है दुनिया एक मेला, यह है एक झुंड
सांस लेना है दूभर, रोकना है मुश्किल
न कोई फिक्र हो न कोई डर
खुला हो आसमान, पवन की हो सुगंध
मुझे छोड़ दो बस मेरे हाल पर
न कोलाहल सुनाई दे न चीखपुकार
न रोके कोई रास्ता, न दिखाए नया पथ
पंछी की उड़ान हो मेरा सफर
कोयल की कूक हो मेरी डगर
मुझे छोड़ दो बस मेरे हाल पर
कोई तो पहचाने मेरी इस आवाज को
कोई तो दे दे इसे मेरी ही पहचान
बस कोई तो सुन ले
इस धीमी सी चाल को
मुझे छोड़ दो बस मेरे हाल पर.
सुजाता ‘राज’
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
सब्सक्रिप्शन के साथ पाए
500 से ज्यादा ऑडियो स्टोरीज
7 हजार से ज्यादा कहानियां
50 से ज्यादा नई कहानियां हर महीने
निजी समस्याओं के समाधान
समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
सरिता से और