मेरी चाची के 21 वर्षीय इकलौते बेटे अतुल को गले का कैंसर था. वह कुछ ही महीनों का मेहमान था. यह जान कर हम सब बहुत दुखी थे. खासकर चाची, जो विधवा थीं. उन्हें उसी का सहारा था. समय के साथ अनुज की हालत बिगड़ती चली गई तो चाची ने एक अहम फैसला लिया कि अनुज की आंखें दान कर दी जाएं. समय रहते हमें एक नेत्रहीन बच्चा मिल गया जिसे आंखों की जरूरत थी. अनुज की मृत्यु के कुछ घंटों बाद उस बच्चे में औपरेशन द्वारा अनुज की आंखें ट्रांसप्लांट कर दी गईं. अनुज हमेशा के लिए इस संसार से चला गया पर आज भी वह उस बच्चे की नजरों से दुनिया देख रहा है. चाची के इस फैसले ने मेरे दिल को छू लिया और मैं ने भी नेत्रदान करने का फैसला ले लिया. \
बृजेश कुमार पांडे, बर्दवान (प.बं.)
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मैं ने एक ज्वैलर से चेन खरीदी थी. कुछ दिन पहनने के बाद ही उस का रंग बदल गया. मैं उस को बदलने के लिए उसी ज्वैलर के पास जा रही थी. मैं ने चेन को एक पाउच में रखा. चेन 25 ग्राम की थी. मैं कुछ और भी खरीदना चाह रही थी. मेरे पास सोने का टूटाफूटा जो सामान रखा था उस को भी ले लिया. सबकुछ मिला कर लगभग 50 ग्राम सोना था. एहतियातन मैं ने पाउच में सब सामान रख कर एक पर्स में रखा, फिर उसे एक बड़े पर्स में रख कर ले गई. ज्वैलर के यहां जरूरत से ज्यादा भीड़ थी. मैं ने उसे चेन दिखाई तो वह बोला, ‘‘आप कुछ भी पसंद कर लीजिए, मैं बदल दूंगा.’’ उस दिन मुझे कुछ पसंद नहीं आ रहा था. वह बोला, ‘‘चेन आप अपने पास ही रखिए, जब दूसरी लीजिएगा तभी मैं यह लूंगा.’’ मैं ने उन्हें पाउच से निकाल कर एक पैंडेंट नग लगाने के लिए दिया और जल्दबाजी में रिकशा कर के घर आ गई.
उन्होंने मुझे 2-3 दिन बाद बुलाया था. इसलिए जब मैं जाने को हुई और सामान चेक करने के लिए पर्स खोला, तो मेरे होश उड़ गए. उस में से पाउच नदारद था. मैं अपनी याददाश्त पर बहुत जोर देती रही परंतु पाउच के बारे में कुछ भी याद नहीं आया. ज्वैलर के पास पैंडेंट लेने के लिए मैं पहुंची. उस ने पैंडेंट दे दिया. वापस चलने लगी तो वह बोला, ‘‘आप का कोई सामान खो गया है क्या?’’ मैं चौंक कर बोली, ‘‘हां, उस दिन मेरा पाउच कहीं गिर गया था.’’
उस ने मुझ से उस के अंदर के सामान के बारे में पूछा. मैं ने उसे झट से सब बता दिया. उस ने बताया कि एक महिला ने पाउच उठाया. उस ने खोल कर चेन निकाली. उस के हाथ में चेन देख कर मैं तुरंत पहचान गया कि यह आप की चेन है और मैं ने उस से पाउच ले लिया. उस दिन जो खुशी मुझे मिली उस का वर्णन करना आसान नहीं है.
पद्मा अग्रवाल, इटावा (उ.प्र.)