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वृद्धावस्था अब फिक्र नहीं

आप को जान कर हैरानी होगी कि तेजी से बदलती सामाजिक आर्थिक स्थिति के फलस्वरूप बुजुर्ग बन रहे हैं बाजार की योजनाओं का महत्त्वपूर्ण हिस्सा. बुजुर्गों के खर्च करने की बेफिक्री कैसे बना रही है बुढ़ापे को कारोबार का हिस्सा, बता रही हैं मीरा राय.

सुश्री वी एम सिंह का जन्म आगरा  में हुआ था. वे वहीं पलीबढ़ीं और तालीम हासिल की. नौकरी के सिलसिले में वे मेरठ आईं और मिशन कंपाउंड में एक शानदार मकान ले कर रहने लगीं. शादी उन्होंने की नहीं. बच्चों को पढ़ाने व कहानियां लिखने में उन के दिन गुजरने लगे. आखिरकार बतौर प्रधानाचार्य उन्होंने अवकाश ग्रहण किया. रिटायरमैंट के बाद भी उन्होंने अपने दोनों शौक जारी रखे.

अरसे से एक ही जगह रहते हुए वे महल्ले के लोगों के जीवन का हिस्सा बन गई हैं. इसलिए जब पिछले दिनों उन्होंने अपने मकान को बेच कर वृद्धाश्रम में जाने की बात कही तो सब को आश्चर्य हुआ. वे कहती हैं, ‘‘मैं 82 वर्ष की हो गई हूं. अब मुझ से अपना काम खुद नहीं होता. मैं चाहती हूं कि कोई मेरी देखभाल करे.’’

‘‘हां, मेरे पास अपनी भांजी के पास आस्ट्रेलिया जाने का विकल्प है. लेकिन सारी जिंदगी तो भारत में रही हूं. अब इस बुढ़ापे में अपनी जड़ें उखाड़ कर नए देश में फिर से जिंदगी शुरू करना मुश्किल काम है. वैसे भी अपरिचित माहौल की तनहाई में मैं जराजरा सी चीजों के लिए अपने रिश्तेदारों की मुहताज नहीं बनना चाहती. साथ ही, अब ऐसे वृद्धाश्रम खुल गए हैं जिन में तमाम आधुनिक सुविधाओं के साथ चहलकदमी के लिए हरेभरे बगीचे, यातायात की व्यवस्था और देखभाल के लिए डाक्टर व नर्स उपलब्ध हैं.’’

जो लोग बाजार के चलन से वाकिफ हैं वे जानते हैं कि बुढ़ापा ऐसा व्यापार अवसर प्रदान कर रहा है जिसे कैश कराना आसान है. यही वजह है कि चतुर व्यापारी नईनई सुविधाओं के साथ आधुनिक ओल्ड ऐज होम खोल रहे हैं यानी अब मार्केट योजना में वृद्ध महत्त्वपूर्ण हो गए हैं. 1999 में सरकार ने वृद्धों के संदर्भ में राष्ट्रीय नीति जारी की थी.

इस समय देश की आबादी एक अरब 25 करोड़ के ऊपर है और इस बड़ी आबादी में 60 साल से ऊपर के वृद्धों की संख्या 7.70 करोड़ है जो कि 9 फीसदी से ज्यादा है. जाहिर है 90 फीसदी आबादी 60 साल के कम उम्र वालों की है. इसलिए भारत एक युवा राष्ट्र है. उस की सोच, वर्क कल्चर और नई तकनीक के साथ उस का जनूनी रिश्ता व आत्मविश्वास सब कुछ युवा है. लेकिन डब्लूएचओ के एक अनुमान के मुताबिक भारत में वृद्धों की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है.

वृद्धों की बढ़ती संख्या

अप्रैल 2012 में जारी डब्लूएचओ के अनुमान के मुताबिक आने वाले 5 से 7 सालों में 60 साल से ऊपर वालों की तादाद 5 वर्ष के बच्चों की आबादी से भी ज्यादा बड़ी हो जाएगी और अगर अनुमान को 2050 तक ले जाया जाए तो विशेषज्ञों के मुताबिक वृद्धों की संख्या किशोरों से भी ज्यादा होगी, जिस का मतलब यह है कि वर्ष 2050 तक वृद्धों की आबादी 30 करोड़ से भी ऊपर होगी. वृद्धों की आबादी में होने वाली इस वृद्धि का मुख्य कारण यह है कि भारतीयों की औसत आयु 58 वर्ष (1990) से बढ़ कर 63 वर्ष (2011) हो चुकी है और अंदाजा है कि यह 2021 तक बढ़ कर 76 साल हो जाएगी.

यह बात ध्यान में रखनी आवश्यक है कि वृद्धों के लिए बाजार में 2 श्रेणियां हैं. एक का निशाना 55 से 65 बरस के लोग हैं यानी वे जिन्होंने कमाना बंद न किया हो और दूसरी का निशाना 65 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति हैं यानी वे जो अपनी पैंशन या बच्चों पर आश्रित हैं.

आय की निरंतरता

बहरहाल, वृद्धों को व्यापार योजना का हिस्सा सिर्फ इसलिए नहीं बनाया जा रहा है कि उन की जनसंख्या में इजाफे की संभावना है. असल बात यह है कि देश की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में बदलाव आ रहा है. संयुक्त परिवार टूट रहे हैं, कम से कम शहरी भारत में तो यही हाल है. ज्यादातर वृद्धों को अपने ही दम पर जिंदगी गुजारनी पड़ रही है. फिर रोजगार का जो भूमंडलीकरण हुआ है, उस में बच्चे अपने मांबाप से अलग रहने के लिए मजबूर हैं. साथ ही पिछले एक दशक के दौरान वेतनों में महत्त्वपूर्ण इजाफा हुआ है. इसलिए आज जो लोग रिटायर हो रहे हैं, उन के पास खर्च करने के लिए उन से ज्यादा पैसा है जो अब से 5 साल पहले रिटायर हुए थे.

वृद्ध केवल अपनी ज्यादा पैंशन के कारण ही बाजार की योजना का हिस्सा नहीं बन रहे हैं बल्कि एक कारण यह भी है कि उन में आय की संभावित निरंतरता है. आज से 20 साल पहले जब लोग वृद्ध हुआ करते थे तब एक तरह से उन के आय के तमाम स्रोत बंद हो जाया करते थे जबकि पिछले 1 दशक में यह ट्रैंड बड़ी तेजी से बदला है. पिछले 1 दशक में रिटायरमैंट के बाद निवेश योजनाओं की बाजार में इस कदर बाढ़ आ गई है कि अब लोग बहुत आसानी से अपने बुढ़ापे का प्रबंधन कर रहे हैं. चूंकि आय बढ़ी है और तमाम महत्त्वपूर्ण सफलताएं हासिल करने की उम्र भी कम हुई है, इस वजह से बुढ़ापे पर दबाव कम हो रहा है.

औद्योगिक संगठन एसोचैम के मुताबिक, 1980 के दशक में 60 साल से ऊपर के लोगों के पास उपभोक्ता बाजार में खर्च करने के लिए महज कुल उपभोक्ता खर्च की सिर्फ 3 से 5 फीसदी रकम हुआ करती थी जबकि आज 30 खरब रुपए के सालाना उपभोक्ता बाजार में 60 साल से ऊपर के लोगों के पास कुल क्रय शक्ति का 6 से 8 फीसदी तक है. यानी आज वृद्धों की सालाना तकरीबन 2 खरब रुपए अपने मन से खर्च करने की हैसियत है जिस के अगले 1 दशक में 5 से 7 खरब रुपए सालाना तक बढ़ जाने की संभावना है. आज के वृद्धों के पास इसीलिए बाजार में खर्च करने के लिए पैसा और इच्छाओं के साथसाथ योजनाएं भी हैं क्योंकि तमाम महंगाई का रोना रोने के बावजूद आज की युवा पीढ़ी के पास खर्च करने के लिए अपना पैसा भी है और अपनी योजनाएं भी.

गौरतलब है कि विकसित देशों में वृद्धों की संख्या अधिक है. वहां उन को ध्यान में रख कर मार्केट योजना बनाना सामान्य सी बात है. इस सिलसिले में जापान बेहतरीन मिसाल है. जापान की कुल जनसंख्या में 60 बरस से ऊपर के लोग 21 प्रतिशत हैं और इस में 2015 तक 10 से 15 फीसदी और इजाफे का अनुमान है. वहां वर्तमान में वृद्धों से संबंधित व्यापार में 1 लाख 15 हजार करोड़ रुपए यानी 23 बिलियन डौलर लगे हैं जो 2015 तक 38 बिलियन डौलर तक पहुंच सकते हैं.

भारत का दवा व्यापार प्रतिवर्ष औसतन 12 से 15 प्रतिशत बढ़ रहा है. लेकिन वृद्धों के लिए जो दवाएं हैं उन के व्यापार में 20 से 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है. मसलन, कोलैस्ट्रौल कम करने की दवाइयों की मांग 108.6 करोड़ नग है. यह आंकड़ा भी 5 साल पुराना है जो वर्तमान में बढ़ कर 160 करोड़ नग के आसपास पहुंच चुका है. इस में प्रतिवर्ष 53.35 फीसदी का इजाफा हो रहा है. इसी तरह 475.2 करोड़ की ऐंटीडायबिटिक में 30 प्रतिशत, 187.4 करोड़ की ऐंटीडिप्रेसैंट में 16.9 प्रतिशत, 806.8 करोड़ की ऐंटीरुमैटिक में 13.9 प्रतिशत और 400 करोड़ की ऐंटीहाइपरटैंशन में हर साल 27 प्रतिशत का इजाफा हो रहा है.

स्वास्थ्य योजनाओं का चलन

वृद्धों के लिए सेहत सब से ज्यादा चिंता का विषय है. इसलिए ज्यादातर अस्पताल व पैथोलौजी लैब्स ऐसे पैकेज दे रहे हैं जिन का निशाना वृद्ध या वृद्ध होते जा रहे व्यक्तियों को बनाया जा रहा है. मसलन, मैक्स हैल्थ केयर ने कुछ साल पहले डायबिटीज और हाइपरटैंशन के लिए क्रोनिक केयर प्रोग्राम शुरू किया था. आज इस से मिलतीजुलती और थोड़ी महंगी योजना का 25 हजार से ज्यादा लोग फायदा उठा रहे हैं.

शुरू में यह योजना 5 हजार रुपए से नीचे की थी, आज यह 10 हजार से ले कर 20 हजार रुपए सालाना की है. तमाम कंपनियां, जिन्होंने आज स्वास्थ्य योजनाओं को निवेश योजनाओं की तरह बेचने में कामयाबी हासिल कर ली है,  कई नियमित रोगों का एक पैकेज बना कर आकर्षक योजना के साथ बेच रही हैं.

कुछ साल पहले अपोलो ग्रुप ने वृद्धों के लिए एक स्वास्थ्य पैकेज तैयार किया था. जिसे विदेश में बसे बच्चे अपने मातापिता को गिफ्ट कर सकते थे. इस सेवा का नाम ‘आशीर्वाद’ रखा गया था. इस के तहत पूर्ण चैकअप, अपोलो द्वारा साप्ताहिक कौल, डाक्टर की मासिक विजिट और 6 माह में जल्दी से किया गया चैकअप शामिल किया गया था. उस समय इस सब की कीमत 7,500 रुपए रखी गई थी. देखते ही देखते यह पैकेज हाथोंहाथ बिक गए थे. बाद में अपोलो द्वारा इस तरह की कई और योजनाएं बेची गईं और आज सिर्फ अपोलो ही नहीं, बल्कि देश के कई दूसरे प्राइवेट अस्पताल भी ऐसी दर्जनों योजनाओं को बेच रहे हैं और तथ्य की बात यह है कि ये तमाम योजनाएं खूब बिक रही हैं जो 6 हजार रुपए से ले कर 50 हजार रुपए सालाना तक की हैं.

वृद्धों पर सर्जरी में भी रिकौर्ड इजाफा हो रहा है, खासकर आंख, दिल, घुटने और कूल्हों के औपरेशन में. 2000-2001 में मोतियाबिंद के 20 लाख औपरेशन हुए थे जो 2001-02 में बढ़ कर 35 लाख हो गए और आजकल औसतन सालाना 42 लाख मोतियाबिंद के औपरेशन हो रहे हैं. चूंकि देश में आंख के तमाम औपरेशन विभिन्न गैर सरकारी संस्थाओं और कई संगठनों के द्वारा बड़े पैमाने पर कैंप लगवा कर हो रहे हैं इसलिए आंख के औपरेशन में तो बहुत कम पैसा खर्च हो रहा है लेकिन तमाम दूसरी सर्जरियों में पिछले 3 दशकों के मुकाबले आज 200 फीसदी ज्यादा खर्च हो रहा है.

स्वास्थ्य के प्रति आम लोगों में आई चेतना के कारण देश में वृद्धों की सर्जरी में खासा इजाफा हुआ है. यह भी आधुनिक स्वास्थ्य कारोबार का बड़ा आधार बन गई है.

टूटते संयुक्त परिवार

वृद्धों की हैल्थकेयर वहां बेहतर हो सकती है जहां डाक्टर और नर्स 24 घंटे उपलब्ध हों. इसलिए ऐसी सुविधाएं अब ओल्डऐज होम में भी दी जा रही हैं. साथ ही, संयुक्त परिवार के टूटने या एक जीवनसाथी के मरने के कारण अकेलेपन को दूर करने के लिए या सही देखभाल न कर पाने के कारण बच्चे अपने मातापिता को वृद्धाश्रम में धकेल रहे हैं. अभी तक ओल्डऐज होम का निर्माण व संचालन समाजसेवी संगठन करते थे लेकिन अब इस क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियां भी तेजी से कूद रही हैं.

हेल्पऐज इंडिया के अनुसार, ओल्डऐज होम में 5 वर्षों के दौरान 42.14 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. 1998 में ऐसे गृह 700 थे जो 2002 में बढ़ कर 995 हो गए. आज इस तरह के घरों की संख्या कई हजार पहुंच गई है.

दिलचस्प बात है कि चैरिटेबल फ्री सर्विस की तुलना में ‘पेड होम’ सैक्टर में वृद्धि हुई है. दिल्ली में एनडीएमसी भी 2 पेड होम चलाती है. इन में से एक ‘संध्या’ है जिस में सिंगल रूम का चार्ज 2,500 रुपए, ट्विन शेयरिंग 1,450 रुपए और खाना 800 रुपए का है. हाल के 2 सालों में महंगाई में हुई वृद्धि के चलते एनडीएमसी के इन पेड होम्स के चार्ज में 20 फीसदी से भी ज्यादा का इजाफा हुआ है. लेकिन इस इजाफे के बाद भी ये दूसरे प्राइवेट पेड होम के मुकाबले सस्ते हैं.

वृद्ध आहिस्ताआहिस्ता ओल्डऐज होम को ही वरीयता देते जा रहे हैं. 2016 तक वृद्धों की तादाद 1130 लाख होने का अनुमान है, जिन में से 15 प्रतिशत मध्यवर्ग के होंगे और अपना खर्च खुद उठाने की स्थिति में होंगे. अगर इन में से 1 फीसदी ने भी ओल्डऐज होम में रहना तय किया तो 1.7 लाख कमरों की आवश्यकता होगी.

गौरतलब है कि अब वृद्धों और बीमारों की देखभाल करने के लिए भी ट्रेंड लोग उपलब्ध हैं. ये लोग प्रतिदिन के हिसाब से अलगअलग शहरों में अलगअलग चार्ज करते हैं, जैसे दिल्ली के कई प्राइवेट अस्पताल प्रतिदिन 700 रुपए से ले कर 1500 रुपए चार्ज की नर्स उपलब्ध करवाते हैं. जबकि इंदौर, भोपाल और चंडीगढ़ में यही चार्ज स्थानीय दरों के हिसाब से वसूले जाते हैं.

अस्पतालों ने होमकेयर सेवा विभाग भी खोल लिए हैं. बेंगलुरु के होसमत अस्पताल ने तो यह सेवा 17 साल पहले ही शुरू कर दी थी. यह अस्पताल ट्रेंड स्टाफ के साथसाथ मशीनें व फर्नीचर भी किराए पर उपलब्ध कराता है. यह अस्पताल वृद्धों की देखभाल के लिए लोगों को टे्रनिंग भी दिलाता है.

वृद्धों को निशाना बना कर व्यापार करना लाभदायक तो है लेकिन वृद्धों को कोई चीज बेचना सब से मुश्किल काम है. उन्होंने एक आदत के तहत जिंदगी गुजारी होती है, उसे बदलना आसान काम नहीं होता. फिर वे दामों (कीमत) को ले कर भी खासे चिड़चिड़ाते नजर आते हैं और मुश्किलों में रहना उन के जीवन का हिस्सा बन चुका होता है. लेकिन यह आज के दौर की बात नहीं है. यह खाका आज से 20 साल पहले के वृद्धों का हुआ करता था जिन का जीवन आमतौर पर संघर्ष से गुजरता था. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि आज वृद्ध बाजार के लिए बड़े आसान ग्राहक हो गए हों. आज भी उन्हें कोई सर्विस बेचना उतना आसान नहीं होता. फिर भी पहले के मुकाबले काफी आसान है और फिर यह भी है कि बाजार उन्हें तो अपनी योजनाओं में शामिल कर ही रहा है.

जब कोई दे धमकी

धमकियां कितनी वास्तविक और कितनी दिखावटी हो सकती हैं, यह अंदाज लगाना मुश्किल है. पुरानी कहावत है कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं. लेकिन सदा ऐसा नहीं होता. कई बार ये गरजने वाले बादल औरों को भयंकर बारिश आने का संकेत दे कर भयभीत कर देते हैं. ऐसे कई उदाहरण हैं जो इस कहावत को झूठा सिद्ध करते हैं.

तरहतरह की धमकियां

संध्या ने कभी सोचा भी न था कि उन की फूल सी खूबसूरत बेटी का यह हश्र होगा. उन की आंखों के सामने उस घटना की याद बारबार ताजा हो जाती है जब उन के ही ?सब से विश्वासपात्र घरेलू नौकर ने उन से उन की बेटी का हाथ मांगा था जिसे सुन कर वे आगबबूला हो उठी थीं और फिर एक दिन सुबहसुबह संध्या ने अपनी बेटी की दिल दहलाने वाली चीखें सुनीं. जब वे दौड़ कर अपनी बेटी के पास पहुंचीं तो उन की फूल सी बेटी तेजाब से जले चेहरे को लिए पीड़ा से चीख रही थी.

संध्या ने नौकर की धमकी को गीदड़भभकी समझा था. यदि वे उसे थोड़ी गंभीरता से लेतीं तो शायद यह दुर्घटना न होती.

विद्या की 3 लड़कियां ही थीं. उन्हें 1 पुत्र की चाह थी. सारे उपचार करने के बाद भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी. एक बार उन की एक परिचिता ने उन्हें एक साधु की महिमा से अवगत कराया तो वे उस साधु के पास जाने के लिए तुरंत तैयार हो गईं. साधु से मिल कर वे बहुत प्रभावित हुईं. विद्या का विश्वास उस साधु के प्रति तब ज्यादा अटल हो गया जब उन्हें 1 पुत्र की प्राप्ति हो गई. अब तो वे अपना सारा समय साधु की सेवा में ही बिताने लगीं और बच्चों व पति की उपेक्षा करने लगीं.

विद्या के पति अपनी पत्नी को समझातेसमझाते हार गए लेकिन विद्या का रवैया नहीं बदला.विद्या के पति पहले तो यह सोच कर टोकाटाकी नहीं करते थे कि शायद पुत्र का जन्म होने के बाद उन की पत्नी का उस साधु के प्रति सेवाभाव फीका पड़ जाएगा. शायद यह उन की भूल थी. प्रतिदिन दफ्तर से आने पर घर पर ताला, बच्चों का भूखेप्यासे गलियों में खेलना और पड़ोसियों के व्यंग्यपूर्ण परिहास से उन का अंतर्मन आहत हो उठता था. वे अपनी पत्नी को समझातेसमझाते हार गए लेकिन विद्या का रवैया नहीं बदला.

एक रात विद्या के पति ने अपनी पत्नी को समझाने के लिए धमकीरूपी अस्त्र का इस्तेमाल करने की सोची. वे समझते थे कि धमकी का उन की पत्नी पर मनोवैज्ञानिक असर जरूर पड़ेगा. उन्होंने अपनी पत्नी को धमकी दे डाली कि यदि उस ने साधु की संगत नहीं छोड़ी तो वे आत्महत्या कर लेंगे. लेकिन विद्या पर साधु महिमा का भूत सवार था. वे कड़े शब्दों में उन का परिहास करने लगीं, ‘‘कोई भी आदमी ढिंढोरा पीट कर नहीं मरता है.’’

यह बात उन के पति को कांटे की तरह चुभ गई और उन्होंने उसी समय छत के पंखे से लटक कर जान दे दी.

विद्या अपने पति की धमकी को कोरी धमकी समझ कर दूसरे कमरे में चली गईं. थोड़ी देर बाद जब वे कमरे में वापस आईं तो उन्हें लगा जैसे सारा भूमंडल हिल गया हो. उन के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. विद्या ने अपने पति की धमकी को गंभीरता से नहीं लिया था जिस का दुष्परिणाम उन के पति ने आत्महत्या कर के दिखा दिया.

हालात से समझौता

कुछ धमकियां इस प्रकार की भी होती हैं जिन से समझौता कर के व्यक्ति को उस समय तो नहीं लेकिन शायद भविष्य में संतुष्टि जरूर मिलती है. श्वेता एक ब्राह्मण परिवार की कन्या थी. उस के परिवार के लोग उस का विवाह एक संपन्न और सुखी परिवार में करना चाहते थे, जैसी कि हर मातापिता की इच्छा होती है. एक संपन्न, खातेपीते परिवार से श्वेता के रिश्ते की बात चली लेकिन वे काफी दानदहेज की मांग कर रहे थे. श्वेता के मातापिता किसी भी हालत में इस रिश्ते को हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे.

उधर श्वेता, प्रमोद नाम के एक लड़के से प्यार करती थी. जब उस ने मातापिता की पसंद से शादी करने से इनकार किया तो घर में एक भूचाल सा आ गया क्योंकि परिवार के सदस्य सजातीय वर को प्राथमिकता दे रहे थे. श्वेता ने परिवार वालों को धमकी दी कि यदि उस की शादी प्रमोद से नहीं की गई तो वह अदालत में शादी कर लेगी. दूसरी तरफ परिवार वाले श्वेता को धमकी देते कि यदि उस ने प्रमोद से विवाह किया तो वे लोग जहर खा कर मर जाएंगे.

यह बात जब श्वेता के पिता के घनिष्ठ मित्र को पता चली तो वे उन के घर आए और उन्होंने उन्हें समझाया कि यदि इस परिस्थिति से समझौता कर लिया जाए तो वे मानसिक व आर्थिक परेशानी से बच सकते हैं. यदि श्वेता द्वारा पसंद किया गया लड़का स्वावलंबी है, स्वस्थ है और अच्छे व्यक्तित्व का स्वामी है तो विवाह करने में कोई हर्ज नहीं है. यह बात श्वेता के मातापिता को जंच गई और उन्होंने विवाह की स्वीकृति दे दी.

इस तरह कई बार हालात से समझौता कर के व्यक्ति भविष्य में आने वाली परेशानियों से बच सकता है बशर्ते उस पर संपूर्ण रूप से सोचसमझ कर विचार किया जाए. अपने साथसाथ दूसरे व्यक्ति की भावनाओं, इच्छाओं का भी खास खयाल रखा जाए. इस से एक तो आप मानसिक परेशानी और पारिवारिक मनमुटाव से बच जाएंगे, दूसरे, औरों के मन में अपने लिए सम्मान का जज्बा पैदा कर सकेंगे.

कानूनी मदद

जयंत के तलाक का मामला अदालत में विचाराधीन था. उसे प्रतिदिन फोन पर धमकी मिलती थी कि यदि उस ने मुकदमा वापस न लिया तो उसे जान से मार डाला जाएगा. लगातार ऐसी धमकी सुन कर वह काफी परेशान रहने लगा.  रात में भी वह आराम से सो नहीं पाता था. घर से बाहर अकेले जाने में वह कतराता था. घर, दफ्तर और मित्रों के बीच भी वह बुझाबुझा सा रहता.

एक दिन जब उस के एक मित्र ने उस से उस की परेशानी का कारण पूछा तो उस ने अपनी समस्या उस को बताई. जयंत के दोस्त ने धमकी की रिपोर्ट पुलिस थाने में करने की सलाह दी. थाने में रिपोर्ट के बाद  पुलिस की सहायता से धमकी देने वाले व्यक्ति पर कानूनी कार्यवाही की गई. उस के बाद ही जयंत सामान्य हो पाया.

धमकी की धमक

जरूरी नहीं है कि आप को जो धमकी दी जा रही है उसे वह धमकी देने वाला व्यक्ति पूरा ही करेगा. लेकिन निरंतर धमकी मिलते रहने से व्यक्ति कई प्रकार की मानसिक परेशानियों से ग्रस्त हो जाता है और अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है.

कोई भी व्यक्ति बिना किसी वजह के धमकी नहीं देता है. मामूली सी बात भी धमकी का कारण बन सकती है, जैसे छोटी सी बात बड़े झगड़े का रूप धारण कर लेती है. उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति सड़क पर जा रहा है और जल्दीजल्दी में उस की टक्कर सड़क पर चल रहे दूसरे व्यक्ति से हो गई. यह छोटी सी घटना उग्र रूप धारण कर सकती है.

निजी दुश्मनी, पैसे का लेनदेन, प्यारमुहब्बत की असफलता और जरजमीनजोरू धमकी के मुख्य कारण होते हैं.

मीना अजय से प्यार करती थी. लेकिन इस विषय में मीना के परिवार वालों को किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं थी. अपनी बेटी के प्यार से अनभिज्ञ उस के मातापिता ने उस का रिश्ता अन्य जगह तय कर दिया. उधर, अजय को जब पता चला कि मीना के विवाह की तिथि में मात्र 5 दिन रह गए हैं तो उस ने मीना को धमकी दी कि यदि उस ने किसी और से विवाह किया तो वह उस के विवाह के दिन उस के घर के सामने खुदकुशी कर लेगा.

मीना ने जब यह सुना तो घरपरिवार की बदनामी के डर से अजय की धमकी से डर गई और अजय के साथ चुपचाप भाग गई. कुछ दिन बाद अजय ने उस से शादी करने से मना कर दिया.

असर

ऐसा नहीं है कि जिस व्यक्ति को धमकी मिल रही है, उस ने धमकी से त्रस्त हो कर जो अनौचित्यपूर्ण व्यवहार किया है उस से केवल उसी को सामाजिक, मानसिक एवं व्यावहारिक आघात पहुंचता है बल्कि उस व्यक्ति से आत्मीय तौर पर जुड़े व्यक्तियों की भी मानसिक स्थिति काफी दयनीय हो जाती है. परिवार में सामाजिक मानमर्यादा भंग होने का खतरा इतना हावी हो जाता है कि परिवार का हर सदस्य तनाव व परेशानी महसूस करता है.

धमकी मिलने पर स्वयं कोई फैसला नहीं करना चाहिए बल्कि अपने आत्मीय लोगों से सलाहमशवरा करना चाहिए और अपनी परेशानी दूर करने के लिए उन की सहायता लेनी चाहिए. धमकी मिलने पर उसे अपने मन में रख कर चिंता नहीं करनी चाहिए बल्कि खुलेतौर पर सब की राय ले कर उपयुक्त निर्णय लेना चाहिए और उस धमकीरूपी समस्या से छुटकारा पा लेना चाहिए.  

सूक्तियां

व्यवहार
सुंदर मुखड़े के मुकाबले बरताव के भले तौरतरीके कहीं ज्यादा प्रभावपूर्ण होते हैं. सुंदर मुखड़ा लोगों को सिर्फ अपनी ओर खींचता है जबकि भले तौरतरीके हमेशा के लिए उन्हें अपने बंधन में बांध लेते हैं.

यश
यश लूटने में एक बुराई भी है. अगर हम इसे अपने पास रखना चाहते हैं तो हमें अपनी जिंदगी लोगों को खुश करने में और यह जानने में बिता देनी होगी कि उन्हें क्या पसंद है और क्या नहीं.

विवाह
विवाह कभी विफल नहीं होते. यह तो व्यक्ति है, जो विफल होता है. विवाह तो केवल व्यक्ति को उस के वास्तविक रूप में प्रकट कर देता है.

मित्रता
मनुष्य जो स्वयं दूसरे को दे, उसे भूल जाए और जो दूसरों से ले, उसे सर्वदा याद रखे – मित्रता की जड़ यही है.

महान
जो मनुष्य अपने हर्ष को छिपा सकता है वह उस से महान है जो अपने दुख को छिपा सके.

अंधविश्वास
दुर्बलता, भय और अज्ञान मिल कर अंधविश्वास को जन्म देते हैं.

बहार हो जाए

गैरों पर एतबार हो जाए
दुश्मन से भी प्यार हो जाए

नींद आंखों से उड़ जाए कहीं
उन से नजरें जो चार हो जाएं

हो कमान खिंची उन के हाथों में
और तीर जिगर के पार हो जाए

यों बेरुखी भी गवारा है तेरी
चाहे जीना दुश्वार हो जाए

फकत एक बार मुझे अपना कह दे
जान तुझ पर निसार हो जाए

भीगी जुल्फों को लहराओ तो सही
मौसमेखिजां भी बहार हो जाए.
अब्दुल कलाम

ये पति

मैं अपने पति के साथ मौल में शौपिंग करने गई थी. शौपिंग करने के बाद हमें पति के मित्र और उन की पत्नी से भी मिलना था जिन्हें मैं ने पहले कभी देखा नहीं था. एक शौप में मैं ने 2 टीशर्ट छांट कर अपने पति को दीं.
मेरे पति अपना मोबाइल फोन पकड़ा कर ट्रायलरूम में जाने लगे तभी मुझे अचानक एक जरूरी काम याद आ गया. मैं ने कहा, ‘‘आप जब तक टीशर्ट
ट्राई कीजिए, मैं 10 मिनट में वापस आती हूं.’’
वापस आने पर दुकानदार ने बताया कि साहब तो टीशर्ट खरीद कर चले गए. मैं तुरंत बाहर निकल कर इन्हें ढूंढ़ने लगी पर ये कहीं दिखाई नहीं दिए. इन का मोबाइल फोन भी मेरे पास था. अचानक इन की आवाज सुनाई पड़ी, देखा तो ये अपने मित्र और उन की पत्नी के साथ खड़े थे.
मेरी ओर गुस्से से देख पूछा, ‘‘इतनी देर तक कौन सा काम कर रही थीं?’’
मैं इन के प्रश्नों का जवाब देती इस के पहले ही मेरी नजर इन की टीशर्ट पर पड़ी तो सारा माजरा समझ में आ गया. असल में इन्होंने जब नई टीशर्ट ट्राई की तो वह इन्हें इतनी भा गई कि वे उसे ही पहन कर दुकान से बाहर आ गए और अपनी पुरानी टीशर्ट पैक करवा दी. जबकि मैं इन्हें पुरानी टीशर्ट में ढूंढ़
रही थी. सारी बात जानने के बाद हम चारों खूब हंसे.    
निभा सिन्हा, गया (बिहार)

मेरे पति की आदत है जब किसी सामान को ज्यादा लेना होगा तो बोलेंगे, ‘‘अच्छा, ‘दोचारछह’ ले ही लो.’’ हाल ही में हम लोग बाजार में बेटे की पैंटी लेने लगे. इस पर आदतानुसार ये बोल पड़े, ‘‘अच्छा, ‘दोचारछह’ पैंटी ले ही लो, जरूरत ही पड़ती है.’’
इन की बात सुन कर दुकानदार ने फट से दो नंबर, चार नंबर और छह नंबर की पैंटी पैक कर दीं. जब मैं ने पैकिंग देखी और उस के बारे में दुकानदार से पूछा तो वह बोला, आप ही ने तो कहा था. उस की बात सुन कर इन का मुंह देखने लायक था और मेरी हंसी नहीं रुक रही थी.
शालिनी बाजपेयी, चंडीगढ़ (पंजाब)

मेरे पति काफी हाजिरजवाब हैं और कटाक्ष करने में अत्यधिक निपुण हैं. तेज गरमी होने के कारण हम लोग पूर्णिमा की चांदनी रात का आनंद ले
रहे थे. मैं ने इन से कहा, ‘‘ऐसी चांदनी रात में समझदार लोग भी पागल हो जाते हैं.’’
ये तपाक से बोल पड़े, ‘‘हां, यह सच है क्योंकि ऐसी ही एक चांदनी रात को मैं ने तुम्हें पसंद किया था.’’
मंजरी श्रीवास्तव, लखनऊ (उ.प्र.)

साया


न कोई आहट न कोई साया है
न जाने दिल में कौन आया है

जिस की चर्चा गलीगली में है
मेरी नसनस में वो समाया है

जो दिया जल उठा था सीने में
अश्के गम से उसे बुझाया है

खो गए रास्ते धुंधलकों में
जब से हम ने कदम उठाया है

उड़ने लगती है फूल से शबनम
धूप का जिस चमन में साया है

ये तो पत्थरों का देश है ‘शशि’
हम ने तेरा बुत कहां बनाया है.
डा. शशि श्रीवास्तव

यह भी खूब रही

मैं वैवाहिक निमंत्रण पर ससुराल गया था. मैं वहां थोड़ा पहले पहुंच गया था क्योंकि पत्नी अपनी सहेली से रास्ते में रुक कर बात करने लगी इसलिए उसे आने में विलंब हो गया. मुझे अकेला आता देख बड़े साले साहब ने पूछा, ‘‘आप अकेले आए हैं?’’
मैं ने कहा, ‘‘नहीं, मैं अपने बाबूजी की बड़ी बहू और उन की छोटी पोती के साथ आया हूं.’’ मेरा उत्तर सुन कर पहले तो वे समझ नहीं पाए, पर समझने पर उन की हंसी छूट गई.
दामोदर नारायण दास, लखनऊ (उ.प्र.)

औफिस के काम से मुझे पुणे जाना था. मेरी फ्लाइट सुबह 5.30 बजे की थी. मैं ने एअरपोर्ट जाने के लिए औफिस की गाड़ी मंगाई थी. ड्राइवर सुबह थोड़ी देर से आया, इसलिए समय पर पहुंचने के लिए गाड़ी थोड़ी तेज चला रहा था. सुबह का समय था और सड़क पर कोई खास ट्रैफिक भी नहीं था, इसलिए मैं ने उस से कुछ नहीं कहा.
थोड़ी दूर पहुंचने के बाद मुझे रास्ता कुछ अनजाना सा लगा तो मैं ने ड्राइवर से पूछा कि कौन से रास्ते से जा रहे हो? वह बोला, ‘‘साहब? रेलवे स्टेशन का रास्ता तो यही है.’’ यह सुन कर मैं उस की तरफ देखने लगा तो वह बोला, ‘‘कुछ गलती हो गई, साहब.’’ मैं ने उस से कहा कि यह भी खूब रही, मुझे फ्लाइट पकड़वाने के लिए रेलवे स्टेशन ले जा रहे हो.
आर के जैन, तिमारपुर (दिल्ली)

हम कोलकाता में रहते थे. हमारे साले साहब कुछ दिनों के लिए हमारे पास रहने आए. साले साहब को अपने विशिष्ट हिंदी ज्ञान का काफी अभिमान था. हम से हमेशा कहते ‘‘अरे, हिंदी सीखो, कोई समस्या हो तो मुझ से पूछो.’’
साले साहब की निशुल्क हिंदी सेवा की हमें तो आवश्यकता कभी नहीं पड़ी. हां, एक बार हमारे एक संगीतकार मित्र अपने 10-12 साल के बेटे के साथ हमें किसी समारोह के लिए आमंत्रित करने आए तो साले साहब की तारीफ सुन कर बोले, ‘जीतेंद्रजी, हमें अपने गुरु की आदमकद प्रतिमा का अपने समारोह में लोकार्पण करना है, अभी प्रतिमा परदे में छिपी है, एक मंत्रीजी परदे को बेपरदा करेंगे. इस बेपरदा करने को शुद्ध हिंदी में क्या कहते हैं?’’
साले साहब ने थोड़ी देर सोचा और फिर कहा, ‘‘बहुत सुंदर शब्द है, मुखदर्शन.’’
‘‘नहींनहीं मामाजी, मुखदर्शन नहीं. अनावरण कहते हैं,’’ पास ही कंप्यूटर पर अपना गेम खेल रहा मेरा 11 साल का बेटा बोला और फिर साले साहब से पूछा, ‘‘अंकल, लता मंगेशकर को कोकिलकंठी कहते हैं तो मोहम्मद रफीजी को क्या कहेंगे?’’
सालेजी झट बोले, ‘‘व्याकरण का सामान्य ज्ञान होना चाहिए, बेटा, स्त्रीलिंग का पुलिंग होगा, कोकिलकंठा.’’
अर्जुन अरविंद, औरंगाबाद (महा.)

जीवन की मुसकान

बात 3 साल पहले की है. मेरी बेटी वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान से एमबीए कर रही थी. दीवाली की छुट्टियों के बाद वापस जयपुर जा रही थी. टे्रन लेट होने के कारण जयपुर से वनस्थली के लिए आखिरी बस छूट सकती थी. मेरी बेटी ने हमें फोन किया कि उस के साथ 3 लड़कियां और हैं, समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें. तब मेरे पति ने जयपुर बस स्टौप पर फोन किया. 15 मिनट बस रोक कर उन से बच्चों की मदद के लिए कहा. बस कुछ देर के लिए रोक दी गई. कुछ देर बाद मेरी बेटी और लड़कियां जल्दी बस में चढ़ीं. तब कंडक्टर ने कहा, ‘‘आप में से किसी के पापा ने हमें फोन कर के आप लोगों के लिए बस रुकवाई थी.’’ तब मेरी बेटी ने बताया कि उस के पापा ने उन्हें फोन किया था. बस कंडक्टर और ड्राइवर की सहृदयता के कारण बच्चे वनस्थली सकुशल पहुंच गए. हम ने दिल से उन्हें धन्यवाद दिया.

माया कनौजिया, लखनऊ (उ.प्र.)

पहली कक्षा से ले कर 12वीं कक्षा तक टौप करने वाली मेरी बेटी आईआईटी, रुड़की और बिहार के इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं में असफल रही. हालांकि बिहार इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में 90 फीसदी अंक पर ही चयन हुआ था और उस ने तीनों पेपर फिजिक्स, कैमिस्ट्री व मैथ्स में 90 फीसदी से ऊपर प्रश्नों के ठीकठीक उत्तर लिखे थे. तब बिहार में प्रतिभाशाली व योग्य विद्यार्थियों की प्रतिभा से खिलवाड़ कर के, जनरल सीटों को लाखों रुपए में बेच दिया जाता था. तभी आशा के विपरीत कोलकाता के लेडी बारबौर्न कालेज में चयन होने पर हम ने उस का दाखिला फिजिक्स औनर्स में करवा दिया जहां से वह 4 दिन बाद ही, पढ़ाई का माध्यम बंगला होने के कारण, वापस आ गई थी.हम सभी मानसिक रूप से परेशान थे. घर में चारों ओर उदासी का सन्नाटा बिखर गया था. मेरी बेटी ने अपने खोए हुए आत्मविश्वास को फिर से किसी प्रकार सहेजते हुए परिस्थितियों से समझौता कर, अगले साल की तैयारी का निश्चय किया. वह जोरजोर से रोते हुए स्डटीटेबल पर किताबकौपी संभाल रही थी.

हम सभी दुख एवं निराशा की चरमसीमा पर थे कि ठीक उसी दिन बीआईटी मेसरा, रांची का रिजल्ट निकला और पूरे घाटशिला में एक मेरी बेटी ने ही परीक्षा पास की थी. फिर तो सारा माहौल ही बदल गया. दुख, क्रोध, अविश्वास के बादल छंट गए थे. खुशियों व विश्वास की किरणों में हम डूब गए. कालोनी वालों की बधाइयां देती टैलीफोन की घंटी चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी. मुसकान की लाली हमारे जीवन में सर्वत्र फैल चुकी थी.

रेणु श्रीवास्तव, पटना (बिहार)

एहसास

आज की सुबह कुछ खास है

हवाओं में अनोखा एहसास है

सांसों में नई ताजगी लिए

लगता है वह आसपास है

 

यों तो कुछ खास नहीं है उस में

पर फिर भी शायद कुछ बात है

अधखुली सी, बोझिल कोमल पलकों में

मीठी सी मस्ती और बरसों की प्यास है

 

कोमल से चेहरे पर वो पानी की छपकी

गालों से जिस ने लट बालों की झटकी

अलसाया सा बदन भी खाए हिचकोले

तुम ही बताओ ये दिल क्यों न डोले

 

हर कोई सुबह सुकून की तलाश करता है

खिलते चेहरे के दर्शन की आस करता है

पर शायद ही कोई खुशनसीब होता है

दामन में जिस के तेरा दीदार लिखा होता है.

महेश कुमार

पाठकों की समस्याएं

मैं 32 वर्षीय विवाहित हूं. सेना में नौकरी करता हूं. विवाह को 5 साल हो गए हैं. विवाह के समय से ही पत्नी का व्यवहार मेरे प्रति ठीक नहीं था लेकिन मैं ने उसे अनदेखा किया. पिछले दिनों पत्नी ने बताया कि विवाह से पूर्व उस के एक शादीशुदा युवक के साथ शारीरिक संबंध थे. मुझे यह जान कर बहुत दुख हुआ. पत्नी ने मेरा विश्वास तोड़ा है. क्या मैं पत्नी से तलाक ले लूं या उस की ही तरह कहीं और रिश्ता बना लूं?
पत्नी से इस बारे में बात की तो उस ने वादा किया कि आगे से ऐसा नहीं होगा. मैं बहुत तनावग्रस्त रहने लगा हूं आप ही बताइए, मैं क्या करूं?

जब 2 लोग विवाह के बंधन में बंध जाते हैं तो विवाह से पूर्व की बातों को ले कर वर्तमान में वैवाहिक संबंधों में कड़वाहट लाना कोई समझदारी वाली बात नहीं है. आप ने विवाह अपनी मरजी से किया था, किसी ने आप के साथ जबरदस्ती नहीं की थी. इसलिए पुरानी बातों को भूल कर वर्तमान के अपने पतिपत्नी के रिश्ते को महत्त्व दीजिए और पत्नी पर विश्वास बनाए रख कर इस मजबूत बंधन को आगे बढ़ाइए. जहां तक तलाक की बात है, तलाक आसान नहीं होता, इस से घरपरिवार की पूरी नींव हिल जाती है.

 

मैं 30 वर्षीय युवक हूं. मेरे विवाह को 8 महीने हुए हैं. मैं और मेरी पत्नी एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं पर पता नहीं क्यों, जब भी पत्नी मायके जाती है, हम दोनों का एकदूसरे के प्रति प्यार और आकर्षण कम हो जाता है. ऐसा क्यों होता है? हम दोनों के बीच प्यार और आकर्षण बना रहे, इस के लिए हम क्या करें?

आप अपनी पत्नी को ले कर कुछ ज्यादा ही पजेसिव हैं और हर वक्त उसे अपने आसपास ही चाहते हैं. आप इसी को आपसी प्यार और आकर्षण का आधार मानने की भूल कर रहे हैं. दरअसल, पतिपत्नी का संबंध और उन के बीच का प्यार लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, इसे दूरियों की सीमाओं में न बांधें. पत्नी हमेशा साथ रहेगी तो प्यार व आकर्षण कायम रहेगा, आप का ऐसा सोचना गलत है.

दूर रह कर भी आपसी प्यार व आकर्षण को कायम रखा जा सकता है. आज के तकनीकी दौर में मैसेजिंग द्वारा, औनलाइन चैटिंग द्वारा, सरप्राइज गिफ्ट भिजवा कर भी प्यार व आकर्षण बढ़ाया जा सकता है.

 

मैं 32 वर्षीय विवाहित महिला हूं. विवाह को 5 वर्ष हुए हैं. समस्या यह है कि पति को आजकल पौर्न साइट्स देखने की लत लग गई है और मुझे भी साथ देखने को कहते हैं. मुझे यह सब बिलकुल अच्छा नहीं लगता. मैं क्या करूं?

पति को अगर पौर्न साइट्स देखना अच्छा लगता है तो इस में समस्या कहां है और जहां तक पति द्वारा आप को पौर्न साइट्स देखने के लिए कहने की बात है तो उस में भी कोई बुराई नहीं है. हो सकता है वे आप दोनों के यौनसंबंधों में कुछ नयापन चाहते हों और इसी चाहत से आप को पौर्न साइट्स साथ बैठ कर देखने के लिए कहते हों. पौर्न साइट्स को हौवा न मानें.

आजकल तो हैल्थ एक्सपर्ट भी स्वस्थ यौन संबंधों के लिए पौर्न साइट्स को देखने की सलाह देते हैं ताकि यौन संबंधों में नयापन लाया जा सके व व्यस्त लाइफस्टाइल के बीच सैक्स संबंधों में नीरसता न आने पाए. इसलिए पति के मूड के हिसाब से पौर्न साइट्स देखने में कोई बुराई न समझें और उन अंतरंग पलों को एंजौय करें.

 

मैं 18 वर्षीय लड़की हूं. समस्या यह है कि मेरा बौयफ्रैंड आजकल मुझे इग्नोर कर रहा है. मेरी हर बात पर गुस्सा करता है, मुझ में कोई रुचि नहीं दिखाता. मुझे उस का यह बदला व्यवहार बहुत परेशान कर रहा है. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं?

यह उम्र बदलाव की है, इस उम्र में पसंदनापसंद बहुत जल्दी बदलती है. ऐसे में आप के बौयफ्रैंड का आप को इग्नोर करना या आप में रुचि न दिखाना स्वाभाविक है. इसलिए बौयफ्रैंड के बदले व्यवहार को ले कर परेशान न हों.

अगर आप कोई नया बौयफ्रैंड भी बनाएंगी तो उस का भी व्यवहार हो सकता है आप के प्रति कुछ समय बाद बदल जाए, क्योंकि इस उम्र में नएपन व बदलाव की चाहत रहती है. इसलिए, इस बात को ज्यादा महत्त्व न दे कर अपने कैरियर की ओर ध्यान दें.

 

मैं 28 वर्षीय युवक हूं. पिछले दिनों मेरी सगाई हुई है. समस्या यह है कि मुझे एक अनजान नंबर से एसएमएस आ रहे हैं जिस में कोई मेरी मंगेतर के बारे में गलत बातें लिख रहा है. मैं बहुत दुविधा में हूं. समझ नहीं आ रहा है, क्या करूं? क्या मंगेतर के साथ रिश्ता तोड़ दूं या इस बारे में पहले मंगेतर से खुल कर बात करूं?

किसी भी ऐरेगैरे के मैसेज पर भरोसा कर के मंगेतर पर शक न करें. रिश्तों की शुरुआत में शक का बीज आप के विवाह की इमारत को कमजोर कर सकता है. हो सकता है मैसेज करने वाला कोई ऐसा हो जो आप की मंगेतर को बदनाम करने की नीयत रखता हो और आप के साथ उस का विवाह न होने देना चाहता हो. इसलिए इन मैसेजेज पर ध्यान न दें. ध्यान रहे, मंगेतर से इस बारे में हरगिज बात न करें.

विवाह जैसे मधुर बंधन की शुरुआत शक के बीज की कड़वाहट से न करें. नए रिश्ते को शक के बजाय प्यार और विश्वास के आधार पर बनाएं और रिश्ता तोड़ने का खयाल दिमाग से बिलकुल निकाल दें. विवाह जैसे संबंध आसानी से नहीं जुड़ते ऐसे में बंधन जुड़ने से पहले उस में शक के बीज का समावेश न करें.

 

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