मेरी बेटी के पति भुलक्कड़ किस्म के हैं. कैमरा, फाइल, मोबाइल, चश्मा आदि कहीं भी रख कर भूल जाते हैं. जब उन की शादी की पहली वर्षगांठ थी तो केक का और्डर देने बेकरी शौप गए. उस दिन बहुत कीचड़ था क्योंकि असम में बारिश बहुत होती है. केक का और्डर देने के बाद स्कूटर स्टार्ट कर अपने काम पर निकल पड़े.

मेरी बेटी बड़ी भावुक किस्म की है. जरा सी बात पर आंसू टपकने लगते हैं. वह घर आई, टपटप आंसू गिर रहे थे. हम ने बहुत पूछा कि क्या बात है लेकिन  जवाब की जगह आंखों में भयंकर क्रोध नजर आ रहा था. 2 घंटे बाद मेरे जंवाई जब घर आए तो मेरी बेटी बम की तरह फटी, पति से बोली, ‘‘आप मुझे बेकरी शौप में इस कीचड़ में क्यों छोड़ कर आए?’’

उन्होंने सहमते हुए कहा, ‘‘मैं ने सोचा तुम स्कूटर के पीछे बैठ गई हो.’’

मेरी बेटी ने कहा, ‘‘अच्छा, मैं तो बड़ी फूल की तरह हलकी हूं न, जो आप को पता ही नहीं चला.’’

अब भला मेरे जंवाई क्या जवाब देते. वे दुबलेपतले हैं जबकि मेरी बेटी उन से मोटी है. इसलिए उन्होंने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी, चुपचाप डांट खाते रहे. दरअसल, हमारे जंवाई को तो कहीं दूरदूर तक भी याद न था कि वे अपनी पत्नी को बेकरी शौप ले कर गए थे और वहीं छोड़ आए. वह तो उन को जब डांट पड़ी तब याद आया.

-सुंदर देवी बाहेती

 

मेरे पति को मौल या मार्केट में कुछ आगे चलने की आदत है. मैं कई बार कहती हूं किसी से रेस लगाने थोड़े ही निकले हैं. लेकिन बिना आगेपीछे देखे चलते जाना उन की आदत है. कुछ दिन पहले रविवार को हम एक मौल में गए. बहुत ज्यादा भीड़ थी. वे आदतानुसार आगे बढ़ते गए. मैं कुछ पीछे थी. मैं ने ब्लू टौप और ब्लैक जींस पहनी हुई थी. भीड़ में ही पतिदेव ने किसी अन्य ब्लू टौप पहने स्त्री की कमर में हाथ डाल कर कहा, ‘‘जल्दी चलो न.’’

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