घटना दीवाली के दिन की है. पूजन के बाद मेरे जीजाजी दीया बुझाए बिना ही दुकान बढ़ा कर घर आ गए क्योंकि ऐसी मान्यता है. इस दिन दीया बुझाया नहीं जाता है. रात को चूहे द्वारा दीये की घी से सराबोर बाती को खाने के चक्कर में दीया पलट गया, जिस से पास में रखे स्कूली कपड़ों के साथसाथ किताबों में आग लग गई और आग ने थोड़ी ही देर में आधी दुकान को अपनी चपेट में ले लिया. लाखों का माल स्वाहा हो गया. इस प्रकार एक अनावश्यक प्रथा को निभाने के चक्कर में आर्थिक नुकसान के साथसाथ मानसिक परेशानी भी झेलनी पड़ी.

मनोज जे जैन, चेन्नई (तमिलनाडु)

 

मेरी भांजी 3 महीने से बीमार चल रही थी. मेरी बहन का ध्यान दवा आदि की ओर कम और झाड़फूंक व भभूत की तरफ अधिक था. आखिरकार भांजी का मर्ज काला ज्वर साबित हुआ. मेरी भांजी मरणासन्न स्थिति में पहुंच चुकी थी. आननफानन अस्पताल में दाखिल कर उचित उपचार किया गया.

अब जबकि बीमार भांजी को पथ्य, परहेज व उचित देखभाल की आवश्यकता है, उस की तरफ ध्यान न दे कर बहन- बहनोई को ढोंगी बाबाओं व ओझाओं के आगेपीछे भागते देख उन की समझ पर रोना आता है.

एन ठाकुर, दरभंगा (बिहार)

 

हमारे बहुत ही धार्मिक विचारों के एक रिश्तेदार अपने घर के सारे कार्यों को मुहूर्त के अनुसार ही करते हैं. एक दिन वे हमारे घर आए. उन्होंने अपनी धार्मिक चर्चा आरंभ कर दी. अगले दिन मेरे छोटे भाई का एक निजी कंपनी में साक्षात्कार था.

उन रिश्तेदार ने मेरे भाई से कहा, ‘‘वह तड़के उठ कर पूर्व दिशा में जा कर 1 किलो जलेबी या गुड़ रख आए तो उसे काम में कामयाबी मिलेगी.’’ परंतु मेरे भाई ने यह नहीं किया और वह साक्षात्कार में सफल रहा.  मेरे भाई ने फोन कर के उन को नसीहत दी कि वे प्रपंच छोड़ कर, मेहनत व लगन से कार्य करने की धारणा को अपनाएं.

प्रदीप गुप्ता, बिलासपुर (हि.प्र.)

 

मेरी सासूमां पूजापाठ ज्यादा करती हैं.  मंदिर में महंगा प्रसाद, महंगी चुनरी चढ़ाती हैं. मुझे उन की एक बात अजीब लगती है, जब वे मंदिर के पंडित को 501 रुपए दे कर उन के पांव छूती हैं जबकि उसी मंदिर के बाहर पूरी तरह से लाचार व गरीब लोग उन के पैर छू कर कुछ ही पैसे मांगते हैं तो वे उन्हें झिड़क देती हैं. धर्म के नाम पर भरे पेट को देना और खाली पेट वालों को दुत्कारना, यह अंधविश्वास नहीं तो और क्या है.

दीपिका श्रीवास्तव, पटना (बिहार)

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