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नहीं रहे पौल वाकर

किसी हौलीवुड के एक्शन सीन जैसा ही हादसा हुआ. जब तेज स्पीड से पौल वाकर की कार पेड़ से टकराई और पलभर में जल कर राख हो गई. गौरतलब है कि पौल वाकर की 30 नवंबर को नौर्थ लास ऐंजिलस में एक कार ऐक्सिडैंट में मौत हो गई. हौलीवुड की सुपरहिट फिल्म सीरीज फास्ट ऐंड फ्यूरियस से पौपुलर हुए 40 वर्षीय पौल वाकर किसी इवैंट के लिए निकले थे. लेकिन जरूरत से ज्यादा स्पीड के चलते कार ने ऐसा नियंत्रण खोया कि यह उन का आखिरी सफर बन गया. पौल 25 से ज्यादा फिल्मों और दर्जनभर टीवी प्रोग्राम्स में काम कर चुके थे. पिछले दिनों पौल फास्ट ऐंड फ्यूरियस 7 में काम कर रहे थे. इस हादसे के चलते फिल्म फिलहाल अधर में लटक गई है.

 

बैंड, बाजा, बरात

साल का आखिरी महीना शादी का सीजन कहा जा सकता है. इस सीजन में मिस इंडिया वर्ल्ड और बौलीवुड ऐक्ट्रैस सयाली भगत ने मुंबई के एक होटल में अपने फैमिली फ्रैंड और उद्यमी नवनीत प्रताप के साथ सात फेरे लिए. आम फिल्मी शादियों की तरह उन की शादी में बौलीवुड का कोई चेहरा नजर नहीं आया.

सयाली ने 2007 में आई फिल्म ‘द ट्रेन’ में इमरान हाशमी के साथ अपना फिल्मी कैरियर शुरू किया था लेकिन उस के बाद उन्हें खास काम नहीं मिला. इस बीच उन के अफेयर और कंट्रोवर्सी जरूर सुर्खियां बनते रहे. सयाली के अलावा इस माह फिल्म ‘रागिनी एमएमएस’ की अभिनेत्री कैनाज मोतीवाला ने भी शादी कर अपने लगभग खत्म कैरियर को अलविदा कह दिया.

 

 

बुलेट राजा

निर्देशक तिग्मांशु धूलिया ने अपनी फिल्म ‘बुलेट राजा’ में गोलियों की धांयधांय तो खूब कराई है परंतु निशाना लगाने में वे बारबार चूकते नजर आए हैं. फिल्म को बिकाऊ बनाने के लिए उन्होंने इस में मसाले डाले हैं. अगर हम उन की पिछली फिल्मों ‘पान सिंह तोमर’ और ‘साहेब, बीवी और गैंगस्टर’ पर नजर डालें तो पाएंगे कि उन फिल्मों में एक कलात्मकता थी, बाकायदा कहानी थी, मगर इस फिल्म में सिर्फ गोलियों की गूंज के अलावा कुछ नहीं है.

फिल्म की पृष्ठभूमि में तथाकथित उत्तर प्रदेश की राजनीति है जो पूरी तरह बनावटी है. राजा मिश्रा (सैफ अली खान) की लखनऊ शहर में रुद्र (जिमी शेरगिल) से मुलाकात होती है, जो एक कूरियर कंपनी में नौकरी करता है. दोनों में दोस्ती हो जाती है. एक दिन रुद्र के घर उस के चाचा परशुराम (शरत सक्सेना) के परिवार वालों पर एक बाहुबली अखंडवीर के आदमी हमला कर देते हैं. राजा और रुद्र मोरचा संभालते हैं. परशुराम उन्हें जेल से बाहर निकलवाता है. दोनों परशुराम की सेना में शामिल हो जाते हैं. परशुराम के साथ बरसों से रह रहा लल्लन (चंकी पांडे) धोखे से परशुराम की हत्या कर देता है. अब राजा और रुद्र लल्लन को मार डालते हैं. दोनों एक पावरफुल मिनिस्टर रामबाबू (राज बब्बर) से जुड़ जाते हैं और एक फाइनैंसर बजाज (गुलशन ग्रोवर) को मार डालते हैं.

यहां उन की मुलाकात एक युवती मिताली (सोनाक्षी सिन्हा) से होती है. राजा उस से प्यार कर बैठता है और उस के साथ कोलकाता चला जाता है. इधर, एक नामी गुंडा सुमेर यादव (रवि किशन) रुद्र को मार डालता है. पता लगने पर राजा वापस लखनऊ लौटता है. शहर में उस का खौफ पैदा हो जाता है. राजा सुमेर यादव को मार कर बदला लेता है. अब राजनीतिक दबाव में आ कर रामबाबू इंस्पैक्टर अरुण सिंह (विद्युत जामवाल) को राजा को मारने के लिए भेजता है. वह राजा को घेर कर उस पर गोलियां चलाता है और उसे मरा जान कर चला जाता है. उधर, राजा फिर से उठ कर खड़ा होता है.

फिल्म की यह कहानी और पटकथा स्वयं तिग्मांशु धूलिया ने लिखी है. फिल्म में किरदार बहुत ज्यादा हैं. कौन क्या कर रहा है, समझने के लिए दिमाग पर जोर डालना पड़ता है. फिल्म की गति काफी तेज रखी गई है, खासकर मध्यांतर के बाद. क्लाइमैक्स अटपटा है.

जिन दर्शकों ने सैफ अली खान की ‘ओमकारा’ फिल्म देखी होगी उन्हें इस फिल्म में सैफ का किरदार वैसा ही लगेगा. जिमी शेरगिल के साथ उस की ट्यूनिंग काफी अच्छी रही है. जिमी शेरगिल भी जंचा है. मगर फिल्म में उस के मरते ही जैसे फिल्म की भी जान निकल जाती है.

सोनाक्षी सिन्हा के हिस्से में 2 गाने और इतराना भर ही आया है. वह आई और ‘तमंचे पे डिस्को’ किया बस. माही गिल ने एक बार फिर सैक्सी अंदाज में ‘डौंट टच माई बौडी’ गाने पर परफौर्म किया है. विद्युत जामवाल को अभी ऐक्ंिटग सीखनी होगी. वैसे उस ने ऐक्शन सीन अच्छे कर लिए हैं.

फिल्म के संवाद अच्छे हैं, जैसे ‘ब्राह्मण रूठा तो रावण…’ और ‘हम आएंगे तो गरमी बढ़ाएंगे.’ फिल्म में गाने ठूंसे गए लगते हैं. फिर भी 2 गाने ‘तमंचे पे डिस्को’ और ‘डौंट टच माई बौडी’ म्यूजिक लवर्स की हिट लिस्ट में हैं. छायांकन अच्छा है.

आर राजकुमार

‘राउडी राठौड़’ और ‘वांटेड’ जैसी हिट फिल्में देने वाले दक्षिण भारत के निर्देशक प्रभुदेवा ने इस बार लंबे समय से फिल्मों में असफल हो रहे शाहिद कपूर पर अपना दांव खेला है. प्रभुदेवा को उम्मीद थी कि एक बार फिर वह जीत की हैट्रिक बनाएगा मगर अफसोस, प्रभुदेवा का यह लंगड़ा घोड़ा फिल्म ‘आर राजकुमार’ में भाग नहीं सका है.

शाहिद कपूर ने इस फिल्म में जम कर डांस किए हैं. सुपरहीरो बनने की कोशिश की है, खूब ऐक्शन किया है, हीरोइन को पटाने के लिए छिछोरी हरकतें की हैं, पर वह जम नहीं पाया है. फिल्म में उस का लुक एक फटीचर, दढि़यल, पतलेदुबले, मरियल से लड़के का है. उसे इतना नाटकीय दिखाया गया है कि वह अकेले ही 100-100 गुंडों का सफाया कर देता है, बारबार मरणासन्न हो कर भी उठ खड़ा होता है और एक ही घूंसे से विलेन को मार डालता है.

प्रभुदेवा ने इस फिल्म को 70-80 के दशक की फिल्मों जैसा बनाया है. मनमोहन देसाई ने इस तरह की फिल्में खूब बनाई हैं. फिल्म की कहानी, पटकथा खुद प्रभुदेवा ने लिखी है. कहानी का आलम तो यह है कि आप ढूंढ़ते रह जाओगे कि कहानी है क्या. फिर भी हम आप को बता देते हैं. राजकुमार उर्फ रोमियो (शाहिद कपूर) धरतीपुर नाम के एक काल्पनिक गांव में आता है, जहां शिवराज (सोनू सूद) और परमार (आशीष विद्यार्थी) अफीम की खेती करते हैं और उस की तस्करी करते हैं. रोमियो शिवराज का माल लुटने से बचा कर उस का विश्वासपात्र बन जाता है. एक दिन रोमियो, परमार की भतीजी चंदा (सोनाक्षी सिन्हा) को देखता है तो उस पर लट्टू हो जाता है. दोनों में प्यार हो जाता है. इधर शिवराज चंदा के साथ शादी करने के लिए परमार से हाथ मिला लेता है. अब शिवराज और रोमियो के बीच दुश्मनी हो जाती है. शिवराज के गुंडे रोमियो को मार डालना चाहते हैं परंतु रोमियो अकेले ही शिवराज और उस के गुंडों को मार कर चंदा का हाथ थाम लेता है.

फिल्म की विशेषता है इस के डांस और गाने. प्रभुदेवा खुद भी डांस डायरैक्टर हैं. उन्होंने पूरा ध्यान डांस और गानों पर दिया है. ‘एबीसी पढ़ ली बहुत अब करूंगी तेरे साथ गंदी बात…गंदी बात’, ‘साड़ी के फौल का कभी मैच किया रे’ गीत काफी अच्छे बन पड़े हैं. एक गाने में विलेन सोनू सूद भी खूब नाचा है. प्रीतम चक्रवर्ती ने अच्छा म्यूजिक दिया है.

प्रभुदेवा ने ऐक्शन पर भी काफी ध्यान दिया है. उन्होंने इस फिल्म में वही मसाला डाला है जो ‘राउडी राठौड़’ में डाला था. इस फिल्म से यह तो साफ हो गया है कि शाहिद कपूर केवल अपने कंधे के सहारे किसी फिल्म को खींच नहीं सकता. सोनाक्षी सिन्हा ने वही सब किया है जो वह ‘राउडी राठौड़’ में कर चुकी है. इस बार उस ने अपने पिता वाले डायलौग ‘खामोश’ को दोहराया है.

 

क्लब 60

जिंदगी में अगर कोई ट्रेजेडी हो जाए तो उसे याद करकर के दुखी होने के बजाय जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए. किसी प्रियजन के बिछुड़ जाने के बाद बजाय उदास रहने और डिप्रैशन ओढ़ लेने के इंसान को सहज हो जाना चाहिए. जाने वाला तो चला गया, उस के साथ आप की जिंदगी खत्म नहीं हो जाती. जीवन तो चलता रहता है. यही संदेश देती है फिल्म ‘क्लब 60’.

60 साल या उस से ज्यादा उम्र के लोगों के जीवन पर बनी इस फिल्म में कमर्शियल ऐंगल नहीं है, फिर भी यह दर्शकों को काफी हद तक बांधे रखती है. निर्देशक ने फिल्म में संतुलन बनाए रखा है. एक तरफ तो उस ने प्रमुख किरदारों के जीवन की त्रासदी को दिखाया है, दूसरी तरफ क्लब में रोजाना मिलते, टैनिस खेलते 5 ऐसे 60 साल के दोस्तों को दिखाया है जो न सिर्फ क्लब में खेलने आते हैं वरन आपस में हंसीमजाक भी करते हैं, एकदूसरे के सुखदुख में भागीदार भी बनते हैं. उन सब की अपनीअपनी त्रासदी है, मगर वे बीते कल को भूल कर आज में जीते हैं. वे एकदूसरे को छेड़ते हैं, एकदूसरे से झगड़ते हैं. सबों के जीवन में गम होते हुए भी वे गमों से दूर हैं.

‘क्लब 60’ शहरी जीवन की फिल्म है और जीवन के प्रति पौजिटिव नजरिया दर्शाती है. इस तरह की अच्छी फिल्में यदाकदा ही बनती हैं. निर्देशक ने अपनी बात खूबसूरती से कही है.

इस फिल्म की कहानी एक कपल 60 वर्षीय डा. तारिक शेख (फारूक शेख) और 52 वर्षीय डा. सायरा शेख (सारिका) से शुरू होती है. उन का युवा बेटा इकबाल शेख अमेरिका में पढ़ने जाता है. वहां एक सिरफिरे द्वारा की गई गोलीबारी में उस की मौत हो जाती है. तारिक और सारिका पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है. डिप्रैशन में आ कर तारिक अपनी जान देने की कोशिश करता है. तभी उन की जिंदगी में उन्हीं की बिल्डिंग में रहने वाला मनूभाई शाह (रघुबीर यादव) आता है. वह बिन बुलाए मेहमान की तरह आता है और तारिक व सायरा की जिंदगी में हलचल मचा जाता है. वह तारिक को ‘क्लब 60’ जौइन करने को कहता है.

क्लब 60 में मनूभाई शाह के कुछ और दोस्त भी हैं. एक है जय मनसुखानी (सतीश कौशिक). उस का बेटा अपनी पत्नी व बेटे के साथ अमीर ससुराल में घरजंवाई बन कर रहता है. दूसरा है जफर भाई (टीनू आनंद). उस की बीवी व बेटा उसे अकेला छोड़ कर अमेरिका जा बसे हैं. एक मिलिट्री से रिटायर्ड ढिल्लन (शरत सक्सेना) है. उस की बीवी उसे छोड़ कर प्रेमी के साथ चली गई है. एक रिटायर्ड इनकम टैक्स अफसर मिस्टर सिन्हा है जिस की पत्नी हर वक्त व्हीलचेयर पर बैठी रहती है और बेटे की मौत हो चुकी है.

मनूभाई डा. तारिक को क्लब का मैंबर बनवा कर रोजाना उसे क्लब लाता है. धीरेधीरे डा. तारिक में जीने की ललक पैदा होने लगती है और वह बेटे का गम भुला कर उन्हीं दोस्तों में रमने लगता है. अचानक एक दिन मनू भाई शाह को अटैक पड़ता है. उसे बे्रन हेमरेज हो जाता है. डा. सायरा अपने पति को मनू भाई शाह का औपरेशन करने को कहती है. वह उस में आत्मविश्वास पैदा करती है. डा. तारिक औपरेशन करते हैं और मनूभाई शाह बच जाता है.

इन सभी किरदारों को एकसूत्र में बांधने का काम मनूभाई शाह के किरदार ने किया है. इस किरदार की भूमिका में रघुबीर यादव ने कमाल की ऐक्ंिटग की है. निर्देशक ने उसे जिंदादिल इंसान दिखाया है जो मौका मिलने पर किसी से भी फ्लर्ट कर लेता है. उस की टीशर्ट्स पर ‘सैक्सी’ लिखा रहता है. यहां तक कि वह अपने बिस्तर में एक कौलगर्ल से मजे भी लेता है. वह अपने दुख को भुला चुका है. उस के परिवार की एक प्लेन दुर्घटना में मौत हो चुकी है. निर्देशक को कम से कम मनूभाई शाह के एक कौलगर्ल के साथ बैडरूम सीन से बचना चाहिए था.

निर्देशक ने हर कलाकार से बेहतर काम लिया है. फारूक शेख और सारिका का काम सब से अच्छा है. फिल्म के संवाद अच्छे हैं. एक किरदार जफर भाई से गवाया गया गीत ‘काश हम तुम मिले नहीं होते’ अच्छा बन पड़ा है. फिल्म का छायांकन अच्छा है.

 

खेल खिलाड़ी

सीनियर की राह पर जूनियर
भारतीय हौकी टीम का प्रदर्शन पिछले कई वर्षों से लगातार बेहद खराब रहा है या यों कहें शर्मनाक रहा है. अब तो स्थिति यहां तक बन गई है कि जो टीम कभी ‘सोना’ बटोरने में ही यकीन रखती थी आज उसे सोना बटोरने की रेस में शामिल होने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है.
इस राष्ट्रीय खेल को ऐसी स्थिति तक पहुंचाने में हौकी के लिए जिम्मेदार संस्था की बड़ी भूमिका है. इस का जिक्र हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी किया है. सब से बड़ा सवाल है कि आखिर हम बारबार कहां चूक रहे हैं? क्यों जो सीनियर खिलाड़ी कर रहे हैं वही गलतियां जूनियर खिलाडि़यों से भी हो रही हैं.
आखिरी मिनटों में गोल खाने की आदतों की वजह से हम जीता हुआ मैच गंवा बैठते हैं. टीम पैनल्टी कौर्नर को गोल में तबदील न कर पाने से आज भी जूझ रही है. इस का फायदा विपक्षी टीम उठा ले जाती है.
जूनियर हौकी टीम से वर्ल्ड कप जीतने की बड़ी उम्मीदें थीं लेकिन क्वार्टर फाइनल में दक्षिण कोरिया से हार कर वे उम्मीदें भी चकनाचूर हो गईं. हार की वजह आखिरी मिनटों में गोल खाना और पैनल्टी कौर्नर को गोल में न बदल पाना ही रही. जब तक टीम प्रबंधन इन कमियों को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाता है तब तक टीम से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद करना बेमानी है.
अगर हमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय हौकी को फिर से जिंदा कर के ?उस में बादशाहत कायम करनी है तो दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया, हौलैंड जैसी टीमों द्वारा अपनाई जाने वाली रणनीति और तकनीक पर पैनी नजर रखनी होगी. साथ ही, उस पर अमल भी करना होगा.
 

घर पर शेर बाहर ढेर
अपने बुलंद हौसलों के साथ भारतीय क्रिकेट टीम जब दक्षिण अफ्रीका पहुंची तो लगा था कि इस बार भारतीय टीम साउथ अफ्रीका की जमीं पर जरूर कुछ कमाल कर दिखाएगी. विश्व विजेता टीम लगातार 2 एकदिवसीय मैचों में 100 रन से भी अधिक बड़े फासले से हार गई. अगर तीसरा मैच रद्द न हुआ होता तो शायद एक और शर्मनाक हार का टीम इंडिया को सामना करना पड़ता.
अभी तक भारतीय टीम का सामना दक्षिण अफ्रीका की जमीन पर 26 बार हुआ है जिस में 20 मैचों में भारतीय टीम को शिकस्त मिली है. इतिहास गवाह है कि भारतीय टीम अपनी ही धरती पर शेर है और विदेशी धरती पर पहुंचते ही ढेर हो जाती है जैसा कि दक्षिण अफ्रीका में हुआ. खराब प्रदर्शन के कारण कई खिलाड़ी रैंकिंग में भी पिछड़ गए हैं.
आखिर ऐसा क्यों होता है कि जबजब भारतीय टीम इंगलैंड, साउथ अफ्रीका, आस्ट्रेलिया जैसी टीमों के साथ उन के घरों में खेलने पहुंचती है तो वह चारोंखाने चित हो जाती है. चंद मैच पहले तक भारतीय धरती पर रनों का अंबार लगाने वाले बल्लेबाज 1-1 रन जोड़ने के लिए तरसने लगते हैं. उन के लिए उछाल लेती गेंदें अबूझ पहेली बन जाती हैं. ऐसे में विश्व विजेता टीम होने पर भी सवाल उठता है. आखिर बीसीसीआई ऐसी पिचें अपने देश में क्यों नहीं बनवाती जिस से कि ऐसा शर्मनाक प्रदर्शन न दोहराया जाए? यह समस्या केवल बल्लेबाजों के साथ ही नहीं है, गेंदबाज भी नाकारा साबित हो रहे हैं. जहां विपक्षी टीमों के गेंदबाज अपनी गेंदबाजी से भारतीय बल्लेबाजों को डरातेधमकाते हैं वहीं हमारे गेंदबाज विपक्षी बल्लेबाजों के लिए आसान टारगेट बन जाते हैं. विपक्षी टीम के नए बल्लेबाज भी शतक पर शतक जमाते जाते हैं. हर विदेशी दौरे पर शर्मनाक हार के बाद टीम प्रबंधन बड़ेबड़े दावे करता है लेकिन जमीन पर दिखता कुछ नहीं है. फिर से कोई अगला दौरा और फिर वही शर्मनाक परिणाम. अगर टीम प्रबंधन समय रहते उन कमियों को दूर नहीं कर पा रहा है तो विश्व विजेता कहलाने का हक भी नहीं रह जाता.

भारतीय महिलाओं का परचम
जालंधर के गुरु गोविंद सिंह स्टेडियम में खेले गए कबड्डी विश्वकप फाइनल में न्यूजीलैंड को 49-21 से हरा कर भारतीय टीम ने महिला वर्ग का खिताब अपने नाम कर लिया. भारत में इस पारंपरिक खेल को हमेशा से ही महत्त्व नहीं दिया गया क्योंकि इस में ग्लैमर का तड़का नहीं होता. बहुत कम ही लड़कियां इस खेल में आगे बढ़ पाती हैं. शहरी लड़कियों की भागीदारी भी कम देखने को मिलती है. गांवदेहातों व कसबों की लड़कियां इस खेल के प्रति रुचि जरूर दिखाती हैं पर जरूरत है उन्हें सही ट्रेनिंग और प्लेटफौर्म की. यह भी सच है कि यहां विदेशों के मुकाबले खिलाडि़यों को सुविधाएं नहीं हैं.
अगर कबड्डी खेल प्रबंधन क्रिकेट या अन्य खेलों की तरह प्रोत्साहन दे तो शायद यह खेल भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहरा सकता है क्योंकि इस खेल में भी कई संभावनाएं हैं. जैसेजैसे इस खेल को लोकप्रियता मिलेगी, प्रतियोगिता का स्तर भी बढ़ेगा.
शहर के गांव या छोटे से कसबों में खेले जाने वाले इस खेल को राष्ट्रीय खेल घोषित किए जाने, स्कूलों, शिक्षण संस्थानों में अनिवार्य किए जाने की जरूरत है. तभी जमीनी स्तर का यह खेल लोकप्रिय होगा और लड़कियां इस खेल में ज्यादा आगे आएंगी.

पाठकोंकी समस्याएं

मैं 20 वर्षीय युवक हूं. मां का 2 साल पहले देहांत हो गया है. मेरे पिता दूसरा विवाह करना चाहते हैं. मेरी समस्या यह है कि क्या मेरा अपनी नई मां के साथ भावनात्मक जुड़ाव हो पाएगा? क्या मैं उन्हें अपनी मां की जगह दे पाऊंगा? कहीं उन के आने से पिताजी मेरे प्रति अपनी जिम्मेदारियां तो नहीं भूल जाएंगे? सलाह दीजिए.
आप के मन में ऐसे विचार आना लाजिमी है. लेकिन आप शायद कुछ ज्यादा ही सोच रहे हैं. आप ने अपनी होने वाली नई मां के बारे में न जाने क्याक्या सोच लिया है. जहां तक भावनात्मक जुड़ाव की बात है जब नए रिश्ते बनते हैं तो उन में प्यार व अपनापन बढ़ाने के लिए दोनों तरफ से प्रयास की जरूरत होती है. अगर आप की नई मां आप के प्रति प्यार और लगाव का भाव रखेंगी तो आप का उन के साथ भावनात्मक जुड़ाव अपनेआप हो जाएगा और आप उन्हें अपनी मां की जगह अवश्य दे पाएंगे.
अपने पिता पर भी व्यर्थ शक न करें. आप यह सोचें कि आप के पिता आप की नई मां के साथ मिल कर आप के प्रति सभी जिम्मेदारियों को ज्यादा अच्छे ढंग से निभा पाएंगे.

मैं और मेरी पत्नी दोनों कामकाजी हैं. पत्नी देखने में खूबसूरत और आकर्षक है. पता नहीं क्यों मुझे अपनी पत्नी पर शक होता है कि उस का अपने किसी सहकर्मी से संबंध है और वह मुझे धोखा दे रही है. मैं इस बारे में उस से बात करने में भी डरता हूं कि यदि मेरा शक गलत निकला तो हमारा वैवाहिक जीवन कहीं बिखर न जाए. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूं?
आप अपनी पत्नी को ले कर कुछ ज्यादा ही पजेसिव हैं. अगर वह खूबसूरत और आकर्षक है तो उस का किसी के साथ संबंध होगा, यह मात्र आप का वहम है. क्या आप के औफिस में आकर्षक और खूबसूरत महिलाएं नहीं हैं? और क्या उन सब के किसी न किसी के साथ संबंध हैं?
जब तक आप के पास कोई ठोस सुबूत न हो पत्नी से इस बारे में हरगिज बात न करें वरना आप व्यर्थ ही अपने वैवाहिक जीवन में परेशानियां खड़ी कर लेंगे. बेकार के शक को आधार बना कर आपसी संबंध में कड़वाहट न लाएं और इस तरह बेमतलब की बातों को अपने मन से निकाल दें.

मैं 42 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. पति के साथ संबंध सामान्य हैं. लेकिन सैक्स करते समय वैजाइना ड्राई रहती है, सैक्स संबंधों को पूरी तरह एंजौय नहीं कर पाती. बातबात पर मूड बदलता रहता है. कभी गुस्सा, चिड़चिड़ाहट तो कभी रोने का मन करता है. पति बहुत सहयोग करते हैं, किसी बात की शिकायत नहीं करते. कहीं मेरे ये लक्षण प्रीमेनोपोज के तो नहीं हैं? वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए क्या करूं?
यह तो अच्छी बात है कि पति आप के बदले शारीरिक और मानसिक लक्षणों के साथ पूरी तरह सहयोग कर रहे हैं और जहां तक सैक्स संबंधों को एंजौय न
कर पाने की बात है, आप के लक्षण प्रीमेनोपोज के हैं. आप इस समस्या के समाधान के लिए किसी गाइनोकोलौजिस्ट से मिलें. हार्मोन रिप्लेसमैंट थेरैपी से आप की समस्या सुलझ सकती है.

मैं 35 वर्षीय तलाकशुदा महिला हूं. अपने पड़ोस में रहने वाले एक 30 वर्षीय युवक से प्यार करती हूं. वह अमीर है और अच्छे खानदान से है. मैं उस से विवाह करना चाहती हूं पर डरती हूं कि कहीं वह मेरे तलाकशुदा होने और अपने उच्च आर्थिक स्तर की वजह से मुझ से विवाह के लिए इनकार न कर दे. क्या मुझे इस बारे में उस से बात करनी चाहिए? उचित सलाह दें.
पहले आप ने यह नहीं बताया कि क्या वह पुरुष भी आप से प्यार करता है या यह सिर्फ आप की तरफ से एकतरफा प्यार की कहानी है और आप उस से विवाह के खयाली पुलाव पका रही हैं.
दूसरी सूरत में अगर वह सचमुच आप से प्यार करता है तो वह अपने आर्थिक स्तर और आप के तलाकशुदा होने की बात भी जानता होगा. वैवाहिक संबंध आपसी रजामंदी पर बनते हैं. आप इस बारे में उस से खुल कर बात करें, उस के परिवार वालों की राय जानें और उस के बाद ही कोई निर्णय लें.

मैं 40 वर्षीय विवाहित महिला हूं. मैं अपने 14 वर्षीय बेटे को ले कर बहुत परेशान हूं. मेरा बेटा हर बात के लिए मुझ से सलाह लेता है. वह अपने खानेपीने, पहनने, टैलीविजन देखने, दोस्तों के साथ बाहर जाने जैसी सभी बातों के लिए मुझ से पूछता है. जबकि इस उम्र के अन्य बच्चे ये सभी निर्णय खुद लेते हैं. क्या मेरे बेटे में आत्मविश्वास की कमी है जिस की वजह से वह हर छोटीछोटी बात के लिए मुझ पर निर्भर रहता है? मैं उस के भविष्य के लिए बहुत चिंतित हूं. मुझे क्या करना चाहिए?
लगता है आप ने अपने बेटे को प्रारंभ से ओवर प्रोटैक्शन दिया है और हमेशा टोकाटाकी की है कि ‘ये करो’, ‘ये मत करो’, ‘यहां मत जाओ’, ‘इधर आओ’ आदि. जब बच्चे को छोटीछोटी बात के लिए सलाह दी जाती है या रोका जाता है तो उस का आत्मविश्वास कम हो जाता है और वह कोई निर्णय खुद नहीं ले पाता.
अब आप अपने बच्चे में बदलाव लाने के लिए उसे अपने निर्णय खुद लेने की आजादी दें, ज्यादा टोकाटाकी न करें. जो वह करना चाह रही है उसे करने दें. हां, उस पर नजर जरूर रखें. उसे घर से बाहर ऐक्टिविटी क्लासेज में भेजें. वहां अन्य बच्चों के साथ मिलनेजुलने से उस का आत्मविश्वास बढ़ेगा और धीरेधीरे अपने निर्णय वह खुद लेने लगेगा.

पचमढ़ी जहां मन हो जाए मदमस्त

इतिहास और खूबसूरती का अद्भुत रंग समेटे मध्य प्रदेश के हिल स्टेशन पचमढ़ी को सतपुड़ा की रानी के नाम से भी जाना जाता है. प्रदेश के होशंगाबाद जिले में सतपुड़ा की पहाडि़यों के बीच पहाड़ों और जंगलों से घिरे हिल स्टेशन पचमढ़ी में पर्यटकों को कश्मीर जैसी खूबसूरती व नेपाल की शांति मिलती है. अगर आप भी कुदरत के सौंदर्य को नजदीक से निहारना चाहते हैं तो सुकून और प्रदूषणरहित वातावरण से भरपूर पचमढ़ी एक बेहतर प्लेस है. यहां की खूबसूरती और आबोहवा सिर चढ़ कर बोलती है. खुशबूदार हवा, फाउंटेन, मनमोहक पेड़पौधे, पहाड़ और दूरदूर तक फैली हरियाली आंखों के सामने नैसर्गिक सौंदर्य का संसार प्रस्तुत करते हैं. यहां का तापमान सर्दी में 4.5 डिगरी सैल्सियस और गरमी में अधिकतम 35 डिगरी सैल्सियस होता है.
यहां आप वर्षभर किसी भी मौसम में जा सकते हैं. यहां की गुफाएं पुरातात्त्विक महत्त्व की हैं क्योंकि यहां की गुफाओं में शैलचित्र मिले हैं. यहां की प्राकृतिक संपदा को पचमढ़ी राष्ट्रीय उद्यान के रूप में संजोया गया है. पर्यावरण की दृष्टि से पचमढ़ी को सुरक्षित रखने के लिए यहां पौलिथीन का उपयोग नहीं करने दिया जाता.
दर्शनीय स्थल
पांडव गुफा
पचमढ़ी की एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित 5 गुफाओं को पांडव गुफा के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि ये गुफाएं गुप्तकाल की हैं और इन्हें बौद्ध भिक्षुओं ने बनवाया था. ऐसी भी मान्यता है कि 5 पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इन गुफाओं में कुछ समय बिताया था. गुफा के ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से पूरी पचमढ़ी के सौंदर्य को निहारा जा सकता है.
अप्सरा विहार
पांडव गुफा से आगे 30 फुट गहरा एक ताल है जहां नहाने और तैरने का आनंद लिया जा सकता है. बच्चों के साथ घूमने के लिए यह एक बेहतरीन पिकनिक स्पौट है.
रजत प्रपात
अप्सरा विहार से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस प्रपात से 350 फुट की ऊंचाई से गिरता इस का पानी एकदम दूध की तरह दिखाई देता है. अपने साथ एक जोड़ा कपड़ा ले जाएं ताकि इस प्रपात में स्नान कर सकें.
हांडी खोह
300 फुट गहरी यह खाई पचमढ़ी की सब से गहरी खाई है. खाई का अंतिम छोर जंगल के ऊंचेऊंचे पेड़ों के कारण दिखाई नहीं देता. घने जंगलों में ढकी इस खाई के आसपास कलकल बहते झरनों की आवाज सुनना अद्भुत आनंद देता है. ऊपर से देखने पर एक रोमांचभरी सिहरन पैदा होती है. स्थानीय लोग इसे अंधी खोह के नाम से भी पुकारते हैं. यहां बनी रेलिंग प्लेटफौर्म से पूरी घाटी का नजारा दिखाई देता है.
धूपगढ़
धूपगढ़ सतपुड़ा रेंज की सब से ऊंची चोटी है. यहां से सनसैट का व्यू काफी सुंदर दिखाई देता है. धूपगढ़ तक जाने के लिए अंतिम 3 किलोमीटर का रास्ता काफी घुमावदार है. बादलों के बीच में ही धीरेधीरे मलिन होते सूरज को देखना एक अनोखा अनुभव होता है.
सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान
524 वर्ग किलोमीटर में फैले इस उद्यान की स्थापना 1981 में हुई थी. प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह उद्यान जहां चीड़, देवदार, सफेद ओक, यूकेलिप्टस, गुलमोहर और अन्य छोटेबड़े वृक्षों से ढका हुआ है वहीं यहां आप को बाघ, तेंदुआ, सांभर, चीतल, गौर, चिंकारा, भालू और रंगबिरंगे पक्षियों के भी दर्शन हो जाएंगे.
डचेश फौल्स
यह पचमढ़ी का सब से दुर्गम स्पौट है. यहां पहुंचने के लिए करीब डेढ़ किलोमीटर का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है. 700 मीटर का रास्ता जहां घने जंगलों के बीच से पार करना पड़ता है वहीं करीब 800 मीटर का रास्ता पहाड़ पर से सीधा ढलान का है, इसलिए काफी संभलसंभल कर चलना पड़ता है. लेकिन नीचे उतरने के बाद फौल में नहाने से सारी थकान पल में छूमंतर हो जाती है.
इस का नाम बी फौल्स इसलिए पड़ा क्योंकि पहाड़ी से गिरते समय यह झरना बिलकुल मधुमक्खी की तरह दिखता है. यहां आते समय अपने साथ स्पोर्ट्स शूज लाना न भूलें क्योंकि पहाड़ी रास्तों पर चलने के दौरान उन की जरूरत पड़ती है. यह 3 बजे बंद हो जाता है.
समुद्रतल से 1,100 मीटर की ऊंचाई पर बसे इस शहर की आबादी लगभग 12 हजार है और यहां की जीवनशैली आज भी बाहरी चकाचौंध से अछूती है. प्रदूषणरहित वातावरण में कुदरत के सौंदर्य को निहारने के लिए इस छोटी सी सैरगाह में स्थानीय व्यंजनों का स्वाद लेना न भूलें. इन में कई जगह कैमरे या हैंडीकैम का शुल्क है, इसलिए गाइड से पूछ लें कि यह शुल्क कहां जमा कराया जाए.
कहां ठहरें
पचमढ़ी में ठहरने की बहुत अच्छी व्यवस्था है. मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के भी हेरिटेज होटल और गेस्ट हाउस हैं जो विभिन्न आयुवर्ग की जरूरतों को ध्यान में रख कर बनाए गए हैं.

बाबुल अबही न कीजो बियाह

‘‘बाबूजी, अबही हमर बियाह न करो. हम घर छोड़के कहीं नहीं जाइबो. बाबूजी, हमका घर से न निकालो. अम्मा, तुम कुछ करो न. तुम कुछ काहे नहीं बोलती हो.’’ रोतीबिलखती 11 साल की रिंकी अपने मांबाप से गुहार लगा रही है, पर उस के आंसुओं से किसी का भी दिल नहीं पिघलता. रिंकी के तमाम रिश्तेदार और गांव वाले चुपचाप खड़े तमाशा देखते रहे. एक बुजुर्ग ने उलटा रिंकी को ही डांटते हुए कहा, ‘‘बियाह नहीं करेगी तो का जिंदगीभर बाप के घर बैठ कर रोटी तोड़ेगी? रोने से कुछ नहीं होगा. बियाह कर और बाप का बोझ हलका कर.’’

पटना से करीब 36 किलोमीटर दूर मसौढ़ी प्रखंड के कटका गांव के मंदिर के पास 20 नवंबर की रात मासूम रिंकी की दहाड़ सुन कर अच्छेअच्छों का कलेजा मुंह को आ गया, पर परंपरा की जंजीरों में जकड़े उस के मांबाप और नातेदार जबरन उस की शादी की रस्म अदा करवाते रहे.

रिंकी की तरह ही बिहार के भोजपुर जिले की आरा की रहने वाली पूनम की शादी 12 साल की उम्र में कर दी गई. तब वह जानती भी नहीं थी कि विवाह किस चिडि़या का नाम है. आज 22 साल की पूनम का यह हाल है कि उस के 4 बच्चे हो गए हैं और वह जिस्मानी रूप से इतनी कमजोर है कि ठीक से चलफिर नहीं पाती है. लड़कियों के खेलने और पढ़ने की उम्र में शादी कर उन के मांबाप एक तो उन का बचपन छीन लेते हैं, दूसरे, उन के जिस्मानी व मानसिक रूप से कच्ची होने के चलते बच्चे को जन्म देने से उन की व उन के बच्चे की जान को खतरे में डाल देते हैं.

बालविवाह को रोकने और उसे बढ़ावा देने वालों पर कड़ी कार्यवाही के लिए ढेरों कानून बने हुए हैं, इस के बाद भी इस गलत परंपरा पर रोक नहीं लग पा रही है. देशभर में बाल विवाह का चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है. बालविवाह होने वाले देशों में भारत 11वें नंबर पर है. इस मामले में भारत अतिपिछड़े अफ्रीकी देशों– इथोपिया व लीबिया के साथ खड़ा है. भारत के तमाम राज्यों में बालविवाह के मामले में बिहार सब से आगे है. यह हैरानी और अफसोस की बात है कि सूबे की

69 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में ही कर दी जाती है. बिहार के पश्चिम चंपारण, कैमूर, रोहतास, मधेपुरा, गया, नवादा और वैशाली जिलों में कानून और उस के रखवालों को ठेंगा दिखाते हुए सब से ज्यादा बालविवाह हो रहे हैं.

सामाजिक सहयोग की जरूरत

बिहार के पश्चिम चंपारण में 80 फीसदी लड़कियों की शादी पढ़ने और खेलने की उम्र में ही कर दी जाती है. नवादा में 73 फीसदी, रोहतास और कैमूर में 70 फीसदी, मधेपुरा में 66 फीसदी व वैशाली में 61.6 फीसदी लड़कियों का18 साल से कम आयु में ही विवाह कर मांबाप अपनी जिम्मेदारी से नजात पा लेना मानते हैं. पटना जिले में 40 फीसदी लड़कियां बालविवाह की शिकार बनती हैं. यह तो सरकारी आंकड़ा है जबकि हकीकत और भी ज्यादा भयावह हो सकती है.

बिहार की समाज कल्याण मंत्री परवीन अमानुल्लाह कहती हैं कि औरतों के पढ़नेलिखने और जागरूक होने से ही बालविवाह पर रोक लग सकती है. इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए कानून से ज्यादा समाज के सहयोग की जरूरत है. यह सही है कि समाज में बड़ी संख्या में बालविवाह हो रहे हैं, लेकिन समय से उस की सूचना नहीं मिलने की वजह से कानून इस पर कोई कार्यवाही नहीं कर पाता है. गांवों में होने वाले बालविवाह को रोकने और उन पर नजर रखने के लिए सरपंचों को जिम्मेदारी दी गई है.

लड़कियों में जागरूकता के बगैर बालविवाह पर रोक मुमकिन नहीं है. खुद को बालविवाह की शिकार होने से बचाने वाली कुछेक लड़कियां इस की जीतीजागती मिसाल हैं. नेहरू युवा केंद्र से जुड़ी कटिहार की आरती, नारी शक्ति फाउंडेशन की मैंबर गया की राधिका, नवादा की रूबी और प्रमिला ने बताया कि उन्होंने किस तरह से खुद को बालविवाह से बचाया. प्रमिला बताती है कि वह पढ़ना चाहती थी पर उस के मांबाप उस की शादी करने पर उतारू थे. उस ने यह बात अपने स्कूल के मास्टर को बताई. मास्टर ने उस के मांबाप को समझाया और कानूनी कार्यवाही करने की चेतावनी दी. उस के बाद ही उस के पिता ने उस की शादी करने की जिद छोड़ी.

समाजसेवी अनीता सिन्हा बताती हैं कि कम उम्र की लड़कियों को न तो सैक्स आदि के बारे में कुछ पता होता है न ही परिवार के दायित्वों की ही जानकारियां होती है. कम आयु में मां बन जाने से जच्चा और बच्चा दोनों की जान के लिए खतरा होता है. यह लड़के व लड़कियों के मांबाप को ही समझना होगा कि कच्ची उम्र में बिटिया की शादी कर वे अपने हाथों से उस की जिंदगी बरबाद कर रहे हैं. टैलीविजन धारावाहिक ‘बालिका वधू’ भी भारतीय समाज में व्याप्त इस बुराई के खिलाफ अपने तरीके से लड़ाई लड़ रहा है.

कानून तो है पर बेअसर

बालविवाह प्रतिबोध अधिनियम 2006 की धारा-2 (ए) के तहत 21 साल से कम उम्र के लड़कों और 18 साल से कम उम्र की लड़कियों को अवयस्क माना गया है. इस कानून के तहत बालविवाह को अवैध करार दिया गया है. बालविवाह की अनुमति देने, विवाह तय करने, विवाह करवाने या विवाह समारोह में हिस्सा लेने वालों को सजा दिए जाने का नियम है. कानून की धारा-10 के मुताबिक बालविवाह करवाने वाले को 2 साल तक साधारण कारावास या 1 लाख रुपए का जुर्माना देने की सजा दी जा सकती है. धारा-11(1) कहती है कि बालविवाह का बढ़ावा देने या उस की अनुमति देने वालों को 2 साल तक का कठोर कारावास और 1 लाख रुपए तक के जुर्माने की सजा हो सकती है.                        

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