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बिंब प्रतिबिंब

दिल्ली से ज्यादा सुरक्षित मुंबई

बीते दिनों राजधानी दिल्ली में कैब चालक द्वारा एक महिला का बलात्कार किए जाने की घटना की पूरा बौलीवुड निंदा कर रहा है. ज्यादातर ऐक्टर्स आरोपी को कड़ी सजा देने की बात कर रहे हैं जबकि अभिनेत्री सोनम कपूर इस पूरे मामले में कैब चालक व कंपनी के साथ सरकार की भी लापरवाही मानती हैं. सोनम का कहना है कि सरकार के सिस्टम से ही उस कैब चालक को चरित्र प्रमाणपत्र मिला है. ऐसे में गलती कैब कंपनी व चालक के साथ प्रशासनिक तंत्र की भी है. सोनम का तो यहां तक कहना है कि लोग मुंबई को बेवजह बदनाम करते हैं जबकि महिला सुरक्षा के लिहाज से दिल्ली से ज्यादा मुंबई सुरक्षित है. गौरतलब है कि मुंबई में रात को घूमनेफिरने की आजादी, स्वच्छ जीवनशैली और ग्लैमरस सिटी के चलते कुछ लोग उसे महिलाओं के लिए असुरक्षित मानते हैं. सोनम का जवाब उन्हीं के लिए है.

मनोज बनेंगे गे प्रोफैसर

अभिनेता मनोज वाजपेई भले ही कम फिल्मों में नजर आते हों लेकिन अपने सशक्त अभिनय से वे दर्शकों के बीच मजबूत पहचान बनाए हुए हैं. उन के कैरियर के ज्यादातर किरदार बेहद जटिल थे. खबर है कि मनोज जल्द ही फिल्म ‘शाहिद’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके निर्देशक हंसल मेहता की फिल्म में गे प्रोफैसर की प्रभावी भूमिका में नजर आएंगे. फिल्म का नाम अभी तय नहीं हुआ है लेकिन वे 60 साल के समलैंगिक प्रोफैसर के चुनौतीपूर्ण किरदार को निभाने के लिए बेहद उत्साहित हैं. जनवरी से फिल्म की शूटिंग शुरू होगी. यह फिल्म अलीगढ़ विश्वविद्यालय के सस्पैंडेड प्रोफैसर के जीवन पर आधारित है जो अपने रिटायरमैंट से पहले एक रिकशाचालक से सैक्स करते हुए कैमरे में रिकौर्ड हो गया था.

बेहतर कौन

पिछले दिनों एक चर्चा के दौरान नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि वे आज भी अमिताभ बच्चन को दिलीप कुमार से बेहतर मानते हैं. लेकिन वे हिंदी सिनेमा में दिलीप कुमार के योगदान को अमिताभ बच्चन से ज्यादा मानते हैं. वे कहते हैं कि बिमल राय जैसे क्लासिक निर्देशक की फिल्मों को दिलीप कुमार ने आम दर्शक तक पहुंचाया. जबकि अमिताभ बच्चन उस दौर में इतने प्रभावशाली और पौपुलर थे कि अगर चाहते तो फिल्म डस्ट्री में सकारात्मक बदलाव ला सकते थे, उस की दशा और दिशा बदल सकते थे. लेकिन वे पौपकौर्न सिनेमा से आगे ही नहीं बढ़ पाए. इस के बावजूद, एक कलाकार के तौर पर उन की महानता से इनकार नहीं किया जा सकता.

बदलापुर में बदला रूप

वरुण धवन अब तक चौकलेटी बौय की इमेज में ही नजर आते रहे हैं. चाहे फिल्म ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ हो या फिर डेविड धवन निर्देशित फिल्म ‘मैं तेरा हीरो’. अब वरुण फिल्म बदलापुर से रफटफ अवतार में नजर आएंगे. वरुण को उम्मीद है कि यह फिल्म उन के कैरियर में एक नया मोड़ लाएगी. वे इस फिल्म में दाढ़ीमूंछों में और काफी गुस्से में नजर आएंगे. फिल्म का नाम और वरुण का लुक देख कर तो यही लगता है कि वे आगे ऐक्शन सीन ही करेंगे. इस फिल्म में वरुण के साथ नवाजुद्दीन सिद्दीकी, हुमा कुरैशी, यामी गौतम, दिव्या दत्ता और राधिका भी हैं.

आशा और अवार्ड

पिछले 7 दशकों से फिल्मी दुनिया में बतौर गायिका स्थापित आशा भोंसले को दुबई इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल में लाइफ टाइम अचीवमैंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया. विदित हो कि इस अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव में हर साल दुनिया भर की प्रतिभाओं को अवार्ड दिए जाते हैं. इस फैस्टिवल में लाइफ टाइम अचीवमैंट अवार्ड पा कर आशा बेहद उत्साहित हैं. वैसे गिनीज बुक औफ रिकौर्ड्स में जहां बतौर आर्टिस्ट उन के सब से ज्यादा रिकौर्ड्स शामिल हैं वहीं 2000 में उन्हें दादा साहेब फाल्के और 2008 में पद्मभूषण के अवार्ड से भी नवाजा गया था. आशा करते हैं कि उन का यह सफर यों ही अवार्डों से भरा रहे.

नग्नता परोसने में यकीन नहीं : नंदना सेन

मशहूर अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन तथा मशहूर बंगला लेखिका नबनिता देब सेन की बेटी, अंतर्राष्ट्रीय अभिनेत्री, लेखक, चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नंदना सेन ने 1997 में गौतम घोष की फिल्म ‘गुडि़या’ से अभिनय जगत में कदम रखा था. उस के बाद से वे ‘ब्लैक’, ‘द फौरेस्ट’ सहित कई फिल्में कर चुकी हैं. उन की रिलीज फिल्म ‘रंग रसिया’ में बोल्ड सीन, इंटीमेसी सीन देने के साथसाथ वे टौपलैस भी हुई हैं. उन से एक फिल्म के रिलीज के मौके पर मुंबई में शांति स्वरूप त्रिपाठी ने बातचीत की. पेश हैं कुछ खास अंश :

आप कमर्शियल फिल्मों में नजर नहीं आतीं?

मेरा मामला थोड़ा सा अलग है. मैं हारवर्ड यूनिवर्सिटी की पढ़ी हूं और जब लोगों को पता चलता है कि यह हारवर्ड यूनिवर्सिटी की पढ़ी लड़की है तो उन्हें लगता ही नहीं है कि मैं अभिनय करूंगी. दूसरी बात, मैं हमेशा चुनिंदा फिल्में ही करती हूं. मुझे स्टीरियोटाइप काम या स्टीरियोटाइप किरदार नहीं निभाने हैं. मैं उन किरदारों को निभाना चाहती हूं जिन में सही मानों में अपने अंदर की प्रतिभा को बाहर लाने का कुछ तो मौका मिले. मैं उन फिल्मों में अभिनय करना पसंद करती हूं, जिन में सामाजिक या राजनीतिक सरोकारों की बात की गई हो. सिनेमा के अंदर निहित सामाजिक बदलाव की ताकत में मेरा पूरा यकीन है. यदि ‘रंग रसिया’ में आर्टिस्टिक फ्रीडम की बात है, तो वहीं कुछ समय पहले मेरी बंगला फिल्म ‘औटोग्राफ’ रिलीज हुई थी, जिस में आर्टिस्टिक करप्शन की बात की गई थी. मैं ने अपने अब तक के कैरियर में एकमात्र कमर्शियल फिल्म ‘ब्लैक’ की है, वह सुपरडुपर हिट थी. पर उस फिल्म में अपाहिज बच्चों के लिए समान अधिकार की बात की गई है.

आप को नहीं लगता कि जब हिंदी फिल्मों में आप का कैरियर बनने लगा था, तभी आप गायब हो गईं?

मैं ऐसा नहीं मानती. मैं ने मुंबई में काम करते हुए हमेशा एंजौय किया था. मैं ने ‘टैंगो चार्ली’, ‘मर्डर’, ‘रंग रसिया’ सहित जितनी फिल्में कीं, वे सब मेरी पसंद की थीं. मैं ने मुंबई, लंदन और न्यूयार्क में काम करने के लिए अपने समय को विभाजित कर रखा था. जब मैं मुंबई में फिल्में कर रही थी, उसी दौरान मैं ने भारत के बाहर भी कई फिल्मों में अभिनय किया.

पिछले दिनों प्रदर्शित फिल्म ‘रंग रसिया’ में आप ने काफी बोल्ड सीन दिए थे?

मेरी समझ में नहीं आता कि बोल्ड क्या होता है, मैं तो इस बात में यकीन करती हूं कि यदि हम ने अभिनय को पेशा बनाया है, तो फिल्म की कहानी, पटकथा और चरित्र की मांग के अनुसार हमें काम करना पड़ेगा. फिल्म में बोल्ड दृश्य थे मगर अश्लीलता नहीं थी. मैं ने फ्रांस, लंदन व न्यूयार्क में ऐसी कई फिल्में ठुकराई हैं, जिन में बेवजह नंगापन परोसा जा रहा था. रंग रसिया में मैं ने जो कुछ किया है, वह कथानक के स्तर पर भी जायज है और इस बात से मेरे मातापिता भी सहमत थे. हमारे देश में पाखंड ही पाखंड भरा पड़ा है. यहां पुरुष और नारी को ले कर अलगअलग मानदंड अपनाए जाते हैं. जो चीजें औरतों के लिए गलत हैं वे पुरुषों के लिए मान्य कैसे हो सकती हैं. मान्यताओं के नाम पर बनाए गए इन सड़ेगले नियमों को उखाड़ फेंकने का वक्त आ चुका है.

जब आप ने फिल्म रंग रसिया में अभिनय करना स्वीकार किया था, उस वक्त राजा रवि वर्मा के बारे में आप कितना जानती थीं?

मैं बचपन से ही राजा रवि वर्मा की फैन रही हूं. जब मैं हारवर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रही थी, तब मैं ने अपने होस्टल के रूम में दमयंती की तसवीर लगा रखी थी, जिसे राजा रवि वर्मा ने ही बनाया था. केतन जब मुंबई के मेरे घर पर इस फिल्म में सुगंधा का किरदार निभाने का औफर ले कर आए, तो मेरे घर पर राजा रवि वर्मा की बनाई हुई बड़ी साइज की तसवीर देख कर चौंके थे. मुझे राजा रवि वर्मा के बारे में पता था कि वह एक पेंटर होने के साथसाथ भारतीय सिनेमा के ग्रैंड फादर हैं. उन की पिंटिंग प्रैस में भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहब फालके भी नौकरी किया करते थे. भारतीय सिनेमा की शुरुआती फिल्मों में हीरोइनें उसी तरह की पोशाक पहनती थीं, जिस तरह की राजा रवि वर्मा ने अपनी पेंटिंग्स में नारी को पहनाई है. मुझे यह भी पता है कि वे कैलेंडर आर्ट के जनक थे.

रंग रसिया में आप ने राजा रवि वर्मा की कल्पना यानी कि सुगंधा का जो किरदार निभाया, उसे खुद कैसे परिभाषित करती हैं?

सुगंधा का चरित्र चाइल्ड ओमन का है. एक तरफ वह खूबसूरत और इन्नोसैंट है तो दूसरी तरफ वह उस बच्चे की तरह है जो संसार में नई चीजें खोज रहा है. राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स की नायिका बन कर उस के लिए नएनए अध्याय खुल रहे थे. वह एक ऐसी औरत थी जो अनकंडीशनल प्यार करती है. एक तरफ वह निडर है तो दूसरी तरफ बहुत कोमल है. इसीलिए सुगंधा एक क्लासिकल भारतीय नारी बनती है. उस ने राजा रवि वर्मा को पेंटिंग्स बनाने के लिए द्रौपदी, सीता, शकुंतला बन कर पोज दिए. ऐसा करते समय उस की अपनी जिंदगी भी बदलती रही. यानी सीता, द्रौपदी या शकुंतला की जिंदगी में जो कुछ घटित हुआ, उस दौर से सुगंधा भी गुजरती है.

सीता की ही तरह सुगंधा की भी अग्निपरीक्षा होती है. द्रौपदी की तरह उस का भी अपमान होता है. 14 साल की उम्र में सुगंधा को तस्करी के जरिए देवदासी बना दिया जाता है. एक समाजसेविका होने के नाते मैं निजी जिंदगी में कई ऐसी लड़कियों से मिल चुकी हूं जोकि ऐसे दौर से गुजर चुकी हैं. इस के बावजूद फिल्म में सुगंधा को पीडि़ता के बजाय शक्ति के रूप में दर्शाया गया है. मेरी परवरिश अमेरिका में हुई है, लेकिन सुगंधा का चरित्र निभाते समय मुझ पर भी रामायण व महाभारत का असर हुआ. मेरी नजरों में सुगंधा कामुकता और पारलौकिकता का खूबसूरत मिश्रण है.

सुगंधा का चरित्र निभाने के बाद आप की जिंदगी में क्या बदलाव हुए?

मेरी जिंदगी में बहुत बदलाव आए. इस किरदार को निभाने के बाद ही औरतों और बच्चों की जिंदगी को संवारने की दिशा में काम करना शुरू किया. मैं ने जैंडर बायस वौयलेंस के खिलाफ मुहिम छेड़ी. सुगंधा एक क्लासिकल भारतीय नारी होते हुए जिन पड़ावों से गुजरी थी उन पड़ावों से मैं भी गुजर रही हूं. यह फिल्म दिखाती है कि भारतीय नारी कितनी शक्तिशाली है. इस बात का एहसास मुझे सुगंधा का किरदार निभाने के बाद ही हुआ.

आप चाइल्ड एब्यूज, औरतों के प्रति हो रही हिंसा के साथसाथ औरतों व बच्चों की होने वाली सरहद पार तस्करी के खिलाफ एक लड़ाई लड़ रही हैं. पर इन अपराधों की वजह पता चली?

आप ने बहुत ही बड़ा और महत्त्वपूर्ण सवाल उठाया है. इस का जवाब एकदो शब्दों में या वाक्यों में देना मुश्किल है.  इस की जड़ें पुरुषप्रधान समाज है. हमारे देश का पुरुष असुरक्षा की भावना के तहत जीते हुए नारियों पर अत्याचार कर अपनेआप को शक्तिमान साबित करने का प्रयास करता रहता है. यदि इन सारे अपराधों की वजह को दो शब्दों में कहना हो, तो मैं कहूंगी कि पुरुषों की असुरक्षा की भावना ही इस की मुख्य वजह है.

इन दिनों आप क्या कर रही हैं?

इस वक्त मैं लेखन कार्य में व्यस्त हूं. बच्चों को ले कर बहुत कुछ लिख रही हूं. चाइल्ड एब्यूस के जो विक्टिम हैं, उन के लिए कार्यरत एकमात्र संस्था ‘राही’ की ब्रैंड एंबैसेडर के रूप में काम कर रही हूं. मैं औपरेशन स्माइल के साथ भी काम कर रही हूं. यह संस्था क्लेफ्ट लिप की बीमारी से जूझने वाले बच्चों के औपरेशन करवा उन्हें नया जीवन देने के लिए काम करती है. यह बहुत बड़ी समस्या है. इस का सही इलाज न होने की वजह से जन्म लेते ही तमाम बच्चे मर जाते हैं. इसी के साथ मैं नैशनल प्रोटैक्शन औफ चाइल्ड राइट्स के लिए भी काम करती हूं. चाइल्ड ट्रैफिकिंग यानी बच्चे की तस्करी रोकने के लिए भी काम कर रही हूं. इसी सिलसिले में मैं पिछले दिनों बर्मा गई थी. भारत व म्यांमार की सीमा पर सीमापार बच्चों की तस्करी काफी होती है. बच्चों पर एक किताब ‘कंगारू किस’ लिखी है, जोकि बहुत जल्द प्रकाशित होगी. यह किताब मेरी बहन की बेटी हिया से प्रेरित है. एक अन्य किताब ‘मांबी ऐंड द फौरैस्टफायर’ भी लगभग पूरी होने वाली है. मैं ने एक फिल्म स्क्रिप्ट लिखी है, जिस पर फिल्म बनने वाली है.

कपड़ों की आड़ में उघड़ती कुंठाएं

ये 2 घटनाएं 2 देशों की हैं, पर आपस में जुड़ी हुई सी लगती हैं. पहली घटना अमेरिका की है. वहां के राष्ट्रपति बराक ओबामा एक थैंक्स गिविंग टर्की पार्डन प्रोग्राम में अपनी बेटियों-मालिया और साशा के साथ गए थे. 16 साल की मालिया और 13 साल की साशा ने शौर्ट स्कर्ट्स पहनी हुई थीं. यह देख कर रिपब्लिकन की प्रवक्ता ऐलिजाबैथ लौटन ने फेसबुक पर कमैंट किया कि मालिया और साशा को चाहिए कि वे थोड़ी सभ्य लोगों जैसी दिखें. जिस भूमिका में हो, उसे तो इज्जत दो. आप के मांबाप तो अपनी पोजिशन का बहुत ज्यादा सम्मान नहीं करते, इसलिए मुझे लगता है कि आप ने ‘गुड रोल मौडल’ में थोड़ी कसर छोड़ दी. कोई नहीं, थोड़ी कोशिश करो. मौके के हिसाब से दिखो. ऐसे कपड़ों में दिखो जिन में आप को सम्मान मिले, न कि यह लगे कि आप किसी बार में खड़ी हैं.

दूसरी घटना भारत की है. बौलीवुड और टैलीविजन कलाकार गौहर खान टैलीविजन के एक रिऐलिटी शो ‘रा स्टार’ के फिनाले की रिकौर्डिंग में शिरकत कर रही थीं कि वहां मौजूद एक नौजवान ने स्टेज पर चढ़ कर उन को थप्पड़ मार दिया. 24 साल के उस नौजवान मोहम्मद अकील मलिक को गौहर खान के कपड़ों को ले कर एतराज था. उस का मानना था कि एक मुसलिम होते हुए गौहर खान ने ऐसी बदनदिखाऊ ड्रैस क्यों पहनी हुई थी. ये दोनों खबरें अपनेअपने देश में मीडिया की सुर्खियां बनीं. टेनेसी के कांग्रेसमैन स्टीफन फिंशर की प्रवक्ता ऐलिजाबैथ लौटन को नौकरी से निकालने की मांग उठी, जबकि मोहम्मद अकील मलिक को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया गया. उसे अपने किए पर पछतावा नहीं था. उस का कहना था कि वह गौहर खान को समझाना चाहता था कि शौर्ट स्कर्ट पहनना इसलाम के खिलाफ है.

ये दोनों घटनाएं इस माने में भी आपस में जुड़ी हुई हैं कि किसी की बदतमीजी का शिकार हुई इन महिलाओं का समाज में एक खास मुकाम और रुतबा है. बराक ओबामा दुनिया के सब से ताकतवर नेता हैं और उन की बेटियों के पहनावे पर कमैंट करना सीधे उन को चुनौती देना है. वैसे, तसवीरों में देखने पर ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा था कि मालिया या साशा ने भद्दे कपड़े पहन रखे थे. अमेरिका में इस उम्र की लड़कियों के लिए ऐसे कपड़े पहनना कोई हैरत की बात नहीं है, तभी तो ऐलिजाबैथ लौटन के बयान की सोशल साइटों पर फजीहत की गई.

इधर, गौहर खान ऐसी इंडस्ट्री से जुड़ी हुई हैं जिस पर ग्लैमरस होने का टैग लगा है. वहां फैशनेबल कपड़े पहनना कौन सी नई बात है. ऐसा भी नहीं है कि गौहर खान पहली मुसलिम हैं, जिन्होंने ऐसे पहनावे को अपनाया है. फिर वे जिस शो की ऐंकरिंग कर रही थीं, वहां उन्हें खुद को खूबसूरत दिखाना था. घटना के बाद खुद गौहर खान ने कहा कि वे दुखी और हैरान हैं, लेकिन इस घटना ने उन्हें और मजबूत बना दिया है. वह घटिया शख्स उन के धर्म या देश के नौजवानों की नुमाइंदगी नहीं करता है. गौहर खान वाले मामले में उन के खास दोस्त कुशाल टंडन ने कहा कि यह जो भी हुआ, बड़ा वाहियात था. उन्होंने शो की सिक्योरिटी की खामियों पर तो सवाल खड़ा किया ही, यह चिंता भी जताई कि अगर आरोपी के पास चाकू या तेजाब होता, तो क्या होता. इन 2 घटनाओं से उन आम औरतों या लड़कियों का दर्द समझा जा सकता है जिन पर सभ्यता या धर्म का नाम ले कर रोजाना जबान या हाथपैर या फिर हथियार से हमले किए जाते हैं, उन पर बेहूदा जुमले कसे जाते हैं, चाहे वे स्कूल की नाबालिग लड़कियां हों या सड़क पर पत्थर तोड़ती फटी साड़ी में कोई मजदूर औरत.

मर्दों के दबदबे वाले हमारे समाज में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में उन के पहनावे को बहुत ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है. वे छोटे कपड़े पहनती हैं और पढ़ाईलिखाई की वजह से आजादखयाल हो गई हैं, लिहाजा, उन के मौडर्न रूप से मर्दों की मर्दानगी में जोश भर जाता है और वे उन्हें अपनी ज्यादती का शिकार बना डालते हैं. खाप पंचायतें और दूसरी धार्मिक संस्थाएं महिलाओं के पहनावे को ले कर फतवे जारी करती हैं. कहीं उन के जींस पहनने पर बैन लगाया जाता है तो कहीं उन के टीशर्ट या कमीज पहनने पर उंगली उठाई जाती है. सवाल उठता है कि महिलाओं के पहनावे की हद क्या होनी चाहिए? अगर किसी सिरफिरे को किसी औरत का साड़ी पहनना भी नागवार गुजरता है, तो क्या वह साड़ी बांधना बंद कर दे? मुसलिम औरतें तो बुरके में रहती हैं, फिर भी मनचलों की छेड़छाड़ का शिकार बनती हैं.

दरअसल, अपने मन की कुंठाओं को शांत करने के लिए लोग धर्म का सहारा ले कर महिलाओं पर बेवजह की पाबंदियां लगाने से बाज नहीं आते हैं. वे उन्हें खुद से नीचा दिखाने के बहाने ढूंढ़ते हैं, जिस में उन की देह पर निशाना लगाना उन के लिए सब से आसान तरीका होता है. बराक ओबामा की बेटियों से जुड़ा मामला राजनीति से प्रेरित था, तो गौहर खान को थप्पड़ मारने वाले नौजवान की यह दलील कि मुसलिम औरतों को उन हदों के अंदर रहना चाहिए, जो उन के लिए इसलाम ने तय की हैं, बचकाना और धर्म की आड़ में किया गया ऐसा अपराध है, जो माफी के लायक नहीं है.

बच्चों के मुख से

मेरी वरमाला होने वाली थी, उस समय मेरा भतीजा 5 साल का था. साड़ी की डिजाइन में मेरी चूड़ी उलझ गई, इसलिए मैं वरमाला नहीं डाल पा रही थी. दूल्हे के सारे दोस्त चिल्ला रहे थे, ‘वरमाला डालो, वरमाला डालो.’ पास में खड़ी अपनी दोस्त से मैं ने इशारे से कहा, लेकिन वह समझ नहीं पाई. मेरे भतीजे ने इशारा करते देख लिया, जोर से चिल्लाया, ‘‘अरे, बूआ ने वरमाला डालने से मना कर दिया.’’ फिर क्या था, दोनों पक्षों के लोग सकते में आ गए. हल्ला होने पर सहेली मेरे पास आई, तब मैं उसे बता पाई और धीरे से कहा, ‘‘चूड़ी साड़ी में से निकालो तभी तो डाल पाऊंगी.’’ सभी लोग बच्चे को देख कर खूब हंसे.

मणि जैन, भोपाल (म.प्र.)

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मेरे पति की मृत्यु हो चुकी थी. मेरी नातिन साढ़े 5 साल की है. मेरे दामाद तमिल हैं और मैं हिंदीभाषी. इस कारण बच्चे हिंदी के साथसाथ अंगरेजी में भी अच्छी तरह से बात कर सकते हैं. एक दिन मैं चुपचाप बैठी थी. मुझे चुप बैठे देख कर वह बोली, ‘‘नानी, आर यू सैड?’’ मैं ने चुपचाप उस की ओर देखा. उस ने कहा, ‘‘आर यू रिमैंमबरिंग नाना,’’ मैं ने कहा, ‘‘हां, मुझे उन की बहुत याद आ रही है.’’

उस ने फिर कहा, ‘‘बट ही स्कौल्ड यू’’ मैं कुछ कहूं, इस से पहले ही वह बोल उठी, ‘‘नैवर माइंड, नानी. मम्मी औलसो स्कौल्ड मी समटाइम्स, स्टिल आई लव हर वैरीवैरी मच.’’ यह कह कर उस ने एक बड़े व्यक्ति की तरह मेरी पीठ थपथपाई. यद्यपि मेरी मुसकराहट उदासीभरी थी, फिर भी वह खुश थी कि उस ने अपनी नानी को हंसाया.   

चित्रा गुप्ता (सिंगपुर)

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मेरे पति राउरकेला स्टील प्लांट में कार्यरत हैं. एक बार वे भुवनेश्वर के विख्यात मैनेजमैंट कालेज से ट्रेनिंग प्रोग्राम के बाद लौटे और मुझे उस विषय में बताने लगे. मेरे 3 वर्ष के बेटे ने उसी समय स्कूल जाना शुरू किया था. वह बड़े ध्यान से हमारी बातचीत सुन रहा था. कुछ समय बाद उस ने मुझ से पूछा कि यह ट्रेनिंग क्या होती है?मेरे पति, जो अभीअभी ट्रेनिंग ले कर आए थे, बोले, ‘‘बेटा, जैसे छोटे बच्चे स्कूल जाते हैं और टीचर उन्हें पढ़ाती है, उस को टीचिंग कहते हैं और बड़े लोग जब कुछ सीखने जाते हैं तो उसे ट्रेनिंग कहते हैं.’’ फिर वह अचानक बोला, ‘‘लेकिन कुत्तों की भी तो ट्रेनिंग होती है.’’ यह सुन कर मैं अपनी हंसी न रोक पाई.

अंजू माथुर, राउरकेला (ओडिशा

खेल खिलाड़ी

बदल रहा है कश्मीर

कश्मीर की फिजा इन दिनों बदलीबदली नजर आ रही है. अरसे बाद यहां से अच्छी खबरें आ रही हैं. एक तरफ क्रिकेट की जीत की खबर है तो वहीं दूसरी तरफ विधानसभा चुनाव में भारी मतदान से लोकतंत्र की जीत हुई. 80 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि रणजी ट्रौफी ग्रुप ए के मैच में जम्मूकश्मीर ने 40 बार की चैंपियन रही मुंबई को उसी के मैदान पर 4 विकेट से हरा कर ऐतिहासिक जीत हासिल की. जम्मूकश्मीर टीम के कप्तान परवेज रसूल की भूमिका इस में अहम रही. जम्मू की टीम में काफी नए खिलाड़ी हैं जबकि मुंबई की टीम के खिलाडि़यों की बात करें तो ज्यादातर खिलाडि़यों को आईपीएल में खेलने का अनुभव रहा है. ऐसे में इस जीत के खासे माने हैं. इस जीत के बाद रसूल ने कहा कि मुंबई को मुंबई में हराना बड़ी उपलब्धि है. पिछले 2-3 वर्षों में हमारा ग्राफ तेजी से बढ़ा है. पहले हमें कहा जाता था कि एलीट डिवीजन में खेलना अलग है और अब हमारे पास उस सवाल का जवाब है. परवेज रसूल कश्मीर के एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने राष्ट्रीय टीम में जगह बनाई और उन का नाम विश्व कप के संभावित खिलाडि़यों में भी शामिल है. विश्व का सब से धनी क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई को माना जाता है लेकिन शर्म की बात तब होती है जब कई राज्यों के खिलाडि़यों को दयनीय हालत में खेलना पड़ता है, जैसा कि जम्मूकश्मीर के रणजी खिलाडि़यों को खेलना पड़ा.

रणजी सत्र की शुरुआत से पहले प्रकृति के कहर से खिलाडि़यों को अभ्यास के लिए बाहर जाना पड़ा. राज्य से बाहर इन्होंने नागपुर में कैंप लगा कर अभ्यास किया. बाढ़ के कारण कई खिलाडि़यों की किट बरबाद हो गई. नई किट खरीदने के लिए न तो बीसीसीआई ने आगे आ कर मदद की और न ही जम्मूकश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन ही आगे आई. कई खिलाडि़यों को तो पिछले सत्र की फीस तक नहीं मिली. मुंबई के खिलाफ मैच के लिए उन्हें 500 रुपए प्रतिदिन का अलाउंस दिया गया जबकि अन्य टीमों को 1 हजार रुपए दिया जाता है. पहले सत्र में मैच खेलने के लिए इन्हें मात्र 2 जोड़ी यूनिफौर्म दी गईं. कई खिलाडि़यों को तो कैप भी नसीब नहीं हुआ. खिलाडि़यों को ऐसे होटल में ठहराया गया जहां ठीक से खाने तक की व्यवस्था नहीं थी. इतना सबकुछ होने के बावजूद इस जीत से उमर अब्दुल्लाह बहुत खुश हैं और टीम की जीत पर ट्वीट भी किया, ‘बहुत खूब…’ खुशी की बात तो जरूर है क्योंकि पिछले दशकों में जम्मूकश्मीर की जनता ने अब तक अनगिनत पीड़ा झेली है और आतंक के नासूर का दंश झेला है, नेताओं की वजह से और प्रकृति की भी वजह से. अगर वहां की फिजा में अमन और खुशी की खबर आती है तो यह सुकून की बात है.

कमाई में अव्वल वुड्स

दुनिया के सब से बदनाम गोल्फ खिलाड़ी हैं अमेरिका के टाइगर वुड्स. बावजूद इस के, विज्ञापनों से सब से ज्यादा कमाई यही करते हैं. हीरो मोटोकौर्प ने टाइगर को अपना ब्रैंड एंबैसेडर बनाया है जिन से टाइगर को प्रतिवर्ष 25 से 30 करोड़ रुपए मिलेंगे.  विज्ञापन से महेंद्र सिंह धौनी 12 से 15 करोड़ रुपए, विराट कोहली 8 से 10 करोड़ रुपए, आमिर खान 12 से 15 करोड़ रुपए, सलमान खान 6 से 7 करोड़ रुपए, शाहरुख खान 6 से 7 करोड़ रुपए, अक्षय कुमार 6 से 7 करोड़ रुपए, दीपिका पादुकोण 4 से 5 करोड़ रुपए, रणबीर कपूर 6 से 7 करोड़ रुपए, अमिताभ बच्चन 6 से 7 करोड़ रुपए और मारिया शारापोवा की कमाई 9 से 10 करोड़ रुपए है. टाइगर वुड्स ने इन सभी नामी हस्तियों को कमाई के मामले में काफी पीछे छोड़ दिया है. भले ही टाइगर वुड्स महिलाओं के साथ संबंध रखने के मामले में बदनाम हो चुके हों लेकिन कमाई के मामले में वे अव्वल हैं क्योंकि वे उपभोक्ताओं के बीच खासे मशहूर हैं. भारतीय कंपनियां जब अपना प्रोडक्ट विदेशों में बेचना चाहती हैं तो वे ऐसे चेहरे को तलाश करती हैं जो सब से ज्यादा पौपुलर हो. इसीलिए विज्ञापन कंपनियां ज्यादा से ज्यादा पैसा दे कर उसे अपना ब्रैंड एंबैसेडर नियुक्त करती हैं. जाहिर है एक तरह से कंपनियां उन के नाम पर दांव खेलती हैं. ऐसे कई उदाहरण भी हैं, जब विज्ञापन कंपनियां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय सितारों के सहारे वैश्विक बाजारों में अपना परचम लहरा चुकी हैं.

आईना

यूं तो इन आंखों में इक दुनिया बसती है

देखा आईना तो चेहरा ही गायब है

तेरे वजूद में घर बनाए बैठा हूं

अपने वजूद का हिस्सा ही गायब है.

 

महायोग : 8वीं किस्त

अब तक की कथा :

दादी के बीमार होने पर भी दिया के मन में उन के प्रति कोई संवेदना नहीं उभर रही थी. दादी अब भी टोनेटोटके करवा कर अपनी जिद का एहसास करवा रही थीं. दिया ने यशेंदु से अकेले ही लंदन जाने की जिद की. वह नहीं चाहती थी कि पापा को ऐसी स्थिति में छोड़ कर उस का कोई भी भाई उस के साथ आए. वह दादी से मिलने भी नहीं गई और अपनी नम आंखों में भविष्य के अंधेरे को भर कर प्लेन में बैठ गई. अचानक कंधे पर किसी का मजबूत दबाव महसूस कर उस ने घूम कर देखा. इतना अपनत्व दिखाने वाला आखिर कौन हो सकता है?

अब आगे…

दूरदूर तक ढूंढ़ने से भी दिया को अपना कुसूर नहीं दिखाई दे रहा था. लेकिन फिर भी क्यों उस ने मूकदर्शक बन कर पश्चात्ताप करने और सबकुछ सहने की ठान ली? दिया की पापा से फोन पर बात करने की हिम्मत नहीं हुई. आंखों से आंसू निकल कर गालों पर फिसलने लगे.

कहां फंस गई थी दिया, अनपढ़ों के बीच में. जिस लड़के की अपनी कोई सोच ही नहीं थी, वह क्या दिया के साथ हमसफर बन कर चलेगा? हाथ का दबाव बढ़ता देख दिया ने पुन: घूम कर देखा, देखते ही मानो आसमान से नीचे आ गिरी हो. उस के मुंह पर मानो टेप चिपक गया, आश्चर्य से आंखें फट गईं.

‘‘हाय डार्लिंग,’’ मजबूत हाथ की पकड़ और भी कस गई.

‘‘त…तुम…’’ दिया ने तो मानो कोई अजूबा देख लिया था.

‘‘हां, तुम्हारा नील. कमाल है यार, मैं तो समझता था तुम खुशी से खिल जाओगी.’’

दिया के मुरझाए हुए चेहरे पर क्षणभर के लिए चमक तो आई पर तुरंत ही वह फिर झंझावतों में घिर सी गई.

‘कैसा आदमी है यह? यहां मुंबई में बैठा है और उधर हमारा घर मुसीबतों के दौर से गुजर रहा है. भला मुंबई और अहमदाबाद में फासला ही कितना है. यह शख्स अहमदाबाद नहीं आ सकता था?’

नील को सामने देख कर उस की मनवीणा के तारों में कोई झंकार नहीं हुई बल्कि मन ही मन उस की पीड़ा उसे और कचोटने लगी. शायद यदि वह नील को लंदन एअरपोर्ट पर देखती तो कुछ अलग भावनाएं उस के मन को छूतीं. परंतु यहां पर देख कर तो वह एकदम बर्फ सी ठंडी पड़ गई.

‘‘तुम्हें लग रहा होगा कि मैं मुंबई में क्या कर रहा हूं?’’ नील दिया को बोलने के लिए उत्साहित करने लगा.

दिया का मन हुआ कि उस से कुछ कहनेपूछने की जगह प्लेन से उतर कर भाग जाए. उस ने दृष्टि उठा कर देखा, नील ने अब भी उस का हाथ अपने हाथ में ले रखा था.

‘‘बहुत नाराज हो, हनी?’’‘‘नहीं, मैं ठीक हूं,’’ दिया ने अपना हाथ उस के हाथ के नीचे से निकालते हुए संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

कोई हलचल नहीं, कोई उमंग नहीं, कोई आशा और विश्वासभरी या चुलबुली दृष्टि नहीं. दिया स्वयं को असहाय पंछी सा महसूस कर रही थी जबकि अभी तो वह पिंजरे में कैद हुई भी नहीं थी, बल्कि कैद होने जा रही थी. अभी से इतनी घुटन. कुछ समझ नहीं पा रही थी वह कि कहां जा रही है? क्यों जा रही है?

शादी के समय तो उसे महसूस हुआ था कि अब जिंदगी खुशगवार हो जाएगी पर जो भी कुछ घटित हुआ वह कहीं से भी इश्क को परवान तो क्या चढ़ा पाता, शुरुआत भी नहीं कर सका था.

‘‘तुम तो जानती हो डार्लिंग, मेरी मम्मा भी तुम्हारी दादी की तरह पंडितों के बारे में जरा सी सीनिकल हैं. सो, आय हैड टू टेक केयर औफ मौम औल्सो,’’ नील ने फिर चाटुकारिता करने का प्रयास किया. वास्तव में तो वह कुछ सुन ही नहीं पा रही थी.

‘‘पंडित से न जाने मम्मा ने क्याक्या पूजा करवाई, तुम्हारे लिए, डेट निकलवाई और न जाने क्याक्या पापड़ बेले तब कहीं तुम यहां आ पाई हो वरना…’’

दिया का दिल हुआ कि नील का कौलर पकड़ कर उसे झंझोड़ डाले. वरना क्या? क्या करता वरना वह? मां के पल्लू में छिपने वाला बिलौटा. इतना ही लाड़ था मां से तो उस की जिंदगी में आग क्यों लगाई? नील बोलता रहा और दिया हां, हूं करती रही. उस का मन तो पीछे मां, पापा के पास ही भटक रहा था. नील ने बड़े बिंदास ढंग से उगल डाला कि वह तो इस बीच 2 बार अपने प्रोजैक्ट के सिलसिले में मुंबई आया था परंतु मां की सख्त हिदायत थी कि वह अहमदाबाद न जाए, कुछ ग्रह आदि उलटे पड़ रहे थे. दिया को तो मानो सांप ही सूंघ गया था. हद होती है बेवकूफी की.

‘‘क्या तुम्हारी मम्मी ने शादी से पहले ग्रह नहीं दिखाए थे?’’ अचानक ही वह पूछ बैठी.

‘‘वह तो यहां अहमदाबाद के पंडितजी से मिलवाए थे न. फिर कुछ ऐसा हुआ कि फटाफट शादी हो गई. तुम्हारे पंडितजी ने तो बहुत बढि़या बताया था पर…तुम्हें मालूम है न शादी के बाद बहुत भयंकर हादसा होने के डर से ही तुम्हारी दादी और ममा ने हमें केरल नहीं भेजा था.’’

‘‘क्यों, मुझे कहां से याद होगा? मुझे बताया था क्या?’’ दिया के मुंह से झट से निकल गया था.

‘‘वह तो इसलिए डार्लिंग कि तुम्हें कितनी तकलीफ होती अगर उस समय तुम्हें पता लग जाता तो.’’

कहां फंस गई थी दिया, जिस लड़के की अपनी कोई सोच ही नहीं थी वह क्या दिया के साथ हमसफर बन कर चलेगा? कुछ ही घंटे बाद वह लंदन पहुंच गई थी, सात समंदर पार. प्लेन रनवे पर दौड़ने लगा था, कुछ देर बाद प्लेन रुक गया. हीथ्रो एअरपोर्ट पर उतरने के साथ ही उस का दिलोदिमाग सक्रिय हो गया था अन्यथा उड़ान में तो वह गुमसुम सी ही बैठी रही थी. सामान लेते और लंबेचौड़े हीथ्रो एअरपोर्ट को पार करते हुए ही लगभग 1 घंटा लग गया था. बाहर पहुंच कर वह नील के साथ टैक्सी में बैठ गई. दिया को खूब अच्छी तरह याद है उस दिन की तारीख-15 अप्रैल. एअरपोर्ट से निकलने तक हलका झुटपुटा सा था परंतु लगभग 15 मिनट बाद ही वातावरण धीरेधीरे रोशनी से भर उठा. दिया लगातार टैक्सी से बाहर झांक रही थी. साफसुथरा शांत वातावरण, न कहीं गाडि़यों की पींपीं, न कोई शोरशराबा. बड़ा अच्छा लगा उसे शांत वातावरण.

इधरउधर ताकतेझांकते दिया लगभग डेढ़ घंटे में हीथ्रो एअरपोर्ट से अपने पति के घर पहुंच गई थी. नया शहर व नए लोगों पर दृष्टिपात करते हुए दिया टैक्सी रुकने पर एक गेट के सामने उतरी. सामान टैक्सी से उतार कर नील ने ड्राइवर का पेमेंट किया और एक हाथ से ट्रौलीबैग घसीटते हुए दूसरे हाथ में दिया का हैंडबैग उठा लिया. दिया ने अपने चारों ओर एक दृष्टि डाली. पूरी लेन मेें एक से मकान, गेट के साइड की थोड़ी सी खाली जमीन पर छोटा सा लौन जो चारों ओर छोटीछोटी झाड़ीनुमा पेड़ों से घिरा हुआ था.

नील ने आगे बढ़ कर घर के दरवाजे का कुंडा बजा दिया. दिया ने दरजे को घूर कर देखा कोई डोरबैल नहीं है. नील की मां ने दरवाजे से बाहर मुंह निकाला.

‘‘अरे, पहुंच गए?’’ जैसे उन्हें पहुंचने में कोई शंका हो.

वे पीछे हट गईं तो नील ने उस लौबी जैसी जगह में प्रवेश किया. पीछेपीछे दिया भी अंदर प्रविष्ट हो गई. अब दरवाजा बंद हो गया था. उस के ठीक सामने ड्राइंगरूम का दरवाजा था, उस के बराबर ऊपर जाने की सीढि़यां, बाईं ओर छोटी सी लौबी जिस में एक ओर 2 छोटेछोटे दरवाजे व दाहिनी ओर रसोईघर दिखाई दे रहा था. अचानक गायब हो गईं? छोटा सा तो घर दिखाई दे रहा था. दिया को घुटन सी होने लगी और उसे लगा मानो वह फफक कर रो पड़ेगी. नील शायद फ्रैश होने चला गया था. वह कई मिनट तक एक मूर्ति की तरह खड़ी रह गई अपने चारों ओर के वातावरण का जायजा लेते हुए. फिर नील की मां सीढि़यों से नीचे उतरती दिखाई दीं. उन के हाथ में एक थालीनुमा प्लेट थी जिस में रोली, अक्षत आदि रखे थे.

‘‘तुम्हारे गृहप्रवेश करने में 5-7 मिनट का समय बाकी था. मैं अपने कमरे में चली गई थी,’’ उन्होंने दिया के समक्ष अपने न दिखाई देने का कारण बयान किया, ‘‘अरे, नील कहां चला गया?’’ इधरउधर देखते हुए उन्होंने नील को आवाज लगाई.

‘‘आय एम हियर, मौम,’’ नील ने अचानक एक दरवाजे से निकलते हुए कहा.

‘‘आओ, यहां दिया के पास खड़े हो जाओ,’’ मां ने आदेश दिया और नील एक आज्ञाकारी सुपुत्र की भांति दिया की बगल में आ खड़ा हुआ.

मां ने दोनों की आरती उतारी. नील व दिया को रोली, अक्षत लगाए. नील मां के चरणों में झुक गया तो दिया को भी उस का अनुसरण करना पड़ा.

‘‘आओ, इधर से आओ, दिया, यह पूरब है. अपना दायां पैर कमरे में रखो.’’

दिया ने आदेशानुसार वही किया. यह ड्राइंगरूम था. अंदर लाल रंग का कारपेट था और नीले व काले रंग के सोफे थे. कमरा अंदर से खासा बड़ा था. दीवारों पर बड़ीबड़ी सुंदर पेंटिंग्स लगी थीं. नील के साथ उस कमरे में आ कर दिया सोफे पर बैठ गई. उसे सर्दी लग रही थी. नील ने हीट की तासीर बढ़ा दी. कुछ देर में ही दिया बेहतर महसूस करने लगी. कमरे में रखा फोन बज उठा. नील ने फोन उठा लिया था. चेहरे पर मुसकराहट लिए नील ने दिया की ओर देखा-

‘‘फोन, इंडिया से. योर फादर.’’

दिया की आंखों में आंसू भर आए. क्या बात करे पापा से? नील हंसहंस कर उस के पिता से बातें करता रहा. जब उन्हें पता लगेगा कि नील मुंबई तक आ कर भी अहमदाबाद नहीं आया. नहीं, वह उन्हें बताएगी ही क्यों? वह अपने परिवार को और तकलीफ नहीं पहुंचा सकती.

‘‘लो दिया, फोन.’’

दिया ने फोन तो ले लिया पर पापा से बात करने की उस की हिम्मत नहीं हुई. आंखों से आंसू निकल कर उस के गालों पर फिसलने लगे.

‘‘मैं आप की दिया से बाद में बात करवाता हूं, अभी मौम से बात कीजिए.’’

दिया  ने चुपचाप फोन सास को पकड़ा दिया. वह आंसू पोंछ कर सोफे में जा धंसी.

नील की मां के चेहरे पर फूल से खिल आए थे.

‘‘आप लोग इतना क्या करते हैं. अभी तो इतना कुछ दिया था आप ने. हां जी, वैसे तो बेटी है. दिल भी नहीं मानता पर हमारे लिए क्या जरूरत थी. आप की बेटी है, उसे आप जो दें, जो लें. नहीं जी, अभी कहां, अभी तो पहुंचे ही हैं. अभी आरती की है और घर में प्रवेश किया है इन्होंने. हां जी. हां जी. जरूर बात करवाऊंगी, नमस्कार.’’

दिया समझ गई थी कि पापा ने मां को फोन पकड़ा दिया होगा और मां ने उन से हीरे के सैट्स की बात की होगी जो उन्होंने दिया और उस की सास के लिए दिए थे. अभी शादी में भी कितना कुछ किया था. हीरे का इतना महंगा सैट उन के लिए दिया था अब फिर से, और नील के लिए हीरे के कफलिंग्स भी. कितना मना किया था दिया ने कि वह किसी के लिए कुछ भी ले कर नहीं जाएगी परंतु कहां सुनवाई होती है उस की. वह हीन भावना से ग्रसित होती जा रही थी कि बस जो कुछ हो रहा है हो जाने दो. वह स्वयं एक मूकदर्शक है और मूकदर्शक ही बनी रहेगी. केवल उस के कारण ही पूरा घर मानो चरमरा उठा था.

‘‘दिया, मां से तो बात कर लो, बेटा,’’ सास जरा जोर से बोलीं तो उस का ध्यान भंग हुआ. खड़ी हो कर उस ने रिसीवर अपने हाथ में ले लिया.

‘‘हैलो,’’ धीरे से उस ने कहा.

‘‘हैलो, दिया, कैसी है बेटा? ठीक से पहुंच गई? कुछ तो बोल. अच्छा सुन, कमजोर मत पड़ना और जब कभी मौका मिले फोन करना. और सुन, वह सैट और दूसरे सब गिफ्ट्स अपनी सास और नील को दे देना. खुश हो जाएंगे. और बेटा, धीरेधीरे सब को अपनाने की कोशिश करना. कुछ तो बोल बेटा,’’ कामिनी धीरेधी अधीर होती जा रही थी.

‘‘हूं,’’ दिया ने धीरे से कहा और फोन काट दिया.

– क्रमश:

सूक्तियां

मित्रता

यदि दृढ़ मित्रता चाहते हो तो मित्र से बहस करना, उधार लेनादेना और उस की स्त्री से बातचीत करना छोड़ दो. यही 3 बातें बिगाड़ पैदा करती हैं.

ज्ञान

ज्ञान 3 तरह से मिल सकता है-मनन से, जो सब से श्रेष्ठ होता है. अनुसरण से, जो सरल होता है. अनुभव से, जो सब से कड़वा होता है.

झूठ

जिस की स्मरणशक्ति अच्छी नहीं है उसे झूठ बोलने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए.

कालिख

दिल में कालिख रखने के बजाय चेहरे पर लज्जा का होना बेहतर है.

काम

काम करने से जीवन को शक्ति मिलती है और संयम से सुंदरता.

तारीफ

जो अपनी तारीफ सुनना पसंद करते हैं, उन में गुणों की कमी होती है.

नियम

नियम मनुष्य के लिए बने हैं, मनुष्य नियमों के लिए नहीं.

दुख

दुख में, बीते सुख की याद से बढ़ कर दुखदायी कुछ नहीं होता. 

हमारी बेडि़यां

बचपन से ही मैं ज्योतिष आदि में विश्वास नहीं करती थी. मेरे घर वालों का भी इन विषयों पर कोई विशेष भरोसा नहीं था. इसलिए मेरी और मेरी बहन दोनों में से किसी की भी जन्मपत्रिका आदि बनाई नहीं गई. पर कभीकभी जीवन में जब मुसीबतों का तूफान हमें आ घेरता है तब हम कमजोर पड़ जाते हैं. मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. मेरे व्यक्तिगत जीवन में किन्हीं कारणों से मुसीबतों का पहाड़ आ गिरा. जीवन के इन थपेड़ों को मेरा मन बरदाश्त न कर सका और हम शांति की खोज में एक ज्योतिषी से दूसरे ज्योतिषी के दरवाजे भटकने लगे. इन में से कइयों के दिए अंगूठी, कवच वगैरह मैं ने धारण किए.

मां ने अलगअलग ज्योतिषी से मेरी कुंडली बनवाई. पर आश्चर्यजनक रूप से दोनों कुंडलियों में संपूर्ण विपरीत बातें लिखी हुई थीं. क्या सच है क्या नहीं और भविष्य में मेरे लिए क्या लिखा है, इस उधेड़बुन में मैं उलझ कर रह गई. इस चक्कर में हमारे हजारों रुपए पानी की तरह बह गए.

उन दिनों मैं सरकारी नौकरी के लिए परीक्षाएं दे रही थी. एक दिन मैं ने खुद ही मां की सब से पसंदीदा महिला ज्योतिषी को फोन किया और पूछा कि मेरी सरकारी नौकरी लगने की कोई संभावना है या नहीं. वे गोलमोल जवाब देने लगीं. कहने लगीं, आजकल नौकरी की जो हालत है उस पर सरकारी नौकरी, कहना बहुत मुश्किल है.

मुझे इतना गुस्सा आया कि मैं ने बात बीच में छोड़ कर ही फोन पटक दिया. अपना खोया हुआ आत्मविश्वास फिर से जगाया और अपने उद्देश्य में लगी रही. बचपन से ही मैं पढ़ाईलिखाई में होनहार थी. कुछ ही महीनों में मुझे 3-3 सरकारी नौकरियां मिलीं और कर्मचारी नियुक्ति आयोग की परीक्षा में पूरे भारत में मेरा अच्छा स्थान रहा.        

मधुलीना घोष, कोलकाता (प.बं.)

*

हमारे यहां रिवाज है कि लड़के के विवाह में बरात जाने के पहले कुएं की पूजा होती है और लड़के की मां कुएं में पैर लटका कर बैठ जाती है. मां कहती है कि बहू के आने पर भी वह मुझे वैसे ही मानसम्मान देगा. लड़का मां को मनाता है. मां रूठती है. वह 3 बार हाथ पकड़ कर मनाता है. हमारी ससुराल में जेठानी के बेटे का विवाह था. जेठानी पांव लटका कर कुएं पर बैठ गईं. लड़के ने 2 बार हाथ पकड़ कर खींचा. मां ने जरा जोर से झटका दिया और तड़ से कुएं के अंदर गिर गईं. गनीमत थी कि कुएं में पानी नहीं था. उन्हें सिर में चोट लग गई. किसी तरह उन्हें कुएं से निकाला गया. बाकी की रस्में भी निभाई गईं.

मनोरमा अग्रवाल,  बांदा (उ.प्र.)

आज के रिश्ते नाते

रिश्ते कितनी जल्दी बन जाते हैं
क्या चाहिए आज इन रिश्तों को
सिर्फ एक अदना सा नाम
तभी ये रिश्ते वक्त से पहले ही

रिसने से लगते हैं
क्योंकि ये वक्त की कसौटी पर
कसे नहीं होते
आजकल रिश्ते रेडीमेड से

होने लगे हैं
यूज ऐंड थ्रो की फिलौसफी पर
आधारित ये रिश्ते
जब तक पसंद आए, निभाए
नहीं तो आगे चल भाए.

– मंगला रस्तोगी

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