क्या वो पल केवल सपना था
या सच में, वो पल अपना था
जब तेरी सांसें मेरी सांसों से टकराई थीं
मेरे हाथों में, तेरे हाथों की गरमाई थी

दोनों के कंठ जब रुंधेरुंधे से थे
दोनों के नयन जब बंधेबंधे से थे
अधरों पर गहरी एक प्यास थी
और नजदीकियों की एक आस थी

न कुछ तुम बोल पाई थीं
न मैं ही कुछ कह पाया था
बस बरसों की चाह पूरी की थी
एकदूजे के साथ नजदीकी जी थी

बस पूर्ण व्यर्थ जीवन में, केवल
वह पल ही तो केवल जीना था
न जाने वह सपना था
या केवल वह पल ही अपना था.
वी के माहेश्वरी

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