शेयर बाजार को मामूली झटका
बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई का सूचकांक, वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के 5 साल के सर्वाधिक निचले स्तर पर पहुंचने और अर्थव्यवस्था के लगातार मजबूत रहने के संकेत के कारण, नवंबर के अंत तक लगातार छठे सप्ताह तेजी पर बंद हुआ. सूचकांक लगातार आगे बढ़ता हुआ फिर नए रिकौर्ड यानी 29 हजार की तरफ बढ़ता रहा. सूचकांक 28,700 अंक पर पहुंच गया और नैशनल स्टौक एक्सचेंज यानी निफ्टी भी 8,600 अंक की तरफ बढ़ गया. दिसंबर की शुरुआत में बाजार को अचानक झटका लगा और लगातार पहले सप्ताह बाजार ने गिरावट का रुख किया. जानकार लोग बैंकों का ब्याज दरों में कटौती नहीं करने की बड़ी वजह रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के निर्णय को मानते हैं.
कहा यह भी जा रहा है कि गवर्नर का बयान अत्यधिक सधा हुआ है. उन का कहना था कि फिलहाल ब्याज दरों में कटौती मैच्योरिटी यानी एक अर्थशास्त्री की परिपक्वता नहीं है. इसी तरह से तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक के तेल उत्पादन में कमी नहीं करने का फैसला बाजार के लिए अच्छे संकेत हैं और आने वाले दिनों में सूचकांक में तेजी का रुख फिर बनेगा. सूचकांक की इस मामूली गिरावट को निवेशक गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, इस से उन का उत्साह प्रभावित नहीं हो रहा है.
ढाई लाख गांव में वाईफाई क्रांति
सरकार ई गवर्नेंस यानी डिजिटल इंडिया को अपनी उपलब्धियों का सरताज बनाना चाहती है. इस ताज का इस्तेमाल वह आलोचकों का मुंह बंद करने के लिए करना चाहती है. कहा तो यह भी जा रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार वाईफाई को उसी तरह का सरताज बनाना चाहती है जैसे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने सड़क परिवहन योजना से गांवों को जोड़ कर अपनी छवि बनाई थी. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का लक्ष्य हर गांव को सड़क मार्ग से जोड़ना था और अब मोदी सरकार नैशनल औप्टिकल फाइबर कनैक्टिविटी यानी एनओएफसी के जरिए हर गांव को वाईफाई से जोड़ने में जुटी है. सरकार का कहना है कि मार्च 2016 तक ढाई लाख गांवों को इस योजना से जोड़ दिया जाएगा. मोदी सरकार के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के लिए इसे महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है. वाईफाई का सेहरा पहन कर सरकार आलोचकों का मुंह भी बंद करना चाहती है.
आलोचक अब तक कह रहे हैं कि सरकार बोल ज्यादा रही है, काम कम कर रही है. विपक्ष कहता है कि अन्य योजनाओं की तरह यह भी उसी की योजना है. इस योजना को 2011 में मंजूरी दी गई थी और पहले चरण में 1,03,614 गांव इस योजना से जुड़ने थे. इस वर्ष मार्च तक 1 लाख गांवों को उस से जोड़ा जाना था लेकिन सिर्फ 60 गांवों को ही इस से जोड़े जा सकने का दावा किया जा रहा है. हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि अब इस योजना के तहत 6,410 ग्रामपंचायतों में काम शुरू किया जा चुका है. उन ढाई लाख गांवों को एनओएफसी से जोड़ने का काम 2012 में शुरू हुआ. यह लंबी योजना है और इस तरह की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं पर काम करने में समय लगना स्वाभाविक है. लेकिन योजनाओं को अपना कह कर प्रचारित करने का काम भी एक कला है और नरेंद्र मोदी सरकार को इस कला में महारत हासिल है. लेकिन यह भी सच है कि नई सरकार हर योजना पर खासकर जनता से जुड़ी परियोजनाओं पर आक्रामकता से काम कर रही है.
हर गांव को यदि इस कार्यक्रम से जोड़ा जाता है तो यह सूचनाक्रांति का एक अहम पड़ाव साबित होगा. मोबाइल के बाद अब लैपटौप हर हाथ का खिलौना बन रहा है. और यदि इन उपकरणों को वाईफाई सुविधा मिल जाएगी तो सूचना तकनीकी के स्तर पर हमारे गांवों की तसवीर बदल जाएगी. यह आधुनिक भारत की शुरुआत होगी.
फर्जी कंपनियों को पकड़ने की कवायद
पोंजी घोटाले यानी चिटफंड कंपनियां जन सामान्य की मेहनत की कमाई पर आएदिन डाका डाल रही हैं. बड़ेबड़े नेता, अभिनेता और उद्योगपति घोटाले में बंद हो रहे हैं. यह कार्यवाही सिर्फ घोटालों में हो पा रही है, जिन के नाम सामने आ रहे हैं. अनगिनत चिटफंड कंपनियां और उन का पोषण कर रहे असंख्य लोग जनता की गाढ़ी कमाई पर मौज कर रहे हैं और जनता के पैसे लूट कर जनप्रतिनिधि बन कर जनहित की बातें कर विधानसभाओं व संसद में लंबा भाषण दे कर माननीय बने हुए हैं. भविष्य में खुलासे होंगे तो कितने ही और माननीय इस जाल में फंसे हुए मिलेंगे. एक अखबार ने हाल ही में लिखा है कि करीब 30 हजार वित्तीय कारोबार करने वाली कंपनियां हर दिन लाखों का कारोबार कर रही हैं. इन में 25 हजार कंपनियां पंजीकृत भी नहीं हैं. मतलब, पैसा बनाने की मशीनें खुली लूट मचा रही हैं जबकि सरकार के पास उन के बारे में कोई हिसाबकिताब नहीं है. सरकार की सक्रियता तब ही दिखती है जब कंपनियां पैसा ले कर भाग जाती हैं. हाल ही में रिजर्व बैंक ने शारदा घोटाले में खुलासे के बाद इन कंपनियों पर निगरानी रखने के लिए या यों कहें कि इन कंपनियों के अस्तित्व में होने की सूचना देने के लिए अपनी मार्केट इंटैलिजैंस टीम बनाई है. बैंक ने अपने 19 क्षेत्रीय कार्यालयों में से 16 में इस सतर्कता टीम का गठन किया है.
इस टीम को शायद यह काम सौंपा गया है कि वह चिटफंड कंपनियों के बारे में जानकारी जुटाए. यह सब व्यवस्था को चाकचौबंद करने का सरकारी तरीका है. ऐसा प्रयास कर के सिर्फ खाल को बचाया जा रहा है और तर्क तैयार किया जा रहा है कि सरकार हर कदम पर सतर्क है. यह कैसे संभव है कि गलीमहल्ले की खबर पहुंचाने वाली सरकारी सतर्कता एजेंसियों को पोंजी कंपनियों की गतिविधियों की जानकारी नहीं हो. यह सूचना निश्चित रूप से सरकार तक भी पहुंचती है लेकिन वास्तविकता से जानबूझ कर आंखें मूंदी जाती हैं या प्रभावशाली लोगों के उस में शामिल होने के कारण बात दबाई जाती है.
सिगरेट की बिक्री पर रोक की सकारात्मक पहल
सरकार ने सिगरेट को बाजार से हटाने का मन बना लिया लगता है. ‘धूम्रपान हटाओ’ को यह सरकार एक तरह से अभियान के तौर पर ले रही है ताकि इसे आंदोलन बना कर समाप्त किया जा सके. सचमुच धूम्रपान के विरुद्ध जब तक समाज के सभी वर्ग एकजुट नहीं होंगे और इसे आंदोलन का रूप नहीं दिया जाएगा, सिगरेट जैसी बुराई को समाप्त नहीं किया जा सकता. उदाहरण के लिए दिल्ली प्रैस पत्रिका समूह ने दशकों पहले से शराब और बीड़ीसिगरेट के विज्ञापन छापने पर रोक लगा रखी है. हर तरह के विज्ञापन छाप कर पैसा कमाने की होड़ में जुटे भारतीय पत्रपत्रिकाओं के इतिहास की यह असाधारण घटना है.
उधर, सरकार सिगरेटबीड़ी का इस्तेमाल घटाने के लिए हर बजट में उन की कीमत बढ़ा रही है, चेतावनी लिख रही है और बीड़ीसिगरेट के पैकेट पर ही इस के नुकसान के परिणाम को मोटे अक्षरों में और चित्र के साथ छापा जा रहा है. पहले 18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए धूम्रपान बेचने या खरीदने पर रोक लगाई और अब यह उम्र 21 साल की करने व खुली सिगरेट की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया है. यह बड़ा फैसला है.
यह सरकार की इस बुराई पर रोक लगाने की राष्ट्रशक्ति का परिचायक है. पान की दुकानों में खुली सिगरेट बिकने पर रोक लगाने से इस का इस्तेमाल कम हो सकता है. लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. इस के लिए सख्त कानून बनाने की जरूरत है. सरकार जब यह तय कर लेगी कि उसे बीड़ीसिगरेट से राजस्व नहीं कमाना है तो उसी दिन उन पर रोक लग जाएगी और लोग बड़ी तादाद में बीड़ीसिगरेट का इस्तेमाल रोक देंगे.