Download App

घर के पन्नों पर

घर के पन्नों पर

उंगलियों से लिखा था तुम ने

मेरा व अपना नाम

संगसंग

दीवारों को सजाया था तुम ने

अपने होने के एहसास से

जब भी होता हूं घर में

तुम्हारा होना महसूस होता है

घर का मतलब ही मेरे लिए

तुम होती थीं, बस तुम

हां, यह अलग बात है

कह नहीं पाया तुम से कभी

ऐसा नहीं, कभी झगड़े नहीं

हमारी बातचीत बंद नहीं हुई

हर रिश्ते की तरह हमारे बीच भी

खट्टीमीठी यादें बनतीमिटती रहीं

तुम चली गई हो मुझे यों छोड़ कर

सब से अकेला सब के बीच

मैं अब भी तुम्हारे जाने को

मन से मान नहीं पाया हूं

अब इस उम्र में

कैसे निबाहूंगा तुम्हारे बिना

इक बच्चे की ही तरह तो

संभाला है तुम ने मुझे

अकसर हंस कर कहती थीं तुम

हमारे दो बच्चे हैं

एक मेरा बेटा और एक…

और मैं हंस पड़ता था

मानता हूं, जाना सब को है

पर अकेला कैसे लिख सकूंगा

घर के पन्नों पर

अपना व तुम्हारा नाम संगसंग.

जोड़ी मिलाएं धन कमाएं

शादी के अटूट बंधन के मद्देनजर लड़के के लिए उपयुक्त लड़की और लड़की के लिए उपयुक्त लड़का उपलब्ध कराना नेक काम तो है ही, इस से लाभ भी हासिल होता है. आज जोड़ी बनाने यानी मैचमेकिंग का काम रोजगार का रूप ले चुका है. इस काम को कहीं से भी किया जा सकता है. कुछ लोग इस के लिए कमर्शियल कौंप्लैक्स में औफिस खोलते हैं तो कुछ घर से ही इस काम को अंजाम दे कर खासी कमाई कर रहे हैं. मैचमेकिंग के काम में महिलाएं महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा कर अपने घर में धनवर्षा कर रही हैं.

मैचमेकिंग यानी जोड़ी मिलाने के व्यवसाय में न तो बहुत ज्यादा जगह की जरूरत होती है और न ही भारी पूंजी की. ‘हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा होय’ की कहावत को चरितार्थ करता यह व्यवसाय एक बार जम गया तो फिर समझो इस में सोनाचांदी सबकुछ है.

इस में अधिकाधिक रिश्ते जुटानेके लिए आप के संपर्क जितने ज्यादा होंगे, आप की संपर्क सूची उतनी ही लंबी होगी, जो व्यवसाय में फायदेमंद साबित होगी. एक समय था जब लोग रिश्तों के लिए रिश्तेदारों व अन्य विश्वस्त सूत्रों पर निर्भर होते थे लेकिन आज मैचमेकर्स पर निर्भर होने लगे हैं क्योंकि मैचमेकर्स ने अपनी सेवाओं से लोगों में विश्वास जमाया है.

मैचमेकर्स के लिए न्यू टैक्नोलौजी यानी कंप्यूटर लाभ का सौदा सिद्ध हो रही है. लड़केलड़की की सारी जानकारी को कंप्यूटर में सेव कर लिया जाता है जिस से काफी सुविधा होती है. लोगों का इन पर विश्वास करने का कारण यह भी है कि उन्हें इन के द्वारा अधिक से अधिक कौंटैक्ट्स की सारी जानकारी मिल जाती है. व्यक्तिगत स्तर पर लड़केलड़की और उन के परिवार की पूरी व सही जानकारी हासिल करना आसान नहीं होता.

जोड़ी की खोज में पेरैंट्स मैचमेकर को अपने लड़केलड़की के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं. जानकारी में पेरैंट्स लड़के/लड़की का नाम, पता, पिता व माता का नाम, आयु, कद, व्यवसाय, फैमिली बैकग्राउंड, मांगलिक/नौन मांगलिक, कास्ट/नो कास्ट बार, एजुकेशन, सैलरी, मंथली इनकम, किस तरह के परिवार में शादी करना पसंद करेंगे आदि जानकारियां देते हैं. इस से मैचमेकर को परिवार की पसंद के बारे में पता चल जाता है और वह उसी के आधार पर रिश्ते ढूंढ़ता है.

दोनों परिवारों को जब मनमाफिक मैच मिल जाता है और विस्तार से जानकारी भी प्राप्त हो जाती है तो उस के अगले कदम में कई मीटिंग्स आयोजित करवाई जाती हैं, जिन में लड़कालड़की को कई बार एकदूसरे को समझने का मौका मिल जाता है, और वे एकदूसरे के व्यवहार से भी परिचित हो जाते हैं, ऐसे में उन्हें निर्णय लेने में सुविधा होती है.

अंतिम निर्णय दोनों पार्टियों पर ही टिका होता है, वे अपने रिस्क पर ही कोई निर्णय लेते हैं. हर मैचमेकर की फीस अलगअलग होती है. कुछ मैचमेकर तो लड़के/लड़की की व उस के पूरे परिवार की सारी जानकारी स्वयं जांचपड़ताल कर उपलब्ध कराते हैं. इस कार्यशैली के आधार पर उन की फीस निर्भर करती है.

मैचमेकर क्यों

अगर आप खुद लाइफपार्टनर सर्च करना प्रारंभ करते हैं तो आप का बहुत समय बरबाद होता है. औनलाइन डेटिंग या होटल वगैरह में जा कर मिलने में यह भी पता नहीं होता कि आप सही और ईमानदार व्यक्ति से मिल रहे हैं या नहीं. हो सकता है कि आप जल्दबाजी में गलत व्यक्ति को चुन लें. लेकिन मैचमेकर्स आप की हर संभव सहायता करते हैं.

अनुभव

लोगों की जोडि़यां बनाने के काम में जुटे मैचमेकर्स को लोगों को परखना ज्यादा अच्छी तरह आता है. वे पहली नजर में ही पहचान जाते हैं कि अमुक व्यक्ति कैसा है. इसलिए वे मैचिंग बहुत सोचसमझ कर ही करवाते हैं.

डेट कोचिंग : सब से पहले मैचमेकर सही मैच करवाने का प्रयास करते हैं. यदि दोनों को बताया हुआ मैच पसंद आता है तो बात आगे बढ़ाई जाती है. इस में वे बताते हैं कि कैसे आप सामने वाले व्यक्ति को परख कर अपना सही फैसला ले सकते हैं. वे एकदूसरे को तय तिथि व समय पर मिलवाते हैं.

सुरक्षा : आप की सुरक्षा मैचमेकर्स की प्राथमिकता होती है. वे खुद अपने स्तर पर सारी जांचपड़ताल कर आप को इस बात के लिए निश्चिंत करते हैं कि अमुक परिवार सही है और आप बात आगे बढ़ा सकते हैं.

मैचमेकिंग के काम के संबंध में गाजियाबाद की कुमुद, जो अपने घर से मैचमेकिंग का काम करती हैं, ने बताया कि शुरू में उन्हें इस व्यवसाय को जमाने में दिक्कत हुई लेकिन धीरेधीरे जब लोगों को विश्वास हो गया तो अब उन के पास आएदिन कोई न कोई अपनी लड़की या लड़के के रिश्ते के लिए आता रहता है. वे बताती हैं कि लड़के या लड़की वालों से रजिस्ट्रेशन फीस के तौर पर वे 400 रुपए चार्ज करती हैं. रजिस्ट्रेशन फीस लेने के समय हम लड़के या लड़की की संपूर्ण जानकारी ले कर उसे अपने कंप्यूटर में फीड कर लेते हैं और उसी के अनुसार ही उन्हें रिश्ते बताते हैं.

रिश्तों के लिए अकसर सामूहिक सम्मेलन का आयोजन करते हैं जिस में वे सभी लोग आमंत्रित होते हैं जिन्होंने रजिस्ट्रेशन कराया होता है. वहां पर आए लड़केलड़कियों को एकदूसरे से परिचित कराया जाता है, फिर पेरैंट्स को अपने लड़के या लड़की

के लिए जो उपयुक्त लगता है, उन से बात आगे बढ़ाई जाती है.

दिल्ली के पीतमपुरा महल्ले में मैचमेकिंग के व्यवसाय में व्यस्त पूनम ने बताया कि वे जो भी रिश्ता बताती हैं उस की गारंटी लेती हैं. इस के लिए वे क्लाइंट से शुरुआत में टोकनमनी के रूप में 5,100 रुपए लेती हैं. उन की कोशिश यही होती है कि वे 6 से 8 महीने के बीच बात पक्की करवा दें. लेकिन इस बीच अगर संयोगवश रिश्ता पक्का न हो सका या फिर पार्टी को लगे कि वे उन्हें धोखा दे रही हैं तो उन के द्वारा दी गई टोकनमनी वे उन्हें 6 महीने के बाद वापस कर देती हैं.

वे बताती हैं कि वे लड़का या लड़की की पूरी वैरिफिकेशन करवाती हैं, मीटिंग्स दोनों पार्टियों की सुविधा के हिसाब से आयोजित करवाती हैं, ताकि उन्हें कोई दिक्कत न हो. वे मैचमेकिंग के सम्मेलन भी करवाती हैं. इस के लिए उन का कई लोगों व संस्थाओं से टाइअप होता है. जब रिश्ता पक्का हो जाता है और शादी का कार्ड छप जाता है तब वे क्लाइंट से 40 हजार रुपए चार्ज करती हैं. जो भी रिश्ता वे बताती हैं, उस की वे खुद भी व्यक्तिगत स्तर पर जांचपड़ताल करती हैं ताकि बाद में कोई दिक्कत न हो.

दिल्ली के पंजाबी बाग स्थित अपने घर से मैचमेकिंग का काम कर रही कुसुम ने बताया कि जब भी कोई लड़के या लड़की के रिश्ते के लिए उन के पास आता है तो वे उन्हें सारी बातें शुरू में ही बता देती हैं ताकि शुरुआती चरण में ही सब स्पष्ट हो जाए. अगर हमारी सर्विस पसंद आती है तो हम उन से 6,500 रुपए लेते हैं और उन से लड़का या लड़की की सारी जानकारी ले लेते हैं क्योंकि उसी उपलब्ध जानकारी के अनुसार मैच करवाया जाता है. यह सारा रिकौर्ड हम कंप्यूटर में दर्ज कर लेते हैं.

इस तरह कोई भी पुरुष या महिला घर बैठे जोड़ी मिलाने का काम आसानी से व अच्छी तरह से कर अपने परिवार का जीविकोपार्जन कर सकता है.

जोड़ी मिलाएं धन कमाएं

शादी के अटूट बंधन के मद्देनजर लड़के के लिए उपयुक्त लड़की और लड़की के लिए उपयुक्त लड़का उपलब्ध कराना नेक काम तो है ही, इस से लाभ भी हासिल होता है. आज जोड़ी बनाने यानी मैचमेकिंग का काम रोजगार का रूप ले चुका है. इस काम को कहीं से भी किया जा सकता है. कुछ लोग इस के लिए कमर्शियल कौंप्लैक्स में औफिस खोलते हैं तो कुछ घर से ही इस काम को अंजाम दे कर खासी कमाई कर रहे हैं. मैचमेकिंग के काम में महिलाएं महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा कर अपने घर में धनवर्षा कर रही हैं.

मैचमेकिंग यानी जोड़ी मिलाने के व्यवसाय में न तो बहुत ज्यादा जगह की जरूरत होती है और न ही भारी पूंजी की. ‘हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा होय’ की कहावत को चरितार्थ करता यह व्यवसाय एक बार जम गया तो फिर समझो इस में सोनाचांदी सबकुछ है.

इस में अधिकाधिक रिश्ते जुटानेके लिए आप के संपर्क जितने ज्यादा होंगे, आप की संपर्क सूची उतनी ही लंबी होगी, जो व्यवसाय में फायदेमंद साबित होगी. एक समय था जब लोग रिश्तों के लिए रिश्तेदारों व अन्य विश्वस्त सूत्रों पर निर्भर होते थे लेकिन आज मैचमेकर्स पर निर्भर होने लगे हैं क्योंकि मैचमेकर्स ने अपनी सेवाओं से लोगों में विश्वास जमाया है.

मैचमेकर्स के लिए न्यू टैक्नोलौजी यानी कंप्यूटर लाभ का सौदा सिद्ध हो रही है. लड़केलड़की की सारी जानकारी को कंप्यूटर में सेव कर लिया जाता है जिस से काफी सुविधा होती है. लोगों का इन पर विश्वास करने का कारण यह भी है कि उन्हें इन के द्वारा अधिक से अधिक कौंटैक्ट्स की सारी जानकारी मिल जाती है. व्यक्तिगत स्तर पर लड़केलड़की और उन के परिवार की पूरी व सही जानकारी हासिल करना आसान नहीं होता.

जोड़ी की खोज में पेरैंट्स मैचमेकर को अपने लड़केलड़की के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं. जानकारी में पेरैंट्स लड़के/लड़की का नाम, पता, पिता व माता का नाम, आयु, कद, व्यवसाय, फैमिली बैकग्राउंड, मांगलिक/नौन मांगलिक, कास्ट/नो कास्ट बार, एजुकेशन, सैलरी, मंथली इनकम, किस तरह के परिवार में शादी करना पसंद करेंगे आदि जानकारियां देते हैं. इस से मैचमेकर को परिवार की पसंद के बारे में पता चल जाता है और वह उसी के आधार पर रिश्ते ढूंढ़ता है.

दोनों परिवारों को जब मनमाफिक मैच मिल जाता है और विस्तार से जानकारी भी प्राप्त हो जाती है तो उस के अगले कदम में कई मीटिंग्स आयोजित करवाई जाती हैं, जिन में लड़कालड़की को कई बार एकदूसरे को समझने का मौका मिल जाता है, और वे एकदूसरे के व्यवहार से भी परिचित हो जाते हैं, ऐसे में उन्हें निर्णय लेने में सुविधा होती है.

अंतिम निर्णय दोनों पार्टियों पर ही टिका होता है, वे अपने रिस्क पर ही कोई निर्णय लेते हैं. हर मैचमेकर की फीस अलगअलग होती है. कुछ मैचमेकर तो लड़के/लड़की की व उस के पूरे परिवार की सारी जानकारी स्वयं जांचपड़ताल कर उपलब्ध कराते हैं. इस कार्यशैली के आधार पर उन की फीस निर्भर करती है.

मैचमेकर क्यों

अगर आप खुद लाइफपार्टनर सर्च करना प्रारंभ करते हैं तो आप का बहुत समय बरबाद होता है. औनलाइन डेटिंग या होटल वगैरह में जा कर मिलने में यह भी पता नहीं होता कि आप सही और ईमानदार व्यक्ति से मिल रहे हैं या नहीं. हो सकता है कि आप जल्दबाजी में गलत व्यक्ति को चुन लें. लेकिन मैचमेकर्स आप की हर संभव सहायता करते हैं.

अनुभव

लोगों की जोडि़यां बनाने के काम में जुटे मैचमेकर्स को लोगों को परखना ज्यादा अच्छी तरह आता है. वे पहली नजर में ही पहचान जाते हैं कि अमुक व्यक्ति कैसा है. इसलिए वे मैचिंग बहुत सोचसमझ कर ही करवाते हैं.

डेट कोचिंग : सब से पहले मैचमेकर सही मैच करवाने का प्रयास करते हैं. यदि दोनों को बताया हुआ मैच पसंद आता है तो बात आगे बढ़ाई जाती है. इस में वे बताते हैं कि कैसे आप सामने वाले व्यक्ति को परख कर अपना सही फैसला ले सकते हैं. वे एकदूसरे को तय तिथि व समय पर मिलवाते हैं.

सुरक्षा : आप की सुरक्षा मैचमेकर्स की प्राथमिकता होती है. वे खुद अपने स्तर पर सारी जांचपड़ताल कर आप को इस बात के लिए निश्चिंत करते हैं कि अमुक परिवार सही है और आप बात आगे बढ़ा सकते हैं.

मैचमेकिंग के काम के संबंध में गाजियाबाद की कुमुद, जो अपने घर से मैचमेकिंग का काम करती हैं, ने बताया कि शुरू में उन्हें इस व्यवसाय को जमाने में दिक्कत हुई लेकिन धीरेधीरे जब लोगों को विश्वास हो गया तो अब उन के पास आएदिन कोई न कोई अपनी लड़की या लड़के के रिश्ते के लिए आता रहता है. वे बताती हैं कि लड़के या लड़की वालों से रजिस्ट्रेशन फीस के तौर पर वे 400 रुपए चार्ज करती हैं. रजिस्ट्रेशन फीस लेने के समय हम लड़के या लड़की की संपूर्ण जानकारी ले कर उसे अपने कंप्यूटर में फीड कर लेते हैं और उसी के अनुसार ही उन्हें रिश्ते बताते हैं.

रिश्तों के लिए अकसर सामूहिक सम्मेलन का आयोजन करते हैं जिस में वे सभी लोग आमंत्रित होते हैं जिन्होंने रजिस्ट्रेशन कराया होता है. वहां पर आए लड़केलड़कियों को एकदूसरे से परिचित कराया जाता है, फिर पेरैंट्स को अपने लड़के या लड़की

के लिए जो उपयुक्त लगता है, उन से बात आगे बढ़ाई जाती है.

दिल्ली के पीतमपुरा महल्ले में मैचमेकिंग के व्यवसाय में व्यस्त पूनम ने बताया कि वे जो भी रिश्ता बताती हैं उस की गारंटी लेती हैं. इस के लिए वे क्लाइंट से शुरुआत में टोकनमनी के रूप में 5,100 रुपए लेती हैं. उन की कोशिश यही होती है कि वे 6 से 8 महीने के बीच बात पक्की करवा दें. लेकिन इस बीच अगर संयोगवश रिश्ता पक्का न हो सका या फिर पार्टी को लगे कि वे उन्हें धोखा दे रही हैं तो उन के द्वारा दी गई टोकनमनी वे उन्हें 6 महीने के बाद वापस कर देती हैं.

वे बताती हैं कि वे लड़का या लड़की की पूरी वैरिफिकेशन करवाती हैं, मीटिंग्स दोनों पार्टियों की सुविधा के हिसाब से आयोजित करवाती हैं, ताकि उन्हें कोई दिक्कत न हो. वे मैचमेकिंग के सम्मेलन भी करवाती हैं. इस के लिए उन का कई लोगों व संस्थाओं से टाइअप होता है. जब रिश्ता पक्का हो जाता है और शादी का कार्ड छप जाता है तब वे क्लाइंट से 40 हजार रुपए चार्ज करती हैं. जो भी रिश्ता वे बताती हैं, उस की वे खुद भी व्यक्तिगत स्तर पर जांचपड़ताल करती हैं ताकि बाद में कोई दिक्कत न हो.

दिल्ली के पंजाबी बाग स्थित अपने घर से मैचमेकिंग का काम कर रही कुसुम ने बताया कि जब भी कोई लड़के या लड़की के रिश्ते के लिए उन के पास आता है तो वे उन्हें सारी बातें शुरू में ही बता देती हैं ताकि शुरुआती चरण में ही सब स्पष्ट हो जाए. अगर हमारी सर्विस पसंद आती है तो हम उन से 6,500 रुपए लेते हैं और उन से लड़का या लड़की की सारी जानकारी ले लेते हैं क्योंकि उसी उपलब्ध जानकारी के अनुसार मैच करवाया जाता है. यह सारा रिकौर्ड हम कंप्यूटर में दर्ज कर लेते हैं.

इस तरह कोई भी पुरुष या महिला घर बैठे जोड़ी मिलाने का काम आसानी से व अच्छी तरह से कर अपने परिवार का जीविकोपार्जन कर सकता है.

पैकिंग से अर्निंग

आज की व्यस्ततम जीवनशैली में लोग भले ही एकदूसरे को समय नहीं दे पा रहे लेकिन उन के बीच शिष्टाचार की कमी नहीं आई, कम से कम इस संदर्भ में कि वे भिन्नभिन्न मौकों पर एकदूसरे को ‘विश’ करना नहीं भूलते, साथ ही गिफ्ट देने/पहुंचाने में देरी नहीं करते. वैसे भी पश्चिमी कल्चर या यों कहें कि मौडर्न कल्चर में गिफ्ट देनेलेने की परंपरा चलन में खूब है.

भारतीय समाज में हालांकि उपहार की परंपरा हमेशा से रही है लेकिन पश्चिम के प्रभाव के चलते यह ज्यादा फलफूल रही है. इस में शक नहीं कि यह मौडर्न परंपरा समाज में मोहब्बत व खुशहाली का प्रतीक बन कर उभरी है. वहीं, इस के चलते गिफ्ट पैकिंग का काम बढ़ा है और लोग घर बैठे इस काम से खासी कमाई कर रहे हैं.

जो दिखता है वही बिकता है, अब ऐसा नहीं रहा बल्कि आज जो खूबसूरत दिखता है वही बिकता है. इसी थ्योरी पर आधारित यह व्यवसाय उन सभी के लिए परफैक्ट है जो अपनी रचनात्मकता और थोड़ी सी रकम के इन्वैस्टमैंट से घर बैठे खासा कमाना चाहते हैं. गिफ्ट पैकिंग एक सदाबहार, फलताफूलता व्यवसाय है.

कैसे करें शुरुआत

गिफ्ट पैकिंग का व्यवसाय शुरू करने के लिए आप 5 से 10 हजार रुपए के निवेश से भी शुरुआत कर सकती हैं. आप चाहें तो इस के लिए ट्रेनिंग भी ले सकती हैं. मार्केट में अपने व्यवसाय को पहचान दिलाने के लिए सर्वप्रथम उसे एक अच्छा नाम दें.

ध्यान रखें, नाम ऐसा हो जिस से रचनात्मकता झलके. उस के बाद उस जगह का निर्धारण करें जहां से आप अपने व्यवसाय की शुरुआत करेंगी. यह जगह घर का कोई कोना भी हो सकता है. साथ ही, आप को चाहिए एक बड़ी टेबल जिस पर रख कर आप गिफ्ट की पैकिंग करेंगी.

पैकिंग के लिए जरूरी सामग्री

पैकिंग के लिए पहली जरूरी सामग्री वैरायटी औफ गिफ्ट रैपिंग पेपर है. पेपर का चुनाव इस आधार पर करें कि आप किस अवसर व किस के लिए पैकिंग कर रही हैं, जैसे बर्थडे पार्टी के लिए बच्चों के हिसाब से आकर्षक पैकिंग पेपर, कौर्पोरेट पैकिंग के लिए न्यूट्रल शेड के पेपर, इस के अलावा हैंडमेड पेपर, एंबोस्ड पेपर, फैंसी रिबन, हैंडमेड गिफ्ट बैग्स, औरगेंजा, टिश्यू, सैलोफेन शीट्स, आकर्षक फ्लावर्स, वुडन, मैटल ट्रे, बौक्सेज, फैवीकौल, कैंची, डबल टेप आदि.

उपहारों के लेनदेन का चलन आजकल विभिन्न अवसरों पर हो रहा है, मसलन शादीविवाह, बच्चे के जन्म, पहले जन्मदिन की पार्टी, मैरिज एनीवर्सरी, कौर्पोरेट गिफ्ंिटग, दीवाली, होली, तीज, करवाचौथ तथा दूसरे त्योहारों के अवसर आदि. और्डर प्राप्त करने के लिए आप मौल्स व लोकल व गिफ्ट स्टोर्स से संपर्क कर सकती हैं.

गिफ्ट पैकिंग के लिए ग्राहकों की तलाश आप अपने व्यवसाय के प्रचारप्रसार से कर सकती हैं. आप अपनी कस्टमर फ्रैंडली वैबसाइट बना सकती हैं. इस में आप अपनी गिफ्ट पैकिंग की खूबसूरत पिक्चर्स अपलोड कर सकती हैं. वैबसाइट पर पैकिंग के साइज के अनुसार रेट की जानकारी अवश्य दें, ताकि अगर कोई चाहे तो वहीं से और्डर कर सके. आप सोशल मीडिया पेज भी बना सकती हैं. अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए ग्राहकों के साथ नियमित रूप से संपर्क में रहें. विज्ञापन के लिए पोस्टर, बैनर्स, पैम्फ्लैट्स का प्रयोग भी कर सकती हैं.

सीखें नयानया

आप अपने ग्राहकों का एक फीडबैक रजिस्टर अवश्य रखें ताकि आप के पास उन के कौंटैक्ट डिटेल्स भी रहें साथ ही, आप उन की राय भी जान सकें और बेहतर काम कर सकें. इस जानकारी के आधार पर उन से विभिन्न अवसरों पर पैकिंग के लिए संपर्क कर सकती हैं. अपनी पैकिंग में हमेशा वैरायटी रखें और हमेशा नयानया सीखती रहें. इस व्यवसाय में जब तक आप में रचनात्मकता है, आप बनी रह सकती हैं बिना किसी रिटायरमैंट के.

क्रेच : खुशियां और कमाई दोनों

यदि आप कुछ ऐसा काम करना चाहती हैं जिस में घर की देखभाल के साथसाथ कमाई भी हो सके तो क्रेश, जिसे आमतौर पर लोग के्रच कहते हैं, घर बैठे पैसे कमाने का आसान विकल्प है. क्रेच में आप दूसरों के बच्चों को दिन के कुछ समय थोड़ा सा प्यार दे कर अपने अकेलेपन को दूर करने के साथसाथ पैसे भी कमा सकती हैं.

क्या है क्रेच

क्रेच वह जगह है जहां बच्चों को दिन के समय घर जैसा माहौल और स्नेह दिया जाता है. वहां बच्चों को साफ रखने, गंदे कपड़े बदलने के साथ उन के खानेपीने से ले कर उन के खेलने तक का पूरा ध्यान रखा जाता है. क्रेच में बच्चों के खाने से ले कर सोने तक का समय तय रहता है. वहां उन के साथ कई हमउम्र बच्चे रहते हैं जिन के साथ वे छोटीछोटी चीजों को सीखते भी हैं.

कैसे खोलें क्रेच

अपने घर में या पड़ोस में बच्चों के हिसाब से किसी सुरक्षित जगह पर आप क्रेच खोल सकती हैं. अगर आप अपने घर में खोल रही हैं तो यह जरूर देखें कि घर में इतनी जगह हो कि बच्चे वहां आराम से रह सकें, खिलौनों से खेल सकें. घर में जगह की कमी हो तो पड़ोस में किराए पर जगह ले कर भी क्रेच खोल सकती हैं. इस के लिए आप को बच्चों के लिए कुछ खिलौने, उन की जरूरत की चीजें और कुशल मेड की जरूरत पड़ेगी, जो बच्चों को संभाल सके, उन की देखभाल कर सके.

चुनमुन चाइल्ड केयर नामक क्रेच की कमलेश बताती हैं, ‘‘मेरे पति की तबीयत ठीक नहीं रहती है. मैं उन्हें अकेला छोड़ कर बाहर काम नहीं कर सकती, इसलिए मैं ने अपने घर में बच्चों के लिए क्रेच खोला है. इस से मेरा मन भी लगा रहता है और घर में पैसे भी आ जाते हैं. मेरे पास 3 महीने से ले कर 10 साल तक के बच्चे आते हैं. बच्चों के साथ दिन कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता.’’ वे आगे बताती हैं कि 4-5 हजार रुपए खर्च कर के घर में आसानी से क्रेच खोला जा सकता है.

जरूरी सामान

क्रेच में कम से कम इतना सामान होना चाहिए कि बच्चे उन से खेल सकें. बच्चों की उम्र के हिसाब से रंगबिरंगे खिलौने और मोटरगाडि़यां, वीडियो गेम्स, कार्टून देखने के लिए टीवी, उन के सोने के लिए बैड, पढ़नेलिखने के लिए बच्चों की कुछ किताबें बाजार से खरीद लें.

बच्चों के लिए मेड

बच्चों को संभालने के लिए के्रच में कम से कम 2 कुशल मेड की जरूरत पड़ेगी, जो सुबह से शाम तक उन की सही तरीके से देखभाल कर सकें. वे उन्हें खाना खिलाएं, समय पर सुलाएं, उन्हें छोटीछोटी चीजें सिखाएं आदि. लेकिन हां, मेड के हवाले ही बच्चों को न छोड़ें, बल्कि मेड पर निगरानी रखें कि वे बच्चों को अच्छे से संभाल रही हैं या नहीं. आप चाहें तो खुद भी उन की देखभाल कर सकती हैं. कई बार ऐसा होता है कि आप का ध्यान जरा सा इधर से उधर हुआ नहीं कि मेड चोरी करने लगती है. अगर मेड ने इस तरह की गलती पहली बार की है तो उसे माफ कर दें. लेकिन अगर वह ऐसी गलती बारबार करती है तो उसे पुलिस की धमकी दे कर डराएं.

समय और फीस

क्रेच में घंटे और बच्चों की उम्र के हिसाब से फीस ली जाती है. जैसे अगर 5-6 महीने का बच्चा है और वह सुबह के 7 बजे से शाम के 7 बजे तक के्रच में रहता है तो 5-6 हजार रुपए लिए जाते हैं. अगर बच्चा सिर्फ 2-3 घंटे के लिए आता है तो 1000-1500 रुपए वसूले जाते हैं. अधिकांश क्रेच में घर वाले बच्चों को खाना व दूध पैक कर के देते हैं, लेकिन कुछ क्रेच ऐसे भी हैं जहां बच्चों को खाना भी दिया जाता है. इन क्रेचों की फीस थोड़ी ज्यादा होती है. आप अपनी सुविधानुसार इन में से कोई सा भी क्रेच शुरू कर सकती हैं.

समस्या व निदान

क्रेच में कई तरह की छोटीछोटी समस्याएं आएंगी, जैसे बच्चा लगातार रो रहा है, अचानक उस की तबीयत खराब हो जाती है, मां उसे लेने देर से आती है, बातबात पर वह झगड़ा करती है, हर बात के लिए शिकायत करती है आदि. इन समस्याओं से परेशान होने की जरूरत नहीं है बल्कि आप आसानी से इन समस्याओं का हल निकाल सकती हैं और घर बैठे पैसे कमा सकती हैं. जैसे अगर बच्चा लगातार रो रहा है, चुप नहीं हो रहा है तो पहले यह जानने की कोशिश करें कि आखिर वह क्यों रो रहा है. कई बार बच्चे गीली नैपी, भूख लगने, दांत निकलने, तबीयत खराब होने की वजह से रोते हैं. आप उन्हें गोद में उठाएं, प्यार से सहलाएं, खिलौने से उस के साथ खेलें. बच्चा थोड़ा बड़ा है तो उसे कहानी सुनाएं. लेकिन अगर बच्चे की तबीयत ठीक नहीं है तो खुद से कोई भी दवा न खिलाएं. बल्कि मातापिता को फोन पर बच्चे की तबीयत के बारे में बताएं. अगर वे दवा का नाम बता रहे हैं और बच्चे को देने के लिए कह रहे हैं तो वह दवा बच्चे को दें. इस के लिए आप अपने आसपास की दवा दुकानों के नंबर अपने पास रखें ताकि उन्हें फोन पर बता कर दवाएं मंगा सकें.

अगर क्रेच में बच्चे को किसी चीज से चोट लग जाए तो तुरंत मातापिता को इस की सूचना दें और बच्चे की प्राथमिक चिकित्सा करें.

अगर कभी बच्चे का खाना खराब हो जाए तो ऐसी स्थिति में उसे भूखा न रखें बल्कि अपनी तरफ से उसे कुछ जरूर खिलाएं, पर ध्यान रखें कि वह ताजा बना हो. बच्चे की अच्छी तरह से देखभाल करने के बाद भी कई बार ऐसा होता है कि मां झगड़ती है. शिकायत करती है कि क्रेच में उस के बच्चे का सही से ध्यान नहीं रखा जाता, उस की नैपी गीली रह गई थी, कपड़े गंदे थे, मेड ने बच्चे को डांटा आदि. ऐसी बातें सुन कर आप गुस्सा न हो जाएं बल्कि समझदारी से काम लें. उन्हें समझाएं कि क्रेच में सारे बच्चों का एकसमान ध्यान रखा जाता है. अगर नैपी गीली थी तो हो सकता है कि बच्चे ने थोड़ी देर पहले ही गीली की हो. लेकिन अगर कोई मां हर बात के लिए आप से झगड़ा करें तो उस से सारी बातें पहले ही स्पष्ट कर लें ताकि आप के बीच किसी तरह का मनमुटाव न रहे.

कभीकभी ऐसा भी होता है कि मां दफ्तर में किसी काम की वजह से या दूसरे किसी कारण से बच्चे को लेने समय पर नहीं पहुंच पाती है तो आप गुस्सा न हों और न ही बारबार फोन कर के उस से पूछें कि वह कहां है, कब तक आएगी, क्रेच बंद होने का समय हो गया है, बल्कि जब तक वह नहीं आती तब तक बच्चे को धैर्यपूर्वक अपने पास रखें. अगर कभी मातापिता के अलावा कोई अनजान व्यक्ति बच्चे को लेने आ जाए तो उसे बच्चे को न दें. वह कितना भी कहे कि वह बच्चे का परिचित है. उस के बारे में फोन पर मातापिता से पूछताछ कर लें. उस का फोन नंबर, नाम व पता पूछ कर लिख लें. इस के बाद ही बच्चे को दें.

कभीकभी आप को अचानक कहीं बाहर जाना हो और घर में दूसरा कोई जिम्मेदारी संभालने वाला नहीं है तो ऐसी स्थिति में आप अपने पड़ोसियों की मदद ले सकती हैं. उन्हें सारी चीजें अच्छे से समझा दें, ताकि कोई दिक्कत न हो. लेकिन हां, फोन पर बच्चों की खबर जरूर लेती रहें. कभी 3-4 दिन के लिए बाहर जाना हो तो इस की सूचना मातापिता को पहले से ही दें ताकि वे कुछ दूसरा उपाय निकाल सकें.

आप की भूमिका

के्रच में आप की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण होगी क्योंकि मांबाप बच्चों को आप के भरोसे ही छोड़ कर जाएंगे. आप उन्हें प्यार से रखें. उन की मां की तरह उन का खयाल रखें ताकि उन्हें उस वक्त उन की मां की कमी का एहसास न हो.

शुरुआत में आप को थोड़ी दिक्कत होगी लेकिन धीरेधीरे आप को इस काम में मजा आने लगेगा. मेड की मदद से पूरे दिन उन के खानेपीने से ले कर उन के सोने, डाइपर चेंज करने आदि का ध्यान रखें. अगर बच्चा दोढाई साल से बड़ा है तो उसे कुछ समय के लिए पढ़ाएं, कविता बोलना सिखाएं. एक सब से जरूरी बात मातापिता को पहले ही बता दें कि बच्चे के्रच के खिलौने से ही खेलेंगे. उन के साथ किसी भी प्रकार का खिलौना दे कर न भेजें क्योंकि बच्चे खिलौनों की वजह से ही आपस में झगड़ते हैं.

भारत के अमीरों की थाली में विदेशी खाना

दालरोटी खा कर गुजरबसर करने वाला गरीब आदमी यदि सोचता है कि अमीर की थाली 36 किस्म के व्यंजन से सजी होती होगी तो उस का अनुमान गलत है. भारतीय अमीर के भोजन की थाली का पुश्तैनी अंदाज अब खत्म हो रहा है. अब वह विदेशी भोजन की थाली में झांक रहा है और उस का लुत्फ उठा रहा है. विदेशी खानपान और पहनावा उस का फैशन बन गया है. वह कमाता यहां है लेकिन रहनसहन में नकल विदेशों की करता है.

कोटक वैल्थ मैनेजमैंट ने हाल ही में एक सर्वेक्षण कराया है. सर्वेक्षण में भारतीय अमीरों के शौक और रहनसहन को शामिल किया गया. सर्वेक्षण में कहा गया है कि अमीरों के खर्च में तेजी से इजाफा हो रहा है और 2011-12 की तुलना में 2013-14 में उन के खर्च में 20 प्रतिशत का इजाफा हुआ है.

सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीय अमीर सर्वाधिक चाइनीज और इटैलियन भोजन पसंद करते हैं. भारतीय भोजन सिर्फ 61 फीसदी लोग पसंद करते हैं जबकि चाइनीज 70 और इटैलियन 62 फीसदी लोगों की पसंद है. इस के अलावा उन्हें लेबनानी, जापानी और मैक्सिकन भोजन ज्यादा पसंद है. उन्हें खरीदारी और समुद्र किनारे, पहाड़ों पर घूमने व सफारी पर जाने का शौक है. खरीदारी में सब से अधिक ज्वैलरी पर खर्च करते हैं. इस के अतिरिक्त कपड़े, उपकरण पर भी अच्छा खर्च करते हैं. उन्हें महंगी घड़ी तथा शराब का नशा करने का जबरदस्त शौक है.

सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश में नवधनाढ्य वर्ग भी तेजी से बढ़ रहा है. वर्ष 2011-12 में देश में 62 हजार नवधनाढ्य थे जिन की संख्या 2013-14 में बढ़ कर 1 लाख 17 हजार से अधिक पहुंच गई है. उन में 16 फीसदी वे लोग हैं जिन की आय 25 करोड़ रुपए से अधिक है.

रैंप पर धोखा

मौडलिंग की दुनिया में अकसर रैंप पर कैटवाक के दौरान मौडल्स की ड्रैस धोखा दे जाती है, जिस से सरेआम उन का खूब तमाशा होता है. कई बार पब्लिसिटी के लिए मौडल्स जानबूझ कर ऐसे हथकंडे अपनाती हैं, ऐसा भी कहा जाता है. लेकिन इस तरह के मामले तब ज्यादा सुर्खियां बटोरते हैं जब कोई बौलीवुड अभिनेत्री की सरेआम ड्रैस धोखा दे जाए. पिछले दिनों नरगिस फाखरी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.

हुआ यों कि नरगिस एक ज्वैलरी बैंड के लिए निखिल थांपी द्वारा डिजाइन किए गए काले गाउन में रैंप पर उतरीं. तभी उन के गाउन में लगा चीरा लंबा हो गया. और शर्मिंदगी की हालत पैदा हो गई. हालांकि उन्होंने माहौल को हलका करने के लिए मुसकरा दिया और समझदारी दिखाते हुए स्थिति को संभाल लिया लेकिन तब तक कैमरों के फ्लैश चमक चुके थे.

ये पति

मेरी बेटी के पति भुलक्कड़ किस्म के हैं. कैमरा, फाइल, मोबाइल, चश्मा आदि कहीं भी रख कर भूल जाते हैं. जब उन की शादी की पहली वर्षगांठ थी तो केक का और्डर देने बेकरी शौप गए. उस दिन बहुत कीचड़ था क्योंकि असम में बारिश बहुत होती है. केक का और्डर देने के बाद स्कूटर स्टार्ट कर अपने काम पर निकल पड़े.

मेरी बेटी बड़ी भावुक किस्म की है. जरा सी बात पर आंसू टपकने लगते हैं. वह घर आई, टपटप आंसू गिर रहे थे. हम ने बहुत पूछा कि क्या बात है लेकिन  जवाब की जगह आंखों में भयंकर क्रोध नजर आ रहा था. 2 घंटे बाद मेरे जंवाई जब घर आए तो मेरी बेटी बम की तरह फटी, पति से बोली, ‘‘आप मुझे बेकरी शौप में इस कीचड़ में क्यों छोड़ कर आए?’’

उन्होंने सहमते हुए कहा, ‘‘मैं ने सोचा तुम स्कूटर के पीछे बैठ गई हो.’’

मेरी बेटी ने कहा, ‘‘अच्छा, मैं तो बड़ी फूल की तरह हलकी हूं न, जो आप को पता ही नहीं चला.’’

अब भला मेरे जंवाई क्या जवाब देते. वे दुबलेपतले हैं जबकि मेरी बेटी उन से मोटी है. इसलिए उन्होंने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी, चुपचाप डांट खाते रहे. दरअसल, हमारे जंवाई को तो कहीं दूरदूर तक भी याद न था कि वे अपनी पत्नी को बेकरी शौप ले कर गए थे और वहीं छोड़ आए. वह तो उन को जब डांट पड़ी तब याद आया.

-सुंदर देवी बाहेती

 

मेरे पति को मौल या मार्केट में कुछ आगे चलने की आदत है. मैं कई बार कहती हूं किसी से रेस लगाने थोड़े ही निकले हैं. लेकिन बिना आगेपीछे देखे चलते जाना उन की आदत है. कुछ दिन पहले रविवार को हम एक मौल में गए. बहुत ज्यादा भीड़ थी. वे आदतानुसार आगे बढ़ते गए. मैं कुछ पीछे थी. मैं ने ब्लू टौप और ब्लैक जींस पहनी हुई थी. भीड़ में ही पतिदेव ने किसी अन्य ब्लू टौप पहने स्त्री की कमर में हाथ डाल कर कहा, ‘‘जल्दी चलो न.’’

वह महिला बुरी तरह चौंकते हुए पीछे हटी, उस की शक्ल देखी तो मेरे पति की हवाइयां उड़ गई, सौरी, सौरी बोलते हुए पीछे हट रहे थे. इस दृश्य को देखती हुई मैं वहां पहुंची. मैं ने अपने पति का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो.’’

उस महिला ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा, मन ही मन हुई गलतफहमी का अंदाजा लगाया होगा. उस के माथे की शिकन कुछ कम हुई. हम फिर से सौरी बोलते हुए आगे बढ़े तो मेरे पति ने कान पकड़ते हुए कहा, ‘‘भई, आज तो पिटने से बच गया, आगे से तुम्हारा हाथ नहीं छोड़ूंगा, अब साथ ही चलूंगा.’’ मुझे उन की घबराहट पर बहुत मजा आ रहा था.

पूनम अहमद, थाणे (महा.)

हेट स्टोरी 2

बौलीवुड में औरतों द्वारा प्रतिशोध लेने पर बहुत सी फिल्में बनी हैं, जिन में डिंपल कपाडि़या की ‘जख्मी औरत’ और रेखा की ‘खून भरी मांग’ काफी चर्चित और सफल रही हैं. औरतों द्वारा प्रतिशोध लेने के साथसाथ अगर फिल्म में सैक्स का तड़का भी लगा हो तो फिल्म को अच्छा रिस्पौंस मिलता है. ‘हेट स्टोरी 2’ भी ऐसी ही फिल्म है.

यह फिल्म विक्रम भट्ट की फिल्म ‘हेट स्टोरी’ का सीक्वल है. पिछली फिल्म में नायिका पाउली दाम ने खूब गरमागरम सीन दिए थे, साथ ही वह अपने प्रेमी से प्रतिशोध लेती दिखाई दी थी. ‘हेट स्टोरी 2’ में हालांकि बोल्ड सीन पहली फिल्म की अपेक्षा कम हैं लेकिन फिल्म का प्रचार ऐसे किया गया मानो यह हौट फिल्म हो. इस फिल्म में सनी लियोनी पर फिल्माया गया एक हौट गाना जरूर है. फिल्म के प्रचार के लिए इसी गाने का सहारा लिया गया है.

फिल्म की कहानी कमजोर है. यह कहानी सीधेसीधे औरत के प्रतिशोध की है. कहानी के बीचबीच में आए फ्लैशबैक कहानी को डिस्टर्ब करते हैं. कहानी में कोई घुमावफिराव भी नहीं है. सोनिका (सुरवीन चावला) के मातापिता की मृत्यु हो चुकी है. उस की दादी सोनिका को मुंबई के एक बाहुबली नेता मंदार (सुशांत सिंह) के पास छोड़ आती है ताकि वह उस का गार्जियन बन कर उस की देखभाल कर सके. मंदार सोनिका को अपनी रखैल बना कर आलीशान कोठी में रखता है. इस नारकीय जिंदगी से निजात पाने के लिए सोनिका फोटोग्राफी स्कूल जौइन करती है. वहां उस की मुलाकात अक्षय (जय भानुशाली) से होती है. दोनों में प्यार हो जाता है. दोनों मुंबई से भाग कर गोआ आ जाते हैं.

एक दिन मंदार को इन दोनों के गोआ में होने का पता चलता है तो वह वहां पहुंच कर अक्षय को मार डालता है और सोनिका को जिंदा ही कब्र में गाड़ देता है. किसी तरह सोनिका बच निकलती है. फिर वह अक्षय के कातिलों को एकएक कर मार डालती है. अंतत: वह मंदार तक भी पहुंच जाती है और उसे खत्म कर अपना प्रतिशोध पूरा करती है. वैसे तो यह पूरी फिल्म सुरवीन चावला और सुशांत सिंह के इर्दगिर्द घूमती है. सुरवीन चावला ने बेहतरीन काम किया है. यदि उस की तुलना फिल्म के फर्स्ट पार्ट की हीरोइन पाउली दाम से की जाए तो सुरवीन चावला उस से कमजोर ही कही जाएगी.

फिल्म का निर्देशन कुछ हद तक ठीक है. फर्स्ट हाफ में निर्देशक दर्शकों को बांधे रख सकता है परंतु सैकेंड हाफ में उस के हाथ से ग्रिप छूटती नजर आती है. क्लाइमैक्स भी एकदम सपाट है. फिल्म का हीरो जय भानुशाली टीवी स्टार है. उस ने निराश किया है. उस ने सिर्फ गानों पर ही परफौर्म किया है. इंस्पैक्टर की भूमिका में सिद्धार्थ खेर का काम अच्छा है. सुशांत सिंह नैगेटिव भूमिका में जंचा है.

फिल्म के संवाद अच्छे हैं. सुरवीन की संवाद अदायगी व एक्सप्रैशंस अच्छे हैं. फिल्म में एक गाना 1988 की फिल्म ‘दयावान’ के गाने ‘आज फिर तुम पर प्यार आया’ को रीमिक्स कर बनाया गया है. इसे युवाओं को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है. दूसरा गाना सनी लियोनी पर है जो हौट है. छायाकार ने गोआ की खूबसूरती को दिखाया है.

इंटरनैट बैंकिंग : सावधानी जरूरी

एडवांस टैक्नोलौजी के युग में लगभग सभी काम औनलाइन द्वारा होने लगे हैं. खासतौर पर नैटबैंकिंग का उपयोग काफी तेजी से बढ़ा है. आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल 25 प्रतिशत लोग नैटबैंकिंग से जुड़ रहे हैं. नैटबैंकिंग जितनी आसान और सुलभ है उतनी ही खतरनाक भी. इस के इस्तेमाल में बहुत सावधानी और जागरूकता की आवश्यकता है.

नैटबैंकिंग के इस्तेमाल में की गई जरा सी भी लापरवाही आप को कंगाल बना सकती है. वर्तमान समय में साइबर अपराधियों द्वारा बैंक में सेंध लगाने के काफी मामले सामने आ रहे हैं. साइबर अपराधियों द्वारा 2011 में 40 करोड़ रुपए व 2012 में 52 करोड़ रुपए नैटबैंकिंग द्वारा चुराए गए थे. पूरे विश्व में साइबर अपराधियों द्वारा प्रतिवर्ष 1 ट्रिलियन (1 के बाद 18 शून्य) डौलर चुराए जाते हैं. पिछले साल भोपाल साइबर क्राइम ब्रांच में नैटबैंकिंग से संबंधित 50 से अधिक मामले दर्ज किए गए. साइबर जालसाजों ने नैटबैंकिंग में सेंध लगा कर दूसरों के खातों से लाखों रुपए अपने खाते में ट्रांसफर कर लिए थे. इस मामले में भोपाल के साइबर सैल के आईजी, अनिल गुप्ता का कहना है, ‘‘जिस तरह से नैटबैंकिंग द्वारा रुपए चोरी किए जाने के मामले सामने आ रहे हैं, उस से यह लगता है कि लोग नैटबैंकिंग को ले कर सावधान व जागरूक नहीं हैं.’’

आइए देखते हैं, साइबर अपराधी किसकिस तरह से नैटबैंकिंग में सेंध लगाता है :

ईमेल : आगरा साइबर पुलिस ने ईमेल आईडी के द्वारा बैंक खाते में सेंध लगाने वाले एक गैंग को गिरफ्तार किया. यह गैंग पूरे देश के कई बैंकों में सेंध लगा कर मात्र 1 साल में 400 करोड़ रुपए चोरी कर चुका था. यह गैंग मोबाइल सिम को ब्लौक कर खाते से रुपए गायब कर देता था. गैंग के लोग ईमेल आईडी पर बैंक अधिकारी बन कर अकाउंट अपडेट करने का मैसेज लोगों को भेजते थे. लोग उन के झांसे में आ जाते थे और ईमेल पढ़ कर अपने खाते को अपडेट करने के चक्कर में अपनी सारी गोपनीय जानकारी भेज देते थे. जैसे ही इन्हें गोपनीय जानकारी मिल जाती थी, ये सब से पहले सिम ब्लौक करवा देते थे ताकि बैंक से रुपए निकलने पर एसएमएस द्वारा इस की जानकारी खाताधारक को न पहुंचे.

फिशिंग वेब : मुंबई पुलिस ने गोवंडी में रहने वाले अब्दुल रहीम उर्फ अब्दुल मजीद, मूसा गौस शेख को पकड़ा था जो बैंकों के फिश्ंिग वैब बना कर लोगों के बैंक खातों में सेंध लगाता था. इस का एक साथी एडवर्ड एंडूज, नाइजीरिया में बैठ कर भारतीय लोगों के बैंक खातों में सेंध लगाता था.

एडवर्ड अकाउंट अपडेट करने के बहाने लोगों से संपर्क करता था. इसे अंजाम देने के लिए एडवर्ड का साथ मुंबई के 2 लोग देते थे. उन की बातों में आ कर जो लोग बैंक से संबंधित गोपनीय जानकारी उन्हें भेज देते थे, उन के खाते से वे रुपए उड़ा लेते थे. इस गैंग ने कुछ ही दिनों में देश के हजारों लोगों को करोड़ों रुपए की चपत लगाई थी.

पायरेटेड सौफ्टवेयर का खतरा

सौफ्टवेयर : पायरेटेड सौफ्टवेयर का इस्तेमाल करने वालों के लिए सुरक्षा को ले कर हमेशा जोखिम बना रहता है. साइबर अपराधी पायरेटेड सौफ्टवेयर में ऐसे वायरस भेज देते हैं जो उपयोगकर्ता के कंप्यूटर में से सारे डाटा जमा कर लेते हैं. विन-32, बांकेस, जूस, नका आदि नौर्मल बैंकिंग मालवेयर्स हैं जिन्हें ट्रोजन्स कहा जाता है. बैंक खातों की चोरी के लिए इन का इस्तेमाल किया जाता है. जैसे ही पायरेटेड सौफ्टवेयर सिस्टम में लोड किया जाता है, ट्रोजन्स भी लोड हो जाता है. ट्रोजन्स प्रोग्राम के जरिए दूर बैठा साइबर अपराधी सारी जानकारी कैप्चर करना शुरू कर देता है, जिस में यूजर्स आईडी, पासवर्ड, पासबुक विवरण आदि शामिल हैं.

डैस्कटौप कुकीज : साइबर कैफे में बैठ कर किसी सिस्टम से इंटरनैट ट्रांजैक्शन करना काफी जोखिमभरा होता है. इस बात की गारंटी नहीं है कि साइबर कैफे में अधिकृत सौफ्टवेयर का उपयोग किया गया हो. पायरेटेड सौफ्टवेयर के वायरस से स्मार्ट हैकर डैस्कटौप कुकीज के द्वारा बैंक खातों की जानकारी ले लेते हैं.

लौटरी का प्रलोभन : साइबर जालसाजों द्वारा करोड़ों डौलर की लौटरी लगने के झूठे मैसेज भेजे जाते हैं. करोड़ों रुपए की लौटरी की सूचना मिलते ही जब कोई संपर्क करता है, अपराधी उस से बतौर सिक्योरिटी डिपौजिट, रजिस्टे्रशन, ट्रांसफर चार्ज, लीगल डाक्यूमैंट आदि के नाम पर बड़ी राशि हथिया लेते हैं.

टैलीमार्केटिंग : साइबर ठग टैलीमार्केटिंग या औनलाइन शौप के प्रतिनिधि बन कर डैबिड या क्रैडिट कार्ड धारक को विशेष छूट देने का प्रलोभन दे कर अपनी बातों में फंसा कर उन से पिन नंबर हासिल कर लेते हैं. इस के बाद वे इस का इस्तेमाल कर खुद बड़ीबड़ी खरीदारी कर लेते हैं. कार्डधारक को जब इस बारे में पता चलता है, वह ठगा सा रह जाता है.

सवाल यह आता है कि नैटबैंकिंग का इस्तेमाल करें या न करें. आज की व्यस्तता और समय की कमी की वजह से नैटबैंकिंग द्वारा लेनदेन एक जरूरत बन गई है. यदि आप धोखाधड़ी के शिकार हो गए हैं तो तत्काल पुलिस व बैंक को इस की शिकायत करें. आईडी ऐड्रैस की मदद से अपराधी के बारे में पता लगाया जा सकता है, लेकिन इस की भी सीमा होती है. एक तो 21 दिनों के बाद ऐड्रैस खोजना मुश्किल होता है. दूसरी बात, यदि भारत के बाहर से बैंक खाते में सेंध लगाई गई है तो इस तकनीक से अपराधी को पकड़ना मुश्किल है. तीसरी बात, जितनी बार लौगऔन और लौगऔफ होता है, अपराधी पुलिस की पकड़ से दूर होता जाता है. इसलिए नैटबैंकिंग का इस्तेमाल करते वक्त हमेशा सावधान रहने की जरूरत है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें