न कोई आहट न कोई साया है
न जाने दिल में कौन आया है
जिस की चर्चा गलीगली में है
मेरी नसनस में वो समाया है
जो दिया जल उठा था सीने में
अश्के गम से उसे बुझाया है
खो गए रास्ते धुंधलकों में
जब से हम ने कदम उठाया है
उड़ने लगती है फूल से शबनम
धूप का जिस चमन में साया है
ये तो पत्थरों का देश है ‘शशि’
हम ने तेरा बुत कहां बनाया है.
डा. शशि श्रीवास्तव
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