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अमायरा की गुटरगूं

फिल्म ‘इसक’ से फिल्मों में डेब्यू करने वाली अमायरा दस्तूर रीयल लाइफ में फिल्म ‘इसक’ के कोस्टार प्रतीक बब्बर के साथ हर जगह नजर आ रही हैं. ‘इसक’ के रोमियोजूलियट की लव कैमिस्ट्री धीरेधीरे हकीकत में बदलती नजर आ रही है. हालांकि इश्कविश्क के सवालों पर गोलमाल जवाब देने वाली यह जोड़ी हाल में ही एक फैशन वीक के दौरान रैंप शो में एकसाथ नजर आई. अमायराजी, भले ही आप प्रतीक के इश्क में गिरफ्तार हुई हों या नहीं पर आप को एक बात तो मालूम ही होगी कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते.

 

रब्बा मैं क्या करूं

इस फिल्म को देख कर लगा कि ‘आरजू’, ‘आंखें’, ‘गीत’ जैसी सुपरहिट फिल्में और ‘रामायण’ जैसा लंबा टीवी सीरियल बनाने वाले रामानंद सागर की अगली पीढ़ी ने अपने बापदादाओं का नाम मिट्टी में मिला डाला है. फिल्म के निर्देशक अमृत सागर ने एक फिल्म ‘1971’ बनाई थी.

फिल्म शादी के माहौल पर है जिस में सैक्सी कौमेडी डाली गई है. इस शादी के माहौल में निर्देशक ने एक लवगुरु के फंडों को शामिल किया है. यह लवगुरु है श्रवण (अरशद वारसी). कहने को तो फिल्म का नायक आकाश चोपड़ा है परंतु ज्यादा फुटेज अरशद वारसी को मिली है.

फिल्म की कहानी शुरू होती है साहिल (आकाश चोपड़ा) और स्नेहा (ताहिरा कोचर) के मिलने से. दोनों एकदूसरे को बचपन से जानते हैं. साहिल स्नेहा को प्रपोज करता है. शादी की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. साहिल का चचेरा भाई श्रवण (अरशद वारसी) खुद को लवगुरु समझता है. वह अपनी खूबसूरत बीवी (रिया सेन) की आंखों में धूल झोंक कर दूसरी लड़कियों से इश्क करता है. वह साहिल को बीवी को बेवकूफ बनाने की कला सिखाता है. शादी में साहिल का मामा पोपट भाई (परेश रावल) भी आता है. वह भी चालू किस्म का है. बीवी के सामने ही दूसरी औरतों को फ्लर्ट करता है. साहिल का अंकल सूमी (शक्ति कपूर) भी अपनी बीवी को बेवकूफ बना कर ऐयाशी करता है. साहिल को लगता है कि अगर वह श्रवण के बताए रास्ते पर चलेगा तो उस की जिंदगी भी मस्त हो जाएगी. लेकिन लवगुरु के चक्कर में पड़ कर उस की शादी टूटने के कगार पर पहुंचती है तो उसे अक्ल आती है.

मध्यांतर के बाद शक्ति कपूर, टीनू आनंद और परेश रावल की सैक्स कौमेडी डाली गई है. परेश रावल का काम अच्छा है. अरशद वारसी भी जमा है. राज बब्बर ने अपनी दमदार एंट्री दर्ज कराई है. फिल्म का गीतसंग?ीत साधारण है. छायांकन अच्छा है.

वंस अपोन ए टाइम इन मुंबई दोबारा

यह फिल्म 2010 में आई अजय देवगन और इमरान हाशमी की फिल्म ‘वंस अपोन ए टाइम इन मुंबई’ की सीक्वल है. पिछली फिल्म के मुकाबले इस फिल्म की तुलना करें तो निराशा ही हाथ लगेगी. गैंगस्टरों पर बनी फिल्मों में अकसर हिंसा का डोज ज्यादा होता है, लेकिन इस फिल्म में रोमांस है. शायद इसीलिए दर्शकों को ज्यादा मजा नहीं आ पाता.

निर्देशक मिलन लूथरिया ने अपनी इस फिल्म में संवाद अच्छे लिखवाए हैं. उस ने पूरा ध्यान अक्षय कुमार से बुलवाए गए संवादों पर लगाया है. लगता है इस चक्कर में वह कहानी पर ध्यान देना भूल गया है.

सुलतान (अजय देवगन) की मौत के बाद शोएब (अक्षय कुमार) मुंबई पर राज करना चाहता है. उस के अवैध धंधे की जडे़ें खाड़ी देशों तक फैली हैं. असलम (इमरान खान) उस का दायां हाथ है. शोएब ने बचपन से उसे पाला है. एक दिन असलम की जिंदगी में यास्मीन (सोनाक्षी सिन्हा) आती है, जो हीरोइन बनने आई है. शोएब उस पर लट्टू हो जाता है और उसे हीरोइन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता. लेकिन जब उसे असलम और यास्मीन के इश्क की खबर मिलती है तो वह असलम का दुश्मन बन बैठता है. दोनों के बीच लड़ाई छिड़ जाती है. उधर पुलिस शोएब को पकड़ने के लिए घेराबंदी कर चुकी है. असलम को शोएब की गोली लगती है तो शोएब भी पुलिस की गोलियों से जख्मी हो जाता है. यास्मीन शोएब को खूब भलाबुरा कहती है और कहती है कि उस ने कभी उस से प्यार नहीं किया. यहीं फिल्म का द एंड हो जाता है.

फिल्म की यह कहानी न तो पूरी तरह प्रेम त्रिकोणीय बन पड़ी है, न ही खूनखराबे वाली.फिल्म का निर्देशन साधारण है. संगीत कुछ अच्छा है. एक गीत ‘तैयब वली प्यार का दुश्मन…’ फिल्म ‘अमर अकबर एंथोनी’ से लिया गया है. छायांकन अच्छा है.

 

जंजीर

एक ईमानदार पुलिस इंस्पैक्टर और एक क्रिमिनल खलनायक. 70-80 के दशक में इस तरह के कथानक वाली फिल्मों पर खूब तालियां बजती थीं, पर अब दर्शकों को यह सब नाटकीय लगता है. ‘जंजीर’ 1973 में आई अमिताभ बच्चन और प्राण की फिल्म ‘जंजीर’ का सीक्वल नहीं है, हां, इसे पिछली फिल्म का रीमेक जरूर कह सकते हैं. जब किसी सुपरहिट फिल्म का रीमेक बनता है तो दर्शकों की उस से उम्मीदें बढ़ जाती हैं. पर इस ‘जंजीर’ में ऐसा कुछ नहीं है जो दर्शकों को बांध सके. निर्देशक अपूर्व लखिया ने पिछली सुपरहिट ‘जंजीर’ की पटकथा को काफी तोड़ामरोड़ा है.

कहानी पिछली ‘जंजीर’ जैसी ही है. एसीपी विजय खन्ना (रामचरण) ईमानदार पुलिस इंस्पैक्टर है, जिस के कई ट्रांसफर हो चुके हैं. इस बार उस का ट्रांसफर मुंबई में हुआ है जहां तेजा (प्रकाश राज) पैट्रोल में मिलावट कर हर साल 1 हजार करोड़ रुपए की कमाई करता है. विजय के इलाके में एक व्यक्ति को जिंदा जला दिया जाता है. इस हादसे की एकमात्र गवाह एक एनआरआई युवती माला (प्रियंका चोपड़ा) है. विजय जिंदा जलाने वाले व्यक्ति को पकड़ कर जेल में डाल देता है परंतु अदालत में पेश करने से पहले ही तेजा उसे जेल में ही मरवा देता है. विजय को सस्पैंड कर दिया जाता है. अब विजय को शेरखान (संजय दत्त) की मदद लेनी पड़ती है. पुलिस कमिश्नर विजय को निर्दोष मानते हुए उसे बहाल कर देता है.

इस कहानी में विजय के किरदार को एंग्री यंगमैन दिखाया गया है. यही किरदार पुरानी ‘जंजीर’ में अमिताभ बच्चन ने निभाया था. रामचरण का इस भूमिका में अमिताभ से कोई मुकाबला नहीं है. वह दक्षिण भारत के स्टार चिरंजीवी का बेटा है. बौलीवुड में उस की यह पहली फिल्म है.

प्रियंका चोपड़ा ने ‘पैसा फेंक तमाशा देख’ स्टाइल में ऐक्टिंग की है. शेरखान की भूमिका में संजय दत्त का भला प्राण से क्या मुकाबला. प्रकाश राज गुंडा कम जोकर ज्यादा लगता है. फिल्म की गति तेज रखी गई है. संगीत थोड़ाबहुत अच्छा है. फिल्म में मारधाड़ बहुत है. छायांकन अच्छा है.

शुद्ध देसी रोमांस

यह रोमांस 70-80 के दशक का नहीं है जब युवा एकदूसरे की बांहों में बांहें डाले किसी पार्क या सुनसान जगहों पर जा कर अपने प्यार का इजहार करते थे. बौलीवुड वाले भी प्यार का इजहार कराने के लिए गार्डनों में हीरोहीरोइन को ले जाते थे जहां वे दोनों गाना गाते थे, जैसे ‘बागों में बहार है, कलियों पे निखार है, मुझ को तुम से प्यार है…’ इस फिल्म में दिखाया गया रोमांस एकदम देसी है यानी एकदम तेज वाला फास्ट अट्रैक्शन. लड़के को लड़की मिली, लड़की ने कहा, ‘तुम मुझे किस कर सकते हो?’ लड़के ने झट से अपने होंठ लड़की के होंठों से चिपका दिए. लो, हो गया प्यार. नहींनहीं, यह प्यार नहीं, सिर्फ अट्रैक्शन है. जब मामला शादी तक पहुंचता है तब दोनों भाग निकलते हैं. यही है ‘शुद्ध देसी रोमांस.’ दरअसल, इसे विदेशी रोमांस कहा जाए तो ज्यादा सही होगा.

फिल्म का टाइटल तो ‘शुद्ध देसी रोमांस’ है परंतु इस में बहुत सारे किस सीन हैं और किस करने का तरीका विदेशी है. आज के युवा किस तरह की जिंदगी जीते हैं और उन के प्रपोज करने का तरीका क्या है, फिल्म इस बारे में बताती है.

‘शुद्ध देसी रोमांस’ एक फन फिल्म है जिस के मुख्य किरदार आप को कन्फ्यूज लगेंगे, साथ ही आप को भी कन्फ्यूज करते दिखेंगे और आप उन के कन्फ्यूजन को खुल कर एंजौय करेंगे. हमारेआप के बीच बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जो हर वक्त कन्फ्यूज रहते हैं. वे प्यार करने की हिम्मत तो जुटा लेते हैं पर शादी के मामले में कन्फ्यूज रहते हैं. जिस से प्यार किया है उस से शादी करें या नहीं, इस बात का फैसला वे नहीं कर पाते. ‘शुद्ध देसी रोमांस’ में कुछ इसी तरह का कन्फ्यूजन है. फिल्म युवाओं के मतलब की है.

इस फिल्म को निर्देशक मनीष शर्मा ने निर्देशित किया है, जिस ने इस से पहले ‘बैंड बाजा बरात’ निर्देशित की थी. उस ने एक सीधीसादी कहानी को नयापन देने की कोशिश की है.

कहानी राजस्थान के जयपुर शहर में रहने वाले नौजवान रघु राम (सुशांत सिंह राजपूत) की है. वैसे है तो वह एक गाइड पर शादियों में किराए का बराती बन कर जाना उस का पार्टटाइम काम है. गोयल साहब (ऋषि कपूर) शादियां कराने का काम करता है. वह रघु की शादी फिक्स कराता है. वह एक युवती गायत्री (परिणीति चोपड़ा) को रघु की बहन बना कर शादी में साथ ले जाता है. बस में बैठेबैठे रघु, गायत्री की ओर आकर्षित हो जाता है. बरात के पहुंचने पर रघु मंडप से भाग खड़ा होता है.

यहीं से शुरू होती है रघु की नई लवस्टोरी. वह गायत्री के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगता है. दोनों शादी का फैसला कर लेते हैं लेकिन ऐन शादी वाले दिन गायत्री मंडप से भाग निकलती है. उसे कन्फ्यूजन है कि रघु के साथ उस की निभ सकेगी या नहीं.

कहानी में एक मोड़ फिर से आता है. एक अन्य शादी में रघु की मुलाकात उसी लड़की तारा (वाणी कपूर) से होती है जिसे वह पहली बार शादी के मंडप में छोड़ कर भागा था. दोनों में नजदीकियां फिर से बढ़ने लगती हैं कि गायत्री फिर से उस की लाइफ में आ जाती है. रघु अब भी गायत्री से शादी करने का फैसला नहीं ले पाता और भाग कर घर आ जाता है, जहां दोनों फिर से रिलेशनशिप में रहने लगते हैं.

इस फिल्म की कहानी, पटकथा, संवाद, गीत जयदीप ने लिखे हैं. उस ने ऐसी कहानी लिखी है जिस में रोमांस तो है ही, किरदार पहले ही फ्रेम में एकदूसरे से प्यार करने लगते हैं. शादी कराने बस में जा रहे रघु और गायत्री का किस सीन यही तो दर्शाता है.

गायत्री और रघु के संवाद काफी फनी लगते हैं और दर्शकों के चेहरों पर मुसकराहट आने लगती है. पूरी फिल्म में हंसी की फुलझडि़यां छूटती रहती हैं. सभी कलाकारों का अभिनय अच्छा है. सुशांत सिंह राजपूत की यह दूसरी फिल्म है. अपनी पहली फिल्म ‘काय पो छे’ में उस ने अपनी प्रतिभा दिखाई थी. इस फिल्म में भी उस के कपड़े पहनने व बोलने का ढंग सब कुछ देसी लगता है.

गोयल साहब की भूमिका में ऋषि कपूर ने कमाल की ऐक्टिंग की है. उस का बतियाना और लोगों को बेवकूफ बनाना दर्शकों को अच्छा लगता है.

परिणीति चोपड़ा इस से पहले ‘इशकजादे’ में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है. वाणी कपूर ने भी थोड़ाबहुत प्रभावित किया है. फिल्म का निर्देशन मध्यांतर से पहले अच्छा है, लेकिन मध्यांतर के बाद फिल्म निर्देशक के हाथ से फिसलती चली गई है, लगता है किरदारों के साथसाथ निर्देशक खुद भी कन्फ्यूज हो गया है. लेकिन चांस की बात है कि यह कन्फ्यूजन दर्शकों को अच्छा लगने लगता है. फिल्म में दिखाए गए किस सींस को कम किया जा सकता था.

फिल्म का गीतसंगीत सामान्य है. ‘तेरे मेरे बीच क्या है…’ गीत अच्छा बन पड़ा है. अधिकांश फिल्म की शूटिंग जयपुर में की गई है. छायांकन अच्छा है.

 

पाठकों की समस्याएं

मैं 30 वर्षीया, तलाकशुदा, 5 वर्षीय बेटे की मां हूं. एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करती हूं. मेरे मातापिता मेरे पुनर्विवाह पर जोर डाल रहे हैं. मुझे डर है कि मेरा दूसरा विवाह सफल होगा या नहीं? क्या मेरे होने वाले पति मेरे बेटे को पूरा प्यार देंगे?

आज सौतेले पिता अपनी सीमाओं को समझते हैं. अगर आप या आप के सगेसंबंधी बेटे को बहकाएं नहीं तो पितापुत्र संबंध अच्छा बन सकता है. इसलिए केवल इसी कारण से आप पुनर्विवाह का विरोध न करें. आप को लंबा जीवन बिताना है और बिना पुरुष सैक्स के यह आसान नहीं है. दूसरे विवाह पर ना न करें और आत्मविश्वास के साथ विवाह करें.

 

मैं शादीशुदा, 35 वर्षीया महिला हूं. पिछले दिनों मेरी मुलाकात मेरे पुराने कालेज फ्रैंड से हुई जो शादीशुदा है. हमारी कई बार फोन पर बात हुई और हम पुराने दोस्तों की तरह 1-2 बार मिले भी. लेकिन मुझे पता चला है कि दोस्त की पत्नी को हमारी बातचीत व मिलनेजुलने पर एतराज है. वह हमारे रिश्ते पर शक करती है. मैं क्या करूं? मैं न तो दोस्त का घर बरबाद होते देख सकती हूं और न ही दोस्त को खोना चाहती हूं.

आप अच्छे दोस्त हैं, यह केवल आप और आप का दोस्त जानता है, दोस्त की पत्नी नहीं. इसलिए आप अपने दोस्त की पत्नी से मिलें, बात करें, उन के शक का समाधान करें और समझाएं कि आप केवल अच्छे दोस्त हैं. इस तरह दोस्त की पत्नी को आप की दोस्ती पर शक नहीं होगा और आप अपने दोस्त को भी नहीं खोएंगी. आप चाहें तो अपनी फैमिली के साथ अपने दोस्त के परिवार का फैमिली गेटटुगेदर भी कर सकती हैं. इस से दोनों परिवारों के बीच प्यार बढ़ेगा और आप की दोस्ती भी बरकरार रहेगी. वैसे भी ऐसे मामलों में दोस्ती की चर्चा घर में ज्यादा नहीं करनी चाहिए और इसे छिपा कर रखना चाहिए.

 

मैं अपनी 13 वर्षीया बेटी को ले कर बहुत परेशान हूं. आजकल वह अपना अधिकांश समय अपने दोस्तों के साथ व्यतीत करती है. हर समय उन से चैटिंग करती रहती है. मुझे डर है कि उस के दोस्तों का उस पर नैगेटिव प्रभाव न पड़े.

उम्र के इस दौर में किशोरों का अपने दोस्तों के प्रति झुकाव या विश्वास सामान्य बात है. लेकिन साथ ही यह समय आप के सजग रहने का भी है. बेटी के दोस्तों के बारे में जानें, उन्हें अपने घर पर बुलाएं. अगर बेटी के दोस्त अच्छे संस्कारी परिवारों के हैं तो बेटी पर कोई नेगेटिव प्रभाव नहीं पड़ेगा बल्कि दोस्त अगर अच्छे हों तो बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और वे गलत राह पर नहीं भटकते. अपनी बेटी को अच्छे व बुरे दोस्तों की परख करना सिखाएं और स्वयं भी बेटी से दोस्ताना व्यवहार रखें.

 

मैं 22 वर्षीय अविवाहित युवक हूं. घर में मेरी शादी की बात चल रही है. मुझे लड़की भी बेहद पसंद है पर एक बात है जो मुझे परेशान कर रही है. दरअसल, कालेज के दिनों में मेरा अपनी एक गर्लफ्रैंड के साथ शारीरिक संबंध स्थापित हो गया था. अब मेरा उस लड़की से कोई संबंध नहीं है, क्या जिस लड़की से मैं शादी कर रहा हूं उसे मुझे इस बारे में बताना चाहिए? बताने पर कहीं वह मुझ से विवाह के लिए इनकार तो नहीं कर देगी?जो घटना घट चुकी है उसे एक हादसा समझ कर भूल जाइए और जिस लड़की से विवाह की बात चल रही है उसे इस बारे में बताने की भूल बिलकुल भी न कीजिए. नए रिश्ते की शुरुआत नए सिरे से कीजिए और उसे पूरी ईमानदारी, प्यार और विश्वास के साथ निभाइए.

 

मैं 28 वर्षीया उच्चशिक्षित, विवाहिता हूं. पति का अच्छा व्यवसाय है. घर की आर्थिक स्थिति भी अच्छी है. पर मैं घर पर बैठेबैठे बोर हो जाती हूं और कोई नौकरी करना चाहती हूं. ऐसा कर के मैं अपनी शिक्षा और समय का सदुपयोग करना चाहती हूं लेकिन पति और सास मेरे नौकरी करने के सख्त खिलाफ हैं. उन्हें मेरा बाहर जा कर नौकरी करना पसंद नहीं. आप ही बताइए, मैं क्या करूं?

सब से पहले आप अपने पति और सास को समझाइए कि आप पैसों के लिए नहीं बल्कि अपनी खुशी के लिए नौकरी करना चाहती हैं. शायद उन्हें आप की यह बात समझ आ जाए. अगर तब भी बात न बने तो आप घर से ही कुछ व्यवसाय कर सकती हैं या पति के व्यवसाय में मदद कर के अपनी शिक्षा और समय का सदुपयोग कर सकती हैं. ऐसा करने से पति की शिकायत भी दूर हो जाएगी और आप की शिक्षा और समय दोनों का सदुपयोग हो जाएगा.

 

मैं 21 वर्षीय छात्र हूं. पिछले दिनों फेसबुक पर मेरी एक लड़के से फ्रैंडशिप हुई. हमारी औनलाइन चैटिंग होती थी. फिर एक दिन अचानक उस फ्रैंड ने मुझे बताया कि वह लड़का नहीं बल्कि लड़की है. क्या ऐसा भी होता है? हालांकि मैं ने उस से कोई व्यक्तिगत बातें शेयर नहीं कीं फिर भी वह लड़की जबरदस्ती मेरे पीछे पड़ी है. क्या वह मुझे कोई नुकसान पहुंचा सकती है? आप ही बताइए, मैं क्या करूं?

फेसबुक पर ‘फेक आई डी’ बना कर दोस्ती करना आम बात है और इस दौरान ज्यादा नजदीकियां या व्यक्तिगत बातें शेयर करना नुकसानदेह हो सकता है. आप के केस में अच्छी बात है कि आप ने उस से कोई व्यक्तिगत बातें शेयर नहीं कीं. आप अपने अकाउंट से उस फ्रैंड को डिलीट कर दीजिए. आगे भी ध्यान रखिए केवल उन्हीं लोगों को फ्रैंड लिस्ट में शामिल कीजिए जिन्हें आप व्यक्तिगत रूप से जानते हैं. वैसे भी यह समय आप का पढ़ाईलिखाई व कैरियर बनाने का है, इसे फेसबुक जैसी साइट पर दोस्तों से चैटिंग करने में बरबाद मत कीजिए.

इन्हें भी आजमाइए

  1. लैमन सैट के जग का हैंडिल टूट जाए तो उसे फेंकें नहीं बल्कि उसे अपने लिविंगरूम या डायनिंगरूम की साइड टेबल पर रख कर फ्लावर पौट के रूप में इस्तेमाल करें.
  2. साबुनदानी में एक स्पंज के टुकड़े के ऊपर साबुन रखें. साबुन से गीले हुए उस स्पंज से वौशबेसिन, टाइल्स, नल आदि साफ किए जा सकते हैं.
  3. सूई के छेद में धागा पिरोना मुश्किल हो रहा हो तो धागे के सिरे को साबुन के घोल में डिप कर निकाल लें, धागा सूई में आसानी से चला जाएगा.
  4. संतरे के छिलकों को फेंकें नहीं. धूप में सुखा कर उन्हें अलमारी में जहांतहां रखें, अलमारी में किसी तरह की दुर्गंध नहीं रहेगी.
  5. परफ्यूम की खाली शीशी के स्टौपर को हटा कर अपने कपड़ों के बीच रखें, आप के पसंदीदा परफ्यूम की खुशबू कपड़ों में आ जाएगी.
  6. रसोईघर की स्लैब को सिरके में भीगे कपड़े से साफ करें, चींटियां नहीं आएंगी.
  7. भोजन के बाद गाजर का एक टुकड़ा खाएं. मुंह में रह गए भोजन के कण नहीं रहेंगे.

मेरे पापा

मैं ने मम्मी को हमेशा घर का काम व हमारा पूरा खयाल रखते हुए देखा है. पापा अपने बिजनैस में ही व्यस्त रहते. घर पर आते तो अपने काम में लगे रहते. इसलिए हमारे मन में यह धारणा बन गई कि मम्मी हमें पापा से ज्यादा चाहती हैं.

एक बार मम्मी को किसी जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा. उन की गैरहाजिरी में पापा ने हमारा पूरा खयाल रखा. हमें मम्मी के न होने का एहसास भी नहीं हुआ था. हम ने मम्मी के आने पर तारीफ की और सारी दिनचर्या के बारे में विस्तार से बताया.

मम्मी का यही जवाब था कि मेरे जाने पर तो सब कर लेते हैं, मेरे सामने कुछ नहीं करते. बात आईगई हो गई. परंतु कुछ दिनों बाद मम्मी बीमार पड़ गईं. तब पापा ने मम्मी का जीजान से इलाज करवाया व डाक्टर के यहां ले जाना, समय पर दवाइयां देना जैसी बातों का पूरा खयाल रखा. साथ ही हमारा भी ध्यान रखा.

पापा का व्यवहार व प्यार देख कर हमारे मन में पापा के प्रति जो धारणा थी अब वह बदल गई. पापा का यह व्यवहार हमारे दिल को छू गया. मम्मी स्वस्थ हो गईं व हम पापा को दिलोजान से प्यार व सम्मान देने लगे.

बातोंबातों में पापा ने एक दिन कह ही दिया कि तुम्हारी मम्मी अच्छी तरह से तुम लोगों की देखभाल करती हैं, इसलिए मैं बेफिक्र हो कर व्यवसाय अच्छी तरह संभाल पाता हूं. तो, ऐसे अच्छे हैं मेरे पापा.

सुरभी बल्दवा, इंदौर (म.प्र.)

 

मेरे पापा जिस कालेज में प्रोफैसर रहे वहीं से मैं ने स्नातकोत्तर तक पढ़ाई की. वे शुरू से ही कर्मठ व अनुशासनप्रिय रहे. मैं और मेरी सहपाठिनें उन से बहुत डरती थीं और कुछ भी मौजमस्ती करने के बारे में सोच कर ही घबराती थीं, क्योंकि किसी भी प्रोफैसर के जरिए हमारी शिकायत उन तक पहुंच जाती थी.

नतीजतन, हमें डांट व चेतावनी मिलती थी. वे कालेज में मेरी क्लास भी लेते थे और किसी भी प्रश्न का जवाब न दे पाने पर मुझ से भी वैसा ही व्यवहार करते थे जैसा कि अन्य विद्यार्थियों से. मैं घर आ कर उन से शिकायत करती तो वे समझाते थे कि कालेज पढ़ाई करने जाते हैं न कि व्यर्थ की मौजमस्ती के लिए.

उस समय मुझे लगता था कि उन की वजह से मैं विद्यार्थी जीवन का कोई आनंद नहीं ले पाई पर आज जब मैं 2 बेटियों की मां हूं, महसूस करती हूं कि उन की दी हुई सीख पर अमल कर के ही मैं अपना व अपनी बेटियों का जीवन बेहतर बना सकी. उन के आशीर्वाद की छत्रछाया मुझे आज भी मानसिक संबल प्रदान करती है.   

अर्चना वर्मा, इंदौर (म.प्र.)

हमारी बेडि़यां

घटना दीवाली के दिन की है. पूजन के बाद मेरे जीजाजी दीया बुझाए बिना ही दुकान बढ़ा कर घर आ गए क्योंकि ऐसी मान्यता है. इस दिन दीया बुझाया नहीं जाता है. रात को चूहे द्वारा दीये की घी से सराबोर बाती को खाने के चक्कर में दीया पलट गया, जिस से पास में रखे स्कूली कपड़ों के साथसाथ किताबों में आग लग गई और आग ने थोड़ी ही देर में आधी दुकान को अपनी चपेट में ले लिया. लाखों का माल स्वाहा हो गया. इस प्रकार एक अनावश्यक प्रथा को निभाने के चक्कर में आर्थिक नुकसान के साथसाथ मानसिक परेशानी भी झेलनी पड़ी.

मनोज जे जैन, चेन्नई (तमिलनाडु)

 

मेरी भांजी 3 महीने से बीमार चल रही थी. मेरी बहन का ध्यान दवा आदि की ओर कम और झाड़फूंक व भभूत की तरफ अधिक था. आखिरकार भांजी का मर्ज काला ज्वर साबित हुआ. मेरी भांजी मरणासन्न स्थिति में पहुंच चुकी थी. आननफानन अस्पताल में दाखिल कर उचित उपचार किया गया.

अब जबकि बीमार भांजी को पथ्य, परहेज व उचित देखभाल की आवश्यकता है, उस की तरफ ध्यान न दे कर बहन- बहनोई को ढोंगी बाबाओं व ओझाओं के आगेपीछे भागते देख उन की समझ पर रोना आता है.

एन ठाकुर, दरभंगा (बिहार)

 

हमारे बहुत ही धार्मिक विचारों के एक रिश्तेदार अपने घर के सारे कार्यों को मुहूर्त के अनुसार ही करते हैं. एक दिन वे हमारे घर आए. उन्होंने अपनी धार्मिक चर्चा आरंभ कर दी. अगले दिन मेरे छोटे भाई का एक निजी कंपनी में साक्षात्कार था.

उन रिश्तेदार ने मेरे भाई से कहा, ‘‘वह तड़के उठ कर पूर्व दिशा में जा कर 1 किलो जलेबी या गुड़ रख आए तो उसे काम में कामयाबी मिलेगी.’’ परंतु मेरे भाई ने यह नहीं किया और वह साक्षात्कार में सफल रहा.  मेरे भाई ने फोन कर के उन को नसीहत दी कि वे प्रपंच छोड़ कर, मेहनत व लगन से कार्य करने की धारणा को अपनाएं.

प्रदीप गुप्ता, बिलासपुर (हि.प्र.)

 

मेरी सासूमां पूजापाठ ज्यादा करती हैं.  मंदिर में महंगा प्रसाद, महंगी चुनरी चढ़ाती हैं. मुझे उन की एक बात अजीब लगती है, जब वे मंदिर के पंडित को 501 रुपए दे कर उन के पांव छूती हैं जबकि उसी मंदिर के बाहर पूरी तरह से लाचार व गरीब लोग उन के पैर छू कर कुछ ही पैसे मांगते हैं तो वे उन्हें झिड़क देती हैं. धर्म के नाम पर भरे पेट को देना और खाली पेट वालों को दुत्कारना, यह अंधविश्वास नहीं तो और क्या है.

दीपिका श्रीवास्तव, पटना (बिहार)

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