मैं ने मम्मी को हमेशा घर का काम व हमारा पूरा खयाल रखते हुए देखा है. पापा अपने बिजनैस में ही व्यस्त रहते. घर पर आते तो अपने काम में लगे रहते. इसलिए हमारे मन में यह धारणा बन गई कि मम्मी हमें पापा से ज्यादा चाहती हैं.

एक बार मम्मी को किसी जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा. उन की गैरहाजिरी में पापा ने हमारा पूरा खयाल रखा. हमें मम्मी के न होने का एहसास भी नहीं हुआ था. हम ने मम्मी के आने पर तारीफ की और सारी दिनचर्या के बारे में विस्तार से बताया.

मम्मी का यही जवाब था कि मेरे जाने पर तो सब कर लेते हैं, मेरे सामने कुछ नहीं करते. बात आईगई हो गई. परंतु कुछ दिनों बाद मम्मी बीमार पड़ गईं. तब पापा ने मम्मी का जीजान से इलाज करवाया व डाक्टर के यहां ले जाना, समय पर दवाइयां देना जैसी बातों का पूरा खयाल रखा. साथ ही हमारा भी ध्यान रखा.

पापा का व्यवहार व प्यार देख कर हमारे मन में पापा के प्रति जो धारणा थी अब वह बदल गई. पापा का यह व्यवहार हमारे दिल को छू गया. मम्मी स्वस्थ हो गईं व हम पापा को दिलोजान से प्यार व सम्मान देने लगे.

बातोंबातों में पापा ने एक दिन कह ही दिया कि तुम्हारी मम्मी अच्छी तरह से तुम लोगों की देखभाल करती हैं, इसलिए मैं बेफिक्र हो कर व्यवसाय अच्छी तरह संभाल पाता हूं. तो, ऐसे अच्छे हैं मेरे पापा.

सुरभी बल्दवा, इंदौर (म.प्र.)

 

मेरे पापा जिस कालेज में प्रोफैसर रहे वहीं से मैं ने स्नातकोत्तर तक पढ़ाई की. वे शुरू से ही कर्मठ व अनुशासनप्रिय रहे. मैं और मेरी सहपाठिनें उन से बहुत डरती थीं और कुछ भी मौजमस्ती करने के बारे में सोच कर ही घबराती थीं, क्योंकि किसी भी प्रोफैसर के जरिए हमारी शिकायत उन तक पहुंच जाती थी.

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