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सोचसमझ कर करें फाइनैंशियल प्लानर का चुनाव

बेहतर और सुरक्षित भविष्य के लिए आज हर कोई अपनी जमापूंजी निवेश करना चाहता है. लेकिन मेहनत की गाढ़ी कमाई का निवेश व प्रबंधन बेहद संवेदनशील मसला है. लिहाजा, इस के लिए एक सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. उस का चयन कैसे करें, बता रही हैं ममता सिंह.

निवेश को ले कर लोग काफी जागरूक हो गए हैं. हर व्यक्ति की कोशिश यही रहती है कि वह अपनी मेहनत की कमाई से चार पैसे बचा कर, उस का सही जगह निवेश करे. निवेश के लिए, सही फैसला लेना आसान नहीं है. हर व्यक्ति की परिस्थितियां अलगअलग होती हैं. व्यक्ति को अपनी जरूरत और परिस्थिति के मुताबिक निवेश के विकल्पों का चुनाव करना चाहिए. इस तरह निवेश के लिए हमें सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर की मदद की जरूरत पड़ती है.

सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर वह व्यक्ति है जिस के पास फंड का प्रबंधन करने के लिए एक औपचारिक डिगरी और योग्यता होती है. याद रहे, आप की गाढ़ी कमाई से बचाए गए पैसों का प्रबंधन काफी संवेदनशील मुद्दा है. ऐसे में अपने वित्त के प्रबंधन हेतु काफी अच्छी तरह सोचसमझ कर सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर का चुनाव करना चाहिए. फाइनैंशियल प्लानर को चुनने में कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए :

निवेश के आधार पर करें चुनाव

रमेश एक आईटी इंजीनियर के तौर पर कार्यरत है. वह म्यूचुअल फंड के माध्यम से इक्विटी में निवेश करना चाह रहा था और इस के लिए उसे एक अच्छे फाइनैंशियल प्लानर की तलाश थी. इस मौके पर उस के दोस्त अविनाश ने मदद की और रमेश को अपने फाइनैंशियल प्लानर के बारे में बताया. हालांकि, अब रमेश अपने निवेश के प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं है. नतीजतन, वह अब किसी और सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर की तलाश में है.

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर रमेश के ऐसा करने की क्या वजह हो सकती है. दरअसल, अविनाश के फाइनैंशियल प्लानर की विशेषज्ञता डेट निवेश में है जबकि रमेश इक्विटी में निवेश करना चाहता था. कहने का मतलब यह है कि केवल किसी के कहने भर से आप को फाइनैंशियल प्लानर का चुनाव नहीं करना चाहिए बल्कि आप को अपनी ऐसेट क्लास के हिसाब से फाइनैंशियल प्लानर के पोर्टफोलियो की जांच करनी चाहिए.

केवल बातों से प्रभावित न हों

अपने क्लाइंट को प्रभावित करने के लिए कई बार फाइनैंशियल प्लानर शौर्ट में शब्दों का प्रयोग कर के गुमराह करते हैं. उस के शब्दों से लोगों को लगता है कि वह प्लानर काफी काबिल है.

जबकि एक अच्छा सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर वही होता है जो निवेशक को आसान शब्दों में निवेश के विकल्पों के बारे में समझाए. इस बारे में अर्थशास्त्र कंसल्टिंग की सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर शिल्पी जौहरी कहती हैं कि अच्छा फाइनैंशियल प्लानर वही होता है जो अपने ग्राहकों के वित्तीय लक्ष्यों का अध्ययन करते हुए उन के लिए निवेश प्रोडक्ट चुनता है.

इस के अलावा ग्राहकों को कुछ और बातों का भी ध्यान रखना चाहिए :

  1. फाइनैंशियल प्लानर सब से पहले आप के वित्तीय लक्ष्यों के बारे में आप से पूछेगा.
  2. वह आप की वित्तीय स्थिति का अध्ययन करेगा. उदाहरण के तौर पर, वह आप से कर्ज, घरेलू खर्च आदि के बारे में पूछेगा.
  3. यह सब जानने के बाद वह आप के लिए निवेश की एक योजना बनाएगा.
  4. अगर कोई फाइनैंशियल प्लानर उपरोक्त चरणों का पालन नहीं कर रहा है और ऊंचा मुनाफा कराने का दावा भी कर रहा है तो इस का मतलब है कि वह आप को गुमराह करने की कोशिश में है.
  5. एक अच्छा फाइनैंशियल प्लानर निवेशकों की इच्छाओं का भी खयाल रखता है. मुद्रा मैनेजमैंट के सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर मनीष अग्रवाल बताते हैं कि फाइनैंशियल प्लानिंग एक संवेदनशील मुद्दा है और सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर वही बन सकता है जिस ने इस के लिए बाकायदा डिगरी ली हो और प्रैक्टिस कर रहा हो. ऐसे में निवेशकों को फाइनैंशियल प्लानर चुनते समय उस की डिगरी की जांच भी कर लेनी चाहिए.

जोखिम से भी अवगत कराए

किसी तरह का निवेश जोखिम मुक्त नहीं होता है. सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर अनूप गुप्ता के मुताबिक, एक अच्छा फाइनैंशियल प्लानर वही होता है जो आप को सभी ऐसेट क्लास में निवेश के फायदे के साथ उन से जुड़े हुए जोखिम के बारे में भी बताए. मान लीजिए कि आप का फाइनैंशियल प्लानर आप से कहे कि आप शेयर बाजार (इक्विटी) में निवेश कर के ज्यादा रिटर्न कमा सकते हैं, तो उसे आप को साथ में यह भी बताना चाहिए कि सभी तरह के ऐसेट क्लास में निवेश की तुलना में सब से ज्यादा जोखिम भी इक्विटी के निवेश में है.

फाइनैंशियल प्लानर चुनते समय आप को उस का पिछला प्रदर्शन भी देखना चाहिए. उदाहरण के तौर पर जब बाजार ऊपर (बुल मार्केट) जा रहा हो तो सभी अच्छा रिटर्न कमा लेते हैं. हालांकि एक अच्छा फाइनैंशियल प्लानर वही होता है जो गिरते हुए बाजार (बेयर मार्केट) में भी अच्छा पैसा कमा के दिखाए. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आप जिस फाइनैंशियल प्लानर को अपनी पूंजी सौंपने वाले हैं उस के पुराने क्लाइंट कितने संतुष्ट हैं. इस तरह, अच्छा फाइनैंशियल प्लानर चुन कर आप पैसों का निवेश करें.

नए साल में समृद्धि बढ़ाएं

नए साल के लिए संकल्प लेने जा रहे हैं तो जरा रुकिए. इस में समृद्धि बढ़ाने का संकल्प भी जोड़ लीजिए क्योंकि बचत व निवेश पर ध्यान देना न केवल आप के परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करेगा बल्कि आप अपने पैसे का पूरा लाभ भी उठा पाएंगे. कैसे? बता रही हैं  आरती श्रीवास्तव.

‘नया साल आप के लिए शुभ व समृद्धिदायक हो’, नववर्ष की शुभ कामनाएं देते समय लोग यही वाक्य सब से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. संकल्प कुछ अच्छी आदतों को अपनाने, बुरी आदतों को त्यागने, कोई नई चीज सीखने आदि को ले कर होते हैं. मकसद यह होता है कि हमारा जीवन बेहतर बने, हम अपने मकसदों को पूरा कर सकें. चूंकि सभी की प्राथमिकताएं एक जैसी नहीं होतीं, इसलिए संकल्प भी अलगअलग होते हैं. आने वाले साल के लिए आप ने भी कुछ संकल्प लिए होंगे. क्यों न इस में समृद्धि बढ़ाने का संकल्प भी जोड़ दें.

बचत और निवेश के जरिए हम धन बचा और बढ़ा सकते हैं और इस से जीवन में बेहतर सुखसुविधाएं हासिल कर सकते हैं. समृद्धि का मतलब यहां यह है कि हमारे पास अपनी वाजिब जरूरतों के लिए धन मौजूद हो.

आज के उपभोक्तावादी दौर में लोग खर्च ज्यादा कर रहे हैं जबकि निवेश या बचत के बहुत से मामलों में उन का ध्यान हटता चला जा रहा है. युवा प्रोफैशनलों को आज शानदार पैकेज मिल रहा है और वे कम उम्र में आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं. यह स्वतंत्रता उन्हें भावी जरूरतों के लिए बचत करने के प्रति कहीं लापरवाह भी बना रही है. अनुभवी लोगों में भी कई ऐसे हैं जिन्हें सही प्रकार से निवेश नहीं करने के कारण नुकसान उठाना पड़ता है.

महेश बनर्जी को लें. एक पब्लिक सैक्टर कंपनी से सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें 18 लाख रुपए की रकम प्राप्त हुई. इस रकम की उन्हें तुरंत कोई जरूरत नहीं थी तो भी यह रकम सालभर तक उन के बचत खाते में ही पड़ी रही. अगर इस रकम को उन्होंने फिक्स्ड डिपौजिट में रखा होता तो उन्हें ब्याज के रूप में कम से कम 1 लाख रुपए और मिले होते. बाद में ब्याज की यह रकम उन के और उन के परिवार के काम आ सकती थी.

अन्य मामलों की तरह वित्तीय मामलों में भी सुस्ती और टालमटोल हमारा नुकसान करती है. यह सच में अफसोस की बात है कि एक तरफ लोग पैसे की तंगी की बात करते हैं और दूसरी तरफ निवेश के बेहतर विकल्पों, जो हमें अधिक लाभ पहुंचा सकते हैं, पर ध्यान नहीं देते. निवेश के मामलों में देरी करना जीवन में आगे चल कर आप पर वित्तीय बोझ को बढ़ा सकता है और हो सकता है कि कोई अपनी दीर्घकालिक जरूरतों के लिए जरूरी रकम न जुटा पाए.

एक उदाहरण देखते हैं. मुद्रास्फीति की वर्तमान दर के हिसाब से एमबीए की पढ़ाई पर आने वाला खर्च जो अभी औसतन 8 लाख रुपए है, 15 सालों के बाद बढ़ कर 40 लाख रुपए हो जाने का अनुमान है. आज कितने मातापिता ऐसे हैं जो अपने रिटायरमैंट फंड में हाथ लगाए बगैर उस समय इस खर्च को पूरा कर पाने की स्थिति में होंगे?

कुछ समय पहले देश के 12 शहरों में कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 72 प्रतिशत मातापिता के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता संतान की शिक्षा है. लेकिन इन्हीं मातापिता में से 81 प्रतिशत ने यह भी स्वीकार किया कि उन्हें यह पता नहीं है कि बच्चे की शिक्षा पर खर्च करने के लिए जरूरी धनराशि कहां से आएगी? इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि बच्चों की उच्चशिक्षा के लिए समय रहते बचत शुरू कर दी जाए ताकि आगे चल कर यह बोझ न बने.

बच्चों की शिक्षा तो अपनी जगह पर है ही, अगर घर लेना हो, बच्चों की शादी करनी हो, कार खरीदनी हो तो भी आप को बड़ी रकम की जरूरत पड़ेगी. इन सभी के लिए ऋण भी मिल सकता है लेकिन बेहतर होगा कि ऋण की राशि आप कम से कम रखें क्योंकि लिए गए ऋण पर आप को ब्याज भी तो देना होगा. आप की भावी बड़ी जरूरतें क्या हो सकती हैं, इन जरूरतों पर लगभग कितना खर्च आएगा, यह सब आप के सामने स्पष्ट होना चाहिए. फिर अपनी आय को देखें और खर्च करने के अपने तरीके की भी समीक्षा करें.

हम में से काफी लोग ऐसे हैं जो कभी सोचते भी नहीं कि खर्च करने के ढंग में बदलाव ला कर वे अपने पैसे का अधिक मूल्य हासिल कर सकते हैं और अपनी बचत में बढ़ोतरी कर सकते हैं. हर शौपिंग में गैरजरूरी चीजें खरीदने पर भी हम थोड़ीथोड़ी कर बड़ी रकम खर्च कर डालते हैं. ब्रैंड लौयल्टी भी कई बार हमारा नुकसान करा डालती है.

एक ही ब्रैंड से चिपके रह कर उसी सामान के कम कीमत में उपलब्ध उसी या बेहतर क्वालिटी वाले विकल्पों पर हमारा ध्यान नहीं जाता. कुछ कंपनियां ऐसी हैं जो अपने ब्रैंड के लिए अपने ग्राहकों से अच्छी रकम वसूल कर डालती हैं जबकि ग्राहक का काम कम खर्च में भी चल सकता था. आप कंजूसी बिलकुल न करें लेकिन अगर कम, वाजिब खर्च करते हुए अपना काम चला लेते हैं तो निश्चित रूप से आप भविष्य के लिए ज्यादा बचा पाएंगे.

बचत अनुशासन व अनिवार्य बचत की दृष्टि से रेकरिंग बचत खाता का कोई जोड़ नहीं. हर महीने की किस्त तय कर इस खाते में जमा करते जाइए और साल दो साल से ले कर 10 साल के बाद ब्याज सहित रकम वापस ले लीजिए. यहां आप को फिक्स्ड डिपौजिट की दर से ब्याज मिलता है और इस ब्याज पर टीडीएस (स्रोत पर ब्याज की कटौती) लागू नहीं होती. कुछ बैंक यह भी विकल्प देते हैं कि हर माह समान किस्त न जमा कर सुविधानुसार राशि जमा की जाए. बैंक को आप हर माह खाते से किस्तें काटने का भी अधिकार दे सकते हैं यानी आप के लिए याद रखना भी जरूरी नहीं.

बचत खाते में जरूरत भर की ही रकम रखें. शेष राशि को फिक्स्ड या रेकरिंग खाते में डाल कर आप ज्यादा ब्याज कमा सकते हैं. बीच में जरूरत पड़े तो ये खाते समय से पहले बंद भी किए जा सकते हैं या जमा राशि के समकक्ष ऋण लिया जा सकता है.

बचत व निवेश पर ध्यान देना आप व आप के परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करेगा और आप अपने पैसे का पूरा लाभ उठा पाएंगे. तो फिर क्यों न आज से ही इस की शुरुआत करें.

समझें बैंकिंग चार्ज के फंडे

बैंक जहां हमें लेनदेन की अनेक सुविधाएं देते हैं वहीं उन के द्वारा समयसमय पर लगाए जाने वाले बैंकिंग चार्ज हमारी मुश्किल भी बढ़ा देते हैं. बैंकों द्वारा लगाए जाने वाले बैंकिंग चार्जेज और उन से बचने के उपायों की जानकारी दे रही हैं प्रीथा के जी.

कभी न कभी तकरीबन, हर किसी को बैंकिंग से संबंधित समस्याओं का सामना करना ही पड़ता है. केरल के शहर चालकुड़ी की निवासी सविता को भी ऐसी ही एक समस्या से निबटना पड़ा. उस ने एटीएम से 500 रुपए निकाले और बाजार में जा कर सामान खरीदा. दुकानदार को रुपए देते समय उस ने देखा कि जो नोट उस ने एटीएम से निकाला था वह सेलो टेप से जुड़ा फटा नोट है. इस बारे में उस ने पास के बैंक में जा कर बैंक मैनेजर से बात की. उस ने विड्रौल स्लिप के साथ शिकायत दर्ज कराई. नतीजतन, बैंक ने उसे 500 रुपए का सही नोट दे दिया और टेप लगा नोट रख लिया.

बैंकिंग जानकारी : बैंकिंग सेवा व बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित जानकारी रखना हर नागरिक के लिए जरूरी है. स्टेट बैंक औफ इंडिया यानी एसबीआई अलप्पुझा शाखा के रिलेशनशिप मैनेजर राजीव बताते हैं कि सेविंग अकाउंट खोलते समय बैंक कस्टमर को मुफ्त पासबुक देता है लेकिन अगर पासबुक नष्ट हुई या खो गई तो कस्टमर नई पासबुक के लिए आवेदन दे सकते हैं.

इस के लिए कस्टमर को खास चार्ज देना पड़ता है. कई बैंक 100 से 200 रुपए तक चार्ज करते हैं. सेविंग व करैंट अकाउंट में मिनिमम बैलेंस रखना होता है. अधिकांश बैंक ऐसा निर्देश देते हैं. लेकिन कई बैंकों ने मिनिमम बैलेंस रखने की अनिवार्यता को खत्म कर दिया है. कुछ बैंकों द्वारा 500 रुपए से 20 हजार रुपए तक मिनिमम बैलेंस रखने का नियम भी बनाया गया है. 3 महीने के आधार पर 750 से 19 हजार रुपए तक का मिनिमम बैलेंस रखने का भी नियम है.

इनवैलिड पिन : सही पिन नंबर लगा कर एटीएम से अधिक से अधिक रकम निकालें. अगला आर्थिक लेनदेन दूसरे दिन करें. डोरमैट अकाउंट, इन औपरेटिव अकाउंट, अकाउंट लौक्ड है तो कस्टमर तुरंत बैंक की शाखा से संपर्क कर के अकाउंट स्टेटस को जांच लें.

ईसीएस : इलैक्ट्रौनिक क्लियरिंग सिस्टम यानी ईसीएस में अवरोध होना चैक लौटने की तरह की गलती है. इस के लिए 100 रुपए से 250 रुपए तक बैंक को फाइन भरना पड़ता है. अगर लगातार 3 बार ऐसा हुआ तो यह फाइन चार्ज बढ़ जाता है.

अकाउंट में रकम है लेकिन नैटवर्क की गलती से ईसीएस में अड़चन आ सकती है. ऐसे में ईसीएस को निश्चित दिन ही डैबिट करना है, इस बात को भी बताना पड़ेगा. क्योंकि इस का दायित्व बैंक नहीं उठाएगा. अगर अकाउंट में पर्याप्त रकम नहीं हो तो ईसीएस की निश्चित तारीख तक अकाउंट में पैसा जमा कर दें.

डिमांड ड्राफ्ट : डिमांड ड्राफ्ट यानी डीडी की समय सीमा 3 महीना होती है. डीडी लेने का भी एक विशिष्ट चार्ज वसूला जाता है. डीडी कैंसिलेशन, डीडी डुप्लीकेट, रिवैल्यूएशन आदि के लिए बैंक 25 से 150 रुपए तक चार्ज वसूल करते हैं.

इंटरनैट बैंकिंग : आज अधिकांश बैंक कस्टमर की सुविधा के लिए इस प्रकार की सेवाएं मुफ्त देते हैं. लेकिन एस बी, करैंट अकाउंट से इंटरनैट द्वारा चैकबुक की मांग करना, स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन आदि के लिए बैंक सर्विस चार्ज वसूल करते हैं.

डिपौजिट चार्ज : कोर बैंकिंग सिस्टम के आने से चार्ज कम होगा, यह धारणा ठीक नहीं है. सर्विस चार्ज बढ़ रहा है. कोर बैंकिंग सुविधा द्वारा दूसरे बैंकों के अकाउंट में रकम को डिपौजिट करेंगे तो सर्विस चार्ज देना पड़ेगा. दूसरी शाखाओं से रकम की वापसी के लिए भी चार्ज देना पड़ेगा.

चैक बाउंस : यदि आप के अकाउंट में पर्याप्त रकम नहीं है तो चैक वापस हो जाएगा. महीने में एक दफा चैक वापस होगा तो कई बैंक 100 से 350 रुपया वसूल करेंगे. एक से ज्यादा दफा होगा तो 750 रुपए तक चार्ज किया जाएगा. दूसरे शहर के चैक का 100 से 150 रुपए तक चार्ज होगा, चैक के ऊपर स्टौप पेमैंट के लिए कस्टमर को 50 रुपए से 300 रुपए तक चार्ज देना पड़ेगा.

एटीएम : एटीएम कार्ड के प्रचलन ने बैंकों का बो?ा काफी हद तक कम कर दिया है. इस का फायदा उपभोक्ता को भी मिला है. बैंक न जा कर भी कस्टमर को एटीएम के जरिए तुरंत पैसा प्राप्त होता है. एटीएम सुविधाजनक तो है पर ध्यान न दिया जाए तो कस्टमर को नुकस?ान भी हो सकता है.

सेविंग बैंक अकाउंट खोलते समय अधिकांश बैंक कस्टमर को एटीएम डैबिट कार्ड देते हैं. डैबिट कार्ड दे कर 1 साल के बाद कुछ बैंक वार्षिक शुल्क वसूल करते हैं. वह शुल्क 99 से 350 रुपए तक होता है. एसबीआई का चार्ज इस से भी ज्यादा है.

चार्ज देने के लिए कस्टमर को बैंक नहीं जाना पड़ता बल्कि उस के अकाउंट से बैंक चार्ज वसूल कर लेता है. कार्ड अगर नष्ट हुआ या खराब हुआ तो डुप्लीकेट कार्ड हासिल करने के लिए सर्विस चार्ज देना पड़ता है. कार्ड इश्यू करने वाले बैंक के अलावा दूसरे बैंक से लेनदेन मुफ्त होगा. रिजर्व बैंक औफ इंडिया यानी आरबीआई ने यह निर्देश दिया है तो भी कुछ बैंक सर्विस चार्ज वसूल करते हैं. ग्राहक महीने में 5 बार मुफ्त दूसरे बैंक से रकम वापसी या बैलेंस के बारे में पूछताछ कर सकते हैं. इस से ज्यादा पूछताछ करेंगे तो 10 से 25 रुपए अधिक चार्ज देना पड़ेगा. इसलिए अधिक से अधिक कार्ड इश्यू करने वाले बैंक का ही एटीएम इस्तेमाल करें.

एटीएम कार्ड खो जाने पर कार्डहोल्डर तुरंत बैंक के हैल्पलाइन नंबर पर संपर्क कर कार्ड ब्लौक कराए. यह कार्ड का दुरुपयोग रोकेगा. कार्ड की वैलिडिटी समाप्त होने के बाद कस्टमर बैंक से संपर्क कर नया कार्ड ले सकता है.

लोन चार्ज : घर के लोन से ले कर एजुकेशन लोन तक का चार्ज वसूला जाता है. इन के ब्याज, निर्णय के तरीके कस्टमर को कन्फ्यूज करते हैं. फ्लैट रेट, डिमिनिशिंग रेट आदि तरीकों से ब्याज का निर्णय किया जाता है.

ऋण पर ब्याज फ्लैट रेट में है तो रकम हर महीने बराबर किस्तों में अदा करनी पड़ेगी. लोन के खत्म होने तक ब्याज देना पड़ेगा. इसलिए हर महीने की किस्त की कुल वापसी रकम बढ़ेगी. फ्लैट रेट में ब्याज ज्यादा है. डिमिनिश्ंिग रेट में रकम वापस कर रहे हैं तो पूंजी में कमी आएगी. बाकी ऋण रकम पर ब्याज देना होगा.

कर्ज लेने में प्रोसैसिंग चार्ज, डाक्युमैंट चार्ज, लीगल चार्ज जैसे कई तरह के छिपे चार्ज भी वसूले जाते हैं. ऐसे चार्जों के बारे में अधिकतर ग्राहकों को पता नहीं होता है. कर्ज लेते वक्त ही इन के बारे में मालूम होगा. बैंक ऐसे चार्जों से ग्राहकों का खर्च बढ़ा देते हैं. इसलिए कर्ज लेने से पहले बैंकों के चार्जेज के बारे में पूरी जानकारी ले लेनी चाहिए ताकि ऐन वक्त पर पछताना न पड़े.

औनलाइन इंश्योरैंस के फायदे अनेक

भागदौड़ भरी जिंदगी और व्यस्त जीवनशैली के इस दौर में औनलाइन खरीदारी सुविधा के तौर पर मजबूत विकल्प बन कर उभरी है. इसी कड़ी में औनलाइन इंश्योरैंस की खरीदारी का चलन बढ़ा है. क्या है यह औनलाइन इंश्योरैंस खरीदारी और इस में कौनकौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए, जानिए इस लेख में.

हम हर दिन हाईटैक होते जा रहे हैं. घर और औफिस की व्यस्तता के बीच टैक्नोसेवी होना शौक भी है और हमारी मजबूरी भी. हम में से ज्यादातर लोगों के पास इतना वक्त नहीं होता कि हर काम भागदौड़ कर करें. ऐसे में इंटरनैट बैंकिंग और औनलाइन पेमैंट की सुविधा काफी कारगर साबित हो रही है. खासतौर पर अगर आप एक महिला हैं तो इंटरनैट के जरिए अपने बिल का भुगतान करना या फिर शौपिंग करना काफी सुविधाजनक साबित होता है.

औनलाइन शौपिंग का आलम यह है कि अब लोग इंश्योरैंस पौलिसी की शौपिंग भी औनलाइन कर रहे हैं. एक तरह से यह सही भी है क्योंकि औनलाइन इंश्योरैंस पौलिसी खरीदने के कई फायदे होते हैं.

पहले लोग अलगअलग कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी की तुलना करने के लिए इंटरनैट का इस्तेमाल करते थे लेकिन अब इंटरनैट के जरिए पौलिसी भी खरीद भी रहे हैं. पौलिसी औनलाइन खरीदने का ट्रैंड पिछले कुछ सालों में ही बढ़ा है. आजकल इंश्योरैंस कंपनियां कई तरह के प्रोडक्ट औनलाइन उपलब्ध करा रही हैं. ये प्रोडक्ट न सिर्फ सस्ते हैं बल्कि समझने में आसान हैं और इन्हें खरीदना भी काफी आसान है.

समय की बचत : जब आप औनलाइन इंश्योरैंस पौलिसी खरीदते हैं तो इस से काफी समय बचता है. सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर अरूप गुप्ता के मुताबिक औनलाइन पौलिसी खरीदते समय कई सारी औपचारिकताएं पूरी नहीं करनी पड़ती हैं जिस से आप कम समय में इंश्योरैंस पौलिसी खरीद सकते हैं. अगर पौलिसी खरीदने की इस प्रक्रिया में कोई दिक्कत आती है तो वैबसाइट पर दिए गए फोन नंबर पर संपर्क कर के आप अपनी समस्या का समाधान कर सकते हैं.

सरल और सहज प्रोडक्ट : इंश्योरैंस कंपनियां औनलाइन इंश्योरैंस के जो प्रोडक्ट उपलब्ध करा रही हैं वे काफी सरल और समझने में आसान हैं. अरूप गुप्ता के मुताबिक, इंटरनैट पर इन प्रोडक्ट के बारे में आसान तरीके से विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई जाती है. ग्राहकों को इन प्रोडक्ट के बारे में समझने में  कोई दुविधा न हो, इस के लिए ओडियोवीडियो और सवालजवाब के भी विकल्प मौजूद रहते हैं. कहने का मतलब यह है कि एजेंट द्वारा दिए जाने वाले प्रोडक्ट की तुलना में औनलाइन उपलब्ध कराए जा रहे इंश्योरैंस प्रोडक्ट लेना ज्यादा आसान होता है.

खरीदने में आसानी : औनलाइन इंश्योरैंस प्रोडक्ट खरीदने का सब से बड़ा फायदा यह है कि आप को इन्हें खरीदने में ज्यादा कागजी कार्यवाही नहीं करनी पड़ती. भौतिक रूप से पौलिसी खरीदने की तुलना में इस में ज्यादा औपचारिकताएं पूरी करने की जरूरत नहीं पड़ती है.

पेमैंट के विकल्प : औनलाइन पौलिसी खरीदते वक्त आप पेमैंट के लिए कई विकल्पों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इन में नैट बैंकिंग, क्रैडिट कार्ड और डैबिट कार्ड जैसे विकल्प शामिल हैं. यहां तक कि पौलिसी रिन्यु, प्रीमियम का भुगतान आदि करने के लिए भी पेमैंट के इन विकल्पों का इस्तेमाल किया जा सकता है.

ध्यान रखने योग्य बातें

ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें इंश्योरैंस पौलिसी औनलाइन खरीदने पर भरोसा नहीं है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है. दरअसल, जब आप पौलिसी औनलाइन खरीद रहे हैं तो कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी हो जाता है :

  1. इंश्योरैंस पौलिस आप को कंपनी द्वारा अधिकृत वैबसाइट से ही खरीदनी चाहिए.
  2. पौलिसी खरीदने से पहले उस के नियम व शर्तों को ध्यान से पढ़ें. हो सकता है कि जो पौलिसी आप खरीदने जा रहे हैं उस में आप को पर्याप्त कवर न मिल रहा हो या फिर जो पौलिसी आप ने खरीदने का फैसला लिया है उस का प्रीमियम काफी ज्यादा हो. इन दोनों ही स्थितियों में पौलिसी खरीदने से आप की जरूरत पूरी नहीं होगी.
  3. अगर आप को औनलाइन पौलिसी खरीदते वक्त इस के लिए औपचारिकताएं पूरी करने में दिक्कत आ रही हो तो गलत जानकारी भरने के बजाय इस बारे में पूछ लेना बेहतर है. सभी इंश्योरैंस कंपनियों की वैबसाइट पर उन के कौल सैंटर का नंबर मौजूद होता है. आप उस नंबर पर कौल कर के अपनी शंकाओं का समाधान कर सकते हैं. यहां तक कि जब तक आप पौलिसी लेने की प्रक्रिया को पूरा नहीं करते, कस्टमर केयर वाले आप की मदद करते रहते हैं.
  4. औनलाइन इंश्योरैंस खरीदते वक्त केवल औपचारिकताएं पूरी करना ही जरूरी नहीं है बल्कि इस के लिए सुरक्षित तरीके से भुगतान किया जाना भी जरूरी है. जिस वैबसाइट से आप औनलाइन प्रोडक्ट खरीदें उस में यह जरूर देखें कि वित्तीय लेनदेन के लिए जरूरी औनलाइन सिक्योरिटी उपलब्ध कराई जा रही है या नहीं.
  5. लाइफ इंश्योरैंस में दिए जा रहे स्पैशल औफर से बचने में ही भलाई है. अगर आप के पास ईमेल से या फिर एसएमएस के जरिए इंश्योरैंस का कोई स्पैशल औफर मिल रहा हो तो इस बारे में कंपनी को कौल कर के विस्तृत जानकारी लें. गलती से भी ऐसे औफर्स के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए वरना आप किसी बड़े घोटाले का शिकार हो सकते हैं.
  6. आप केवल औनलाइन इंश्योरैंस पौलिसी की खरीदारी ही नहीं बल्कि चाहें तो इस के प्रीमियम का भुगतान भी औनलाइन कर सकते हैं. इस के लिए आप को डैबिट कार्ड, क्रैडिट कार्ड और इंटरनैट बैंकिंग से भुगतान करने का विकल्प मिलेगा.
  7. इंश्योरैंस उपलबध कराने वाले औनलाइन पोर्टल सुविधाएं देने के साथसाथ किसी उत्पाद की खरीदारी से पहले इस की जांचपरख का मौका भी देते हैं लेकिन ऐसे फैसलों में खास ध्यान रखें कि जो जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है वह कितनी भरोसेमंद है और पोर्टल की साख कैसी है.         

जब लेना हो होम लोन

सपनों का आशियाना बनाना हर किसी की चाह होती है. इस चाह को हकीकत में बदलने के लिए अगर आप लोन ले रहे हैं तो इस की बारीकियों को जरूर जान लें. पढि़ए कृष्णा सरीन का लेख.

अभी कुछ साल पहले तक ऋण ले कर मकान बनाना या खरीदना जितना कठिन था अब वह उतना ही आसान हो गया है. मकान के अलावा अब गाड़ी, फ्रिज, कंप्यूटर, टैलीविजन जैसे घरेलू उपकरणों को खरीदने, विदेशयात्रा, उच्चशिक्षा और विवाह आदि के लिए भी बड़ी आसानी से व आकर्षक शर्तों पर बैंक और दूसरी वित्तीय संस्थाएं होम लोन देने लगी हैं.

आम जनता भी इस सुविधा का पूरापूरा लाभ ले रही है. जिन सुखसुविधाओं को जुटा पाने की लोगों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी आज वे सभी प्रत्यक्ष रूप में उन के पास मौजूद हैं.

मकान बनाने या खरीदने के लिए जब होम लोन लिया जाता है, आमतौर पर वह लंबी अवधि का होता है. अवधि की समाप्ति पर कभीकभी होम लोन लेने वालों को कुछ ऐसी परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है जिन के बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा.

होम लोन लेते समय और लोन लेने के बाद यदि व्यक्ति कुछ बातों का विशेष ध्यान रखे तो वह भविष्य की परेशानियों से बच सकता है :

  1. ऋण हमेशा मान्यताप्राप्त वित्तीय संस्थाओं से ही लेना चाहिए. ऐसे सभी संस्थानों के कामकाज पर सरकार का आंशिक या पूर्ण नियंत्रण रहता है, जिस से न तो वे मनमानी वसूली कर सकते हैं और न ही होम लोन वसूली के लिए गलत और कठोर साधनों का इस्तेमाल करते हैं. ये संस्थाएं जो भी कार्य करती हैं, कानून के दायरे में रह कर ही करती हैं.
  2. कुछ गैर मान्यताप्राप्त वित्तीय संस्थान भी मकान, गाड़ी आदि खरीदने संबंधी पर्सनल लोन देते हैं. पर सरकार का इन पर कोई नियंत्रण नहीं होने के कारण एक तो इन संस्थानों के कामकाज में पारदर्शिता नहीं रहती, दूसरे, होम लोन वसूली के लिए कभीकभी ऐसे संस्थान बड़े ही कठोर साधनों का इस्तेमाल करते हैं. जहां तक संभव हो, व्यक्ति को ऐसे संस्थानों से लोन लेने से बचना चाहिए. यदि कभी फंस ही जाएं तो धैर्य से काम लेते हुए जल्दी से लोन चुकाने का प्रयत्न करें.
  3. ऋण लेने से पहले उन नियमों व शर्तों का अच्छी तरह से अध्ययन करें जिन पर बैंक या वित्तीय संस्थान आप को लोन देने को तैयार हैं. जो बात समझ में नहीं आती है उसे बिना किसी संकोच के तब तक संस्थान से समझने का प्रयास करें जब तक आप की शंका का निवारण न हो जाए. पूरी तरह से संतुष्ट होने के बाद ही आगे की कार्यवाही करें.
  4. लोन की राशि, लोन की अवधि, ब्याजदर, मासिक किस्त की राशि, ब्याजदर स्थिर है या परिवर्तनीय आदि के बारे में पूरी जानकारी लें. आप की मासिक किस्त की राशि इतनी होनी चाहिए जिस का आप बिना किसी परेशानी के हर महीने भुगतान कर सकें.
  5. लोन संबंधी दस्तावेज या ऐग्रीमैंट जब तक पूरी तरह भरे हुए न हों उन पर दस्तखत न करें. लोन की राशि, लोन की अवधि, ब्याजदर और मासिक किस्त की राशि पर विशेष ध्यान दें. दस्तखत करते समय उस दिन की तारीख डालना न भूलें.
  6. मासिक किस्तों के चैक पूरी तरह भर कर दें. उन को ‘अकाउंट पेयी’ लिख कर क्रौस करें और संबंधित बैंक या वित्तीय संस्थान से चैक प्राप्त करने की रसीद अवश्य लें.
  7. इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि आप की किस्त का चैक ‘डिसऔनर या बाउंस’ न हो. जिस तारीख को आप का चैक भुगतान के लिए आप के बैंक में आने वाला हो उस के कुछ दिन पहले और कुछ दिन बाद तक आप के बैंक खाते में उतनी रकम अवश्य जमा होनी चाहिए जितने का चैक आप ने दे रखा है. भुगतान हुए बिना चैक के लौटने पर आप को चैक बाउंस होने का जुर्माना तो देना ही होगा साथ ही, आप की प्रतिष्ठा पर भी सवालिया निशान लग सकता है.
  8. लोन लेने के लिए कभीकभी बैंक या वित्तीय संस्थान के पास व्यक्ति को अपनी चलअचल संपत्ति गिरवी रखनी पड़ती है और ऐसी संपत्ति के मूल दस्तावेज (जैसे मकान की रजिस्ट्री) बैंक या वित्तीय संस्थान को देने होते हैं. मूल दस्तावेज देते समय संबंधित संस्थान से उन की प्राप्ति की रसीद अवश्य लें. ऐसे दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियां भी अपने पास अवश्य रखें.
  9. अपने जिस बैंक के चैकों द्वारा आप लोन की किस्तों का भुगतान करते हैं उस की वे सभी पासबुकें संभाल कर रखें जिन में होम लोन की किस्तों का भुगतान दर्शाया गया है. इन पासबुकों को तब तक संभाल कर रखना बहुत जरूरी है जब तक सारी किस्तों का भुगतान न हो जाए और गिरवी रखी गई संपत्ति के मूल दस्तावेज आप को वापस न मिल जाएं. बैंक या वित्तीय संस्था से कोई देनदारी नहीं है, इस बाबत लिखित में अवश्य लें.
  10. समयसमय पर भुगतान की गई और शेष बची अपनी किस्तों के बारे में अपने बैंक या वित्तीय संस्थान को लिखते रहें और उन से भी लिखित में लेते रहें.
  11. यदि आप ने लोन ‘घटतीबढ़ती’ ब्याज दर के आधार पर लिया है तब संबंधित बैंक या वित्तीय संस्थान की ब्याजदर में परिवर्तन होने पर उस से तुरंत संपर्क करें. नई ब्याजदर लागू होने से आप की कितनी किस्तें कम हुई हैं या बढ़ी हैं, यह लिखित में प्राप्त करें और उसी के अनुसार अपनी शेष बची किस्तों की गणना करें.
  12. किसी किस्त के चैक का भुगतान न होने के बारे में यदि आप के पास फोन या पत्र आता है तब उस पर तुरंत ध्यान दें. भुगतान से संबंधित दस्तावेजों (जैसे बैंक पासबुक आदि) के साथ लोन देने वाले बैंक या वित्तीय संस्थान से संपर्क करने पर वे भुगतान अपने खातों में चढ़ा लेंगे और भविष्य की परेशानियों से आप बच जाएंगे.

लोन का हिसाबकिताब रखना, जितना जरूरी लोन देने वाली एजेंसी के लिए है उतना ही जरूरी है लोन लेने वाले के लिए भी है. समयसमय पर दोनों का मिलान भी आवश्यक है ताकि यदि कोई अंतर हो तो उसे दूर किया जा सके.

ऐसे तो महंगाई नहीं थमेगी

हाल ही में योजना आयोग के पूर्व सदस्य किरीत पारेख की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने सरकार को ईंधन के दाम बढ़ाने की सलाह दी है और कहा है कि ईंधन पर दी जा रही सब्सिडी पर कटौती की जानी चाहिए. समिति ने तो यहां तक कहा है कि तत्काल डीजल और केरोसिन की प्रति लिटर कीमत में 5 रुपए तक की बढ़ोतरी के साथ ही रसोईगैस की कीमत प्रति सिलेंडर 250 रुपए तक बढ़ा दी जानी चाहिए. यही नहीं, समिति ने रसोईगैस के सब्सिडी वाले सिलेंडर की संख्या साल में 9 से घटा कर 6 किए जाने की वकालत की है. उस ने यह भी कहा है कि समिति की सिफारिश को लागू करने के बाद डीजल पर प्रति लिटर सब्सिडी 6 रुपए निर्धारित कर देनी चाहिए.

तेल कंपनियां वर्तमान में डीजल पर 10.52 रुपए तथा केरोसिन पर 38.32 रुपए प्रति लिटर सब्सिडी दे रही हैं जबकि रसोईगैस के प्रति सिलेंडर पर 532.86 रुपए की सब्सिडी दी जा रही है. इसी बीच, रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कह दिया है कि अर्थव्यवस्था की जो तसवीर है उस में सुधार लाने तथा रुपए को मजबूत बनाने के लिए कुछ तो कठोर कदम उठाने ही पड़ेंगे. इस का सीधा मतलब है कि आसमान छू रही महंगाई पर लगाम लगने की उम्मीद निकट भविष्य में नहीं है और ईंधन जैसी आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ेंगे तो महंगाई को किसी भी हाल में नियंत्रित करना कठिन हो जाएगा.

यह ठीक है कि सब्सिडी के लिए अर्थव्यवस्था को गिरवी नहीं रखा जाना चाहिए लेकिन दूसरे क्षेत्रों में जो अनावश्यक खर्च हो रहे हैं और सरकारी योजनाओं को जिस अकर्मण्यता व लापरवाही से चलाया जा रहा है उन पर नजर रखी जानी चाहिए. 

ऋण ले कर पढ़ाई करने वाले छात्र मुश्किल में

सरकार शिक्षा ऋण को ले कर कड़ा फैसला करने जा रही है. इस फैसले से कई छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो सकती है. अब तक सरकार की योजना युवाओं का कैरियर बनाने के लिए उच्चशिक्षा हासिल करने में ऋण दे कर सहयोग करने की थी लेकिन इधर ऋण की वसूली में दिक्कत की आशंका जताते हुए सरकार ने पढ़ाई के लिए ऋण देने की प्रक्रिया को कड़ा करने की योजना बनाई है. इस के लिए वह पूरी तहकीकात करेगी कि जिस छात्र को ऋण दिया जा रहा है वह लौटाने की स्थिति में होगा अथवा नहीं.

बैंक हालांकि पहले भी अंधेरे में नहीं बल्कि पूरी पड़ताल के बाद ही ऋण देते थे लेकिन अब बैंकों को कहा गया है कि वे पढ़ाई के लिए 20 लाख से अधिक ऋण नहीं देंगे और इस स्तर के ऋण देने पर भी पूरी छानबीन कर के ही विचार करेंगे. इस निर्णय से कई छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है. तर्क दिया जा रहा है कि मंदी की वजह से नौकरियां घट रही हैं और वेतन पैकेज भी कम किए जा रहे हैं जिस से ऋण देने वाला बैंक फंस सकता है.

इस तरह का फैसला ले कर सरकार डराने का काम कर रही है और युवाओं के उत्साह को भंग कर रही है. सरकार का प्रयास युवा पीढ़ी को प्रोत्साहित करने का होना चाहिए लेकिन करोड़ों हजार रुपए के घोटाले करने वाली सरकार पैसा डूबने की आशंका में लाखों युवकों के सपनों पर पानी फेर रही है. जनता की गाढ़ी कमाई पर ऐश करने वाले मंत्रियों और सरकार के दामाद बने बैठे बाबुओं को अरबों रुपए के घोटालों के बीच आम आदमी के पर कतरने का साहस नहीं होना चाहिए था लेकिन इन स्वार्थी तत्त्वों को अपने सिवा किसी की परवा नहीं होती. नैतिकता की कुरसी पर बैठ कर अनैतिक निर्णय लेने में उन्हें संकोच नहीं होता है.

यह ठीक है कि सरकार का पैसा डकारने का हक किसी को नहीं है और बैंकों से लिया गया ऋण वापस होना चाहिए लेकिन आप यह कैसे तय कर सकते हैं कि उच्चशिक्षा हासिल कर अपना बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष कर रहा युवा जीवन में सफल नहीं होगा, इसलिए उस की मदद नहीं की जानी चाहिए.

अब पेड़ पर सोना

कीमती धातु सोने को ले कर पिछले दिनों देश में खूब बवाल मचा रहा. सरकार के साथसाथ पूरी आबादी सोनासोना ही गाती रही. एक साधु का सपना सरकार के लिए भी सपना बन गया. एक वीरान पड़े राजमहल में कथित रूप से गड़े सोने के लिए सरकार की देखरेख में खुदाई शुरू हुई.

इसी बीच एक शोध सामने आया और फिर पूरी दुनिया ही सोनासोना गाने लगी. इस शोध ने हमारे प्रधानमंत्री के ‘पैसा पेड़ पर नहीं उगता’ वाले चर्चित बयान को ताजा कर दिया. यह शोध आस्टे्रलिया में हुआ है. शोध प्रतिष्ठित जर्नल नैचुरल कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुआ जिस में राष्ट्रमंडल औद्योगिक और वैज्ञानिक अनुसंधान संगठन यानी सीएसआईआरओ के वैज्ञानिकों ने पाया कि पश्चिमी क्षेत्र में उगने वाले यूकेलिप्टस पेड़ों की पत्तियों पर स्वर्णकण मौजूद हैं. इस शोध ने जमीन के नीचे सोने की खान की अवधारणा को ही जैसे बदल दिया.

वैज्ञानिकों ने यह शोध वर्ष 1800 के आसपास सोने के भंडार के रूप में चर्चित रहे पश्चिमी आस्ट्रेलिया के कलगूर्ली क्षेत्र में किया. शोधकर्ता भूरासायनिक वैज्ञानिक मेल लिंटर्न ने लिखा कि यह पेड़ जमीन के नीचे 30 मीटर यानी करीब 100 फुट की दूरी से सोने के कणों को खींचता है और उसे अपनी पत्तियों में स्थान देता है. उन का कहना है कि यूकेलिप्टस पानी के पंप की तरह काम करता है और अपनी जड़ों से सोने के कणों को पत्तियों तक पहुंचाता है. पत्तियों में हालांकि सोने के कणों की मात्रा बहुत कम पाई गई है लेकिन इस शोध ने ‘पेड़ पर भी सोना मिलता है’ की नई अवधारणा को जन्म दिया है.

शेयर बाजार ने जम कर मनाई दीवाली

दीवाली पर शेयर बाजार में खूब दीवाली मनी. बाजार में धनलक्ष्मी ने जम कर वर्षा की और बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई का सूचकांक सभी रिकौर्ड तोड़ कर नई ऊंचाई पर जा पहुंचा. फार्मा, आटो, बैंकिंग, आईटी सभी क्षेत्र के शेयरों में जम कर लिवाली हुई. दीवाली से पहले ही बाजार ने दीवाली मनाई और अक्तूबर के आखिरी बुधवार को बाजार रिकौर्ड ऊंचाई 21033.97 अंक पर बंद हुआ. इस से पहले बाजार 5 नवंबर, 2010 को इस स्तर के नजदीक 21004.96 अंक पर पहुंचा था.

दीवाली के मुहूर्त कारोबार में भी बाजार में खुशनुमा माहौल रहा. अगले दिन तो बाजार इतिहास में पहली बार 21,300 अंक के करीब पहुंचा. बाजार की इस रिकौर्ड ऊंचाई की वजह विदेशी संस्थागत निवेशकों की लिवाली के साथ ही विदेशी बाजारों में तेजी और अच्छे मानसून के कारण बंपर पैदावार को बताया गया. इस की एक और वजह प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की चीन यात्रा को भी माना गया. चीन ने जिस गरिमा के साथ

डा. मनमोहन सिंह का स्वागत किया और दोनों देशों के बीच आर्थिक स्तर पर जो समझौते हुए उस का शेयर बाजार पर अनुकूल असर दिखा. वहीं दीवाली के बाद बाजार को झटका लगा और 5 नवंबर को बाजार 5 दिन की तेजी के बाद धड़ाम से गिर गया और 21 हजार के स्तर से नीचे उतर आया. इस के बाद सप्ताहांत तक बाजार में लगातार 4 दिन तक गिरावट रही और सूचकांक 575 अंक तक लुढ़क गया. इस की बड़ी वजह रुपए के 6 सप्ताह के निचले स्तर पर पहुंचने के साथ ही वैश्विक रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स यानी एसऐंडपी की यह चेतावनी भी रही कि आम चुनाव के बाद सरकार यदि आर्थिक बढ़ोत्तरी की विश्वसनीय योजना बनाने में असफल रहती है तो भारत की रेटिंग घट सकती है.

जानकार कहते हैं कि नई सरकार के गठन में अभी देरी है और बाजार में इस दौरान कई तरह के उतारचढ़ाव देखने को मिलेंगे लेकिन सूचकांक में गिरावट का यह रुख रेटिंग एजेंसी के बयान का तात्कालिक प्रभाव है जो ज्यादा दिन तक उसे प्रभावित नहीं कर सकेगा.

 

गरीबी के राजदार सोना, मंदिर और कालाधन

देश की बदहाल अर्थव्यवस्था पर घडि़याली आंसू बहाने वाली सरकार और आमजन जानबूझ् कर यह समझ्ने को तैयार नहीं हैं कि हमारे मुल्क की गरीबी  मंदिरों के तहखानों में कैद है.  सोना और कालेधन, चाहे वे स्क्रैप में तबदील  क्यों न हो जाएं, को जमा करने या छिपाने की मानसिकता क्या रंग दिखा रही है, बता रहे हैं लोकमित्र.

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिलांतर्गत आने वाले डौंडियाखेड़ा गांव में सोने के जिस खजाने का सपना एक साधु शोभन सरकार द्वारा देखा गया था, वह सपना दम तोड़ चुका है. पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) को डौंडियाखेड़ा स्थित राजा राव रामबख्श सिंह के किले में खुदाई के दौरान कुछ भी हासिल नहीं हुआ. लेकिन सोने के प्रति हिंदुस्तान की सनातनी ख्वाहिश आज भी जहां की तहां खड़ी हुई है.

वास्तव में सोने के प्रति हिंदुस्तान की यह आसक्ति भी देश की दरिद्रता के लिए किसी हद तक जिम्मेदार है. यह तो पिछले महीनों में डौलर के विरुद्ध रुपए की ऐतिहासिक टूटन से पैदा हुआ डर था, जिस के चलते वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने सोना आयात पर कड़े प्रतिबंध लगाए और सोने की मांग तथा खपत में कुछ कमी आई नहीं तो 32 हजार रुपए प्रति 10 ग्राम की कीमत के बावजूद लोगों में धनतेरस पर सोना खरीदने की जो ललक देखी गई, वह डरावनी है.

धर्मभीरु सरकारें

वास्तव में इस साल की शुरुआत में पहली बार रिजर्व बैंक औफ इंडिया ने धार्मिक संवेदनाओं की परवा किए बिना एक सही बात कही थी कि मंदिरों में सोना चढ़ाना देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत घातक है. हालांकि देश के अर्थशास्त्री यह बात हमेशा से जानते रहे हैं और कई इस संबंध में खुल कर कहते भी रहे हैं.

भारत में भले ही संवैधानिक रूप से धर्मनिरपेक्षता का विधान हो लेकिन हकीकत में सभी सरकारें धर्मभीरु रही हैं या राजनीतिक वजहों से धार्मिक मसलों से डरती रही हैं. इसलिए न तो केंद्र सरकार ने और न ही किसी राज्य सरकार ने कभी मंदिरों में सोना चढ़ाए जाने पर पाबंदी लगाई है और न ही लोगों से ऐसा करने का आह्वान किया है.

मगर हां, जिस तरह से वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने सोने के आयात पर टैक्स लगाने की बात कही और फिर आयात शुल्क 400 फीसदी तक बढ़ाया, उस से पता चलता है कि हिंदुस्तानियों का सोने के प्रति मोह अर्थव्यवस्था के लिए कितना घातक है. शायद उसी से उत्साहित हो कर रिजर्व बैंक औफ इंडिया ने वह बात कही जो सालों पहले न सिर्फ कहनी चाहिए थी बल्कि मंदिरों में सोने के चढ़ाए जाने पर पाबंदी भी लगाई जानी चाहिए थी.

दरअसल, सिर्फ मंदिरों में ही नहीं, हिंदुस्तान के सभी धार्मिक स्थलों में सोना चढ़ाने का रिवाज है. देश में सोने के लिए जो मारामारी बनी रहती है और सोने की बिक्री में किसी भी तरह की तेजी का कोई असर नहीं पड़ता, उस के पीछे एक बड़ा कारण यह भी है. यह अकारण नहीं है कि पिछले साल यानी 2012 में जहां पूरी दुनिया में सोने की मांग महज 1.2 फीसदी रही, वहीं भारत में 30 हजार रुपए प्रति 10 ग्राम की ऐतिहासिक कीमत पर पहुंच जाने के बावजूद सोने की मांग 11 फीसदी रही.

भारत में अप्रैल से अक्तूबर 2012 में ही सोना 398 टन आयात किया गया, जबकि पूरी दुनिया में कुल 500 टन से कम सोने का विभिन्न देशों द्वारा आयात किया गया. इस साल सोना 32 हजार रुपए प्रति 10 ग्राम के ऊपर भी काफी दिनों तक रहा फिर भी मांग बनी रही. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारी सोने को ले कर ललक किस हद तक है.

स्क्रैप बनता सोना

मंदिरों में सोना चढ़ाए जाने का खमियाजा देश की अर्थव्यवस्था को भुगतना पड़ रहा है. हर साल अमूमन 300 टन सोना स्क्रैप के रूप में देश में जमा हो रहा है और इस में बड़ी भूमिका देश के बड़े धार्मिक स्थलों की है जिन में मुख्यरूप से मंदिर हैं. वास्तव में स्क्रैप के रूप में हर साल जमा हो रहा सोना देश की अर्थव्यवस्था पर न सिर्फ एक बड़ा बोझ् है बल्कि यह सक्रिय पूंजी को निष्क्रिय पूंजी में बदलने वाली सब से बड़ी समस्या है.

दरअसल, सिर्फ मंदिरों में ही नहीं, घरों में भी बहुत बड़े पैमाने पर सोना टूटेफूटे गहनों या पुराने गहनों के रूप में मौजूद है. लोग उसे 2 वजहों से बेचते नहीं हैं और न ही अपनी खरीदफरोख्त का जरिया बनाते हैं कि उस से अर्थव्यवस्था में रफ्तार हासिल की जा सके. एक बड़ी वजह तो भविष्य के प्रति असुरक्षा की है. लोगों को लगता है कि जब संकट आएगा तो यह सोना हमारे काम आएगा. गलत भी नहीं है. लेकिन बड़ी और दूसरी प्रमुख बात यह है कि जब आप गहने बेचने जाते हैं तो दुकानदार आप को आधे से भी कम कीमत देता है और सरकार की कोई ऐसी एजेंसी नहीं है जो घरों में पड़े सोने को वाजिब कीमत पर खरीद ले.

जमाखोरी और कालाधन

देशभर में 10 लाख से ज्यादा धार्मिक स्थल हैं. वैसे धार्मिक स्थलों की संख्या इस से भी ज्यादा हो सकती है. इस की वजह यह है कि देश में 6,53,785 गांव हैं और शायद ही कोई ऐसा गांव हो जहां औसतन 1.5 धार्मिक स्थल न हों. कहने का मतलब यह है कि 2 गांवों में कम से कम 3 धार्मिक स्थल तो होते ही हैं. इन में शहरों में मौजूद मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारों या गिरजाघरों की संख्या शामिल नहीं है.

यह तय बात है कि देश के सभी धार्मिक स्थलों की संख्या भी सैकड़ों में है जहां औसतन 1 लाख रुपए हर दिन की आय है. आखिर हम ब्लैक मनी या काला धन कहते किसे हैं? वह धन जिस पर टैक्स न दिया गया हो और वह धन जो सरकारी निगरानी से बाहर हो. धार्मिक स्थलों की कमाई तकरीबन इन दोनों ही शर्तों को पूरा करती है. भले ही कुछ गिनेचुने धार्मिक स्थलों की कमाई का ब्योरा रखा जाता हो, लेकिन ज्यादातर धार्मिक स्थलों की कमाई का कोई ब्योरा नहीं रखा जाता और अगर रखा भी जाता होगा तो वह प्रशासन को नहीं बताया जाता, क्योंकि न तो ऐसी कोई कानूनी बाध्यता है और न ही ऐसा चलन. इसलिए धार्मिक स्थलों में होने वाली अंधाधुंध कमाई का अधिकतम हिस्सा ब्लैक मनी में ही तबदील होता है.

देश में हर साल आम हिंदुस्तानियों द्वारा औसतन 25 हजार किलो सोना खरीदा जाता है. इस सोने का लगभग 10 फीसदी किसी न किसी रूप में चढ़ावे में चला जाता है. अगर देश के 10 बड़ी कमाई वाले मंदिरों की ही संपत्ति को जोड़ें तो यह तकरीबन 60 खरब रुपए के आसपास पहुंचती है. अकेले दक्षिण भारत के तिरुअनंतपुरम स्थित स्वामीपद्मनाभ मंदिर की संपत्ति ही 10 खरब रुपए की आंकी गई है और सत्य साईं के मरने के बाद पुट्टापरथी स्थित उन के गुप्त खजाने से कई मन सोना निकला है. जिस से अंदाज लगाया जा सकता है कि कई अरब की संपत्ति तो यहां भी है.

मंदिरों में निष्क्रिय मुद्रा

भारत का कुल बजट 1 लाख करोड़ रुपए का है. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हिंदुस्तान में धार्मिक स्थलों में कितनी बड़ी तादाद में संपत्ति मौजूद है जो एक किस्म से ब्लैक मनी है. भारत शायद दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है जहां 10 से 15 फीसदी करैंसी मंदिरों में हमेशा निष्क्रिय अवस्था में पड़ी रहती है.

देश में हर समय 12 लाख से ज्यादा नोट (करैंसी) चलन में रहते हैं. इन में अगर 1 लाख नोट विभिन्न मंदिरों में चढ़ावे के रूप में चढ़ जाते हैं तो अमूमन ये नोट महीनों या सालों निष्क्रिय अवस्था में पड़े रहते हैं.

बड़ेबड़े धार्मिक स्थलों, खासकर मंदिरों में तो फिर भी यह व्यवस्था है कि चढ़ावे में आने वाले नोटों को हर 2-3 दिन के अंदर बैंक में जमा करा दिया जाता है. लेकिन लाखों की तादाद में जो छोटे और मझोले मंदिर हैं, वहां ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे में बड़ी तादाद में चढ़ावे के रूप में मंदिरों में आए नोटों को डंप कर दिया जाता है. देश की अर्थव्यवस्था में इस का नकारात्मक असर पड़ता है क्योंकि अगर चलन में नोटों की संख्या कम हो जाती है तो महंगाई बढ़ने की आशंकाएं पैदा हो जाती हैं.

उधर, इस संबंध में किसी के पास भी यह ठोस जानकारी या अध्ययन नहीं है कि वास्तव में कितनी ब्लैक मनी है जो स्विस बैंकों में जमा है? कोई इसे 27 खरब रुपए तो कोई 63 खरब रुपए बताता है. हां, रामदेव जैसे लोग जरूर इस के 400 खरब रुपए से ऊपर होने की बात कह रहे हैं. लेकिन देश के 10 बड़े मंदिरों की तो घोषित संपत्ति 30 खरब रुपए के ऊपर की बैठती है.

सवाल है धार्मिक स्थलों में बड़े पैमाने पर निष्क्रिय अवस्था में मौजूद इस अकूत संपत्ति का क्या किया जाए? क्या इस संपत्ति पर देश का, कानून का, सरकार का हक है या फिर इन धार्मिक स्थलों के मठाधीशों को ही इस की नियति तय करने का हक है? देश में अभी तक कोई ऐसा कानून नहीं है जो धार्मिक स्थलों में मौजूद संपत्ति के अधिग्रहण की वकालत करता हो लेकिन सरकार के पास यह अधिकार है कि वह किसी भी धार्मिक स्थल को अपने कब्जे में ले सकती है, उस के कामकाज को नियंत्रित कर सकती है, उस में निगरानी का पहरा बिठा सकती है लेकिन हमारी सरकारें भारत के धर्मनिरपेक्ष होने के बावजूद चुनावों और वोटों से इस कदर डरती हैं कि चाहे जिस भी पार्टी या घटक की सरकार सत्तासीन हो, कोई भी धार्मिक मामलों में टांग नहीं अड़ाना चाहता.

स्वामीपद्मनाभ मंदिर से मिले अकूत खजाने पर यों ही जब बहस शुरू हुई और एक पक्ष यह आया कि केरल सरकार इसे अपने कब्जे में ले कर केरल की बेहतरी के लिए इस्तेमाल करे तो एक बड़े तबके द्वारा इस का विरोध शुरू कर दिया गया. मुख्यमंत्री ओमन चांडी को यह सार्वजनिक बयान देना पड़ा कि मंदिर की संपत्ति की देखरेख मंदिर का बोर्ड ही करेगा. सरकार उसे अपने कब्जे में नहीं लेगी.

विकास में हो खर्च

सवाल है कि देश में खरबों रुपए की जो संपत्ति धार्मिक स्थलों में कुछ लोगों की बंधक बनी पड़ी है, क्या उस का देश के हित में सही उपयोग नहीं होना चाहिए? हम एक ऐसे कालेधन को ले कर व्यग्र हैं, आंदोलनरत हैं जिस के बारे में किसी को ठीकठीक अनुमान ही नहीं है कि वह कितना है? साथ ही, सरकार कालेधन पर श्वेतपत्र जारी करने के बाद भी यह बता पाने की स्थिति में नहीं है या बताना नहीं चाहती कि विदेश में कितना कालाधन है और किस का है? केंद्र सरकार ने बाकायदा सार्वजनिक घोषणा कर दी है कि वह कुछ अंतर्राष्ट्रीय नियमोंकानूनों में बंधे होने के चलते ऐसा नहीं कर सकती.

अगर हम मंदिरों में हर साल चढ़ने वाले सोने को विकास के कामों में खर्च करें तो रातोंरात देश का कायापलट हो सकता है. अगर सिर्फ बड़े धार्मिक स्थलों की ही एक सूची बनाएं तो 3 से 5 हजार मंदिर ही इतना सोना मुहैया करा सकते हैं जिस से सरकार देश का अधिसंरचनात्मक विकास कर सकती है.

इस से देश के विकास की मौजूदा रफ्तार छहगुना तेज हो सकती है. देश में अगर 2000 नई यूनिवर्सिटीज और 80 हजार नए विभिन्न क्षेत्रों के शिक्षण संस्थान खोल दिए जाएं तो देश में न सिर्फ साक्षरता दर तेजी से बढ़ेगी बल्कि हमें जरूरी प्रोफैशनल भी 10 साल के भीतर मिल जाएंगे. आज देश के सभी औद्योगिक और कारोबारी क्षेत्रों में 20 से 22 लाख प्रोफैशनलों की कमी है. एक तरफ जहां देश में 5 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हैं, वहीं डेढ़ से पौने 2 करोड़ कुशल कामगारों, प्रशिक्षित प्रोफैशनलों की भारी कमी है.

देश के विभिन्न धार्मिक स्थलों से सरकार अगर ईमानदारी से उन की यह संपत्ति बतौर निवेश ले तथा उन्हें इस का जरूरी लाभ दे तो सभी तरह की उच्च शिक्षण की बुनियादी व्यवस्था की जा सकती है. देश के तेजी से विकास के लिए 100 खरब रुपए के बुनियादी निवेश की जरूरत है और इस की बहुत आसानी से धार्मिक स्थल पूर्ति कर सकते हैं.

हिंदुस्तान दुनिया के गरीब देशों की सूची में शुमार है और हमारी अमीरी तमाम मंदिरों के तहखानों में कैद है. अगर देश के धार्मिक स्थलों में मौजूद सोना और चांदी को इकट्ठा किया जाए तो वाकई यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारत सोने की चिडि़या है. अगर सरकार इस सोने और चांदी को रिजर्व में रख ले और उस के बदले में इन स्थलों को उतनी ही कीमत का बौंड जारी कर दे तो हमारी अर्थव्यवस्था का मुद्रा आधार बहुत मजबूत हो सकता है.

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