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यह भी खूब रही

बात मेरी छोटी बहन की शादी की है. उस की शादी 6 जुलाई को होनी थी. बरसात का मौसम था. गांव से मेरी चाचीजी शादी में आई हुई थीं. मैं तैयार होने के लिए ब्यूटीपार्लर जाने लगी तो वे बोलीं कि मैं भी चलूंगी. मैं ने कहा, ‘‘ठीक है.’’ हम दोनों पार्लर चले गए. चाचीजी की आंखों के नीचे काले घेरे देख कर ब्यूटीशियन ने कहा, ‘‘आप ओले से मसाज कीजिए. काले घेरे काफी हद तक कम हो जाएंगे.’’ इस पर उन्होंने कहा कि ठीक है. एक मिनट बाद ही वे बोलीं, ‘‘हमारे यहां तो बारिश कभीकभी ही आती है और ओले तो गिरते ही नहीं. फिर ओले कैसे लगाएं?’’ एक पल तो हम दोनों को समझ नहीं आया कि वे क्या कह रही हैं पर दूसरे ही पल हम दोनों खिलखिला कर हंस पड़े. दरअसल, चाचीजी ने ओले ब्यूटी क्रीम को बारिश के ओले समझ लिया था.

अचला गर्ग, जयपुर, (राज.)

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बात रोचक है. मेरे मित्र आगरा में रहते हैं. उन के बारबार आग्रह पर मैं परिवार सहित आगरा भ्रमण पर गया, आगरा में अनेक ऐतिहासिक स्थान हैं. लालकिला देखने के बाद हम ने प्रसिद्ध ताजमहल की तरफ रुख किया. वहां पर पहुंचते ही पास के रेहड़ी वाले दुकानदार जबरदस्ती अपनी दुकान की वस्तुएं दिखाने लगे.एक दुकानदार तो पीछे ही पड़ गया. वह मेरी पत्नी से बोला, ‘‘बहनजी, 30 रुपए में ताजमहल ले लो.’’ मेरी पत्नी, जो गरमी के मारे परेशान थी, झल्ला कर बोली, ‘‘हमें यह छोटा ताजमहल नहीं, वह बड़ा ताजमहल चाहिए, बोलो, कितने में दोगे?’’ उत्तर में वह दुकानदार बोला, ‘‘वह, वह तो इस छोटे ताजमहल के साथ फ्री है, उठा ले जाइए.’’ उस की इस बात पर हमारी हंसी छूट गई तथा हम ने उस का छोटा ताजमहल खरीद लिया.

शशि नेगी, नजफगढ़ (न.दि.)

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मेरी पड़ोसिन के घर में बहुत चूहे हो गए थे. उन को पकड़ने के लिए उन्होंने एक रात को चूहेदानी में रोटी का टुकड़ा लगाया. सुबह जब वह जागी, हलकाहलका अंधेरा था. उस ने देखा चूहेदानी में मोटा सा चूहा फंसा हुआ था. वह बहुत खुश हुई. किंतु चूहे के आसपास कुछ लाल टुकड़े देख कर सोचने लगी, चूहे के पास प्याज जैसे छिलके कैसे आ गए. थोड़ी देर बाद वह चूहेदानी उठा कर बाहर ले जाने लगी तो सरसर की आवाज सुन कर चूहेदानी को जमीन पर रख दिया क्योंकि लाललाल टुकड़े प्याज के छिलके न हो कर चूहे के छोटेछोटे बच्चे थे जिन को, चूहेदानी में सुरक्षित स्थान समझ कर, रात को चुहिया ने जन्म दिया.

कैलाश भदौरिया, गाजियाबाद (उ.प्र.)

इन्हें भी आजमाइए

 चीज में पनीर के मुकाबले ज्यादा कैल्शियम होता है. 100 ग्राम चीज में आप को लगभग 104 प्रतिशत तक का कैल्शियम मिलता है जो कि शरीर के लिए काफी होता है. वहीं पनीर में केवल 8 प्रतिशत कैल्शियम ही होता है.

लगातार डकार आ रही हो तो तुरंत राहत के लिए एक गिलास में नीबू का रस, बेकिंग सोडा और पानी मिला कर पीएं. इस से पाचन में सहायता मिलती है और डकार से राहत मिलती है.

चेहरे पर दिनभर में काफी गंदगी जमा हो जाती है. इस के लिए रात में गुलाबजल रुई में भिगो कर चेहरे पर गोलाई में लगाएं. इस तरह की मसाज से चेहरे का ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है.

जब बच्चा चलना सीखता है तो अकसर मातापिता उसे वौकर ला कर देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस में बच्चा सुरक्षित है. लेकिन कभी भी बच्चे को वौकर में अकेला न छोड़ें. उसे चोट पहुंच सकती है.

पैरों पर पैट्रोलियम जैली लगाएं और उन्हें सैलोफिन शीट से लपेट लें. 15 मिनट के लिए ऐसे ही छोड़ दें. आप के पैर बच्चों जैसे मुलायम हो जाएंगे.

लंच बौक्स से बदबू हटाने का सब से अच्छा तरीका है कि आप उसे धो कर पूरा दिन धूप में रख दें. धूप लगने से उस में बदबू नहीं रहेगी.

जमाना मुहब्बत का

गूंज रहा है गलियों में
नया तराना मुहब्बत का
जवान दिल जो धड़का
बना फसाना मुहब्बत का

इस खुदगर्ज शहर की
फितरत बदलने लगी है
सब दे रहे हैं एकदूसरे को
नजराना मुहब्बत का

कहां दम घुटता था फिजा में
नफरत और जलन से
हर तरफ छलकता है अब
पैमाना मुहब्बत का

शिकायतें कम करते हैं
चेहरे रोशन दिखते हैं उन के
बनाया है जिन्होंने अपने दिल को
आशियाना मुहब्बत का

दौर खत्म हो रहा है
जाम के लिए भटकने का
अब तो नशीली आंखों में बसता है
मयखाना मुहब्बत का

आजकल शहर में गुनाह नहीं होते
दरकार ही किसे है
जब हर कोई लुटाए जा रहा है
खजाना मुहब्बत का

जो मर्ज हुआ करता था
यहां दवा बन चुका है
जिसे देखो वो बन गया है
दीवाना मुहब्बत का

यों तो ये मुहिम
अकेले ही शुरू की थी महिवाल
पर जल्द ही तुम ने बना लिया है
सारा जमाना मुहब्बत का.

नशे की गिरफ्त में स्कूली बच्चे

केरल के कोचीन के एक हायर सैकंडरी स्कूल में घटित घटना को पढ़ कर आप भी हैरान हो जाएंगे. घटना कुछ यों है : कक्षा में 2 छात्र स्कूल समय से देरी से पहुंचते हैं और बेहद थके हुए दिखाई देते हैं. इस बात की खबर दूसरे छात्र तुरंत अध्यापकों को देते हैं. अध्यापक छात्रों को स्टाफ रूम में बुलाते हैं और छात्रों से विस्तृत पूछताछ करते हैं. बच्चों से पूछताछ करने पर जो सचाई सामने आती है वह हैरान कर देने वाली है. दरअसल, उन दोनों छात्रों ने नशीले पदार्थों का सेवन किया हुआ था. केरल में स्कूली छात्रों के बीच नशीले पदार्थों का सेवन तेजी से जोर पकड़ रहा है. स्कूल से क्लास मिस कर के बाहर घूमने वाले छात्रों पर जब पुलिस ने निगरानी रखी तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए.

राज्य की ही एक अन्य घटना में पता चला कि ड्रग्स माफिया ने स्कूल जाते बच्चे को पहले पत्थर मार कर गिरा दिया और फिर नशीले पदार्थ इंजैक्ट करने की कोशिश की. स्कूली बच्चों में नशीले पदार्थों का सेवन तेजी से बढ़ रहा है. केरल के अनेक जिलों के कई बच्चे पुलिस को कुछ ऐसी ही घटनाओं में लिप्त मिले. इन में अधिकांश बच्चे शराब व नशीले पदार्थों की लत के शिकार थे. पुलिस ने बच्चों के अलावा ऐसे समूहों को भी पकड़ा जो स्कूली बच्चों को निशाना बना कर यह धंधा करते हैं.

नशीले पदार्थों की लत

पुलिस जांच में यह बात सामने आई है कि एक बार मित्रों के आग्रह पर नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले बच्चे इस की लत का शिकार हो जाते हैं और बारबार नशीले पदार्थों के प्रयोग के लिए मजबूर हो जाते हैं. पुलिस ने हाल ही में क्लास मिस कर के इधरउधर घूमते, नशे का सेवन करते अनेक छात्रों को धरपकड़ा था. अकेले कोट्टयम शहर से ऐसे 178 छात्र पकड़े गए हैं. कोट्टयम वैस्ट के सर्कल इंस्पैक्टर ए जे थौमस बच्चों में बढ़ रहे नशीले पदार्थों के व्यापक प्रयोग के बारे में कहते हैं, ‘‘घर से स्कूल जाने के लिए स्कूल यूनिफौर्म पहन कर ये बच्चे स्कूल जाने का ढोंग रचते हैं. वे स्कूल न पहुंच कर कपड़े बदल कर पार्क, मौल, रैस्टोरैंट में समय गुजारते हैं और नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करने के बाद सिनेमा देखने में भी समय बिताते हैं. जब कोट्टयम पुलिस ने कोट्टयम वैस्ट से ऐसे 112 बच्चों को और कोट्टयम ईस्ट से 64 बच्चों को ढूंढ़ा और उन से पूछताछ की तो पता चला कि ये बच्चे स्कूल से भाग कर मौजमस्ती कर रहे थे. पुलिस ने घटना की सूचना बच्चों के परिवार वालों को दी और उन से बच्चों के बारे में बात की.’’

पुलिस के नेतृत्व में गुरुकुलम

जब कोट्टयम पुलिस की जांच में विद्यार्थियों के स्कूल छोड़ कर नशीले पदार्थों में लिप्त होने की बात सामने आई और बच्चों से विस्तृत पूछताछ करने पर पता चला कि ये बच्चे शराब और नशीले पदार्थों की लत के शिकार थे, तब ऐसे बच्चों को नशे की इस गिरफ्त से बचाने के लिए पुलिस के नेतृत्व में गुरुकुलम योजना शुरू की गई. योजना के अंतर्गत बच्चे कक्षा में पूरे समय उपस्थित रहें, इस बात का ध्यान रखा जाता है और जो बच्चे उपस्थित नहीं होते उन की जानकारी एसएमएस द्वारा पुलिस को दी जाती है. बच्चे नशीले पदार्थों से कैसे दूर रहें, इस बात पर भी बच्चों की काउंसलिंग की जाती है. इस योजना की जानकारी स्कूलों के अध्यापकों को भी दी गई है ताकि वे बच्चों पर निगरानी रखें व उन्हें सही दिशा दें. पुलिस द्वारा की गई जांच में यह बात भी सामने आई है कि कमजोर तबके के परिवारों के बच्चे ही इस प्रकार के गलत रास्तों पर भटक जाते हैं.

स्कूल परिसर में ड्रग्स माफिया

कुछ महीने पहले केरल के कासर्गोड जिले में स्कूली बच्चों को नशीले पदार्थों का शिकार बनाने वाले ड्रग्स माफिया का खुलासा हुआ था. पुलिस जांच से यह बात सामने आई कि यह माफिया बच्चों को अपना शिकार बनाने के लिए स्कूलों के आसपास की दुकानों में पैन की तरह दिखने वाली सिगरेट बेचने के लिए रखते हैं. इस सिगरेट में पानमसाले का अंश अधिक होता है. एक अन्य घटना में स्कूल की छात्रा ने अपने जन्मदिन पर स्कूल में मिठाई बांटी. मिठाई का स्वाद अध्यापक को अजीब लगने पर जब उस की जांच की गई तो उस में नशीले पदार्थों की मिलावट पाई गई और साथ ही, यह भी मालूम पड़ा कि ये मिठाइयां स्कूल के आसपास की दुकानों में ही सप्लाई की जाती हैं. यह माफिया बच्चों को अपना शिकार बनाने के लिए सोशल साइट्स व धार्मिक चिह्नों का भी इस्तेमाल करता है. मोबाइल मैसेजेस द्वारा भी यह अपने उद्देश्य को पूरा करता है. नशीले पदार्थों को बच्चों तक पहुंचाने के लिए माफिया कई तरह की मालाएं, लौकेट, खास रंग, चप्पल, बैग आदि निशानी के तौर पर इस्तेमाल करता है.

लत के पीछे इंटरनैट, मोबाइल

बच्चों में इंटरनैट व मोबाइल का दुरुपयोग बढ़ रहा है. इंटरनैट व मोबाइल पर अश्लील वीडियो देखने वाले बच्चों की मानसिक अवस्था पर दुष्प्रभाव पड़ता है और वे गलत राह की ओर अग्रसर हो जाते हैं. बच्चों को इस से बचाने के लिए मातापिता को चाहिए कि वे बच्चों को इस से बचाने के लिए उन पर निगरानी रखें कि वे कौनकौन सी साइट्स देख रहे हैं. बच्चा अगर बाहर किसी अनजान व्यक्ति से मिलता है तो इस बात की भी जानकारी रखें. बच्चों के दोस्तों व उन के परिवार वालों से भी मेलजोल रखें और बढ़ते बच्चों को समयसमय पर सही दिशानिर्देश दें ताकि वे नशे की आदतों का शिकार हो कर गलत हाथों में न पड़ें. कई बार मातापिता के बीच अलगाव व झगड़े भी बच्चों को बाहरी दुनिया की ओर आकर्षित करते हैं. जब बच्चों को घर में स्वस्थ व खुशहाल माहौल नहीं मिलता और मातापिता व बच्चों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ता नहीं होता तब भी बच्चे गलत दोस्तों की संगत में पड़ जाते हैं और गलत राह पर चलने लगते हैं. घर के खुशहाल माहौल के अभाव में बच्चे स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हैं और सुरक्षा की कमी से मानसिक संघर्ष से जूझते हैं. तीजतन, ऐसी अवस्था से मुक्ति पाने के लिए नशीले पदार्थों का प्रयोग करना शुरू कर देते हैं और इस तरह उन्हें नशीले पदार्थों की लत लग जाती है. हाल ही में एक बच्चे ने घर में किसी सदस्य के न होने पर घर में रखी शराब पी ली और बेहोश हो कर गिर पड़ा.

शोषण का शिकार बच्चे

शराब एवं नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले बच्चे शारीरिक शोषण का शिकार भी आसानी से बनते हैं. चूंकि इन बच्चों की नशीले पदार्थों के सेवन के कारण सोचनेसमझने की शक्ति क्षीण हो जाती है. और ऐसे में अगर परिवार की ओर से स्वस्थ माहौल न मिले तो ये बच्चे अवैध रिश्तों की ओर आकर्षित हो जाते हैं. परिणामस्वरूप ऐसे बच्चे सामान्य जिंदगी से दूर होने लगते हैं.

बच्चों को समय दें

बढ़ते बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए मांबाप का प्यार और देखभाल बहुत जरूरी होती है. बच्चे गलत राह की ओर न बढ़ें, इस के लिए जरूरी है कि परिवार के सभी लोग एकसाथ समय व्यतीत करें, इकट्ठे खाना खाएं, हंसीमजाक करें. अभिभावक बच्चों से उन की शिक्षा, दिनचर्या और दोस्तों के बारे में जानकारी लें. बच्चों को घर से बाहर घुमानेफिराने ले जाएं. बच्चों को हमेशा यह एहसास दिलाएं कि आप उन के साथ हैं. बच्चों के जन्मदिन पर व अच्छा काम करने पर उन्हें उपहार दें, उन की तारीफ करें. बच्चों से उन की समस्या के बारे में जानें व उस का हल निकालने में उन की मदद करें. अगर आप समस्या सुलझाने में असमर्थ हों तो मनोचिकित्सक व काउंसलर की सहायता लें. नशे की लत में डूबे बच्चों को सामान्य जिंदगी की ओर लाने में अभिभावकों का योगदान महत्त्वपूर्ण है, इस में जरा भी देरी न करें. बच्चे देश का भविष्य हैं, उन्हें स्वस्थ व सुरक्षित जीवन जीने के लिए प्रेरित करें.

जागरूक करें बच्चों को

क्लीनिकल साइक्लौजिस्ट डा. विपिन वी रोलडेंट का इस बारे में कहना है कि बच्चे घर और बाहर की परिस्थितियों को बहुत जल्दी समझते हैं और उन से प्रभावित भी होते हैं. वे हर नई बात को अपनाने की चाहत रखते हैं. घर में अगर पिता शराब का सेवन करता हो तो बच्चा भी इस लत का शिकार हो सकता है. बच्चों को नशीले पदार्थों से दूर रखने के लिए उन्हें जागरूक करना जरूरी है. स्कूली पाठ्यक्रम के साथसाथ बच्चों को नशे से दूर रहने के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए. वहीं, नशे के शिकार बच्चों को काउंसलिंग व चिकित्सा द्वारा सामान्य जिंदगी की ओर लाने का प्रयास किया जाना चाहिए.

– डा. विपिन वी रोलडेंट
मनोचिकित्सक

पाठकों की समस्याएं

मैं रिटायर्ड अधिकारी हूं. 12 वर्ष पूर्व मैं ने अपनी बेटी का विवाह एक मध्यवर्गीय परिवार में किया था. विवाह के 2 वर्ष बाद ही पता चला कि ससुराल वाले लालची प्रवृत्ति के हैं. वे मुझ से पैसे मांगने के लिए बेटी पर दबाव डालते हैं, उसे प्रताडि़त करते हैं. बेटी के मना करने पर एक बार तो वे उसे मेरे घर ही छोड़ गए. बेटी उन के खिलाफ कोई सामाजिक या कानूनी कार्यवाही नहीं करना चाहती. वह मुझे भी उन से किसी भी तरह की बात करने से मना करती है. वह कहती है, ‘‘मेरा घर टूट जाएगा. मैं अपने 5 व 10 वर्ष के बच्चों को ले कर अकेले समाज में नहीं रह पाऊंगी.’’ इसी कारण मैं भी मजबूर हूं और उन के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा पा रहा. अभी बेटी ससुराल में ही है. बेटी व दामाद दोनों उच्च शिक्षित हैं व नौकरी करते हैं. बेटी पर उन की प्रताड़ना अभी भी जारी है. इन सब की गहराई में हमें बेटी के सासससुर ही दोषी नजर आते हैं जो दामाद को गलत व्यवहार के लिए उकसाते रहते हैं. कृपया सुझाव दें कि मैं क्या करूं जिस से बेटी का घर भी न टूटे व दामाद को अपने किए पर पछतावा भी हो.

आप की बेटी उच्च शिक्षित है, नौकरीपेशा है फिर भी न जाने क्यों उन की प्रताड़ना सह रही है. साथ ही, वह यह भी नहीं चाहती कि आप इस मामले में कोई कदम उठाएं. फिर भला समस्या का समाधान कैसे होगा. फिर भी सब से पहले आप अपनी बेटी का आत्मविश्वास बढ़ाएं व उसे समझाएं कि बात करने से बात बनेगी. आप कह रहे हैं कि बेटी के सासससुर आप के दामाद को भड़काते हैं, बेटी को प्रताडि़त करने के लिए प्रेरित करते हैं तो आप दामाद से अकेले में शांतिपूर्वक बात करें. उन्हें बच्चों के प्रति उन की जिम्मेदारी का एहसास कराएं. महिला सुरक्षा कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए ही बने हैं, यह बात बेटी को समझाएं. अगर दामाद समझाने से समझ जाते हैं तो कानून का सहारा लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी और आप की बेटी का घर भी बसा रहेगा.

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मेरी पत्नी 54 वर्षीय है और मैं 60 वर्षीय हूं. पत्नी की रजोनिवृत्ति हो चुकी है और उन्हें डिप्रैशन भी रहता है. मेरी समस्या यह है कि मुझे अभी भी सैक्स की चाहत होती है जबकि पत्नी की बिलकुल इच्छा नहीं होती. मैं क्या करूं, बहुत परेशान रहता हूं, डरता हूं कहीं कुंठाग्रस्त न हो जाऊं?

आप अपनी पत्नी की तरफ से शारीरिक अलगाव की समस्या से जूझ रहे हैं, जो आप की जरूरत है. आप की यह चाहत कदापि अवांछित नहीं है. विश्वस्तर पर हुई रिसर्च भी साबित करती है कि सैक्स का उम्र से कोई लेनादेना नहीं है. जहां तक पत्नी की रजोनिवृत्ति व डिप्रैशन की समस्या है, उस का इलाज कराएं. आजकल मैडिकल जगत में ऐसी अनेक दवाएं व थेरैपी उपलब्ध हैं जो रजोनिवृत्ति में भी सैक्स की चाहत को जगा सकती हैं. आप उन का सहारा ले सकते हैं.

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मैं 16 वर्षीय युवती हूं. मेरी समस्या यह है कि न जाने क्यों मेरा सैक्स करने का बहुत मन करता है. सैक्स से जुड़ी बातों के बारे में सोच कर अच्छा लगता है. मैं क्या करूं?

आप उम्र के उस दौर से गुजर रही हैं जहां ऐसा खयाल आना स्वाभाविक है. ऐसा हार्मोनल बदलाव के कारण होता है और सैक्स से जुड़ी बातें करना व देखना अच्छा लगता है. लेकिन आप की यह उम्र पढ़नेलिखने की है, भविष्य बनाने की है. इस समय आप अपना ध्यान सैक्स की गतिविधियों से हटा कर पढ़ाई में लगाएं, अच्छा साहित्य पढ़ें. हर चीज की सही उम्र व समय होता है, तभी उसे किया जाए तो सही होता है, वरना परेशानियां हो सकती हैं.

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मैं 60 वर्षीय 3 विवाहित बच्चों की मां हूं. पिछले वर्ष पति का देहांत हो गया था. मेरी समस्या यह है कि बड़ा बेटा घर के कागजात मांग रहा है. मैं ने मना कर दिया तो बेटा और बहू दोनों मुझ से नाराज हैं. छोटा बेटा शहर से बाहर रहता है. मेरी कोई देखभाल नहीं करता, न ही कोई आर्थिक मदद करता है. पैंशन मिलती है, उस से गुजारा करती हूं. बड़ा बेटा 7 साल से मुझ से अलग रह रहा है. बेटी का भी यही रवैया है. मैं बहुत दुखी और परेशान हूं. क्या करूं?

बच्चों को घर के कागजात देने की गलती कभी न कीजिएगा. आप मकान की कानूनी हकदार हैं. बहूबेटे जब आप के नाम मकान है, पैंशन आती है तब आप की कोई मदद नहीं करते तो बाद में वे बिलकुल भी नहीं करेंगे. आप उन की बातों पर ध्यान मत दीजिए. उन की नाराजगी को भी महत्त्व मत दीजिए. आप उन पर निर्भर नहीं हैं, इस बात को ले कर संतुष्ट रहें.

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मैं 23 वर्षीय अविवाहित युवती हूं. समस्या यह है कि बौयफ्रैंड के साथ मेरे शारीरिक संबंध स्थापित हो गए हैं और अब वह मुझ से बात ही नहीं करना चाहता. उस की एक और गर्लफ्रैंड भी है. मुझे डर है कि कहीं उस की वजह से तो वह मुझ से दूरी नहीं बना रहा. साथ ही कुछ दिनों में मेरी शादी भी होने वाली है. मुझे यह डर भी है कि कहीं मैं प्रैगनैंट तो नहीं हो गई. जिस लड़के से मेरी शादी होने वाली है उसे इस बारे में कहीं पता तो नहीं चल जाएगा? कृपया समाधान बताइए.

आप ने विवाहपूर्व शारीरिक संबंध बना कर गलती की है और अब जब आप का विवाह होने वाला है तो आप को उस दोस्त के बात न करने से क्यों फर्क पड़ रहा है. आप उस से दूरी बना लें और प्रैगनैंसी के बारे में जानने के लिए मैडिकल टैस्ट करवाएं. जहां तक जिस लड़के से आप का विवाह हो रहा है, उसे जब तक आप या कोई और उसे नहीं बताएगा, उसे पता नहीं चलेगा. लेकिन, विवाह से पूर्व शारीरिक संबंध हमेशा शारीरिक और मानसिक समस्याओं को जन्म देते हैं, इस बात को हमेशा ध्यान में रखें.

फेसबुक से होते शिकार

50 वर्षीय राजकुमार (परिवर्तित नाम) एक सरकारी बैंक में मैनेजर थे. आर्थिक रूप से राजकुमार का भरापूरा परिवार था. जब वे सोशल नैटवर्किंग साइट फेसबुक पर सक्रिय हुए तो नएनए लोगों से मिल कर बहुत खुशी हुई. उन की खुशियों में तब और भी इजाफा हो गया जब उन से स्वीटी नामक युवती जुड़ गई. स्वीटी कथित रूप से एमबीए की छात्रा थी और देखने में हसीन भी. राजकुमार ने भी उम्र के फासले की दीवार गिराई और दोस्ती कर ली. चैटिंग से शुरू हुआ सिलसिला मोबाइल पर लंबी बातचीत तक जा पहुंचा. स्वीटी से दोस्ती कर राजकुमार को अपनी दुनिया बदलीबदली सी नजर आने लगी और वे जवानी के हसीन सपने देखने लगे.

अब राजकुमार केवल बातचीत तक ही सीमित नहीं रहना चाहते थे इसलिए एकदूसरे से मिलने के लिए दोनों ने डेट फिक्स कर ली. फिर क्या था यह सिलसिला चल पड़ा. साथसाथ मौल घूमना, शौपिंग करना और महंगे होटलों में खानापीना और सारी मर्यादाओं को दोनों ने लांघ दिया. राजकुमार खुश थे कि उन्होंने दिल बहलाने के लिए एक लड़की को उलझा लिया है, लेकिन यह केवल उन की गलतफहमी थी क्योंकि लड़की ने तो उलटा उन्हें शिकार बनाया था.

2 महीने में ही उन की दोस्ती व नाजायज रिश्तों ने गुल खिलाया और राजकुमार मकड़जाल में उलझ कर छटपटा कर रह गए. उन से लाखों रुपए की मांग की जाने लगी. बदनामी के डर से खुदकुशी करने की सोची, लेकिन परिवार का खयाल आ गया. राजकुमार ने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन फेसबुक के चक्कर में किसी जवान लड़की से दोस्ती की उन की छोटी सी भूल उन्हें इस मुकाम पर ला कर खड़ा कर देगी. आखिर उन्होंने पुलिस की मदद ली तो ब्लैकमेल करने वाली उन के सपनों की रानी स्वीटी व उस के 2 दोस्तों की तिगड़ी पुलिस की गिरफ्त में आ गई.

ऐसे हुई मुलाकात

उत्तर प्रदेश के जनपद बरेली के पीलीभीत बाइपास स्थित महानगर कालोनी निवासी राजकुमार शर्मा साधन संपन्न थे. फेसबुक व व्हाट्सएप के जरिए मुरादाबाद की रहने वाली स्वीटी ने उन से दोस्ती कर ली. दोस्ती के इस सिलसिले ने उन्हें बेहद नजदीक ला दिया. पूछने पर स्वीटी ने बताया कि वह मुरादाबाद में रह कर एमबीए की पढ़ाई कर रही है. सामाजिक व उम्र के लिहाज से भले ही यह अच्छा नहीं था, लेकिन शायद राजकुमार ने सोचा कि नए जमाने की लड़की है और वह खुद ही राजी है तो इस में बुराई क्या है.

स्वीटी के कई सारे मीठे मैसेज ने उन्हें गरिमा का खयाल भी भुला दिया. दोनों तरफ से मैसेज में शालीनता को लांघा गया. अश्लील फोटो भी भेजे गए. फोन पर गरमागरम बातचीत होने लगी थी.एक दिन राजकुमार ने मिलने की ख्वाहिश जाहिर की तो स्वीटी बरेली पहुंच गई. वह खुश थे कि चिडि़या उन के जाल में आ गई है जबकि वह नहीं जानते थे कि जिसे वह चिडि़या समझ रहे हैं वह खुद उन की शिकारी है. राजकुमार स्वीटी को एक मकान में ले गए और वहां दोनों ने अंतरंग रिश्ते बनाए. इस मुलाकात में स्वीटी ने फीस जमा करने के नाम पर राजकुमार से 25 हजार रुपए भी ले लिए. अगली मुलाकात में उस ने मौल में घूम कर राजकुमार के पैसों से शौपिंग की. घंटों दोनों ने मौजमस्ती की. इस मुलाकात में स्वीटी ने राजकुमार से अपने लिए स्कूटी की जरूरत जाहिर की.राजकुमार की आर्थिक स्थिति ठीकठाक थी. स्वीटी को पा कर वे खुश थे. इसलिए स्वीटी को नाराज नहीं करना चाहते थे. उन्होंने 70 हजार रुपए स्कूटी खरीदने के लिए स्वीटी को दे दिए. इस तरह महज दो मुलाकातों में ही स्वीटी पर 95 हजार रुपए खर्च हो गए थे.

ब्लैकमेलिंग का खेल

27 सितंबर को स्वीटी के कथित भाई विकास ने राजकुमार को फोन कर के बताया कि उस ने जहर खा लिया है इसलिए इलाज के लिए तुरंत 4 लाख रुपए का इंतजाम करें. राजकुमार ने इतनी रकम होने से मना कर दिया तो फोनकर्ता ने दुराचार के मामले में उन्हें जेल भिजवाने की धमकी दी और यह भी बताया कि स्वीटी के साथ उन के फोटो भी हैं. जवान लड़की से दोस्ती की उन की भूल से राजकुमार परेशान हो गए. वह समझ गए कि उन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा है और इस तरह आगे भी किया जाता रहेगा. मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने पुलिस में शिकायत कर दी. पुलिस के कहने पर रुपए देने के बहाने उन्होंने फोनकर्ता को बस अड्डे बुलवाया तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने स्वीटी व उस के दोस्त बजरंग को भी पकड़ लिया. इन के पास से 50 हजार रुपए, 3 मोबाइल फोन व 1 नई कार भी बरामद हुई.

और भी हुए शिकार

पेशे से ऐंबुलैंस चालक विकास के यहां स्वीटी 10 हजार रुपए महीने पर नौकरानी का काम करती थी. वैसे उस की हैसियत नौकरानी से ज्यादा थी क्योंकि विकास उसे हथियार के रूप में लोगों को फांसने के लिए इस्तेमाल करता था. एमएड की पढ़ाई कर रहा बजरंग भी उन के साथ रहता था. तीनों का काम स्वीटी के जरिए लोगों को ब्लैकमेल करना था. फेसबुक पर ऐसे लोगों को ढूंढ़ा जाता था जो अच्छी हैसियत वाले हों और लड़कियों में दिलचस्पी रखते हों. स्वीटी पहले उन से दोस्ती करती थी फिर अंतरंग रिश्ते बना कर चोरी से वीडियो बना कर ब्लैकमेल करती थी.राजस्थान के एक कारोबारी से उन्होंने 5 लाख रुपए इसी तरह लिए और नई कार भी खरीदी. अपने नए शिकार के रूप में उन्होंने इस बार मैनेजर राजकुमार की पहचान की. इस के बाद स्वीटी ने व्हाट्सएप के जरिए उन्हें ‘हाय’ लिख कर मैसेज किया. स्वीटी ने प्रोफाइल पर अपनी दिलकश फोटो भी डाली हुई थी. मैसेज किसी लड़की का था. राजकुमार ने तुरंत जवाब दिया. इस के बाद सिलसिला चल निकला. गिरोह के अगले शिकार एक प्रोफैसर व होटल मालिक थे. यदि राजकुमार ने इस तरह लड़की के प्रति लालसा न दिखाई होती तो शायद ऐसी नौबत ही नहीं आती. राजकुमार जैसे कई लोग ऐसे गिरोह के शिकार होते हैं. कुछ मामले प्रकाश में आ जाते हैं जबकि कितने ही लोग सामाजिक बदनामी के चलते गुपचुप शिकार हो कर खामोश हो जाते हैं.

सोशल बनें, संभल कर

सोशल नैटवर्किंग साइट के बढ़ते प्रचलन से फायदों के साथ धोखाधड़ी, ठगी व ब्लैकमेलिंग के मामले भी प्रकाश में आ रहे हैं. फेसबुक पर कब कौन शिकार बन रहा होता है इस बात को कोई नहीं जानता. साइबर अपराधी सोशल साइट के जरिए लोगों को फंसाते हैं. सब से पहले वे लोगों की प्रोफाइल चैक कर के उस की हैसियत, रुचियों व दोस्तों का पता लगाते हैं. उसे देख कर वह अंदाजा लगा लेते हैं कि कौन उन का शिकार बन सकता है. साइबर अपराधियों के निशाने पर सब से ज्यादा लड़कियां, घरेलू महिलाएं, बिजनैस मैन व नौकरी की तलाश में भटक रहे युवा होते हैं.

कई लोग अपने आलीशान घर, गाडि़यों व ज्वैलरी तक के फोटो फेसबुक पर डाल देते हैं. ऐसी प्रवृत्ति खतरनाक हो सकती है. साइबर ठग भरपूर नजर रखते हैं और फर्जी फेसबुक आईडी के जरिए फंसाने का काम करते हैं. फेसबुक पर ज्यादातर आईडी फर्जी होती हैं. फेसबुक का इस्तेमाल करते हुए प्राइवेसी का खयाल रखना चाहिए. छवि खराब करने वाले फोटो पर कुछ पोस्ट करने से पहले सोचना चाहिए. एक्सपर्ट की मानें तो अनजान लोगों को न दोस्त बनाना चाहिए और न ही उन से बातचीत करनी चाहिए. सेफ्टी नियमों का पालन करना चाहिए. अपना पासवर्ड किसी से शेयर नहीं करना चाहिए. अंजान संदेशों का उत्तर देने से भी बचना चाहिए.

नारी सर्वत्र उत्पीड़न

विश्व के सभी देशों में किसी न किसी रूप में नारी उत्पीडि़त है, चाहे व विकसित देश हों या विकासशील. पुरुषों की तरह अधिकार व स्वतंत्रता पाने के लिए महिलाएं संगठन बना कर आवाज भी उठाती हैं परंतु वह भी नक्कारखाने में तूती की आवाज ही साबित होती है. सभ्य समाज स्त्री के अधिकारों को मान्यता तो देता है पर आगे बढ़ने के समय वह रोड़े भी अटकाता है क्योंकि पुरुष खुद अपने वर्चस्व में कमी नहीं आने देना चाहता.हर साल 8 मार्च को पूरा विश्व महिला दिवस मनाता है. बड़ीबड़ी बातें की जाती हैं. मानवाधिकार आयोग व संयुक्त राष्ट्र संघ अपनीअपनी रिपोर्ट पेश करते हैं. गलतियों को सुधारने के लिए पहले किए गए प्रण को फिर से दोहराया जाता है, पर होता कुछ नहीं. उदाहरण के लिए भारत में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण बिल संसद में वर्षों से लटक रहा है.

इस में रोचक बात यह है कि कई अफ्रीकी व मुसलिम देशों की स्त्रियां, जो अशिक्षित हैं, स्वयं सुधरने के नाम पर विरोध प्रदर्शन करती हैं. पश्चिम अफ्रीका में तकरीबन 62 लाख आबादी वाला एक छोटा देश सिएरालियोन है. वहां की 500 महिलाओं ने एक जुलूस निकाला था. उन के हाथों में बोर्ड पर लिखा था, ‘महिलाओं के सुन्नत कराने का विरोध करने वालों को फांसी पर चढ़ा दिया जाए’. मतलब यह कि वे सुन्नत कराने की प्रथा के पक्ष में हैं. है न विचित्र बात? वहां के जंगलों में रहने वाली बुंड जाति की लड़कियों के वयस्क होते ही उन के भगांकुर को ब्लेड या चाकू से काट दिया जाता है, जिस में उन्हें असह्य पीड़ा झेलनी पड़ती है. कभीकभी तो लड़कियां बेहोश तक हो जाती हैं.

वैज्ञानिक युग व बर्बर प्रथा

सुन्नत एक तरह की मुसलिम प्रथा है जिस में लड़कों की तरह लड़कियों का भगांकुर काट दिया जाता है और सिर्फ इस डर से कि सैक्स आनंद के लिए लड़की अपने प्रेमी के साथ भाग न जाए. सुन्नत करते समय लड़कियों को न तो बेहोश किया जाता है और न ही उन का डाक्टरी इलाज होता है. आज के इस आधुनिक वैज्ञानिक युग में, है न यह बर्बर व अजीब प्रथा? सिएरालियोन देश की बुंड जाति की महिलाओं जैसा रिवाज प्राय: सभी अफ्रीकी देशों में है. मिस्र जैसे उन्नत देश में भी यह प्रथा चालू है. केन्या के सोमाली में महिलाओं की हालत तो और भी बदतर है. सुन्नत करा लेने के बाद भी उन्हें बलात्कार की पीड़ा से गुजरना पड़ता है. यूरोप, अमेरिका व अन्य विकसित देशों के महिला संगठन यदि इस बर्बर प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाते हैं तो उन्हें भी आड़े हाथों ले कर फटकारा जाता है.

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या फंड की अधिकारी नफीसा आदिक ने यूएनओ प्रैस कौन्फ्रैंस में मुसलिम औरतों के ऊपर सुन्नत व अन्य अत्याचारों का वीभत्स चित्रण किया था. रिपोर्ट पूरी 440 पृष्ठों की है. उन्होंने दुखी मन से टिप्पणी की कि विश्व में महिलाओं के लिए 2 काम ही बचे हैं. पहला मुंह बंद रख कर पुरुषों का अत्याचार सहना और दूसरा बच्चे पैदा करना.इंगलैंड, अमेरिका और जापान जैसे विकसित देशों में भी करीबकरीब महिलाओं की यही हालत है. नफीसा के अनुसार, ‘‘अमेरिका में प्रतिवर्ष 2 लाख से अधिक महिलाएं बलात्कार की शिकायतें दर्ज करवा कर न्यायालय का दरवाजा खटखटाती हैं. हर साल कुंआरी लड़कियों की मां बनने की संख्या 5 लाख से ऊपर है तथा लगभग 4 लाख महिलाएं वेश्यावृत्ति में संलग्न हैं.’’

देह व्यापार का शिकंजा

जापान में भी महिलाओं की हालत बुरी ही है. यहां छोटीछोटी नाबालिग लड़कियों को लालच दे कर देह व्यापार में धकेला जाता है. कुछ समय पहले जापान सरकार ने इन वेश्याओं के पुनर्वास की एक योजना बनाई थी, तब वहां के पुरुषों ने उस योजना का घोर विरोध यह कह कर किया था कि हम दिन में 18 घंटे मेहनत करते हैं. कईकई दिनों तक घर नहीं जाते हैं. ऐसे में हमें शैयासुख देने वाली लड़कियां चाहिए ही चाहिए. आखिर हम भी राष्ट्रहित में अपनी शक्ति व समय जो दे रहे हैं.

जापान के सैक्स व्यापार में थाईलैंड की युवतियों की बहुलता है. दूसरे विश्वयुद्ध में पीडि़त महिलाएं जो जापानी सैनिकों के मनोरंजन का साधन बनी थीं वे प्रायश्चितस्वरूप सरकार से 1 करोड़ डौलर की मांग कर रही थीं. इस देह व्यापार मंडी में थाईलैंड के अलावा कोरिया, फिलीपींस, नेपाल तथा तिब्बत की करीब 2 लाख स्त्रियां शामिल हैं. केवल नेपाल से ही हर साल 10 से 20 लाख लड़कियों को वेश्यावृत्ति में झोंक दिया जाता है जिन में 1 लाख नेपाली युवतियां अकेले भारत में ही बिकती हैं. इस सामाजिक बुराई के विरुद्ध पी के खैरनार ने आवाज उठाई और 112 नेपाली लड़कियों को छुड़ाया भी था.

शरीर वैज्ञानिकों के अनुसार, ‘‘औरतों का मन बहुत मजबूत होता है. प्रकृति ने उन्हें गर्भधारण करने की विशेष शक्ति प्रदान की है. अत: इसी कारण वे अतिशय ठंड, गरमी व भूख सहन करने की सामर्थ्य रखती हैं. पुरुष की तुलना में औरत शारीरिक घनत्व में 17 प्रतिशत कम होती हैं.’’अपने देश में हर साल 30 हजार से अधिक महिलाएं दहेज की बलि चढ़ जाती हैं. 20 हजार बलात्कार की शिकार हो जाती हैं, जिन में बहुतायत से कम आयु की लड़कियां होती हैं. कोलकाता के सोनागाछी क्षेत्र में ही लगभग 1 लाख महिलाएं चकलाघरों में वेश्यावृत्ति करती हैं.

कट्टर धर्म

ईसाई, हिंदू, सिख, जैन संप्रदाय के लोगों में विवाह धार्मिक संस्कारों के तहत मात्र एक पत्नी के पोषक हैं, जबकि मुसलिम संप्रदाय में विवाह एक करारनामा होता है जिस में कुछ शर्तें भी लिखी व मानी जाती हैं. यह भी लिखा जा सकता है कि पुरुष और दूसरा विवाह न करे परंतु कट्टरपंथी धर्मगुरु व नेता ऐसा करने नहीं देते.थोड़े समय पहले बेरूत में हजारों स्त्रियों ने तलाक प्रथा पर रोक लगाने की मांग की थी. लेबनान में हर साल पतियों द्वारा 3 हजार पत्नियों को घर से निकाल दिया जाता है. वहां औरतों के प्रति कानून बहुत ही लुंजपुंज और शून्य के बराबर हैं. मुसलिम देशों में गर्भपात पर प्रतिबंध है. पिछले दिनों मिस्र जैसे देश ने बलात्कार की शिकार कुमारियों को गर्भपात कराने की छूट देने की बात चलाई थी.

इस मामले में सऊदी अरब, पाकिस्तान, ईरान, इराक और अफगानिस्तान बहुत ही कट्टर धर्मावलंबी देश हैं. पाकिस्तान में एक महिला कम से कम 5 बच्चों को जन्म देती है. ज्यादा लड़कियां पैदा करने पर भी पुरुष तलाक दे कर दूसरी शादी कर लेते हैं. आज पाकिस्तान की जनसंख्या 19 करोड़ है. यहां परिवार नियोजन को धर्म के विरुद्ध माना जाता है.अफगानिस्तान में जब तालिबान सरकार की हुकूमत थी तब वहां लड़कियों के कालेज बंद कर दिए गए. अगर कोई औरत लिपस्टिक लगा लेती तो तालिबानी सैनिक उस के होंठ काट देते. बगैर बुर्का पहने कोई औरत सड़क पर चलती थी तो उसे सीधे जेल भेज दिया जाता था.

खाड़ी देशों में भी कमोबेश यही हालत है. अगर कोई औरत कार में टेपरिकौर्डर जोर से बजाती है तो उसे 6 महीने की सजा हो सकती है. रंगीन मिजाज के शेख कम उम्र की युवतियों से शादी कर लेते हैं. औरतें खरीद कर हरम में रख लेते हैं. नौकरानियों का दैहिक शोषण तो वहां आम बात है. सब से अधिक मानवाधिकारों का हनन मुसलिम देशों में होता है. साफ है कि स्त्रियों को अपने अधिकार पाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ेगा. शिक्षा का अभाव उन की सब से बड़ी कमजोरी साबित हो रही है. रूढि़ग्रस्त, बर्बर, असभ्य, असामाजिक मान्यताओं का त्याग करना ही होगा. इस में स्त्रियां ही स्त्रियों को ज्यादा समझ सकती हैं. मात्र कट्टरपंथी बनने से हालत सुधरने वाली नहीं है. दम ठोंक कर अन्याय के विरुद्ध महिलाओं को आगे बढ़ना चाहिए. हक लड़ कर लेने होंगे. पुरुष वर्ग उदारता से कुछ भी देने वाला नहीं है. अबला सबला तभी बन सकेगी जब वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होगी.

पूंजी बाजार

शेयर बाजार को मामूली झटका

बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई का सूचकांक, वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के 5 साल के सर्वाधिक निचले स्तर पर पहुंचने और अर्थव्यवस्था के लगातार मजबूत रहने के संकेत के कारण, नवंबर के अंत तक लगातार छठे सप्ताह तेजी पर बंद हुआ. सूचकांक लगातार आगे बढ़ता हुआ फिर नए रिकौर्ड यानी 29 हजार की तरफ बढ़ता रहा. सूचकांक 28,700 अंक पर पहुंच गया और नैशनल स्टौक एक्सचेंज यानी निफ्टी भी 8,600 अंक की तरफ बढ़ गया. दिसंबर की शुरुआत में बाजार को अचानक झटका लगा और लगातार पहले सप्ताह बाजार ने गिरावट का रुख किया. जानकार लोग बैंकों का ब्याज दरों में कटौती नहीं करने की बड़ी वजह रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के निर्णय को मानते हैं.

कहा यह भी जा रहा है कि गवर्नर का बयान अत्यधिक सधा हुआ है. उन का कहना था कि फिलहाल ब्याज दरों में कटौती मैच्योरिटी यानी एक अर्थशास्त्री की परिपक्वता नहीं है. इसी तरह से तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक के तेल उत्पादन में कमी नहीं करने का फैसला बाजार के लिए अच्छे संकेत हैं और आने वाले दिनों में सूचकांक में तेजी का रुख फिर बनेगा. सूचकांक की इस मामूली गिरावट को निवेशक गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, इस से उन का उत्साह प्रभावित नहीं हो रहा है.

ढाई लाख गांव में वाईफाई क्रांति

सरकार ई गवर्नेंस यानी डिजिटल इंडिया को अपनी उपलब्धियों का सरताज बनाना चाहती है. इस ताज का इस्तेमाल वह आलोचकों का मुंह बंद करने के लिए करना चाहती है. कहा तो यह भी जा रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार वाईफाई को उसी तरह का सरताज बनाना चाहती है जैसे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने सड़क परिवहन योजना से गांवों को जोड़ कर अपनी छवि बनाई थी. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का लक्ष्य हर गांव को सड़क मार्ग से जोड़ना था और अब मोदी सरकार नैशनल औप्टिकल फाइबर कनैक्टिविटी यानी एनओएफसी के जरिए हर गांव को वाईफाई से जोड़ने में जुटी है. सरकार का कहना है कि मार्च 2016 तक ढाई लाख गांवों को इस योजना से जोड़ दिया जाएगा. मोदी सरकार के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के लिए इसे महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है. वाईफाई का सेहरा पहन कर सरकार आलोचकों का मुंह भी बंद करना चाहती है.

आलोचक अब तक कह रहे हैं कि सरकार बोल ज्यादा रही है, काम कम कर रही है. विपक्ष कहता है कि अन्य योजनाओं की तरह यह भी उसी की योजना है. इस योजना को 2011 में मंजूरी दी गई थी और पहले चरण में 1,03,614 गांव इस योजना से जुड़ने थे. इस वर्ष मार्च तक 1 लाख गांवों को उस से जोड़ा जाना था लेकिन सिर्फ 60 गांवों को ही इस से जोड़े जा सकने का दावा किया जा रहा है. हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि अब इस योजना के तहत 6,410 ग्रामपंचायतों में काम शुरू किया जा चुका है. उन ढाई लाख गांवों को एनओएफसी से जोड़ने का काम 2012 में शुरू हुआ. यह लंबी योजना है और इस तरह की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं पर काम करने में समय लगना स्वाभाविक है. लेकिन योजनाओं को अपना कह कर प्रचारित करने का काम भी एक कला है और नरेंद्र मोदी सरकार को इस कला में महारत हासिल है. लेकिन यह भी सच है कि नई सरकार हर योजना पर खासकर जनता से जुड़ी परियोजनाओं पर आक्रामकता से काम कर रही है.

हर गांव को यदि इस कार्यक्रम से जोड़ा जाता है तो यह सूचनाक्रांति का एक अहम पड़ाव साबित होगा. मोबाइल के बाद अब लैपटौप हर हाथ का खिलौना बन रहा है. और यदि इन उपकरणों को वाईफाई सुविधा मिल जाएगी तो सूचना तकनीकी के स्तर पर हमारे गांवों की तसवीर बदल जाएगी. यह आधुनिक भारत की शुरुआत होगी.

फर्जी कंपनियों को पकड़ने की कवायद

पोंजी घोटाले यानी चिटफंड कंपनियां जन सामान्य की मेहनत की कमाई पर आएदिन डाका डाल रही हैं. बड़ेबड़े नेता, अभिनेता और उद्योगपति घोटाले में बंद हो रहे हैं. यह कार्यवाही सिर्फ घोटालों में हो पा रही है, जिन के नाम सामने आ रहे हैं. अनगिनत चिटफंड कंपनियां और उन का पोषण कर रहे असंख्य लोग जनता की गाढ़ी कमाई पर मौज कर रहे हैं और जनता के पैसे लूट कर जनप्रतिनिधि बन कर जनहित की बातें कर विधानसभाओं व संसद में लंबा भाषण दे कर माननीय बने हुए हैं. भविष्य में खुलासे होंगे तो कितने ही और माननीय इस जाल में फंसे हुए मिलेंगे. एक अखबार ने हाल ही में लिखा है कि करीब 30 हजार वित्तीय कारोबार करने वाली कंपनियां हर दिन लाखों का कारोबार कर रही हैं. इन में 25 हजार कंपनियां पंजीकृत भी नहीं हैं. मतलब, पैसा बनाने की मशीनें खुली लूट मचा रही हैं जबकि सरकार के पास उन के बारे में कोई हिसाबकिताब नहीं है. सरकार की सक्रियता तब ही दिखती है जब कंपनियां पैसा ले कर भाग जाती हैं. हाल ही में रिजर्व बैंक ने शारदा घोटाले में खुलासे के बाद इन कंपनियों पर निगरानी रखने के लिए या यों कहें कि इन कंपनियों के अस्तित्व में होने की सूचना देने के लिए अपनी मार्केट इंटैलिजैंस टीम बनाई है. बैंक ने अपने 19 क्षेत्रीय कार्यालयों में से 16 में इस सतर्कता टीम का गठन किया है.

इस टीम को शायद यह काम सौंपा गया है कि वह चिटफंड कंपनियों के बारे में जानकारी जुटाए. यह सब व्यवस्था को चाकचौबंद करने का सरकारी तरीका है. ऐसा प्रयास कर के सिर्फ खाल को बचाया जा रहा है और तर्क तैयार किया जा रहा है कि सरकार हर कदम पर सतर्क है. यह कैसे संभव है कि गलीमहल्ले की खबर पहुंचाने वाली सरकारी सतर्कता एजेंसियों को पोंजी कंपनियों की गतिविधियों की जानकारी नहीं हो. यह सूचना निश्चित रूप से सरकार तक भी पहुंचती है लेकिन वास्तविकता से जानबूझ कर आंखें मूंदी जाती हैं या प्रभावशाली लोगों के उस में शामिल होने के कारण बात दबाई जाती है.

सिगरेट की बिक्री पर रोक की सकारात्मक पहल

सरकार ने सिगरेट को बाजार से हटाने का मन बना लिया लगता है. ‘धूम्रपान हटाओ’ को यह सरकार एक तरह से अभियान के तौर पर ले रही है ताकि इसे आंदोलन बना कर समाप्त किया जा सके. सचमुच धूम्रपान के विरुद्ध जब तक समाज के सभी वर्ग एकजुट नहीं होंगे और इसे आंदोलन का रूप नहीं दिया जाएगा, सिगरेट जैसी बुराई को समाप्त नहीं किया जा सकता. उदाहरण के लिए दिल्ली प्रैस पत्रिका समूह ने दशकों पहले से शराब और बीड़ीसिगरेट के विज्ञापन छापने पर रोक लगा रखी है. हर तरह के विज्ञापन छाप कर पैसा कमाने की होड़ में जुटे भारतीय पत्रपत्रिकाओं के इतिहास की यह असाधारण घटना है.

उधर, सरकार सिगरेटबीड़ी का इस्तेमाल घटाने के लिए हर बजट में उन की कीमत बढ़ा रही है, चेतावनी लिख रही है और बीड़ीसिगरेट के पैकेट पर ही इस के नुकसान के परिणाम को मोटे अक्षरों में और चित्र के साथ छापा जा रहा है. पहले 18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए धूम्रपान बेचने या खरीदने पर रोक लगाई और अब यह उम्र 21 साल की करने व खुली सिगरेट की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया है. यह बड़ा फैसला है.

यह सरकार की इस बुराई पर रोक लगाने की राष्ट्रशक्ति का परिचायक है. पान की दुकानों में खुली सिगरेट बिकने पर रोक लगाने से इस का इस्तेमाल कम हो सकता है. लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. इस के लिए सख्त कानून बनाने की जरूरत है. सरकार जब यह तय कर लेगी कि उसे बीड़ीसिगरेट से राजस्व नहीं कमाना है तो उसी दिन उन पर रोक लग जाएगी और लोग बड़ी तादाद में बीड़ीसिगरेट का इस्तेमाल रोक देंगे.

भारत भूमि युगे युगे

पप्पू, पापा और ग्रैंड पा

उत्तर प्रदेश के नोएडा विकास प्राधिकरण के मुख्य अभियंता यादव सिंह की अकूत दौलत देख सभी की तरह सपा नेता अमर सिंह भी हैरान थे. इसी हैरानी में उन्होंने एक कायदे की बात यह कही कि यादव सिंह तो पप्पू है, उस के पापा को ढूंढ़ो. बात सच है यादव सिंह जैसे अधिकारी दलाल भर होते हैं. भ्रष्टाचार का परनाला नीचे से ऊपर की तरफ बहता है जिस में सभी का वाजिब हिस्सा तय रहता है. परदे के पीछे असल बौस की तरफ इशारा करते, दर्जनों कंपनियों के डायरैक्टर अमर सिंह ने दिल की बात भी कह ही डाली कि मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश की बागडोर अपरिपक्व हाथों में सौंप दी है. अब हकीकत इस तजरबेकार उद्योगपति व नेता से बेहतर कौन जानसमझ सकता है कि टैंडरों का खेल बेहद सधे ढंग से खेला जा रहा था. गड़बड़ तो किसी दादानुमा व्यक्ति ने की है जिस के गरीबान तक कानून शायद ही पहुंचे.

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बात और बतंगड़

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की बेदाग छवि किसी सुबूत की मुहताज नहीं. लोग उन्हें तेजतर्रार, समझदार और एक सीमा तक कट्टरवाद से मुक्त नेत्री मानते हैं लेकिन उन्होंने बैठेठाले एक मुसीबत यह मांग उठाते हुए मोल ले ली है कि क्यों न गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित कर दिया जाए. न मौका था न मौसम और न ही दस्तूर था लेकिन सुषमा स्वराज ने खासा बवाल मचवा दिया और साबित भी कर दिया कि भगवा आतंकवाद दरअसल क्या और कैसा होता है. तथाकथित धर्मनिरपेक्ष खासतौर से कांग्रेसी अकर्मण्य जनता पर तिलमिलाए हुए हैं जो सचमुच गीता को ज्ञान का भंडार मान रही है. सच है अब लोगों के हाथों में एके-47 की जगह गीता होनी चाहिए. वह भी तो आखिरकार एक तरह का हथियार ही है.

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श्मशान में डिनर

कर्नाटक के आबकारी मंत्री सतीश जरकिरोली का नाम कारोबार की दुनिया में भी इज्जत से लिया जाता है. इस की एक वजह उन के कारोबार का सालाना टर्नओवर 600 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का होना है, वह भी उस सूरत में जब वे लक्ष्मीपूजा नहीं करते, यानी नास्तिक हैं. बीती 8 दिसंबर की रात सतीश जरकिरोली कर्नाटक में सदाशिव नगर के सब से पुराने श्मशान वैकुंठधाम में थे और उन्होंने रात्रिभोज भी वहीं लिया. मंशा नेक थी कि लोगों के दिलोदिमाग में श्मशान को ले कर अंधविश्वास व गलतफहमियां दूर हों. गौरतलब है कि उन्होंने विधानसभा में अंधविश्वास विरोधी विधेयक लाने का समर्थन भी किया है. उम्मीद है इस श्मशान डिनर का वाजिब असर पड़ेगा पर बड़ी जरूरत औघडि़यों और तांत्रिकों से सावधान रहने की भी है.

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हैरान हैं जशोदा बेन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पत्नी जशोदा बेन के पास देश के कोनेकोने से पत्र पहुंच रहे हैं. कोई उन के त्याग की तारीफ करता है तो कोई उन्हें नम्रतापूर्वक अपने साथ रखना चाहता है. कुछ दिन पहले सुरक्षा घेरे से तंग आ कर अपने अधिकारों के बाबत सवाल पूछने वाली जशोदा बेन को हर कोई जानता है कि वे एक सभ्य सौम्य और शांत महिला हैं.वे हैरान हैं कि आखिर क्यों पतिदेव उन्हें दिल्ली नहीं ले जा रहे. नरेंद्र मोदी के बड़े बनने में उन का त्याग व योगदान अहम है. पुराने जमाने में बातबात पर और कभीकभी तो यों ही लोग पत्नी को त्याग देते थे. शायद आज भी माहौल ज्यों का त्यों है और महिला सशक्तीकरण व स्त्री अधिकार आदि सब कहने मात्र को हैं.

सवालों के घेरे में धारा 498ए

मृतक के हाथ में एक छोटा सा फटेचिटे कपड़े का टुकड़ा था, जिस पर लिखा हुआ था, ‘दहेज उत्पीड़न के आरोप को सह न पाने के कारण मजबूरन मुझे यह रास्ता अख्तियार करना पड़ा.’ आत्महत्या करने वाले इस शख्स का नाम था प्रयाग सिंह. 1983 में घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को ढाल के रूप में 498ए कानून सौंपा गया था. आज ज्यादातर मामलों में यह ढाल अब एक धारदार हथियार के रूप में तबदील हो चुकी है.

विवाहित महिलाओं को विशेष तरह की सुरक्षा देने वाली भारतीय दंड विधान की धारा 498ए के लागू होने के 3 दशक पूरे हो चुके हैं. वास्तविकता यह है कि सही माने में मुट्ठीभर मामलों को छोड़ कर न्याय देने और दिलाने में यह धारा कोसों दूर है. इस धारा का पुरुषों के खिलाफ बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है. इस का अंदेशा शुरू से ही था और समयसमय पर विभिन्न मोरचों पर इस को ले कर बहुत बहस भी हो चुकी है. इस में जो नया है वह यह कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि 498ए धारा के अंतर्गत अभियोजन पक्ष द्वारा महज शिकायत करने पर बगैर जांच के अभियुक्त/अभियुक्तों को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने पहले भी इस धारा के बेजा इस्तेमाल पर नाराजगी जाहिर की थी. एक बार तो इसे ‘कानूनी आतंकवाद’ का भी नाम दिया गया. लेकिन धारा के लागू होने के 3 दशक के बाद सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सी के प्रसाद की खंडपीठ ने घरेलू हिंसा के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि देखा जा रहा है धारा 498ए का इस्तेमाल ढाल के बजाय हथियार के रूप में कहीं अधिक हो रहा है. इसलिए पुलिस मामले की जांच किए बगैर अभियुक्त को गिरफ्तार नहीं कर सकती है. थाना क्षेत्र के पुलिस जांच अधिकारी को मैजिस्ट्रेट के सामने अभियुक्त की गिरफ्तारी के लिए तर्क और तथ्य पेश करने होंगे. वहीं, न्यायाधीश सी के प्रसाद की खंडपीठ ने मजिस्ट्रेटों को भी ताकीद की है कि ऐसे मामले में वे भी मशीनी तौर पर अपना फैसला न सुनाएं.

नहीं होगा उत्पीड़न

जाहिर है सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने पुरुषों को बड़ी राहत दी है. अब तक होता यही रहा है कि इस धारा के तहत किसी महिला द्वारा शिकायत करने पर अभियुक्त ससुराल वालों की गिरफ्तारी तुरंत हो जाती थी और बेकुसूर साबित करने की जिम्मेदारी भी खुद अभियुक्तों की ही होती. मामले की जांच भी बाद में होती. गौरतलब है कि इस धारा के तहत अधिकतम सजा 3 साल की कैद है. पर फर्जी शिकायत के मामले में एक पूरा का पूरा परिवार पहले तो जेल की सलाखों के पीछे और फिर सामाजिक तौर पर उत्पीड़न का शिकार हो कर खत्म हो जाता है.

कोलकाता हाईकोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट भास्कर वैश्य का कहना है, ‘‘कुछ मामलों में पाया गया है कि महिलाएं पति या ससुराल से अपनी खुन्नस मिटाने के लिए इस धारा का प्रयोग हथियार के रूप में करती हैं. बहुत सारे मामलों में यह भी पाया गया है कि पति के बीमार या बिस्तर पर पड़े सास व ससुर, विदेश में रहने वाली ननद व ननदोई और यहां तक कि घर के किशोरों को भी केवल खुन्नस मिटाने के लिए इस धारा के लपेटे में महिलाओं द्वारा ले लिया जाता है.’’ वे कहते हैं कि इस धारा का सब से खतरनाक पहलू यह है कि अपनेआप को निर्दोष साबित करने का दायित्व केवल और केवल अभियुक्त का है. यही नहीं, इस धारा में आपसी समझौते से मामले को निबटाने की भी कोई गुंजाइश नहीं है. जाहिर है, इस में पुलिस को बंदरबाट का मौका मिल जाता है.

पुलिस की भूमिका

अकसर देखा जाता है कि पुलिस का जांच अधिकारी ही परिवार के बहुत सारे सदस्यों का नाम सूची में शामिल कर के उन्हें अभियुक्त बना देता है और मामला अदालत में पहुंचने पर कुछ सदस्यों से लेनदेन कर के उन के नाम हटा देता है. एक हद तक यह धारा पुलिस महकमे में भ्रष्टाचार को भी न्योता देती है. इसीलिए कोई 10 साल पहले मल्लीनाथ समिति ने भी इस धारा में संशोधन की सिफारिश की थी. विवाहित महिलाओं को ससुराल पक्ष द्वारा दिए जाने वाले मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न से सुरक्षा देने वाली इस गैर जमानती धारा के बेजा इस्तेमाल की बढ़ती वारदातों के मद्देनजर 2012 में पूर्व न्यायाधीश पी वी रेड्डी ने तत्कालीन कानून मंत्री सलमान खुर्शीद को पत्र लिख कर इस में जरूरी संशोधन की बात कही थी. रेड्डी ने अपने पत्र में झारखंड की प्रीति गुप्ता बनाम राज्य के मामले का हवाला भी दिया था. रेड्डी के अलावा 2012 में कानून आयोग ने भी अपनी 234वीं रिपोर्ट में यही बात कही है.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 498ए के तहत दर्ज होने वाले मामले में प्रति वर्ष 10 प्रतिशत का इजाफा हो रहा है. 2009 में देशभर में कुल 89,546 मामले इस धारा के अंतर्गत दर्ज हुए. जबकि केवल 7380 मामले यानी 2.3 प्रतिशत मामलों में दोष सिद्ध हुआ. साल 2012 के प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय दंड विधान की इस धारा के तहत कुल 1,97,762 लोगों की गिरफ्तारी हुई. इस में भी एकचौथाई संख्या महिलाओं की है, जो अभियोजन पक्ष की या तो सासननद या फिर देवरानीजेठानी हैं. वहीं, 93.6 प्रतिशत जमा की गई चार्जशीट्स में से महज 15 प्रतिशत कुसूरवार साबित होते हैं.

संशोधन की सिफारिश

कुछ महिलाएं इस धारा का गैरवाजिब इस्तेमाल कर के न केवल औरों की आजादी का हनन करती हैं, बल्कि सामाजिक उत्पीड़न के साथ पूरे परिवार के नाम के साथ कभी न मिटने वाला धब्बा भी चस्पां कर देती हैं. लेकिन अब कुछ मुट्ठीभर स्वार्थी महिलाओं के कारण इस धारा में संशोधन के लिहाज से हो सकता है इसे जमानतयोग्य धारा बना दिया जाए, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश पी वी रेड्डी, कानून आयोग और मल्लीनाथ समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है. ऐसा किया जाएगा तो इस धारा का प्रभाव कुछ कम हो जाएगा. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि सही माने में जिन महिलाओं के लिए यह धारा मददगार साबित हो सकती है, उन को पुख्ता न्याय शायद नहीं मिल पाएगा. ऐसे में जहां से चले थे, हम वापस वहीं पहुंच जाएंगे और इन 3 दशकों में एक वृत्त पूरा हो जाएगा, जिस का हासिल सिफर होगा

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