एक ईमानदार पुलिस इंस्पैक्टर और एक क्रिमिनल खलनायक. 70-80 के दशक में इस तरह के कथानक वाली फिल्मों पर खूब तालियां बजती थीं, पर अब दर्शकों को यह सब नाटकीय लगता है. ‘जंजीर’ 1973 में आई अमिताभ बच्चन और प्राण की फिल्म ‘जंजीर’ का सीक्वल नहीं है, हां, इसे पिछली फिल्म का रीमेक जरूर कह सकते हैं. जब किसी सुपरहिट फिल्म का रीमेक बनता है तो दर्शकों की उस से उम्मीदें बढ़ जाती हैं. पर इस ‘जंजीर’ में ऐसा कुछ नहीं है जो दर्शकों को बांध सके. निर्देशक अपूर्व लखिया ने पिछली सुपरहिट ‘जंजीर’ की पटकथा को काफी तोड़ामरोड़ा है.
कहानी पिछली ‘जंजीर’ जैसी ही है. एसीपी विजय खन्ना (रामचरण) ईमानदार पुलिस इंस्पैक्टर है, जिस के कई ट्रांसफर हो चुके हैं. इस बार उस का ट्रांसफर मुंबई में हुआ है जहां तेजा (प्रकाश राज) पैट्रोल में मिलावट कर हर साल 1 हजार करोड़ रुपए की कमाई करता है. विजय के इलाके में एक व्यक्ति को जिंदा जला दिया जाता है. इस हादसे की एकमात्र गवाह एक एनआरआई युवती माला (प्रियंका चोपड़ा) है. विजय जिंदा जलाने वाले व्यक्ति को पकड़ कर जेल में डाल देता है परंतु अदालत में पेश करने से पहले ही तेजा उसे जेल में ही मरवा देता है. विजय को सस्पैंड कर दिया जाता है. अब विजय को शेरखान (संजय दत्त) की मदद लेनी पड़ती है. पुलिस कमिश्नर विजय को निर्दोष मानते हुए उसे बहाल कर देता है.
इस कहानी में विजय के किरदार को एंग्री यंगमैन दिखाया गया है. यही किरदार पुरानी ‘जंजीर’ में अमिताभ बच्चन ने निभाया था. रामचरण का इस भूमिका में अमिताभ से कोई मुकाबला नहीं है. वह दक्षिण भारत के स्टार चिरंजीवी का बेटा है. बौलीवुड में उस की यह पहली फिल्म है.
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