मैं फरीदाबाद में रहती हूं. मेरे 6 भांजे, भतीजियां बीटेक और एमबीए करने के बाद दिल्ली में जौब कर रहे हैं. अकसर त्यौहारों व पारिवारिक उत्सवों के दौरान वे इकट्ठे हो मेरे घर आते हैं.
एक बार ऐसे ही एक अवसर पर सभी मेरे यहां आए थे. बातोंबातों में रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा छिड़ गई. मेरी भतीजी लोरी ने कहा, ‘‘हम ने बचपन में लक्ष्मीबाई पर एक कविता पढ़ी थी, क्या थी वह कविता?’’
सभी याद करने की कोशिश करने लगे. तभी मेरे भांजे गौरव ने कहा, ‘‘हां, याद आ गया, खूब लड़ी मर्दानी वो तो बाहर निकालो मर जाएगी.’’
बचपन में याद की गई 2 कविताओं का भूलाबिसरा मिश्रण सुन कर सभी हंसहंस कर लोटपोट हो गए.
शन्नो श्रीवास्तव, फरीदाबाद (हरियाणा)

बात मेरे सर्विस के रिटायरमैंट के बाद पहली करवाचौथ की है. परिवार की सारी जिम्मेदारियों से निवृत्त हो चुका था तथा पैंशन से गुजारा चलता था.
करवाचौथ के दिन पत्नी को पति के द्वारा उपहार देने की प्रथा है. बेटों तथा बहुओं ने पूछा कि पापा, इस बार आप मम्मी को क्या उपहार देंगे. मैं ने कहा, ‘इस बार आप की मम्मी को गोल्ड के साथ कुछ सिल्वर भी देने की इच्छा है.’ यह सुन कर परिवार के सदस्य थोड़ा आश्चर्यचकित हो गए.
करवाचौथ की रात्रि में चांद देखने के बाद पत्नी ने मेरे चरण स्पर्श किए. उसी समय मैं ने ‘स्वस्थ रहो, खुश रहो’ कह कर उपहार का पैकेट उस के हाथों में थमा दिया.
पत्नी ने परिवार के सभी सदस्यों के सामने उपहार का पैकेट खोला तो परिवार के सदस्यों की खुशी के साथ हंसी फूट पड़ी क्योंकि पैकेट में थी सोनाचांदी च्यवनप्राश की बौटल तथा साथ में लिखा था जीवन में ‘स्वस्थ रहो और सुखी रहो.’
जी डी मेहरोलिया, भोपाल (म.प्र.)

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