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पाठकों की समस्याएं

मैं 30 वर्षीया, तलाकशुदा, 5 वर्षीय बेटे की मां हूं. एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करती हूं. मेरे मातापिता मेरे पुनर्विवाह पर जोर डाल रहे हैं. मुझे डर है कि मेरा दूसरा विवाह सफल होगा या नहीं? क्या मेरे होने वाले पति मेरे बेटे को पूरा प्यार देंगे?

आज सौतेले पिता अपनी सीमाओं को समझते हैं. अगर आप या आप के सगेसंबंधी बेटे को बहकाएं नहीं तो पितापुत्र संबंध अच्छा बन सकता है. इसलिए केवल इसी कारण से आप पुनर्विवाह का विरोध न करें. आप को लंबा जीवन बिताना है और बिना पुरुष सैक्स के यह आसान नहीं है. दूसरे विवाह पर ना न करें और आत्मविश्वास के साथ विवाह करें.

 

मैं शादीशुदा, 35 वर्षीया महिला हूं. पिछले दिनों मेरी मुलाकात मेरे पुराने कालेज फ्रैंड से हुई जो शादीशुदा है. हमारी कई बार फोन पर बात हुई और हम पुराने दोस्तों की तरह 1-2 बार मिले भी. लेकिन मुझे पता चला है कि दोस्त की पत्नी को हमारी बातचीत व मिलनेजुलने पर एतराज है. वह हमारे रिश्ते पर शक करती है. मैं क्या करूं? मैं न तो दोस्त का घर बरबाद होते देख सकती हूं और न ही दोस्त को खोना चाहती हूं.

आप अच्छे दोस्त हैं, यह केवल आप और आप का दोस्त जानता है, दोस्त की पत्नी नहीं. इसलिए आप अपने दोस्त की पत्नी से मिलें, बात करें, उन के शक का समाधान करें और समझाएं कि आप केवल अच्छे दोस्त हैं. इस तरह दोस्त की पत्नी को आप की दोस्ती पर शक नहीं होगा और आप अपने दोस्त को भी नहीं खोएंगी. आप चाहें तो अपनी फैमिली के साथ अपने दोस्त के परिवार का फैमिली गेटटुगेदर भी कर सकती हैं. इस से दोनों परिवारों के बीच प्यार बढ़ेगा और आप की दोस्ती भी बरकरार रहेगी. वैसे भी ऐसे मामलों में दोस्ती की चर्चा घर में ज्यादा नहीं करनी चाहिए और इसे छिपा कर रखना चाहिए.

 

मैं अपनी 13 वर्षीया बेटी को ले कर बहुत परेशान हूं. आजकल वह अपना अधिकांश समय अपने दोस्तों के साथ व्यतीत करती है. हर समय उन से चैटिंग करती रहती है. मुझे डर है कि उस के दोस्तों का उस पर नैगेटिव प्रभाव न पड़े.

उम्र के इस दौर में किशोरों का अपने दोस्तों के प्रति झुकाव या विश्वास सामान्य बात है. लेकिन साथ ही यह समय आप के सजग रहने का भी है. बेटी के दोस्तों के बारे में जानें, उन्हें अपने घर पर बुलाएं. अगर बेटी के दोस्त अच्छे संस्कारी परिवारों के हैं तो बेटी पर कोई नेगेटिव प्रभाव नहीं पड़ेगा बल्कि दोस्त अगर अच्छे हों तो बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और वे गलत राह पर नहीं भटकते. अपनी बेटी को अच्छे व बुरे दोस्तों की परख करना सिखाएं और स्वयं भी बेटी से दोस्ताना व्यवहार रखें.

 

मैं 22 वर्षीय अविवाहित युवक हूं. घर में मेरी शादी की बात चल रही है. मुझे लड़की भी बेहद पसंद है पर एक बात है जो मुझे परेशान कर रही है. दरअसल, कालेज के दिनों में मेरा अपनी एक गर्लफ्रैंड के साथ शारीरिक संबंध स्थापित हो गया था. अब मेरा उस लड़की से कोई संबंध नहीं है, क्या जिस लड़की से मैं शादी कर रहा हूं उसे मुझे इस बारे में बताना चाहिए? बताने पर कहीं वह मुझ से विवाह के लिए इनकार तो नहीं कर देगी?जो घटना घट चुकी है उसे एक हादसा समझ कर भूल जाइए और जिस लड़की से विवाह की बात चल रही है उसे इस बारे में बताने की भूल बिलकुल भी न कीजिए. नए रिश्ते की शुरुआत नए सिरे से कीजिए और उसे पूरी ईमानदारी, प्यार और विश्वास के साथ निभाइए.

 

मैं 28 वर्षीया उच्चशिक्षित, विवाहिता हूं. पति का अच्छा व्यवसाय है. घर की आर्थिक स्थिति भी अच्छी है. पर मैं घर पर बैठेबैठे बोर हो जाती हूं और कोई नौकरी करना चाहती हूं. ऐसा कर के मैं अपनी शिक्षा और समय का सदुपयोग करना चाहती हूं लेकिन पति और सास मेरे नौकरी करने के सख्त खिलाफ हैं. उन्हें मेरा बाहर जा कर नौकरी करना पसंद नहीं. आप ही बताइए, मैं क्या करूं?

सब से पहले आप अपने पति और सास को समझाइए कि आप पैसों के लिए नहीं बल्कि अपनी खुशी के लिए नौकरी करना चाहती हैं. शायद उन्हें आप की यह बात समझ आ जाए. अगर तब भी बात न बने तो आप घर से ही कुछ व्यवसाय कर सकती हैं या पति के व्यवसाय में मदद कर के अपनी शिक्षा और समय का सदुपयोग कर सकती हैं. ऐसा करने से पति की शिकायत भी दूर हो जाएगी और आप की शिक्षा और समय दोनों का सदुपयोग हो जाएगा.

 

मैं 21 वर्षीय छात्र हूं. पिछले दिनों फेसबुक पर मेरी एक लड़के से फ्रैंडशिप हुई. हमारी औनलाइन चैटिंग होती थी. फिर एक दिन अचानक उस फ्रैंड ने मुझे बताया कि वह लड़का नहीं बल्कि लड़की है. क्या ऐसा भी होता है? हालांकि मैं ने उस से कोई व्यक्तिगत बातें शेयर नहीं कीं फिर भी वह लड़की जबरदस्ती मेरे पीछे पड़ी है. क्या वह मुझे कोई नुकसान पहुंचा सकती है? आप ही बताइए, मैं क्या करूं?

फेसबुक पर ‘फेक आई डी’ बना कर दोस्ती करना आम बात है और इस दौरान ज्यादा नजदीकियां या व्यक्तिगत बातें शेयर करना नुकसानदेह हो सकता है. आप के केस में अच्छी बात है कि आप ने उस से कोई व्यक्तिगत बातें शेयर नहीं कीं. आप अपने अकाउंट से उस फ्रैंड को डिलीट कर दीजिए. आगे भी ध्यान रखिए केवल उन्हीं लोगों को फ्रैंड लिस्ट में शामिल कीजिए जिन्हें आप व्यक्तिगत रूप से जानते हैं. वैसे भी यह समय आप का पढ़ाईलिखाई व कैरियर बनाने का है, इसे फेसबुक जैसी साइट पर दोस्तों से चैटिंग करने में बरबाद मत कीजिए.

इन्हें भी आजमाइए

  1. लैमन सैट के जग का हैंडिल टूट जाए तो उसे फेंकें नहीं बल्कि उसे अपने लिविंगरूम या डायनिंगरूम की साइड टेबल पर रख कर फ्लावर पौट के रूप में इस्तेमाल करें.
  2. साबुनदानी में एक स्पंज के टुकड़े के ऊपर साबुन रखें. साबुन से गीले हुए उस स्पंज से वौशबेसिन, टाइल्स, नल आदि साफ किए जा सकते हैं.
  3. सूई के छेद में धागा पिरोना मुश्किल हो रहा हो तो धागे के सिरे को साबुन के घोल में डिप कर निकाल लें, धागा सूई में आसानी से चला जाएगा.
  4. संतरे के छिलकों को फेंकें नहीं. धूप में सुखा कर उन्हें अलमारी में जहांतहां रखें, अलमारी में किसी तरह की दुर्गंध नहीं रहेगी.
  5. परफ्यूम की खाली शीशी के स्टौपर को हटा कर अपने कपड़ों के बीच रखें, आप के पसंदीदा परफ्यूम की खुशबू कपड़ों में आ जाएगी.
  6. रसोईघर की स्लैब को सिरके में भीगे कपड़े से साफ करें, चींटियां नहीं आएंगी.
  7. भोजन के बाद गाजर का एक टुकड़ा खाएं. मुंह में रह गए भोजन के कण नहीं रहेंगे.

मेरे पापा

मैं ने मम्मी को हमेशा घर का काम व हमारा पूरा खयाल रखते हुए देखा है. पापा अपने बिजनैस में ही व्यस्त रहते. घर पर आते तो अपने काम में लगे रहते. इसलिए हमारे मन में यह धारणा बन गई कि मम्मी हमें पापा से ज्यादा चाहती हैं.

एक बार मम्मी को किसी जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा. उन की गैरहाजिरी में पापा ने हमारा पूरा खयाल रखा. हमें मम्मी के न होने का एहसास भी नहीं हुआ था. हम ने मम्मी के आने पर तारीफ की और सारी दिनचर्या के बारे में विस्तार से बताया.

मम्मी का यही जवाब था कि मेरे जाने पर तो सब कर लेते हैं, मेरे सामने कुछ नहीं करते. बात आईगई हो गई. परंतु कुछ दिनों बाद मम्मी बीमार पड़ गईं. तब पापा ने मम्मी का जीजान से इलाज करवाया व डाक्टर के यहां ले जाना, समय पर दवाइयां देना जैसी बातों का पूरा खयाल रखा. साथ ही हमारा भी ध्यान रखा.

पापा का व्यवहार व प्यार देख कर हमारे मन में पापा के प्रति जो धारणा थी अब वह बदल गई. पापा का यह व्यवहार हमारे दिल को छू गया. मम्मी स्वस्थ हो गईं व हम पापा को दिलोजान से प्यार व सम्मान देने लगे.

बातोंबातों में पापा ने एक दिन कह ही दिया कि तुम्हारी मम्मी अच्छी तरह से तुम लोगों की देखभाल करती हैं, इसलिए मैं बेफिक्र हो कर व्यवसाय अच्छी तरह संभाल पाता हूं. तो, ऐसे अच्छे हैं मेरे पापा.

सुरभी बल्दवा, इंदौर (म.प्र.)

 

मेरे पापा जिस कालेज में प्रोफैसर रहे वहीं से मैं ने स्नातकोत्तर तक पढ़ाई की. वे शुरू से ही कर्मठ व अनुशासनप्रिय रहे. मैं और मेरी सहपाठिनें उन से बहुत डरती थीं और कुछ भी मौजमस्ती करने के बारे में सोच कर ही घबराती थीं, क्योंकि किसी भी प्रोफैसर के जरिए हमारी शिकायत उन तक पहुंच जाती थी.

नतीजतन, हमें डांट व चेतावनी मिलती थी. वे कालेज में मेरी क्लास भी लेते थे और किसी भी प्रश्न का जवाब न दे पाने पर मुझ से भी वैसा ही व्यवहार करते थे जैसा कि अन्य विद्यार्थियों से. मैं घर आ कर उन से शिकायत करती तो वे समझाते थे कि कालेज पढ़ाई करने जाते हैं न कि व्यर्थ की मौजमस्ती के लिए.

उस समय मुझे लगता था कि उन की वजह से मैं विद्यार्थी जीवन का कोई आनंद नहीं ले पाई पर आज जब मैं 2 बेटियों की मां हूं, महसूस करती हूं कि उन की दी हुई सीख पर अमल कर के ही मैं अपना व अपनी बेटियों का जीवन बेहतर बना सकी. उन के आशीर्वाद की छत्रछाया मुझे आज भी मानसिक संबल प्रदान करती है.   

अर्चना वर्मा, इंदौर (म.प्र.)

हमारी बेडि़यां

घटना दीवाली के दिन की है. पूजन के बाद मेरे जीजाजी दीया बुझाए बिना ही दुकान बढ़ा कर घर आ गए क्योंकि ऐसी मान्यता है. इस दिन दीया बुझाया नहीं जाता है. रात को चूहे द्वारा दीये की घी से सराबोर बाती को खाने के चक्कर में दीया पलट गया, जिस से पास में रखे स्कूली कपड़ों के साथसाथ किताबों में आग लग गई और आग ने थोड़ी ही देर में आधी दुकान को अपनी चपेट में ले लिया. लाखों का माल स्वाहा हो गया. इस प्रकार एक अनावश्यक प्रथा को निभाने के चक्कर में आर्थिक नुकसान के साथसाथ मानसिक परेशानी भी झेलनी पड़ी.

मनोज जे जैन, चेन्नई (तमिलनाडु)

 

मेरी भांजी 3 महीने से बीमार चल रही थी. मेरी बहन का ध्यान दवा आदि की ओर कम और झाड़फूंक व भभूत की तरफ अधिक था. आखिरकार भांजी का मर्ज काला ज्वर साबित हुआ. मेरी भांजी मरणासन्न स्थिति में पहुंच चुकी थी. आननफानन अस्पताल में दाखिल कर उचित उपचार किया गया.

अब जबकि बीमार भांजी को पथ्य, परहेज व उचित देखभाल की आवश्यकता है, उस की तरफ ध्यान न दे कर बहन- बहनोई को ढोंगी बाबाओं व ओझाओं के आगेपीछे भागते देख उन की समझ पर रोना आता है.

एन ठाकुर, दरभंगा (बिहार)

 

हमारे बहुत ही धार्मिक विचारों के एक रिश्तेदार अपने घर के सारे कार्यों को मुहूर्त के अनुसार ही करते हैं. एक दिन वे हमारे घर आए. उन्होंने अपनी धार्मिक चर्चा आरंभ कर दी. अगले दिन मेरे छोटे भाई का एक निजी कंपनी में साक्षात्कार था.

उन रिश्तेदार ने मेरे भाई से कहा, ‘‘वह तड़के उठ कर पूर्व दिशा में जा कर 1 किलो जलेबी या गुड़ रख आए तो उसे काम में कामयाबी मिलेगी.’’ परंतु मेरे भाई ने यह नहीं किया और वह साक्षात्कार में सफल रहा.  मेरे भाई ने फोन कर के उन को नसीहत दी कि वे प्रपंच छोड़ कर, मेहनत व लगन से कार्य करने की धारणा को अपनाएं.

प्रदीप गुप्ता, बिलासपुर (हि.प्र.)

 

मेरी सासूमां पूजापाठ ज्यादा करती हैं.  मंदिर में महंगा प्रसाद, महंगी चुनरी चढ़ाती हैं. मुझे उन की एक बात अजीब लगती है, जब वे मंदिर के पंडित को 501 रुपए दे कर उन के पांव छूती हैं जबकि उसी मंदिर के बाहर पूरी तरह से लाचार व गरीब लोग उन के पैर छू कर कुछ ही पैसे मांगते हैं तो वे उन्हें झिड़क देती हैं. धर्म के नाम पर भरे पेट को देना और खाली पेट वालों को दुत्कारना, यह अंधविश्वास नहीं तो और क्या है.

दीपिका श्रीवास्तव, पटना (बिहार)

मुझे छोड़ दो मेरे हाल पर

है दुनिया एक मेला, यह है एक झुंड
सांस लेना है दूभर, रोकना है मुश्किल
न कोई फिक्र हो न कोई डर
खुला हो आसमान, पवन की हो सुगंध
मुझे छोड़ दो बस मेरे हाल पर

न कोलाहल सुनाई दे न चीखपुकार
न रोके कोई रास्ता, न दिखाए नया पथ
पंछी की उड़ान हो मेरा सफर
कोयल की कूक हो मेरी डगर
मुझे छोड़ दो बस मेरे हाल पर

कोई तो पहचाने मेरी इस आवाज को
कोई तो दे दे इसे मेरी ही पहचान
बस कोई तो सुन ले
इस धीमी सी चाल को
मुझे छोड़ दो बस मेरे हाल पर.

सुजाता ‘राज’

ये पति

मेरे पति बहुत मजाकिया व हाजिरजवाब हैं. एक बार उन के दोस्त ने कहा, ‘‘मेरी पत्नी बहुत बातूनी है. वह किसी भी टौपिक पर घंटों बोल सकती है.’’ इस पर मेरे पति बोले, ‘‘तेरी भाभी तो बिना टौपिक के भी घंटों बोल सकती है,’’ इस पर सब हंस पड़े और मैं मन ही मन मुसकराते हुए इन की बुद्धि की तारीफ करने लगी.

संगीता जोशी, जलगांव (महा.)

 

मेरी दोस्त के पति बनारस के रहने वाले हैं, लेकिन दिल्ली में रहते हैं. सौफ्टवेयर इंजीनियर हैं. शादी की पहली वर्षगांठ पर वे अपनी बीवी को मौल में शौपिंग कराने के लिए ले गए. रेडीमेड कपड़ों की दुकान पर जा कर दुकानदार से कहा, ‘‘मेरी बीवी के लिए गमछे वाला कुरतापजामा दिखाइए.’’

दुकानदार ने उन की तरफ घूर कर देखा, फिर मेरी दोस्त की तरफ. वह एकदम सकपका गई और बोली, ‘‘अरे भाईसाहब सलवारसूट दिखाइए जिस के साथ दुपट्टा भी हो.’’     

उपमा मिश्रा, गोंडा (उ.प्र.)

 

मेरे देवर की शादी थी. मेरी अभी नईनई शादी हुई थी. पति को टूर पर जाना पड़ा. जब वापस आए तो घर मेहमानों से भरा था. हमें एकांत नहीं मिल रहा था जिस कारण मेरे पति बहुत परेशान थे. एक दिन इन्होंने मुझ से कहा, ‘‘मेरे दोस्त रमेश के घर समारोह है और हम दोनों को वहां जाना है.’’

मैं ने कहा, ‘‘मेहमानों से घर भरा है. मैं कैसे जा सकती हूं,’’ पर ये नहीं माने. हार कर मुझे हां कहना पड़ा. फिर इन्होंने मां से कहा, ‘‘मां, रमेश के घर समारोह है और हम दोनों को बुलाया है.’’ मां ने इजाजत दे दी. ये मुझे एक होटल में ले गए, जहां इन्होंने पहले से ही कमरा बुक करवा रखा था. 4-5 घंटे वहां गुजारने के बाद हम घर आ गए. हम जैसे ही घर पहुंचे उसी समय इन का मित्र रमेश भी आ पहुंचा.

मां ने रमेश से पूछा, ‘‘क्यों रे, आज काहे का समारोह था तेरे घर में?’’ उस ने झट से कहा, ‘‘हमारे?घर तो कोई समारोह नहीं था,’’ ‘‘पर तेरा दोस्त तो बीवी के साथ सुबह से गायब था. फिर कहां गए थे ये दोनों?…अच्छा, तो अब समझ में आया, कौन सा समारोह मना कर आ रहे हैं ये दोनों.’’

हमारी चोरी पकड़ी गई थी. मुझे काटो तो खून नहीं. मैं ने सोचा ये पति भी न… उस दिन को याद कर के हम आज भी रोमांचित हो जाते हैं.

सुधा रत्ती, भोपाल (म.प्र.)

सूक्तियां

सज्जन
जिस प्रकार बादल समुद्र का खारा पानी पी कर भी मीठा जल ही बरसाता है उसी प्रकार सज्जन किसी की कटु वाणी सुन कर भी सदा मधुर वाणी ही बोलता है.
संतोष
जैसे हरा चश्मा लगा लेने से सभी वस्तुएं हरीहरी ही दिखती हैं उसी प्रकार संतोष धारण कर लेने पर सारा संसार आनंदरूप ही दिखाई देता है.
शोभा
अपनीअपनी जगह पर ही किसी वस्तु की विशेष शोभा होती है, जैसे काजल आंख में शोभा देता है और महावर पैर में.
उद्यम
उद्यम करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं, केवल मनोरथ करने से नहीं. जैसे सोते हुए सिंह के मुख में मृग अपनेआप प्रवेश नहीं करते.
चरित्र
मनुष्य की सब से बड़ी आवश्यकता शिक्षा नहीं वरन चरित्र है और यही उस का सब से बड़ा रक्षक है.
शौर्य
शौर्य किसी में बाहर से पैदा नहीं किया जा सकता, वह तो मनुष्य के स्वभाव में होना चाहिए.

जिंदगी

मुट्ठी में से रेत सी

फिसलती जिंदगी

कस लो मुट्ठी तो

हाथ से निकल जाए जिंदगी

खोलो मुट्ठी तो

हाथ से उड़ जाए जिंदगी

 

पलकों पर ठहरे अंसुअन सी

भीगी जिंदगी

पलकें झपको तो

आंखों से गिर जाए जिंदगी

बंद कर लो आंखों को तो

भीतर कसमसाए जिंदगी

 

नवजात, नन्हे, अकेले

पंछी सी जिंदगी

भीतर रखो तो

भूखी मर जाए जिंदगी

बाहर निकालो तो

शिकारी खा जाए जिंदगी

 

दीवार पर चढ़तीउतरती

चींटी सी जिंदगी

कभी थक कर नीचे

गिर जाए जिंदगी

ऐ काश, कभी लक्ष्य को

पा जाए जिंदगी.

शिवानी सिंह

रूपहले परदे के पीछे ओझल होती नौटंकी

60 साल के सरजूदास कभी नौटंकी के मुख्य कलाकार थे. वे बड़े और लंबे किरदार अदा किया करते थे. उन्हें देखने के लिए दूरदूर से लोग खिंचे चले आते थे. आज वे पटना की सड़कों पर रिकशा चला कर अपना और परिवार का पेट भरने के लिए दिनरात मेहनत करते हैं. नौटंकी के बारे में पूछने पर वे कुछ देर के लिए चुप्पी साध लेते हैं और फिर कहते हैं, ‘‘नौटंकी के जनून पर पेट की आग भारी पड़ी. कब तक नौटंकी कर के अपने मन को आनंद पहुंचाता, इस के चक्कर में घर का सुकून खत्म हो गया था. बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और न जाने किनकिन राज्यों में सैकड़ों प्रोग्राम किए पर पेट की आग बु?ाने और परिवार को पालने के लिए कोई काम तो करना ही था. नौटंकी करने के अलावा कुछ और तो आता नहीं था. कई जगह काम ढूंढ़ा पर कोई काम देने को राजी नहीं हुआ. एक दोस्त की मदद से रिकशा मिल गया. बस, उसे ही चला कर पिछले 22 सालों से गुजारा चल रहा है. नौटंकी मन के किसी कोने में दफन हो गई.’’

दूसरे नौटंकीबाज मिले 47 साल के भीखू साह. ये बिहार के दरभंगा जिले के रहिका गांव के रहने वाले हैं. मेलों और त्योहारों के मौके पर नौटंकी करने वाले भीखू ने करीब 8 सालों तक जगहजगह घूम कर नौटंकी की और खूब तालियां बटोरीं. भीखू के अनुसार, वे लैला का रोल करने के लिए मशहूर थे. यादों के दरीचे से धूल हटाते हुए वे कहते हैं, ‘‘जिंदा रहने के लिए कुछ कमाई जरूरी थी. तालियों और तारीफों से पेट तो भरता नहीं है. मजबूरी में नौटंकी को छोड़ना पड़ा और पैसों के लिए ढाबा चलाना शुरू किया. ढाबा चलाने के काम में मानइज्जत तो नहीं है पर दोजून की रोटी का जुगाड़ हो जाता है. 4 लोगों का परिवार का खर्च निकल आता है.’’

आज लोग भले ही बातबेबात यह कहते रहते हों, ‘नौटंकी मत करो’, ‘ज्यादा नौटंकी करोगे तो…’, ‘क्यों नौटंकी कर रहे हो’. पर नौटंकी असल में है क्या? इसे लोग न जानते हैं और न ही जानना चाहते हैं. सिनेमा, मल्टीप्लैक्स, वीडियो, कंप्यूटर और इंटरनैट के दौर में नौटंकी का कोई नामलेवा नहीं रहा है. कभी गांवों और शहरों के लोगों का दिल बहलाने वाली लोककला नौटंकी अब तकरीबन पूरी तरह से गायब हो चुकी है.

उत्तर प्रदेश में जन्मी और पलीबढ़ी नौटंकी 3 से 4 दशक पहले तक गांवों और कसबों के लोगों के मन को बहलाने का मजबूत और पसंदीदा जरिया थी. उत्तर प्रदेश की सीमाओं से निकल कर नौटंकी बिहार, बंगाल और महाराष्ट्र में धूम मचाती हुई समूचे देश के कोनेकोने तक जा पहुंची थी. मनोरंजन के दूसरे साधनों के आने और नौटंकी के कलाकारों को जरूरत के मुताबिक पैसे नहीं मिलने की वजह से यह ताकतवर लोककला धीरेधीरे गायब होने लगी.

12 सालों तक नौटंकी में द्रौपदी का किरदार निभाने वाले अहसान मलिक कहते हैं कि नौटंकी और उस के कलाकारों को न सरकार की ओर से कोई मदद मिल सकी और न ही आज की तरह बड़ीबड़ी कंपनियां ही कोई सहायता देने को आगे आईं. कलाकार भला अपने शौक के लिए कब तक नौटंकी से जुड़े रह पाते? नौटंकी तो छूट गई और जिंदगी कई तरह की ‘नौटंकियों’ में उलझ कर रह गई है.

सारीसारी रात गांव की चौपाल पर चलने वाली नौटंकी का जमाल और धमाल अब पूरी तरह से खत्म हो चुका है. कला के जानकार हेमंत राव कहते हैं कि नौटंकी के खत्म होने के पीछे कुछ हाथ तो मनोरंजन की नईनई तकनीकों का रहा है पर इस के लिए ज्यादा जिम्मेदार नौटंकी से जुड़े लोग भी रहे हैं. बदलते समय के साथ नौटंकी कला में कोई बदलाव ही नहीं किया गया. वे रामायण और महाभारत की कहानियों को नौटंकी के जरिए दर्शकों के सामने परोसते रहे. हर बार वही घिसीपिटी कहानी और अभिनय से दर्शक बोर हो कर उस से कटने लगे. कई पीढि़यों से चले आ रहे एक ही ढर्रे की नौटंकी से पब्लिक दूर होती गई और नौटंकी वाले इस का ठीकरा कभी सरकार और कभी पब्लिक के माथे फोड़ कर अपनी जवाबदेही से बचने की कोशिश करते रहे. इन्हीं सब वजहों से एक मजबूत और लोकप्रिय लोककला का वजूद खत्म सा हो गया है.

नौटंकी कला से जुड़े ज्यादातर लोगों का मानना है कि सिनेमा नौटंकी को खा गया. नौटंकी की मशहूर कलाकार पद्मश्री गुलाबबाई भी अकसर कहा करती थीं कि सिनेमा की वजह से ही नौटंकी की हालत खराब हुई है. वे अकसर कहती थीं, ‘‘कभी हमारे प्रोग्राम के समय स्टेज के पास बैठने के लिए मारामारी होती थी, लाठियां तक चल जाती थीं. एक बार इतना हंगामा और मारपीट हो गई कि कोतवाल ने मु?ो शहर बदर की धमकी दे डाली.’’

हर कला का और तकनीक का एक सुनहरा दौर होता है. अगर बदलते समय के साथ कला या तकनीक में बदलाव नहीं किया जाए तो उस का नामोनिशान मिटने ?से कोई ताकत रोक नहीं सकती है. बिहार के शेखपुरा जिले के भदौंस गांव के बुजुर्ग किसान रामबालक सिंह बताते हैं कि पहले गांव में त्योहारों या शादी आदि के समय नौटंकी कंपनी को बुलाया जाता था और यह काफी सम्मान की चीज मानी जाती थी, पर आज शहर तो छोडि़ए, गांवों में भी इसे ओछी निगाह से देखा जाता है.

दरअसल, सिनेमा और मनोरंजन के कई नए तौरतरीकों के आने के बाद जब दर्शक नौटंकी से कटने लगे तो नौटंकी कंपनियों ने पब्लिक को बांधे रखने के लिए अपने कलाकारों से ऊलजलूल और भौंडी हरकतें करवानी शुरू कर दीं. नतीजतन, लोग परिवार के साथ बैठ कर इस का मजा लेने से कतराने लगे. बदलते हालात से लड़ने के लिए मजबूत उपाय करने के बजाय नौटंकी कंपनियों ने फूहड़ और शौर्टकट तरीका अपनाना चालू कर दिया. इसी से नौटंकी का धीरेधीरे कबाड़ा होता चला गया. लोककला के रंग और ढंग के बजाय नौटंकी में मुंबइया रंगढंग दिखने लगा तो उस के दर्शकों ने नौटंकी के फूहड़ रूप को देखने के बजाय सिनेमा में ही दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया और नौटंकी जैसी ताकतवर विधा का परदा धीरेधीरे गिरता चला गया.

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