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लड़कियों की चिंता शहर में रहें कहां

कविता जब नईनई दिल्ली आई तो शुरू के दिनों में अपनी एक सहेली नीना के साथ होस्टल में बतौर गेस्ट रही पर इसी के साथ उस ने अपने लिए एक घर ढूंढ़ना भी शुरू कर दिया. वह किसी को जानती तो थी नहीं और न ही उस की सहेली के पास अपनी नौकरी के चलते इतना समय था कि वह उस के साथ घर ढूंढ़े. इसलिए नीना ने इस सिलसिले में एक प्रौपर्टी डीलर से बात की और उसे अपना बजट बताते हुए किस तरह का घर उसे चाहिए, यह भी बता दिया.

नीना छोटे शहर से आई थी और उस ने दिल्ली में आएदिन लड़कियों के साथ होने वाले हादसों के बारे में काफी सुन रखा था इसलिए जब प्रौपर्टी डीलर के साथ उसी की गाड़ी में घर देखने जाने की बात आई तो उस का मन तमाम शंकाओं से भर उठा. जैसेतैसे हिम्मत कर वह प्रौपर्टी डीलर की गाड़ी में बैठ कर घर देखने गई, उसे घर, जगह पसंद आ गई लेकिन यह जान कर हैरानी हुई कि मकान मालिक 3 महीने का किराया एडवांस मांग रहा है, साथ ही डीलर को भी 1 महीने के किराए के बराबर की रकम देनी पड़ेगी. खैर, इस के अलावा उस के पास कोई चारा नहीं था.

दिल्ली या देश के प्रमुख महानगरों में आने वाली हर नई युवती या युवक को इसी तरह का अनुभव होता है. नए शहर में नए लोगों के बीच तालमेल बैठाने के साथसाथ एक अच्छा कमरा ढूंढ़ना भी बहुत जरूरी हो जाता है. लड़कों के मुकाबले लड़कियों के लिए एक ढंग का कमरा ढूंढ़ना तो और भी मुश्किल काम है.

दिल्ली में 6 साल से रह रही कविता का कहना है कि यहां का एक प्रौपर्टी डीलर मेरा जानकार है और उसे यह भी पता है कि मुझे किस तरह का मकान चाहिए और किस तरह की जगह व लोगों के बीच चाहिए, फिर भी उस ने ऐसी गंदी जगह में ले जा कर गाड़ी रोकी जहां उस की गाड़ी भी बड़ी मुश्किल से पहुंच पाई. इस के बाद भी वह मुझ से बोला कि मैडम, थोड़ा समझौता तो आप को करना ही पड़ेगा.

कविता बताती है कि दिल्ली के अधिकांश प्रौपर्टी डीलरों की मकान मालिकों के साथ सांठगांठ होती है जो किराएदारों का साथ देने के बजाय मकान मालिकों का साथ देते हैं. इन लोगों का आपस में एक गुट है.

बचें धोखाधड़ी से

सपना की कहानी कुछ अलग है. वह बताती हैं, ‘‘मैं ने एक प्रौपर्टी डीलर के सहयोग से कमरा लिया था इसलिए कोई खास परेशानी नहीं हुई. कमरा दिलाते समय प्रौपर्टी डीलर ने यह भी कहा था कि यदि आप को कोई परेशानी हो तो आप मुझ से कह सकती हैं. बाद में मकान मालिक के साथ मेरी कुछ कहासुनी हो गई और जब मैं ने डीलर से संपर्क करना चाहा तो न तो उस का फोन मिला न ही वह कभी औफिस में मिला.’’ सपना आगे कहती है कि एक बार इन प्रौपर्टी डीलरों को कमीशन का पैसा मिल जाए तो उस के बाद ये किसी को याद नहीं रखते.

सपना की बातों से तो यही लगता है कि प्रौपर्टी डीलर के जरिए घर लेना किसी दुकानदार से कोई चीज खरीदने के समान है. एक बार आप खरीदा हुआ सामान ले कर उस की दुकान से निकल गए और रास्ते में या घर जा कर आप को पता चला कि चीज में कुछ कमी है, जाहिर है आप उस चीज को बदलने के लिए दुकान पर जाएंगे तो वह दुकानदार आप को पहचानेगा ही नहीं.

ठीक इसी तरह का धंधा लगभग सभी प्रौपर्टी डीलर करते हैं. एक बार इन के हाथ में पैसा आ जाए फिर न तो इन का फोन मिलता है न ही ये खुद मिलते हैं. इसलिए जरूरी है कि मकान लेते समय इन से सारी बात साफ कर ली जाए. अब साक्षी के मामले को ही देखिए. वह जब यहां आई तो सिर्फ 10 हजार रुपए अपने साथ लाई थी. उस की नौकरी लग चुकी थी. उस ने सोचा कि कुछ दिनों तक किसी गेस्ट हाउस में रह लेगी और इस बीच अपने लिए कोई रहने का भी ठिकाना ढूंढ़ ही लेगी.

साक्षी बताती हैं, ‘‘मुझे इस शहर के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. न ही मेरी जानपहचान का यहां कोई रहता था इसलिए मैं ने 3 प्रौपर्टी डीलरों से बात की. पहले डीलर ने जो घर दिखाया वह मुझे अच्छा नहीं लगा. दूसरे डीलर के साथ घर देखने जाने के लिए मैं उस के औफिस पहुंची. वह मुझ से बातें करने लगा. बातें करतेकरते उस ने अटपटा सा मजाक किया. मुझे उस का व्यवहार बड़ा अजीब लगा. मैं ने उसे बुरी तरह डांटा और वहां से चली आई. तीसरे डीलर ने जो घर दिखाया वह मुझे अच्छा लगा, मैं ने वहां रहना शुरू कर दिया.’’

वह आगे बताती है, ‘‘1 महीने तक तो मुझे वहां कोई परेशानी नहीं हुई पर दूसरे महीने में मकान मालिक ने तंग करना शुरू कर दिया. इस बीच मुझे यह भी पता चला कि मुझ से पहले इसी घर में उस प्रौपर्टी डीलर ने 3 अलगअलग लड़कियों को एकएक कर के ठहराया था जिन में से कोई 15 दिन तो कोई 1 महीने रह कर चली गई.’’ रितिका और शिवांगी को बतौर पेइंग गेस्ट मकान लेने में इस तरह की कोई परेशानी नहीं हुई क्योंकि उन्होंने घर अपने रिश्तेदारों के माध्यम से लिए थे.

किसी अन्य शहर से आई नई युवतियों को कोशिश करनी चाहिए कि अगर वे किसी प्रौपर्टी डीलर के पास जाएं तो अकेली न जाएं, किसी सहेली या जानकार को अपने साथ ले कर ही जाएं. नए शहर में अनजान लोगों पर विश्वास कर के उन के साथ कहीं भी चल पड़ना खतरे से खाली नहीं है. डीलर को पहले ही बता दें कि कम आबादी वाली जगह में आप को घर नहीं चाहिए. किसी को यह न महसूस होने दें कि आप इस शहर में नई हैं.

किसी के कहने में या उस की चिकनीचुपड़ी बातों में न आएं. मकान मालिक व प्रौपर्टी डीलर से साफसाफ बात करें. मौखिक रूप से हुई बातचीत पर कतई विश्वास न करें. अच्छा होगा कि आप रेंट एग्रीमैंट बना लें, जिस में बिजली व पानी के बिल के बारे में साफसाफ लिखा हो. इस से आप को काफी फायदा मिलेगा

सूक्तियां

पिता

बूढ़े होते हुए पिता के लिए बेटी से बढ़ कर कोई व्यक्ति प्यारा नहीं होता. बेटों में उच्छृंखलता होती है, और वे मधुर स्नेह को नहीं जानते.

मधुर

मधुर स्वभाव रखने वाले सब से ज्यादा खुश उस समय होते हैं, जब दूसरों को वे अपनी खुशियों में शामिल कर लेते हैं.

जिंदगी

जिंदगी कितनी ही छोटी हो, वक्त की बरबादी से वह और भी छोटी बना दी जाती है.

निर्धनता

निर्धनता मनुष्य की बुद्धि को भ्रष्ट कर देती है और अत्यंत दुखदायी कोड़े के समान दुख देती है.

पतिपत्नी

अधिकांश पुरुष स्त्रियों में वह खोजते हैं, जिस का स्वयं उन के चरित्र में अभाव होता है.

झूठ

जिस की स्मरणशक्ति अच्छी नहीं है, उसे झूठ बोलने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए.

प्रशंसा

अयोग्य मनुष्यों की प्रशंसा छिपे हुए व्यंग्य के समान होती है.

वाइफ फ्लू

हमें इतना डर स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू और इबोला से नहीं लगता जितना आजकल वाइफ फ्लू से लगता है, लेकिन हमें बचपन से ही सिखाया गया है, मुसीबत से परेशान नहीं होना चाहिए, बल्कि उस के भी मजे लेने चाहिए. वाइफ फ्लू के बारे में भी हम ने महसूस किया है कि बाकी फ्लू तो देरसवेर ठीक हो जाते हैं, लेकिन वाइफ फ्लू का कोई तोड़ नहीं है. इस मामले में हमारा पहला अनुभव ही काफी रोमांचक रहा है. हां, तो हुआ यों कि कुंआरेपन में हमें मूंछें रखने का शौक था, लेकिन सुहागरात को वाइफ ने पहला वार मूंछों पर ही किया और साफसाफ शब्दों में कह दिया कि देखो जी, मूंछें रखना अब भूल जाओ, आज के बाद चेहरे पर मूंछें नहीं होनी चाहिए, समझे न.

हम ने इसे कोरी धमकी समझा और दिनभर दोस्तों के बीच मूंछें ऊंची किए घूमते रहे, लेकिन अगली सुबह सो कर उठने के बाद आईने में मूंछविहीन चेहरा देख कर हम सहम गए और समझ गए कि यह ‘समझे न’ की ही करामात है. हम समझ गए कि वाइफ जो कहती है, उसे कर के भी दिखा देती है, इसलिए इसी में भलाई है कि अब बाकी की जिंदगी श्रीमतीजी का चरणदास बन कर गुजारी जाए. अगली सुबह हम अभी आधे घंटे और सोने के मूड में थे, तभी शादी के पहले की झंकार वाली आवाज की जगह एक गरजती आवाज आई, ‘देखो जी, बहुत आराम हो गया, चलो उठो, नल में पानी आ गया है, पहले पानी भरो, इस के बाद सब्जी लेन भी जाना है.’

फिर थोड़े प्यार से बोली, ‘देखो जी, सब से पहले चाय बना लाओ, साथ ही पीएंगे.’

गरम हवाओं के बाद ठंडी सी फुहार ने हमें राहत पहुंचाई और हम दौड़ते हुए रसोई की तरफ भागे. अब हमारे लिए यह शोध का विषय हो गया कि आखिर वाइफ फ्लू होता क्या है? यह आता क्यों है? इस के लक्षण क्या हैं और इस के वायरस कहां से फैलते हैं? गहन शोध करने पर हम ने पाया कि वाइफ फ्लू को सहन करना पति की सहनशक्ति पर निर्भर करता है.

  1. वाइफ फ्लू से पीडि़त पति के निम्न लक्षण होते हैं :
  2. वाइफ फ्लू की चपेट में आया पति हमेशा डरा सा रहता है.
  3. पति की बोलने की शक्ति क्षीण होती जाती है, परंतु श्रवण शक्ति बढ़ जाती है.
  4. वाइफ फ्लू से पीडि़त पति ज्यादा से ज्यादा समय घर से बाहर गुजारने लगते हैं.
  5. जिंदगी में बद से बदतर स्थितियों में भी जीने का जज्बा रखते हैं.
  6. वाइफ फ्लू से पीडि़त पतियों में काम करने की आदत सी पड़ जाती है और उन्हें थकान महसूस नहीं होती है.
  7. कोल्हू के बैल की तरह काम करते हुए वे वाइफ से प्रशंसा पाने के भूखे रहते हैं.
  8. ऐसे पतियों को वैसे तो गुस्सा कम आता है, लेकिन ये मन ही मन कुढ़ते रहते हैं.

वाइफ फ्लू के वायरस के बारे में शोध करने पर कुछ मजेदार बातें सामने आई हैं :

  1. इस फ्लू के वायरस शादीब्याह की जगहों पर बहुतायत से पाए जाते हैं.
  2. कुंआरे लड़कों पर एकदम अटैक करते हैं.
  3. ये वायरस पहले मीठे सपने दिखाते हैं, फिर सपने को साकार करने की ललक जगाते हैं, इस के बाद जिंदगी को रोगी बना देते हैं.
  4. इस वायरस को फैलाने में दुलहन की बहन और सहेलियां मुख्य भूमिका निभाती हैं और भाभियां हवा देती हैं.
  5. ये वायरस आंखों से अंधा बना देते हैं. और अच्छाबुरा सोचने की शक्ति खत्म कर देते हैं.

इस शोध के बाद जब हम ने अपनी स्थिति के बारे में सोचा तब पाया कि हमारी शादी के समय भी जब हमारी भाभी ने हमें इशारे से एक कमसिन, नाजुक सी लड़की को दिखाते हुए, हमारे अरमान जगाए थे, तब हम हवा में ऐसे उछले थे कि सीधे उसी के पास जा कर गिरे थे. लेकिन हम ने अपने दोस्तों को वाइफ फ्लू से जूझते देखा था, इसलिए दूरियां बनाने की कोशिश करने लगे, तब उस ने बड़ी नजाकत के साथ कहा, ‘तुम तो मुझ से ऐसे डर रहे हो जैसे मैं कोई चुड़ैल हूं. अरे भौंरा भी मुहब्बत में अपनेआप को कुरबान कर देता है, तो फिर तुम तो इंसान हो, हमारी मुहब्बत की कीमत समझो.’

जिस अंदाज में उस ने ये बातें कही थीं, हम अपना आपा खो बैठे थे और फिर तो हम भंवरे की तरह उस के आगेपीछे घूमने लगे. बस, इस के बाद वह हमारे वायरस लगने से खुश हो गई और गाने लगी, ‘बहारो फूल बरसाओ, मेरे पति को वाइफ फ्लू होने वाला है…’

खैर, जनाब जैसा कि हम ने पहले भी जिक्र किया है कि इस के वायरस सीधे अटैक करते हैं और बचने का कोई मौका नहीं देते हैं तो हमारी शादी तो होनी थी, सो हो गई, और इस के बाद हम वाइफ फ्लू में जकड़ते गए.

हम ने महसूस किया है कि इस वायरस की चपेट में आने पर कुछ उपाय करते रहना चाहिए, जोकि पेनकिलर का काम करेंगे और वायरस का दर्द कम हो जाएगा, फिर पति लोग धीरेधीरे इस के आदी हो जाएंगे.

वाइफ फ्लू से बचने के उपाय

  1. वाइफ फ्लू से पीडि़त पति को अपनी श्रीमतीजी की तारीफ करते रहना चाहिए जिस से कि वायरस को अटैक करने का मौका कम मिल पाए.
  2. पति को श्रीमतीजी की हां में हां मिलानी चाहिए, जो कि ऐंटीबायोटिक्स की डोज का काम करता है, इस में कमी होने पर वायरस को मजबूत होने का मौका मिल जाता है.
  3. जब श्रीमतीजी की सहेलियां या मायके के लोग आएं तब भागदौड़ कर घर के काम करने चाहिए, जब वे लोग पति की तारीफ करें तब कुछ दिन तक वाइफ फ्लू कंट्रोल में रहता है.
  4. जब श्रीमतीजी मेकअप कर के बाजार जाएं तब एक कंधे पर झोला और दूसरे कंधे पर बच्चों को लादने में देरी नहीं करनी चाहिए इस में देरी होने पर श्रीमतीजी के क्रोध के साथ ही वायरस सक्रिय होने लगते हैं.
  5. जब वाइफ किसी सामान को पसंद कर रही हो व मोलभाव कर रही हो, तब बीच में टांग नहीं अड़ानी चाहिए.
  6. श्रीमतीजी के साथ बाजार जाते समय भरपूर पैसे रखने चाहिए और खर्च करने में कंजूसी नहीं दिखानी चाहिए.
  7. पीडि़त पति को अपने बचाव के लिए सुबह से शाम तक अपनी पत्नी के नाम का जाप करते रहना चाहिए.
  8. यदि दिन अच्छा नहीं हो तो औफिस से छुट्टी ले कर श्रीमतीजी की सेवा में दिन गुजार देना चाहिए.

वाइफ फ्लू पर हमारा शोध चरम पर था, तभी श्रीमतीजी की आवाज से हम फिर सहम गए.

‘‘चलो, जल्दी उठो, बहुत आलसी हो गए हो. आज इतवार है, इस का मतलब यह नहीं कि बिस्तर पर पड़े रहोगे.’’

घर के काम करते हुए, कपड़े सूखने डालने और उठाने के लिए हम बारबार छत पर जाते थे. वहां हमारी मुलाकात पड़ोस की मिसेज पिल्लई से हो जाया करती थी. एक दिन उन्होंने प्यार से कहा, ‘मिस्टर निरंजन, तुम बहुत हिम्मतवाला, तुम इतने दिनों से वाइफ फ्लू से बीमार होने के बाद भी कैसे दौड़दौड़ के काम करता. सच में अपुन को तुम्हारे जैसा हसबैंड मांगता…’

मिसेज पिल्लई की सहानुभूतिभरी बातों से हम गद्गद हो गए और बोले, ‘‘आप कोई चिंता नहीं करने का, जब आप बोलेगा, हम हाजिर होगा.’’

अब मिसेज पिल्लई का प्यार हमारे लिए ऐंटीबायोटिक की डोज हो गया था, जो हमें वाइफ फ्लू से निबटने की ताकत दे रहा था और हमारा अधिकतर समय छत पर गुजरने लगा.

एक दिन मिसेज पिल्लई की कामवाली रमिया बाई ने हमारी मुलाकातों वाली बात श्रीमतीजी को बता दी. हमारी श्रीमतीजी की मिसेज पिल्लई से नहीं पटती थी, अब हमारी और मिसेज पिल्लई की मुलाकात ने आग में घी का काम किया. बस, उसी दिन उन्होंने रमिया बाई को हमारी जासूसी और घर के काम के लिए रख लिया और हमें घरेलू कामों से आजाद किया. उस दिन के बाद से हमारा वाइफ फ्लू तो ठीक हो गया, लेकिन उस ने मिस्टर पिल्लई को जकड़ लिया.

महायोग : छठी किस्त

‘‘जी, कहिए न डाक्टर साहब,’’ कामिनी ने कहा तो पर उस के भीतर कुछ उथलपुथल होने लगी.

‘‘समझ में नहीं आ रहा है कि आप से कैसे कहूं, बात यह है कि औपरेशन के दौरान यशेंदुजी की दाहिनी टांग काट देनी पड़ी थी. मिसेज कामिनी, आप को ही संभालना है सबकुछ.’’

कामिनी को एकाएक चक्कर आने लगे और वह धम्म से सोफे पर बैठ गई. कामिनी के कंधे पर हाथ रख कर उन्होंने कहा, ‘‘प्लीज, आप जरा संभलें, देखिए, मांजी आ रही हैं.’’

कामिनी तो मानो कुछ सुन ही नहीं पा रही थी. उस का मस्तिष्क घूम रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था, आखिर हो क्या रहा है. उस की आंखों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी और वह महसूस करने लगी मानो स्वयं अपंग हो गई है. उसे अपने सामने यश का एक टांगविहीन शरीर दृष्टिगोचर होने लगा. डाक्टर तब तक कामिनी को सांत्वना दे ही रहे थे कि धीरेधीरे डग भरती हुई मांजी वापस आ गईं.

‘‘फिक्र मत कर बहू. मैं देख कर आई हूं यश को. जल्दी ही वह ठीक हो कर घर आ जाएगा,’’ मांजी ने कामिनी को सांत्वना देने का प्रयास किया. वे यश को लेटे हुए देख कर आई थीं और पुत्रमुख देख कर उन्हें थोड़ी तसल्ली सी हुई थी.

क्या बताती कामिनी उन्हें? वह कुछ भी बताने या कहनेसुनने की स्थिति में नहीं थी. सो, टुकुरटुकुर सास का मुंह देखती रही. मांजी स्वयं ही बोलीं, ‘‘कामिनी बेटा, ड्राइवर को फोन कर दो. आ कर मुझे ले जाए. घर जा कर देखती हूं, दिया का क्या हाल है? फिर आती हूं,’’ उन के कंपकंपाते शरीर को देख कर कामिनी ने अपने आंसू पोंछ डाले.

मां के जाने के बाद कामिनी अकेली रह गई. कैसे पूरी परिस्थिति का सामना कर पाएगी वह? मांजी के साथ ही दिया, दीप, स्वदीप सब को संभालना…कैसे…?

‘‘मैडम, कौफी,’’ कामिनी ने देखा कि एक वार्ड बौय कौफी ले कर खड़ा था.

‘‘नहीं, मैं ने कौफी नहीं मंगवाई.’’

‘‘मैं ने मंगवाई है, मिसेज कामिनी, थोड़ा सा खाली हुआ तो सोचा कौफी पी ली जाए,’’ डा. जोशी उस के पास तब तक आ चुके थे.

‘‘डाक्टर साहब, मुझे जरूरत नहीं है, थैंक्स,’’ कामिनी ने संकोच से कहा और अपनी आंखों के आंसू पोंछ डाले.

‘‘कोई बात नहीं. बहुत से काम कभी बिना जरूरत के भी करने पड़ते हैं,’’ डाक्टर ने वातावरण सहज बनाने का प्रयास किया.

कामिनी ने बिना किसी नानुकुर के कौफी का मग हाथ में तो पकड़ लिया.

‘‘देखिए मिसेज कामिनी, स्वस्थ तो आप को रहना ही पड़ेगा. इस समय स्थिति ऐसी है कि अगर आप स्वस्थ नहीं रह पाईं तो आप का पूरा परिवार अस्तव्यस्त हो जाएगा. मैं अभी देख कर आ रहा हूं और यशेंदुजी की स्थिति से लगता है उन्हें एकाध घंटे में होश आ जाना चाहिए. आप उन से मिल कर घर चली जाइए. हम आप को इन्फौर्म करते रहेंगे. उन्हें आईसीयू से प्राइवेट रूम में शिफ्ट करना है. उन की टांग का फिर औपरेशन करना होगा और लगभग 2-3 महीने बाद उन की आर्टिफिशियल टांग लगेगी. लेकिन इस बीच उन की पूरी सारसंभाल की जरूरत है. इस सब के लिए आप को मजबूत होना ही होगा. यू हैव टू बी ब्रेव, मिसेज कामिनी,’’ डा. जोशी सोफे से उठ खड़े हुए.

‘‘कामिनी मुंहबाए उन्हें जाते हुए देखती रही.

लगभग 2 घंटे बाद यश को होश आया. नर्स ने आ कर बताया. डाक्टर की स्वीकृति से कामिनी पति को देखने अंदर गई. यश उसे देख कर हलका सा मुसकराए, टूटेफूटे शब्दों में बोले, ‘‘मैं ठीक हो जाऊंगा कामिनी, चिंता मत करो.’’

कामिनी आंसुओं को संभालती हुई यश के बैड के पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई और उस का हाथ अपने हाथ में ले कर सहलाने लगी. यश अभी गफलत में थे. कभी आंखें खुलतीं, कभी बंद होतीं. आंखें खुलने पर कामिनी को देख कर मुसकराहट उन क मुख पर फैल जाती, फिर तुरंत ही आंखें मुंद जातीं. दवाओं का बहुत गहरा प्रभाव था यश पर. कामिनी ने सोचा, अभी यहां उस का कोई काम नहीं है. घर भी देख आए जरा. तभी एक काली बिल्ली कामिनी का रास्ता काट गई. कामिनी का दिल धकधक करने लगा. क्षणभर को तो वह ठिठक गई क्योंकि मांजी साथ होतीं तो कलेश खड़ा कर देतीं.

आटो रिकशा में बैठ कर वह फिर अपने अतीत में खोने लगी. उस के पिता ने श्राद्ध के दिनों में गौना करवाया था. नए विचारों के पिता इन सब अंधविश्वासों में कहीं से भी फंसना नहीं चाहते थे. उन के नातेरिश्तेदारों, मित्रों ने उन्हें बहुत रोकाटोका. पर वे मानो हिमालय की भांति अडिग रहे. सोने पर सुहागा यह रहा कि कामिनी के नाना स्वयं इन्हीं विचारों के थे. कामिनी ने अपने पिता के घर में जो सहजता व सरलता का जीवन जीया था, जो रिश्तों के जुड़ाव देखे थे, जिस शालीनता के साथ स्वतंत्रता की अनुभूति की थी और जिन संबंधों की समीपता के आंतरिक एहसास के उजाले में वह बचपन से युवा हुई थी, उन से ही उस के व्यक्तित्व का विकास हुआ था.

दिया ने शायद कामिनी को अंदर से ही देख लिया था. वह दौड़ कर बरामदे में आ गई, ‘‘मां, पापा कैसे हैं अब?’’ वह बहुत घबराई हुई थी.

कामिनी ने दिया को अपने से चिपटा लिया, ‘‘अच्छे हैं बेटा, ही इज बैटर. अच्छा, भाइयों को फोन किया या नहीं?’’

‘‘जी मां, दोनों भाई रात को पहुंच जाएंगे. मां, मैं पापा से मिलना चाहती हूं,’’ बिना रुके दिया बोले जा रही थी.

‘‘हां, पापा होश में आ गए हैं. तुम मिल आना पापा से,’’ कामिनी बोली.

घर में बने मंदिर से पंडितों की जोरदार आवाजें आ रही थीं. कोई पाठ कर रहे थे शायद. मां भी जरूर वहीं बैठी होंगी. कितनेकितने भय बैठा कर रखता है आदमी अपने भीतर. बीमारी का भय, लुटने का भय, चोरी का भय, दुर्घटना का भय, चरित्र खो जाने का भय…बस हम केवल भय ही ओढ़तेबिछाते रहते हैं जीवनभर. क्यों? इस समय पाठ करते हुए स्वर उसे बेचैन कर रहे थे. मांजी की हिदायत उस ने बरामदे में माली से ही सुन ली थी. ‘‘मेमसाब, माताजी ने बोला है आप के आते ही सब से पहले आप को मंदिर में भेज दूं. कुछ…क्या बोलते हैं उसे…कुछ संकल्प करवाना है आप से.’’

परंतु कामिनी ने मानो कुछ सुना ही नहीं था. वह अपने मन के हाहाकार को छिपा कर अपने कमरे में जा कर सीधे बाथरूम में घुस कर शावर के नीचे पहुंच गई थी. सिर को शावर के नीचे कर के कामिनी ने अपनी आंखें बंद कर ली थीं. उसे तो यह संकल्प लेना था कि अपने टूटते हुए घर की चूलें कैसे कसेगी? उस की दृष्टि में दिया, स्वदीप, दीप व मांजी के चेहरे पानी में उथलपुथल से होने लगे. मानो उस की आंखें कोई गहरा समंदर हों और ये सब खिलौने से बन कर उस समंदर की लहरों के बीच फंस गए हों. कैसे बचाएगी उन्हें गलने से? न जाने कितनी देर वह उसी स्थिति में शौवर के नीचे खड़ी रही थी.

जीवन में बाधाएं तो आती ही हैं. जीवन कभी सपाट, सरपट, चिकनी सड़क सा नहीं होता. उस में बड़ी ऊबड़खाबड़ जमीन, नीचीऊंची सतह, कंकड़पत्थर और यहां तक कि छोटीबड़ी पहाडि़यां और बड़े पर्वत भी होते हैं जिन्हें मनुष्य को बड़े संयम और तदबीर से पार करना होता है. ये सब प्रत्येक के जीवन में आते हैं, इन से ही मनुष्य अनुभव बटोरता है, सीखता है. आगे बढ़ने के लिए नए मार्गों की खोज करता है. यदि नए मार्ग ढूंढ़ने के स्थान पर वह एक स्थान पर बैठा सबकुछ पाने की प्रतीक्षा करता रहे तो एक क्या, कई जन्मों तक उसी स्थिति में बैठा रहने पर भी उसे कुछ नहीं मिलता. लेकिन यहां तो कहानी ही अलग थी. यश के परिवार में बात कुछ इस प्रकार बन गई है कि ‘आ बैल मुझे मार.’ अरे, जब आप किसी के बारे में कुछ अधिक जानते नहीं, उसे पहचानते नहीं तो केवल जन्मपत्री के मेल से कैसे अपने जिगर के टुकड़े को किसी को सौंप सकते हैं? यह बात नहीं है कि पहचान होने से रिश्तों में कड़वाहट पैदा नहीं होती परंतु बुद्धिमत्ता तो इसी में है न, कि सही ढंग से जांचपड़ताल कर के बच्ची को सुरक्षित हाथों में सौंपा जाए, न कि अनाड़ी लोगों के द्वारा बनाए गए ग्रहों के मिलाप को ही सर्वोपरि मान लिया जाए.

कामिनी के जीवन का मार्ग और भी कठिन होता जा रहा था. अब उसे किसी न किसी प्रकार अपने हिसाब से जीना होगा. दिया का विवाह तो बहुत बड़ी त्रुटि हो ही चुकी थी. भारतीय समाज, मान्यताओं व परंपराओं के अनुसार, मांजी की यह बात उस के मस्तिष्क में नहीं उतरती थी कि वह दिया को अपने हाल पर छोड़ दे. मां थी आखिर… कुछ तो निर्णय लेना ही होगा. यश पिता हैं, उन्होंने कदम उठाना चाहा तो परिस्थिति गड़बड़ा गई. इसी उलझन में उलझ कर यश इस स्थिति में पहुंच गए और सारा बोझ कामिनी के कंधों पर आ गया. कामिनी पसोपेश में आ गई थी पति की अवस्था और बिटिया के बारे में सोच कर.दीप और स्वदीप उसी दिन पहुंच गए थे और जिद कर के वे दोनों रात में ही अस्पताल पहुंच गए थे. रात भर करवटें बदलते हुए कामिनी कभी पति और कभी बेटी के बारे में सोचती रही. उस के समक्ष कितने ही घुमावदार, टेढ़ेमेढ़े रास्ते थे और किस समय, कैसे, कब, उन पर चलना था, वह नहीं जानती थी.

जैसेतैसे रात बीती. पौ फटी. उस ने दिया की ओर देखा. मासूम दिया उस के पास सोई थी. रात में बहुत देर तक वह पापा के पास रही थी, दीप उसे घर छोड़ गया तब उस ने बड़ी कठिनाई से कामिनी के जिद करने पर दोचार कौर मुंह में डाल लिए और सोने का बहाना कर के बिना कपड़े बदले ही मां के पलंग पर लेट गई थी. आंसुओं की लकीरें उस के गालों पर निशान बना गई थीं. मांजी को भी बड़ी मुश्किल से मना कर लाई थी कामिनी. दो कौर पानी के सहारे गले में उतार कर वे अपने कमरे में कैद हो गई थीं. दिया ने उन की नौकरानी को विशेष हिदायत दी थी उन की दवाओं आदि के बारे में. वैसे भी वह नौकरानी उन के कमरे में ही सोती थी, इसलिए सब जानती थी. घर में जैसे एक सूनापन पसर गया था. बदन टूट रहा था फिर भी कामिनी बिस्तर पर लेट नहीं पाई.

घर के महाराज और नौकर को बता कर बिना मां व दिया से कुछ कहेसुने, कामिनी घर से निकल आई थी.   

– क्रमश:

नाम तुम्हारा

पास रहो या रहो दूर
नाम तुम्हारा माथे का सिंदूर
भरी है मांग तुम्हारे नाम से
मुझे नहीं चाहत जहान से

प्यार तुम्हारा है ऐसा भरपूर
नाम तुम्हारा माथे का सिंदूर
कोई हंसेकुढ़े मुझे परवा नहीं
तुम हो मेरे, दूसरे की चाह नहीं

लगता सारा जग सुंदर रसचूर
नाम तुम्हारा माथे का सिंदूर.

– महावीर सिंघल

दूर कहीं चली जाऊं

मन करता है दूर कहीं चली जाऊं
यहां से दूर, कहीं बहुत दूर
इतनी दूर जहां न छू पाए दुखदर्द
आघात-प्रतिघात

यहां तो है बस दर्द ही दर्द
घुटन, पीड़ा और संत्रास
कितनी ही कोशिश कर लो
हारना ही है अपनों से

तो कभी अपने आप से
हारना अच्छा नहीं लगता
कामना है जीतने की
तभी तो जाना है दूर कहीं

जहां न कोई जान पाए
न पहचान पाए
न पहुंचा पाए ठेस
न दुखा पाए मन.

– सुधा शुक्ला

ऐसा भी होता है

पड़ोसी की लड़की की डिलीवरी हुई और लड़का हुआ. नागपुर के जिस अस्पताल में डिलीवरी हुई वह बच्चों की चोरी के लिए पिछले दिनों काफी कुख्यात रहा था. अस्पताल में लड़की के साथ उस की मां रुकी हुई थी. एक दिन लड़की बैड पर सोई थी. नवजात शिशु रो रहा था. लड़की की मां से रहा नहीं गया. वह बच्चे को ले कर डाक्टर को दिखाने गई. उस के इस काम का असर उलटा हुआ. हुआ यों कि नर्सों ने लड़की की मां पर ही इलजाम लगा दिया कि तू यहां बच्चा चोरी करने आई है.

बहुत हंगामा हुआ. सभी वार्ड्स में जांच हुई कि कोई बच्चा चोरी तो नहीं हुआ या लापता तो नहीं है. कागजी खानापूर्ति हुई. लड़की की मां रोनेधोने लग गई. उस का बहुत बुरा हाल था. जिस का बच्चा था उस का रोतेरोते बुरा हाल था. अपना बच्चा है, यह बात सिद्ध करने के लिए उस के पास कोई सुबूत नहीं था. बस, एकमात्र उपाय यही था कि अस्पताल से कोई बच्चा लापता नहीं हुआ हो. दिनभर कागजी कार्यवाही होती रहने के बाद ही बच्चा वापस मिल सका.  

संजय कुमार मेश्राम, नागपुर (महा.)

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बैंक में टोकन ले कर अपना नंबर आने के इंतजार में लोग बैठे थे. वहीं पर बैठे एक पंडितजी ने अपनी ओर सब का ध्यान आकर्षित करते हुए पास में बैठे युवक से कहा, ‘‘बेटा, पढ़ रहे हो?’’

‘‘नहीं, पंडितजी, कंपनी में सर्विस कर रहा हूं.’’

‘‘बेटा, तुम्हारे हाथ की रेखाएं आने वाले समय में मुसीबत की ओर संकेत कर रही हैं. किसी विपत्ति में फंस सकते हो.’’

युवक ने हाथ खींचते हुए कहा, ‘‘मैं कर्म पर विश्वास करता हूं, भाग्य पर नहीं.’’

‘‘आने वाली समस्या से तुम्हें सचेत कर दिया. मैं ने जो कहा, वह सोलह आने सही निकलेगा. तब तुम मुझे जरूर याद करोगे.’’

जब उन का नंबर आया, उन्होंने काउंटर पर रुपए जमा करने के लिए दिए. मशीन में से जांच हो कर निकले 500 रुपए के नोटों में से कुछ नकली थे. कैशियर ने कहा, ‘‘पंडितजी, लगता है दानदक्षिणा में आप को नकली रुपए मिल गए.’’

तभी उस युवक ने कहा, ‘‘अभी आप बैठे हुए दूसरों का भविष्य बखान कर रहे थे पर यहां तो आप का वर्तमान ही चौपट हो गया और आप को पता ही नहीं चला. क्या आप ने अपने हाथ की रेखाएं नहीं देखी थीं?’’

अब पंडितजी की शक्ल देखने लायक थी. वे ठगे जाएंगे, यह उन्होंने भी नहीं सोचा था.

उषा श्रीवास्तव, इंदौर (म.प्र.)

जीवन की मुसकान

मेरी चाची के 21 वर्षीय इकलौते बेटे अतुल को गले का कैंसर था. वह कुछ ही महीनों का मेहमान था. यह जान कर हम सब बहुत दुखी थे. खासकर चाची, जो विधवा थीं. उन्हें उसी का सहारा था. समय के साथ अनुज की हालत बिगड़ती चली गई तो चाची ने एक अहम फैसला लिया कि अनुज की आंखें दान कर दी जाएं. समय रहते हमें एक नेत्रहीन बच्चा मिल गया जिसे आंखों की जरूरत थी. अनुज की मृत्यु के कुछ घंटों बाद उस बच्चे में औपरेशन द्वारा अनुज की आंखें ट्रांसप्लांट कर दी गईं. अनुज हमेशा के लिए इस संसार से चला गया पर आज भी वह उस बच्चे की नजरों से दुनिया देख रहा है. चाची के इस फैसले ने मेरे दिल को छू लिया और मैं ने भी नेत्रदान करने का फैसला ले लिया. \

बृजेश कुमार पांडे, बर्दवान (प.बं.)

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मैं ने एक ज्वैलर से चेन खरीदी थी. कुछ दिन पहनने के बाद ही उस का रंग बदल गया. मैं उस को बदलने के लिए उसी ज्वैलर के पास जा रही थी. मैं ने चेन को एक पाउच में रखा. चेन 25 ग्राम की थी. मैं कुछ और भी खरीदना चाह रही थी. मेरे पास सोने का टूटाफूटा जो सामान रखा था उस को भी ले लिया. सबकुछ मिला कर लगभग 50 ग्राम सोना था. एहतियातन मैं ने पाउच में सब सामान रख कर एक पर्स में रखा, फिर उसे एक बड़े पर्स में रख कर ले गई. ज्वैलर के यहां जरूरत से ज्यादा भीड़ थी. मैं ने उसे चेन दिखाई तो वह बोला, ‘‘आप कुछ भी पसंद कर लीजिए, मैं बदल दूंगा.’’ उस दिन मुझे कुछ पसंद नहीं आ रहा था. वह बोला, ‘‘चेन आप अपने पास ही रखिए, जब दूसरी लीजिएगा तभी मैं यह लूंगा.’’ मैं ने उन्हें पाउच से निकाल कर एक पैंडेंट नग लगाने के लिए दिया और जल्दबाजी में रिकशा कर के घर आ गई.

उन्होंने मुझे 2-3 दिन बाद बुलाया था. इसलिए जब मैं जाने को हुई और सामान चेक करने के लिए पर्स खोला, तो मेरे होश उड़ गए. उस में से पाउच नदारद था. मैं अपनी याददाश्त पर बहुत जोर देती रही परंतु पाउच के बारे में कुछ भी याद नहीं आया. ज्वैलर के पास पैंडेंट लेने के लिए मैं पहुंची. उस ने पैंडेंट दे दिया. वापस चलने लगी तो वह बोला, ‘‘आप का कोई सामान खो गया है क्या?’’ मैं चौंक कर बोली, ‘‘हां, उस दिन मेरा पाउच कहीं गिर गया था.’’

उस ने मुझ से उस के अंदर के सामान के बारे में पूछा. मैं ने उसे झट से सब बता दिया. उस ने बताया कि एक महिला ने पाउच उठाया. उस ने खोल कर चेन निकाली. उस के हाथ में चेन देख कर मैं तुरंत पहचान गया कि यह आप की चेन है और मैं ने उस से पाउच ले लिया. उस दिन जो खुशी मुझे मिली उस का वर्णन करना आसान नहीं है.

पद्मा अग्रवाल, इटावा (उ.प्र.)

मेरे पापा

बात मेरे जन्म के समय की है. दूसरी बार बेटी के जन्म पर घर के बड़ेबूढ़ों के चेहरे लटक गए थे. कई तरह की टिप्पणियां की जा रही थीं. ‘फिर से बेटी आ गई, बाप के कंधों पर दहेज का बोझ बढ़ गया.’ और भी न जाने क्याक्या. मेरे बाबूजी कमरे में गए और अपनी दोनाली बंदूक ले आए. वे पुलिस में दारोगा थे. आंगन में आ कर हवा में 2 गोलियां दागीं और चिल्ला कर अपने बुजुर्गों से कहा, ‘‘मेरी बेटी है, आप सब के सिर में दर्द क्यों हो रहा है? मैं तो खुश हूं कि पहले एक ही लक्ष्मी थी, अब 2-2 हो गईं. अब किसी ने भी मेरी बेटी के लिए अपमानजनक शब्द मुंह से निकाला तो मैं बरदाश्त नहीं करूंगा.’’ सब की बोलती बंद हो गई. बरसों बाद अपनी बूआ से इस घटना के बारे में सुन कर मैं रो पड़ी थी. पापा के कहे गए एकएक शब्द मेरे हृदय में आज भी अंकित हैं. ऐसे थे मेरे बाबूजी. उन्होंने कभी भी हम बहनों को बोझ नहीं समझा.

दीपाश्री मिश्रा, मुंबई (महा.)

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मेरे पापा डीएसपी पद से रिटायर हुए थे. अपने काम व ड्यूटी के प्रति हमेशा सजग व कर्मठ रहे. उन्हें ईमानदारी व अनुशासन का इनाम राष्ट्रपति से मैडल के रूप में मिला. एक बार हम लोग भोपाल से नासिक जा रहे थे. हमारे टिकट वेटिंग में थे जो गाड़ी में बैठने तक कन्फर्म नहीं हुए थे. हम लोग डब्बे के अंदर साइड की एक बर्थ पर बैठ गए. टिकटचैकर के आते ही लोग उस के पीछे लग गए और लोगों के टिकट कन्फर्म होने लगे. मेरे पापा शांत बैठे टिकटचैकर की राह देखते रहे. जब टिकटचैकर आया तो पापा ने उसे टिकट दिए. न कोई आश्वासन न पैसे की बात, वह टिकट ले कर चला गया. 5-7 मिनट के बाद आया और कहने लगा, ‘‘साहब, बड़ी भीड़ है, टिकट कन्फर्म होना मुश्किल है.’’ और हमारे सामने बैठ गया. वह उम्मीद करने लगा कि पापा कुछ पैसे देने को कहें तो वह हमारे टिकट कन्फर्म कर दे.

पापा ने बड़े धैर्य से कहा, ‘‘देखिए साहब, पुलिस से रिटायर अफसर हूं. मैं ने सारी जिंदगी में एक पैसा रिश्वत न ली है, न दी है. आज टिकट के लिए भी मैं कुछ नहीं दूंगा. मेरा वेटिंग नंबर 1, 2, 3 है. सब से पहले मेरे टिकट कन्फर्म होने चाहिए. याद रखें, अगर मेरे बाद के वेटिंग नंबर के टिकट कन्फर्म हुए तो मैं बाकायदा आप पर कार्यवाही करूंगा, यह मेरा अधिकार है.’’ 15-20 मिनट के बाद हमारे टिकट कन्फर्म हो गए. आज भी पापा के उसूल व उन की कर्तव्यनिष्ठा हमारा मार्गदर्शन करते हैं.

शकीला एस हुसैन, भोपाल (म.प्र.)

ख्वाब जो रह गए अधूरे

उड़ानों का कद
कुछ और हो जाता ऊंचा
गर पंछियों को मिल जाते
दोचार और पंख

इंतजार की घडि़यां
सिमट जातीं विरहन की
गर आंखों में उतर आती
तसवीर प्यार की

सन्नाटे तन्हाइयों के भी
चटक जाते पल भर में
गर खामोशियों को|
आवाज कोई मिली होती

सहरा भी बन जाता
गुलिस्तां किसी दिन
बूंदें सावन की गर
खुल कर बरस गई होतीं

दर्द से यों न गुजरतीं
कैस रांझा की कहानियां
गर प्यार को उन के\
अंजाम तक पहुंचा दिया होता

अफसोस हो न सके
काम कुछ सोचे हुए पूरे
कुछ ख्वाब ऐसे थे
जो रह गए अधूरे.

– वंदना गोयल

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