पास रहो या रहो दूर
नाम तुम्हारा माथे का सिंदूर
भरी है मांग तुम्हारे नाम से
मुझे नहीं चाहत जहान से
प्यार तुम्हारा है ऐसा भरपूर
नाम तुम्हारा माथे का सिंदूर
कोई हंसेकुढ़े मुझे परवा नहीं
तुम हो मेरे, दूसरे की चाह नहीं
लगता सारा जग सुंदर रसचूर
नाम तुम्हारा माथे का सिंदूर.
– महावीर सिंघल
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