‘‘जी, कहिए न डाक्टर साहब,’’ कामिनी ने कहा तो पर उस के भीतर कुछ उथलपुथल होने लगी.

‘‘समझ में नहीं आ रहा है कि आप से कैसे कहूं, बात यह है कि औपरेशन के दौरान यशेंदुजी की दाहिनी टांग काट देनी पड़ी थी. मिसेज कामिनी, आप को ही संभालना है सबकुछ.’’

कामिनी को एकाएक चक्कर आने लगे और वह धम्म से सोफे पर बैठ गई. कामिनी के कंधे पर हाथ रख कर उन्होंने कहा, ‘‘प्लीज, आप जरा संभलें, देखिए, मांजी आ रही हैं.’’

कामिनी तो मानो कुछ सुन ही नहीं पा रही थी. उस का मस्तिष्क घूम रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था, आखिर हो क्या रहा है. उस की आंखों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी और वह महसूस करने लगी मानो स्वयं अपंग हो गई है. उसे अपने सामने यश का एक टांगविहीन शरीर दृष्टिगोचर होने लगा. डाक्टर तब तक कामिनी को सांत्वना दे ही रहे थे कि धीरेधीरे डग भरती हुई मांजी वापस आ गईं.

‘‘फिक्र मत कर बहू. मैं देख कर आई हूं यश को. जल्दी ही वह ठीक हो कर घर आ जाएगा,’’ मांजी ने कामिनी को सांत्वना देने का प्रयास किया. वे यश को लेटे हुए देख कर आई थीं और पुत्रमुख देख कर उन्हें थोड़ी तसल्ली सी हुई थी.

क्या बताती कामिनी उन्हें? वह कुछ भी बताने या कहनेसुनने की स्थिति में नहीं थी. सो, टुकुरटुकुर सास का मुंह देखती रही. मांजी स्वयं ही बोलीं, ‘‘कामिनी बेटा, ड्राइवर को फोन कर दो. आ कर मुझे ले जाए. घर जा कर देखती हूं, दिया का क्या हाल है? फिर आती हूं,’’ उन के कंपकंपाते शरीर को देख कर कामिनी ने अपने आंसू पोंछ डाले.

मां के जाने के बाद कामिनी अकेली रह गई. कैसे पूरी परिस्थिति का सामना कर पाएगी वह? मांजी के साथ ही दिया, दीप, स्वदीप सब को संभालना…कैसे…?

‘‘मैडम, कौफी,’’ कामिनी ने देखा कि एक वार्ड बौय कौफी ले कर खड़ा था.

‘‘नहीं, मैं ने कौफी नहीं मंगवाई.’’

‘‘मैं ने मंगवाई है, मिसेज कामिनी, थोड़ा सा खाली हुआ तो सोचा कौफी पी ली जाए,’’ डा. जोशी उस के पास तब तक आ चुके थे.

‘‘डाक्टर साहब, मुझे जरूरत नहीं है, थैंक्स,’’ कामिनी ने संकोच से कहा और अपनी आंखों के आंसू पोंछ डाले.

‘‘कोई बात नहीं. बहुत से काम कभी बिना जरूरत के भी करने पड़ते हैं,’’ डाक्टर ने वातावरण सहज बनाने का प्रयास किया.

कामिनी ने बिना किसी नानुकुर के कौफी का मग हाथ में तो पकड़ लिया.

‘‘देखिए मिसेज कामिनी, स्वस्थ तो आप को रहना ही पड़ेगा. इस समय स्थिति ऐसी है कि अगर आप स्वस्थ नहीं रह पाईं तो आप का पूरा परिवार अस्तव्यस्त हो जाएगा. मैं अभी देख कर आ रहा हूं और यशेंदुजी की स्थिति से लगता है उन्हें एकाध घंटे में होश आ जाना चाहिए. आप उन से मिल कर घर चली जाइए. हम आप को इन्फौर्म करते रहेंगे. उन्हें आईसीयू से प्राइवेट रूम में शिफ्ट करना है. उन की टांग का फिर औपरेशन करना होगा और लगभग 2-3 महीने बाद उन की आर्टिफिशियल टांग लगेगी. लेकिन इस बीच उन की पूरी सारसंभाल की जरूरत है. इस सब के लिए आप को मजबूत होना ही होगा. यू हैव टू बी ब्रेव, मिसेज कामिनी,’’ डा. जोशी सोफे से उठ खड़े हुए.

‘‘कामिनी मुंहबाए उन्हें जाते हुए देखती रही.

लगभग 2 घंटे बाद यश को होश आया. नर्स ने आ कर बताया. डाक्टर की स्वीकृति से कामिनी पति को देखने अंदर गई. यश उसे देख कर हलका सा मुसकराए, टूटेफूटे शब्दों में बोले, ‘‘मैं ठीक हो जाऊंगा कामिनी, चिंता मत करो.’’

कामिनी आंसुओं को संभालती हुई यश के बैड के पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई और उस का हाथ अपने हाथ में ले कर सहलाने लगी. यश अभी गफलत में थे. कभी आंखें खुलतीं, कभी बंद होतीं. आंखें खुलने पर कामिनी को देख कर मुसकराहट उन क मुख पर फैल जाती, फिर तुरंत ही आंखें मुंद जातीं. दवाओं का बहुत गहरा प्रभाव था यश पर. कामिनी ने सोचा, अभी यहां उस का कोई काम नहीं है. घर भी देख आए जरा. तभी एक काली बिल्ली कामिनी का रास्ता काट गई. कामिनी का दिल धकधक करने लगा. क्षणभर को तो वह ठिठक गई क्योंकि मांजी साथ होतीं तो कलेश खड़ा कर देतीं.

आटो रिकशा में बैठ कर वह फिर अपने अतीत में खोने लगी. उस के पिता ने श्राद्ध के दिनों में गौना करवाया था. नए विचारों के पिता इन सब अंधविश्वासों में कहीं से भी फंसना नहीं चाहते थे. उन के नातेरिश्तेदारों, मित्रों ने उन्हें बहुत रोकाटोका. पर वे मानो हिमालय की भांति अडिग रहे. सोने पर सुहागा यह रहा कि कामिनी के नाना स्वयं इन्हीं विचारों के थे. कामिनी ने अपने पिता के घर में जो सहजता व सरलता का जीवन जीया था, जो रिश्तों के जुड़ाव देखे थे, जिस शालीनता के साथ स्वतंत्रता की अनुभूति की थी और जिन संबंधों की समीपता के आंतरिक एहसास के उजाले में वह बचपन से युवा हुई थी, उन से ही उस के व्यक्तित्व का विकास हुआ था.

दिया ने शायद कामिनी को अंदर से ही देख लिया था. वह दौड़ कर बरामदे में आ गई, ‘‘मां, पापा कैसे हैं अब?’’ वह बहुत घबराई हुई थी.

कामिनी ने दिया को अपने से चिपटा लिया, ‘‘अच्छे हैं बेटा, ही इज बैटर. अच्छा, भाइयों को फोन किया या नहीं?’’

‘‘जी मां, दोनों भाई रात को पहुंच जाएंगे. मां, मैं पापा से मिलना चाहती हूं,’’ बिना रुके दिया बोले जा रही थी.

‘‘हां, पापा होश में आ गए हैं. तुम मिल आना पापा से,’’ कामिनी बोली.

घर में बने मंदिर से पंडितों की जोरदार आवाजें आ रही थीं. कोई पाठ कर रहे थे शायद. मां भी जरूर वहीं बैठी होंगी. कितनेकितने भय बैठा कर रखता है आदमी अपने भीतर. बीमारी का भय, लुटने का भय, चोरी का भय, दुर्घटना का भय, चरित्र खो जाने का भय…बस हम केवल भय ही ओढ़तेबिछाते रहते हैं जीवनभर. क्यों? इस समय पाठ करते हुए स्वर उसे बेचैन कर रहे थे. मांजी की हिदायत उस ने बरामदे में माली से ही सुन ली थी. ‘‘मेमसाब, माताजी ने बोला है आप के आते ही सब से पहले आप को मंदिर में भेज दूं. कुछ…क्या बोलते हैं उसे…कुछ संकल्प करवाना है आप से.’’

परंतु कामिनी ने मानो कुछ सुना ही नहीं था. वह अपने मन के हाहाकार को छिपा कर अपने कमरे में जा कर सीधे बाथरूम में घुस कर शावर के नीचे पहुंच गई थी. सिर को शावर के नीचे कर के कामिनी ने अपनी आंखें बंद कर ली थीं. उसे तो यह संकल्प लेना था कि अपने टूटते हुए घर की चूलें कैसे कसेगी? उस की दृष्टि में दिया, स्वदीप, दीप व मांजी के चेहरे पानी में उथलपुथल से होने लगे. मानो उस की आंखें कोई गहरा समंदर हों और ये सब खिलौने से बन कर उस समंदर की लहरों के बीच फंस गए हों. कैसे बचाएगी उन्हें गलने से? न जाने कितनी देर वह उसी स्थिति में शौवर के नीचे खड़ी रही थी.

जीवन में बाधाएं तो आती ही हैं. जीवन कभी सपाट, सरपट, चिकनी सड़क सा नहीं होता. उस में बड़ी ऊबड़खाबड़ जमीन, नीचीऊंची सतह, कंकड़पत्थर और यहां तक कि छोटीबड़ी पहाडि़यां और बड़े पर्वत भी होते हैं जिन्हें मनुष्य को बड़े संयम और तदबीर से पार करना होता है. ये सब प्रत्येक के जीवन में आते हैं, इन से ही मनुष्य अनुभव बटोरता है, सीखता है. आगे बढ़ने के लिए नए मार्गों की खोज करता है. यदि नए मार्ग ढूंढ़ने के स्थान पर वह एक स्थान पर बैठा सबकुछ पाने की प्रतीक्षा करता रहे तो एक क्या, कई जन्मों तक उसी स्थिति में बैठा रहने पर भी उसे कुछ नहीं मिलता. लेकिन यहां तो कहानी ही अलग थी. यश के परिवार में बात कुछ इस प्रकार बन गई है कि ‘आ बैल मुझे मार.’ अरे, जब आप किसी के बारे में कुछ अधिक जानते नहीं, उसे पहचानते नहीं तो केवल जन्मपत्री के मेल से कैसे अपने जिगर के टुकड़े को किसी को सौंप सकते हैं? यह बात नहीं है कि पहचान होने से रिश्तों में कड़वाहट पैदा नहीं होती परंतु बुद्धिमत्ता तो इसी में है न, कि सही ढंग से जांचपड़ताल कर के बच्ची को सुरक्षित हाथों में सौंपा जाए, न कि अनाड़ी लोगों के द्वारा बनाए गए ग्रहों के मिलाप को ही सर्वोपरि मान लिया जाए.

कामिनी के जीवन का मार्ग और भी कठिन होता जा रहा था. अब उसे किसी न किसी प्रकार अपने हिसाब से जीना होगा. दिया का विवाह तो बहुत बड़ी त्रुटि हो ही चुकी थी. भारतीय समाज, मान्यताओं व परंपराओं के अनुसार, मांजी की यह बात उस के मस्तिष्क में नहीं उतरती थी कि वह दिया को अपने हाल पर छोड़ दे. मां थी आखिर… कुछ तो निर्णय लेना ही होगा. यश पिता हैं, उन्होंने कदम उठाना चाहा तो परिस्थिति गड़बड़ा गई. इसी उलझन में उलझ कर यश इस स्थिति में पहुंच गए और सारा बोझ कामिनी के कंधों पर आ गया. कामिनी पसोपेश में आ गई थी पति की अवस्था और बिटिया के बारे में सोच कर.दीप और स्वदीप उसी दिन पहुंच गए थे और जिद कर के वे दोनों रात में ही अस्पताल पहुंच गए थे. रात भर करवटें बदलते हुए कामिनी कभी पति और कभी बेटी के बारे में सोचती रही. उस के समक्ष कितने ही घुमावदार, टेढ़ेमेढ़े रास्ते थे और किस समय, कैसे, कब, उन पर चलना था, वह नहीं जानती थी.

जैसेतैसे रात बीती. पौ फटी. उस ने दिया की ओर देखा. मासूम दिया उस के पास सोई थी. रात में बहुत देर तक वह पापा के पास रही थी, दीप उसे घर छोड़ गया तब उस ने बड़ी कठिनाई से कामिनी के जिद करने पर दोचार कौर मुंह में डाल लिए और सोने का बहाना कर के बिना कपड़े बदले ही मां के पलंग पर लेट गई थी. आंसुओं की लकीरें उस के गालों पर निशान बना गई थीं. मांजी को भी बड़ी मुश्किल से मना कर लाई थी कामिनी. दो कौर पानी के सहारे गले में उतार कर वे अपने कमरे में कैद हो गई थीं. दिया ने उन की नौकरानी को विशेष हिदायत दी थी उन की दवाओं आदि के बारे में. वैसे भी वह नौकरानी उन के कमरे में ही सोती थी, इसलिए सब जानती थी. घर में जैसे एक सूनापन पसर गया था. बदन टूट रहा था फिर भी कामिनी बिस्तर पर लेट नहीं पाई.

घर के महाराज और नौकर को बता कर बिना मां व दिया से कुछ कहेसुने, कामिनी घर से निकल आई थी.   

– क्रमश:

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