मेरा मित्र किसी भी हसीन लड़की को देखते ही अपना होश खो बैठता था. एक बार मैं उस के साथ बाजार जा रहा था. चौराहे पर एक खूबसूरत लड़की नजर आई. आदत से मजबूर मेरा मित्र उस लड़की के पीछे चल दिया.
मैं अकेला ही बाजार चला गया. थोड़ी देर बाद अस्पताल से फोन आया कि मेरा मित्र दुर्घटनाग्रस्त हो गया है. मैं अस्पताल पहुंचा. वहां पर मित्र की मरहमपट्टी हो रही थी. मरहम लगाने वाली नर्स कोई और नहीं बल्कि वही लड़की थी जिस के पीछे वह लग गया था.
दरअसल उस हसीना का पीछा करते हुए मेरा मित्र गटर में जा गिरा था. उस की चीख सुन कर उस लड़की ने ही लोगों को बुला कर उसे अस्पताल पहुंचाया था, जो वहां पर नर्स का काम करती थी.
महबूब बाशा, करनूल (आंध्र प्रदेश)
मैं इंटर की छात्रा थी. मेरा कालेज तो को-एड था, पर लड़के व लड़कियों का अनुपात 8:2 था. एक दिन कक्षा में हमारी नई शिक्षिका आईं और अपना परिचय देते हुए बोलीं, ‘‘मेरा नाम नीलिमा पांडेय है. मैं आप लोगों को दर्शनशास्त्र पढ़ाऊंगी. अब आप लोग भी अपनाअपना परिचय दीजिए.’’
एक भी लड़की ने उठ कर कुछ भी नहीं कहा. शिक्षिका को कुछ अजीब लगा. तभी पीछे से एक शरारती लड़का उठा और कहने लगा, ‘‘मैडम, ये लड़कियां आप को अपना परिचय इसलिए नहीं दे रही हैं कि कहीं लड़कों को इन के नामपता न मालूम हो जाएं. चलिए, मैं ही इन का परिचय करवा देता हूं.’’ उस ने सब का नाम और पता बता दिया. बस, फिर क्या था, पूरी कक्षा ठहाकों से गूंज उठी और हम लोगों की झिझक भी दूर
हो गई. निभा सिन्हा, गया (बिहार)
उन दिनों मेरे पति मध्य प्रदेश शासकीय सेवा में कार्यरत थे. हमारा ट्रांसफर आदिवासी बहुल क्षेत्र झाबुआ हो गया. हमारे यहां एक चपरासी आता था. उस का नाम डूंगरा सिंह था. पहले दिन आया तो वह मुझ से बोला, ‘‘मैडमजी, मैं रोज हाड़े हाथ बजे आया करूंगा.’’ मैं ने सोचा शायद मुंह में कुछ है, इसलिए साढ़े 7 को ऐसे बोल रहा है.
एक बार वह 3-4 दिन तक नहीं आया, जब आया तो मैं ने उस से न आने का कारण पूछा तो वह बोला, ‘‘मैडमजी, म्हारी हग्गी बहन की हगाई थी, कैसे आता.’’ उस की बात सुन कर मेरी बेटी जोरजोर से हंसने लगी. इतने में हमारी पड़ोसिन आ गईं, उन को हम ने पूरी बात बताई तो वे बोलीं, ‘‘ये लोग ‘स’ को ‘ह’ बोलते हैं. इस का तात्पर्य सगी बहन की सगाई से है.’’
अब तो हम लोग खूब हंसे. शब्द के जरा से बदलने से उस का अर्थ ही बदल जाता है.
सरिता सेठ, कानपुर (उ.प्र.) 

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