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Romantic Story : पसंद अपनी अपनी – सुंदरता की परिभाषा क्या है?

Romantic Story : आजकल लड़कियों की कदकाठी, रूपरंग, चेहरे की बनावट, आंखों का आकारप्रकार, बालों की लंबाई व चमक आदि को ले कर चर्चाएं होती हैं. लड़कियां सोचती हैं कि अधिक से अधिक सुंदर दिखना आज उन की जरूरत बन गई है.

इसलिए लड़कियां अधिक से अधिक खूबसूरत दिखने के लिए ऐसे विज्ञापनों और सौंदर्य प्रसाधनों की ओर भागती रहती हैं जो कुछ ही सप्ताह में सांवला रंग गोरा करने का दावा करते हैं.

खासकर, उत्तर भारत में गोरे रंग को काफी मान्यता मिल गईर् है. शादी के लिए लड़की का गोरा होना आज पहली शर्त है. वैवाहिक विज्ञापनों के अनुसार सभी लड़कों को गोरी लड़कियां ही चाहिए. मैं तो उन विज्ञापनों की हमेशा तलाश में रहती हूं जिन में गोरे, काले, सांवले, गेहुंए का सवाल न हो.

मेरी मां सांवली थीं और पापा गोरे थे. मैं मम्मी पर गई थी और सोमेश दादा पापा पर. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि सांवली मम्मी की शादी गोरे पापा से कैसे हो गई. मैं अकसर यह सवाल पापा से कर बैठती थी कि उन्होंने सांवली मम्मी के साथ शादी कैसे कर ली.

एक दिन मेरी बात सुन कर पापा खिलखिला कर हंस पडे़ थे.

‘‘उस समय लड़की देखने का रिवाज नहीं था, सब कुछ मांबाप ही तय करते थे. लड़के तो सुहागरात में ही पत्नी का दीदार कर पाते थे, वह भी दीपक के प्रकाश में. जिस लड़के की शादी तय हो जाती थी वह इतना खुश हो जाता था जैसे पहली बार थियेटर देखने जा रहा हो.’’

‘‘आप भी उसी तरह खुश हुए थे, पापा?’’

उत्तर में पापा की तेज हंसी से पूरा घर गूंज उठा था, जिस में मेरा सवाल डूब गया था. पापा ने बात बदल कर कहा, ‘‘देखना तेरी शादी गोरे लड़के से ही होगी…’’

पापा जब एक बार बोलना शुरू करते थे तो अपनी वाणी को विराम देना ही भूल जाते थे. अभी मैं ने विज्ञान विषय में इंटर ही किया था कि पापा ने मेरे लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी थी. पर मेरा गहरा सांवला रंग देख कर लड़के बिदक जाते थे.

अब तक पापा के खोजे 10 लड़के मुंह बिचका कर जा चुके थे. मैं अपनी पढ़ाई में लगी रही. मम्मी, पापा से कहतीं, ‘‘अगर क्षमा की शादी नहीं हो पा रही है तो आप सोमेश की शादी क्यों नहीं कर देते?’’

22 साल की होतेहोते मैं ने एम.बी.बी.एस. कर लिया था. सोमेश दादा एल.एल.एम. कर के एक डिगरी कालिज में लेक्चरर हो गए थे. पापा मेरे लिए लड़के की तलाश अब भी कर रहे थे.

एक दिन पापा जब कालिज से पढ़ा कर लौटे तो बहुत खुश थे. आते ही उन्होंने घर में घोषणा कर दी, ‘‘क्षमा के लिए लड़के की तलाश पूरी हो गई है. लड़का चार्टर्ड एकाउंटेंट है. कल ही वह अपने मातापिता के साथ क्षमा को देखने आ रहा है. किसी प्रकार के तकल्लुफ की जरूरत नहीं है.’’

दूसरे दिन लड़का अपने मम्मीपापा के साथ मुझे देखने आया. गोराचिट्टा, 6 फुट लंबा, 15 मिनट के साक्षात्कार में मुझे पसंद कर लिया गया. मैं अविश्वासों से घिर गई थी. सोचने लगी, जरूर कोई खास बात होगी, या तो उस में कोई कमी होगी या उस के दिमाग का कोई स्क्रू ढीला होगा.

खैर, मेरी शादी हो गई. पापा के लिए तो लड़का सर्वगुण संपन्न था ही. आशंकाएं तो सिर्फ मुझे थीं. नाना प्रकार की आशंकाओं में घिरी मैं अपनी ससुराल पहुंची. घर के  सभी लोगों ने मुझे पलकों पर बैठा लिया. उस से मेरी आशंकाएं और बढ़ गईं. सुहागसेज पर मैं ने रवि से पूछा, ‘‘आप ने मुझ जैसी लड़की को कैसे पसंद किया?’’

रवि ने मुसकरा कर मेरी ओर देखा. बड़ी देख तक वह मुझे निहारते रहे. फिर कहने लगे, ‘‘दरअसल, क्षमा, गोरी लड़कियां मुझे अच्छी नहीं लगतीं. ज्यादातर गोरी लड़कियों के चेहरों की बनावट अच्छी नहीं होती. दांत तो खासतौर पर अच्छे नहीं होते. इसीलिए मुझे तुम्हारी जैसी लड़की की तलाश थी. दूसरी बात यह कि पतिपत्नी के रूपरंग में भिन्नता होनी चाहिए. जानती हो, यह सारी प्रकृति भिन्नता के आधार पर निर्मित हुई है इसीलिए इस में इतना आकर्षण है. भिन्नता इसलिए भी जरूरी है ताकि पतिपत्नी का व्यक्तित्व अलग दिखे. एकरूपता में सौंदर्य उतना नहीं झलकता जितना भिन्नता में,’’ कह कर रवि ने बत्ती बुझा दी.

मैं ने पहली बार नारीपुरुष का भेद समझा था. सुबह काफी देर से आंख खुली. मैँ ने देखा कि रवि बेड पर नहीं हैं. मैं अलसाई आंखों से इधरउधर उन्हें ढूंढ़ने लगी थी. इतने में कमरे का परदा हिला. उसी के साथ रवि एक छोटी सी टे्र में चाय के 2 प्यालों के साथ कमरे में दाखिल हुए.

‘‘आप…’’ मैं अचकचा कर बोली.

‘‘मैं ने निश्चय किया था कि पहली चाय मैं ही बना कर तुम्हें पिलाऊंगा.’’

मुझे कोई उत्तर नहीं सूझा था. मैं रवि को निहारती रह गई थी.

Best Hindi Story : आजादी – पतिपत्नी के बीच अनचाहे बोझ की कहानी

Best Hindi Story : फैमिली कोर्ट की सीढि़यां उतरते हुए पीछे से आती हुई आवाज सुन कर वह ठिठक कर वहीं रुक गई. उस ने पीछे मुड़ कर देखा. वहां होते कोलाहल के बीच लोगों की भीड़ को चीरता हुआ नीरज उस की तरफ तेज कदमों से चला आ रहा था. ‘‘थैंक्स राधिका,’’ उस के नजदीक पहुंच नीरज ने अपने मुंह से जब आभार के दो शब्द निकाले तो राधिका का चेहरा एक अनचाही पीड़ा के दर्द से तन गया. उस ने नीरज के चेहरे पर नजर डाली. उस की आंखों में उसे मुक्ति की चमक दिखाई दे रही थी. अभी चंद मिनटों पहले ही तो एक साइन कर वह एक रिश्ते के भार को टेबल पर रखे कागज पर छोड़ आगे बढ़ गई थी.

‘‘थैंक्स राधिका टू डू फेवर. मुझे तो डर था कि कहीं तुम सभी के सामने सचाई जाहिर कर मुझे जीने लायक भी न छोड़ोगी,’’ राधिका को चुप पा कर नीरज ने आगे कहा. राधिका ने एक बार फिर ध्यान से नीरज के चेहरे को देखा और बिना कुछ कहे आगे बढ़ गई. फैमिली कोर्ट के बाहर से रिकशा ले कर वह सीधे औफिस ही पहुंच गई. उस के मन में था कि औफिस के कामों में अपने को व्यस्त रख कर मन में उठ रही टीस को वह कम कर पाएगी. लेकिन वहां पहुंच कर भी उस का मन किसी भी काम में नहीं लगा. उस ने घड़ी पर नजर डाली. एक बज रहा था. औफिस में आए उसे अभी एक घंटा ही हुआ था. अपनी तबीयत ठीक न होने का बहाना कर उस ने हाफडे लीव को फुल डे सिकलीव में कन्वर्ट करवा लिया और औफिस से निकल कर सीधे घर जाने के लिए रिकशा पकड़ लिया.

सोसाइटी कंपाउंड में प्रवेश कर उस ने लिफ्ट का बटन दबाया, पर सहसा याद आया कि आज सुबह से बिजली बंद है और शाम 5 बजे के बाद ही सप्लाई वापस चालू होगी. बुझे मन से वह सीढि़यां चढ़ कर तीसरी मंजिल पर आई. फ्लैट नंबर सी-302 का ताला खोल कर अंदर से दरवाजा बंद कर वह सीधे जा कर बिस्तर पर पसर गई. कुछ देर पहले बरस कर थम चुकी बारिश की वजह से वातावरण में ठंडक छा गई थी. लेकिन उस का मन अंदर से एक आग की तपिश से जला जा रहा था. नेहा अपने बौस के साथ बिजनैस टूर पर गई हुई थी और कल सुबह से पहले नहीं आने वाली थी वरना मन में उठ रही टीस उस के संग बांट कर अपने को कुछ हलका कर लेती. बैडरूम में उसे घबराहट होने लगी, तो वह उठ कर हौल में आ कर सोफे पर सिर टिका कर बैठ गई. उस की आंखों के आगे जिंदगी के पिछले 4 साल घूमने लगे…

‘चलो अच्छा ही है 2 दोस्तों के बच्चे अब शादी की गांठ से बंध जाएंगे तो दोस्ती अब रिश्तेदारी में बदल कर और पक्की हो जाएगी,’ राधिका के नीरज से शादी के लिए हां कहते ही जैसे पूरे घर में खुशियां छा गई थीं. राधिका के पिता ने अपने दोस्त का मुंह मीठा करवाया और गले से लगा लिया.

राधिका ने अपने सामने बैठे नीरज को चोरीछिपे नजरें उठा कर देखा. वह शरमाता हुआ नीची नजरें किए हुए चुपचाप बैठा था. न्यूजर्सी से अपनी पढ़ाई पूरी कर अभी कुछ महीने पहले ही आया नीरज शायद यहां के माहौल में अपनेआप को फिर से पूरी तरह से एडजस्ट नहीं कर पाया. यही सोच कर राधिका उस वक्त उस के चेहरे के भाव नहीं पढ़ पाई. अपने पापा के दोस्त दीनानाथजी को वह बचपन से जानती थी लेकिन नीरज से उस की मुलाकात इस रिश्ते की नींव बनने से पहले कभीकभी ही हुई थी. 12वीं पास करने के बाद नीरज 5 साल के लिए स्टूडैंट वीजा पर न्यूजर्सी चला गया था और जब वापस आया तो पहली ही मुलाकात में चंद घंटों की बातों के बाद उन की शादी का फैसला हो गया.

‘‘नीरज, मैं तुम्हें पसंद तो हूं न?’’ बगीचे में नीरज का हाथ थाम कर चलती राधिका ने पूछा. ‘‘हां. लेकिन क्यों ऐसा पूछ रही हो?’’ उस की बात का जवाब देते हुए नीरज ने पूछा. ‘बस ऐसे ही. अगले महीने हमारी शादी होने वाली है. पर तुम्हारे चेहरे पर कोई उत्साह न देख कर मुझे डर सा लगता है. कहीं तुम ने किसी दबाव में आ कर तो इस शादी के लिए हां नहीं की न?’ पास ही लगी बैंच पर बैठते हुए राधिका ने नीरज को देखा.

‘वैल. अपना बिजनैस सैट करने की थोड़ी टैंशन है. इसी उलझन में रहता हूं कि कहीं शादी का यह फैसला जल्दी तो नहीं ले लिया,’ कहते हुए नीरज ने अपनी पैंट की जेब से रूमाल निकाला और माथे पर उभर आई पसीने की बूंदों को पोंछ डाला.‘इस में टैंशन लेने वाली बात ही क्या है? शादी तो समय पर हो ही जानी चाहिए. वैसे भी, जीने के लिए पैसा नहीं, अपने लोगों के पास होने की जरूरत होती है,’ कहती हुई राधिका ने नीरज के कंधे पर अपना सिर टिका दिया.

‘बात तो सच है तुम्हारी पर फिर भी हर वक्त एक डर सा बना रहता है,’ नीरज ने अपने हाथ में अभी भी रूमाल पकड़ रखा था.‘छोड़ो भी अब यह डर और कोई रोमांटिक बात करो न मुझ से,’ कहती हुई राधिका ने आसपास नजर दौड़ाई. बगीचे में अधिकांश जोड़े अपनी ही मस्ती में खोए हुए थे. सहसा राधिका नीरज के और करीब आ गई और उस के हाथ की उंगलियां उस की छाती पर हरकत करने लगीं.

‘यह क्या हरकत है राधिका?’ कहते हुए नीरज ने एक झटके से राधिका को अपने से दूर कर दिया और अपनी जगह से खड़ा हो गया. राधिका के लिए नीरज का यह व्यवहार अप्रत्याशित था. वह नीरज की इस हरकत से सहम गई. तभी दरवाजे की घंटी बज उठी. राधिका अपनी यादों से बाहर निकल कर खड़ी हुई और दरवाजा खोला. ‘‘नेहा प्रधान हैं?’’

दरवाजे पर कूरियर वाला खड़ा था. ‘‘जी, इस वक्त वह घर पर नहीं है. लाइए मैं साइन कर देती हूं,’’ राधिका ने पैकेट लेने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया. पैकेट दे कर कूरियर वाला चला गया. दरवाजा बंद करती हुई राधिका ने पैकेट को देख कर उस के अंदर कोई पुस्तक होने का अंदाजा लगाया. नेहा अकसर कोई न कोई पुस्तक मंगाती रहती थी. उस ने पैकेट टेबल पर रख दिया और वापस सोफे पर बैठ गई.

4 वर्षों का साथ आज यों ही एक ?ाटके में तो नहीं टूट गया था. उस के पीछे की भूमिका तो शायद शादी के पहले से ही बन चुकी थी. पर नीरज का मौन राधिका की जिंदगी भी दांव पर लगा गया. नीरज के बारे में और सोचते हुए उस का चेहरा तन गया. ‘नीरज,  तुम्हारे मन में आखिर चल क्या रहा है? हमारी शादी हुए एक महीने से ज्यादा हो गया और 10 दिनों के अच्छेखासे हनीमून के बाद भी तुम्हारे चेहरे पर नईनई शादी वाली खुशी नदारद सी है. बात क्या है? मुझ से तो खुल कर कहो,’ पूरे हनीमून के दौरान राधिका ने महसूस किया कि नीरज हमेशा उस से एक सीमित अंतर बना कर रह रहा है. रात के हसीन पल भी उसे रोमांचित नहीं कर पा रहे थे. वह, बस, शादी के बाद की रातों को एक जिम्मेदारी मान कर जैसेतैसे निभा ही रहा था. हनीमून से लौट कर आने के बाद राधिका के चेहरे पर अतृप्ति के भाव छाए हुए थे.

‘कुछ नहीं राधिका. मुझे लगता है हम ने शादी करने में जल्दबाजी कर दी है,’ राधिका की बात सुन कर नीरज इतना ही बोल पाया. ‘जनाब, अब ये सब बातें सोचने का समय बीत चुका है. बेहतर होगा हम मिल कर अपनी शादी का जश्न पूरे मन से मनाएं,’ राधिका ने नीरज की बात सुन कर कहा.

‘तुम नहीं सम?ा पाओगी राधिका और मैं तुम्हें अपनी समस्या समझ भी नहीं पाऊंगा,’ कह कर नीरज राधिका की प्रतिक्रिया की परवा किए बिना ही कमरे से बाहर चला गया. अकेले बैठी हुई राधिका का मन बारबार पिछली बातों में जा कर अटक रहा था. लाइट भी नहीं थी जो टीवी औन कर अपना मन बहला पाती. तभी उस के मन में कुछ कौंधा और उस ने नेहा के नाम से अभी आया पैकेट खोल लिया. उस के हाथों में किसी नवोदित लेखक की पुस्तक थी. पुस्तक के कवर पर एक स्त्री की एक पुरुष के साथ हाथों में हाथ डाले हुए मनमोहक छवि थी और उस के ऊपर पुस्तक का शीर्षक छपा हुआ था- ‘उस के हिस्से का प्यार’. कहानियों की इस पुस्तक की विषय सूची पर नजर डालते हुए उस ने एक के बाद एक कुछ कहानियां पढ़नी शुरू कर दीं. बच्चे के यौन उत्पीड़न और फिर उस को ले कर वैवाहिक जीवन में आने वाली समस्या को ले कर लिखी गई एक कहानी पढ़ कर वह फिर से नीरज की यादों में खो गई.

उस दिन नीरज बेहद खुश था. वह घर खाने पर अपने किसी विदेशी दोस्त को ले कर आया था. ‘राधिका, 2 दिनों पहले मैं अपने जिस दोस्त की बात कर रहा था वह यह माइक है. न्यूजर्सी में हम दोनों रूममेट थे और साथ ही पढ़ते थे,’ नीरज ने राधिका को माइक का परिचय देते हुए कहा.

राधिका ने अपने पति की बाजू में खड़े उस श्वेतवर्णी स्निग्ध त्वचा वाले लंबे व छरहरे युवक पर नजर डाली. राधिका को पहली ही नजर में नीरज का यह दोस्त बिलकुल पसंद नहीं आया. उस का क्लीनशेव्ड नाजुक चेहरा और उस पर सिर पर थोड़े लंबे बालों को बांध कर बनाई गई छोटी सी चोटी देख कर राधिका को आश्चर्य हो रहा था कि ऐसा लड़का नीरज का दोस्त कैसे हो सकता है. नीरज तो खुद अपने पहनावे और लुक को ले कर काफी कौन्शियस रहता है. उस वक्त इस बात को नजरअंदाज कर वह इस बात पर ज्यादा कुछ न सोचते हुए खाना बनाने में जुट गई.

उसी रात नीरज ने जब राधिका से सीधेसीधे तलाक लेने की बात छेड़ी तो राधिका के पैरोंतले जमीन खिसक गई. ‘लेकिन बात क्या हुई नीरज? न हमारे बीच कोई झगड़ा है न कोई परेशानी. सबकुछ तो बराबर चल रहा है. कहीं तुम्हारा किसी के संग अफेयर तो…’ रिश्तों को बांधे रखने की दुहाई देते हुए सहसा उस का मन एक आशंका से भर गया.

‘अफेयर ही समझ लो. अब तुम से मैं आगे कुछ और नहीं छिपाऊंगा,’ कहते हुए नीरज चुप हो गया. राधिका ने नीरज के चेहरे को देखते हुए उस की आंखों में अजीब सी मदहोशी महसूस की. ‘तुम कहना क्या चाहते हो नीरज?’ राधिका नीरज की अधूरी छोड़ी बात पूरी सुनना चाहती थी. उस के बाद नीरज ने जो कुछ उस से कहा, उन में से आधी बात तो वह ठीक से सुन ही नहीं पाई.

‘तुम्हारे संग मेरी शादी मेरे लिए एक जुआ ही थी. मैं अपनी सारी जिंदगी इसी तरह कशमकश में गुजार देता पर अब यह कुछ नामुमकिन सा लगता है राधिका. बेहतर होगा हम अपनेअपने रास्ते अलगअलग ही तय करें,’ नीरज से शादी टूटने से पहले कहे गए आखिरी वाक्य उस के दिमाग में बारबार कौंधने लगे.

राधिका ने कमरे की लाइट बंद कर दी और चुपचाप लेट कर सारी रात अपनी बरबादी पर आंसू बहाती रही.अब एक ही घर में नीरज के साथ रहते हुए वह अपनेआप को एक अजनबी महसूस कर रही थी. अपने मन की बात राधिका को जता कर जैसे नीरज के मन का भार हलका हो चुका था लेकिन राधिका जैसे मन पर एक अनचाहा भार ले कर जी रही थी. जब उस के मन का भार असहनीय हो गया तो वह नीरज के घर की दहलीज छोड़ कर अपने पिता के घर आ गई.

फिर जो हुआ वह आज के दिन में परिणत हो कर उस के सामने खड़ा था. कानूनी तौर पर वह भले ही नीरज से अलग हो चुकी थी लेकिन नीरज की सचाई और उस के द्वारा दी गई अनचाही पीड़ा अब भी उस के मन के कोने में कैद थी जिसे वह चाह कर भी किसी से बयान नहीं कर सकती थी. घर में बैठेबैठे अकेले घुटन होने से वह घर लौक कर बाहर निकल गई और एमजी रोड पर स्थित मौल में दिल बहलाने के लिए चक्कर लगाने लगी.

रात देर से नींद आने की वजह से सुबह उस की नींद देर से ही खुली. वैसे भी आज उस का वीकली औफ होने से औफिस जाने का कोई झंझनाटा न था. उस ने उठ कर समाचार सुनने के लिए टीवी औन ही किया था कि डोरबेल बज उठी.

‘‘हाय राधिका. हाऊ आर यू?’’ दरवाजा खोलते ही नेहा राधिका से लिपट गई. ‘‘मैं ठीक हूं. तेरा टूर कैसा रहा?’’ राधिका के चेहरे पर एक फीकी सी मुसकान तैर गई. ‘‘बौस के साथ टूर हमेशा ही मजेदार रहता है. वैसे भी अब जिंदगी ऐसे मोड़ तक पहुंच गई है जहां से वापस लौटना संभव ही नहीं. यह टूर तो एक बहाना होता है एकांत पाने का,’’ कहती हुई नेहा सोफे पर पसर गई.

राधिका ने रिमोट उठा कर चुपचाप न्यूज चैनल शुरू कर दिया. ‘‘सुन, कल तेरी आखिरी सुनवाई थी न फैमिली कोर्ट में. क्या फैसला आया?’’ नेहा ने राधिका को अपने पास खींचते हुए उस से पूछा.

‘‘फैसला तो पहले से ही तय था. बस, साइन ही करने तो जाना था,’’ राधिका ने बुझेमन से जवाब दिया. ‘‘लेकिन तू ने अभी तक नहीं बताया कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो तू ने नीरज से अलग होने का फैसला ले लिया?’’ पिछले एक साल से साथ रहने के बावजूद राधिका ने अपनी जिंदगी का एक अधूरा सच नेहा से अब तक छिपाए रखा था.

‘भारत की न्याय प्रणाली में एक ऐतिहासिक फैसला सैक्शन 377 के तहत अब गे और लैस्बियन संबंध वैध.’ तभी टीवी स्क्रीन पर आती ब्रैकिंग न्यूज देख कर राधिका असहज हो गई.

‘‘स्ट्रैंज,’’ नेहा ने न्यूज पर अपनी छोटी सी प्रतिक्रिया जताते हुए राधिका से फिर से पूछा, ‘‘तू ने बताया नहीं राधिका? कुछ कारण तो रहा होगा न?’’

‘‘बस, समरझ ले कल उसे एक अनचाहे रिश्ते से कानूनीतौर पर मुक्ति मिली और आज उस मुक्ति की खुशी मनाने का मौका भी उसी कानून ने उसे दे दिया,’’ राधिका की नजरें अभी भी टीवी स्क्रीन पर जमी हुई थीं. लेकिन नेहा उस की नम हो चुकी आंखों में तैर रही खामोशी को पढ़ चुकी थी.

Love Story : इश्क का भूत – शेफाली के पापा क्या समझ सके जीत की असलियत ?

Love Story : जब इश्क का भूत सिर चढ़ कर बोलता है तब दुनिया में कुछ नजर ही नहीं आता. न मानप्रतिष्ठा की परवा न कैरियर की चिंता. शेफाली भी ऐसी ही सिरफिरी लड़की थी, उसे जब जीत नजर आया, तो वह उस पर जीजान से फिदा हो गई. बेशक जीत को भी उस का साथ अच्छा लगा, लेकिन जीत को पहले अपनी बहन सुमन के विवाह की चिंता थी.

शेफाली रईस बाप की औलाद थी, जिस ने न गरीबी देखी थी और न ही भूख. वह अपने मन की करना जानती थी. वह गर्ल्स होस्टल में रहती व मौजमस्ती करती. उस के पिता की पेपरमिल थी. वे एक जानेमाने उद्योगपति थे, सो शेफाली के पास एक से बढ़ कर एक ड्रैसेस का अंबार लगा रहता. हमेशा सजीसंवरी, ज्वैलरी से लकदक, हाथ में पर्स लिए बाहर घूमने के अवसर तलाशती शेफाली की पढ़ने में कोई रुचि नहीं थी. कालेज में ऐडमिशन तो उस ने समय बिताने के लिए ले रखा था. उसे तलाश थी ऐसे युवक की जो दिखने में हैंडसम हो और उस के आगेपीछे घूमे.

जीत से उस की नजरें कालेज के फंक्शन में मिलीं और उसे उस में सारी बातें नजर आईं जिन की उसे तलाश थी. वह हौलेहौले बोलता और किसी फिल्मी नायक सा उस के ईदगिर्द डोलता. अंधा क्या चाहे, दो आंखें. शेफाली खर्च करने के लिए तैयार रहती, दोनों खूब घूमते. महानगरों में वैसे भी कौन किसे जानता है या कौन किस की परवा करता है. पौश इलाके के होस्टल में रह रही शेफाली के पास जीत बाइक ले कर आता. वह अदा से इतरातीलहराती उस के संग चली जाती.

जब लौटती तो सहेलियों को अपने रोमांस के किस्से बता कर इंप्रैस करती. चूंकि उस की सहेलियां स्टडी में व्यस्त थीं, उन्हें तो अपने रिजल्ट की अधिक फिक्र रहती. वे उस की कहानी सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं लेती थीं.

इधर जीत भी पढ़ाई में पिछड़ता चला गया. उस का सारा वक्त शेफाली के बारे में ही सोचसोच कर निकल जाता. शेफाली के दिए गिफ्ट उसे भारी तोहफे नजर आते. वह उसे कभी टीशर्ट देती, कभी ब्रेसलेट तो कभी गौगल्स. वह खुद को हीरो से कम नहीं समझता. वह यही समझता कि शेफाली उस से विवाह करेगी और वह एक उद्योगपति का दामाद बन कर मालामाल हो जाएगा.

इधर शेफाली जीत संग आउटिंग पर थी, उधर उस के पापा अशोक ने प्राइवेट डिटैक्टिव से सारी जानकारी इकट्ठी करवा ली थी कि वह कहां जाती है, क्या करती है.

शेफाली के पापा अशोकजी ने जमाना देखा था. वे पल भर में सारा माजरा समझ गए थे. उन्हें समझ आ गया कि उन की लाडली महज दिलबहलाव कर रही है. पढ़ाई में उस का मन नहीं लग रहा.

जीत जिस तरह से बेझिझक शेफाली से तोहफे ले रहा था, इस से अशोकजी को यह भी समझ में आ गया कि इस लड़के में कोई स्वाभिमान नहीं है वरना वह इस तरह शेफाली की दी वस्तुएं न स्वीकारता. जीत का फंडा समझने में अशोकजी को ज्यादा समय नहीं लगा, क्योंकि वे तो खुद व्यवसायी थे और जीत के प्रोफैशनल प्रेम को पहचान गए थे.

शेफाली के लिए उन्होंने विदेश से पढ़ाई कर के लौटा एमबीए लड़का विजय तलाश लिया था. शेफाली ने जब विजय को देखा तो देखती ही रह गई. वह स्टाइलिश और अमेरिकन अंगरेजी बोल रहा था. उसे जीत को भुला देने में एक मिनट भी नहीं लगा.

जीत देखता रह गया और शेफाली विजय के साथ शादी कर हनीमून मनाने स्विट्जरलैंड चली गई.

इश्क का भूत तो धन की चमक के आगे एक पल भी नहीं ठहर पाया. वे आज के युवा ही क्या जो इश्क के लिए जिंदगी बरबाद करें. अलबत्ता जीत को संभलने में एक साल लगा, पर जबकि वह दिल से नहीं मतलब की खातिर शेफाली से जुड़ा था. अब उस के सामने अपनी युवा बहन की जिम्मेदारी थी. वह नहीं चाहता था कि कोई उस के चालचलन का हवाला दे कर उस की बहन के रिश्ते को मना करे. जीत की मां को यही तसल्ली थी कि उस का बेटा एक बेवफा के प्यार में ज्यादा नहीं भटका.

Love Story : लव यू…तुम्हारी वैदेही

Love Story : बहुत दिनों से एक बात कहना चाह रहा था, अर्जुन ने फिल्मी अंदाज में वैदेही का हाथ अपने हाथ में लिए कहा. अर्जुन कुछ और आगे कह पाता इससे पहले ही वैदेही ने मज़ाकिया लहजे में कहा, अगर एक स्मार्ट लड़की को कुछ कहना हो, तो लड़के के लिए सबसे जरूरी बात आई लूव यू ही होती है. और वह तो तुम तीन साल पहले ही बड़े अच्छे से कह चुके हो. अर्जुन बालों में हाथ घुमाते और गाल एक हाथ से खीचते हुए वैदेही आगे कहती हैं, आई लव यू ही क्या तुम उससे भी ज्यादा कह चुके हो.

वैदेही के बातों को मानो अनसुना सा करते हुये अर्जुन अपने में ही कुछ खो सा जाता है, मानों वह अपने सवालों का खुद ही जबाब तलाश कर रहा हो. अर्जुन के फिल्मी हीरो वाले सीरियस पोज को देखते हुए वैदेही कहती है, ऐसा क्या हुआ तुम तो चुप्पी ही साध गए. चलो बताओ क्या कहना चाहते हो?

अब वैदेही को सीरियस होते देख अर्जुन ने तुरंत ही बात को बदलते हुये कहता है चलो रहने दो फिर बाद में बताउगा, इतनी भी सीरियस होने की बात नहीं है. अर्जुन कुछ और कहता इससे पहले ही वैदेही बोलती है, इट इज नोट गुड, तुम हमेशा ऐसे ही करते हो. जब कुछ बताना नहीं होता तो कोई बात चालू ही क्यों करते हो.

अब वैदेही के मूड को बदलते हुये देखकर अर्जुन कहता है बिना सुने तो तुम इतनी नाराज हो रही हो सुनकर न जाने क्या करोगी?

तुरंत जबाब देते हुये वैदेही कहती है, यदि अच्छी बात होगी तो प्यार भी मिल सकता है और कुछ बकबास हुयी तो एक चाटा भी. वैदेही के मूड को कुछ नॉर्मल देख अर्जुन कहता है, सच में कहूँ जो मैं कहना चाहता हूँ.

वैदेही – हाँ कहो ना, क्या बात है.

अर्जुन – लेकिन एक शर्त है, अगर मंजूर हो तो बात शुरू करूँ.

वैदेही – अगर फालतू की कोई शर्त है तो बिलकुल नहीं मंजूर.

अर्जुन – यार हद है, एकदम छोटी सी शर्त है.

वैदेही – चलो मंजूर, बोलो अब.

वैदेही की शर्त बाली बात को मानने के बाद अर्जुन मन ही मन अब यह सोच रहा था कि वैदेही को यह बात कैसे कहूँ, जिससे वह मेरे मन में जो है वह समझ सके. क्योंकि शब्दों की कुछ सीमाएं तो हमेशा ही होती हैं, शब्द हमेशा आपकी भावनाओं को पूर्णता में अभिव्यक्त नहीं कर पाते. व्यक्ति चाहे जितना सोच ले, पहले से तैयारी कर ले, लेकिन जो वह सोचता है उसको शब्दों के जरिए नहीं बता सकता.

अर्जुन की कुछ पल की चुप्पी को देख वैदेही के मन में भी सैकड़ों बातों आने-जाने लगी, जैसे कोई रीमोट से चैनल बदल रहा हो. इस बात को कहते हुये अर्जुन भी कुछ सहज महसूस नहीं कर रहा था, इतना नर्वस तो वह उस समय भी नहीं था जब उसने वैदेही को प्रपोज किया था. एक छोटी खामोशी को तोड़ते अर्जुन वैदेही के हाथ को पकड़ते हुये कहता है, शर्त के अनुसार तुम आज इस बात पर कोई रिएक्ट नहीं करोगी, आज रात के बाद कल हम इस पर बात करेंगे.

वैदेही – ओके, अब आगे भी तो कुछ बोलो.

हाथ में हाथ लिए आसमान को देखते हुये अर्जुन कहता है मैंने पिछले कुछ महीनों से महसूस किया है कि हम मिलने पर बहुत बाते करने लगे हैं, और कभी-कभी तो ये बाते हमारी तुम्हारी न होकर किसी और की ही होती हैं. मिलने पर इतनी बाते तो हम पहले कभी नहीं करते थे. और पहले जो बाते होती भी थी वह मेरी और तुम्हारी ही थी. मुझे तो लगता है वैदेही हमारे अंदर कुछ बदल सा गया है. अब तो कभी-कभी हमारा झगड़ा भी होने लगा है, भले अभी यह ज्यादा लंबा नहीं होता.

वैदेही के चेहरे के हावभाव कुछ बदलते हुये देखकर भी अर्जुन अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये कहता है, अगर हम अपने इस प्यार को यूं ही आगे इसी सिद्दत से जारी रखना चाहते हैं.  तो हमें प्यार के इस मोड पर कुछ समय के लिए दूर हो जाना चाहिए. लड़ने झगड़ने के बाद तो सभी अलग होते हैं… ब्रेकअप करते हैं. हम दोनों कुछ एकदम नया करते हैं. तुम जानती हो रूटीन लाइफ से में कुछ बोर सा हो जाता हूँ, इसलिए हम कुछ एक्साइटिंग कुछ हटके करते हैं.

वैदेही – यू मीन ब्रेक-अप, मतलब तुम मुझसे अलग होने कि बात कह रहे हो, और वो भी ब्रेकअप विदाउट रीज़न.

अर्जुन – यार मैंने कहा था, कि आज रिएक्ट नहीं करोगी, प्लीज कल बात करेंगे ना.

वैदेही – लेकिन तुम्हें पता है तुम क्या कह रहे हो?

इतना कहते की वैदेही की पलके आंसुओं से भारी होने लगी, उसे समझ ही नहीं आ रहा था. वह क्या कहे, और ऐसा अचानक क्या हो गया जो अर्जुन ऐसा कह रहा है.

अर्जुन – हाँ बिलकुल मैं सोचकर यह बात तुमसे कह रहा हूँ, और वैदेही प्यार में प्रपोज, एक्सेप्ट, रोमांस, ब्रेक-अप के अलाबा भी बहुत कुछ होता है. हाँ एक बात और मैं तुमसे कह दूँ तुम ये जो ब्रेक-अप जैसी फालतू बात कर रही हो मेरा मतलब बो बिलकुल भी नहीं है.

अब समझ में आने की जगह अर्जुन कि बाते और अबूझ पहेली की तरह हो रही थी, वैदेही मन ही मन सोचे जा रही थी, अगर ब्रेक-अप नहीं तो क्यों यह दूर जाने की बात कह रहा है. वैदेही के कंधे पर हाथ रखते हुए अर्जुन कहता है, पता नहीं तुम अभी मेरी बात समझी या नहीं, पर अब जो मैं कह रहा हूँ, उस पर तुम कल ध्यान से खूब सोचकर विचार कर आना.

वैदेही के बालों को सहलाते हुये अर्जुन अपने मन में उठे प्रश्नों को वैदेही के सामने रखता है. वैदेही याद करो प्यार की शुरुआत में फोन पर हम घंटों बाते करते थे, पर आज फोन पर हम कितनी बात करते हैं? पहले मिलने पर क्या हमारे पास इतनी बाते थी, जितनी आज हम करते हैं? और आजकल हमारी बाते मेरी तुम्हारी ना होकर किसी और टॉपिक पर ही क्यों होती हैं? और दूसरे की बातों में हम कभी-कभी वेवजह झगड़ भी लेते हैं.

अर्जुन की यह सारी बाते अभी भी वैदेही के समझ के बाहर थी, अब इसी कनफ्यूज से  मन और दिमाग की स्थिति के साथ कुछ मज़ाकिया अंदाज में वैदेही कहती है, लोग सच ही कहते हैं साइकोलोजी और फिलोसफी पढ़ने-पढ़ाने वाले लोग आधे खिसक जाते हैं. और तुमने तो दोनों ही पढ़े हैं, इसलिए लग रहा है, कि तुम तो पूरे….

अर्जुन – अब तुम्हें जो कहना है वह कहो या समझो पर कल जरूर मेरी इन बातों को सोचकर आना .

आज घर जाते हुए भले दोनों हाथों में हाथ लिए चल रहे थे, पर दोनों खोये हुये थे किसी और ही दुनिया में. वैदेही चलते-चलते सोचे जा रही थी कि अर्जुन की तो आदत ही है, इस टाइप के इंटेलेक्चुयल मज़ाक करने की, लेकिन दूसरे ही पल वह यह भी सोच रही थी कि छोड़ने या अलग होने की बात तो आजतक कभी अर्जुन ने नहीं की है. इसलिए वह ऐसा मजाक तो नहीं करेगा. मन की उधेड़बुन तो नहीं थमी, लेकिन चलते-चलते पार्किंग स्टैंड जरूर आ गया.

जहां से दोनों को अलग होना था. दोनों ने एक दूसरों को सिद्दत भरी निगाहों और प्यार के साथ अलविदा किया और अपनी-अपनी गाड़ी को स्टार्ट करते हुये, अपने-अपने रास्ते पर चल दिए.

भले अर्जुन की बातों से वैदेही ज्यादा उदास और सोचने को मजबूर थी, पर अर्जुन भी कम बैचेन नहीं था. इसलिए ही तो कहते हैं कि अगर हम किसी के मन में अपनी बातों या कामों से उथल-पुथल मचाते हैं तो उसका प्रभाव हम पर भी कुछ ना कुछ जरूर ही होता है. हम चाहे कितने प्रबल इच्छाशक्ति वाले क्यों ना हों.

बारह घंटे के बाद स्माइली इमोजी और गुड्मोर्निंग के साथ अर्जुन का मेसेज वैदेही के मोबाइल पर आता है. बताओ कहाँ मिलना है? और आई होप तुमने जरूर सोचा होगा. वैदेही भी कनफ्यूज इमोजी के साथ गुड्मोर्निंग भेजती है और लिखती है. कल कहानी तुमने ही चालू की थी, तो आज तुम ही बताओ कहा खत्म करोगे. रिप्लाई करते हुये अर्जुन कहता है आज संडे भी है तो यूनिवर्सिटी के उसी पार्क में मिलते हैं जहां पहली बार मिले थे.

पार्क में अर्जुन हमेशा की तरह टाइम से पहले बैठा मिलता है. वैदेही भी पार्क के गेट से ही अर्जुन को देख लेती है मानों पार्क में उसके अलावा कोई और हो ही ना.

अर्जुन कुछ बोलता उससे पहले ही वैदेही कहती है तुमने जो भी कहा था उस पर खूब सोचा और उससे आगे-पीछे भी बहुत कुछ सोचा. हाँ तुम सही कहते हो पहले हम फोन पर ज्यादा बाते करते थे और मिलने पर हमारे पास बाते कम और अहसास ज्यादा थे. एक-दूसरे से मिलने पर बातों की जरूरत ही महसूस नहीं होती थी. एक दूसरे की मौजूदगी ही सब कह देती थी. और यह भी सही है पिछले कुछ दिनों से हम लोग एक दूसरे की बात या विचार का उतना सम्मान नहीं करते जैसा पहले था. पहले मुझे तुम्हारी गलत बाते भी सही लगती थी और अब कभी-कभी सही बात पर भी हम वेवजह बहस करने लगते हैं.

वैदेही कुछ और कहती इसी बीच में अर्जुन कहता है, तो बताओ ऐसा क्यों है?

वैदेही- अरे अब मैंने फिलोसफी थोड़े पढ़ी है, मैंने तो आर्किटेक्ट पढ़ी है, और आर्किटेक्ट में पहेलियाँ नहीं सीधे-सीधे पढ़ाई होती है. इसलिए तुम ही बताओ ऐसा क्यों है?

अर्जुन कुछ बोलता इससे पहले ही वैदेही कहती है, जो तुमने कहा था वह तो सोचा ही साथ ही मैंने यह भी सोचा कि अपने रिलेशन के पिछले तीन सालों में वैसा व्यवहार एक दूसरे से बिल्कुल नहीं किया, जो किसी प्यार करने वालों में एक साल के अंदर ही होने लगता है, एक भी बार हम दोनों ने एक-दूसरे से इरीटेट होकर ना फोन काटा ना ही स्विच आफ किया. न तुम कभी मुझसे गुस्सा हुये और न ही मैं तुमसे, फिर ना जाने तुम क्यों ब्रेकअप ओह सॉरी-सॉरी दूर होने की बात कर रहे हो.

वैदेही की सारी बातों को हमेशा की तरह उसी तल्लीनता से सुनकर अर्जुन कहता है, वैदेही तुम जो कह रही हो मेरे मन भी यही सब बाते आई थी. तुमसे अलग होने की बात करने से पहले. मैं भी यही सोचता रहा कि अगर दो प्यार करने वाले मिलने पर ज्यादा बात करने लगे हैं, थोड़ा सा बहस करने लगे, थोड़ा सा लड़ ले, तो इसमें क्या गलत है.

पर वैदेही मुझे लगता है जब अहसास कुछ कम होने लगते हैं तब शब्दों की जरूरत ज्यादा पड़ती है, और हम दोनों क्या, अगर किसी भी संबंध में सिर्फ शब्द ही रह जाए तो मान लेना चाहिए संबंध या तो खत्म हो गया है या फिर अगर है भी तो बस औपचारिकता भर है, ऐसे संबंध में आत्मा या जीवंतता नहीं है.

आज हमारे रिलेशन में भले कोई बड़ी समस्या नहीं है पर मुझे लगता है ये छोटी-छोटी  नोकझोक ही आगे चलकर बड़ी प्रोबलम बन जाती हैं. अर्जुन अपनी बातों को और समझाने का प्रयास करते हुये कहता है, वैदेही मैंने कई लोगों के प्यार के सफर में देखा हैं, पहले छोटी मोटी नोकझोक, फिर बेमतलब की बहसे, फिर आरोप-प्रत्यारोप और फिर चुप्पी, और अंत की चुप्पी बहुत ही दर्द देती है.

अर्जुन कुछ और कहता उसके बीच में ही वैदेही कहती है तो तुम्हारा मतलब है हमारे बीच अब अहसास नहीं बचा या प्यार नहीं है.

अर्जुन – नहीं नहीं मैंने ऐसा कब कहा कि हमारे बीच प्यार नहीं. बल्कि मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि जो हमारे बीच अहसास है, प्यार है वह बरकरार रहे. वैदेही अभी बहुत कुछ है हमारे बीच जो हमें एक दूसरे की ओर आकर्षित और रोमांचित करता है. मैं यही चाहता हूँ कि यही अहसास बने रहें.

वैदेही – तो अब तुम्ही बताओ कि हमें क्या करना चाहिए?

अर्जुन – हमें कुछ दिनों या महीनों के लिए दूर हो जाना चाहिए ताकि फिर से हम एक दूसरे से कुछ अजनबी हो सके, कुछ दिनों कि दूरी फिर से वह आकर्षण या कशिश पैदा करेगी, जहां शब्दों की फिर कम ही जरूरत होगी. और जितनी बात हम दोनों के फिर से मिलने पर होगी वह मेरी और तुम्हारी ही होगी, क्योंकि कुछ दिनों का अजनबीपन से बहुत कुछ हम दोनों के पास होगा जो हम एक-दूसरे से सुनना और बताना चाहेंगे.

वैदेही – ठीक है मान लिया तुम चाहते हो कि हँसते-हँसते कुछ समय के लिए हम दूर हो जाए, एक अच्छे रिलेशन को और मजबूर करने के लिए, पर ये होगा कैसे?

अर्जुन – अरे यार तुम आर्किटेक्ट में डिप्लोमा करने के लिए जो मूड बना रही हो, उसे अहमदाबाद में जॉइन करो, और हो जाओ अजनबी. और फिर मिलते हैं कुछ नए-नए से होकर, विथ न्यू एक्साइटमेंट के साथ.

वैदेही – थोड़े-थोड़े अजनबी बनने के चक्कर में कहीं इतनी दूर नहीं हो जाए कि फिर कभी मिल ही ना सकें.

अर्जुन – अगर कुछ दिनों कि दूरी हमें अलग कर देती है तो फिर तो हम दोनों को ही मान लेना होगा की हमारा रिश्ता उतना मजबूत था ही नहीं, और ये दूरी तोड़ने या दूर जाने के लिए नहीं बल्कि और नजदीक आने के लिए है.

वैदेही अर्जुन के इस प्रपोज़ल को दिल से स्वीकार कर पायी थी या नहीं, पर अर्जुन के इस दिमागी फितूर को मानते हुए अहमदाबाद में उसने अपना कोर्स जॉइन कर लिया. वैदेही नयी जगह, नए दोस्तों और पढ़ाई में कुछ व्यस्त से हो गयी थी, पर रात में अर्जुन की यादें हमेशा उसके साथ रहती थी.

अर्जुन और वैदेही को दूर हुए अभी दो महीने ही तो हुये थे पर अर्जुन का 6 महीने बाद मिलने का वादा जबाब देने लगा. छः महीने के पहले न फोन करने और न ही मिलने वाली अपनी ही बात को ना मानते हुए, अर्जुन ने आज वैदेही को मोबाइल पर मेसेज भेजा.

कुछ घंटे के इंतजार के बाद उसने फिर मेसेज भेजा, पर पहले मेसेज की तरह ही दूसरा मेसेज न तो रिसीव हुआ और न ही कोई जबाब आया.

मेसेज का जबाब न आने पर अर्जुन की बैचेनी बढ़ने लगी थी, बढ़ती बैचेनी ने अर्जुन के मेसेज की संख्या और लंबाई को भी बड़ा दिया. और अब मेसेज क्या वैदेही ने तो कॉल भी रिसीव नहीं किया था.

अब अर्जुन के मन में सौ सवाल उठ रहे थे, क्या वैदेही गुस्सा हो गयी? कहीं वैदेही को कुछ हो तो नहीं गया? या कहीं कोई और बात तो नहीं? अर्जुन के मेसेज और कॉल करने और वैदेही के जबाब न देने का सिलसिला लगभग 15-20 दिन चला. अंततः अर्जुन ने ठान लिया की वह अब खुद ही अहमदाबाद जाएगा.

माना जाता है कि स्त्री के व्यक्तिव की यह खूबी और पुरुष के व्यक्तिव की यह कमी होती है, जिसके कारण पुरुष अपनी ही सोची बात, विचार या निर्णय पर अक्सर कायम नहीं रह पाता, जबकि एक स्त्री किसी दूसरे की बात, विचार या निर्णय को उतनी ही सिद्दत से निभाने का सामर्थ्य रखती है, जैसे वह विचार या निर्णय उसने ही लिया हो.

जिस दिन अर्जुन को अहमदाबाद जाना था उसके एक दिन पहले अचानक रात में अर्जुन के मोबाइल पर वैदेही के आने वाले मेसेज की खास रिंगटोन बजती है, इतने लंबे इंतजार के बाद वैदेही के मेसेज आने से मोबाइल की स्क्रीन के साथ अर्जुन की आंखे भी चमक रही थी.

पर मेसेज में न जाने ऐसा क्या लिखा हुआ था, जैसे-जैसे अर्जुन मेसेज की लाइने पढ़ रहा था, पढ़ने के साथ उसके चेहरे की रंगत भी उड़ती जा रही थी.

मेसेज पढ़ने के बाद अर्जुन वैदेही से पहली बार मिलने से लेकर उस अंतिम मुलाक़ात को याद कर रहा था, बेड पर लेटकर एकटक ऊपर की ओर देखते हुये अर्जुन की आँखों से नमी झलकने लगी थी. कहा जाता है जब दर्द गहरा होता है तो आँसू बिना रोये, बिना आबाज के ही बहने लगते हैं. कुछ पल पहले जिस मेसेज के आने से अर्जुन की आंखे खुशी से चमकी थी, वही आंखे मेसेज पड़ने के बाद नम थी. वैदेही के मेसेज को कई बार पढ़ने के बाद भी अर्जुन को यकीन नहीं हो रहा था कि यह सब सही है…

…..डियर अर्जुन इतने दिनों से तुम मेसेज और कॉल कर रहे हो पर मैंने कोई जबाब नहीं दिया उसके लिए सॉरी… मैं तुमसे बिल्कुल भी गुस्सा नहीं हूँ, पर क्या करूँ तुमने जो कहा था  मैं वही तो कर रही हूँ. और तुम जानते हो तुम्हारी हर खवाहिस को मैं दिल से पूरा करने की कोशिश करती हूँ. सच अर्जुन अभी भी मुझे पता नहीं कि दूर होने के लिए तुमने यह मजाक में कहा था, या फिर किसी और वजह से, हो सकता है मेरे कैरियर बनाने के लिए तुमने ऐसा किया हो, पर अर्जुन यह सच है कि मैं तुमसे दूर होने की सोच भी नहीं सकती थी. अर्जुन पिछले दिनों एक बात मेरे मन में रोज ही आती है, अभी तो हम सिर्फ प्यार में थे और शादी जैसा कोई बंधन भी नहीं था, पर तुम्हारे रूटीन लाइफ से बोर हो जाने के कारण हम कुछ दिनों के लिए दूर हो गए. पर अर्जुन यदि शादी के बाद भी तुम रूटीन लाइफ से बोर होने लगे तब क्या होगा. अर्जुन हम जैसी लड़कियों का गुण कहें या मजबूरी हम तो दिल से जिस कन्धें और हाथ को एक बार थाम लेते हैं, उसे ही ज़िंदगी भर के लिए अपना साहिल समझ लेते हैं, लड़कियों की ज़िंदगी में खासकर इंडिया में रूटीन लाइफ से बोर होने का आसन नहीं होता है.  इसलिए मेरे और तुम्हारे बीच की इस कुछ दिनों की दूरी को फिलहाल अपना ब्रेक-अप ही समझ रही हूँ. हाँ ज़िंदगी बहुत लंबी है इसलिए आगे का मुझे भी कुछ पता नहीं क्या होगा? दुआ करती हूँ हम दोनों की ज़िंदगी में अच्छा ही हो. अब मेसेज और कॉल नहीं करना क्योंकि तुम्हारे सवालों और बातों का मेरे पास इस मेसेज के अलावा कोई और जबाब नहीं है,

लव यू…तुम्हारी वैदेही.

लेखकडॉ॰ स्वतन्त्र रिछारिया  

 

Best Hindi Story : वैसी वाली फिल्म

Best Hindi Story : सौरभ दफ्तर के काम में बिजी था कि अचानक मोबाइल फोन की घंटी बजी. मोबाइल की स्क्रीन पर कावेरी का नाम देख कर उस का दिल खुशी से उछल पड़ा.

कावेरी सौरभ की प्रेमिका थी. उस ने मोबाइल फोन पर ‘हैलो’ कहा, तो उधर से कावेरी की आवाज आई, ‘तुम्हारा प्यार पाने के लिए मेरा मन आज बहुत बेकरार है. जल्दी से घर आ जाओ.’

‘‘तुम्हारा पति घर पर नहीं है क्या?’’ सौरभ ने पूछा.

‘नही,’ उधर से आवाज आई.

‘‘वह आज दफ्तर नहीं आया, तो मुझे लगा कि वह छुट्टी ले कर तुम्हारे साथ मौजमस्ती कर रहा है,’’ सौरभ मुसकराते हुए बोला.

‘ऐसी बात नहीं है. वह कुछ जरूरी काम से अपने एक रिश्तेदार के घर आसनसोल गया है. रात के 10 बजे से पहले लौट कर नहीं आएगा, इसीलिए मैं तुम्हें बुला रही हूं. तनमन की प्यास बुझाने के लिए हमारे पास अच्छा मौका है. जल्दी से यहां आ जाओ.’

‘‘मैं शाम के साढ़े 4 बजे तक जरूर आ जाऊंगा. जिस तरह तुम मेरा प्यार पाने के लिए हर समय बेकरार रहती हो, उसी तरह मैं भी तुम्हारा प्यार पाने के लिए बेकरार रहता हूं.

‘‘तुम्हारे साथ मुझे जो खुशी मिलती है, वैसी खुशी अपनी पत्नी से भी नहीं मिलती है. हमबिस्तरी के समय वह एक लाश की तरह चुपचाप पड़ी रहती है, जबकि तुम प्यार के हर लमहे में खरगोश की तरह कुलांचें मारती हो. तुम्हारी इसी अदा पर तो मैं फिदा हूं.’’

थोड़ी देर तक कुछ और बातें करने के बाद सौरभ ने मोबाइल फोन काट दिया और अपने काम में लग गया.

4 बजे तक उस ने अपना काम निबटा लिया और दफ्तर से निकल गया.

सौरभ कावेरी के घर पहुंचा. उस समय शाम के साढ़े 4 बज गए थे. कावेरी उस का इंतजार कर रही थी.

जैसे ही सौरभ ने दरवाजे की घंटी बजाई, कावेरी ने झट से दरवाजा खोल दिया. मानो वह पहले से ही दरवाजे पर खड़ी हो.

वे दोनों वासना की आग से इस तरह झुलस रहे थे कि फ्लैट का मेन दरवाजा बंद करना भूल गए और झट से बैडरूम में चले गए.

कावेरी को बिस्तर पर लिटा कर सौरभ ने उस के होंठों को चूमा, तो वह भी बेकरार हो गई और सौरभ के बदन से मनमानी करने लगी.

जल्दी ही उन दोनों ने अपने सारे कपड़े उतारे और धीरेधीरे हवस की मंजिल की तरफ बढ़ते चले गए.

अभी वे दोनों मंजिल पर पहुंच भी नहीं पाए थे कि किसी की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘यह सब क्या हो रहा है?’’

वे दोनों घबरा गए और झट से एकदूसरे से अलग हो गए.

सौरभ ने दरवाजे की तरफ देखा, तो बौखला गया. दरवाजे पर कावेरी का पति जयदेव खड़ा था. उस की आंखों से अंगारे बरस रहे थे.

उन दोनों को इस बात का एहसास हुआ कि उन्होंने मेन दरवाजा बंद नहीं किया था.

कावेरी ने झट से पलंग के किनारे रखे अपने कपड़े उठा लिए. सौरभ ने भी अपने कपड़े उठाए, मगर जयदेव ने उन्हें पहनने नहीं दिया.

जयदेव उन को गंदीगंदी गालियां देते हुए बोला, ‘‘मैं चुप रहने वालों में से नहीं हूं. अभी मैं आसपड़ोस के लोगों को बुलाता हूं.’’

कावेरी ने जयदेव के पैर पकड़ लिए. उस ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दीजिए. अब ऐसी गलती कभी नहीं करूंगी.’’

‘‘मैं तुम्हें हरगिज माफ नहीं कर सकता. तुम तो कहती थीं कि मैं कभी किसी पराए मर्द को अपना बदन छूने नहीं दूंगी. फिर अभी सौरभ के साथ क्या कर रही थीं?’’

कावेरी कुछ कहती, उस से पहले जयदेव ने सौरभ से कहा, ‘‘तुम तो अपनेआप को मेरा अच्छा दोस्त बताते थे. यही है तुम्हारी दोस्ती? दोस्त की पत्नी के साथ रंगरलियां मनाते हो और दोस्ती का दम भरते हो. मैं तुम्हें भी कभी माफ नहीं करूंगा.

‘‘फोन कर के मैं तुम्हारी पत्नी को बुलाता हूं. उसे भी तो पता चले कि उस का पति कितना घटिया है. दूसरे की पत्नी के साथ हमबिस्तरी करता है.’’

‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दो. मेरी पत्नी को कावेरी के बारे में पता चल जाएगा, तो वह मुझे छोड़ कर चली जाएगी.

‘‘मैं कसम खाता हूं कि अब कभी कावेरी से संबंध नहीं बनाऊंगा,’’ सौरभ ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

सौरभ के गिड़गिडाने का जयदेव पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने सौरभ से कहा, ‘‘मैं तुम दोनों को कभी माफ नहीं कर सकता. तुम दोनों की करतूत जगजाहिर करने के बाद आज ही कावेरी को घर से निकाल दूंगा. उस के बाद तुम्हारी जो मरजी हो, वह करना. कावेरी से संबंध रखना या न रखना, उस से मुझे कोई लेनादेना नहीं.’’

जयदेव चुप हो गया, तो कावेरी फिर गिड़गिड़ा कर उस से माफी मांगने लगी. सौरभ ने भी ऐसा ही किया. जयदेव के पैर पकड़ कर उस से माफी मांगते हुए कहा कि अगर वह उसे माफ नहीं करेगा, तो उस के पास खुदकुशी करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह जाएगा, क्योंकि वह अपनी पत्नी की नजरों में गिर कर नहीं जी पाएगा.

आखिरकार जयदेव पिघल गया. उस ने सौरभ से कहा, ‘‘मैं तुम्हें माफ तो नहीं कर सकता, मगर जबान बंद रखने के लिए तुम्हें 3 लाख रुपए देने होंगे.’’

‘‘3 लाख रुपए…’’ यह सुन कर सौरभ की घिग्घी बंध गई. उस का सिर भी घूमने लगा.

बात यह थी कि सौरभ की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वह जयदेव को 3 लाख रुपए दे सके. उसे जितनी तनख्वाह मिलती थी, उस से परिवार का गुजारा तो चल जाता था, मगर बचत नहीं हो पाती थी.

सौरभ ने अपनी माली हालत के बारे में जयदेव को बताया, मगर वह नहीं माना. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी माली हालत से मुझे कुछ लेनादेना नहीं है. अगर तुम मेरा मुंह बंद रखना चाहते हो, तो रुपए देने ही होंगे.’’

सौरभ को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस मुसीबत से कैसे निबटे?

सौरभ को चिंता में पड़ा देख कावेरी उस के पास आ कर बोली, ‘‘तुम इतना सोच क्यों रहे हो? रुपए बचाने की सोचोगे, तो हमारी इज्जत चली जाएगी. लोग हमारी असलियत जान जाएंगे.

‘‘तुम खुद सोचो कि अगर तुम्हारी पत्नी को सबकुछ मालूम हो जाएगा, तो क्या वह तुम्हें माफ कर पाएगी?

‘‘वह तुम्हें छोड़ कर चली जाएगी, तो तुम्हारी जिंदगी क्या बरबाद नहीं हो जाएगी? मेरी तो कोई औलाद नहीं है. तुम्हारी तो औलाद है, वह भी बेटी. अभी उस की उम्र भले ही 6 साल है, मगर बड़ी होने के बाद जब उसे तुम्हारी सचाई का पता चलेगा, तो सोचो कि उस के दिल पर क्या गुजरेगी. तुम से वह इतनी ज्यादा नफरत करने लगेगी कि जिंदगीभर तुम्हारा मुंह नहीं देखेगी.’’

सौरभ पर कावेरी के समझाने का तुरंत असर हुआ. वह जयदेव को 3 लाख रुपए देने के लिए राजी हो गया, मगर इस के लिए उस ने जयदेव से एक महीने का समय मांगा. कुछ सोचते हुए जयदेव ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें एक महीने की मुहलत दे सकता हूं, मगर इस के लिए तुम्हें कोई गारंटी देनी होगी.’’

‘‘कैसी गारंटी?’’ सौरभ ने जयदेव से पूछा.

‘‘मैं कावेरी के साथ तुम्हारा फोटो खींच कर अपने मोबाइल फोन में रखूंगा. बाद में अगर तुम अपनी जबान से मुकर जाओगे, तो फोटो सब को दिखा दूंगा.’’

मजबूर हो कर सौरभ ने जयदेव की बात मान ली. जयदेव ने कावेरी के साथ सौरभ का बिना कपड़ों वाला फोटो खींच कर अपने मोबाइल में सेव कर लिया.

शाम के 7 बजे जब सौरभ कावेरी के फ्लैट से बाहर आया, तो बहुत परेशान था. वह लगातार यही सोच रहा था कि 3 लाख रुपए कहां से लाएगा?

सौरभ कोलकाता का रहने वाला था. उलटाडांगा में उस का पुश्तैनी मकान था. उस की शादी अनीता से तकरीबन 8 साल पहले हुई थी.

सौरभ की पत्नी अनीता भी कोलकाता की थी. अनीता जब बीए के दूसरे साल में थी, तभी उस के मातापिता ने उस की शादी सौरभ से कर दी थी. सौरभ ने उस की पढ़ाई छुड़ा कर उसे घर के कामों में लगा दिया. अनीता भी आगे नहीं पढ़ना चाहती थी, इसलिए तनमन से घर संभालने में जुट गई थी.

शादी के समय सौरभ के मातापिता जिंदा थे, मगर 2 साल के भीतर उन दोनों की मौत हो गई थी. तब से अनीता ने घर की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी.

मगर शादी के 5 साल बाद अचानक सौरभ ने अपना मन अनीता से हटा लिया था और वह मनचाही लड़की की तलाश में लग गया था.

बात यह थी कि एक दिन सौरभ ने अपने दोस्त के घर ब्लू फिल्म देखी थी. उस के बाद उस का मन बहक गया था. ब्लू फिल्म की तरह उस ने भी मजा लेने की सोची थी.

उसी दिन दोस्त से ब्लू फिल्म की सीडी ले कर सौरभ घर आया. बेटी जब सो गई, तो टैलीविजन पर उस ने अनीता को फिल्म दिखाना शुरू किया.

कुछ देर बाद अनीता समझ गई कि यह कितनी गंदी फिल्म है. फिल्म बंद कर के वह सौरभ से बोली, ‘‘आप को ऐसी गंदी फिल्म देखने की लत किस ने लगाई?’’

‘‘मैं ने यह फिल्म आज पहली बार देखी है. मुझे अच्छी लगी, इसलिए तुम्हें दिखाई है कि फिल्म में लड़की ने अपने मर्द साथी के साथ जिस तरह की हरकतें की हैं, उसी तरह की हरकतें तुम मेरे साथ करो.’’

‘‘मुझ से ऐसा नहीं होगा. मैं ऐसा करने से पहले ही शर्म से मर जाऊंगी.’’

‘‘तुम एक बार कर के तो देखो, शर्म अपनेआप भाग जाएगी.’’

‘‘मुझे शर्म को भगाना नहीं, अपने साथ रखना है. आप जानते नहीं कि शर्म के बिना औरतें कितनी अधूरी रहती हैं. मेरा मानना है कि हर औरत को शर्म के दायरे में रह कर ही हमबिस्तरी करनी चाहिए.

‘‘आप अपने दिमाग से गंदी बातें निकाल दीजिए. हमबिस्तरी में अब तक जैसा चलता रहा है, वैसा ही चलने दीजिए. सच्चा मजा उसी में है. अगर मुझ पर दबाव बनाएंगे, तो मैं मायके चली जाऊंगी.’’

उस समय तो सौरभ की बोलती बंद हो गई, मगर उस ने अपनी चाहत को दफनाया नहीं. उस ने मन ही मन ठान लिया कि पत्नी न सही, कोई और सही, मगर वह मन की इच्छा जरूर पूरी कर के रहेगा.

उस के बाद सौरभ मनचाही लड़की की तलाश में लग गया. इस के लिए एक दिन उस ने अपने दोस्त रमेश से बात भी की. रमेश उसी कंपनी में था, जिस में वह काम करता था.

रमेश ने सौरभ को सुझाव दिया, ‘‘तुम्हारी इच्छा शायद ही कोई घरेलू औरत पूरी कर सके, इसलिए तुम्हें किसी कालगर्ल से संबंध बनाना चाहिए.’’

सौरभ को रमेश की बात जंच गई. कुछ दिन बाद उसे एक कालगर्ल मिल भी गई.

एक दिन सौरभ रात के 9 बजे कालगर्ल के साथ होटल में गया. वह कालगर्ल के साथ मनचाहा करता, उस से पहले ही होटल पर पुलिस का छापा पड़ गया. सौरभ गिरफ्तारी से बच न सका.

सौरभ ने पत्नी को बताया था कि एक दोस्त के घर पार्टी है. पार्टी रातभर चलेगी, इसलिए वह अगले दिन सुबह ही घर आ पाएगा या वहीं से दफ्तर चला जाएगा. इसी वजह से पत्नी की तरफ से वह बेखौफ था.

गिरफ्तारी की बात सौरभ ने फोन पर रमेश से कही, तो अगले दिन उस ने जमानत पर उसे छुड़ा लिया.

सौरभ को लगा था कि उस की गिरफ्तारी की बात कोई जान नहीं पाएगा. मगर ऐसा नहीं हुआ. न जाने कैसे धीरेधीरे दफ्तर के सारे लोगों को इस बात का पता चल गया. शर्मिंदगी से सौरभ कुछ दिनों तक अपने दोस्तों से नजरें नहीं मिला पाया, लेकिन 2-3 महीने बाद वह सामान्य हो गया. इस में उस के एक दोस्त जयदेव ने मदद की था.

जयदेव 6 महीने पहले ही पटना से तबादला हो कर यहां आया था. कालगर्ल मामले में सौरभ दफ्तर में बदनाम हो गया था, तो जयदेव ने ही उसे टूटने से बचाया था.

एक दिन जयदेव उसे अकेले में ले गया और तरहतरह से समझाया, तो उस ने अपने दोस्तों से मुकाबला करने की हिम्मत जुटा ली.

अब दफ्तर में सारे दोस्त सौरभ से पहले की तरह अच्छा बरताव करने लगे, तो सौरभ ने जयदेव की खूब तारीफ की और उस से दोस्ती कर ली.

दोस्ती के 6 महीने बीत गए, तो एक दिन जयदेव सौरभ को अपने घर ले गया.

जयदेव की पत्नी कावेरी को सौरभ ने देखा, तो उस की खूबसूरती पर लट्टू  हो गया.

कुछ देर तक कावेरी से बात करने पर सौरभ ने महसूस किया कि वह जितनी खूबसूरत है, उस से ज्यादा खुले विचार की है.

सौरभ जयदेव के घर से जाने लगा, तो कावेरी उसे दरवाजे पर छोड़ने आई. कावेरी उस से बोली, ‘जब भी मौका मिले, आप  बेखटक आइएगा. मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’

उस समय जयदेव वहां पर नहीं था, इसलिए सौरभ ने मुसकराते हुए मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘क्या मैं जयदेव की गैरहाजिरी में भी आ सकता हूं?’’

‘‘क्यों नहीं? आप का जब जी चाहे आ जाइएगा, मैं स्वागत करूंगी.’’

‘‘तब तो मैं जरूर आऊंगा. देखूंगा कि उस की गैरहाजिरी में आप मेरा स्वागत कैसे करती हैं?’’

‘‘जरूर आइएगा. देखिएगा, मैं आप को निराश नहीं होनें दूंगी. तनमन से स्वागत करूंगी. जो कुछ चाहिएगा, वह सबकुछ दूंगी. घर जा कर सौरभ कावेरी की बात भूल गया. भूलता क्यों नहीं? उस की बात को उस ने मजाक जो समझ लिया था.’’

एक हफ्ता बाद जयदेव के कहने पर सौरभ उस के घर फिर गया. मौका पा कर कावेरी ने उस से कहा, ‘‘आप तो अपने दोस्त की गैरहाजिरी में आने वाले थे? मैं इंतजार कर रही थी. आप आए क्यों नहीं? कहीं आप मुझ से डर तो नहीं गए?’’

सौरभ सकपका गया. वह कावेरी से कुछ कहता, उस से पहले वहां जयदेव आ गया. फिर तो चाह कर भी वह कुछ कह न सका.

उस के बाद सौरभ यह सोचने पर मजबूर हो गया कि कहीं कावेरी उसे चाहती तो नहीं है?

बेशक कावेरी उस की पत्नी से ज्यादा खूबसूरत थी, मगर वह उस के दोस्त की पत्नी थी, इसलिए वह कावेरी पर बुरी नजर नहीं रखना चाहता था. फिर भी वह उस के मन की चाह लेना चाहता था.

3 दिन बाद ही सुबहसवेरे दफ्तर से छुट्टी ले कर सौरभ कावेरी के घर पहुंच गया.

सौरभ को आया देख कावेरी चहक उठी, ‘‘मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरे रूप का जादू आप पर इतनी जल्दी असर करेगा.’’

सौरभ ने भी झट से कह दिया, ‘‘आप का जादू मुझ पर चल गया है, तभी तो मैं दोस्त की गैरहाजिरी में आया हूं.’’

‘‘आप ने बहुत अच्छा किया. देखिएगा, मैं आप को निराश नहीं करूंगी. मैं जानती हूं कि आप अपनी पत्नी से खुश नहीं हैं, वरना कालगर्ल के पास जाते ही क्यों? मैं आप को वह सबकुछ दे सकती हूं, जो अपनी पत्नी से आप को नहीं मिला.’’

सौरभ हैरान रह गया. उस ने कभी नहीं सोचा कि कोई औरत इस तरह खुल कर अपने दिल की बात किसी मर्द से कह सकती है.

सौरभ कावेरी से कुछ कहता, उस से पहले ही वह बोली, ‘‘आप मुझे बेहया समझ रहे होंगे. मगर ऐसी बात नहीं है. बात यह है कि मैं आप को अपना दिल दे बैठी हूं…

‘‘दरअसल, जिस तरह आप अपनी पत्नी से संतुष्ट नहीं हैं, उसी तरह मैं भी अपने पति से संतुष्ट नहीं हूं. जब मैं ने आप को देखा, तो न जाने क्यों मुझे लगा कि अगर आप मेरी जिंदगी में आ जाएंगे, तो मेरी प्यास भी बुझ जाएगी.’’

कावेरी को सौरभ ने बुरी नजर से कभी नहीं देखा था. मगर कावेरी ने जब उसे अपने दिल की बात कही, तो उसे लगा कि उस से संबंध बनाने में कोई बुराई नहीं है.

उस के बद सौरभ ने अपनेआप को आगे बढ़ने से रोका नहीं. झट से उस ने कावेरी को बांहों में भर लिया. उस के होंठों और गालों को चूम लिया.

कावेरी ने कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद वह बोली, ‘‘आप बैडरूम में चलिए, मैं दरवाजा बंद कर के आती हूं.’’

सौरभ बैडरूम में चला गया. दरवाजा बंद कर कावेरी बैडरूम में आई, तो सौरभ ने बगैर देर किए उसे बांहों में भर लिया. उस के बाद दोनों अपनीअपनी हसरतों को पूरा करने में लग गए.

सौरभ जैसा चाहता था, कावेरी ने ठीक उसी तरह से उस की हवस को शांत किया.

सौरभ ने कावेरी की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘मुझे आप से जो प्यार मिला है, वह मैं कभी नहीं भूल सकता.’’

‘‘यही हाल मेरा भी है सौरभजी. मेरी शादी हुए 5 साल बीत गए हैं. देखने में मेरे पति हट्टेकट्टे भी हैं, मगर उन से मैं कभी संतुष्ट नहीं हुई. अब मैं आप से एक गुजारिश करना चाहिती हूं.’’

‘‘गुजारिश क्यों? हुक्म कीजिए. मैं आप की हर बात मानूंगा,’’ कहते हुए सौरभ ने कावेरी के होंठों को चूम लिया.

‘‘आप शादीशुदा हैं. मैं भी शादीशुदा हूं. हम चाह कर भी कभी एकदूसरे से शादी नहीं कर सकते, लेकिन मैं चाहती हूं कि हम दोनों का संबंध जिंदगीभर बना रहे. हम दोनों कभी जुदा न हों. क्या ऐसा हो सकता है?’’

कावेरी ने जैसे उस के दिल की बात कह दी हो, इसलिए झट से उस ने कहा, ‘‘क्यों नहीं हो सकता. मैं भी तो यही चाहता हूं.’’

उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता, सौरभ दफ्तर न जा कर कावेरी के घर चला जाता था.

इस तरह 4 महीने बीत गए. इस बीच सौरभ ने 7-8 बार कावेरी से हमबिस्तरी की. हर बार कावेरी ने उसे पहले से ज्यादा मस्ती दी.

सौरभ ने यह मान लिया था कि कावेरी के साथ उस का संबंध जिंदगीभर चलेगा. दोनों के बीच कोई दीवार नहीं आएगी, मगर उस का सोचा नहीं हुआ. आज जो कुछ भी हुआ, उस की सोच से परे था.

सौरभ अपने घर आया, तो वह बहुत परेशान था. अनीता ने उस की परेशानी ताड़ ली. अनीता ने उस से पूछ लिया, ‘‘क्या बात है? आप बहुत परेशान दिखाई दे रहे हैं?’’

सौरभ ने बहाना बना दिया, ‘‘परेशान नहीं हूं. थका हुआ हूं.’’

सौरभ ने अनीता पर शक तो नहीं होने दिया, मगर उसी दिन से उस की सुखशांति छीन गई. दिनरात वह इस फिराक में रहने लगा कि 3 लाख रुपए का इंतजाम वह कैसे करे?

25 दिन बीत गए, मगर रुपए का इंतजाम नहीं हुआ, तो सौरभ ने मकान पर रुपए लेने का फैसला किया.

सौरभ मकान पर रुपए लेता, उस से पहले अनीता को सबकुछ मालूम हो गया. वह चुप रहने वालों में से नहीं थी.  वह सौरभ से बोली, ‘‘मुझे पता चला है कि आप मकान पर 3 लाख रुपए लेना चाहते हैं. सच बताइए कि रुपए की ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी कि आप को मकान गिरवी रखना पड़ रहा है? कहीं आप किसी बजारू लड़की के चक्कर में तो नहीं पड़ गए हैं.’’

सौरभ घबरा गया. उस ने सच छिपाने की बहुत कोशिश की, लेकिन अनीता के सामने उस की एक न चली.

‘‘मैं जानती थी कि आप का शौक एक दिन आप को डुबो देगा.’’

‘‘कैसा शौक?’’ सौरभ हकला गया.

‘‘ब्लू फिल्म की तरह हरकतें करने का शौक,’’ सौरभ हैरान रह गया.

‘‘मैं जानती हूं कि आप अपना शौक पूरा करने के लिए कालगर्ल के साथ होटल में गए थे. वहां रेड पड़ी और पुलिस ने आप को गिरफ्तार कर लिया. अगले दिन आप के दोस्त ने आप को जमानत पर छुड़ाया. मैं ने आप से इसलिए कुछ नहीं कहा कि शर्मिंदगी से आप मुझ से नजरें नहीं मिला पाएंगे.’’

अब सौरभ ने भी अपनी गलती मानने मे देर नहीं की. कावेरी के साथ अपने नाजायज संबंध के बारे में सबकुछ बताने के बाद अनीता से उस ने माफी मांगी. उस से कहा कि वह ऐसी गलती नहीं करेगा.

‘‘मैं तो आप को माफ करूंगी ही, क्योंकि मैं अपना घर तोड़ना नहीं चाहती. मगर सवाल है कि कावेरी के चक्रव्यूह से आप कैसे निकलेंगे?’’

‘‘कैसा चक्रव्यूह?’’

‘‘आप अभी तक यही समझ रहे हैं कि कावेरी के साथ हमबिस्तरी करते समय उस के पति ने आप को अचानक देख लिया और आप के साथ सौदा कर लिया?’’

‘‘मैं तो यही समझ रहा हूं,’’ सौरभ बोला.

लेकिन सच यह नहीं है. मेरी सोच यह है कि कावेरी और उस के पति ने मिल कर आप को फंसाया है. अगर ऐसा नहीं होता, तो उस का पति आप के साथ सौदा क्यों करता? पत्नी की बेवफाई देख कर उसे अपने घर से निकाल देता या माफ कर देता. आप के साथ सौदा किसी भी हाल में नहीं करता.’’

कुछ सोचते हुए अनीता ने कहा, ‘‘जो होना था, वह तो हो गया. अब आप चिंता मत कीजिए. कावेरी के चक्रव्यूह से मैं आप को निकालूंगी.’’

‘‘आप तो जानते ही हैं कि मेरा मौसेरा भाई जयंत पुलिस इंस्पैक्टर है. जब उसे सारी बात बताऊंगी, तो वह हकीकत का पता लगा लेगा और सबकुछ ठीक भी कर देगा.’’

उसी दिन अनीता सौरभ के साथ जयंत से मिली. सारी बात जानने के बाद जयंत अगले दिन से छानबीन में जुट गया.

4 दिन बाद जयंत ने अनीता को फोन पर कहा, ‘‘छानबीन करने के बाद मैं ने जयदेव और कावेरी को गिरफ्तार कर लिया है. दोनों ने अपनाअपना गुनाह कबूल कर लिया है. अब जीजाजी को किसी से डरने की जरूरत नहीं है.

‘‘दरअसल, जयदेव और कावेरी का यही ध्ांधा था. कोलकाता से पहले दोनों पटना में थे. वहां कई लोगों को अपना शिकार बनाने के बाद जयदेव ने अपना ट्रांसफर कोलकाता करा लिया था.

‘‘जब जीजाजी को कालगर्ल के साथ पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, तो उन के दफ्तर के ही किसी ने थाने में उन्हें देख लिया और दफ्तर में सब को बता दिया.

‘‘दफ्तर बदनाम हो गया, तो जयदेव ने उन्हें अपना अगला शिकार बनाने का फैसला कर लिया.

‘‘अपनी योजना के तहत जयदेव ने पहले जीजाजी से दोस्ती की, उस के बाद उन्हें अपनी पत्नी कावेरी से मिलाया.

‘‘उस के बाद कावेरी ने अपना खेल शुरू किया. उस ने जीजाजी पर अपने रूप का जादू चलाया और उन के साथ वही सब किया, जो अब तक औरों के साथ करती आई थी.’’

जयदेव और कावेरी की सचाई जानने के बाद सौरभ ने राहत की सांस ली. अनीता को अपनी बांहों में भर कर उस की खूब तारीफ की.

अनीता ने भी सौरभ को निराश नहीं किया. रात में बिस्तर पर उस ने शर्म छोड़ कर उस के साथ वैसा ही सबकुछ किया, जिस की चाह में वह कावेरी के चंगुल में फंस गया था.

भरपूर मजे के बाद सौरभ ने अनीता से कहा, ‘‘तुम तो सबकुछ कर सकती हो, फिर उस दिन जब मैं ने ऐसा करने के लिए कहा था, तो मना क्यों किया था?’’

‘‘सिर्फ मैं ही नहीं, हर पत्नी अपने पति के साथ ऐसा कर सकती है, मगर सभी ऐसा करती नहीं हैं, कुछ ही करती हैं.’’

‘‘जिस तरह मेरा मानना है कि औरतों को शर्म के दायरे में रह कर हमबिस्तरी करनी चाहिए, उसी तरह बहुत सी पत्नियां ऐसा मानती हैं. इसी वजह से बहुत सी पत्नियां ब्लू फिल्म की तरह हरकतें नहीं करतीं.’’

‘‘मैं ने आज शर्म की दीवार तोड़ कर आप का मनचाहा तो कर डाला, मगर बराबर नहीं कर सकती, क्यों कि मुझे बेहद शर्म आती है.’’

अनीता के चुप होते ही सौरभ ने कहा, ‘‘अब इस की जरूरत भी नहीं है. मैं समझ गया कि गलत चाहत में लोग बरबाद हो जाते हैं. मैं अपनी गलत चाहत को आदत नहीं बनाना चाहता, इसलिए हमबिस्तरी के समय वैसा ही सबकुछ चलेगा, जैसा अब तक चलता रहा है.’’

अनीता खुशी से सौरभ से लिपट गई. सौरभ ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया.

Drone Attack : ड्रोन वारफेयर एक नई चुनौती  

Drone Attack : वर्तमान युद्ध, सेना के आकार और पैसे से नहीं, बल्कि तकनीक और बुद्धिमत्ता से लड़े जा रहे हैं, जिस में ड्रोन युद्ध के मैदान का ऐसा खतरनाक शिकारी बन गया है जिस का निशाना अचूक है और नुकसान भयानक.

एक समय था जब भारीभरकम टैंक और तोपें दो देशों के बीच युद्ध का परिणाम तय करती थीं. एकएक टैंक के पीछे करोड़ों की लागत लगती थी. इन का मजबूत कवच और भारी मारक क्षमता युद्ध के मैदान में दुश्मन को छठी का दूध याद दिला देती थी. पर इन को ऊंचीऊंची पहाड़ियों पर चढ़ाना, ऊबड़खाबड़ रास्तों से निकालना भारी मशक्कत का काम था.

पहाड़ी या दलदली भूमि पर फंसने पर मोटीमोटी रस्सियों से बांध कर इन्हें खींचा जाता था. इस के लिए टैंकों के साथ पैदल सेना भी चलती थी. कई बार दुश्मन की तरफ से फेंका गया गोला टैंक समेत चालक और सहायक जवानों को भी ढेर कर देता था. तब लड़ाई आमनेसामने की होती थी, पर आज ड्रोन जैसे छोटे से खिलौनेनुमा उड़नयान ने युद्ध का तरीका ही बदल दिया है.

वर्तमान युद्ध सेना के आकार और पैसे से नहीं, बल्कि तकनीक और बुद्धिमत्ता से लड़े जा रहे हैं, जिस में ड्रोन युद्ध के मैदान का ऐसा खतरनाक शिकारी बन गया है जिस का निशाना अचूक है और नुकसान भयानक.

हाल ही में यूक्रेन ने रूस में 5000 किलोमीटर भीतर घुस कर ड्रोन हमले किए और उन के कई एयरबेस तबाह कर दिए. इन हमलों में लो कौस्ट ड्रोन का इस्तेमाल किया गया. यूक्रेन ने अपने सैकड़ों ड्रोन को चुपके से एक ट्रक में भर कर रूस के भीतरी भागों तक पहुंचाया और निश्चित जगह पहुंच कर ट्रक की ऊपरी छत रिमोट कंट्रोल द्वारा हट गई और उस में से अनेक ड्रोन तिलचट्टों के माफिक निकलने लगे. बिना चालक वाले इन ड्रोन ने निश्चित स्थानों पर जबरदस्त बमवर्षा की और भारी तबाही मचाई. रिमोट कंट्रोल से 100 से ज्यादा ड्रोन एक साथ उड़ाए गए, जिन का निशाना बने रूस के वे एयरबेस जहां परमाणु हथियार ले जाने वाले बमवर्षक तैनात थे. इस हमले को नाम दिया गया – “स्पाइडर वेब औपरेशन”.

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन के इस ड्रोन हमले से हतप्रभ रह गए. यूक्रेन ने साफ कर दिया कि अब रूस के वे इलाके, जिन्हें अब तक पूरी तरह ‘सुरक्षित’ माना जाता था, वहां भी खतरा पहुंच सकता है और उसे रोक पाना आसान नहीं होगा. सिर्फ 3 लाख के FPV ड्रोन ने 300 करोड़ के TU-95 बौम्बर को ढेर कर दिया. साफ है कि आने वाले समय में युद्ध शक्ति, पैसा, संख्या से नहीं बल्कि टैक्नोलौजी से जीता जाएगा.

FPV ड्रोन यानी “फर्स्ट पर्सन व्यू” ड्रोन, आज युद्ध के मैदान का सब से खतरनाक हथियार है, जिसे हजारों किलोमीटर दूर बैठ कर संचालित किया जाता है. ये बौम्बर्स हजारों किलोमीटर दूर तक जा कर परमाणु बम गिरा सकते हैं. रूस व यूक्रेन युद्ध को ढाई साल होने को आ रहे हैं.

तमाम कोशिशों के बावजूद दुनिया की महाशक्ति रहा रूस छोटे से यूक्रेन पर विजय हासिल नहीं कर पा रहा है. यह अत्याधुनिक हथियारों की वजह से है. वर्ष 2025 की शुरुआत में यूक्रेन ने दावा किया था कि वह हर महीने करीब 2 लाख ड्रोन तैयार कर रहा है. इन ड्रोन में 4–5 किलो तक विस्फोटक लगाए जा सकते हैं और इन्हें टैंक, आर्टिलरी, कमांड पोस्ट या स्ट्रैटेजिक बौम्बर्स तक को निशाना बनाने में इस्तेमाल किया जा रहा है.

पिछले दो सालों में ये ड्रोन यूक्रेन की जंग की ताकत का सब से बड़ा सहारा बन गए हैं. पिछले साल यूक्रेनी सरकार ने देश में ही 10 लाख FPV ड्रोन तैयार करने का लक्ष्य तय किया था. इन ड्रोन में छोटे वारहेड होते हैं, लेकिन ये टैंकों और अन्य हाईटेक सैन्य उपकरणों को तबाह करने में पूरी तरह सक्षम हैं. लंदन स्थित डिफैंस और सिक्योरिटी थिंक टैंक RUSI की एक रिपोर्ट के मुताबिक रूस के नुकसान पहुंचाए गए या नष्ट किए गए सैन्य सिस्टम में करीब 70 फीसदी हिस्सेदारी ड्रोन की है.

यूक्रेन में इस्तेमाल हो रहे R18 औक्टोकाप्टर, जिसे ‘Aerorozvidka’ नाम की संस्था ने बनाया है, खासतौर पर रात में मिशन के लिए तैयार किया गया है. इस में थर्मल कैमरा लगा होता है और ये 13 किमी तक उड़ सकता है. इस के अलावा ‘बाबा यागा’ जैसे लो कौस्ट लेकिन हाई इम्पैक्ट ड्रोन भी बड़ी संख्या में इस्तेमाल किए जा रहे हैं.

FPV तकनीक तो नई है, लेकिन ड्रोन से हमला कोई आज की बात नहीं. 1944 में, अमेरिकी नौसेना की एक सीक्रेट यूनिट STAG-1 ने जापानी सेना के खिलाफ रेडियोकंट्रोल “TDR-1” ड्रोन का इस्तेमाल किया था. वह भी किसी आधुनिक गेम की तरह थर्ड पर्सन व्यू में औपरेट होता था. तब से अब तक, तकनीक ने युद्ध की शक्ल ही बदल दी है.

आज का युद्ध पैसा और संख्या से नहीं, टैक्नोलौजी और इनोवेशन से जीता जाएगा. FPV ड्रोन इस का सब से बड़ा उदाहरण हैं जो छोटे, सस्ते, मगर बेहद घातक हैं. एक साधारण FPV ड्रोन की लागत महज $500–$1000 यानि 40 हजार से 1 लाख रुपए है. इस में भी आधुनिक $4,000 यानि 3-4 लाख रुपए का आता है. जबकि एक रूसी T-72 टैंक की कीमत $3–4 मिलियन यानि 34 से 40 करोड़ रुपए होती है.

यूक्रेन ने जिस तरह से रूस पर ड्रोन हमले कर तबाही मचाई है इस से भारत को सीख लेने की आवश्यकता है. इन हमलों से पता चलता है कि भारत को अपने ड्रोन सिस्टम को कितना मजबूत करने की जरूरत है. सीमा पर काउंटर ड्रोन सिस्टम की तैनाती के बावजूद, देश के अंदरूनी हिस्सों में भी सुरक्षा बढ़ाना जरूरी है. अब सिर्फ जमीनी निगरानी से काम नहीं चलेगा, हमें अपनी आंखें आसमान में भी गड़ा कर रखनी होंगी.

भारत में ड्रोन वारफेयर एक नई चुनौती के रूप में बीते दो वर्षों में उभरा है. पहलगाम हमले के बाद जम्मू से ले कर पंजाब तक के क्षेत्र में पाकिस्तान से आने वाले ड्रोन की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है. यह ड्रोन भारत की सुरक्षा के लिए नई चुनौती है. यह सेना को जमीन पर निगरानी के बाद अब आसमान पर भी पैनी नजर बनाए रखने के लिए विवश करती है. बिना किसी दुश्मन सैनिक के एक डिवाइस किस तरह हमारी पूरी सुरक्षा प्रणाली में सेंध लगा सकती है इस का उदाहरण यूक्रेन सामने रख चुका है.

Hindi Kahani : सहेली का बौयफ्रेंड

Hindi Kahani : रात के साढ़े 10 बज रहे थे. तृप्ति खाना खा कर पढ़ने के लिए बैठी थी. वह अपने जरूरी नोट रात में 11 बजे के बाद ही तैयार करती थी. रात में गली सुनसान हो जाती थी. कभीकभार तो कुत्तों के भूंकने की आवाज के अलावा कोई शोर नहीं होता था.

तृप्ति के कमरे का एक दरवाजा बनारस की एक संकरी गली में खुलता था. मकान मालकिन ऊपर की मंजिल पर रहती थीं. वे विधवा थीं. उन की एकलौती बेटी अपने पति के साथ इलाहाबाद में रहती थी.

नीचे छात्राओं को देने के लिए 3 छोटेछोटे कमरे बनाए गए थे. 2 कमरों के दरवाजे अंदर के गलियारे में खुलते थे. उन दोनों कमरों में भी छात्राएं रहती थीं.

 

दरवाजा बाहर की ओर खुलने का एक फायदा यह था कि तृप्ति को किसी वजह से बाहर से आने में देर हो जाती थी तो मकान मालकिन की डांट नहीं सुननी पड़ती थी.

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया. तृप्ति किसी अनजाने डर से सिहर उठी. उसे लगा, कोई गली का लफंगा तो नहीं. वैसे, आज तक ऐसा नहीं हुआ था. रात 10 बजे के बाद गली की ओर खुलने वाले दरवाजे को किसी ने नहीं खटखटाया था.

कभीकभार बगल वाली छात्राएं कुछ पूछने के लिए साइड वाला दरवाजा खटखटा देती थीं. उन दोनों से वह सीनियर थी, इसलिए वे भी रात में ऐसा कभीकभार ही करती थीं.

पर जब ‘तृप्ति, दरवाजा खोलो… मैं माधुरी’ की आवाज सुनाई पड़ी, तो तृप्ति ने दरवाजे की दरार से झांक कर देखा. यह माधुरी थी. उस के बगल के गांव की एक सहेली. मैट्रिक तक दोनों साथसाथ पढ़ी थीं. बाद में तृप्ति बनारस आ गई थी. बीए करने के बाद बीएचयू की ला फैकल्टी में एडमिशन लेने के लिए वह एडमिशन टैस्ट की तैयारी कर रही थी.

माधुरी बगल के कसबे में ही एक कालेज से बीए करने के बाद घर बैठी थी. पिता उस की शादी करने के लिए किसी नौकरी करने वाले लड़के की तलाश में थे.

‘‘अरे तुम… इतनी रात गए… कहां से आ रही हो?’’ हैरान होते हुए तृप्ति ने पूछा.

‘‘बताती हूं, पहले अंदर तो आने दे,’’ कुछ बदहवास और चिंतित माधुरी आते ही बैड पर बैठ गई.

‘‘एक गिलास पानी तो ला… बहुत प्यास लगी है,’’ माधुरी ने इतमीनान की सांस लेते हुए कहा. ऐसा लग रहा था मानो वह दौड़ कर आई थी.

तृप्ति ने मटके से पानी निकाल कर उसे देते हुए कहा, ‘‘गलियां अभी पूरी तरह सुनसान नहीं हुई हैं… वरना अब तक तो इस गली में कुत्ते भी भूंकना बंद कर देते हैं,’’ फिर उस ने माधुरी की ओर एक प्लेट में बेसन का लड्डू बढ़ाते हुए कहा, ‘‘पहले कुछ खा ले, फिर पानी पीना. लगता है, तुम दौड़ कर आ रही हो?’’

माधुरी ने लड्डू खाते हुए कहा, ‘‘इतनी संकरी गली में कमरा लिया है कि तुम्हारे यहां कोई पहुंच भी नहीं सकता. यह तो मैं पिछले महीने ही आई थी इसलिए भूली नहीं, वरना जाने इतनी रात को अब तक कहां भटकती रहती.’’

‘‘पहले मैं गर्ल्स होस्टल में रहना चाहती थी, पर अगलबगल में कोई ढंग का मिल नहीं रहा था, महंगा भी बहुत था. यह बहुत सस्ते में मिल गया. यहां बहुत शांति रहती है, इसलिए इम्तिहान की तैयारी के लिए सही लगा. बस, आ गई. अगर मेरा एडमिशन बीएचयू में हो जाता है, तो आगे से वहीं होस्टल में रहूंगी.

‘‘अच्छा, अब तो बता कैसे आई हो? इतना बड़ा बैग… लगता है, काफी सामान भर रखा है इस में. कहीं जाने का प्लान है क्या?’’ तृप्ति ने पूछा.

‘‘हां, बताती हूं. अब एक कप चाय तो पिला,’’ माधुरी बोली.

‘‘खाना खाया है या बनाऊं… लेकिन, तुम ने खाना कहां से खाया होगा. घर से सीधे आ रही हो या…’’

‘‘खाना तो नहीं खाया है. मौका ही नहीं मिला, लेकिन रास्ते में एक दुकान से ब्रैड ले ली थी. अब इतनी रात को खाने की चिंता छोड़ो. ब्रैडचाय से काम चला लूंगी मैं,’’ माधुरी ने कहा.

चाय और ब्रैड खाने के बाद माधुरी की थकान तो मिट गई थी, पर उस के चेहरे पर अब भी चिंता की लकीरें साफ दिखाई पड़ रही थीं.

माधुरी बोली, ‘‘तृप्ति, तुम्हें याद है, जब हम लोग 9वीं जमात में थे, तब सौरभ नाम का एक लड़का 10वीं जमात में पढ़ता था. वही लंबी नाक वाला, गोरा, सुंदर, जो हमेशा मुसकराता रहता था…’’

‘‘हां, जिस के पीछे कई लड़कियां भागती थीं… और जिस के पिता की गहनों की मार्केट में बड़ी सी दुकान थी,’’ तृप्ति ने याद करते हुए कहा.

‘‘हां, वही.’’

‘‘पर, बात क्या है… तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘वही तो मैं बता रही हूं. वह 2 बार मैट्रिक में फेल हुआ तो उस के पिता ने उस की पढ़ाई छुड़वा कर दुकान पर बैठा दिया. पिछले साल भैया की शादी थी. मां भाभी के लिए गहनों के लिए और्डर देने जाने लगीं तो साथ में मुझे भी ले लिया.

‘‘मैं गहनों में बहुत काटछांट कर रही थी, इसलिए उस के पिता ने गहने दिखाने के लिए सौरभ को लगा दिया, तभी उस ने मुझ से पूछा था, ‘तुम माधुरी हो न?’

‘‘मैं ने कहा था, ‘हां, पर तुम कैसे जानते हो?’

‘‘उस ने बताया, ‘भूल गई क्या… हम दोनों एक ही स्कूल में तो पढ़ते थे.’

‘‘मैं उसे पहचानती तो थी, लेकिन जानबूझ कर अनजान बन रही थी. फिर उस ने मेरी ओर देखा तो शर्म से मेरी आंखें झुक गईं. उस दिन गहनों के और्डर दे कर हम लोग घर चले आए, फिर एक हफ्ते बाद मां के साथ मैं भी गहने लेने दुकान पर गई थी.

‘‘मां ने मुझ से कहा था, ‘दुकानदार का बेटा तुम्हारा परिचित है, तो दाम में कुछ छूट करा देना.’

‘‘मैं ने कहा था, ‘अच्छा मां, मैं उस से बोल दूंगी.’

‘‘पर, दाम उस के पिताजी ने लगाए. उस ने पिता से कहा, तो कुछ कम हो गया… घर आने पर मालूम हुआ कि भाभी के लिए जो सोने की अंगूठी खरीदी गई थी, वह नाप में छोटी थी. मां बोलीं, ‘माधुरी, कल अंगूठी ले जा कर बदलवा देना, मुझे मौका नहीं मिलेगा. कल कुछ लोग आने वाले हैं.’

‘‘मैं दूसरे दिन जब दुकान पर पहुंची तो सौरभ के पिताजी नहीं थे. मुझे देख कर वह मुसकराते हुए बोला, ‘आओ माधुरी, बैठो. आज क्या और्डर करना है?’

‘‘मैं ने कहा था, ‘कुछ नहीं… बस, यह अंगूठी बदलवानी है. भाभी की उंगली में नहीं आएगी. नाप में बहुत छोटी है.’‘‘वह बोला था, ‘कोई बात नहीं,

इसे तुम रख लो. भाभी के लिए मैं दूसरी दे देता हूं.’

‘‘मैं ने छेड़ते हुए कहा था, ‘बड़े आए देने वाले… दाम तो कम कर नहीं सकते… मुफ्त में देने चले हो.’

‘‘यह सुन कर उस ने कहा था, ‘कल पिताजी मालिक थे, आज मैं हूं. आज मेरा और्डर चलेगा.’

‘‘सचमुच ही उस ने वही किया, जो कहा. मैं ने बहुत कोशिश की, लेकिन उस ने अंगूठी वापस नहीं ली. भाभी के नाप की वैसी ही दूसरी अंगूठी भी दे दी.

‘‘मैं ने डरतेडरते कहा था, ‘इस को वापस लेने से इनकार कर दिया मां.’

‘‘यह सुन कर मां ने कठोर आवाज में पूछा था, ‘किस ने? उस छोकरे ने या उस के बाप ने?’

‘‘मैं ने कहा था, ‘उस के पिताजी नहीं थे, आज वही था.’

‘‘मां ने कहा था, ‘अंगूठी निकाल दे. कल मैं लौटा आऊंगी. बेवकूफ लड़की, तुम नहीं जानती, यह सुनार का छोकरा तुझ पर चारा डाल रहा है. उस की मंशा ठीक नहीं है. अब आगे से उस की दुकान पर मत जाना.’

‘‘मां की बात मुझे बिलकुल नहीं सुहाई. पिछली बार जब मैं उस की दुकान पर गई थी तब तो दाम कम कराने के लिए उसी से पैरवी करवा रही थीं. अब जब इतना बड़ा उपहार अपनी इच्छा से दिया तो नखरे कर रही हैं.

‘‘सच कहूं तृप्ति, मां के इस बरताव से मेरा सौरभ के प्रति और झुकाव बढ़ गया. उस दिन के बाद से मैं उस की दुकान पर जाने का बहाना ढूंढ़ने लगी.

 

‘‘एक दिन मौका मिल ही गया. बड़े वाले जीजाजी घर आए थे. मां ने जब भाभी के लिए खरीदे गए गहनों को दिखाया तो वे बोले, ‘सुनार ने वाजिब दाम लगाया है. मुझे भी उपहार में देने के लिए एक अंगूठी की जरूरत है. सलहज की उंगली का नाप आप के पास है ही, इस से थोड़ी अलग डिजाइन की अंगूठी मैं भी उसी दुकान से ले लेता हूं.’

‘‘मां ने कहा था, ‘माधुरी साथ चली जाएगी. दुकानदार का लड़का इस का परिचित है. कुछ छूट भी कर देगा.’

‘‘मां ने अंगूठी लौटाने वाली बात को जानबूझ कर छिपा लिया था. वे नहीं चाहती थीं कि मुझ पर किसी तरह का आरोप लगे. मेरी शादी के लिए बाबूजी किसी नौकरी वाले लड़के की तलाश में थे.

‘‘दूसरे दिन जीजाजी के साथ जब मैं उस की दुकान पर पहुंची तब सौरभ किसी औरत को अंगूठी दिखा रहा था. मुझे देखते ही वह मुसकराया और बैठने के लिए इशारा किया. जब जीजाजी ने अंगूठी दिखाने को कहा तो उस के पिताजी ने उसी की ओर इशारा कर दिया.

‘‘तभी कोई फोन आया और उस के पिताजी बोले, ‘2-3 घंटे के लिए मैं कुछ जरूरी काम से बाहर जा रहा हूं. ये लोग पुराने ग्राहक हैं, इन का ध्यान रखना.’

‘‘यह सुन कर सौरभ के चेहरे पर मुसकान थिरक गई. वह बोला, ‘जी बाबूजी, मैं सब संभाल लूंगा.’’

‘‘जीजाजी ने एक अंगूठी पसंद की और उस का दाम पूछा. मैं ने कहा, ‘मेरे जीजाजी हैं.’

‘‘मेरा इशारा समझ कर सौरभ ने कहा, ‘फिर तो जो आप दे दें, मुझे मंजूर होगा.’

‘‘जीजाजी ने बहुत कहा, लेकिन वह एक ही रट लगाए रहा, ‘आप जो देंगे, ले लूंगा. आप लोग पुराने ग्राहक हैं. आप लोगों से क्या मोलभाव करना है.’

‘‘जीजाजी धर्मसंकट में थे. उन्होंने अपना डैबिट कार्ड बढ़ाते हुए कहा, ‘अब मैं भी मोलभाव नहीं करूंगा. आप जो दाम भर देंगे, स्वीकार कर लूंगा.’

‘‘खैर, जीजाजी ने जो सोचा था, उस से कम दाम उस ने लगाया. उस ने हम लोगों के लिए मिठाई मंगाई और जब जीजाजी मुंह धोने वाशबेसिन की ओर गए तो वही पुरानी अंगूठी मुझे जबरन थमाते हुए कहा था, ‘अब फिर न लौटाना… नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा.’

‘‘जीजाजी देख न लें, इसलिए मैं ने उस अंगूठी को ले कर छिपा लिया.

‘‘उस दिन के बाद हम दोनों मौका निकाल कर चोरीछिपे एकदूसरे से मिलते रहे. सौरभ से मालूम हुआ कि उस के पिताजी ने पिछले साल उस की शादी एक अमीर लड़की से दहेज के लालच में करा दी थी. लड़की तो सुंदर है, लेकिन गूंगीबहरी है. वह अपने मातापिता की एकलौती बेटी है. मां का देहांत हो चुका है. पिता ने अपनी जायदाद लड़की के नाम कर दी है. शहर में एक तिमंजिला मकान भी उस की नाम से है. उस मकान से हर महीने अच्छा किराया मिलता है. रुपयापैसा उसी के अकाउंट में जमा होता है. पिताजी ने भी गहनों की यह दुकान उस के नाम कर दी है.

‘‘तृप्ति, सौरभ मुझ पर इतना पैसा खर्च करने लगा कि मैं उसी की हो कर रह गई.’’

‘‘यानी तुम ने अपना जिस्म भी उसे सौंप दिया?’’ तृप्ति ने हैरान होते हुए पूछ लिया.

‘‘क्या करती… कई बार हम लोग होटल में मिले. कोई न कोई बहाना बना कर मैं सुबह निकलती और उस के बुक कराए होटल में पहुंच जाती. शुरू में तो काफी हिचकिचाई, पर बाद में उस के आग्रह के आगे झुक गई.’’

‘‘फिर…?’’ तृप्ति ने पूछा.

‘‘फिर क्या… मैं हर वक्त उसी के बारे में सोचने लगी. उस ने मुझे भरोसा दिलाया कि कुछ दिनों बाद वह अपनी पत्नी को तलाक दे देगा और मुझ से शादी कर लेगा.’’

‘‘और तुम्हें विश्वास हो गया?’’

‘‘उस ने शपथ ले कर कहा है. मुझे विश्वास है कि वह धोखा नहीं देगा.’’

‘‘अब बताओ कि तुम यहां कैसे आई हो?’’ तृप्ति ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘एक हफ्ता पहले जीजाजी आए थे. उन्होंने बाबूजी के सामने एक लड़के का प्रस्ताव रखा था. लड़का एक सरकारी दफ्तर में है, लेकिन बचपन से ही उस का एक पैर खराब है, इसलिए लंगड़ा कर चलता है. वह मुझ से बिना दहेज की शादी करने को तैयार है.

‘‘बाबूजी तैयार हो गए. मां ने विरोध किया तो कहने लगे, ‘एक पैर ही तो खराब है. सरकारी नौकरी है. उसे कई रियायतें भी मिलेंगी.

‘‘जब मां भी तैयार हो गईं तो मैं ने मुंह खोला, पर उन्होंने मुझे डांटते हुए कहा, ‘तुम्हें तो नौकरी मिली नहीं, अब मुश्किल से नौकरी वाला एक लड़का मिला है, तो जबान चलाती है.’

‘‘लेकिन, बात यह नहीं थी. किसी ने मां के कान में डाल दिया था कि मेरा सौरभ से मिलनाजुलना है. मां को तो उसी समय शक हो गया था, जब मैं अंगूठी बिना लौटाए आ गई थी.

‘‘इधर सौरभ मेरे लिए कुछ न कुछ हमेशा खरीदता रहता था. अब घर में क्याक्या छिपाती मैं. कोई न कोई बहाना बनाती, पर मां का शक दूर न होता. वे भी चाहती थीं कि किसी तरह जल्द से जल्द मेरी शादी हो जाए, ताकि समाज में उन की नाक न कटे.

‘‘मां का मुझ पर भरोसा नहीं रहा था. उन्होंने मुझे गांव से बाहर जाने की मनाही कर दी. उधर बाबूजी ने जीजाजी के प्रस्ताव पर हामी भर दी.

लड़के ने मेरा फोटो और बायोडाटा देख कर शादी करने का फैसला मुझ पर छोड़ दिया. बिना मुझ से सलाह लिए मांबाबूजी ने अगले महीने मेरी शादी की तारीख भी पक्की कर दी है.

‘‘मांबाबूजी का यह रवैया मुझे नागवार लगा, इसलिए मैं  सौरभ से इस संबंध में बात करना चाहती थी. मैं उस के साथ कहीं भाग जाना चाहती थी.

‘‘बहुत मुश्किल से किसी तरह दवा लाने का बहाना कर के मैं गांव से निकली. फोन पर सौरभ को सारी बातें बताईं. उस ने कहा कि मैं रात में बनारस पहुंच जाऊं. सुबह वहीं से मुंबई के लिए ट्रेन पकड़ लेंगे. उस ने रिजर्वेशन भी करा लिया है. उस का एक दोस्त वहां रहता है. मुझे दोस्त के पास रख कर वह लौट आएगा, फिर पत्नी को तलाक दे कर मुझ से शादी कर लेगा.’’

‘‘ओह… तो तुम मुंबई जाने की तैयारी कर के आई हो?’’ तृप्ति ने कहा.

‘‘हां.’’

‘‘माधुरी, तुम समझदार हो, इसलिए तुम को मैं समझा तो नहीं सकती… और फिर अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने का हक सभी को है, पर हम आपस में इस बारे में बात तो कर ही सकते हैं, जिस से सही दिशा मिल सके और तुम समझ पाओ कि जानेअनजाने में तुम से कोई गलत फैसला तो नहीं हो रहा है.’’

 

‘‘बोल तृप्ति, समय कम है, मुझे सुबह निकलना भी है. यह तो मुझे भी एहसास हो रहा है कि मैं कुछ गलत कर रही हूं. पर मेरे सामने इस के अलावा कोई रास्ता भी तो नहीं है,’’ माधुरी की चिंता उस के चेहरे से साफ झलक रही थी.

‘‘अच्छा माधुरी, सौरभ के पिता से गहनों की कीमत में छूट कराने के लिए तुम्हें सौरभ से कहना पड़ा था न?’’

‘‘हां.’’

‘‘सौरभ से तुम्हारी जानपहचान भी नहीं थी. सिर्फ इतना ही कि तुम्हारे साथ सौरभ भी एक ही स्कूल में पढ़ता था.’’

‘‘हां.’’

‘‘सौरभ के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी. काफी सारा पैसा उस के बैंक अकाउंट में था, जिसे खर्चने के लिए उसे अपने पिता की इजाजत लेने की जरूरत नहीं थी.’’

‘‘यह भी सही है.’’

‘‘सौरभ की शादी उस की मरजी से नहीं हुई थी. गूंगीबहरी होने के चलते अपनी पत्नी को वह पसंद नहीं करता था. कहीं न कहीं उस के मन में किसी दूसरी सुंदर लड़की की चाह थी.’’

‘‘तुम्हारी बातों में सचाई है. कई बार उस ने ऐसा कहा था. लेकिन तुम जिरह बहुत अच्छा कर लेती हो. देखना, तुम अच्छी वकील बनोगी.’’

‘‘वह खुद जवान और सुंदर है और तुम भी उस की सुंदरता की ओर खिंचने लगी थी.’’

‘‘यह भी सही है.’’

‘‘फिर अब तो तुम मानोगी कि तुम से ज्यादा तुम्हारी शारीरिक सुंदरता उसे अपनी ओर खींच रही थी और पहली ही झलक में उस ने तुम में अपनी हवस पूरी की इच्छा की संभावना तलाश ली होगी. और जब तुम ने उस की सोने की महंगी अंगूठी स्वीकार कर ली तब वह पक्का हो गया कि अब तुम उस के जाल में आसानी से फंस सकती हो.

‘‘फिर वही हुआ, अपने पैसे का उस ने भरपूर इस्तेमाल किया और तुम पर बेतहाशा खर्च किया, जिस के नीचे तुम्हारा विवेक भी मर गया. तुम्हारी समझ कुंठित हो गई और तुम ने अपनी जिंदगी का सब से बड़ा धन गंवा दिया, जिसे कुंआरापन कहते हैं.’’

माधुरी के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं.

‘‘बोल तृप्ति बोल, अपने मन की बात खुल कर मेरे सामने रख,’’ माधुरी उत्सुकता से उस की बातें सुन रही थी.

‘‘माधुरी, अब जिस सैक्स सुख के लिए मर्द शादी तक इंतजार करता है, वही उसे उस के पहले ही मिल जाए और उसे यह विश्वास हो जाए कि अपने पैसों से तुम्हारी जैसी लड़कियों को आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है, तो वह अपनी पत्नी को तलाक देने और दूसरी से शादी करने का झंझट क्यों मोल लेगा?

‘‘फिर वह अच्छी तरह जानता है कि उस की पत्नी की बदौलत ही उस के पास इतनी दौलत है और उसे तलाक देते ही उस को इस जायदाद से हाथ धोना पड़ जाएगा. मुकदमे का झंझट होगा, सो अलग.

‘‘मुझे तो लगता है, तुम किसी बड़ी साजिश की शिकार होने वाली हो. तुम से उस का मन भर गया है. अब वह तुम्हें अपने दोस्त को सौंपना चाहता है.’’

‘‘नहींनहीं…’’ अचानक माधुरी के मुंह से चीख सी निकली.

‘‘पर, इस सब में केवल सौरभ ही कुसूरवार नहीं है, तुम भी हो. तुम ने क्या सोच कर अंगूठी अपने जीजाजी और मां से छिपाई.

‘‘जीजाजी के सामने ही क्यों नहीं कहा कि सौरभ, यह अंगूठी तुम्हें उपहार में दे रहा है. मां को भी क्यों नहीं बताया कि लाख मना करने पर भी सौरभ ने अंगूठी नहीं ली.

‘‘अगर तुम ने ऐसा किया होता तो फिर सौरभ समझ जाता कि उस ने गलत जगह अपनी गोटी डाली है और वह आगे बात न बढ़ाता. जवानी और पैसे के लालच में तुम्हारी मति मारी गई थी. तुम गलत को सही और सही को गलत समझने लगी थी.

‘‘तुम्हारी मां गहनों में छूट चाहती थीं. हर ग्राहक की चाहत सस्ता खरीदने की होती है, उन की भी थी. लेकिन वे नाजायज कुछ नहीं चाहती थीं. उन्होंने धूप में अपने बाल सफेद नहीं किए हैं. उन को सौरभ की अंगूठी देने के पीछे की मंशा पता चल गई थी, इसीलिए ऐसे लोगों से दूर रहने की सलाह दी थी.

‘‘अब तुम्हारी शादी जिस लड़के से तय हुई है, तुम उस से बात करती. उस के स्वभाव, व्यवहार और चरित्र का पता लगाती. अगर पसंद नहीं आता तो साफ इनकार कर देती. यह एक सही कदम होता. इस के लिए कई लोग तुम्हारी मदद में आगे आ जाते. तुम्हारा आत्मविश्वास बना रहता और मनोबल भी ऊंचा रहता.’’

माधुरी बोली, ‘‘एक गिलास पानी पिला तृप्ति. अब मैं सब समझ गई हूं. कल घर लौट जाऊंगी. मां से बोल दूंगी, आगे की पढ़ाई के लिए समझने मैं तृप्ति के पास आई थी. मां पूछेंगी तो तुम भी यही कह देना.’’

तृप्ति ने कहा, ‘‘कल सुबह मैं चाची को फोन कर के बता दूंगी. सौरभ को अभी तुम बोल दो. अभी वह भी सोया न होगा. बनारस आने की तैयारी में लगा होगा. उस से कहो कि मैं अब गांव लौट रही हूं. मांबाबूजी का दिल दुखाना नहीं चाहती. तुम्हारा घर तोड़ कर किसी की आह नहीं लेना चाहती.

‘‘मुझे पूरा भरोसा है कि सौरभ खुश होगा कि बला उस के सिर से टलेगी.’’

तृप्ति ने सच ही कहा था. सौरभ अभी जाग रहा था और थोड़ी देर पहले ही मुंबई वाले अपने दोस्त से कहा था, ‘यार, अब इस बला को तुम संभालो. वह सुंदर है. खर्च करोगे तो तुम्हारी हो जाएगी. जब मन भर जाएगा तो कुछ दे कर उस के गांव वाली ट्रेन पर बिठा देना. अब मुझे एक दूसरी मिल गई है.’

सौरभ ने एक छोटा सा जवाब दिया था, ‘जैसी तुम्हारी इच्छा. मैं रिजर्वेशन कैंसिल करा देता हूं.’

माधुरी का मन अब हलका था, ‘‘तृप्ति, अब एक काम और कर दे. कल क्यों आज ही घर में फोन कर दे. अभी रात के 12 बजे हैं. मांबाबूजी बहुत चिंतित होंगे. मैं चुपके से यहां आ गई हूं.’’

‘‘अच्छा, बोलती हूं…’’ तृप्ति माधुरी की मां को समझा रही थी, ‘‘चिंता न करें आंटीजी. माधुरी मेरे पास आ गई है. वह आगे पढ़ना चाहती है. आप ने उस को घर से निकलने पर बंदिश लगा दी थी न, इसलिए… हां, उसे बता कर निकलना चाहिए था… अच्छा प्रणाम, माधुरी सो गई है, कल सुबह बात कर लेगी.’’

फोन कट गया. माधुरी को अपने किए पर पछतावा तो था, पर आगे साजिश में फंसने से बच जाने की खुशी भी थी. साथ ही, अपनी सहेली तृप्ति पर गर्व भी था. दोनों सहेलियां बात करतेकरते सो गईं.

लेखक – रमेश चंद्र सिंह

Hindi Story 2025 : ताजी कलियों का गजरा

Hindi Story 2025 :  दफ्तर से छुट्टी होते ही अमित बाहर निकला. पर उसे घर जाने की जल्दी नहीं थी, क्योंकि घर का कसैला स्वाद हमेशा उस के मन को बेमजा करता रहता था.

अमित की घरेलू जिंदगी सुखद नहीं थी. बीवी बातबात पर लड़ती रहती थी. उसे लगता था कि जैसे वह लड़ने का बहाना ढूंढ़ती रहती है, इसीलिए वह देर रात को घर पहुंचता, जैसेतैसे खाना खाता और किसी अनजान की तरह अपने बिस्तर पर जा कर सो जाता.

वैसे, अमित की बीवी देखने में बेहद मासूम लगती थी और उस की इसी मासूमियत पर रीझ कर उस ने शादी के लिए हामी भरी थी. पर उसे क्या पता था कि उस की जबान की धार कैंची से भी ज्यादा तेज होगी.

केवल जबान की बात होती तो वह जैसेतैसे निभा भी लेता, पर वह शक्की भी थी. उस की इन्हीं दोनों आदतों से तंग हो कर अमित अब ज्यादा से ज्यादा समय घर से दूर रहना चाहता था.

सड़क पर चलते हुए अमित सोच रहा था, ‘आज तो यहां कोई भी दोस्त नहीं मिला, यह शाम कैसे कटेगी? अकेले घूमने से तो अकेलापन और भी बढ़ जाता है.’

धीरेधीरे चलता हुआ अमित चौराहे के एक ओर बने बैंच पर बैठ गया और हाथ में पकड़े अखबार को उलटपलट कर देखने लगा, तभी उस के कानों में आवाज आई. ‘‘गजरा लोगे बाबूजी. केवल 10 रुपए का एक है.’’ अमित ने बगैर देखे ही इनकार में सिर हिलाया. पर उसे लगा कि गजरे वाली हटी नहीं है.

अमित ने मुंह फेर कर देखा. एक लड़की हाथ में 8-10 गजरे लिए खड़ी थी और तरस भरे लहजे में गजरा खरीदने के लिए कह रही थी.

अमित ने फिर कहा, ‘‘नहीं चाहिए. और गजरा किस के लिए लूं?’’

लड़की को कुछ उम्मीद बंधी. वह बोली, ‘‘किसी के लिए भी सही, एक ले लो बाबूजी. अभी तक एक भी नहीं बिका है. आप के हाथ से ही बोहनी होगी.’’

अमित ने गजरे और गजरे वाली को ध्यान से देखा. मैलीकुचैली मासूम सी लड़की खड़ी थी, पर उस की आंखें चमकीली थीं.

‘‘लाओ, एक दे दो,’’ अमित ने गजरों की ओर देखते हुए कहा. लड़की ने एक गजरा अमित के आगे बढ़ाया और उस ने जेब से 20 रुपए का नोट निकाल कर उसे दे दिया.

‘‘खुले पैसे तो नहीं हैं. यह पहली ही बिक्री है.’’

अमित ने एक पल रुक कर उस से कहा, ‘‘लाओ, एक और गजरा दे दो. 20 रुपए पूरे हो जाएंगे.’’

लड़की ने खुश हो कर एक और गजरा उसे दे दिया.

जब वह जाने लगी, तो अमित ने कहा, ‘‘जरा ठहरो, मैं 2 गजरों का क्या करूंगा? एक तुम ले लो. अपने बालों में लगा लेना,’’ अमित ने धीरे से मुसकरा कर गजरा उस की ओर बढ़ाया.

लड़की का चेहरा शर्म से लाल हो उठा. अमित को उस की आंखें बहुत काली और पलकें बहुत लंबी लगीं. तभी वह संभला और मुसकरा कर बोला, ‘‘लो, रख लो. मैं ने तो यों ही कहा था. अगर बालों में नहीं लगाना, तो किसी को बेच देना या फुटकर पैसे मिल जाएं, तो 10 रुपए वापस कर जाना.’’

लड़की ने उस गजरे को ले लिया और धीरेधीरे कदम बढ़ाते हुए वहां से चली गई. अमित कुछ देर वहीं बैठा रहा, फिर उठ कर इधरउधर घूमता रहा. जब अकेले दिल नहीं लगा, तो घर की ओर चल दिया.

जब वह घर पहुंचा, तो देखा कि बीवी पतीले में जोरजोर से कलछी घुमा रही थी.

अमित चुपचाप अपने कमरे में चला गया. कपड़े उतारते समय उसे गजरे का खयाल आया, तो उस ने सोचा कि जेब में ही पड़ा रहने दे. पर नहीं, बीवी ने देख लिया तो सोचेगी कि पता नहीं किसे देने के लिए खरीदा है. उस ने सोचा कि क्यों न जेब से निकाल कर कहीं और रख दिया जाए.

अमित के कदमों की आहट सुनते ही बीवी उठ खड़ी हुई थी. वह शाम से ही गुस्से से भरी बैठी थी कि आज तो इस का फैसला हो कर ही रहेगा कि वह क्यों देर से घर आता है. क्या इसी तरह जीने के लिए वह उसे ब्याह कर लाया है.

जब वह रसोई से बाहर आई, तो अमित के हाथ में गजरा देख कर एक पल के लिए ठिठक कर खड़ी हो गई.

हड़बड़ी में अमित गजरे वाला हाथ आगे बढ़ा कर बोला, ‘‘यह गजरा… यों ही ले आया हूं.’’

बीवी ने आगे बढ़ कर गजरा ले लिया, उसे सूंघा और फिर आईने के सामने खड़ी हो कर अपने जूड़े पर बांधने लगी. अमित सबकुछ अचरज भरी नजरों से देखता रहा.

तभी बीवी ने कहा, ‘‘खूब महकता है. सारा कमरा खुशबू से भर गया है. ताजा कलियों का बना लगता है.’’

‘‘हां, बिलकुल ताजा कलियों का है. तभी तो सोचा कि लेता चलूं.’’

कई दिनों के बाद उस दिन अमित ने गरमगरम भोजन और बीवी की ठंडी बातों का स्वाद चखा. दूसरे दिन वह शाम को छुट्टी होने पर दफ्तर से निकला, तो उस के साथ एक दोस्त भी था. दफ्तर में काम करते समय अमित ने सोचा था कि आज सीधे घर चला जाएगा, पर दोस्त के मिलने पर घर जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता था.

दोनों दोस्तों ने पहले एक रैस्टोरैंट में चाय पी, फिर वे बाजार में घूमते रहे. आखिर में वे समुद्र के किनारे जा बैठे. शाम को सूरज के डूबने की लाली से सागर में कई रंग दिख रहे थे.

अमित का ध्यान टूटा. वही कल वाली लड़की उस के सामने खड़ी गजरा लेने के लिए कह रही थी. अमित ने लड़की से गजरा ले लिया.

दोस्त ने कुछ हैरान हो कर कहा, ‘‘लगता है, भाभी आजकल खुश हैं. खूब गजरे खरीद रहे हो.’’

अमित मुसकराया, ‘‘बस यों ही खरीद लिया है. अब चलें, काफी देर हो गई है.’’

अमित घर पहुंचा, तो उस की बीवी जैसे उस के ही इंतजार में बैठी थी. वह बोली, ‘‘आज तो बड़ी देर कर दी आप ने. सोच रही थी, जरा बाजार घूमने चलेंगे. आते हुए शीला के घर भी हो आएंगे.’’

अमित ने बगैर कुछ बोले ही जेब से गजरा निकाल कर उस की ओर बढ़ाया. बीवी ने बड़े चाव से गजरा लिया और सूंघा. फिर आईने के सामने खड़ी हो कर उसे जूड़े पर बांधने लगी.

अमित ने कपड़े उतारे, तो बीवी ने कपड़े ले कर सलीके से खूंटी पर टांग दिए. फिर तौलिया और पाजामा देते हुए वह बोली, ‘‘हाथमुंह धो लो. मैं रोटी बनाती हूं, गरमगरम खा लो, फिर बाजार चलेंगे.’’

अमित समझ नहीं पा रहा था कि बीवी में यह बदलाव कैसे आ गया. गजरा तो मामूली सी चीज है. कोई और ही बात होगी. दिन बीतने लगे. अब अमित शाम को जल्दी घर चला आता. बीवी उसे देख कर खुश होती. जिंदगी ने एक नया रुख ले लिया था. अमित को लग रहा था कि बीवी में हर रोज बदलाव आ रहा है. उसे अपने में भी कुछ बदलाव होता महसूस हो रहा था.

अमित दफ्तर से घर आते समय एक दिन भी बीवी के लिए गजरा लेना नहीं भूला था. अब तो यह उस की आदत ही बन गई थी. वैसे तो गजरे वाली और भी लड़कियां वहां होती थीं, पर अमित हमेशा उसी लड़की से गजरा खरीदता, जिस ने उसे पहले दिन गजरा दिया था.

एक दिन अमित चौक में बैठा सामने की इमारत को देख रहा था कि गजरे वाली लड़की आई. अमित ने रोज की तरह उस के हाथ से गजरा ले लिया. पैसे ले कर वह लड़की वहीं खड़ी रही.

अमित ने देखा, उस के चेहरे पर संकोच था, जैसे वह कुछ कहना चाहती है.

अमित ने उस की झिझक दूर करने के लिए पूछा, ‘‘कितने बिक गए अब तक?’’

‘‘4 बिक गए हैं. अभीअभी आई हूं. पर बाबूजी, आप के हाथ से बोहनी होने पर देखतेदेखते ही बिक जाते हैं.’’

‘‘फिर तो सब से पहले मुझे ही बेचा करो,’’ अमित ने कहा.

‘‘कभीकभी तो आप बहुत देर से आते हैं,’’ लड़की शिकायती लहजे में बोली.

अमित कुछ देर तक चुप रहा, फिर बोला, ‘‘कहां रहती हो?’’

लड़की ने बताया कि वह अपनी अंधी दादी के साथ एक झोंपड़ी में रहती है. झोंपड़ी के सामने 2 चमेली के पौधे हैं, जिन के फूलों से वह उस के लिए खास गजरा बनाती है.

‘‘अच्छा,’’ अमित बोला.

लड़की का चेहरा लाज से लाल हो गया. वह एक पल को चुप रही, फिर बोली, ‘‘तुम रोज गजरा खरीदते हो, इस का करते क्या हो?’’

अमित मुसकराया. फिर कुछ कहतेकहते वह चुप हो गया.

आखिर लड़की ने कहा, ‘‘अच्छा, मैं जाती हूं.’’ और अमित उसे तेज कदमों से जाते हुए देखता रहा.

अब अमित की अधिकतर शामें घर में ही बीतने लगी थीं. दोस्त शिकायत करते कि अब वह बहुत कम मिलता है, पर वह खुश भी था कि उस की घरेलू जिंदगी सुखद बन गई थी.

एक दिन अमित की बीवी ने उस के साथ सिनेमा देखने का मन बनाया. वह दोपहर को उस के दफ्तर पहुंची और दोनों सिनेमा देखने चल पड़े. सिनेमा से निकलने पर बीवी ने कहा, ‘‘चलो, आज सागर के किनारे चलते हैं. एक अरसा बीत गया इधर आए हुए.’’

वहां घूमते हुए अमित को गजरे वाली लड़की दिखाई दी. वह उस की तरफ ही आ रही थी. उस के हाथ में एक ही गजरा था, जो कलियों के बजाय फूलों का बना हुआ था. लड़की के पास आने पर अमित ने कहा, ‘‘मैं हमेशा इसी लड़की से गजरा लिया करता हूं, क्योंकि यह मेरे लिए खासतौर पर मोटीमोटी कलियों का गजरा बना कर लाती है.’’ बीवी ने तीखी नजरों से लड़की को देखा, तो लड़की उस के सामने आंखें न उठा सकी.

गजरा लेने के लिए अमित ने हाथ बढ़ाया, तो लड़की ने हाथ का गजरा देने के बजाय अपनी साड़ी के पल्लू में बंधा एक गजरा निकाला. मोटीमोटी कलियों का बहुत बढि़या गजरा, जैसा कि वह रोज अमित को देती थी. अमित का चेहरा खिल उठा, पर उस की बीवी तीखी नजरों से उस लड़की को देख रही थी.

अचानक अमित का ध्यान बीवी की ओर गया तो चौंका. उस ने फौरन लड़की के हाथ से गजरा ले लिया और जेब से पैसे निकाल कर उस की ओर बढ़ाए,

पर लड़की ने पैसे न लेते हुए उदास लहजे में कहा, ‘‘पिछली बार के बकाया पैसे मुझे आप को देने थे. हिसाब पूरा हो गया,’’ इतना कह कर वह एक तरफ को चली गई.

अमित की बीवी ने वहीं खड़ेखड़े जूड़े पर गजरा बांधा और अमित को दिखाते हुए पूछा, ‘‘देखो तो ठीक तरह से बंधा है न?’’

‘‘हां,’’ अमित ने पत्नी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘आज के जूड़े में तो तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो.’’

‘‘खूबसूरत चीज हर जगह ही खूबसूरत लगती है,’’ पत्नी ने शोखी से कहा और मुसकराई, पर अमित के होंठों पर मुसकराहट न थी.

Hindi Romantic Story : पश्चाताप

Hindi Romantic Story : गार्गी टैक्सी की खिड़की से बाहर झांक रही थी. उस के दिमाग में जीवन के पिछले वर्ष चलचित्र की भांति घूम रहे थे. उस की उंगलियां मोबाइल पर अनवरत चल रही थीं. आरव,  प्लीज, अब एक मौका दो. तुम ने मुझे प्यार, समर्पण, भरोसा, सुखसुविधा सबकुछ देने की कोशिश की, लेकिन मैं पैसे के पीछे भागती रही ऒर आज इस दुनिया में नितांत अकेली खड़ी हूं… “मैडम, कहां चलना है?” ड्राइवर की आवाज से उस की तंद्रा भंग हुई.

“मैरीन ड्राइव.”

मुंबई में गार्गी का प्रिय स्थान, मैरीन ड्राइव,  जहां समुद्र की उठती लहरें और लोगों का हुजूम देख कर उस का अकेलापन कुछ क्षणों के लिए दूर हो जाता है. आज वहां वह एक कालेज युगल को हाथ में हाथ डाले घूमते देख आरव की यादों में खो गई… गार्गी एक साधारण परिवार की महत्त्वाकांक्षी  लड़की थी.  उस ने अपने मन में सपना पाल रखा था कि वह किसी रईस लड़के से शादी करेगी. दूध सा गोरा रंग, गोल चेहरा, बड़ीबड़ी कजरारी आंखें, अनछुई सी चितवन, मीठी सी मुसकान के चलते वह किसी को भी अपनी ओर लुभा लेती थी.

आरव उस से सीनियर था. लेकिन पहली झलक में ही वह उसे देख मुसकरा पड़ी थी.  उस का कारण उस का बड़ी सी गाड़ी में कालेज आना था. 6 फुट लंबा, गोरा, आकर्षक  लड़का,  हाथ में आईफोन, आंखों पर मंहगा ब्रैंडेड गौगल्स देख गार्गी उस पर आकर्षित हो गई थी. सोशल साइट्स और व्हाट्सऐप पर चैटिंग शुरू होते ही बात कौफी तक पहुंची और जल्द ही दोनों ने एकदूसरे के हाथों को पकड़ प्यार का भी इजहार कर दिया था.

आरव ने एक दिन गार्गी को अपने मम्मीपापा से मिलवा दिया था.  उन लोगों ने मन ही मन दोनों के रिश्ते के लिए हामी दी थी. गार्गी कभी अपनी मां की तो सुनती ही नहीं थी, इसलिए उन की परमिशन वगैरह की उसे कोई फिक्र ही नहीं थी.

अब प्यार के दोनों पंछी आजाद थे. कालेज टूर, पिकनिक, डेटिंग, पिक्चर, वीकैंड में आउटिंग, वैलेन्टाइन डे  आदि पर बढ़ती मुलाकातों से दोनों के बीच की दूरियां कम होती गईं. दोनों के बीच प्यारमोहब्बत, कस्मेवादे, शादी की प्लैनिंग, शादी के बाद हनीमून कहां मनाएंगे, किस फाइवस्टार में बुकिंग करेंगे आदि बातें होती थीं.

गार्गी कुछ ज्यादा ही मौडर्न टाइप थी. नए फैशन के कपड़े, ड्रिंक, स्मोक, पब, डिस्को, ड्रग्स सबकुछ उसे पसंद  था. आरव उस के प्यार में डूबा हुआ उस का साथ देने के लिए नशा करने लगा और नशे में ही दिल का रिश्ता शरीर तक जा पहुंचा और उस दिन दोनों ने प्यार की सारी हदें पार कर दी थीं.

वैसे भी दोनों शीघ्र ही एकदूसरे के होने वाले थे ही.  आरव का प्लेसमेंट नहीं हुआ था, इसलिए वह परेशान रहता था. गार्गी उस से गोवा चलने की जिद कर रही थी. उस ने जोर से डांट कर कह दिया कि गोवा कहीं भाग जाएगा क्या?

गार्गी नाराज हो कर वहां से चली गई और बातचीत बंद कर दी. आरव अपनी चिंताओं में खोया हुआ था. दोनों ने छोटी सी बात को अपना अहं का प्रश्न बना लिया था. उस ने तो मोबाइल से उस का नंबर भी डिलीट कर दिया था.

कुछ ही दिन बीते थे. उस के जीवन में पुरू आ गया. वह आरव  से ज्यादा पैसे वाला था. और गार्गी बचपन से बड़े सपने देखने वाली लड़की थी. अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए मार्ग में आए अवरोधों को दूर करने के लिए साम, दाम, दंड, और भेद सबकुछ आजमा लेती थी. एक दिन वह पुरू के साथ शहर के एक कैफे में बैठी थी कि उस की निगाह  एक टेबल पर बैठे आरव और उस के दोस्तों पर पड़ी. तो, उस ने जानबूझ कर उन्हें अनदेखा कर दिया .

पुरू उस का बौस था. वह कंपनी में सीनियर मैनेजर की पोस्ट पर था. आकर्षक, सजीला, सांवला, सलोना पुरू की सीनियर मैनेजर की पोस्ट और उस का बड़ा पैकेज देख कर उस ने उस के साथ चट मंगनी पट ब्याह रचा लिया. उस ने अपनी सगाई की फोटो फेसबुक और दूसरी सोशल साइट्स पर शेयर की थी. वह हीरे की अंगूठी पा कर बहुत खुश थी.

आरव को उस की फोटोज देख कर सदमा सा लगा था. उस ने कमेंटबौक्स में लिखा भी था- …वे प्यारमोहब्बत की बातें,  कसमेवादे, जो सपने हम दोनों ने साथ बैठ कर देखे थे, सब झूठे हो चुके…

शौकीन पुरू की जीवनशैली दिखावे वाली थी. उस का लक्जीरियस फोरबेडरूम फुल्लीफर्निश्ड फ्लैट, बड़ी गाड़ी और ऐशोआराम का सारा सामान देख गार्गी अपने चयन पर खिलखिला उठी. पार्टीज में जाना, जाम पर जाम छलकाना रोज का शगल था. गार्गी के लिए तो सोने के दिन और चांदी की रातें थीं.  उस ने यही सब तो चाहा था.

कुछ दिन खूब मस्ती में कटे- सिंगापुर, मौरीशस, हौंगकौंग, कभी गोवा के बीच पर तो कभी रोमांटिक खजुराहो, तो कभी ऊटी की ठंडी वादियां तो कभी कोबलम का बीच. गार्गी बहुत खुश थी. बस, एक बात उस की समझ में न आती कि पुरु अपने फोन पर लंबी बातें करता और हमेशा उस से हट कर, अपना लैपटौप भी लौक रखता…

गार्गी को यह महसूस हुआ कि पुरु ने उस के साथ शादी किसी खास मकसद से की  थी. वह, दरअसल, स्मग्लिंग के धंधे में उस का इस्तेमाल करता था. लेकिन वह तो इंद्रधनुषी सपनों में डूबी हुई थी. हसीन ख्वाबों में खोई हुई गार्गी ने अपनी नौकरी भी छोड़ दी थी.

पुरु से मिलने लोग आते, कुछ खुसुरफुसुर बातें करते और रात के अंधेरे में ही चले जाते. पिछले कुछ दिनों से वह परेशान रहने लगा था. वह कहने लगा कि मेरी सैलरी अभी नहीं आई है, कंपनी घाटे में चल रही है आदिआदि.

एक दिन पुरु भागते हुए आया और गार्गी से बोला, “मुझे एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में इटली  जाना है. कुछ दिनों के बाद तुम्हें बुला लूंगा.” और वह जल्दीजल्दी अपना बैग पैक कर चला गया.

गार्गी बहुत खुश थी. वह कुछ दिनों बाद खुद भी इटली जाने की सोचने लगी. तभी कोरोना बम फट पड़ा और लौकडाउन होते ही सबकुछ ठहर सा गया. उसी के साथ उस के सपने धराशाई होते दिखाई पड़ने लगे. कुछ महीनों तक तो  पुरु से बात होती रही, फिर उस से संपर्क भी टूट गया.

 

अब गार्गी समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. कोरोना ने पैर पसार लिए थे. यहां भी लौकडाउन की आहट थी. वह परेशान हो कर पुरू को फोन करती, ‘’तुम ने पैसे ट्रांसफर नहीं किए, मेरा खर्च कैसे चले?  फ्लैट का किराया, गाड़ी वगैरह… जो फ्लैट बुक किया था, वहां से भी मेल आई है. वह डील कैंसिल कर देने की धमकी दे रहा है.“

“हां, मुझे सब मालूम है. मेरी कंपनी बंद हो गई है और यहां कोरोना फैल गया है. इसलिए लौकडाउन कर दिया गया है. मैं स्वयं बहुत बड़ी मुसीबत  में हूं.”

उस के इंतजार में 3-4 महीने बीत गए थे. गार्गी को समझ आ गया था कि वह ठगी गई है और फिर उस के बाद उस ने अपना सिम बदल कर उस से संबंध समाप्त कर लिया. वह फ्लैट किसी और का था, केवल कुछ महीनों के लिए ही लिया गया था. इसलिए अब मजबूर हो कर वह अपनी मां के पास आ गई और फिर से नौकरी करने लगी.

कुछ दिनों तक तो पुरू के दिए धोखे से वह बाहर नहीं आ पा रही थी. वह खोईखोई और उदास  रहती. मां ने पहले ही उसे जल्दबाजी में शादी करने से बहुत मना किया था. परंतु वह तो उस के बड़े पैकेज की दीवानी थी. गुस्से में गारगी ने अब तो पुरु का मोबाइल नंबर भी ब्लौक कर दिया था और अपनी शादी की यादों के  पन्ने को फाड़ कर अपने जीवन में आगे बढ़ चली थी.

कुछ दिनों तक तो वह रोबोट की तरह भावहीन चेहरा लिए घूमती रही.  फिर अपना पुराना औफिस जौइन कर लिया. वहीं पर एक पार्टी में  उस ने एक  सुदर्शन व्यक्तित्व के युवक को देखा. उस की उम्र लगभग 30 – 35  वर्ष  के आसपास, गेहुंआ रंग, इकहरा बदन, लंबा कद, कुल मिला कर सौम्य सा व्यक्तित्व. कनपटी पर एकदो सफेद बाल उस के चेहरे को गंभीर और प्रभावशाली बना रहे थे. कहा जाए तो लव ऐट फर्स्ट साइट जैसा ही कुछ था.  काला ट्राउजर और स्काईब्लू शर्ट  पर उस की नजरें ठहर गईं थीं.

शायद उस का भी यही हाल था, क्योंकि वह भी उसी जगह ठहर कर खड़ा उसी पर अपनी निगाहें लगाए हुए था.

“हैलो, मी विशेष.‘’

“माईसेल्फ गार्गी.‘’

विशेष को देखते ही गार्गी का तनमन खुशी से झूम उठा था. वह सोच रही थी कि खुशी तो उस के इतने करीब थी, लगभग उस के आंचल में थी, उसे पता ही नहीं था.  दोनों के बीच हैलोहाय का रिश्ता जल्दी ही बातों और मुलाकातों में बदल गया था. बातोंबातों में गार्गी को विश्वास में लेने के लिए विशेष ने अपने जीवन की सचाई को निसंकोच बता डाला था. पापा उस पर शादी के लिए दबाव डालते रहे लेकिन जिस को मैं ने चाहा, वे उस से राजी नहीं हुए. बस, मैं ने भी सोच लिया कि शादी ही नहीं करूंगा. एक दिन पापा का हार्टफेल हो गया. फिर दुख की मारी  अम्मा  भी अपनी बहू का मुंह देखने को तरसती रहीं और पापा के बिछोह को सहन नहीं कर पाईं, जल्दी ही इस दुनिया से विदा हो गईं.  अब उस की जिंदगी पूरी तरह से आजाद और सूनी हो गई थी.

विशेष ने आगे बताया, “मैं एक एमएनसी में अच्छी पोस्ट पर हूं.  अच्छाभला पैकेज है. परंतु अपने जीवन के एकाकीपन से तंग आ चुका हूं. शादी डाट काम जैसी साइट पर  अपने लिए लड़की ढूंढता रहता हूं. खोज अभी जारी है. आप को देख कर लगा कि शायद आप मेरे लिए परफेक्ट साथी हो सकती हैं.”

वह तो उसी के औफिस के दूसरे सेक्शन में था.

दोनों के मन में एक सी हिलोरें उठ रही थीं. कभी लिफ्ट तो कभी पार्किंग, तो कभी कैंटीन में मिलना जरूरी सा लगने लगा था दोनों को.

व्हाट्सऐप और फोन पर लंबी बातें देररात तक होने लगीं. दीवानगी अपने चरम पर थी. एक दिन गार्गी ने जानबूझ कर  अपना फोन बंद कर दिया और औफिस भी नहीं गई.  इस तरह 2 दिन बीत गए थे. उस के मन में अपराधबोध का झंझावात चल रहा था कि वह अपने पति पुरू के साथ अन्याय कर रही  है.

क्यों? उस का अंतर्मन बोला था कि विशेष उस का केवल अच्छा दोस्त है. वह उस के दिल की भावनाओं को समझता है, परंतु वह उस से सचाई  बताने में क्यों डर रही है. उस का मन उसे धिक्कारता  रहता,  लेकिन विशेष को देखते ही वह सबकुछ भूल जाती थी. इसी पसोपेश में वह घर में ही लेटी रही थी.

उस के घर की कौलबेल बजी तो वह चौंक पड़ी थी. दरवाजे पर विशेष को खड़ा देख गार्गी प्रफुल्लित हो उठी थी.

“अरे, आप  !‘’

“आप को 2 दिनों से देखा नहीं, इसलिए चिंतित हो उठा था.  आखिर आप का दोस्त जो ठहरा.’’

“बस, यों ही, सिर में दर्द था और सच कहूं तो मूड ठीक नहीं था.’’

“मेरे होते हुए मूड क्यों खराब है? आज मेरा औफिस नहीं है, वर्क फ्रौम होम ले रखा है. आज की मीटिंग पोस्टपोन कर देता हूं. चलिए, कहीं बाहर चलते हैं. वहीं कहीं लंच कर लेंगे.‘’

उस के मन में लड्डू फूट पड़े थे. वह तो कब से चाह रही थी कि वह उस की बांहों में बांह डाल कर कहीं बाहर घूमने जाए, किसी फाइवस्टार होटल में लंच और फिर शौपिंग करवाए.

उस के मन में पुलकभरी सिहरन थी. दिसंबर का महीना था.  बादल छाए हुए थे. हवा में ठंडापन होने से मौसम खुशनुमा था. वह मन से तैयार हुई थी. उस ने स्कर्ट और टॉप पहना  था. जब वह तैयार हो कर बाहर आई तो विशेष की निगाहें उस पर ठहर कर रह गईं थीं. वह उसे अपलक निहारता रह गया था .

मां ने उस दिन गार्गी को टोका भी था, “अब यह नया कौन आ गया तेरे जीवन में?”

“यह विशेष  है, मेरा अच्छा दोस्त. इस से ज्यादा कुछ भी नहीं. मेरे ही औफिस में काम करता है.”

जब विशेष ने शिष्टता के साथ उस के लिए कार का दरवाजा खोला तो उस के मन में पुरु की यादें ताजा हो उठीं.  उस ने तो इस तरह से उस के लिए कभी भी गाड़ी का गेट नहीं खोला, लेकिन उन यादों को झटकते हुए वह फ़ौरन वर्तमान में लौट आई थी.

‘’पहले कहां चलोगी,  आप ने लंच कर लिया?“

“नहीं,”  वह सकुचा उठी थी.

“फिर तो चलिए, पहले लंच करते हैं. मेरे पेट में भी चूहे बहुत जोरजोर से चहलकदमी कर रहे हैं.‘’ विशेष यह कह कर अपनी बात पर ही जोर से हंस पड़ा था.

उस ने एक बड़े रेस्ट्रां के सामने गाड़ी रोक दी थी. वहां एक वाचमैन ने तुरंत आ कर उस के हाथ से गाड़ी की चाबी ली और गाड़ी पार्क करने के लिए ले गया था. वहां पर विशेष एक कोने की टेबल पर सीधे पहुंच गया. शायद पहले से बुक कर रखा था.

एकबारगी फिर गार्गी का दिल धड़क उठा था. विशेष की आंखों में अपने प्रति प्यार वह स्पष्ट रूप से देख रही थी. उस का प्यारभरा आमंत्रण उस के मन में प्यार की कोंपलें खिला रहा था. परंतु मन ही मन  अपने कड़वे अतीत को ले कर डरी हुई थी. जब उसे उस के बारे में सबकुछ मालूम होगा तब भी क्या वह इसी तरह से उस के प्रति समर्पण भाव रखेगा? एक क्षण को उस का सर्वांग सिहर उठा था.

विशेष से अब तक गार्गी को प्यार हो गया था. उस के प्रति उस की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. उस दिन उस ने मौल से उस को शौपिंग भी करवाई थी. लेकिन, बारबार पुरू उस की स्मृतियों के द्वार पर आ कर खड़ा हो जाता था.

सिलसिला चल निकला था. दोनों ही मिलने का बहाना ढूंढते थे. मैरीन ड्राइव, कभी जूहू बीच के किनारे बैठ कर समुद्र की आतीजाती लहरों को निहारते हुए प्यार की बातें करना बहुत पसंद था उन्हें. शाम गहरा गई थी. समुद्रतट पर दोनों देर तक टहलते रहे थे. आज उस ने रेड कलर का स्लीवलेस टॉप और जींस पहनी हुई थी. वह जानती थी कि यह ड्रेस उस के ऊपर बहुत फबती है और वह पहले ही वौशरूम में अपने मेकअप को टचअप कर के आई थी.

अचानक ही विशेष ने उस की हथेलियों को थाम लिया था. इतने दिनों बाद किसी पुरुष के स्पर्श को पा कर वह रोमांचित हो उठी थी. वह कांप उठी थी. उसे फिर से पुरू याद आ गया था. वह भी तो ऐसे ही मजबूती से उस की हथेलियों को पकड़ लेता था. क्षणभर को वह भावुक हो उठी थी.  और उस ने एक हलके झटके से उस की हथेलियों को परे झटक दिया था.

‘सौरी’ कह कर विशेष उस से थोड़ा दूर हो कर चलने लगा था.

गार्गी न जाने क्यों विशेष के साथ नौर्मल नहीं हो पा रही थी, हालांकि उस से प्यार करने लगी थी. उस के साथ लंच पर जाना, शौपिंग पर जाना और अब शाम के अंधेरे में उस की हथेलियों पर उस का स्पर्श उस के अन्तर्मन में पुरू के प्रति अपराधबोध सा भर रहा था. पुरु के मेसेज तो आए थे, हालांकि, उस ने नाराजगी में उत्तर नहीं दिया था. गार्गी सोचती, आखिर वह पुरु के साथ बेवफाई करने पर क्यों आमादा है?  पुरु की नौकरी छूटी है तो दूसरी मिल जाती. वह बेचारा तो स्वयं ही मुसीबतों का मारा था.

परंतु, विशेष का आकर्षण  भी उस पर हावी था. उस की मनोदशा दोराहे पर थी. इधर जाऊं कि उधर, उस का लालची मन निर्णय नहीं ले पा रहा था.  एक शाम वे किसी गार्डन की झाड़ी में छिप कर बैठे थे. विशेष बिलकुल उस के करीब था, यहां तक कि उस की धौंकनी सी तेज सांसों  को भी वह महसूस कर रही थी. वह स्वयं भी तो कब से उस की बांहों में खो जाने का इंतजार कर रही थी.

विशेष ने भी उस के मन की भावनाओं को समझ लिया था और फिर जाने कब वह उस की बांहों में सिमटती चली गई थी. कुछ देर तक दोनों यों ही निशब्द एकदूसरे के आलिंगन  में थे. फिर धीरे से वह उस से अलग हो गई थी. विशेष के चेहरे पर उदासी की छाया मूर्त हो उठी थी.

अब विशेष का गार्गी के घर पर आना बढ़ गया था. कभी घर के खाने के स्वाद के लिए तो कभी घर का कोई सामान ले कर आ जाता तो कभी मम्मी से मिलने के बहाने आ जाता.

परंतु, गार्गी की तेज निगाहों से छिपा नहीं था कि विशेष मात्र उस से ही मिलने के लिए बहाना खोजता रहता है.

मम्मी ने बेटी गार्गी को कई बार समझाने की कोशिश की थी कि तू गलत रास्ते पर चल पड़ी है. यह पुरू के साथ अन्याय होगा.

परंतु वह तो विशेष के प्यार में डूबी हुई थी.  वह तो हर पल उस के सान्निध्य की कामना में खोई रहती. पुरुष की तीव्र नजरें स्त्री की भावनाओं को अतिशीघ्र पहचान लेती हैं और फिर उस के समर्पण  को कमजोरी समझ पुरुष उस का मनचाहा दोहन करता है. एक शाम वह गार्गी को अपने फ्लैट में ले गया था.

विशेष का फ्लैट देख उस की आंखें चौंधिया उठी थीं. पहले तो वह हिचकिचा रही थी, मन ही मन कसमसा रही थी, परंतु उस का प्यासा तन किसी मजबूत बांहों में खोने को बेचैन भी हो रहा था. जब उस ने प्यार से उस की दोनों कलाइयों को पकड़ा तो फिर से गार्गी को पुरू की कठोर पकड़ य़ाद आ गई थी. गार्गी यह सोचने को मजबूर हो उठी थी कि विशेष कितना सभ्य और शालीन है कि उसे ऐसे पकड़ता है कि मानो वह कोई कांच की गुड़िया हो.

परंतु, पुरू की अदृश्य परछाईं उन दोनों के बीच आ कर खड़ी हो गई और गार्गी ने आहिस्ता से पीछे हट कर उस की मजबूत कलाइयों को अपने से दूर कर दिया था. वह स्वयं भी नहीं समझ पा रही थी कि वह चाहती क्या है?  एक ओर तो वह विशेष के सपनों में खोई रहती है और जब वह मिलता है तो वह उसे अपने से दूर कर देती है, जबकि  वह उस की बांहों में पूरी तरह से डूब जाना चाहती थी.

गार्गी सोचती, क्यों विशेष के स्पर्श से पुरु के साथ बिताए मधुर पल उसे याद आने लगते हैं. उस की स्मृतियों में तो आरव भी बारबार अपनी दस्तक देने से बाज नहीं आता. क्या ऐसा है कि औरत अपना पहला प्यार कभी नहीं भूल पाती. शायद यही वजह होगी कि आरव आज भी उस के ख्वाबों में आ कर उस से अकसर पूछता है कि, ‘गार्गी, तुम खुश हो?’

पैसे की अंधीदौड़ में उस ने पुरू से प्यार किया, शादी की. उस ने वह सबकुछ देने की कोशिश की थी  जो उस ने चाहा था. पुरू ने उसे कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया था. क्या पता वह सचमुच किसी मुसीबत में हो.

एक शाम वह मौल में शौपिंग कर रही थी. तभी वहां पुरू पर उस की निगाह पड़ी थी. उस के साथ एक लड़की भी थी. दोनों  की निगाहें मिल गईं थीं, लेकिन पुरू तेजी से भीड़ का फायदा उठा कर उस से बच कर निकल गया था.

अब तो वह ईर्ष्या से जलभुन  गई और विशेष के साथ लिवइन में  रहने लगी थी. उस का लक्जीरियस अपार्टमेंट, बड़ी गाड़ी, मंहगे ड्रिंक, हाई सोसायटी के लोगों की पार्टियों में उस की बांहों में बांहें डाल कर डांस करना…वह तो मानो फिर से सपनों की दुनिया में खो गई थी.

उस का दिन तो औफिस में किसी तरह बीतता, लेकिन शामें तो विशेष की मजबूत बांहों के साए में  हंसतेखिलखिलाते बीत रही थीं. उस ने पुरू की यादों की परछाईं को अपने से परे धकेल कर अपने लिवइन का एनाउंसमेंट मां के सामने कर दिया था.

उन्होंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की थी कि स्त्री का यौवन सदा नहीं रहता है और पुरुष का भ्रमर मन यदि बहक कर दूसरे पुष्प पर अटक जाएगा तो ‍फिर से तुम एक बार लुटीपिटी सी अकेली रह जाओगी. परंतु उस के मन की धनलिप्सा और उस की लोलुपता ने सहीगलत कुछ भी सोचने ही नहीं दिया था और  वह इस अंधीदौड़ में चलती हुई एक के बाद दूसरा साथी बदलती रही.

लगभग 4 महीने बीत चुके थे. वह उस के साथ पत्नी जैसा व्यवहार करने लगी थी. कहां रह गए थे. बाहर खाना खा कर आना था, तो फोन कर सकते थे आदिआदि. परंतु उस की बांहों में खो कर वह आनंदित हो उठती थी.

लेकिन, कुछ दिनों से वह विशेष की निगाहों में अपने प्रति उपेक्षा महसूस कर रही थी. वह उस का इंतजार करती रह जाती और वह अपनी मनपसंद डियो की खुशबू फैलाता हुआ यह कह कर निकल जाता कि औफिस की जरूरी मीटिंग है.

अब वह उपेक्षित सी महसूस करने लगी थी.  उस का बर्थडे था, इसलिए बाहर डिनर की बात थी. उस ने छोटी सी पार्टी की भी बात कही थी, लेकिन उस का कहीं अतापता नहीं था.  उस ने जब फोन किया तो बैकग्राउंड से म्यूजिक की आवाज सुन कर उस का माथा ठनका था. लेकिन जब वह झिड़क कर बोला, ‘’परेशान मत करो, मैं जरूरी मीटिंग में हूं.“ तो उस दिन वह सिसक पड़ी थी. लेकिन मन को तसल्ली दे कर सो गई कि सच में ही वह मीटिंग में ही होगा.

अब वह बदलाबदला सा लगने लगा था. अकसर खाना बाहर खा कर आता. ड्रिंक भी कर के आता. कुछ कहने पर अपने नए प्रोजेक्ट में बिजी होने की बात कह कर घर से निकल जाता.

वह अकेले रहती तो अपने लैपटौप से सिर मारती रहती. तभी उस की निगाह एक मेल पर पड़ी थी. आज विशेष की बर्थडे पार्टी थी. उस में वह उसे क्यों नहीं ले कर गया. वह उसे सरप्राइज देने के लिए तैयार हो कर वहां पहुंच गई थी. उस ने कांच के दरवाजों से देखा कि विशेष किसी लड़की की बांहों को पकड़ कर डांस कर रहा था.

वह क्रोधित हो उठी थी. उस को अपने हक पर किसी का अनाधिकृत प्रवेश महसूस हुआ था. वह तेजी से अंदर पहुंच गई थी. अपने को संयत करते हुए बोली, ‘’हैप्पी बर्थडे, विशेष.‘’  वह जानबूझ कर उस के गले लग गई थी.

विशेष चौंक उठा था. जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. उस को अपने से परे करते हुए बोला, ‘’तुम, यहां कैसे?’’

उन दोनों की डांस की मदहोशी में खलल पड़ गया था. विशेष की डांसपार्टनर निया ने उसे घूर कर देखा और बोली, ‘’हू आर यू?’’

‘’आई एम गार्गी, विशेष की लिवइन पार्टनर.‘’

निया नाराज हो कर चीख पड़ी, ‘’यू रास्कल. यू चीटेड मी. यू टोल्ड मी दैट यू आर सिंगल.‘’

“यस डियर, आई एम सिंगल. शी इज माई लिवइन पार्टनर ओनली.‘’

उस के कानों में मानो किसी ने गरम पिघला सीसा उड़ेल दिया हो. भरी महफिल में वह बुरी तरह अपमानित की गई थी. विशेष उसे ऐसी अपरिचित और खा जाने वाली निगाहों से देख रहा था मानो वह उसे पहचानता भी न हो. उस के कानों में बारबार गूंज रहा था – ‘यस आई एम सिंगल. शी इज माई लिवइन पार्टनर ओनली.’ उस ने समझ लिया था कि अब विशेष से कुछ भी कहनासुनना व्यर्थ है.

वह एक बार फिर अपनी धनलिप्सा की अंधीदौड़ के कारण छली गई है, ठगी गई है. यह एहसास उस के दिल को घायल कर रहा था. उस की सारी खुशियां, जीवन का उल्लास,  पलपल संजोए हुए सारे सपने सबकुछ खोखले और झूठे दिखाई पड़ रहे थे मानो सारी दुनिया उसे मुंह चिढ़ा रही थी.

वह मन ही मन पछता रही थी कि काश, वह आरव के प्यार को न ठुकराती! अब उस की आंखों से पश्चात्ताप की अश्रुधारा निर्झर रूप से प्रवाहित हो रही थी.

 

Hindi Kahani : मुझे जवाब दो – हर कुसूर की माफी नहीं होती

Hindi Kahani : ‘‘प्रिय अग्रज, ‘‘माफ करना, ‘भाई’ संबोधन का मन नहीं किया. खून का रिश्ता तो जरूर है हम दोनों में, जो समाज के नियमों के तहत निभाना भी पड़ेगा. लेकिन प्यार का रिश्ता तो उस दिन ही टूट गया था जिस दिन तुम ने और तुम्हारे परिवार ने बीमार, लाचार पिता और अपनी मां को मत्तैर यानी सौतेला कह, बांह पकड़ कर घर से बाहर निकाल दिया था. पैसे का इतना अहंकार कि सगे मातापिता को ठीकरा पकड़ा कर तुम भिखारी बना रहे थे.

‘‘लेकिन तुम सबकुछ नहीं. अगर तुम ने घर से बाहर निकाला तो उन की बांहें पकड़ सहारा देने वाली तुम्हारी बहन के हाथ मौजूद थे. जिन से नाता रखने वाले तुम्हारे मातापिता ने तुम्हारी नजर में अक्षम्य अपराध किया था और यह उसी का दंड तुम ने न्यायाधीश बन दिया था.

‘‘तुम्हीं वह भाई थे जिस ने कभी अपनी इसी बहन को फोन कर मांपिता को भेजने के लिए मिन्नतें की थीं, फरियाद की थी. बस, एक साल भी नहीं रख पाए, तुम्हारे चौकीदार जो नहीं बने वो.

‘‘तुम से तो मैं ने जिंदगी के कितने सही विचार सीखे. कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि तुम बुरी संगत में पड़, ऐशोआराम की जिंदगी जीने के लिए अपने खून के रिश्तों की जड़ें काटने पर तुल जाओगे.

‘‘एक ही शहर में, दो कदम की दूरी पर रहने वाले तुम, आज पत्र लिख अपने मन की शांति के लिए मेरे घर आना चाहते हो. क्यों, क्या अब तुम्हारे परिवार को एतराज नहीं होगा?

‘‘अब समझ आया न. पैसा नहीं, रिश्ते, अपनापन व प्यार अहम होते हैं. क्या पैसा अब तुम्हें मन की शांति नहीं दे सकता? अब खरीद लो मांबाप क्योंकि अपनों को तो तुम ने सौतेला बना दिया था.

‘‘तुम्हीं ने छोटे भाईभावज को लालच दिया था अपने बिजनैस में साझेदारी कराने का लेकिन इस शर्त पर कि मातापिता को बहन के घर से बुला अपने पास रखो, घर अपने नाम करवाओ और इतना तंग किया करो कि वे घर छोड़ कर भाग जाएं. तुम ने उन से यह भी कहा था कि वे बहन से नाता तोड़ लें. इतनी शर्तों के साथ करोड़ों के बिजनैस में छोटे भाई को साझेदारी मिल जाएगी, लेकिन साझेदारी दी क्या?

‘‘हमें क्या फर्क पड़ा. अगर पड़ा तो तुम दोनों नकारे व सफेद खून रखने वाले पुत्रों को पड़ा. पुलिस व समाज में जितनी थूथू और जितना मुंह काला छोटे भाईभावज का हुआ उतना ही तुम्हारा भी क्योंकि तुम भी उतने ही गुनाहगार थे. मत भूलो कि झूठ के पैर नहीं होते और साजिश का कभी न कभी तो परदाफाश होता है.

‘‘ठीक है, तुम कहते हो कि इतना सब होने के बाद भी मांपिताजी ने तुम्हें व छोटे को माफ कर दिया था. सो, अब हम भी कर दें, यह चाहते हो? वो तो मांबाप थे ‘नौहां तो मांस अलग नईं कर सकदे सी’, (नाखूनों से मांस अलग नहीं कर सकते थे.) पर, हम तुम्हें माफ क्यों करें?

‘‘क्या तुम अपने बीवीबच्चों को घर से बाहर निकाल सकते हो? नहीं न. क्या मांबाप लौटा सकते हो?

‘‘अब तुम भी बुढ़ापे की सीढ़ी पर पैर जमा चुके हो. इतिहास खुद को दोहराता है, यह मत भूलना. अब चूंकि तुम्हारा बेटा बिजनैस संभालने लगा है तो तुम्हारी स्थिति भी कुछकुछ मांपिताजी जैसी होने लगी है. अगर बबूल बोओगे तो आम नहीं लगेंगे. सो, अपने बुरे कृत्यों का दंश व दंड तो तुम्हें सहना ही पड़ेगा. क्षमा करना, मेरे पास तुम्हारे लिए जगह व समय नहीं है.

‘‘बेरहम नहीं हूं मैं. तुम मुझे मेरे मातापिता लौटा दो, मैं तुम्हें बहन का रिश्ता दे दूंगी, तुम्हें भाई कहूंगी. मुझे पता है उन के आखिरी दिन कैसे कटे. आज भी याद करती हूं तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. वो दशरथ की तरह पुत्रवियोग में बिलखतेविलापते, पर तुम राम न बन सके. निर्मोही, निष्ठुर यहां तक कि सौतेला पुत्र भी ऐसा व्यवहार नहीं करता होगा जैसा तुम ने किया.

‘‘तुम लिखते हो, ‘बेहद अकेले हो.’ फोन पर भी तो ये बातें कर सकते थे पर शायद इतिहास खुद को दोहराता… तुम उन के फोन की बैटरी निकाल देते थे. खैर, जले पर क्या नमक छिड़कना. जरा बताओ तो, तुम्हें अकेला किस ने बनाया? तुम्हें तो बड़ा शौक था रिश्ते तोड़ने का. अरे, ये तो मांपिताजी के चलते चल रहे थे. तुम तो रिश्ते हमेशा पैसों पर तोलते रहे. बहन, बूआ, बेटी, ननद इन सभी रिश्तों की छीछालेदर करने वाले तुम और तुम्हारी पत्नी व बेटी अब किस बात के लिए शिकायत करती फिर रही हैं. जो रिश्तेनाते अपनापन जैसे शब्द व इन की अहमियत तुम्हारी जिंदगी की किताब में कभी जगह नहीं रखते थे, उन के बारे में अब इतना क्यों तड़पना. अब इन रिश्तों को जोड़ तो नहीं सकते. उस के लिए अब नए समीकरण बनाने होंगे व नई किताब लिखनी होगी. क्या कर पाओगे ये सब?

‘‘ओह, तो तुम्हें अब शिकायत है अपने बेटेबहू से कि वे तुम्हें व तुम्हारी पत्नी को बूढ़ेबुढि़या कह कर बुलाते हैं. ये शब्द तुम ही लाए थे होस्टल से सौगात में. चलो, कम से कम पीढ़ीदरपीढ़ी यह सम्मानजनक संबोधन तुम्हारे परिवार में चलता रहेगा. बधाई हो, नई शुरुआत के लिए और रिश्तों को छीजने के लिए.

‘‘खैर, छोड़ो इन कड़वी बातों को. मीठा तो तुरंत मुंह में घुल जाता है पर कड़वा स्वाद काफी देर तक रहता है और फिर कुछ खाने का मन भी नहीं करता. सो, अब रोना काहे का. कहां गई तुम्हारी वह मित्रमंडली जिस के सामने तुम मांपिता को लताड़ते थे. क्यों, क्या वे तुम्हारे अकेलेपन के साथी नहीं या फिर आजकल महफिलें नहीं जमा पाते. बेटे को पसंद नहीं होगा यह सब?

‘‘छोड़ो वह राखीवाखी, टीकेवीके की दुहाई देना, वास्ता देना. सब लेनदेन बराबर था. शुक्र है, कुछ बकाया नहीं रहा वरना उसी का हिसाबकिताब मांग बैठते तुम.

‘‘अपने रिश्ते तो कच्चे धागे से जुड़े थे जो कच्चे ही रह गए. खुदगर्जी व लालच ही नहीं, बल्कि तुम्हारे अहंकार व दंभ ने सारे परिवार को तहसनहस कर डाला.

‘‘अब जुड़ाव मत ढूंढ़ो. दरार भरने से भी कच्चापन रह जाता है. वह मजबूती नहीं आ पाएगी अब. इस जुड़ाव में तिरस्कार की बू ताजा हो जाती है. वैसे, याद रखना, गुजरा वक्त कभी लौट कर नहीं आता.

‘‘वक्त और रिश्ते बहुत नाजुक व रेत की तरह होते हैं. जरा सी मुट्ठी खोली नहीं कि वे बिखर जाते हैं. इन्हें तो कस कर स्नेह व खुद्दारी की डोर में बांध कर रखना होता है.

‘‘कभी वक्त मिले तो इस पत्र को ध्यान से पढ़ना व सारे सवालों का जवाब ढूंढ़ना. अगर जवाब ढूंढ़ पाए तो जरूर सूचना देना. तब वक्त निकाल कर मिलने की कोशिश करूंगी. अभी तो बहुतकुछ बाकी है भा…न न…भाई नहीं कहूंगी.

‘‘मुझ बहन के घर में तो नहीं, पर हमारे द्वारा संचालित वृद्धाश्रम के दरवाजे तुम्हारे जैसे ठोकर खाए लोगों के लिए सदैव खुले हैं.

‘‘यह पनाहघर तुम्हारी जैसी संतानों द्वारा फेंके गए बूढ़े व लाचार मातापिता के लिए है. सो, अब तुम भी पनाह ले सकते हो. कभी भी आ कर रजिस्ट्रेशन करवा लेना.

‘‘तुम्हारी सिर्फ चिंतक

शोभा.’’

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