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फिल्म समीक्षा

बदलापुर

‘बदलापुर’ बदले वाली फिल्म है. अब तक बौलीवुड में बदले पर जितनी भी फिल्में बनी हैं, सभी में बहुत खूनखराबा दिखाया जाता रहा है.  ‘बदलापुर’ कुछ अलग किस्म की है. ऐसा नहीं है कि इस फिल्म में हिंसा नहीं है, नाममात्र की है. असल में यह एक साइकोलौजिकल थ्रिलर फिल्म है. निर्देशक श्रीराम राघवन ने फिल्म की कहानी को नए तरीके से पेश किया है. इस तरह की कहानियों को डार्क कहानियां कहा जाता है जिन्हें हिंदी में श्यामा कहा जा सकता है. इन में सभी काम खलनायकी व्यवहार वाले होते हैं. इन कहानियों का अलग मजा होता है और जीवन के ये अधिक निकट होती हैं. ‘बदलापुर’ का हीरो वरुण धवन है, जो अब तक 2-3 फिल्में कर चुका है. अब तक उस ने कौमेडी और कूदनेफांदने वाली भूमिकाएं ही की हैं. इस फिल्म में उस ने मैच्योर ऐक्ंिटग की है. वह काफी परिपक्व लगा है. निर्देशक ने उस के किरदार को काफी गंभीर बनाया है. वह सोचीसमझी चाल के तहत अपना बदला पूरा करता है. हालांकि फिल्म देखते वक्त शुरू में ही आभास हो जाता है कि नायक कैसे और किस से बदला लेगा लेकिन फिर भी दर्शक कुछ हद तक बंधे से रहते हैं, यह जानने के लिए कि नायक का बदला लेने का तरीका क्या होगा.

श्रीराम राघवन ने खुद की लिखी कहानी और पटकथा का बढि़या ट्रीटमैंट किया है. राघव उर्फ रघु (वरुण धवन) एक नौजवान है. वह अपनी पत्नी मीशा (यामी गौतम) और बेटे के साथ रहता है. अचानक एक दिन एक बैंक डकैती के दौरान बैंक लुटेरे मीशा और उस के बेटे को किडनैप कर मार डालते हैं. बैंक डकैती में शामिल एक युवक लायक (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) पकड़ा जाता है और दूसरा हरमन (विनय पाठक) फरार हो जाता है. लाख कोशिशों के बाद भी लायक अपने पार्टनर का नाम पुलिस को नहीं बताता. उसे 20 साल की सजा हो जाती है.

उधर रघु हर पल कातिल से बदला लेने के बारे में सोचता रहता है. बदला लेने के मकसद से वह छोटे से शहर बदलापुर पहुंचता है. वहां उसे कातिलों के बारे में पता चलता है, जो बैंक डकैती में शामिल थे. वह पहले लायक की प्रेमिका झिमली (हुमा कुरैशी) की मदद से लायक तक पहुंचता है, जो 15 साल की सजा काट कर रिहा हुआ है. फिर उसे उस के दूसरे साथी हरमन का पता चलता है, जो अपनी पत्नी कोको (राधिका आप्टे) के साथ ऐयाशी की जिंदगी गुजार रहा है. राघव हरमन और उस की बीवी की हत्या कर देता है. हरमन को मारने से पहले वह उस से ढाई करोड़ रुपए ले लेता है जो लायक का हिस्सा था. पुलिस अफसर का शक राघव पर है. वह राघव को ब्लैकमेल करता है और ढाई करोड़ रुपए देने को कहता है. इधर लायक को यह महसूस हो जाता है कि राघव उसे भी जान से मार डालेगा. वह हरमन और कोको की हत्या का इलजाम अपने सिर लेता है और फिर से जेल पहुंच जाता है. इस तरह राघव का बदला पूरा होता है और वह अपने शहर लौट जाता है. फिल्म की पटकथा काफी कसी हुई है. हालांकि फिल्म बीचबीच में झटके भी देती है और कई दृश्य अनावश्यक से लगते हैं, फिर भी निर्देशक की पकड़ बनी रहती है. निर्देशक ने किरदारों को डार्कशेड में दिखाया है. फिल्म के संवाद अच्छे हैं. वरुण धवन का काम तो अच्छा है ही, नवाजुद्दीन सिद्दीकी का अभिनय भी शानदार है. फिल्म देखते वक्त दर्शक इन दोनों किरदारों से खुद को जुड़ा सा महसूस करते हैं. फिल्म में सभी कलाकारों ने चरित्र भूमिकाएं ही निभाई हैं, कोई भी कलाकार पूरी तरह हीरो या हीरोइन नहीं है. यामी गौतम को कम फुटेज दी गई है, फिर भी उस ने खुशनुमा ऐक्ंिटग की है. हुमा कुरैशी ने वेश्या का किरदार निभाया है. राधिका आप्टे ने अपनी ऐक्ंिटग से चौंकाया है. दिव्या दत्ता साधारण है. फिल्म का गीतसंगीत पक्ष अच्छा है. छायांकन अच्छा है.

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रौय

यह फिल्म रूखीरूखी सी, उदासी में लिपटी हुई है. फिल्म में न तो ऐक्शन है न कौमेडी, न ड्रामा और न ही उत्तेजना देने वाला रोमांस. जैकलीन फर्नांडिस और अर्जुन रामपाल के लिप टु लिप किस सीन देख कर दर्शकों को सिहरन नहीं हो पाती क्योंकि अर्जुन रामपाल की बढ़ी दाढ़ी और खिचड़ी बाल देख कर दर्शकों को मजा ही नहीं आ पाता. रणबीर कपूर के साथ भी जैकलीन के किस सीन हैं, वे भी दर्शकों को गरमाई नहीं दे पाते, क्योंकि रणबीर कपूर पूरी फिल्म में बुझाबुझा सा नजर आया है. जहां तक फिल्म की कहानी की बात है, कहानी एकदम सुस्त है. कहानी को आगे बढ़ाने में निर्देशक विक्रमजीत सिंह को काफी मशक्कत करनी पड़ी है. फिल्म में एक किरदार कहता भी है कि जब कहानी आगे नहीं बढ़ रही हो तो उसे वहीं खत्म कर देना चाहिए. निर्देशक विक्रमजीत सिंह की यह पहली फिल्म है. उस ने अपना पूरा ध्यान जैकलीन फर्नांडिस पर ही केंद्रित किया है. जैकलीन ने सिर्फ एक गाने ‘चिट्टियां कलाइयां वे’ में अपनी सैक्सी परफौर्मेंस दे कर डांस किया है. यह गाना दर्शकों को पसंद आएगा. वैसे फिल्म में जैकलीन की दोहरी भूमिका है परंतु दोनों ही भूमिकाओं में वह एक जैसी ही लगी है.

फिल्म की कहानी शुरू होती है एक फिल्ममेकर कबीर गे्रवाल (अर्जुन रामपाल) से. एक फिल्म निर्माता कबीर के निर्देशन में एक फिल्म बनाना चाहता है परंतु कबीर को फिल्म की कहानी पर अभी सोचना बाकी है. वह स्क्रिप्ट पर काम शुरू करता है. वह एक बैंक में पड़ी डकैती की घटना पर काम शुरू करता है. शूटिंग के लिए वह मलयेशिया जाता है, जहां पहले से लंदन की एक फिल्म मेकर आयशा (जैकलीन फर्नांडिस) अपनी एक फिल्म की शूटिंग करने आई हुई है. कबीर और आयशा में नजदीकियां बढ़ती हैं. वह अपनी स्क्रिप्ट पर काम शुरू करता है. उस की कहानी का हीरो रौय (रणबीर कपूर) एक चोर है जो पेंटिंगें चुराता है. कबीर अपनी फिल्म के लिए आयशा की शक्ल से मिलतीजुलती एक लड़की टिया (जैकलीन की दूसरी भूमिका) को लेता है. टिया रौय से प्यार करती है. तभी एक दिन आयशा कबीर से नाराज हो कर चली जाती है. आयशा के जाने के बाद कबीर निराश हो जाता है. लेकिन फिर वह एक दिन फिल्म पूरी करने का फैसला लेता है और पूरी भी कर लेता है. फिल्म हिट होती है और कबीर आयशा से मिलने हौंगकौंग जाता है. वहां आयशा फिर से उस की बांहों में आ जाती है. दूसरी तरफ टिया और रौय भी एकदूसरे का हाथ थाम लेते हैं.

फिल्म की यह कहानी दुनिया के सब से बड़े चोर रौय से शुरू होती है. रौय की डिक्शनरी में कोई भी काम नामुमकिन नहीं है. परंतु जल्दी ही यह कहानी कबीर और आयशा पर केंद्रित हो जाती है. रौय के किरदार में कोई रहस्य नजर नहीं आता. फिल्म की लंबाई भी बहुत ज्यादा है. इसे कम से कम आधा घंटा कम किया जा सकता था. कई सीन तो बहुत ज्यादा लंबे हो गए हैं. फिल्म की फोटोग्राफी बहुत अच्छी है. मलयेशिया की खूबसूरती को कैमरामैन ने अपने कैमरे में कैद किया है. फिल्म के गाने भी अच्छे हैं, पहले से ही खूब बज रहे हैं.

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एमएसजी : द मैसेंजर

आखिरकार डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत रामरहीम की फिल्म ‘एमएसजी’ रिलीज हो ही गई. फिल्म के पहले दिन थिएटरों में ज्यादातर उस के समर्थक ही फिल्म देखने पहुंचे. इस फिल्म को बड़े बजट की डौक्यूमैंटरी फिल्म कहना ज्यादा उपयुक्त होगा. फिल्म में डेरा प्रमुख रामरहीम की स्तुति की गई है. फिल्म का निर्माण खुद डेरा प्रमुख ने किया है. हमारे देश में बाबाओं की कमी नहीं है. ये बाबा उलटेसीधे चमत्कार दिखा कर अपने शिष्यों को बेवकूफ बनाते हैं और उन का शोषण तक करते हैं. इस फिल्म में रामरहीम के नाम पर चमत्कारिक घटनाओं को जोड़ा गया है. फिल्म इस तथाकथित धर्मगुरु की कहानी पेश करती है. फिल्म में बाबा रामरहीम लोगों को शराब और ड्रग्स की लत से दूर कर अपना अनुयायी बनाता है तो शराब माफिया उस का दुश्मन बन जाता है लेकिन रामरहीम अपनी चमत्कारिक शक्तियों से अपने शिष्यों को ड्रग और शराब माफिया से बचाता है. आम आदमी के रूप में क्या यह आंदोलन नहीं छेड़ा जा सकता.

यह फिल्म बनाना, अपनी चमत्कारी शक्तियों का प्रचार करना एक नए प्रकार का पाखंड है. फिल्म की क्वालिटी बेहद खराब है. फिल्म में नाचगाने भी हैं और रामरहीम की बेकार की ऐक्ंिटग भी है. इस फिल्म के विरोध में पंजाब और हरियाणा के शहरों में खूब प्रदर्शन हुए हैं.

कुआलालंपुर : खूबसूरती और हरियाली का संगम

मलय भाषा में कुआलालंपुर का अर्थ है कीचड़भरी नदियों का संगम (कुआला=संगम, लंपुर=कीचड़), क्योंकि यह नगर क्लांग तथा गंबक नामक 2 कीचड़भरी नदियों के संगम पर बसा है. बधाई हो मलयेशिया निवासियों को, जिन्होंने उस कीचड़ में भी कुआलालंपुर रूपी कमल उगा दिया है. नगर के बाहरी भागों में ही नहीं, बल्कि पूरे मलयेशिया में ताड़ के पेड़ों व अन्य हरेभरे वृक्षों की शान देखते ही बनती है. कुआलालंपुर का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा नगर के मध्य भाग से लगभग 50 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है. उत्तम तथा चौड़े राजपथों (ऐक्सप्रैस-वेज) के फलस्वरूप तूफानी गति से दौड़ती टैक्सियां यह विशाल दूरी केवल 30-35 मिनटों में ही पूरी कर लेती हैं. रास्ते के दोनों तरफ लगे ताड़ के घने जंगल मन मोह लेते हैं. इस तरह कुआलालंपुर को वास्तव में कीचड़ भरी नदियों का संगम न कह कर खूबसूरती और हरियाली का संगम कहना उचित होगा. उल्लेखनीय है कि मलयेशिया तथा कुआलालंपुर की सारी समृद्धि व प्रगति पिछले 40-50 वर्ष में ही हुई है.

मलयेशिया की राजधानी कुआलालंपुर अपने संक्षिप्त नाम ‘केएल’ के नाम से प्रचलित है जिसे सभी स्थानीय निवासी तथा विदेशी पर्यटक जानते हैं. दक्षिणपूर्व एशिया का व्यस्त नगर होने के साथसाथ ‘केएल’ एक खूबसूरत नगर भी है तथा इस की सुंदरता नएनए शौपिंग मौल्स, गगनचुंबी भवनों, फ्लाईओवरों तथा राजपथों आदि के बन जाने के कारण बढ़ती ही जा रही है. कुआलालंपुर का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा अति आधुनिक तथा विशाल है जहां लगभग 40 अंतर्राष्ट्रीय तथा स्थानीय हवाई कंपनियों की सेवाएं संचालित होती हैं. हमारे देश के दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता, बेंगलुरु से कुआलालंपुर के लिए उड़ान सेवाएं उपलब्ध हैं. इस हवाई अड्डे के अंदर अनेक दुकानें हैं जिन का उपयोग वे पर्यटक भी कर सकते हैं जो कुआलालंपुर में रुकते नहीं हैं, केवल गुजरते हैं अर्थात ट्रांजिट करते हैं. कुआलालंपुर पहुंचने के बाद भारतीय समय के अनुसार घड़ी को ढाई घंटे आगे करना पड़ता है.

तीन संस्कृतियों का देश

वास्तव में मलयेशिया 3 प्रमुख संस्कृतियों, मलय (57 प्रतिशत), चीनी (33 प्रतिशत) तथा भारतीय (10 प्रतिशत) का संगम है. कुआलालंपुर में अनेक भारतीय मूल के निवासी नजर आ जाएंगे. इन में से अधिकतर लोग ऐसे हैं जिन के पूर्वज अंगरेजों के जमाने में रबर बागानों में काम करने के प्रयोजन से लाए गए थे तथा पिछली कई पीढि़यों से यहां पर बसे हुए हैं. इन में तमिलभाषियों की बहुलता है. इसी कारण मलयेशिया में अनेक स्थानों पर तमिल भाषा बोली व समझी जाती है. यहां पर तमिल भाषा के अनेक समाचारपत्र भी प्रकाशित होते हैं तथा तमिल भाषा को देश की एक सरकारी भाषा का भी दरजा प्रदान किया गया है. मलयेशिया में सिख संप्रदाय के भी कई लोग हैं, जिन में से अधिकतर पुलिस या दूसरे रक्षा संगठनों में नियुक्त हैं. उन के पगड़ी बांधने की शैली भारतीय सिखों की शैली से थोड़ी अलग सी है, इसलिए वे भारतीय सिखों से कुछ भिन्न दिखते हैं.

मलयेशिया एक मुसलिम राष्ट्र है, किंतु यहां पर हिंदू, बौद्ध, ताओ (चीनी) तथा ईसाई धर्मों को भी पर्याप्त सम्मान दिया जाता है. दीवाली तथा क्रिसमस यहां के प्रमुख त्योहार हैं जिन पर यहां सार्वजनिक अवकाश रहता है.

दर्शनीय स्थल

कुआलालंपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में सर्वप्रथम गगनचुंबी जुड़वां इमारत पेट्रोनास टावर्स तथा मेनारा कुआलालंपुर का नाम आता है. पेट्रोनास टावर्स 88 मंजिली तथा 452 मीटर ऊंची जुड़वां इमारतें हैं. वर्ष 1999 में निर्मित ये टावर्स कुआलालंपुर के अति आधुनिक व्यावसायिक क्षेत्र केएल सिटी सैंटर में स्थित हैं. विचित्र बात तो यह है कि यद्यपि पेट्रोनास टावर्स की जुड़वां इमारतें बिलकुल एकजैसी दिखती हैं परंतु उन का निर्माण भिन्नभिन्न कंपनियों द्वारा किया गया है. 170 मीटर की ऊंचाई पर इन इमारतों को एक हवाई पुल द्वारा जोड़ा गया है. कुआलालंपुर की दूसरी भव्य इमारत 421 मीटर ऊंची ‘मेनारा कुआलालंपुर’ है जिस का निर्माण 1995 में हुआ था. इस मीनार का निर्माण वस्तुत: दूरसंचार के प्रयोजन से किया गया था किंतु इसे पर्यटकों के लिए भी खोल दिया गया है. मेनारा में 276 मीटर की ऊंचाई पर दर्शकों के लिए खानपान की सुविधाएं उपलब्ध हैं, जहां से वे नगर के विहंगम दृश्यों का आनंद ले सकते हैं. ‘मेनारा कुआलालंपुर’ में पर्यटकों का मेला सा लगा रहता है.

कुआलालंपुर का एक अन्य आकर्षण नगर के उत्तर में स्थित ‘बातू गुफाएं’ हैं. प्राकृतिक रूप से चूनापत्थरों से निर्मित ये गुफाएं वास्तव में हिंदुओं के पूजा स्थल हैं, जिन में मूर्तियों का निर्माण 1878 में किया गया था. गुफाओं तक पहुंचने के लिए 272 सीढि़यों की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है. जहां पर सुब्रमण्यम की प्रतिमा स्थापित है. कुआलालंपुर का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल ‘लेक गार्डन’ है जिस के अंतर्गत पक्षी पार्क, तितली पार्क, औरकिड पार्क तथा हिबिस्कस पार्क (गुड़हल पार्क) आते हैं. यहां पर यह बताया जा सकता है कि हिबिस्कस अर्थात गुड़हल मलयेशिया का राष्ट्रीय फूल है, इस के विकास व सुधार पर यहां बहुत ध्यान दिया जाता है. नैशनल लाइब्रेरी यहां का प्रसिद्ध पुस्तकालय है जिस की नीली रंग वाली छत वास्तुकला का एक उत्तम नमूना है. इस के अलावा कुआलालंपुर में सुंदर तथा पुरानी वास्तुकला से युक्त अनेक भवन बने हैं जैसे यहां का पुराना रेलवे स्टेशन, सुलतान अब्दुल समद भवन इत्यादि. अन्य पर्यटन आकर्षणों में नैशनल मसजिद, पुत्रा मसजिद, नैशनल म्यूजियम आदि भी देखने योग्य हैं. कुआलालंपुर को प्राचीनता तथा आधुनिकता का संगम माना जाता है.

कुआलालंपुर में ठंडक अधिक नहीं होती है, इसलिए हलके सूती वस्त्रों से काम चल जाता है. किंतु यहां बारिश बहुत होती है. हां, यदि कुआलालंपुर से आगे किसी पर्वतीय स्थान जैसे जैंटिंग हाईलैंड्स जाना हो तो वहां पर हलके गरम वस्त्रों की आवश्यकता पड़ सकती है.

खानपान

खानपान की दृष्टि से कुआलालंपुर में मलय तथा चीनी व्यंजनों की बहुलता है. इस के अलावा वहां अनेक भारतीय व्यंजन (अधिकतर मांसाहारी) भी उपलब्ध हैं. उदाहरण के लिए चिकन पुलाव, नान, परांठे, तंदूरी चिकन, कोरमा, मछली आदि के नाम गिनाए जा सकते हैं. दक्षिण भारतीय शाकाहारी व्यंजनों में इडली, दोसा, बड़ा, सांभर, चावल आदि भी खूब मिलते हैं. सत्य यहां का प्रसिद्ध लोकप्रिय मलय व्यंजन है, जो काफी कुछ भारतीय कबाब जैसा होता है. कुआलालंपुर एक मध्यवर्गीय होटल 100 से 200 रिंगित (1 मलयेशियाई रिंगित यानी 18 भारतीय रुपए) तथा उच्च वर्गीय होटल 250 से 350 रिंगित या अधिक में उपलब्ध हैं. छोटे होटलों का खाना 20-35 रिंगित (लगभग 350 से 700 भारतीय रुपए) तथा बड़े होटलों का भोजन 40-55 रिंगित (लगभग 800 से 1200 भारतीय रुपए) में मिल जाता है.

जैंटिंग हाईलैंड्स

कुआलालंपुर जाने के बाद यदि जैंटिंग हाईलैंड्स न देखा जाए तो कुआलालंपुर की यात्रा अधूरी मानी जाएगी. यह स्थान कुआलालंपुर से वहां के तीव्र वाहनों द्वारा लगभग 1 घंटे में पहुंचा जा सकता है. सागर तल से 2 हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित जैंटिंग हाईलैंड्स एक पर्वतीय स्थल है. जहां का तापमान 15 से 30 डिगरी सैल्सियस तक रहता है. यहां पर ठंडी हवा तथा खूबसूरत फिजाएं पर्यटकों का मन मोह लेती हैं. यह एक सुप्रसिद्ध मनोरंजन का केंद्र है जिसे दक्षिणपूर्व एशिया का ‘लास वेगास’ भी कहा जाता है. जैंटिंग हाईलैंड्स में अनेक विशाल तथा भव्य होटल, थीम पार्क, शौपिंग मौल्स तथा कई कैसिनो (जुआघर) स्थित हैं. इस स्थान पर पहुंचने के बाद पर्यटक अपनी सारी चिंताओं व थकावट से मुक्ति पा लेता है.    

मौसम

यहां साल भर एक जैसा मौसम रहता है. इसलिए आप यहां कभी भी जा सकते हैं. वैसे जब भारत में कड़ाके की ठंड या फिर बहुत अधिक गरमी पड़ रही हो तो मलयेशिया का रुख कर सकते हैं. यहां का तापमान 21 डिगरी से 32 डिगरी तक रहता है.

खरीदारी का अड्डा

कुआलालंपुर खरीदारी के लिए भी मशहूर है. यहां इतने अधिक शौपिंग मौल्स तथा फुटकर दुकानें उपलब्ध हैं कि पर्यटक खरीदारी करतेकरते थक जाएगा किंतु दुकानें खत्म होने का नाम नहीं लेती हैं. शौपिंग के लिए मशहूर क्षेत्रों में तुंकू अब्दुल रहमान स्ट्रीट, जालान बुकित बिंतांग, जालान सुलतान इसमाइल, जालान इम्बी अग्रणी हैं. भारतीय पर्यटकों के लिए एक आकर्षक स्थान मसजिद इंडिया है जहां उचित मूल्यों पर अनेक प्रकार के लुभावने सामान जैसे रेडीमेड कपड़े, खिलौने, सूटकेस, इलैक्ट्रौनिक चीजें इत्यादि मिल जाती हैं. इस के अलावा यहां का चाइना टाउन भी खरीदारी के दीवानों का खास स्थान है. चाइना टाउन के पेटलिंग स्ट्रीट के स्टाल तो सामान से भरे पड़े रहते हैं, जहां हीरेजवाहरात से ले कर चीनी सुगंधियों तक सबकुछ मिल जाता है. यहां पर रात के समय तो दुकानदारी और भी रंग पकड़ लेती है जब ग्राहक फुरसत के वक्त पहुंच कर खरीदारी का आनंद लेते हैं.

कुआलालंपुर में खरीदारी के लिए लोकप्रिय स्थल वहां के रात्रि बाजार (पसार मलम) हैं जो शाम के समय खुले मैदान में लगते हैं तथा देर रात तक चलते हैं. वहां पर भांतिभांति की उपयोग की वस्तुएं सस्ती तो मिलती ही हैं साथ ही मोलभाव भी खूब होता है. कुआलालंपुर का सैंट्रल मार्केट हस्तशिल्प तथा हस्तकला के लिए जाना जाता है. वह कुछकुछ दिल्ली के ‘दिल्ली हाट’ जैसा लगता है.

जरूरी बातें

वैसे तो कहीं भी जाने के लिए उस देश के तौरतरीकों का ध्यान रखना ही चाहिए. मलयेशिया एक मुसलिम देश है. इसलिए अगर किसी महिला से हाथ मिलाना हो तो आप पहल न करें, उन्हें पहल करने दें. अगर आप पहल करेंगे तो यह ठीक नहीं समझा जाता है. इस के अलावा किसी के घर जा रहे हैं तो जूते या चप्पल उतार कर जाएं. कोई ऐसी बात न करें जिस से बात बिगड़े.

कैसे पहुंचें

कुआलालंपुर के लिए दिल्ली, चेन्नई आदि शहरों से कई एअरलाइंस उड़ानें भरती हैं. अगर आप का प्लान पड़ोसी देशों थाईलैंड, इंडोनेशिया या फिर सिंगापुर होते हुए मलयेशिया जाने का है तो वहां से रेल या सड़क मार्ग से मलयेशिया जाया जा सकता है.

कहां ठहरें

कुआलालंपुर में घूमनेफिरने के बेहतरीन अड्डों के साथ रहने के होटल भी हर बजट में उपलब्ध हैं. अगर शुरुआती बजट से शुरू करें तो केएलसीसी का सिटी पार्क होटल 40 से 50 रिंगित में उपलब्ध है. स्टैंडर्ड बजट में चाइनाटाउन का होटल चाइनटाउन 2 पर्यटकों को खासा भाता है. यहां का किराया 60 रिंगित प्रतिदिन के हिसाब से लगता है. अगर सुपीरियर श्रेणी के होटल्स में ठहरना हो तो ग्रांड पैसिफिक होटल (चाउ फिट स्थित), द फाइव ऐनीमेंट होटल (के एल सेंटल) और शाह आलम स्थित अलामी गार्डन होटल बेहतर विकल्प हैं. यहां का किराया औसतन 700 से 100 रिंगित के बीच रहता है. वहीं फर्स्ट क्लास श्रेणी व डीलक्स श्रेणी में डी बुटीक, विवाटेल, 5 नोमाड सुकापा और सेरी पैसिफिक हैं जिन के लिए प्रतिदिन के हिसाब से 150 से 500 रिंगित तक खर्च करना पड़ता है.

अंतरंग दृश्य फिल्माना आसान नहीं : करण सिंह ग्रोवर

धारावाहिक ‘कितनी मस्त है जिंदगी’ से कैरियर की शुरुआत करने वाले करण सिंह ग्रोवर अभिनेता के साथसाथ मौडल भी हैं. अभिनय से पहले वे मौडलिंग, रैंप शो, विज्ञापन और रेडियो शो के आयोजन किया करते थे.

दिल्ली में जन्मे करण का नाम हमेशा उन के कोस्टार के साथ जुड़ता रहा. पहले उन की दोस्ती टीवी अभिनेत्री बरखा बिष्ट के साथ ‘कितनी मस्त है जिंदगी’ के दौरान हुई. उन की सगाई भी हुई थी पर 2006 में दरार आ गई. 2007 में लोकप्रिय अभिनेत्री श्रद्धा निगम के साथ डेटिंग और शादी. किसी वजह से केवल कुछ ही दिनों में शादी टूटी और जेनिफर विंगेट उन के जीवन में आई. वर्ष 2012 में दोनों ने शादी की और अपनी जिंदगी अच्छी तरह बिता रहे थे, लेकिन अब वे अलग हो चुके हैं.

आप ने ‘अलोन’ फिल्म से डेब्यू किया है. छोटे परदे से बड़े परदे पर आने में आप का अनुभव कैसा रहा?

छोटे परदे से बड़े परदे पर आने से खुशी तो होती ही है पर थोड़ीबहुत नर्वसनैस भी होती है. क्योंकि टीवी पर अगर पहले एपिसोड में रेटिंग कम हो तो दूसरे और तीसरे में सुधारने का मौका मिलता है. वहीं फिल्म में केवल 3 घंटे दर्शकों का ध्यान फिल्म की ओर रहता है. इस में वे मनोरंजन के लिए आते हैं. अगर फिल्म ठीक रही तो वे संतुष्ट हो जाते हैं और अगर नहीं तो उन का मूड खराब हो जाता है. और आप उन की नजर में गिर जाते हैं. इसलिए मैं ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है कि दर्शक हमेशा के लिए मेरे साथ जुड़ जाएं और उन का प्यार मिलता रहे.

आप के और बिपाशा के अंतरंग दृश्यों की काफी चर्चा है, इसे आप कैसे लेते हैं?

चर्चा के बारे में मैं अधिक नहीं सोचता. घर वालों की प्रतिक्रिया तो मैं उन के साथ मिल कर ही समझ लेता हूं. मैं इस सीन को ले कर काफी नर्वस था. हालांकि स्क्रिप्ट के दौरान यह पता लग चुका था कि ऐसा दृश्य होगा परंतु दृश्य फिल्माते समय कई विचार मेरे अंदर आए. मसलन, मैं पहली बार किसी नामचीन अभिनेत्री के साथ काम कर रहा था. पूरी यूनिट, 4 कैमरे, कोरियोग्राफर, निर्देशक आदि सभी थे. ऐसे में अगर मेरा सीन ठीक नहीं हुआ तो मेरे लिए यह गलत बात होगी कि मैं ने अपनी वजह से किसी को दृश्य रीटेक करने पर मजबूर किया. मेरे लिए यह पहली बार था पर बिपाशा ऐसे अंतरंग दृश्य कई बार फिल्मा चुकी है. उस ने बतौर ऐक्टर पूरा सहयोग दिया.

आप अपनी बौडी के लिए काफी मशहूर हैं, अपनी फिटनैस कैसे बनाए रखते हैं?

मैं कभी वर्कआउट बंद नहीं करता. 1 या 2 घंटे अवश्य वर्कआउट करता हूं. मैं अपनी डाइट में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाडे्रट, फाइबर सब गिन कर खाता हूं. हर दिन हर ‘मील’ मेरा ऐसा ही होता है. अगर कभी बड़ा पाव खाने का मन हुआ तो एक साथ 10 खा जाता हूं. तब मैं कैलोरी नहीं गिनता क्योंकि एक बड़े पाव से मैं खुश नहीं हो सकता. मैं बिपाशा के फिटनैस मंत्र से बहुत प्रभावित हूं. बिपाशा शूटिंग के दौरान कभी भी वर्कआउट ‘मिस’ नहीं करती.

आप के और जेनिफर के रिश्ते को ले कर चर्चा है, इस में कितनी सचाई है?

हमारे रिश्ते टूट चुके हैं, यह सही है. जेनिफर कुनाल कोहली की फिल्म में काम कर रही है. हम दोनों अब अलग हैं. अब आगे मैं किसी रिलेशनशिप पर नहीं जाना चाहता.

टीवी से आप ने क्या सीखा?

टीवी से मेरी जर्नी शुरू हुई है. उस में रह कर मैं ने धैर्य, उत्सुकता और अच्छा काम करने की चाहत सीखी है. अभी भी अगर टीवी पर काम मिलेगा तो अवश्य करूंगा.   द्य

खेल खिलाड़ी

बेटियां नहीं हैं पीछे

आज हर क्षेत्र में लड़कियां कामयाबी की सीढि़यां चढ़ रही हैं. गणतंत्र दिवस परेड में महिला सशक्तीकरण की झांकी महिलाओं की उपलब्धियों का उदाहरण थी. महिलाओं की इसी महत्ता को महिमामंडित करने के लिए 8 मार्च को ‘वर्ल्ड वूमंस डे’ मनाया जाता है. टैलीविजन, पत्रपत्रिकाएं, समाचारपत्र महिलाओं की उपलब्धियों को सामने लाने में पीछे नहीं रहते. घर की चारदीवारी को लांघ कर महिलाओं ने अपना दमखम खेलों में भरपूर दिखाया है. हरियाणा की 2 बहनें गीता और बबीता ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुश्ती में अपने दमखम से विरोधी पहलवानों को चित कर के अनेक पदक जीत कर उस समाज को, उन लोगों को बदल दिया है जो यह सोचते हैं कि महिलाओं का काम सिर्फ चूल्हाचौका, बच्चे जनना, घर संभालना है. सायना नेहवाल, सानिया मिर्जा, दीपिका पल्लीकल, आकांक्षा सिंह, सुनीता रौय, ज्वाला गुट्टा, प्राची तेहलान, तान्या सचदेव, दीपिका कुमारी जैसी महिला खिलाडि़यों ने यह साबित कर दिया है कि हम किसी से कम नहीं.

हमारे देश में मातापिता ही बेटी को खेल के क्षेत्र में जाने से रोकते हैं. वजह शारीरिक, सामाजिक, वैवाहिक अड़चनें आड़े आती हैं. लेकिन ऐसी सोच गलत है, वजह बेबुनियाद है. उन्हें एक मौका तो दीजिए. उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें, फिर देखिए बेटों से बढ़ कर साबित होंगी बेटियां. गीता और बबीता के पिता महाबीर सिंह तारीफ के काबिल हैं जिन्होंने अपनी दोनों बेटियों को पहलवानी के क्षेत्र में आगे बढ़ने की हौसलाअफजाई की. नतीजतन, आज दोनों फ्री स्टाइल रेसलिंग में एक के बाद एक सफलता हासिल कर महिला पहलवानों के लिए आइकन बन गईं. तभी तो कहते हैं, बेटियां एक घर नहीं, दोदो घरों का नाम रोशन करती हैं.

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विश्व कप की खुमारी

ओवल मैदान पर विश्वकप की खुमारी का रोमांच तब और बढ़ गया जब वेस्टइंडीज के खिलाड़ी क्रिस गेल ने जिम्बाब्वे के खिलाफ तूफानी पारी खेलते हुए 147 गेंदों में 215 रनों की पारी खेली. उस दिन स्टेडियम में बैठे दर्शक फील्डर बन गए और फील्डर दर्शक. ऐसा इसलिए क्योंकि गेल ने 10 चौके और 16 छक्के जड़ कर दर्शकों को ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया. विश्वकप में ऐसी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी आज तक किसी ने नहीं देखी. इस से पहले भारतीय बल्लेबाज शिखर धवन की बैटिंग परफौर्मेंस को ले कर चिंताएं बढ़ गई थीं. पर पहले पाकिस्तान के खिलाफ 73 रन की पारी, उस के बाद दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 146 गेंदों में 137 रनों की पारी खेल वे फिर शीर्ष पर पहुंच गए.

इस मामले में श्रीलंकाई शेर भी कम नहीं. बंगलादेश के खिलाफ खेलते हुए तिलकरत्ने दिलशान ने 146 गेंदों पर 161 रन तो वहीं कुमार संगकारा ने 76 गेंदों पर 105 रन की पारी खेल कर उन की टीम ने लगातार तीसरी बार विश्वकप फाइनल खेलने का अपना इरादा जता दिया है. ऐसे में भला दक्षिण अफ्रीका के कैप्टन एबी डिविलियर्स कहां पीछे रहने वाले थे. वेस्टइंडीज के खिलाफ खेलते हुए डिविलियर्स ने 66 गेंदों पर 162 रन की पारी खेल कर विरोधी टीमों को कम से कम डरा तो दिया ही है. क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है और किसी एक टीम को तो हारना ही पड़ता है लेकिन इस तरह के अचंभे कभीकभार होते हैं पर जब होते हैं तो खेल का रोमांच और बढ़ जाता है. फिलहाल हारजीत को भुला कर खेल का मजा लीजिए.

क्रिकेट से जुड़ी एक और बात. भारतीय क्रिकेट जगत में सालों पहले बेआबरू हो कर निकले बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमिया ने सुपर सिक्सर मारते हुए जोरदार वापसी की है. कहते हैं राजनीति में कोई परमानैंट दोस्त या दुश्मन नहीं होता, लिहाजा, श्रीनिवासन खेमे को भी उन्हें निर्विरोध बीसीसीआई का नया अध्यक्ष चुनना पड़ा. बड़ा सवाल यह है कि क्रिकेट की इतनी फजीहत होने के बावजूद खेल संघ से जुड़े बड़े पदों पर अभी भी पुराने धुरंधरों और दामन में दाग लिए नामों को ही बिठाया जा रहा है, जबकि उन लोगों को दरकिनार किया जा रहा है जो पूर्व खिलाड़ी रहे हैं.

दिन दहाड़े

हम लोग घर के लौन में बैठे थे. पौधे बेचने वाले 2 आदमी आए. उन की साइकिल पर अमरूद के पौधे रखे थे. हम ने उन से अमरूद व अशोक वृक्ष के पौधे लगाने की बात की तो उन्होंने बताया कि अमरूद का पौधा 50 व अशोक का पौधा 60 रुपए का है. उन्होंने दोनों पौधे 100 रुपए में लगाने की बात कह कर हमारे यहां पौधे लगा दिए. हम ने उन से पूछा कि पौधों में खाद व पानी कैसे देना है तो उन्होंने कहा कि जो खाद आप के पास है, वही काम आ जाएगी. पौधों को पानी 2 दिन बाद ही देना. हमारे पड़ोसियों ने भी उन से पौधे लगवाए. उन्होंने लाल अमरूद का पौधा लगवाया जिस के लिए उन्होंने 100 रुपए दिए. उन्होंने खाद व पानी देने की बात की तो उन्होंने हमें कही बात दोहराई. इस के अलावा उन्होंने अपनेआप को जयपुर का रहने वाला बताया. पौधे वाले आजतक पलट कर नहीं आए. कोई भी पौधा हमारे यहां नहीं पनपा, न पड़ोसियों के घर पर पनपा. इस तरह हम दिन दहाड़े ठगे गए.

गुलाब सिंह राजपूत, चूरू (राज.)

*

गरमी का मौसम था. एक दिन मेरा देवर उन्नाव से दोपहर को मोटरबाइक द्वारा कानपुर आ रहा था. धूप काफी तेज थी. तभी रास्ते में 2 लड़के चले जा रहे थे. तुरंत मोटरबाइक के सामने आते हुए बोले, ‘‘अंकलजी, अंकलजी, हमें भी मोटरबाइक पर बैठा कर वहां मोड़ पर छोड़ दो. धूप बहुत तेज है.’’ मोटरबाइक धीरे करते हुए  मेरे देवर ने कहा, ‘‘बेटे, मैं 2 जनों को नहीं बैठा सकता,’’ तुरंत उन में से एक बोला, ‘‘अंकल, कृपया मुझे ही बिठा लें. मेरी तबीयत खराब है.’’ देवरजी ने गाड़ी रोक दी. इस से पहले वे कुछ बोलते, दोनों लड़के लपक कर गाड़ी पर बैठ गए और उन्हें धक्का दे कर सड़क पर गिरा दिया. एक लड़का मोटरबाइक पर बैठा रहा. दूसरे ने कहा, ‘‘बाबूजी, सबकुछ जेब से निकाल कर हमें दे दो.’’ उन से घड़ी, मोबाइल, फोन, अंगूठी पर्स सबकुछ छीन लिया. इस के बाद भी दोनों ने देवर की खूब पिटाई की और पास ही के एक गड्ढे में गिरा दिया. और तुरंत मोटरबाइक ले कर भाग गए. मेरे देवर किसी तरह गड्ढे से बाहर निकले. उस सुनसान रास्ते पर एक पुरुष दिखाई दिया. उन्हें सब किस्सा सुना कर उन के साथ पास ही की एक पुलिस चौकी पर पहुंच कर एफआईआर लिखवाई. कई दिनों की दौड़धूप के बाद उन को पुलिस ने उन की गाड़ी मिल जाने की सूचना दी. गाड़ी को देख कर उन्हें रोना आ गया क्योंकि मोटरबाइक के ओरिजनल पार्ट्स गायब थे.

कैलाश भदौरिया, गाजियाबाद (उ.प्र.)

महायोग : 11वीं किस्त

अब तक की कथा :

ईश्वरानंद से मिल कर दिया को अच्छा नहीं लगा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि धर्मानंद क्यों ईश्वरानंद का आदेश टाल नहीं पाता. ईश्वरानंद कोई सामूहिक गृहशांति यज्ञ करवा रहे थे. उसे फिर धर्मानंद के साथ उस यज्ञ में शामिल होने का आदेश मिलता है. बिना कोई विरोध किए दिया वहां चली गई. उस पूजापाठ के बनावटी माहौल में दिया का मन घुट रहा था परंतु धर्मानंद ने उसे बताया कि प्रसाद ग्रहण किए बिना वहां से निकलना संभव नहीं. वह दिया की मनोस्थिति समझ रहा था. अब आगे…

दिया बेचैन हुई जा रही थी.  जैसेतैसे कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा हुई और भीड़ महाप्रसाद लेने के लिए दूसरी ओर लौन में सजी मेजों की ओर बढ़ने लगी. अचानक एक स्त्री ने आ कर धीरे से धर्मानंद के कान में कुछ कहा.

धर्मानंद अनमने से हो गए, ‘‘देर हो रही है.’’

‘‘लेकिन गुरुजी ने आप को अभी बुलाया है. आप के साथ में कोई दिया है, उसे भी बुलाया है.’’

एक प्रकार से आदेश दे कर वह स्त्री वहां से खिसक गई. दिया ने भी सब बातें सुन ली थीं. कहांकहां फंस जाती है वह. नहीं, उसे नहीं जाना.

‘‘आप हो कर आइए. मैं खाना खाती हूं.’’

‘‘दिया, प्लीज अभी तो चलिए. नहीं तो गड़बड़ हो जाएगी.’’

‘‘मैं कोई बंदी हूं उन की जो उन का और्डर मानना जरूरी है?’’ दिया की आवाज तीखी होने लगी तो धर्मानंद ने उसे समझाने की चेष्टा की.

‘‘मैं जानता हूं तुम उन की बंदी नहीं हो पर तुम नील और उस की मां की कैदी हो. वैसे मैं भी यहां एक तरह से कैद ही हूं. इस समय मैं जैसा कह रहा हूं वैसा करो दिया, प्लीज. हम दोनों ही मिल कर इस समस्या का हल ढूंढ़ेंगे.’’

धर्मानंद दिया का हाथ पकड़ कर पंडाल के अंदर ही अंदर 2-3 लौन क्रौस कर के दिया धर्मानंद के साथ गैराजनुमा हाल में पहुंची.

धर्मानंद ने एक दीवार पर लगी हुई एक बड़ी सी पेंटिंग के पास एक हाथ से उस सुनहरी सी बड़ी कील को घुमाया जिस पर पेंटिंग लगी हुई थी. अचानक बिना किसी आवाज के पेंटिंग दरवाजे में तबदील हो गई और धर्मानंद उस का हाथ पकड़े हुए उस दरवाजे में कैद हो गया. अंदर घुसते ही पेंटिंग बिना कुछ किए बिना आवाज के अपनेआप फिर से पहली पोजीशन पर चिपक सी गई. सामने ही ईश्वरानंदजी का विशाल विश्रामकक्ष था. ईश्वरानंदजी गाव तकिए के सहारे सुंदर से दीवान पर लेटे हुए थे, उन के सिरहाने एक स्त्री बैठी थी जो उन का सिर दबा रही थी तो एक उन के पैरों की ओर बैठी पैरों की मालिश कर रही थी.

‘‘आओ, धर्मानंद, आओ दिया, क्या बात है, आज देर कैसे हो गई? काफी देर से पहुंचे आप लोग? और हम से क्या मिले बिना जाने का प्रोग्राम था?’’दिया ने देखा दोनों स्त्रियां किसी मशीन की भांति चुपचाप माथे और पैरों की मालिश कर रही थीं.

‘‘अरे भई, जरा धर्मानंद और दिया को एकएक पैग तो बना कर दो. अभी तक खड़े हो दोनों, बैठो.’’

चुपचाप दोनों सामने वाले सोफे पर बैठ गए. दिया का दिल धकधक करने लगा. अब क्या प्रसाद के नाम पर पैग भी. नहीं, उस ने धर्मानंद का हाथ फिर से कस कर दबा दिया.अचानक न जाने किधर से उस दिन वाली अंगरेज स्त्री आ कर खड़ी हो गई और मुसकराते हुए पैग तैयार करने लगी.

‘‘हैलो धर्मानंद, हाय दिया,’’ उस ने दोनों को विश किया.

‘‘प्लीज रहने दें, हम तो बस महाप्रसाद लेने ही जा रहे थे,’’ धर्मानंद ने मना किया.

‘‘ऐसे कैसे चलेगा, धर्म, तुम्हें होता क्या जा रहा है? एकएक पैग लो यार. सिर फटा जा रहा है. सुबह से ये सब विधि करवाते हुए पूरे बदन में दर्द हो रहा है. दो, दिया को भी दो, धर्म को भी,’’ ईश्वरानंद ने फिर आदेश दिया.

‘‘गुरुजी, इस समय रहने दें और दिया तो लेती ही नहीं है.’’

‘‘अरे, लेती नहीं है तो क्या, आज ले लेगी, गुरुजी के साथ.’’

‘‘यहां आओ, दिया. उस दिन भी तुम से कुछ बात नहीं हो सकी,’’ ईश्वरानंद ने उसे अपने पास दीवान पर बैठने का इशारा किया.

दिया मानो सोफे के अंदर धंस जाएगी, इस प्रकार चिपक कर बैठी रही.

‘‘मैं किसी को खा नहीं जाता, दिया. देखो ये सब, कितने सालों से मेरे साथ हैं. आज तक तो किसी को कुछ नुकसान पहुंचाया नहीं है. डरती क्यों हो?’’

‘‘लाओ, बनाओ एकएक पैग और जाओ तुम लोग भी प्रसाद ले लो, फिर यहां आ जाना.’’

गुरुजी के आदेश पर दोनों स्त्रियां ऐसे उठ खड़ी हुईं मानो किसी ने उन का कोई स्विच दबा दिया हो, रोबोट की तरह. हाय, क्या है ये सब? मानो किसी ने हिप्नोटाइज कर रखा हो. दिया ने सुना हुआ था कि ऐसे लोग भी होते हैं जो आंखों में आंखेंडाल कर अपने वश में कर लेते थे. सो, दिया ईश्वरानंद से आंखें नहीं मिला रही थी. सब के सामने पैग घूम गए. सब से पहले ईश्वरानंद ने लिया, चीयर्स कह कर गिलास ऊपर की ओर उठाया, एक लंबा सा घूंट भर लिया और धर्मानंद को लेने का इशारा किया.

‘‘प्लीज, नो,’’ दिया जोर से बोली.

धर्मानंद का उठा हुआ हाथ वहीं पर रुक गया और ईश्वरानंद भी चौंक कर दिया को देखने लगे.

‘‘प्लीज, चलो धर्मानंद, आय एम वैरी मच अनकंफर्टेबल,’’ उस के मुंह से अचानक निकल गया.

‘‘क्यों घबरा रही हो, दिया? एक पैग लो तो सही, सब डर निकल जाएगा. लो,’’ ईश्वरानंद अपने स्थान से उठ कर दिया की ओर बढ़े तो दिया धर्मानंद के पीछे छिप गई.

‘‘गुरुदेव, दिया के लिए यह सब बिलकुल अलग है, नया. प्लीज, अभी रहने दें. बाद में जब यह कंफर्टेबल हो जाएगी…’’ धर्मानंद ने ईश्वरानंद की ओर अपनी एक आंख दबा दी.

ईश्वरानंद उस का इशारा समझ कर फिर से जा कर धप्प से अपने स्थान पर विराजमान हो गए. उन के चेहरे से लग रहा था कि वे दिया व धर्म के व्यवहार से क्षुब्ध हो उठे हैं. परंतु लाचारी थी. जबरदस्ती करने से बात बिगड़ सकती थी और वे बात बिगाड़ना नहीं चाहते थे.

‘‘दिया इतनी होशियार है, मैं तो कहता हूं कि यह अगर अपना हुलिया थोड़ा सा बदलने के लिए तैयार हो तो मैं इसे अच्छी तरह से ट्रेंड कर दूंगा और फिर देखना लोगों की लाइन लग जाएगी, इस के प्रवचन सुनने और इस के दर्शनों के लिए.

‘‘दिया, तुम्हारी पर्सनैलिटी में तो जादू है जो तुम नहीं जानतीं, मैं समझता हूं. तुम्हारे लिए सबकुछ नया है पर शुरू में तो सब के लिए नया ही होता है न?’’ ईश्वरानंद प्रयत्न करना नहीं छोड़ रहा था.

‘‘गुरुजी, आज दिया को जरा घुमा लाता हूं. बेचारी घर के अंदर रह कर बोर हो जाती है. आज आप भी थके हुए हैं. मैं फिर कभी इसेले कर आऊंगा.’’

‘‘ठीक है पर प्रसाद जरूर ले कर जाना. उस के साथ आने वाले दिनों के कार्यक्रम की लिस्ट भी मिलेगी.’’

बाहर जाने वाले लोगों के हाथ पर एक मुहर लगाई जा रही थी. उन लोगों के हाथों पर भी मुहर लगाई गई. जब वे अपना जमा किया हुआ सामान लेने पहुंचे तो उन्हें उन का सामान तभी दिया गया जब उन्होंने अपने हाथ दरबानों को दिखाए. साथही एक लिस्ट भी दी गई जिस पर ईश्वरानंदजी द्वारा संयोजित होने वाले कार्यक्रमों का विवरण था और ‘परमानंद सहज अनुभूति’ के सदस्यों का उन कार्यक्रमों में उपस्थित होना अनिवार्य था.शाम के 3:30 बजे थे. धर्मानंद ने गाड़ी निकाली और बाहर निकल कर दिया चारों ओर देख कर लंबीलंबी सांसें ले रही थी. घुटन से निकल मुक्त वातावरण में वह अपने फेफड़ों के भीतर पवित्र, शुद्ध, सात्विक सांसें भर लेना चाहती थी.  गार्डन पहुंच कर दोनों गाड़ी से उतरे. लौन पर बैठते ही सब से पहले दिया ने अपना पर्स  खोला. मोबाइल देखा, कितने सारे मिसकौल्स थे.

‘‘देखिए धर्म, इस में नील की मां के भी कई मिसकौल्स हैं,’’ दिया ने धर्मानंद की ओर मोबाइल बढ़ा दिया.

‘‘अरे, मैं भूल गया दियाजी, उन्होंने कहा था न कि पूजा खत्म होते ही मुझे रिंग दे देना. मैं अभी उन्हें कौल करता हूं.’’

‘‘क्या जरूरत है, धर्म?’’

‘‘जरूरत है, दिया. इन लोगों से ऐसे छुटकारा नहीं मिल सकता. इन्हें शीशे में उतारने के बाद ही कुछ हो सकेगा.’’

उस ने नील की मां को फोन किया और स्पीकर का बटन दबा दिया जिस से दिया भी सुन सके.

‘‘रुचिजी, पूजा हो गई है और हम वहां से निकल रहे हैं.’’

‘‘कैसी हुई पूजा, धर्मानंदजी? आप साथ ही में थे न? दिया ने कुछ गड़बड़ी तो नहीं की?’’

‘‘कैसी बात कर रही हैं आप? मेरे साथ थी वह, क्या कर सकती थी?’’

‘‘आप के पास नहीं है क्या दिया?’’

‘‘अगर होती तो आप से ऐसे खुल कर बात कैसे कर सकता था?’’

‘‘कहां गई है?’’

‘‘जरा वाशरूम तक. मैं ने ही कहा जरा हाथमुंह धो कर आएगी तो फ्रैश फील करेगी. वहां तो उस का दम घुट रहा था.’’

‘‘यही तो धर्मानंदजी, क्या करूं, मैं तो बड़ी आफत में पड़ गई हूं. उधर…आप के पास तो फोन आया होगा नील का?’’ वे कुछ घबराए स्वर में बोल रही थीं. जब नील से फोन पर बात होती थी तब भी वे इसी स्वर में बोलने लगती थीं.

‘‘नहीं, रुचिजी, क्या हुआ? नील का तो कोई फोन नहीं आया मेरे पास. सब ठीक तो है?’’ धर्म ने भी घबराने का नाटक किया.

‘‘अरे वह नैन्सी प्रैगनैंट हो गई है. बच्चे को गिराना भी नहीं चाहती.’’

‘‘तो पाल लेगी अपनेआप, सिंगल मदर तो होती ही हैं यहां.’’

‘‘नहीं, पर वह चाहती है कि मैं पालूं बच्चे को. अगर मैं बच्चा पालती हूं तो वह नील से शादी कर लेगी वरना…’’

‘‘तो इस में आप को क्या मिलेगा?’’

‘‘मिलने की बात तो छोडि़ए, धर्मजी. मुझे तो इस लड़के ने कहीं का नहीं रखा. दिया का क्या करूं मैं?’’

‘‘हां, यह तो सोचना पड़ेगा. मैं तो समझता हूं कि रुचिजी, अब बहुत हो गया, अब तो इस के घर वालों को खबर कर ही देनी चाहिए.’’

‘‘मरवाओगे क्या? वे तो वैसे ही यहां आने के लिए तैयार बैठे हैं…और आप को पता है उन की परिस्थिति क्या चल रही है? वे तो हमें फाड़ ही खाएंगे…’’

‘‘दिया आ रही है, रुचिजी. मैं बाद में आप से बात करूंगा.’’  

‘‘अरे कहीं मौलवौल में घुमाओ. बियाबान में क्या करेगी? कुछ खरीदना चाहे तो दिलवा देना. आज उसे पैसे नहीं दिए. वैसे पहले के भी होंगे ही उस के पर्स में, पूछ लेना…’’ नील की मां की नाटकीय आवाज सुनाई दी.

‘‘हां जी, देर हो जाए तो चिंता मत करिएगा.’’

‘‘चिंताविंता काहे की, मेरी तो मुसीबत बन गई है. समझ में नहीं आता और क्या पूजापाठ करवाऊं? ईश्वरानंदजी से भी मशवरा कर लेना.’’

‘‘हां जी-हां जी, जरूर. अभी रखता हूं, नमस्ते.’’

मोबाइल बंद कर के दिया की आंखों में आंखें डाल कर धर्मानंद बोला, ‘‘आई बात कुछ समझ में?’’

‘‘आई भी और नहीं भी आई, धर्मजी. जीवन कैसे मेरे प्रति इतना क्रूर हो सकता है? मेरा क्या कुसूर है? मैं कांप जाती हूं यह सोच कर कि मेरे घर वालों की क्या दशा होगी लेकिन मैं उन्हें सचाई बताने से भी डरती हूं. क्या करूं?’’

‘‘दिया, दरअसल मैं खुद यहां से निकल भागना चाहता हूं. मगर मैं यहां एक जगह फंसा हुआ हूं,’’ वह चुप हो गया.

दिया का दिल फिर धकधक करने लगा. कहीं कुछ उलटासीधा तो कर के नहीं बैठे हैं ये.

‘‘नहीं, मैं ने कुछ गलत नहीं किया है. मैं दरअसल यहां एमबीए कर रहा हूं और सैटल होना चाहता हूं पर अगर ईश्वरानंद को पता चल जाएगा तो वे मेरा पत्ता साफ करवा देंगे.’’

‘‘क्यों? उन्हें क्या तकलीफ है?’’ दिया ईश्वरानंद के नाम से चिढ़ी बैठी थी.

‘‘तकलीफ यह है कि मैं उन के बहुत सारे रहस्यों से वाकिफ हूं और अगर मैं ने उन का साथ छोड़ दिया तो उन्हें डर है कि मैं कहीं उन की पोलपट्टी न खोल दूं…’’

‘‘क्या आप को यह नहीं लगता कि ये सब गलत है?’’

‘‘हां, खूब लगता है.’’

‘‘फिर भी आप इन लोगों के साथी बने हुए हैं?’’

‘‘बस, इस में से निकलने का रास्ता ढूंढ़ रहा हूं.’’

‘‘सच बताइए, धर्म, मेरा पासपोर्ट आप के पास है न?’’

दिया ने धर्म पर अचानक ही अटैक कर दिया. धर्म का चेहरा उतर गया पर फिर संभल कर बोला, ‘‘हां, मेरे पास है पर आप को कैसे पता चला?’’

‘‘मैं ने आप की और नील की मां की सारी बात सुन ली थी उस दिन मंदिर में,’’ दिया ने सब सचसच कह दिया.

‘‘और…आप उस दिन से मुझे बरदाश्त कर रही हैं?’’

‘‘मैं तो नील और उस की मां को भी बरदाश्त कर रही हूं, धर्म. मैं इन सब दांवपेचों को न तो जानती थी और न ही समझती थी परंतु मेरी परिस्थिति ने मुझे जबरदस्ती इन सब पचड़ों में डाल दिया.’’

‘‘बहुत शर्मिंदा हूं मैं, दिया. पर मैं भी आप की तरह ही हूं. मुझे भी उछाला जा रहा है. एक फुटबाल सा बन गया हूं मैं. सच में ऊब गया हूं.’’

धर्म की आंखों में आंसू भरे हुए थे. दिया को लगा वह सच कह रहा था.

‘‘मैं नील के घर से भागना चाहती हूं, धर्म,’’ दिया ने अपने मन की व्यथा धर्म के समक्ष रख दी.

‘‘कहां जाओगी भाग कर?’’

‘‘नहीं मालूम, कुछ नहीं पता मुझे. वहां मेरा दम घुटता है. मैं इंडिया वापस जाना चाहती हूं,’’ दिया बिलखबिलख कर रोने लगी, ‘‘आप नहीं जानते, धर्म, मैं किस फैमिली से बिलौंग करती हूं. और मेरी ही वजह से मेरे पापा का क्या हाल हुआ है?’’

‘‘मैं सब जानता हूं, दिया. इनफैक्ट, मुझे आप के घर में हुई एकएक दुर्घटना का पता है, यह भी कि नील व उस की मां भी ये सब जानते हैं.’’

‘‘क्या? क्या जानते हैं ये लोग? क्या इन्हें मालूम है कि मेरे पापा की…’’ दिया चकरा गई.

‘‘हां, इन्हें सब पता है और इन्हें यह सब भी पता है जो आप को नहीं मालूम,’’ धर्म ने सपाट स्वर में कहा.

‘‘क्या, क्या नहीं पता है मुझे?’’ दिया अधीर हो उठी थी.

‘‘अब मैं आप से कुछ नहीं छिपा पाऊंगा, दिया. मेरा मन वैसे ही मुझे कचोट रहा है. मैं भी तो इस पाप में भागीदार हूं.’’

‘‘पर आप तो उस दिन नील की मां से कह रहे थे कि आप यहां थे नहीं, तब किसी रवि ने मेरी जन्मपत्री मिलाई थी.’’

‘‘ठीक कह रहा था, दिया. पर सब से ऊपर तो ईश्वरानंद बौस हैं न?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि जब तक उस की मुहर नहीं लग जाती तब तक बात आगे कहां बढ़ती है. रवि भी तो इन का ही मोहरा है. उस ने भी जो किया या बताया होगा, ईश्वरानंदजी के आदेश पर ही न.’’

‘‘पर आप तो उस दिन नील की मां से कह रहे थे कि रवि आप का चेला है. आप उसे यह विद्या सिखा रहे हैं?’’

दिया चाहती थी कि जितनी जल्दी हो सके उसे ऐसा रास्ता दिखाई दे जाए जिस से वह इस अंधेरी खाई से निकल सके.

‘‘अच्छा, एक बात बताइए, धर्म. कहते हैं कि मेरे ग्रह नील पर बहुत भारी हैं और यदि वह मुझ से संबंध बनाता है तो बरबाद हो जाएगा. पर नैन्सी से उस के शारीरिक संबंध ग्रह देखने के बाद बने हैं क्या?’’

‘‘क्या बच्चों जैसी बात करती हैं? उस जरमन लड़की से वह ग्रह देखने के बाद संबंध स्थापित करता क्या?’’

‘‘तो उसे कैसे परमिशन दे दी उस की मां ने? बच्चों जैसी बात नहीं, धर्म, मूर्खों जैसी बात है. जिस लड़की को पूरी तरह ठोकपीट कर ढोलनगाड़े बजा कर लाए उस के ग्रहों के डर से अपने बेटे को बचा कर रखा जा रहा है और जिस लड़की के शायद बाप का भी पता न हो, वह नील की सर्वस्व है. क्या तमाशा है, धर्म?’’

‘‘हां, तमाशा ही तो है, दिया. तुम वैसे भी सोचो, पूरी दुनिया में ग्रह मिलाए जाते हैं क्या? विदेशों में तो वैसे ही संबंध बन जाते हैं, फिर भी यहां पर इस अंधविश्वास की चिंगारी जल रही है. तुम ने देखा, कितने गोरे थे ईश्वरानंद के प्रोग्राम में. यह तमाशा नहीं तो फिर क्या है?’’

दिया बोली, ‘‘धर्म, क्या मुझे पता चल सकता है कि मेरे घरवाले कैसे हैं? मैं समझती थी कि नील व उस की मां इस बात से बेखबर हैं कि मेरी फैमिली पर क्या बीती है.’’

‘‘नहींनहीं, वे लोग सबकुछ जानते हैं, दिया. इनफैक्ट, एकएक घटना. एक बात सुन कर तुम चौंक जाओगी, समझ में नहीं आता तुम्हें बताऊं या नहीं?’’

‘‘अब सबकुछ तो पता है. कुछ बताओगे भी तो क्या होगा. हां, शायद इन लोगों को समझने में मुझे मदद मिल सके,’’ दिया ने धीरे से कहा.

‘‘मैं जानता हूं तुम्हारे लिए कंट्रोल करना मुश्किल हो जाएगा पर न जाने क्यों मैं तुम से अब कुछ भी छिपाना नहीं चाहता.’’

‘‘तो बता दो न, धर्म. क्यों अपने और मेरे लिए बेकार का सिरदर्द रखते हो. एक बार कह कर खत्म कर दो बात,’’ दिया पूरा सच जानने के लिए बेचैन हो रही थी.

अपनेआप को संयत करते हुए धर्म ने कहा, ‘‘दिया, यह तुम्हारी शादी का जो जाल है न, वह भी ईश्वरानंद का ही फैलाया हुआ है.’’

‘‘क्या,’’ दिया मानो कहीं ऊंचाई से नीचे खाई में गिर पड़ी, ‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ उस के मुख से ऐसी आवाज निकली मानो जान ही निकली जा रही हो.

‘‘दिया, इतना कुछ देखनेसुनने, सहने के बाद भी तुम कितनी भोली हो. इस दुनिया में सबकुछ हो सकता है, सबकुछ. यह रिश्ता ईश्वरानंद का ही भेजा हुआ था. यह एक पासा फेंकने जैसी बात है. उन्होंने पासा फिंकवाया और तुम्हारी दादी लपेटे में आ गईं. वह जो तुम्हें किसी शादी में बिचौलिया मिला था न.’’

‘‘बिचौलिया? मतलब?’’ दिया का दम निकला जा रहा था.

‘‘बिचौलिया यानी बीच का आदमी. जो तुम्हारी दादी के पास तुम्हारे रिश्ते की बात ले कर आया था.’’

‘‘अच्छा, तो?’’

‘‘तो यह कि वह ईश्वरानंद का ही आदमी था. तुम्हें आश्चर्य होगा कि वह आदमी ईश्वरानंद के लिए इसी प्रकार काम करता है, जिस के लिए उस को खूब  पैसा मिलता है. न जाने कितनी लड़कियां लाया है वह हिंदुस्तान से और वह केवल ईश्वरानंद का ही नहीं, न जाने ऐसे कितने दूसरे लोगों के लिए काम करता है.’’

दिया की आंखें फटी की फटी रह गईं. ऐसा भी हो सकता है क्या? जीवन में इस प्रकार की धोखाधड़ी. दिया पसीने से तरबतर अपना मुंह पोंछने लगी.

‘‘मैं तुम्हें डराना नहीं चाहता पर है यह सच. तुम्हें मंदिर में एक खूब मोटी सी औरत मिली थी न जिस से रुचिजी बहुत बातें करती रहती हैं. क्या नाम है उस का…हां…शिक्षा…शिक्षा के लिए वह आदमी 3 लड़कियां लाया है इंडिया से.’’

‘‘क्यों? शिक्षा भी ये सब धंधे करती है क्या?’’ दिया के मुंह से घबराई हुई आवाज निकली.

‘‘नहीं, शिक्षा धंधा तो नहीं करती. शिक्षा का बेटा डायबिटिक है, वैसे वह इंपोटैंट भी है. मालूम है, उस ने अपने बेटे की 3 शादियां करवा दी हैं?’’

‘‘3 शादियां…? क्या तीनों बहुएं उसी घर में रहती हैं…’’ अचानक दिया पूछ बैठी.

‘‘नहीं, एक शादी होती है तो बहू पर घर का सारा काम डाल दिया जाता है. बहुत पैसे वाले लोग हैं ये. बहुत बड़ा घर है. वैसे तो 3 घर हैं इन के पर जिस में रहते हैं वह बहुत बड़ा घर है. 60 वर्षों से भी पहले इन की पीढ़ी यहां पर आई थी और यहीं इन के दादा लोग बस गए थे. इन के घर की औरतें पढ़ीलिखी नहीं हैं. बस, यहां रहते हैं इतना ही…अब जब लड़के की शादी होती है, बहू आती है तो वह लड़के से किसी भी प्रकार संतुष्ट नहीं हो पाती. फिर जब तक उस के पक्के होने की मुहर लगती है वह तब तक ही उस के घर रहती है. जैसे ही उसे इस देश में रहने की परमिशन मिली वह उन के घर से भाग खड़ी होती है और कहीं भी मजदूरी कर के अपनेआप को सैटल कर लेती है. इस तरह से शिक्षा के लड़के की 3 शादियां हुईं और ये सब काम उसी आदमी के हैं जिस ने तुम्हारा रिश्ता पक्का कराया था.’’

‘‘तो लड़की यहां कैसे आती है, उस का वीजा वगैरह?’’ दिया ने पूछा.

‘‘यह सब तो इन के बाएं हाथ का खेल है. पूरा एक रैकेट है दिया, जिस में कोई अपनेआप आ फंसता है तो कोई ग्रहों और ज्योतिष के चक्कर में फंसा लिया जाता है.’’

‘‘तब तो मैं बहुत बुरी तरह उलझी हुई हूं. अगर मैं किसी से बात करती हूं तो मुझ पर और अंकुश लग जाएंगे?’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है. यहां बहुत से ‘हैल्पेज होम्स’ भी हैं. ‘ओल्ड ऐज होम्स’ की तरह, पुलिस में भी इन्फौर्म कर सकते हैं और ऐंबैसी से भी हैल्प मिल सकती है. बस, बात इतनी सी है कि हमें थोड़ा इंतजार करना होगा.’’

‘‘क्यों? क्यों करना होगा इंतजार? धर्म अगर आप मुझे सच में प्रोटैक्ट करना चाहते हैं तो प्लीज मुझे जल्दी से जल्दी इस गंद से निकलने में हैल्प करिए,’’ दिया उतावली सी हुई जा रही थी.

‘‘दिया, मैं चाहता हूं कि आप के साथ मैं भी इस दलदल से निकल भागूं जबकि मैं जानता हूं कि ईश्वरानंदजी मुझे इतनी आसानी से निकलने नहीं देंगे. उन का कोई न कोई आदमी हम पर नजर रखे ही होगा.’’

दिया घबरा कर इधरउधर देखने लगी तो धर्म हंस पड़ा.

‘‘अरे, इतना आसान थोड़े ही है यह पता लगाना. यह तो पूरा चैनल है जो हर तरफ फैला हुआ है. दुनियाभर में चलता है इन का व्यापार. इतनी आसानी से आप को जाने देंगे वे लोग? इन का तो कोई मकसद भी सौल्व नहीं हुआ है अब तक.’’

‘‘तब फिर कैसे?’’ दिया ने हकला कर पूछा और रूमाल से अपना पसीना पोंछने लगी.

‘‘थोड़ा पेशेंस रखना होगा और कुछ दिन. मैं चाहता हूं कि मेरा एमबीए भी पूरा हो जाए और किसी को खबर हुए बिना हम किसी न किसी तरह यहां से निकल भागें.’’

‘‘यह कोई सपना देख रहे हैं क्या, धर्म?’’

‘‘नहीं, सपना नहीं है. जब यह सपना नहीं है कि आप इस कैद में आ कर फंसी हुई हैं तो वह भी केवल सपना नहीं कि आप इस कैद से छूट सकती हैं. हां, मुश्किलें तो बहुत आएंगी, इस में शक नहीं है.’’

धर्म के साथ रहने पर समय का पता ही नहीं चलता था. युवा उम्र में वैसे भी स्वाभाविक रूप से विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है. उस पर, दिया की स्थिति तो बेपेंदी के लोटे की तरह हो गई थी. इस इकलौते सहारे में ही वह सबकुछ ढूंढ़नेलगी थी. केवल 2 बार के मिलने से ही उसे यह बात ठीक प्रकार समझ में आ गई थी कि धर्म भीतर से बहुरूपिया नहीं है बल्कि ऐसी परिस्थितियों में उलझा हुआ है कि वह भी उन में फंस कर अपने पंख फड़फड़ा रहा है. जब 2 लोग एक सी मुसीबत में घिर जाते हैं तो उन की समस्या भी एक हो जाती है और विचार भी एक ही दिशा में चलने लगते हैं.

‘‘धर्म, मुझे नहीं जाना नील के घर,’’ अचानक ही दिया ने यह बचपने का सा विचार धर्म के समक्ष परोस दिया.

धर्म का मुंह चलतेचलते रुक गया, ‘‘तो कहां जाओगी?’’

‘‘कहीं भी, आप के साथ.’’

‘‘मेरे साथ?’’

‘‘हां, क्यों, आप मुझे अपने घर पर नहीं रख सकते?’’

‘‘नहीं, वह बात नहीं है, दिया, पर यह कैसे संभव है? थोड़ा पेशेंस रखो,’’ धर्म ने दिया को समझाने का प्रयास किया.

‘‘कहां से रखूं पेशेंस? मुझ में पेशेंस है ही नहीं अब, कहां से लाऊं?’’

‘‘हम ऐसे हार नहीं मान सकते, दिया. मुझे कुछ टाइम दो सोचने का,’’ धर्म उस को पकड़ कर फिर से लौन में जा बैठा.

‘‘धर्म, मैं एक उलझन से निकलती हूं तो दूसरी में फंस जाती हूं. मुझे अभी आप ने बताया कि ईश्वरानंद ने ही मुझे फंसाया है पर जब पिछली बार आप के साथ उन से मिली थी, तब तो वे पूछ रहे थे कि यह दिया कौन?’’

‘‘दिया, आप को अब तक यह बात समझ में नहीं आई कि ये सब नाटक है. तब अगर वे बता देते तो आप पर अपना प्रभाव कैसे डाल पाते? आप को तो अपने झांसे में लेना ही था न उन्हें? फिर रुचिजी की और उन की बहुत पुरानी दोस्ती है. पिछली बार तक तो वे, इन के यहां आने पर, इन के हर प्रोग्राम में आती थीं. लगता है इस बार वे जानबूझ कर नहीं आना चाहतीं. शायद, कहीं पोल न खुल जाए, इसलिए.’’

‘‘वह तो कुछ पैरों के दर्द के कारण…’’ दिया बोली तो उस की बात को बीच में काटते हुए धर्म बोला, ‘‘पैरों का दर्दवर्द सब ड्रामा है, दिया. कुछ तो कहेंगी और करेंगी न? और हां…आप अपनेआप को थोड़ा कंट्रोल में रखो जिस से और मुश्किलें न बढ़ें तभी कोई रास्ता निकल सकेगा वरना…’’

तभी धर्म के मोबाइल की घंटी बजी.

-क्रमश:

 

इन्हें भी आजमाइए

  1. दांतों में दर्द होने पर लहसुन को कच्चा पीस कर दांतों पर रख लें, इस से तुरंत आराम मिलेगा क्योंकि लहसुन में ऐंटी बैक्टीरियल तत्त्व होते हैं जो दांत पर सीधा प्रभाव डालते हैं.
  2. भारी खाना खाने के बाद एक चम्मच काला जीरा खाने से लाभ मिलता है. यह कब्ज को दूर कर पाचन क्रिया को आरामदायक बनाता है. यह पेट के कीड़ों को भी मारता है.
  3. अगर बच्चे का वजन कम है तो मलाई वाला दूध पिलाएं. अगर उसे पीने में अच्छा नहीं लगता है तो शेक बना कर दें, लेकिन उस के शरीर में मलाई पहुंचनी चाहिए.
  4. आंखों की थकान का इलाज है कैमोमाइल चाय. तुरंत राहत मिल जाएगी. यह आप की आंखों के आसपास की सूजन को कम करने में भी असरदार है.
  5. खांसी व कफ से तुरंत राहत के लिए अदरक, लहसुन और शहद का पेस्ट बनाएं और चाय में मिला कर के पिएं.
  6. कैनवस जूतों से ज्यादा बदबू आने पर एक चम्मच बेकिंग सोडा को तली में फैला दें और धो दें. इस से बदबू नहीं आएगी.
  7. अगर आप के चेहरे की त्वचा काफी तैलीय है तो मुलतानी मिट्टी का लेप लगा कर 5 मिनट के बाद धो दें.

निगाहें तुम्हारी

किनारा कहां है

सहारा कहां है

क्षितिज पर ठहरती

नहीं हैं निगाहें

समंदर की लहरें

कदम चूमती हैं…

हवा चल रही है

किसे छल रही है

झुका जा रहा है

ये मदहोश अंबर

सुवासित हवाएं

यहां झूमती हैं…

किसी ने पुकारा

मिला फिर किनारा

ये जुल्फों का साया

ये दिलकश नजारा

निगाहें तुम्हारी

मुझे चूमती हैं.

     – अहद ‘प्रकाश’

मेरे पापा

मैं बीए फाइनल की परीक्षा में फेल हो गई. मुझे इस बात का बहुत दुख हुआ और मैं बहुत रोई भी. मुझे इस बात का डर सता रहा था कि इस के लिए घर में बहुत डांट पड़ने वाली है. मेरे पापा घर आए तो उन्होंने मुझ से ये शब्द कहे, ‘‘गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में, वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले,’’ पापा के मुंह से उन की यह बात सुन कर मैं नए सिरे से पढ़ाई में लग गई और अच्छे नंबरों में पास हो कर दिखाया.   

उषा वधावन, अमृतसर (पंजाब)

*

मेरे पापा मुझे और मेरे छोटे भाई को बहुत चाहते थे. बात मेरे विवाह की है. मेरे विवाह वाले दिन हमारे घर से 3 घर छोड़ कर एक महिला की मृत्यु हो गई थी. यह सुन कर पापा ने बरात का बैंडबाजा, घर का संगीत आदि रुकवा दिया और सुबह जल्दी ही मेरी विदाई करवा दी. आज इस बात को 26 साल हो गए लेकिन आज भी लोग इस बात को याद कर के उन की प्रशंसा करते नहीं थकते. पापा की ऐसी और भी कई बातें हैं जिन्हें याद कर के हम अपनेआप को गौरवान्वित महसूस करते हैं. पापा की तरह धैर्यवान, सरल स्वभाव और ईमानदार व्यक्ति मैं ने आज तक नहीं देखा.

मीता श्रीवास्तव, रायबरेली (उ.प्र.)

*

बात 1980 की है. मेरे पापा शिक्षा विभाग में पोस्टग्रेजुएट टीचर के पद पर कार्यरत थे. मैं गंगटोक के एक पब्लिक स्कूल में चौथी कक्षा का छात्र था. होली पर्व के पश्चात शिष्टाचारवश पापा शिक्षा निदेशक से मिलने के लिए गए. शिक्षा निदेशक ने पापा से कहा था, मि. सिंह, शिक्षा विभाग आप के नाम का प्रस्ताव डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन औफिसर के लिए करना चाहता है परंतु एक शर्त होगी कि आप को गंगटोक छोड़ कर किसी अन्य जनपद में जाना होगा. निदेशक ने पापा से मुझे तत्कालीन स्कूल के छात्रावास में रखने का अनुरोध भी किया था. पापा ने निदेशक को धन्यवाद दिया. साथ ही पापा ने उन से कहा था, ‘‘सर, यदि आप मेरे लिए इतने उदार हैं तो मेरे पुत्र के कक्षा 12वीं उत्तीर्ण करने तक मुझे गंगटोक में ही रहने दें.’’ पापा मेरी तिब्बती भाषा के अध्ययन में कोई रुकावट नहीं चाहते थे. कारण, इस भाषा को पढ़ने की व्यवस्था केवल गंगटोक में ही थी. मैं आज सिक्किम में सिविल इंजीनियर हूं. मुझे अपने पापा पर गर्व है कि उन्होंने अपनी पदोन्नति को नहीं बल्कि प्राइमरी स्टेज से ही मेरे अध्ययन और तिब्बती भाषा के प्रति मेरे लगाव की ओर विशेष ध्यान दिया.

दीपक सिंह, गंगटोक (सिक्किम)

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