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Valentine’s Day 2024 : मेरी डोर कोई खींचे – दो प्रेमियों की अधूरी प्रेम कहानी

ट्रक से सामान उतरवातेउतरवाते रचना थक कर चूर हो गई थी. यों तो यह पैकर्स वालों की जिम्मेदारी थी, फिर भी अपने जीवनभर की बसीबसाई गृहस्थी को यों एक ट्रक में समाते देखना और फिर भागते हुए ट्रक में उस का हिचकोले लेना, यह सब झेलना भी कोईर् कम धैर्य का काम नहीं था. उस का मन तब तक ट्रक में ही अटका रहा था जब तक वह सहीसलामत अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच गया था.

खैर, रचना के लिए यह कोई नया तजरबा नहीं था. तबादले का दंश तो वह अपने पिता के साथ बचपन से ही झेलती आ रही थी. हां, इसे दंश कहना ही उचित होगा क्योंकि इस की तकलीफ तो वही जानता है जो इसे भुगतता है. रचना को यह बिलकुल पसंद नहीं था क्योंकि स्थानांतरण से होने वाले दुष्परिणामों से वह भलीभांति परिचित थी.

बाकी सब बातों की परवा न कर के जिस बात से रचना सब से ज्यादा विचलित रहती थी वह यही थी कि पुराने साथी एकाएक छूट जाते हैं, सभी दोस्त, साथी गलीमहल्लों के रिश्ते पलक झपकते ही पराए हो जाते हैं और हम खानाबदोशों की तरह अपना तंबू दूसरे शहर में तानने को मजबूर हो जाते हैं. अजनबी शहर, उस के तौरतरीके अपनाने में काफी दिक्कत आती है.

नए शहर में कोई परिचित चेहरा नजर नहीं आता. वह दुखसुख की बात करे तो किस से? घर जाए तो किस के और अपने घर बुलाए तो भी किसे? नया शहर, नया घर उसे काटने को दौड़ता था.

सौरभ यानी रचना के पति को इस से विशेष फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि उन को तो आते ही ड्यूटी जौइन करनी होती थी और वे व्यस्त हो जाते थे. यही हाल बेटे पर्व और बेटी पूजा का था. वे भी अपने नए स्कूल व नई कौपीकिताबों में खो जाते थे. रह जाती थी तो रचना घर में बिलकुल अकेली, अपने अकेलेपन से जूझती.

यह तो भला हो नई तकनीक का, जिस ने अकेलेपन को दूर करने के कई साधन निकाल रखे हैं. रचना उठतेबैठते फेसबुक व व्हाट्सऐप के जन्मदाताओं का आभार व्यक्त करना नहीं भूलती थी. उस की नजर में लोगों से जुड़ने के ये साधन अकेलापन तो काटते ही हैं, साथसाथ व्यक्तिगत स्वतंत्रता भी प्रदान करते हैं, खासकर स्त्रियों को. घर की चारदीवारी में रह कर भी वह अपने मन की बात इन के जरिए कर सकती है.

दिनचर्या से निवृत्त होने के बाद रोज की तरह रचना अपना स्मार्टफोन ले कर बैठ गई. उस में एक फ्रैंडरिक्वैस्ट थी, नाम पढ़ते ही वह चौंक गई-नीरज सक्सेना. उस ने बड़ी उत्सुकता से उस की प्रोफाइल खोली तो खुशी व आश्चर्य से झूम उठी. ‘अरे, यह तो वही नीरज है जो मेरे साथ पढ़ता था,’ उस के मुंह से निकला. पापा का अचानक से ट्रांसफर हो जाने के कारण वह किसी को अपना पता नहीं दे पाई थी और नतीजा यह था कि फेयरवैल पार्टी के बाद आज तक किसी पुराने सहपाठी से नहीं मिल पाई थी.

उस के अंतर्मन का एक कोना अभी भी खाली था जिस में वह सिर्फ और सिर्फ अपनी पुरानी यादों को समेट कर रखना चाहती थी और आज नीरज की ओर से भेजी गई फ्रैंडरिक्वैस्ट दिल के उसी कोने में उतर गई थी. उस ने फ्रैंडरिक्वैस्ट स्वीकार कर ली.

फिर तो बातों का सिलसिला चल निकला और जब भी मौका मिलता, दोनों पुराने दिनों की बातों में डूब जाया करते थे. बातों ही बातों में उसे पता चला कि नीरज भी इसी शहर में रहता है और यहीं आसपास रहता है.

रचना ने सौरभ को भी यह बात बताईतो सौरभ ने कहा, ‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है, तुम सदा शिकायत करती थी कि आप के तो इतने पुराने दोस्त हैं, मेरा कोई नहीं, अब तो खुश हो न? किसी दिन घर बुलाओ उन्हें.’’

एक दिन रचना ने नीरज को घर आने का न्योता दिया. इस के बाद बातों के साथसाथ मिलनेजुलने का सिलसिला भी शुरू हो गया. नीरज को जब भी फुरसत मिलती, वह रचना से बात कर लेता और घर भी आ जाता था.

नीरज अकसर अकेला ही आता था, तो एक दिन सौरभ बोले, ‘‘भई, क्या बात है, आप एक बार भी भाभीजी व बच्चों को नहीं लाए. उन को भी लाया कीजिए.’’

यह सुन कर नीरज बोला, ‘‘अवश्य लाता, यदि वे होते तो?’’

क्या मतलब, तुम ने अभी तक शादी नहीं की, सौरभ ने चुटकी काटी जबकि  रचना सौरभ को बता चुकी थी कि वह शादीशुदा है और एक बेटे का बाप भी है.

सौरभ की बात सुन कर नीरज झेंप कर बोला, ‘‘मेरा कहने का मतलब था- यदि वे यहां होते. प्रिय व संदीप अभी यहां शिफ्ट नहीं हुए हैं, स्कूल में ऐडमिशन की दिक्कत की वजह से ऐसा करना पड़ा.’’

‘‘ठीक कह रहे हो तुम, बड़े शहरों में किसी अच्छे स्कूल में ऐडमिशन करवाना भी कम टेढ़ी खीर नहीं है. हम ने भी बहुत पापड़ बेले हैं बच्चों के ऐडमिशन के लिए.’’

अब सौरभ और नीरज में भी दोस्ती हो गई थी और स्थिति यह थी कि कई बार नीरज बिना न्योते के भी खाने के समय आ जाता था. नीरज के घर में आने से रचना बहुत खुश रहती थी और बहुत ही मानमनुहार से उस की खातिरदारी भी करती थी.

एक बार खाने के समय जब नीरज के बारबार मना करने पर भी रचना ने एक चपाती परोस दी तो सौरभ से रहा नहीं गया और वे बोले, ‘‘खा लो भैया, इतनी खुशामद तो ये मेरी भी नहीं करती.’’

बात साधारण थी पर रचना को यह चेतावनी सी प्रतीत हुई. पतिपत्नी के नाजुक रिश्ते में कभीकभी ऐसी छोटीछोटी बातें भी नासूर बन जाती हैं, इस का एहसास था उसे. उस दिन के बाद से वह हर वक्त यह खयाल भी रखती कि उस के किसी भी व्यवहार के लिए सौरभ को टोकना न पड़े क्योंकि रिश्तों में पड़ी गांठ सुलझाने में हम अकसर खुद ही उलझ जाते हैं.

एक शाम जब सौरभ औफिस से आए तो बोले, ‘‘आई एम सौरी, रचना, मुझे कंपनी की ओर से 15 दिनों के टूर पर अमेरिका जाना पड़ेगा. मेरा मन तो नहीं है कि मैं तुम्हें इस नए शहर में इस तरह अकेले छोड़ कर जाऊं पर क्या करूं, बहुत जरूरी है, जाना ही पड़ेगा.’’

यह सुन कर रचना को उदासी व चिंता की परछाइयों ने घेर लिया. वह धम्म से पलंग पर बैठ गई और रोंआसा हो कर बोली, ‘‘अभी तो मैं यहां ठीक तरह से सैटल भी नहीं हुई हूं. आप तो जानते ही हैं कि आसपड़ोस वाले सब अपने हाल में मस्त रहते हैं. किसी को किसी की परवा नहीं है यहां. ऐसे में 15 दिन अकेली कैसे रह पाऊंगी.’’

‘‘ओह, डोंट वरी, आई नो यू विल मैनेज इट. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है.’’

और फिर दूसरे दिन ही सौरभ अमेरिका चले गए और रचना अकेली रह गई. यों तो रचना घर में रोज अकेली ही रहती थी पर इस उम्मीद के साथ कि शाम को सौरभ आएंगे. आज वह उम्मीद नहीं थी, इसलिए घर में उस सूनेपन का एहसास अधिक हो रहा था.

खैर, वक्त तो काटना ही था. बच्चों के साथ व्यस्त रह कर, कुछ घरेलू कामकाज निबटा कर रचना अपना जी लगाए रखती. पर बच्चे भी पापा के बिना बड़े अनमने हो रहे थे. नन्हीं पूजा ने तो शायद इसे दिल से ही लगा लिया था. सौरभ के जाने के बाद उस का खानापीना काफी कम हो गया था. वह रोज पूछती, ‘पापा कब आएंगे?’ और रचना चाह कर भी उसे खुश नहीं रख पाती थी.

एक शाम पूजा को बुखार आ गया. बुखार मामूली था, इसलिए रचना ने घर पर रखी बुखार की दवा दे दी. फिर समझाबुझा कर कुछ खिला कर सुला दिया. आधी रात को पूजा के कसमसाने से रचना की नींद खुली तो उस ने देखा, पूजा का बदन बुखार से तप रहा था. रचना झट से थर्मामीटर ले आई. बुखार 104 डिगरी था. रचना के होशोहवास उड़ गए. इतना तेज बुखार, वह रोने लगी पर फिर हौसला कर के उस ने सौरभ को फोन मिलाया.

संयोग से सौरभ ने फोन तुरंत रिसीव किया. रचना ने रोतेरोते सौरभ को सारी बात बताई.

सौरभ ने कहा, ‘‘घबराओ मत, पूजा को तुरंत डाक्टर के पास ले कर जाओ.’’

रचना ने कहा, ‘‘आप जानते हैं न, यहां रात के 12 बज रहे हैं. गाड़ी खराब है. एकमात्र पड़ोसी बाहर गए हैं. मैं और किसी को जानती भी तो नहीं इस शहर में.’’

‘‘नीरज, हां, नीरज है न, उसे कौल करो. वह तुम्हारी जरूर मदद करेगा.’’

‘‘पर सौरभ, इतनी रात, मैं अकेली, क्या नीरज को बुलाना ठीक रहेगा?’’

‘‘इस में ठीकगलत क्या है? पूजा बीमार है. उसे डाक्टर को दिखाना जरूरी है. बस, इस समय यही सोचना जरूरी है.’’

‘‘पर फिर भी…’’

‘‘तुम किस असमंजस में पड़ गईं? अरे, नीरज अच्छा इंसान है. 2-4 मुलाकातों में ही मैं उसे जान गया हूं. तुम उसे कौल करो, मुझे किसी की परवा नहीं. तुम इसे मेरी सलाह मानो या आदेश.’’

‘‘ठीक है, मैं कौल करती हूं.’’ रचना ने कह तो दिया पर सोच में पड़ गई. रात को 12 बजे नीरज को कौल कर के बुलाना उसे बड़ा अटपटा लग रहा था. वह सोचती रही, और कुछ देर यों ही बुत बन कर बैठी रही.

पर कौल करना जरूरी था, वह यह भी जानती थी. सो, उस ने फोन हाथ में लिया और नंबर डायल किया. घंटी गई और किसी ने उसे काट दिया. आवाज आई, ‘यह नंबर अभी व्यस्त है…’ उस ने फिर डायल किया. फिर वही आवाज आई.

अब क्या करूं, वह तो फोन ही रिसीव नहीं कर रहा. चलो, एक बार और कोशिश करती हूं, यह सोच कर वह रिडायल कर ही रही थी कि कौलबैल बजी.

इतनी रात, कौन हो सकता है? रचना यह सोच कर घबरा गई, ‘तभी उस के लैंडलाइन फोन की घंटी बजी. उस ने डरतेडरते फोन रिसीव किया.

‘‘हैलो रचना, मैं नीरज, दरवाजा खोलो, मैं बाहर खड़ा हूं.’’

रचना को बड़ा आश्चर्य हुआ. नीरज ने तो मेरा फोन रिसीव ही नहीं किया. फिर यह यहां कैसे आया. पर उस ने दरवाजा खोल दिया.

‘‘कहां है पूजा?’’ नीरज ने अंदर आते ही पूछा. स्तंभित सी रचना ने पूजा के कमरे की ओर इशारा कर दिया.

नीरज ने पूजा को गोद में उठाया और बोला, ‘‘घर को लौक करो. हम पूजा को डाक्टर के पास ले चलते हैं. ज्यादा देर करना ठीक नहीं है.’’

गाड़ी चलातेचलाते नीरज ने कहा, ‘‘यह तो अच्छा हुआ कि आज मैं ने सौरभजी का कौल रिसीव कर लिया वरना रात को तो मैं घोड़े बेच कर सोता हूं और कई बार तो फोन भी स्विच औफ कर देता हूं.’’

अब रहस्य पर से परदा उठ चुका था यानी कि उस के कौल से पहले ही सौरभ का कौल पहुंच चुका था नीरज के पास.

पूजा को डाक्टर को दिखा कर, आवश्यक दवाइयां ले कर रचना ने नीरज को धन्यवाद कह कर विदा कर दिया और फिर सौरभ को फोन लगाया.

इस से पहले कि सौरभ कुछ बोलता, रचना बोली, ‘‘धन्यवाद, हमारा इतना ध्यान रखने के लिए और मुझ पर इतना विश्वास करने के लिए. इतना विश्वास तो शायद मुझे भी खुद पर नहीं है, तभी तो मुझे नीरज को फोन करने के लिए इतना सोचना पड़ा.’’

सौरभ बोले, ‘‘मुझे धन्यवाद कैसा? यह तो आदानप्रदान है. तुम भी तो मुझे परदेश में इसी विश्वास के साथ आने देती हो कि मैं लौट कर तुम्हारे पास अवश्य आऊंगा. तो क्या मैं इतना भी नहीं कर सकता. यह विश्वास नहीं, प्यार है.’’

चमत्कार : मोहिनी की शादी में क्या हुआ था ?

‘‘मोहिनी दीदी पधार रही हैं,’’ रतन, जो दूसरी मंजिल की बालकनी में मोहिनी के लिए पलकपांवडे़ बिछाए बैठा था, एकाएक नाटकीय स्वर में चीखा और एकसाथ 3-3 सीढि़यां कूदता हुआ सीधा सड़क पर आ गया.

उस के ऐलान के साथ ही सुबह से इंतजार कर रहे घर और आसपड़ोस के लोग रमन के यहां जमा होने लगे.

‘‘एक बार अपनी आंखों से बिटिया को देख लें तो चैन आ जाए,’’ श्यामा दादी ने सिर का पल्ला संवारा और इधरउधर देखते हुए अपनी बहू सपना को पुकारा.

‘‘क्या है, अम्मां?’’ मोहिनी की मां सपना लपक कर आई थीं.

‘‘होना क्या है आंटी, दादी को सिर के पल्ले की चिंता है. क्या मजाल जो अपने स्थान से जरा सा भी खिसक जाए,’’ आपस में बतियाती खिलखिलाती मोहिनी की सहेलियों, ऋचा और रीमा ने व्यंग्य किया था.

‘‘आग लगे मुए नए जमाने को. शर्म नहीं आती अपनी पोशाक देख कर? न गला, न बांहें, न पल्ला, न दुपट्टा और चली हैं दादी की हंसी उड़ाने,’’ ऋचा और रीमा को आंखों से ही घुड़क दिया. वे दोनों चुपचाप दूसरे कमरे में चली गईं.

लगभग 2 साल पहले सपना ने अपने पति रामेश्वर बाबू को एक दुर्घटना में गंवा दिया था. श्यामा दादी ने अपना बेटा खोया था और परिवार ने अपना कर्णधार. दर्द की इस सांझी विरासत ने परिवार को एक सूत्र में बांध दिया था.

‘‘चायनाश्ते का पूरा प्रबंध है या नहीं? पहली बार ससुराल से लौट रही है हमारी मोहिनी. और हां, बेटी की नजर उतारने का प्रबंध जरूर कर लेना,’’ दादी ने लाड़ जताते हुए कहा था.

‘‘सब प्रबंध है, अम्मां. आप तो सचमुच हाथपैर फुला देती हैं. नजर आदि कोरा अंधविश्वास है. पंडितों की साजिश है,’’ सपना अनचाहे ही झल्ला गई थी.

‘‘बुरा मानने जैसा तो कुछ कहा नहीं मैं ने. क्या करूं, जबान है, फिसल जाती है. नहीं तो मैं कौन होती हूं टांग अड़ाने वाली?’’ श्यामा दादी सदा की तरह भावुक हो उठी थीं.

‘‘अब तुम दोनों झगड़ने मत लगना. शुक्र मनाओ कि सबकुछ शांति से निबट गया नहीं तो न जाने क्या होता?’’ मोहिनी के बड़े भाई रमन ने बीचबचाव किया तो उस की मां सपना और दादी श्यामा तो चुप हो गईं पर उस के मन में बवंडर सा उठने लगा. क्या होता यदि मोहिनी के विवाह के दिन ऊंट दूसरी करवट बैठ जाता? वह तो अपनी सुधबुध ही खो बैठा था. उस की यादों में तो आज भी सबकुछ वैसा ही ताजा था.

‘भैया, ओ भैया. कहां हो तुम?’ रतन इतनी तीव्रता से दौड़ता हुआ घर में घुसा था कि सभी भौचक्के रह गए थे. वह आंगन में पड़ी कुरसी पर निढाल हो कर गिरा था और हांफने लगा था.

‘क्या हुआ?’ बाल संवारती हुई अम्मां कंघी हाथ में लिए दौड़ी आई थीं. रमन दहेज के सामान को करीने से संदूक में लगवा रहा था. उस ने रतन के स्वर को सुन कर भी अनसुना कर दिया था.

शादी का घर मेहमानों से भरा हुआ था. सभी जयमाला की रस्म के लिए सजसंवर रहे थे. सपना और रतन के बीच होने वाली बातचीत को सुनने के लिए सभी बेचैन हो उठे थे. पर रतन के मुख से कुछ निकले तब न. उस की आंखों से अनवरत आंसू बहे जा रहे थे.

‘अरे, कुछ तो बोल, हुआ क्या? किसी ने पीटा है क्या? हाय राम, इस की कनपटी से तो खून बह रहा है,’ सपना घबरा कर खून रोकने का प्रयत्न करने लगी थीं. सभी मेहमान आंगन में आ खड़े हुए थे.

श्यामा दादी दौड़ कर पानी ले आई थीं. घाव धो कर मरहमपट्टी की. रतन को पानी पिलाया तो उस की जान में जान आई.

‘मेरी छोड़ो, अम्मां, रमन भैया को बुलाओ…वहां मैरिज हाल में मारपीट हो गई है. नशे में धुत बराती अनापशनाप बक रहे थे.’’

सपना रमन को बुलातीं उस से पहले ही रतन के प्रलाप को सुन कर रमन दौड़ा आया था. रतन ने विस्तार से सब बताया तो वह दंग रह गया था. वह तेजी से मैरिज हाल की ओर लपका था उस के मित्र प्रभाकर, सुनील और अनिल भी उस के साथ थे.

रमन मैरिज हाल पहुंचा तो वहां कोहराम मचा हुआ था. करीने से सजी कुरसियांमेजें उलटी पड़ी थीं. आधी से अधिक कुरसियां टूटी पड़ी थीं.

‘यह सब क्या है? यहां हुआ क्या है, नरेंद्र?’ उस ने अपने चचेरे भाई से पूछा था.

‘बराती महिलाओं का स्वागत करने घराती महिलाओं की टोली आई थी. नशे में धुत कुछ बरातियों ने न केवल महिलाओं से छेड़छाड़ की बल्कि बदतमीजी पर भी उतर आए,’ नरेंद्र ने रमन को वस्तुस्थिति से अवगत कराया था.

रमन यह सब सुन कर भौचक खड़ा रह गया था. क्या करे क्या नहीं…कुछ समझ नहीं पा रहा था.

‘पर बराती गए कहां?’ रमन रोंआसा हो उठा था. कुछ देर में स्वयं को संभाला था उस ने.

‘जाएंगे कहां? बात अधिक न बढ़ जाए इस डर से हम ने उन्हें सामने के दोनों कमरों में बंद कर के ताला लगा दिया,’ नरेंद्र ने क्षमायाचनापूर्ण स्वर में बोल कर नजरें झुका ली थीं.

‘यह क्या कर दिया तुम ने. क्या तुम नहीं जानते कि मैं ने कितनी कठिनाई से पाईपाई जोड़ कर मोहिनी के विवाह का प्रबंध किया था. तुम लोग क्या जानो कि पिता के साए के बिना जीवन बिताना कितना कठिन होता है,’ रमन प्रलाप करते हुए फूटफूट कर रो पड़ा था.

‘स्वयं को संभालो, रमन. मैं क्या मोहिनी का शत्रु हूं? तुम ने यहां का दृश्य देखा होता तो ऐसा नहीं कहते. तुम्हें हर तरफ फैला खून नजर नहीं आता? यदि हम करते इन्हें बंद न तो न जाने कितने लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते,’ नरेंद्र, उस के मित्र प्रभाकर, सुनील और अनिल भी उसे समझाबुझा कर शांत करने का प्रयत्न करने लगे थे.

किसी प्रकार साहस जुटा कर रमन उन कमरों की ओर गया जिन में बराती बंद थे. उसे देखते ही कुछ बराती मुक्के हवा में लहराने लगे थे.

‘तुम लोगों का साहस कैसे हुआ हमें इस तरह कमरों में बंद करने का,’ कहता हुआ एक बराती दौड़ कर खिड़की तक आया और गालियों की बौछार करने लगा. एक अन्य बराती ने दूसरी खिड़की से गोलियों की झड़ी लगा दी. रमन और उस के साथी लेट न गए होते तो शायद 1-2 की जान चली जाती.

दूल्हा ‘राजीव’ पगड़ी आदि निकाल ठगा सा बैठा था.

‘समझ क्या रखा है? एकएक को हथकडि़यां न लगवा दीं तो मेरा नाम सुरेंद्रनाथ नहीं,’ वर के पिता मुट्ठियां हवा में लहराते हुए धमकी दे रहे थे.

चंद्रा गार्डन नामक इस मैरिज हाल में घटी घटना का समाचार जंगल की आग की तरह फैल गया था. समस्त मित्र व संबंधी घटनास्थल पर पहुंच कर विचारविमर्श कर रहे थे.

चंद्रा गार्डन से कुछ ही दूरी पर जानेमाने वकील और शहर के मेयर रामबाबू रहते थे. रमन के मित्र सुनील के वे दूर के संबंधी थे. उसे कुछ न सूझा तो वह अनिल और प्रभाकर के साथ उन के घर जा पहुंचा.

रामबाबू ने साथ चलने में थोड़ी नानुकुर की तो तीनों ने उन के पैर पकड़ लिए. हार कर उन को उन के साथ आना ही पड़ा.

रामबाबू ने खिड़की से ही वार्त्तालाप करने का प्रयत्न किया पर वरपक्ष का कोई व्यक्ति बात करने को तैयार नहीं था. वे हर बात का उत्तर गालियों और धमकियों से दे रहे थे.

रामबाबू ने प्रस्ताव रखा कि यदि वरपक्ष शांति बनाए रखने को तैयार हो तो वह कमरे के ताले खुलवा देंगे पर लाख प्रयत्न करने पर भी उन्हें कोई आश्वासन नहीं मिला. साथ ही सब को गोलियों से भून कर रख देने की धमकी भी मिली.

इसी ऊहापोह में शादी के फूल मुरझाने लगे. बड़े परिश्रम और मनोयोग से बनाया गया भोजन यों ही पड़ापड़ा खराब होने लगा.

‘जयमाला’ के लिए सजधज कर बैठी मोहिनी की आंखें पथरा गईं. कुछ देर पहले तक सुनहरे भविष्य के सपनों में डूबी मोहिनी को वही सपने दंश देने लगे थे.

काफी प्रतीक्षा के बाद वह भलीभांति समझ गई कि दुर्भाग्य ने उस का और उस के परिवार का साथ अभी तक नहीं छोड़ा है. मन हुआ कि गले में फांसी का फंदा लगा कर लटक जाए, पर रमन का विचार मन में आते ही सब भूल गई. किस तरह कठिन परिश्रम कर के रमन भैया ने पिता के बाद कर्णधार बन कर परिवार की नैया पार लगाई थी. वह पहले ही इस अप्रत्याशित परिस्थिति से जूझ रहा था और एक घाव दे कर वह उसे दुख देने की बात सोच भी नहीं सकती थी.

उधर काफी देर होहल्ला करने के बाद बराती शांत हो गए थे. बरात में आए बच्चे भूखप्यास से रोबिलख रहे थे. बरातियों ने भी इस अजीबोगरीब स्थिति की कल्पना तक नहीं की थी.

अत: जब मेयर रामबाबू ने फिर से कमरों के ताले खोलने का प्रस्ताव रखा, बशर्ते कि बराती शांति बनाए रखें तो वरपक्ष ने तुरंत स्वीकार कर लिया.

अब तक अधिकतर बरातियों का नशा उतर चुका था. पर रस्सी जलने पर भी ऐंठन नहीं गई थी. वर के पिता सुरेंद्रनाथ तथा अन्य संबंधियों ने बरात के वापस जाने का ऐलान कर दिया. रामबाबू भी कच्ची गोलियां नहीं खेले थे. उन के इशारा करते ही कालोनी के युवकों ने बरातियों को चारों ओर से घेर लिया था.

‘देखिए श्रीमान, मोहिनी केवल एक परिवार की नहीं सारी कालोनी की बेटी है. जो हुआ गलत हुआ पर उस में बरातियों का दोष भी कम नहीं था,’ रामबाबू ने बात सुलझानी चाही थी.

‘चलिए, मान लिया कि दोचार बरातियों ने नशे में हुड़दंग मचाया था तो क्या आप हम सब को सूली पर चढ़ा देंगे?’ वरपक्ष का एक वयोवद्ध व्यक्ति आपा खो बैठा था.

‘आप इसे केवल हुड़दंग कह रहे हैं? गोलियां चली हैं यहां. न जाने कितने घरातियों को चोटें आई हैं. आप के सम्मान की बात सोच कर ही कोई थानापुलिस के चक्कर में नहीं पड़ा,’ रमन के चाचाजी ने रामबाबू की हां में हां मिलाई थी.

‘तो आप हमें धमकी दे रहे हैं?’ वर के पिता पूछ बैठे थे.

‘धमकी क्यों देने लगे भला हम? हम तो केवल यह समझाना चाह रहे हैं कि आप बरात लौटा ले गए तो आप की कीर्ति तो बढ़ने से रही. जो लोग आप को उकसा रहे हैं, पीठ पीछे खिल्ली उड़ाएंगे.’

‘अजी छोडि़ए, इन सब बातों में क्या रखा है. अब तो विवाह का आनंद भी समाप्त हो गया और इच्छा भी,’ लड़के के पिता सुरेंद्रनाथ बोले थे.

‘आप हां तो कहिए, विवाह तो कभी भी हो सकता है,’ रामबाबू ने पुन: समझाया था.

काफी नानुकुर के बाद वरपक्ष ने विवाह के लिए सहमति दी थी.

‘इन के तैयार होने से क्या होता है. मैं तो तैयार नहीं हूं. यहां जो कुछ हुआ उस का बदला तो ये लोग मेरी बहन से ही लेंगे. आप ही कहिए कि उस की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा. माना हमारे सिर पर पिता का साया नहीं है पर हम इतने गएगुजरे भी नहीं हैं कि सबकुछ देखसमझ कर भी बहन को कुएं में झोंक दें,’ तभी रमन ने अपनी दोटूक बात कह कर सभी को चौंका दिया था और फूटफूट कर रोने लगा था.

कुछ क्षणों के लिए सभी स्तब्ध रह गए थे. रामबाबू से भी कुछ कहते नहीं बना था. पर तभी अप्रत्याशित सा कुछ घटित हो गया था. भावी वर राजीव स्वयं उठ कर रमन को सांत्वना देने लगा था, ‘मैं आप को आश्वासन देता हूं कि आप की बहन मोहिनी विवाह के बाद पूर्णतया सुरक्षित रहेगी. विवाह के बाद वह आप की बहन ही नहीं मेरी पत्नी भी होगी और उसे हमारे परिवार में वही सम्मान मिलेगा जो उसे मिलना चाहिए.’

‘ले, सुन ले रमन, अब तो आंसू पोंछ डाल. इस से बड़ी गारंटी और कोई क्या देगा,’ रामबाबू बोले थे.

धीरेधीरे असमंजस के काले मेघ छंटने लगे थे. नगाड़े बज उठे थे. बैंड वाले अपनी ही धुन पर थिरक रहे थे. रमन पुन: बरातियों के स्वागतसत्कार मेें जुट गया था.

रमन न जाने और कितनी देर अपने दिवास्वप्न में डूबा रहता कि तभी मोहिनी ने अपने दोनों हाथों से उस के नेत्र मूंद दिए थे.

‘‘बूझो तो जानें,’’ वह अपने चिरपरिचित अंदाज में बोली थी.

रमन ने उसे गले से लगा लिया. सारा घर मेहमानों से भर गया था. सभी मोहिनी की एक झलक पाना चाहते थे.

मोहिनी भी सभी से मिल कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रही थी. तभी रामबाबू ने वहां पहुंच कर सब के आनंद को दोगुना कर दिया था. रमन कृतज्ञतावश उन के चरणों में झुक गया था.

‘‘काकाजी उस दिन आप ने बीचबचाव न किया होता तो न जाने क्या होता,’’ वह रुंधे गले से बोला था.

‘‘लो और सुनो, बीचबचाव कैसे न करते. मोहिनी क्या हमारी कुछ नहीं लगती. वैसे भी यह हमारे साथ ही दो परिवार के सम्मान का भी प्रश्न था,’’ रामबाबू मुसकराए फिर

राजीव से बोले, ‘‘एक बात की बड़ी उत्सुकता है हम सभी को कि वे लोग थे कौन जिन्होंने इतना उत्पात मचाया था? मुझे तो ऐसा लगा कि बरात में 3-4 युवक जानबूझ कर आग को हवा दे रहे थे.’’

‘‘आप ने ठीक समझा, चाचाजी,’’ राजीव बोला, ‘‘वे चारों हमारे दूर के संबंधी हैं. संपत्ति को ले कर हमारे दादाजी से उन का विवाद हो गया था. वह मुकदमा हम जीत गए, तब से उन्होंने मानो हमें नीचा दिखाने की ठान ली है. सामने तो बड़ा मीठा व्यवहार करते हैं पर पीठ पीछे छुरा भोंकते हैं,’’ राजीव ने स्पष्ट किया.

‘‘देखा, रमन, मैं न कहता था. वे तो विवाह रुकवाने के इरादे से ही बरात में आए थे, पर उस दिन राजीव, तुम ने जिस साहस और सयानेपन का परिचय दिया, मैं तो तुम्हारा कायल हो गया. मोहिनी बेटी के रूप में हीरा मिला है तुम्हें. संभाल कर रखना इसे,’’ रामबाबू ने राजीव की प्रशंसा के पुल बांध दिए थे.

राजीव और मोहिनी की निगाहें एक क्षण को मिली थीं. नजरों में बहते अथाह प्रेम के सागर को देख कर ही रमन तृप्त हो गया था, ‘‘आप ठीक कहते हैं, काका. ऐसे संबंधी बड़े भाग्य से मिलते हैं.’’

वह आश्वस्त था कि मोहिनी का भविष्य उस ने सक्षम हाथों में सौंपा था.

‘आरडब्लूए’ जैसे काम क्यों नहीं करती सरकार?

बजट, टैक्स, सरकार और जनता ये आपस में उलझे हुए शब्द हैं. टैक्स के बारे में कहा जाता है कि अच्छा राजा वह होता है जो जनता से टैक्स ले लेकिन जनता को पता न चले. पहले बजट में ही महंगाई बढ़तीघटती थी. अब साल में कई बार चीजों के दाम बढ़ जाते हैं.

रेल बजट को आम बजट में जोड़ दिया गया है. रेल का टिकट बजट के बाद भी बढ़ता है. सरकार का काम होता है जनता से पैसे ले कर उस के लिए सुविधा और कल्याणकारी योजनाएं चलाए. अब कोई भी सेवा कल्याणकारी नहीं है, सब का बिजनैस मौडल बन गया है. नाममात्र की जो कल्याणकारी योजनाएं हैं उन का बुरा हाल है.

सेना छोड़ कर सभी का निजीकरण हो गया है. सेना में भी अग्निवीर जैसी योजनाएं आ गई हैं जो एक तरह से कौन्ट्रैक्ट सर्विस जैसी हो गई हैं. सेना के बजट में पिछले साल के मुकाबले 3.4 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है. डिफैंस खर्च के लिए 6.2 लाख करोड़ रुपए दिए गए हैं. अंतरिम बजट में सब से बड़ा हिस्सा डिफैंस का ही है. इसे कुल बजट का 8 फीसदी मिला है, जबकि अब देशों से लड़ाई कर के किसी देश पर कब्जा कोई नहीं कर सकता. ऐसे में सेना का बजट बढ़ाने का कोई लाभ नहीं दिखता.

बजट से साफ पता चलता है कि सरकार की कमाई टैक्स से हो रही है. वह इस को कहां खर्च कर रही, यह पता नहीं चल रहा है. 2024-25 में सरकार की कमाई 30.80 लाख करोड़ (उधारी छोड़ कर) और खर्च 47.66 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है.

अगले वित्त वर्ष में सरकार को टैक्स कलैक्शन से कुल 26.02 लाख करोड़ रुपए मिलने का अनुमान है. सरकार सड़क, अस्पताल और स्कूल में खर्च कर रही है. यहां से भी उस की कमाई अलग से हो रही है.

चमकदार चीजों से अलग से खर्च

आज जिस तरह की सड़कें बन रही हैं, उन पर चलने के लिए अलग से टोल टैक्स देना पड़ता है. यह टोल टैक्स हर सड़क पर अलगअलग होता है. यह करीब 2 रुपए प्रति किलोमीटर पड़ता है. आज चमकदार सड़कें वहीं है जहां टोल टैक्स अधिक है. ऐसे में टैक्स का पैसा खर्च कर के सड़कें बन भी रहीं हो तो भी जनता को राहत नहीं मिलती है. साइकिल और बाइक से चलने वाले तो इन सड़कों पर चल भी नहीं सकते. इस तरह की चमकदार सड़कें जनता के किस काम की?

बात सड़कों की ही नहीं है. स्कूल और अस्पतालों का भी यही हाल है. सरकारी स्कूल जहां पर फीस कम होती है वहां के हालात किसी से छिपे नहीं हैं. ऐेसे में जनता के टैक्स के खर्च से सरकारी स्कूल चलाने का क्या लाभ जब जनता को अच्छी शिक्षा के लिए निजी स्कूलों पर ही निर्भर रहना पड़ता है. अब पुलिस, बिजली और सफाई के लिए भी केवल सरकार पर निर्भर नहीं रहा जा सकता. शहरों अपार्टमैंट और गेटेड कालोनी बनने लगी हैं. जहां सुरक्षा के लिए निजी गार्ड रखे जाने लगे हैं. इन को पैसा देना पड़ता है.

इसी तरह से सरकारी सफाई कर्मचारी से ही काम नहीं चलता. ऐेसे में निजी कर्मचारी भी रखे जाने लगे हैं. अधिकांश घरों में बिजली के लिए इन्वर्टर और सोलर पैनल लोग लगाने लगे हैं. सरकार को टैक्स देने के बाद भी लोगों को अपने लिए अलग से खर्च करना पड़ता है. सरकार टैक्स में कोई राहत नहीं दे रही है. 3 लाख रुपए तक की इनकम ही टैक्स फ्री रहेगी.

10 साल में इनकम टैक्स कलैक्शन 3 गुना बढ़ गया है. 7 लाख की आय वालों को कोई कर देय नहीं है. सरकार ने कहा, 2025-2026 तक घाटा को और कम करेंगे. राजकोषीय घाटा 5.1 फीसदी रहने का अनुमान है. 44.90 लाख करोड़ रुपए का खर्च है और 30 लाख करोड़ रुपए का रैवेन्यू आने का अनुमान है.

आवास क्यों बना रही सरकार

2014-23 के दौरान 596 अरब डौलर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आया. यह 2005-2014 के दौरान आए से दोगुना था. सरकार मिडिल क्लास के लिए आवास योजना लाएगी. अगले 5 वर्षों में 2 करोड़ घर बनाए जाएंगे. पीएम आवास के तहत 3 करोड़ घर बनाए गए हैं. इस से बेहतर होता कि सरकार मकान बनाने में लगने वाली सामाग्री सस्ती करे जिस से आदमी खुद से अपना घर बना सके. असल में सरकार यह दिखाने की कोशिश कर रही कि वह गरीबों के लिए काम करती है. इस तरह की कल्याणकारी योजनाएं चलाने की जगह ऐसे काम हों जिन का लाभ जनता को मिल सके.

देश में सब से ज्यादा मुकदमे राजस्व यानी खेती की जमीन से जुड़े हैं. ये विवाद बढ़ते हैं तो झगड़े और मुकदमेबाजी बढ़ती है. सरकार अगर इस तरह के काम करे कि ये झगड़े कम हो सकें तो जनता राहत महसूस करेगी.

हर घर जल योजना से पानी पहुंचाया जा रहा है. 78 लाख स्ट्रीट वैंडर को मदद दी गई है. 4 करोड़ किसानों को पीएम फसल बीमा योजना का लाभ दिया जाता है. पीएम किसान योजना से 11.8 करोड़ लोगों को आर्थिक मदद मिली है. आम लोगों के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास किया जा रहा है. युवाओं को सशक्त बनाने पर भी काम किया है.

सरकार जिस तरह से जनहित की योजनाएं चलाती थी, अब वे कम हो गई हैं. जनहित की योजनाओं की बुरी हालत हो गई है. उन के बराबर निजी योजनाओं में पैसा खर्च करने के लिए लोग बेबस हैं.

सरकार से सवाल नहीं हो सकते

असल में सरकार का काम ‘आरडब्ल्यूए’ यानी रैजिडेंस वैलफेयर एसोसिएशन की तरह से होना चाहिए. जिस तरह से वह प्रति स्क्वायर फुट के हिसाब से मेंटिनैंस चार्ज ले कर सारी सुविधाएं देती है उसी तरह से सरकार को करना चाहिए.

जनता से जो टैक्स ले, उसे सही तरह से आंका जा सके. सरकार इनकम टैक्स लेती है. इस के बाद हर जगह पर अलग टैक्स भी लेती है. जनता को यह पता ही नहीं है कि सरकार किसकिस तरह से उस से पैसा ले रही, उस में से जनता के हित में क्या खर्च कर रही?

‘आरडब्ल्यूए’ से सवाल किए जा सकते हैं, सरकार से सवाल नहीं पूछे जा सकते. ऐसे में सरकार एक साहूकार की तरह से जनता से पैसे ले तो लेती है पर पैसे खर्च कैसे कर रही है, यह नहीं पूछ सकते. न ही सरकार इस को ले कर कुछ कहती है. जनता से जो पैसे वसूल होते हैं उस का बड़ा हिस्सा रिश्वतखोरी और सरकार के शाही खर्चों में खर्च हो रहा है. जनता के टैक्स के पैसे खा कर सरकार का पेट निकलता जा रहा है. जनता टैक्स देदे कर सूखती जा रही है.

खतरनाक तेजी से गिर रहा है भूजल का स्तर

मानसी की उम्र बीस-बाइस साल की होगी. इंटरमीडिएट के बाद उस ने पढ़ाई छोड़ दी. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए उस ने सोचा कि नौकरी कर ले. एक कोरियर कंपनी में उस ने पैकेट रिसीव करने की छोटी सी जौब कर ली, मगर उस की 5,000 रुपए महीने की यह नौकरी 15 दिन भी नहीं चल पाई. वजह थी पानी, जिस के लिए उस को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा. 9 लोगों के अपने परिवार की पानी की जरूरत पूरी करने के लिए मानसी को अपनी मां और अपनी बड़ी बहन के साथ महल्ले के उस नल पर लंबी लाइन में घंटों खड़े रहना पड़ता है, जिस में निगम का पानी कुछ देर के लिए छोड़ा जाता है. वहां पानी नहीं मिलता तो उस को सड़क पर पानी के टैंकर के इंतज़ार में घंटों बैठना पड़ता है. जिस दिन दोदो बालटी पानी तीनों को मिल जाता है, समझो उस दिन त्योहार हो जाता है. 9 लोगों के उस के परिवार में सभी प्राणी रोज नहीं नहाते. आज अगर मानसी ने एक बालटी पानी में नहाना और सिर धोना कर लिया तो उस का नंबर दोबारा 5 दिनों बाद आता है. नहाने के अलावा खाना बनाने, पीने, कपड़े धोने और शौच के लिए भी पानी की आवश्यकता होती है. ऐसे में दिल्ली जैसी जगह में रहते हुए भी इस परिवार को राजस्थान के दूरदराज रेगिस्तानी इलाके में रहने जैसा अनुभव होता है. घर की कोई लड़की न तो ठीक से पढ़लिख सकती है, न ही नौकरी कर सकती है, उन के दिनरात पानी ढूंढने और भरने में जाते हैं.

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने भारत सहित दुनिया के 40 देशों में भूमि जल पर शोध कर यह खुलासा किया है कि भूजल का स्तर दुनियाभर में बड़ी तेजी से गिर रहा है. हमारे क़दमों तले संकट गहराता जा रहा है, और हम बेफिक्र हैं. रिसर्च के दौरान 1,700 जलस्रोतों की जांच में पता चला है कि वर्ष 2000 के बाद से इन में से लगभग आधे जलस्रोत सूखने की कगार पर पहुंच गए हैं. हालांकि 7 फीसदी जलस्रोतों में आश्चर्जनक रूप में पानी का स्तर बढ़ा भी है, जो कुछ राहत देता है.

इस रिसर्च में 3 वर्ष का समय लगा है और यह भूजल स्तर की वास्तविक स्थिति बताने वाला दुनिया का पहला अध्ययन है. रिसर्च के दौरान पिछले सौ वर्षों में 15 लाख कुओं से 300 मिलियन जल स्तर माप को समझने के लिए डाटा को एकत्रित किया गया है.

अध्ययन से यह बात प्रकाश में आई है कि सब से ज्यादा भूमि जल का स्तर कृषि क्षेत्रों में कम हुआ है. जहां जलवायु शुष्क है और बहुत सारी जमीन पर खेती होती है, वहां समस्या ज़यादा पैदा हुई है. भारत सहित कैलिफोर्निया की सैंट्रल वैली और संयुक्त राज्य अमेरिका के उच्च मैदानी क्षेत्र भूजल के मामले में गंभीर स्थितियों का सामना कर रहे हैं. जमीन के अंदर का पानी हर दिन .05 सैमी की दर से नीचे जा रहा है. जमीन की नमी खत्म होने से आने वाले एक दशक के भीतर कई क्षेत्रों में पीने का पानी भी पहुंच से दूर हो जाएगा. भूजल में गिरावट के चलते हम चाहे जितने बीज बिखेर दें, उन की देखभाल कर लें, नन्हा अंकुर कभी जमीन से बाहर नहीं आएगा, इस से कृषि क्षेत्रों को भारी मुसीबत का सामना करना पड़ेगा.

दिल्ली हर साल औसतन 0.2 मीटर भूजल खो रही है. इस लिहाज से हर दिन दिल्ली की जमीन के नीचे का पानी 0.05 सैंटीमीटर नीचे जा रहा है. यहां के करीब 80 फीसदी स्त्रोत क्रिटिकल या सैमी क्रिटिकल स्थिति में आ चुके हैं. वजह यह है कि इन इलाकों में भूजल का दोहन खतरे के गंभीर स्तर तक किया जा रहा है. इंडिया डाटा पोर्टल की एक रिपोर्ट भी कहती है कि भारत में बीते 16 वर्षों में सैमी क्रिटिकल जोन में करीब 50 फीसदी का इजाफा हुआ है. साल 2004 से 2020 के बीच इन की संख्या 550 से बढ़ कर 1,057 पहुंच गई है.

भूजल के गिरते स्तर के कई कारण हैं. मुख्य है, घरघर में होने वाली अवैध बोरिंग, जो अनावश्यक रूप से धरती का जल खींच कर बरबाद कर रही है. आजकल छोटेबड़े सभी शहरों में और यहां तक कि छोटेछोटे कसबों और गावों में अधिकतर पानी बोरिंग कर के ही निकाला जा रहा है और दूसरी ओर बरसात के पानी को इकट्ठा करने के सारे तरीके लगभग बंद हो चुके हैं. उत्तर प्रदेश की ही बात करें तो यहां जितने तालाब 50 साल पहले होते थे उन में से 80 फ़ीसदी मिट्टी से पाटे जा चुके हैं और उन पर बड़ीबड़ी बिल्डिंग व मकान खड़े हो गए हैं. नगर निगम के दस्तावेजों में जहांजहां तालाब दर्ज हैं उन जगहों का निरीक्षण करने पर दूरदूर तक तालाब का नामोनिशान नहीं मिलता. यही हाल दिल्ली एनसीआर का है. यमुना के आसपास के इलाके में भी अब भूजल का स्तर खतरे की सीमा तक पहुंच गया है. एनसीआर में 50 साल पहले जितने तालाब थे, आज उन में से एक भी नहीं बचा है. लिहाजा, बरसात का पानी कहीं इकट्ठा ही नहीं होता. पहले लोग घर के आंगन में टैंक बनवा कर बरसाती पानी इकट्ठा करते थे, अब घर इतने छोटे हो गए हैं कि उन में आंगन ही नहीं हैं. फ्लैट कल्चर ने भी धरती और धरती के पानी को बहुत नुकसान पहुंचाया है. कुकुरमुत्तों की तरह उग आईं ऊंचीऊंची बिल्डिंस में गहरीगहरी बोरिंग के जरिए पानी की आवश्यकता को पूरा किया जाता है. निगम का पानी तो बमुश्किल एक या दो घंटे ही आता है.

63 वर्षीय आशा देवी पानी के लिए अकसर परेशान रहती हैं. सप्ताह में 2 से 3 बार ही इन्हें समय पर पानी मिल पाता है क्योंकि अधिकांश समय रात 8 से 9 के बीच पानी नहीं आता और सुबह कभी 5 तो कभी 6 बजे ही पानी आने लगता है. अगर सुबह जल्दी न उठें तो इन्हें पानी के लिए पूरे दिन परेशान रहना पड़ता है. आशा देवी बताती हैं कि यह हालत सिर्फ गरमी में ही नहीं, बल्कि इन दिनों सर्दी में भी है. वे कहती हैं, ‘दिल्ली में बारिश साल में गिनती के चंद रोज ही होती है. बारिश हो या न, हमारे लिए यह संकट बना ही रहता है. जूनजुलाई में पानी की किल्लत बहुत बढ़ जाती है.’

यह स्थिति अकेले आशा देवी की नहीं है बल्कि पूर्वीदिल्ली के लक्ष्मीनगर इलाके के जे एक्सटेंशन में ज्यादातर घर इस का सामना कर रहे हैं. यहां से चंद किलोमीटर दूर मयूर विहार निवासी अंकिता बंसोड कहती हैं कि दिनभर उन की ड्यूटी बस यही देखने की है कि नल आया या नहीं. इस की वजह से वे बारबार मोटर चलाती हैं. कई बार चलाने से वह एयर ले जाती है और फिर मैकेनिक बुलाना पड़ता है. यह हर महीने की हालत है और करीब 500 से एक हजार रुपए का खर्चा मोटर की एयर निकालने में ही लग जाता है.

निगम से आने वाले पानी की ऐसी दशा के कारण ही अधिकांश घरों में अवैध बोरिंग है जो भूजल के लिए बड़ा संकट का कारण बन चुकी है. जलवायु परिवर्तन और बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग के कारण भी जमीन की ऊपरी सतह की नमी सूख गई है. गौरतलब है कि जब भूमिगत जल का स्तर कम होता है, तो नदियों और नदियों का प्रदूषित सतही जल अधिकाधिक भूजल में मिल जाता है, जो हमारे पीने के पानी और भूजल पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डाल देता है. नदी के पानी में शहर की गंदगी और सीवेज के अतिरिक्त दवाओं के अवशेषों, घरेलू रसायनों, कृत्रिम मिठास और अन्य दूषित पदार्थ मिले होते हैं. जो भूजल में मिल कर पीने योग्य पानी को जहरीला कर रहे हैं. जमीनी पानी के कम होने से जगहजगह धरती के धंसने की समस्याएं सामने आ रही हैं.

Poonam Pandey Death : फेमस एक्ट्रेस पूनम पांडे ने इस बीमारी के कारण तोड़ा दम

Poonam Pandey Death : अभिनेत्री और सोशल मीडिया पर हमेशा अपने अजीबोगरीब बयानों व हरकतों के चलते छाई रहने वाली पूनम पांडे का आज सुबह सर्वाइकल कैंसर के कारण दुखद निधन हो गया, जिस से मनोरंजन उद्योग सदमे और शोक में डूब गया.

मौडलिंग और सोशल मीडिया पर मजबूत उपस्थिति के लिए मशहूर 32 वर्षीया पूनम ने निधन से पहले बीमारी के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी. अंतिम समय तक उन्होंने किसी को एहसास ही नहीं होने दिया कि वे बीमार हैं. इसलिए उन की मौत की खबर पर यकीन नहीं किया जा रहा है.

लेकिन पूनम पांडे की मैनेजर निकिता शर्मा ने खुद हमें ईमेल भेज कर इस दिल दहला देने वाली खबर को साझा करते हुए लिखा, ‘‘पूनम पांडे न केवल फिल्म उद्योग में एक चमकदार हस्ती थीं, बल्कि वे ताकत और लचीलेपन की प्रतीक भी थीं. स्वास्थ्य संघर्षों के बीच उन की अटूट भावना वास्तव में उल्लेखनीय थी.”

निकिता शर्मा ने आगे लिखा है, ‘‘जैसे ही हम दुखद क्षति को स्वीकार कर रहे हैं, उन का निधन हम सभी को सर्वाइकल कैंसर जैसी रोकथामयोग्य बीमारियों के खिलाफ बढ़ती जागरूकता और सक्रिय उपायों की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता को पहचानने के लिए मजबूर करता है.’’

इस ईमेल में निकिता शर्मा ने आगे लिखा है, ‘‘पूनम पांडे एक बहुमुखी व्यक्तित्व वाली महिला थीं जो न केवल मनोरंजन उद्योग में अपने काम के लिए बल्कि सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर अपनी जीवंत उपस्थिति के लिए भी जानी जाती हैं. एक मौडल और अभिनेत्री के रूप में उन की यात्रा ने स्क्रीन पर अपनी प्रतिभा और करिश्मा दिखा कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. उन के परोपकारी प्रयासों ने कई लोगों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी है.’’

पूनम पांडे की मैनेजर ने अपने ईमेल में जगह व अस्पताल का जिक्र नहीं किया है, जहां पर पूनम का देहांत हुआ.

असली चेहरा- भाग 2: क्यों अवंतिका अपने पति की बुराई करती थी?

अवंतिका की बातें सुन कर मेरा मन खराब हो गया. देखने में तो उस के पति सौम्य, सुशिक्षित लगते हैं, पर अंदर से कोई कैसा होगा, यह चेहरे से कहां पता चल सकता है? एक पढ़ालिखा उच्चपदासीन पुरुष भी अपने घर में कितना दुर्व्यवहार करता है, यह सोचसोच कर अवंतिका के पति से मुझे नफरत होने लगी. अब अकसर अवंतिका अपने घर की बातें बेहिचक मुझे बताने लगी. उस की बातें सुन कर मुझे उस से सहानुभूति होने लगी कि इतनी अच्छी औरत की जिंदगी एक बदमिजाज पुरुष की वजह से कितनी दुखद हो गई… पहले जब कभी योगिता को बसस्टौप पर छोड़ने अवंतिका की जगह योगिता के पापा आते थे, तो मैं उन से हर विषय पर बात करती थी, किंतु उन की सचाई से अवगत होने के बाद मैं कोशिश करती कि उन से मेरा सामना ही न हो और जब कभी सामना हो ही जाता तो मैं उन्हें अनदेखा करने की कोशिश करती. मेरी धारणा थी कि जो इनसान अपनी पत्नी को सम्मान नहीं दे सकता उस की नजरों में दूसरी औरतों की भला क्या अहमियत होगी.

एक दिन अवंतिका काफी उखड़े मूड में मेरे पास आई और रोते हुए मुझ से कहा कि मैं 2 हजार योगिता के स्कूल टूअर के लिए अपने पास से जमा कर दूं. पति के वापस आने के बाद वापस दे देगी. चूंकि मैं योगिता की कक्षाध्यापिका थी, इसलिए मुझे पता था कि स्कूल टूअर के लिए बच्चों को 2 हजार देने हैं. अत: मैं ने अवंतिका से पैसे देने का वादा कर लिया. पर उस का रोना देख कर मैं पूछे बगैर न रह सकी कि उसे पैसे मुझ से लेने की जरूरत क्यों पड़ गई?

मेरे पूछते ही जैसे अवंतिका के सब्र का बांध टूट पड़ा. बोली, ‘‘आप को क्या बताऊं मैं अपने घर की कहानी… कैसे जिंदगी गुजार रही हूं मैं अपने पति के साथ… बिलकुल भिखारी बना कर रखा है मुझे. कितनी बार कहा अपने पति से कि मेरा एटीएम बनवा दो ताकि जब कभी तुम बाहर रहो तो मैं अपनी जरूरत पर पैसे निकाल सकूं. पर जनाब को लगता है कि मेरा एटीएम कार्ड बन गया तो मैं गुलछर्रे उड़ाने लगूंगी, फुजूलखर्च करने लगूंगी. एटीएम बनवा कर देना तो दूर हाथ में इतने पैसे भी नहीं देते हैं कि मैं अपने मन से कोई काम कर सकूं. जाते समय 5 हजार पकड़ा गए. कल 3 हजार का एक सूट पसंद आ गया तो ले लिया.1 हजार ब्यूटीपार्लर में खत्म हो गए. रात में 5 सौ का पिज्जा मंगा लिया. अब केवल 5 सौ बचे हैं. अब देख लीजिए स्कूल से अचानक 3 हजार मांग लिए गए टूअर के लिए तो मुझे आप से मांगने आना पड़ गया… क्या करूं 2 ही रास्ते बचे थे मेरे पास या तो बेटी की ख्वाहिश का गला घोट कर उसे टूअर पर न भेजूं या फिर किसी के सामने हाथ फैलाऊं. क्या करती बेटी को रोता नहीं देख सकती, तो आप के ही पास आ गई.’’

अवंतिका की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गई. अगर 2 दिन के लिए पति क्व5 हजार दे कर जाता है, तो वे कोई कम तो नहीं हैं पर उन्हीं 2 दिनों में पति के घर पर न होते हुए उन पैसों को आकस्मिक खर्च के लिए संभाल कर रखने के बजाय साजशृंगार पर खर्च कर देना तो किसी समझदार पत्नी के गुण नहीं हैं? शायद उस की इसी आदत की वजह से ही उस के पति एटीएम या ज्यादा पैसे एकसाथ उस के हाथ में नहीं देते होंगे, क्योंकि उन्हें पता होगा कि पैसे हाथ में रहने पर अवंतिका इन्हीं चीजों पर खर्च करती रहेगी. पर फिर भी मैं ने यह कहते हुए उसे पैसे दे दिए कि मैं कोई गैर थोड़े ही हूं, जब कभी पैसों की ऐसी कोई आवश्यकता पड़े तो कहने में संकोच न करना.

कुछ ही दिनों बाद विद्यालय में 3 दिनों की छुट्टी एकसाथ पड़ने पर मेरे पास कुछ खाली समय था, तो मैं ने सोचा कि मैं अवंतिका की इस शिकायत को दूर कर दूं कि मैं एक बार भी उस के घर नहीं आई. मैं ने उसे फोन कर के शाम को अपने आने की सूचना दे दी और निश्चित समय पर उस के घर पहुंच गई. पर डोरबैल बजाने से पहले ही मेरे कदम ठिठक गए. अंदर से अवंतिका और उस के पति के झगड़े की आवाजें आ रही थीं. उस के पति काफी गुस्से में थे, ‘‘कितनी बार समझाया है तुम्हें कि मेरा सूटकेस ध्यान से पैक किया करो, पर तुम्हारा ध्यान पता नहीं कहां रहता है. हर बार कोई न कोई सामान छोड़ ही देती हो तुम… इस बार बनियान और शेविंग क्रीम दोनों ही नहीं रखे थे तुम ने. तुम्हें पता है कि गैस्टहाउस शहर से कितनी दूर है? दूरदूर तक दुकानों का नामोनिशान तक नहीं है. तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकती हो कि मुझे कितनी परेशानी और शर्म का सामना करना पड़ा वहां पर… इस बार तो मेरे सहयोगी ने हंसीहंसी में कह भी दिया कि भाभीजी का ध्यान कहां रहता है सामान पैक करते समय?’’

‘‘देखो, तुम 4 दिन बाद घर आए हो… आते ही चीखचिल्ला कर दिमाग न खराब करो. तुम्हें लगता है कि मैं लापरवाह और बेसलीकेदार हूं तो तुम खुद क्यों नहीं पैक कर लेते हो अपना सूटकेस या फिर अपने उस सहयोगी से ही कह दिया करो आ कर पैक कर जाया करे? मुझे क्यों आदेश देते हो?’’ यह अवंतिका की आवाज थी.

टूटे हुए रिश्तों को कैसे जोड़े, इसके लिए अपनाएं ये टिप्स

किसी भी रिश्ते में एक बार विश्वास टूट जाता है तो उस विश्वास को वापस लाना बहुत मुश्किल होता है. इसी तरह एक रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए उसमें सबसे ज्यादा जरूरत विश्वास की होती है. अगर किसी रिश्ते में विश्वास ही नहीं है तो रिश्ते का टूट जाना ही बेहतर होता है. लेकिन अगर आपने अपने पार्टनर का विश्वास तोड़ा है तो उसे वापस पाने के लिए बहुत सी बातों का ध्यान रखने की जरूरत होती है. अपने रिश्ते को वापस जोड़ना चाहते हैं तो आप दोनों को बराबर कोशिश करने की जरूरत होती है.

  1. अपनी भावनाओं को बताएं:

सबसे पहले आपको अपने साथी के सामने इस बात को मान लेनी चाहिए कि आपने उसके विश्वास तोड़कर गलती की है ताकि उसे इस बात का एहसास हो कि आपको अपनी गलती का पछतावा है. इसके बाद अपनी भावनाओं को बताने की जरूरत है और अपने प्यार को दिखाने की. ये सारी बातें आपके पार्टनर को प्रभावित कर सकती है और आप वापस उनका विश्वास हासिल कर सकते हैं.

  1. माफी मांगें:

आपको अपने रिश्ते में विश्वास वापस लाने के लिए अपने पार्टनर से मांफी मांगने की जरूरत होती है. अपने साथी को इस बात का विश्वास दिलाने पड़ेगा कि जो भी गलती आपसे हुई वैसे आगे भविष्य में नहीं होगी. अगर आपका साथी आपकी बातों को नहीं समझे और आपके मांफी को ना स्वीकार करें तो आपको इस बात से दुखी होने की जरूरत नहीं है बल्कि आपको उन्हें मनाने की और कोशिश करनी चाहिए.

  1. खुद को माफ करें:

अपने साथी से माफी मांगने से पहले आपको खुद को माफ करने की जरूरत है क्योंकि जब तक आप अपनी गलती को माफ नहीं करेंगे तब तक कोई भी उसे माफ नहीं कर पाएगा. किसी रिश्ते में विश्वास लाने से पहले आपको खुद पर विश्वास करने की ज्यादा जरूरत होती है. अपनी गलती को माने और कोशिश करें कि आगे भविष्य में इस गलती को ना दोहराएं और अपने साथी को भी दुख ना दें.

4. अपनी जिंदगी से जुड़ें बातों को शेयर करें:

अगर आप अपने पार्टनर का विश्वास दोबारा जितना चाहते हैं तो उसके लिए आपको अपने जिंदगी से जुड़े हर बात के बारे में अपने साथी को बताना चाहिए ताकि उसे आपके ऊपर किसी प्रकार का संदेह ना रहें. अपने बीच कोई प्राइवेसी ना रखें. इससे आपका साथी शायद इस बात को समझ पाएगा की आप आगे भविष्य में उसके साथ कुछ गलत नहीं करेंगे और ना ही धोखा देंगे.

किशमिश-भाग 1: मंजरी और दिवाकर गंगटोक क्यों गए थे?

‘‘अरे, जरा धीरे चलो भई. कितना तेज चल रहे हो. मुझ में इतनी ताकत थोड़े ही है कि मैं तुम्हारे बराबर चल सकूं,’’ दिवाकर ने कहा और हांफते हुए सड़क के किनारे चट्टान पर निढाल हो कर बैठ गए. फिर पीछे पलट कर देखा तो मंजरी उन से थोड़ी दूर ऐसी ही एक चट्टान पर बैठी अपने दुपट्टे से पसीना पोंछती हलाकान हो रही थी. साथ चल रहे हम्माल ने भी बेमन से सामान सिर से उतारा, बैठ गया और बोला, ‘‘टैक्सी ही कर लेते साहब, ऐसा कर के कितना पैसा बचा लेंगे?’’

‘‘हम पैसा नहीं बचा रहे हैं. रहने दो, तुम नहीं समझोगे,’’ दिवाकर ने कहा. थोड़ी देर में मंजरी ने फिर चलना शुरू किया और उन से आधी दूर तक आतेआते थक कर फिर बैठ गई.

‘‘अरे, थोड़ा जल्दी चलो मैडम, चल कर होटल में आराम ही करना है,’’ दिवाकर ने जोर से कहा. जैसेतैसे वह उन तक पहुंची और थोड़ा प्यार से नाराज होती हुई बोली, ‘‘अरे, कहां ले आए हो, अब इतनी ताकत नहीं बची है इन बूढ़ी होती हड्डियों में.’’

‘‘तुम्हारी ही फरमाइश पर आए हैं यहां,’’ दिवाकर ने भी मंजरी से मजे लेते हुए कहा. आखिरकार वे होटल पहुंच ही गए. वास्तव में मंजरी और दिवाकर अपनी शादी की 40वीं सालगिरह मनाने गंगटोक-जो कि सिक्किम की जीवनरेखा तीस्ता नदी की सहायक नदी रानीखोला के किनारे बसा है और जिस ने साफसफाई के अपने अनुकरणीय प्रतिमान गढ़े हैं-आए हैं. इस से पहले वे अपने हनीमून पर यहां आए थे. और उस समय भी वे इसी होटल तक ऐसे पैदल चल कर ही आए थे. और तब से ही गंगटोक उन्हें रहरह कर याद आता था. यहां उसी होटल के उसी कमरे में रुके हैं, जहां हनीमून के समय रुके थे. यह सब वे काफी प्रयासों के बाद कर पाए थे.

40 साल के लंबे अंतराल के बाद भी उन्हें होटल का नाम याद था. इसी आधार पर गूगल के सहारे वे इस होटल तक पहुंच ही गए. होटल का मालिक भी इस सब से सुखद आश्चर्य से भर उठा था. उस ने भी उन की मेहमाननवाजी में कोई कसर नहीं उठा रखी थी. यहां तक कि उस ने उन के कमरे को वैसे ही संवारा था जैसा वह नवविवाहितों के लिए सजाता है. यह देख कर दिवाकर और मंजरी भी पुलकित हो उठे. उन के चेहरों से टपकती खुशी उन की अंदरूनी खुशी को प्रकट कर रही थी.

फ्रैश हो कर उन दोनों ने परस्पर आलिंगन किया, बधाइयां दीं. फिर डिनर के बाद रेशमी बिस्तरों से अठखेलियां करने लगे. सुबह जब वे उठे तो बारिश की बूंदों ने उन का तहेदिल से स्वागत किया. बड़ीबड़ी बूंदें ऐसे बरस रही थीं मानो इतने सालों से इन्हीं का इंतजार कर रही थीं. नहाधो कर वे बालकनी में बैठे और बारिश का पूरी तरह आनंद लेने लगे.

‘‘चलो, थोड़ा घूम आते हैं,’’ दिवाकर ने मंजरी की ओर कनखियों से देखते हुए कहा.

‘‘इतनी बारिश में, बीमार होना है क्या?’’ मंजरी बनावटी नाराजगी से बोली.

‘‘पिछली बार जब आए थे तब तो खूब घूमे थे ऐसी बारिश में.’’

‘‘तब की बात और थी. तब खून गरम था और पसीना गुलाब,’’ मंजरी भी दिवाकर की बातों में आनंद लेने लगी.

‘‘अच्छा, जब मैं कहता हूं कि बूढ़ी हो गई हो तो फिर चिढ़ती क्यों हो?’’ दिवाकर भी कहां पीछे रहने वाले थे.

‘‘बूढ़े हो चले हैं आप. इतना काफी है या आगे भी कुछ कहूं,’’ मंजरी ने रहस्यमयी चितवन से कहा तो दिवाकर रक्षात्मक मुद्रा में आ गए और अखबार में आंखें गड़ा कर बैठ गए. हालांकि अंदर ही अंदर वे बेचैन हो उठे थे. ‘आखिर इस ने इतना गलत भी तो नहीं कहा,’ उन्होंने मन ही मन सोचा. इतने में कौलबैल बजी. मंजरी ने रूमसर्विस को अटैंड किया. गरमागरम मनपसंद नाश्ता आ चुका था.

‘‘सौरी, मैं आप का दिल नहीं दुखाना चाहती थी. चलिए, नाश्ता कर लीजिए,’’ मंजरी ने पीछे से उन के गले में बांहें डाल कर और उन का चश्मा उतारते हुए कहा. फिर खिलखिला कर हंस दी. दिवाकर की यह सब से बड़ी कमजोरी है. वे शुरू से मंजरी की निश्छल और उन्मुक्त हंसी के कायल हैं. जब वह उन्मुक्त हो कर हंसती है तो उस का चेहरा और भी प्रफुल्लित, और भी गुलाबी हो उठता है. वे उस से कहते भी हैं, ‘तुम्हारी जैसी खिलखिलाहट सब को मिले.’

‘‘आज कहां घूमने चलना है नाथूला या खाचोट पलरी झील? बारिश बंद होने को है,’’ दिवाकर ने नाश्ता खत्म होतेहोते पूछा. मंजरी ने बाहर देखा तो बारिश लगभग रुक चुकी थी. बादलों और सूरज के बीच लुकाछिपी का खेल चल रहा था.

‘‘नाथूला ही चलते हैं. पिछली बार जब गए थे तो कितना मजा आया था. रियली, इट वाज एडवैंचरस वन,’’ कहतेकहते मंजरी एकदम रोमांचित हो गई.

‘‘जैसा तुम कहो,’’ दिवाकर ने कहा. हालांकि उन को मालूम था कि उन के ट्रैवल एजेंट ने उन के आज ही नाथूला जाने के लिए आवश्यक खानापूर्ति कर रखी है.

‘‘अब तक नाराज हो, लो अपनी नाराजगी पानी के साथ गटक जाओ,’’ मंजरी ने पानी का गिलास उन की ओर बढ़ाते हुए कहा और फिर हंस दी. उन दोनों के बीच यह अच्छी बात है कि कोई जब किसी से रूठता है तो दूसरा उस को अपनी नाराजगीपानी के साथ इसी तरह गटक जाने के लिए कहता है और वातावरण फिर सामान्य हो जाता है.

टैक्सी में बैठते ही दोनों हनीमून पर आए अपनी पिछली नाथूला यात्रा की स्मृतियों को ताजा करने लगे.

वास्तव में हुआ यह था कि नाथूला जा कर वापस लौटने में जोरदार बारिश शुरू हो गई थी और रास्ता बुरी तरह जाम. जो जहां था वहीं ठहर गया था. फिर जो हुआ वह रहस्य, रोमांच व खौफ की अवस्मरणीय कहानी है जो उन्हें आज भी न केवल डराती है बल्कि आनंद भी देती है.

क्या थी सलोनी की सच्चाई: भाग 3

सलोनी ने अनिल को फोन करके बुलाया , बताया कि वह प्रेग्नेंट है ” अनिल भी हड़बड़ा गया , बोला ,” सलोनी , तुम एबॉर्शन ही करवा लो  मैं तो तुम्हारी हेल्प नहीं कर पाउँगा ” इतने में ही मुकेश ने खबर दी , कि वह पंद्रह दिन बाद आ जायेगा , पूरे एक महीने की छुट्टी सलोनी का दिल और बुझ गया  कसबे के बाहर एक मशहूर मंदिर था , दोनी इस मंदिर के दर्शन करने खूब आते थे , आज जब सलोनी का दिल दुखी था , वह यूँ ही उस मंदिर में जाकर बैठ गयी , घंटों भूखी प्यासी बैठी रही , वहां के पंडित जयदेव ने देखा तो उसे पीछे बने अपने कमरे में ले गए , पूछा , ”क्या हुआ , सलोनी , क्यों ऐसे सुबह से बैठी हो ?”

सलोनी ने पंडित जी से सोची समझी रणनीति से अपना दुःख बाँट लिया,” पंडित जी , भूल हो गयी मुझसे , मैं  अपने प्राण  देना चाहती हूँ , मुकेश यहाँ नहीं है और मैं गर्भवती हूँ ”

जयदेव का मन खिल उठा , बाहर से गंभीर स्वर में बोला ,” पहले तुम कुछ दिन यहाँ आराम करो , मैं अकेला ही रहता हूँ  मन शांत हो जाए तो बात करेंगें  चिंता मत करो , अब तुम भगवान् के घर बैठी हो , सब ठीक ही होगा ” सलोनी ने जैसा सोचा था , वैसा ही हुआ , वह कुछ दिन लगातार उदास सी जयदेव के पास आती रही , आने वाले समय में उसे जयदेव की जरुरत पड़ सकती थी क्योकि वह यह बिलकुल नहीं चाहती थी कि मुकेश उससे नाराज होकर उससे रिश्ता तोड़ ले , जयदेव ढोंगी पंडित था , सलोनी को मीठी  मीठी बातें करके तसल्ली देता , वह यह नहीं जानता था कि सलोनी ऐसा होने दे रही है , सलोनी ने उसे सम्बन्ध भी बनाने दिए तो जयदेव ऐसे खुश हो गया कि जैसे उसकी लाटरी निकल आयी हो , सलोनी जैसी सुंदरी उससे रिश्ता जोड़ रही है , वह तो खिल उठा सलोनी घर जाती , थोड़ी देर आराम करती , खाना पीना तो जयदेव के भक्तों से ही इतना आ जाता कि जयदेव उसे घर भी खाना देकर ही भेजता सलोनी समय निकालकर पीर बाबा , शौकत मियां के पास भी पहुँच गयी , वहां भी उसने वैसे ही किया जैसे जयदेव के साथ किया था , शौकत मियां को तो उसने घर ही बुला लिया क्योकि शौकत जहाँ रहता था , वहां लोगों का आना जाना बहुत रहता । अब जयदेव और शौकत उसकी मुट्ठी में थे , अब उसकी चिंता कम  हो गयी थी  सलोनी ने जयदेव और शौकत को यह भरोसा दे दिया कि मुकेश के आने के बाद और बच्चा होने के बाद भी वह उन दोनों से हमेशा सम्बन्ध रखेगी , बस , मुकेश के सामने वे कुछ ऐसी बात करें कि सब ठीक रहे  दोनों को एक भरपूर जवान , सुंदर लड़की का साथ मिल रहा था , दोनों ने सलोनी को पूरी मदद करने का भरोसा दिलाया

मुकेश आ गया , सलोनी हमेशा की तरह उसकी बाहों में लिपट गयी , मुकेश सलोनी के पेट के उभार पर बहुत हैरान हुआ , चौंक कर पूछा, अरे , यह मुझे क्यों नहीं बताया ?”

सलोनी ने शर्माते हुए कहा , ” तुम्हे सरप्राइज देना था’

”कितने दिन हुए ?”

सलोनी ने कहा ,” चौथा महीना ”

” पर मैं तो इस बार ज्यादा समय बाद आया हूँ , ” मुकेश हिसाब लगाने लगा , तो सलोनी ने पूरे कॉन्फिडेंस  से कहा , क्या हिसाब लगा रहे हो ? बस , खुश होने की बात है , खुश हो जाओ ”

मुकेश के माथे पर बल पड़े , इतने में जयदेव  ने दरवाजा नॉक किया , माहौल की गंभीरता समझी , मुकेश उनके पैर छू कर आशीर्वाद लेने लगा ,” अरे , पंडित जी , आप ? यहाँ ?”

”हाँ , यहाँ से निकल रहा था कि सोचा देख लूँ , सलोनी ठीक तो है , मुकेश , इतनी बड़ी भगवान् की पूजा करने वाली भक्त पत्नी मिली है , तुम बहुत किस्मत वाले हो , मुकेश  पर बात क्या है ?”

मुकेश ने अपने मन की दुविधा जयदेव को बता दी क्योकि उसके हिसाब से पंडित जी तो भगवान् का सबसे बड़ा रूप थे , और वे उसकी सब प्रॉब्लम दूर कर सकते थे , जयदेव का कहा तो मुकेश के लिए ईश्वर की आवाज़ थी , जयदेव ने शांत स्वर में कहा ,” बेटा , यह सब ईश्वर की लीला है , अपनी देवी सामान पत्नी पर भूल कर भी शक मत करना , रोज दर्शन के लिए मंदिर आती , सत्संग सुनती है , कौन अपना इतना समय आजकल ईश्वर की भक्ति में लगाता है ? आने वाला बच्चा ईश्वर का प्रसाद है , खुश होकर इसका स्वागत करो , बेटा ।” सलोनी जितना भोला चेहरा इस बीच बना सकती थी , बनाकर अपने झूठे आंसू पोंछती रही . जयदेव सलोनी की तरफ बदमाशी से देख कर मुस्कुराता हुआ चला गया. मुकेश सर पकड़कर बैठा था , सलोनी ने उसके लिए खाना तैयार किया , वह चुप ही रहा , इतने में शौकत मियां आ गए , बाहर से ही आवाज दी , ” मुकेश , कैसे हो ? ठीक तो हो ?”

मुकेश ने उनका स्वागत करते हुए पूछा ,” आपको   कैसे पता , बाबा ,कि मैं आ गया हूँ ”

”कल सलोनी आयी थी , तुम्हारे लिए दुआएं करवाने और यह ख़ुशी बताने कि तुम पिता बनने वाले हो ”

मुकेश के चेहरे पर तनाव छाया , शौकत ने कारण पूछा तो मुकेश ने  उसे भी अपनी शंका बता दी , शौकत ने कानो पर हाथ लगाकर ऊपर देख कर माफ़ी मांगी ,” अरे , बच्चा तो अल्लाह की देन है , सलोनी जैसी बीबी पर शक कर रहे हो ? कैसा गुनाह कर रहे हो ? तुम  अल्लाह के चमत्कार के बारे में जानते नहीं ? वो चाहे तो कुछ भी हो सकता है.”

धर्मभीरु मुकेश के मुँह पर हवाइयां उड़ने लगी , कुछ समझ नहीं पाया कि क्या वही सलोनी पर शक करके गलती कर रहा है , पहले जयदेव और अब पीर बाबा , जिन पर वह आँख मूँद कर भरोसा कर सकता है , वे दोनों गलत तो नहीं हो सकते , वे दोनों तो भगवान् का रूप हैं , उसने सलोनी पर नजर डाली , नहीं , मासूम सा चेहरा ऐसे उसे धोखा तो नहीं दे सकता , पर इतने महीनो का गर्भ ? मुकेश की जुबान जयदेव और पीर बाबा तो बंद कर ही गए थे , वह कुछ बोल ही नहीं पाया , सर पकड़कर सलोनी के भोले चेहरे को देखता  रह गया.सलोनी सर नीचे किये बैठ गयी , उसके चेहरे पर छायी एक कुटिल हंसी मुकेश को दिख  ही नहीं पायी. मुकेश जयदेव और शौकत की बातों के जवाब में चुप रहने के अलावा कुछ कर ही नहीं सका.

 

डीपफेक मजेदार लेकिन खतरनाक

कुछ दिनों पहले ‘पुष्पा’ फेम साउथ की जानीमानी ऐक्ट्रैस रश्मिका मंदाना की एक वीडियो वायरल हुई, जिस में वह एक लिफ्ट में घुसती है. वीडियो में रश्मिका ने बोल्ड एंड रिवीलिंग ब्लैक टौप पहनी हुई थी. यह वीडियो सोशल मीडिया पर खूब घूमती रही, लोगों ने इसे असल समझ पर यह फेक वीडियो थी, जिस का क्लैरिफिकेशन खुद रश्मिका ने बाद में किया.

इस वीडियो को डीपफेक टैक्नोलौजी के माध्यम से बनाया गया था. इस से पहले भी बौलीवुड अभिनेत्री कैटरीना कैफ, काजोल देवगन और आलिया भट्ट की भद्दी तसवीरें डीपफेक का सहारा ले कर बनाई जा चुकी हैं.

डीपफेक जितना मजेदार दिखता है उतना ही खतरनाक भी है. अभी तो शख्सियतों को ही निशाना बनाया जा रहा है लेकिन वे दिन दूर नहीं जब लोग बदला लेने, खिंचाई करने के लिए एकदूसरे को निशाना बनाएंगे. डीपफेक साइबर बुलिंग को और बढ़ावा दे रहा है और आने वाले वक्त में यह निजी सिक्योरिटी के लिए बेशक थ्रेट साबित होने वाला है.

एआई का बढ़ता इस्तेमाल इस परेशानी को और बढ़ाता जा रहा है, जिस का इस्तेमाल सही और गलत दोनों ही तरह से किया जा रहा है. असामाजिक तत्त्व इस का भरपूर फायदा उठा रहे हैं और इस तरह के डीपफेक फोटोज बना कर वायरल कर रहे हैं. ये अधिकतर सैलेब्स से जुड़ी होती हैं, इसलिए बड़ी तेजी से वायरल भी हो जाती हैं.

वायरल हुई इन फोटोज और वीडियोज में रश्मिका के बाद काजोल, कैटरीना, सारा तेंदुलकर और टीवी कलाकार जन्नत जुबैर व अनुष्का सेन शामिल हैं. अधिकतर महिलाओं से जुड़े डीपफेक होते हैं.

आलिया की डीपफेक वीडियो में उसे वल्गर तरीके से बैठा दिखाया गया तो रश्मिका को सैक्सी बौडी फ्लौंट करते दिखाया गया. वहीं कैटरीना के ‘टाइगर’ मूवी के टौवेल सीन को ओवरएक्पोज कर दिया गया तो तेंदुलकर की बेटी सारा तेंदुलकर की एक तसवीर, जिस में वह अपने भाई के साथ थी, को एडिट कर के किसी और की तसवीर लगा दी गई, जोकि सारा के रूमर्ड बौयफ्रैंड शुभन गिल की बताई जा रही थी.

डीपफेक है क्या ?

डीपफेक तकनीक से आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का इस्तेमाल कर चेहरे पर चेहरे लगाए जा सकते हैं और आपस में इन्हें बदला जा सकता है. यह काम आसान नहीं है, इस में खासा वक्त लगता है, क्योंकि जिस शख्स का चेहरा लगाना होता है उस से मिलतेजुलते हजारों फोटोज, वीडियोज को एआई प्रोग्राम की मदद से खंगाला जाता है. फिर बेहद समान और मिलतेजुलते चेहरों को तलाशा जाता है. इस के बाद टैक्नोलौजी की सहायता से कंप्रेस्ड कर के इमेज तैयार की जाती है.

फिर इस के बाद एआई तकनीक ‘डीकोडर’ से चेहरा तलाशने को कहा जाता है. तब कहीं जा कर डीपफेक वीडियो तैयार होती हैं. यही वजह है कि इन्हें तैयार करने वाले ऐसे चेहरों को ढूंढ़ते हैं जो पहले से ही फेमस हों ताकि फोटोज और वीडियोज का वायरल होना आसान हो. यानी, इस काम में जो लगे हैं वो हाईली ट्रैंड स्किलफुल लोग हैं और ऐसा वे सिर्फ शौकिया तौर पर नहीं, बल्कि सोचसमझ कर कर रहे हैं.

क्या कहता है कानून

रश्मिका मंदाना के डीपफेक वीडियो के सामने आने के बाद अभिनेता अमिताभ बच्चन ने अपने ट्विटर अब ‘एक्स’ हैंडल पर पोस्ट डाल कर विरोध जताया और कानूनी कार्रवाई की मांग की. तब सैंटर इलैक्ट्रौनिक्स और टैक्नोलौजी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने इस वीडियो को ले कर कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार इंटरनैट का इस्तेमाल कर रहे सभी डिजिटल नागरिकों की सुरक्षा और भरोसे को कभी टूटने न देगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी डीपफेक पर फिक्र जताई थी. हालांकि, इस के बाद भी कई और मामले देखने को मिले.

इस के बाद आईटी मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव डीपफेक पर 10 दिनों में कानून बनाने की बात कहते दिखाई दिए. वहीं केंद्रीय इलैक्ट्रौनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने 24 नवंबर, 2023 को डीपफेक की निगरानी के लिए एक अधिकारी को नियुक्त करने की बात कही जो कि डीपफेक से जुड़े मामलों में एफआईआर दर्ज कराने में आम लोगों की मदद करेगा.

डीपफेक में पकड़े जाने पर क्या कहते हैं नियम ?

आईटी एक्ट 2000 के सैक्शन 66 ई के तहत बिना इजाजत किसी की फोटो और वीडियो एडिट करने पर 3 साल की सजा और 2 लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान है. यह प्राइवेसी के उल्लंघन पर आधारित है. इस में किसी की पर्सनल फोटो बिना इजाजत कैप्चर करने, उसे शेयर करने के आरोप के तहत कार्रवाई हो सकती है.

आईटी एक्ट सैक्शन 67 के तहत सौफ्टवेयर या किसी अन्य इलैक्ट्रौनिक तरीके से किसी की अश्लील फोटो को बनाने और उसे शेयर करने पर 3 साल की जेल और 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है. ऐसा बारबार करने पर 5 साल जेल और 10 लाख रुपए जुर्माना देना पड़ सकता है.

डीपफेक के मामले में आईपीसी के सैक्सन 66ष्ट, 66श्व और 67 के तहत कार्रवाई की जा सकती है. इस में आईपीसी की धारा 153 और 295 के तहत मुकदमा दर्ज कर के कार्रवाई की जा सकती है.

सबकुछ होते हुए भी कानून और पुलिस की देरी इस समस्या को किस हद तक रोकने में कामयाब होगी, यह तो वक्त ही बताएगा. फिलहाल तो डीपफेक डिजिटल और सोशल मीडिया के यूजर्स के लिए भविष्य में एक थ्रेट साबित होगा, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है.

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