मेरा छोटा बेटा 5वीं व बड़ा बेटा 10वीं में था. मैं उस समय खटीमा में रहती थी. बच्चों के स्कूल जाने के बाद मेरे पास काफी खाली समय होता. इसलिए कुछ नया करने की इच्छा होती थी. मेरी पड़ोसिन का घर के सामने स्कूल था. मैं ने उस से कहा कि मैं आप के स्कूल में कम से कम 2 पीरियड अंगरेजी पढ़ा सकती हूं. आप की जो इच्छा हो, दे देना. इस बात से वे बहुत खुश हुईं, उन्होंने मुझे पढ़ाने के लिए बुला लिया.
मैं बहुत मन से पढ़ाने लगी. बच्चे भी बहुत रुचि से पढ़ने लगे. वे बच्चे मेरे बच्चों से मेरी तारीफ करते कि मैडम बहुत अच्छा पढ़ाती हैं. ये सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगता.
महीना पूरा होने पर मेरी पड़ोसिन ने मुझे 2001 रुपए दिए. ये मेरी पहली कमाई थी, जिसे पा कर मैं फूली न समाई.
आशा गुप्ता, जयपुर (राज.)

एक बार की बात है कि मैं एक चौराहे पर फंस गई. मुझे सड़क पार करनी थी. लोग कार व आटोरिकशा के बीचबीच में से निकल कर जा रहे थे पर मैं हिम्मत नहीं कर पाई. दोनों तरफ से गाडि़यां आजा रही थीं. करीब 15-20 मिनट हो गए कि अचानक एक रिकशा वाला मेरे सामने रुका. रिकशा वाला बोला, ‘‘अम्मा, बैठो, मैं सड़क पार करा देता हूं.’’
मैं बैठ गई, सड़क के पार उतर कर मैं ने कुछ पैसे उसे देने चाहे पर उस ने यह कह कर कि अम्मा, मैं ने पैसों के लिए आप को नहीं बिठाया, बहुत देर से देख रहा था कि आप सड़क पार करना चाह रही थीं पर कर नहीं पा रही थीं, पैसे नहीं लिए.
मैं ने उसे धन्यवाद दिया. और सोचा, छोटा काम करने वाले भी बड़ेबड़े काम कर जाते हैं जो जीवनभर याद रह जाते हैं.
आशा भटनागर, मुंबई (महा.)

बात उन दिनों की है जब मैं 17-18 वर्ष का था. उन दिनों जब भी मेरे घर में कोई पर्वत्योहार जैसे दीवाली या होली वगैरह मनाया जाता तो मैं अकसर कह देता, ‘‘क्या फायदा, इन पर्वों को मनाने का. इस से हमें क्या मिलेगा?’’ घर वाले हंस कर रह जाते, लेकिन कोई कुछ कहता नहीं.
इसी तरह एक बार दीवाली की तैयारी घर में चल रही थी. सभी सदस्य पूरे जोश से तैयारियों में लगे थे क्योंकि एक दिन बाद ही दीवाली थी. सारी तैयारियों को देखते हुए मैं आदतन बोल पड़ा, ‘‘क्या फायदा?’’ तभी मेरे भैया जो मेरे पास बैठे थे, मुझे थोड़ा डांटते हुए बोले, ‘‘फायदा क्या होगा? क्या तुम्हें हर चीज में फायदा चाहिए? जरा देखो, कितना खुशनुमा घर का माहौल लग रहा है. पर्वत्योहार फायदे के लिए नहीं, पारिवारिक खुशी के लिए मनाए जाते हैं.’’
सच, भैया की इन बातों ने मेरे दिल को छू लिया और मेरी ‘फायदे’ बोलने की आदत हमेशा के लिए छूट गई. अब हर पर्वत्योहार मैं बेहद खुशीपूर्वक मनाता हूं.
अमर कुमार, समस्तीपुर (बिहार)

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...