Download App

यूथ ब्रिगेड पर भरोसा

एक ओर जहां 17 महीने बाद भारतीय क्रिकेट टीम के चयनकर्ताओं ने टैस्ट टीम में गौतम गंभीर पर भरोसा जताया है तो वहीं दूसरी ओर बंगलादेश की वनडे सीरीज के लिए सुरैश रैना को कप्तानी का जिम्मा सौंपा है.

चयनकर्ताओं ने 22 जून से इंगलैंड के विरुद्ध शुरू होने वाले 5 टैस्ट मैचों की शृंखला के लिए 16 सदस्यीय टीम की जगह इस बार 18 खिलाडि़यों को चुना है. महेंद्र सिंह धौनी की कप्तानी की अगुआई में मुरली विजय, गौतम गंभीर, शिखर धवन, विराट कोहली, रोहित शर्मा, अजिंक्य रहाणे, चेतेश्वर पुजारा, आर अश्विन, रवींद्र जडेजा, मोहम्मद शमी, भुवनेश्वर कुमार, पंकज सिंह, स्टुअर्ट बिन्नी, वरुण ऐरोन, ईश्वर पांडेय, ईशांत शर्मा सहित रिद्धिमान साहा शामिल हैं.

12 साल के बाद ऐसा हो रहा है जब भारतीय टीम 5 टैस्ट मैचों की टैस्ट सीरीज खेलेगी. इस से पहले वर्ष 2002 में वेस्ट इंडीज के साथ ऐसी सीरीज हुई थी.  इंगलैंड की परिस्थितियों को देखते हुए 6 पेस बौलरों को जगह दी गई है. हालांकि पेस बौलरों में जहीर खान को जगह नहीं मिली है. उन की जगह पर 29 वर्षीय राजस्थान के फास्ट बौलर पंकज सिंह को लिया गया है. पंकज को घरेलू क्रिकेट में लगातार अच्छा प्रदर्शन करने का फल मिला है. उन्होंने कई रणजी मैचों में 30 से ज्यादा विकेट झटके हैं. जहां तक औलराउंडर की बात है, इस की जगह, रवींद्र जडेजा और स्टुअर्ड बिन्नी को पूरी करनी होगी. धौनी के सामने सब से बड़ी चुनौती होगी टीम में लय स्थापित करना क्योंकि पिछले 3 वर्षों में विदेशी जमीन पर टैस्ट मैचों में भारत को हार का ही मुंह देखना पड़ा है.

अगर बंगलादेश के खिलाफ जून महीने में ही 3 एकदिवसीय मैचों की बात करें तो टीम में यहां भी युवा खिलाडि़यों को मौका दिया है और सीनियर खिलाडि़यों को आराम दिया गया है. अक्षर पटेल और केदार जाधव को घरेलू क्रिकेट में अच्छे प्रदर्शन का इनाम मिला है. ये दोनों टीम में नए चेहरे हैं. 6 वर्ष बाद रोबिन उथप्पा की भी वापसी हुई है. चयनकर्ताओं ने इस बात पर विशेष ध्यान दिया है कि युवा खिलाडि़यों को मौका मिले. ऐसा तो होना ही चाहिए क्योंकि जब तक आप युवा खिलाडि़यों को मौका नहीं देंगे तब तक वे अपनी प्रतिभा कैसे दिखा पाएंगे. ऐसा करने से ही तो आज हमारे पास विराट कोहली व युवराज सिंह जैसे खिलाड़ी टीम में हैं.

फीफा वर्ल्ड कप की खुमारी

विश्व के सब से लोकप्रिय खेल फुटबाल की खुमारी लोगों के सिर चढ़ कर बोल रही है. 12 जून से 13 जुलाई तक चलने वाला फीफा वर्ल्ड कप इस बार ब्राजील के 12 शहरों में हो रहा है. दुनिया की सर्वश्रेष्ठ 32 टीमें इस विश्वकप की गवाह बनने जा रही हैं.

ब्राजील को इस बार विश्वकप के खिताब का प्रबल दावेदार माना जा रहा है क्योंकि इतिहास भी कुछ ऐसा रहा है कि मेजबान टीम अधिकतर इस खिताब पर कब्जा जमा लेती है. वर्ष 1930 में उरुग्वे, 1934 में इटली, 1966 में इंगलैंड, 1974 में वैस्ट जरमनी, 1978 में अर्जेंटीना और 1998 में फ्रांस की टीमें जीत हासिल कर चुकी हैं. इस के अलावा ब्राजील के पास नेमियार जैसा मशहूर स्ट्राइकर जब टीम में हो तो उम्मीदें और बढ़ जाती हैं. हालांकि स्पेन को कमतर नहीं आंका जा सकता. स्पेन फीफा की रैंकिंग में नंबर 1 पर में लंबे समय से बना हुआ है. वर्ष 2010 में विश्व विजेता बनने के बाद स्पेनिश टीम लगातार बढि़या प्रदर्शन कर रही है.

इस पूरे टूर्नामैंट में दुनिया की नजर मशहूर खिलाडि़यों लायोनेल मैसी और क्रिस्टियानो रोनाल्डो की अर्जेंटीना और पुर्तगाल की टीमों पर रहेगी क्योंकि ये दोनों खिलाड़ी ऐसे हैं जो मिनटों में खेल की बाजी पलट सकते हैं.

जरमनी भी प्रबल दावेदार है. डिफैंस के लिए जरमनी के पास अनुभवी और एक से बढ़ कर एक बेहतरीन खिलाडि़यों की लंबी लिस्ट है. कई और देशों की टीमें भी मजबूत हैं. पर मेजबान ब्राजील की टीम फिलहाल सब से मजबूत दिखाई दे रही है क्योंकि ब्राजील की टीम इस से पहले 5 बार विश्व विजेता रह चुकी है.

फुटबाल के लिए यह सब से बड़ा आयोजन माना जाता है और इस खेल में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है. इस बार भी अनुमान है कि तकरीबन 8.4 अरब पाउंड इस भव्य आयोजन में खर्च किए जाएंगे. इस बाबत प्रदर्शनकारी ब्राजील में कई बार अपना विरोध जता चुके हैं. उन का मानना है कि इतना पैसा खर्च करना फुजूलखर्ची है.

बहरहाल, लोकप्रियता के लिहाज से देखा जाए तो ‘फीफा वर्ल्ड कप’ सब से बड़ा खेल आयोजन है और खेल शुरू होने से पहले ही दुनियाभर में खिलाडि़यों सहित प्रशंसकों के मन में फुटबाल की खुमारी सिर चढ़ कर बोलने लगती है.

आम भरवां टिक्की

सामग्री : 2 आलू उबले हुए, 1 कच्चा आम, नमक स्वादानुसार, 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर, 1 चुटकी पीला रंग, 2 छोटे चम्मच तिल, लाल मिर्च पाउडर स्वादानुसार, 50 ग्राम सेवईं, 4-5 बड़े चम्मच मैदा, 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला, हरी मिर्च स्वादानुसार, तलने के लिए तेल.

विधि : मैदे का घोल बना कर उस में पीला रंग व हलका सा नमक डाल कर घोल बना लें. आलू को मसल कर उस में नमक, मिर्च, जीरा पाउडर, धनिया पाउडर, तिल, गरममसाला मिला कर पिट्ठी तैयार करें. एक प्लेट में सेवइयां फैला लें. आम को कद्दूकस कर के उस में नमक, हरी मिर्च मिला लें. आलू की पिट्ठी को हथेली पर फैला कर उस में आम के मिश्रण को भर दें. टिक्की का आकार दे कर मैदे के घोल में डिप कर के सेवईं में लपेट दें. कड़ाही में तेल गरम कर के सुनहरा होने तक तल लें. मीठी चटनी के साथ गरमागरम सर्व करें.

खट्टामीठा रायता

सामग्री : 200 ग्राम पका हुआ आम, 1 छोटा चम्मच जीरा पाउडर, 3 छोटे चम्मच काजूपिस्ताबादाम, 2 चुटकी इलायची पाउडर, कुछ बूंदें केवड़ा एसेंस, 2 बड़े चम्मच अनारदाना, 4 बड़े चम्मच बारीक कटा सेब,4 छोटे चम्मच चीनी.

विधि : दही को कपड़े में डाल कर थोड़ी देर के लिए लटका दें ताकि दही गाढ़ा हो जाए. दही को अच्छी तरह फेंट लें. आम को बारीक टुकड़ों में काट लें. अब सभी सामग्री को दही में मिला कर अच्छी तरह फेंटें और ठंडा होने के लिए फ्रिज में रखें. काजू, बादाम, आम से सजा कर ठंडाठंडा पेश करें.

 

आम राइस

सामग्री : 100 ग्राम कद्दूकस किया कच्चा आम, 4 हरी मिर्चें, 1 छोटा चम्मच हरा धनिया, 2 छोटे चम्मच कद्दूकस किया नारियल, 3 चम्मच तेल, 1/2 छोटा चम्मच सरसों दाना, 8-10 करीपत्ते, स्वादानुसार लाल मिर्च, 1 चुटकी हींग,1/2 छोटा चम्मच जीरा, 2-3 छोटे चम्मच चना दाल, 1/4 कप काजूकिशमिश,1/2 छोटा चम्मच हलदी, नमक स्वादानुसार, 1 गिलास उबले चावल,4 साबुत लाल मिर्चें.

विधि : उबले चावल ठंडे होने दें. एक पैन में गरम तेल कर के उस में सरसों व जीरा डाल कर भूनें. हलदी डाल कर चने की दाल, नारियल डाल कर 2 मिनट भूनें. साबुत मिर्चें डालें. काजू, किशमिश, हरी मिर्च, हींग, करीपत्ते व आम डाल कर मुलायम होने तक चलाएं. अब नमक डाल कर उबले ठंडे चावल डालें और 2 मिनट तक उलटेंपलटें. ऊपर से हरे धनिए से सजा कर सर्व करें.

आम सब्ज बहार

सामग्री : 250 ग्राम कच्चा आम, 1/2 कप हरी मटर, 1/2 कप हरी प्याज, 1/2 छोटा चम्मच सौंफ, 1/2 छोटा चम्मच कलौंजी, 1/2 छोटा चम्मच जीरा, 1/4 छोटा चम्मच अजवायन, 1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर, 2-3 साबुत लाल मिर्चं, 3/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर,1/2 छोटा चम्मच मेथी पाउडर, लाल मिर्च व नमक स्वादानुसार,  25 ग्राम कमलककड़ी, 2-3 छोटे चम्मच तेल, 1/2 छोटा चम्मच गरम मसाला.

विधि : कड़ाही में तेल गरम कर के उस में जीरा, कलौंजी, सौंफ, अजवायन डालें. चटकने लगे तो हलदी पाउडर, साबुत मिर्च, मेथी पाउडर, धनिया पाउडर डालें. अब मटर, कच्चा आम डाल कर 2 मिनट तक भूनें. कमलककड़ी भी डाल दें व मुलायम होने तक भूनें. जरूरत पड़े तो 2-3 चम्मच पानी डालें. नमकमिर्च डाल कर पकने दें. पकने के बाद गैस बंद कर के ऊपर से कटी हुई हरी प्याज व हरा धनिया से सजा कर पेश करें.

आम की बहार

आम के रोल्स

सामग्री : 250 ग्राम कद्दूकस किया कच्चा आम, 1 छोटा चम्मच भुना हुआ जीरा, 2 हरे प्याज, 1 छोटा चम्मच कटा पुदीना, हरा धनिया, 2 उबले आलू, 3 बड़े चम्मच मैदा, 1 कप ब्रैड क्रंब्स, तेल तलने के लिए, 2-3 हरी मिर्चें, लाल मिर्च व नमक स्वादानुसार.

विधि : कच्चे आम को कद्दूकस

कर के गरम पानी में 2 मिनट रख कर छान लें. अच्छी तरह पानी निकल जाना चाहिए. इस में नमक, मिर्च, आलू, हरा प्याज, हरा धनिया, पुदीना सभी को अच्छी तरह मिला लें. मैदे का घोल बना लें. ब्रैड क्रंब्स प्लेट में फैला लें. मिश्रण के गोलगोल रोल बना कर मैदे के घोल में लपेट कर क्रंब्स में लपेट दें. तेल गरम करें और बौल्स को सुनहरा होने तक तलें. मीठी चटनी के साथ गरमागरम सर्व करें.

होंठों की पंखुडि़यां

आए तुम याद

गीत बन गया

होंठों की पंखुडि़यां

छूती सी गाल

कितनी तह खोल गया

रेशमी रूमाल

अनजाना नाम

मीत बन गया

पोरपोर महके हैं

रिश्तों के फूल

भूल कर नहीं भूली

खटमिट्ठी भूल

पलभर का साथ

प्रीत बन गया

यादों की तितलियां

उड़तीं हर शाम

नींद कहां, करवटें

अब अपने नाम

जगना हर रात

रीत बन गया.

जल जाएगी ये लौ

मंदिर मसजिद निराधार

दिल का सुकूं, तुम्हारा प्यार

कह दो दुनिया से

मेरी आस हो तुम

मेरा चैन हो

विश्वास हो तुम

अब कोई पूजा

काम न आएगी

तुम्हारे स्पर्श से

ये लौ जल जाएगी

सब मिथ्या है

सब भ्रम है

जिस में तुम नहीं

वह क्या जीवन है?

मेरी जान हो तुम

अरमान हो तुम

मैं तो केवल नाम हूं

मेरी पहचान हो तुम.

अंत (आखिरी किस्त)

कभीकभी इंसान को जब कोई विकल्प सामने नजर नहीं आता तो उस का सब्र सारी सीमाएं तोड़ कर ज्वालामुखी के लावे सा रिसने लगता है. ऐसा ही एक दिन श्रीकांत के साथ भी हुआ था. सजीसंवरी, खुशबू से सराबोर हेमा घर से निकल कर कार की तरफ मुड़ रही थी कि श्री उस का मार्ग रोक कर खड़े हो गए थे.

‘कैसी मां हो तुम? किस कुसूर की सजा दे रही हो तुम अपनी बच्ची को? आखिर कब तक घरगृहस्थी और अपनी बेटी के प्रति दायित्वों से मुंह मोड़ कर दूर भागती फिरोगी?’

‘सजा कुसूरवार को दी जाती है श्रीकांत. तुम ने तो कुसूर किया ही नहीं है. मैं तुम्हें सजा कैसे दे सकती हूं? मैं ने तो सुहागरात को ही तुम से स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि महेश को भुलाने में मुझे समय लगेगा. तुम कहो तो मैं यहां रहूं, नहीं तो, जा भी सकती हूं. मेरी तरफ से तुम भी पूर्णरूप से स्वतंत्र हो.’

संवेदनशील श्रीकांत, पत्नी का चेहरा निहारते रह गए थे. ‘क्या अनैतिक संबंधों का पलड़ा, नैतिक संबंधों की मर्यादा से भी भारी हो सकता है?’ यही सोचसोच कर वे घुटते रहे थे.

बेटे का दुख अरुंधतीजी के शरीर को घुन की तरह खाता जा रहा था. हर समय खुद को श्रीकांत का दोषी समझतीं. कमलापतिजी ने तो अपने गर्व और अभिमान के वशीभूत हो कर सुलभा का रिश्ता ठुकरा दिया था किंतु वे तो मां थीं. विरोध कर सकती थीं पति की सोच का. ऐसे मानसम्मान और दहेज का क्या करें, जिस ने उन के बेटे का जीवन ही बरबाद कर दिया. कई बार मन में आता, दुर्गाप्रसादजी से बात करें, शायद वे ही बेटी को समझा सकें किंतु फिर मन में डर उपजता कि स्थिति कहीं और विस्फोटक न हो जाए. बेटे का जीवन उन्हें मझधार में फंसी हुई उस नाव के समान लगता था जिस का कोई किनारा ही न हो. भारीभरकम शरीर जर्जरावस्था में पहुंच गया था. जबान तालू से चिपकती गई. और एक दिन देखते ही देखते उन के प्राण पखेरू उड़ गए.

श्रीकांत अकेले रह गए थे इस संसार में. वह कंधा, जिस पर सिर रख कर वे अपना मन हलका कर लेते थे, वह भी छिन गया था. 13 दिन रह कर श्री वापस लौट आए थे. मां की तरह देवयानी ताई भी उन्हें भरपूर स्नेह देती थीं. उन के साथ बैठ कर दुखसुख बांट लेते थे.

हेमा ने तो 13 दिन श्वेत वस्त्र धारण कर के, आंसू के 2-4 कतरे बहाए और फिर लौट गई अपनी दिनचर्या में. बाहरी चकाचौंध के सामने उस की नजरों में पति का दुख काफी छोटा था.

एक दिन, एकाकी श्रीकांत छत पर अकेले बैठे चांदनी निहार रहे थे. मां को याद कर के कभी हंसते, कभी रो पड़ते. देवयानी ताई उन्हें ढूंढ़ते हुए छत पर पहुंच गई थीं. श्रीकांत के मौन को तोड़ने के उद्देश्य से उन्होंने पूछा, ‘हेमा कहां गई?’

‘मुझे नहीं मालूम.’

‘बता कर या पूछ कर भी नहीं जाती?’ उन्होंने साधिकार प्रश्न किया था.

‘नहीं,’ उन्होंने ताई का प्रश्न सुन कर छोटा सा उत्तर दिया था.

‘तू क्यों नहीं साथ जाता?’

‘मैं?’ श्रीकांत, फीकी हंसी हंस दिए थे, ‘मैं कैसे चला जाऊं? वह हर जगह अकेले ही जाना पसंद करती है.’

‘अकेले?’ देवयानी ताई ने चौंक कर कहा था, ‘गुड़गांव साइबर सिटी में मेरी बेटी शालिनी का औफिस है. दामाद भी वहीं बैठते हैं. दोनों ने हर दिन कार में एक पुरुष के साथ उसे आतेजाते देखा है.’

जेहन में चुभता सोच का टुकड़ा अंतर्मन के सागर में फेंक कर श्रीकांत निष्प्रयत्न बोले, ‘ताई, मुझे सब मालूम है. बड़ों की सामाजिक मर्यादा और अपनी इकलौती बेटी की खातिर ही सब बरदाश्त कर रहा हूं. लोगों को जरा सी भी भनक पड़ गई कि लड़की की मां बदचलन है तो उस की जिंदगी बरबाद हो सकती है.’

‘कौन है यह पुरुष?’

‘महेश, हेमा का पुराना प्रेमी.’

फिर तो प्याज के छिलकों की तरह श्रीकांत के अवसाद की एकएक तह खुलती गई. उन का दुख उस सड़क की भांति था जो कहीं नहीं पहुंचती. बस, भूलभुलैया की तरह उलझाए रखती है.

‘सब के सामने उसे अपना बड़ा भाई बताती है लेकिन परदे के पीछे कुछ और ही चलता है. बुटीक जाने का तो एक बहाना है. दरअसल, वह महेश की बिखरी गृहस्थी संभालने जाती है.’

‘लेकिन, महेश तो अमेरिका में था.’

देवयानी ताई श्रीकांत की जिंदगी से जुड़ी, किसी भी बात से अनभिज्ञ नहीं थीं. हेमा के रंगढंग भी तो ऐसे ही थे. इस परिवार की घनिष्ठ थीं वे, शुभचिंतक भी थीं.

‘महेश का अपनी पत्नी से तलाक हो गया है. दरअसल, उस की पत्नी को हेमा और महेश के प्रेमसंबंधों के बारे में पता चल गया था. महेश ने लाख झुठलाया, पत्नी को समझाया, लेकिन हेमा और महेश के बीच नियमित रूप से चल रहे फोन कौल और मैसेज इस बात का साक्ष्य थे कि दोनों के बीच अब भी कोई गहरा संबंध है.’

‘ये बातें तुम्हें किस ने बताईं?’

‘स्वयं हेमा ने. पत्नी से तलाक हो जाने के बाद महेश दिनरात शराब पीता है. लिवर में सूजन आ गई है. उसे ले कर हेमा अस्पतालों के चक्कर काटती रहती है. एक डाक्टर से दूसरे डाक्टर, एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल. यही दिनचर्या रह गई है उस की. कुछ कहता हूं तो कहती है, तुम्हारा कोई भाईबहन नहीं है, इसीलिए तुम मेरा दुख नहीं समझ पा रहे हो.’

‘श्रीकांत, वह तो ठीक है, मगर कुछ तो तुम्हें भी करना होगा. घुलने से अच्छा है उसे घुलाओ. महेश और हेमा के बीच दीवार खड़ी करो. अपने जायज हक के लिए लड़ो तो,’ ताई का सब्र जवाब देता जा रहा था.

‘मगर कैसे? हेमा से कहता हूं तो कहती है, तुम मुझे मरा हुआ क्यों नहीं समझते? दिल बेचैनियों से सराबोर हो जाता है. जायज हक पाने के लिए मुझे हेमा से दूर रहना पड़ेगा, जिस का असर मेरी बेटी पर पड़ेगा. बस, इसीलिए विवश हो कर सह रहा हूं. बेटी के ब्याह के बाद ही कुछ करूंगा. फिलहाल तो इस घुटनभरे माहौल में रह कर, खुद को मजबूत बनाना है.’

वक्त का पहिया अपनी गति से चलता रहा. कशिश, डाक्टर बन गई. अपने कालेज जीवन में ही उस ने जीवनसाथी भी चुन लिया. डा. विक्रम कौल. दद्दा ने सुना तो अपना नादिरशाही फरमान जारी कर दिया था :

‘हम ब्राह्मण हैं, विक्रम कश्मीरी. न विचार मिलेंगे, न रीतिरिवाज.’

‘यह आप ने कैसे कह दिया? एक बार मिल तो लीजिए विक्रम से. मुझे पूरा विश्वास है वह आदर्श दामाद और अच्छा पति साबित होगा,’ कशिश ने दद्दा के स्वर से 1 डिगरी ऊंचे स्वर में बात की तो दद्दा चुप हो गए थे.

श्रीकांत हैरान रह गए थे बेटी के दृढ़ स्वर को सुन कर. सोच रहे थे, कितना अंतर आ गया है समय में. वर्ग, धनसंपदा, जांतिपांति जैसी बातों की उखाड़पछाड़ न कर के युवकयुवतियों का स्वयं जीवनसाथी पसंद करना, मातापिता के हृदय में आए उदार परिवर्तन, ये सब 25 साल पहले क्यों नहीं थे?

शादी की तैयारियां शुरू हो गई थीं. शौपिंग, कैटरिंग, फार्महाउस की बुकिंग, जेवरातों की खरीदफरोख्त. इन सब में कैसे समय बीत जाता, पता ही नहीं चलता था. शगुनों के समय औरतें सुहाग गा रही थीं. बंदनवार सजे हुए थे. पकवानों की खुशबू से पूरा आंगन महक रहा था. 7 बजे वर पक्ष के लोग पहुंचने वाले थे.

‘हेमा कहां है?’ देवयानी ताई ने श्रीकांत से पूछा था.

‘यहीं कहीं होगी.’

‘दिखाई तो नहीं दे रही?’ देवयानी ने बारबार अपना प्रश्न दोहराया तो श्रीकांत के आक्रोश का लावा राख में दबी चिंगारी की तरह धधक उठा था, ‘आप तो जानती हैं उस का होना न होना बराबर है. आज भी सुबह से ही महेश के घर पर है.’

‘आज भी?’

‘हूं, महेश की हालत गंभीर है. कैंसर आखिरी स्टेज पर है.’

‘शाम तक तो आ जाएगी?’ कहीं श्रीकांत की तपस्या अकारथ तो नहीं चली जाएगी, यही सोच कर बारबार वे श्रीकांत से पूछ रही थीं. पर श्रीकांत ने कोई उत्तर नहीं दिया था.

ठीक 7 बजे कश्मीरी सुहाग चिह्न ‘अटेरू’ धारण किए हुए कुछ महिलाएं हौल में प्रविष्ट हुईं. साथ में पुरुष भी थे. सिल्क के कुरतेपजामे के ऊपर गरम शौल और सिर पर टोपी. ऐसा लगा जैसे पूरा कश्मीर ही सिमट आया था उस बडे़ से हौल में. आमनेसामने सोफे पर बैठे दोनों समधियों ने फूलों का गुलदस्ता आपस में बदल कर, कशिश और विक्रम के संबंध को मान्य ठहराते हुए और भी मजबूत बना दिया था. फूलों से सजे झूले पर कशिश और विक्रम ने हीरों से दमकती अंगूठी एकदूसरे की उंगली में पहनाई तो श्रीकांत ने आशीर्वचनों से बेटीदामाद की झोली भर दी थी.  तभी नाभिदर्शना साड़ी, कटे हुए बाल, गहरे कटावदार गले का ब्लाउज पहने इधरउधर डोलती हेमा, न जाने कहां से प्रकट हुई. श्रीकांत ने एक उड़ती हुई सी निगाह उस पर डाली, फिर मेहमानों की आवभगत में जुट गए. हेमा जैसे ही शगुन के किसी सामान को हाथ लगाती, श्रीकांत के दांत भिंच जाते. फिर अभ्यागतों का ध्यान कर के उस सामान को आगे सरका देते.

रात 11 बजे तक गानाबजाना चलता रहा. कशिश और विक्रम की खूबसूरत जोड़ी देख सभी खुश थे. इस समय हेमा के व्यवहार में एक आदर्श पत्नी और गौरवशाली मां का बोध था. श्रीकांत सब के सामने तो हेमा के साथ सहजता से पेश आ रहे थे पर भीड़ छंटते ही उस से दूर छिटक जाते थे. जैसे दोनों के बीच कोई रिश्ता ही न हो. देखने वाले, चाहे उन की तटस्थता का मूल कारण समझ नहीं रहे थे, क्योंकि जिंदगी के उन कड़वे वर्षों के विषय में उन्हें जानकारी ही कहां थी जो उन्होंने हेमा के साथ बिताए थे. स्वयं श्रीकांत ने ही तो अपने मरुस्थलनुमा जीवन पर परदा डाला हुआ था.

कशिश और विक्रम परिणयसूत्र में बंध गए. कशिश की विदाई के बाद श्रीकांत को अकेलापन बुरी तरह कचोटने लगा था, जैसे कुछ भी नहीं रह गया था करने के लिए. स्थानीय ससुराल होने के कारण बेटीदामाद अकसर आते रहते थे. समधी भी सज्जन थे. उन का ध्यान रखते थे. पर दूसरों के आसरे तो जीवन नहीं कटता.

श्रीकांत की दिनचर्या अब गरीबों, दीनदुखियों और बेसहारा लोगों की सेवासुश्रूषा में बीतने लगी. शुरू से ही उन्हें गरीबों की सेवा करने का मन था, अब और भी लगने लगा. एक दिन उन्होंने अपनी सारी जमापूंजी और फ्लैट बेच कर गे्रटर नोएडा में एक प्लौट खरीदा और एक आश्रम के निर्माणकार्य में जुट गए. हेमा भी अब उन का हाथ बंटाने के लिए हर समय तत्पर रहती थी. वह जितना उन से और बेटीदामाद से जुड़ने का प्रयत्न करती, सब उस से दूर छिटक जाते.

अपनी अवहेलना, हेमा बरदाश्त नहीं कर पा रही थी. शुरू से ही अभिमान की भावना उस में कूटकूट कर भरी थी. एक दिन साहस बटोर कर श्रीकांत से बोली, ‘श्रीकांत, मुझे माफ कर दो, थोड़ा सा सहारा दे दो. तुम्हारे आश्रम में मेरा भी योगदान रहेगा,’ हेमा लगभग गिड़गिड़ा रही थी.

‘हेमा, मैं खुद असहाय हूं. फिर किसी का सहारा कैसे बन सकता हूं? सारी उम्र इसी आस में जीता रहा कि कभी तो तुम्हें अपने दायित्वों का बोध होगा. फिर कशिश की खातिर जीता रहा. तुम्हें तो उस की भी परवा नहीं थी. लेकिन मैं उसे राह दिखाता रहा. मैं ने 25 वर्ष का कारावास झेला है. अब अपने दायित्वों से मुक्त हो पाया हूं. इसीलिए बिना किसी व्यवधान के खुली हवा में सांस लेना चाहता हूं,’ श्रीकांत ने दुखी स्वर में कहा.

‘श्रीकांत, मेरी आंखों के आगे गर्दोगुबार ही उड़ रहा है. इस बुढ़ापे के प्रभात में तुम्हें छोड़ कर मेरा कोई सहारा नहीं है,’ उस के स्वर में अनुनय का पुट था.

हेमा के विषय में श्रीकांत को जानकारी मिलती रहती थी. महेश की मृत्यु हो गई थी. उस का जो कुछ रुपयापैसा था, उस के भाईभतीजे ले गए. हेमा के पास अब कुछ नहीं था. वह पाईपाई के लिए मुहताज हो गई थी.

‘श्रीकांत, तुम मेरे अंधेरे जीवन की चांदनी हो. एक ऐसी चांदनी जो सींखचों में कैद रही. अब तुम मेरे जीवन को अपनी चांदनी में नहला कर मेरे गुनाह माफ कर दो,’ हेमा अब भी श्रीकांत के चरण पकड़े हुए थी.

‘हेमा, संध्या के धूमिल प्रहर में कोई सवेरे का वरदान मांगे तो यह उस की भूल है. मुझे बहकाना बंद करो. आज भी तुम्हें तुम्हारी जरूरत ने मजबूर किया है वरना क्या 25 वर्षों के साथ ने तुम्हें मुझ से न जोड़ा होता? तुम मुझे समझ नहीं सकीं पर मैं तुम्हें समझ चुका हूं. अपने प्यार, विश्वास और रिश्ते के कारण तुम्हें बदलने का प्रयास करता रहा. पर अब नहीं.’

तभी कशिश और विक्रम, कमरे में आए थे. शाम का समय, मरीजों के लिए तय था. एक प्यारभरी दृष्टि कशिश पर उकेर कर हेमा ने कहा, ‘मैं खुशनसीब हूं कि मुझे इतनी प्यारी बेटी मिली.’

सैलाब के क्षणों में जैसे समूची धरती उलटपलट जाती है वैसे ही कशिश के अंतस में भयावह हाहाकार जाग उठा था, बिना एक क्षण गंवाए ही वह तपाक से बोली, ‘मैं जो कुछ भी हूं अपने पापा की बदौलत हूं. उन का त्याग मैं कभी नहीं भूल सकती.’

‘और मैं? मैं तुम्हारी मां हूं, कशिश. मैं ने तुम्हें जन्म दिया है, बेटी.’

‘जन्म देने से ही मां का दायित्व संपूर्ण नहीं हो जाता,’ कशिश के चेहरे पर घृणा के भाव मुखरित हो उठे थे, ‘तुम तो सारी उम्र मामा के इर्दगिर्द ही चक्कर लगाती रहीं. मैं जानती हूं, वह तुम्हारा भाई नहीं, तुम्हारा प्रेमी था, महेश. पापा ने चाहे मेरा इस सच से परिचय नहीं करवाया पर मैं उस से मिल चुकी हूं. वार्ड नंबर 6. कैंसर की बीमारी से ग्रस्त, ऐसे मरीज उस वार्ड में थे जिन के ऊपर, कीमोथेरैपी, रेडियोथेरैपी, दवाएं सभी हार जाती हैं. राउंड लेते समय मैं ने कर्मशिला अस्पताल में कई बार तुम्हें उस का माथा दबाते, उस की पेशानी पर उभर आए स्वेद बिंदुओं को नरम तौलिए से पोंछते देखा है. उस की बेचैनी के साथ तुम्हें बेचैन होते देखा है. उस की घबराहट देख तुम्हें घबराते देखा है. तुम मेरी मां कभी नहीं हो सकतीं.’

‘श्रीकांत?’ सूनी आंखों से, उस ने श्रीकांत को एक बार फिर से पुकारा.

श्रीकांत ने पहले कही बात फिर दोहरा दी थी.

अपने प्रति अपने परिवारजनों की बेरुखी देख कर हेमा कुंठाग्रस्त हो गई. बातबात पर चीखतीचिल्लाती, लड़तीझगड़ती. कोई समझाने के लिए आगे बढ़ता तो आक्रामक हो कर उसे नुकसान पहुंचाने के लिए उद्यत हो उठती. श्रीकांत ने उसे मनोचिकित्सक को दिखाया और उन के कहने पर उसे मैंटल हौस्पिटल में भरती करवा दिया.

जीवन में सुखदुख सब एकसाथ चलते हैं. कुछ लोग अपने दुख, क्रोध या उदासी को मिटाने का प्रयत्न कर के, विक्षिप्तावस्था से खुद को उबार लेते हैं. लेकिन यदि जीने की लालसा ही समाप्त हो जाए तो यही कुंठा और उदासी व्यक्ति के स्वास्थ्य को पूरी तरह तहसनहस कर डालती है और यही हेमा के साथ हुआ था.

श्रीकांत ने पूरे आश्रम की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी. व्यस्त दिनचर्या के बावजूद बेटीदामाद भी नियमित रूप से आश्रम आते थे. श्रीकांत का कद बढ़ता जा रहा था. लोग उन्हें मानसम्मान देते. श्रीकांत के आश्रम ‘आनंदधाम’ को कई पुरस्कार मिले. मीडिया में उन की प्रशंसा के कसीदे पढ़े गए. साक्षात्कार लिए गए. हेमा यह सब देखती, सुनती तो और उदास हो जाती. न खाती, न पीती. अपनी बांहों में सिर छिपा कर अंधेरे में गुमसुम सी बैठ जाती.

श्रीकांत को यह सब अच्छा नहीं लगता था, क्योंकि उन्होंने यह सब ख्याति प्राप्त करने के लिए नहीं, मन को शांति और संतुष्टि प्रदान करने के लिए किया था. लेकिन उन की प्रसिद्धि और ख्याति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती ही जा रही थी.

हेमा की दशा दिनपरदिन बिगड़ती जा रही थी. डाक्टरों ने उसे इलैक्ट्रिक शौक देना शुरू कर दिया. इलैक्ट्रिक शौक के समय जब श्रीकांत उस के बंधे हाथ देखते तो परेशान हो उठते.

एक दिन जब वे हेमा से मिलने गए तो वह कमरे के एक कोने में सिमटीसिकुड़ी बैठी थी. उसे अन्य मरीजों के साथ नहीं रखा जाता था क्योंकि वह कभी भी दूसरे मरीजों को आघात पहुंचा सकती थी. डाक्टर तो श्रीकांत को भी हेमा से मिलने के लिए मना करते थे लेकिन श्रीकांत नहीं मानते थे. वैसे भी हेमा उन पर जल्दी अपना आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित नहीं करती थी.

उस दिन, जब वे उस के पास गए तो हेमा बांहों में अपना मुंह छिपा कर बैठी थी. उन्हें देख कर वह जोरजोर से रोने लगी, ‘मुझे मेरा घर चाहिए, मेरा घर चाहिए, मेरी बेटी चाहिए,’ फिर रोतेसिसकते धीमे स्वर में बोली, ‘मुझे माफ कर दो, श्रीकांत.’

कितना विचित्र है इंसान का स्वभाव. जो कुछ सरलता से प्राप्त हो जाता है, पाने वाले की नजरों में उस की कद्र नहीं होती. और जो कुछ नहीं मिलता वही उसे अनमोल लगता है. वह उसी की तलाश में हर समय भटकता है. अपने असंतोष और तृष्णा की वजह से जीवन के ऐसे मोड़ पर जा खड़ा होता है जहां वह खुद अपनी नजरों का सामना करने योग्य नहीं रह जाता.

श्रीकांत कुछ देर वहीं बैठे रहे. फिर उठ कर चले आए.

आज 3 दिन बाद मैंटल हौस्पिटल से डा. सहाय द्वारा यह खबर आई कि हेमा को भयानक दौरा पड़ा और उसी में वह खिड़की से गिर गई. लोग चाहे कुछ भी कहें मगर श्रीकांत समझ गए थे, यह हादसा नहीं था. हेमा ने जानबूझ कर अपनी जान दी थी.

सुबह के 4 बज चुके थे. श्रीकांत नहाधो कर दैनिक क्रियाकलाप से फारिग हुए और गैराज से कार निकाली. पूरा शरीर पसीने से तरबतर हो गया था. सोच रहे थे गणित नहीं है जिंदगी, जिस के हर सूत्र का एक स्पष्ट एवं सिद्ध उत्तर हो. जिंदगी के अपने उसूल होते हैं, अपने कायदे होते हैं. विवाहबंधन में बंधने के बाद हेमा ने अतीत से निकल कर वर्तमान को अपनाया होता तो शायद उस का ऐसा दयनीय अंत न हुआ होता. अतीत तो सब का होता है, अच्छा या बुरा. उन्होंने भी तो अपने अतीत को भुलाया था. हेमा क्यों नहीं भुला पाई? इन्हीं विचारों में उलझते हुए उन्होंने गाड़ी की गति तेज कर दी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें