मेरे पति रामकृष्ण अपने डाक्टर मित्र की क्लिनिक पर बैठे थे, तभी कलैक्ट्रेट औफिस में काम करने वाला बाबू अपने इलाज के लिए आया. डाक्टर साहब ने पूछा, ‘‘क्या तकलीफ है?’’

जवाब में मरीज ने कहा, ‘‘साहब, पूरे समय पेट में जलन रहती है, एसिडिटी रहती है, इस से जी घबराता है.’’

डाक्टर साहब ने पूछा, ‘‘चाय तो अधिक नहीं पीते?’’

बाबू ने दुखी स्वर में कहा, ‘‘औफिस में लोग मुझ से काम निकलवाने आते हैं और जबरन चाय पिला देते हैं, इसी के कारण मेरी तबीयत खराब रहती है.’’

डाक्टर साहब ने कहा, ‘‘अब जो भी काम के बदले में चाय पिलाए तो उसे कहना, अभी तो मैं चाय नहीं पीऊंगा आप औफिस की कैंटीन में मेरे पैसे जमा करा दें, मैं बाद में पी लूंगा.’’

और जब घर जाना हो तो जाते समय चाय न पीएं और दिनभर के जो पैसे कैंटीन वाले के पास रखे हों, उन्हें घर ले जाएं. इस से तबीयत भी ठीक रहेगी और पैसे अलग मिलेंगे.

बाबू बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘डाक्टर साहब, आप बहुत अच्छे हैं. मेरी चाय भी छुड़ा दी और चार पैसे भी मुझे मिल गए.’’

प्रतिभा रामकृष्ण श्रीवास्तव, इंदौर (म.प्र.)

 

मेरी एक सहेली और उस के पति अपने को बहुत चालाक और स्मार्ट समझते हैं. सहेली सीमा की आदत थी कि वह समयबेसमय अपने पति के साथ आ धमकती. नाश्ते से ले कर खाना आदि खा कर ही जाती. उस की इस आदत से मुझे बड़ी झल्लाहट होती, किंतु हम लोग संकोचवश कुछ कह नहीं पाते. जब भी हम लोग उस के घर जाने की बात कहते तो कहती कि मुझे एक रोज पहले ही फोन कर देना. फोन पर जब मैं उस के घर जाने की बात करती तो झट से बोल पड़ती, ‘‘अरे, नीरा, मैं तो शौपिंग करने आई हूं. प्लीज, दूसरे दिन आना.’’

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