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खेल खिलाड़ी

सीनियर की राह पर जूनियर
भारतीय हौकी टीम का प्रदर्शन पिछले कई वर्षों से लगातार बेहद खराब रहा है या यों कहें शर्मनाक रहा है. अब तो स्थिति यहां तक बन गई है कि जो टीम कभी ‘सोना’ बटोरने में ही यकीन रखती थी आज उसे सोना बटोरने की रेस में शामिल होने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है.
इस राष्ट्रीय खेल को ऐसी स्थिति तक पहुंचाने में हौकी के लिए जिम्मेदार संस्था की बड़ी भूमिका है. इस का जिक्र हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी किया है. सब से बड़ा सवाल है कि आखिर हम बारबार कहां चूक रहे हैं? क्यों जो सीनियर खिलाड़ी कर रहे हैं वही गलतियां जूनियर खिलाडि़यों से भी हो रही हैं.
आखिरी मिनटों में गोल खाने की आदतों की वजह से हम जीता हुआ मैच गंवा बैठते हैं. टीम पैनल्टी कौर्नर को गोल में तबदील न कर पाने से आज भी जूझ रही है. इस का फायदा विपक्षी टीम उठा ले जाती है.
जूनियर हौकी टीम से वर्ल्ड कप जीतने की बड़ी उम्मीदें थीं लेकिन क्वार्टर फाइनल में दक्षिण कोरिया से हार कर वे उम्मीदें भी चकनाचूर हो गईं. हार की वजह आखिरी मिनटों में गोल खाना और पैनल्टी कौर्नर को गोल में न बदल पाना ही रही. जब तक टीम प्रबंधन इन कमियों को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाता है तब तक टीम से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद करना बेमानी है.
अगर हमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय हौकी को फिर से जिंदा कर के ?उस में बादशाहत कायम करनी है तो दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया, हौलैंड जैसी टीमों द्वारा अपनाई जाने वाली रणनीति और तकनीक पर पैनी नजर रखनी होगी. साथ ही, उस पर अमल भी करना होगा.
 

घर पर शेर बाहर ढेर
अपने बुलंद हौसलों के साथ भारतीय क्रिकेट टीम जब दक्षिण अफ्रीका पहुंची तो लगा था कि इस बार भारतीय टीम साउथ अफ्रीका की जमीं पर जरूर कुछ कमाल कर दिखाएगी. विश्व विजेता टीम लगातार 2 एकदिवसीय मैचों में 100 रन से भी अधिक बड़े फासले से हार गई. अगर तीसरा मैच रद्द न हुआ होता तो शायद एक और शर्मनाक हार का टीम इंडिया को सामना करना पड़ता.
अभी तक भारतीय टीम का सामना दक्षिण अफ्रीका की जमीन पर 26 बार हुआ है जिस में 20 मैचों में भारतीय टीम को शिकस्त मिली है. इतिहास गवाह है कि भारतीय टीम अपनी ही धरती पर शेर है और विदेशी धरती पर पहुंचते ही ढेर हो जाती है जैसा कि दक्षिण अफ्रीका में हुआ. खराब प्रदर्शन के कारण कई खिलाड़ी रैंकिंग में भी पिछड़ गए हैं.
आखिर ऐसा क्यों होता है कि जबजब भारतीय टीम इंगलैंड, साउथ अफ्रीका, आस्ट्रेलिया जैसी टीमों के साथ उन के घरों में खेलने पहुंचती है तो वह चारोंखाने चित हो जाती है. चंद मैच पहले तक भारतीय धरती पर रनों का अंबार लगाने वाले बल्लेबाज 1-1 रन जोड़ने के लिए तरसने लगते हैं. उन के लिए उछाल लेती गेंदें अबूझ पहेली बन जाती हैं. ऐसे में विश्व विजेता टीम होने पर भी सवाल उठता है. आखिर बीसीसीआई ऐसी पिचें अपने देश में क्यों नहीं बनवाती जिस से कि ऐसा शर्मनाक प्रदर्शन न दोहराया जाए? यह समस्या केवल बल्लेबाजों के साथ ही नहीं है, गेंदबाज भी नाकारा साबित हो रहे हैं. जहां विपक्षी टीमों के गेंदबाज अपनी गेंदबाजी से भारतीय बल्लेबाजों को डरातेधमकाते हैं वहीं हमारे गेंदबाज विपक्षी बल्लेबाजों के लिए आसान टारगेट बन जाते हैं. विपक्षी टीम के नए बल्लेबाज भी शतक पर शतक जमाते जाते हैं. हर विदेशी दौरे पर शर्मनाक हार के बाद टीम प्रबंधन बड़ेबड़े दावे करता है लेकिन जमीन पर दिखता कुछ नहीं है. फिर से कोई अगला दौरा और फिर वही शर्मनाक परिणाम. अगर टीम प्रबंधन समय रहते उन कमियों को दूर नहीं कर पा रहा है तो विश्व विजेता कहलाने का हक भी नहीं रह जाता.

भारतीय महिलाओं का परचम
जालंधर के गुरु गोविंद सिंह स्टेडियम में खेले गए कबड्डी विश्वकप फाइनल में न्यूजीलैंड को 49-21 से हरा कर भारतीय टीम ने महिला वर्ग का खिताब अपने नाम कर लिया. भारत में इस पारंपरिक खेल को हमेशा से ही महत्त्व नहीं दिया गया क्योंकि इस में ग्लैमर का तड़का नहीं होता. बहुत कम ही लड़कियां इस खेल में आगे बढ़ पाती हैं. शहरी लड़कियों की भागीदारी भी कम देखने को मिलती है. गांवदेहातों व कसबों की लड़कियां इस खेल के प्रति रुचि जरूर दिखाती हैं पर जरूरत है उन्हें सही ट्रेनिंग और प्लेटफौर्म की. यह भी सच है कि यहां विदेशों के मुकाबले खिलाडि़यों को सुविधाएं नहीं हैं.
अगर कबड्डी खेल प्रबंधन क्रिकेट या अन्य खेलों की तरह प्रोत्साहन दे तो शायद यह खेल भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहरा सकता है क्योंकि इस खेल में भी कई संभावनाएं हैं. जैसेजैसे इस खेल को लोकप्रियता मिलेगी, प्रतियोगिता का स्तर भी बढ़ेगा.
शहर के गांव या छोटे से कसबों में खेले जाने वाले इस खेल को राष्ट्रीय खेल घोषित किए जाने, स्कूलों, शिक्षण संस्थानों में अनिवार्य किए जाने की जरूरत है. तभी जमीनी स्तर का यह खेल लोकप्रिय होगा और लड़कियां इस खेल में ज्यादा आगे आएंगी.

पाठकोंकी समस्याएं

मैं 20 वर्षीय युवक हूं. मां का 2 साल पहले देहांत हो गया है. मेरे पिता दूसरा विवाह करना चाहते हैं. मेरी समस्या यह है कि क्या मेरा अपनी नई मां के साथ भावनात्मक जुड़ाव हो पाएगा? क्या मैं उन्हें अपनी मां की जगह दे पाऊंगा? कहीं उन के आने से पिताजी मेरे प्रति अपनी जिम्मेदारियां तो नहीं भूल जाएंगे? सलाह दीजिए.
आप के मन में ऐसे विचार आना लाजिमी है. लेकिन आप शायद कुछ ज्यादा ही सोच रहे हैं. आप ने अपनी होने वाली नई मां के बारे में न जाने क्याक्या सोच लिया है. जहां तक भावनात्मक जुड़ाव की बात है जब नए रिश्ते बनते हैं तो उन में प्यार व अपनापन बढ़ाने के लिए दोनों तरफ से प्रयास की जरूरत होती है. अगर आप की नई मां आप के प्रति प्यार और लगाव का भाव रखेंगी तो आप का उन के साथ भावनात्मक जुड़ाव अपनेआप हो जाएगा और आप उन्हें अपनी मां की जगह अवश्य दे पाएंगे.
अपने पिता पर भी व्यर्थ शक न करें. आप यह सोचें कि आप के पिता आप की नई मां के साथ मिल कर आप के प्रति सभी जिम्मेदारियों को ज्यादा अच्छे ढंग से निभा पाएंगे.

मैं और मेरी पत्नी दोनों कामकाजी हैं. पत्नी देखने में खूबसूरत और आकर्षक है. पता नहीं क्यों मुझे अपनी पत्नी पर शक होता है कि उस का अपने किसी सहकर्मी से संबंध है और वह मुझे धोखा दे रही है. मैं इस बारे में उस से बात करने में भी डरता हूं कि यदि मेरा शक गलत निकला तो हमारा वैवाहिक जीवन कहीं बिखर न जाए. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूं?
आप अपनी पत्नी को ले कर कुछ ज्यादा ही पजेसिव हैं. अगर वह खूबसूरत और आकर्षक है तो उस का किसी के साथ संबंध होगा, यह मात्र आप का वहम है. क्या आप के औफिस में आकर्षक और खूबसूरत महिलाएं नहीं हैं? और क्या उन सब के किसी न किसी के साथ संबंध हैं?
जब तक आप के पास कोई ठोस सुबूत न हो पत्नी से इस बारे में हरगिज बात न करें वरना आप व्यर्थ ही अपने वैवाहिक जीवन में परेशानियां खड़ी कर लेंगे. बेकार के शक को आधार बना कर आपसी संबंध में कड़वाहट न लाएं और इस तरह बेमतलब की बातों को अपने मन से निकाल दें.

मैं 42 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. पति के साथ संबंध सामान्य हैं. लेकिन सैक्स करते समय वैजाइना ड्राई रहती है, सैक्स संबंधों को पूरी तरह एंजौय नहीं कर पाती. बातबात पर मूड बदलता रहता है. कभी गुस्सा, चिड़चिड़ाहट तो कभी रोने का मन करता है. पति बहुत सहयोग करते हैं, किसी बात की शिकायत नहीं करते. कहीं मेरे ये लक्षण प्रीमेनोपोज के तो नहीं हैं? वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए क्या करूं?
यह तो अच्छी बात है कि पति आप के बदले शारीरिक और मानसिक लक्षणों के साथ पूरी तरह सहयोग कर रहे हैं और जहां तक सैक्स संबंधों को एंजौय न
कर पाने की बात है, आप के लक्षण प्रीमेनोपोज के हैं. आप इस समस्या के समाधान के लिए किसी गाइनोकोलौजिस्ट से मिलें. हार्मोन रिप्लेसमैंट थेरैपी से आप की समस्या सुलझ सकती है.

मैं 35 वर्षीय तलाकशुदा महिला हूं. अपने पड़ोस में रहने वाले एक 30 वर्षीय युवक से प्यार करती हूं. वह अमीर है और अच्छे खानदान से है. मैं उस से विवाह करना चाहती हूं पर डरती हूं कि कहीं वह मेरे तलाकशुदा होने और अपने उच्च आर्थिक स्तर की वजह से मुझ से विवाह के लिए इनकार न कर दे. क्या मुझे इस बारे में उस से बात करनी चाहिए? उचित सलाह दें.
पहले आप ने यह नहीं बताया कि क्या वह पुरुष भी आप से प्यार करता है या यह सिर्फ आप की तरफ से एकतरफा प्यार की कहानी है और आप उस से विवाह के खयाली पुलाव पका रही हैं.
दूसरी सूरत में अगर वह सचमुच आप से प्यार करता है तो वह अपने आर्थिक स्तर और आप के तलाकशुदा होने की बात भी जानता होगा. वैवाहिक संबंध आपसी रजामंदी पर बनते हैं. आप इस बारे में उस से खुल कर बात करें, उस के परिवार वालों की राय जानें और उस के बाद ही कोई निर्णय लें.

मैं 40 वर्षीय विवाहित महिला हूं. मैं अपने 14 वर्षीय बेटे को ले कर बहुत परेशान हूं. मेरा बेटा हर बात के लिए मुझ से सलाह लेता है. वह अपने खानेपीने, पहनने, टैलीविजन देखने, दोस्तों के साथ बाहर जाने जैसी सभी बातों के लिए मुझ से पूछता है. जबकि इस उम्र के अन्य बच्चे ये सभी निर्णय खुद लेते हैं. क्या मेरे बेटे में आत्मविश्वास की कमी है जिस की वजह से वह हर छोटीछोटी बात के लिए मुझ पर निर्भर रहता है? मैं उस के भविष्य के लिए बहुत चिंतित हूं. मुझे क्या करना चाहिए?
लगता है आप ने अपने बेटे को प्रारंभ से ओवर प्रोटैक्शन दिया है और हमेशा टोकाटाकी की है कि ‘ये करो’, ‘ये मत करो’, ‘यहां मत जाओ’, ‘इधर आओ’ आदि. जब बच्चे को छोटीछोटी बात के लिए सलाह दी जाती है या रोका जाता है तो उस का आत्मविश्वास कम हो जाता है और वह कोई निर्णय खुद नहीं ले पाता.
अब आप अपने बच्चे में बदलाव लाने के लिए उसे अपने निर्णय खुद लेने की आजादी दें, ज्यादा टोकाटाकी न करें. जो वह करना चाह रही है उसे करने दें. हां, उस पर नजर जरूर रखें. उसे घर से बाहर ऐक्टिविटी क्लासेज में भेजें. वहां अन्य बच्चों के साथ मिलनेजुलने से उस का आत्मविश्वास बढ़ेगा और धीरेधीरे अपने निर्णय वह खुद लेने लगेगा.

पचमढ़ी जहां मन हो जाए मदमस्त

इतिहास और खूबसूरती का अद्भुत रंग समेटे मध्य प्रदेश के हिल स्टेशन पचमढ़ी को सतपुड़ा की रानी के नाम से भी जाना जाता है. प्रदेश के होशंगाबाद जिले में सतपुड़ा की पहाडि़यों के बीच पहाड़ों और जंगलों से घिरे हिल स्टेशन पचमढ़ी में पर्यटकों को कश्मीर जैसी खूबसूरती व नेपाल की शांति मिलती है. अगर आप भी कुदरत के सौंदर्य को नजदीक से निहारना चाहते हैं तो सुकून और प्रदूषणरहित वातावरण से भरपूर पचमढ़ी एक बेहतर प्लेस है. यहां की खूबसूरती और आबोहवा सिर चढ़ कर बोलती है. खुशबूदार हवा, फाउंटेन, मनमोहक पेड़पौधे, पहाड़ और दूरदूर तक फैली हरियाली आंखों के सामने नैसर्गिक सौंदर्य का संसार प्रस्तुत करते हैं. यहां का तापमान सर्दी में 4.5 डिगरी सैल्सियस और गरमी में अधिकतम 35 डिगरी सैल्सियस होता है.
यहां आप वर्षभर किसी भी मौसम में जा सकते हैं. यहां की गुफाएं पुरातात्त्विक महत्त्व की हैं क्योंकि यहां की गुफाओं में शैलचित्र मिले हैं. यहां की प्राकृतिक संपदा को पचमढ़ी राष्ट्रीय उद्यान के रूप में संजोया गया है. पर्यावरण की दृष्टि से पचमढ़ी को सुरक्षित रखने के लिए यहां पौलिथीन का उपयोग नहीं करने दिया जाता.
दर्शनीय स्थल
पांडव गुफा
पचमढ़ी की एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित 5 गुफाओं को पांडव गुफा के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि ये गुफाएं गुप्तकाल की हैं और इन्हें बौद्ध भिक्षुओं ने बनवाया था. ऐसी भी मान्यता है कि 5 पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इन गुफाओं में कुछ समय बिताया था. गुफा के ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से पूरी पचमढ़ी के सौंदर्य को निहारा जा सकता है.
अप्सरा विहार
पांडव गुफा से आगे 30 फुट गहरा एक ताल है जहां नहाने और तैरने का आनंद लिया जा सकता है. बच्चों के साथ घूमने के लिए यह एक बेहतरीन पिकनिक स्पौट है.
रजत प्रपात
अप्सरा विहार से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस प्रपात से 350 फुट की ऊंचाई से गिरता इस का पानी एकदम दूध की तरह दिखाई देता है. अपने साथ एक जोड़ा कपड़ा ले जाएं ताकि इस प्रपात में स्नान कर सकें.
हांडी खोह
300 फुट गहरी यह खाई पचमढ़ी की सब से गहरी खाई है. खाई का अंतिम छोर जंगल के ऊंचेऊंचे पेड़ों के कारण दिखाई नहीं देता. घने जंगलों में ढकी इस खाई के आसपास कलकल बहते झरनों की आवाज सुनना अद्भुत आनंद देता है. ऊपर से देखने पर एक रोमांचभरी सिहरन पैदा होती है. स्थानीय लोग इसे अंधी खोह के नाम से भी पुकारते हैं. यहां बनी रेलिंग प्लेटफौर्म से पूरी घाटी का नजारा दिखाई देता है.
धूपगढ़
धूपगढ़ सतपुड़ा रेंज की सब से ऊंची चोटी है. यहां से सनसैट का व्यू काफी सुंदर दिखाई देता है. धूपगढ़ तक जाने के लिए अंतिम 3 किलोमीटर का रास्ता काफी घुमावदार है. बादलों के बीच में ही धीरेधीरे मलिन होते सूरज को देखना एक अनोखा अनुभव होता है.
सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान
524 वर्ग किलोमीटर में फैले इस उद्यान की स्थापना 1981 में हुई थी. प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह उद्यान जहां चीड़, देवदार, सफेद ओक, यूकेलिप्टस, गुलमोहर और अन्य छोटेबड़े वृक्षों से ढका हुआ है वहीं यहां आप को बाघ, तेंदुआ, सांभर, चीतल, गौर, चिंकारा, भालू और रंगबिरंगे पक्षियों के भी दर्शन हो जाएंगे.
डचेश फौल्स
यह पचमढ़ी का सब से दुर्गम स्पौट है. यहां पहुंचने के लिए करीब डेढ़ किलोमीटर का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है. 700 मीटर का रास्ता जहां घने जंगलों के बीच से पार करना पड़ता है वहीं करीब 800 मीटर का रास्ता पहाड़ पर से सीधा ढलान का है, इसलिए काफी संभलसंभल कर चलना पड़ता है. लेकिन नीचे उतरने के बाद फौल में नहाने से सारी थकान पल में छूमंतर हो जाती है.
इस का नाम बी फौल्स इसलिए पड़ा क्योंकि पहाड़ी से गिरते समय यह झरना बिलकुल मधुमक्खी की तरह दिखता है. यहां आते समय अपने साथ स्पोर्ट्स शूज लाना न भूलें क्योंकि पहाड़ी रास्तों पर चलने के दौरान उन की जरूरत पड़ती है. यह 3 बजे बंद हो जाता है.
समुद्रतल से 1,100 मीटर की ऊंचाई पर बसे इस शहर की आबादी लगभग 12 हजार है और यहां की जीवनशैली आज भी बाहरी चकाचौंध से अछूती है. प्रदूषणरहित वातावरण में कुदरत के सौंदर्य को निहारने के लिए इस छोटी सी सैरगाह में स्थानीय व्यंजनों का स्वाद लेना न भूलें. इन में कई जगह कैमरे या हैंडीकैम का शुल्क है, इसलिए गाइड से पूछ लें कि यह शुल्क कहां जमा कराया जाए.
कहां ठहरें
पचमढ़ी में ठहरने की बहुत अच्छी व्यवस्था है. मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के भी हेरिटेज होटल और गेस्ट हाउस हैं जो विभिन्न आयुवर्ग की जरूरतों को ध्यान में रख कर बनाए गए हैं.

बाबुल अबही न कीजो बियाह

‘‘बाबूजी, अबही हमर बियाह न करो. हम घर छोड़के कहीं नहीं जाइबो. बाबूजी, हमका घर से न निकालो. अम्मा, तुम कुछ करो न. तुम कुछ काहे नहीं बोलती हो.’’ रोतीबिलखती 11 साल की रिंकी अपने मांबाप से गुहार लगा रही है, पर उस के आंसुओं से किसी का भी दिल नहीं पिघलता. रिंकी के तमाम रिश्तेदार और गांव वाले चुपचाप खड़े तमाशा देखते रहे. एक बुजुर्ग ने उलटा रिंकी को ही डांटते हुए कहा, ‘‘बियाह नहीं करेगी तो का जिंदगीभर बाप के घर बैठ कर रोटी तोड़ेगी? रोने से कुछ नहीं होगा. बियाह कर और बाप का बोझ हलका कर.’’

पटना से करीब 36 किलोमीटर दूर मसौढ़ी प्रखंड के कटका गांव के मंदिर के पास 20 नवंबर की रात मासूम रिंकी की दहाड़ सुन कर अच्छेअच्छों का कलेजा मुंह को आ गया, पर परंपरा की जंजीरों में जकड़े उस के मांबाप और नातेदार जबरन उस की शादी की रस्म अदा करवाते रहे.

रिंकी की तरह ही बिहार के भोजपुर जिले की आरा की रहने वाली पूनम की शादी 12 साल की उम्र में कर दी गई. तब वह जानती भी नहीं थी कि विवाह किस चिडि़या का नाम है. आज 22 साल की पूनम का यह हाल है कि उस के 4 बच्चे हो गए हैं और वह जिस्मानी रूप से इतनी कमजोर है कि ठीक से चलफिर नहीं पाती है. लड़कियों के खेलने और पढ़ने की उम्र में शादी कर उन के मांबाप एक तो उन का बचपन छीन लेते हैं, दूसरे, उन के जिस्मानी व मानसिक रूप से कच्ची होने के चलते बच्चे को जन्म देने से उन की व उन के बच्चे की जान को खतरे में डाल देते हैं.

बालविवाह को रोकने और उसे बढ़ावा देने वालों पर कड़ी कार्यवाही के लिए ढेरों कानून बने हुए हैं, इस के बाद भी इस गलत परंपरा पर रोक नहीं लग पा रही है. देशभर में बाल विवाह का चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है. बालविवाह होने वाले देशों में भारत 11वें नंबर पर है. इस मामले में भारत अतिपिछड़े अफ्रीकी देशों– इथोपिया व लीबिया के साथ खड़ा है. भारत के तमाम राज्यों में बालविवाह के मामले में बिहार सब से आगे है. यह हैरानी और अफसोस की बात है कि सूबे की

69 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में ही कर दी जाती है. बिहार के पश्चिम चंपारण, कैमूर, रोहतास, मधेपुरा, गया, नवादा और वैशाली जिलों में कानून और उस के रखवालों को ठेंगा दिखाते हुए सब से ज्यादा बालविवाह हो रहे हैं.

सामाजिक सहयोग की जरूरत

बिहार के पश्चिम चंपारण में 80 फीसदी लड़कियों की शादी पढ़ने और खेलने की उम्र में ही कर दी जाती है. नवादा में 73 फीसदी, रोहतास और कैमूर में 70 फीसदी, मधेपुरा में 66 फीसदी व वैशाली में 61.6 फीसदी लड़कियों का18 साल से कम आयु में ही विवाह कर मांबाप अपनी जिम्मेदारी से नजात पा लेना मानते हैं. पटना जिले में 40 फीसदी लड़कियां बालविवाह की शिकार बनती हैं. यह तो सरकारी आंकड़ा है जबकि हकीकत और भी ज्यादा भयावह हो सकती है.

बिहार की समाज कल्याण मंत्री परवीन अमानुल्लाह कहती हैं कि औरतों के पढ़नेलिखने और जागरूक होने से ही बालविवाह पर रोक लग सकती है. इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए कानून से ज्यादा समाज के सहयोग की जरूरत है. यह सही है कि समाज में बड़ी संख्या में बालविवाह हो रहे हैं, लेकिन समय से उस की सूचना नहीं मिलने की वजह से कानून इस पर कोई कार्यवाही नहीं कर पाता है. गांवों में होने वाले बालविवाह को रोकने और उन पर नजर रखने के लिए सरपंचों को जिम्मेदारी दी गई है.

लड़कियों में जागरूकता के बगैर बालविवाह पर रोक मुमकिन नहीं है. खुद को बालविवाह की शिकार होने से बचाने वाली कुछेक लड़कियां इस की जीतीजागती मिसाल हैं. नेहरू युवा केंद्र से जुड़ी कटिहार की आरती, नारी शक्ति फाउंडेशन की मैंबर गया की राधिका, नवादा की रूबी और प्रमिला ने बताया कि उन्होंने किस तरह से खुद को बालविवाह से बचाया. प्रमिला बताती है कि वह पढ़ना चाहती थी पर उस के मांबाप उस की शादी करने पर उतारू थे. उस ने यह बात अपने स्कूल के मास्टर को बताई. मास्टर ने उस के मांबाप को समझाया और कानूनी कार्यवाही करने की चेतावनी दी. उस के बाद ही उस के पिता ने उस की शादी करने की जिद छोड़ी.

समाजसेवी अनीता सिन्हा बताती हैं कि कम उम्र की लड़कियों को न तो सैक्स आदि के बारे में कुछ पता होता है न ही परिवार के दायित्वों की ही जानकारियां होती है. कम आयु में मां बन जाने से जच्चा और बच्चा दोनों की जान के लिए खतरा होता है. यह लड़के व लड़कियों के मांबाप को ही समझना होगा कि कच्ची उम्र में बिटिया की शादी कर वे अपने हाथों से उस की जिंदगी बरबाद कर रहे हैं. टैलीविजन धारावाहिक ‘बालिका वधू’ भी भारतीय समाज में व्याप्त इस बुराई के खिलाफ अपने तरीके से लड़ाई लड़ रहा है.

कानून तो है पर बेअसर

बालविवाह प्रतिबोध अधिनियम 2006 की धारा-2 (ए) के तहत 21 साल से कम उम्र के लड़कों और 18 साल से कम उम्र की लड़कियों को अवयस्क माना गया है. इस कानून के तहत बालविवाह को अवैध करार दिया गया है. बालविवाह की अनुमति देने, विवाह तय करने, विवाह करवाने या विवाह समारोह में हिस्सा लेने वालों को सजा दिए जाने का नियम है. कानून की धारा-10 के मुताबिक बालविवाह करवाने वाले को 2 साल तक साधारण कारावास या 1 लाख रुपए का जुर्माना देने की सजा दी जा सकती है. धारा-11(1) कहती है कि बालविवाह का बढ़ावा देने या उस की अनुमति देने वालों को 2 साल तक का कठोर कारावास और 1 लाख रुपए तक के जुर्माने की सजा हो सकती है.                        

इन्हें भी आजमाइए

  1. किसी भी चीज को उबालते वक्त खुले बरतन में लकड़ी का सर्विंग स्पून रख दें. उबाल बरतन से बाहर नहीं निकलेगा.
  2. यदि कुछ ज्यादा ही तीखा खा लिया है तो मुंह में तुरंत नमक डालें. थोड़ी देर बाद पानी से कुल्ला कर लें, फायदा होगा.
  3. चाबियों को आसानी से पहचानने के लिए उन के सिरे पर अलगअलग रंग की नेलपौलिश लगाएं.
  4. भोजन करने के उपरांत मुंह से लहसुन की गंध आ रही हो तो कुछ मूंगफली के दाने खा लें.
  5. यदि आप चाहते हैं कि गमले में लगे पौधे तेजी से उगें तो उन की जड़ों में चायपत्ती का पानी डालें.
  6. कप से चायकौफी के दाग नहीं छूट रहे हैं तो टूथपेस्ट लगा कर रगड़ें, नए जैसे चमक उठेंगे.
  7. फूलदान में फूल ज्यादा दिन तरोताजा रखना चाहते हैं तो पानी में डिटर्जेंट की कुछ बूंदें डाल दें.
  8. आंखों में धूलमिट्टी चली गई है तो तुरंत आंखें बंद कर 2-3 बार खांसें, राहत मिलेगी.
  9. लगातार डकार आ रही हैं तो थोड़ा सिरका पी लें.

जीवन की मुसकान

मेरा छोटा बेटा 5वीं व बड़ा बेटा 10वीं में था. मैं उस समय खटीमा में रहती थी. बच्चों के स्कूल जाने के बाद मेरे पास काफी खाली समय होता. इसलिए कुछ नया करने की इच्छा होती थी. मेरी पड़ोसिन का घर के सामने स्कूल था. मैं ने उस से कहा कि मैं आप के स्कूल में कम से कम 2 पीरियड अंगरेजी पढ़ा सकती हूं. आप की जो इच्छा हो, दे देना. इस बात से वे बहुत खुश हुईं, उन्होंने मुझे पढ़ाने के लिए बुला लिया.
मैं बहुत मन से पढ़ाने लगी. बच्चे भी बहुत रुचि से पढ़ने लगे. वे बच्चे मेरे बच्चों से मेरी तारीफ करते कि मैडम बहुत अच्छा पढ़ाती हैं. ये सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगता.
महीना पूरा होने पर मेरी पड़ोसिन ने मुझे 2001 रुपए दिए. ये मेरी पहली कमाई थी, जिसे पा कर मैं फूली न समाई.
आशा गुप्ता, जयपुर (राज.)

एक बार की बात है कि मैं एक चौराहे पर फंस गई. मुझे सड़क पार करनी थी. लोग कार व आटोरिकशा के बीचबीच में से निकल कर जा रहे थे पर मैं हिम्मत नहीं कर पाई. दोनों तरफ से गाडि़यां आजा रही थीं. करीब 15-20 मिनट हो गए कि अचानक एक रिकशा वाला मेरे सामने रुका. रिकशा वाला बोला, ‘‘अम्मा, बैठो, मैं सड़क पार करा देता हूं.’’
मैं बैठ गई, सड़क के पार उतर कर मैं ने कुछ पैसे उसे देने चाहे पर उस ने यह कह कर कि अम्मा, मैं ने पैसों के लिए आप को नहीं बिठाया, बहुत देर से देख रहा था कि आप सड़क पार करना चाह रही थीं पर कर नहीं पा रही थीं, पैसे नहीं लिए.
मैं ने उसे धन्यवाद दिया. और सोचा, छोटा काम करने वाले भी बड़ेबड़े काम कर जाते हैं जो जीवनभर याद रह जाते हैं.
आशा भटनागर, मुंबई (महा.)

बात उन दिनों की है जब मैं 17-18 वर्ष का था. उन दिनों जब भी मेरे घर में कोई पर्वत्योहार जैसे दीवाली या होली वगैरह मनाया जाता तो मैं अकसर कह देता, ‘‘क्या फायदा, इन पर्वों को मनाने का. इस से हमें क्या मिलेगा?’’ घर वाले हंस कर रह जाते, लेकिन कोई कुछ कहता नहीं.
इसी तरह एक बार दीवाली की तैयारी घर में चल रही थी. सभी सदस्य पूरे जोश से तैयारियों में लगे थे क्योंकि एक दिन बाद ही दीवाली थी. सारी तैयारियों को देखते हुए मैं आदतन बोल पड़ा, ‘‘क्या फायदा?’’ तभी मेरे भैया जो मेरे पास बैठे थे, मुझे थोड़ा डांटते हुए बोले, ‘‘फायदा क्या होगा? क्या तुम्हें हर चीज में फायदा चाहिए? जरा देखो, कितना खुशनुमा घर का माहौल लग रहा है. पर्वत्योहार फायदे के लिए नहीं, पारिवारिक खुशी के लिए मनाए जाते हैं.’’
सच, भैया की इन बातों ने मेरे दिल को छू लिया और मेरी ‘फायदे’ बोलने की आदत हमेशा के लिए छूट गई. अब हर पर्वत्योहार मैं बेहद खुशीपूर्वक मनाता हूं.
अमर कुमार, समस्तीपुर (बिहार)

वो पल

क्या वो पल केवल सपना था
या सच में, वो पल अपना था
जब तेरी सांसें मेरी सांसों से टकराई थीं
मेरे हाथों में, तेरे हाथों की गरमाई थी

दोनों के कंठ जब रुंधेरुंधे से थे
दोनों के नयन जब बंधेबंधे से थे
अधरों पर गहरी एक प्यास थी
और नजदीकियों की एक आस थी

न कुछ तुम बोल पाई थीं
न मैं ही कुछ कह पाया था
बस बरसों की चाह पूरी की थी
एकदूजे के साथ नजदीकी जी थी

बस पूर्ण व्यर्थ जीवन में, केवल
वह पल ही तो केवल जीना था
न जाने वह सपना था
या केवल वह पल ही अपना था.
वी के माहेश्वरी

यह भी खूब रही

मैं फरीदाबाद में रहती हूं. मेरे 6 भांजे, भतीजियां बीटेक और एमबीए करने के बाद दिल्ली में जौब कर रहे हैं. अकसर त्यौहारों व पारिवारिक उत्सवों के दौरान वे इकट्ठे हो मेरे घर आते हैं.
एक बार ऐसे ही एक अवसर पर सभी मेरे यहां आए थे. बातोंबातों में रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा छिड़ गई. मेरी भतीजी लोरी ने कहा, ‘‘हम ने बचपन में लक्ष्मीबाई पर एक कविता पढ़ी थी, क्या थी वह कविता?’’
सभी याद करने की कोशिश करने लगे. तभी मेरे भांजे गौरव ने कहा, ‘‘हां, याद आ गया, खूब लड़ी मर्दानी वो तो बाहर निकालो मर जाएगी.’’
बचपन में याद की गई 2 कविताओं का भूलाबिसरा मिश्रण सुन कर सभी हंसहंस कर लोटपोट हो गए.
शन्नो श्रीवास्तव, फरीदाबाद (हरियाणा)

बात मेरे सर्विस के रिटायरमैंट के बाद पहली करवाचौथ की है. परिवार की सारी जिम्मेदारियों से निवृत्त हो चुका था तथा पैंशन से गुजारा चलता था.
करवाचौथ के दिन पत्नी को पति के द्वारा उपहार देने की प्रथा है. बेटों तथा बहुओं ने पूछा कि पापा, इस बार आप मम्मी को क्या उपहार देंगे. मैं ने कहा, ‘इस बार आप की मम्मी को गोल्ड के साथ कुछ सिल्वर भी देने की इच्छा है.’ यह सुन कर परिवार के सदस्य थोड़ा आश्चर्यचकित हो गए.
करवाचौथ की रात्रि में चांद देखने के बाद पत्नी ने मेरे चरण स्पर्श किए. उसी समय मैं ने ‘स्वस्थ रहो, खुश रहो’ कह कर उपहार का पैकेट उस के हाथों में थमा दिया.
पत्नी ने परिवार के सभी सदस्यों के सामने उपहार का पैकेट खोला तो परिवार के सदस्यों की खुशी के साथ हंसी फूट पड़ी क्योंकि पैकेट में थी सोनाचांदी च्यवनप्राश की बौटल तथा साथ में लिखा था जीवन में ‘स्वस्थ रहो और सुखी रहो.’
जी डी मेहरोलिया, भोपाल (म.प्र.)

मैंएक बार अपनी बेटी वंदिता को ले कर मेले में गई हुई थी. वहां पर उस ने बुलबुले उड़ाने वाला एक डब्बा खरीदा. वह कोकाकोला कैन की तरह का डब्बा था. उस में एक पाइप भी था, जिस की सहायता से बुलबुले उड़ाए जा रहे थे.
घर आ कर उस ने पाइप में मुंह लगाया ही था कि मेरे देवर का लड़का वहां पहुंचा और बोला, ‘‘तू अकेले ही कोकाकोला पीएगी क्या?’’ यह कह कर उस के हाथ से कैन ले कर पाइप हटाया और गटागट पीने लगा. थोड़ा सा तरल पदार्थ अंदर जाते ही उसे अजीब सा स्वाद लगा और वह बेसिन की ओर जा कर थूकने लगा.
थूकते समय उस के मुंह से बुलबुले निकल रहे थे. जब हम ने उसे वास्तविकता बताई तो वह मुसकराने लगा और हमारा हंसी के मारे बुरा हाल था.
जया मालू, कोलकाता (प.बं.)

सूक्तियां

फुजूलखर्ची
कंजूस अपने आप को ही तकलीफ देता है लेकिन फुजूलखर्च तो आने वाली पीढि़यों को भी कष्ट देने वाला साबित होता है. बीच का रास्ता ही सब से अच्छा है-हम अपने साथ भी न्याय करें और दूसरों के साथ भी.
व्यवहार
जो विद्वान हो और सरल हो उस से मिलो, जो विद्वान हो और दुष्ट हो उस से सचेत रहो, जो मूर्ख हो और सरल हो उस पर दयाभाव रखो, जो मूर्ख हो और दुष्ट हो उस से बचो.
बात
दूसरों के बारे में छोटीछोटी बातें, जिन से हमारा कोई वास्ता नहीं होता, कहसुन कर हम अनजाने ही उन के अनुकूल या प्रतिकूल बन जाते हैं.
सत्य
मनुष्यों को सत्य बोलना चाहिए, किंतु जहां सत्य बोलने से किसी का अनिष्ट होता हो, वहां सत्य को छोड़ कर झूठ बोलना ठीक है.
वाणी
बोलने के कई तरीके हैं, अच्छी तरह बोलना, आसानी से बोलना, ठीक बोलना और सही वक्त पर बोलना.
बुद्धि
अपनी बुद्धि और दूसरों का धन सब को अधिक लगता है.

ये पति


एक बार मैं इन के साथ ऊनी कपड़े की एक दुकान पर पहुंची. मु?ो अपने लिए कुछ वुलेंस लेने थे. इन्होंने दुकानदार से कहा, ‘‘भाई साहब, ऊनी ब्लाउज दिखाइए लेडीज के लिए.’’ इतना सुनते ही आसपास खड़े सभी कस्टमर हंस पड़े. अपने शब्दों पर ध्यान देते हुए मेरे पति की हालत देखने लायक थी.
सुधा अग्रवाल, लखनऊ (उ.प्र.)

मेरी माताजी अस्पताल में भरती थीं. सभी रिश्तेदार उन्हें देखने आ रहे थे. मेरी बहन के पति भी कानपुर से आए हुए थे. अस्पताल से घर वापस आते समय हमारी चाचीजी, जो पहली बार लखनऊ आई थीं, जीजाजी के साथ स्कूटर पर बैठ गईं. रास्ते में पैट्रोल पंप पर जीजाजी ने स्कूटर रोक कर पैट्रोल भराया. वहीं उन के एक दोस्त मिल गए. दोनों बातें करतेकरते पास ही पान की दुकान में पान खाने लगे. चाचीजी थोड़ी दूर खड़ी इंतजार कर रही थीं.
पान खाने के बाद जीजाजी ने दोस्त से हाथ मिला कर विदा ली और स्कूटर स्टार्ट कर के चल दिए. चाचीजी ने सोचा शायद कुछ काम से कहीं गए हैं, अभी वापस आ जाएंगे. काफी इंतजार करने के बाद भी जब जीजाजी वापस नहीं आए तो चाचीजी परेशान हो गईं. न उन के पास मोबाइल था और न ही घर का पता. जाएं तो जाएं कहां? किस से पूछें?
गनीमत थी कि उन्हें अस्पताल का नाम याद था. बड़ी दिक्कत के साथ रिकशा कर के वे अस्पताल वापस पहुंचीं. वहां हमारे भाई आदि उन्हें मिले और घर ले आए. घर पहुंच कर चाची के साथ घटी घटना और जीजाजी के भुलक्कड़पन पर सब खूब हंसे. आज तक उस घटना को ले कर हम जीजाजी को छेड़ते हैं.
शिवकांती, लखनऊ (उ.प्र.)

मेरी सहेली बहुत मिलनसार, बातूनी व हंसमुख स्वभाव की है. वह जब भी बात करने लगती है तो उस को रोकना मुश्किल होता है. इस के विपरीत उस के पति बहुत शांत हैं. जब भी मेरी सहेली बोलने लगती है तो उस के पति ‘कंट्रोल कंट्रोल’ कह कर उसे चुप करा देते हैं.
एक दिन सहेली के पति का पेट खराब हो गया. उन्हें खिचड़ी इत्यादि सात्विक भोजन खाना पड़ा. अगले दिन उन्हें एक पार्टी में जाने का अवसर मिला. वहां हम पतिपत्नी को भी निमंत्रण था.
पार्टी में कई तरह के स्वादिष्ठ व्यंजन व चाट का प्रबंध था. खिचड़ी खा कर उकताए मेरी सहेली के पति ने प्लेट भर कर खाना लेना शुरू किया. मेरी सहेली ने धीरे से ‘कंट्रोल कंट्रोल’ कह कर उन को सचेत किया. हंसते हुए वे सहेली का मुंह देखने लगे.
सुनीता भटनागर, विजयवाड़ा (आं.प्र.)
 

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