उड़ानों का कद
कुछ और हो जाता ऊंचा
गर पंछियों को मिल जाते
दोचार और पंख

इंतजार की घडि़यां
सिमट जातीं विरहन की
गर आंखों में उतर आती
तसवीर प्यार की

सन्नाटे तन्हाइयों के भी
चटक जाते पल भर में
गर खामोशियों को|
आवाज कोई मिली होती

सहरा भी बन जाता
गुलिस्तां किसी दिन
बूंदें सावन की गर
खुल कर बरस गई होतीं

दर्द से यों न गुजरतीं
कैस रांझा की कहानियां
गर प्यार को उन के\
अंजाम तक पहुंचा दिया होता

अफसोस हो न सके
काम कुछ सोचे हुए पूरे
कुछ ख्वाब ऐसे थे
जो रह गए अधूरे.

- वंदना गोयल

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