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क्या लीवर ट्रांसप्लांट के बाद स्वस्थ जीवन जिया जा सकता हैं ?

शरीर के अनेक हड्डी रहित अतिमहत्त्वपूर्ण अंगों में से एक लीवर होता है. इसे यकृत और जिगर भी कहते हैं. स्पंज जैसा नाजुक यह अंग खराब हो जाए तो पूरे शरीर की सेहत पर असर पड़ता है. लीवर की समस्या किसी को किसी भी उम्र में हो सकती है. बच्चों में यह बीमारी जीन और एंजाइम डिफैक्ट की वजह से होती है. आमतौर पर लीवर की समस्या के पीछे हमारा रहनसहन और खानपान होता है. ज्यादा शराब पीने और लंबे समय तक शराब पीने से लिवर खराब हो जाता है. लीवर की बीमारी का समय पर इलाज न हो तो यह गंभीर समस्या बन सकती है. ऐसी स्थिति में लीवर के ट्रांसप्लांट यानी प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है. यहां लिवर ट्रांसप्लांट के बारे में विस्तार से वर्णन किया जा रहा है.

लीवर प्रत्यारोपण ऐसी सर्जरी होती है जिस में रोगग्रस्त लिवर को निकाल कर स्वस्थ लिवर लगाया जाता है. यह सर्जरी 40 वर्षों से हो रही है. अत्याधुनिक तकनीक से अब यह अधिक सुरक्षित है. लिवर प्रत्यारोपण कराने वाले अधिकतर लोग स्वस्थ व सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

वयस्कों में लिवर प्रत्यारोपण की सब से आम वजह होती है सिरोसिस. सिरोसिस जैसी समस्या लिवर में कई तरह की खराबियों के चलते होती है, जो उस की स्वस्थ कोशिकाओं को नष्ट कर उन की जगह खराब कोशिकाओं को बढ़ाती है. सिरोसिस की वजह हेपेटाइटिस बी और सी जैसे वायरस, शराब, औटोइम्यून लीवर बीमारी, लिवर में वसा का जमा होना और लिवर की आनुवंशिकी बीमारियां होती हैं.

बच्चों में लीवर प्रत्यारोपण की सब से आम वजह होती है बायलियरी एट्रिसिया. इस बीमारी में लिवर से बाइल बाहर ले जाने वाली ट्यूब, जिसे बाइल डक्ट कहते हैं, या तो समाप्त हो जाती है या फिर खराब हो जाती है, और औब्सट्रक्टेड बाइल से सिरोसिस होता है. बाइल भोजन को पचाने में मदद करता है. इस की अन्य सामान्य वजहों में से ज्यादातर आनुवंशिकी, मेटाबौलिक लीवर बीमारियां और हेपेटाइटिस ए जैसे वायरल इन्फैक्शन की वजह से एक्यूट लिवर फेलियर हो सकता है.

प्रत्यारोपण के लिए अन्य वजह लिवर का कैंसर या बड़ा बेनिन लिवर ट्यूमर हो सकता है.

जरूरत है या नहीं

डाक्टर तय करेगा कि आप को लिवर प्रत्यारोपण करने वाले अस्पताल जाना चाहिए या नहीं. आप लिवर प्रत्यारोपण करने वाली टीम से मिलेंगे. हिपैटोलौजिस्ट या सर्जन ब्लड टैस्ट और रेडियोलौजिकल टैस्टों के आधार पर आप के लिवर को हुए नुकसान का आकलन करेगा.

प्रत्यारोपण टीम ब्लड टैस्ट, एक्सरे और अन्य टैस्ट कराएगी, जिस से डाक्टर यह फैसला कर सकेंगे कि आप को प्रत्यारोपण की जरूरत है या नहीं, या फिर, प्रत्यारोपण सुरक्षित ढंग से किया जा सकता है या नहीं.

आप के स्वास्थ्य के अन्य पहलू, जैसे हृदय, फेफड़े, गुरदे, इम्यून सिस्टम और मानसिक स्वास्थ्य की भी जांच की जाएगी कि आप का शरीर सर्जरी के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम है भी या नहीं.

कहां से, किस से मिलेगा लीवर

पूरा लीवर उन लोगों से मिलता है जिन की कुछ ही समय पहले मृत्यु हुई हो. इस प्रकार के डोनर को कैडावेरिक डोनर कहते हैं. कभीकभार एक स्वस्थ व्यक्ति भी अपने लीवर का एक हिस्सा किसी खास व्यक्ति को दान कर सकता है. इस प्रकार के डोनर को लिविंग डोनर कहते हैं.

भारत में ज्यादातर मामले ऐसे होते हैं जिन में रोगी के संबंधी अपने लिवर का हिस्सा दान देते हैं. हमारे देश में कैडावेरिक अंगों के दान के मामले बहुत कम होते हैं.

सभी जीवित डोनर और दान में दिए गए लिवरों की प्रत्यारोपण सर्जरी से पहले जांच की जाती है. जांच से यह तय किया जाता है कि लिवर बिलकुल स्वस्थ है या नहीं, ब्लड टाइप मिलता है या नहीं और सही आकार का है या नहीं, ताकि शरीर में उस के काम करने की संभावना अधिक हो.

अस्पताल में क्या होता है ?

जब कोई लीवर उपलब्ध होगा, तो आप को सर्जरी के लिए तैयार किया जाएगा. अगर आप का नया लिवर जीवित डोनर का है, तो आप दोनों एक ही समय में सर्जरी में होंगे. अगर आप का लीवर किसी ऐसे व्यक्ति से लिया गया है जिस का मस्तिष्क मर चुका है (कैडावेरिक डोनर है), तो आप की सर्जरी तब शुरू होगी जब नया लिवर अस्पताल में पहुंच जाएगा.

सर्जरी में 9 से 14 घंटे तक लग सकते हैं. सर्जन आप के बीमार लीवर को बाहर निकालने से पहले उसे आप की बाइल डक्ट और ब्लड वैसल से अलग कर देगा. आप के लीवर में पहुंचने वाले रक्त को रोक दिया जाएगा या फिर मशीन के जरिए आप के शरीर के बाकी हिस्से में पहुंचाया जाएगा. इस के बाद सर्जन स्वस्थ लिवर को आप के शरीर में रखेगा और फिर उसे आप की बाइल डक्ट और ब्लड वैसल से जोड़ेगा. इस के बाद आप के शरीर का रक्त नए लिवर से हो कर गुजरेगा.

सर्जरी के बाद आप को औसतन 2 से 3 सप्ताह तक अस्पताल में रहना पड़ सकता है. आप का शरीर नए लिवर को खारिज न करे और इस से कोई संक्रमण न हो, इस के लिए आप को दवाएं लेनी पड़ेंगी. डाक्टर ब्लीडिंग, संक्रमण, रिजैक्शन और बाइल डक्ट व ब्लड वैसल से जुड़ी अन्य जटिलताओं की जांच करेगा. छोटे शिशुओं में वैस्कुलर समस्याएं कुछ ज्यादा आम होती हैं.

अस्पताल में आप धीरेधीरे खाना शुरू कर देंगे. आप को पहले साफ पेय पदार्थों से शुरुआत करनी होगी. जब आप का नया लिवर काम करना शुरू कर देगा, तो आप ठोस भोजन का सेवन कर सकेंगे.

प्रत्यारोपण के बाद

लीवर प्रत्यारोपण के बाद मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जाता है. लेकिन मरीज को अकसर अपने डाक्टर से मिलना होगा, जो यह तय करेगा कि आप का लिवर ठीक काम कर रहा है या नहीं. आप को नियमित तौर पर ब्लड टैस्ट और अल्ट्रासाउंड कराने होंगे, जिस से यह पता चल सके कि आप का नया लिवर सही काम कर रहा है और दवाओं का कोई साइड इफैक्ट नहीं हो रहा है.

अब आप को बीमार लोगों से दूरी बनानी होगी और खुद को कोई भी बीमारी होने पर तुरंत डाक्टर को दिखाना होगा. आप को स्वस्थ आहार खाना होगा, व्यायाम करने होंगे और शराब से परहेज करना होगा, विशेषतौर पर अगर आप का लिवर खराब होने की वजह शराब रही थी.

आप को दवाएं तभी लेनी चाहिए जब आप का डाक्टर कहे कि वे आप के लिए सुरक्षित हैं. इन में वे दवाएं भी शामिल हैं जिन्हें खरीदने के लिए आप को किसी डाक्टर के प्रिस्क्रिप्शन की जरूरत नहीं होती है. यह बहुत महत्त्वपूर्ण होता है कि आप अपने डाक्टर द्वारा सु झाई गई हर सलाह पर अमल करें.

लिवर के सफल प्रत्यारोपण के बाद ज्यादातर लोग अपनी सामान्य दैनिक दिनचर्या शुरू कर देते हैं. हालांकि, आप की पूरी शारीरिक ताकत लौटने में समय लगेगा लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आप प्रत्यारोपण से पहले कितने बीमार थे.

आप को अपने डाक्टर से पूछना होगा कि आप को रिकवर होने में कितना समय लगेगा. सामाजिक कार्यकर्ता और सपोर्ट गु्रप आप को एक लिवर के साथ जीवन से तालमेल बैठाने में मदद करेंगे.

काम : रिकवरी के बाद ज्यादातर लोग अपने काम पर लौटने में सक्षम होते हैं. बच्चे भी प्रत्यारोपण के 3 महीने बाद स्कूल जाना शुरू कर देते हैं.

आहार : ज्यादातर लोग खानपान की अपनी पुरानी आदतें भी अपना लेते हैं. आप को कच्ची सब्जियां, सलाद और खुले में रखे कटे फल खाने से परहेज करना होेगा. कुछ दवाओं से आप का वजन बढ़ सकता है, जबकि कुछ से आप को डायबिटीज हो सकती है या फिर आप के कोलैस्ट्रौल का स्तर बढ़ सकता है. भोजन की योजना और संतुलित आहार से आप को स्वस्थ रहने में मदद मिलेगी.

व्यायाम : ज्यादातर लोग सफल लिवर प्रत्यारोपण के बाद शारीरिक गतिविधि कर सकते हैं, हालांकि सर्जरी के बाद के शुरुआती 3 महीने तक कठिन शारीरिक गतिविधि से परहेज करना चाहिए.

सैक्स : लिवर प्रत्यारोपण के बाद ज्यादातर लोग सामान्य सैक्स जीवन व्यतीत कर सकते हैं. महिलाओं के लिए यह बहुत जरूरी है कि वे प्रत्यारोपण के एक साल तक गर्भधारण न करें. आप को अपनी प्रत्यारोपण टीम से प्रत्यारोपण के बाद सैक्स और गर्भधारण के बारे में जरूर बात करनी चाहिए.

डा. नीलम मोहन

(लेखक गुरुग्राम स्थित मेदांता- द मैडिसिटी हौस्पिटल के पैडियाट्रिक गैस्ट्रोएंट्रोलौजी, हिपेटोलौजी व लिवर ट्रांसप्लांट विभाग के निदेशक हैं.)       

मेरी बेटी मुझसे नाराज है, मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरी उम्र 43 वर्ष है. मैं कामकाजी महिला हूं. मेरी 17 वर्षीया बेटी और मेरे बीच संबंध दिनबदिन बिगड़ते जा रहे हैं. बात उस के एक रात अपनी सहेली के साथ नाइटआउट पर जाने से शुरू हुई थी जिस के लिए मैं ने मना कर दिया था. उस के बाद से ही उस का व्यवहार मेरे प्रति बिगड़ता जा रहा है. मुझे पिछले महीने काम के सिलसिले में भोपाल जाना पड़ा. जिस दिन मुझे भोपाल के लिए निकलना था उसी दिन उस के स्कूल का फेयरवैल था. उसे मेरी जरुरत थी और उस वक्त मैं उस के साथ नहीं थी. यह मुझे भी खटकता है पर इस का मतलब यह तो नहीं कि वह मुझ से हमेशा ही गुस्सा रहे. मुझे कभीकभी समझ नहीं आता आखिर करूं तो करूं क्या. कुछ सुझाव दीजिए.

जवाब

आप की बेटी उम्र के जिस पड़ाव में है उस में अकसर बच्चे मातापिता के लिए ऐसी धारणाएं बना लेते हैं. आप अपनी जगह गलत नहीं हैं और यह बात आप को अपनी बेटी को भी समझानी चाहिए. हो सकता है उस के दिनबदिन बदलते व्यवहार का कारण उस पर पड़ने वाला फ्यूचर का प्रैशर हो या कोई अन्य परेशानी. इस उम्र में बच्चे अकसर रिलेशनशिप, फ्रैंडशिप और कैरियर के बीच उलझे हुए होते हैं. उन्हें इस वक्त किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत होती है जो उन्हें समझ सके, और समझा सके. आप उस के लिए वह व्यक्ति बनिए और उसे समझिए. आप दोस्त बनें, बौस नहीं. हो यह भी सकता है कि वह असल में आप से गुस्सा न हो या कट न रही हो, बस अंदर ही अंदर किसी चीज को ले कर दुखी हो. उस से बात कीजिए. यकीनन ही आप दोनों का रिश्ता पहले जैसा ठीक हो जाएगा.

Valentine’s Day 2024 : कांटे गुलाब के – अमरेश और मिताली की अनोखी प्रेम कहानी – भाग 2

एग्जाम के बाद रिजल्ट आया तो उस के साथसाथ वह भी प्रथम आया था. मौका मिला तो उस ने कहा, ‘मैं जानता हूं कि तुम मुझ से प्यार करती हो. किसी कारण अब तक मुंह से कुछ नहीं कह पाई हो. मगर अब तो स्वीकार कर लो.’ अब वह अपने दिल की बात उस से छिपा न सकी. मोहब्बत का इजहार कर दिया. साथ में यह भी कह दिया, ‘जब तुम्हें नौकरी मिल जाए तो शादी का रिश्ता ले कर मेरे घर आ जाना. तब तक मैं भी कोई न कोई जौब ढूंढ़ लूंगी.’’

अमरेश उस की बात से सहमत हो गया. एक वर्ष तक उन की मुलाकात न हो सकी. कई बार फोन पर बात हुई. हर बार उस ने यही कहा, ‘मिताली, अभी नौकरी नहीं मिली है. जल्दी मिल जाएगी. तब तक तुम्हें मेरा इंतजार करना ही होगा.’

एक दिन अचानक फोन पर उस ने बताया कि उसे कोलकाता में बहुत बड़ी कंपनी में जौब मिल गई है. उसे जौब मिल गई थी. मिताली को नहीं मिली थी. उस ने कहा, ‘जब तक मुझे जौब नहीं मिलेगी, शादी नहीं करूंगी.’ अमरेश ने उस की एक नहीं सुनी, कहा, ‘तुम्हें नौकरी की जरूरत क्या है? मुझ पर भरोसा रखो. तुम मेरे घर और दिल में रानी की तरह राज करोगी.’

वह अमरेश को अथाह प्यार करती थी. उस पर भरोसा करना ही पड़ा. जौब करने का इरादा छोड़ कर उस से शादी कर ली. अमरेश के परिवार में मातापिता के अलावा एक बहन और 2 भाई थे. विवाह के बाद अमरेश उसे कोलकाता ले आया. पार्कस्ट्रीट में उस ने किराए पर छोटा सा फ्लैट ले रखा था.

अमरेश उसे बहुत प्यार करता था. उस की छोटीछोटी जरूरत पर भी ध्यान देता था. छुट्टियों में किचन में उस का सहयोग भी करता था. प्यार करने वाला पति पा कर मिताली जिंदगी से नाज कर उठी थी. 3 वर्ष कैसे बीत गए, पता भी नहीं चला. इस बीच वह एक बेटे की मां भी बन गई. दोनों ने उस का नाम सुमित रखा था.

मिताली एक बच्चे की मां थी. बावजूद इस के उस का प्यार पहले जैसा अटल और गहरा था. अमरेश उसे टूट कर चाहता था, ठीक उसी तरह जिस तरह वह उसे बेहिसाब प्यार करती थी. सपने में भी उस से अलग होने की कल्पना नहीं करती थी. वह सोया हो या जाग रहा हो, हमेशा उस के चेहरे को देखा करती थी. मोहब्बत से भरपूर एक सुंदर चेहरा. उसी चेहरे में उसे अपना भविष्य नजर आता था. यह दुनिया नजर आती थी. बच्चे नजर आते थे. हर तरफ खुशी नजर आती थी.

3 वर्षों बाद अमरेश से कुछ दिनों के लिए अलग होने की बात हुई तो उस का दिल बैठ सा गया. यह सोच कर वह चिंता में पड़ गई कि उस के बिना कैसे रहेगी? हुआ यों कि एक दिन अमरेश ने औफिस से आते ही कहा, ‘आज मेरा सपना पूरा हो गया.’

‘कौन सा सपना?’

‘दुबई जा कर ढेर सारा रुपया कमाना चाहता था. इस के लिए 2 साल से प्रयास कर रहा था. आज सफल हो गया. वहां एक बहुत बड़ी कंपनी में जौब मिल गई है. 10 दिनों बाद चला जाऊंगा. कुछ महीने के बाद तुम्हें तथा सुमित को भी वहां बुला लूंगा.’

जहां इस बात की खुशी हुई कि अमरेश का सपना पूरा होने जा रहा था, वहीं उस से अलग रहने की कल्पना से दुखी हो गई थी मिताली. शादी के बाद कभी भी वह उस से अलग नहीं हुई थी. दुबई जाने से रोक नहीं सकती थी, क्योंकि वहां जा कर ढेर सारा रुपया कमाना उस का सपना था. सो, उस ने अपने दिल को समझा लिया.

दुबई से अमरेश रोज फोन करता था. कहता था कि उस के और सुमित के बिना उस का मन नहीं लग रहा है. जल्दी ही उन दोनों को बुला लेगा. कोलकाता में उसे 20 हजार रुपए मिलते थे, दुबई से वह 50 हजार रुपए भेजने लगा.

अपने समय पर मिताली पहले से अधिक इतराने लगी थी. उसे अमरेश के हाथों में अपना और सुमित का भविष्य सुरक्षित नजर आ रहा था. एक वर्ष बीत गया. इस बीच अमरेश ने उन्हें दुबई नहीं बुलाया. बराबर कोई न कोई बहाना बना कर टाल दिया करता था.

एक दिन अचानक कोलकाता आ कर सरप्राइज दिया. बताया कि 15 दिन की छुट्टी पर वह इंडिया आया है.

उस ने कहा, ‘अब तक दुबई इसलिए नहीं बुलाया कि वहां अकेले रहना पड़ता. बात यह है कि कंपनी के काम से मुझे बराबर एक शहर से दूसरे शहर जाना पड़ता है. कभीकभी तो घर पर 2 महीने बाद लौटता हूं.

‘ऐसे में अकेली औरत देख कर मनचले तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकते थे. मैं चाहता हूं कि सुमित के साथ तुम कोलकाता में ही रहो और अच्छी तरह उस की परवरिश करो.’ वह चुप रही. कुछ भी कहते नहीं बना.

15 दिनों बाद अमरेश दुबई लौट गया. इतने दिनों में ही उस ने पूरे सालभर का प्यार दे दिया था. मिताली उस का अथाह प्यार पा कर गदगद हो गई थी. पार्कस्ट्रीट में ही अमरेश ने उस के नाम फ्लैट खरीद दिया था. अगले 3 वर्षों तक सबकुछ आराम से चला. अमरेश वर्ष में एक बार 10 या 15 दिनों के लिए आता था. उसे अपने प्यार से नहला कर दुबई लौट जाता था.

कालांतर में वह यह चाहने लगी थी कि दुबई की नौकरी छोड़ कर अमरेश कोलकाता में उन के साथ रहे और बिजनैस करे. तीसरे वर्ष अमरेश दुबई से आया तो उस ने उस से अपने दिल की बात कह दी. वह नहीं माना. वह कम से कम 10-15 वर्षों तक वहीं रहना चाहता था.

फिर तो चाह कर भी वह अमरेश को कुछ समझाबुझा नहीं सकी. फायदा कुछ होने वाला नहीं था. उस पर दुबई में अकेले ही रहने का जनून सवार था. उस के दुबई लौट जाने के 2 महीने बाद ही स्वाति का फोन आया था और अब वह मुंबई में थी.

सरिता : मुन्ना को किस बात की चिंता हो रही थी ? – भाग 2

मैं और बाबूजी दीदी और प्रियांशु को ले कर वहां गए थे. एक बड़ा सा मठ था वह, पुराना सा मंदिर जिस के महंत ने जीजाजी को अपना शिष्य बनाया था. बाबूजी ने बहुत समझया था, उस महंत के पांव भी पकड़ लिए थे कि वह जीजाजी को आजाद कर दे पर जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो कोई क्या करे. उसे तो बैठेबिठाए चेले के रूप में एक मुफ्त का नौकर मिल रहा था.

जीजाजी तो बस एक ही रट लगाए थे कि वह बुद्ध की तरह सत्य की खोज में निकले हैं. अब माया के बंधन में नहीं फंस सकते. महंत भी पिताजी को समझने लगा कि जो माया के बंधनों को तोड़ कर निकल आया हो फिर उसे माया की तरफ खींचना पाप है. हां, अगर इस की पत्नी भी चाहे तो साध्वी बन कर यहीं रह सकती है.

उस की बातों से मुझे घृणा सी हो गई थी. मैं ने जीजाजी से पूछा था, ‘जीजाजी, एक बात बताएंगे, आप दुनिया से अलग तो हो रहे हैं लेकिन खाएंगे क्या… इसी दुनिया का अन्न न. आप के ये गुरु पानी किस का पीते हैं… इसी दुनिया का या किसी और संसार से आता है इन के पीने के लिए. अरे, क्या ईश्वर भी तलाशने की कोई चीज है? क्या ईश्वर कोई वस्तु है, जिसे आप खोजने जा रहे हैं? वह तो इनसान के कर्म में, उस की चेतना में, जनजन में समाया है, फिर उसे खोजना क्या… क्यों, इन ढोंगी परजीवियों के जाल में फंस कर आप अपनी गृहस्थी तबाह कर रहे हैं. इस छोटे से बच्चे, अपने व्यथित बूढे़ बाप को छोड़ कर आप को कहीं और ईश्वर नजर आ रहा है क्या? इतने पर भी समझ नहीं है आप को कि यह दीदी को भी यहीं रहने के लिए कह रहा है.’

पर उन्हें तो न समझना था, न समझे. उलटे वह महंत और उस के चेले हम से लड़ने के लिए तैयार हो गए. मैं तो शायद लड़ भी पड़ता, लेकिन दीदी ने मुझे रोक दिया. उन्होंने मुझे पकड़ते हुए बाबूजी से कहा, ‘चलिए, बाबूजी, इन्हें जो खोजना है खोजें. मैं इन्हें नहीं रोकूंगी. वैसे भी बांध कर तो गृहस्थी की गाड़ी नहीं चल सकती न.’

फिर हम लोग लौट आए. तब बाबूजी ने दीदी को अपनी बांहों में ले कर रोते हुए कहा था, ‘चल बेटा, घर चल… अब क्या है तुम्हारे लिए यहां, चल, मां के पास रहेगी तो शायद तेरा दुख भी कुछ कम हो जाएगा.’

‘बाबूजी, आप ने मुझे कभी कायरता का पाठ तो नहीं पढ़ाया था, फिर आज क्यों?’

उस परिस्थिति में भी दीदी के स्वर में छिपी दृढ़ता देख कर हम दोनों चौंक गए थे.

‘बाबूजी, उन्होंने तो अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ लिया, पर क्या मैं भी उन्हीं की तरह हार कर, मुंह छिपा कर बैठ जाऊं. नहीं, बाबूजी, ऐसा नहीं कर सकती मैं. वहां आप के साथ तो मुन्ना है, मां है, पर यहां, यहां भी तोे मेरे पिता समान ससुर हैं, क्या उन्हें इस तरह अकेला छोड़ कर मैं वहां सुखी रह पाऊंगी, और फिर प्रियांशु तो है न मेरे पास, किसी के चले जाने से जिंदगी खत्म तो नहीं हो जाती.

‘आप जाइए और इस विश्वास के साथ जाइए कि मैं यहां अच्छी रहूंगी, यह तो मैं नहीं कह सकती कि मुझे कोई दुख नहीं है, पर 2-2 प्राणियों के जीवन को सहारा देने में यह दुख निश्चित रूप से कम हो जाएगा.’

बाबूजी ने लाख समझया पर दीदी तो हठी शुरू से ही थीं और इस बार उन का हठ इतना जायज था कि हम दोनों कुछ नहीं कर पाए और थक कर घर लौट आए.

फिर धीरेधीरे दीदी ने खुद को संभाला. ऐसे समय में उन की पढ़ाई उन के काम आई. पहले उन्होंने कुछ आसपास के बच्चों को यों ही मन बहलाने के लिए पढ़ाना शुरू कर दिया, धीरेधीरे गांव के लोगों ने ही जोर देना शुरू किया कि वे स्कूल खोल दें ताकि बच्चों को समुचित शिक्षा मिल सके. यह बात उन्हें भी पसंद आई और अपनी ही थोड़ी सी जमीन में उन्होंने एक प्राथमिक स्कूल खोल दिया, जो आज 12वीं तक के बच्चों के लिए शिक्षा का एक जानामाना कालिज है. दीदी ने वह सबकुछ कर के दिखा दिया जो शायद जीजाजी साथ रहते तो वह नहीं कर पातीं.

अपनी व्यस्तताओं में दीदी अपना दुख, सुख सभी कुछ भूलती चली गईं. जीजाजी के संन्यास लेने के बाद उन के पिताजी 8 साल जीवित रहे, दीदी उन की सेवा ऐसे करतीं कि अगर खुद उन की बेटी होती तो शायद नहीं कर पाती, फिर भी इकलौते पुत्र का घर छोड़ के जाना उन के लिए ऐसा रोग बन गया कि वह ज्यादा दिन नहीं चल सके.

दीदी अब हमारे यहां भी कम ही आ पाती थीं. मेरी शादी के अलावा वह कभीकभार ही यहां आई होंगी. बाबूजी ही अकसर उन के घर चले जाते और वहां से लौट कर कई दिनों मायूस रहते. अकसर बाबूजी मुझ से कहते, ‘क्या बताऊं मुन्ना, और सब तो ठीक है लेकिन जिस बेटी को इतने नाजों से पाला था उसे इतना काम करते देख मेरी छाती फटती है, लेकिन यह तो है कि है वह मेरी लायक बेटी. दूसरा कोई होता तो अब तक टूट कर बिखर गया होता पर उस का तो जैसा नाम है वैसा ही गुण, बिलकुल किसी नदी की तरह…न वह रूठना जानती है न मनाना.’

और यह सच भी था. इतने दिनों में मुझे याद नहीं कि कभी दीदी ने जीजा का जिक्र किया हो. अगर कोई दूसरा उन के सामने इस बारे में बात करता तो वह तुरंत या तो बात का विषय बदल देतीं या फिर वहां से उठ कर चली जातीं. अपने जीवन की हर जिम्मेदारी उन्होंने बखूबी निभाई, प्रियांशु ने एमबीए करने के बाद पास के ही एक शहर में अपना एक अच्छा सा बिजनेस जमा लिया था. दीदी स्कूल देखती थीं, प्रियांशु को वह किसी भी कीमत पर अपने से दूर नहीं भेजना चाहती थीं.

 

बिखरते बिखरते : माया क्या सोचकर भावुक हो रही थी ? – भाग 2

अच्छी बात है. मैं अपने पापा को भेज दूंगा,’ सौरभ उठ कर नमस्ते कर के चल पड़ा.

रविवार को वृद्घ ज्योतिषी आ पहुंचे. कमरे में मौन छाया था. माया और सौरभ की कुंडली सामने बिछा कर लंबे समय तक गणना करने के बाद ज्योतिषी ने सिर उठाया, ‘रमाकांत, दोनों कुंडलियां तनिक मेल नहीं खातीं. कन्या पर गंभीर मंगलदोष है. लड़के की कुंडली तो गंगाजल की तरह दोषहीन है. मंगलदोष वाली कन्या का विवाह उसी दोष वाले वर के साथ होना ही श्रेष्ठ होता है. तुम्हारी कन्या का विवाह इस वर के साथ होने पर 4-5 बरसों में ही वर की मृत्यु हो जाएगी.’ पंडितजी के शब्द सब को दहला गए.

सौरभ के पापा सिर झुकाए चले गए. परदे की ओट में बैठी माया जड़ हो गई. पंडितजी के शब्द मानो कोई माने नहीं रखते. नहीं, वह कुछ नहीं सुन रही थी. यह तो कोई बुरा सपना है. माया खयालों में खो गई.

‘दीदी, बैठेबैठे सो रही हो क्या? पापा कब से बुला रहे हैं तुम्हें.’ छोटी बहन ने माया को झकझोर कर उठाया.

माया बोझिल कदमों से पापा के सामने जा खड़ी हुई थी. कमरे में उन की आवाज गूंज उठी, ‘माया, ज्योतिषी ने साफ कह दिया है. दोनों जन्मकुंडलियां तनिक भी मेल नहीं खातीं. यह विवाह हो ही नहीं सकता. अनिष्ट के लक्षण स्पष्ट हैं. भूल जाओ सबकुछ.’

मां का दबा गुस्सा फूट पड़ा था, ‘लड़की मांबाप का लिहाज न कर स्वयं वर ढूंढ़ने निकलेगी तो अनर्थ नहीं तो और क्या होगा? कान खोल कर सुन लो, उस से मेलजोल बिलकुल बंद कर दो. कोई गलत कदम उठा कर उस भले लड़के की जान मत ले लेना.’ कहनेसुनने को अब रह ही क्या गया था. माया चुपचाप अपने कमरे की ओर लौट आई थी. माया लौन में बैठी पत्रिका पढ़ रही थी. मन पढ़ने में लग ही नहीं रहा था. माया अपने अंदर ही घुटती जा रही थी. देखतेदेखते 3 माह गुजर गए. न सौरभ का कोई फोन आया, न मिलने की कोशिश ही की. क्या करे वह. सौरभ कोलकाता में नई नौकरी के लिए जा चुका था. वह कशमकश में थी. वह नहीं विश्वास करती थी ज्योतिषी की भविष्यवाणी पर. ज्योतिषी की बात पत्थर की लकीर है क्या? वह सौरभ से विवाह जरूर करेगी. लेकिन अगर पंडितजी की वाणी सही निकल गई तो?

अशोक भैया ने पंडितजी का विरोध कर विवाह किया था. आज विधुर हुए बैठे हैं नन्हीं पुत्री को लिए. ज्योतिषी का लोहा पूरा परिवार मानता है. क्या उस के प्यार में स्वार्थ की ही प्रधानता है? सौरभ के जीवन से बढ़ कर क्या उस का निजी सुख है? नहीं, नहीं, सौरभ के अहित की बात तो वह सपने में भी नहीं सोच सकती. सौरभ से हमेशा के लिए बिछुड़ने की बात सोच कर उस का दिल बैठा जा रहा है.

खटाक…कोई गेट खोल कर आ रहा था. अरे, 3 महीने बाद आज रिंकू  आ रही है. रिंकू  उस के पास आ कर कुछ पल मौन खड़ी रही.

चुप्पी तोड़ते हुए रिंकू  ने कहा, ‘माया, कल मेरा जन्मदिन है. छोटी सी पार्टी रखी है. घर आओगी न?’

माया ने डबडबाती आंखों से रिंकू  को देखा, ‘पता नहीं मां तुम्हारे घर जाने की अनुमति देंगी कि नहीं?’ रिंकू वापस चली गई तो माया ने किसी तरह मां को मना कर रिंकू के घर जाने की अनुमति ले ली. माया की उदासी ने शायद मां का दिल पिघला दिया था. अगले दिन रिंकू के घर जा कर वह बेमन से ही पार्टी में भाग ले रही थी. तभी उसे लगा कोई उस के निकट आ बैठा है, पलट कर देखा तो हैरान रह गई थी.

‘सौरभ ़ ़ ़’ माया खुशी के मारे लगभग चीख पड़ी थी. फिर सोचने लगी कि कब आया सौरभ कोलकाता से? रिंकू ने कल कुछ भी नहीं बताया था. सौरभ और माया लौन में एक ओर जा कर बैठ गए. माया का जी बुरी तरह घबरा रहा था. सौरभ से इस तरह अचानक मुलाकात के लिए वह बिलकुल तैयार न थी. ‘माया, आखिर क्या निर्णय किया तुम ने? मैं ज्योतिषियों की बात में विश्वास नहीं करता. भविष्य के किसी अनिश्चित अनिष्ट की कल्पना मात्र से वर्तमान को नष्ट करना भला कहां की अक्लमंदी है? छोड़ो अपना डर. हम विवाह जरूर करेंगे,’ सौरभ का स्वर दृढ़ था. ‘ओह सौरभ, बात मेरे अनिष्ट की होती तो मैं जरा भी नहीं सोचती. लेकिन तुम्हारे अनिष्ट की बात सोच कर मेरा दिल कांप उठता है,’ बोलते हुए माया की सिसकियां नहीं रुक रही थीं.

‘माया, तुम सारा भार मुझ पर डाल कर हां कर दो. विवाह के लिए मन का मेल ग्रहों व कुंडलियों के बेतुके मेल से अधिक महत्त्वपूर्ण है,’ सौरभ के स्वर में उस का आत्मविश्वास झलक रहा था.

‘नहीं सौरभ, नहीं. मैं किसी भी तरह मन को समझा नहीं पा रही हूं. यह अपराधभाव लिए मैं तुम्हारे साथ जी ही नहीं सकती,’ माया ने आंसू पोंछ लिए.

‘तो मैं समझूं कि हमारे बीच जो कुछ था वह समाप्त हो गया. ठीक है, माया, सिर्फ यादों के सहारे हम जीवन की लंबी राह काट नहीं सकेंगे. जल्दी ही दूसरी जगह विवाह कर प्रसन्नता से रहना.’ सौरभ चला गया था. अकेली बैठी माया बुत बनी उसे देखती रही थी. माया अपने ही कालेज में पढ़ाने लगी थी. सौरभ वापस कोलकाता चला गया, अपनी नौकरी में रम गया था. रिंकू लखनऊ चली गई थी. सप्ताह, माह में बदल कर अतीत की कभी न खुलने वाली गुहा में फिसल कर बंद हुए जा रहे थे. माया दिनभर कालेज में व्यस्त रहती थी, शाम को घर लौटते ही उदासी के घेरे में घिर जाती थी. देखतेदेखते सौरभ से बिछुड़े पूरा 1 वर्ष बीत गया था.

एक दिन शाम को कालेज से लौट कर सामने रिंकू को बैठी देख माया को बड़ा आश्चर्य हुआ. रिंकू  अचानक लखनऊ से कैसे आ गई? चाय पीते हुए दोनों इधरउधर की बातें करती रहीं. फिर रिंकू ने अपना पर्स खोल कर एक सुंदर सा शादी का कार्ड माया की ओर बढ़ाया.

‘माया, अगले रविवार को सौरभ भैया की शादी है. भैया का अव्यवस्थित जीवन और अंदर ही अंदर घुलते जाना मुझ से देखा नहीं गया. मैं ने बड़ी मुश्किल से उन को शादी के लिए तैयार किया है. तुम तो अपनी जिद पर अड़ी हुई हो, दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है,’ रिंकू का चेहरा गंभीर हो गया था. मूर्तिवत बैठी माया को करुण नेत्रों से देखती हुई रिंकू चली गई थी.

माया कार्ड को भावहीन नेत्रों से देखती रही. दिल में कई बातें उठने लगीं, क्या उस का सौरभ पराया हो गया, मात्र 1 वर्ष में? सुमिता जैसी सुशील सुकन्या को पा कर सौरभ का जीवन खिल उठेगा. एक वह है जो सौरभ की याद में घुलती जा रही है. लेकिन उसे क्रोध क्यों आ रहा है? क्या सौरभ जीवनभर कुंआरा रह कर उस के गम में बैठा रहता? ठीक ही तो किया उस ने. पर उसे इतनी जल्दी क्या थी? जब तक मेरी शादी कहीं तय नहीं होती तब तक तो इंतजार कर ही सकता था? अभिमानी सौरभ, यह मत समझना कि सुमिता के साथ तुम ही मधुर जीवन जी सकोगे. मैं भी आऊंगी तुम्हारे घर अपने विवाह का न्योता देने. तुम से अधिक सुंदर, स्मार्ट लड़के की खोज कर के. माया ने हाथ में लिए हुए कार्ड के टुकड़ेटुकड़े कर डाले.

माया के लिए उस के पापा ने वर ढूंढ़ने शुरू कर दिए लेकिन माया की नजरों में वे खरे नहीं उतरते थे. उस की जोड़ का एक भी तो नहीं था. मां और पापा कितना ही समझाने की कोशिश करते, लेकिन माया नहीं झुकी. अंत में पापा ने माया के लिए वर ढूंढ़ना छोड़ दिया था.

सच्चा प्यार : क्या शेखर की कोई गलत मंशा थी ? – भाग 2

मुझे शेखर के बोलने का अंदाज बहुत पसंद आया. वह लड़कियों से बातें करने में माहिर था और कई लड़कियां इसी कारण उस पर फिदा हो गई थीं, क्योंकि जब वह मुझ से बातें कर रहा था, तो उस 2 घंटे के समय में कई लड़कियां खुद आ कर उस से बात कर गई थीं. सभी उसे डार्लिंग, स्वीट हार्ट आदि पुकार कर उस के गाल पर चुंबन कर गईं. इस से मुझे मालूम हुआ कि वह लड़कियों के बीच बहुत मशहूर है. वह काफी सुंदर था… लंबाचौड़ा और गोरे रंग का… उस की आंखों में शरारत और होंठों में हसीन मुसकराहट थी. हमारे ही विश्वविद्यालय से एमबीए कर रहा था. उस के पिताजी भारत में दिल्ली शहर के बड़े व्यवसायी थे. शेखर एमबीए करने के बाद अपने पिताजी के कार्यालय में उच्च पद पर बैठने वाला था. ये सब उसी ने मुझे बताया था.

मैं विश्वविद्यालय के होस्टल में रहती थी और वह किराए पर फ्लैट ले कर रहता था. उसी से मुझे मालूम हुआ कि उस के पिता कितने बड़े आदमी हैं. हमारे एकदूसरे से विदा लेते समय शेखर ने मेरा सैल नंबर मांग लिया. सच कहूं तो उस पार्टी से वापस आने के बाद मैं शेखर को भूल गई थी. मेरे खयाल से वह बड़े रईस पिता की औलाद है और वह मुझ जैसी साधारण परिवार की लड़की से दोस्ती नहीं करेगा. उस शुक्रवार शाम 6 बजे मेरे सैल फोन की घंटी बजी.

‘‘हैलो,’’ मैं ने कहा.

‘‘हाय,’’ दूसरी तरफ से एक पुरुष की आवाज सुनाई दी.

मैं ने तुरंत उस आवाज को पहचान लिया. हां वह और कोई नहीं शेखर ही था.

‘‘कैसी हैं आप? उम्मीद है आप मुझे याद करती हैं?’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘कोई आप को भूल सकता है क्या? बताइए, क्या हालचाल हैं? कैसे याद किया मुझे आप ने अपनी इतनी सारी गर्लफ्रैंड्स में?’’

‘‘आप के ऊपर एक इलजाम है और उस के लिए जो सजा मैं दूंगा वह आप को माननी पड़ेगी. मंजूर है?’’ उस की आवाज में शरारत उमड़ रही थी.

‘‘इलजाम? मैं ने ऐसी क्या गलती की जो सजा के लायक है… आप ही बताइए,’’ मैं भी हंस कर बोली.

शेखर ने कहा, ‘‘पिछले 1 हफ्ते से न मैं ठीक से खा पाया हूं और न ही सो पाया… मेरी आंखों के सामने सिर्फ आप का ही चेहरा दिखाई देता है… मेरी इस बेकरारी का कारण आप हैं, इसलिए आप को दोषी ठहरा कर आप को सजा सुना रहा हूं… सुनेंगी आप?’’

‘‘हां, बोलिए क्या सजा है मेरी?’’

‘‘आप को इस शनिवार मेरे फ्लैट पर मेरा मेहमान बन कर आना होगा और पूरा दिन मेरे साथ बिताना होगा… मंजूर है आप को?’’

‘‘जी, मंजूर है,’’ कह मैं भी खूब हंसी.

उस शनिवार मुझे अपने फ्लैट में ले जाने के लिए खुद शेखर आया. मेरी खूब खातिरदारी की. एक लड़की को अति महत्त्वपूर्ण महसूस कैसे करवाना है यह बात हर मर्द को शेखर से सीखनी चाहिए. शाम को जब वह मुझे होस्टल छोड़ने आया तब हम दोनों को एहसास हुआ कि हम एकदूसरे को सदियों से जानते… यही शेखर की खूबी थी. उस के बाद अगले 6 महीने हर शनिवार मैं उस के फ्लैट पर जाती और फिर रविवार को ही लौटती. हम दोनों एकदूसरे के बहुत करीब हो गए थे. मगर मैं एक विषय में बहुत ही स्पष्ट थी. मुझे मालूम था कि हम दोनों भारत से हैं. इस के अलावा हमारे बीच कुछ भी मिलताजुलता नहीं. हमारी बिरादरी अलग थी. हमारी आर्थिक स्थिति भी बिलकुल भिन्न थी, जो बड़ी दीवार बन कर हम दोनों के बीच खड़ी रहती थी.

शुरू से ही जब मैं ने इस रिश्ते में अपनेआप को जोड़ा उसी वक्त से मेरे मन में कोई उम्मीद नहीं थी. मुझे मालूम था कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है. मगर जो समय मैं ने शेखर के साथ व्यतीत किया वह मेरे लिए अनमोल था और मैं उसे खोना नहीं चाहती थी. इसलिए मुझे हैरानी नहीं हुई जब शेखर ने बड़ी ही सरलता से मुझे अपनी शादी का निमंत्रण दिया, क्योंकि उस रिश्ते से मुझे यही उम्मीद थी. अगले हफ्ते ही वह भारत चला गया और उस के बाद हम कभी नहीं मिले. कभीकभी उस की याद मुझे आती थी, मगर मैं उस के बारे में सोच कर परेशान नहीं होती थी. मेरे लिए शेखर एक खत्म हुए किस्से के अलावा कुछ नहीं था.

शेखर के चले जाने के बाद मैं 1 साल के लिए अमेरिका में ही रही. इस दौरान मेरी मां भी अपनी अध्यापिका के पद से सेवानिवृत्त हो चुकी थीं. उन्हें अमेरिका आना पसंद नहीं था, क्योंकि वहां का सर्दी का मौसम उन के लिए अच्छा नहीं था. इसलिए मैं अपनी पीएच.डी. खत्म कर के भारत लौट आई. अमेरिका में जो पैसे मैं ने जमा किए और मेरी मां के पीएफ से मिले उन से मुंबई में 2 बैडरूम वाला फ्लैट खरीद लिया. बाद में मुझे क्व30 हजार मासिक वेतन पर एक कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल गई. मेरे मुंबई लौटने के बाद मेरी मां मेरी शादी करवाना चाहती थीं. उन्हें डर था कि अगर उन्हें कुछ हो जाए तो मैं इस दुनिया में अकेली हो जाऊंगी. मगर शादी इतनी आसान नहीं थी. शादी के बाजार में हर दूल्हे के लिए एक तय रेट होता था. हमारे पास मेरी तनख्वाह के अलावा कुछ भी नहीं था. ऊपर से मेरी मां का बोझ उठाने के लिए लड़के वाले तैयार नहीं थे.

जब मैं अमेरिका से मुंबई आई थी तब मेरी उम्र 25 साल थी. शादी के लिए सही उम्र थी. मैं भी एक सुंदर सा राजकुमार जो मेरा हाथ थामेगा उसी के सपने देखती रही. सपने को हकीकत में बदलना संभव नहीं हुआ. दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में और महीने सालों में बदलते हुए 3 साल निकल गए. मेरी जिंदगी में दोबारा एक आदमी का प्रवेश हुआ. उस का नाम ललित था. वह भी अंगरेजी का लैक्चरर था. मगर उस ने पीएचडी नहीं की थी. सिर्फ एमफिल किया था. पहली मुलाकात में ही मुझे मालूम हो गया कि वह भी मेरी तरह मध्यवर्गीय परिवार का है और उस की एक मां और बहन है. उस ने कहा कि उस के पिता कई साल पहले इस दुनिया से जा चुके हैं और मां और बहन दोनों की जिम्मेदारी उसी पर है.

Valentine’s Day 2024 : रूह का स्पंदन – दीक्षा के जीवन की क्या थी हकीकत ? – भाग 2

‘‘मम्मी, मैं तो यह कह रही थी कि यदि वह अपने ही क्षेत्र का होता तो अच्छा रहता.’’ दक्षा ने मन की बात कही. लड़का गढ़वाली ही नहीं, अपने इलाके का ही है. मां ने बताया तो दक्षा खुश हो उठी.

दक्षा मां से बातें कर रही थी कि उसी समय वाट्सऐप पर मैसेज आने की घंटी बजी. दक्षा ने फटाफट बायोडाटा और फोटोग्राफ्स डाउनलोड किए. बायोडाटा परफेक्ट था. दक्षा की तरह सुदेश भी अपने मांबाप की एकलौती संतान था. न कोई भाई न कोई बहन. दिल्ली में उस का जमाजमाया कारोबार था. खाने और ट्रैवलिंग का शौक. वाट्सऐप पर आए फोटोग्राफ्स में एक दाढ़ी वाला फोटो था.

दक्षा को जो चाहिए था, वे सारे गुण तो सुदेश में थे. पर दक्षा खुश नहीं थी. उस के परिवार में जो घटा था, उसे ले कर वह परेशान थी. उसे अपनी मर्यादाओं का भी पता था. साथ ही स्वभाव से वह थोड़ी मूडी और जिद्दी थी. पर समय और संयोग के हिसाब से धीरगंभीर और जिम्मेदारी भी थी.

दक्षा का पालनपोषण एक सामान्य लड़की से हट कर हुआ था. ऐसा नहीं करते, वहां नहीं जाते, यह नहीं बोला जाता, तुम लड़की हो, लड़कियां रात में बाहर नहीं जातीं. जैसे शब्द उस ने नहीं सुने थे, उस के घर का वातावरण अन्य घरों से कदम अलग था. उस की देखभाल एक बेटे से ज्यादा हुई थी. घर के बिजली के बिल से ले कर बैंक से पैसा निकालने, जमा करने तक का काम वह स्वयं करती थी.

दक्षा की मां नौकरी करती थीं, इसलिए खाना बनाना और घर के अन्य काम करना वह काफी कम उम्र में ही सीख गई थी. इस के अलावा तैरना, घुड़सवारी करना, कराटे, डांस करना, सब कुछ उसे आता था. नौकरी के बजाए उसे बिजनैस में रुचि ही नहीं, बल्कि सूझबूझ भी थी. वह बाइक और कार दोनों चला लेती थी. जयपुर और नैनीताल तक वह खुद गाड़ी चला कर गई थी. यानी वह एक अच्छी ड्राइवर थी.

दक्षा को पढ़ने का भी खासा शौक था. इसी वजह से वह कविता, कहानियां, लेख आदि भी लिखती थी. एकदम स्पष्ट बात करती थी, चाहे किसी को अच्छी लगे या बुरी. किसी प्रकार का दंभ नहीं, लेकिन घरपरिवार वालों को वह अभिमानी लगती थी. जबकि उस का स्वभाव नारियल की तरह था. ऊपर से एकदम सख्त, अंदर से मीठी मलाई जैसा.

उस की मित्र मंडली में लड़कियों की अपेक्षा लड़के अधिक थे. इस की वजह यह थी कि लिपस्टिक या नेल पौलिश के बारे में बेकार की चर्चा करने के बजाय वह वहां उठनाबैठना चाहती थी, जहां चार नई बातें सुननेसमझने को मिलें. वह ऐसी ही मित्र मंडली पसंद करती थीं. उस के मित्र भी दिलवाले थे, जो बड़े भाई की तरह हमेशा उस के साथ खड़े रहते थे.

सब से खास मित्र थी दक्षा की मम्मी, दक्षा उन से अपनी हर बात शेयर करती थी. कोई उस से प्यार का इजहार करता तो यह भी उस की मम्मी को पता होता था. मम्मी से उस की इस हद तक आत्मीयता थी. रूप भी उसे कम नहीं मिला था. न जाने कितने लड़के सालों तक उस की हां की राह देखते रहे.

पर उस ने निश्चय कर लिया था कि कुछ भी हो, वह प्रेम विवाह नहीं करेगी. इसीलिए उस की मम्मी ने बुआ के कहने पर मेट्रोमोनियल साइट पर उस की प्रोफाइल डाल दी थी. जबकि अभी वह शादी के लिए तैयार नहीं थी. उस के डर के पीछे कई कारण थे.

सुदेश और दक्षा के घर वाले चाहते थे कि पहले दोनों मिल कर एकदूसरे को देख लें. बातें कर लें और कैसे रहना है, तय कर लें. क्योंकि जीवन तो उन्हें ही साथ जीना है. उस के बाद घर वाले बैठ कर शादी तय कर लेंगे.

घर वालों की सहमति से दोनों को एकदूसरे के मोबाइल नंबर दे दिए गए. उसी बीच सुदेश को तेज बुखार आ गया, इसलिए वह घर में ही लेटा था. शाम को खाने के बाद उस ने दक्षा को मैसेज किया. फोन पर सीधे बात करने के बजाय उस ने पहले मैसेज करना उचित समझा था.

काफी देर तक राह देखने के बाद दक्षा का कोई जवाब नहीं आया. सुदेश ने दवा ले रखी थी, इसलिए उसे जब थोड़ा आराम मिला तो वह सो गया. रात करीब साढ़े 10 बजे शरीर में दर्द के कारण उस की आंखें खुलीं तो पानी पी कर उस ने मोबाइल देखा. उस में दक्षा का मैसेज आया हुआ था. मैसेज के अनुसार, उस के यहां मेहमान आए थे, जो अभीअभी गए हैं.

सुदेश ने बात आगे बढ़ाई. औपचारिक पूछताछ करतेकरते दोनों एकदूसरे के शौक पर आ गए. यह हैरानी ही थी कि दोनों के अच्छेबुरे सपने, डर, कल्पनाएं, शौक, सब कुछ काफी हद इस तरह से मेल खा रहे थे, मानो दोनों जुड़वा हों. घंटे, 2 घंटे, 3 घंटे हो गए. किसी भी लड़की से 10 मिनट से ज्यादा बात न करने वाला सुदेश दक्षा से बातें करते हुए ऐसा मग्न हो गया कि उस का ध्यान घड़ी की ओर गया ही नहीं, दूसरी ओर दक्ष ने भी कभी किसी से इतना लगाव महसूस नहीं किया था.

सुदेश और दक्षा की बातों का अंत ही नहीं हो रहा था. दोनों सुबह 7 बजे तक बातें करते रहे. दोनों ने बौलीवुड हौलीवुड फिल्मों, स्पोर्ट्स, पौलिटिकल व्यू, समाज की संरचना, स्पोर्ट्स कार और बाइक, विज्ञान और साहित्य, बच्चों के पालनपोषण, फैमिली वैल्यू सहित लगभग सभी विषयों पर बातें कर डालीं. दोनों ही काफी खुश थे कि उन के जैसा कोई तो दुनिया में है. सुबह हो गई तो दोनों ने फुरसत में बात करने को कह कर एकदूसरे से विदा ली.

घर वालों की सहमति पर सुदेश और दक्षा ने मिल कर बातें करने का निश्चय किया. सुदेश सुबह ही मिलना चाहता था, लेकिन दक्षा ने ब्रेकफास्ट कर के मिलने की बात कही. क्योंकि वह पूजापाठ कर के ही ब्रेकफास्ट करती थी. सुदेश में दक्षा से मिलने के लिए गजब का उत्साह था. दक्षा की बातों और उस के स्वभाव ने आकर्षण तो पैदा कर ही दिया था. इस के अलावा दक्षा ने अपने जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें मिल कर बताने को कहा था. वो बातें कौन सी थीं, सुदेश उन बातों को भी जानना चाहता था.

निश्चित की गई जगह पर सुदेश पहले ही पहुंच गया था. वहां पहुंच कर वह बेचैनी से दक्षा की राह देख रहा था. वह काले रंग की शर्ट और औफ वाइट कार्गो पैंट पहन कर गया था. रेस्टोरेंट में बैठ कर वह हैडफोन से गाने सुनने में मशगूल हो गया. दक्षा ने काला टौप पहना था, जिस के लिए उस की मम्मी ने टोका भी था कि पहली बार मिलने जा रही है तो जींस टौप, वह भी काला.

तब दक्षा ने आदत के अनुसार लौजिकल जवाब दिया था, ‘‘अगर मैं सलवारसूट पहन कर जाती हूं और बाद में उसे पता चलता है कि मैं जींस टौप भी पहनती हूं तो यह धोखा देने वाली बात होगी. और मम्मी इंसान के इरादे नेक हों तो रंग से कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

तर्क करने में तो दक्षा वकील थी. बातों में उस से जीतना आसान नहीं था. वह घर से निकली और तय जगह पर पहुंच गई. सढि़यां चढ़ कर दरवाजा खोला और रेस्टोरेंट में अंदर घुसी. फोटो की अपेक्षा रियल में वह ज्यादा सुंदर और मस्ती में गाने के साथ सिर हिलाती हुई कुछ अलग ही लग रही थी.

घर लौट जा माधुरी : जवानी की दहलीज पर पैर रखते ही माधुरी की जिंगदी में क्या बदलाव आया ? – भाग 2

‘‘मैं जब घर पहुंची तो मेरी उंगली में पहले वाली अंगूठी देख कर मां ने पूछा था, ‘इस को लौटाया नहीं क्या?’

‘‘मैं ने डरतेडरते कहा था, ‘इस को वापस लेने से इनकार कर दिया मां.’

‘‘यह सुन कर मां ने कठोर आवाज में पूछा था, ‘किस ने? उस छोकरे ने या उस के बाप ने?’

‘‘मैं ने कहा था, ‘उस के पिताजी नहीं थे, आज वही था.’

‘‘मां ने कहा था, ‘अंगूठी निकाल दे. कल मैं लौटा आऊंगी. बेवकूफ लड़की, तुम नहीं जानती, यह सुनार का छोकरा तुझ पर चारा डाल रहा है. उस की मंशा ठीक नहीं है. अब आगे से उस की दुकान पर मत जाना.’

‘‘मां की बात मुझे बिलकुल नहीं सुहाई. पिछली बार जब मैं उस की दुकान पर गई थी तब तो दाम कम कराने के लिए उसी से पैरवी करवा रही थीं. अब जब इतना बड़ा उपहार अपनी इच्छा से दिया तो नखरे कर रही हैं.

‘‘फिर क्या… मैं हर वक्त उसी के बारे में सोचने लगी. उस ने मुझे भरोसा दिलाया कि कुछ दिनों बाद वह अपनी पत्नी को तलाक दे देगा और मुझ से शादी कर लेगा.’’

‘‘और तुम्हें विश्वास हो गया?’’

‘‘उस ने शपथ ले कर कहा है. मुझे विश्वास है कि वह धोखा नहीं देगा.’’

‘‘अब बताओ कि तुम यहां कैसे आई हो?’’ तृप्ति ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘एक हफ्ता पहले जीजाजी आए थे. उन्होंने बाबूजी के सामने एक लड़के का प्रस्ताव रखा था. लड़का एक सरकारी दफ्तर में है, लेकिन बचपन से ही उस का एक पैर खराब है, इसलिए लंगड़ा कर चलता है. वह मुझ से बिना दहेज की शादी करने को तैयार है.

‘‘बाबूजी तैयार हो गए. मां ने विरोध किया तो कहने लगे, ‘एक पैर ही तो खराब है. सरकारी नौकरी है. उसे कई रियायतें भी मिलेंगी.

‘‘जब मां भी तैयार हो गईं तो मैं ने मुंह खोला, पर उन्होंने मुझे डांटते हुए कहा, ‘तुम्हें तो नौकरी मिली नहीं, अब मुश्किल से नौकरी वाला एक लड़का मिला है, तो जबान चलाती है.’

‘‘लेकिन, बात यह नहीं थी. किसी ने मां के कान में डाल दिया था कि मेरा सौरभ से मिलनाजुलना है. मां को तो उसी समय शक हो गया था, जब मैं अंगूठी बिना लौटाए आ गई थी.

‘‘इधर सौरभ मेरे लिए कुछ न कुछ हमेशा खरीदता रहता था. अब घर में क्याक्या छिपाती मैं. कोई न कोई बहाना बनाती, पर मां का शक दूर न होता. वे भी चाहती थीं कि किसी तरह जल्द से जल्द मेरी शादी हो जाए, ताकि समाज में उन की नाक न कटे.

‘‘मां का मुझ पर भरोसा नहीं रहा था. उन्होंने मुझे गांव से बाहर जाने की मनाही कर दी. उधर बाबूजी ने जीजाजी के प्रस्ताव पर हामी भर दी.

लड़के ने मेरा फोटो और बायोडाटा देख कर शादी करने का फैसला मुझ पर छोड़ दिया. बिना मुझ से सलाह लिए मांबाबूजी ने अगले महीने मेरी शादी की तारीख भी पक्की कर दी है.

‘‘मांबाबूजी का यह रवैया मुझे नागवार लगा, इसलिए मैं  सौरभ से इस संबंध में बात करना चाहती थी. मैं उस के साथ कहीं भाग जाना चाहती थी.

‘‘बहुत मुश्किल से किसी तरह दवा लाने का बहाना कर के मैं गांव से निकली. फोन पर सौरभ को सारी बातें बताईं. उस ने कहा कि मैं रात में बनारस पहुंच जाऊं. सुबह वहीं से मुंबई के लिए ट्रेन पकड़ लेंगे. उस ने रिजर्वेशन भी करा लिया है. उस का एक दोस्त वहां रहता है. मुझे दोस्त के पास रख कर वह लौट आएगा, फिर पत्नी को तलाक दे कर मुझ से शादी कर लेगा.’’

‘‘ओह… तो तुम मुंबई जाने की तैयारी कर के आई हो?’’ तृप्ति ने कहा.

‘‘हां.’’

‘‘माधुरी, तुम समझदार हो, इसलिए तुम को मैं समझा तो नहीं सकती… और फिर अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने का हक सभी को है, पर हम आपस में इस बारे में बात तो कर ही सकते हैं, जिस से सही दिशा मिल सके और तुम समझ पाओ कि जानेअनजाने में तुम से कोई गलत फैसला तो नहीं हो रहा है.’’

‘‘बोल तृप्ति, समय कम है, मुझे सुबह निकलना भी है. यह तो मुझे भी एहसास हो रहा है कि मैं कुछ गलत कर रही हूं. पर मेरे सामने इस के अलावा कोई रास्ता भी तो नहीं है,’’ माधुरी की चिंता उस के चेहरे से साफ झलक रही थी.

‘‘अच्छा माधुरी, सौरभ के पिता से गहनों की कीमत में छूट कराने के लिए तुम्हें सौरभ से कहना पड़ा था न?’’

‘‘हां.’’

‘‘सौरभ से तुम्हारी जानपहचान भी नहीं थी. सिर्फ इतना ही कि तुम्हारे साथ सौरभ भी एक ही स्कूल में पढ़ता था.’’

‘‘हां.’’

‘‘सौरभ के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी. काफी सारा पैसा उस के बैंक अकाउंट में था, जिसे खर्चने के लिए उसे अपने पिता की इजाजत लेने की जरूरत नहीं थी.’’

‘‘यह भी सही है.’’

‘‘सौरभ की शादी उस की मरजी से नहीं हुई थी. गूंगीबहरी होने के चलते अपनी पत्नी को वह पसंद नहीं करता था. कहीं न कहीं उस के मन में किसी दूसरी सुंदर लड़की की चाह थी.’’

‘‘तुम्हारी बातों में सचाई है. कई बार उस ने ऐसा कहा था. लेकिन तुम जिरह बहुत अच्छा कर लेती हो. देखना, तुम अच्छी वकील बनोगी.’’

‘‘वह खुद जवान और सुंदर है और तुम भी उस की सुंदरता की ओर खिंचने लगी थी.’’

‘‘यह भी सही है.’’

‘‘फिर अब तो तुम मानोगी कि तुम से ज्यादा तुम्हारी शारीरिक सुंदरता उसे अपनी ओर खींच रही थी और पहली ही झलक में उस ने तुम में अपनी हवस पूरी की इच्छा की संभावना तलाश ली होगी. और जब तुम ने उस की सोने की महंगी अंगूठी स्वीकार कर ली तब वह पक्का हो गया कि अब तुम उस के जाल में आसानी से फंस सकती हो.

‘‘फिर वही हुआ, अपने पैसे का उस ने भरपूर इस्तेमाल किया और तुम पर बेतहाशा खर्च किया, जिस के नीचे तुम्हारा विवेक भी मर गया. तुम्हारी समझ कुंठित हो गई और तुम ने अपनी जिंदगी का सब से बड़ा धन गंवा दिया, जिसे कुंआरापन कहते हैं.’’

माधुरी के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं.

‘‘बोल तृप्ति बोल, अपने मन की बात खुल कर मेरे सामने रख,’’ माधुरी उत्सुकता से उस की बातें सुन रही थी.

‘‘माधुरी, अब जिस सैक्स सुख के लिए मर्द शादी तक इंतजार करता है, वही उसे उस के पहले ही मिल जाए और उसे यह विश्वास हो जाए कि अपने पैसों से तुम्हारी जैसी लड़कियों को आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है, तो वह अपनी पत्नी को तलाक देने और दूसरी से शादी करने का झंझट क्यों मोल लेगा?

‘‘फिर वह अच्छी तरह जानता है कि उस की पत्नी की बदौलत ही उस के पास इतनी दौलत है और उसे तलाक देते ही उस को इस जायदाद से हाथ धोना पड़ जाएगा. मुकदमे का झंझट होगा, सो अलग.

‘‘मुझे तो लगता है, तुम किसी बड़ी साजिश की शिकार होने वाली हो. तुम से उस का मन भर गया है. अब वह तुम्हें अपने दोस्त को सौंपना चाहता है.’’

Valentine’s Day 2024 : काश – श्रीकांत किसे देखकर हैरान हो गया था ? – भाग 2

घर लौट कर श्रीकांत ने पूरे रीतिरिवाजों से धूमधाम के साथ अपना विवाह रचाया. पत्री मिलान कर के अपने जैसी उच्चकुलीन वधू को घर लाया गया. अब श्रीकांत का जीवन सुखी, सफल और स्वस्थ होना चाहिए था. परंतु इस का उलट हो गया. शांता अपने नाम से विपरीत अशांतिप्रिय निकली. उस की कभी न खत्म होने वाली चिकचिक के कारण मातापिता ने घर अलग कर दिया. शांता के कलहप्रेम के कारण श्रीकांत को उच्चरक्तचाप की शिकायत रहने लगी. नन्हा बेटा भी डरासहमा रहता. पड़ोस में किसी से शांता की नहीं बनती थी. एकाकी जीवन, नीरस दिनचर्या.

बेंगलुरु में आज अचानक सारिका से मिल कर श्रीकांत के जीवन में ताजी हवा का झोंका एक बार फिर आया था. वही सौंदर्य स्वामिनी, वही स्नेही व्यक्तित्व, वही फूल समान मुसकान, वही नयन कटारी.

‘‘घर में कौनकौन है?’’ सारिका के प्रश्न ने श्रीकांत के दिमाग में दौड़ रही फिल्मी रील का अंत कर दिया. वह वर्तमान में आ गया. सारिका के प्रश्न का उत्तर दे उस ने भी जानना चाहा कि सारिका की जिंदगी में कोई और है या नहीं.

‘‘मैं ने पहले अपना कैरियर बनाना उचित समझा. आज मैं एक अच्छी कंपनी में उच्चपदासीन हूं. पूरा दक्षिण इलाका मेरी निगरानी में आता है. अब जल्द ही मेरी शादी होने वाली है. मेरा मंगेतर पुणे में नौकरी करता है. जाड़े के मौसम में शादी कर के मैं भी पुणे में शिफ्ट हो जाऊंगी.’’

‘‘क्या तुम खुश हो, सारिका? क्या तुम ने मुझे बिलकुल भुला दिया? हमारा प्यार, हमारा साथ…क्या वह समय जीवन में लौट नहीं सकता?’’ श्रीकांत की इस बात पर सारिका का हैरान होना स्वाभाविक था. श्रीकांत आगे कहने लगा, ‘‘मैं अब भी तुम्हें याद करता हूं, तुम्हारी हंसी, तुम्हारा प्यारभरा स्पर्श, हमारा सुख…’’ श्रीकांत कहे चला जा रहा था और सारिका चुपचाप उसे ताक रही थी. एकाएक वह खड़ी हो गई, ‘‘अब मुझे चलना चाहिए. कल शाम मैं तुम्हें यहीं मिलूंगी,’’ कह सारिका चली गई. श्रीकांत वहीं बैठा उसे जाते देखता रहा.

अगले दिन श्रीकांत से शाम तक समय काटना कठिन हो गया. कैसेकैसे कर के दिन बीता. शाम होते ही वह व्हाइटफील्ड मौल की ओर लपका. वहां पहुंच कर वह प्रवेशद्वार पर खड़ा, आनेजाने वाले पर टकटकी लगाए सारिका को खोजता रहा. अचानक उसे लगा जैसे कोई उस के पास चला आ रहा है. एक करीब 18 साल का पतला सा सांवला लड़का श्रीकांत के पास आया और एक चिट्ठी उसे थमाते हुए बोला, ‘‘सारिका मैडम ने आप के लिए भेजी है.’’

सारिका खुद क्यों नहीं आई? क्या बीमार हो गई होगी? या फिर दूसरे काम में फंस गई हो… मायूस हो कर श्रीकांत ने वहीं बनी बैंच पर बैठ कर सारिका द्वारा भेजी चिट्ठी को पढ़ना शुरू कर दिया.

‘‘श्रीकांत,

‘‘कल अचानक तुम से मिल कर मुझे खुशी हुई. लगा मेरा एक सुखद अतीत मेरे वर्तमान में आ गया. वह अतीत जो मुझे बहुत दर्द दे कर गया था. लेकिन जब तक वह मेरे जीवन में रहा, मुझे सुख ही दिया. मैं तुम्हें माफ कर चुकी हूं. मैं आगे बढ़ चुकी हूं. इसी कारणवश तुम से मिल कर कल मैं बेचैन नहीं हुई.

‘‘किंतु तुम्हारी बातें सुन कर मुझे खेद हुआ. तुम शादीशुदा हो, अपने परिवार की खुशी व अपनी इच्छा से तुम ने शादी की, आज तुम्हारे एक बेटा है, और अपने गृहस्थ जीवन के बावजूद तुम आज उन्हें त्याग कर मेरे पास लौटना चाहते हो. तुम आज अपनी पत्नी के साथ वही करना चाहते हो जो तुम ने कुछ वर्र्ष पूर्व मेरे साथ किया था.

‘‘आज मैं ने तुम्हें पहचान लिया है, श्रीकांत. तुम एक स्वार्थी इंसान हो. तुम्हें केवल स्वसुख से सरोकार है. कल तुम्हें मेरे साथ जीवनयापन करने में भविष्य का संदेह था, तो तुम ने मुझे छोड़ दिया. आज तुम्हें लगा कि पत्री की भविष्यवाणी गलत सिद्ध हुई. तुम अपनी गृहस्थी में परेशान हो, तो तुम अपनी पत्नी को छोड़ना चाहते हो. किंतु कल की मुलाकात में भी एक अच्छाई रही, तुम से कल मिलने के बाद तुम से छूट जाने का दर्द मेरे मन से मिट चुका है. अब मैं खुशी से अपने आने वाले जीवन के स्वप्न सजा सकूंगी.

‘‘सारिका.’’

श्रीकांत अपना सा मुंह लिए वहां बैठा रह गया. उस के मनमस्तिष्क में केवल एक ही गूंज थी – काश, काश, उस ने पंडितों के मायाजाल में फंस कर अपने जीवन का इतना महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं  लिया होता. काश, उस ने अपनी बुद्धि, अपने तर्कों को भी मोल दिया होता. काश, उस ने अपनी शिक्षा के आधार पर बनाए अपने व्यक्तित्व के अनुसार अपने जीवन का फैसला लिया होता, तो आज सारिका उसे एक स्वार्थी इंसान की उपाधि न दे जाती.

पत्री मिलान के चक्कर में आ कर उस का जीवन तो घिसट ही रहा है, पर सारिका के समक्ष उस की गलत छवि का पछतावा तो अब उसे सदा सालता रहेगा.

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