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दिन दहाड़े

हम लोग दिल्ली से झांसी आ रहे थे. मथुरा स्टेशन के पास हमारी गाड़ी कुछ देर रुकी, तभी हमारे डब्बे में 2 लड़के चढ़ गए और टे्रन का फर्श झाड़ कर पैसे मांगने लगे. ज्यादातर यात्रियों ने उन्हें कुछ न कुछ पैसे दे दिए.
बाद में जब स्टेशन आया तो मैं ने बाहर जाने के लिए अपनी चप्पलें देखने के लिए नीचे नजर डाली तो मेरे होश उड़ गए. मेरी नई चप्पलें नदारद थीं. डब्बे के अन्य यात्रियों की भी चप्पलें नहीं मिल रही थीं.
फर्श झाड़ने वाले वे लड़के कूड़े के साथ यात्रियों की चप्पलों को भी ले गए थे. इस प्रकार यात्री दिन दहाड़े ठग लिए गए.
अर्पण शांडिल्य, झांसी (उ.प्र.)
बहुत दिनों से हम अपना पुराना सोफा रिपेयर कराने की सोच रहे थे. कुछ दिन में एक सोफा ठीक करने वाला आया. सोफा देखा. बोला, इस का रेक्सीन बदलना पड़ेगा. मैं आप को बढि़या रेक्सीन कम दाम में ला दूंगा.
हम ने उस पर विश्वास कर के दो हजार रुपए उसे दे दिए और वह पैसे ले कर बाजार चला गया. हम लोग पूरा दिन उस का इंतजार करते रहे लेकिन वह वापस नहीं आया. उस दिन के बाद वह आज तक लापता है. इस तरह हम दिन दहाड़े ठगे गए.
सी वी जगनी, बर्दवान (पश्चिम बंगाल)
बात कई साल पुरानी है. एक बार 2 लड़के (सेल्समैन) हमारे यहां आए. वे दोनों देखने में सीधेसादे और मासूम लग रहे थे. वे दोनों तवे बेचने आए थे. उन दोनों ने उस तवे की खासीयत बताते हुए कहा कि इस में रोटी के साथसाथ पापड़ वगैरह भी बना सकते हैं और दाम मात्र 150 रुपए. साथ में एक के साथ एक फ्री भी बताया.
मेरा छोटा बेटा उस समय 10वीं में था, वह पीछे पड़ गया कि मम्मी ले लो, कितनी अच्छी चीज है. मैं भी उन दोनों की बातों में आ गई और उन से तवा खरीद लिया.
बाद में बाजार में एक दुकान में वही तवा देखा तो रेट पूछने पर उन्होंने 35 रुपए एक तवे का मूल्य बताया. इस तरह मैं घर बैठे दिनदहाड़े ठगी गई. उस दिन के बाद से मैं ने सैल्समैनों से कोई भी चीज लेनी बंद कर दी.
आशा गुप्ता, जयपुर (राजस्थान)
मैं ने अपने घर में काम वाली बाई रखी. वह बहुत ही अच्छा काम करती थी. एक दिन उस ने मुझे 3 हजार रुपए एडवांस मांगे.
मैं सोच में पड़ गई कि अगर इसे पैसे नहीं दिए तो यह कल से आना बंद कर देगी, सो मैं ने उसे एडवांस दे दिया.
उस के एक हफ्ते तक तो वह आई और फिर उस ने आना बंद कर दिया. बाद में पता चला वह आसपास के कई घरों से इसी तरह रुपए ले कर चंपत हो गई थी.
तृप्ता, चितरंजनपार्क (नई दिल्ली) 

इन्हें भी आजमाइए

  1. आप स्वभाव से चुप या गुमसुम रहने वाले हैं तो भी घर आने वाले से बातचीत करने की जिम्मेदारी आप की है. स्वयं कम बोल कर भी प्रश्न द्वारा वार्त्तालाप को चालू रखा जा सकता है.
  2. हाथ जल जाने पर नमक का पानी ठंडक पहुंचाता है. एक गिलास पानी में 100 ग्राम नमक डाल कर घोल बना लीजिए. इसे शीशी में भर कर रसोई में रख लीजिए. जल जाने पर तुरंत लगा सकते हैं.
  3. सिल्वर फौयल खत्म हो जाए तो बचे गत्ते के रोल पर गिफ्ट रैपिंग पेपर रोल कर सकते हैं. इस से रैपिंग पेपर एकसार रहेगा और इस्तेमाल करने में भी आसानी रहेगी.
  4. औफिस जाते समय अपने ड्रैसअप का खयाल अवश्य रखें. ब्राउन पैंट पर ग्रे कोट पहनने पर मजाक उड़ाया जा सकता है. इसलिए कपड़े बेमेल न हों.
  5. अकेलेपन को दूर करने के बहुत से विकल्प हैं जैसे पत्रपत्रिका पढ़ने, टीवी देखने, किसी कला, सिलाईबुनाई या बागबानी आदि की ओर रुचि बढ़ाइए.
  6. टमाटर के जूस में शहद मिला कर चेहरे व गरदन पर 15 मिनट लगाएं फिर पानी से धो लें. त्वचा नरम और चमक उठेगी.

ऐसा भी होता है

मेरी पुत्री व दामाद दोनों ही सरकारी नौकरी में हैं. दोनों को ही सरकारी कार्य से 1-2 महीने के लिए दूसरे शहरों में जाना पड़ता है. उस समय उन के बच्चों की देखभाल के लिए मैं जबलपुर से उन के यहां जाती हूं.
बात 6 महीने पुरानी है. मेरी पुत्री कार्यवश दूसरे शहर गई. वह अपने साथ सोने के कुछ आभूषण भी ले गई. उस शहर में हमारे करीबी रिश्तेदार भी रहते हैं और साप्ताहिक अवकाश के दिन उन्हीं के यहां लंच करने और फिर घूमनेफिरने का प्रोग्राम रहता था.
1 महीने बाद वह वापस आई तो पता लगा कि उस के आभूषणों में हाथ के कंगन नहीं मिल रहे हैं. मेरा मन निराशा से भर गया. मैं अपनी पुत्री को भलाबुरा कहने लगी. मन में शंकाएं उठने लगीं कि कहीं कंगन रिश्तेदारों के यहां रह गए या उन्होंने ही निकाल लिए… जब दामाद भी बाहर से आ गए तो मैं भारी मन से जबलपुर लौट आई.
अभी हाल ही में मेरे दामाद का अचानक फोन आया, ‘‘मम्मीजी, कंगन घर में ही मिल गए.’’ यह खुशखबरी सुन कर मन को बहुत संतोष हुआ.
हुआ यह था कि पुत्री ने घर आ कर कंगनों को एक कपड़े में लपेट कर लापरवाही से रख दिया और भूल गई. एक दिन दामाद घर की सफाई कर रहे थे कि एक अलमारी के कोने में रखे कपड़े की पोटली को खोला तो उस में कंगन रखे थे. मुझे यह बुरा लगा कि मैं बेवजह ही अपने रिश्तेदार के लिए गलत सोच रही थी. 
विमलेश शर्मा, जबलपुर (म.प्र.)
 
बेटी की शादी तय हो चुकी थी. वर पक्ष की आपसी रजामंदी से विवाह का शुभदिन भी रखा जा चुका था. एकएक कर के हम ने सभी दोस्तोंरिश्तेदारों को भी खबर करनी शुरू कर दी थी.
बूआ सास को जब यह बात पता चली तो वे बहुत नाराज हुईं. उन्होंने कहा कि रविवार विवाह के लिए शुभदिन नहीं है, यह मान दिन हैं. इस रोज ही भाई (हमारे ससुर) का देहांत हुआ था.
वर के पिता से परिस्थिति बताते हुए हम ने विवाह की तिथि बदलने का आग्रह किया. उन्होंने हमें अपनी असुविधा जताई लेकिन बाद में किसी तरह वे मान गए. हमें फोन पर सब लोगों को विवाह की दूसरी तारीख का निमंत्रण देना पड़ा. हमारे साथसाथ आने वाले मेहमानों को भी खासी परेशानी का सामना करना पड़ा.
इस तरह न चाहते हुए भी हमें अपने रिश्तेदारों के मानसम्मान के कारण अंधविश्वास के चक्रव्यूह में फंसने को मजबूर होना पड़ा था.
सुखदा सहाय, मथुरा (उ.प्र.) 

यह भी खूब रही

मेरा मित्र किसी भी हसीन लड़की को देखते ही अपना होश खो बैठता था. एक बार मैं उस के साथ बाजार जा रहा था. चौराहे पर एक खूबसूरत लड़की नजर आई. आदत से मजबूर मेरा मित्र उस लड़की के पीछे चल दिया.
मैं अकेला ही बाजार चला गया. थोड़ी देर बाद अस्पताल से फोन आया कि मेरा मित्र दुर्घटनाग्रस्त हो गया है. मैं अस्पताल पहुंचा. वहां पर मित्र की मरहमपट्टी हो रही थी. मरहम लगाने वाली नर्स कोई और नहीं बल्कि वही लड़की थी जिस के पीछे वह लग गया था.
दरअसल उस हसीना का पीछा करते हुए मेरा मित्र गटर में जा गिरा था. उस की चीख सुन कर उस लड़की ने ही लोगों को बुला कर उसे अस्पताल पहुंचाया था, जो वहां पर नर्स का काम करती थी.
महबूब बाशा, करनूल (आंध्र प्रदेश)
मैं इंटर की छात्रा थी. मेरा कालेज तो को-एड था, पर लड़के व लड़कियों का अनुपात 8:2 था. एक दिन कक्षा में हमारी नई शिक्षिका आईं और अपना परिचय देते हुए बोलीं, ‘‘मेरा नाम नीलिमा पांडेय है. मैं आप लोगों को दर्शनशास्त्र पढ़ाऊंगी. अब आप लोग भी अपनाअपना परिचय दीजिए.’’
एक भी लड़की ने उठ कर कुछ भी नहीं कहा. शिक्षिका को कुछ अजीब लगा. तभी पीछे से एक शरारती लड़का उठा और कहने लगा, ‘‘मैडम, ये लड़कियां आप को अपना परिचय इसलिए नहीं दे रही हैं कि कहीं लड़कों को इन के नामपता न मालूम हो जाएं. चलिए, मैं ही इन का परिचय करवा देता हूं.’’ उस ने सब का नाम और पता बता दिया. बस, फिर क्या था, पूरी कक्षा ठहाकों से गूंज उठी और हम लोगों की झिझक भी दूर
हो गई. निभा सिन्हा, गया (बिहार)
उन दिनों मेरे पति मध्य प्रदेश शासकीय सेवा में कार्यरत थे. हमारा ट्रांसफर आदिवासी बहुल क्षेत्र झाबुआ हो गया. हमारे यहां एक चपरासी आता था. उस का नाम डूंगरा सिंह था. पहले दिन आया तो वह मुझ से बोला, ‘‘मैडमजी, मैं रोज हाड़े हाथ बजे आया करूंगा.’’ मैं ने सोचा शायद मुंह में कुछ है, इसलिए साढ़े 7 को ऐसे बोल रहा है.
एक बार वह 3-4 दिन तक नहीं आया, जब आया तो मैं ने उस से न आने का कारण पूछा तो वह बोला, ‘‘मैडमजी, म्हारी हग्गी बहन की हगाई थी, कैसे आता.’’ उस की बात सुन कर मेरी बेटी जोरजोर से हंसने लगी. इतने में हमारी पड़ोसिन आ गईं, उन को हम ने पूरी बात बताई तो वे बोलीं, ‘‘ये लोग ‘स’ को ‘ह’ बोलते हैं. इस का तात्पर्य सगी बहन की सगाई से है.’’
अब तो हम लोग खूब हंसे. शब्द के जरा से बदलने से उस का अर्थ ही बदल जाता है.
सरिता सेठ, कानपुर (उ.प्र.) 

पतिपत्नी के बीच ‘तीसरे’ का घातक नतीजा

पतिपत्नी के बीच विश्वास की डोर से बंधा प्रेम सर्वस्व समर्पण चाहता है और जब इस बंधन के बीच किसी तीसरे का पदार्पण होता है तो इस का अंत हमेशा दुखदायी होता है. सुनंदा की मौत ने एक बार फिर से समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कैसे वह पतिपत्नी के अटूट बंधन के बीच तीसरे के लिए मर्यादा रेखा खींचे. ‘पतिपत्नी और वो’ से जुड़े पहलुओं का विश्लेषण कर रहे हैं जगदीश पंवार.
17 जनवरी को केंद्रीय मंत्री शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की मृत्यु की खबर से लोग भौचक रह गए. इस खबर ने भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में हलचल मचा दी. सुनंदा दिल्ली के होटल लीला में संदिग्ध अवस्था में मृत पाई गई थीं. चर्चा गरम थी कि सुनंदा और शशि थरूर की शादीशुदा जिंदगी में पाकिस्तान की मेहर तरार नाम की एक पत्रकार के आने से दोनों के बीच काफी तनाव हो गया था. इसी वजह से सुनंदा की मृत्यु को ले कर सवाल उठने शुरू हो गए.
मामला दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंपा गया है. एसडीएम ने परिवार के किसी भी सदस्य पर मौत को ले कर किसी तरह का संदेह नहीं जताया. शुरुआती जांच रिपोर्ट कहती है कि सुनंदा की मौत दवाओं के ओवरडोज से हुई. उन के शरीर पर चोट के निशान भी पाए गए. मौत अप्राकृतिक बताईर् गई है लेकिन सुनंदा के पुत्र शिव मेनन ने मां की मौत को ले कर किसी पर कोई आरोप नहीं लगाया. न ही परिवार के किसी अन्य सदस्य ने.
सुनंदा बीमार भी बताई गईं. उन्हें टीबी की बीमारी थी. वे डिप्रैशन में थीं. उन की दवाएं चल रही थीं.
शशि, सुनंदा और वो
सुनंदा की मौत के 2-3 दिन पहले से मीडिया में आ रही खबरें बता रही थीं कि पतिपत्नी के रिश्तों में मेहर तरार के कारण दरार आ गई. मृत्यु के 2 दिन पहले से प्रिंट और इलैक्ट्रौनिक मीडिया में सुनंदा पुष्कर के पति शशि थरूर के पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार से संबंध खासी सुर्खियों में थे. थरूर और मेहर की ट्वीटर पर की गई चैटिंग्स सार्वजनिक हो चुकी थी और सुनंदा उन्हें ले कर काफी परेशान थीं.
मृत्यु वाले दिन भी तमाम अखबार और टैलीविजन चैनल दोनों पतिपत्नी के खटासभरे संबंध की खबरों से भरे थे. मेहर ट्वीटर पर शशि से अपने प्यार का इजहार कर रही थीं और खुद के कारण सुनंदा और शशि के रिश्तों में आ रहे तनाव पर भी दुख जताया था.
पाकिस्तान के अखबार में लिखे अपने लेख में मेहर ने शशि थरूर की तारीफ करते हुए यहां तक लिखा था कि उन की आवाज में जादू है. मेहर ने खुद कहा था कि वे शशि से दो बार मिल चुकी हैं. शशि थरूर और मेहर की पहली मुलाकात दुबई में तथा दूसरी भारत में हुई थी.
ऐसी तमाम बातों के चलते सुनंदा की मेहर के साथ झड़प भी हुई थी. सुनंदा ने कहा था कि उन के पति शशि थरूर का पाकिस्तानी पत्रकार के साथ अफेयर है और वे तलाक लेने की सोच रही हैं. हालांकि खबर थी कि शशि थरूर का ट्वीटर अकाउंट हैक कर लिया गया है. हैक करने के बाद उन पर मेहर तरार को गलत संदेश भी भेजे गए लेकिन बाद में सुनंदा ने कहा था कि अकाउंट हैक नहीं हुआ, उन्होंने अपने पति के ट्वीटर अकाउंट से मेहर को मैसेज भेजे थे.
मौत, विवाद और रहस्य
मौत से 2 दिन पहले सुनंदा ने मेहर पर आरोप लगाए थे कि जब वे इलाज करवाने के लिए 3 से 4 महीने बाहर गई थीं तब तरार ने उन के पति के पीछे पड़ उन की शादी तोड़ने की कोशिश की थी. सुनंदा ने यह आरोप भी लगाया था कि उन के पति के उस पत्रकार के साथ विवाहेतर संबंध हैं. इस के बावजूद सुनंदा खुश दिखने की कोशिश करती दिखाई दीं. उन्होंने कहा कि थरूर और वे दोनों खुशहाल हैं.
फिर ऐसा क्यों हुआ कि वे मरने से एक दिन पहले मंत्री पति के लोदी एस्टेट स्थित बंगले को छोड़ कर होटल लीला में आ गईं?
52 वर्षीय सुनंदा की शादी 2010 में शशि थरूर के साथ हुई थी. तब से दोनों किसी न किसी कारण चर्चा में रहते आए थे. पिछले साल आईपीएल की कोच्चि टस्कर्स टीम में सुनंदा की हिस्सेदारी विवादों में रही. कहा गया कि शशि थरूर ने 50 करोड़ रुपए में टीम की हिस्सेदारी सुनंदा को दिलाई थी. भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने शशि थरूर पर निशाना साधते हुए सुनंदा को उन की 50 करोड़ रुपए की प्रेमिका बताया था.
ट्वीटर पर दोनों ‘पतिपत्नी’ के बड़ी तादाद में प्रशंसक थे. दोनों की यह तीसरी शादी थी. थरूर की पहली शादी तिलोत्तमा मुखर्जी से हुई थी. बाद में उन्होंने कनाडा की क्रिस्टा जाइल्स से विवाह किया था.
सुनंदा कश्मीर के सोपोर जिले की रहने वाली थीं. आतंकवाद के चलते उन का परिवार जम्मू में आ गया. उन के पिता पुष्कर नाथ दत्त आर्मी में अफसर थे और उन के 2 भाइयों में एक सेना में तथा दूसरा बैंक में जौब करते हैं. सुनंदा ने श्रीनगर गवर्नमैंट कालेज से ग्रेजुएशन किया और उसी दौरान होटल मैनेजमैंट से स्नातक किए कश्मीरी पंडित संजय रैना से शादी कर ली पर वह शादी अधिक दिनों तक न चल पाई.
1989 में वे दुबई चली गईं. यहां सेल्स अधिकारी बनीं और सुजीत मेनन से दूसरी शादी कर ली. सुजीत से उन्हें बेटा शिव मेनन हुआ. दुबई में ही सुनंदा की मुलाकात शशि थरूर से हुई थी. कुछ समय बाद सुजीत मेनन की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई. सुनंदा की दुबई में शशि थरूर से हुई दोस्ती शादी में तबदील हो गई.
मेहर का अर्थशास्त्र
उधर, मेहर तरार पाकिस्तान के एक अच्छेखासे परिवार से ताल्लुक रखती हैं. उन्होंने वेस्ट वर्जीनिया यूनिवर्सिटी, मोरगनटाउन, अमेरिका से पत्रकारिता  में डिगरी ली और ‘डेली टाइम्स’ में सहायक संपादक बन गईं. आजकल  वे फ्रीलांस स्तंभकार हैं. मेहर की शादी लाहौर में हुई थी पर वह अधिक न चल पाई. उन का 13 साल का एक बेटा है.
दरअसल, समाज में इस तरह के रिश्ते कोई नई बात नहीं है. पतिपत्नी के रिश्ते में तीसरे की मौजूदगी की वजह से बरबादी के किस्से आम हैं. आएदिन ऐसे मामले सामने आते रहते हैं. जब से स्त्रीपुरुष बने हैं, ये रिश्ते चलते आ रहे हैं. इन रिश्तों को सरकारी, सामाजिक, धार्मिक पाबंदियां, वर्जनाएं और नियमकायदों के बावजूद रोका नहीं जा सकता.
तमाम तरह की मर्यादाओं को लांघ कर पनपे ऐसे रिश्तों को अवैध कहा जाने लगा, लेकिन ये रिश्ते हैं प्राकृतिक. स्त्री चाहे किसी और की हो, पुरुष चाहे किसी दूसरी का हो, पर आकर्षण को रोका नहीं जा सकता. यह दोनों की फितरत है. स्त्री किसी पुरुष को पाना चाहती है तो पुरुष किसी स्त्री को.
तीसरे की दखलंदाजी
स्त्रीपुरुष द्वारा ‘अपने’ के अलावा ‘तीसरे’ में प्रेम की तलाश करना आदिम प्रवृत्ति है. नयापन खोजना और भोगना मानवीय स्वभाव है, कमजोरी है. अवैध रिश्तों की पहुंच उम्र, जाति, धर्म, अमीरी, गरीबी और भूगोल जैसी तमाम सीमाओं से परे है.
विज्ञान इन रिश्तों के लिए व्यक्ति के भीतर कैमिकल को जिम्मेदार मानता है. यह किसी के अंदर कम तो किसी में अधिक मात्रा में पाया जाता है. मनोविज्ञान कहता है, स्त्रीपुरुष के बीच आकर्षण का तयशुदा कोई पैमाना नहीं है.
प्रेम में कोई संवेदनशील होता है, कोई बेहद लापरवा, कोई भावुक, कोई सिर्फ शरीर का भूखा या भूखी. प्रेम में जिम्मेदारी के भाव लुप्त होने लगे हैं. जहां दोनों के अपने बच्चे हैं वहां जिम्मेदारी देखी जा सकती है. पर बच्चे किसी तीसरे के हों तो वहां कम जिम्मेदारी होगी. समाज में खासतौर से किसी सैलिब्रिटी स्त्री या पुरुष के एक से ज्यादा संबंध चर्चित होते हैं और उन संबंधों में घातकता दिखाईर् देती है तो स्त्री को मर्दखोर और पुरुष को लेडीकिलर कहा जाने लगता है.
इन रिश्तों में धर्म का अपना अलग राग है, जिस का कोई वैज्ञानिक, तार्किक आधार नहीं है. पतिपत्नी के बीच मधुर संबंध कायम रहें, इस के लिए धर्म के दुकानदारों ने फायदे के मुताबिक फार्मूले तय कर रखे हैं. जन्मपत्री मिलाने से ले कर देवीदेवताओं की उपस्थिति का ग्रंथों से हवाला दे कर सात फेरे तक के प्रपंच रचे गए हैं. इस से पहले मंगल दोष, कालसर्प दोष, पितृदोष, नाड़ीदोष जैसे शादी के लिए अशुभ लक्षण बता कर पैसा वसूली के रास्ते निकाले गए हैं. मगर तमाम धार्मिक उपायों के बावजूद सफल शादी की कोई गारंटी नहीं.
वर्ष 2010 में केरल के उच्च ब्राह्मण शशि थरूर और कश्मीरी ब्राह्मण सुनंदा पुष्कर की शादी बाकायदा मलयालम धार्मिक रीतिरिवाजों से संपन्न हुई थी फिर ऐसी क्या कमी रह गई कि 3 साल भी दोनों के रिश्ते प्रेमपूर्वक न रह सके.
दिक्कत यह है कि प्रेम के मामले में अब गंभीरता कम रह गई है. जिम्मेदारी का एहसास घटता जा रहा है. प्रेम  अब इंस्टैंट प्रेम बनता जा रहा है. असली  प्रेम की राह कठिन है. पे्रम प्रकृति प्रदत्त है. भावनाओं की स्वाभाविक परिणति है. दिक्कत दो की खुशहाल जिंदगी में हमेशा तीसरे के आने से शुरू होती है. इसे न पुरुष बरदाश्त कर सकता है न स्त्री. खासतौर से स्त्री प्रेम में ही नहीं, सौतियाडाह में भी झुलसती है.
प्रेम की संकरी गली 
सौतन तो काठ की भी बुरी. प्रेम को बंटते देखना किसी को भी बरदाश्त नहीं. अपने प्रेम को कोई बांटना नहीं चाहता. अगर वह प्रेम छिटकता प्रतीत होता है तो मिटा देने या मिट जाने की भावना प्रबल हो उठती है.
प्रेम सर्वस्व समर्पण कर सकता है. प्रेम लुट जाना चाहता है पर बंटना नहीं. अपने प्रेम में किसी दूसरे को साझा करना बरदाश्त नहीं, प्रेम की गली को शायद इसीलिए अति संकरी बताया गया है. प्रेम समर्पण, त्याग का प्रतीक, पर्याय है, अपना सर्वस्व न्योछावर कर सकता है तो प्रतिशोध पर उतरा प्रेम सबकुछ नष्ट भी कर देता है. प्रेम जितना निर्मल, शांत होता है उतना ही क्रोधी और अशांत भी हो सकता है.
गार्हस्थ्य जीवन की सुखशांति पतिपत्नी के आपसी प्रेम में ही निहित है. पतिपत्नी के बीच तीसरे का प्रवेश रोकने और अपने प्रेम को बरकरार रखने के लिए आत्मनियंत्रण ही उपाय है. परकीया प्रेम में दिल चलायमान, चंचल होगा, इधरउधर भटकेगा तो रिश्तों में कलह, टूटन, घुटन और उजाड़ निश्चित है. पत्नी और प्रेमिका दोनों को एकसाथ साधना बड़ा मुश्किल काम है. यह दो नावों पर सवारी करने जैसा है, जिस में खतरे ही खतरे हैं.
हल नहीं है खुदकुशी
लेकिन खुद को या किसी दूसरे को मिटा देना, प्रेम की अदालत का न्याय नहीं है. आत्महत्या तो जिंदगी से भागना है. कई उदाहरण हैं जहां दो की जिंदगी में तीसरा आया तो एक हट गया और अपना अलग रास्ता बना लिया. सुनंदा का मामला अगर सच में आत्महत्या का है तो उन के पास मौत के अलावा और विकल्प थे जो उन्होंने पहले भी चुने थे. यानी एक और शादी.
क्या समाज में एक ऐसी मर्यादारेखा हो सकती है कि जिस तरह किसी दूसरे की चलअचल संपत्ति को पराया समझा जाता है, उसे पाने की कोई नहीं सोच सकता, उसी तरह चाहे स्त्री हो या पुरुष अगर वह किसी और का है तो उसे परायी संपत्ति समझा जाए और उसे कोई पाने की न सोचे? ऐसी मानसिकता उत्पन्न हो, इस के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए.

बातचीत पानी बहता रहे तभी फ्रैश रहता है- सुनील ग्रोवर

कोई किरदार सफलता के चरम पर पहुंचता है तो वह शख्सीयत का नाम बन जाता है. हास्य अभिनेता सुनील ग्रोवर के लिए ‘गुत्थी’ का किरदार कुछ ऐसी ही सौगात ले कर आया था. अब इस से परे रंगरूप में सुनील ‘चुटकी’ बन कर दर्शकों के दिलों पर राज करने आ रहे हैं. कैसे, पढि़ए उन्हीं की जबानी.
टैलीविजन शो ‘चला लल्लन  हीरो बनने’ से कैरियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता और स्टैंडअप कौमेडियन सुनील ग्रोवर हमेशा हंसने और हंसाने में विश्वास रखते हैं. हरियाणा के सिरसा जिले के डबवाली में जन्मे सुनील की प्रारंभिक पढ़ाई गांव में ही हुई जबकि कालेज की शिक्षा उन्होंने चंडीगढ़ में पूरी की. बचपन से ही नकल उतारने और कौमेडी करने में माहिर सुनील ने जसपाल भट्टी के साथ भी काम किया है. उन्होंने रेडियो, टीवी और फिल्मों में अलगअलग भूमिकाएं निभाई हैं. ‘कौमेडी नाइट्स विद कपिल’ में गुत्थी की भूमिका उन की सब से प्रशंसनीय भूमिका रही जिसे दर्शकों ने काफी सराहा. अब वे उस शो को छोड़ चुके हैं और अपने नए शो के साथ आगे आने वाले हैं. पेश हैं उन से हुई बातचीत के अंश :
हंसी का सफर कैसे शुरू हुआ?
स्कूल में या रिश्तेदारों के समूह में कभीकभी मिमिक्री करता था, लोग खूब हंसते थे. मैं केवल 10-12 साल का था पर सभी मुझ से हास्य अभिनय करने की सिफारिश करते थे. तब कुछ अधिक समझ में नहीं आता था पर धीरेधीरे जब बड़ा होता गया तो ड्रामा, कंपीटिशन समझ में आया. परिवार और दोस्तों का प्रोत्साहन मिला और मैं ने ‘ड्रामा में मास्टर्स’ की शिक्षा हासिल कर ली. इस के बाद से शो मिलने शुरू हो गए. थिएटर में भी काम किया और आज इस मुकाम पर पहुंचा हूं.
गुत्थी का किरदार कैसे मिला?
पहले भी कई बार मैं महिला किरदार निभा चुका था. जब शो शुरू हुआ तो कपिल ने कुछ नया करने की योजना बनाई. बैठ कर चर्चा की गई तो गुत्थी का चरित्र सामने आया. पहले शो में मेरा चरित्र नहीं था लेकिन जब इस का परिचय करवाया गया तो दर्शकों ने काफी पसंद किया. टीआरपी बढ़ गई. फिर इसे और अधिक आगे लाया गया. इस तरह यह चरित्र स्थापित हुआ और मैं खुश हूं कि मैं दर्शकों की उम्मीदों पर खरा उतरा.
बाद में आप ने शो क्यों छोड़ दिया?
वजह कुछ खास नहीं थी, मुझे कुछ नया करना था इसलिए छोड़ा. कपिल और मैं अभी भी अच्छे दोस्त हैं.
कौमेडी के बदलते माने पर आप के क्या विचार हैं?
हर चीज बदलती है. आप को हर दिन अलगअलग लोग मिलते हैं. उन का खानापीना, भाषा, रहनसहन सबकुछ बदलता रहता है. बदलाव ही प्रकृति है. पानी अगर बहता रहे तभी ताजा रहता है. बदलाव अच्छे के लिए ही होता है. पर कौमेडी हमेशा ऐसी करनी चाहिए जिसे देख कर या सुन कर लोगों को हंसी आए.
आज के स्ट्रैस भरे माहौल में हंसना और हंसाना कितना जरूरी है?
तनाव कम करने के लिए हंसना जरूरी है. जो लोग तन्हा होते हैं, ज्यादातर वही स्ट्रैस के शिकार होते हैं. किसी को हंसाने के बाद जो रिलैक्स उस के चेहरे पर दिखता है उसी से मुझे बहुत संतुष्टि मिलती है.
कोई कैसे अपने आसपास हंसने का जरिया ढूंढे़?
सब से पहले अपना नजरिया बदलें. अपने अंदर झांकें तब आप को हर बात में हंसी नजर आएगी. नजरिया बदलने से आप के आसपास ऐसी कई ह्यूमरयुक्त परिस्थितियां मिल जाएंगी जिन से आप को हंसी आएगी. कहीं कुछ भी हंसने योग्य मिल रहा हो तो तुरंत हंस लें. कोई व्यक्ति गुस्से से कोई बात कहे तो उसे जवाब हंस कर दें, परिस्थितियां बदलेंगी और आप खुश रहेंगे.
व्यंग्य करते समय किसी के व्यक्तिगत मानसम्मान को हानि न पहुंचे, इस का ध्यान रखा जाता है?
ध्यान अवश्य रखना चाहिए. आप अपने ऊपर हंस लें पर किसी के व्यक्तिगत मानसम्मान का खयाल कौमेडी करते वक्त अवश्य रखें. सामने वाले का कंफर्ट लैवल देख कर ही कौमेडी की जानी चाहिए. कौमेडी से व्यक्ति हंसे, न कि दुखी हो.
एक कौमेडियन में क्या होना चाहिए?
हर व्यक्ति का अलग मैकेनिज्म होता है हंसाने का, जो अलगअलग तरीके से काम करता है. कोई सीमारेखा या कुछ अलग व्यक्तित्व की आवश्यकता नहीं होती. हर व्यक्ति अपने तरीके से हंसाता है. लेकिन इन सब के लिए एक ‘औडियंस’ अवश्य चाहिए.
इन दिनों सोशल साइट्स पर राजनीतिज्ञों के फोटो, जोक्स के साथ खूब परोसे जा रहे हैं, इस बारे में आप की क्या राय है?
हर व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति के लिए स्वतंत्र है. लेकिन व्यक्तिगत रूप से किसी को चोट न पहुंचे, इस का खयाल अवश्य रखना चाहिए. कौमेडी ‘सटायर’ है. इस में एक मैसेज छिपा होता है. व्यंग्यकार, ठीक व्यंग्य कर लोगों को आईना दिखाता है और उसी से लोगों को हंसाता भी है.
क्या लड़की बन कर कौमेडी करना आसान होता है?
जब पुरुष लड़की का रूप धारण करता है तो अपनेआप में ही वह हास्य बन जाता है. कौमेडी कभी भी आसान नहीं होती.
आप खुद कभी मजाक के पात्र बने?
जब मैं गुत्थी की भूमिका निभा रहा था तो जैंट्स टौयलेट में जा रहा था, वहां किसी ने लेडीज टौयलेट में जाने को कहा, जो बहुत ‘फनी’ था.
किस कौमेडियन से प्रभावित हैं?
राजेंद्रनाथ, केश्टो मुखर्जी, जसपाल भट्टी, बीरबल आदि से प्रभावित हूं. इन्हें देखने पर सहज ही हंसी आ जाती है.
आप की पत्नी और घर वाले आप को कितनी सहजता से लेते हैं?
घर वालों से मुलाकात कम होती है. पत्नी के साथ मैं, सुनील ग्रोवर ही रहता हूं. मेरा 3 साल का 1 बेटा भी है.
पत्नी अगर गुस्सा हो जाए तो क्या करते हैं?
पत्नी सीरियस हो तो ही ठीक लगती है. सीरियस ही रहने देता हूं. जब गुस्सा उतरेगा तो अपनेआप ही परिस्थिति सामान्य हो जाएगी.
क्या कौमेडी कभी आप पर भारी पड़ी?
एक बार मैं अपने घर के बाहर खिड़की से शराबी की नकल कर रहा था. घर वालों को लगा कि कोई शराबी है, उसे मार कर भगाओ. और वे लोग डंडे हाथ में लिए मुझे मारने आए, ज्योंही उन्होंने डंडा उठाया, मैं तुरंत मुड़ा. वे हंसने लगे. अगर 1 सैकंड भी देर होती तो शायद डंडा मेरे सिर पर पड़ जाता.
आगे और क्याक्या कर रहे हैं?
एक टीवी चैनल पर ‘मैड इन इंडिया’ में ‘चुटकी’ की भूमिका में हूं. यह बहुत चुनौतीपूर्ण और देसी शो है. उम्मीद है दर्शकों को पसंद आएगा. इस के अलावा कुछ फिल्मों में भी काम करने की बात चल रही है. धीरेधीरे मैं आगे बढ़ना चाहता हूं और ढेर सारा काम करने की सोचता हूं.
रोमांस की दुनिया में कौमेडी कितना काम करती है?
रोमांस में जहां तकरार हो वहां कौमेडी ही काम करती है. क्योंकि हंसते और हंसाते रहने से व्यक्ति हर समस्या से पार निकल जाता है.

पैंशन के नाम पर अपमान जैसी स्थिति ठीक नहीं

चुनाव आते ही सरकारें आम आदमी के हित में लुभावनी नीतियों को लागू करने का खूब प्रयास करती हैं. ऐसे वक्त में खाद्य सुरक्षा. महिला सुरक्षा तथा सामाजिक सुरक्षा जैसे नारों के साथ लोकलुभावन योजनाओं पर जोर दिया जाता है. यह अलग बात है कि हजारों लोग खाद्य सुरक्षा योजना के बावजूद खाली पेट रात काट रहे हैं और स्वास्थ्य सुरक्षा योजना होने पर भी चिकित्सा के अभाव में दम तोड़ रहे हैं. इसी तरह से कभी रोटी, कपड़ा और मकान सब का अधिकार जैसे लुभावने नारे भी चले थे. इन सब के बावजूद हालात नहीं बदले.

दूरदराज की बात छोडि़ए, दिल्ली में ही असंख्य लोग कड़ाके की ठंड में पटरियों पर सो रहे हैं और हजारों जिंदगियां रैनबसेरों में रोटी के लिए तरस रही हैं.

निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को पैंशन योजना 1995 के तहत पैंशन दी जाती है लेकिन जिस रूप में इस पैंशन का भुगतान किया जा रहा है वह एक तरह से आम आदमी का अपमान है. कई लोगों को 300-400 रुपए मासिक पैंशन इस योजना के तहत मिल रही है जबकि दूसरी पैंशन योजनाओं का लाभ इस से अधिक है.

इधर, सरकार ने लोकसभा चुनाव को देखते हुए न्यूनतम पैंशन की रकम को 1 हजार रुपए करने की योजना पर काम शुरू किया है. सरकार का दावा है कि इस से करोड़ों लोगों को फायदा होगा लेकिन असली सवाल है कि इस राशि में पैंशनधारक को कितना लाभ पहुंचाने की क्षमता है. यह आम आदमी का उसी तरह से मजाक है जैसे योजना आयोग ने कुछ समय पहले न्यूनतम आय गांव में 28 रुपए और शहरों में 32 रुपए प्रति दिन तय की थी.

सत्ताधारी पार्टी को कई दिग्गजों ने सरकार की चापलूसी में इस पर कसीदे भी पढ़े थे. कमाल यह है कि इसे सरकार की उपलब्धि बता कर कसीदे पढ़ने वाले लोग अरबों का भ्रष्टाचार करने के आरोप में जेल में हैं. जरूरत इस बात की है कि न्यूनतम पैंशन की राशि को एक सम्मानित  स्तर दिया जाना चाहिए. इच्छाशक्ति हो तो सरकार इस के लिए रास्ते निकाल सकती है.

लग्जरी उत्पादों में विश्वसनीयता का संकट

देश में इस समय नकली लग्जरी उत्पादों की बाढ़ आई हुई है. यह खुलासा उद्योग मंडल एसोचैम के हाल में हुए एक सर्वेक्षण में हुआ है. लोकप्रिय वस्तुओं के डुप्लीकेट बाजार में आसानी से मिल रहे हैं. सामान्य उपयोग की ब्रांडेड वस्तु का नकली सामान भी बाजार में उपलब्ध है. सामान्य बाजार से खरीद पर पता ही नहीं लगता कि उपभोक्ता असली माल ले कर जा रहा है या ठगा गया है. इस्तेमाल करने पर पता चलता है लेकिन अब तक बहुत देर हो गई होती है. रसीद ले कर सामान खरीदना हमारे अभ्यास में नहीं है.

बाजार के जानकार कहते हैं कि विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए यह स्वस्थ स्थिति नहीं है. बाजार में हमारे लिए विश्वसनीयता का संकट बढ़ता जा रहा है. यहां तक कि जीवनरक्षक दवाएं भी नकली मिल रही हैं. इन नकली दवाओं की सरकारी खरीद भी हो रही है, इसलिए सरकारी अस्पताल के डाक्टर मरीज को जल्द ठीक होने के लिए अस्पताल से नहीं, बाजार से दवा खरीदने की सलाह देते हैं.

उधर, नकली सामान की बिक्री पर लगाम लगाने की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है. बौलीवुड की फिल्में रिलीज हों, उस से पहले ही उन की नकली सीडी बाजार में आ जाती हैं. ये सब पुलिस और प्रशासन की नाक के नीचे होता है लेकिन कहीं कोई हलचल नहीं होती.

एसोचैम का कहना है कि नकली सामान का बाजार करीब 2,500 करोड़ रुपए का है.

सर्वेक्षण में कहा गया है कि नकली लग्जरी बाजार की जो रफ्तार है उस के मद्देनजर अगले 1-2 साल में यह बाजार दोगुना हो जाएगा. बाजार की इस स्थिति से बड़ी कंपनियां परेशान हैं. समय रहते इस से निबटने के कदम न उठाए गए तो खमियाजा सिर्फ बड़ी कंपनियों को ही नहीं, आम आदमी को भी झेलना पड़ेगा.

 

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