहे हैं तो आप की तरह पापा क्यों नहीं रो रहे?’’ उस की भोली बात सुन कर रोने से जो मन भारी था, हंस कर हलका हो गया.
स्नेह, मयूर विहार (दिल्ली)

मेरी भतीजी जब 4 साल की थी तब एक दिन गरमी की वजह से उसे बदहजमी हो गई. उसे उल्टी हुई. उल्टी कर वह सीधी अपनी मां के पास पहुंची और चिंतित हो कर बोली, ‘‘मम्मी, मुझे उल्टी हुई है, क्या मैं मां बनने वाली हूं?’’ उस की यह बात सुनते ही हम सब हंसतेहंसते लोटपोट हो गए.
साधना बाजपेयी, ग्वालियर (म.प्र.)
 

खुद से पूछे

दो घड़ी तन्हा भी बैठा जाए
कैसे हो खुद से ये पूछा जाए

नहीं दिखता बहुत करीब से भी
तुम को कुछ दूर से देखा जाए

अपने बारे में सभी सोचते हैं
सब के बारे में भी सोचा जाए

इल्म की शमा को रौशन कर के
तीरगी का गुमां तोड़ा जाए

सब को खुद ही तलाशनी मंजिल
जाते राही को न रोका जाए

घर तो अपना सजा लिया ऐ ‘सरल’
दिल के जालों को भी झाड़ा जाए.

मुकुल सरल
 

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