दिल अपना दर्द का भंडार बन गया
जैसे तमाम गमों का इश्तिहार बन गया
पहले तो न थे हम इस तरह के आदमी
देखा उसे जब से दिल बीमार बन गया
खुशियां तमाम रूठी रहीं हम से जहान की
जीना हमारा खुशी का इंतजार बन गया
वो प्यारभरे लमहे न जाने कहां गुम हुए
अब गुफ्तगू का मतलब तकरार बन गया
दुनिया झुकती है सिर्फ दौलत वालों से
दौलत जिसे मिली वही इज्जतदार बन गया.
हरीश कुमार ‘अमित’
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